००३ ...{Loading}...
Whitney subject
- Paryāya the third.
VH anukramaṇī
१-६ ब्रह्मा।आदित्यः। १ आसुरी गायत्री, २-३ आर्ची अनुष्टुप्, ४ प्राजापत्या त्रिष्टुप्, ५ साम्नी उष्णिक्, ६ द्विपदा साम्नी त्रिष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[Brahman.—ṣaṭka. ādityadevatya. 1. āsurī gāyatrī; 2, 3. ārcy anuṣṭubh; 4. prājāpatyā triṣṭubh; 5. sāmny uṣṇih; 6. 2-p. sāmnī triṣṭubh.]
Whitney
Comment
Translations
Translated: Griffith, ii. 202.
Griffith
A charm to secure power and long life
०१ मूर्धाहंरयीणां मूर्धा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
मू॒र्धाहंर॑यी॒णां मू॒र्धा स॑मा॒नानां॑ भूयासम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
मू॒र्धाहंर॑यी॒णां मू॒र्धा स॑मा॒नानां॑ भूयासम् ॥
०१ मूर्धाहंरयीणां मूर्धा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- May I be the head (mūrdhán) of riches, the head of my equals.
Notes
Or, perhaps, ‘I am the head of the one, may I be so of the other.’ The
verse (or the paryāya) is quoted twice in Kāuś., once (18. 25) in the
citrā ceremony, together with a whole series of other hymns or verses,
in partaking of a milk-rice-dish; and once (58. 22), in the ceremony of
giving food to a young child (annaprāśana), with a part of the same
hymns.
Griffith
I am the head of riches. Fain would I be the head of mine equals.
पदपाठः
मू॒र्धा। अ॒हम्। र॒यी॒णाम्। मू॒र्धा। स॒मा॒नाना॑म्। भू॒या॒स॒म्। ३.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आसुरी गायत्री
- आदित्य
- ब्रह्मा
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अहम्) मैं (रयीणाम्)धनों का (मूर्धा) सिर और (समानानाम्) समान [तुल्य गुणी] पुरुषों का (मूर्धा) सिर (भूयासम्) हो जाऊँ ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य उद्योग करें किविद्याधन और सुवर्ण आदि धन से गुणी मनुष्यों को पाकर संसार में शरीर में मस्तकके समान मुखिया होवें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(मूर्धा) शिरः। मस्तकवत्प्रधानः (अहम्) (रयीणाम्) विद्यासुवर्णादिधनानाम् (मूर्धा) (समानानाम्) सम्+आङ्+णीञ् प्रापणे-ड तुल्यगुणवताम् (भूयासम्) ॥
०२ रुजश्च मावेनश्च
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
रु॒जश्च॑ मावे॒नश्च॒ मा हा॑सिष्टां मू॒र्धा च॑ मा॒ विध॑र्मा च॒ मा हा॑सिष्टाम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
रु॒जश्च॑ मावे॒नश्च॒ मा हा॑सिष्टां मू॒र्धा च॑ मा॒ विध॑र्मा च॒ मा हा॑सिष्टाम् ॥
०२ रुजश्च मावेनश्च ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Let both breaking (? rujá) and longing (vená) not desert me; let
both the head (mūrdhán) and the distributer (? vídharman) not desert
me.
Notes
The nouns in this and the following verses are in part of obscure
meaning and reference.
Griffith
Let not Ruja and Vena desert me. Let not the Head and the Preserver forsake me.
पदपाठः
रु॒जः। च॒। मा॒। वे॒नः। च॒। मा। हा॒सि॒ष्टा॒म्। मू॒र्धा। च॒। मा॒। विऽध॑र्मा। च॒। मा। हा॒सि॒ष्टा॒म्। ३.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आर्ची अनुष्टुप्
- आदित्य
- ब्रह्मा
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (रुजः) अन्धकारनाशकगुण (च च) और (वेनः) कमनीय गुण (मा) मुझे (मा हासिष्टाम्) दोनों न छोड़ें, (मूर्धा) मस्तक [मस्तकबल] (च च) और (विधर्मा) विविध प्रकार धारण करनेवाला आत्मा [आत्मबल] (मा) मुझे (मा हासिष्टाम्) दोनों कभी न छोड़ें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य अज्ञान के नाशसे अपने मस्तकबल अर्थात् विचार सामर्थ्य और आत्मबल को बढ़ाते रहें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(रुजः)रुजो भङ्गे-क। अन्धकारनाशको गुणः (च) (मा) माम् (वेनः) धापॄवस्यज्यतिभ्यो नः। उ०३।६। अज गतिक्षेपणयोः-न, वीभावः, अथवा वी कान्त्यादिषु-न। प्रापणीयः कमनीयो वागुणः (च) (मा हासिष्टाम्) न त्यजताम् (मूर्धा) मस्तकसामर्थ्यम् (च) (मा) माम् (विधर्मा) विविधधारक आत्मा (च) (मा हासिष्टाम्) ॥
०३ उर्वश्च माचमसश्च
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
उ॒र्वश्च॑ माचम॒सश्च॒ मा हा॑सिष्टां ध॒र्ता च॑ मा ध॒रुण॑श्च॒ मा हा॑सिष्टाम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उ॒र्वश्च॑ माचम॒सश्च॒ मा हा॑सिष्टां ध॒र्ता च॑ मा ध॒रुण॑श्च॒ मा हा॑सिष्टाम् ॥
०३ उर्वश्च माचमसश्च ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Let both the kettle (?) and the cup (camasá) not desert me; let
both the maintainer (dhartṛ́) and the supporter (dharúṇa) not desert
me.
