००४ अध्यात्मम्

००४ अध्यात्मम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. Extolling the sun.
VH anukramaṇī

अध्यात्मम्।
(१-१३ प्रथमः पर्यायः।) १-११ प्राजापत्याऽनुष्टुप्; १२ विराड् गायत्री; १३आसुरी उष्णिक्।

Whitney anukramaṇī

[(Brahman.—ādhyātmam; rohitādityadevatyam. trāiṣṭubham.*) ṣaṭ paryāyāḥ. mantrokta drvatyāḥ.] [Paryāya I.—trayodaça. 1-11. prājāpatyā ’nuṣṭubh; 12. virāḍ gāyatrī; 13. āsury uṣṇih.]

Whitney

Comment

⌊Partly prose, and vss. 14-15, 22-26, and 46-56 are so designated in W’s Index, p. 6.⌋ This hymn is not found in Pāipp., nor noticed either in Kāuś. or in Vāit. *⌊Here, indeed (but cf. introd. to hymn 3), the general definition for the whole kāṇḍa as “trāiṣṭubham” does not seem to apply.⌋

Translations

Translated: Henry, 17, 51; Griffith, ii. 154.

Griffith

A glorification of the Sun as the only Deity

०१ स एति

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

स ए॑ति सवि॒ता स्व᳡र्दि॒वस्पृ॒ष्ठे᳡व॒चाक॑शत् ॥

०१ स एति ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He goes [as] impeller (Savitar) to the heaven (svàr), looking
    down upon the back of the sky.
Notes
Griffith

Down looking, on the ridge of sky Savitar goes to highest heaven.

पदपाठः

सः। ए॒ति॒। स॒वि॒ता। स्वः᳡। दि॒वः। पृ॒ष्ठे। अ॒व॒ऽचाक॑शत्। ४.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह (सविता) सबका प्रेरक [परमेश्वर] (दिवः) आकाश [वा व्यवहार] की (पृष्ठे) पीठ पर [वर्तमान होकर] (अवाचाकशत्) देखता हुआ (स्वः) आनन्द को (एति) प्राप्त होता है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर अत्यन्त सूक्ष्म और अत्यन्त विशाल आकाश से भी सूक्ष्म और विशाल होकर और प्रत्येक व्यवहार में वर्तमान रहकर सर्वनियन्ता और आनन्दस्वरूप है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(सः) प्रसिद्धः (एति) प्राप्नोति (सविता) सर्वप्रेरकः परमेश्वरः (स्वः) सुखम् (दिवः) आकाशस्य। व्यवहारस्य (पृष्ठे) उपरिभागे (अवचाकशत्) निघ० ३।११। अवलोकयन् ॥

०२ रश्मिभिर्नभ आभृतम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

र॒श्मिभि॒र्नभ॒ आभृ॑तं महे॒न्द्र ए॒त्यावृ॑तः ॥

०२ रश्मिभिर्नभ आभृतम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. To the cloud-mass (nábhas) brought by rays he goes [as] great
    Indra, covered.
Notes
Griffith

To misty cloud filled with his rays Mahendra goes encompassed round.

पदपाठः

र॒श्मिऽभिः॑। नभः॑। आऽभृ॑तम्। म॒हा॒ऽइ॒न्द्रः। ए॒ति॒। आऽवृ॑तः। ४.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (महेन्द्रः) बड़ा ऐश्वर्यवान् (आवृतः) सब ओर से ढका हुआ [अन्तर्यामी परमेश्वर] (रश्मिभिः) किरणों द्वारा (आभृतम्) सब प्रकार पुष्ट किये हुए (नभः) मेघमण्डल में (एति) व्यापक है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - अन्तर्यामी परमात्मा के नियम से जल किरणों द्वारा खिंच कर मेघमण्डल में वृष्टि के लिये वर्तमान होता है ॥२॥मन्त्र ३, ४, ५, ६ और ७ के पीछे आवृत्ति का चिह्न गवर्नमेन्ट बुकडिपो बम्बई और वैदिक यन्त्रालय अजमेर के पुस्तकों में दिया है, अर्थात् मन्त्र २ की आवृत्ति मानी है। परन्तु यह चिह्न प० सेवकलालवाले पुस्तक में नहीं है और न कुछ लेख इसके विषय में ग्रिफ़्फिथ साहिब और ह्विटनी साहिब के अनुवाद में है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(रश्मिभिः) किरणैः (नभः) मेघमण्डलम् (आभृतम्) समन्तात् पोषितम् (महेन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (एति) व्याप्नोति (आवृतः) आच्छादितोऽन्तर्यामिरूपेण परमात्मा ॥

