००२ ...{Loading}...
Whitney subject
- Paryāya the second.
VH anukramaṇī
१-६ अथर्वा। वाक्। १ आसुरी अनुष्टुप्, २ आसुरी उष्णिक्, ३ साम्नी उष्णिक्, ४ त्रिपदा साम्नी बृहती, ५ आर्ची अनुष्टुप्, ६ निचृद् विराड् गायत्री।
Whitney anukramaṇī
[ṣaṭka. vāgdevatya. 1. āsury anuṣṭubh; 3. āsury uṣṇih; 3. sāmny uṣṇih; 4. 3-p. sāmny bṛhatī; 5. ārcy anuṣṭubh; 6. nicṛd virāḍgāyatrī.]
Whitney
Comment
Translations
Translated: Griffith, ii. 202.
Griffith
A charm to secure various blessings
०१ निर्दुरर्मण्यऊर्जा मधुमती
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
निर्दु॑रर्म॒ण्य᳡ऊ॒र्जा मधु॑मती॒ वाक् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
निर्दु॑रर्म॒ण्य᳡ऊ॒र्जा मधु॑मती॒ वाक् ॥
०१ निर्दुरर्मण्यऊर्जा मधुमती ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Out of evil-eating (?) with refreshment [comes] speech rich in
honey.
Notes
The translation implies the change of durarmaṇyàts to duradmanyàs,
as proposed by the Pet. Lexx. (add TB. iii. 3. 9⁹ as a reference for
duradmanī́). The reading of the mss. is, however, assured by its
quotation in the Prāt. (4. 11. 16 ⌊i.e. Add’l Note, p. 592⌋), and three
times in the Kāuś.: namely, in 49. 27, at the very end of the chapter of
witchcraft ceremonies, after use of x. 5. 6, 7 and xiii. 1. 56, with the
direction iti saṁdhāvyā ’bhimṛśati; and again, twice (58. 6, 12) in
the ceremony for long life after initiation to Vedic study, once with
the direction iti saṁdhāvya, and once with a smearing with fragrant
powders. The word ūrjā́ in our text might also be nominative, and
‘comes’ is of course doubtful. The metrical definition implies the
resolution -ṇí-a.
Griffith
Away from distasteful food, strength and sweet speech,
पदपाठः
निः। दुः॒ऽअ॒र्म॒ण्यः᳡। ऊ॒र्जा। मधु॑ऽमती। वाक्। २.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आसुरी अनुष्टुप्
- वाक्
- अथर्वा
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
इन्द्रियों की दृढ़ता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ऊर्जा) शक्ति के साथ (मधुमती) ज्ञानयुक्त (वाक्) वाणी (दुरर्मण्यः) दुर्गति से (निः) पृथक् [होवे]॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य हैकि वे समझ-बूझ कर सदा सत्य वचन बोल कर दृढ़ प्रतिज्ञावाले होवें, जिससे उनकेजीवन में शक्ति बढ़े और कभी निन्दा न होवे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(निः) बहिर्भवतु (दुरर्मण्यः)सर्वधातुभ्यो मनिन्। उ० ४।१४५। दुः+ऋ गतिप्रापणयोः-मनिन्। ऋन्नेभ्यो ङीप्। पा०४।१।५। इति ङीप्, पञ्चमीरूपम्। दुरर्मण्याः। दुर्गतेः (ऊर्जा) ऊर्जबलप्राणनयोः-क्विप्। शक्त्या (मधुमती) ज्ञानवती (वाक्) वाणी ॥
०२ मधुमती स्थमधुमतीम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
मधु॑मती स्थ॒मधु॑मतीं॒ वाच॑मुदेयम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
मधु॑मती स्थ॒मधु॑मतीं॒ वाच॑मुदेयम् ॥
०२ मधुमती स्थमधुमतीम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Rich in honey are ye; may I speak speech rich in honey.
Notes
‘Ye’: i.e., the waters, the adjective being feminine. ⌊We had a phrase
like to our second clause at iii. 20. 10: cf. Gram. §738 a.⌋
Griffith
Are pleasant. May I obtain a pleasant voice.
