००४

००४ ...{Loading}...

Whitney subject
  1. Paryāya the fourth.
VH anukramaṇī

१-१८ अथर्वा। अध्यात्मं, व्रात्यः। १, १३, १६ दैवी जगती; ४, ७, १० प्राजापत्या गायत्री; २,
८ आर्ची अनुष्टुप्; ३, १२ द्विपदा प्राजापत्या जगती; ५ प्राजापत्या पङ्क्तिः, ६ आर्ची गायत्री,
९ भौमार्ची त्रिष्टुप्, ११ साम्नी त्रिष्टुप्, १४ प्राजापत्या बृहती; १५, १८ द्विपदाऽर्ची पङ्क्तिः १७ आर्ची उष्णिक्।

Whitney anukramaṇī

[dvyūnā viṅśati. a of 1, 5, 6. dāivī jagatī; a. of 2, 3, 4. pājāpatyā gāyatrī; 1 b, 3 b. ārcy anuṣṭubh; 1 c, 4 c. 2-p. prājāpatyā jagatī; 2 b. prājāpatyā pan̄kti; 2 c. ārcī jagatī; 3 c. bhāumārcī⌊?⌋ triṣṭubh; 4 b. sāmnī triṣṭubh; 5 b. prājāpatyā bṛhatī; 5 c, 6 c. 2-p. ārcī pan̄kti; 6 b. ārcy uṣṇih.]

Whitney

Comment

[dvyūnā viṅśati. a of 1, 5, 6. dāivī jagatī; a. of 2, 3, 4. pājāpatyā gāyatrī; 1 b, 3 b. ārcy anuṣṭubh; 1 c, 4 c. 2-p. prājāpatyā jagatī; 2 b. prājāpatyā pan̄kti; 2 c. ārcī jagatī; 3 c. bhāumārcī⌊?⌋ triṣṭubh; 4 b. sāmnī triṣṭubh; 5 b. prājāpatyā bṛhatī; 5 c, 6 c. 2-p. ārcī pan̄kti; 6 b. ārcy uṣṇih.]

Griffith

Vratya

०१ तस्मै प्राच्यादिशः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

तस्मै॒ प्राच्या॑दि॒शः ॥

०१ तस्मै प्राच्यादिशः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. ⌊1.⌋ For him, from the eastern quarter, ⌊2.⌋ they made the two spring
    months guardians, and bṛhát and rathaṁtará attendants. ⌊3.⌋ The two
    spring months guard from the eastern quarter, and bṛhát and
    rathaṁtará attend (anu-sthā), him who knoweth thus.
Notes

The subdivisions of verses ⌊see page 772, ¶ 2 above⌋ acknowledged by the
Anukr. in this hymn are those marked by the mss. and edition; 1 a
has one syllable less than belongs to it by the definition (and so also
1 b, but there is no name* for a division containing 23 syllables).
In b is to be read in all the verses ákurvan, with the mss. The
Pet Lexx. render anuṣṭhātṛ́ by ‘accomplisher,’ which does not suit well
with anu-sthā in c. *⌊That is, no express name: gāyatrī nicṛt
is a description by reference to another metrical unity.⌋

Griffith

For him they made the two Spring months protectors from the eastern region, and Brihat and Rathantara superintendents. The two Spring months protect from the eastern region, and Brihat and Rathantara superintend, the man who possesses this knowledge. For him they made the two Summer months pro- tectors from the southern region, and Yajnayajniya and Vamadevya superintendents. The two Summer months, etc. as in Verse 1,

पदपाठः

तस्मै॑। प्राच्याः॑। दि॒शः। ४.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • दैवी जगती
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्मै) उस [विद्वान्]के लिये (प्राच्याः) पूर्व (दिशः) दिशा से ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग निश्चयकरके मानते हैं कि जो मनुष्य परमात्मा में विश्वास करता है, वह पुरुषार्थी जनपूर्वादि दिशाओं और वसन्त आदि ऋतुओं में सुरक्षित रहता है ॥१-३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(तस्मै) विदुषे जनाय (प्राच्याः) पूर्वायाः (दिशः) दिक्सकाशात् ॥

०२ वासन्तौ मासौगोप्तारावकुर्वन्बृहच्च

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

वा॑स॒न्तौ मासौ॑गो॒प्तारा॒वकु॑र्वन्बृ॒हच्च॑ रथन्त॒रं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥

