००६ ...{Loading}...
Whitney subject
- Paryāya the sixth.
VH anukramaṇī
१-११ यमः। दुःष्वप्ननाशनं,उषा। १-४ प्राजापत्याऽनुष्टुप्, ५ साम्नी पङ्क्तिः ६ निचृदार्षी बृहती, ७ द्विपदा साम्नी बृहती, ८ आसुरी जगती, ९ आसुरी बृहती, १० आर्ची उष्णिक्, ११ त्रिपदा यवमध्या गायत्री वा आर्ची अनुष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[Yama.—etādaśa. duḥsvapnanāśanadevatya; uṣodevatya. 1-4. prājāpatyā ’nuṣṭubh; 5. sāmnī pan̄kti; 6. nicṛd ārcī bṛhatī; 7. 2-p. sāmnī bṛhatī; 8. āsurī jagatī; 9. āsurī bṛhatī; 10. ārcy uṣṇih; 11. 3-p. yavamadhyā gāyatrī vā ”rcy anuṣṭubh (see under vs. 11).]
Whitney
Comment
Translations
Translated: Griffith, ii. 204.
Griffith
A charm to avert evil dreams, and to transfer them to an enemy
०१ अजैष्माद्यासनामाद्याभूमनागसो वयम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अजै॑ष्मा॒द्यास॑नामा॒द्याभू॒मना॑गसो व॒यम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अजै॑ष्मा॒द्यास॑नामा॒द्याभू॒मना॑गसो व॒यम् ॥
०१ अजैष्माद्यासनामाद्याभूमनागसो वयम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- We have conquered today, we have won today; we have become
guiltless.
Notes
The verse corresponds to the first two pādas of RV. viii. 47. 18, which
differ only by reading ca in place of the second adyá. It and its
two successors (or also vs. 4) are really metrical, half anuṣṭubhs.
The verse, or the paryāya, is used in Kāuś. 49. 19, nearly at the end of
the abhicāra or witchcraft chapter, with xiii. 1. 28 and 3. 1, to
accompany the putting on of adhipāśas (conjectured ‘gag’ in the minor
Pet. Lex.).
Griffith
Now have we conquered and obtained: we have been freed from sin to-day.
पदपाठः
अजै॑ष्म। अ॒द्य। अस॑नाम। अ॒द्य। अभू॑म। अना॑गसः। व॒यम्। ६.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्राजापत्या अनुष्टुप्
- उषा,दुःस्वप्ननासन
- यम
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
रोगनाश करने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अद्य) अब [अनिष्ट को] (अजैष्म) हम ने जीत लिया है, (अद्य) अब [इष्ट को] (असनाम) हम ने पा लिया है, (वयम्) हम (अनागसः) निर्दोष (अभूम) हो गये हैं ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य दोषों कोछोड़ते हैं, वे अनिष्ट को जीत कर इष्ट प्राप्त करते हैं ॥१॥मन्त्र १ तथा २ कुछभेद से ऋग्वेद में हैं−८।४७।१८ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(अजैष्म) वयं जितवन्तः (अद्य) इदानीम् (असनाम) षण संभक्तौ-लङ्। वयं लब्धवन्तः (अद्य) (अभूम) (अनागसः) निर्दोषाः (वयम्) पुरुषार्थिनः ॥
०२ उषोयस्माद्दुःष्वप्न्यादभैष्माप तदुच्छतु
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उ॒षोयस्मा॑द्दुः॒ष्वप्न्या॒दभै॒ष्माप॒ तदु॑च्छतु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उ॒षोयस्मा॑द्दुः॒ष्वप्न्या॒दभै॒ष्माप॒ तदु॑च्छतु ॥
०२ उषोयस्माद्दुःष्वप्न्यादभैष्माप तदुच्छतु ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O dawn, of what evil-dreaming we have been afraid, let that fade away
(apa-vas).
Notes
The verse ⌊cf. note to vs. 1⌋ is, without variant, RV. viii. 47. 18 c,
d.
