००४ वशा गौः ...{Loading}...
Whitney subject
- The cow (vaśā́) as belonging exclusively to the Brahmans.
VH anukramaṇī
वशा गौः।
१-५३ कश्यपः। वशा। अनुष्टुप्, ७ भुरिक्, २० विराट्, ३१ उष्णिग्बृहतीगर्भा, ४२ बृहतीगर्भा।
Whitney anukramaṇī
[Kaśyapa.—tripañcāśat. mantroktavaśādevatyam. ānuṣṭubham: 7. bhurij; 20. virāj; 32. uṣṇigbṛhatīgarbhā; 42. bṛhatīgarbhā.]
Whitney
Comment
Found also in Pāipp. xvii. (with slight differences of verse-order ⌊4, 6, 5, 8, 7, 9 and 17, 19, 18, 20⌋). Not noticed at all in Vāit., and in Kāuś. only once, in 66. 20, where, with x. 10, it (or the first verse) is to be spoken by the giver of a cow, after sprinkling etc.
Translations
Translated; Ludwig, p. 448; Henry, 203, 248; Griffith, ii. 120; Bloomfield, 174, 656.
Griffith
On the duty of giving cows to Brahmans, and the sin and danger of withholding the gift
०१ ददामीत्येव ब्रूयादनु
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ददा॒मीत्ये॒व ब्रू॑या॒दनु॑ चैना॒मभु॑त्सत।
व॒शां ब्र॒ह्मभ्यो॒ याच॑द्भ्य॒स्तत्प्र॒जाव॒दप॑त्यवत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ददा॒मीत्ये॒व ब्रू॑या॒दनु॑ चैना॒मभु॑त्सत।
व॒शां ब्र॒ह्मभ्यो॒ याच॑द्भ्य॒स्तत्प्र॒जाव॒दप॑त्यवत् ॥
०१ ददामीत्येव ब्रूयादनु ...{Loading}...
Whitney
Translation
- I give [her]—thus should he say, if they have noticed (?
anu-budh) her—[I give] the cow (vaśā́) to the priests (brahmán)
that ask for her; that brings progeny, descendants.
Notes
Perhaps ánu ábhutsata is rather ‘have recognized’: i.e., have made her
out to be the kind of cow that is called vaśā́; or there may be in it
something of the meaning of anu-jnā: ‘have approved, or taken a liking
to.’ ⌊Cf. MGS. i. 8. 6 and p. 150.⌋
Griffith
Give the gift, shall be his word: and straightway they have bound the Cow For Brahman priests who beg the boon. That bringeth sons and progeny.
पदपाठः
ददा॑मि। इति॑। ए॒व। ब्रू॒या॒त्। अनु॑। च॒। ए॒ना॒म्। अभु॑त्सत। व॒शाम्। ब्र॒ह्मऽभ्यः॑। याच॑त्ऽभ्यः। तत्। प्र॒जाऽव॑त्। अप॑त्यऽवत्। ४.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - “(वशाम्) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] (याचद्भ्यः) माँगनेवाले (ब्रह्मभ्यः) ब्रह्माओं [वेदजिज्ञासुओं] को (ददामि) मैं देता हूँ, (च) निश्चय करके (एनाम्) इस [वेदवाणी] को (अनु) ध्यान देकर (अभुत्सत) उन [पूर्व ऋषियों] ने जाना है, (तत्) यह [विद्यादान] (प्रजावत्) श्रेष्ठ प्रजाओंवाला [और] (अपत्यवत्) उत्तम सन्तानोंवाला है−(इति) बस (एव) ऐसा (ब्रूयात्) वह [आचार्य] कहे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - आचार्य अधिकारी ब्रह्मचारियों को निश्चय करावे कि पूर्व ऋषियों ने वेद को मनन करके माना है कि वेदविद्या के अभ्यास से संसार के सब मनुष्य और सन्तान उत्तम होते हैं, उसी का उपदेश तुम को मैं करता हूँ ॥१॥ इस वशासूक्त का मिलान−अथर्व० का० १० सू० १० [वशासूक्त] से करो ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(ददामि) प्रयच्छामि (इति) वाक्यसमाप्तौ (एव) एवम् (ब्रूयात्) उपदिशेत्−आचार्यः (अनु) अनुलक्ष्य (च) अवधारणे (एनाम्) वेदवाणीम् (अभुत्सत) बुध अवगमने−लुङ्। ज्ञातवन्तः−पूर्वे विद्वांसः (वशाम्) अ० १०।१०।२। वशिरण्योरुपसंख्यानम्। वा० पा० ३।३।५८। वश कान्तौ प्रभुत्वे च−अप्, टाप्। वशा स्वाधीना−महीधरभाष्ये−यजु० २।१६। वशा कमनीयानि−दयानन्दभाष्ये, ऋक्० २।२४।१३। कमनीयां प्रभ्वीं वा वेदवाणीम् (ब्रह्मभ्यः) ब्राह्मणेभ्यः। ब्रह्मजिज्ञासुभ्यः (याचद्भ्यः) प्रार्थयमानेभ्यः (तत्) विद्यादानम् (प्रजावत्) प्रशस्यप्रजायुक्तम् (अपत्यवत्) श्रेष्ठसन्तानोपेतं कर्म ॥
०२ प्रजया स
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
प्र॒जया॒ स वि क्री॑णीते प॒शुभि॒श्चोप॑ दस्यति।
य आ॑र्षे॒येभ्यो॒ याच॑द्भ्यो दे॒वानां॒ गां न दित्स॑ति ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
प्र॒जया॒ स वि क्री॑णीते प॒शुभि॒श्चोप॑ दस्यति।
य आ॑र्षे॒येभ्यो॒ याच॑द्भ्यो दे॒वानां॒ गां न दित्स॑ति ॥
०२ प्रजया स ...{Loading}...
Whitney
Translation
- He bargains away his progeny and becomes exhausted of cattle who is
not willing to give the cow (gó) of the gods to the sons of seers that
ask for her.
Notes
⌊Pādas c, d recur as 12 a, b.⌋
Griffith
He trades and traffics with his sons, and in his cattle suffers loss. Who will not give the Cow of Gods to Rishis children when they beg.
पदपाठः
प्र॒ऽजया॑। सः। वि। क्री॒णी॒ते॒। प॒शुऽभिः॑। च॒। उप॑। द॒स्य॒ति॒। यः। आ॒र्षे॒येभ्यः॑। याच॑त्ऽभ्यः। दे॒वाना॑म्। गाम्। न। दित्स॑ति। ४.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह पुरुष (प्रजया) अपने सन्तान [पुत्र पुत्री आदि] के साथ (वि क्रीणीते) बिक जाता है (च) और (पशुभिः) अपने पशुओं [गाय घोड़े आदि] के साथ (उप दस्यति) नष्ट हो जाता है। (यः) जो पुरुष (याचद्भ्यः) माँगते हुए (आर्षेयेभ्यः) ऋषिसन्तानों को (देवानाम्) विजय चाहनेवालों के बीच (गाम्) वेदवाणी (न) नहीं (दित्सति) देना चाहता है ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् विद्वानों के बीच जिज्ञासुओं को वेदविद्या नहीं देता, वह निर्धन होकर अपने आप और उसके सन्तान पराधीन होकर कष्ट सहते हैं ॥२॥ इस मन्त्र का दूसरा आधा भाग आगे मन्त्र १२ में आया है ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(प्रजया) स्वसन्तानेन सह (सः) (वि क्रीणीते) परिव्यवेभ्यः क्रियः। पा० १।३।१८। इत्यात्मनेपदम्। विक्रीयते (पशुभिः) गवाश्वादिभिः सह (च) समुच्चये (उप दस्यति) उपदस्यते। उपक्षीयते (यः) (आर्षेयेभ्यः) अ० ११।१।१६। इतश्चानिञः। पा० ४।१।१२२। ऋषि−ढक्। ऋषिसन्तानेभ्यः (याचद्भ्यः) (देवानाम्) विजिगीषूणां मध्ये (गाम्) वेदवाणीम्। गौर्वाङ्नाम−निघ० १।११। (न) (निषेधे) (दित्सति) दातुमिच्छति ॥
०३ कूटयास्य सम्
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कू॒टया॑स्य॒ सं शी॑र्यन्ते श्लो॒णया॑ का॒टम॑र्दति।
ब॒ण्डया॑ दह्यन्ते गृ॒हाः का॒णया॑ दीयते॒ स्वम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
कू॒टया॑स्य॒ सं शी॑र्यन्ते श्लो॒णया॑ का॒टम॑र्दति।
ब॒ण्डया॑ दह्यन्ते गृ॒हाः का॒णया॑ दीयते॒ स्वम् ॥
०३ कूटयास्य सम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- By a hornless one they are crushed for him; by a lame one he falls (?
ard) into a pit; by a crippled one his houses are burned; by a
one-eyed one his possessions are taken away (?).
Notes
The adjectives are feminine, and the sense doubtless is that as the
result of giving such defective cows the thing threatened will happen.
In a, probably the subject to be understood is gṛhā́s, as in c;
b and c have perhaps become transposed—and, in that case, svám
might be the subject also of árdati. ⌊Ppp. has kāṭam, like the
Vulgate.⌋ The translation of d implies emendation (which seems
advisable ⌊cf. W. in AJP. xiii. 302⌋) of kāṇáyā to kāṇáyā́: i.e.
kāṇáyā: ā́: dīyate. Ppp. has jīyate ‘is harmed,’ which would remove
the difficulty. ⌊On kūṭá, see von Bradke, KZ. xxxiv. 157.⌋
Griffith
They perish through a hornless cow, a lame cow sinks them in a pit. Through a maimed cow his house is burnt: a one-eyed cow destroys his wealth.
