००७ अध्यात्मम्

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Whitney subject
  1. Extolling the sun.
VH anukramaṇī

अध्यात्मम्।
२९, ३३, ३९-४०, ४५ आसुरी गायत्री, ३०, ३२,३५-३६, ४२ प्राजापत्याऽनुष्टुप्, ३१ विराट् गायत्री, ३४ साम्नी उष्णिक्, ३७-३८ साम्नी उष्णिगनुष्टुप्, ४१ साम्नी बृहती, ४३ आर्षी गायत्री, ४४ साम्नी अनुष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Paryāya IV.—saptadaça. 29, 33, 39, 40, 45. āsurī gāyatrī; 30, 32, 35, 36, 42. prājāpatyā ’nuṣṭubh; 31. virāḍ gāyatrī; 34, 37, 38. sāmny uṣṇih; 41. sāmnī bṛhatī; 43. ārṣī gāyatrī; 44. sāmny anuṣṭubh.]

०१ स वा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

स वा अह्नो॑ऽजायत॒ तस्मा॒दह॑रजायत ॥

०१ स वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He verily was born of the day; of him the day was born.
Notes

The Anukr. unaccountably ratifies the elision áhno ‘j-, instead of
restoring aj- and recognizing the pāda for what it is, eight
syllables.

Griffith

स वा अह्नो॑ऽजायत॒ तस्मा॒दह॑रजायत ॥२९॥

पदपाठः

सः। वै। अह्नः॑। अ॒जा॒य॒त॒। तस्मा॑त्। अहः॑। अ॒जा॒य॒त॒। ७.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • आसुरी गायत्री
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [कारणरूप परमात्मा] (वै) अवश्य (अह्नः) [कार्यरूप] दिन से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [कारणरूप] से (अहः) [कार्यरूप] दिन (अजायत) उत्पन्न हुआ है ॥२९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - कार्यरूप जगत् को देखकर विद्वान् लोग निश्चय करते हैं कि सब दिन आदि सृष्टि का बनानेवाला सर्वशक्तिमान् अन्तर्यामी परमेश्वर है ॥२९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २९−(सः) कारणरूपः परमेश्वरः (वै) अवश्यम् (अह्नः) कार्यरूपाद् दिनात् (अजायत) प्रादुरभवत् (तस्मात्) कारणरूपात् (अहः) दिनम् (अजायत) उदपद्यत ॥

०२ स वै

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

स वै रात्र्या॑ अजायत॒ तस्मा॒द्रात्रि॑रजायत ॥

०२ स वै ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He verily was born of the night; of him the night was born.
Notes
Griffith

स वै रात्र्या॑ अजायत॒ तस्मा॒द् रात्रि॑रजायत ॥३०॥

पदपाठः

सः। वै। रात्र्याः॑। अ॒जा॒य॒त॒। तस्मा॑त्। रात्रिः॑। अ॒जा॒य॒त॒। ७.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [कारणरूप ईश्वर] (वै) अवश्य (रात्र्याः) [कार्यरूप] रात्रि से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [कारणरूप] से (रात्रिः) रात्रि (अजायत) उत्पन्न हुई है ॥३०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र २९ के समान है ॥३०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३०−(रात्र्याः) कार्यरूपाया निशायाः (रात्रिः) निशा। अन्यद् यथा म० २९ ॥

०३ स वा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

स वा अ॒न्तरि॑क्षादजायत॒ तस्मा॑द॒न्तरि॑क्षमजायत ॥

०३ स वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He verily was born of the atmosphere; of him the atmosphere was
    born.
Notes

The verse lacks four syllables, instead of two, of the twenty-four that
make a gāyatrī.

Griffith

स वा अ॒न्तरि॑क्षादजायत॒ तस्मा॑द॒न्तरि॑क्षमजायत ॥३१॥

पदपाठः

सः। वै। अ॒न्तरि॑क्षात्। अ॒जा॒य॒त॒। तस्मा॑त्। अ॒न्तर‍ि॑क्षम्। अ॒जा॒य॒त॒। ७.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • विराड्गायत्री
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [कारणरूप ईश्वर] (वै) अवश्य (अन्तरिक्षात्) [कार्यरूप] अन्तरिक्ष से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [कारणरूप] से (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष (अजायत) उत्पन्न हुआ है ॥३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र २९ के समान ॥३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३१−(अन्तरिक्षात्) कार्यरूपान्मध्यलोकात् (अन्तरिक्षम्)। अन्यद् गतम् ॥

