०१२

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Whitney subject
  1. Paryāya the twelfth.
VH anukramaṇī

१-११ अथर्वा। अध्यात्मं, व्रात्यः। १ त्रिपदा गायत्री, २ प्राजापत्याबृहती, ३-४ भुरिक्प्राजापत्याऽनुष्टुप् (४ साम्नी), ५-६, ९-१० आसुरी गायत्री, ८ विराड् गायत्री, ७,११ त्रिपदा प्राजापत्या त्रिष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[The passage from Āp. Dharma-sūtra, ii. 3. 7 (see introd. to paryāya 11), parallel to our vss. 1-3, may here be given: yasyo ’ddhṛteṣv ahuteṣv agniṣv atithir abhyāgacchet svayam enam abhyudetya brūyāt: vrātya atisṛja hoṣyāmi: ity atisṛṣṭena hotavyam: anatisṛṣṭaś cej juhuyād doṣam brāhmaṇam āha. 15.⌋

Whitney

Comment

[The passage from Āp. Dharma-sūtra, ii. 3. 7 (see introd. to paryāya 11), parallel to our vss. 1-3, may here be given: yasyo ’ddhṛteṣv ahuteṣv agniṣv atithir abhyāgacchet svayam enam abhyudetya brūyāt: vrātya atisṛja hoṣyāmi: ity atisṛṣṭena hotavyam: anatisṛṣṭaś cej juhuyād doṣam brāhmaṇam āha. 15.⌋

Translations

Translated: Aufrecht, Ind. Stud. i. 135; Griffith, ii. 194.

Griffith

Vratya

०१ तद्यस्यैवंविद्वान्व्रात्य

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तद्यस्यै॒वंवि॒द्वान्व्रात्य॒ उद्धृ॑तेष्व॒ग्निष्वधि॑श्रितेऽग्निहो॒त्रेऽति॑थिर्गृ॒हाना॒गच्छे॑त् ॥

०१ तद्यस्यैवंविद्वान्व्रात्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Now then, to whosesoever houses a thus-knowing Vrātya may come as
    guest when the fires are taken up and the fire-offering (agnihotrá)
    set on,—
Notes

Not one of the mss. writes the first four words of the verse, they being
viewed as repeated from 10. 1; and here also (compare note to 11. 1) the
Anukr. reckons them as not belonging to the verse. Bp.O.Kp. write
údhṛteṣu (the compound being inseparable by Prāt. iv. 62). Bp. further
has ádhi॰śṛte.

Griffith

The man, to whose house, when the fires have been taken up from the hearth and the oblation to Agni placed therein, the Vratya possessing this knowledge comes as a guest.

पदपाठः

तत्। यस्य॑। ए॒वम्। वि॒द्वान्। व्रात्यः॑। उध्दृ॑तेषु। अ॒ग्निषु॑। अधि॑ऽश्रिते। अ॒ग्नि॒ऽहो॒त्रे। अति॑थिः। गृ॒हान्। आ॒ऽगच्छे॑त्। १२.१।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

यज्ञ करने में विद्वान् की सम्मति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तत्) सो (एवम्)व्यापक [परमात्मा] को (विद्वान्) जानता हुआ (व्रात्यः) व्रात्य [सत्यव्रतधारी] (अतिथिः) अतिथि [नित्य मिलने योग्य सत्पुरुष] (उद् धृतेषु) ऊँची उठी हुई (अग्निषु) अग्नियों के बीच (अग्निहोत्रे) अग्निहोत्र [हवनसामग्री] (अधिश्रिते)रक्खे जाने पर (यस्य) जिस [मनुष्य] के (गृहान्) घरों में (आगच्छेत्) आजावे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - यदि यज्ञसामग्रीउपस्थित और यज्ञ आरम्भ होने पर विद्वान् ब्रह्मवादी अतिथि आजावे, गृहस्थ आदरपूर्वक उस महामान्य की सम्मति लेकर यज्ञ करे ॥१, २॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(तत्) ततः (यस्य)मनुष्यस्य (एवम्) इण् गतौ-वन्। व्यापकं परमात्मानम् (विद्वान्) जानन् (व्रात्यः)सद्व्रतधारी (उद्धृतेषु) ऊर्ध्वं हृतेषु प्राप्तेषु (अग्निषु) अग्निज्वालासु (अधिश्रिते) स्थापिते सति (अग्निहोत्रे) अग्निहोमे। यज्ञे (अतिथिः) अतनशीलः।नित्यं प्राप्तव्यो विद्वान् (गृहान्) (आगच्छेत्) प्राप्नुयात् ॥