पदपाठः
मधु॑ऽमतीः। स्थ॒। मधु॑ऽमतीम्। वाच॑म्। उ॒दे॒य॒म्। २.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आसुरी उष्णिक्
- वाक्
- अथर्वा
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
इन्द्रियों की दृढ़ता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे प्रजाओ !] तुम (मधुमतीः) ज्ञानवाली (स्थ) हो, (मधुमतीम्) ज्ञानयुक्त (वाचम्) वाणी (उदेयम्) मैंबोलूँ ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्वानों केसत्सङ्ग से सुशिक्षित होकर सदा ज्ञानयुक्त बोलें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(मधुमतीः) ज्ञानवत्यःप्रजाः (स्थ) भवथ (मधुमतीम्) ज्ञानवतीम् (वाचम्) वाणीम् (उदेयम्) अ० ३।२०।१०।उद्यासम् ॥
०३ उपहूतो मेगोपा
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उप॑हूतो मेगो॒पा उप॑हूतो गोपी॒थः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उप॑हूतो मेगो॒पा उप॑हूतो गोपी॒थः ॥
०३ उपहूतो मेगोपा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Invoked of me [is] the guardian (gopā́); invoked [is]
guardianship.
Notes
The different metrical designation of these two 14-syllabled verses is
apparently wholly arbitrary.
Griffith
I have invoked the Protector; I have invoked his protection.
पदपाठः
उप॑ऽहूतः। मे॒। गो॒पाः। उप॑ऽहूतः। गो॒पी॒थः। २.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- साम्नी उष्णिक्
- वाक्
- अथर्वा
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
इन्द्रियों की दृढ़ता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (गोपाः) वाणी का रक्षक [आचार्य] (मे) मेरा (उपहूतः) आदर से बुलाया हुआ है और (गोपीथः) भूमि का रक्षक [राजा] (उपहूतः) आदर से बुलाया हुआ है ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य आचार्य कीशिक्षा और राजा की व्यवस्था से सुशिक्षित होकर स्वस्थ और प्रतिष्ठित रहें॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(उपहूतः) आदरेणाऽऽवाहनीकृतः (मे) मम (गोपाः) वाणीरक्षक आचार्यः (उपहूतः) (गोपीथः) निशीथगोपीथावगथाः। उ० २।९। गो+पा रक्षणे-थक्, ईत्वम्। भूपालः। राजा ॥
०४ सुश्रुतौकर्णौ भद्रश्रुतौ
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सु॒श्रुतौ॒कर्णौ॑ भद्र॒श्रुतौ॒ कर्णौ॑ भ॒द्रं श्लोकं॑ श्रूयासम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सु॒श्रुतौ॒कर्णौ॑ भद्र॒श्रुतौ॒ कर्णौ॑ भ॒द्रं श्लोकं॑ श्रूयासम् ॥
०४ सुश्रुतौकर्णौ भद्रश्रुतौ ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Well-hearing ears, ears hearing what is excellent; may I hear
excellent encomium (ślóka).
Notes
‘Ears’ is both times dual; we might fill out to ‘well-hearing are my
ears’ etc.
Griffith
Quick of hearing are mine ears; mine ears hear what is good- Fain would I hear a pleasant sound.
पदपाठः
सु॒ऽश्रुतौ॑। कर्णौ॑। भ॒द्र॒ऽश्रुतौ॑। कर्णौ॑। भ॒द्रम्। श्लोक॑म्। श्रू॒या॒स॒म्। २.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- त्रिपदा प्रतिष्ठार्ची
- वाक्
- अथर्वा
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
इन्द्रियों की दृढ़ता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [मेरे] (कर्णौ) दोनोंकान (सुश्रुतौ) शीघ्र सुननेवाले, (कर्णौ) दोनों कान (भद्रश्रुतौ) मङ्गलसुननेवाले [होवें], (भद्रम्) मङ्गलमय (श्लोकम्) यश (श्रूयासम्) मैं सुना करूँ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रयत्न करकेअभ्यास करें कि वे कान आदि इन्द्रियों को सचेत रख कर श्रेष्ठ कर्मों के करने मेंशीघ्रता करते रहें ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(सुश्रुतौ) श्रु-क्विप्। शीघ्रश्रोतारौ (कर्णौ) श्रोत्रे (भद्रश्रुतौ) मङ्गलश्रोतारौ (भद्रम्) मङ्गलमयम् (श्लोकम्) यशः (श्रूयासम्)आकर्णयासम् ॥
०५ सुश्रुतिश्चमोपश्रुतिश्च मा
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सुश्रु॑तिश्च॒मोप॑श्रुतिश्च॒ मा हा॑सिष्टां॒ सौप॑र्णं॒ चक्षु॒रज॑स्रं॒ ज्योतिः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सुश्रु॑तिश्च॒मोप॑श्रुतिश्च॒ मा हा॑सिष्टां॒ सौप॑र्णं॒ चक्षु॒रज॑स्रं॒ ज्योतिः॑ ॥
०५ सुश्रुतिश्चमोपश्रुतिश्च मा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Let both well-hearing and listening (úpaśruti) not desert
me—eagle-like sight, unfailing light.
