०१६

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Whitney subject
  1. Paryāya the sixteenth.
VH anukramaṇī

१-७ अथर्वा। अध्यात्मं, व्रात्यः। १,३ साम्नी उष्णिक्, २,४-५ प्राजापत्या उष्णिक्, ६ याजुषी त्रिष्टुप्, ७ आसुरी गायत्री।

Whitney anukramaṇī

[saptaka. 1, 3. sāmny uṣṇih; 2, 4, 5. prājāpatyo ’ṣṇih; 6. yājuṣī triṣṭubh; 7. āsurī gāyatrī.]

Whitney

Comment

⌊The metrical definitions of the Anukr. imply in every verse the inclusion of the words yo ‘sya (pronounced as yo asya), and the reading of apānaḥ as 3 syllables.—As noted at p. 771, end, SPP. puts each time before yo ‘sya the words tásya vrā́tyasya with an avasāna-mark.⌋

In this hymn, the mss. in general omit at the beginning both yó and asya, while in 15 and 17 they omit only yó. Some, however, have asya here also (so K.; R. yó asya throughout).

Translations

Translated: Aufrecht, Ind. Stud. i. 137; Griffith, ii. 198.

Griffith

Vratya

०१ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

तस्य॒व्रात्य॑स्य।
यो᳡ऽस्य॑ प्रथ॒मोऽपा॒नः सा पौ॑र्णमा॒सी ॥

०१ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. His expiration that is first, that is the day of full moon.
Notes
Griffith

His first downward breath is the time of Full Moon.

पदपाठः

तस्य॑। व्रात्य॑स्य। यः। अ॒स्य॒। प्र॒थ॒मः। अ॒पा॒नः। सा। पौ॒र्ण॒ऽमा॒सी। १६.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • साम्नी उष्णिक्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

अतिथि के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य)व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] का−(यः) जो (अस्य) इस [व्रात्य] का (प्रथमः) पहिला (अपानः) अपान [प्रश्वास अर्थात् बाहिर निकलनेवाला दोषनाशक वायु] है, (सा) वह (पौर्णमासी) पौर्णमासी है [अर्थात् पूर्णमासेष्टि है, जिसमें वह विचारता है कि उसदिन चन्द्रमा पूरा क्यों दीखता है, पृथिवी, समुद्र आदि पर उसका क्या प्रभाव होताहै, इस प्रकार का यज्ञ वह ज्ञानी पुरुष अपने इन्द्रियदमन से सिद्ध करता है] ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे सामान्य मनुष्यज्ञानप्राप्ति के लिये पौर्णमासी आदि यज्ञ करके श्रद्धावान् होते हैं, वैसे हीविद्वान् अतिथि संन्यासी उस कार्मिक यज्ञ आदि के स्थान पर अपनी जितेन्द्रियतासे मानसिक यज्ञ करके यज्ञफल प्राप्त करते हैं, अर्थात् ब्रह्मविद्या,ज्योतिषविद्या आदि अनेक विद्याओं का प्रचार करके संसार में प्रतिष्ठा पाते हैं॥१-७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(अपानः) प्रश्वासः।शरीरबहिर्गामी दोषनाशको वायुः (पौर्णमासी) अ० ७।८०।१। तथा १५।१७।९।पूर्णमास-अण्, ङीप्। पूर्णमासेष्टिः। पूर्णचन्द्रसम्बन्धिनी विद्या। अन्यत्पूर्ववत् स्पष्टं च ॥

०२ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

तस्य॒व्रात्य॑स्य।
यो᳡ऽस्य॑ द्वि॒तीयो॑ऽपा॒नः साष्ट॑का ॥

०२ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. His expiration that is second, that is the day of the moon’s quarter
    (áṣṭakā).
Notes
Griffith

His second downward breath is the eighth day after Full Moon.

पदपाठः

तस्य॑। व्रात्य॑स्य। यः। अ॒स्य॒। द्वि॒तीयः॑। अ॒पा॒नः। सा। अष्ट॑का। १६.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राजापत्या उष्णिक्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

अतिथि के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] का−(यः) जो (अस्य) इस [व्रात्य] का (द्वितीयः) दूसरा (अपानः) अपान [प्रश्वास] है, (सः) वह (अष्टका) अष्टका है [अर्थात् वह अष्टमी आदि तिथि का यज्ञ है, जिसमें विद्वान् पितर लोग विचारते हैंकि ज्योतिष शास्त्र की मर्यादा से इन तिथियों में सूर्य और चन्द्र आदि का क्याप्रभाव पड़ता है] ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे सामान्य मनुष्यज्ञानप्राप्ति के लिये पौर्णमासी आदि यज्ञ करके श्रद्धावान् होते हैं, वैसे हीविद्वान् अतिथि संन्यासी उस कार्मिक यज्ञ आदि के स्थान पर अपनी जितेन्द्रियतासे मानसिक यज्ञ करके यज्ञफल प्राप्त करते हैं, अर्थात् ब्रह्मविद्या,ज्योतिषविद्या आदि अनेक विद्याओं का प्रचार करके संसार में प्रतिष्ठा पाते हैं॥१-७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(अष्टका)इष्यशिभ्यां तकन्। उ० ३।१४८। अशू व्याप्तौ अश भोजने-वा-तकन्, टाप्। अष्टकापितृदेवत्ये। वा० पा० ७।३।४५ इत्त्वाभावः। अष्टम्यादितिथौ पितॄणां समागमेनज्योतिषविद्याविचारः। अन्यत् पूर्ववत् स्पष्टं च ॥

