०१८ अध्यात्म-प्रकरणम्

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Whitney subject
  1. Paryāya the eighteenth.
VH anukramaṇī

अध्यात्म-प्रकरणम्।
१-५ अथर्वा। अध्यात्मं, व्रात्यः। १ दैवी पङ्क्तिः, २-३ आर्ची बृहती, ४ आर्ची अनुष्टुप्, ५ साम्नी उष्णिक्।

Whitney anukramaṇī

[pañcaka. 1. dāivī pan̄kti; 2, 3. ārcī bṛhatī; 4. ārcy anuṣṭubh; 5. sāmny uṣṇih.]

Whitney

Comment

Translations

Translated: Aufrecht, Ind. Stud. i. 138; Griffith, ii. 199.

Griffith

Vratya

०१ तस्यव्रात्यस्य

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तस्य॒व्रात्य॑स्य ॥

०१ तस्यव्रात्यस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Of that Vrātya—
Notes
Griffith

Of that Vratya.

पदपाठः

तस्य॑। व्रात्य॑स्य। १८.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • दैवी पङ्क्ति
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

व्रात्य के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] की ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - आप्त संन्यासी पूर्णदृष्टि से सब मर्यादाओं को जाँचकर अपनी विद्या से सूर्य चन्द्रमा के समान उपकारकरता है ॥१, २॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १, २−(यत्) (अस्य) (दक्षिणम्) अवामम् (अक्षि) नेत्रम् (असौ) (सः) प्रसिद्धः (आदित्यः) आदीप्यमानःसूर्यः (सव्यम्) वामम् (चन्द्रमाः) आह्लादकश्चन्द्रलोकः। अन्यत् पूर्ववत् सुगमंच ॥

०२ यदस्यदक्षिणमक्ष्यसौ स

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यद॑स्य॒दक्षि॑ण॒मक्ष्य॒सौ स आ॑दि॒त्यो यद॑स्य स॒व्यमक्ष्य॒सौ स च॒न्द्रमाः॑ ॥

०२ यदस्यदक्षिणमक्ष्यसौ स ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. As for (yát) his right eye, that is yonder sun (ādityá) as for
    his left eye, that is yonder moon.
Notes
Griffith

The right eye is the Sun and the left eye is the Moon.

पदपाठः

यत्। अ॒स्य॒। दक्षि॑णम्। अक्षि॑। अ॒सौ। सः। आ॒दि॒त्यः। यत्। अ॒स्य॒। स॒व्यम्। अक्षि॑। अ॒सौ। सः। च॒न्द्रमाः॑। १८.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आर्ची बृहती
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

व्रात्य के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो (अस्य) इस [व्रात्य] की (दक्षिणम्) दाहिनी (अक्षि) आँख है, (सः) सो (असौ) वह (आदित्यः)चमकता हुआ सूर्य है, और (यत्) जो (अस्य) इस की (सव्यम्) बायीं (अक्षि) आँख है, (सः) सो (असौ) वह (चन्द्रमाः) आनन्दप्रद चन्द्रमा है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - आप्त संन्यासी पूर्णदृष्टि से सब मर्यादाओं को जाँचकर अपनी विद्या से सूर्य चन्द्रमा के समान उपकारकरता है ॥१, २॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १, २−(यत्) (अस्य) (दक्षिणम्) अवामम् (अक्षि) नेत्रम् (असौ) (सः) प्रसिद्धः (आदित्यः) आदीप्यमानःसूर्यः (सव्यम्) वामम् (चन्द्रमाः) आह्लादकश्चन्द्रलोकः। अन्यत् पूर्ववत् सुगमंच ॥

०३ योऽस्यदक्षिणः कर्णोऽयम्

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यो᳡ऽस्य॒दक्षि॑णः॒ कर्णो॒ऽयं सो अ॒ग्निर्यो᳡ऽस्य॑ स॒व्यः कर्णो॒ऽयं स पव॑मानः ॥

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Whitney
Translation
  1. As for his right ear, that is this fire; as for his left ear, that
    is this cleansing one (‘wind’).
Notes
Griffith

His right ear is Agni and his left ear is Pavamana.

पदपाठः

यः। अ॒स्य॒। दक्षि॑णः। कर्णः॑। अ॒यम्। सः। अ॒ग्निः। यः। अ॒स्य॒। स॒व्यः। कर्णः॑। अ॒यम्। सः। पव॑मानः। १८.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आर्ची बृहती
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

व्रात्य के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (अस्य) इस [व्रात्य] का (दक्षिणः) दाहिना (कर्णः) कान है, (सः) सो (अयम्) यह (अग्निः)व्यापक अग्नि है, (यः) जो (अस्य) इस का (सव्यः) बायाँ (कर्णः) कान है, (सः) सो (अयम्) यह (पवमानः) शोधक वायु है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् अतिथि अपनेस्वस्थ सचेत कानों द्वारा विद्याओं का श्रवण करके अग्निसमान व्यापक और पवन केसमान दोषनाशक होकर संसार में सुख बढ़ाता है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(यः) (अस्य) व्रात्यस्य (दक्षिणः) अवामः (कर्णः) श्रोत्रम् (अयम्) (सः) (अग्निः) व्यापकोऽग्निः (सव्यः)वामः (पवमानः) दोषशोधको वायुः। अन्यद् गतं स्पष्टं च ॥

०४ अहोरात्रेनासिके दितिश्चादितिश्च

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अ॑होरा॒त्रेनासि॑के॒ दिति॒श्चादि॑तिश्च शीर्षकपा॒ले सं॑वत्स॒रः शिरः॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. Day-and-night [are his] two nostrils; Diti and Aditi [his] two
    skull-halves; the year [his] head.
Notes
Griffith

Day and Night are his nostrils. Diti and Aditi are his head and skull.