०४ स वै

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स वै वा॒योर॑जायत॒ तस्मा॑द्वा॒युर॑जायत ॥

०४ स वै ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He verily was born of Vāyu (wind); of him Vāyu was born.
Notes
Griffith

स वै वा॒योर॑जायत॒ तस्मा॑द् वा॒युर॑जायत ॥३२॥

पदपाठः

सः। वै। वा॒योः। अ॒जा॒य॒त॒। तस्मा॑त्। वा॒युः। अ॒जा॒य॒त॒। ७.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [कारणरूप ईश्वर] (वै) अवश्य (वायोः) [कार्यरूप] पवन से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [कारणरूप] से (वायुः) पवन (अजायत) उत्पन्न हुआ है ॥३२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र २९ के समान ॥३२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३२−(वायोः) कार्यरूपात् पवनात् (वायुः) पवनः। अन्यद् गतम् ॥

०५ स वै

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स वै दि॒वो᳡जा॑यत॒ तस्मा॒द्द्यौरधि॑ अजायत ॥

०५ स वै ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He verily was born of the sky; out of him the sky was born.
Notes

Here again the Anukr. requires us to read divò ‘j-.

Griffith

स वै दि॒वोऽजायत॒ तस्मा॒द् द्यौरध्य॑जायत ॥३३॥

पदपाठः

सः। वै। दि॒वः। अ॒जा॒य॒त॒। तस्मा॑त्। द्यौः। अधि॑। अ॒जा॒य॒त॒। ७.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • आसुरी गायत्री
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [कारणरूप ईश्वर] (वै) अवश्य (दिवः) [कार्यरूप] सूर्य से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [कारणरूप] से (द्यौः) सूर्य (अधि) यथाविधि (अजायत) उत्पन्न हुआ है ॥३३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र २९ के समान ॥३३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३३−(दिवः) कार्यरूपात् सूर्यात् (द्यौः) सूर्यः (अधि) यथाविधि। अन्यद् गतम् ॥

०६ स वै

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

स वै दि॒ग्भ्यो᳡जा॑यत॒ तस्मा॒द्दिशो᳡जायन्त ॥

०६ स वै ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He verily was born of the quarters; of him the quarters were born.
Notes

Here we are to make both elisions, in a and b.

Griffith

स वै दि॒ग्भ्योऽजायत॒ तस्मा॒द् दिशोऽजायन्त ॥३४॥

पदपाठः

सः। वै। दि॒क्ऽभ्यः। अ॒जा॒य॒त॒। तस्मा॑त्। दिशः॑। अ॒जा॒य॒न्त॒। ७.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • साम्न्युष्णिक्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [कारणरूप ईश्वर] (वै) अवश्य (दिग्भ्यः) [कार्यरूप] दिशाओं से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [कारणरूप] से (दिशः) दिशाएँ (अजायत) उत्पन्न हुई हैं ॥३४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र २९ के समान ॥३४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३४−(दिग्भ्यः) कार्यरूपाभ्यो दिशाभ्यः (दिशः) दिशाः (अजायन्त) उदपद्यन्त। अन्यद् गतम् ॥

०७ स वै

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स वै भूमे॑रजायत॒ तस्मा॒द्भूमि॑रजायत ॥

०७ स वै ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He verily was born of the earth; of him the earth was born.
Notes

Nearly all our mss. (all save Bp.D.R.) accent bhūmés and bhūmís.

Griffith

स वै भूमे॑रजायत॒ तस्मा॒द् भूमि॑रजायत ॥३५॥

पदपाठः

सः। वै। भूमेः॑। अ॒जा॒य॒त॒। तस्मा॑त्। भूमिः॑। अ॒जा॒य॒त॒। ७.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [कारणरूप ईश्वर] (वै) अवश्य (भूमेः) [कार्यरूप] भूमि से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [कारणरूप] से (भूमिः) भूमि (अजायत) उत्पन्न हुई है ॥३५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र २९ के समान ॥३५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३५−(भूमेः) कार्यरूपायाः पृथिव्याः (भूमिः) पृथिवी। अन्यद् गतम् ॥

०८ स वा

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स वा अ॒ग्नेर॑जायत॒ तस्मा॑द॒ग्निर॑जायत ॥

