००४

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Whitney subject
  1. Paryāya the fourth.
VH anukramaṇī

१-७ ब्रह्मा। आदित्यः,। १,३ साम्नी अनुष्टुप्, २ साम्नी उष्णिक्, ४ त्रिपदा अनुष्टुप्, ५ आसुरी गायत्री, ६ आर्ची उष्णिक्, ७ त्रिपदा विराड् गर्भाऽनुष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Brahman.—saptaka. ādityadevatya. 1, 3. sāmny anuṣṭubh; 2. sāmny uṣṇih; 4. 3-p. anuṣṭubh; 5. āsurī gāyatrī; 6. ārcy uṣṇih; 7. 3-p. virāḍgarbhā ’nuṣṭubh.]

Whitney

Comment

Translations

Translated: Griffith, ii. 203.

Griffith

A charm to secure long life and success

०१ नाभिरहंरयीणां नाभिः

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नाभि॑र॒हंर॑यी॒णां नाभिः॑ समा॒नानां॑ भूयासम् ॥

०१ नाभिरहंरयीणां नाभिः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. May I be the navel of riches, the navel of my equals.
Notes

The scholiast (pariśiṣṭa) adds this verse (or paryāya) 3. 1 under
Kāuś. 18. 25. ⌊Cf. note to 3. 1.⌋

Griffith

I am the:centre of riches. Fain would I be the centre of mine equals.

पदपाठः

नाभिः॑। अ॒हम्। र॒यी॒णाम्। नाभिः॑। स॒मा॒नाना॑म्। भू॒या॒स॒म्। ४.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • साम्नी अनुष्टुप्
  • आदित्य
  • ब्रह्मा
  • दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अहम्) मैं (रयीणाम्)धनों की (नाभिः) नाभि [मध्यस्थान] और (समानानाम्) समान [तुल्यगुणी] पुरुषों की (नाभिः) नाभि (भूयासम्) हो जाऊँ ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विद्याधन औरसुवर्ण आदि धन के साथ गुणी मनुष्यों को प्राप्त होते हैं, वे संसार मेंप्रतिष्ठा पाते हैं ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(नाभिः) मध्यस्थानम् (अहम्) पुरुषः (रयीणाम्)विद्यासुवर्णादिधनानाम् (नाभिः) (समानानाम्) सू० ३ म० १। तुल्यगुणवताम् (भूयासम्) भवेयम् ॥

०२ स्वासदसि सूषाअमृतो

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स्वा॒सद॑सि सू॒षाअ॒मृतो॒ मर्त्ये॒श्वा ॥

०२ स्वासदसि सूषाअमृतो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Of good seat (? svāsát) art thou, of good dawns, an immortal among
    mortals.
Notes

The adjectives are sing. masculine. The pada-text reads su॰āsát and
su॰uṣā́ḥ.

Griffith

Pleasant art thou to sit by one, a mother: immortal among mortals.

पदपाठः

सु॒ऽआ॒सत्। अ॒सि॒। सु॒ऽउ॒षा ः। अ॒मृतः॑। मर्त्ये॑षु। आ। ४.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • साम्नी उष्णिक्
  • आदित्य
  • ब्रह्मा
  • दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे आत्मा !] तू (स्वासत्) सुन्दर सत्तावाला, (सूषाः) सुन्दर प्रभातोंवाला [प्रभात के प्रकाश केसमान बढ़नेवाला] (आ) और (मर्त्येषु) मनुष्यों के भीतर (अमृतः) अमर (असि) है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य यह विचारतेहैं कि यह आत्मा जो बड़े पुण्यों के कारण इस मनुष्यशरीर में वर्तमान है, वहप्रभात के प्रकाश के समान उन्नतिशील और अमर अर्थात् नित्य और पुरुषार्थी है, वे संसार में बढ़ती करके यश पाते हैं ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(स्वासत्) सु+आस सत्तायाम्-शतृ।शोभनसत्तावान् (असि) हे आत्मन् त्वं भवसि (सूषाः) उषः किच्च। उ० ४।२३४। सु+उषदाहे-असि। शोभना उषसो यस्य सः। प्रभातवेलाप्रकाशतुल्यप्रवर्धमानः (अमृतः) अमरः।नित्यः पुरुषार्थी (मर्त्येषु) मनुष्येषु (आ) समुच्चये ॥

०३ मा माम्

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मा मां प्रा॒णोहा॑सी॒न्मो अ॑पा॒नो᳡ऽव॒हाय॒ परा॑ गात् ॥

०३ मा माम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let not breath quit me; nor let expiration, deserting me, go away.
Notes

⌊For ‘deserting me’ one might perhaps say ’leaving me low.’ For the
combination with párā gā, cf. TS. v. 7. 9¹. Most of our mss. (all
except D.R.) leave mā́m unaccented; ⌊the curious blunder is made also
by nine of SPP’s mss., as against five mss. and two reciters that gave
mā́m⌋. All our mss. save one (R.) combine apānó ‘va ⌊instead of
-nò⌋. The verse is ⌊almost⌋ identical with vii. 53. 4 a, b ⌊which
has me ’mám for mā́ mā́m⌋.

