००५ अध्यात्मम्

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Whitney subject
  1. Extolling the sun.
VH anukramaṇī

अध्यात्मम्।
१४ भुरिक्साम्नी त्रिष्टुप्, १५ आसुरी पङ्क्तिः, १६, १९ प्राजापत्याऽनुष्टुप्, १७-१८ आसुरी गायत्री।

Whitney anukramaṇī

[Paryāya II.—aṣṭāu. 14. bhurik sāmnī triṣṭubh; 15. āsurī pan̄kti; 16, 19. prājāpatyā ’nuṣṭubh; 17, 18. āsurī gāyatrī.]

०१ कीर्तिश्च यशश्चाम्भश्च

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

की॒र्तिश्च॒ यश॒श्चाम्भ॑श्च॒ नभ॑श्च ब्राह्मणवर्च॒सं चान्नं॑ चा॒न्नाद्यं॑ च ॥

०१ कीर्तिश्च यशश्चाम्भश्च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both fame and glory and water (? ámbhas) and cloud-mass and
    Brahman-splendor and food and food-eating.
Notes

The Pet. Lex. regards nábhaś ca as intruded here, and ámbhas as
having the sense of ‘might.’

Griffith

की॒र्तिश्च॒ यश॒श्चाम्भ॑श्च॒ नभ॑श्च ब्राह्मणवर्च॒सं चान्नं॑ चा॒न्नाद्यं॑ च ॥१४॥

पदपाठः

की॒र्तिः। च॒। यशः॑। च॒। अम्भः॑। च॒। नभः॑। च॒। ब्रा॒ह्म॒ण॒ऽव॒र्च॒सम्। च॒। अन्न॑म्। च॒। अ॒न्न॒ऽअद्य॑म्। च॒। ५.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • भुरिक् साम्नी त्रिष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (कीर्तिः) कीर्ति [ईश्वरगुणों के कीर्तन और विद्या आदि गुणों से बड़ाई] (च) और (यशः) यश [शूरता आदि से नाम] (च) और (अम्भः) पराक्रम (च) और (नभः) प्रबन्धसामर्थ्य (च) और (ब्राह्मणवर्चसम्) ब्रह्मज्ञान का तेज (च) और (अन्नम्) अन्न (च च) और (अन्नाद्यम्) अन्न के समान खाने योग्य द्रव्य [उस पुरुष के लिये होते हैं] ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो पुरुष सर्वशक्तिमान् अद्वितीय परमात्मा के प्रकाशमय स्वरूप को साक्षात् करता है, वह संसार में उन्नति करके सब प्रकार का आनन्द पाता है ॥१४, १५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४−(कीर्त्तिः) हृपिषिरुहि०। उ० ४।११९। कॄत संशब्दने-इन्। ईश्वरगुणकीर्तनविद्यादानादिप्रभवं नाम (च) (यशः) शौरादिप्रभवं नाम (च) (अम्भः) उदके नुम्भौ च। उ० ४।२१०। आप्लृ व्याप्तौ-असुन् ह्रस्वत्वं च नुमागमो भश्चान्तादेशः, यद्वा, अभि शब्दे-असुन्। पराक्रमः (च) (नभः) म० ३। प्रबन्धसामर्थ्यम् (च) (ब्रह्मवर्चसम्) अ० १०।५।३७। ब्राह्मणस्य ब्रह्मज्ञानस्य तेजः (च) (अन्नम्) अन जीवने-न प्रत्ययः। जीवनसाधनं भोजनम् (च) (अन्नाद्यम्) अन्नसमानभक्ष्यद्रव्यम् (च) ॥

०२ य एतम्

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य ए॒तं दे॒वमे॑क॒वृतं॒ वेद॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. He who knows this single god—
Notes
Griffith

य ए॒तं दे॒वमे॑क॒वृतं॒ वेद॑ ॥१५॥

पदपाठः

यः। ए॒तम्। दे॒वम्। ए॒क॒ऽवृत॑म्। वेद॑। ५.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • आसुरी पङ्क्तिः
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (एतम्) इस (देवम्) प्रकाशमय (एकवृतम्) अकेले वर्तमान [परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥१५॥जो पुरुष सर्वशक्तिमान् अद्वितीय परमात्मा के प्रकाशमय स्वरूप को साक्षात् करता है, वह संसार में उन्नति करके सब प्रकार का आनन्द पाता है ॥१४, १५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो पुरुष सर्वशक्तिमान् अद्वितीय परमात्मा के प्रकाशमय स्वरूप को साक्षात् करता है, वह संसार में उन्नति करके सब प्रकार का आनन्द पाता है ॥१४, १५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १५−(यः) पुरुषः (एतम्) प्रसिद्धम् (देवम्) प्रकाशमयम् (एकवृतम्) अद्वितीयवर्तमानम् (वेद) वेत्ति ॥