०८ स वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He verily was born of fire; of him fire was born.
Notes
Griffith

स वा अ॒ग्नेर॑जायत॒ तस्मा॑द॒ग्निर॑जायत ॥३६॥

पदपाठः

सः। वै। अ॒ग्नेः। अ॒जा॒य॒त॒। तस्मा॑त्। अ॒ग्निः। अ॒जा॒य॒त॒। ७.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [कारणरूप ईश्वर] (वै) अवश्य (अग्नेः) [कार्यरूप] अग्नि से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [कारणरूप] से (अग्निः) अग्नि [सूर्य, बिजुली आदि तेज] (अजायत) उत्पन्न हुआ है ॥३६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र २९ के समान ॥३६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३६−(अग्नेः) कार्यरूपात् तेजसः (अग्निः) सूर्यविद्युदादि तेजः। अन्यद् गतम् •॥

०९ स वा

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स वा अ॒द्भ्यो᳡जा॑यत॒ तस्मा॒दापो॑ऽजायन्त ॥

०९ स वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He verily was born of the waters; of him the waters were born.
Notes

The metrical description is the same as that of vs. 34, and with the
same lack of good reason (the mss. read sa vā adbhya ṛgbhyaḥ
sāmnyuṣṇiganuṣṭubhāu
, which is senseless, and should doubtless be
emended to -uṣṇihāu).

Griffith

स वा अ॒द्भ्योऽजायत॒ तस्मा॒दापो॑ऽजायन्त ॥३७॥

पदपाठः

सः। वै। अ॒त्ऽभ्यः। अ॒जा॒य॒त॒। तस्मा॑त्। आपः॑। अ॒जा॒य॒न्‍त॒। ७.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • साम्न्युष्णिक्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [कारणरूप ईश्वर] (वै) अवश्य (अद्भ्यः) [कार्यरूप] जल से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [कारणरूप] से (आपः) जल [वृष्टि नदी कूप आदि] (अजायत) उत्पन्न हुए हैं ॥३७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र २९ के समान है ॥३७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३७−(अद्भ्यः) जलेभ्यः (आपः) वृष्टिनदीकूपादीनां जलानि। अन्यद् गतम् ॥

१० स वा

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स वा ऋ॒ग्भ्यो᳡जा॑यत॒ तस्मा॒दृचो॑ऽजायन्त ॥

१० स वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He verily was born of the verses (ṛ́c); of him the verses were
    born.
Notes

As to the meter, see the note to the preceding verse.

Griffith

स वा ऋ॒ग्भ्योऽजायत॒ तस्मा॒दृचो॑ऽजायन्त ॥३८॥

पदपाठः

सः। वै। ऋ॒क्ऽभ्यः। अ॒जा॒य॒त॒। तस्मा॑त्। ऋचः॑। अ॒जा॒य॒न्त॒। ७.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • साम्न्युष्णिक्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [परमात्मा] (वै) अवश्य (ऋग्भ्यः) ऋचाओं [स्ततियोग्य वेदवाणियों] से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [परमात्मा] से (ऋचः) ऋचाएँ (अजायन्त) उत्पन्न हुई हैं ॥३८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमात्मा के सत्यगुण वेदों से जाने जाते हैं, जिनको उसने मनुष्यों के हित के लिये उत्पन्न किया है ॥३८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३८−(ऋग्भ्यः) स्तुत्याभ्यो वेदवाणीभ्यः (ऋचः) स्तुत्या वेदवाण्यः। अन्यद् गतम् ॥

११ स वै

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स वै य॒ज्ञाद॑जायत॒ तस्मा॑द्य॒ज्ञो᳡जा॑यत ॥

११ स वै ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He verily was born of the sacrifice; of him the sacrifice was born.
Notes

The Anukr., as above, forces the elision yajñò ‘j-.

