००६ ...{Loading}...
Whitney subject
- Paryāya the sixth.
VH anukramaṇī
१-२७ अथर्वा। अध्यातमं, व्रात्यः। १,४ आसुरी पङ्क्तिः; ७, १०, १३, १६, २५ आसुरी बृहती;
२२-३३ परोष्णिक्; २,१७ आर्ची पङ्क्तिः; १९ आर्च्युष्णिक्; ५, ११ साम्नी त्रिष्टुप्; ८ साम्नी पङ्क्तिः;
१४,२४ आर्ची त्रिष्टुप्; २० साम्नयनुष्टुप्; २६ आर्च्यनुष्टुप्; ३ आर्षी पङ्क्तिः; ६, १२ निचृद्बहती;
९ प्राजापत्या त्रिष्टुप्; १५, १८ विराट् जगती; २१ आर्ची बृहती; २७ विराड् बृहती।
Whitney anukramaṇī
[ṣaḍviṅśati. 1 a, 3 a. āsurī pan̄kti; a of 3-6, 9. āsurī bṛhatī; 8 a. paroṣṇih; 1 b, 6 b. ārcī pan̄kti; 7 a. ārcy uṣṇih; 2 b, 4 b. sāmnī triṣṭubh; 3 b. sāmnī pan̄kti; 5 b, 8 b. ārcī triṣṭubh; 7 b. sāmny anuṣṭubh; 9 b. ārcy anuṣṭubh; 1 c. ārṣī pan̄kti; 2 c, 4 c. nicṛd bṛhatī; 3 c. prājāpatyā triṣṭubh; 5 c, 6 c. virāḍ jagatī; 7 c. ārcī bṛhatī; 9 c. virāḍ bṛhatī.]
Whitney
Comment
In this paryāya, the division of the Anukr. and of the mss. suits (except in vs. 8, which see) the sense, and has therefore been retained unchanged in our text.
Translations
Translated: Aufrecht, Ind. Stud. i. 132; Griffith, ii. 190.
Griffith
Vratya
०१ स ध्रुवान्दिशमनु
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
स ध्रु॒वांदिश॒मनु॒ व्य᳡चलत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स ध्रु॒वांदिश॒मनु॒ व्य᳡चलत् ॥
०१ स ध्रुवान्दिशमनु ...{Loading}...
Whitney
Translation
- ⌊1.⌋ He moved out toward the fixed quarter;
Griffith
He went his way to the region of the nadir.
पदपाठः
सः। ध्रु॒वाम्। दिश॑म्। अनु॑। वि। अ॒च॒ल॒त्। ६.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आसुरी पङ्क्ति
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (ध्रुवाम्) नीची (दिशम् अनु) दिशा की ओर (वि अचलत्) विचरा ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जब विद्वान् पुरुषपरमात्मा को नीची आदि दिशाओं में सर्वव्यापक और सर्वनियन्ता जानकर उसके उत्पन्नकिये पृथिवी आदि पदार्थों का तत्त्वज्ञान प्राप्त करता है, तब वह उनसे यथावत्उपकार लेकर सुख पाता है ॥१-३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(सः) व्रात्यः (ध्रुवाम्) अधोवर्तमानाम् (दिशम्) (अनु) अनुलक्ष्य (व्यचलत्) विचरितवान् ॥
०२ तम्भूमिश्चाग्निश्चौषधयश्च वनस्पतयश्च
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तंभूमि॑श्चा॒ग्निश्चौष॑धयश्च॒ वन॒स्पत॑यश्च वानस्प॒त्याश्च॑वी॒रुध॑श्चानु॒व्य᳡चलन् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तंभूमि॑श्चा॒ग्निश्चौष॑धयश्च॒ वन॒स्पत॑यश्च वानस्प॒त्याश्च॑वी॒रुध॑श्चानु॒व्य᳡चलन् ॥
०२ तम्भूमिश्चाग्निश्चौषधयश्च वनस्पतयश्च ...{Loading}...
Whitney
⌊2.⌋ after him moved out
both earth and fire and herbs and forest trees and they of forest trees
and plants.
Griffith
Earth and Agni and herbs and trees and shrubs and plants followed him.
पदपाठः
तम्। भूमिः॑। च॒। अ॒ग्निः। च॒। ओष॑धयः। च॒। वन॒स्पत॑यः। च॒। वा॒न॒स्प॒त्याः। च॒। वी॒रुधः॑। च॒। अ॒नु॒ऽव्य᳡चलन्। ६.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आर्ची पङ्क्ति
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (भूमिः) भूमि (च च) और (अग्निः) अग्नि [भौतिक अग्नि] (च) और (ओषधयः) ओषधें [जौ, गेहूँ, चावल आदि अन्न] (च) और (वनस्पतयः) वनस्पतियाँ [पीपल आदि वृक्ष] (च) और (वानस्पत्याः) वनस्पतियोंसे उत्पन्न पदार्थ [काष्ठ फूल, फल, मूल, रस आदि] (च) और (वीरुधः) लताएँ [सोमलताआदि] (तम्) उस [व्रात्य परमात्मा] के (अनुव्यचलन्) पीछे विचरे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जब विद्वान् पुरुषपरमात्मा को नीची आदि दिशाओं में सर्वव्यापक और सर्वनियन्ता जानकर उसके उत्पन्नकिये पृथिवी आदि पदार्थों का तत्त्वज्ञान प्राप्त करता है, तब वह उनसे यथावत्उपकार लेकर सुख पाता है ॥१-३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(तम्) व्रात्यम् (भूमिः) (च) (अग्निः) भौतिकाग्निः (ओषधयः) यवव्रीह्याद्यन्नानि (च) (वनस्पतयः)पिप्पलादयो वृक्षाः (वानस्पत्याः) वनस्पति-ण्य। वनस्पतिभ्य उत्पन्नाःकाष्ठपुष्पफलमूलरसादयः (च) (वीरुधः) सोमलतादयः (च) (अनुव्यचलन्) अनुसृत्यव्यचरन् ॥
०३ भूमेश्च वैसोऽग्नेश्चौषधीनाम्
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भूमे॑श्च॒ वैसो॒३॒॑ऽग्नेश्चौष॑धीनां च॒ वन॒स्पती॑नां च वानस्प॒त्यानां॑ च॑ वी॒रुधां॑ चप्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
भूमे॑श्च॒ वैसो॒३॒॑ऽग्नेश्चौष॑धीनां च॒ वन॒स्पती॑नां च वानस्प॒त्यानां॑ च॑ वी॒रुधां॑ चप्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
०३ भूमेश्च वैसोऽग्नेश्चौषधीनाम् ...{Loading}...
Whitney
⌊3.⌋ Verily both of earth and of fire and of herbs and of
forest trees and of them of forest trees and of plants doth he become
the dear abode who knoweth thus.
Notes
To make the metrical descriptions fit closely the subdivisions, we need
to read ví-acal- in a and b, and só ag- in c: and so
more or less throughout the hymn.
Griffith
He who possesses this knowledge becomes the dear home of Earth and Agni and herbs and trees and shrubs and plants.
