००९

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Whitney subject
  1. Paryāya the ninth.
VH anukramaṇī

१-३ अथर्वा। अध्यात्मं, व्रात्यः।१ आसुरी जगती, २ आर्ची गायत्री, ३ आर्ची पङ्क्तिः।

Whitney anukramaṇī

[trika. 1. āsurī jagatī; 2. ārcī gāyatrī; 3. ārcī pan̄kti.]

Whitney

Comment

Translations

Translated: Aufrecht, Ind. Stud. i. 134; Griffith, ii. 192.—Cf. Zimmer, p. 194.

Griffith

Vratya

०१ स विशोऽनुव्यचलत्

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स वि॒शोऽनु॒व्य᳡चलत् ॥

०१ स विशोऽनुव्यचलत् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He moved out toward the tribes.
Notes
Griffith

He went away to the people.

पदपाठः

सः। विशः॑। अनु॑। वि। अ॒च॒ल॒त्। ९.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आसुरी जगती
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजधर्मकी व्यवस्था का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (विशः अनु) मनुष्यों की ओर (वि अचलत्) विचरा ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सर्वव्यापक परमात्माने वेदद्वारा मनुष्यों में राजधर्म का उपदेश किया है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(सः) व्रात्यःपरमात्मा (विशः) मनुष्यान् (अनु) अनुलक्ष्य अन्यत् पूर्ववत् ॥

०२ तं सभा

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तं स॒भा च॒समि॑तिश्च॒ सेना॑ च॒ सुरा॑ चानु॒व्य᳡चलन् ॥

०२ तं सभा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. After him moved out both the assembly and the gathering and the army
    and strong drink.
Notes
Griffith

Meeting and Assembly and Army and Wine followed him.

पदपाठः

तम्। स॒भा। च॒। सम्ऽइ॑तिः। च॒। सेना॑। च॒। सुरा॑। च॒। अ॒नु॒ऽव्य᳡चलन्। ९.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आर्ची गायत्री
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजधर्मकी व्यवस्था का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सभा) सभा (च च) और (समितिः) संग्राम व्यवस्था (च) और (सेना) सेना (च) और (सुरा) राज्यलक्ष्मी (तम्)उस [व्रात्य परमात्मा] के (अनुव्यचलन्) पीछे विचरे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमात्मा की विहितव्यवस्था से ही संसार में सभा आदि की संस्था स्थापित हुई है ॥२॥इस मन्त्र काकुछ अंश महर्षिदयानन्दकृत सत्यार्थप्रकाश समुल्लास ६ राजधर्मप्रकरण तथासंस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(तम्) व्रात्यं परमात्मानम् (सभा) राजधर्मादिसभा (समितिः) संग्रामः-निघ० २।१७। संग्रामव्यवस्था (सेना) (सुरा) षुर दीप्तौ ऐश्वर्ये च-क, टाप्। राज्यलक्ष्मीः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०३ सभायाश्च वै

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स॒भाया॑श्च॒ वै ससमि॑तेश्च॒ सेना॑याश्च॒ सुरा॑याश्च प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

०३ सभायाश्च वै ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Verily both of the assembly and of the gathering and of the army and
    of strong drink doth he become the dear abode who knoweth thus.
Notes
Griffith

He who hath this knowledge becomes the dear home of Meeting, Assembly, Army, and Wine.

पदपाठः

स॒भायाः॑। च॒। वै। सः। सम्ऽइ॑तेः। च॒। सेना॑याः। च॒। सुरा॑याः। च॒। प्रि॒यम्। धाम॑। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ९.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आर्ची पङ्क्ति
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजधर्मकी व्यवस्था का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [विद्वान्]पुरुष (वै) निश्चय करके (सभायाः) सभा का (च च) और (समितेः) संग्रामव्यवस्था का (च) और (सेनायाः) सेना का (च) और (सुरायाः) राज्यलक्ष्मी का (प्रियम्) प्रिय (धाम) धाम [घर] (भवति) होता है, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) ऐसे वा व्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमात्मा कीव्यवस्था जानकर सभा आदि की यथावत् संस्था करते हैं, वे राज्यलक्ष्मी बढ़ा करकीर्ति पाते हैं ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−उपरि व्याख्यातं यथोचितं योजनीयम् ॥