Griffith
Let Morning with her light dispel that evil dream that frightened us.
पदपाठः
उषः॑। यस्मा॑त्। दुः॒ऽस्वप्न्या॑त्। अभै॑ष्म। अप॑। तत्। उ॒च्छ॒तु॒। ६.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्राजापत्या अनुष्टुप्
- उषा,दुःस्वप्ननासन
- यम
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
रोगनाश करने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (उषः) हे उषा ! [प्रभात वेला] (यस्मात्) जिस (दुःष्वप्न्यात्) दुष्ट स्वप्न में उठे कुविचार से (अभैष्म) हम डरे हैं, (तत्) वह (अप) दूर (उच्छतु) चला जावे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - यदि किसी कुपथ्य वारोग के कारण निद्राभङ्ग होकर मस्तक में कुविचार घूमने लगें, मनुष्य उसका प्रतीकारप्रभात ही अर्थात् बहुत शीघ्र करे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(उषः) हे प्रभातवेले (यस्मात्) (दुःष्वप्न्यात्) दुष्टस्वप्ने भवात् कुविचारात् (अभैष्म) वयं भयं प्राप्तवन्तः (अप) दूरे (तत्) भयम् (उच्छतु) गच्छतु ॥
०३ द्विषतेतत्परा वह
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द्वि॑ष॒तेतत्परा॑ वह॒ शप॑ते॒ तत्परा॑ वह ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
द्वि॑ष॒तेतत्परा॑ वह॒ शप॑ते॒ तत्परा॑ वह ॥
०३ द्विषतेतत्परा वह ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Carry that away to him that hates; carry that away to him that
curses.
Notes
Griffith
Bear that away to him who hates, away to him who curses us.
पदपाठः
द्वि॒ष॒ते। तत्। परा॑। व॒ह॒। शप॑ते। तत्। परा॑। व॒ह॒। ६.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्राजापत्या अनुष्टुप्
- उषा,दुःस्वप्ननासन
- यम
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
रोगनाश करने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे उषा !] तू (तत्)वह [कष्ट] (द्विषते) [वैद्यों से] वैर करनेवाले के लिये (परा वह) पहुँचा दे, (तत्) वह (शपते) [उन्हें] कोसनेवाले के लिये (परा वह) पहुँचा दे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य वैद्यों केशासन पर नहीं चलते, वे शीघ्र दुःख भोगते हैं ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(द्विषते) वैद्येभ्यःकुप्रीतिकारिणे (तत्) कष्टम् (परा वह) दूरे गमय (शपते) शापं कुर्वते। अन्यत्पूर्ववत् ॥
०४ यं द्विष्मोयश्च
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यं द्वि॒ष्मोयश्च॑ नो॒ द्वेष्टि॒ तस्मा॑ एनद्गमयामः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यं द्वि॒ष्मोयश्च॑ नो॒ द्वेष्टि॒ तस्मा॑ एनद्गमयामः ॥
०४ यं द्विष्मोयश्च ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Whom we hate, and who hates us, to him we make it go.
Notes
Our yás (in yáś ca no) is an emendation for yát, which all the
mss. read. ⌊SPP. reads yát with all his authorities.⌋
Griffith
To him whom we abhor, to him who hates us do we send it hence.