पदपाठः
भूमेः॑। च॒। वै। सः। अ॒ग्नेः। च॒। ओष॑धीनाम्। च॒। वन॒स्पती॑नाम्। च॒। वा॒न॒स्प॒त्याना॑म्। च॒। वी॒रुधा॑म्। च॒। प्रि॒यम्। धाम॑। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ६.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आर्षी पङ्क्ति
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [विद्वान्] (वै) निश्चय करके (भूमेः) भूमि का (च च) और (अग्नेः) अग्नि का (च) और (ओषधीनाम्)ओषधियों का (च) और (वनस्पतीनाम्) वनस्पतियों का (च) और (वानस्पत्यानाम्)वनस्पतियों से उत्पन्न पदार्थों का (च) और (वीरुधाम्) लताओं का (प्रियम्) प्रिय (धाम) धाम [घर] (भवति) होता है, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) ऐसे वा व्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जब विद्वान् पुरुषपरमात्मा को नीची आदि दिशाओं में सर्वव्यापक और सर्वनियन्ता जानकर उसके उत्पन्नकिये पृथिवी आदि पदार्थों का तत्त्वज्ञान प्राप्त करता है, तब वह उनसे यथावत्उपकार लेकर सुख पाता है ॥१-३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(धाम) गृहम् (एवम्) सू० २ म० ३। इण् गतौ-वन्।ईदृशं व्यापकं वा व्रात्यम्। अन्यद् गतं सुगमं च ॥
०४ स ऊर्ध्वान्दिशमनु
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
स ऊ॒र्ध्वांदिश॒मनु॒ व्य᳡चलत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स ऊ॒र्ध्वांदिश॒मनु॒ व्य᳡चलत् ॥
०४ स ऊर्ध्वान्दिशमनु ...{Loading}...
Whitney
- ⌊4.⌋ He moved out toward the upward quarter;
Griffith
He went his way to the region of the zenith.
पदपाठः
सः। ऊ॒र्ध्वाम्। दिश॑म्। अनु॑। वि। अ॒च॒ल॒त्। ६.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आसुरी पङ्क्ति
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (ऊर्ध्वाम्) ऊँची (दिशम् अनु) दिशा की ओर (वि अचलत्) विचरा ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा के सामर्थ्यसे ही अविनाशी विज्ञान और जगत् का नित्य कारण और कार्यरूप सूर्य आदि पदार्थउत्पन्न होते हैं, ऐसा दृढज्ञानी पुरुष ईश्वरीय सत्यज्ञान को, कारणरूप औरकार्यरूप जगत् को यथावत् जानकर आनन्द पाता है ॥४, ५, ६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(सः) व्रात्यः (ऊर्ध्वाम्) उपरिवर्तमानाम् ॥
०५ तमृतं च
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तमृ॒तं च॑ स॒त्यंच॒ सूर्य॑श्च च॒न्द्रश्च॒ नक्ष॑त्राणि चानु॒व्य᳡चलन् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तमृ॒तं च॑ स॒त्यंच॒ सूर्य॑श्च च॒न्द्रश्च॒ नक्ष॑त्राणि चानु॒व्य᳡चलन् ॥
०५ तमृतं च ...{Loading}...
Whitney
⌊5.⌋ after him moved out
both right and truth and sun and moon and asterisms.
Griffith
Right and Truth and Sun and Moon and Stars followed him.
पदपाठः
तम्। ऋ॒तम्। च॒। स॒त्यम्। च॒। सूर्यः॑। च॒। च॒न्द्रः। च॒। नक्ष॑त्राणि। च॒। अ॒नु॒ऽव्य᳡चलन्। । ६.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- साम्नी त्रिष्टुप्
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतम्) यथार्थ विज्ञान (च च) और (सत्यम्) [विद्यमान जगत् का हितकारी] अविनाशी कारण (च) और (सूर्यः)सूर्य (च) और (चन्द्रः) चन्द्रमा (च) और (नक्षत्राणि) चलनेवाले तारे (तम्) उस [व्रात्य परमात्मा] के (अनुव्यचलन्) पीछे विचरे ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा के सामर्थ्यसे ही अविनाशी विज्ञान और जगत् का नित्य कारण और कार्यरूप सूर्य आदि पदार्थउत्पन्न होते हैं, ऐसा दृढज्ञानी पुरुष ईश्वरीय सत्यज्ञान को, कारणरूप औरकार्यरूप जगत् को यथावत् जानकर आनन्द पाता है ॥४, ५, ६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५, ६−(तम्) व्रात्यम् (ऋतम्) यथार्थविज्ञानम् (च) (सत्यम्) सत्-यत्। सते विद्यमानाय जगते हितम्।अविनाशि कारणम् (नक्षत्राणि) णक्ष गतौ-अत्रन्। गतिमन्तस्तारागणाः। अन्यद् गतंस्पष्टं च ॥
०६ ऋतस्य च
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ऋ॒तस्य॑ च॒ वै सस॒त्यस्य॑ च॒ सूर्य॑स्य च च॒न्द्रस्य॑ च॒ नक्ष॑त्राणां च प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ यए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ऋ॒तस्य॑ च॒ वै सस॒त्यस्य॑ च॒ सूर्य॑स्य च च॒न्द्रस्य॑ च॒ नक्ष॑त्राणां च प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ यए॒वं वेद॑ ॥
०६ ऋतस्य च ...{Loading}...
Whitney
⌊6.⌋ Verily both of
right and of truth and of sun and of moon and of asterisms doth he
become the dear abode who knoweth thus.
Notes
In c, ca is to be inserted after ṛtásya.
Griffith
He who possesses this knowledge becomes, etc., as in verse 1. mutatis mutandis.
पदपाठः
ऋ॒तस्य॑। च॒। वै। सः। स॒त्यस्य॑। च॒। सूर्य॑स्य। च॒। च॒न्द्रस्य॑। च॒। नक्ष॑त्राणाम्। च॒। प्रि॒यम्। धाम॑। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ६.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- निचृत बृहती
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [विद्वान्पुरुष] (वै) निश्चय करके (ऋतस्य) सत्य विज्ञान का (च च) और (सत्यस्य) [विद्यमानजगत् के हितकारी] अविनाशी कारण का (च) और (सूर्यस्य) सूर्य का (च) और (चन्द्रस्य) चन्द्रमा का (च) और (नक्षत्राणाम्) चलनेवाले तारागणों का (प्रियम्)प्रिय (धाम) धाम [घर] (भवति) होता है, (यः) जो [विद्वान] (एवम्) ऐसे वा व्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा के सामर्थ्यसे ही अविनाशी विज्ञान और जगत् का नित्य कारण और कार्यरूप सूर्य आदि पदार्थउत्पन्न होते हैं, ऐसा दृढज्ञानी पुरुष ईश्वरीय सत्यज्ञान को, कारणरूप औरकार्यरूप जगत् को यथावत् जानकर आनन्द पाता है ॥४, ५, ६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५, ६−(तम्) व्रात्यम् (ऋतम्) यथार्थविज्ञानम् (च) (सत्यम्) सत्-यत्। सते विद्यमानाय जगते हितम्।अविनाशि कारणम् (नक्षत्राणि) णक्ष गतौ-अत्रन्। गतिमन्तस्तारागणाः। अन्यद् गतंस्पष्टं च ॥
०७ स उत्तमान्दिशमनु
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स उ॑त्त॒मांदिश॒मनु॒ व्य᳡चलत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स उ॑त्त॒मांदिश॒मनु॒ व्य᳡चलत् ॥
०७ स उत्तमान्दिशमनु ...{Loading}...