०३ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य

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तस्य॒व्रात्य॑स्य।
यो᳡ऽस्य॑ तृ॒तीयो॑ऽपा॒नः सामा॑वा॒स्या᳡ ॥

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Whitney
Translation
  1. His expiration that is third, that is the day of new moon.
Notes
Griffith

His third downward breath is the night of New Moon.

पदपाठः

तस्य॑। व्रात्य॑स्य। यः। अ॒स्य॒। तृ॒तीयः॑। अ॒पा॒नः। सा। अ॒मा॒ऽवा॒स्या᳡। १६.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • साम्नी उष्णिक्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

अतिथि के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] का−(यः) जो (अस्य) इस [व्रात्य] का (तृतीयः) तीसरा (अपानः) अपान [प्रश्वास] है, (सा) वह (अमावास्या) अमावस्या है [वह दर्शेष्टि है, जिसमें विचारा जाता है कि अमावस के सूर्य और चन्द्रमा एक राशिमें आकर क्या प्रभाव उत्पन्न करते हैं] ॥३॥पूर्णमासेष्टि और दर्शेष्टि के विषयमें देखो-मनु० अ–० ४ श्लो० २५ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे सामान्य मनुष्यज्ञानप्राप्ति के लिये पौर्णमासी आदि यज्ञ करके श्रद्धावान् होते हैं, वैसे हीविद्वान् अतिथि संन्यासी उस कार्मिक यज्ञ आदि के स्थान पर अपनी जितेन्द्रियतासे मानसिक यज्ञ करके यज्ञफल प्राप्त करते हैं, अर्थात् ब्रह्मविद्या,ज्योतिषविद्या आदि अनेक विद्याओं का प्रचार करके संसार में प्रतिष्ठा पाते हैं॥१-७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(अमावास्या) सू० १७म० ९। अमा सह वसतश्चन्द्रार्कौ यत्र, वस निवासे-ण्यत्। कृष्णपक्षशेषतिथिः, तद्दिने चन्द्रार्कावेकराशिस्थौ भवतः। दर्शेष्टिर्यज्ञविशेषः। अन्यत् पूर्ववत्स्पष्टं च ॥

०४ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य

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तस्य॒व्रात्य॑स्य।
यो᳡ऽस्य॑ चतु॒र्थो᳡ऽपा॒नः सा श्र॒द्धा ॥

०४ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. His expiration that is fourth, that is faith.
Notes
Griffith

His fourth downward breath is Faith.

पदपाठः

तस्य॑। व्रात्य॑स्य। यः। अ॒स्य॒। च॒तु॒र्थः। अ॒पा॒नः। सा। श्र॒ध्दा। १६.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राजापत्या उष्णिक्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

अतिथि के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] का−(यः) जो (अस्य) इस [व्रात्य] का (चतुर्थः) चौथा (अपानः) अपान [प्रश्वास] है, (सा श्रद्धा) वह श्रद्धा है [वहज्ञानी पुरुष जितेन्द्रियता से श्रद्धा प्राप्त करता है] ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे सामान्य मनुष्यज्ञानप्राप्ति के लिये पौर्णमासी आदि यज्ञ करके श्रद्धावान् होते हैं, वैसे हीविद्वान् अतिथि संन्यासी उस कार्मिक यज्ञ आदि के स्थान पर अपनी जितेन्द्रियतासे मानसिक यज्ञ करके यज्ञफल प्राप्त करते हैं, अर्थात् ब्रह्मविद्या,ज्योतिषविद्या आदि अनेक विद्याओं का प्रचार करके संसार में प्रतिष्ठा पाते हैं॥१-७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(श्रद्धा)गुरुवेदादिवाक्येषु विश्वासः। अन्यत् पूर्ववत् स्पष्टं च ॥

०५ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य

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तस्य॒व्रात्य॑स्य।
यो᳡ऽस्य॑ पञ्च॒मो᳡ऽपा॒नः सा दी॒क्षा ॥

०५ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. His expiration that is fifth, that is consecration.
Notes
Griffith

His fifth downward breath is Consecration.