०२ वासन्तौ मासौगोप्तारावकुर्वन्बृहच्च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. ⌊4.⌋ For him, from the southern quarter, ⌊5.⌋ they made the two
    summer months guardians, and yajñāyajñíya and vāmadevyá attendants.
    ⌊6.⌋ The two summer months guard from the southern quarter, and
    yajñājñíya and vāmadevyá attend, him who knoweth thus.
Notes
Griffith

वा॒स॒न्तौ मासौ॑ गो॒प्तारा॒वकु॑र्वन् बृ॒हच्च॑ रथंत॒रं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥२॥

पदपाठः

वा॒स॒न्तौ। मासौ॑। गो॒प्तारौ॑। अकु॑र्वन्। बृ॒हत्। च॒। र॒थ॒म्ऽत॒रम्। च॒। अ॒नु॒ऽस्था॒तारौ॑। ४.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आर्ची अनुष्टुप्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वासन्तौ) वसन्तऋतुवाले [चैत्र-वैशाख] (मासौ) दो महीनों को (गोप्तारौ) दो रक्षक (अकुर्वन्) उन [विद्वानों] ने बनाया, (बृहत्) बृहत् [बड़े आकाश] (च च) और (रथन्तरम्) रथन्तर [रमणीय गुणों द्वारा पार होने योग्य जगत्] को (अनुष्ठातारौ) दो अनुष्ठाता [साथरहनेवाला वा विहित कार्यसाधक] [बनाया] ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग निश्चयकरके मानते हैं कि जो मनुष्य परमात्मा में विश्वास करता है, वह पुरुषार्थी जनपूर्वादि दिशाओं और वसन्त आदि ऋतुओं में सुरक्षित रहता है ॥१-३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(वासन्तौ)वसन्तसम्बन्धिनौ चैत्रवैशाखौ (मासौ) (गोप्तारौ) रक्षकौ (अकुर्वन्) ते विद्वांसःकृतवन्तः (बृहत्) प्रवृद्धमाकाशम् (च) (रथन्तरम्) रमणीयगुणैस्तरणीयं जगत् (च) (अनुष्ठातारौ) सहवर्तमानौ। विहितकर्मसाधकौ ॥

०३ वासन्तावेनम्मासौ प्राच्या

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

वा॑स॒न्तावे॑नं॒मासौ॒ प्राच्या॑ दि॒शो गो॑पायतो बृ॒हच्च॑ रथन्त॒रं चानु॑ तिष्ठतो॒ य ए॒वं वेद॑॥

०३ वासन्तावेनम्मासौ प्राच्या ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. ⌊7.⌋ For him, from the western quarter, ⌊8.⌋ they made the two rainy
    months guardians, and vāirūpá and vāirājá attendants. ⌊9.⌋ The two
    rainy months guard from the western quarter, and vāirūpá and vāirājá
    attend, him who knoweth thus.
Notes

The Anukr. implies in a pratī́ci-ās. For c, the definition
bhāumārcī ⌊so the Berlin ms. and SPP’s excerpts in his Critical
Notice, p. 22⁴⌋ is elsewhere unknown, and appears to be equivalent to
simple ārcī.

Griffith

They made the two Rain months, his protectors from the western region, and Vairupa and Vairaja superintendents. The two Rain months, etc. as above.

पदपाठः

वा॒स॒न्तौ। ए॒न॒म्। मासौ॑। प्राच्याः॑। दि॒शः। गो॒पा॒य॒तः॒। बृ॒हत्। च॒। र॒थ॒म्ऽत॒रम्। च॒। अनु॑। ति॒ष्ठ॒तः॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • द्विपदा प्राजापत्या जगती
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वासन्तौ) वसन्तऋतुवाले (मासौ) दो महीने (प्राच्याः दिशः) पूर्व दिशा से (एनम्) उस [विद्वान्]की (गोपायतः) रक्षा करते हैं, [और दोनों] (बृहत्) बृहत् [बड़ा आकाश] (च च) और (रथन्तरम्) रथन्तर [रमणीय गुणों द्वारा पार होने योग्य जगत्] [उसके लिये] (अनुतिष्ठतः) विहित कार्य करते हैं, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) व्यापक [व्रात्यपरमात्मा] को (वेद) जानता है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग निश्चयकरके मानते हैं कि जो मनुष्य परमात्मा में विश्वास करता है, वह पुरुषार्थी जनपूर्वादि दिशाओं और वसन्त आदि ऋतुओं में सुरक्षित रहता है ॥१-३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(एनम्)विद्वांसम् (गोपायतः) रक्षतः (अनुतिष्ठतः) सहवर्तेते। विहितकर्म कुरुतः (यः)विद्वान् (एवम्) इण् गतौ-वन्। व्यापकं व्रात्यं परमात्मानम् (वेद) जानाति। अन्यत्पूर्ववत्-म० १, २ ॥

