००१ यशः ...{Loading}...
Whitney subject
- With an oblation for confluence.
VH anukramaṇī
यशः।
१-३ ब्रह्मा। यज्ञः, चन्द्रमाश्च। १-२ पथ्याबृहती, ३ पङ्क्तिः।
Whitney anukramaṇī
[Brahman.—⌊tṛcam.⌋ yājñikam; cāndramasam. ānuṣṭubham: 1, 2. pathyābṛhatyāu; 3. pan̄kti.]
Whitney
Comment
The hymn is found also in Pāipp. xix. (the order of vss. 2 and 3 being inverted). It resembles i. 15, and, as it has the same pratīka of the first verse, the comm. maintains that it may be used along with or instead of that hymn where the latter is quoted (Kāuś. 19. 4, and Nakṣ. K. 20). ⌊C.f. also note to Kāuś. 19. 1.⌋
Translations
Translated: Griffith, ii. 259.
Griffith
An accompaniment to the offering of a Mixt Oblation
०१ संसं स्रवन्तु
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
संसं॑ स्रवन्तु न॒द्यः१॒॑ सं वाताः॒ सं प॑त॒त्रिणः॑।
य॒ज्ञमि॒मं व॑र्धयता गिरः संस्रा॒व्ये᳡ण ह॒विषा॑ जुहोमि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
संसं॑ स्रवन्तु न॒द्यः१॒॑ सं वाताः॒ सं प॑त॒त्रिणः॑।
य॒ज्ञमि॒मं व॑र्धयता गिरः संस्रा॒व्ये᳡ण ह॒विषा॑ जुहोमि ॥
०१ संसं स्रवन्तु ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Together, together let the rivers flow, together the winds, together
the birds; increase ye this sacrifice, O songs (gír); I make offering
with an oblation of confluence.
Notes
The first half-verse is nearly identical with i. 15. 1 a, b; the
third pāda, nearly with i. 15. 2 c; the last pāda, with i. 15. 1
d; ii. 26. 3 d. The translation implies giras, voc., in this
verse and the next; it is read by the mss. almost without exception, and
so by SPP’s text; also in i. 15. 2. Ppp. reads in a sravanti
sindhavaḥ.
Griffith
Let the streams flow together, let the winds and birds assembled come. Strengthen this sacrifice of mine, ye singers. I offer up a duly mixt oblation.
पदपाठः
सम्। सम्। स्र॒व॒न्तु॒। न॒द्यः᳡। सम्। वाताः॑। सम्। प॒त॒त्रिणः॑। य॒ज्ञम्। इ॒मम्। व॒र्ध॒य॒त॒। गि॒रः॒। स॒म्ऽस्रा॒व्ये᳡ण। ह॒विषा॑। जु॒हो॒मि॒। १.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- यज्ञः, चन्द्रमाः
- ब्रह्मा
- पथ्या बृहती
- यज्ञ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (नद्यः) नदियाँ (सम् सम्) बहुत अनुकूल (स्रवन्तु) बहें, (वाताः) विविध प्रकार के पवन और (पतत्रिणः) पक्षी (सम् सम्) बहुत अनुकूल [बहें]। (गिरः) हे स्तुतियोग्य विद्वानो ! (इमम्) इस (यज्ञम्) यज्ञ [देवपूजा, संगतिकरण और दान] को (वर्धयत) बढ़ाओ, (संस्राव्येण) बहुत अनुकूलता से भरी हुई (हविषा) भक्ति के साथ [तुम को] (जुहोमि) मैं स्वीकार करता हूँ ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि नौका, खेती आदि में प्रयोग करने से नदियों को, विमान आदि शिल्पों से पवनों को और यथायोग्य व्यवहार से पक्षी आदि को अनुकूल करें और नम्रतापूर्वक विद्वानों से मिलकर सुख के व्यवहारों को बढ़ावें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: यह मन्त्र कुछ भेद से आ चुका है-अ० १।