०१७

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Whitney subject
  1. Paryāya the seventeenth.
VH anukramaṇī

१-१० अथर्वा। अध्यात्मं, व्रात्यः। १, ५ प्राजापत्या उष्णिक्, २, ७ आसुरी अनुष्टुप्, ३ याजुषी पङ्क्तिः, ४ साम्नी उष्णिक्, ६ याजुषी त्रिष्टुप्, ८ त्रिपदा प्रतिष्ठाऽर्ची पङ्क्तिः, ९ द्विपदा साम्नी त्रिष्टुप्, १० साम्नी अनुष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[daśa. 1, 4. prājāpatyo ’ṣṇih; 2, 7. āsury anuṣṭubh; 3. yājuṣī pan̄kti; 4. sāmny uṣṇih; 6. yājuṣī triṣṭubh; 8. 3-p. pratiṣṭhā ”rcī pan̄kti; 9. 2-p. sāmnī triṣṭubh; 10: sāmny anuṣṭubh.]

Whitney

Comment

Translations

Translated: Aufrecht, Ind. Stud. i. 137; Griffith, ii. 198.

Griffith

Vratya

०१ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

तस्य॒व्रात्य॑स्य।
यो᳡ऽस्य॑ प्रथ॒मो व्या॒नः सेयं भूमिः॑ ॥

०१ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. His out-breathing that is first, that is this earth.
Notes
Griffith

His first diffused breath is this Earth.

पदपाठः

तस्य॑। व्रात्य॑स्य। यः। अ॒स्य॒। प्र॒थ॒मः। वि॒ऽआ॒नः। सा। इ॒यम्। भूमिः॑। १७.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राजापत्या उष्णिक्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

व्रात्य के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] का−(यः) जो (अस्य) इस [व्रात्य] का (प्रथमः) पहिला (व्यानः) व्यान [शरीर में फैला वायु] है, (सा) सो (इयम् भूमिः)यह भूमि है [अर्थात् वह भूगर्भविद्या, राज्यपालन आदि विद्या का उपदेश करता है]॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सत्यव्रतधारी महात्माअतिथि संन्यासी अपने प्रत्येक व्यान वायु की चेष्टा में संसार का उपकार करताहै, जैसे वह प्रथम व्यान में भूमिविद्या, दूसरे में अन्तरिक्षविद्या, तीसरे मेंसूर्यविद्या वा आकाशविद्या, चौथे में नक्षत्रविद्या, पाँचवें में वसन्त आदिऋतुविद्या, छठे में ऋतुओं में उत्पन्न पुष्प फल आदि पदार्थविद्या और सातवें मेंसंवत्सर अर्थात् काल की उपभोगविद्या का उपदेश करता है ॥१-७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(व्यानः)सर्वशरीरव्यापको वायुः (भूमिः) भूगर्भविद्या राज्यपालनादिविद्या च। अन्यत्पूर्ववत् स्पष्टं च ॥

०२ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

तस्य॒व्रात्य॑स्य।
यो᳡ऽस्य॑ द्वि॒तीयो॑ व्या॒नस्तद॒न्तरि॑क्षम् ॥

०२ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. His out-breathing that is second, that is the atmosphere.
Notes
Griffith

His second diffused breath is that Firmament.

पदपाठः

तस्य॑। व्रात्य॑स्य। यः। अ॒स्य॒। द्व‍ि॒तीयः॑। वि॒ऽआ॒नः। तत्। अ॒न्तरि॑क्षम्। १७.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आसुरी अनुष्टुप्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

व्रात्य के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] का−(यः) जो (अस्य) इस [व्रात्य] का (द्वितीयः) दूसरा (व्यानः) व्यान [शरीर में फैला हुआ वायु] है, (तत्) वह (अन्तरिक्षम्) मध्यलोक है [अर्थात् वह वायुमण्डल, मेघमण्डल आदि का ज्ञान देताहै] ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सत्यव्रतधारी महात्माअतिथि संन्यासी अपने प्रत्येक व्यान वायु की चेष्टा में संसार का उपकार करताहै, जैसे वह प्रथम व्यान में भूमिविद्या, दूसरे में अन्तरिक्षविद्या, तीसरे मेंसूर्यविद्या वा आकाशविद्या, चौथे में नक्षत्रविद्या, पाँचवें में वसन्त आदिऋतुविद्या, छठे में ऋतुओं में उत्पन्न पुष्प फल आदि पदार्थविद्या और सातवें मेंसंवत्सर अर्थात् काल की उपभोगविद्या का उपदेश करता है ॥१-७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(अन्तरिक्षम्)मध्यलोकस्थवायुमण्डलमेघमण्डलादिज्ञानम्। अन्यत् पूर्ववत् स्पष्टं च ॥