०४ तस्मैदक्षिणाया दिशः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

तस्मै॒दक्षि॑णाया दि॒शः ॥

०४ तस्मैदक्षिणाया दिशः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. ⌊10.⌋ For him, from the northern quarter, ⌊11.⌋ they made the two
    autumn months guardians, and śyāitá and nāudhasá attendants. ⌊12.⌋
    The two autumn months guard from the northern quarter, and śyāitá and
    nāudhasá attend, him who knoweth thus.
Notes

Here again (as in 2. 4), the mss. vary between śyāitá and śāitá in
b and c, but Bp. this time has śyāi-.

Griffith

They made the two Autumn months his protectors from the northern region, and Syaita and Naudhasa superintendents. The two Autumn months. etc. as above.

पदपाठः

तस्मै॑। दक्षि॑णायाः। दि॒शः। ४.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राजापत्या गायत्री
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्मै) उस [विद्वान्]के लिये (दक्षिणायाः दिशः) दक्षिण दिशा से ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥४-६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४-स्पष्टम् ॥

०५ ग्रैष्मौ मासौगोप्तारावकुर्वन्यज्ञायज्ञियम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ग्रैष्मौ॒ मासौ॑गो॒प्तारा॒वकु॑र्वन्यज्ञाय॒ज्ञियं॑ च वामदे॒व्यं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥

०५ ग्रैष्मौ मासौगोप्तारावकुर्वन्यज्ञायज्ञियम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. ⌊13.⌋ For him, from the fixed quarter, ⌊14.⌋ they made the two winter
    months guardians, and earth and fire attendants. ⌊15.⌋ The two winter
    months guard from the fixed quarter, and earth and fire attend, him who
    knoweth thus.
Notes
Griffith

They made the two Winter months his protectors from the region of the nadir, and earth and Agni superintendents. The two Winter months, etc.

पदपाठः

ग्रैष्मौ॑। मासौ॑। गो॒प्तारौ॑। अकु॑र्वन्। य॒ज्ञा॒य॒ज्ञिय॑म्। च॒। वा॒म॒ऽदे॒व्यम्। च॒। अ॒नु॒ऽस्था॒तारौ॑। ४.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राजापत्या पङ्क्ति
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ग्रैष्मौ) घामवाले [ज्येष्ठ-आषाढ़] (मासौ) दो महीनों को (गोप्तारौ) दो रक्षक (अकुर्वन्) उन [विद्वानों] ने बनाया, (यज्ञायज्ञियम्) सब यज्ञों के हितकारी [वेदज्ञान] को (चच) और (वामदेव्यम्) वामदेव [श्रेष्ठ परमात्मा] से जताये गये [भूतपञ्चक] को (अनुष्ठातारौ) दो अनुष्ठाता [साथ रहनेवाले वा कार्यसाधक] [बनाया] ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥४-६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५, ६−(ग्रैष्मौ)ग्रीष्म-अण्। निदाघसम्बन्धिनौ ज्येष्ठाषाढौ (मासौ) (यज्ञायज्ञियम्)व्याख्यातम्-सू० ३ म० ५ (वामदेव्यम्) गतम्-सू० ३ म० ५। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०६ ग्रैष्मावेनम्मासौ दक्षिणाया

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ग्रैष्मा॑वेनं॒मासौ॒ दक्षि॑णाया दि॒शो गो॑पायतो यज्ञाय॒ज्ञियं॑ च वामदे॒व्यं चानु॑ तिष्ठतो॒ यए॒वं वेद॑ ॥

०६ ग्रैष्मावेनम्मासौ दक्षिणाया ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. ⌊16.⌋ For him, from the upward quarter, ⌊17.⌋ they made the two cool
    months guardians, and heaven and Āditya attendants. ⌊18.⌋ The two cool
    months guard from the upward quarter, and heaven and Āditya attend, him
    who knoweth thus.
Notes
Griffith

They made the two Dewy months his protectors from the region of the zenith, and Heaven and the Adityas superintendents. The two Dewy months, etc.