Notes
⌊For the mā…mā́, cf. below, 3. 2, etc.⌋
Griffith
Let not good hearing and overhearing fail the Eagle’s eye, the undecaying light.
पदपाठः
सु॒ऽश्रु॑तिः। च॒। मा॒। उप॑ऽश्रुतिः। च॒। मा। हा॒सि॒ष्टा॒म्। सौप॑र्णम्। चक्षुः॑। अज॑स्रम्। ज्योतिः॑। २.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आर्ची अनुष्टुप्
- वाक्
- अथर्वा
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
इन्द्रियों की दृढ़ता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सुश्रुतिः) शीघ्रसुनना (च च) और (उपश्रुतिः) अङ्गीकार करना (मा) मुझे (मा हासिष्टाम्) दोनों नछोड़ें, (सौपर्णम्) समस्त पूर्तिवाली (चक्षुः) दृष्टि और (अजस्रम्) अचूक (ज्योतिः) ज्योति [बनी रहे] ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य ब्रह्मचर्य आदिके सेवन से अपने श्रवण इन्द्रियों को विकल न होने दें और ऐसा स्वस्थ रक्खें किवे अपने विषयों को पूर्ण रीति से शीघ्र अङ्गीकार कर लें ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(सुश्रुतिः)शीघ्रश्रवणम् (च) (मा) माम् (उपश्रुतिः) विषयाणामङ्गीकारः (च) (मा हासिष्टाम्) ओहाक् त्यागे-लुङ्। न त्यजताम् (सौपर्णम्) धापॄवस्यज्यतिभ्यो नः। उ० ३।६। सु+पॄपालनपूरणयोः-न, सुपर्णम्-अण्। बहुपूर्त्तियुक्तम् (चक्षुः) दृष्टिः (अजस्रम्)निरन्तरम् (ज्योतिः) तेजः ॥
०६ ऋषीणाम्प्रस्तरोऽसि नमोऽस्तु
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ऋषी॑णांप्रस्त॒रो᳡ऽसि॒ नमो॑ऽस्तु॒ दैवा॑य प्रस्त॒राय॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ऋषी॑णांप्रस्त॒रो᳡ऽसि॒ नमो॑ऽस्तु॒ दैवा॑य प्रस्त॒राय॑ ॥
०६ ऋषीणाम्प्रस्तरोऽसि नमोऽस्तु ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Spread (prastará) of the seers art thou; homage be to the spread of
the divine ones (dāíva).
Notes
The verse is used twice in Kāuś. (2. 18; 137. 33), and once in Vāit. (2.
9). In the former, it accompanies the taking up of part of the
darbha-grass provided, and making a seat for the brahman—priest
south of the fire, once at the parvan sacrifice and once in the
ājyatantra ceremony. In the latter, it accompanies the making of such
a spread in the parvan ceremonies. In all the three cases, it is
evidently taken because of its specific meaning, and not because of any
connection of those ceremonies with the one implied here.
Griffith
Thou art the couch of the Rishis. Let worship be paid to the divine couch.
पदपाठः
ऋषी॑णाम्। प्र॒ऽस्त॒रः। अ॒सि॒। नमः॑। अ॒स्तु॒। दैवा॑य। प्रऽस्त॒राय॑। २.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- निचृत विराट् गायत्री
- वाक्
- अथर्वा
- दुःख मोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
इन्द्रियों की दृढ़ता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे परमेश्वर !] तू (ऋषीणाम्) इन्द्रियों का (प्रस्तरः) फैलानेवाला (असि) है, (दैवाय) दिव्य गुणवाले (प्रस्तराय) फैलाने [तुझ] को (नमः) नमस्कार [सत्कार] (अस्तु) होवे ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य उस परमात्मा कोसदा धन्यवाद दें कि उसने उन वेदादि शास्त्र सुनने, विचारने और उपकार करने केलिये अमूल्य श्रवण आदि इन्द्रियाँ दी हैं ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(ऋषीणाम्) सप्त ऋषयः प्रतिहिताःशरीरे षडिन्द्रियाणि। वि० सप्तमी-निरु० १२।३७। इन्द्रियाणाम् (प्रस्तरः)प्रस्तारकः। प्रसारकः परमेश्वरः (असि) (नमः) सत्कारः (अस्तु) (दैवाय) दिव्यगुणवते (प्रस्तराय) प्रसारकाय तुभ्यम् ॥