०३ स धाता

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स धा॒ता स वि॑ध॒र्ता स वा॒युर्नभ॒ उच्छ्रि॑तम् ॥

०३ स धाता ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He [is] the Creator (dhātṛ́), he the disposer, he Vāyu, the
    upraised (ut-śri) cloud-mass.
Notes

A syllable is lacking, unless we make harsh resolution, in a.

Griffith

Creator and Ordainer, he is Vayu, he is lifted cloud.

पदपाठः

सः। धा॒ता। सः। वि॒ऽध॒र्ता। सः। वा॒युः। नभः॑। उत्ऽश्रि॑तम्। । ४.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [परमेश्वर] (धाता) पोषण करनेवाला और (सः) वह (विधर्ता) विविध प्रकार धारण करनेवाला है, (सः) वह (वायुः) व्यापक [वा महाबली परमात्मा] और (उच्छ्रितम्) ऊँचा वर्तमान (नभः) प्रबन्धकर्ता [वा नायक ब्रह्म] है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - उस सर्वपोषक सर्वधारक परमात्मा की उपासना से मनुष्य आत्मा की उन्नति करें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(सः) परमेश्वरः (धाता) सर्वपोषकः (सः) (विधर्ता) विविधं धारकः (सः) (वायुः) वा गतिगन्धनयोः-उण् युक् च। व्यापकः। बलिष्ठः (नभः) नहेर्दिवि भश्च। उ० ४।˜२११। णह बन्धने-असुन्, हस्य भः, यद्वा, नयतेः-असुन्, गुणेनयः इति स्थिते बाहुलकाद् यकारस्य भकारः। नभ आदित्यो भवति, नेता रसानां, नेता भासां, ज्योतिषां प्रणयः, अपि वा भन एव स्याद् विपरीतः, न न भातीति वा-निरु० २।१४। प्रबन्धकं नायकं वा ब्रह्म (उच्छ्रितम्) ऊर्ध्वं श्रितं स्थितम् ॥

०४ सोर्यमा स

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सो᳡र्य॒मा स वरु॑णः॒ स रु॒द्रः स म॑हादे॒वः ॥

०४ सोर्यमा स ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He [is] Aryaman, he Varuṇa, he Rudra, he the great god.
Notes
Griffith

Rudra, and Mahadeva, he is Aryaman and Varuna.

पदपाठः

सः। अ॒र्य॒मा। सः। वरु॑णः। सः। रु॒द्रः। सः। म॒हा॒ऽदे॒वः। ४.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [परमेश्वर] (अर्यमा) श्रेष्ठों का मान करनेवाला, (सः) वह (वरुणः) श्रेष्ठ, (सः) वह (रुद्रः) ज्ञानवान् और (सः) वह (महादेवः) महादानी है ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र ३ के समान है ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(सः) (अर्यमा) अर्यः स्वामिवैश्ययोः। पा० ३।१।१०३। ऋ गतिप्रापणयोः-यत्। श्वन्नुक्षन्पूषन्०। उ० १।१५९। अर्य+माङ् माने-कनिन्। अर्यान् श्रेष्ठान् मिमीते मानयतीति। श्रेष्ठानां मानकर्ता (सः) (वरुणः) (सः) (रुद्रः) रु गतौ-क्विप् तुक् च, रो मत्वर्थीयः। ज्ञानवान् (सः) (महादेवः) देवो दानाद् वा दीपनाद् वा-निरु० ७।१५। महादानी ॥

०५ सो अग्निः

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सो अ॒ग्निः स उ॒ सूर्यः॒ स उ॑ ए॒व म॑हाय॒मः ॥

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Whitney
Translation
  1. He [is] Agni, he also the Sun, he indeed great Yama.
Notes

Parts of this verse are quoted as examples under Prāt. ii. 21, 24; iii.
35, 36; iv. 116.

Griffith

Agni is he, and Siirya, he is verily Mahayama.