०३ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य

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तस्य॒व्रात्य॑स्य।
यो᳡ऽस्य॑ तृ॒तीयो॑ व्या॒नः सा द्यौः ॥

०३ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. His out-breathing that is third, that is the sky.
Notes
Griffith

His third diffused breath is that Heaven.

पदपाठः

तस्य॑। व्रात्य॑स्य। यः। अ॒स्य॒। तृ॒तीयः॑। वि॒ऽआ॒नः। सा। द्यौः। १७.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • याजुषी पङ्क्ति
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

व्रात्य के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] का−(यः) जो (अस्य) इस [व्रात्य] का (तृतीयः) तीसरा (व्यानः) व्यान [शरीर में फैला हुआ वायु] है, (सा) वह (द्यौः)सूर्य वाआकाश है [अर्थात् वह सूर्य के ताप आकर्षण आदि और आकाश के फैलाव आदि कीविद्या को जताता है] ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सत्यव्रतधारी महात्माअतिथि संन्यासी अपने प्रत्येक व्यान वायु की चेष्टा में संसार का उपकार करताहै, जैसे वह प्रथम व्यान में भूमिविद्या, दूसरे में अन्तरिक्षविद्या, तीसरे मेंसूर्यविद्या वा आकाशविद्या, चौथे में नक्षत्रविद्या, पाँचवें में वसन्त आदिऋतुविद्या, छठे में ऋतुओं में उत्पन्न पुष्प फल आदि पदार्थविद्या और सातवें मेंसंवत्सर अर्थात् काल की उपभोगविद्या का उपदेश करता है ॥१-७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(द्यौः)सूर्यतापकर्षणादिविद्या। आकाशस्य विस्तारादिविद्या। अन्यत् पूर्ववत् स्पष्टं च ॥

०४ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य

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तस्य॒व्रात्य॑स्य।
यो᳡ऽस्य॑ चतु॒र्थो व्या॒नस्तानि॒ नक्ष॑त्राणि ॥

०४ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. His out-breathing that is fourth, that is the asterisms.
Notes
Griffith

His fourth diffused breath are those Constellations.

पदपाठः

तस्य॑। व्रात्य॑स्य। यः। अ॒स्य॒। च॒तु॒र्थः। वि॒ऽआ॒नः। तानि॑। नक्ष॑त्राणि। १७.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • साम्नी उष्णिक्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

व्रात्य के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] का−(यः) जो (अस्य) इस [व्रात्य] का (चतुर्थः) चौथा (व्यानः) व्यान [सब शरीर में फैला हुआ वायु] है, (तानि) वे (नक्षत्राणि) चलनेवाले तारागण हैं [अर्थात् वह तारागणों के परस्पर आकर्षण रखने, अपने-अपने मार्ग पर चलने और उछलने-डूबने आदि का ज्ञान बताता है] ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सत्यव्रतधारी महात्माअतिथि संन्यासी अपने प्रत्येक व्यान वायु की चेष्टा में संसार का उपकार करताहै, जैसे वह प्रथम व्यान में भूमिविद्या, दूसरे में अन्तरिक्षविद्या, तीसरे मेंसूर्यविद्या वा आकाशविद्या, चौथे में नक्षत्रविद्या, पाँचवें में वसन्त आदिऋतुविद्या, छठे में ऋतुओं में उत्पन्न पुष्प फल आदि पदार्थविद्या और सातवें मेंसंवत्सर अर्थात् काल की उपभोगविद्या का उपदेश करता है ॥१-७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(नक्षत्राणि)अमिनक्षियजिवधिपतिभ्योऽत्रन्। उ० ३।१०५। णक्ष गतौ-अत्रन्। गतिशीलानां तारागणानांपरस्पराकर्षणादिज्ञानम्। अन्यत् पूर्ववत् स्पष्टं च ॥

०५ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य

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तस्य॒व्रात्य॑स्य।
यो᳡ऽस्य॑ पञ्च॒मो व्या॒नस्त ऋ॒तवः॑ ॥

०५ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. His out-breathing that is fifth, that is the seasons.
Notes
Griffith

His fifth diffused breath are the Seasons.