Griffith

स वै य॒ज्ञाद॑जायत॒ तस्मा॑द् य॒ज्ञोऽजायत ॥३९॥

पदपाठः

सः। वै। य॒ज्ञात्। अ॒जा॒य॒त॒। तस्मा॑त्। य॒ज्ञः। अ॒जा॒य॒त॒। ७.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • आसुरी गायत्री
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [परमात्मा] (वै) अवश्य (यज्ञात्) यज्ञ [संयोग-वियोग व्यवहार] से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [परमात्मा] से (यज्ञः) यज्ञ [संयोग-वियोग व्यवहार] (अजायत) उत्पन्न हुआ है ॥३९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमात्मा ने परमाणुओं के संयोग-वियोग से सृष्टि रचकर अपनी महिमा दिखायी है ॥३९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३९−(यज्ञात्) यज देवपूजासंगतिकरणदानेषु-नङ्। परमाणूनां संयोगवियोगव्यवहारात् (यज्ञः) संयोगवियोगव्यवहारः। अन्यद् गतम् ॥

१२ स यज्ञस्तस्य

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स य॒ज्ञस्तस्य॑ य॒ज्ञः स य॒ज्ञस्य॒ शिर॑स्कृ॒तम् ॥

१२ स यज्ञस्तस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He is the sacrifice; his is the sacrifice; he [is] made the head
    of the sacrifice.
Notes
Griffith

स य॒ज्ञस्तस्य॑ य॒ज्ञः स य॒ज्ञस्य॒ शिर॑स्कृ॒तम्॥४०॥

पदपाठः

सः। य॒ज्ञः। तस्य॑। य॒ज्ञः। सः। य॒ज्ञस्य॑। शिरः॑। कृ॒तम्। ७.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • आसुरी गायत्री
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [परमात्मा] (यज्ञः) संयोग-वियोग करनेवाला है, (तस्य) उस [परमात्मा] का (यज्ञः) संयोग-वियोग व्यवहार है, (सः) वह [परमात्मा] (यज्ञस्य) संयोग-वियोग व्यवहार का (शिरः) शिर [प्रधान] (कृतम्) किया गया है ॥४०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमात्मा संसार में परमाणुओं का संयोग-वियोग करने से सृष्टि और प्रलय का आदि कारण है, ऐसा विद्वान् मानते हैं ॥४०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४०−(सः) परमेश्वरः (यज्ञः) म० ३९। संयोगवियोगकर्ता (तस्य) परमेश्वरस्य (यज्ञः) संयोगवियोगव्यवहारः (सः) परमेश्वरः (यज्ञस्य) संयोगवियोगव्यवहारस्य (शिरः) प्रधानः (कृतम्) ॥

१३ स स्तनयति

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स स्त॑नयति॒ स वि द्यो॑तते॒ स उ॒ अश्मा॑नमस्यति ॥

१३ स स्तनयति ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He thunders; he lightens; he indeed hurls the stone.
Notes

That is, the thunderbolt. The second pāda is one of the examples under
Prāt. iii. 36.

Griffith

स स्त॑नयति॒ स वि द्यो॑तते॒ स उ॒ अश्मा॑नमस्यति ॥४१॥

पदपाठः

सः। स्त॒न॒य॒ति॒। सः। वि। द्यो॒त॒ते॒। सः। ऊं॒ इति॑। अश्मा॑नम्। अ॒स्य॒ति॒। ७.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • साम्नी बृहती
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [परमात्मा] (भद्राय) श्रेष्ठ (पुरुषाय) पुरुष के लिये (वा) अवश्य (वि) विविध प्रकार (द्योतते) प्रकाशमान होता है, (सः) वह (पापाय) पापी के लिये (वा) अवश्य (स्तनयति) मेघसमान [भयानक] गरजता है, (सः उ) वही (असुराय) असुर [विद्वानों के विरोधी] के लिये (वा) अवश्य (अश्मानम्) पत्थर (अस्यति) गिराता है ॥४१, ४२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर अपनी न्यायव्यवस्था से श्रेष्ठ धर्मात्माओं को आनन्द और दुष्ट छली कपटी लोगों को कष्ट देता है ॥४१, ४२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४१, ४२−(सः) परमेश्वरः (स्तनयति) मेघ इव गर्जयति (सः) (विविधम्) (द्योतते) प्रकाशते (सः) (उ) एव (अश्मानम्) दण्डरूपं प्रस्तरम् (अस्यति) क्षिपति (पापाय) दुष्टाय (वा) अवधारणे (भद्राय) श्रेष्ठाय (वा) (पुरुषाय) मनुष्याय (असुराय) सुराणां विदुषां विरोधिने (वा) ॥

१४ पापाय वा

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पा॒पाय॑ वा भ॒द्राय॑ वा॒ पुरु॑षा॒यासु॑राय वा ॥

१४ पापाय वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Either for the evil [man] or for the excellent; for man or for
    Asura.
Notes

‘For,’ i.e. ‘at,’ ⌊taking the verse as a continuation of 41⌋.

