०१० ...{Loading}...
Whitney subject
- Paryāya the tenth.
VH anukramaṇī
१-११ अथर्वा। अध्यात्मं, व्रात्यः। १ द्विपदा साम्नी बृहती, २ त्रिपदाऽर्ची पङ्क्तिः,
३ द्विपदा प्राजापत्या पङ्क्तिः, ४ त्रिपदा वर्धमाना गायत्री, ५ त्रिपदा साम्नी बृहती,
६,८,१० द्विपदा आसुरी गायत्री, ७, ९ साम्नी उष्णिक्, ११ आसुरी बृहती।
Whitney anukramaṇī
[ekādaśaka. 1. 2-p. sāmnī bṛhatī; 2. 3-p. ārcī pan̄kti; 3. 2-p. prājāpatyā pan̄kti; 4. 3-p. vardhamānā gāyatrī; 5. 3-p. sāmnī bṛhatī; 6, 8, 10. 2-p. āsurī gāyatrī; 7, 9. sāmny uṣṇih; 11. āsurī bṛhatī.]
Whitney
Comment
Translations
Translated: Aufrecht, Ind. Stud. i. 134; Griffith, ii. 192.
Griffith
Vratya
०१ तद्यस्यैवंविद्वान्व्रात्यो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तद्यस्यै॒वंवि॒द्वान्व्रात्यो॒ राज्ञोऽति॑थिर्गृ॒हाना॒गच्छे॑त् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तद्यस्यै॒वंवि॒द्वान्व्रात्यो॒ राज्ञोऽति॑थिर्गृ॒हाना॒गच्छे॑त् ॥
०१ तद्यस्यैवंविद्वान्व्रात्यो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- So then, to the houses of whatever king a thus-knowing Vrātya may
come as guest,—
Notes
Griffith
So let the King, to whose house the Vratya who possesses this knowledge comes as a guest.
पदपाठः
तत्। यस्य॑। ए॒वम्। वि॒द्वान्। व्रात्यः॑। राज्ञः॑। अति॑थिः। गृ॒हान्। आ॒ऽगच्छे॑त्। १०.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- त्रिपदा साम्नी बृहती
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
अतिथिसत्कार की महिमा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (तत्) फिर (एवम्)व्यापक परमात्मा को (विद्वान्) जानता हुआ (व्रात्यः) व्रात्य [सद्व्रतधारी, सदाचारी] (अतिथिः) अतिथि [नित्य मिलने योग्य सत्पुरुष] (यस्य राज्ञः) जिस राजाके (गृहान्) घरों में (आगच्छेत्) आवे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जब ब्रह्मवादी आप्तविद्वान् अतिथि राजा के घर आवे, राजा उसको अपने से अधिक गुणी जानकर यथावत्सत्कार करे, जिस से उसके सदुपदेश से दोषों के मिटने पर उसके कुल की और राज्य कीवृद्धि होवे ॥१, २॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(तत्) तदा (यस्य) (एवम्) सू० २ म० ३। इण् गतौ-वन्। व्यापकं परमात्मानम् (विद्वान्) विद ज्ञाने-शतृ, वसुरादेशः। जानन् (व्रात्यः) सू० १।१। व्रत-ण्य। व्रतधारी। सदाचारी (राज्ञः)नरपतेः (अतिथिः) अ० ७।२१।१। ऋतन्यञ्जिवन्य०। उ० ४।२। अत सातत्यगमने-इथिन्।अतनशीलः। नित्यं प्रापणीयः। विद्वान्। अभ्यागतः (गृहान्) (आगच्छेत्) ॥
०२ श्रेयांसमेनमात्मनो मानयेत्तथा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
श्रेयां॑समेनमा॒त्मनो॑ मानये॒त्तथा॑ क्ष॒त्राय॒ ना वृ॑श्चते॒ तथा॑ रा॒ष्ट्राय॒ना वृ॑श्चते ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
श्रेयां॑समेनमा॒त्मनो॑ मानये॒त्तथा॑ क्ष॒त्राय॒ ना वृ॑श्चते॒ तथा॑ रा॒ष्ट्राय॒ना वृ॑श्चते ॥
०२ श्रेयांसमेनमात्मनो मानयेत्तथा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- He should esteem him better than himself; so does he not offend
(ā-vraśc) against dominion; so does he not offend against royalty.