Notes
The translation follows the suggestion of the Pet. Lexx., to emend
urvá at the beginning to ukhá.
Griffith
Let not the Boiler and the Cup fail tme: let not the Supporter and the Sustainer abandon me.
पदपाठः
उ॒र्वः। च॒। मा॒। च॒म॒सः। च॒। मा। हा॒सि॒ष्टा॒म्। ध॒र्ता। च॒। मा॒। ध॒रुणः॑। च॒। मा। हा॒सि॒ष्टा॒म्। ३.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आर्ची अनुष्टुप्
- आदित्य
- ब्रह्मा
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (उर्वः) शत्रुनाशक गुण [शूरपन] (च च) और (चमसः) भोजनपात्र [शरीर] (मा) मुझे (मा हासिष्टाम्) दोनों नछोड़ें, (धर्ता) धारण करनेवाला गुण (च च) और (धरुणः) अवस्थान [दृढ़ रहने का गुण] (मा) मुझे (मा हासिष्टाम्) दोनों न छोड़ें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य सङ्ग्रामरूपसंसार में शूर रहकर शरीररक्षा करते हुए शुभगुणों को धारण करें और स्थिर रक्खें॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(उर्वः) उर्वी हिंसायाम्-अच्। उर्वति शूरयति मारयति शत्रून्। शूरत्वगुणः (च) (मा) माम् (चमसः) भोजनपात्रं शरीरम् (च) (मा हासिष्टाम्) न त्यजताम् (धर्ता)धारको गुणः (धरुणः) कॄवृदारिभ्य उनन्। उ० ३।५३। धृङ् अवस्थाने-उनन्। अवस्थानम्।दृढस्थितिगुणः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
०४ विमोकश्चमार्द्रपविश्च मा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
वि॑मो॒कश्च॑मा॒र्द्रप॑विश्च॒ मा हा॑सिष्टामा॒र्द्रदा॑नुश्च मा मात॒रिश्वा॑ च॒ माहा॑सिष्टाम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
वि॑मो॒कश्च॑मा॒र्द्रप॑विश्च॒ मा हा॑सिष्टामा॒र्द्रदा॑नुश्च मा मात॒रिश्वा॑ च॒ माहा॑सिष्टाम् ॥
०४ विमोकश्चमार्द्रपविश्च मा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Let both the releaser (vimoká) and the wet-rimmed one not desert
me; let both him of wet drops (-dā́nu) and Mātariśvan not desert me.
Notes
Griffith
Let not Unyoking and the Moist-fellied car desert me: let not the Sender of Moisture and Matarisvan forsake me.