पदपाठः

तस्य॑। व्रात्य॑स्य। यः। अ॒स्य॒। प॒ञ्च॒मः। वि॒ऽआ॒नः। ते। ऋ॒तवः॑। १७.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राजापत्या उष्णिक्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

व्रात्य के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] का−(यः) जो (अस्य) इस [व्रात्य] का (पञ्चमः) पाचवाँ (व्यानः) व्यान [सब शरीर में फैला हुआ वायु] है, (ते) वे (ऋतवः)ऋतुएँ हैं [अर्थात् वह वसन्त आदि ऋतुओं के क्रम और कारण आदि का उपदेश करता है]॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सत्यव्रतधारी महात्माअतिथि संन्यासी अपने प्रत्येक व्यान वायु की चेष्टा में संसार का उपकार करताहै, जैसे वह प्रथम व्यान में भूमिविद्या, दूसरे में अन्तरिक्षविद्या, तीसरे मेंसूर्यविद्या वा आकाशविद्या, चौथे में नक्षत्रविद्या, पाँचवें में वसन्त आदिऋतुविद्या, छठे में ऋतुओं में उत्पन्न पुष्प फल आदि पदार्थविद्या और सातवें मेंसंवत्सर अर्थात् काल की उपभोगविद्या का उपदेश करता है ॥१-७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(ऋतवः) वसन्तादीनांक्रमकारणादिबोधः अन्यत् पूर्ववत् स्पष्टं च ॥

०६ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य

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तस्य॒व्रात्य॑स्य।
यो᳡ऽस्य॑ ष॒ष्ठो व्या॒नस्त आ॑र्त॒वाः ॥

०६ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. His out-breathing that is sixth, that is they of the seasons.
Notes
Griffith

His sixth diffused breath are the Season-groups.

पदपाठः

तस्य॑। व्रात्य॑स्य। यः। अ॒स्य॒। ष॒ष्ठः। वि॒ऽआ॒नः। ते। आ॒र्त॒वाः। १७.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • याजुषी त्रिष्टुप्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

व्रात्य के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] का−(यः) जो (अस्य) इस [व्रात्य] का (षष्ठः) छठा (व्यानः) व्यान [सब शरीर में फैला हुआ वायु] है, (ते) वे (आर्तवाः)ऋतुओं में उत्पन्न पदार्थ हैं [अर्थात् वह फूल आदि की उत्पत्ति और उपकार काज्ञान देता है] ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सत्यव्रतधारी महात्माअतिथि संन्यासी अपने प्रत्येक व्यान वायु की चेष्टा में संसार का उपकार करताहै, जैसे वह प्रथम व्यान में भूमिविद्या, दूसरे में अन्तरिक्षविद्या, तीसरे मेंसूर्यविद्या वा आकाशविद्या, चौथे में नक्षत्रविद्या, पाँचवें में वसन्त आदिऋतुविद्या, छठे में ऋतुओं में उत्पन्न पुष्प फल आदि पदार्थविद्या और सातवें मेंसंवत्सर अर्थात् काल की उपभोगविद्या का उपदेश करता है ॥१-७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(आर्तवाः) ऋतुभवानांपुष्पफलादिपदार्थानां ज्ञानम्। अन्यत् पूर्ववत् स्पष्टं च ॥

०७ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य

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तस्य॒व्रात्य॑स्य।
यो᳡ऽस्य॑ सप्त॒मो व्या॒नः स सं॑वत्स॒रः ॥

०७ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. His out-breathing that is seventh, that is the year.
Notes
Griffith

His seventh diffused breath is the year.