Notes
⌊That is, ‘he [the king] should esteem him [the Vrātya] better,’
etc.⌋ The Berlin mss. read, as the sense requires, mānayet táthā, nor
was any deviation from this noted in the mss. collated before
publication; those compared later, however, all give mānaye táthā;
⌊and so do all of SPP’s authorities, including his then living reciters,
but excepting his ms. C^(P), which has mānayet táthā, secunda manu,
and mānaye t-, prima manu.—Compare the case of yame dīrgham, yamed
dīrgham, at xviii. 2. 3.⌋
Griffith
Honour him as superior to himself. So he Both not act against the interests of his princely rank or his kingdom.
पदपाठः
श्रेयां॑सम्। ए॒न॒म्। आ॒त्मनः॑। मा॒न॒ये॒त्। तथा॑। क्ष॒त्राय॑। न। आ। वृ॒श्च॒ते॒। तथा॑। रा॒ष्ट्राय॑। न। आ। वृ॒श्च॒ते॒। १०.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- त्रिपदार्ची पङ्क्ति
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
अतिथिसत्कार की महिमा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - वह [राजा] (एनम्) उस [अतिथि] को (आत्मनः) अपने से (श्रेयांसम्) अधिक श्रेष्ठ (मानयेत्) सन्मान करे, (तथा) उस प्रकार [सत्कार] से वह [राजा] (क्षत्राय) क्षत्रिय कुल के लिये (न)नहीं (आ) कुछ (वृश्चते) दोषी होता है, और (तथा) उस प्रकार से (राष्ट्रम्) राज्यके लिये भी (न) नहीं (आ) कुछ (वृश्चते) दोषी होता है ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जब ब्रह्मवादी आप्तविद्वान् अतिथि राजा के घर आवे, राजा उसको अपने से अधिक गुणी जानकर यथावत्सत्कार करे, जिस से उसके सदुपदेश से दोषों के मिटने पर उसके कुल की और राज्य कीवृद्धि होवे ॥१, २॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(श्रेयांसम्) प्रशस्यतरम् (आत्मनः) आत्मसकाशात् (मानयेत्)सत्कुर्यात् (तथा) तेन प्रकारेण (क्षत्राय) क्षत्रियकुलाय (न) निषेधे (आ) ईषत् (वृश्चते) वृश्च्यते। छिद्यते। दूषितो भवति (राष्ट्राय) राज्यसंपादनाय। अन्यद्गतम् ॥
०३ अतो वै
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अतो॒ वै ब्रह्म॑च क्ष॒त्रं चोद॑तिष्ठतां॒ ते अ॑ब्रूतां॒ कं प्र वि॑शा॒वेति॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अतो॒ वै ब्रह्म॑च क्ष॒त्रं चोद॑तिष्ठतां॒ ते अ॑ब्रूतां॒ कं प्र वि॑शा॒वेति॑ ॥
०३ अतो वै ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Thence verily arose both sanctity (bráhman) and dominion; they
said: Whom shall we enter?
Notes
‘Thence’ (átas) Aufrecht understands to mean “out of him (the
Vrātya)"—which is possible, but doubtful: compare átas in vs. 5.
Griffith
From him, verily, sprang Priesthood and Royalty. They said, Into whom shall we enter?
पदपाठः
अतः॑। वै। ब्रह्म॑। च॒। क्ष॒त्रम्। च॒। उत्। अ॒ति॒ष्ठ॒ता॒म्। ते इति॑। अ॒ब्रू॒ता॒म्। कम्। प्र। वि॒शा॒य॒। इति॑। १०.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- द्विपदा प्राजापत्या पङ्क्ति
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
अतिथिसत्कार की महिमा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अतः) इस [अतिथिसत्कार] से (वै) निश्चय करके (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञानी कुल (च च) और (क्षत्रम्)क्षत्रिय कुल (उत् अतिष्ठताम्) दोनों ऊँचे होवें, (ते) वे दोनों (अब्रूताम्)कहें−(कम्) किस [गुण] में (प्र विशाव इति) हम दोनों प्रवेश करें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - ब्रह्मज्ञानी औरक्षत्रिय लोग अतिथि का सत्कार करके विचार करें कि कौन से गुण स्वीकारकरने से हमारी उन्नति होवे। इस का उत्तर आगे है ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(अतः) एतस्मात् सत्कारात् (वै) निश्चयेन (ब्रह्म) ब्रह्मवादिकुलम् (च) (क्षत्रम्) क्षत्रियकुलम् (च) (उत्)उदेत्य (अतिष्ठताम्) तिष्ठताम् (ते) द्वे (अब्रूताम्) कथयताम् (कम्) कं गुणम् (प्र विशाव) आवां प्रविष्टौ भवाम (इति) ॥
०४ अतो वैबृहस्पतिमेव
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अतो॒ वैबृह॒स्पति॑मे॒व ब्रह्म॒ प्र वि॑श॒त्विन्द्रं॑ क्ष॒त्रं तथा॒ वा इति॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अतो॒ वैबृह॒स्पति॑मे॒व ब्रह्म॒ प्र वि॑श॒त्विन्द्रं॑ क्ष॒त्रं तथा॒ वा इति॑ ॥
०४ अतो वैबृहस्पतिमेव ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Let sanctity enter Brihaspati [and] dominion Indra; thus verily: it
was said (íti).