पदपाठः
कू॒टया॑। अ॒स्य॒। सम्। शी॒र्य॒न्ते॒। श्लो॒णया॑। का॒टम्। अ॒र्द॒ति॒। ब॒ण्डया॑। द॒ह्य॒न्ते॒। गृ॒हाः। का॒णया॑। दी॒य॒ते॒। स्वम्। ४.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कूटया) [वेदवाणी के] नहीं देने से (अस्य) उस पुरुष के (गृहाः) घर (सं शीर्यन्ते) सर्वथा नष्ट किये जाते हैं, और (बण्डया) ढक देने से (दह्यन्ते) जलाये जाते हैं, (श्लोणया) बटोर रखने से (काटम्) अपनी प्रसिद्धता को (अर्दति) वह नष्ट करता है, और (काणया) मूँद रखने से (स्वम्) [उसका] सर्वस्व (दीयते) बट जाता है ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वेदवाणी के उपदेश और प्रचार के विना मनुष्य तनक्षीण, मनमलीन और धनहीन होकर महा कष्ट पाते हैं ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(कूटया) कूट दानाभावे−घञ्। टाप्। अदानेन (अस्य) पुरुषस्य (सं शीर्यन्ते) सर्वथा नाश्यन्ते (श्लोणया) श्लोणृ संघाते−घञ्। राशीकरणेन (काटम्) कटी गतौ−घञ्। प्राकट्यम्। प्रसिद्धिम् (अर्दति) नाशयति (बण्डया) बडि विभाजने वेष्टने च−घञ्। वेष्टनेन (दह्यन्ते) भस्मीक्रियन्ते (गृहाः) निवासाः (काणया) कण निमीलने−घञ्। निमीलनेन (दीयते) दीङ् क्षये। नश्यति (स्वम्) सर्वस्वम् ॥
०४ विलोहितो अधिष्ठानाच्छक्नो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
वि॑लोहि॒तो अ॑धि॒ष्ठाना॑च्छ॒क्नो वि॑न्दति॒ गोप॑तिम्।
तथा॑ व॒शायाः॒ संवि॑द्यं दुरद॒भ्ना ह्यु१॒॑च्यसे॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
वि॑लोहि॒तो अ॑धि॒ष्ठाना॑च्छ॒क्नो वि॑न्दति॒ गोप॑तिम्।
तथा॑ व॒शायाः॒ संवि॑द्यं दुरद॒भ्ना ह्यु१॒॑च्यसे॑ ॥
०४ विलोहितो अधिष्ठानाच्छक्नो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Anæmia (vilohitá) from the station of the dung visits (vid) the
master of kine; so is the agreement (?) of the cow; for door-damaging
(?) art thou called.
Notes
Nearly everything in the second half-verse is doubtful. The majority of
our mss. read sáṁvidyam (p. sám॰vidyam), but sā́ṁ- instead is given
by M.s.m.O.s.m. and D.; and in R. sā́ṁ- is emended to sāṁ-.
Sā́ṁvidya seems a much more probable form of stem. The Pet. Lexx.
render ‘possession,’ which is very unsatisfactory. Duradabhnā́ (also in
vs. 19) seems pretty clearly the reading of nearly all our mss. in
c, though it might, as usual in such cases, be -bhrā́ in most; Bp.
has (both times) apparently -bhdnā, and O. ⌊in vs. 4⌋ -bdnā or
-b-h-nā (the b and h separate letters, as again below in xiii. 1.
25 c). The word is not divided in the pada-text. The translation
given is ⌊suggested by⌋ that of the Pet. Lexx.; Ludwig renders here
‘unbetrieglich’ (undeceivable), but leaves the word untranslated in vs.
19. The second person ucyáse is quite unexpected; ⌊most of our⌋
saṁhitā-mss. read hy ū̀3cyáse; ⌊and SPP’s are much at variance⌋. ⌊As
alternative rendering in a, b, W. notes ‘from standing on her
dung.’⌋ Ppp. reads, in c, d, svāṁ vidyuṁ duritagrāhy uccase.
Griffith
Fierce fever where her droppings fall attacks the master of the kine. So have they named her Vasa, for thou art called uncontrollable.
पदपाठः
वि॒ऽलो॒हि॒तः। अ॒धि॒ऽस्थाना॑त्। श॒क्नः। वि॒न्द॒ति॒। गोऽप॑तिम्। तथा॑। व॒शायाः॑। सम्ऽवि॑द्यम्। दु॒र॒द॒भ्ना। हि। ॒ उ॒च्यसे॑। ४.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अधिष्ठानात्) [ब्रह्मचर्य के] प्रभाव से (विलोहितः) विविध उगा हुआ, (शक्नः) शक्तिमान् पुरुष (गोपतिम्) पृथिवी की पालनेवाली [वेदवाणी] को (विन्दति) पाता है। (तथा) वैसा ही (वशायाः) वशा [वश में करनेवाली वा कामनायोग्य वेदवाणी] का (संविद्यम्) जानने योग्य नाम है−“(हि) क्योंकि (दुरदभ्ना) कभी भी न दबनेवाली (उच्यसे) तू कही जाती है ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - ब्रह्मचर्य के प्रभाव से मनुष्य उच्च होकर वेदवाणी जानकर पृथिवी की रक्षा कर सकता है, इसी से उसका नाम (वशा) वश में करनेवाली है ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(विलोहितः) रुहेश्च लो वा। उ० ३।९४। रुह बीजजन्मनि प्रादुर्भावे च−इतन्, रस्य लः। प्रादुर्भूतः पुरुषः (अधिष्ठानात्) प्रभावात् (शक्नः) धापॄवस्यज्यतिभ्यो नः। उ० ३।६। शक्लृ शक्तौ−न प्रत्ययः। शक्तिमान् (विन्दति) प्राप्नोति (गोपतिम्) पृथिवीपालिकां वशाम् (तथा) तेन प्रकारेण (वशायाः) म० १। वशयित्र्याः कमनीयाया वा वेदवाण्याः (संविद्यम्) विद ज्ञाने−क्यप्। सम्यग् ज्ञातव्यं नाम (दुरदभ्ना) इण्शिञ्जि०। उ० ३।२। दुर+नञ्+दम्भु दम्भने−नक्, टाप्। दभ्नोतिर्गतिकर्मा−निघ० २।१४, वधकर्मा−निघ० २।१९। दुर् दुःखेन कदापि नहि दम्भनीया पराजेया (हि) यतः (उच्यसे) कथ्यसे ॥
०५ पदोरस्या अधिष्ठानाद्विक्लिन्दुर्नाम
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प॒दोर॑स्या अधि॒ष्ठाना॑द्वि॒क्लिन्दु॒र्नाम॑ विन्दति।
अ॑नाम॒नात्सं शी॑र्यन्ते॒ या मुखे॑नोप॒जिघ्र॑ति ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
प॒दोर॑स्या अधि॒ष्ठाना॑द्वि॒क्लिन्दु॒र्नाम॑ विन्दति।
अ॑नाम॒नात्सं शी॑र्यन्ते॒ या मुखे॑नोप॒जिघ्र॑ति ॥
०५ पदोरस्या अधिष्ठानाद्विक्लिन्दुर्नाम ...{Loading}...
Whitney
Translation
- From the station of the two feet of her, soaking (? viklíndu)
namely visits [him]; unexpectedly (?) are they crushed who snuff at
her with the mouth.
Notes
Here, too, much is obscure and doubtful. The first part might be: ‘From
the station of her ⌊or ‘from standing on her,’ as W. queries⌋, soaking
of the feet visits ⌊him⌋,’ as it is hard to see what two feet have to do
with a cow. And in d yā́s can be either subject or object, and
jíghrati either sing, or pl. I take anāmanā́t from root man; Ludwig
renders it ‘without becoming ill’; the Pet. Lexx. explain the word as
meaning a kind of disease. Ppp. reads, in a, b, asyā ’dhiṣṭhānād
vikulaṁ dvin nāma.
Griffith
The malady Viklindu springs on him from ground whereon she stands, And suddenly, from fell disease, perish the men on whom she sniffs.
पदपाठः
प॒दोः। अ॒स्याः॒। अ॒धि॒ऽस्थाना॑त्। वि॒ऽक्लिन्दुः॑। नाम॑। वि॒न्द॒ति॒। अ॒ना॒म॒नात्। सम्। शी॒र्य॒न्ते॒। याः। मुखे॑न। उ॒प॒ऽजिघ्र॑ति। ४.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अस्याः) इस [वेदवाणी] के (पदोः) स्थिर वा पाने योग्य (अधिष्ठानात्) प्रभाव से (विक्लिन्दुः) विगतशोक मनुष्य (नाम) नाम [बड़ाई] (विन्दति) पाता है। [वेदवाणी के] (अनामनात्) यथावत् न विचारने से वे [प्रजाएँ, मनुष्य] (सं शीर्यन्ते) सर्वथा नष्ट किये जाते हैं, (याः) जो [प्रजाजन] (मुखेन) मुख से [उस को] (उपजिघ्रति) तुच्छपन के साथ ग्रहण करते हैं ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि वेदवाणी के विचार से प्रधानता पाकर क्लेशों से छूटकर सुख भोगें। जो वेदवाणी के बिना विचारे दिखावे के लिये रटते हैं, वे कष्ट पाते हैं ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(पदोः) भृमृशीङ्०। उ० १।७। पद स्थैर्ये गतौ च−उ। स्थिरात् प्रापणीयात् (अस्याः) वेदवाण्याः (अधिष्ठानात्) प्रभावात् (विक्लिन्दुः) भृमृशीङ्०। उ० १।७। वि+क्लिदि रोदने शोके च−उ। विगतशोकः (नाम) वशः (विन्दति) प्राप्नोति (अनामनात्) नञ्+आङ्+मन बोधे−अच्। सर्वथा मननराहित्यात् (संशीर्यन्ते) सम्यग् नाश्यन्ते (मुखेन) (उपजिघ्रति) घ्रा ग्रहणे भ्वादिः, जुहोत्यादित्वं छान्दसम्। बहुलं छन्दसि। पा० ७।४।७८। अभ्यासस्य इत्वम्। उप हीनतया जिघ्रति गृह्णन्ति ॥
०६ यो अस्याः
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यो अ॑स्याः॒ कर्णा॑वास्कु॒नोत्या स दे॒वेषु॑ वृश्चते।
लक्ष्म॑ कुर्व॒ इति॒ मन्य॑ते॒ कनी॑यः कृणुते॒ स्वम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यो अ॑स्याः॒ कर्णा॑वास्कु॒नोत्या स दे॒वेषु॑ वृश्चते।
लक्ष्म॑ कुर्व॒ इति॒ मन्य॑ते॒ कनी॑यः कृणुते॒ स्वम् ॥
०६ यो अस्याः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Whoever punches (ā-sku) the two ears of her, he falls under the
wrath of the gods; if he thinks “I am making a mark,” he makes his
possessions less.
Notes
Ppp. begins yo ‘syāṣ karṇāv āskanoty, and reads in c lakṣmīṣ
kurvīta. ⌊Pāda b recurs as 12 c. For the construction, cf. 26
d, 47 d: and, per contra, 12 d, 34 d, and 51 c.⌋
We are to make the combination kurve ’ti. ⌊As to the marking of
cattle’s ears, cf. vi. 141. 2 and note, and Zimmer, p. 234. In a
marginal note, W. compares MS. iv. 2. 9 (p. 3¹⁵). The MS. passage and
this vs. and the root akṣ are discussed by Delbrück,
Gurupūjākaumudī, p. 48-49.—Ppp. puts the vs. between 4 and 5.⌋
Griffith
Whoever twitches up her ears is separated from the Gods. He deems he makes a mark, but he diminishes his wealth thereby.
