००८ अध्यात्मम्

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Whitney subject
  1. Extolling the sun.
VH anukramaṇī

अध्यात्मम्।
४६ आसुरी गायत्री, ४७ यवमध्या गायत्री, ४८ साम्नी उष्णिक्, ४९ निचृत्साम्नी बृहती, ५० प्राजापत्याऽनुष्टुप्, ५१ विराड् गायत्री।

Whitney anukramaṇī

[Paryāya V.—ṣaṭ. 46. āsurī gāyatrī; 47. yavamadhyā gāyatrī; 48. sāmny uṣḥih; 49. nicṛt sāmnī bṛhatī; 50. prājāpatyā ’nuṣṭubh; 51. virāḍ gāyatrī.]

०१ भूयानिन्द्रो नमुराद्भूयानिन्द्रासि

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भूया॒निन्द्रो॑ नमु॒राद्भूया॑निन्द्रासि मृ॒त्युभ्यः॑ ॥

०१ भूयानिन्द्रो नमुराद्भूयानिन्द्रासि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. More is Indra than non-dying (??); more art thou, O Indra, than the
    deaths.
Notes

‘Non-dying’ is the conjecture of the Pet. Lexx. for namurá, which
occurs nowhere else; it is adopted here, simply for lack of anything
better, although in itself of a high degree of implausibility. ⌊Henry
also adopts it; but see his note, p. 54.⌋ It is surprising to find Indra
brought in here at the end for address, instead of the sun; there is
nothing to show that the two remaining paryāyas are not for him.
⌊Note, however, the praise of the sun under the names of Indra and
Viṣṇu, so prominent in book xvii., below: see page 805. Perhaps we have
here a similar identification.⌋

Griffith

भूया॒निन्द्रो॑ नमु॒राद् भूया॑निन्द्रासि मृ॒त्युभ्यः॑ ॥४६॥

पदपाठः

भूया॑न्। इन्द्रः॑। न॒मु॒रात्। भूया॑न्। इ॒न्द्र॒। अ॒सि॒। मृ॒त्युऽभ्यः॑। ८.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • आसुरी गायत्री
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे परमेश्वर !] (इन्द्रः) परम ऐश्वर्यवान् तू (नमुरात्) न मरनेवाले [नित्य परमारमाणु रूप जगत्] से (भूयान्) अधिक बलवान् है, (इन्द्र) हे परम ऐश्वर्यवाले ! तू (मृत्युभ्यः) मरणवालों से [अनित्य कार्यरूप जगत्] से (भूयान्) अधिक बलवान् (असि) है ॥४६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर दोनों प्रकार के नित्य धारणरूप और अनित्य कार्यरूप जगत् को अपने वश में रखता है ॥४६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४६−(भूयान्) अधिकतरो बलवान् (इन्द्रः) परमेश्वर्यवांस्त्वम् (नमुरात्) कप्रकरणे मूलविभुजादिभ्य उपसंख्यानम्। वा० पा० ३।˜२।५। मॄ हिंसायाम्, वेदे तु मरणे-क। उदोष्ठ्यपूर्वस्य। पा० ७।१।१०२। उत्वम्। अमरणस्वभावात् (भूयान्) (इन्द्र) (असि) (मृत्युभ्यः) मतुपो लोपः। मृत्युवद्भ्यः ॥

०२ भूयानरात्याः शच्याः

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भूया॒नरा॑त्याः॒ शच्याः॒ पति॒स्त्वमि॑न्द्रासि वि॒भूः प्र॒भूरिति॒ त्वोपा॑स्महे व॒यम् ॥

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Whitney
Translation
  1. More than the niggard, lord of strength (śácī) art thou, O Indra;
    as called mighty, prevailing, do we worship (upa-ās) thee.
Notes

Prāt. ii. 71 expressly forbids the combination śácyās p-, which we
should have expected here. The verse (9 + 8: 8 = 25) is strangely
defined by the Anukr.

Griffith

भूया॒नरा॑त्याः॒ शच्याः॒ पति॒स्त्वमि॑न्द्रासि वि॒भूः प्र॒भूरिति॒ त्वोपा॑स्महे व॒यम्॥४७॥

पदपाठः

भूया॑न्। अरा॑त्याः। शच्याः॑। पतिः॑। त्वम्। इ॒न्द्र॒। अ॒सि॒। वि॒ऽभूः। प्र॒ऽभूः। इति॑। त्वा॒। उप॑। आ॒स्म॒हे॒। व॒यम्। ८.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • यवमध्या गायत्री
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परम ऐश्वर्यवाले [परमात्मन् !] (त्वम्) तू (अरात्याः) शत्रु से (भूयान्) अधिक बलवान्, (शच्याः) वाणी, कर्म वा बुद्धि का (पतिः) पति, (विभूः) व्यापक और (प्रभूः) समर्थ (असि) है, (इति) इस प्रकार से (वयम्) हम (त्वा उप आस्महे) तेरी उपासना करते हैं ॥४७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि पूर्ण बली सर्वस्वामी जगदीश्वर की उपासना से आत्मबल बढ़ावें ॥४७॥मन्त्र ४७-५१ महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका उपासनाविषय पृ० १६०-१६१ में व्याख्यात हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४७−(भूयान्) अधिकतरो बली (अरात्याः) शत्रुसकाशात्, (शच्याः) शची वाङ्नाम-निघ० १।११। कर्मनाम−२।१। प्रजानाम−३।९। वाण्याः कर्मणो बुद्धेर्वा (पतिः) पालकः (त्वम्) (इन्द्रः) परमेश्वर्यवन् (असि) (विभूः) व्यापकः (प्रभूः) समर्थः (इति) अनेन प्रकारेण (त्वा) त्वाम् (उपास्महे) सेवामहे (वयम्) उपासकाः ॥

