००५

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Whitney subject
  1. Paryāya the fifth.
VH anukramaṇī

१-१० यमः। दुःष्वप्ननाशनम्। १-६ (प्रथमा) विराड् गायत्री ५ (प्रथमा) भुरिक्, ६(प्रथमा) स्वराट्, १-६ (द्वितीया) प्राजापत्या गायत्री, १-६ (तृतीय) द्विपदा साम्नी बृहती।

Whitney anukramaṇī

[Yama.—daśaka. duḥsvapnanāśanadevatya. a of 1-6. virāḍ gāyatrī (5 a. bhurij; 6 a. svarāj); 1 b, 6 b. prājāpatyā gāyatrī; 1 c, 6 c. 2-p. sāmnī bṛhatī.]

Whitney

Comment

⌊Both the Anukramaṇīs reckon the paryāya as of 10 avasānas: that is, they count the anuṣan̄gas (b-c) only in their first and last occurrences, as explained at p. 793, end (cf. pages 628-9, 772).⌋ One or two of the mss. (W.R.) indicate by fragments of b and c given also with verses 2-5 that they regard all the six verses ⌊or gaṇas, rather⌋ as of equal length. ⌊It is true that the summations (see p. 793 and table) number the gaṇas as 2 and call the avasānarcas of the remaining 4 by the name of paryāya-avasānarcas; but it is not apparent why the gaṇas should not be counted as 6, just as those of the second paryāya of xi. 3 are counted as 18 (p. 632, top, p. 628, ¶ 10).—The numbers of the avasānas as given by SPP. in accord with the Anukr. are added by me in ell-brackets.⌋

Translations

Translated: Ludwig, p. 468; Griffith, ii. 203.

Griffith

A charm against evil dreams

०१ विद्म तेस्वप्न

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वि॒द्म ते॑स्वप्न ज॒नित्रं॒ ग्राह्याः॑ पु॒त्रो᳡ऽसि॑ य॒मस्य॒ कर॑णः ॥

०१ विद्म तेस्वप्न ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. ⌊1.⌋ We know thy place of birth (janítra), O sleep; thou art son of
    seizure (grā́hi), agent of Yama; ⌊2.⌋ ender art thou, death art thou;
    ⌊3.⌋ so, O sleep, do we comprehend thee here; do thou, O sleep, protect
    us from evil-dreaming.
Notes

The verses of this hymn are nearly ⌊vs. 6 exactly⌋ identical with vi.
46. 2; and whether they or it are quoted in Kāuś. 46. 9, 13, it is
impossible, and wholly unimportant, to determine ⌊cf. introd. to vi.
46⌋.

Griffith

We know thine origin, O Sleep. Thou art the son of Grahi, the minister of Yama. Thou art the Ender, thou art Death. As such, O Sleep, we know thee well. As such preserve us from the evil dream.

पदपाठः

वि॒द्म। ते॒। स्व॒प्न॒। ज॒नित्र॑म्। ग्राह्याः॑। पु॒त्रः। अ॒सि॒। य॒मस्य॑। कर॑णः। ५.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • विराट् गायत्री
  • दुःस्वप्ननासन
  • यम
  • दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आलस्यादिदोष के त्याग के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वप्न) हे स्वप्न ! [आलस्य] (ते) तेरे (जनित्रम्) जन्मस्थान को (विद्म) हम जानते हैं, तू (ग्राह्याः) गठिया [रोगविशेष] का (पुत्रः) पुत्र और (यमस्य) मृत्यु का (करणः)करनेवाला (असि) है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! कुपश्यआदि करने से गठिया आदि रोग होते हैं, गठिया आदि से आलस्य और उससे अनेकविपत्तियाँ मृत्यु आदि होती हैं। इससे सब लोग दुःखों के कारण अति निद्रा आदि कोखोजकर निकालें और केवल परिश्रम की निवृत्ति के लिये ही उचित निद्रा का आश्रयलेकर सदा सचेत रहें ॥१-३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−इदं सूक्तं किञ्चिद्भेदेन गतं व्याख्यातं च-अ० ६।४६।२। (विद्म) जानीमः (ते) तव (स्वप्न) हे निद्रे।हे आलस्य (जनित्रम्) जन्मस्थानम् (ग्राह्याः) अ० २।९।१। सन्धीनांग्रहणशीलपीडायाः (पुत्रः) पुत्र इवोत्पन्नः (यमस्य) मृत्योः (करणः) करोतेर्ल्यु।कर्ता ॥

०२ अन्तकोऽसिमृत्युरसि

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अन्त॑कोऽसिमृ॒त्युर॑सि ॥

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Whitney
Translation
  1. ⌊4.⌋ We know thy place of birth, O sleep; thou art son of perdition,
    agent etc. etc.
Notes
Griffith

We know thine origin, O Sleep. Thou art the son of Destruction, the minister of Yama, etc. (as in verse 1).