०२ स्वयमेनमभ्युदेत्य ब्रूयाद्व्रात्याति

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स्व॒यमे॑नमभ्यु॒देत्य॑ ब्रूया॒द्व्रात्याति॑ सृज हो॒ष्यामीति॑ ॥

०२ स्वयमेनमभ्युदेत्य ब्रूयाद्व्रात्याति ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Himself coming up toward him, he should say: Vrātya, give permission;
    I am about to make oblation.
Notes
Griffith

Should of his own accord rise to meet him and say, Vratya, give me permission. I will sacrifice.

पदपाठः

स्व॒यम्। ए॒न॒म्। अ॒भि॒ऽउ॒देत्य॑। ब्रू॒या॒त्। व्रात्य॑। अति॑। सृ॒ज॒। हो॒ष्यामि॑। इति॑। १२.२।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

यज्ञ करने में विद्वान् की सम्मति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - वह [मनुष्य] (स्वयम्)आप ही (अभ्युदेत्य) सामने से उठकर (एनम्) इस [अतिथि] से (ब्रूयात्)कहे−(व्रात्य) हे व्रात्य ! [सत्यव्रतधारी] (अति सृज) आज्ञा दे, (होष्यामि इति)मैं हवन करूँगा ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - यदि यज्ञसामग्रीउपस्थित और यज्ञ आरम्भ होने पर विद्वान् ब्रह्मवादी अतिथि आजावे, गृहस्थ आदरपूर्वक उस महामान्य की सम्मति लेकर यज्ञ करे ॥१, २॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(स्वयम्) आत्मना (एनम्)अतिथिम् (अभ्युदेत्य) अभिमुखमुत्थाय (ब्रूयात्) कथयेत् (व्रात्य) (अति सृज)आज्ञापय (होष्यामि) होमं यज्ञं करिष्यामि (इति) ॥

०३ सचातिसृजेज्जुहुयान्न चातिसृजेन्न

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सचा॑तिसृ॒जेज्जु॑हु॒यान्न चा॑तिसृ॒जेन्न जु॑हुयात् ॥

०३ सचातिसृजेज्जुहुयान्न चातिसृजेन्न ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. If he should permit, he may make oblation; if he should not permit,
    he may not make oblation.
Notes
Griffith

And if he gives permission he should sacrifice, if he does not permit him he should not sacrifice.

पदपाठः

सः। च॒। अ॒ति॒ऽसृ॒जेत्। जु॒हु॒यात्। न। च॒। अ॒ति॒ऽसृ॒जेत्। न। जु॒हु॒या॒त्। १२.३।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

यज्ञ करने में विद्वान् की सम्मति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [अतिथि] (च)यदि (अतिसृजेत्) आज्ञा देवे, (जुहुयात्) वह [गृहस्थ] हवन करे, (च) यदि वह (नअतिसृजेत्) न आज्ञा देवे, (न जुहुयात्) वह [गृहस्थ] न हवन करे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विचारवान् अतिथि कीआज्ञानुसार अधिकारी गृहस्थ यज्ञ करे और अनधिकारी न करे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(सः) अतिथिः (च) यदि (अतिसृजेत्) आज्ञापयेत् (जुहुयात्) गृहस्थो होमं कुर्यात् (न) निषेधे। अन्यत्स्पष्टम् ॥

०४ स य

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स य ए॒वंवि॒दुषा॒ व्रात्ये॒नाति॑सृष्टो जु॒होति॑ ॥

०४ स य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He who, being permitted by a thus-knowing Vrātya, makes oblation,—
Notes

Prājāpatyā and sāmny anuṣṭubh are each of sixteen syllables; what
the Anukr. means by its use of both terms in regard to this verse and
not in regard to vs. 3 is difficult to see. ⌊His words are…iti dve
prājāpatyānuṣṭubhāu; dvitīyā sāmnī; tatho ’bhe bhurijāu
. He appears to
set up a class of two vss. (3 and 4) of 17 syllables (16 + 1) each: from
which he then proceeds to except one vs. (4) by saying that it is
sāmnī or has only 16. He might have expressed himself much less
awkwardly by writing (instead of the last two clauses) pūrvā bhurik.⌋

Griffith

He who sacrifices when permitted by the Vratya who possesses this knowledge.