०३ नमस्ते अस्तु

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नम॑स्ते अस्तु पश्यत॒ पश्य॑ मा पश्यत ॥

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Whitney
Translation
  1. Homage be to thee, O conspicuous one (paśyata); see ⌊páśya⌋ me,
    O conspicuous one.
Notes

Paśyata is an anomalous and forced substitute for darśata, made in
this passage only, for assonance with paśya. The Anukr. ratifies the
combination te astu.

Griffith

नम॑स्ते अस्तु पश्यत॒ पश्य॑ मा पश्यत ॥४८॥

पदपाठः

नमः॑। ते॒। अ॒स्तु॒। प॒श्य॒त॒। पश्य॑। मा॒। प॒श्य॒त॒। ८.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • साम्न्युष्णिक्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पश्यत) हे देखनेवाले [जगदीश्वर !] (ते) तेरे लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे, (पश्यत) हे देखनेवाले ! (मा) मुझको (अन्नाद्येन) भोजन योग्य अन्न आदि के साथ, (यशसा) यश [शूरता आदि से पाये हुए नाम] के साथ, (तेजसा) तेज [निर्भयता, प्रताप] के साथ और (ब्राह्मणवर्चसा) वेदज्ञान के बल के साथ [पश्य] देख ॥४८, ४९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सर्वद्रष्टा परमात्मा की उपासना से पुरुषार्थ और विवेकपूर्वक सब आवश्यक पदार्थ पाकर आनन्द भोगें ॥४८, ४९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४८, ४९−(नमः) प्रणामः (ते) तुभ्यम् (अस्तु) (पश्यत) भृमृदृशियजि०। उ० ३।११०। दृशिर् दर्शने-अतच्, छन्दसि अशिति प्रत्ययेऽपि पश्यादेशः। हे दर्शत। सर्वदर्शक (पश्य) अवलोकय (मा) माम् (पश्यत) सर्वदर्शक (अन्नाद्येन) भक्षणीयेनान्नादिना (यशसा) शौर्यादिप्राप्तेन नाम्ना (तेजसा) निर्भयत्वेन प्रतापेन (ब्राह्मणवर्चसेन) वेदज्ञानबलेन ॥

०४ अन्नाद्येन यशसा

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अ॒न्नाद्ये॑न॒ यश॑सा॒ तेज॑सा ब्राह्मणवर्च॒सेन॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. With food-eating, with glory, with brilliancy (téjas), with
    Brahman-splendor;
Notes
Griffith

अ॒न्नाद्ये॑न॒ यश॑सा॒ तेज॑सा ब्राह्मणवर्च॒सेन॑ ॥४९॥

पदपाठः

अ॒न्न॒ऽअद्ये॑न। यश॑सा। तेज॑सा। ब्रा॒ह्म॒ण॒ऽव॒र्च॒सेन॑। ८.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • निचृत्साम्नी बृहती
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - मनुष्य सर्वद्रष्टा परमात्मा की उपासना से पुरुषार्थ और विवेकपूर्वक सब आवश्यक पदार्थ पाकर आनन्द भोगें ॥४८, ४९॥४८, ४९−(नमः) प्रणामः (ते) तुभ्यम् (अस्तु) (पश्यत) भृमृदृशियजि०। उ० ३।११०। दृशिर् दर्शने-अतच्, छन्दसि अशिति प्रत्ययेऽपि पश्यादेशः। हे दर्शत। सर्वदर्शक (पश्य) अवलोकय (मा) माम् (पश्यत) सर्वदर्शक (अन्नाद्येन) भक्षणीयेनान्नादिना (यशसा) शौर्यादिप्राप्तेन नाम्ना (तेजसा) निर्भयत्वेन प्रतापेन (ब्राह्मणवर्चसेन) वेदज्ञानबलेन ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सर्वद्रष्टा परमात्मा की उपासना से पुरुषार्थ और विवेकपूर्वक सब आवश्यक पदार्थ पाकर आनन्द भोगें ॥४८, ४९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४८, ४९−(नमः) प्रणामः (ते) तुभ्यम् (अस्तु) (पश्यत) भृमृदृशियजि०। उ० ३।११०। दृशिर् दर्शने-अतच्, छन्दसि अशिति प्रत्ययेऽपि पश्यादेशः। हे दर्शत। सर्वदर्शक (पश्य) अवलोकय (मा) माम् (पश्यत) सर्वदर्शक (अन्नाद्येन) भक्षणीयेनान्नादिना (यशसा) शौर्यादिप्राप्तेन नाम्ना (तेजसा) निर्भयत्वेन प्रतापेन (ब्राह्मणवर्चसेन) वेदज्ञानबलेन ॥