Whitney
- ⌊7.⌋ He moved out toward the highest quarter;
Griffith
He went away to the last region.
पदपाठः
सः। उ॒त्ऽत॒माम्। दिश॑म्। अनु॑। वि। अ॒च॒ल॒त्। ६.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आसुरी बृहती
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (उत्तमाम्) अत्यन्त ऊँची (दिशम् अनु) दिशा की ओर (वि अचलत्) विचरा ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य वेदों मेंप्रतिपादित ईश्वरीय ज्ञान को ऊँचे से ऊँचे स्थान में साक्षात् करके उन्नति करताहुआ मोक्षानन्द भोगता है ॥७, ८, ९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(सः) व्रात्यः (उत्तमाम्) अतिशयेनोन्नताम्। अन्यद् गतम् ॥
०८ तमृचश्चसामानि च
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तमृच॑श्च॒सामा॑नि च॒ यजूं॑षि च॒ ब्रह्म॑ चानु॒व्य᳡चलन् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तमृच॑श्च॒सामा॑नि च॒ यजूं॑षि च॒ ब्रह्म॑ चानु॒व्य᳡चलन् ॥
०८ तमृचश्चसामानि च ...{Loading}...
Whitney
⌊8.⌋ after him moved
out both the verses and the chants and the sacrificial formulas and the bráhman.
Griffith
Richas, Samans Yajus formulas and Devotion followed him.
पदपाठः
तम्। ऋचः॑। च॒। सामा॑नि। च॒। यजूं॑षि। च॒। ब्रह्म॑। च॒। अ॒नु॒ऽव्य᳡चलन्। ६.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- साम्नी पङ्क्ति
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ऋचः) ऋग्वेद कीऋचाएँ [अर्थात् पदार्थों के गुण बतानेवाले मन्त्र] (च च) और (सामानि) सामवेद केमन्त्र [अर्थात् मोक्षप्रतिपादक मन्त्र] (च) और (यजूंषि) यजुर्वेद के मन्त्र [अर्थात् सत्कर्मप्रकाशक ज्ञान] (च) और (ब्रह्म) अथर्ववेद [अर्थात्ब्रह्मज्ञान] (तम्) उस [व्रात्य परमात्मा] के (अनुव्यचलन्) पीछे चले ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य वेदों मेंप्रतिपादित ईश्वरीय ज्ञान को ऊँचे से ऊँचे स्थान में साक्षात् करके उन्नति करताहुआ मोक्षानन्द भोगता है ॥७, ८, ९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८, ९−(तम्) व्रात्यम् (ऋचः) पदार्थानां गुणप्रकाशका मन्त्राः (सामानि) मोक्षप्रतिपादकमन्त्राः (यजूंषि) सत्कर्मप्रकाशकज्ञानानि (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञानप्रतिपादकोऽथर्ववेदः।अन्यद् गतं सुगमं च ॥
०९ ऋचां च
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ऋ॒चां च॒ वै ससाम्नां॑ च॒ यजु॑षां च॒ ब्रह्म॑णश्च प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ऋ॒चां च॒ वै ससाम्नां॑ च॒ यजु॑षां च॒ ब्रह्म॑णश्च प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
०९ ऋचां च ...{Loading}...
Whitney
⌊9.⌋ Verily both of the verses and of the chants and of the
sacrificial formulas and of the bráhman doth he become the dear abode
who knoweth thus.
Griffith
He who, etc., as above.
पदपाठः
ऋ॒चाम्। च॒। वै। सः। साम्ना॑म्। च॒। यजु॑षाम्। च॒। ब्रह्म॑णः। च॒। प्रि॒यम्। धाम॑। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ६.९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- प्राजाप्तया त्रिष्टुप्
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [विद्वान्] (वै) निश्चय करके (ऋचाम्) ऋग्वेद की ऋचाओं का (च च) और (साम्नाम्) सामवेद केमन्त्रों का (च) और (यजुषाम्) यजुर्वेद के मन्त्रों का (च) और (ब्रह्मणः)अथर्ववेद का (प्रियम्) प्रिय (धाम) धाम [घर] (भवति) होता है, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) ऐसे वा व्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य वेदों मेंप्रतिपादित ईश्वरीय ज्ञान को ऊँचे से ऊँचे स्थान में साक्षात् करके उन्नति करताहुआ मोक्षानन्द भोगता है ॥७, ८, ९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८, ९−(तम्) व्रात्यम् (ऋचः) पदार्थानां गुणप्रकाशका मन्त्राः (सामानि) मोक्षप्रतिपादकमन्त्राः (यजूंषि) सत्कर्मप्रकाशकज्ञानानि (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञानप्रतिपादकोऽथर्ववेदः।अन्यद् गतं सुगमं च ॥
१० स बृहतीन्दिशमनु
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
स बृ॑ह॒तींदिश॒मनु॒ व्य᳡चलत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स बृ॑ह॒तींदिश॒मनु॒ व्य᳡चलत् ॥
१० स बृहतीन्दिशमनु ...{Loading}...
Whitney
- ⌊10.⌋ He moved out toward the great quarter;
Griffith
He went away to the great region.
पदपाठः
सः। बृ॒ह॒तीम्। दिश॑म्। अनु॑। वि। अ॒च॒ल॒त्। ६.१०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आसुरी बृहती
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (बृहतीम्) बड़ी (दिशम् अनु) दिशा की ओर (वि अचलत्) विचरा ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमात्मा केगुण कर्म स्वभाव के साथ उत्तम मनुष्यों के गुण कर्म स्वभाव का उपदेश करता है, वहइतिहास पुराण आदि द्वारा कीर्ति पाता है ॥१०, ११, १२॥मन्त्र १०-१२ महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका वेदसंज्ञाविचार पृष्ठ ८२ में उद्धृत हैं ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १०−(सः) व्रात्यःपरमात्मा (बृहतीम्) प्रवृद्धाम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
११ तमितिहासश्चपुराणं च
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तमि॑तिहा॒सश्च॑पुरा॒णं च॒ गाथा॑श्च नाराशं॒सीश्चा॑नु॒व्य᳡चलन् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तमि॑तिहा॒सश्च॑पुरा॒णं च॒ गाथा॑श्च नाराशं॒सीश्चा॑नु॒व्य᳡चलन् ॥
११ तमितिहासश्चपुराणं च ...{Loading}...
Whitney
⌊11.⌋ after him moved
out both the itihāsá (’narrative’) and the purāṇá (‘story of eld’)
and the gā́thās (‘songs’) and the nārāśansī́s (’eulogies’).
Griffith
Itihasa and Purana and Gathas and Narasansis followed him.
