००९ ...{Loading}...
Whitney subject
- Paryāya the ninth.
VH anukramaṇī
१-४ यमः। १ प्रजापतिः, २ अग्निः, सोमः, पूषा, ३-४ सूर्यः। प्राजापत्या आर्च्यनुष्टुप्, २ आर्च्युष्णिक्, ३ साम्नी पङ्क्तिः, ४ परोष्णिक्।
Whitney anukramaṇī
[catvāri vāi vacanāni. 1. prājāpatyā; 2. mantroktabahudevatyā; 3, 4. sāurye. 1. ārcy anuṣṭubh; 2. ārcy uṣṇih; 3. sāmnī pan̄kti; 4. paroṣṇih.]
Whitney
Comment
Translations
Translated: Griffith, ii. 208.
Griffith
A charm to secure wealth and felicity
०१ जितमस्माकमुद्भिन्नमस्माकमभ्यष्ठां विश्वाः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
जि॒तम॒स्माक॒मुद्भि॑न्नम॒स्माक॑म॒भ्य᳡ष्ठां॒ विश्वाः॒ पृत॑ना॒ अरा॑तीः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
जि॒तम॒स्माक॒मुद्भि॑न्नम॒स्माक॑म॒भ्य᳡ष्ठां॒ विश्वाः॒ पृत॑ना॒ अरा॑तीः ॥
०१ जितमस्माकमुद्भिन्नमस्माकमभ्यष्ठां विश्वाः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Ours [is] what is conquered, ours what has shot up; I have
withstood all fighters, niggards.
Notes
The verse is identical with the first part of x. 5. 36; and its second
part, with vs. 2, is found in MS. i. 5. 3 (reading abhy àsthām).
Griffith
Ours is superior place and ours is conquest: may I in all fights tread down spite and malice.
पदपाठः
जि॒तम्। अ॒स्माक॑म्। उत्ऽभि॑न्नम्। अ॒स्माक॑म्। अ॒भि। अ॒स्था॒म्। विश्वाः॑। पृत॑नाः। अरा॑तीः। ९.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आर्ची अनुष्टुप्
- प्रजापति
- यम
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सुख की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (जितम्) जय किया हुआवस्तु (अस्माकम्) हमारा और (उद्भिन्नम्) निकासी किया हुआ धन (अस्माकम्) हमारा [हो], (विश्वाः) [शत्रुओं की] सब (पृतनाः) सेनाओं और (अरातीः) कंजूसियों को (अभिअस्थाम्) मैंने रोक दिया है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - पराक्रमी वीर पुरुषशत्रुओं को जीतकर और उन से कर लेकर अपने वश में रक्खे ॥१॥यह मन्त्र आचुका है-अ०१०।५।३६ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(जितम्) जयेन प्राप्तम् (अस्माकम्) धर्मात्मनाम् (उद्भिन्नम्)उद्भेदनं स्फुरणम्। आयधनम् (अस्माकम्) (अभि अस्थाम्) अभिभूतवानस्मि (विश्वाः)सर्वाः (पृतनाः) शत्रुसेनाः (अरातीः) अदानशीलताः ॥
०२ तदग्निराहतदु सोम
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तद॒ग्निरा॑ह॒तदु॒ सोम॑ आह पू॒षा मा॑ धात्सुकृ॒तस्य॑ लो॒के ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तद॒ग्निरा॑ह॒तदु॒ सोम॑ आह पू॒षा मा॑ धात्सुकृ॒तस्य॑ लो॒के ॥
०२ तदग्निराहतदु सोम ...{Loading}...
Whitney
Translation
- That Agni says; that, too, Soma says: may Pūshan set me in the world
of the well-done.
Notes
The two pādas are second and fourth pādas of a verse in MS. i. 5. 3
(which rectifies the meter by reading na ā́ dhāt in place of mā dhāt:
our own text probably ought to read mā́, i.e. mā ā́). With either of
these readings, we have two faultless triṣṭubh pādas; but the Anukr.
sanctions only 21 syllables. The first pāda is also found as viii. 5. 5
a and xix. 24. 8 c.