पदपाठः
यः। अ॒स्याः॒। कर्णौ॑। आ॒ऽस्कु॒नोति॑। आ। सः। दे॒वेषु॑। वृ॒श्च॒ते॒। लक्ष्म॑। कु॒र्वे॒। इति॑। मन्य॑ते। कनी॑यः। कृ॒णु॒ते॒। स्वम्। ४.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो मनुष्य (अस्याः) इस [वेदवाणी] के (कर्णौ) दो विज्ञानों [अभ्युदय और निःश्रेयस अर्थात् तत्त्वज्ञान और मोक्षज्ञान] को (आस्कुनोति) ढक देता है, (सः) वह (देवेषु) स्तुतियोग्य गुणों में (आ) सब ओर से (वृश्चते) कतर जाता है।(लक्ष्म) प्रधान कर्म (कुर्वे) मैं करता हूँ−(इति) ऐसा [जो] (मन्यते) मानता है, वह [पुरुष] (स्वम्) अपना सर्वस्व (कनीयः) अधिक थोड़ा (कृणुते) करता है ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो नास्तिक पाखण्डी मनुष्य वेदवाणी के तत्त्वज्ञान और मोक्षज्ञान को न मानकर आडम्बर रचता है, वह तुच्छ हो जाता है ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(यः) पुरुषः (अस्याः) वेदवाण्याः (कर्णौ) कॄवृजॄ०। उ० ३।१०। कॄ विक्षेपे हिंसने विज्ञाने च−न प्रत्ययो मित्। अभ्युदयनिःश्रेयसबोधौ (आस्कुनोति) स्कुञ् आप्रवणे आच्छादने। समन्तादाच्छादयति (आ) समन्तात् (सः) (देवेषु) स्तुत्यगुणेषु (वृश्चते) छिद्यते (लक्ष्म) लक्ष दर्शनाङ्कनयोः−मनिन्। प्रधानत्वम् (कुर्वे) करोमि (इति) (मन्यते) जानाति (कनीयः) अल्प−ईयसुन्। अल्पतरम् (कृणुते) करोति (स्वम्) सर्वस्वम् ॥
०७ यदस्याः कस्मै
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यद॑स्याः॒ कस्मै॑ चि॒द्भोगा॑य॒ बाला॒न्कश्चि॑त्प्रकृ॒न्तति॑।
ततः॑ किशो॒रा म्रि॑यन्ते व॒त्सांश्च॒ घातु॑को॒ वृकः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यद॑स्याः॒ कस्मै॑ चि॒द्भोगा॑य॒ बाला॒न्कश्चि॑त्प्रकृ॒न्तति॑।
ततः॑ किशो॒रा म्रि॑यन्ते व॒त्सांश्च॒ घातु॑को॒ वृकः॑ ॥
०७ यदस्याः कस्मै ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If, for any one’s advantage, any one cuts off the tail-tuft of her,
then his colts die, and the wolf slays his calves.
Notes
Or (in a), ‘for any advantage or use.’ Ppp. makes 7 c, d and 8
c, d change places. It reads also vālān in b.
Griffith
If to his own advantage one applies the long hair of her tail, His colts, in consequence thereof. die, and the wolf destroys his calves.
पदपाठः
यत्। अ॒स्याः॒। कस्मै॑। चि॒त्। भोगा॑य। बाला॑न्। कः। चि॒त्। प्र॒ऽकृ॒न्तति॑। ततः॑। कि॒शो॒राः। म्रि॒य॒न्ते॒। व॒त्सान्। च॒। घातु॑कः। वृकः॑। ४.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- भुरिगनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यदि (कस्मैचित्) किसी ही (भोगाय) कुटिलता के लिये (अस्याः) इस [वेदवाणी] के (बालान्) बलों को (कश्चित्) कोई पुरुष (प्रकृन्तति) कतर लेता है। (ततः) उस [कुटिलता] से (किशोराः) किशोर [तरुण अवस्थावाले] (म्रियन्ते) मर जाते हैं, (च) और (वृकः) वह भेड़िया [समान हिंसक] (वत्सान् घातुकः) [बोलते हुए] बच्चों का हत्यारा [होता है] ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो कुटिल कुचाली मनुष्य पवित्र वेदवाणी को चोरी, डकैती, व्यभिचार आदि कुनीति में लगाता है, वह अपने प्रिय सम्बन्धियों को भी मारकर नरक में पड़ता है ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(यत्) यदि (अस्याः) वेदवाण्याः (कस्मैचित्) अनिश्चिताय (भोगाय) भुजो कौटिल्ये−घञ्। कौटिल्याय (बालान्) बल प्राणने−घञ्। पराक्रमान् (कश्चित्) दुष्टः (प्रकृन्तति) प्रकर्षेण छिनत्ति (ततः) तस्मात् कारणात् (किशोराः) किशोरादयश्च। उ० १।६५। किम्+शॄ हिंसायाम्−ओरन्। तरुणावस्थाः पुरुषाः (म्रियन्ते) प्राणांस्त्यजन्ति (वत्सान्) वृतॄवदिवचिवसि०। उ० ३।६२। वद व्यक्तायां वाचि−स प्रत्ययः। वदनशीलान् बालकान् (च) (घातुकः) लषपतपदस्थाभूवृषहन०। पा० ३।२।१५४। हन हिंसागत्योः−उकञ्। नलोकाव्यय०। पा० २।३।६९। इति सकर्मकता। घ्नन्। हन्ता (वृकः) वृक इव हिंसकः ॥
०८ यदस्या गोपतौ
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यद॑स्या॒ गोप॑तौ स॒त्या लोम॒ ध्वाङ्क्षो॒ अजी॑हिडत्।
ततः॑ कुमा॒रा म्रि॑यन्ते॒ यक्ष्मो॑ विन्दत्यनाम॒नात् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यद॑स्या॒ गोप॑तौ स॒त्या लोम॒ ध्वाङ्क्षो॒ अजी॑हिडत्।
ततः॑ कुमा॒रा म्रि॑यन्ते॒ यक्ष्मो॑ विन्दत्यनाम॒नात् ॥
०८ यदस्या गोपतौ ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If of her, while being with her master, a crow hath vexed (hīḍ) the
hair, then his boys die, [and] the yákṣma visits him unexpectedly
(?).
Notes
As to anāmanā́t, see note to vs. 5. The first pāda apparendy means ‘in
presence of her master,’ and so, ‘without his interference for her
protection.’ ⌊Ppp. combines tataṣ k- in c.⌋
Griffith
If, while her master owneth her, a carrion crow hath harmed her hair, His young boys die thereof, Decline o’ertakes them after fell disease.
पदपाठः
यत्। अ॒स्याः॒। गोऽप॑तौ। स॒त्याः। लोम॑। ध्वाङ्क्षः॑। अजी॑हिडत्। ततः॑। कु॒मा॒राः। म्रि॒य॒न्ते॒। यक्ष्मः॑। वि॒न्द॒ति॒। अ॒ना॒म॒नात्। ४.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यदि (गोपतौ) वेदवाणी के रक्षक [ब्रह्मचारी] में (सत्याः) वर्तमान (अस्याः) इस (वेदवाणी) के (लोम) गमन को (ध्वाङ्क्षः) काँव-काँव करनेवाले [कौवे समान दुष्ट मनुष्य] ने (अजीहिडत्) तुच्छ माना है। (ततः) उस कारण से (कुमाराः) कुमार [शत्रुमारक बालक] (म्रियन्ते) मर जाते हैं, और (अनामनात्) यथावत् न विचारने से [उस कुमार्गी को] (यक्ष्मः) राजरोग (विन्दति) पकड़ लेता है ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जब कुकर्मी मनुष्य सर्वरक्षक वेद आज्ञा से उलटा चलता है, वह आप और उसके बच्चे आदि महा विपत्ति में पड़ते हैं ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(यत्) यदि (अस्याः) वेदवाण्याः (गोपतौ) म० ४। गोर्वेदवाण्या रक्षके ब्रह्मचारिणि (सत्याः) वर्तमानायाः (लोम) नामन्सीसन्व्योमन्रोमन्लोमन्०। उ० ४।१५१। रु गतौ−मनिन् रस्य लः, यद्वा लूञ् छेदने−मनिन्। गमनम्। दुःखच्छेदनम्। (ध्वाङ्क्षः) ध्वाक्षि घोरशब्दे−अच्। घोरध्वनिः पुरुषः, यद्वा काकतुल्यहिंसकः (अजीहिडत्) हेडृ अनादरे वेष्टने च। तिरस्कृतवान् (ततः) तस्मात् (कुमाराः) कुमार क्रीडायाम्−अच्, यद्वा कुत्सितो मारो यस्मात्, कौ पृथिव्यां मारयति दुष्टान्। कीडाशीलाः। पृथिव्यां शत्रुनाशकाः (म्रियन्ते) (यक्ष्मः) राजरोगः (विन्दति) गृह्णाति (अनामनात्) म० ५। सर्वथा मननराहित्यात् ॥
०९ यदस्याः पल्पूलनम्
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यद॑स्याः॒ पल्पू॑लनं॒ शकृ॑द्दा॒सी स॒मस्य॑ति।
ततोऽप॑रूपं जायते॒ तस्मा॒दव्ये॑ष्य॒देन॑सः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यद॑स्याः॒ पल्पू॑लनं॒ शकृ॑द्दा॒सी स॒मस्य॑ति।
ततोऽप॑रूपं जायते॒ तस्मा॒दव्ये॑ष्य॒देन॑सः ॥
०९ यदस्याः पल्पूलनम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If the lye, the dung of her a barbarian woman flings together, then
is born what is deformed, what will not escape from that sin.
Notes
All our mss. appear to read distinctly palpūl- in a, yet they are
never to be trusted to make the distinction between lp and ly.
Apparently the word is used here for ‘urine,’ and the meaning is ‘if
such precious stuff is carelessly treated by a slave-woman (dāsī).’
Ppp. reads ‘pirūpaṁ in c. We have to resolve as-i-āḥ to fill out
the meter of a.
Griffith
What time the Dasi woman throws lye on the droppings of the Cow, Misshapen birth arises thence, inseparable from that sin.