पदपाठः
तम्। इ॒ति॒ह॒ऽआ॒सः। च॒। पु॒रा॒णम्। च॒। गाथाः॑। च॒। ना॒रा॒शं॒सीः। च॒। अ॒नु॒ऽव्य᳡चलन्। ६.११।
अधिमन्त्रम् (VC)
- साम्नी त्रिष्टुप्
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इतिहासः) इतिहास [बड़े लोगों का वृत्तान्त] (च च) और (पुराणम्) पुराण [पुराने लोगों कावृत्तान्त] (च) और (गाथाः) गाथाएँ [गाने योग्य वेदमन्त्र, शिक्षाप्रद श्लोकआदि] (च) और (नाराशंसीः) नाराशंसी [वीर नरों की गुणकथाएँ] (तम्) उस [व्रात्यपरमात्मा] के (अनुव्यचलन्) पीछे चलीं ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमात्मा केगुण कर्म स्वभाव के साथ उत्तम मनुष्यों के गुण कर्म स्वभाव का उपदेश करता है, वहइतिहास पुराण आदि द्वारा कीर्ति पाता है ॥१०, ११, १२॥मन्त्र १०-१२ महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका वेदसंज्ञाविचार पृष्ठ ८२ में उद्धृत हैं ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ११, १२−(तम्)व्रात्यम् (इतिहासः) इतिह पारम्पार्य्योपदेश आस्तेऽस्मिन्। इतिह+आस उपवेशनेविद्यमानतायां च-घञ्। महापुरुषाणां वृत्तान्तः (च) (पुराणम्) प्राचीनपुरुषाणांवृत्तान्तः (च) (गाथाः) उपिकुषिगार्तिभ्यस्थन्। उ० २।४। गै गाने-थन्। गानयोग्यावेदमन्त्राः। शिक्षाप्रदाः श्लोकादयः (नाराशंसीः) अ० १४।१।७। नर+शंसुस्तुतौ-अण्। दीर्घश्च, ततः स्वार्थे-अण्, ङीप्। येन नराः प्रशस्यन्ते स नाराशंसोमन्त्रः-निरु० ९।९। वीरनराणां कीर्तनानि (अनुव्यचलन्) अनुसृत्य व्यचरन्। अन्यत्पूर्ववत् स्पष्टं च ॥
१२ इतिहासस्य चवै
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इ॑तिहा॒सस्य॑ च॒वै स पु॑रा॒णस्य॑ च॒ गाथा॑नां च नाराशं॒सीनां॑ च प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
इ॑तिहा॒सस्य॑ च॒वै स पु॑रा॒णस्य॑ च॒ गाथा॑नां च नाराशं॒सीनां॑ च प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑॥
१२ इतिहासस्य चवै ...{Loading}...
Whitney
⌊12.⌋
Verily both of the itihāsá and of the purāṇá and of the gā́thās and
of the nārāśansī́s doth he become the dear abode who knoweth thus.
Griffith
He who, etc.
पदपाठः
इ॒ति॒ह॒ऽआ॒सस्य॑। च॒। वै। सः। पु॒रा॒णस्य॑। च॒। गाथा॑नाम्। च॒। ना॒रा॒शं॒सीना॑म्। च॒। प्रि॒यम्। धाम॑। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ६.१२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- निचृत बृहती
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [विद्वान्]पुरुष (वै) निश्चय करके (इतिहासस्य) इतिहास का (च च) और (पुराणस्य) पुराण का (च) और (गाथानाम्) गाथाओं का (च) और (नाराशंसीनाम्) नाराशंसियों का (प्रियम्) प्रिय (धाम) धाम [घर] (भवति) होता है, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) ऐसे वा व्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमात्मा केगुण कर्म स्वभाव के साथ उत्तम मनुष्यों के गुण कर्म स्वभाव का उपदेश करता है, वहइतिहास पुराण आदि द्वारा कीर्ति पाता है ॥१०, ११, १२॥मन्त्र १०-१२ महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका वेदसंज्ञाविचार पृष्ठ ८२ में उद्धृत हैं ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ११, १२−(तम्)व्रात्यम् (इतिहासः) इतिह पारम्पार्य्योपदेश आस्तेऽस्मिन्। इतिह+आस उपवेशनेविद्यमानतायां च-घञ्। महापुरुषाणां वृत्तान्तः (च) (पुराणम्) प्राचीनपुरुषाणांवृत्तान्तः (च) (गाथाः) उपिकुषिगार्तिभ्यस्थन्। उ० २।४। गै गाने-थन्। गानयोग्यावेदमन्त्राः। शिक्षाप्रदाः श्लोकादयः (नाराशंसीः) अ० १४।१।७। नर+शंसुस्तुतौ-अण्। दीर्घश्च, ततः स्वार्थे-अण्, ङीप्। येन नराः प्रशस्यन्ते स नाराशंसोमन्त्रः-निरु० ९।९। वीरनराणां कीर्तनानि (अनुव्यचलन्) अनुसृत्य व्यचरन्। अन्यत्पूर्ववत् स्पष्टं च ॥
१३ स परमान्दिशमनु
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स प॑र॒मांदिश॒मनु॒ व्य᳡चलत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स प॑र॒मांदिश॒मनु॒ व्य᳡चलत् ॥
१३ स परमान्दिशमनु ...{Loading}...
Whitney
- ⌊13.⌋ He moved out toward the most distant quarter;
Griffith
He went away to the supreme region.
पदपाठः
सः। प॒र॒माम्। दिश॑म्। अनु॑। वि। अ॒च॒ल॒त्। ६.१३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आसुरी बृहती
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (परमाम्) सबसे दूर (दिशम् अनु) दिशा की ओर (वि अचलत्) विचरा ॥१३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमात्मामें ध्यान लगा कर संसार के उपकारी अग्निहोत्र आदि यज्ञ तथा विद्यादान औरविद्वानों के सत्कार आदि यज्ञ करता है, वह परमात्मा का भक्त संसार में अतिप्रशंसनीय होता है ॥१३, १४, १५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १३−(सः) व्रात्यःपरमात्मा (परमाम्) अतिदूराम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
१४ तमाहवनीयश्चगार्हपत्यश्च दक्षिणाग्निश्च
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तमा॑हव॒नीय॑श्च॒गार्ह॑पत्यश्च दक्षिणा॒ग्निश्च॑ य॒ज्ञश्च॒ यज॑मानश्च प॒शव॑श्चानु॒व्य᳡चलन्॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तमा॑हव॒नीय॑श्च॒गार्ह॑पत्यश्च दक्षिणा॒ग्निश्च॑ य॒ज्ञश्च॒ यज॑मानश्च प॒शव॑श्चानु॒व्य᳡चलन्॥
१४ तमाहवनीयश्चगार्हपत्यश्च दक्षिणाग्निश्च ...{Loading}...
Whitney
⌊14.⌋ after him
moved out both the fire of offering and the householder’s fire and the
southern fire and the sacrifice and the sacrificer and the cattle.
Griffith
The Ehavaniya, Garha- patya, and Southern Fires, and Sacrifice, and Sacrificer, and sacrificial victims followed him.