पदपाठः

तस्य॑। व्रात्य॑स्य। यः। अ॒स्य॒। स॒प्त॒मः। वि॒ऽआ॒नः। सः। स॒म्ऽव॒त्स॒रः। १७.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आसुरी अनुष्टुप्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

व्रात्य के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] का−(यः) जो (अस्य) इस [व्रात्य] का (सप्तमः) सातवाँ (व्यानः) व्यान [सब शरीर में फैला हुआ वायु] है, (सः) वह (संवत्सरः) संवत्सर है [अर्थात् वर्ष में ऋतु महीने आदि कैसे बनते हैं और सबमनुष्य आदि प्राणी कैसे उसका उपभोग करते हैं, इस का वह ज्ञान कराता है] ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सत्यव्रतधारी महात्माअतिथि संन्यासी अपने प्रत्येक व्यान वायु की चेष्टा में संसार का उपकार करताहै, जैसे वह प्रथम व्यान में भूमिविद्या, दूसरे में अन्तरिक्षविद्या, तीसरे मेंसूर्यविद्या वा आकाशविद्या, चौथे में नक्षत्रविद्या, पाँचवें में वसन्त आदिऋतुविद्या, छठे में ऋतुओं में उत्पन्न पुष्प फल आदि पदार्थविद्या और सातवें मेंसंवत्सर अर्थात् काल की उपभोगविद्या का उपदेश करता है ॥१-७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(संवत्सरः)संपूर्वाच्चित्। उ० ३।७२। सम्+वस निवासे सरन्, स च चित्। संवसन्ति वसन्तादयोयत्र। कालोपभोगविद्या। अन्यत् पूर्ववत् स्पष्टं च ॥

०८ तस्यव्रात्यस्य समानमर्थम्

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तस्य॒व्रात्य॑स्य।
स॑मा॒नमर्थं॒ परि॑ यन्ति दे॒वाः सं॑वत्स॒रं वा ए॒तदृ॒तवो॑ऽनु॒परि॑यन्ति॒ व्रात्यं॑ च ॥

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Whitney
Translation
  1. The gods go about the same purpose (ártha); thus (etát) verily
    the seasons go about after the year and the Vrātya.
Notes

One ms. (R.) prefixes tásya vrā́tyasya also to this and the two
following verses. ⌊In the Bombay ed., each verse begins with tásya
vrā́tyasya
and an avasāna-mark: see p. 771, end.⌋ The sense of the
three is obscure; Aufrecht leaves them untranslated.

Griffith

With one and the same object the Gods go round the Year and the Seasons follow round the Vratya.

पदपाठः

स॒मा॒नम्। अर्थ॑म्। परि॑। य॒न्ति॒। दे॒वाः। स॒म्ऽव॒त्स॒रम्। वै। ए॒तत्। ऋ॒तवः॑। अ॒नु॒ऽपरि॑यन्ति। व्रात्य॑म्। च॒। १७.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • त्रिपदा प्रतिष्ठार्ची
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

व्रात्य के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] के−(समानम्) एक से अर्थात् धार्मिक (अर्थम्) अर्थ [विचार] को (देवाः) विद्वान् लोग (परि) सब ओर से (यन्ति) प्राप्तकरते हैं, (च) और (व्रात्यम्) उस व्रात्य [सत्यव्रतधारी पुरुष] के (वै) निश्चयकरके (एतत्) इस प्रकार से (अनुपरियन्ति) पीछे घिर कर चलते हैं, [जैसे] (ऋतवः)ऋतुएँ (संवत्सरम्) वर्षकाल के [पीछे चलते हैं] ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो सत्यव्रतधारीपरोपकारी संन्यासी हो, सब विद्वान् लोग उसी के न्याययुक्त वेदानुकूल मार्ग परचलें और सब मिलकर उसी से प्रीति करें, जैसे सब ऋतुएँ और महीने आदि वर्ष मेंमिले रहते हैं ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(समानम्) सम्+अन जीवने-घञ्। यद्वा सम्+आङ्+णीञ् प्रापणे-ड।एकम्। धार्मिकम् (अर्थम्) उषिकुषिगार्तिभ्यस्थन्। उ० २।४। ऋ गतिप्रापणयोः-थन्।विचारम्। प्रयोजनम् (परि) सर्वतः (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (देवाः) विद्वांसः (संवत्सरम्) द्वादशमासात्मकं कालम् (वै) निश्चयेन (एतत्) अनेन प्रकारेण (ऋतवः)वसन्तादयः (अनुपरियन्ति) अनुसृत्य सर्वतः प्राप्नुवन्ति (व्रात्यम्)सत्यव्रतधारिणं पुरुषम् (च) समुच्चये ॥

०९ तस्यव्रात्यस्य यदादित्यमभिसंविशन्त्यमावास्याम्

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तस्य॒व्रात्य॑स्य।
यदा॑दि॒त्यम॑भिसंवि॒शन्त्य॑मावा॒स्यां᳡ चै॒व तत्पौ॑र्णमा॒सीं च॑॥

०९ तस्यव्रात्यस्य यदादित्यमभिसंविशन्त्यमावास्याम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. As they enter together into the sun (ādityá), just so [do they]
    also into new-moon day and full-moon day.
Notes

The great majority of the mss. (all save Bs.D.K.) accent amāvāsyā́m.

