००७ ...{Loading}...
Whitney subject
- Paryāya the seventh.
VH anukramaṇī
१-५ अथर्वा। अध्यात्मं, व्रात्यः। १ त्रिपदा निचृद् गायत्री; २ एकपदा विराड् बृहती; ३ विराडुष्णिक्;
४ एकपदा गायत्री; ५ पङ्क्तिः।
Whitney anukramaṇī
[pañcaka. 1. 3-p. nicṛd gāyatrī; 2. 1-p. virāḍ bṛhatī; 3. virāḍ uṣṇih; 4. 1-p. gāyatrī; 5. pan̄kti.]
Whitney
Comment
Translations
Translated: Aufrecht, Ind. Stud. i. 133; Griffith, ii. 191.
Griffith
Vratya
०१ स महिमासद्रुर्भूत्वान्तम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
स म॑हि॒मासद्रु॑र्भू॒त्वान्तं॑ पृथि॒व्या अ॑गच्छ॒त्स स॑मु॒द्रो᳡ऽभ॑वत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स म॑हि॒मासद्रु॑र्भू॒त्वान्तं॑ पृथि॒व्या अ॑गच्छ॒त्स स॑मु॒द्रो᳡ऽभ॑वत् ॥
०१ स महिमासद्रुर्भूत्वान्तम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- That greatness, becoming sessile (? sádru), went to the end of the
earth; it became ocean.
Notes
⌊Or, ‘He, becoming a sessile greatness, went’ etc.: so W. suggests in a
pencilled note.⌋ Aufrecht and the Pet. Lexx. suspect a play of words
between sádru and samudrá, but the likeness is too slight to make
the matter certain. Aufrecht renders sádrur bhūtvā́ by “setting itself
in motion,” as if sa + dru, and the Pet. Lexx. seem to favor the
same etymology as had in view by the writer, but it is hardly to be
credited. Aufrecht reads in the third pāda sa samudro; I have noted
sá only as inserted sec. manu in one ms. (O.); if read, it would
make the verse answer better the metrical description. ⌊SPP. does in
fact read sá samudró, with the support of all his
authorities.⌋^([1])
Griffith
He, having become moving majesty, went to the ends of the earth. He became the sea.
पदपाठः
सः। म॒हि॒मा। सद्रुः॑। भू॒त्वा। अन्त॑म्। पृ॒थि॒व्याः। अ॒ग॒च्छ॒त्। सः। स॒मु॒द्रः। अ॒भ॒व॒त्। ७.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- त्रिपदा निचृत गायत्री
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्माकी व्यापकता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (महिमा) महिमास्वरूप और (सद्रुः) वेगवान् (भूत्वा) होकर (पृथिव्याः)पृथिवी के (अन्तम्) अन्त को (अगच्छत्) पहुँचा है, (सः) वह [परमात्मा] (समुद्रः)अन्तरिक्षरूप [अनादि, अनन्त] (अभवत्) हुआ है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा अपनी बड़ाईके कारण विद्वानों को पृथिवी से आगे अन्तरिक्ष के समान अनादि अनन्त जान पड़ता है॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(सः) व्रात्यः परमात्मा (महिमा) महत्-इमनिच्। महास्वरूपः (सद्रुः)हरिमितयोर्द्रुवः। उ० १।३४। सह+द्रु गतौ-कु, डित्। वेगवान् (भूत्वा) (अन्तम्)सीमाम् (पृथिव्याः) भूमेः (अगच्छत्) प्राप्तवान् (सः) (समुद्रः)अन्तरिक्षसदृशः (अभवत्) ॥
०२ तं प्रजापतिश्चपरमेष्ठी
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तं प्र॒जाप॑तिश्चपरमे॒ष्ठी च॑ पि॒ता च॑ पिताम॒हश्चाप॑श्च श्र॒द्धा च॑ व॒र्षंभू॒त्वानु॒व्य᳡वर्तयन्त ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तं प्र॒जाप॑तिश्चपरमे॒ष्ठी च॑ पि॒ता च॑ पिताम॒हश्चाप॑श्च श्र॒द्धा च॑ व॒र्षंभू॒त्वानु॒व्य᳡वर्तयन्त ॥
०२ तं प्रजापतिश्चपरमेष्ठी ...{Loading}...
Whitney
Translation
- After it, turned out both Prajāpati and the most exalted one and the
father and the grandfather and the waters and faith, becoming rain.
Notes
Griffith
Prajapati and Parameshthin and the Father and the Great Father and the Waters and Faith, turned into rain, followed him.