पदपाठः
यत्। अ॒स्याः॒। पल्पू॑लनम्। शकृ॑त्। दा॒सी। स॒म्ऽअस्य॑ति। ततः॑। अप॑ऽरूपम्। जा॒य॒ते॒। तस्मा॑त्। अवि॑ऽएष्यत्। एन॑सः। ४.९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यदि (अस्याः) इस [वेदवाणी] के (शकृत्) शक्तिवाले (पल्पूलनम्) ज्ञानसमूह को (दासी) हिंसक प्रजा [स्त्री वा पुरुष] (समस्यति) फेंक देती है। (ततः) तो (तस्मात् एनसः) उस पाप से [उस पापी को] (अव्येष्यत्) न दूर होनेवाला (अपरूपम्) कुरूप [कलङ्क का टीका] (जायते) हो जाता है ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जब कोई दुराचारी वेद आज्ञा न मानकर भारी पाप कर बैठता है, तो उसका सारा जीवन कलङ्कित हो जाता है ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ९−(यत्) यदि (अस्याः) वेदवाण्याः (पल्पूलनम्) पल गतौ−क्विप्+पूल संघाते−ल्युट्। ज्ञानसमूहम् (शकृत्) शकेर्ऋतिन्। उ० ४।५८। शक्ल शक्तौ−ऋतिन्। शक्तियुक्तम् (दासी) अ० १२।३।१३। हिंसिका प्रजा (समस्यति) सर्वथा क्षिपति (ततः) तस्मात् कारणात् (अपरूपम्) कुत्सितरूपम् (जायते) प्रादुर्भवति (तस्मात्) (अव्येष्यत्) नञ्+वि+इण् गतौ−स्यतृ। अपृथग् गमिष्यत् (एनसः) पापात् ॥
१० जायमानाभि जायते
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जाय॑माना॒भि जा॑यते दे॒वान्त्सब्रा॑ह्मणान्व॒शा।
तस्मा॑द्ब्र॒ह्मभ्यो॒ देयै॒षा तदा॑हुः॒ स्वस्य॒ गोप॑नम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
जाय॑माना॒भि जा॑यते दे॒वान्त्सब्रा॑ह्मणान्व॒शा।
तस्मा॑द्ब्र॒ह्मभ्यो॒ देयै॒षा तदा॑हुः॒ स्वस्य॒ गोप॑नम् ॥
१० जायमानाभि जायते ...{Loading}...
Whitney
Translation
- When being born, the cow (vaśā́) is born for (abhí) the gods
together with the Brahmans; therefore she is to be given to the priests
(brahmán); that people call the guarding (gópana) of one’s
possessions.
Notes
The pada-text makes the extraordinary division gó॰panam ⌊for the
sake of the play upon go ‘cow’?⌋, as if the word were not a simple
derivative from root gup! ‘For’ (abhí): more literally ‘unto, into
the possession of.’
Griffith
For Gods and Brahmans is the Cow produced when first she springs to life, Hence to the priests must she be given: this they call guarding private wealth.
पदपाठः
जाय॑मानाः। अ॒भि। जा॒य॒ते॒। दे॒वान्। सऽब्रा॑ह्मणान्। व॒शा। तस्मा॑त्। ब्र॒ह्मऽभ्यः॑। देया॑। ए॒षा। तत्। आ॒हुः॒। स्वस्य॑। गोप॑नम्। ४.१०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (जायमाना) प्रकट होती हुई (वशा) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] (सब्राह्मणान्) ब्राह्मणों [वेदजिज्ञासुओं] सहित (देवान् प्रति) विजय चाहनेवालों को (जायते) प्रकट होती है। (तस्मात्) इस लिये (एषा) यह [वेदवाणी] (ब्रह्मभ्यः) वेदजिज्ञासुओं को (देया) देनी चाहिये, (तत्) उस [कर्म] को (स्वस्य) सर्वस्व का (गोपनम्) रक्षण (आहुः) वे [विद्वान्] कहते हैं ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परोपकारी ब्रह्मजिज्ञासु शूर पराक्रमी वेदवाणी को प्राप्त करके संसार का सुधार करते हैं। वैदिक उपदेश से सब के सर्वस्व की रक्षा होती है ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १०−(जायमाना) प्रादुर्भवन्ती (अभि) प्रति (जायते) प्रादुर्भवति (देवान्) विजिगीषून् (सब्राह्मणान्) ब्रह्मजिज्ञासुभिः सहितान् (वशा) म० १। कमनीया वेदवाणी (तस्मात्) (ब्रह्मभ्यः) ब्रह्मजिज्ञासुभ्यः (देया) दातव्या (एषा) वेदवाणी (तत्) (आहुः) कथयन्ति (स्वस्य) सर्वस्वस्य (गोपनम्) रक्षणम् ॥
११ य एनाम्
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य ए॑नां व॒निमा॒यन्ति॒ तेषां॑ दे॒वकृ॑ता व॒शा।
ब्र॑ह्म॒ज्येयं॒ तद॑ब्रुव॒न्य ए॑नां निप्रिया॒यते॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
य ए॑नां व॒निमा॒यन्ति॒ तेषां॑ दे॒वकृ॑ता व॒शा।
ब्र॑ह्म॒ज्येयं॒ तद॑ब्रुव॒न्य ए॑नां निप्रिया॒यते॑ ॥
११ य एनाम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- They who come to the winning (vaní) of her, theirs is the god-made
cow ⌊vaśā́⌋; they called it bráhman-scathing, if anyone keeps her to
himself.
Notes
Pāda b seems to mean virtually ‘she is by the gods made theirs.’
Ppp. reads at the end (as also in vss. 21, 25) nu priyāyate, and
nipr- is certainly very questionable, since no nipriya nor even root
prī + ni occurs. The minor Pet Lex. gives the word two totally
different explanations, under nipriyāy and priyāy respectively.
Griffith
The God-created Cow belongs to those who come to ask for her. They call it outrage on the priests when one retains her as his own.
पदपाठः
ये। ए॒ना॒म्। व॒निम्। आ॒ऽयन्ति॑। तेषा॑म्। दे॒वऽकृ॑ता। व॒शा। ब्र॒ह्म॒ऽज्येय॑म्। तत्। अ॒ब्रु॒व॒न्। यः। ए॒ना॒म्। नि॒ऽप्रि॒य॒यते॑। ४.११।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो पुरुष (वनिम्) सेवनीय (एनाम्) इस [वेदवाणी] को (आयन्ति) प्राप्त करते हैं, (वशा) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] (तेषाम्) उनकी (देवकृता) विजय इच्छा सिद्ध करनेवाली है। (तत्) यह [वचन] (ब्रह्मज्येयम्) ब्रह्माओं [वेदवेत्ताओं] के हानि करने योग्य [पुरुष] से (अब्रुवन्) उन [विद्वानों] ने कहा है, (यः) जो (एनाम्) इस [वेदवाणी] को (निप्रियायते) तुच्छपन से प्रिय सा मानता है ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो ब्रह्मचारी श्रम करक वेदविद्या प्राप्त करते हैं, वे विजयी होते हैं, और दम्भी पाखण्डी पण्डित मन्यमानी मनुष्य को विद्वान् लोग त्याग देते हैं, ऐसा निश्चय करना चाहिये ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ११−(ये) विद्वांसः (एनाम्) वेदवाणीम् (वनिम्) सेवनीयाम् (आयन्ति) समन्तात् प्राप्नुवन्ति (तेषाम्) विदुषाम् (देवकृता) देवो विजिगीषा कृता साधिता यया सा (वशा) म० १। कमनीया वेदवाणी (ब्रह्मज्येयम्) ब्रह्म+ज्या वयोहानौ−यत्, आकारस्व ईत्वम्। ब्रह्माणो वेदविदो ज्येया हानियोग्या यस्य तं विदुषां हानिकरम् (तत्) वचनम् (अब्रुवन्) अकथयन् विद्वांसः (यः) मूर्खः (एनाम्) वेदवाणीम् (निप्रियायते) कर्तुः क्यङ् सलोपश्च। पा० ३।१।१०। इति प्रिय−क्यङ्। नि नीचभावेन प्रिय इवाचरति ॥
१२ य आर्षेयेभ्यो
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य आ॑र्षे॒येभ्यो॒ याच॑द्भ्यो दे॒वानां॒ गां न दित्स॑ति।
आ स दे॒वेषु॑ वृश्चते ब्राह्म॒णानां॑ च म॒न्यवे॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
य आ॑र्षे॒येभ्यो॒ याच॑द्भ्यो दे॒वानां॒ गां न दित्स॑ति।
आ स दे॒वेषु॑ वृश्चते ब्राह्म॒णानां॑ च म॒न्यवे॑ ॥
१२ य आर्षेयेभ्यो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Whoever is not willing to give the cow (gó) of the gods to the
sons of seers that ask for her, he falls under the wrath of the gods and
the fury of the Brahmans.
Notes
Ppp. reads, for a, b, ya enāṁ yācadbhya ārṣeyebhyo nirucchati. ⌊We
had a, b above as 2 c, d, and c as 6 b.⌋
Griffith
He who withholds the Cow of Gods from Rishis’ sons who ask the gift Is made an alien to the Gods, and subject to the Brahmans’ wrath:
पदपाठः
यः। आ॒र्षे॒येभ्यः॑। याच॑त्ऽभ्यः। दे॒वाना॑म्। गाम्। न। दित्स॑ति। आ। सः। दे॒वेषु॑। वृ॒श्च॒ते॒। ब्रा॒ह्म॒णाना॑म्। च॒। म॒न्यवे॑। ४.१२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो पुरुष (याचद्भ्यः) माँगते हुए (आर्षेयेभ्यः) ऋषिसन्तानों का (देवानाम्) विजय चाहनेवालों के बीच (गाम्) वेदवाणी (न) नहीं (दित्सति) देना चाहता है। (सः) वह (देवेषु) स्तुतियोग्य गुणों में (आ) सब ओर से (वृश्चते) कट जाता है, (च) और (ब्राह्मणानाम्) ब्राह्मणों [वेदज्ञानियों] के (मन्यवे) क्रोध के लिये [होता है] ॥१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य योग्य ब्रह्मचारियों को वेदवाणी देने में बाधा डालता है, वह अपने शुभ गुणों में हेठा होकर विद्वानों के बीच अनादर पाता है ॥१२॥ इस मन्त्र का प्रथम आधा भाग ऊपर मन्त्र २ में आ चुका है ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १२−(आ) समन्तात् (सः) मूर्खः (देवेषु) स्तुत्यगुणेषु (वृश्चते) वृश्च्यते। छिद्यते। हीयते (ब्राह्मणानाम्) वेदवेतॄणां मध्ये (च) (मन्यवे) क्रोधाय भवतीति शेषः। अन्यत् पूर्ववत्−म० २ ॥
१३ यो अस्य
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यो अ॑स्य॒ स्याद्व॑शाभो॒गो अ॒न्यामि॑च्छेत॒ तर्हि॒ सः।
हिंस्ते॒ अद॑त्ता॒ पुरु॑षं याचि॒तां च॒ न दित्स॑ति ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यो अ॑स्य॒ स्याद्व॑शाभो॒गो अ॒न्यामि॑च्छेत॒ तर्हि॒ सः।
हिंस्ते॒ अद॑त्ता॒ पुरु॑षं याचि॒तां च॒ न दित्स॑ति ॥
१३ यो अस्य ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Whatever may be his use for the cow (vaśā́-), he should then seek
another [cow]; she, ungiven, harms a man, if he is not willing to give
her when asked for.
Notes
Ppp. has a quite different version of a-c: yasyā ’nya syād
vaśābhogo ‘nyām icchetu barhiṣaḥ: hiṅsrā ṇi dhatsva gopatiṁ. We should
expect pū́ruṣam at end of c, as elsewhere in such a position.