पदपाठः
यम्। द्वि॒ष्मः। यत्। च॒। नः॒। द्वेष्टि॑। तस्मै॑। ए॒न॒त्। ग॒म॒या॒मः॒। ६.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्राजापत्या अनुष्टुप्
- उषा,दुःस्वप्ननासन
- यम
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
रोगनाश करने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस [कुपथ्यकारी] से (द्विष्मः) हम [वैद्य लोग] वैर करते हैं, (च) और (यत्=यः) जो (नः) हम से (द्वेष्टि) बैर करता है, (तस्मै) उसको (एनत्) यह [कष्ट] (गमयामः) हमजताते हैं ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वैद्य लोग कह दें किकुपथ्यकारी मनुष्य अवश्य कष्ट भोगेगा ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(यम्) कुपथ्यसेविनम् (द्विष्मः)वैरयामः, वयं वैद्याः (यत्) अव्ययम्। यः (च) (नः) अस्मान् वैद्यान् (द्वेष्टि)वैरयति (तस्मै) कुपथ्यसेविने (एनत्) कष्टम् (गमयामः) ज्ञापयामः ॥
०५ उषा देवी
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उ॒षा दे॒वी वा॒चासं॑विदा॒ना वाग्दे॒व्यु१॒॑षसा॑ संविदा॒ना ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उ॒षा दे॒वी वा॒चासं॑विदा॒ना वाग्दे॒व्यु१॒॑षसा॑ संविदा॒ना ॥
०५ उषा देवी ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Heavenly dawn, in concord with speech; heavenly speech, in concord
with dawn;—
Notes
Part of the mss. read in b devy ū̀ṣásā.
Griffith
May the Goddess Dawn in accord with Speech, and the Goddess Speech in accord with Dawn,
पदपाठः
उ॒षाः। दे॒वी। वा॒चा। स॒म्ऽवि॒दा॒ना। वाक्। दे॒वी। उषसा॑। स॒म्ऽवि॒दा॒ना। ६.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- साम्नी पङ्क्ति
- उषा,दुःस्वप्ननासन
- यम
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
रोगनाश करने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (उषाः देवी) उषा देवी [उत्तम गुणवाली प्रभातवेला] (वाचा) वाणी से (संविदाना) मिली हुयी और (वाक् देवी)वाक् देवी [श्रेष्ठ वाणी] (उषसा) प्रभात वेला से (संविदाना) मिली हुयी [होवे]॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य प्रभातवेलाको सत्यवाणी के साथ और सत्यवाणी को प्रभातवेला के साथ संयुक्त करते हैं, अर्थात् जो प्रभात से लेकर दूसरी प्रभात तक सत्यवाणी से काम करते हैं, वे अवश्यसुखी रहते हैं ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(उषाः) प्रभातवेला (देवी) दिव्यगुणवती (वाचा) वाण्या सह (संविदाना) संगच्छमाना (वाक्) (देवी) (उषसा) प्रभातवेलया सह (संविदाना)संगच्छमाना ॥
०६ उषस्पतिर्वाचस्पतिना संविदानो
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उ॒षस्पति॑र्वा॒चस्पति॑ना संविदा॒नो वा॒चस्पति॑रु॒षस्पति॑ना संविदा॒नः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उ॒षस्पति॑र्वा॒चस्पति॑ना संविदा॒नो वा॒चस्पति॑रु॒षस्पति॑ना संविदा॒नः ॥
०६ उषस्पतिर्वाचस्पतिना संविदानो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The lord of dawn, in concord with the lord of speech; the lord of
speech, in concord with the lord of dawn:—
Notes
The Anukr. mss. read ārṣī instead of ārcī in their definition of the
meter of this verse.