पदपाठः

अन्त॑कः। अ॒सि॒। मृ॒त्यु ः। अ॒सि॒। ५.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राजापत्या गायत्री
  • दुःस्वप्ननासन
  • यम
  • दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आलस्यादिदोष के त्याग के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - तू (अन्तकः) अन्तकरनेवाला (असि) है और तू (मृत्युः) मृत्यु [के समान दुःखदायी] (असि) है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! कुपश्यआदि करने से गठिया आदि रोग होते हैं, गठिया आदि से आलस्य और उससे अनेकविपत्तियाँ मृत्यु आदि होती हैं। इससे सब लोग दुःखों के कारण अति निद्रा आदि कोखोजकर निकालें और केवल परिश्रम की निवृत्ति के लिये ही उचित निद्रा का आश्रयलेकर सदा सचेत रहें ॥१-३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(अन्तकः) अन्तणिच्-ण्वुल्। अन्तयतीति अन्तकः। अन्तकरः (असि) (मृत्युः) मृत्युरिव दुःखप्रदः (असि) ॥

०३ तं त्वा

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तं त्वा॑ स्वप्न॒तथा॒ सं वि॑द्म॒ स नः॑ स्वप्न दुः॒ष्वप्न्या॑त्पाहि ॥

०३ तं त्वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. ⌊5.⌋ We know thy place of birth, O sleep; thou art son of
    ill-success (ábhūti), agent etc. etc.
Notes
Griffith

We know thine origin, O Sleep. Thou art the son of Misery, etc.

पदपाठः

तम्। त्वा॒। स्व॒प्न॒। तथा॑। सम्। वि॒द्म॒। स। नः॒। स्व॒प्न॒। दुः॒ऽस्वप्न्या॑त्। पा॒हि॒। ५.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • द्विपदा साम्नी बृहती
  • दुःस्वप्ननासन
  • यम
  • दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आलस्यादिदोष के त्याग के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वप्न) हे स्वप्न ! [आलस्य] (तम्) उस (त्वा) तुझको (तथा) वैसा ही (सम्) अच्छे प्रकार (विद्म) हमजानते हैं, (सः) सो तू (स्वप्न) हे स्वप्न ! [आलस्य] (नः) हमें (दुःष्वप्न्यात्)बुरी निद्रा में उठे कुविचार से (पाहि) बचा ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! कुपश्यआदि करने से गठिया आदि रोग होते हैं, गठिया आदि से आलस्य और उससे अनेकविपत्तियाँ मृत्यु आदि होती हैं। इससे सब लोग दुःखों के कारण अति निद्रा आदि कोखोजकर निकालें और केवल परिश्रम की निवृत्ति के लिये ही उचित निद्रा का आश्रयलेकर सदा सचेत रहें ॥१-३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(तम्) तादृशम् (त्वा) त्वाम् (स्वप्न) (तथा) तेनप्रकारेण (सम्) सम्यक् (सः) स त्वम् (नः) अस्मान् (दुःष्वप्न्यात्)दुःस्वप्न-यत्। दुष्टस्वप्नेषु भवात् कुविचारात् (पाहि) रक्ष ॥

०४ विद्म तेस्वप्न

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वि॒द्म ते॑स्वप्न ज॒नित्रं॒ निरृ॑त्याः पु॒त्रो᳡ऽसि॑ य॒मस्य॒ कर॑णः ।
अन्त॑कोऽसिमृ॒त्युर॑सि ।
तं त्वा॑ स्वप्न॒ तथा॒ सं वि॑द्म॒ स नः॑ स्वप्नदुः॒ष्वप्न्या॑त्पाहि ॥

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Whitney
Translation
  1. ⌊6.⌋ We know thy place of birth, O sleep; thou art son of
    extermination (nírbhūti), agent etc. etc.
Notes
Griffith

We know thine origin, O Sleep. Thou art the son of Disappear- ance, etc.