Griffith
Then let him seek another Cow, whate’er his profit be in this. The Cow, not given, harms a man when he denies her at their prayer.
पदपाठः
यः। अ॒स्य॒। स्यात्। व॒शा॒ऽभो॒गः। अ॒न्याम्। इ॒च्छे॒त॒। तर्हि॑। सः। हिंस्ते॑। अद॑त्ता। पुरु॑षम्। या॒चि॒ताम्। च॒। न। दित्स॑ति। ४.१३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो मनुष्य (अस्य) अपनी (वशाभोगः) वेदवाणी का सुख पानेवाला (स्यात्) होना चाहे, (तर्हि) तब (सः) वह (अन्याम्) जीवन देनेवाली [वेदवाणी] को (इच्छेत) चाहे। (अदत्ता) न दी हुई [वेदवाणी] (पुरुषम्) [उस] पुरुष को (च) अवश्य (हिंस्ते) मार डालती है, [जो] (याचिताम्) माँगी हुई [वेदवाणी] को (न) नहीं (दित्सति) देना चाहता है ॥१३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वेदविज्ञान को प्रीति से खोजता हुआ और प्रकाश करता हुआ मनुष्य सुख भोगता है, और जो उसकी प्रवृत्ति को रोकता है, वह आत्मा को संकुचित करने से दुःख पाता है ॥१३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १३−(यः) पुरुषः (अस्य) स्वकीयस्य (स्यात्) भवेत् (वशाभोगः) वशायाः कमनीयाया वेदवाण्या भोगः सुखानुभवो यस्य सः (अन्याम्) माछाशसिभ्यो यः। उ० ४।१०९। अन जीवने−यः। जीवयित्रीम्। जीवनदात्रीम् (इच्छेत) प्रीणीयात् (तर्हि) तदा सः (हिंस्ते) नाशयति (अदत्ता) वेदवाणी (पुरुषम्) (याचिताम्) प्रार्थिताम् (च) अवश्यम् (न) निषेधे (दित्सति) दातुमिच्छति ॥
१४ यथा शेवधिर्निहितो
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यथा॑ शेव॒धिर्निहि॑तो ब्राह्म॒णानां॒ तथा॑ व॒शा।
तामे॒तद॒च्छाय॑न्ति॒ यस्मि॒न्कस्मिं॑श्च॒ जाय॑ते ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यथा॑ शेव॒धिर्निहि॑तो ब्राह्म॒णानां॒ तथा॑ व॒शा।
तामे॒तद॒च्छाय॑न्ति॒ यस्मि॒न्कस्मिं॑श्च॒ जाय॑ते ॥
१४ यथा शेवधिर्निहितो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- As a deposited treasure (śevadhí), so of the Brahmans is the cow
(vaśā́); accordingly ⌊etát⌋ they come unto her, in whosesoever
possession she is born.
Notes
Griffith
Like a rich treasure stored away in safety is the Brahmans’ Cow. Therefore men come to visit her, with whomsoever she is born.
पदपाठः
यथा॑। शे॒व॒ऽधिः। निऽहि॑तः। ब्रा॒ह्म॒णाना॑म्। तथा॑। व॒शा। ताम्। ए॒तत्। अ॒च्छ॒ऽआय॑न्ति। यस्मि॑न्। कस्मि॑न्। च॒। जाय॑ते। ४.१४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (निहितः) नियम से रक्खा हुआ (शेवधिः) निधि [सुखदायक पदार्थ] होता है, (तथा) वैसे ही (वशा) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] (ब्राह्मणानाम्) ब्राह्मणों [वेदज्ञानियों] की है। (एतत्) इसीलिये (ताम्) उस [वेदवाणी] को (अच्छ−आयन्ति) अच्छे प्रकार प्राप्त करते हैं, (यस्मिन् कस्मिन् च) चाहे जिस किसी में (जायते) वह होवे ॥१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - यह वेदवाणी ईश्वर ने वेदवेत्ताओं को संसार के सुख के लिये निधि के समान सौंपी है। मनुष्य उसको वेदद्वारा परमाणु से लेकर ईश्वरपर्यन्त खोजकर प्राप्त करें ॥१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १४−(यथा) येन प्रकारेण (शेवधिः) सुखप्रदः। निधिः−निरु० २।४। (निहितः) नियमेन स्थापितः (ब्राह्मणानाम्) ब्रह्मज्ञानिनाम् (तथा) (वशा) कमनीया वेदवाणी (ताम्) वेदवाणीम् (एतत्) एतस्मात्कारणात् (अच्छायन्ति) आभिमुख्येन प्राप्नुवन्ति (यस्मिन्) (कस्मिन्) (च) सम्भावनायाम् (जायते) वर्तते ॥
१५ स्वमेतदच्छायन्ति यद्वशाम्
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स्वमे॒तद॑च्छायन्ति॒ यद्व॒शां ब्रा॑ह्म॒णा अ॒भि।
यथै॑नान॒न्यस्मि॑ञ्जिनी॒यादे॒वास्या॑ नि॒रोध॑नम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स्वमे॒तद॑च्छायन्ति॒ यद्व॒शां ब्रा॑ह्म॒णा अ॒भि।
यथै॑नान॒न्यस्मि॑ञ्जिनी॒यादे॒वास्या॑ नि॒रोध॑नम् ॥
१५ स्वमेतदच्छायन्ति यद्वशाम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- They come thus unto their own property, namely the Brahmans unto
the cow; as one might scathe them in any other respect (?), so is the
keeping back of her.
Notes
The third pāda is unclear, and the bad meter makes the reading
suspicious; yet Ppp. has the same, and varies only in combining
brāhmaṇā ’bhi in b, and combining and reading ’syā ’dhirohaṇaṁ
in d. Most of our mss. (all except D. and R.s.ni.) have the false
accent brā́hmaṇās in b; our text emends. The Anukr. takes no notice
of the redundant syllable in c.
Griffith
So when the Brahmans come unto the Cow they come unto their own. For this is her withholding, to oppress these in another life.
पदपाठः
स्वम्। ए॒तत्। अ॒च्छ॒ऽआय॑न्ति। यत्। व॒शाम्। ब्रा॒ह्म॒णाः। अ॒भि। यथा॑। ए॒ना॒न्। अ॒न्यस्मि॑न्। जि॒नी॒यात्। ए॒व। अ॒स्याः॒। नि॒ऽरोध॑नम्। ४.१५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ब्राह्मणाः) ब्राह्मण [ब्रह्मचारी लोग] (वशाम्) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] को (अभि) सब ओर से (अच्छ−आयन्ति) अच्छे प्रकार प्राप्त करते हैं, (यत्) क्योंकि (एतत्) यह (स्वम्) [उनका] सर्वस्व है, [और] (यथा) क्योंकि (एनान्) इन [ब्रह्मचारियों] को (अन्यस्मिन्) भिन्न कर्म [अधर्म] में (जिनीयात्) मनुष्य हानि करे, [वह] (अस्याः) इस [वेदवाणी] का (निरोधनम्) रोक देना (एव) ही है ॥१५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - ब्रह्मज्ञानियों का धर्म है कि वेदवाणी को ही अपना कोश समझकर प्राप्त करें और प्रकाश करें और जो पुरुष अधर्म के कारण उसको रोकते हैं, वे आत्मघाती होने से नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं ॥१५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १५−(स्वम्) धनम् (एतत्) (अच्छायन्ति) म० १४। (यत्) यतः (वशाम्) म० १। कमनीयां वेदवाणीम् (ब्राह्मणाः) ब्रह्मचारिणः (अभि) सर्वतः (यथा) यस्मात् कारणात् (एनान्) ब्रह्मचारिणः (अन्यस्मिन्) धर्मविरुद्धे कर्मणि (जिनीयात्) ज्या वयोहानौ। न्यूनयेत् मनुष्यः (एव) अवश्यम् (अस्याः) वेदवाण्याः (निरोधनम्) प्रतिबन्धनम् ॥
१६ चरेदेवा त्रैहायणादविज्ञातगदा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
चरे॑दे॒वा त्रै॑हाय॒णादवि॑ज्ञातगदा स॒ती।
व॒शां च॑ वि॒द्यान्ना॑रद ब्राह्म॒णास्तर्ह्ये॒ष्याः᳡ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
चरे॑दे॒वा त्रै॑हाय॒णादवि॑ज्ञातगदा स॒ती।
व॒शां च॑ वि॒द्यान्ना॑रद ब्राह्म॒णास्तर्ह्ये॒ष्याः᳡ ॥
१६ चरेदेवा त्रैहायणादविज्ञातगदा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- She may go about until ⌊ā́⌋ the space of three years, being of
unrecognized (vi-jñā) speech (-gada); should he know the cow, O
Nārada, then the Brahmans are to be sought.
Notes
This is obscure, but appears to mean that the cow may not betray herself
as a vaśā for as much as three years; but, as soon as she is
recognized as such, she must be delivered over to the Brahmans. The
pada-text has in a, of course, evá: ā́: tr-.
Griffith
Thus after three years may she go, speaking what is not under- stood. He, Narads! would know the Cow, then Brahmans must be sought unto.
पदपाठः
चरे॑त्। ए॒व। आ। त्रै॒हा॒य॒नात्। अवि॑ज्ञातऽगदा। स॒ती। व॒शाम्। च॒। वि॒द्यात्। ना॒र॒द॒। ब्रा॒ह्म॒णाः। तर्हि॑। ए॒ष्याः᳡। ४.१६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अविज्ञातगदा) नहीं जाना गया है दोष जिसमें, ऐसी [निर्दोष], (सती) सद्गुणोंवाली [वेदवाणी] (आ त्रैहायणात्) तीन उद्योगों [परमेश्वर के कर्म, उपासना, ज्ञान] तक (एव) अवश्य (चरेत्) विचरती रहे। (नारद) हे नारद ! [नीति, यथार्थ ज्ञान, देनेवाले विद्वान्] (वशाम्) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] को (च) निश्चय करके (विद्यात्) [मनुष्य] जाने, (तर्हि) तब (ब्राह्मणाः) ब्राह्मण [पूरे वेदज्ञाता लोग] (एष्याः) ढूँढ़ने योग्य हैं ॥१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वेदवाणी सर्वथा निर्दोष और श्रेष्ठगुणवाली है, मनुष्य पूर्ण विद्वानों द्वारा उसको प्राप्त करके ईश्वर के कर्म, उपासना और ज्ञान से अपनी उन्नति करे ॥१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १६−(चरेत्) विचरेत् (एव) निश्चयेन (आ) मर्यादायाम् (आ त्रैहायणात्) अ० १०।५।२२। हश्च व्रीहिकालयोः। पा० ३।१।१८४। ओहाक् त्यागे, ओहाङ् गतौ च−ण्युट्। आतो युक् चिण्कृतोः। पा० ७।३।३३। युक्, बाहुलकात्। तस्य समूहः। पा० ४।२।३७। अण्। त्रयाणां हायनानां गतीनां परमेश्वरस्य कर्मोपासनाज्ञानरूपाणामुद्योगानां समूहप्राप्तिपर्यन्तम् (अविज्ञातगदा) गद रोगे−अच्। अविज्ञातो गदो रोगो दोषो यस्यां सा। अविदितदोषा (सती) सद्गुणवती (वशाम्) वेदवाणीम् (च) अवश्यम् (विद्यात्) जानीयात् (नारद) अ० ५।१९।९। नॄ नये−घञ्, नारं नयं नीतिं ददादीति, दा−क। हे नयप्रद विद्वन् (ब्राह्मणाः) पूर्णवेदज्ञानिनः (तर्हि) तदा (एष्याः) अन्वेषणीयाः ॥
१७ य एनामवशामाह
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
य ए॑ना॒मव॑शा॒माह॑ दे॒वानां॒ निहि॑तं नि॒धिम्।
उ॒भौ तस्मै॑ भवाश॒र्वौ प॑रि॒क्रम्येषु॑मस्यतः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
य ए॑ना॒मव॑शा॒माह॑ दे॒वानां॒ निहि॑तं नि॒धिम्।
उ॒भौ तस्मै॑ भवाश॒र्वौ प॑रि॒क्रम्येषु॑मस्यतः ॥
१७ य एनामवशामाह ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Whoever declares her to be not the cow, the deposited deposit of the
gods, at him Bhava-and-śarva, both, striding about, hurl the arrow.