पदपाठः

सः। यः। ए॒वम्। वि॒दुषा॑। व्रात्ये॑न। अति॑ऽसृष्टः। जु॒होति॑। १२.४।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

यज्ञ करने में विद्वान् की सम्मति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [गृहस्थ] (एवम्) व्यापक परमात्मा को (विदुषा) जानते हुए (व्रात्येन) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] करके (अतिसृष्टः) आज्ञा दिया हुआ (जुहोति) यज्ञ करता है, (सः) वह [गृहस्थ] ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - गृहस्थ को योग्य है किआदरपूर्वक विद्वान् मर्यादापुरुष सत्यव्रतधारी अतिथि की आज्ञा से उत्तम-उत्तमकर्म करता रहे, जिससे उसकी मर्यादा और कीर्ति संसार में स्थिर होवे ॥४-७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(सः) गृहस्थः (यः)गृहस्थः (एवम्) व्यापकं परमात्मानम् (विदुषा) जानता (व्रात्येन)सत्यव्रतधारिणाऽतिथिना (अतिसृष्टः) आज्ञापितः (जुहोति) यज्ञं करोति ॥

०५ प्र पितृयाणम्पन्थाम्

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प्र पि॑तृ॒याणं॒पन्थां॑ जानाति॒ प्र दे॑व॒यान॑म् ॥

०५ प्र पितृयाणम्पन्थाम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He foreknows the road that the Fathers go, the road that the gods go.
Notes

A couple of the mss. (D.R.) accent jānā́ti, which is better; ⌊and so do
seven or eight of SPP’s authorities⌋.

Griffith

Well knows the path that leads to the Fathers and the way that. leads to the Gods.

पदपाठः

प्र। पि॒तृ॒ऽयान॑म्। पन्था॑म्। जा॒ना॒ति॒। प्र। दे॒व॒ऽयान॑म्। १२.५।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

यज्ञ करने में विद्वान् की सम्मति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पितृयाणम्) पितरों [पालनकर्ता बड़े लोगों] के चलने योग्य (पन्थाम्) मार्ग को (प्र) भले प्रकार (जानाति) जान लेता है, (देवयानम्) और देवताओं [विद्वानों] के चलने योग्य [मार्ग]को (प्र) भले प्रकार [जान लेता है] ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - गृहस्थ को योग्य है किआदरपूर्वक विद्वान् मर्यादापुरुष सत्यव्रतधारी अतिथि की आज्ञा से उत्तम-उत्तमकर्म करता रहे, जिससे उसकी मर्यादा और कीर्ति संसार में स्थिर होवे ॥४-७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(प्र) प्रकर्षेण (पितृयाणम्) पालयितृभिर्गन्तव्यम् (पन्थाम्) पन्थानम् (जानाति) वेत्ति (प्र) (देवयानम्) विद्वद्भिर्गन्तव्यम् ॥

०६ न देवेष्वावृश्चते

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न दे॒वेष्वावृ॑श्चते हु॒तम॑स्य भवति ॥

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Whitney
Translation
  1. He does not offend against the gods; his oblation is [duly] made.
Notes
Griffith

He does not act in opposition to the Gods. It becomes his sacrifice.

पदपाठः

न। दे॒वेषु॑। आ। वृ॒श्च॒ते॒। हु॒तम्। अ॒स्य॒। भ॒व॒ति॒। १२.६।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

यज्ञ करने में विद्वान् की सम्मति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - वह (देवेषु) विद्वानोंके बीच (आ) थोड़ा भी (न वृश्चते) दोषी नहीं होता है, [तब] (अस्य) उस [गृहस्थ] का (हुतम्) यज्ञ (भवति) हो जाता है ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - गृहस्थ को योग्य है किआदरपूर्वक विद्वान् मर्यादापुरुष सत्यव्रतधारी अतिथि की आज्ञा से उत्तम-उत्तमकर्म करता रहे, जिससे उसकी मर्यादा और कीर्ति संसार में स्थिर होवे ॥४-७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(न) निषेधे (देवेषु)विद्वत्सु (आ) ईषत् (वृश्चते) वृश्च्यते। दूषितो भवति (हुतम्) हवनम्। यज्ञः (भवति) सिद्ध्यति ॥