पदपाठः
वि॒ऽमो॒कः। च॒। मा॒। आ॒र्द्रऽप॑विः। च॒। मा। हा॒सि॒ष्टा॒म्। आ॒र्द्रऽदा॑नुः। च॒। मा॒। मा॒त॒रिश्वा॑। च॒। मा। हा॒सि॒ष्टा॒म्। ३.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्राजापत्या त्रिष्टुप्
- आदित्य
- ब्रह्मा
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (विमोकः) विमुक्तकरनेवाला गुण (च च) और (आर्द्रपविः) गतिशोधक गुण (मा) मुझे (मा हासिष्टाम्)दोनों न छोड़ें, (आर्द्रदानुः) याचकों का पालनेवाला गुण (च च) और (मातरिश्वा)ऐश्वर्य में बढ़नेवाला गुण (मा) मुझे (मा हासिष्टाम्) दोनों न छोड़ें ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य दुःखों सेछूटकर उद्योग करें और अधिकारी याचकों का पालन करके वैभव बढ़ावें ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(विमोकः)मुच्लृ मोचने-घञ् कुत्वं च। दुःखविमोचको गुणः (च) (मा) माम् (आर्द्रपविः)अर्देर्दीर्घश्च। उ० २।१८। अर्द गतौ याचने हिंसायां च-रक्+अच इः। उ० ४।१३९। पूञ्शोधने-इ प्रत्ययः। गतिशोधको गुणः (च) (मा हासिष्टाम्) न त्यजताम् (आर्द्रदानुः)अर्द याचने-रक्+दाभाभ्यां नुः। उ० ३।३२। देङ् पालने-नु। याचकपालको गुणः (मातरिश्वा) माता लक्ष्मीः, वैभवम्। श्वन्नुक्षन्पूषन्०। उ० १।१५९। मातरि+टुओश्वि गतिवृद्ध्योः-कनिन् डित्। मातरि वैभवे ऐश्वर्ये प्रवर्धको गुणः। अन्यत्पूर्ववत् ॥
०५ बृहस्पतिर्मआत्मा नृमणा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
बृह॒स्पति॑र्मआ॒त्मा नृ॒मणा॒ नाम॒ हृद्यः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
बृह॒स्पति॑र्मआ॒त्मा नृ॒मणा॒ नाम॒ हृद्यः॑ ॥
०५ बृहस्पतिर्मआत्मा नृमणा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Brihaspati my soul, manly-minded by name, hearty (hṛ́dya).
Notes
Griffith
Brihaspati is my soul, he who is called the Friend of man, dear to my heart.
पदपाठः
बृह॒स्पतिः॑। मे॒। आ॒त्मा। नृ॒ऽमनाः॑। नाम॑। हृद्यः॑। ३.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- साम्नी उष्णिक्
- आदित्य
- ब्रह्मा
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरा (आत्मा)आत्मा (बृहस्पतिः) बड़े गुणों का स्वामी, (नृमणाः) नेताओं के तुल्य मनवाला और (हृद्यः) हृदय का प्रिय (नाम) प्रसिद्ध [हो] ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य आत्मबल बढ़ाकरउत्तम गुण प्राप्त करें और वीर के समान पराक्रम करके सबके प्रिय हों॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(बृहस्पतिः) महतां गुणानां पालकः (मे) मम (आत्मा) (नृमणाः) नेतृतुल्यमनस्कः (नाम) प्रसिद्धौ (हृद्यः) हृदयप्रियः ॥
०६ असन्तापं मेहृदयमुर्वी
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॑संता॒पं मे॒हृद॑यमु॒र्वी गव्यू॑तिः समु॒द्रो अ॑स्मि॒ विध॑र्मणा ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॑संता॒पं मे॒हृद॑यमु॒र्वी गव्यू॑तिः समु॒द्रो अ॑स्मि॒ विध॑र्मणा ॥
०६ असन्तापं मेहृदयमुर्वी ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Free from torment my heart, a wide pasture, an ocean am I by extent
(vídharman).
Notes
Griffith
My heart is free from sorrow; spacious is my dwelling-place. I am the sea in capacity.
पदपाठः
अ॒स॒म्ऽता॒पम्। मे॒। हृद॑यम्। उ॒र्वी। गव्यू॑तिः। स॒मु॒द्रः। अ॒स्मि॒। विऽध॑र्मणा। ३.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- द्विपदा साम्नी त्रिष्टुप्
- आदित्य
- ब्रह्मा
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे परमेश्वर !] (मे)मेरा (हृदयम्) हृदय (असन्तापम्) सन्तापरहित और (गव्यूतिः) विद्या मिलने कामार्ग (उर्वी) चौड़ा [होवे], मैं (विधर्मणा) विविध धारण सामर्थ्य से (समुद्रः)समुद्र [समुद्रसमान गहरा] (अस्मि) हूँ ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य विघ्नों मेंहृदय को शान्त रखकर वेदमार्ग की दृढ़ता और विस्तीर्णता फैलावे, क्योंकिपरमेश्वर ने मनुष्य को बड़ा सामर्थ्य दिया है ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(असन्तापम्) सन्तापरहितम्।शान्तम् (मे) मम (हृदयम्) अन्तःकरणम् (उर्वी) विस्तीर्णा (गव्यूतिः) गो+यूतिः।विद्यामिश्रणमार्गः (समुद्रः) समुद्र इव गम्भीरः (अस्मि) (विधर्मणा)विविधधारणसामर्थ्येन ॥