Notes
Griffith
Whoso calls her a worthless Cow, the stored-up treasure of the Gods, Bhava and Sarva, both of them, move round and shoot a shaft at him.
पदपाठः
यः। ए॒ना॒म्। अव॑शाम्। आह॑। दे॒वाना॑म्। निऽहि॑तम्। नि॒ऽधिम्। उ॒भौ। तस्मै॑। भ॒वा॒श॒र्वौ। प॒रि॒ऽक्रम्य॑। इषु॑म्। अ॒स्य॒तः॒। ४.१७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [मूर्ख] (देवानाम्) विजय चाहनेवालों के (निहितम्) नियम से रक्खे हुए (निधिम्) निधि, (एनाम्) इस [वेदवाणी] को (अवशाम्) नहीं कामनायोग्य [वा असमर्थ] (आह) बताता है। (तस्मै) उस [पुरुष] के लिये (उभौ) दोनों (भवाशर्वौ) भव [सुख देनेवाला प्राण] और शर्व [दोष मिटानेवाला अपान वायु] (परिक्रम्य) घूम-घूमकर (इषुम्) तीर [अर्थात् पीड़ा] (अस्यतः) फेंकते हैं ॥१७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य वेदवाणी के गुण न जानकर अपने आत्मा को दूषित करता है, श्वास-प्रश्वास की असावधानी से उसकी शारीरिक अवस्था भी बिगड़ जाती है ॥१७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १७−(यः) मूर्खः (एनाम्) वेदवाणीम् (अवशाम्) म० १। अकमनीयाम्। असमर्थाम् (आह) कथयति (देवानाम्) विजिगीषूणाम् (निहितम्) नियमेन स्थापितम् (निधिम्) धनकोशम् (उभौ) (तस्मै) मूर्खाय (भवाशर्वौ) अ० ८।२।७। सुखस्य भावयिता कर्ता भवः प्राणः, दुःखस्य शारिता नाशकः शर्वोऽपानवायुश्च तौ (परिक्रम्य) परितो गत्वा (इषुम्) बाणम्। पीडाम् (अस्यतः) क्षिपतः ॥
१८ यो अस्या
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यो अ॑स्या॒ ऊधो॒ न वे॒दाथो॑ अस्या॒ स्तना॑नु॒त।
उ॒भये॑नै॒वास्मै॑ दुहे॒ दातुं॒ चेदश॑कद्व॒शाम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यो अ॑स्या॒ ऊधो॒ न वे॒दाथो॑ अस्या॒ स्तना॑नु॒त।
उ॒भये॑नै॒वास्मै॑ दुहे॒ दातुं॒ चेदश॑कद्व॒शाम् ॥
१८ यो अस्या ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Whoever knows not the udder of her, and likewise the teats of her,
to him she yields milk with both, if he has been able to give the cow.
Notes
That is, probably, if her owner has sought no profit from her (cf.
Ludwig). The first pāda is quoted under Prāt. ii. 52, as an example of
ūdho (not ūdhar) before a sonant. A number of our mss. read veda,
without accent.
Griffith
The man who hath no knowledge of her udder and the teats thereof, She yields him milk with these, if he hath purposed to bestow the Cow.
पदपाठः
यः। अ॒स्याः॒। ऊधः॑। न। वेद॑। अथो॒ इति॑। अ॒स्याः॒। स्तना॑न्। उ॒त। उ॒भये॑न। ए॒व। अ॒स्मै॒। दु॒हे॒। दातु॑म्। च॒। इत्। अश॑कत्। व॒शाम्। ४.१८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [विद्वान्] (अस्याः) इस [वेदवाणी] के (ऊधः) सींचने को, (अथो उत) और भी (अस्याः) इसके (स्तनान्) गर्जन शब्दों [बड़े उपदेशों] को (न) अव [विद्या प्राप्त करके] (वेद) जानता है। वह [वेदवाणी] (उभयेन) दोनों [इस लोक और परलोक के सुख] से (एव) ही (अस्मै) इस [ब्रह्मज्ञानी] को (दुहे) भर देती है, (च, इत्=चेत्) जो (वशाम्) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] (दातुम् अशकत्) दे सका है ॥१८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जब मनुष्य वेदों के पवित्र लाभों और उपदेशों को समझ लेता है और संसार में प्रकाश करता है, वह इस जन्म और दूसरे जन्म का आनन्द पाता है ॥१८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १८−(यः) विद्वान् (अस्याः) वेदवाण्याः (ऊधः) उन्दी क्लेदने−असुन्, पृषोदरादिरूपम्। सेचनम्। वर्धनम् (न) संप्रति−निरु० ७।३१। (वेद) जानाति (अथो) अपि च (अस्याः) (स्तनान्) स्तन मेघशब्दे−अच्। मेघशब्दान्। उच्चोपदेशान् (उत) एव (उभयेन) ऐहिकपारमार्थिकसुखद्वयेन (एव) अवधारणे (अस्मै) विदुषे (दुहे) दुग्धे। प्रपूरयति वशा (दातुम्) (चेत्) यदि (अशकत्) शक्तोऽभूत् (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् ॥
१९ दुरदभ्नैनमा शये
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
दु॑रद॒भ्नैन॒मा श॑ये याचि॒तां च॒ न दित्स॑ति।
नास्मै॒ कामाः॒ समृ॑ध्यन्ते॒ यामद॑त्त्वा॒ चिकी॑र्षति ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
दु॑रद॒भ्नैन॒मा श॑ये याचि॒तां च॒ न दित्स॑ति।
नास्मै॒ कामाः॒ समृ॑ध्यन्ते॒ यामद॑त्त्वा॒ चिकी॑र्षति ॥
१९ दुरदभ्नैनमा शये ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Door-damaging (?) lies she on him, if he is not willing to give her
when asked for; he does not succeed in the desires which, without having
given her, he would fain accomplish (cikīrṣa-).
Notes
The translation implies the obviously necessary emendation of yā́m to
yā́n in d ⌊so Ludwig⌋. As to duradabhnā́ at the beginning, see the
note to vs. 4. That the conjectural rendering is extremely
unsatisfactory is plain. Ppp. has instead, for a,
duritavīnapāśaye; and, in c, d, apparently kāmas sam ṛdhyate yam
ad-, thus supporting our emendation. ⌊In Ppp. this verse precedes our
18.⌋
Griffith
If he withholds the Cow they beg, she lies rebellious in his stall. Vain are the wishes and the hopes which he, withholding her, would gain.
पदपाठः
दु॒र॒द॒भ्ना। ए॒न॒म्। आ। श॒ये॒। या॒चि॒ताम्। च॒। न। दित्स॑ति। न। अ॒स्मै॒। कामाः॑। सम। ऋ॒ध्य॒न्ते॒। याम्। अद॑त्वा। चिकी॑र्षति। ४.१९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (दुरदभ्ना) कभी न दबनेवाली [वह वेदवाणी (एनम्) इस [मनुष्य] पर (आ शये) आ पड़ती है, (च) यदि वह (याचिताम्) माँगी हुई [वेदवाणी] को (न) नहीं (दित्सति) देना चाहता है। (अस्मै) इस [मनुष्य] के लिये (कामाः) वे कामनाएँ (न) नहीं (सम् ऋध्यन्ते) सिद्ध होती हैं, [जिन कामनाओं को] (याम् अदत्त्वा) जिस [वेदवाणी] के न देने पर (चिकीर्षति) पूरा करना चाहता है ॥१९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वेदवाणी के प्रसिद्ध करने में जो लोग बाधा डालते हैं, उनकी कामनाएँ कभी पूरी नहीं होती हैं ॥१९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १९−(दुरदभ्ना) म० ४। कदापि नहि दम्भनीया पराजेयाः (एनम्) मनुष्यम् (आ शये) आशेते। प्राप्नोति (याचिताम्) प्रार्थिताम् (च) यदि (न) निषेधे (दित्सति) दातुमिच्छति (न) (अस्मै) (कामाः) अभिलाषा (समृध्यन्ते) संसिध्यन्ति (याम्) वेदवाणीम् (अदत्त्वा) (चिकीर्षति) कर्तुमिच्छति ॥
२० देवा वशामयाचन्मुखम्
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दे॒वा व॒शाम॑याच॒न्मुखं॑ कृ॒त्वा ब्राह्म॑णम्।
तेषां॒ सर्वे॑षा॒मद॑द॒द्धेडं॒ न्ये᳡ति॒ मानु॑षः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
दे॒वा व॒शाम॑याच॒न्मुखं॑ कृ॒त्वा ब्राह्म॑णम्।
तेषां॒ सर्वे॑षा॒मद॑द॒द्धेडं॒ न्ये᳡ति॒ मानु॑षः ॥
२० देवा वशामयाचन्मुखम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The gods asked for the cow, having made the Brahman their mouth; the
wrath (héḍa) of them all incurs (ni-i) the man (mā́nuṣa) who gives
not.
Notes
The translation implies emendation in b to brāhmaṇám. Ppp. reads
in a yācanti, which does not rectify the meter. ⌊Read devā́so?⌋
Griffith
The Deities have begged the Cow, using the Brahman as their mouth: The man who gives her not incurs the enmity of all the Gods.