Griffith

When they surround the Sun on the day of New Moon, and that time of Full Moon.

पदपाठः

तस्य॑। व्रात्य॑स्य। यत्। आ॒दि॒त्यम्। अ॒भि॒ऽसं॒वि॒शन्ति॑। अ॒मा॒ऽवा॒स्या᳡म्। च॒। ए॒व। तत्। पौ॒र्ण॒ऽमा॒सीम्। च॒। १७.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • द्विपदा साम्नी त्रिष्टुप्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

व्रात्य के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] के−(आदित्यम्) प्रकाशमान गुण में (यत्) जब (अभिसंविशन्ति) वे [विद्वान्-मन्त्र ८] सब ओर से यथावत् प्रवेश करतेहैं, (तत् एव) तब ही (अमावास्याम्) साथ-साथ बसने की क्रिया में (च च) और (पौर्णमासीम्) पूरे नापने [निश्चय करने] की क्रिया में [वे प्रवेश करते हैं] ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग आप्तसंन्यासी अतिथि के सत्सङ्ग से परस्पर उपकार और पदार्थों की परीक्षा आदिविद्याएँ ग्रहण करें ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(यत्) यदा (आदित्यम्) अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२।आङ्+दीपी दीप्तौ-यक्। पृषोदरादिरूपम्। आदीप्यमानं गुणम् (अभिसंविशन्ति) अभितःसर्वतः सम्यक् प्रविशन्ति। प्राप्नुवन्ति ते देवाः-म० ८ (अमावास्याम्) अ०७।७९।१। अमावस्यदन्यतरस्याम्। पा० ३।१।१२२। अमा+वस निवासे-ण्यत्, टाप्। अमा सहनिवसन्ति प्राणिनो यस्यां क्रियायां ताम् (च) (एव) (तत्) तदा (पौर्णमासीम्) अ०७।८०।१। पूर्ण+मसी परिणामे परिमाणे च-घञ्। पूर्णमासादण्। वा० पा० ४।२।३५।पूर्णमास-अण्। पूर्णो मासः परिमाणं परीक्षणं यस्यां क्रियायां ताम् (च) ॥

१० तस्यव्रात्यस्य एकम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

तस्य॒व्रात्य॑स्य।
एकं॒ तदे॑षाममृत॒त्वमित्याहु॑तिरे॒व ॥

१० तस्यव्रात्यस्य एकम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. One [is] that immortality of theirs: to this effect (íti) [is]
    the offering.
Notes

Except two (D.R.), all the mss. accent éṣām.

Griffith

That one immortality of theirs is just an oblation.

पदपाठः

एक॑म्। तत्। ए॒षा॒म्। अ॒मृ॒त॒ऽत्वम्। इति॑। आऽहु॑तिः। ए॒व। १७.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • साम्नी अनुष्टुप्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

व्रात्य के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] की−(आहुतिः) आहुति [दानक्रिया] (एव)ही (एषाम्) इन [विद्वानों] का (एकम्) केवल (तत्) वह [प्रसिद्ध] (अमृतत्वम्)अमरपन [जीवन अर्थात् पुरुषार्थ] है−(इति) यह निश्चित है ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जब विद्वान् संन्यासीअपने आत्मा को संसार की भलाई में लगा देता है, विद्वान् लोग उसकी मर्यादा कोमानकर पुरुषार्थ करते और क्लेशों को त्याग कर आनन्द भोगते हैं ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(एकम्)केवलम् (तत्) प्रसिद्धम् (एषाम्) देवानाम्। विदुषाम् (अमृतत्वम्) अमरणम्।जीवनम्। पुरुषार्थम् (इति) एवं निश्चितम् (आहुतिः) समन्ताद् दानक्रिया (एव)अवधारणे ॥