Griffith

पा॒पाय॑ वा भ॒द्राय॑ वा पुरु॑षा॒यासु॑राय वा ॥४२॥

पदपाठः

पा॒पाय॑। वा॒। भ॒द्राय॑। वा॒। पुरु॑षाय। असु॑राय। वा॒। ७.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [परमात्मा] (भद्राय) श्रेष्ठ (पुरुषाय) पुरुष के लिये (वा) अवश्य (वि) विविध प्रकार (द्योतते) प्रकाशमान होता है, (सः) वह (पापाय) पापी के लिये (वा) अवश्य (स्तनयति) मेघसमान [भयानक] गरजता है, (सः उ) वही (असुराय) असुर [विद्वानों के विरोधी] के लिये (वा) अवश्य (अश्मानम्) पत्थर (अस्यति) गिराता है ॥४१, ४२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर अपनी न्यायव्यवस्था से श्रेष्ठ धर्मात्माओं को आनन्द और दुष्ट छली कपटी लोगों को कष्ट देता है ॥४१, ४२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४१, ४२−(सः) परमेश्वरः (स्तनयति) मेघ इव गर्जयति (सः) (विविधम्) (द्योतते) प्रकाशते (सः) (उ) एव (अश्मानम्) दण्डरूपं प्रस्तरम् (अस्यति) क्षिपति (पापाय) दुष्टाय (वा) अवधारणे (भद्राय) श्रेष्ठाय (वा) (पुरुषाय) मनुष्याय (असुराय) सुराणां विदुषां विरोधिने (वा) ॥

१५ यद्वा कृणोष्योषधीर्यद्वा

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यद्वा॑ कृ॒णोष्योष॑धी॒र्यद्वा॑ वर्षसि भ॒द्रया॒ यद्वा॑ ज॒न्यमवी॑वृधः ॥

१५ यद्वा कृणोष्योषधीर्यद्वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Either when thou makest the herbs, or when thou rainest excellently,
    or when thou hast increased him of the people (? janyá).
Notes

This appears to be the only example known of the accent janyá instead
of jánya, and how little authoritative it is may be inferred from the
fact that all our mss. leave avīvṛdhas unaccented after it. Our text
makes the necessary emendation to áv-. ⌊All SPP’s authorities,
however, agree in reading not only janyám but also avīvṛdhas. The
latter he also emends to áv-.⌋

Griffith

यद् वा॑ कृ॒णोष्योष॑धी॒र्यद् वा॒ वर्ष॑सि भ॒द्रया॒ यद् वा॑ ज॒न्यमवी॑वृधः ॥४३॥

पदपाठः

यत्। वा॒। कृ॒णोषि॑। ओष॑धीः। यत्। वा॒। वर्ष॑सि। भ॒द्रया॑। यत्। वा॒। ज॒न्यम्। अवी॑वृधः। ७.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • आर्षी गायत्री
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) क्योंकि [हे परमेश्वर !] तू (वा) अवश्य (ओषधीः) ओषधियों [सोमलता अन्नादिकों] को (कृणोषि) बनाता है, (यत्) क्योंकि तू (वा) अवश्य (भद्रया) उत्तमता से (वर्षसि) मेह बरसाता है, और (यत्) क्योंकि तू ने (वा) अवश्य (जन्यम्) उत्पन्न होते हुए [जगत्] को (अवीवृधः) बढ़ाया है ॥४३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर वृष्टि द्वारा सोमलता अन्न आदि पदार्थ उत्पन्न करके सब प्राणियों का पालन करता हुआ अगणित उपकार करता है, और वह सर्वव्यापक होकर सब संसार को नियम में रखता है ॥४३-४५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४३−(यत्) यतः (वा) अवश्यम् (कृणोषि) जनयसि (ओषधीः) सोमलतान्नादिपदार्थान् (यत्) (वा) (वर्षसि) वृष्टिं करोषि (भद्रया) उत्तमतया (यत्) (वा) (जन्यम्) जनेर्यक्। उ० ४।१११। जन जनने-यक्। उत्पद्यमानं जगत् (अवीवृधः) वर्धितवानसि ॥