०५ अम्भो अमो

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अम्भो॒ अमो॒ महः॒ सह॒ इति॒ त्वोपा॑स्महे व॒यम् ॥

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Whitney
Translation
  1. As called water (? ámbhas), force (áma), greatness, power, do
    we worship thee.
Notes

The Anukr. ratifies the combination ámbho ámo. By a usage that is
rare, all the mss. omit in this verse ⌊what follows⌋ after íti,
although the repetition is not of the end of the next preceding verse,
but of vs. 47. Then, of course, the following verses are written in the
same curtailed way until vs. 54, which is filled out to the end.

Griffith

अम्भो॒ अमो॒ महः॒ सह॒ इति॒ त्वोपा॑स्महे व॒यम्। नम॑स्ते॰ । अ॒न्नाद्ये॑न॒॰ ॥५०॥

पदपाठः

अम्भः॑। अमः॑। महः॑। सहः॑। इति॑। त्वा॒। उप॑। आ॒स्म॒हे॒। व॒यम्। ८.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे परमात्मन् !] तू (अम्भः) व्यापक, (अमः) ज्ञानस्वरूप, (महः) पूज्य और (सहः) सहनस्वभाव [ब्रह्म] है, (इति) इस प्रकार से (वयम्) हम (त्वा उप आस्महे) तेरी उपासना करते हैं ॥५०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य शुद्ध अन्तःकरण से परमात्मा की उपासना करके उन्नति करें ॥५०॥इस मन्त्र से लेकर मन्त्र ५३ तक बम्बई गवर्नमेन्ट बुक डिपो और अजमेर वैदिक यन्त्रालय के पुस्तकों में मन्त्र के पीछे आवृत्ति का चिह्न देकर मन्त्र ४८ और ४९ की आवृत्ति मानी है, परन्तु अन्य पुस्तकों में आवृत्ति का चिह्न नहीं हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५०−(अम्भः) म० १४। आप्लृ व्याप्तौ-असुन्। व्यापकं ब्रह्म (अमः) अम गतौ-असुन्। ज्ञानस्वरूपम् (महः) पूजनीयम् (सहः) सहनशीलम्। अन्यत् पूर्ववत्-म० ४७ ॥

०६ अम्भो अरुणम्

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अम्भो॑ अरु॒णं र॑ज॒तं रजः॒ सह॒ इति॒ त्वोपा॑स्महे व॒यम् ॥

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Whitney
Translation
  1. As called water (ámbhas), red, silvery (rajatá), welkin
    (rájas), power, do we worship thee.
Notes

Again ⌊as at vs. 31⌋ we have a verse called virāḍ gāyatrī which lacks
four syllables of being 24.

[Paryāya VI.pañca. 52, 53. prājāpatyā ’nuṣṭubh; 54. 2-p. ārṣī
gāyatrī.
]

Griffith

अम्भो॑ अरु॒णं र॑ज॒तं रजः॒ सह॒ इति॒ त्वोपा॑स्महे व॒यम्। नम॑स्ते॰ । अ॒न्नाद्ये॑न॒॰॥५१॥

पदपाठः

अम्भः॑। अ॒रु॒णम्। र॒ज॒तम्। रजः॑। सहः॑। इति॑। त्वा॒। उप॑। आ॒स्म॒हे॒। व॒यम्। ८.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • विराड्गायत्री
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे परमेश्वर !] तू (अम्भः) व्यापक, (अरुणम्) ज्ञानस्वरूप, (रजतम्) प्रीति का हेतु आनन्दस्वरूप, (रजः) ज्योतिःस्वरूप और (सहः) सहनशील [ब्रह्म] है, (इति) इस प्रकार से (वयम्) हम (त्वा उप आस्महे) तेरी उपासना करते हैं ॥५१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग सर्वव्यापक सर्वज्ञ आदि परमेश्वर की उपासना बार-बार आदरपूर्वक कर के पुरुषार्थ करें ॥५१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५१−(अम्भः) म० ५०। व्यापकम् (अरुणम्) अर्त्तेश्च। उ० ३।६०। ऋ गतिप्रापणयोः-उनन्, चित्। ज्ञानस्वरूपम् (रजतम्) पृषिरञ्जिभ्यां कित्। उ० ३।१—११। रञ्ज रागे-अतच्, कित्। रजति प्रियं भवतीति रजतम्। प्रीतिहेतु। आनन्दस्वरूपम् (रजः) रञ्ज रागे-असुन्। रजो रजतेः, ज्योती रज उच्यते-निरु० ४।१९। तेजःस्वरूपं ब्रह्म। अन्यद् गतम् ॥