पदपाठः
तम्। आ॒ऽह॒व॒नीयः॑। च॒। गार्ह॑ऽपत्यः। च॒। द॒क्षि॒ण॒ऽअ॒ग्निः। च॒। य॒ज्ञः। च॒। यज॑मानः। च॒। प॒शवः॑। च॒। अ॒नु॒ऽव्य᳡चलन्। ६.१४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आर्ची त्रिष्टुप्
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (आहवनीयः) [यज्ञ कीअग्निविशेष] (च च) और (गार्हपत्यः) गार्हपत्य [गृहपति की सिद्ध हुई यज्ञाग्निविशेष] (च) और (दक्षिणाग्निः) दक्षिण अग्नि [यज्ञाग्निविशेष] (च) और (यज्ञः)यज्ञ (च) और (यजमानः) यजमान [यज्ञकर्ता] (च) और (पशवः) सब प्राणी (तम्) उस [व्रात्य परमात्मा] के (अनुव्यचलन्) पीछे विचरे ॥१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमात्मामें ध्यान लगा कर संसार के उपकारी अग्निहोत्र आदि यज्ञ तथा विद्यादान औरविद्वानों के सत्कार आदि यज्ञ करता है, वह परमात्मा का भक्त संसार में अतिप्रशंसनीय होता है ॥१३, १४, १५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १४, १५−(तम्)व्रात्यम् (आहवनीयः) आङ्+हु दानादानादनेषु-अनीयर्। यज्ञाग्निविशेषः (गार्हपत्यः)गृहपतिना संयुक्तो यज्ञाग्निविशेषः (दक्षिणाग्निः) यज्ञाग्निविशेषः (यज्ञः)सद्व्यवहारः (यजमानः) यज्ञकर्ता (पशवः) सर्वे प्राणिनः। अन्यत् पूर्ववत् सुगमं च॥
१५ आहवनीयस्य चवै
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आ॑हव॒नीय॑स्य च॒वै स गार्ह॑पत्यस्य च दक्षिणा॒ग्नेश्च॑ य॒ज्ञस्य॑ च॒ यज॑मानस्य च पशू॒नां च॑प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आ॑हव॒नीय॑स्य च॒वै स गार्ह॑पत्यस्य च दक्षिणा॒ग्नेश्च॑ य॒ज्ञस्य॑ च॒ यज॑मानस्य च पशू॒नां च॑प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
१५ आहवनीयस्य चवै ...{Loading}...
Whitney
⌊15.⌋
Verily both of the fire of offering and of the householder’s fire and of
the southern fire and of the sacrifice and of the sacrificer and of the
cattle doth he become the dear abode who knoweth thus.
Griffith
He who, etc.
पदपाठः
आ॒ऽह॒व॒नीय॑स्य। च॒। वै। सः। गार्ह॑पत्यस्य। च॒। द॒क्षि॒ण॒ऽअ॒ग्नेः। च॒। य॒ज्ञस्य॑। च॒। यज॑मानस्य। च॒। प॒शू॒नाम्। च॒। प्रि॒यम्। धाम॑। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ६.१५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- विराट् जगती
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [विद्वान्पुरुष] (वै) निश्चय करके (आहवनीयस्य) आहवनीय [अग्नि] का (च च) और (गार्हपत्यस्य)गार्हपत्य [अग्नि] का (च) और (दक्षिणाग्नेः) दक्षिण अग्नि का (च) और (यज्ञस्य)यज्ञ का (च) और (यजमानस्य) यजमान का (च) और (पशूनाम्) सब प्राणियों का (प्रियम्)प्रिय (धाम) धाम [घर] (भवति) होता है, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) ऐसे वा व्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥१५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमात्मामें ध्यान लगा कर संसार के उपकारी अग्निहोत्र आदि यज्ञ तथा विद्यादान औरविद्वानों के सत्कार आदि यज्ञ करता है, वह परमात्मा का भक्त संसार में अतिप्रशंसनीय होता है ॥१३, १४, १५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १४, १५−(तम्)व्रात्यम् (आहवनीयः) आङ्+हु दानादानादनेषु-अनीयर्। यज्ञाग्निविशेषः (गार्हपत्यः)गृहपतिना संयुक्तो यज्ञाग्निविशेषः (दक्षिणाग्निः) यज्ञाग्निविशेषः (यज्ञः)सद्व्यवहारः (यजमानः) यज्ञकर्ता (पशवः) सर्वे प्राणिनः। अन्यत् पूर्ववत् सुगमं च॥
१६ सोऽनादिष्टान्दिशमनु व्यचलत्
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सोऽना॑दिष्टां॒दिश॒मनु॒ व्य᳡चलत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सोऽना॑दिष्टां॒दिश॒मनु॒ व्य᳡चलत् ॥
१६ सोऽनादिष्टान्दिशमनु व्यचलत् ...{Loading}...
Whitney
- ⌊16.⌋ He moved out toward an unindicated quarter;
Griffith
He went away to the unindicated region.
पदपाठः
सः। अना॑दिष्टाम्। दिश॑म्। वि। अ॒च॒ल॒त्। ६.१६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आसुरी बृहती
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (अनादिष्टाम्) बिना बताई हुई (दिशम् अनु) दिशा की ओर (वि अचलत्)विचरा ॥१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य को योग्य है किपरमात्मा को सब लोकों, लोकवालों और ऋतुओं आदि का स्वामी जानकर सब पदार्थों काविवेकी होवे और उन से यथावत् उपकार लेकर आनन्द पावे ॥१६, १७, १८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १६−(सः) व्रात्यः (अनादिष्टाम्) अज्ञापिताम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
१७ तमृतवश्चार्तवाश्च लोकाश्च
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तमृ॒तव॑श्चार्त॒वाश्च॑ लो॒काश्च॑ लौ॒क्याश्च॒ मासा॑श्चार्धमा॒साश्चा॑होरा॒त्रेचा॑नु॒व्य᳡चलन् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तमृ॒तव॑श्चार्त॒वाश्च॑ लो॒काश्च॑ लौ॒क्याश्च॒ मासा॑श्चार्धमा॒साश्चा॑होरा॒त्रेचा॑नु॒व्य᳡चलन् ॥
१७ तमृतवश्चार्तवाश्च लोकाश्च ...{Loading}...
Whitney
⌊17.⌋ after him
moved out both the seasons and they of the seasons and the worlds and
they of the worlds and the months and the half-months and day-and-night.
Griffith
The Seasons, groups of seasons, the worlds and their inhabitants, the months and half-months, and Day and Night followed him.
पदपाठः
तम्। ऋ॒तवः॑। च॒। आ॒र्त॒वाः। च॒। लोकाः॑। च॒। लौ॒क्याः। च॒। मासाः॑। च॒। अ॒र्ध॒ऽमा॒साः। च॒। अ॒हो॒रा॒त्रे इति॑। च॒। अ॒नु॒ऽव्य᳡चलन्। ६.१७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आर्ची पङ्क्ति
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (लोकाः) सब लोक (च च)और (लौक्याः) लोकों में रहनेवाले (च) और (ऋतवः) ऋतुएँ (च) और (आर्तवाः) ऋतुओंमें उत्पन्न हुए पदार्थ (च) और (मासाः) महीने (च) और (अर्धमासाः) आधे महीने (च)और (अहोरात्रे) दिन राति (तम्) उस [व्रात्य परमात्मा] के (अनुव्यचलन्) पीछेविचरे ॥१७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य को योग्य है किपरमात्मा को सब लोकों, लोकवालों और ऋतुओं आदि का स्वामी जानकर सब पदार्थों काविवेकी होवे और उन से यथावत् उपकार लेकर आनन्द पावे ॥१६, १७, १८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १७, १८−(तम्)व्रात्यम् (ऋतवः) वसन्तादयः (आर्तवाः) ऋतुभवाः पदार्थाः (लोकाः) भुवनानि (लौक्याः) लोक-ण्य। लोकभवाः पदार्थाः (मासाः) (अर्धमासाः) (अहोरात्रे)रात्रिदिने। अन्यत् पूर्ववत् सुगमं च ॥
१८ ऋतूनां च
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ऋ॑तू॒नां च॒ वै सआ॑र्त॒वानां॑ च लो॒कानां॑ च लौ॒क्यानां॑ च॒ मासा॑नां चार्धमा॒सानां॑चाहोरा॒त्रयो॑श्च प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ऋ॑तू॒नां च॒ वै सआ॑र्त॒वानां॑ च लो॒कानां॑ च लौ॒क्यानां॑ च॒ मासा॑नां चार्धमा॒सानां॑चाहोरा॒त्रयो॑श्च प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
१८ ऋतूनां च ...{Loading}...