Griffith

Let not inward breath desert me; let not outward breath depart and leave me.

पदपाठः

मा। माम्। प्रा॒णः। हा॒सी॒त्। मो इति॑। अ॒पा॒नः। अ॒व॒ऽहाय॑। परा॑। गात्। ४.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • साम्नी अनुष्टुप्
  • आदित्य
  • ब्रह्मा
  • दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे ईश्वर !] (प्राणः)प्राण [श्वास] (माम्) मुझे (मा हासीत्) न छोड़े, (मो) और न (अपानः) अपान [प्रश्वास] (अवहाय) छोड़कर (परा गात्) दूर जावे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य शरीर कीस्वस्थता के साथ आत्मबल बढ़ाते रहें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(मा हासीत्) मा त्यजेत् (माम्)प्राणिनम् (प्राणः) श्वासः (मो) न च (अपानः) प्रश्वासः (अवहाय) परित्यज्य (परागात्) दूरे गच्छतु ॥

०४ सूर्यो माह्नःपात्वग्निः

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सूर्यो॒ माह्नः॑पात्व॒ग्निः पृ॑थि॒व्या वा॒युर॒न्तरि॑क्षाद्य॒मो म॑नु॒ष्ये᳡भ्यः॒ सर॑स्वती॒पार्थि॑वेभ्यः ॥

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Whitney
Translation
  1. Let the sun protect me from the sky, Agni from the earth, Vāyu from
    the atmosphere, Yama from men (manuṣyà), Sarasvatī from them of the
    earth.
Notes

The verse can be read into 32 syllables, but the metrical definition of
the Anukr. is altogether absurd. ⌊Griffith gives ahnás its usual
meaning: possibly W’s “sky” is not intentional, but a mere slip. Cf.,
however, 7. 6, below.⌋

Griffith

Let Surya protect me from Day, Agni from Earth, Vayu from Firmament, Yama from men, Sarasvati from dwellers on the earth.

पदपाठः

सूर्यः॑। मा॒। अह्नः॑। पा॒तु॒। अ॒ग्निः। पृ॒थि॒व्याः। वा॒युः। अ॒न्तर‍ि॑क्षात्। यमः। म॒नु॒ष्ये᳡भ्यः। सर॑स्वती। पार्थि॑वेभ्यः। ४.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • त्रिपदा अनुष्टुप्
  • आदित्य
  • ब्रह्मा
  • दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सूर्यः) सबकाचलानेवाला परमात्मा (मा) मुझे (अह्नः) दिन [के भय] से (पातु) बचावे, (अग्निः)ज्ञानस्वरूप जगदीश्वर (पृथिव्याः) पृथिवी [के भय] से, (वायुः) सर्वव्यापकपरमेश्वर (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष [के भय] से, (यमः) न्यायकारी ईश्वर (मनुष्येभ्यः) मनुष्यों [के भय] से और (सरस्वती) सर्वविज्ञानमय परमेश्वर (पार्थिवेभ्यः) पृथिवी के प्राणी आदियों [के भय] से [बचावे] ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमात्मा कीउपासना करता हुआ सदा उपाय करे कि वह सब प्रकार के विघ्नों से सुरक्षित होकर शुभकर्मों को करता रहे ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(सूर्यः) सर्वप्रेरकः परमेश्वरः (मा) माम् (अह्नः)दिनभयात् (पातु) रक्षतु (अग्निः) अग गतौ-नि। ज्ञानस्वरूपो जगदीश्वरः (वायुः)सर्वव्यापकः परमेश्वरः (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्षभयात् (यमः) न्यायकारीश्वरः (मनुष्येभ्यः) मनुष्याणां भयात् (सरस्वती) सरस्-मतुप्, ङीप्। सरांसि विज्ञानानिविद्यन्ते यस्यां सा चितिः। सर्वविज्ञानमयः परमेश्वरः (पार्थिवेभ्यः)पृथिवीभवानां प्राण्यादीनां भयात् ॥

०५ प्राणापानौ मामा

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प्राणा॑पानौ॒ मामा॑ हासिष्टं॒ मा जने॒ प्र मे॑षि ॥

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Whitney
Translation
  1. O breath-and-expiration, do not desert me; let me not perish
    (pra-mī) among the people (jána).
Notes
Griffith

Let not outward and inward breath fail me. Be not thou destruc- tive among the men.

पदपाठः

प्राणा॑पानौ। मा। मा॒। हा॒सि॒ष्ट॒म्। मा। जने॑। प्र। मे॒षि॒। ४.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आसुरी गायत्री
  • आदित्य
  • ब्रह्मा
  • दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राणापानौ) हे प्राणऔर अपान ! तुम दोनों (मा) मुझे (मा हासिष्टम्) मत छोड़ो, (जने) मनुष्यों के बीच (मा प्र मेषि) कभी नष्ट न होऊँ ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य अपने शरीर औरआत्मा से सावधान रहकर निर्भयता से कर्तव्यपरायण हो ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(प्राणापानौ) हेश्वासप्रश्वासौ (मा) माम् (मा हासिष्टम्) नैव त्यजतम् (जने) मनुष्येषु (प्र)प्रकर्षेण (मा मेषि) मीङ् हिंसायाम्-लुङ्। नाशं मा प्राप्नुयाम् ॥

०६ स्वस्त्यद्योषसो दोषसश्च

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स्व॒स्त्य१॒॑द्योषसो॑ दो॒षस॑श्च॒ सर्व॑ आपः॒ सर्व॑गणो अशीय ॥

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Whitney
Translation
  1. With well-being today, O waters, may I, whole [and] with my whole
    train (-gaṇá), attain dawns and evenings.
Notes

The verse is really composed of two triṣṭubh pādas.