पदपाठः

सः। अ॒ग्निः। सः। ऊं॒ इति॑। सूर्यः॑। सः। ऊं॒ इति॑। ए॒व। म॒हा॒ऽय॒मः। ४.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [परमेश्वर] (अग्निः) व्यापकः (सः उ) वही (सूर्यः) प्रेरक, (सः उ) वही (एव) निश्चय करके (महायमः) बड़ा न्यायकारी है ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र ३ के समान है ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(सः) (अग्निः) व्यापकः (सः) (उ) अवधारणे (सूर्यः) प्रेरकः (सः) (उ) (एव) निश्चयेन (महायमः) महान्यायाधीशः ॥

०६ तं वत्सा

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तं व॒त्सा उप॑ तिष्ठ॒न्त्येक॒शीर्षा॑णो यु॒ता दश॑ ॥

०६ तं वत्सा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. On him wait (upa-sthā) young ones (vatsá), ten, united, having
    one head.
Notes

Henry acutely suggests emendation in b to -ṇo ‘yútā dáśa ’ten
myriads’—i.e. of rays, all heading in the sun itself. It seems probable
that the original text had ékaśīrṣās: cf. dáśaśīrṣas, iv. 6. 1; the
verse as it stands is redundant.

Griffith

Calves, joined, stand close beside him, ten in number, with one single head.

पदपाठः

तम्। व॒त्साः। उप॑। ति॒ष्ठ॒न्ति॒। एक॑ऽशीर्षाणः। यु॒ताः। दश॑। ४.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
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  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) उस [परमात्मा] को (एकशीर्षाणः) एक [परमात्मा] को शिर [प्रधान] माननेवाले (दश) दस [चार दिशाओं, चार मध्य दिशाओं और ऊपर-नीचे की दिशाओं से सम्बन्धवाले] (युताः) मिले हुए (वत्साः) निवास स्थान [सब लोक] (उप तिष्ठन्ति) सेवते हैं ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो परमात्मा सूर्य आदि सब लोकों को धारण-आकर्षण द्वारा अपनी आज्ञा में रखता है, उसकी भक्ति सब मनुष्य करें ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(तम्) परमात्मानम् (वत्साः) वस निवासे-स प्रत्ययः। निवासस्थानाः सर्वलोकाः (उपतिष्ठन्ति) सेवन्ते (एकशीर्षाणः) एकः परमेश्वरः शिरः प्रधानो येषां ते (युताः) संयुक्ताः (दश) ऊर्ध्वाधोभ्यां सह पूर्वादिचतसृभिः, ईशानादिचतसृभिर्दिग्भिः सम्बद्धाः ॥

०७ पश्चात्प्राञ्च आ

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प॒श्चात्प्राञ्च॒ आ त॑न्वन्ति॒ यदु॒देति॒ वि भा॑सति ॥

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Whitney
Translation
  1. From behind they stretch on forward; when he rises, he shines forth.
Notes

Vibhā́sati would seem a better reading at the end.

Griffith

From west to east they bend their way: when he mounts up he shines afar.

पदपाठः

प॒श्चात्। प्राञ्चः॑। आ। त॒न्व॒न्ति॒। यत्। उ॒त्ऽएति॑। वि। भा॒स॒ति॒। ४.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - वे [सब लोक] [परमात्मा के] (पश्चात्) पीछे (प्राञ्चः) आगे बढ़ते हुए (आ) सब ओर से (तन्वन्ति) फैलते हैं, (यत्) जब वह (उदेति) उदय होता है और (वि भासति) विविध प्रकार चमकता है ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विवेकी योगी जन अनुभव करते हैं कि यह सब लोक परमात्मा के ही धारण-आकर्षण नियमों में चलते हैं ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(पश्चात्) परमात्मानमनुसृत्य (प्राञ्चः) आभिमुख्येन गच्छन्तः (आ) समन्तात् (तन्वन्ति) विस्तीर्यन्ते (यत्) यदा (उदेति) उद्गच्छति (वि) विविधम् (भासति) दीप्यते ॥

०८ तस्यैष मारुतो

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तस्यै॒ष मारु॑तो ग॒णः स ए॑ति शि॒क्याकृ॑तः ॥

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Whitney
Translation
  1. His is this troop of Maruts; he goes sling-made.
Notes

That is (?), ‘as if hung in slings ’ ⌊OB. ‘an Schnüre gehängt’⌋. Henry
makes a venturesome and unacceptable emendation, and regards the
adjective as referring to the ’troop ‘—which is not impossible.