पदपाठः

वि॒द्म। ते॒। स्व॒प्न॒। ज॒नित्र॑म्। न‍िःऽऋ॑त्याः। पु॒त्रः। अ॒सि॒। य॒मस्य॑। कर॑णः। ५.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • विराट् गायत्री,प्राजापत्या गायत्री,द्विपदा साम्नी बृहती
  • दुःस्वप्ननासन
  • यम
  • दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आलस्यादिदोष के त्याग के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वप्न) हे स्वप्न ! [आलस्य] (ते) तेरे (जनित्रम्) जन्मस्थान को (विद्म) हम जानते हैं, तू (निर्ऋत्याः) निर्ऋति [महामारी] का (पुत्रः) पुत्र और (यमस्य) मृत्यु का (करणः)करनेवाला (असि) है… [म० २, ३] ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(निर्ऋत्याः) कृच्छ्रापत्तेः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०५ विद्म तेस्वप्न

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वि॒द्म ते॑स्वप्न ज॒नित्र॒मभू॑त्याः पु॒त्रो᳡ऽसि॑ य॒मस्य॒ कर॑णः ।
अन्त॑कोऽसिमृ॒त्युर॑सि ।
तं त्वा॑ स्वप्न॒ तथा॒ सं वि॑द्म॒ स नः॑ स्वप्नदुः॒ष्वप्न्या॑त्पाहि ॥

०५ विद्म तेस्वप्न ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. ⌊7.⌋ We know thy place of birth, O sleep; thou art son of calamity
    (párābhūti), agent etc. etc.
Notes
Griffith

We know thine origin, O Sleep. Thou art the son of Defeat etc.

पदपाठः

वि॒द्म। ते॒। स्व॒प्न॒। ज॒नित्र॑म्। अभू॑त्याः। पु॒त्रः। अ॒सि॒। य॒मस्य॑। कर॑णः। ५.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • विराट् गायत्री
  • दुःस्वप्ननासन
  • यम
  • दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आलस्यादिदोष के त्याग के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वप्न) हे स्वप्न ! [आलस्य] (ते) तेरे (जनित्रम्) जन्मस्थान को (विद्म) हम जानते हैं, तू (अभूत्याः) अभूति [असम्पत्ति] का (पुत्रः) पुत्र और (यमस्य) मृत्यु का (करणः)करनेवाला (असि) है…. [म० २, –३] ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(अभूत्याः) असम्पत्त्याः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०६ विद्म तेस्वप्न

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वि॒द्म ते॑स्वप्न ज॒नित्रं॒ निर्भू॑त्याः पु॒त्रो᳡ऽसि॑ य॒मस्य॒ कर॑णः ।
अन्त॑कोऽसिमृ॒त्युर॑सि ।
तं त्वा॑ स्वप्न॒ तथा॒ सं वि॑द्म॒ स नः॑ स्वप्नदुः॒ष्वप्न्या॑त्पाहि ॥

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Whitney
Translation
  1. ⌊8.⌋ We know thy place of birth, O sleep; thou art son of the wives
    (-jāmí) of the gods, agent of Yama; ⌊9.⌋ ender art thou, death art
    thou; ⌊10.⌋ so, O sleep, do we comprehend thee here; do thou, O sleep,
    protect us from evil-dreaming.
Notes

This verse agrees ⌊precisely⌋ with vi. 46. 2, and the ⌊words dévānām
patnīnāṁ garbha yámasya kara
(the readings are not quite certain)⌋
appear in xix. 57. 3; the other verses are therefore most probably
varied repetitions of this one.

Griffith

We know thine origin, O Sleep. Thou art the son of the sisters of the Gods, the minister of Yama. Thou art the Ender, thou are Death. As such, O Sleep, we know thee well. As such, preserve us from the evil dream.

पदपाठः

वि॒द्म। ते॒। स्व॒प्न॒। ज॒नित्र॑म्। निःऽभू॑त्याः। पु॒त्रः। अ॒सि॒। य॒मस्य॑। कर॑णः। ५.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • विराट् गायत्री
  • दुःस्वप्ननासन
  • यम
  • दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आलस्यादिदोष के त्याग के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वप्न) हे स्वप्न ! [आलस्य] (ते) तेरे (जनित्रम्) जन्मस्थान को (विद्म) हम जानते हैं, तू (निर्भूत्याः) निर्भूति [हानि, नाश वा अभाव] का (पुत्रः) पुत्र और (यमस्य)मृत्यु का (करणः) करनेवाला (असि) है… [म० २, ३] ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(निर्भूत्याः) क्षित्याः। नाशस्य। अभावस्य। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०७ विद्म तेस्वप्न

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वि॒द्म ते॑स्वप्न ज॒नित्रं॒ परा॑भूत्याः पु॒त्रो᳡ऽसि॑ य॒मस्य॒ कर॑णः ।
अन्त॑कोऽसिमृ॒त्युर॑सि ।
तं त्वा॑ स्वप्न॒ तथा॒ सं वि॑द्म॒ स नः॑ स्वप्नदुः॒ष्वप्न्या॑त्पाहि ॥

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Whitney

वि॒द्म ते॑ स्वप्न ज॒नित्रं॒ परा॑भूत्याः पु॒त्रोऽसि य॒मस्य॒ कर॑णः ।
अन्त॒कोऽसि मृ॒त्युर॑सि । तं त्वा॑ स्वप्न॒ तथा॒ सं वि॑द्म॒ स नः॑ स्वप्न दु॒ष्वप्न्या॑त् पाहि ॥७॥