पदपाठः

ग्रैष्मौ॑। ए॒न॒म्। मासौ॑। दक्षि॑णायाः। दि॒शः। गो॒पा॒य॒तः॒। य॒ज्ञा॒य॒ज्ञिय॑म्। च॒। वा॒म॒ऽदे॒व्यम्। च॒। अनु॑। ति॒ष्ठ॒तः॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आर्ची जगती
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ग्रैष्मौ) घामवाले (मासौ) दो महीने (दक्षिणायाः दिशः) दक्षिण दिशा से (एनम्) उस [विद्वान्] की (गोपायतः) रक्षा करते हैं, (च) और [दोनों] (यज्ञायज्ञियम्) सब यज्ञों का हितकारी [वेदज्ञान] (च) और (वामदेव्यम्) वामदेव [श्रेष्ठ परमात्मा] करके जताया गया [भूतपञ्चक] [उसके लिये] (अनुतिष्ठतः) विहित कर्म करते हैं, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) व्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥४-६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५, ६−(ग्रैष्मौ)ग्रीष्म-अण्। निदाघसम्बन्धिनौ ज्येष्ठाषाढौ (मासौ) (यज्ञायज्ञियम्)व्याख्यातम्-सू० ३ म० ५ (वामदेव्यम्) गतम्-सू० ३ म० ५। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०७ तस्मैप्रतीच्या दिशः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

तस्मै॑प्र॒तीच्या॑ दि॒शः ॥

०७ तस्मैप्रतीच्या दिशः ...{Loading}...

Whitney

तस्मै॑ प्र॒तीच्या॑ दि॒शः ॥७॥

Griffith

तस्मै॑ प्र॒तीच्या॑ दि॒शः ॥७॥

पदपाठः

तस्मै॑। प्र॒तीच्याः॑। दि॒शः। ४.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राजापत्या गायत्री
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्मै) उस [विद्वान्]के लिये (प्रतीच्याः दिशः) पश्चिमी दिशा से ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥७-९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(तस्मै) विदुषे (प्रतीच्याः) पश्चिमायाः (दिशः) ॥

०८ वार्षिकौ मासौगोप्तारावकुर्वन्वैरूपम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

वार्षि॑कौ॒ मासौ॑गो॒प्तारा॒वकु॑र्वन्वैरू॒पं च॑ वैरा॒जं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥

०८ वार्षिकौ मासौगोप्तारावकुर्वन्वैरूपम् ...{Loading}...

Whitney

वार्षि॑कौ॒ मासौ॑ गो॒प्तारा॒वकु॑र्वन् वैरू॒पं च॑ वैरा॒जं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥८॥

Griffith

वार्षि॑कौ॒ मासौ॑ गो॒प्तारा॒वकु॑र्वन् वैरू॒पं च॑ वैरा॒जं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥८॥

पदपाठः

वार्षि॑कौ। मासौ॑। गो॒प्तारौ॑। अकु॑र्वन्। वै॒रू॒पम्। च॒। वै॒रा॒ज॒म्। च॒। अ॒नु॒ऽस्था॒तारौ॑। ४.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आर्ची अनुष्टुप्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वार्षिकौ) वर्षावाले [श्रावण-भाद्र] (मासौ) दो महीनों को (गोप्तारौ) दो रक्षक (अकुर्वन्) उन [विद्वानों] ने बनाया, (च) और (वैरूपम्) वैरूप [विविध पदार्थों के जतानेवाले वेदज्ञान] को (च) और (वैराजम्) वैराज [विराट् रूप अर्थात् बड़े ऐश्वर्यवान् वाप्रकाशमान परमात्मा के स्वरूप के प्राप्त करानेवाले मोक्षज्ञान] को (अनुष्ठातारौ) दो अनुष्ठाता [साथ रहनेवाले वा विहित कर्मसाधक] ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥७-९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८, ९−(वार्षिकौ)वर्षा-ठञ्। वर्षासम्बन्धिनौ श्रावणभाद्रौ (वैरूपम्) सू० २।१६। पदार्थानां रूपंनिरूपणं यस्मात् तद् वेदज्ञानम् (वैराजम्) सू० २।१६। विराड्रूपस्य ऐश्वर्यवतःप्रकाशमानस्य वा परमात्मस्वरूपस्य प्रतिपादकं मोक्षज्ञानम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०९ वार्षिकावेनम्मासौ प्रतीच्या