Griffith

His are these banded Maruts: they move gathered close like porters’ thongs.

पदपाठः

तस्य॑। ए॒षः। मारु॑तः। ग॒णः। सः। ए॒ति॒। शि॒क्याऽकृ॑तः। ४.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस का [परमेश्वर का बनाया हुआ] (एषः) यह (मारुतः) मनुष्यों का (गणः) समूह है, [क्योंकि] (सः) वह [परमेश्वर] (शिक्याकृतः) छींके में किये हुए सा (एति) व्यापक है ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर मनुष्यों को उन के कर्मानुसार बनाता है। वह सब में ऐसा व्यापक है, जैसे कोई पदार्थ छींके के भीतर रक्खा हो ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(तस्य) परमेश्वरस्य रचितः (एषः) दृश्यमानः (मारुतः) मारुतं मरुतां मनुष्याणामिदम्-दयानन्दभाष्ये, ऋग्० २।११।१४। मनुष्यसम्बद्धः (गणः) समूहः (सः) (एति) व्याप्नोति (शिक्याकृतः) स्रंसेः शिः कुट् किच्च। उ० ५।१६। स्रंसु अधःपतने गतौ-यत्, कित् कुट् च, धातोः शि-इत्यादेशः, टाप्। शिक्यायां काचे कृतो धृतो यथा ॥

०९ रश्मिभिर्नभ आभृतम्

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र॒श्मिभि॒र्नभ॒ आभृ॑तं महे॒न्द्र ए॒त्यावृ॑तः ॥

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Whitney
Translation
  1. To the cloud-mass brought by rays he goes [as] great Indra,
    covered.
Notes

This is a repetition of vs. 2; all the mss. give it in full.

Griffith

To misty cloud filled with his rays Mahendra goes encompassed round,

पदपाठः

र॒श्मिऽभिः॑। नभः॑। आऽभृ॑तम्। म॒हा॒ऽइ॒न्द्रः। ए॒ति॒। आऽवृ॑तः। ४.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (महेन्द्रः) बड़ा ऐश्वर्यवान् (आवृतः) सब ओर से ढका हुआ [अन्तर्यामी परमेश्वर] (रश्मिभिः) किरणों द्वारा (आभृतम्) सब प्रकार पुष्ट किये हुए (नभः) मेघमण्डल में (एति) व्यापक है ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र ˜२ के समान है ॥९॥यह मन्त्र ऊपर आ चुका है-मन्त्र २ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−अयं मन्त्रो व्याख्यातः-म० २ ॥

१० तस्येमे नव

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तस्ये॒मे नव॒ कोशा॑ विष्ट॒म्भा न॑व॒धा हि॒ताः ॥

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Whitney
Translation
  1. His are these nine vessels (kóśa), the props set nine-fold.
Notes

The pada-text reads viṣṭambhā́ḥ, undivided.

Griffith

His are the nine supports, the casks set in nine several places here.

पदपाठः

तस्य॑। इ॒मे। नव॑। कोशाः॑। वि॒ष्ट॒म्भाः। न॒व॒ऽधा। हि॒ताः। ४.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस [परमेश्वर] के (हिताः) धरे हुए [शरीर के] (इमे) यह (नव) नौ [दो कान, दो आँख, दो नथने, एक मुख, एक गुदा और एक उपस्थ] (कोशाः) आधार, (विष्टम्भाः) विशेष स्तम्भ [आलम्ब, सहारे] [अपनी, शक्तियों सहित] (नवधा) नव प्रकार से हैं ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर ने नव द्वारवाले शरीर में श्रोत्रादि अद्भुत गोलक बनाकर उन में श्रवण आदि नव अद्भुत शक्तियाँ रक्खी हैं ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(तस्य) परमेश्वरस्य (इमे) दृश्यमानाः (नव) देहे द्वे श्रोत्रे, चक्षुषी, नासिके च मुखं च द्वे पापूपस्थे च (कोशाः) आधाराः (विष्टम्भाः) विशेषस्तम्भाः। आलम्बाः (नवधा) श्रवणादिशक्तिभिः सह नव प्रकारेण (हिताः) धृताः ॥

११ स प्रजाभ्यो

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स प्र॒जाभ्यो॒ वि प॑श्यति॒ यच्च॑ प्रा॒णति॒ यच्च॒ न ॥

११ स प्रजाभ्यो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He looks abroad for living creatures (prajā́), both what breathes
    and what does not.
Notes

Cf. vs. 19, below; ‘for,’ apparently ‘for the advantage of.’