Griffith
This word hath Agni, this hath Soma spoken. May Pushan set me in the world of virtue.
पदपाठः
तत्। अ॒ग्निः। आ॒ह॒। तत्। ऊं॒ इति॑। सोमः॑। आ॒ह॒। पू॒षा। मा॒। धा॒त्। सु॒ऽकृ॒तस्य॑। लो॒के। ९.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आर्ची उष्णिक्
- सोम, पूषा
- यम
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सुख की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (तत्) यह (अग्निः)ज्ञानस्वरूप परमेश्वर (आह) कहता है, (तत् उ) यही (सोमः) सर्वोत्पादक परमात्मा (आह) कहता है, (पूषा) पोषण करनेवाला जगदीश्वर (मा) मुझे (सुकृतस्य) पुण्य कर्मके (लोके) लोक [समाज] में (धात्) रक्खे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा निरन्तरआज्ञा देता है कि मनुष्य सदा धर्मात्माओं के समाज में रह कर उन्नति करे ॥२॥इसमन्त्र का कुछ भाग आ चुका है-अ० ८।५।५ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(तत्) इदम् (अग्निः)ज्ञानस्वरूपपरमेश्वरः (आह) ब्रवीति। उपदिशति (तत्) (उ) एव (सोमः) सर्वोत्पादकःपरमात्मा (आह) (पूषा) सर्वपोषकजगदीश्वरः (मा) माम् (धात्) दध्यात् (सुकृतस्य)पुण्यकर्मणः (लोके) समाजे ॥
०३ अगन्म स्वःस्वरगन्म
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अग॑न्म॒ स्वः१॒॑स्व᳡रगन्म॒ सं सूर्य॑स्य॒ ज्योति॑षागन्म ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अग॑न्म॒ स्वः१॒॑स्व᳡रगन्म॒ सं सूर्य॑स्य॒ ज्योति॑षागन्म ॥
०३ अगन्म स्वःस्वरगन्म ...{Loading}...
Whitney
Translation
- We have gone to heaven (svàr); to heaven have we gone; we have
united (sam-gam) with the sun’s light;—
Notes
The first half is the beginning also of TS. i. 6. 6. In Kāuś. 6. 16, the
verse is used in the parvan ceremonies, while one looks at the sun;
but according to Dārila, this verse with the next is to be so used: ⌊and
his view is accepted by SPP. (iii. 350¹⁶) and is supported by the
suspension of the sense (see note to vs. 4)⌋. In Vāit. 24. 5, it is
used, together with a RV. verse, to accompany the coming up from the
bath in the agniṣṭoma ceremony. ⌊For the general import of this vs.,
see p. 792, ¶ 2.⌋
Griffith
We have come to the light of heaven; to the light of heaven have we come: we have united with the light of Surya.
पदपाठः
अग॑न्म। स्वः᳡। स्वः᳡। अ॒ग॒न्म॒। सम्। सूर्य॑स्य। ज्योति॑षा। अ॒ग॒न्म॒। ९.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- साम्नी पङ्क्ति
- सूर्य
- यम
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सुख की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (स्वः) सुख [तत्त्वज्ञान का आनन्द] (अगन्म) हम पावें और (स्वः) सुख [मोक्ष आनन्द] (अगन्म)हम पावें और (सूर्यस्य) सर्वप्रेरक परमात्मा की (ज्योतिषा) ज्योति से (सम्अगन्म) हम मिल जावें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य पुरुषार्थ केसाथ तत्त्वज्ञानी होकर मोक्षसुख पावें और परमात्मा के दर्शन के भागी होवें॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(अगन्म) छन्दसि लुङ्लङ्लिटः। पा० ३।४।६। लिङर्थे लुङ्। गच्छेम। प्राप्नुयाम (स्वः) तत्त्वज्ञानसुखम् (स्वः) मोक्षसुखम् (अगन्म) प्राप्नुयाम (सम्) संगत्य (सूर्यस्य) सर्वप्रेरकस्य परमात्मनः (ज्योतिषा) तेजसा (अगन्म) प्राप्नुयाम ॥
०४ वस्योभूयायवसुमान्यज्ञो वसु
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व॑स्यो॒भूया॑य॒वसु॑मान्य॒ज्ञो वसु॑ वंसिषीय॒ वसु॑मान्भूयासं॒ वसु॒ मयि॑ धेहि ॥
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मूलम् (VS)
व॑स्यो॒भूया॑य॒वसु॑मान्य॒ज्ञो वसु॑ वंसिषीय॒ वसु॑मान्भूयासं॒ वसु॒ मयि॑ धेहि ॥
०४ वस्योभूयायवसुमान्यज्ञो वसु ...{Loading}...