०३ न द्वितीयो

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न द्वि॒तीयो॒ न तृ॒तीय॑श्चतु॒र्थो नाप्यु॑च्यते ॥

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Whitney
Translation
  1. Not second, not third, also not fourth is he called.
Notes
Griffith

न द्वि॒तीयो॒ न तृ॒तीय॑श्चतु॒र्थो नाप्यु॑च्यते। य ए॒तं दे॒वमे॑क॒वृतं॒ वेद॑ ॥१६॥

पदपाठः

न। द्वि॒तीयः॑। न। तृ॒तीयः॑। च॒तु॒र्थः। न। अपि॑। उ॒च्य॒ते॒। ५.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - वह [अकेला वर्तमान-म० १५] (न) न (द्वितीयः) दूसरा, (न) न (तृतीयः) तीसरा (न) न (चतुर्थः) चौथा (अपि) ही (उच्यते) कहा जाता है ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर एक है, उससे भिन्न कोई भी दूसरा, तीसरा आदि ईश्वर नहीं है, सब लोग उसी की उपासना करें। इन मन्त्रों में दो से लेकर दस तक दूसरे ईश्वर होने का निषेध इसलिये किया है कि सब संख्या का मूल एक [१] अङ्क है, इसी एक को दो, तीन, चार, पाँच, छह, सात, आठ और नौ बार गणने से २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, और ९ अङ्क बनते हैं, और एक पर शून्य देने से १० दस का अङ्क बनता है। उसे वेद ने एक ईश्वर का निश्चय कराके दूसरे ईश्वर होने का सर्वथा निषेध किया है, अर्थात् उसके एकपने में भी भेद नहीं और वह शून्य भी नहीं, किन्तु वह सच्चिदानन्दगुणयुक्त एकरस परमात्मा है ॥१६-१८॥१−यह मन्त्र महर्षि दयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, ब्रह्मविद्याविषय पृ० ९०, ९१ में व्याख्यात हैं, और उन्हीं के भेद से यहाँ अर्थ किया गया है ॥२−मन्त्र १६ से लेकर २२ तक मन्त्रों के पीछे आवृत्ति का चिह्न गवर्नमेन्ट बुक डिपो बम्बई और वैदिक यन्त्रालय अजमेर के पुस्तकों में दिया है, अर्थात् मन्त्र १५ की आवृत्ति मानी है। परन्तु यह चिह्न प० सेवकलालवाले पुस्तक में नहीं है और न कुछ इस के विषय में ग्रिफ़्फ़िथ साहिब और ह्विटनी साहिब के अनुवाद में है और न महर्षि दयानन्दकृत उक्त पुस्तक में आवृत्ति का चिह्न है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६-१८−(न) निषेधे (अपि) एव (उच्यते) कथ्यते। अन्यत् सुगमम् ॥

०४ न पञ्चमो

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न प॑ञ्च॒मो न ष॒ष्ठः स॑प्त॒मो नाप्यु॑च्यते ॥

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Whitney
Translation
  1. Not fifth, not sixth, also not seventh is he called.
Notes
Griffith