Whitney
⌊18.⌋ Verily both of the seasons and of them of the seasons and of the
worlds and of them of the worlds and of the months and of the
half-months and of day-and-night doth he become the dear abode who
knoweth thus.
Notes
Most of the mss. accent lóka in both b and c (R.s.m.K.D. have
lokā́s; only R.s.m. has lokā́nām); our text makes the needed
correction. ⌊With the almost unanimous support of his authorities, SPP.
prints lókās, lókānām, which accentuation (albeit so isolated) he
takes in this case to be “the genuine Atharvan accent”: see his notes,
p. 330 f.⌋
Griffith
He who, etc.
पदपाठः
ऋ॒तू॒नाम्। च॒। वै। सः। आ॒र्त॒वाना॑म्। च॒। लोका॑नाम्। च॒। लौ॒क्याना॑म्। च॒। मासा॑नाम्। च॒। अ॒र्ध॒ऽमा॒साना॑म्। च॒। अ॒हो॒रा॒त्रयोः॑। च॒। प्रि॒यम्। धाम॑। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ६.१८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- विराट् जगती
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [विद्वान्]पुरुष (वै) निश्चय करके (लोकानाम्) सब लोकों का (च च) और (लौक्यानाम्) लोकों मेंरहनेवालों का (च) और (ऋतूनाम्) ऋतुओं का (च) और (आर्तवानाम्) ऋतुओं में उत्पन्नहुए पदार्थों का (च) और (मासानाम्) महीनों का (च) और (अर्धमासानाम्) आधे महीनोंका (च) और (अहोरात्रयोः) दोनों दिन राति का (प्रियम्) प्रिय (धाम) धाम [घर] (भवति) होता है, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) ऐसे वा व्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥१८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य को योग्य है किपरमात्मा को सब लोकों, लोकवालों और ऋतुओं आदि का स्वामी जानकर सब पदार्थों काविवेकी होवे और उन से यथावत् उपकार लेकर आनन्द पावे ॥१६, १७, १८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १७, १८−(तम्)व्रात्यम् (ऋतवः) वसन्तादयः (आर्तवाः) ऋतुभवाः पदार्थाः (लोकाः) भुवनानि (लौक्याः) लोक-ण्य। लोकभवाः पदार्थाः (मासाः) (अर्धमासाः) (अहोरात्रे)रात्रिदिने। अन्यत् पूर्ववत् सुगमं च ॥
१९ सोऽनावृत्तान्दिशमनु व्यचलत्ततो
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सोऽना॑वृत्तां॒दिश॒मनु॒ व्य᳡चल॒त्ततो॒ नाव॒र्त्स्यन्न॑मन्यत ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सोऽना॑वृत्तां॒दिश॒मनु॒ व्य᳡चल॒त्ततो॒ नाव॒र्त्स्यन्न॑मन्यत ॥
१९ सोऽनावृत्तान्दिशमनु व्यचलत्ततो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- ⌊19.⌋ He moved out toward an unreturned quarter; from it he thought
not that he should return;
Notes
Ánāvṛtta in a is obscure: the Pet. Lexx. render ‘untrodden,’ and
Aufrecht, ‘unvisited’; but both against the analogy of nā́ ”vartsyán
(also of ánāvṛt and anāvartin; perhaps the true reading is
anāvṛtyā́m ’ not to be returned from.’ Bp. reads avartsyán, the other
pada-mss. ā॰vartsyán. I. accents indrāṇyā̀ś.
Griffith
He went away to the unfrequented region. Thence he thought that he should not return.
पदपाठः
सः। अना॑वृत्ताम्। दिश॑म्। अनु॑। वि। अ॒च॒ल॒त्। ततः॑। न। आ॒ऽव॒र्त्स्यन्। अ॒म॒न्य॒त॒। ६.१९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आर्ची उष्णिक्
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (अनावृत्ताम्) अनावृत [बिना अभ्यास की हुई, मनुष्य की बिना जानी] (दिशम् अनु) दिशा की ओर (वि अचलत्) विचरा, (ततः) उस [दिशा] से वह (न) नहीं (आवर्त्स्यन्) लौटेगा−(अमन्यत) उस [विद्वान्] ने माना ॥१९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा की अपार, अनादि और अनन्त शक्ति है, मनुष्य जितना-जितना खोजता है, उतना-उतना ही जगदीश्वरकी सृष्टि और परमाणुरूप सामग्री को अनादि अनन्त ही पाता जाता है और वेद द्वाराअपनी शक्ति बढ़ाता हुआ आनन्द मनाता चला चलता है ॥१९, २०, २१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १९−(सः) व्रात्यः (अनावृत्ताम्) अनभ्यस्ताम्। अज्ञाताम् (ततः) तद्दिक्सकाशात् (न) (निषेधे) (आवर्त्स्यन्) आवृत्तिं पुनर्गमनं कर्तुमिच्छन् भविष्यति (अमन्यत) अबुध्यतविद्वान् पुरुषः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
२० तं दितिश्चादितिश्चेडा
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तं दिति॒श्चादि॑ति॒श्चेडा॑ चेन्द्रा॒णी चा॑नु॒व्य᳡चलन् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तं दिति॒श्चादि॑ति॒श्चेडा॑ चेन्द्रा॒णी चा॑नु॒व्य᳡चलन् ॥
२० तं दितिश्चादितिश्चेडा ...{Loading}...
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⌊20.⌋ after him moved out both Diti and Aditi
and Iḍā and Indrāṇī.
Griffith
Diti and Aditi and Ida and Indrani followed him.