पदपाठः

तस्य॑। व्रात्य॑स्य। यः। अ॒स्य॒। प॒ञ्च॒मः। अ॒पा॒नः। सा। दी॒क्षा। १६.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राजापत्या उष्णिक्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

अतिथि के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] का−(यः) जो (अस्य) इस [व्रात्य] का (पञ्चमः) पाचवाँ (अपानः) अपान [प्रश्वास] है, (सा दीक्षा) वह दीक्षा है [वह नियमऔर व्रतपालन की शिक्षा करता है] ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे सामान्य मनुष्यज्ञानप्राप्ति के लिये पौर्णमासी आदि यज्ञ करके श्रद्धावान् होते हैं, वैसे हीविद्वान् अतिथि संन्यासी उस कार्मिक यज्ञ आदि के स्थान पर अपनी जितेन्द्रियतासे मानसिक यज्ञ करके यज्ञफल प्राप्त करते हैं, अर्थात् ब्रह्मविद्या,ज्योतिषविद्या आदि अनेक विद्याओं का प्रचार करके संसार में प्रतिष्ठा पाते हैं॥१-७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(दीक्षा) नियमव्रतयोःशिक्षा। अन्यत् पूर्ववत् स्पष्टं च ॥

०६ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य

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तस्य॒व्रात्य॑स्य।
यो᳡ऽस्य॑ ष॒ष्ठो᳡ऽपा॒नः स य॒ज्ञः ॥

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Whitney
Translation
  1. His expiration that is sixth, that is sacrifice.
Notes
Griffith

His sixth downward breath is Sacrifice.

पदपाठः

तस्य॑। व्रात्य॑स्य। यः। अ॒स्य॒। ष॒ष्ठः। अ॒पा॒नः। सः। य॒ज्ञः। १६.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • याजुषी त्रिष्टुप्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

अतिथि के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] का−(यः) जो (अस्य) इस [व्रात्य] का (षष्ठः) छठा (अपानः) अपान [प्रश्वास] है, (स यज्ञः) वह यज्ञ है [मानो वहपरमेश्वर और विद्वानों का सत्कार, परस्पर संयोग और विद्या आदि दान है] ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे सामान्य मनुष्यज्ञानप्राप्ति के लिये पौर्णमासी आदि यज्ञ करके श्रद्धावान् होते हैं, वैसे हीविद्वान् अतिथि संन्यासी उस कार्मिक यज्ञ आदि के स्थान पर अपनी जितेन्द्रियतासे मानसिक यज्ञ करके यज्ञफल प्राप्त करते हैं, अर्थात् ब्रह्मविद्या,ज्योतिषविद्या आदि अनेक विद्याओं का प्रचार करके संसार में प्रतिष्ठा पाते हैं॥१-७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(यज्ञः)यजयाचयतविच्छप्रच्छरक्षो नङ्। पा० ३।३।९०। यज देवपूजासंगतिकरणदानेषु-नङ्।परमेश्वरविद्वत्सत्कारपरस्परसंयोगविद्यादिदानव्यवहारः। अन्यत् पूर्ववत्स्पष्टं च ॥

०७ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य

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तस्य॒व्रात्य॑स्य।
यो᳡ऽस्य॑ सप्त॒मो᳡ऽपा॒नस्ता इ॒मा दक्षि॑णाः ॥

०७ तस्यव्रात्यस्य योऽस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. His expiration that is seventh, that is these sacrificial gifts.
Notes

⌊Bloomfield, AJP. xvii. 411, makes some observations on the word
śraddhā, vs. 4.⌋

Griffith

His seventh downward breath are these sacrificial fees.

पदपाठः

तस्य॑। व्रात्य॑स्य। यः। अ॒स्य॒। स॒प्त॒मः। अ॒पा॒नः। ताः। इ॒माः। दक्षि॑णाः। १६.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आसुरी गायत्री
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

अतिथि के सामर्थ्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] का−(यः) जो (अस्य) इस [व्रात्य] का (सप्तमः) सातवाँ (अपानः) अपान [प्रश्वास] है, (ताः) वे (इमाः) ये (दक्षिणाः)दक्षिणाएँ हैं [मानो वह यज्ञसमाप्ति पर विद्वानों के सत्कारद्रव्य हैं] ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे सामान्य मनुष्यज्ञानप्राप्ति के लिये पौर्णमासी आदि यज्ञ करके श्रद्धावान् होते हैं, वैसे हीविद्वान् अतिथि संन्यासी उस कार्मिक यज्ञ आदि के स्थान पर अपनी जितेन्द्रियतासे मानसिक यज्ञ करके यज्ञफल प्राप्त करते हैं, अर्थात् ब्रह्मविद्या,ज्योतिषविद्या आदि अनेक विद्याओं का प्रचार करके संसार में प्रतिष्ठा पाते हैं॥१-७॥मनु महाराज कहते हैं−अ० ४ श्लो० २३ [वाच्येके जुह्वति प्राणं प्राणे वाचं चसर्वदा। वाचि प्राणे च पश्यन्तो यज्ञनिर्वृत्तिमक्षयाम्] ॥कोई-कोई विद्वान् वाणीऔर प्राण [के संयम] में अक्षय यज्ञसिद्धि देखते हुए वाणी में प्राण का और प्राणमें वाणी का हवन करते हैं [अर्थात् वाणी और प्राण का संयम करते हैं]॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(दक्षिणाः) यज्ञसमाप्तौ विद्वद्भ्यः सत्कारद्रव्याणि। अन्यत् पूर्ववत्स्पष्टं च ॥