०७ पर्यस्यास्मिंल्लोक आयतनम्

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पर्य॑स्या॒स्मिंल्लो॒क आ॒यत॑नं शिष्यते॒ य ए॒वं वि॒दुषा॒ व्रात्ये॒नाति॑सृष्टोजु॒होति॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. There is left over in this world a support (āyátana) for him who,
    being permitted by a thus-knowing Vrātya, makes oblation.
Notes
Griffith

The abode of the man who sacrifices when permitted by the Vratya who possesses this knowledge is long left remaining in this world.

पदपाठः

परि॑। अ॒स्य॒। अ॒स्मिन्। लो॒के। आ॒ऽयत॑नम्। शि॒ष्य॒ते॒। यः। ए॒वम्। वि॒दुषा॑। व्रात्ये॑न। अति॑ऽसृष्टः। जु॒हो॒ति॒। १२.७।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

यज्ञ करने में विद्वान् की सम्मति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्मिन् लोके) इससंसार में (अस्य) उस [गृहस्थ] की (आयतनम्) मर्यादा (परि) सब प्रकार (शिष्यते)शेष रह जाती है, (यः) जो [गृहस्थ] (एवम्) व्यापक [परमात्मा] को (विदुषा) जानतेहुए (व्रात्येन) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] करके (अतिसृष्टः) आज्ञा दिया हुआ (जुहोति) यज्ञ करता है ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - गृहस्थ को योग्य है किआदरपूर्वक विद्वान् मर्यादापुरुष सत्यव्रतधारी अतिथि की आज्ञा से उत्तम-उत्तमकर्म करता रहे, जिससे उसकी मर्यादा और कीर्ति संसार में स्थिर होवे ॥४-७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(परि)सर्वतः (अस्य) गृहस्थस्य (अस्मिन्) दृश्यमाने (लोके) संसारे (आयतनम्)यती-ल्युट्। मर्यादाम्। आश्रयः (शिष्यते) अवशिष्टं वर्तते। अन्यत् पूर्ववत्-म० ४॥

०८ अथ य

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अथ॒ य ए॒वंवि॒दुषा॒ व्रात्ये॒नान॑तिसृष्टो जु॒होति॑ ॥

०८ अथ य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Now then, he who, being unpermitted by a thus-knowing Vrātya, makes
    oblation,—
Notes
Griffith

But he who sacrifices without the permission of the Vratya who- possesses this knowledge.

पदपाठः

अथ॑। यः। ए॒वम्। वि॒दुषा॑। व्रात्ये॑न। अन॑तिऽसृष्टः। जु॒होति॑। १२.८।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

यज्ञ करने में विद्वान् की सम्मति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अथ) और फिर (यः) जो [गृहस्थ] (एवम्) व्यापक परमात्मा को (विदुषा) जानते हुए (व्रात्येन) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] करके (अनतिसृष्टः) नहीं आज्ञा दिया हुआ (जुहोति) यज्ञ करताहै ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो अयोग्य गृहस्थनीतिज्ञ वेदवेत्ता अतिथि की आज्ञा बिना मनमाना काम करने लगता है, वह अनधिकारीहोने से शुभ कार्य सिद्ध नहीं कर सकता और न लोग उसकी कुमर्यादा को मानते हैं॥८-११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(अथ) अपि च (अनतिसृष्टः) अनाज्ञापितः। अन्यत् पूर्ववत्-म० ४ ॥

०९ न पितृयाणम्पन्थाम्

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न पि॑तृ॒याणं॒पन्थां॑ जानाति॒ न दे॑व॒यान॑म् ॥

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Whitney
Translation
  1. He knows not the road that the Fathers go, nor the road that the
    gods go.
Notes

The same mss. accent jānā́ti here as in vs. 5.

Griffith

Knows not the path that leads to the Fathers nor the way that leads to the Gods.