पदपाठः
तम्। प्र॒जाऽप॑तिः। च॒। प॒र॒मे॒ऽस्थी। च॒। पि॒ता। च॒। पि॒ता॒म॒हः। च॒। आपः॑। च॒। श्र॒ध्दा। च॒। व॒र्षम्। भू॒त्वा। अ॒नु॒ऽव्य᳡वर्तयन्त। ७.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- एकपदा विराट् बृहती
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्माकी व्यापकता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (प्रजापतिः) प्रजापालक [राजा] (च च) और (परमेष्ठी) परमेष्ठी [सबसे ऊँचे पदवाला आचार्य वा संन्यासी] (च) और (पिता) बाप (च) और (पितामहः) दादा (च) और (आपः) सत्कर्म (च) और (श्रद्धा)श्रद्धा [धर्म मे प्रतीति] (वर्षम्) श्रेष्ठपन को (भूत्वा) पाकर (तम्) उस [व्रात्य परमात्मा] के (अनुव्यवर्तयन्त) पीछे विविध प्रकार वर्तमान हुए हैं ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सब शूर वीर ज्ञानी औरपूजनीय महात्मा संसार में उस परमात्मा ही का आश्रय लेकर श्रेष्ठ होते हैं॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(तम्) व्रात्यम् (आपः) आपः कर्माख्यायां ह्रस्वो नुट् च वा। उ० ४।२०८। आप्लृव्याप्तौ-असुन्। सुकर्म (श्रद्धा) धर्मविश्वासः (वर्षम्) वृतॄवदिवचि०। उ० ३।६२।वृञ् वरणे-स प्रत्ययः। वरत्वं श्रेष्ठताम् (भूत्वा) भू प्राप्तौ-क्त्वा।प्राप्य (अनुव्यवर्तयन्त) अनुसृत्य वर्तमाना अभवन्। अन्यत् पूर्ववत्-सू० ६। म०२५ ॥
०३ ऐनमापोगच्छत्यैनं श्रद्धा
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ऐन॒मापो॑गच्छ॒त्यैनं॑ श्र॒द्धा ग॑च्छ॒त्यैनं॑ व॒र्षं ग॑च्छति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ऐन॒मापो॑गच्छ॒त्यैनं॑ श्र॒द्धा ग॑च्छ॒त्यैनं॑ व॒र्षं ग॑च्छति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
०३ ऐनमापोगच्छत्यैनं श्रद्धा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To him come waters, to him cometh faith, to him cometh rain, who
knoweth thus.
Notes
All our mss. read gachati after ā́pas; ⌊and so all of SPP’s
authorities⌋.
Griffith
The Waters, Faith, and rain approach him who possesses this knowledge.
पदपाठः
आ। ए॒न॒म्। आपः॑। ग॒च्छ॒ति॒। आ। ए॒न॒म्। श्र॒ध्दा। ग॒च्छ॒ति॒। आ। ए॒न॒म्। व॒र्षम्। ग॒च्छ॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ७.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- विराट् उष्णिक्
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्माकी व्यापकता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (एनम्) उस [विद्वान्]पुरुष को (आपः) सत्कर्म (आ) आकर (गच्छति) मिलता है, (एनम्) उस को (श्रद्धा)श्रद्धा [धर्म में प्रतीति] (आ) आकर (गच्छति) मिलती है, (एनम्) उसको (वर्षम्)श्रेष्ठपन (आ) आकर (गच्छति) मिलता है, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) ऐसे वा व्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जब मनुष्य परमात्मा कोजान लेता है, तब वह सुकर्मी श्रद्धावान् और श्रेष्ठ होकर उन्नति करता है॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(आ) आगत्य (एनम्) विद्वांसं पुरुषम् (आपः) म० २। सुकर्म (गच्छति)प्राप्नोति। अन्यद् गतं स्पष्टं च-म० २ ॥
०४ तं श्रद्धा
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तं श्र॒द्धा च॑य॒ज्ञश्च॑ लो॒कश्चान्नं॑ चा॒न्नाद्यं॑ च भू॒त्वाभि॑प॒र्याव॑र्तन्त ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तं श्र॒द्धा च॑य॒ज्ञश्च॑ लो॒कश्चान्नं॑ चा॒न्नाद्यं॑ च भू॒त्वाभि॑प॒र्याव॑र्तन्त ॥
०४ तं श्रद्धा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Unto it turned about both faith and sacrifice and world and food and
food-eating, coming into being (bhūtvā́).
Notes
Griffith
Faith, and Sacrifice and the world, having become food and nourishment, turned toward him.