पदपाठः
तम्। दितिः॑। च॒। अदि॑तिः। च॒। इडा॑। च॒। इ॒न्द्रा॒णी। च॒। अ॒नु॒ऽव्य᳡चलनम्। ६.२०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- साम्नी अनुष्टुप्
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (दितिः) दिति [खण्डितविकृति अर्थात् कार्यरूप नाशवान् सृष्टि] (च च) और (अदितिः) अदिति [अखण्डितप्रकृति अर्थात् जगत् की अविनाशी परमाणुरूप सामग्री] (च) और (इडा) इड़ा [प्राप्तियोग्य वेदवाणी] (च) और (इन्द्राणी) इन्द्राणी [इन्द्र अर्थात् जीव कीशक्ति] (तम्) उस [व्रात्य परमात्मा] के (अनुव्यचलन्) पीछे विचरे ॥२०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा की अपार, अनादि और अनन्त शक्ति है, मनुष्य जितना-जितना खोजता है, उतना-उतना ही जगदीश्वरकी सृष्टि और परमाणुरूप सामग्री को अनादि अनन्त ही पाता जाता है और वेद द्वाराअपनी शक्ति बढ़ाता हुआ आनन्द मनाता चला चलता है ॥१९, २०, २१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २०, २१−(तम्)व्रात्यम् (दितिः) दो अवखण्डने-क्तिच्। खण्डिता विकृतिः। कार्यरूपा नाशशीलासृष्टिः (अदितिः) दो अवखण्डने-क्तिन्। अखण्डिता प्रकृतिः। अविनाशिनी परमाणुरूपासामग्री (इडा) वेदवाणी निघ० १।११ (इन्द्राणी) इन्द्रस्य जीवस्य पत्नी विभूतिःशक्तिः। अन्यत् पूर्ववत् स्पष्टं च ॥
२१ दितेश्च वै
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दिते॑श्च॒ वै सोऽदि॑ते॒श्चेडा॒याश्चे॑न्द्रा॒ण्याश्च॑ प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
दिते॑श्च॒ वै सोऽदि॑ते॒श्चेडा॒याश्चे॑न्द्रा॒ण्याश्च॑ प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
२१ दितेश्च वै ...{Loading}...
Whitney
⌊21.⌋ Verily both of Diti and of Aditi and of Iḍā
and of Indrāṇī doth he become the dear abode who knoweth thus.
Griffith
He who, etc.
पदपाठः
दितेः॑। च॒। वै। सः। अदि॑तेः। च॒। इडा॑याः। च॒। इ॒न्द्रा॒ण्याः। च॒। प्रि॒यम्। धाम॑। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ६.२१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आर्ची बृहती
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [विद्वान्]पुरुष (वै) निश्चय करके (दितेः) दिति [नाशवान् सृष्टि] का (च च) और (अदितेः) [अदिति अविनाशी परमाणुरूप सामग्री] का (च) और (इडायाः) इड़ा [वेदवाणी] का (च)और (इन्द्राण्याः) इन्द्राणी [जीव की शक्ति] का (प्रियम्) प्रिय (धाम) धाम [घर] (भवति) होता है, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) ऐसे वा व्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥२१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा की अपार, अनादि और अनन्त शक्ति है, मनुष्य जितना-जितना खोजता है, उतना-उतना ही जगदीश्वरकी सृष्टि और परमाणुरूप सामग्री को अनादि अनन्त ही पाता जाता है और वेद द्वाराअपनी शक्ति बढ़ाता हुआ आनन्द मनाता चला चलता है ॥१९, २०, २१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २०, २१−(तम्)व्रात्यम् (दितिः) दो अवखण्डने-क्तिच्। खण्डिता विकृतिः। कार्यरूपा नाशशीलासृष्टिः (अदितिः) दो अवखण्डने-क्तिन्। अखण्डिता प्रकृतिः। अविनाशिनी परमाणुरूपासामग्री (इडा) वेदवाणी निघ० १।११ (इन्द्राणी) इन्द्रस्य जीवस्य पत्नी विभूतिःशक्तिः। अन्यत् पूर्ववत् स्पष्टं च ॥
२२ स दिशोऽनुव्यचलत्
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स दिशोऽनु॒व्य᳡चल॒त्।
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स दिशोऽनु॒व्य᳡चल॒त्।
२२ स दिशोऽनुव्यचलत् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- ⌊22.⌋ He moved out toward the quarters;
Notes
There seems to be no good reason why this verse should not be divided,
like all the rest, into three parts; but the Anukr. does not so
prescribe, nor do the mss. set an avasāna-mark after the first vy
àcalat: ⌊compare above, p. 772, ¶ 2⌋. The mss. all agree in accenting
the second ánu.
Griffith
He went away to the regions.
पदपाठः
सः । दिशः॑ । अनु॑ । वि । अ॒च॒ल॒त् ।
अधिमन्त्रम् (VC)
- परोष्णिक्
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (दिशः अनु) सब दिशाओं की ओर (वि अचलत्) विचरा
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - यह संसार, दिव्यपदार्थऔर उनकी दिव्यशक्तियाँ परमात्मा से सब दिशाओं में प्रसिद्ध हुई हैं, उस परमात्माको साक्षात् करनेवाला मनुष्य सब उत्तम पदार्थों और गुणों का विवेकी होकर संसारका प्रिय होता है ॥२२, २३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २२, २३−(सः) व्रात्यः (दिशः) सर्वाः दिशाः (तम्) व्रात्यम् (विराट्) वि+राजृ दीप्तौ-क्विप्।विविधपदार्थैः प्रकाशमानो ब्रह्माण्डरूपसंसारः (देवाः) दिव्यपदार्थाः (देवताः)दिव्यशक्तयः। अन्यत् पूर्ववद् यथावद् योजनीयञ्च ॥
२३ तं विराडनु
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तं वि॒राडनु॒ व्य᳡चल॒त्सर्वे॑ च दे॒वाः सर्वा॑श्च दे॒वताः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तं वि॒राडनु॒ व्य᳡चल॒त्सर्वे॑ च दे॒वाः सर्वा॑श्च दे॒वताः॑ ॥
२३ तं विराडनु ...{Loading}...
Whitney
⌊no avasāna!⌋ after him
moved out the virā́j and all the gods and all the deities.
Griffith
Viraj and all the Gods and all the Deities followed him.
पदपाठः
तम् । वि॒ऽराट् । अनु॑ । वि । अ॒च॒ल॒त् । सर्वे॑ । च॒ । दे॒वाः । सर्वा॑ । च॒ । दे॒वताः॑ ६.२२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- परोष्णिक्
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (विराट्) विराट् [विविधपदार्थों से प्रकाशमान ब्रह्माण्डरूप संसार] (तम् अनु) उस [व्रात्य परमात्मा] केपीछे (वि अचलत्) विचरा, (च) और (सर्वे) सब (देवाः) दिव्यपदार्थ (च) और (सर्वाः)सब (देवताः) दिव्य शक्तियाँ [उसके पीछे विचरीं] ॥२२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: (तम्) व्रात्यम् (विराट्) वि+राजृ दीप्तौ-क्विप्।विविधपदार्थैः प्रकाशमानो ब्रह्माण्डरूपसंसारः (देवाः) दिव्यपदार्थाः (देवताः)दिव्यशक्तयः। अन्यत् पूर्ववद् यथावद् योजनीयञ्च ॥
२४ विराजश्च वै
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वि॒राज॑श्च॒ वै ससर्वे॑षां च दे॒वानां॒ सर्वा॑सां च दे॒वता॑नां प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑॥
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मूलम् (VS)
वि॒राज॑श्च॒ वै ससर्वे॑षां च दे॒वानां॒ सर्वा॑सां च दे॒वता॑नां प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑॥
२४ विराजश्च वै ...{Loading}...
Whitney
⌊23.⌋ Verily
both of virā́j and of all the gods and of all the deities doth he
become the dear abode who knoweth thus.
Griffith
He who, etc.