पदपाठः

अ॒हो॒रा॒त्रे इति॑। नासि॑के॒ इति॑। दितिः॑। च॒। अदि॑तिः। च॒। शी॒र्ष॒क॒पा॒ले इति॑ शी॒र्ष॒ऽक॒पा॒ले। स॒म्ऽव॒त्स॒रः। शिरः॑। १८.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आर्ची अनुष्टुप्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

व्रात्य के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [इस व्रात्य के] (नासिके) दो नथने (अहोरात्रे) दिन रात्रि, (च) और (शीर्षकपाले) मस्तक के दोनोंखोपड़े (दितिः) दिति [खण्डित विकृति अर्थात् विनश्वर सृष्टि] (च) और (अदितिः)अदिति [अखण्डित प्रकृति अर्थात् नाशरहित जगत् सामग्री] हैं और [उसका] (शिरः) शिर (संवत्सरः) संवत्सर [कालज्ञान] है ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - संन्यासी अपने नथनेश्वास-प्रश्वास के मार्गों को दिन-रात्रि के समान बहुत बड़ा मान कर मस्तक केखोपड़ों में सृष्टि और प्रकृति के नियमों को और मस्तक के भीतर कालज्ञान प्राप्तकरता है अर्थात् वह अपनी स्वस्थ सचेत इन्द्रियों द्वारा समस्त संसार के ज्ञान कोग्रहण करता है ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(अहोरात्रे) रात्रिदिने (नासिके) नासाच्छिद्रे (दितिः)खण्डिता विकृतिः। विनश्वरा सृष्टिः (च) (अदितिः) अखण्डिता विनाशरहिता प्रकृतिः।जगत्सामग्री (शीर्षकपाले) शिरोऽस्थिनी (संवत्सरः) सवत्सरज्ञानमित्यर्थः ॥

०५ अह्नाप्रत्यङ्व्रात्यो रात्र्या

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अह्ना॑प्र॒त्यङ्व्रात्यो॒ रात्र्या॒ प्राङ्नमो॒ व्रात्या॑य ॥

०५ अह्नाप्रत्यङ्व्रात्यो रात्र्या ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. With the day [is] the Vrātya westward, with the night eastward:
    homage to the Vrātya.
Notes

⌊Here ends the second anuvāka, with 11 paryāyas: see above, p. 770.
For the summations of avasānarcas (questionable), see p. 771.⌋

⌊Here ends the thirtieth prapāṭhaka.⌋

Griffith

By day the Vratya is turned westward, by night he is turned eastward. Worship to the Vratya!

पदपाठः

अह्ना॑। प्र॒त्यङ्। व्रात्यः॑। रात्र्या॑। प्राङ्। नमः॑। व्रात्या॑य। १८.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • साम्नी उष्णिक्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

व्रात्य के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (व्रात्यः) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] (अह्ना) दिन के साथ (प्रत्यङ्) सामने जानेवाला और (रात्र्या) रात्रि के साथ (प्राङ्) आगे को चलनेवाला है, (व्रात्याय) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] के लिये (नमः) नमस्कार [अर्थात् सत्कार होवे] ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो विद्वान् अतिथि दिन-रात्रि पुरुषार्थ से विघ्नों को हटा कर उन्नति करता और कराता है, सब गृहस्थ लोगउसका निरन्तर आदर सत्कार करें ॥५॥ इति द्वितीयोऽनुवाकः ॥ इति त्रिंशः प्रपाठकः ॥इति पञ्चदशं काण्डम्॥इति श्रीमद्राजाधिराजप्रथितमहागुणमहिमश्रीसयाजीरावगायकवाड़ाधिष्ठितबड़ोदेपुरीगतश्रावणमासदक्षिणापरीयाक्षाम् ऋक्सामाथर्ववेदभाष्येषु लब्धदक्षिणेनश्रीपण्डितक्षेमकरणदासत्रिवेदिना कृते अथर्ववेदभाष्ये पञ्चदशं काण्डंसमाप्तम् ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(अह्ना) दिनेन सह (प्रत्यङ्) प्रति+अञ्चु गतिपूजनयोः-क्विन्।प्रतिगतः। अभिमुखः (व्रात्यः) सत्यव्रतधारी पुरुषः (रात्र्या) (प्राङ्)प्र+अञ्चु गतिपूजनयोः-क्विन्। प्रकर्षेण गतः। अग्रगामी (नमः) सत्कारः (व्रात्याय) सत्यव्रतधारिणे विदुषे ॥