पदपाठः
दे॒वाः। व॒शाम्। अ॒या॒च॒न्। मुख॑म्। कृ॒त्वा। ब्राह्म॑णम्। तेषा॑म्। सर्वे॑षाम्। अद॑दत्। हेड॑म्। नि। ए॒ति॒। मानु॑षः। ४.२०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- विराडनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) विजय चाहनेवालों ने (ब्राह्मणम्) ब्राह्मण [वेदज्ञानी] को (मुखम्) मुख [मुखिया] (कृत्वा) बनाकर (वशाम्) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] को (अयाचन्) माँगा है। (अददत्) [वेदवाणी] न देता हुआ (मानुषः) मनुष्य (तेषां सर्वेषाम्) उन सब [विद्वानों] के (हेडम्) क्रोध को (नि) निश्चय करके (एति) पाता है ॥२०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सब मनुष्य विजय पाने के लिये निर्भय पूर्ण विद्वान् द्वारा वेदों का उपदेश चाहते हैं, इसलिये उसके बाधक को सब विद्वान् धिक्कारते हैं ॥२०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २०−(देवाः) विजिगीषवः (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (अयाचन्) याचितवन्तः (मुखम्) मुख्यम्। प्रधानम् (कृत्वा) विधाय (ब्राह्मणम्) वेदज्ञम् (तेषाम्) विजिगीषूणाम् (सर्वेषाम्) (अददत्) ददातेः शतृ। अप्रयच्छन् (हेडम्) क्रोधम् (नि) निश्चयेन (एति) प्राप्नोति (मानुषः) मनोर्जातावञ्यतौ षुक् च। पा० ४।१।१६१। मनु−अञ् षुक् च। मनुर्मननं यस्य सः। मनुष्यः ॥
२१ हेडं पशूनाम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
हेडं॑ पशू॒नां न्ये᳡ति ब्राह्म॒णेभ्योऽद॑दद्व॒शाम्।
दे॒वानां॒ निहि॑तं भा॒गं मर्त्य॒श्चेन्नि॑प्रिया॒यते॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
हेडं॑ पशू॒नां न्ये᳡ति ब्राह्म॒णेभ्योऽद॑दद्व॒शाम्।
दे॒वानां॒ निहि॑तं भा॒गं मर्त्य॒श्चेन्नि॑प्रिया॒यते॑ ॥
२१ हेडं पशूनाम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- He incurs the wrath of cattle (paśú) who gives not the cow to the
Brahmans—if a mortal keeps to himself the deposited portion of the gods.
Notes
The saṁhitā-mss. accent in b brāhmaṇébhyo dadat, and the pada
correspondingly adadat (instead of ádadat). Our text makes the
necessary emendation. Ppp. gives for d ṛtāse nu priyāyate. ⌊See
note to 11, above.⌋
Griffith
Withholding her from Brahmans, he incurs the anger of the beasts, When mortal man appropriates the destined portion of the Gods.
पदपाठः
हेड॑म्। प॒शू॒नाम्। नि। ए॒ति॒। ब्रा॒ह्म॒णेभ्यः॑। अद॑दत्। व॒शाम्। दे॒वाना॑म्। निऽहि॑तम्। भा॒गम्। मर्त्यः॑। च॒। इत्। नि॒ऽप्रि॒य॒यते॑। ४.२१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ब्राह्मणेभ्यः) ब्राह्मणों (ब्रह्मचारियों) को (वशाम्) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] (अददत्) न देता हुआ पुरुष (पशूनाम्) सब प्राणियों का (हेडम्) क्रोध (नि) निश्चय करके (एति) पाता है। (च इत्=चेत्) यदि (मर्त्यः) मनुष्य (देवानाम्) विजय चाहनेवालों के (निहितम्) नियम से रक्खे हुए (भागम्) ऐश्वर्यों के समूह [वेदवाणी] को (निप्रियायते) ओछेपन से प्रिय सा मानता है ॥२१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य संकुचित मन होकर वेदवाणी के प्रकाश करने में विघ्न डालता है, वह सब ही प्राणियों का शत्रु होता है ॥२१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २१−(हेडम्) अनादरम्। क्रोधम् (नि) निश्चयेन (एति) प्राप्नोति (ब्राह्मणेभ्यः) ब्रह्मचारिभ्यः (अददत्) म० २०। अप्रयच्छन् (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (देवानाम्) विजिगीषूणाम् (निहितम्) नियमेन स्थापितम् (भागम्) भग−अण् समूहे। भगानामैश्वर्याणां समूहं वेदवाणीम् (मर्त्यः) मनुष्यः (चेत्) यदि (नि प्रियायते) म० ११। नीचभावेन प्रिय इवाचरति ॥
२२ यदन्ये शतम्
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यद॒न्ये श॒तं याचे॑युर्ब्राह्म॒णा गोप॑तिं व॒शाम्।
अथै॑नां दे॒वा अ॑ब्रुवन्ने॒वं ह॑ वि॒दुषो॑ व॒शा ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यद॒न्ये श॒तं याचे॑युर्ब्राह्म॒णा गोप॑तिं व॒शाम्।
अथै॑नां दे॒वा अ॑ब्रुवन्ने॒वं ह॑ वि॒दुषो॑ व॒शा ॥
२२ यदन्ये शतम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If a hundred other Brahmans should ask the cow of its master, yet
(átha) the gods said of her: the cow is his who knoweth thus.
Notes
All our mss. save two (I. and [?] E.s.m.) read etām (without accent)
in c; our text follows the two.
Griffith
If hundred other Brahmans beg the Cow of him who owneth her, The Gods have said, She, verily, belongs to him who knows the truth.
पदपाठः
यत्। अ॒न्ये। श॒तम्। याचे॑युः। ब्रा॒ह्म॒णाः। गोऽप॑तिम्। व॒शाम्। अथ॑। ए॒ना॒म्। दे॒वाः। अ॒ब्रु॒व॒न्। ए॒वम्। ह॒। वि॒दुषः॑। व॒शा। ४.२२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यदि (ब्राह्मणाः=ब्राह्मणेभ्यः) ब्राह्मणों [ब्रह्मचारियों] से (अन्ये) दूसरे [निर्बलेन्द्रिय] (शतम्) सौ [पुरुष] (गोपतिम्) पृथिवी की पालनेवाली (वशाम्) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] को (याचेयुः) माँगें। (अथ) तो (देवाः) देवताओं [विद्वानों] ने (एनाम्) इस [वेदवाणी] को (अब्रुवन्) बताया है−“(एवम्) इस प्रकार [पूरे-पूरे] (विदुषः) विद्वान् की (ह) ही (वशा) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] है ॥२२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - दुर्बलेन्द्रिय अश्रद्धालु मनुष्य सैकड़ों मिलकर वेदवाणी से उपकार नहीं कर सकते, परन्तु पूर्ण विद्वान् जितेन्द्रिय ब्रह्मचारी अकेला ही संसार भर को लाभ पहुँचाता है ॥२२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २२−(यत्) यदि (अन्ये) विरोधिनः। अब्राह्मणाः (शतम्) बहुसंख्याकाः (याचेयुः) प्रार्थयेरन् (ब्राह्मणाः) सुपां सुपो भवन्तीति वक्तव्यम्। वा० पा० ७।१।३९। इति पञ्चमीस्थाने प्रथमा। ब्राह्मणेभ्यः। ब्रह्मचारिभ्यः (गोपतिम्) पृथिवीपालिकाम् (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (अथ) तदा (एनाम्) वेदवाणीम् (देवाः) विद्वांसः (अब्रुवन्) अकथयन् (एवम्) अनेन प्रकारेण (ह) निश्चयेन (विदुषः) जानतः पुरुषस्य (वशा) ॥
२३ य एवम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
य ए॒वं वि॒दुषे॑ऽद॒त्त्वाथा॒न्येभ्यो॒ दद॑द्व॒शाम्।
दु॒र्गा तस्मा॑ अधि॒ष्ठाने॑ पृथि॒वी स॒हदे॑वता ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
य ए॒वं वि॒दुषे॑ऽद॒त्त्वाथा॒न्येभ्यो॒ दद॑द्व॒शाम्।
दु॒र्गा तस्मा॑ अधि॒ष्ठाने॑ पृथि॒वी स॒हदे॑वता ॥
२३ य एवम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Whoever, not having given her to one who knoweth thus, then shall
give the cow to others, hard to go upon for him in his station is the
earth with its deity.
Notes
In b the pada-text has anyébhyaḥ: adadat, and the saṁhitā-mss.
correspondingly -bhyo dadad v-; this is emended in our text to -bhyó
‘d- (as if ádadat, as in vs. 21); but a decidedly better emendation
would be to -bhyo dádat, as translated. Ppp. reads anyasmāi d-,
which favors this understanding of the pāda; it also combines tasmā
’dh- in c.
Griffith
Whoso to others, not to him who hath this knowledge, gives the Cow, Earth, with the Deities, is hard for him to win and rest upon.
पदपाठः
यः। ए॒वम्। वि॒दुषे॑। अद॑त्त्वा। अथ॑। अ॒न्येभ्यः॑। दद॑त्। व॒शाम्। दुः॒ऽगा। तस्मै॑। अ॒धि॒ऽस्थाने॑। पृ॒थि॒वी। स॒हऽदे॑वता। ४.२३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो पुरुष (एवम्) इस प्रकार (विदुषे) विद्वान् को (अदत्वा) न देकर (अथ) फिर (अन्येभ्यः) दूसरों [दुर्बलेन्द्रियों] को (वशाम्) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] (ददत्) देता हुआ है। (तस्मै) उस पुरुष के लिये (अधिष्ठाने) प्रभाव के बीच (सहदेवता) देवताओं विद्वानों सहित (पृथिवी) पृथिवी (दुर्गा) दुर्गम [कठिन] होती है ॥२३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो पुरुष अधिकारी ब्रह्मचारियों का अनादर करके दुर्बलेन्द्रिय लम्पटों को वेदविद्या का अधिकार देता है, वह न तो पृथिवी का राज्य कर सकता है और न विद्वानों में आदर पा सकता है ॥२३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २३−(यः) (एवम्) ईदृग्विधम् (विदुषे) ज्ञानिने (अदत्वा) (अध) पुनः (अन्येभ्यः) दुर्बलेन्द्रियेभ्यः (ददत्) प्रयच्छन् (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (दुर्गा) दुष्प्राप्या (तस्मै) अविदुषे (अधिष्ठाने) प्राधान्ये (पृथिवी) (सहदेवता) विद्वद्भिः सहिता ॥
२४ देवा वशामयाचन्यस्मिन्नग्रे
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
दे॒वा व॒शाम॑याच॒न्यस्मि॒न्नग्रे॒ अजा॑यत।
तामे॒तां वि॑द्या॒न्नार॑दः स॒ह दे॒वैरुदा॑जत ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
दे॒वा व॒शाम॑याच॒न्यस्मि॒न्नग्रे॒ अजा॑यत।
तामे॒तां वि॑द्या॒न्नार॑दः स॒ह दे॒वैरुदा॑जत ॥
२४ देवा वशामयाचन्यस्मिन्नग्रे ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The gods asked the cow [of him] in whose possession she was first
(ágre) born; that same one may Nārada know; together with the gods he
drove her away.