Griffith
The Lord of Dawn in accord with the Lord of Speech and the Lord of Speech in accord with the Lord of Dawn,
पदपाठः
उ॒षः। पतिः॑। वा॒चः। पति॑ना। स॒म्ऽवि॒दा॒नः। वा॒चः। पतिः॑। उ॒षः। पति॑ना। स॒म्ऽवि॒दा॒नः। ६.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- निचृत आर्ची बृहती
- उषा,दुःस्वप्ननासन
- यम
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
रोगनाश करने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (उषः=उषसः) उषा का (पतिः) पति [प्रभात उठनेवाला मनुष्य] (वाचः) वाणी के (पतिना) पति [विद्याभ्यासी]के साथ (संविदानः) मिला हुआ और (वाचः) वाणी का (पतिः) पति [विद्याभ्यासी पुरुष] (उषः=उषसः) उषा के (पतिना) पति [प्रभात उठनेवाले] के साथ (संविदानः) मिला हुआ [होवे] ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रभातवेलामें उठकर वेदादि शास्त्रों को विचारें और वेदादि शास्त्र विचारनेवाले प्रभातवेला में उठें, जिससे उनकी स्वस्थता और स्मृति बढ़ती रहे ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(उषः)विभक्तिलोपः। उषसः। प्रभातवेलायाः (पतिः) पालकः पुरुषः (वाचः) वाण्याः (पतिना)पालकेन पुरुषेण (संविदानः) संगच्छमानः (वाचस्पतिः) विद्याभ्यासी पुरुषः (उषस्पतिना) प्रभातबोधनशीलेन (संविदानः) ॥
०७ तेऽमुष्मैपरा वहन्त्वरायान्दुर्णाम्नः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ते॒३॒॑ऽमुष्मै॒परा॑ वहन्त्व॒राया॑न्दु॒र्णाम्नः॑ स॒दान्वाः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ते॒३॒॑ऽमुष्मै॒परा॑ वहन्त्व॒राया॑न्दु॒र्णाम्नः॑ स॒दान्वाः॑ ॥
०७ तेऽमुष्मैपरा वहन्त्वरायान्दुर्णाम्नः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Let them carry away for yon man the niggards (arā́ya), the ill-named
ones, the sadā́nvās,—
Notes
Griffith
Carry away to Such-an-one niggard fiends, hostile demons, and Sadanvas,
पदपाठः
ते। अ॒मुष्मै॑। परा॑। व॒ह॒न्तु॒। अ॒राया॑न्। दुः॒ऽनाम्नः॑। स॒दान्वाः॑। ६.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- द्विपदा साम्नी बृहती
- उषा,दुःस्वप्ननासन
- यम
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
रोगनाश करने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ते) वे [ईश्वरनियम] (अमुष्मै) उस [कुपथ्यकारी] के लिये (अरायान्) क्लेशों, (दुर्णाम्नः) दुर्नामों [अर्श आदि रोगों] (सदान्वाः) सदा चिल्लानेवाली पीड़ाओं [रोग जिन में रोगीचिल्लाता है] ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य ईश्वरनियमको छोड़कर कुपथ्य करतेहैं, वे अनेक महाक्लिष्ट रोग भोगते हैं॥७-९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(ते) ईश्वरनियमाः (अमुष्मै) कुपथ्यसेविने (परा वहन्तु) दूरे प्रापयन्तु (अरायान्)श्रुदक्षिस्पृहिगृहिभ्य आय्यः। उ० ३।९६। ऋ हिंसायाम्-आय्य, यलोपः। क्लेशान् (दुर्णाम्नः) अ० ८।६।१। अर्शआदिरोगान् (सदान्वाः) अ० २।१४।१। सदा नोनुवाः।सर्वदा नोनूयमानाः शब्दायमानाः पीडाः ॥
०८ कुम्भीकादूषीकाः पीयकान्
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कु॒म्भीका॑दू॒षीकाः॒ पीय॑कान् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
कु॒म्भीका॑दू॒षीकाः॒ पीय॑कान् ॥
०८ कुम्भीकादूषीकाः पीयकान् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The kumbhī́kās, the spoilers (dūṣī́kā), the revilers (pī́yaka),—
Notes
Griffith
Kumbhikas, Dushikas, and Piyakas,
पदपाठः
कु॒म्भीकाः॑। दू॒षीकाः॑। पीय॑कान्। ६.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आसुरी जगती
- उषा,दुःस्वप्ननासन
- यम
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
रोगनाश करने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कुम्भीकाः)कुम्भीकाओं [रोग जिस में पेट बटलोही-सा बजता है], (दूषीकाः) दूषीकाओं [जिनरोगों में रोगी गिरता जाता है], (पीयकान्) अन्य दुःखदायी रोगों ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य ईश्वरनियमको छोड़कर कुपथ्य करतेहैं, वे अनेक महाक्लिष्ट रोग भोगते हैं॥७-९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(कुम्भीकाः)कुम्भी+कै शब्दे-क। कुम्भी उखेव कायन्ति शब्दायन्ते यासु ताः पीडाः (पीयकान्)पीयतिर्हिंसाकर्मा-निघ० ४।२५। क्वुन्। शिल्पिसंज्ञयोरपूर्वस्यापि। उ० २।३२।पीयति-क्वुन्। हिंसकान् रोगान् ॥
०९ जाग्रद्दुःष्वप्न्यं स्वप्नेदुःष्वप्न्यम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
जा॑ग्रद्दुःष्व॒प्न्यं स्व॑प्नेदुःष्व॒प्न्यम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
जा॑ग्रद्दुःष्व॒प्न्यं स्व॑प्नेदुःष्व॒प्न्यम् ॥
०९ जाग्रद्दुःष्वप्न्यं स्वप्नेदुःष्वप्न्यम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Waking evil-dreaming, sleeping evil-dreaming.