Griffith

वि॒द्म ते॑ स्वप्न ज॒नित्रं॒ परा॑भूत्याः पु॒त्रोऽसि य॒मस्य॒ कर॑णः ।
अन्त॒कोऽसि मृ॒त्युर॑सि । तं त्वा॑ स्वप्न॒ तथा॒ सं वि॑द्म॒ स नः॑ स्वप्न दु॒ष्वप्न्या॑त् पाहि ॥७॥

पदपाठः

वि॒द्म। ते॒। स्व॒प्न॒। ज॒नित्र॑म्। परा॑ऽभूत्याः। पु॒त्रः। अ॒सि॒। य॒मस्य॑। कर॑णः। ५.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राजापत्या गायत्री,द्विपदा साम्नी बृहती, भुरिक् विराट् गायत्री
  • दुःस्वप्ननासन
  • यम
  • दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आलस्यादिदोष के त्याग के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वप्न) हे स्वप्न ! [आलस्य] (ते) तेरे (जनित्रम्) जन्मस्थान को (विद्म) हम जानते हैं, तू (पराभूत्याः) पराभूति [पराभव, हार] का (पुत्रः) पुत्र और (यमस्य) मृत्यु का (करणः) करनेवाला (असि) है… [म० २, ३] ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(पराभूत्याः) पराजितेः। पराभवस्य। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०८ विद्म तेस्वप्न

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वि॒द्म ते॑स्वप्न ज॒नित्रं॑ देवजामी॒नां पु॒त्रो᳡ऽसि॑ य॒मस्य॒ कर॑णः ॥

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Whitney

वि॒द्म ते॑ स्वप्न ज॒नित्रं॑ देवजामी॒नां पु॒त्रोऽसि य॒मस्य॒ कर॑णः ॥८॥

Griffith

वि॒द्म ते॑ स्वप्न ज॒नित्रं॑ देवजामी॒नां पु॒त्रोऽसि य॒मस्य॒ कर॑णः ॥८॥

पदपाठः

वि॒द्म। ते॒। स्व॒प्न॒। ज॒नित्र॑म्। दे॒व॒ऽजा॒मी॒नाम्। पु॒त्रः। अ॒सि॒। य॒मस्य॑। कर॑णः। ५.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • स्वराट् विराट् गायत्री
  • दुःस्वप्ननासन
  • यम
  • दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आलस्यादिदोष के त्याग के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वप्न) हे स्वप्न ! [आलस्य] (ते) तेरे (जनित्रम्) जन्मस्थान को (विद्म) हम जानते हैं, तू (देवजामीनाम्) उन्मत्तों की गतियों का (पुत्रः) पुत्र और (यमस्य) मृत्यु का (करणः) करनेवाला (असि) है ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥८-१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(देवजामीनाम्) दिवुमदे-पचाद्यच्। नियो मिः। उ० ४।४३। या गतिप्रापणयोः-मि, आदेर्जत्वम्।देवानामुन्मत्तपुरुषाणां जामीनां यामीनां गतीनाम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०९ अन्तकोऽसिमृत्युरसि

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अन्त॑कोऽसिमृ॒त्युर॑सि ॥

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Whitney

अन्त॑कोऽसि मृ॒त्युर॑सि ॥९॥

Griffith

अन्त॑कोऽसि मृ॒त्युर॑सि ॥९॥

पदपाठः

अन्त॑कः। अ॒सि॒। मृ॒त्युः। अ॒सि॒। ५.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राजापत्या गायत्री
  • दुःस्वप्ननासन
  • यम
  • दुःख मोचन सूक्त

१० तं त्वा

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तं त्वा॑ स्वप्न॒तथा॒ सं वि॑द्म॒ स नः॑ स्वप्न दुः॒ष्वप्न्या॑त्पाहि ॥

१० तं त्वा ...{Loading}...

Whitney

तं त्वा॑ स्वप्न॒ तथा॒ सं वि॑द्म॒ स नः॑ स्वप्न दु॒ष्वप्न्या॑त् पाहि ॥१०॥

Griffith

तं त्वा॑ स्वप्न॒ तथा॒ सं वि॑द्म॒ स नः॑ स्वप्न दु॒ष्वप्न्या॑त् पाहि ॥१०॥

पदपाठः

तम्। त्वा॒। स्व॒प्न॒। तथा॑। सम्। वि॒द्म॒। सः। नः॒। स्व॒प्न॒। दुः॒ऽस्वप्न्या॑त्। पा॒हि॒। ५.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • द्विपदा साम्नी बृहती
  • दुःस्वप्ननासन
  • यम
  • दुःख मोचन सूक्त