Notes
Or the iti means ‘he (the Vrātya) said’; Aufrecht so understands it.
The mss. make very bad work over the verb in this verse: Bp. reads
pra॰viśatu, Bs.P.M.O.T.K. prāviśatu, all without accent; E. has prā́
viśatu, R. prāviśátu, D. pra॰viśátu. The true reading is doubtless
praviśátu, and our text should be emended to this; the situation is
one in which an accent on the verb-form is called for. There is no
reason for understanding pra-ā, and the prolongation of simple pra
to prā is wholly unsuited to this book. ⌊SPP’s authorities show a
fairly bewildering variety of differences, in respect to bráhma
praviśátu: see his note, p. 334.⌋ The metrical definition of the Anukr.
⌊6 + 7 + 8: Ind. Stud. viii. 129⌋ does not fit at all.
Griffith
Let Priesthood enter into Brihaspati, and Royalty into Indra, was the answer.
पदपाठः
अतः॑। वै। बृह॒स्पति॑म्। ए॒व। ब्रह्म॑। प्र। वि॒श॒तु। इन्द्र॑म्। क्ष॒त्रम्। तथा॑। वै। इति॑। १०.४।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
अतिथिसत्कार की महिमा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अतः) इस [अतिथिसत्कार] से (वै) निश्चय करके (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञानी कुल (बृहस्पतिम्) बड़े-बड़े प्राणियों के रक्षक गुण में (एव) ही (प्र विशतु) प्रवेश करे, (तथा) उसी प्रकार [अतिथिसत्कार] से (वै) निश्चय करके (क्षत्रम्) क्षत्रियकुल (इन्द्रम्) परमऐश्वर्य में [प्रवेश करे], (इति) ऐसा [अतिथि कहे] ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - आप्त अतिथि मन्त्र ३का उत्तर देवे कि ब्रह्मज्ञानी पुरुष प्राणियों की रक्षा का और राजा लोग ऐश्वर्यप्राप्ति का प्रयत्न करते रहें ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(बृहस्पतिम्) बृहतां प्राणिनां पालकं गुणम् (एव) निश्चयेन (प्र विशतु) प्रविष्टं भवतु (इन्द्रम्) परमैश्वर्यम् (तथा)तद्विधानेन सत्कारेण (इति) पादपूर्तौ। अन्यत् पूर्ववत्-म० ३ ॥
०५ अतो वैबृहस्पतिमेव
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अतो॒ वैबृह॒स्पति॑मे॒व ब्र॑ह्म॒ प्रावि॑श॒दिन्द्रं॑ क्ष॒त्रं ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अतो॒ वैबृह॒स्पति॑मे॒व ब्र॑ह्म॒ प्रावि॑श॒दिन्द्रं॑ क्ष॒त्रं ॥
०५ अतो वैबृहस्पतिमेव ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Thence (átas) verily sanctity entered Brihaspati [and] dominion
Indra.
Notes
For prā́viśat the pada-text has prá: aviśat; doubtless it should be
pra॰áviśat.
Griffith
Hence Priesthood entered into Brihaspati and Royalty into Indra.
पदपाठः
अतः॑। वै। बृह॒स्पति॑म्। ए॒व। ब्रह्म॑। प्र। अ॒वि॒श॒त्। इन्द्र॑म्। क्ष॒त्रम्। १०.५।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
अतिथिसत्कार की महिमा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्यो !] (अतः)इस [अतिथिसत्कार] से (वै) निश्चय करके (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञानी समूह ने (बृहस्पतिम्) बड़े-बड़े प्राणियों के रक्षक गुण [वेदज्ञान आदि] में (एव) ही (प्र अविशत्) प्रवेश किया है, और (क्षत्रम्) क्षत्रियकुल ने (इन्द्रम्) परमऐश्वर्य में [प्रवेश किया है] ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - इस चक्ररूप संसार मेंयही नियम सदा से है कि ब्रह्मज्ञानियों ने वेदज्ञान आदि से और क्षत्रियों ने परमऐश्वर्य बढ़ाने से प्रतिष्ठा पायी है ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(प्र अविशत्) प्रविष्टमभवत्। अन्यत्पूर्ववत्-म० ४ ॥
०६ इयं वा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
इ॒यं वा उ॑पृथि॒वी बृह॒स्पति॒र्द्यौरे॒वेन्द्रः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
इ॒यं वा उ॑पृथि॒वी बृह॒स्पति॒र्द्यौरे॒वेन्द्रः॑ ॥
०६ इयं वा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- This earth verily is Prajāpati, the sky is Indra.