पदपाठः
वि॒ऽराजः॑। च॒। वै। सः। सर्वे॑षाम्। च॒। दे॒वाना॑म्। सर्वा॑साम्। च॒। दे॒वता॑नाम्। प्रियम्। धाम॑। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ६.२३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आर्ची त्रिष्टुप्
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [विद्वान्]पुरुष (वै) निश्चय करके (विराजः) विराट् [विविध पदार्थों से प्रकाशमान संसार] का (च च) और (सर्वेषाम्) सब (देवानाम्) उत्तम पदार्थों का (च) और (सर्वासाम्) सब (देवतानाम्) उत्तम शक्तियों का (प्रियम्) प्रिय (धाम) धाम [घर] (भवति) होता है, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) ऐसे वा व्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है॥२३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - यह संसार, दिव्यपदार्थऔर उनकी दिव्यशक्तियाँ परमात्मा से सब दिशाओं में प्रसिद्ध हुई हैं, उस परमात्माको साक्षात् करनेवाला मनुष्य सब उत्तम पदार्थों और गुणों का विवेकी होकर संसारका प्रिय होता है ॥२२, २३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २२, २३−(सः) व्रात्यः (दिशः) सर्वाः दिशाः (तम्) व्रात्यम् (विराट्) वि+राजृ दीप्तौ-क्विप्।विविधपदार्थैः प्रकाशमानो ब्रह्माण्डरूपसंसारः (देवाः) दिव्यपदार्थाः (देवताः)दिव्यशक्तयः। अन्यत् पूर्ववद् यथावद् योजनीयञ्च ॥
२५ ससर्वानन्तर्देशाननु व्यचलत्
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ससर्वा॑नन्तर्दे॒शाननु॒ व्य᳡चलत् ॥
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मूलम् (VS)
ससर्वा॑नन्तर्दे॒शाननु॒ व्य᳡चलत् ॥
२५ ससर्वानन्तर्देशाननु व्यचलत् ...{Loading}...
Whitney
- ⌊24.⌋ He moved out toward all the intermediate directions;
Griffith
He went away to all the intermediate spaces.
पदपाठः
सः। सर्वा॑न्। अ॒न्तः॒ऽदे॒शान्। अनु॑। वि। अ॒च॒ल॒त्। ६.२४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आसुरी बृहती
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (सर्वान्) सब (अन्तर्देशान् अनु) भीतरी देशों की ओर (वि अचलत्) विचरा॥२४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् पुरुषगहरे विचार से यह देखते हैं कि संसार में सब लोग परब्रह्म परमात्मा की आज्ञामानने से बड़े हुए हैं, वे ही ईश्वर की आज्ञा में रहकर उन्नति करते और आनन्दभोगते हैं ॥२४-२६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २४-२६−(सः) व्रात्यःपरमात्मा (अन्तर्देशान्) मध्यदेशान् (तम्) व्रात्यम् (प्रजापतिः) प्रजापालकोराजा (परमेष्ठी) उच्चपदस्थ आचार्यः संन्यासी वा (पिता) जनकः (पितामहः) पितुःपिता। अन्यत् पूर्ववद् यथोचितं योजनीयं च ॥
२६ तं प्रजापतिश्चपरमेष्ठी
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तं प्र॒जाप॑तिश्चपरमे॒ष्ठी च॑ पि॒ता च॑ पिताम॒हश्चा॑नु॒व्य᳡चलन् ॥
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मूलम् (VS)
तं प्र॒जाप॑तिश्चपरमे॒ष्ठी च॑ पि॒ता च॑ पिताम॒हश्चा॑नु॒व्य᳡चलन् ॥
२६ तं प्रजापतिश्चपरमेष्ठी ...{Loading}...
Whitney
⌊25.⌋
after him moved out both Prajāpati and the most exalted one and the
father and the grandfather.
Griffith
Prajapati and Parameshthin and the Father and the Great Father followed him.
पदपाठः
तम्। प्र॒जाऽप॑तिः। च॒। प॒र॒मे॒ऽस्थी। च॒। पि॒ता। च॒। पि॒ता॒म॒हः। च॒। अ॒नु॒ऽव्य᳡चलन्। ६.२५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आर्ची अनुष्टुप्
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (प्रजापतिः) प्रजापालक [राजा] (च च) और (परमेष्ठी) परमेष्ठी [बड़े पदवाला आचार्य वा सन्यासी] (च) और (पिता) बाप (च) और (पितामहः) दादा (तम्) उस [व्रात्य परमात्मा] के (अनुव्यचलन्)पीछे विचरे ॥२५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् पुरुषगहरे विचार से यह देखते हैं कि संसार में सब लोग परब्रह्म परमात्मा की आज्ञामानने से बड़े हुए हैं, वे ही ईश्वर की आज्ञा में रहकर उन्नति करते और आनन्दभोगते हैं ॥२४-२६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २४-२६−(सः) व्रात्यःपरमात्मा (अन्तर्देशान्) मध्यदेशान् (तम्) व्रात्यम् (प्रजापतिः) प्रजापालकोराजा (परमेष्ठी) उच्चपदस्थ आचार्यः संन्यासी वा (पिता) जनकः (पितामहः) पितुःपिता। अन्यत् पूर्ववद् यथोचितं योजनीयं च ॥
२७ प्रजापतेश्चवै स
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प्र॒जाप॑तेश्च॒वै स प॑रमे॒ष्ठिन॑श्च पि॒तुश्च॑ पिताम॒हस्य॑ च प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑॥
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मूलम् (VS)
प्र॒जाप॑तेश्च॒वै स प॑रमे॒ष्ठिन॑श्च पि॒तुश्च॑ पिताम॒हस्य॑ च प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑॥
२७ प्रजापतेश्चवै स ...{Loading}...
Whitney
⌊26.⌋ Verily both of Prajāpati and of the
most exalted one and of the father and of the grandfather doth he become
the dear abode who knoweth thus.
Griffith
He who possesses this knowledge becomes the beloved home of Prajapati and Parameshthin and the Father and the Great Father.
पदपाठः
प्र॒जाऽप॑तेः। च॒। वै। सः। प॒र॒मे॒ऽस्थीनः॑। च॒। पि॒तुः। च॒। पि॒ता॒म॒हस्य॑। च॒। प्रि॒यम्। धाम॑। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ६.२६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- विराट् बृहती
- अध्यात्म अथवा व्रात्य
- अथर्वा
- अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ईश्वर के सर्वस्वामी होने का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [विद्वान्]पुरुष (वै) निश्चय करके (प्रजापतेः) प्रजापालक [राजा] का (च च) और (परमेष्ठिनः)परमेष्ठी [बड़ी स्थितिवाले आचार्य वा संन्यासी] का (च) और (पितुः) बाप का (च)और (पितामहस्य) दादा का (प्रियम्) प्रिय (धाम) धाम [घर] (भवति) होता है, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) ऐसे [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥२६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् पुरुषगहरे विचार से यह देखते हैं कि संसार में सब लोग परब्रह्म परमात्मा की आज्ञामानने से बड़े हुए हैं, वे ही ईश्वर की आज्ञा में रहकर उन्नति करते और आनन्दभोगते हैं ॥२४-२६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २४-२६−(सः) व्रात्यःपरमात्मा (अन्तर्देशान्) मध्यदेशान् (तम्) व्रात्यम् (प्रजापतिः) प्रजापालकोराजा (परमेष्ठी) उच्चपदस्थ आचार्यः संन्यासी वा (पिता) जनकः (पितामहः) पितुःपिता। अन्यत् पूर्ववद् यथोचितं योजनीयं च ॥