Whitney
Translation
- In order to becoming better (vásyas-). Rich in good (vásu-)
[is] the sacrifice; good may I win (van); rich in good may I be;
good put thou in me.
Notes
The first word seems to belong in sense rather to the preceding verse;
⌊see note thereon⌋. All the mss. read vaṅśiṣīya, and the edition
follows them; but we ought unquestionably to have emended to
vinṣiṣīya. There is even probably a play on words intended between
vásu and vaṅs-. ⌊Yet SPP. reads vaṅśiṣīya without note of variant:
as to the form, see Gram. § 914 b.⌋ ⌊For use by Kāuś., see under vs.
3.⌋
⌊Here ends the second anuvāka, with 5 paryāyas and 71 avasānarcas:
but see the summations at p. 793 and cf. p. 798 and p. 801. The piece
here quoted from the Old Anukr. is pañcaparyāya uttaraḥ: see p. 792.⌋
⌊Here ends the thirty-first prapāṭhaka.⌋
Griffith
Sacrifice is fraught with wealth for the increase of prosperity. I would win riches; fain would I be wealthy. Do thou bestow wealth upon me.
पदपाठः
व॒स्यः॒ऽभूया॑य। वसु॑ऽमान। य॒ज्ञः। वसु॑। वं॒शि॒षी॒य॒। वसु॑ऽमान्। भू॒या॒स॒म्। वसु॑। मयि॑। धे॒हि॒। ९.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- परोष्णिक्
- सूर्य
- यम
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सुख की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (वस्योभूयाय) अधिकश्रेष्ठ पद पाने के लिये [हमारा] (यज्ञः) यज्ञ [देवपूजा, संगतिकरण औरदानव्यवहार] (वसुमान्) श्रेष्ठ गुणवाला [हो], (वसु) श्रेष्ठ पद (वंशिषीय) मैंमाँगूँ, (वसुमान्) श्रेष्ठ पदवाला (भूयासम्) मैं हो जाऊँ, [हे परमात्मन् !] (वसु) श्रेष्ठ पद (मयि) मुझ में (धेहि) धारण कर ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमात्मा मेंविश्वास कर के यह प्रयत्न करे कि परोपकार द्वारा संसार के भीतर श्रेष्ठ सेश्रेष्ठ पद पावे ॥४॥ इति द्वितीयोऽनुवाकः ॥इत्येकत्रिंशः प्रपाठकः ॥इति षोडशं काण्डम् ॥इतिश्रीमद्राजाधिराजप्रथितमहागुणमहिमश्रीसयाजीरावगायकवाड़ाधिष्ठितबड़ोदेपुरीगतश्रावणमासदक्षिणापरीक्षायाम् ऋक्सामाथर्ववेदभाष्येषु लब्ददक्षिणेन श्रीपण्डितक्षेमकरणदासत्रिवेदिना कृते अथर्ववेदभाष्ये षोडशं काण्डं समाप्तम्॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(वस्योभूयाय) वसु-ईयसुन्, ईलोपः+भू सत्तायां प्राप्तौ च-क्यप्।श्रेष्ठतरपदप्राप्तये (वसुमान्) श्रेष्ठगुणवान् (यज्ञः) देवपूजासंगतिकरणदानव्यवहारः (वसु) श्रेष्ठपदम् (वंशिषीय) अ० ९।१।१४। वनु याचने-आशीर्लिङि छान्दसं रूपम्। अहंवनिषीय। याचिषीय (वसुमान्) श्रेष्ठपदयुक्तः (वसु) श्रेष्ठपदम् (मयि)पुरुषार्थिनि (धेहि) धारय ॥