Notes
Griffith
Now this Earth is Brihaspati, and Heaven is Indra.
पदपाठः
इ॒यम्। वै। ऊं॒ इति॑। पृ॒थि॒वी। बृह॒स्पति॑। द्यौः। ए॒व। इन्द्रः॑। १०.६।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
अतिथिसत्कार की महिमा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इयम्) यह (पृथिवी)पृथिवी [भूमि का राज्य] (वै) निश्चय करके (उ) ही (बृहस्पतिः) बड़े-बड़े प्राणियों का रक्षक गुण है, (द्यौः) प्रकाशमान राजनीति (एव) ही (इन्द्रः) परमऐश्वर्य है ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य संसार मेंअतिथि सत्कार करके और उससे शिक्षा पाके राज्यपालन से प्राणियों की रक्षा करनेकी, और राजनीति से ऐश्वर्य बढ़ाने की योग्यता पावें ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(इयम्) दृश्यमाना (वै) (उ) (पृथिवी) भूमिराज्यम् (बृहस्पतिः) महतां प्राणिनां रक्षको गुणः (द्यौः) दिवुद्युतौ गतौ च-डिवि। प्रकाशमाना राजनीतिः (एव) (इन्द्रः) परमैश्वर्यम् ॥
०७ अयं वा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॒यं वा उ॑अ॒ग्निर्ब्रह्मा॒सावा॑दि॒त्यः क्ष॒त्रम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒यं वा उ॑अ॒ग्निर्ब्रह्मा॒सावा॑दि॒त्यः क्ष॒त्रम् ॥
०७ अयं वा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- This fire verily is sanctity, yonder Āditya is dominion.
Notes
Griffith
Now this Agni is Priesthood, and yonder Sun is Royalty.
पदपाठः
अ॒यम्। वै। ऊं॒ इति॑। अ॒ग्निः। ब्रह्म॑। अ॒सौ। आ॒दि॒त्यः। क्ष॒त्रम्। १०.७।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
अतिथिसत्कार की महिमा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) यह (अग्निः)अग्नि [अग्निसमान तेजस्वी] (एव) निश्चय करके (उ) ही (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञानी समूहहै और (असौ) वह (आदित्यः) सूर्य [सूर्यसमान प्रतापी] (क्षत्रम्) क्षत्रियसमूहहै ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य वेदों के मननसे अग्निसमान तेजस्वी और प्रजापालन से सूर्यसमान प्रतापी होवें ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(अयम्)दृश्यमानः (वे) निश्चयेन (उ) एव (अग्निः) अग्निवत्तेजस्वी (ब्रह्म)ब्रह्मज्ञानिसमूहः (असौ) प्रसिद्धः (आदित्यः) आदीप्यमानः सूर्यः (क्षत्रम्)क्षत्रियकुलम् ॥
०८ ऐनं ब्रह्मगच्छति
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ऐनं॒ ब्रह्म॑गच्छति ब्रह्मवर्च॒सी भ॑वति ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ऐनं॒ ब्रह्म॑गच्छति ब्रह्मवर्च॒सी भ॑वति ॥
०८ ऐनं ब्रह्मगच्छति ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To him comes sanctity, he becomes possessed of the splendor of
sanctity (brahmavarcasín),—
Notes
Griffith
Priesthood comes to him, and he becomes endowed with priestly lustre.
पदपाठः
आ। ए॒न॒म्। ब्रह्म॑। ग॒च्छ॒ति॒। ब्र॒ह्म॒ऽव॒र्च॒सी। भ॒व॒ति॒। १०.८।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
अतिथिसत्कार की महिमा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (एनम्) उस [पुरुष] को (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञानी समूह (आ) आकर (गच्छति) मिलता है, और वह (ब्रह्मवर्चसी)ब्रह्मवर्चसी [वेदाभ्यास से तेजस्वी] (भवति) होता है ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रजापालक औरअतिथिसत्कारक होकर वेदज्ञानियों के साथ विराजकर ब्रह्मवर्चसी होवे ॥८, ९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(आ) आगत्य (एनम्)ब्रह्मज्ञम् (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञानिसमूहः (गच्छति) प्राप्नोति (ब्रह्मवर्चसी)ब्रह्मणा वेदाध्ययनेन तदनुष्ठानेन च तेजस्वी (भवति) ॥
०९ यः पृथिवीम्बृहस्पतिमग्निम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यः पृ॑थि॒वींबृह॒स्पति॑म॒ग्निं ब्र॑ह्म॒ वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यः पृ॑थि॒वींबृह॒स्पति॑म॒ग्निं ब्र॑ह्म॒ वेद॑ ॥
०९ यः पृथिवीम्बृहस्पतिमग्निम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Who knows earth as Brihaspati, fire as sanctity.