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

वार्षि॑कावेनं॒मासौ॑ प्र॒तीच्या॑ दि॒शो गो॑पायतो वैरू॒पं च॑ वैरा॒जं चानु॑ तिष्ठतो॒ य ए॒वंवेद॑ ॥

०९ वार्षिकावेनम्मासौ प्रतीच्या ...{Loading}...

Whitney

वार्षि॑कावेनं॒ मासौ॑ प्र॒तीच्या॑ दि॒शो गो॑पायतो वैरू॒पं च॑ वैरा॒जं चानु॑ तिष्ठतो॒ य ए॒वं वेद॑ ॥९॥

Griffith

वार्षि॑कावेनं॒ मासौ॑ प्र॒तीच्या॑ दि॒शो गो॑पायतो वैरू॒पं च॑ वैरा॒जं चानु॑ तिष्ठतो॒ य ए॒वं वेद॑ ॥९॥

पदपाठः

वार्षि॑कौ। ए॒न॒म्। मासौ॑। प्र॒तीच्याः॑। दि॒शः। गो॒पा॒य॒तः॒। वै॒रू॒पम्। च॒। वै॒रा॒जम्। च॒। अनु॑। ति॒ष्ठ॒तः॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आर्ची त्रिष्टुप्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वार्षिकौ) वर्षावाले (मासौ) दोनों महीने (प्रतीच्याः दिशः) पश्मिमी दिशा से (एनम्) उस [विद्वान्] की (गोपायतः) रक्षा करते हैं, (च) और [दोनों] (वैरूपम्) वैरूप [विविध पदार्थों काजतानेवाला वेदज्ञान] (च) और (वैराजम्) वैराज [विराट् रूप अर्थात् बड़ेऐश्वर्यवान् वा प्रकाशमान परमात्मा का स्वरूप प्राप्त करानेवाला मोक्षज्ञान] [उसके लिये] (अनु तिष्ठतः) विहित कर्म करते हैं, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्)व्यापक [व्रात्यपरमात्मा] को (वेद) जानता है ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥७-९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८, ९−(वार्षिकौ)वर्षा-ठञ्। वर्षासम्बन्धिनौ श्रावणभाद्रौ (वैरूपम्) सू० २।१६। पदार्थानां रूपंनिरूपणं यस्मात् तद् वेदज्ञानम् (वैराजम्) सू० २।१६। विराड्रूपस्य ऐश्वर्यवतःप्रकाशमानस्य वा परमात्मस्वरूपस्य प्रतिपादकं मोक्षज्ञानम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१० तस्मा उदीच्यादिशः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

तस्मा॒ उदी॑च्यादि॒शः ॥

१० तस्मा उदीच्यादिशः ...{Loading}...

Whitney

तस्मा॒ उदी॑च्या दि॒शः ॥१०॥

Griffith

तस्मा॒ उदी॑च्या दि॒शः ॥१०॥

पदपाठः

तस्मै॑। उदी॑च्याः। दि॒शः। ४.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राजापत्या गायत्री
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्मै) उस [विद्वान्]के लिये (उदीच्याः दिशः) उत्तरवाली दिशा से ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥१०-–१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(उदीच्याः)उत्तरायाः। अन्यद्गतम् ॥

११ शारदौ मासौगोप्तारावकुर्वञ्छ्यैतम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शा॑र॒दौ मासौ॑गो॒प्तारा॒वकु॑र्वञ्छ्यै॒तं च॑ नौध॒सं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥

११ शारदौ मासौगोप्तारावकुर्वञ्छ्यैतम् ...{Loading}...