न प॑ञ्च॒मो न षष्ठः स॑प्त॒मो नाप्यु॑च्यते। य ए॒तं दे॒वमे॑क॒वृतं॒ वेद॑ ॥१७॥

पदपाठः

न। प॒ञ्च॒मः। न। ष॒ष्ठः। स॒प्त॒मः। न। ५.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • आसुरी गायत्री
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - वह (न) न (पञ्चमः) पाँचवाँ, (न) न (षष्टः) छठा (न) न (सप्तमः) सातवाँ (अपि) ही (उच्यते) है ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर एक है, उससे भिन्न कोई भी दूसरा, तीसरा आदि ईश्वर नहीं है, सब लोग उसी की उपासना करें। इन मन्त्रों में दो से लेकर दस तक दूसरे ईश्वर होने का निषेध इसलिये किया है कि सब संख्या का मूल एक [१] अङ्क है, इसी एक को दो, तीन, चार, पाँच, छह, सात, आठ और नौ बार गणने से २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, और ९ अङ्क बनते हैं, और एक पर शून्य देने से १० दस का अङ्क बनता है। उसे वेद ने एक ईश्वर का निश्चय कराके दूसरे ईश्वर होने का सर्वथा निषेध किया है, अर्थात् उसके एकपने में भी भेद नहीं और वह शून्य भी नहीं, किन्तु वह सच्चिदानन्दगुणयुक्त एकरस परमात्मा है ॥१६-१८॥१−यह मन्त्र महर्षि दयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, ब्रह्मविद्याविषय पृ० ९०, ९१ में व्याख्यात हैं, और उन्हीं के भेद से यहाँ अर्थ किया गया है ॥२−मन्त्र १६ से लेकर २२ तक मन्त्रों के पीछे आवृत्ति का चिह्न गवर्नमेन्ट बुक डिपो बम्बई और वैदिक यन्त्रालय अजमेर के पुस्तकों में दिया है, अर्थात् मन्त्र १५ की आवृत्ति मानी है। परन्तु यह चिह्न प० सेवकलालवाले पुस्तक में नहीं है और न कुछ इस के विषय में ग्रिफ़्फ़िथ साहिब और ह्विटनी साहिब के अनुवाद में है और न महर्षि दयानन्दकृत उक्त पुस्तक में आवृत्ति का चिह्न है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६-१८−(न) निषेधे (अपि) एव (उच्यते) कथ्यते। अन्यत् सुगमम् ॥

०५ नाष्टमो न

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नाष्ट॒मो न न॑व॒मो द॑श॒मो नाप्यु॑च्यते ॥

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Whitney
Translation
  1. Not eighth, not ninth, also not tenth is he called.
Notes
Griffith

नाष्ट॒मो न न॑व॒मो द॑श॒मो नाप्यु॑च्यते । य ए॒तं दे॒वमे॑क॒वृतं॒ वेद॑ ॥१८॥

पदपाठः

न। अ॒ष्ट॒मः। न। न॒व॒मः। द॒श॒मः। न। अपि॑। उ॒च्य॒ते॒। ५.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • आसुरी गायत्री
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - वह (न) न (अष्टमः) आठवाँ, (न) न (नवमः) नवाँ, (न) न (दशमः) दसवाँ (अपि) ही (उच्यते) कहा जाता है ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर एक है, उससे भिन्न कोई भी दूसरा, तीसरा आदि ईश्वर नहीं है, सब लोग उसी की उपासना करें। इन मन्त्रों में दो से लेकर दस तक दूसरे ईश्वर होने का निषेध इसलिये किया है कि सब संख्या का मूल एक [१] अङ्क है, इसी एक को दो, तीन, चार, पाँच, छह, सात, आठ और नौ बार गणने से २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, और ९ अङ्क बनते हैं, और एक पर शून्य देने से १० दस का अङ्क बनता है। उसे वेद ने एक ईश्वर का निश्चय कराके दूसरे ईश्वर होने का सर्वथा निषेध किया है, अर्थात् उसके एकपने में भी भेद नहीं और वह शून्य भी नहीं, किन्तु वह सच्चिदानन्दगुणयुक्त एकरस परमात्मा है ॥१६-१८॥१−यह मन्त्र महर्षि दयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, ब्रह्मविद्याविषय पृ० ९०, ९१ में व्याख्यात हैं, और उन्हीं के भेद से यहाँ अर्थ किया गया है ॥२−मन्त्र १६ से लेकर २२ तक मन्त्रों के पीछे आवृत्ति का चिह्न गवर्नमेन्ट बुक डिपो बम्बई और वैदिक यन्त्रालय अजमेर के पुस्तकों में दिया है, अर्थात् मन्त्र १५ की आवृत्ति मानी है। परन्तु यह चिह्न प० सेवकलालवाले पुस्तक में नहीं है और न कुछ इस के विषय में ग्रिफ़्फ़िथ साहिब और ह्विटनी साहिब के अनुवाद में है और न महर्षि दयानन्दकृत उक्त पुस्तक में आवृत्ति का चिह्न है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६-१८−(न) निषेधे (अपि) एव (उच्यते) कथ्यते। अन्यत् सुगमम् ॥