पदपाठः

न। पि॒तृ॒ऽयान॑म्। पन्था॑म्। जा॒ना॒ति॒। न। दे॒व॒ऽयान॑म्। १२.९।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

यज्ञ करने में विद्वान् की सम्मति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - वह (न) न तो (पितृयाणम्) पितरों [पालनकर्ता बड़े लोगों] के चलने योग्य (पन्थाम्) मार्ग को (जानाति) जनता है, और (न) न (देवयानम्) देवताओं [विद्वानों] के चलने योग्य [मार्ग] को [जनता है] ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो अयोग्य गृहस्थनीतिज्ञ वेदवेत्ता अतिथि की आज्ञा बिना मनमाना काम करने लगता है, वह अनधिकारीहोने से शुभ कार्य सिद्ध नहीं कर सकता और न लोग उसकी कुमर्यादा को मानते हैं॥८-११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(न) निषेधे। अन्यत्पूर्ववत्-म० ५ ॥

१० आ देवेषुवृश्चते

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आ दे॒वेषु॑वृश्चते अहु॒तम॑स्य भवति ॥

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Whitney
Translation
  1. He offends against the gods; his oblation is not [duly] made.
Notes

The majority of mss. (except Bs.E.) read vṛścate ah-, which is
therefore probably the true text; ⌊and so SPP. reads with all but two of
his authorities⌋. The accent ahutám (for áhutam) is probably an
error.

Griffith

He is at variance with the Gods. He hath offered no accepted. sacrifice.

पदपाठः

आ। दे॒वेषु॑। वृ॒श्च॒ते॒। अ॒हु॒तम्। अ॒स्य॒। भ॒व॒ति॒। १२.१०।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

यज्ञ करने में विद्वान् की सम्मति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - वह (देवेषु) विद्वानोंके बीच (आ) सर्वथा (वृश्चते) दोषी होता है, और (अस्य) उस [गृहस्थ] का (अहुतम्)कुयज्ञ (भवति) हो जाता है ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो अयोग्य गृहस्थनीतिज्ञ वेदवेत्ता अतिथि की आज्ञा बिना मनमाना काम करने लगता है, वह अनधिकारीहोने से शुभ कार्य सिद्ध नहीं कर सकता और न लोग उसकी कुमर्यादा को मानते हैं॥८-११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(आ) समन्तात् (अहुतम्) कुयज्ञः। अन्यत् पूर्ववत्-म० ६ ॥

११ नास्यास्मिंल्लोक आयतनम्

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नास्या॒स्मिंल्लो॒क आ॒यत॑नं शिष्यते॒ य ए॒वं वि॒दुषा॒ व्रात्ये॒नान॑तिसृष्टोजु॒होति॑ ॥

११ नास्यास्मिंल्लोक आयतनम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. There is left in this world no support for him who, being
    unpermitted by a thus-knowing Vrātya, makes oblation.
Notes
Griffith

The abode of the man who sacrifices without the permission of the Vratya who possesses this knowledge is not left remaining in this world.

पदपाठः

न। अ॒स्य॒। अ॒स्मिन्। लो॒के। आ॒ऽयत॑नम्। शि॒ष्य॒ते॒। यः। ए॒वम्। वि॒दुषा॑। व्रात्ये॑न। अन॑तिऽसृष्टः। जु॒होति॑। १२.११।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

यज्ञ करने में विद्वान् की सम्मति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्मिन् लोके) इससंसार में (अस्य) उस (गृहस्थ) की (आयतनम्) मर्यादा (न शिष्यते) शेष नहीं रहतीहै, (यः) जो (एवम्) व्यापक परमात्मा को (विदुषा) जानते हुए (व्रात्येन) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] करके (अनतिसृष्टः) नहीं आज्ञा दिया हुआ (जुहोति) यज्ञकरता है ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो अयोग्य गृहस्थनीतिज्ञ वेदवेत्ता अतिथि की आज्ञा बिना मनमाना काम करने लगता है, वह अनधिकारीहोने से शुभ कार्य सिद्ध नहीं कर सकता और न लोग उसकी कुमर्यादा को मानते हैं॥८-११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(न) निषेधे (अनतिसृष्टः) अनाज्ञापितः। अन्यत् पूर्ववत्-म० ७ ॥