Whitney

शा॒र॒दौ मासौ॑ गो॒प्तारा॒वकु॑र्वंछ्यै॒तं च॑ नौध॒सं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥११॥

Griffith

शा॒र॒दौ मासौ॑ गो॒प्तारा॒वकु॑र्वंछ्यै॒तं च॑ नौध॒सं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥११॥

पदपाठः

शा॒र॒दौ। मासौ॑। गो॒प्तारौ॑। अकु॑र्वन्। श्यै॒तम्। च॒। नौ॒ध॒सम्। च॒। अ॒नु॒ऽस्था॒तारौ॑। ४.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • साम्नी त्रिष्टुप्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शारदौ) शरद् ऋतुवाले [आश्विन-कार्तिक] (मासौ) दो महीनों को (गोप्तारौ) दो रक्षक (अकुर्वन्) उन [विद्वानों] ने बनाया, (च) और (श्यैतम्) श्यैत [सद्गति बतानेवाले वेदज्ञान] को (च) और (नौधसम्) नौधस [ऋषियों के हितकारी मोक्षज्ञान] को (अनुष्ठातारौ) दोअनुष्ठाता [साथ रहनेवाले वा कार्यसाधक] [बनाया] ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥१०-–१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११, १२−(शारदौ) शरत्सम्बन्धिनावाश्विनकार्त्तिकौ (श्यैतम्) सू० २।२२। श्येत-अण्। श्येतस्य सद्गतेःप्रतिपादकं वेदज्ञानम् (नौधसम्) सू० २।२२। नोधस्-अण्। नोधसाम् ऋषीणां हितकरंमोक्षज्ञानम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१२ शारदावेनम्मासावुदीच्या दिशो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शा॑र॒दावे॑नं॒मासा॒वुदी॑च्या दि॒शो गो॑पायतः श्यै॒तं च॑ नौध॒सं चानु॑ तिष्ठतो॒ य ए॒वं वेद॑॥

१२ शारदावेनम्मासावुदीच्या दिशो ...{Loading}...

Whitney

शा॒र॒दावे॑नं॒ मासा॒वुदी॑च्या दि॒शो गो॑पायतः श्यै॒तं च॑ नौध॒सं चानु॑ तिष्ठतो॒ य ए॒वं वेद॑ ॥१२॥

Griffith

शा॒र॒दावे॑नं॒ मासा॒वुदी॑च्या दि॒शो गो॑पायतः श्यै॒तं च॑ नौध॒सं चानु॑ तिष्ठतो॒ य ए॒वं वेद॑ ॥१२॥

पदपाठः

शा॒र॒दौ। ए॒न॒म्। मासौ॑। उदी॑च्याः। दि॒शः। गो॒पा॒य॒तः॒। श्यै॒तम्। च॒। नौ॒ध॒सम्। च॒। अनु॑। ति॒ष्ठ॒तः॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • द्विपदा प्राजापत्या जगती
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शारदौ) शरद् ऋतुवाले (मासौ) दो महीने (उदीच्याः दिशः) उत्तरवाली दिशा से (एनम्) उस [विद्वान्] की (गोपायतः) रक्षा करते हैं, (च) और [दोनों] (श्यैतम्) श्यैत् [सद्गति बतानेवाला, वेदज्ञान] (च) और (नौधसम्) नौधस [ऋषियों का हितकारी मोक्षज्ञान] [उसके लिये] (अनु तिष्ठतः) विहित कर्म करते हैं, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) व्यापक [व्रात्यपरमात्मा] को (वेद) जानता है ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥१०-–१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११, १२−(शारदौ) शरत्सम्बन्धिनावाश्विनकार्त्तिकौ (श्यैतम्) सू० २।२२। श्येत-अण्। श्येतस्य सद्गतेःप्रतिपादकं वेदज्ञानम् (नौधसम्) सू० २।२२। नोधस्-अण्। नोधसाम् ऋषीणां हितकरंमोक्षज्ञानम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१३ तस्मैध्रुवाया दिशः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

तस्मै॑ध्रु॒वाया॑ दि॒शः ॥

१३ तस्मैध्रुवाया दिशः ...{Loading}...

Whitney

तस्मै॑ ध्रु॒वाया॑ दि॒शः ॥१३॥

Griffith

तस्मै॑ ध्रु॒वाया॑ दि॒शः ॥१३॥

पदपाठः

तस्मै॑। ध्रु॒वायाः॑। दिशः॑। ४.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • दैवी जगती
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्मै) उस [विद्वान्]के लिये (ध्रुवायाः दिशः) नीची दिशा से ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥१३-१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(तस्मै) (ध्रुवायाः) अधोभवायाः (दिशः) ॥१३॥

१४ हैमनौ मासौगोप्तारावकुर्वन्भूमिम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

है॑म॒नौ मासौ॑गो॒प्तारा॒वकु॑र्व॒न्भूमिं॑ चा॒ग्निं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥

१४ हैमनौ मासौगोप्तारावकुर्वन्भूमिम् ...{Loading}...