Griffith

Propitious to-day be dawns and evenings. May I drink water with all my people safe around me.

पदपाठः

स्व॒स्ति। अ॒द्यः। उ॒षसः॑। दो॒षसः॑। च॒। सर्वः॑। आ॒पः॒। सर्व॑ऽगणः। अ॒शी॒य॒। ४.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आर्ची उष्णिक्
  • आदित्य
  • ब्रह्मा
  • दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (आपः) हे आप्तविद्वानो ! (सर्वगणः) अपने सब गणों के सहित (सर्वः) सम्पूर्ण में (स्वस्ति)कल्याण से (अद्य) अब (उषसः) प्रभातवेलाओं को (च) और (दोषसः) रात्रियों को (अशीय) पाता रहूँ ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य आप्त विद्वानोंके सत्सङ्ग से प्रयत्न करें कि वे और उसके इष्ट मित्र प्रजागण आदि सदा रात-दिनसुखी रहें ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(स्वस्ति) कल्याणेन (अद्य) इदानीम् (उषसः) प्रभातवेलाः (दोषसः)दुष वैकृत्ये-असुन्। रात्रीः (च) (सर्वः) सम्पूर्णोऽहम् (आपः) हे आप्ताविद्वांसः (सर्वगणः) सर्वेष्टमित्रप्रजादिसहितः (अशीय) बहुलं छन्दसि। पा०२।३।७३। अश्नुतेः शपो लुकि लिङ्युत्तमैकवचने रूपम्। प्राप्नुयाम् ॥

०७ शक्वरी स्थपशवो

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शक्व॑री स्थप॒शवो॒ मोप॑ स्थेषुर्मि॒त्रावरु॑णौ मे प्राणापा॒नाव॒ग्निर्मे॒ दक्षं॑ दधातु॥

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Whitney
Translation
  1. Puissant (śákvarī) are ye; may cattle approach me; let
    Mitra-and-Varuṇa [assign] me breath-and-expiration; let Agni assign me
    dexterity.
Notes

Nearly all our mss. (not T.s.m.R.) give stheṣu instead of stheṣus;
⌊and so do three of SPP’s⌋. ⌊For the form, see Gram. § 894 c.⌋

⌊Here ends the first anuvāka, with 4 paryāyas and 32 avasānarcas:
see the summations at page 793, above. The piece here quoted from the
Old Anukr. is prājāpatyo ha catuṣkaḥ: see p. 792.⌋

Griffith

Mighty are ye, domestic creatures. May Mitra-Varuna stand beside me. May Agni give me inward and outward breath. May,he give me ability.

पदपाठः

शक्व॑रीः। स्थ॒। प॒शवः॑। मा॒। उप॑। स्थे॒षुः॒। मि॒त्रावरु॑णौ। मे॒। प्रा॒णा॒पा॒नौ। अ॒ग्निः। मे॒। दक्ष॑म्। द॒धा॒तु॒। ४.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • त्रिपदा विराण्नाम गायत्री
  • आदित्य
  • ब्रह्मा
  • दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे प्रजाओ !] तुम (शक्वरीः) बलवती (स्थ) हो, (पशवः) सब प्राणी (मा उप) मेरे समीप (स्थेषुः) ठहरें, (अग्निः) ज्ञानस्वरूप जगदीश्वर (मित्रावरुणौ) दो श्रेष्ठ मित्र (मे) मेरे (प्राणापानौ) प्राण और अपान को और (मे) मेरी (दक्षम्) चतुराई को (दधातु) स्थिररक्खे ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विद्वानोंके उपदेश और परमात्मा की उपासना में तत्पर रहते हैं, वे अपने शरीर और आत्मा सेस्वस्थ रहकर कार्यकुशल होते हैं ॥७॥ इति प्रथमोऽनुवाकः ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(शक्वरीः)स्नामदिपद्यर्त्तिपॄशकिभ्यो वनिप्। उ० ४।११३। शक्नोतेर्वनिप्, ङीब्रेफौ।शक्तिमत्यः प्रजाः (स्थ) भवथ (पशवः) प्राणिनः (मा) माम् (उप) उपेत्य (स्थेषुः)तिष्ठन्तु (मित्रावरुणौ) मित्रवरौ (मे) मम (प्राणापानौ) श्वासप्रश्वासौ (अग्निः)ज्ञानस्वरूपः परमेश्वरः (मे) (दक्षम्) कार्यकुशलताम् (दधातु) स्थापयतु ॥