१६ तावांस्ते मघवन्महिमोपो

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तावां॑स्ते मघवन्महि॒मोपो॑ ते त॒न्वः᳡ श॒तम् ॥

१६ तावांस्ते मघवन्महिमोपो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Such, O bountiful one, is thy greatness; and thine, too (úpa), are
    a hundred bodies.
Notes

There is no difficulty in counting the verse into 16 syllables, as
required by the Anukr. ⌊It reads naturally as 9 + 8.⌋

Griffith

तावां॑स्ते मघवन् महि॒मोपो॑ ते त॒न्वः श॒तम्॥४४॥

पदपाठः

तावा॑न्। ते॒। म॒घ॒ऽव॒न्। म॒हि॒मा। उपो॒ इति॑। ते॒। त॒न्वः᳡। श॒तम्। ७.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • साम्न्यनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [उसी से] (मघवन्) हे महाधनी ! [परमेश्वर] (तावान्) उतनी [बड़ी] (ते) तेरी (महिमा) महिमा है, (उपो) और भी (ते) तेरी (तन्वः) उपकार शक्तियाँ (शतम्) सौ [असंख्य] हैं ॥४४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर वृष्टि द्वारा सोमलता अन्न आदि पदार्थ उत्पन्न करके सब प्राणियों का पालन करता हुआ अगणित उपकार करता है, और वह सर्वव्यापक होकर सब संसार को नियम में रखता है ॥४३-४५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४४−(तावान्) तत्परिमाणः (ते) तव (मघवन्) धनवन् (महिमा) महत्त्वम् (उपो) अपि च (ते) तव (तन्वः) तनु विस्तारे उपकारे च-ऊ। उपकृतयः (शतम्) असंख्यातम् ॥

१७ उपो ते

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उपो॑ ते॒ बध्वे॒ बद्धा॑नि॒ यदि॒ वासि॒ न्य᳡र्बुदम् ॥

१७ उपो ते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thine, too, are two billions, [many] billions (?); or else thou
    art a hundred million.
Notes

The translation implies the readings bádve bádvāni, which, on account
of the accent, seem probably meant by the mss., which vary between
bádhv-, báddh-, báddhv-; K. reads baddhve vádvāni, D. báddhe
baddhā́ni
. ⌊SPP’s authorities also exhibit very wide disagreements,
which reflect a corresponding uncertainty of the tradition.⌋ The word is
just such a one as the mss. might be expected to boggle and blunder
over, both they and we being left without help from the sense. Henry,
who accepts the same emendation, understands bádve as locative, which
is perhaps better, and at any rate favored by the fact that the
pada-text does not read bádve íti.

[Paryāya V.ṣaṭ. 46. āsurī gāyatrī; 47. yavamadhyā gāyatrī; 48.
sāmny uṣḥih; 49. nicṛt sāmnī bṛhatī; 50. prājāpatyā ’nuṣṭubh; 51. virāḍ
gāyatrī.
]

Griffith

उपो॑ ते॒ बध्वे॒ बद्धा॑नि॒ यदि॒ वासि॒ न्यर्बुदम्॥४५॥

पदपाठः

उपो॒ इति॑। ते॒। बध्वे॑। बध्दा॑नि। यदि॑। वा॒। असि॑। निऽअ॑र्बुदम्। ७.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • आसुरी गायत्री
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (उपो) और भी (ते) तेरे (वध्वे) नियम में [सब सत्तावाले] (बद्धानि) बँधे हुए हैं, (यदि) क्योंकि तू (वा) अवश्य (न्यर्बुदम्) निरन्तर व्यापक [ब्रह्म] (असि) है ॥४५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर वृष्टि द्वारा सोमलता अन्न आदि पदार्थ उत्पन्न करके सब प्राणियों का पालन करता हुआ अगणित उपकार करता है, और वह सर्वव्यापक होकर सब संसार को नियम में रखता है ॥४३-४५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४५−(उपो) अपि च (ते) तव (बध्वे) इण्शीभ्यां वन्। उ० १।१˜५२। वध संयमने-वन्। नियमे (बद्धानि) संयतानि सर्वाणि भूतानि (यदि) यतः (वा) अवश्यम् (असि) (न्यर्बुदम्) अ० ८।८।७। अर्व गतौ हिंसने च-उदच्। निरन्तरगतिशीलं व्यापकं ब्रह्म ॥