Whitney

है॒म॒नौ मासौ॑ गो॒प्तारा॒वकु॑र्व॒न् भूमिं॑ चा॒ग्निं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥१४॥

Griffith

है॒म॒नौ मासौ॑ गो॒प्तारा॒वकु॑र्व॒न् भूमिं॑ चा॒ग्निं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥१४॥

पदपाठः

है॒म॒नौ। मासौ॑। गो॒प्तारौ॑। अकु॑र्वन्। भूमि॑म्। च॒। अ॒ग्निम्। च॒। अ॒नु॒ऽस्था॒तारौ॑। ४.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राजापत्या बृहती
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (हैमनौ) शीतवाले [अग्रहायण-पौष] (मासौ) दो महीनों को (गोप्तारौ) दो रक्षक (अकुर्वन्) उन [विद्वानों] ने बनाया, (भूमिम्) भूमि (च च) और (अग्निम्) अग्नि [भौतिक अग्नि] को (अनुष्ठातारौ) दो अनुष्ठाता [साथ रहनेवाले वा कार्यसाधक] [बनाया] ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥१३-१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४, १५−(हैमनौ)सर्वत्राण् च तलोपश्च। पा० ४।३।२२। हेमन्त-अण्, तलोपः। शीतसम्बन्धिनौ।आग्रहायणपौषौ (भूमिम्) पृथिवीम् (अग्निम्) भौतिकाग्निम्। अन्यद् गतम् ॥

१५ हैमनावेनम्मासौ ध्रुवाया

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

है॑म॒नावे॑नं॒मासौ॑ ध्रु॒वाया॑ दि॒शो गो॑पायतो॒ भूमि॑श्चा॒ग्निश्चानु॑ तिष्ठतो॒ य ए॒वं वेद॑॥

१५ हैमनावेनम्मासौ ध्रुवाया ...{Loading}...

Whitney

है॒म॒नावे॑नं॒ मासौ॑ ध्रु॒वाया॑ दि॒शो गो॑पायतो॒ भूमि॑श्चा॒ग्निश्चानु॑ तिष्ठतो॒ य ए॒वं वेद॑ ॥१५॥

Griffith

है॒म॒नावे॑नं॒ मासौ॑ ध्रु॒वाया॑ दि॒शो गो॑पायतो॒ भूमि॑श्चा॒ग्निश्चानु॑ तिष्ठतो॒ य ए॒वं वेद॑ ॥१५॥

पदपाठः

है॒म॒नौ। ए॒न॒म्। मासौ॑। ध्रु॒वायाः॑। दि॒शः। गो॒पा॒य॒तः॒। भूमिः॑। च॒। अग्निः॑। च॒। अनु॑। ति॒ष्ठ॒तः॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • द्विपदार्ची पङ्क्ति
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (हैमनौ) शीतवाले (मासौ) दो महीने (ध्रुवायाः दिशः) नीची दिशा से (एनम्) उस [विद्वान्] की (गोपायतः) रक्षा करते हैं, (च) और [दोनों] (भूमिः) भूमि (च) और (अग्निः) अग्नि [उसके लिये] (अनु तिष्ठतः) विहित कर्म करते हैं, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्)व्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥१३-१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४, १५−(हैमनौ)सर्वत्राण् च तलोपश्च। पा० ४।३।२२। हेमन्त-अण्, तलोपः। शीतसम्बन्धिनौ।आग्रहायणपौषौ (भूमिम्) पृथिवीम् (अग्निम्) भौतिकाग्निम्। अन्यद् गतम् ॥

१६ तस्माऊर्ध्वाया दिशः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

तस्मा॑ऊ॒र्ध्वाया॑ दि॒शः ॥

१६ तस्माऊर्ध्वाया दिशः ...{Loading}...