पदपाठः
तम्। श्र॒ध्दा। च॒। य॒ज्ञः। च॒। लो॒कः। च॒। अन्न॑म्। च॒। अ॒न्न॒ऽअद्य॑म्। च॒। भू॒त्वा। अ॒भि॒ऽप॒र्याव॑र्तन्त। ७.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- एकपदा गायत्री
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्माकी व्यापकता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (श्रद्धा) श्रद्धा [धर्म में प्रतीति] (च च) और (यज्ञः) यज्ञ [सद्व्यवहार] (च) और (लोकः) समाज (च)और (अन्नम्) अन्न [जौ चावल आदि] (च) और (अन्नाद्यम्) अनाज [रोटी पूरी आदि बनाभोजन] (तम्) उस [व्रात्य परमात्मा] में (भूत्वा) व्यापकर (अभिपर्यावर्तन्त)सामने सब ओर से आकर वर्तमान हुए हैं ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - उस परमात्मा के हीसामर्थ्य से पुरुषार्थी पुरुष के लिये श्रद्धा आदि उपयोगी गुण, सब समाज और अन्नआदि भोग्य पदार्थ सर्वत्र सर्वदा वर्तमान रहते हैं ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(तम्) व्रात्यंपरमात्मानम् (श्रद्धा) धर्मविश्वासः (यज्ञः) सद्व्यवहारः (लोकः) समाजः (अन्नम्)सस्यम् (अन्नाद्यम्) भक्षणीयं संस्कृतमन्नम् (भूत्वा) व्याप्य (अभिपर्यावर्तन्त) अभि+परि+आ+अवर्तन्त। अभितः परित आगत्य वर्तमाना अभवन्।अन्यद् गतम् ॥
०५ ऐनं श्रद्धागच्छत्यैनम्
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ऐनं॑ श्र॒द्धाग॑च्छ॒त्यैनं॑ य॒ज्ञो ग॑च्छ॒त्यैनं॑ लो॒को ग॑च्छ॒त्यैन॒मन्नं॑ गच्छ॒त्यैन॑म॒न्नाद्यं॑गच्छति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ऐनं॑ श्र॒द्धाग॑च्छ॒त्यैनं॑ य॒ज्ञो ग॑च्छ॒त्यैनं॑ लो॒को ग॑च्छ॒त्यैन॒मन्नं॑ गच्छ॒त्यैन॑म॒न्नाद्यं॑गच्छति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
०५ ऐनं श्रद्धागच्छत्यैनम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- To him cometh faith, to him cometh sacrifice, to him cometh a world,
to him cometh food, to him cometh food-eating, who knoweth thus.
Notes
⌊Here ends the first anuvāka with 7 paryāyas: see above, p. 770,
end. For the summation of avasānarcas (112), see p. 771, near end.⌋
Griffith
Faith Sacrifice, the world, food and nourishment approach him who possesses this knowledge.
पदपाठः
आ। ए॒न॒म्। श्र॒ध्दा। ग॒च्छ॒ति॒। आ। ए॒न॒म्। य॒ज्ञः। ग॒च्छ॒ति॒। आ। ए॒न॒म्। लो॒कः। ग॒च्छ॒ति॒। आ। ए॒न॒म्। अन्न॑म्। ग॒च्छ॒ति॒। आ। ए॒न॒म्। अ॒न्न॒ऽअद्य॑म्। ग॒च्छ॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ७.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- पङ्क्ति
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
परमात्माकी व्यापकता का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (एनम्) उस [विद्वान्]पुरुष को (श्रद्धा) श्रद्धा [धर्म में प्रतीति] (आ) आकर (गच्छति) मिलती है, (एनम्) उस को (यज्ञः) सद्व्यवहार (आ) आकर (गच्छति) मिलता है, (एनम्) उसको (लोकः)समाज (आ) आकर (गच्छति) मिलता है, (एनम्) उसको (अन्नम्) अन्न [जौ चावल आदि] (आ)आकर (गच्छति) मिलता है, (एनम्) उस को (अन्नाद्यम्) अनाज [रोटी पूरी आदि बनाभोजन] (आ) आकर (गच्छति) मिलता है, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) ऐसे वा व्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - ब्रह्मज्ञानी पुरुष हीश्रद्धालु, सत्कर्मी, सर्वहितैषी और अन्नवान् होकर संसार में प्रशंसनीय होता है॥५॥ इति प्रथमोऽनुवाकः ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(आ) आगत्य (एनम्) विद्वांसं पुरुषम् (गच्छति)प्राप्नोति। अन्यत् पूर्ववत्-म० ४ सुगमं च ॥