Notes
Literally ‘of one waking’ and ‘in sleep.’ The pada-text reads
॰dusvapnyám both times. The Anukr. twice resolves -ni-am.
Griffith
Evil day-dream, evil dream in sleep,
पदपाठः
जा॒ग्र॒त्ऽदु॒स्व॒प्न्यम्। स्व॒प्ने॒ऽदु॒स्व॒प्न्यम्। ६.९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आसुरी बृहती
- उषा,दुःस्वप्ननासन
- यम
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
रोगनाश करने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (जाग्रद्दुःष्वप्न्यम्)जागते में बुरे स्वप्न और (स्वप्नेदुःष्वप्न्यम्) सोते में बुरे स्वप्न को ॥९॥ (परा वहन्तु-म० ७) दूर पहुँचावें ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य ईश्वरनियमको छोड़कर कुपथ्य करतेहैं, वे अनेक महाक्लिष्ट रोग भोगते हैं॥७-९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ९−(जाग्रद्दुःष्वप्न्यम्) जाग्रदवस्थायां दुष्टस्वप्नम् (स्वप्नेदुःष्वप्न्यम्) स्वप्नावस्थायां दुष्टस्वप्नम् ॥
१० अनागमिष्यतोवरानवित्तेः सङ्कल्पानमुच्या
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अना॑गमिष्यतो॒वरा॒नवि॑त्तेः संक॒ल्पानमु॑च्या द्रु॒हः पाशा॑न् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अना॑गमिष्यतो॒वरा॒नवि॑त्तेः संक॒ल्पानमु॑च्या द्रु॒हः पाशा॑न् ॥
१० अनागमिष्यतोवरानवित्तेः सङ्कल्पानमुच्या ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Boons that will not come, plans of non-acquisition, fetters of
hatred that does not release:—
Notes
That is, probably, plans or desires that issue in failure. ⌊Griffith
takes drúh here and at ii. 10 as a female fiend.⌋
Griffith
Wishes for boons that will not come, thoughts of poverty, the snares of the Druh who never releases.