१५।१ ॥ इस सूक्त का मिलान करो-अ० १।१५ ॥ १−(सम् सम्) अभ्यासे भूयांसमर्थं मन्यन्ते-निरु० १०।४२। अत्यन्तसम्यक्। अत्यनुकूलाः (स्रवन्तु) वहन्तु (नद्यः) सरितः (सम् सम्) अत्यनुकूलाः (वाताः) विविधपवनाः (पतत्रिणः) पक्षिणः (यज्ञम्) देवपूजासंगतिकरणदानव्यवहारम् (वर्धयत) समृद्धं कुरुत (गिरः) गीर्यन्ते स्तूयन्त इति गिरः, कर्मणि-क्विप्। हे स्तूयमाना विद्वांसः (संस्राव्येण) स्रु गतौ−ण। तस्येदम्। पा० ४।३।१२०। संस्राव−यत्। संस्रावेण सम्यक् स्रवणेन आर्द्रभावेन युक्तेन (हविषा) आत्मदानेन। भक्त्या (जुहोमि) अहमाददे। स्वीकरोमि युष्मान् ॥
०२ इमं होमा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
इ॒मं हो॑मा य॒ज्ञम॑वते॒मं सं॑स्रावणा उ॒त।
य॒ज्ञमि॒मं व॑र्धयता गिरः संस्रा॒व्ये᳡ण ह॒विषा॑ जुहोमि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
इ॒मं हो॑मा य॒ज्ञम॑वते॒मं सं॑स्रावणा उ॒त।
य॒ज्ञमि॒मं व॑र्धयता गिरः संस्रा॒व्ये᳡ण ह॒विषा॑ जुहोमि ॥
०२ इमं होमा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- This sacrifice do ye aid, O offerings (hóma); this one, ye also
that flow together: increase ye this sacrifice, O songs; I make offering
with an oblation of confluence.
Notes
SPP. reads in a hómās, with all the mss., but our emendation to
homās is evidently demanded by the sense; the comm. also understands
the word as vocative. Ppp. reads homā yajña pacate idaṁ, and uses the
last half of vs. 3 as refrain, instead of that of vs. 1.
Griffith
O Burnt Oblations, aid, and ye, Blent Offerings, this my sacrifice. Strengthen this sacrifice of mine, ye singers. I offer up a duly mixt oblation.
पदपाठः
इ॒मम्। होमाः॑। य॒ज्ञम्। अ॒व॒त॒। इ॒मम्। स॒म्ऽस्रा॒व॒णाः॒। उ॒त। य॒ज्ञम्। इ॒मम्। व॒र्ध॒य॒त॒। गि॒रः॒। स॒म्ऽस्रा॒व्ये᳡ण। ह॒विषा॑। जु॒हो॒मि॒। १.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- यज्ञः, चन्द्रमाः
- ब्रह्मा
- पथ्या बृहती
- यज्ञ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (होमाः) दाता लोगो तुम (इमम्) इस (यज्ञम्) यज्ञ [देवपूजा, संगतिकरण और दान] को, (उत) और (संस्रावणाः) हे बड़े कोमल स्वभाववालो ! (इमम्) इस [यज्ञ] की (अवत) रक्षा करो। (गिरः) हे स्तुतियोग्य विद्वानो ! (इमम्) इस (यज्ञम्) यज्ञ [देवपूजा आदि] को (वर्धयत) बढ़ाओ, (संस्राव्येण) बहुत कोमलता से भरी हुई (हविषा) भक्ति के साथ [तुम को] (जुहोमि) मैं स्वीकार करता हूँ ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सब मनुष्य आप्त विद्वानों से नम्रतापूर्वक मिलकर धर्मवृद्धि और शिल्प आदि वृद्धि करते रहें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: इस मन्त्र के पूर्वार्द्ध का मिलान करो−पूर्वार्द्ध अ० १।१५।२ ॥ २−(इमम्) क्रियमाणम् (होमाः) अ० ८।९।१८। हु दानादानादनेषु-मन्। दातारो यूयम् (यज्ञम्) म० १ (अवत) रक्षत (इमम्) यज्ञम् (संस्रावणाः) स्रु गतौ−णिचि, ल्युट्, अर्शआद्यच्। हे आर्द्रस्वभावयुक्ताः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥
०३ रूपंरूपं वयोवयः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
रू॒पंरू॑पं॒ वयो॑वयः सं॒रभ्यै॑नं॒ परि॑ ष्वजे।
य॒ज्ञमि॒मं चत॑स्रः प्र॒दिशो॑ वर्धयन्तु संस्रा॒व्ये᳡ण ह॒विषा॑ जुहोमि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
रू॒पंरू॑पं॒ वयो॑वयः सं॒रभ्यै॑नं॒ परि॑ ष्वजे।
य॒ज्ञमि॒मं चत॑स्रः प्र॒दिशो॑ वर्धयन्तु संस्रा॒व्ये᳡ण ह॒विषा॑ जुहोमि ॥
०३ रूपंरूपं वयोवयः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Form by form, vigor (váyas) by vigor—taking hold together I
embrace him: let the four quarters increase this sacrifice; I make
offering with an oblation of confluence.
Notes
The comm. understands the sacrificer by enam in b. ⌊In c,
cátasraḥ is metrically and otherwise superfluous.⌋
The metrical definitions given by the Anukr. for this hymn are of no
value; the first two are inexact even as regards a mechanical count of
syllables.
Griffith
Each several form, each several force I seize, and compass round this man. May the Four Quarters strengthen this my sacrifice. I offer up a duly mixt oblation.
पदपाठः
रू॒पम्ऽरू॑पम्। वयः॑ऽवयः। स॒म्ऽरभ्य॑। ए॒न॒म्। परि॑। स्व॒जे॒। य॒ज्ञम्। इ॒मम्। चत॑स्रः। प्र॒ऽदिशः॑। व॒र्ध॒य॒न्तु॒। स॒म्ऽस्रा॒व्ये᳡ण। ह॒विषा॑। जु॒हो॒मि॒। १.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- यज्ञः, चन्द्रमाः
- ब्रह्मा
- पङ्क्तिः
- यज्ञ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (रूपंरूपम्) सब प्रकार की सुन्दरता और (वयोवयः) सब प्रकार के बल को (संरभ्य) ग्रहण करके (एनम्) इस (विद्वान्) को (परि ष्वजे) मैं गले लगाता हूँ। (इमम्) इस (यज्ञम्) यज्ञ [देवपूजा, संगतिकरण और दान] को (चतस्रः) चारों (प्रदिशः) बड़ी दिशाएँ (वर्धयन्तु) बढ़ावें, (संस्राव्येण) बहुत कोमलता से भरी हुई (हविषा) भक्ति के साथ [इस विद्वान् को] (जुहोमि) मैं स्वीकार करता हूँ ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्वानों से उत्तम शिक्षा और बल प्राप्त कर के उनका सत्कार करें, जिससे सब दिशाओं में सत्कर्मों की वृद्धि होवे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध कुछ भेद से आ चुका है-अ० १।२२।३ ॥ ३−(रूपंरूपम्) अ० १।२३।३। सर्वसौन्दर्य्यम् (वयोवयः) अ० १।२२।३। सर्वसामर्थ्यम् (संरभ्य) गृहीत्वा (एनम्) विद्वांसम् (परि) सर्वतः (स्वजे) ष्वञ्ज परिष्वङ्गे। आलिङ्गयामि (यज्ञम्) (इमम्) (चतस्रः) (प्रदिशः) प्राच्यादयो महादिशः (वर्धयन्तु) समर्धयन्तु। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