०६ स सर्वस्मै

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स सर्व॑स्मै॒ वि प॑श्यति॒ यच्च॑ प्रा॒णति॒ यच्च॒ न ॥

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Whitney
Translation
  1. He looks abroad for everything, both what breathes and what does
    not.
Notes
Griffith

स सर्व॑स्मै॒ वि प॑श्यति॒ यच्च॑ प्रा॒णति॒ यच्च॒ न ।
य ए॒तं दे॒वमे॑क॒वृतं॒ वेद॑ ॥१९॥

पदपाठः

सः। सर्व॑स्मै। वि। प॒श्य॒ति॒। यत्। च॒। प्रा॒णति॑। यत्। च॒। न। ५.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [परमेश्वर] (सर्वस्मै) सब [जगत्] के हित के लिये [उस सबको] (वि) विविध प्रकार (पश्यति) देखता है, (यत्) जो (प्राणति) श्वास लेता है, (च च) और (यत्) जो (न) नहीं [श्वास लेता है] ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ऊपर मन्त्र ११ देखो, उसी के समान भावार्थ है ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १९−(सर्वस्मै) समस्ताय जगते। अन्यत् पूर्ववत्-म० ११ ॥

०७ तमिदं निगतम्

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तमि॒दं निग॑तं॒ सहः॒ स ए॒ष एक॑ एक॒वृदेक॑ ए॒व ॥

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Whitney
Translation
  1. Into him is entered this power; he himself is one, single, one
    only.
Notes
Griffith

तमि॒दं निग॑तं॒ सहः॒ स ए॒ष एक॑ एक॒वृदेक॑ ए॒व।
य ए॒तं दे॒वमे॑क॒वृतं॒ वेद॑ ॥२०॥

पदपाठः

तम्। इ॒दम्। निऽग॑तम्। सहः॑। सः। ए॒षः। एकः॑। ए॒क॒ऽवृत्। एकः॑। ए॒व। ५.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • द्विपदा विराड्गायत्री
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) यह (सहः) सामर्थ्य (तम्) उस [परमात्मा] को (निगतम्) निश्चय करके प्राप्त है, (सः एषः) वह आप (एकः) एक, (एकवृत्) अकेला वर्तमान, (एकः एव) एक ही है ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ऊपर मन्त्र १२ और १३ देखो और वही भावार्थ समझो ॥२०, २१॥यह दोनों मन्त्र महर्षि दयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका ब्रह्मविद्याविषय पृ० ९०, ९१ में व्याख्यात हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २०−व्याख्यातः-म० १२ ॥

०८ सर्वे अस्मिन्देवा

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सर्वे॑ अस्मिन्दे॒वा ए॑क॒वृतो॑ भवन्ति ॥

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Whitney
Translation
  1. All the gods in him become single.
Notes

The last three verses are nearly identical with 11-13 above. Of the last
two the Anukr. does not define the meter, perhaps by an omission in the
ms. (or else because they were defined just above). All our mss. save
one (D.) ⌊and all SPP’s authorities, except P²⌋ accent sarvé in 21, as
if because of eté in 13. ⌊Both editions emend to sárve.⌋

[Paryāya III.sapta. 22. bhurik prājāpatyā triṣṭubh; 23. ārcī
gāyatrī; 25. 1-p. āsurī gāyatrī; 26. ārcy anuṣṭubh; 27, 28. prājāpatyā
’nuṣṭubh.
]

Griffith

सर्वे॑ अस्मिन् दे॒वा ए॑क॒वृतो॑ भवन्ति । य ए॒तं दे॒वमे॑क॒वृतं॒ वेद॑ ॥२१॥

पदपाठः

सर्वे॑। अ॒स्मि॒न्। दे॒वाः। ए॒क॒ऽवृतः॑। भ॒व॒न्ति॒। ५.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • आसुर्यनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्मिन्) इस [परमात्मा] में (सर्वे) सब (देवाः) चलनेवाले [पृथिवी आदि लोक] (एकवृतः) एक [परमात्मा] में वर्त्तमान (भवन्ति) रहते हैं ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ऊपर मन्त्र १२ और १३ देखो और वही भावार्थ समझो ॥२०, २१॥यह दोनों मन्त्र महर्षि दयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका ब्रह्मविद्याविषय पृ० ९०, ९१ में व्याख्यात हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २१−(सर्वे) समस्ताः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १३ ॥