पदपाठः
अना॑गमिष्यतः। वरा॑न्। अवि॑त्तेः। स॒म्ऽक॒ल्पान्। अमु॑च्याः। द्रु॒हः। पाशा॑न्। ६.१०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आर्ची उष्णिक्
- उषा,दुःस्वप्ननासन
- यम
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
रोगनाश करने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अनागमिष्यतः) नआनेवाले (वरान्) वरदानों [श्रेष्ठ कर्मफलों] को, (अवित्तेः) निर्धनता के (संकल्पान्) विचारों को और (अमुच्याः) न छोड़नेवाले (द्रुहः) द्रोह [अनिष्ट, चिन्ता] के (पाशान्) फन्दों को ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य कुपथ्यसेवीहोवे, वह ईश्वरनियम के अनुसार दुष्ट कर्मों की अधिकता से श्रेष्ठ फल कभी नपावे, किन्तु दरिद्रता आदि महाक्लेशों में पड़कर घोर नरक भोगे ॥१०, ११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १०−(अनागमिष्यतः)अनागमनमिच्छतः (वरान्) श्रेष्ठफलान् (अवित्तेः) दरिद्रतायाः (संकल्पान्)विचारान् (अमुच्याः) मुच्लृ मोचने-क, ङीप्। अमोचनशीलायाः (द्रुहः)अनिष्टचिन्तायाः (पाशान्) बन्धान् ॥
११ तदमुष्मा अग्नेदेवाः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तद॒मुष्मा॑ अग्नेदे॒वाः परा॑ वहन्तु॒ वघ्रि॒र्यथास॑द्विथु॒रो न सा॒धुः ॥
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मूलम् (VS)
तद॒मुष्मा॑ अग्नेदे॒वाः परा॑ वहन्तु॒ वघ्रि॒र्यथास॑द्विथु॒रो न सा॒धुः ॥
११ तदमुष्मा अग्नेदेवाः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- That, O Agni, let the gods carry away for yon man, that he may be
impotent (vádhri), faltering, not good (sādhú).
Notes
‘For him,’ here and in vs. 7, is plainly equivalent to ’to him,’ or that
they may be his. All the mss. accent víthuras; ⌊so SPP. reads with all
his authorities⌋. As gāyatrī and ārcy anuṣṭubh both imply 24
syllables, the Anukr. seems willing to give us our choice between them.
⌊Perhaps we should understand the definition 3-p. yavamadhyā
gāyatrāvārcy anuṣṭup as an ‘anuṣṭubh of 24 syllables, like (iva:
not vā) a 3-p. yavamadhyā gāyatrī’ (7 + 10 + 7; Ind. Stud. viii.
129): only this one divides rather as 8 + 10 + 6.—One is tempted to deem
agne an intrusion and to regard the verse as a couple of simple
triṣṭubh pādas: and the temptation is strengthened by the fact that
the sole mark of pāda-division in W’s Collation Book comes after
vahantu.⌋
Griffith
This, O Agni, let the Gods bear off to Such-an-one that he may be a fragile good-for-nothing eunuch.
पदपाठः
तत्। अ॒मुष्मै॑। अ॒ग्ने॒। दे॒वाः। परा॑। व॒ह॒न्तु॒। वध्रिः॑। यथा॑। अस॑त्। विथु॑रः। न। सा॒धुः। ६.११।
अधिमन्त्रम् (VC)
- त्रिपदा यवमध्या गायत्री, आर्ची अनुष्टुप्
- उषा,दुःस्वप्ननासन
- यम
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
रोगनाश करने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (तत्) इस [सब दुःख] को (अमुष्मै) उस [कुपथ्यसेवी] के लिये, (अग्ने) हे ज्ञानस्वरूप परमेश्वर ! (देवाः) [तेरे] दिव्य नियम (परा वहन्तु) पहुँचावें, (यथा) जिस से (न साधुः) वह असाधुपुरुष (वध्रिः) निर्वीर्य और (विथुरः) व्याकुल (असत्) हो जावे ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य कुपथ्यसेवीहोवे, वह ईश्वरनियम के अनुसार दुष्ट कर्मों की अधिकता से श्रेष्ठ फल कभी नपावे, किन्तु दरिद्रता आदि महाक्लेशों में पड़कर घोर नरक भोगे ॥१०, ११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ११−(तत्)पूर्वोक्तं दुःखम् (अमुष्मै) तस्मै कुपथ्यसेविने (अग्ने) हे ज्ञानस्वरूपपरमेश्वर (देवाः) दिव्यनियमाः (परा वहन्तु) प्रापयन्तु (वध्रिः) निर्वीर्यः (यथा) येन प्रकारेण (असत्) भूयात् (विथुरः) व्यथेः सम्प्रसारणं धः किच्च। उ०१।३९। व्यथ भयसंचलनयोः-उरच्, कित्। व्याकुलः (न साधुः) असाधुः। दुष्टजनः ॥