Notes
Griffith
Who knows that Earth is Brihaspati and Agni Priesthood.
पदपाठः
यः। पृ॒थि॒वीम्। बृह॒स्पति॑म्। अ॒ग्निम्। ब्रह्म॑। वेद॑। १०.९।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
अतिथिसत्कार की महिमा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [पुरुष] (पृथिवीम्) पृथिवी [पृथिवी के राज्य] को (बृहस्पतिम्) बड़े-बड़े प्राणियों कारक्षक गुण, और (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञानी समूह को (अग्निम्) अग्नि [अग्निसमानतेजोमय] (वेद) जानता है ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रजापालक औरअतिथिसत्कारक होकर वेदज्ञानियों के साथ विराजकर ब्रह्मवर्चसी होवे ॥८, ९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ९−(यः)पुरुषः (पृथिवीम्) भूमिराज्यम् (बृहस्पतिम्) महतां प्राणिनां रक्षकगुणम् (अग्निम्) अग्निवत्तेजोमयम् (ब्रह्म) वेदज्ञानिकुलम् (वेद) जानाति ॥
१० ऐनमिन्द्रियङ्गच्छतीन्द्रियवान्भवति
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ऐन॑मिन्द्रि॒यंग॑च्छतीन्द्रि॒यवा॑न्भवति ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ऐन॑मिन्द्रि॒यंग॑च्छतीन्द्रि॒यवा॑न्भवति ॥
१० ऐनमिन्द्रियङ्गच्छतीन्द्रियवान्भवति ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To him comes Indra’s quality, he becomes possessed of Indra’s
quality,—
Notes
Griffith
Great power comes to him and he becomes endowed with great power.
पदपाठः
आ। ए॒न॒म्। इ॒न्द्रि॒यम्। ग॒च्छ॒ति॒। इ॒न्द्रि॒यऽवा॑न्। भ॒व॒ति॒। १०.१०।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
अतिथिसत्कार की महिमा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (एनम्) उस [पुरुषार्थी] को (इन्द्रियम्) ऐश्वर्य (आ) आकर (गच्छति) मिलता है, वह (इन्द्रियवान्) ऐश्वर्यवान् (भवति) होता है ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रजापालन मेंदक्ष और सुनीतिप्रचार में चतुर होकर ऐश्वर्य बढ़ावें ॥१०, ११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १०−(आ) आगत्य (एनम्)पुरुषार्थिनम् (इन्द्रियम्) इन्द्रचिह्नम्। ऐश्वर्यम् (गच्छति) प्राप्नोति (इन्द्रियवान्) ऐश्वर्यवान् (भवति) ॥
११ य आदित्यङ्क्षत्रम्
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य आ॑दि॒त्यंक्ष॒त्रं दिव॒मिन्द्रं॒ वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
य आ॑दि॒त्यंक्ष॒त्रं दिव॒मिन्द्रं॒ वेद॑ ॥
११ य आदित्यङ्क्षत्रम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Who knows Āditya as dominion, the sky as Indra.
Notes
Griffith
Who knows that Aditya is Royalty and that Heaven is Indra.
पदपाठः
यः। आ॒दि॒त्यम्। अ॒न्नम्। दिव॑म्। इन्द्र॑म्। वेद॑। १०.११।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
अतिथिसत्कार की महिमा का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [पुरुष] (क्षत्रम्) क्षत्रियसमूह को (आदित्यम्) सूर्य [सूर्यसमान तेजस्वी] और (दिवम्)प्रकाशमान राजनीति को (इन्द्रम्) ऐश्वर्य (वेद) जानता है ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रजापालन मेंदक्ष और सुनीतिप्रचार में चतुर होकर ऐश्वर्य बढ़ावें ॥१०, ११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ११−(यः) पुरुषः (आदित्यम्) सूर्यवत्तेजोमयम् (क्षत्रम्) क्षत्रियकुलम् (दिवम्) दिवु द्युतौ गतौच-डिवि। दीप्यमानां राजनीतिम् (इन्द्रम्) ऐश्वर्यम् (वेद) जानाति ॥