Griffith

He keeppeth watch o’er creatures, all that breatheth and that breatheth not.

पदपाठः

सः। प्र॒ऽजाभ्यः॑। वि। प॒श्य॒ति॒। यत्। च॒। प्रा॒णति॑। यत्। च॒। न। ४.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
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  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [परमेश्वर] (प्रजाभ्यः) उत्पन्न जीवों के हित के लिये [उस सबको] (वि) विविध प्रकार (पश्यति) देखता है, (यत्) जो (प्राणति) श्वास लेता है (च च) और (यत्) जो (न) नहीं [श्वास लेता है] ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो परमात्मा जङ्गम और स्थावर जगत् की यथावत् सुधि लेकर सबका पालन करता है, उसकी उपासना सब मनुष्य करें ॥११॥इसका मिलान आगे मन्त्र १९ से करो ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(सः) परमेश्वरः (प्रजाभ्यः) उत्पन्नजीवानां हिताय (वि) विविधम् (पश्यति) विलोकयति (यत्) सृष्टिजातम् (च) (प्राणति) प्रश्वसिति (यत्) (च) (न) निषेधे ॥

१२ तमिदं निगतम्

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तमि॒दं निग॑तं॒ सहः॒ स ए॒ष एक॑ एक॒वृदेक॑ ए॒व ॥

१२ तमिदं निगतम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Into him is entered (ni-gam) this power; he himself is one,
    single (ekavṛ́t), one only.
Notes

The verse lacks four syllables of the gāyatrī number, instead of two,
as the Anukr. counts.

Griffith

This conquering might hath entered him, He is the sole the simple One, the One alone.

पदपाठः

तम्। इ॒दम्। निऽग॑तम्। सहः॑। सः। ए॒षः। एकः॑। ए॒क॒ऽवृत्। एकः॑। ए॒व। ४.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • प्राजापत्यानुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) यह (सहः) सामर्थ्य (तम्) उस [परमात्मा] को (निगतम्) निश्चय करके प्राप्त है, (सः एषः) वह आप (एकः) एक, (एकवृत्) अकेला वर्तमान, (एकः एव) एक ही है ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - उस अद्वितीय परमात्मा में पूर्वोक्त अद्भुत सामर्थ्य है, कोई दूसरा न तो उसके तुल्य है और न उससे अधिक है, वही सब जगत् का स्वामी है ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(तम्) परमात्मानम् (इदम्) पूर्वोक्तम् (निगतम्) निश्चयेन प्राप्तम् (सहः) बलम् (सः) (एषः) (एकः) अद्वितीयः (एकवृत्) एको वर्तमानः (एकः) (एव) ॥

१३ एते अस्मिन्देवा

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ए॒ते अ॑स्मिन्दे॒वा ए॑क॒वृतो॑ भवन्ति ॥

१३ एते अस्मिन्देवा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. These gods in him become single.
Notes

The Anukr. counts fourteen syllables in the verse; one does not see
where it finds more than thirteen.

[Paryāya II.aṣṭāu. 14. bhurik sāmnī triṣṭubh; 15. āsurī pan̄kti;
16, 19. prājāpatyā ’nuṣṭubh; 17, 18. āsurī gāyatrī.
]

Griffith

In him these Deities become simple and One

पदपाठः

ए॒ते। अ॒स्मि॒न्। दे॒वाः। ए॒क॒ऽवृतः॑। भ॒व॒न्ति॒। ४.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्
  • ब्रह्मा
  • आसुर्युष्णिक्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्मिन्) इस [परमात्मा] में (एते) यह सब (देवाः) चलनेवाले [पृथिवी आदि लोक] (एकवृतः) एक [परमात्मा] में वर्तमान (भवन्ति) रहते हैं ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - यह सब जगत् प्रलय में कारणरूप से और सृष्टि में कार्यरूप से उसी परमात्मा के सामर्थ्य के बीच विद्यमान रहता है ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(एते) दृश्यमानाः (अस्मिन्) परमात्मनि (देवाः) गतिशीलाः पृथिव्यादिलोकाः (एकवृतः) एकस्मिन् परमात्मनि वर्तमानाः (भवन्ति) ॥