Whitney

तस्मा॑ ऊ॒र्ध्वाया॑ दि॒शः ॥१६॥

Griffith

तस्मा॑ ऊ॒र्ध्वाया॑ दि॒शः ॥१६॥

पदपाठः

तस्मै॑। ऊ॒र्ध्वायाः॑। दि॒शः। ४.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • दैवी जगती
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्मै) उस [विद्वान्]के लिये (ऊर्ध्वायाः दिशः) ऊँची दिशा से ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥१६-१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६−(तस्मै) (ऊर्ध्वायाः) उन्नतायाः ॥

१७ शैशिरौ मासौगोप्तारावकुर्वन्दिवम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शै॑शि॒रौ मासौ॑गो॒प्तारा॒वकु॑र्व॒न्दिवं॑ चादि॒त्यं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥

१७ शैशिरौ मासौगोप्तारावकुर्वन्दिवम् ...{Loading}...

Whitney

शै॒शि॒रौ मासौ॑ गो॒प्तारा॒वकु॑र्व॒न् दिवं॑ चादि॒त्यं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥१७॥

Griffith

शै॒शि॒रौ मासौ॑ गो॒प्तारा॒वकु॑र्व॒न् दिवं॑ चादि॒त्यं चा॑नुष्ठा॒तारौ॑ ॥१७॥

पदपाठः

शै॒शि॒रौ। मासौ॑। गो॒प्तारौ॑। अकु॑र्वन्। दिव॑म्। च॒। आ॒दि॒त्यम्। च॒। अ॒नु॒ऽस्था॒तारौ॑। ४.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आर्ची उष्णिक्
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शैशिरौ) शिशिरवाले [पतझड़वाले, माघ-फाल्गुन] (मासौ) दो महीनों को (गोप्तारौ) दो रक्षक (अकुर्वन्)उन [विद्वानों] ने बनाया, (दिवम्) आकाश (च च) और (आदित्यम्) सूर्य को (अनुष्ठातारौ) दो अनुष्ठाता [साथ रहनेवाले वा कार्यसाधक] [बनाया] ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥१६-१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७, १८−(शिशिरौ) शिशिरअण्। शिशिरसम्बन्धिनौ माघफाल्गुनौ (दिवम्) आकाशम् (आदित्यम्) आदीप्यमानंसूर्यम्। अन्यद् गतम् ॥

१८ शैशिरावेनम्मासावूर्ध्वाया दिशो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शै॑शि॒रावे॑नं॒मासा॑वू॒र्ध्वाया॑ दि॒शो गो॑पायतो॒ द्यौश्चा॑दि॒त्यश्चानु॑ तिष्ठतो॒ य ए॒वं वेद॑॥

१८ शैशिरावेनम्मासावूर्ध्वाया दिशो ...{Loading}...

Whitney

शै॒शि॒रावे॑नं॒ मासा॑वू॒र्ध्वाया॑ दि॒शो गो॑पायतो॒ द्यौश्चा॑दि॒त्यश्चानु॑ तिष्ठतो॒ य ए॒वं वेद॑ ॥१८॥

Griffith

शै॒शि॒रावे॑नं॒ मासा॑वू॒र्ध्वाया॑ दि॒शो गो॑पायतो॒ द्यौश्चा॑दि॒त्यश्चानु॑ तिष्ठतो॒ य ए॒वं वेद॑ ॥१८॥

पदपाठः

शै॒शि॒रौ। ए॒न॒म्। मासौ॑। ऊ॒र्ध्वायाः॑। दि॒शः। गो॒पा॒य॒तः॒। द्यौः। च॒। आ॒दि॒त्यः। च॒। अनु॑। ति॒ष्ठ॒तः॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.१८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • द्विपदार्ची पङ्क्ति
  • अध्यात्म अथवा व्रात्य
  • अथर्वा
  • अध्यात्म प्रकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शैशिरौ) शिशिरवाले (मासौ) दोनों महीने (ऊर्ध्वायाः दिशः) ऊँची दिशा से (एनम्) उस [विद्वान्] की (गोपायतः) रक्षा करते हैं, (च) और [दोनों] (द्यौः) आकाश (च) और (आदित्यः) सूर्य [उसके लिये] (अनु तिष्ठतः) विहित कर्म करते हैं, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्)व्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १-३ के समान है॥१६-१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७, १८−(शिशिरौ) शिशिरअण्। शिशिरसम्बन्धिनौ माघफाल्गुनौ (दिवम्) आकाशम् (आदित्यम्) आदीप्यमानंसूर्यम्। अन्यद् गतम् ॥