Notes
The connection of c, d is obscure, and tempts to conjectural
emendations; Ludwig suggests vidvā́n for vidyāt: ‘knowing her to be
such, Nārada together with the gods drove her away (as theirs)’; this is
quite acceptable. Ppp. reads at the end udājitā. One or two of our
mss. (D.R.p.m.) accent nāradáḥ. The Anukr. takes no notice of the lack
of a syllable in a. ⌊Read devā́so as in 20?⌋
Griffith
The Deities begged the Cow from him with whom at first she was produced: Her, this one, Narada would know: with Deities he drove her forth.
पदपाठः
दे॒वाः। व॒शाम्। अ॒या॒च॒न्। यस्मि॑न्। अग्रे॑। अजा॑यत। ताम्। ए॒ताम्। वि॒द्या॒त्। नार॑दः। स॒ह। दे॒वैः। उत्। आ॒ज॒त॒। ४.२४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) विजय चाहनेवालों ने (वशाम्) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] को [उस परमेश्वर से] (अयाचन्) माँगा है, (यस्मिन्) जिस [परमेश्वर] में (अग्रे) पहिले ही पहिले (अजायत) वह उत्पन्न हुई। (ताम्) उस [दूर वर्तमान] और (एताम्) इस [समीप वर्तमान वेदवाणी] को (नारदः) नारद [नीति, यथार्थ ज्ञान देनेवाला विद्वान्] (विद्यात्) जान लेवे, वह [वेदवाणी] (देवैः सह) दिव्य गुणों के सहित (उत् आजत) उदय हुई है ॥२४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमेश्वर की वाणी वेद को विद्वानों ने भक्तिपूर्वक परमेश्वर से पाया है, उस वेदवाणी को प्रत्येक विद्वान् जानकर उसके दिव्य गुणों का प्रकाश करे ॥२४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २४−(देवाः) विजिगीषवः (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (अयाचन्) याचितवन्तः परमेश्वरमिति शेषः (यस्मिन्) परमेश्वरे (अग्रे) आदौ (अजायत) प्रादुरभवत् (ताम्) दूरस्थाम् (एताम्) समीपस्थाम् (विद्यात्) जानीयात् (नारदः) म० १६। नीतिप्रदो विद्वान् (सह) (देवैः) दिव्यगुणैः (उत् आजत) अज गतिक्षेपणयोः−लङ्, आत्मनेपदं छान्दसम्। उदाजत उदयं प्रापत् ॥
२५ अनपत्यमल्पपशुं वशा
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अ॑नप॒त्यमल्प॑पशुं व॒शा कृ॑णोति॒ पूरु॑षम्।
ब्रा॑ह्म॒णैश्च॑ याचि॒तामथै॑नां निप्रिया॒यते॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॑नप॒त्यमल्प॑पशुं व॒शा कृ॑णोति॒ पूरु॑षम्।
ब्रा॑ह्म॒णैश्च॑ याचि॒तामथै॑नां निप्रिया॒यते॑ ॥
२५ अनपत्यमल्पपशुं वशा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The cow makes a man (pū́ruṣa) destitute of descendants, poor in
cattle, if, when she is asked for by the Brahmans, then he keeps her to
himself.
Notes
Ppp. reads in b pāuruṣam, and in d nu priyāyata. The Anukr.
takes no notice of any deficiency in c; we may best resolve
bṛ-āh-. ⌊Read brāhmaṇébhiś?⌋
Griffith
The Cow deprives of progeny and makes him poor in cattle who Retains in his possession her whom Brahmans have solicited.
पदपाठः
अ॒न॒प॒त्यम्। अल्प॑ऽपशुम्। व॒शा। कृ॒णो॒ति॒। पुरु॑षम्। ब्रा॒ह्म॒णैः। च॒। या॒चि॒ताम्। अथ॑। ए॒ना॒म्। नि॒ऽप्रि॒य॒यते॑। ४.२५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (वशा) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] (पुरुषम्) पुरुष को (अनपत्यम्) बिन सन्तान और (अल्पपशुम्) थोड़े पशुओं [गौ आदि] वाला (कृणोति) कर देती है। (अथ च) यदि वह [पुरुष] (ब्राह्मणैः) ब्राह्मण [ब्रह्मचारियों] करके (याचिताम्) माँगी हुई (एनाम्) इस [वेदवाणी] को (निप्रियायते) ओछेपन से प्रिय सा मानता है ॥२५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य वेदवाणी को संकुचित करके योग्य ब्रह्मचारियों की उन्नति रोककर अपनी ही उन्नति चाहता है, वह दुर्बलेन्द्रिय पुरुष अपना सर्वस्व नाश कर देता है ॥२५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २५−(अनपत्यम्) सन्तानरहितम् (अल्पपशुम्) पशुभिर्न्यूनम् (वशा) कमनीया वेदवाणी (कृणोति) करोति (पुरुषम्) (ब्राह्मणैः) ब्रह्मचारिभिः (च) (याचिताम्) प्रार्थिताम् (अथ) यदि (एनाम्) वेदवाणीम् (निप्रियायते) म० २१। नीचभावेन प्रिय इवाचरति ॥
२६ अग्नीषोमाभ्यां कामाय
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अ॒ग्नीषो॑माभ्यां॒ कामा॑य मि॒त्राय॒ वरु॑णाय च।
तेभ्यो॑ याचन्ति ब्राह्म॒णास्तेष्वा वृ॑श्च॒तेऽद॑दत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒ग्नीषो॑माभ्यां॒ कामा॑य मि॒त्राय॒ वरु॑णाय च।
तेभ्यो॑ याचन्ति ब्राह्म॒णास्तेष्वा वृ॑श्च॒तेऽद॑दत् ॥
२६ अग्नीषोमाभ्यां कामाय ...{Loading}...
Whitney
Translation
- For Agni-and-Soma, for Love (kā́ma), for Mitra and for Varuṇa—for
these the Brahmans ask her; under their wrath falls he who gives not.
Notes
Griffith
For Agni and for Soma, for Kama, Mitra and Varuna, For these the Brahmans ask: from these is he who giveth not estranged.
पदपाठः
अ॒ग्नीषोमा॑भ्याम्। कामा॑य। मि॒त्राय॑। वरु॑णाय। च॒। तेभ्यः॑। या॒च॒न्ति॒। ब्रा॒ह्म॒णाः। तेषु॑। आ। वृ॒श्च॒ते॒। अद॑दत्। ४.२६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कामाय) इष्ट पदार्थ पाने के लिये (अग्नीषोमाभ्याम्) अग्नि और जल, (मित्राय) प्राण (च) और (वरुणाय) अपान वायु, (तेभ्यः) इन सब की सिद्धि के लिये (ब्राह्मणाः) ब्राह्मण [ब्रह्मचारी लोग] (याचन्ति) [वेदवाणी को] माँगते हैं, (अददत्) न देता हुआ पुरुष (तेषु) उन [विद्वानों] में (आ) सब ओर से (वृश्चते) छिन्न हो जाता है ॥२६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - ब्रह्मचारी अग्निविद्या, जलविद्या, वायु के उतार-चढ़ाव की विद्या और अन्य विद्वानों की सिद्धि के लिये वेदविद्या में परिश्रम करते हैं। ऐसे शुभ कर्म में विघ्नकारी मनुष्य कष्ट मे पड़ते हैं ॥२६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २६−(अग्नीषोमाभ्याम्) अग्निजलविद्यासिद्धये (कामाय) इष्टपदार्थप्राप्तये (मित्राय) प्राणविद्याप्राप्तये (वरुणाय) अपानविद्याप्राप्तये (च) (तेभ्यः) पूर्वोक्तेभ्यः (याचन्ति) प्रार्थयन्ते (ब्राह्मणाः) वेदाध्येतारः (तेषु) ब्राह्मणेषु (आ) समन्ताम् (वृश्चते) छिद्यते (अददत्) अप्रयच्छन् ॥
२७ यावदस्या गोपतिर्नोपशृणुयादृचः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
याव॑दस्या॒ गोप॑ति॒र्नोप॑शृणु॒यादृचः॑ स्व॒यम्।
चरे॑दस्य॒ ताव॒द्गोषु॒ नास्य॑ श्रु॒त्वा गृ॒हे व॑सेत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
याव॑दस्या॒ गोप॑ति॒र्नोप॑शृणु॒यादृचः॑ स्व॒यम्।
चरे॑दस्य॒ ताव॒द्गोषु॒ नास्य॑ श्रु॒त्वा गृ॒हे व॑सेत् ॥
२७ यावदस्या गोपतिर्नोपशृणुयादृचः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- So long as the master of her should not himself overhear the verses
(ṛ́ś), so long may she go about among his kine (gó); she may not
abide in his house after he has heard.
Notes
The translation implies the evidently necessary emendation of vaśet at
the end to vaset; R., indeed, has the latter; ⌊and so have 8 of SPP’s
authorities, against 7 with vaśet;⌋ Ppp. is corrupt: nā ’sya śrutā gṛhe
sya. The Anukr. takes no notice of any redundancy in b; but it can
hardly expect us to make a pada-division between no and
’paśṛṇuyāt. The ‘verses’ are doubtless those with which the Brahmans
come to claim their rightful property.
Griffith
Long as her owner hath not heard, himself, the verses, let her move Among his kine: when he hath heard, let her not make her home with him;
पदपाठः
याव॑त्। अ॒स्याः॒। गोऽप॑तिः। न। उ॒प॒ऽशृ॒णु॒यात्। ऋचः॑। स्व॒यम्। चरे॑त्। अ॒स्य॒। ताव॑त्। गोषु॑। न। अ॒स्य॒। श्रु॒त्वा। गृ॒हे। व॒से॒त्। ४.२७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (गोपतिः) वेदवाणी का रक्षक [ब्रह्मचारी] (यावत्) जब तक (स्वयम्) सुन्दर रीति से (अस्याः) इस (ऋचः) स्तुतियोग्य [वेदवाणी] का (न) न (उपशृणुयात्) यथाविधि श्रवण कर लेवे, (तावत्) तब तक (अस्य) इस [परमेश्वर] की (गोषु) वाणियों में (चरेत्) चलता रहे, और (श्रुत्वा) श्रवण करके (अस्य) अपने (गृहे) घर में (न) अव (वसेत्) बसे ॥२७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जब ब्रह्मचारी, पुत्र वा पुत्री, यथाविधि श्रवण, मनन और निदिध्यासन से वेदविद्या प्राप्त कर चुके, तब समावर्तन करके गृहाश्रम में प्रवेश करे ॥२७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २७−(यावत्) (अस्याः) पुरोवर्तिन्याः (गोपतिः) वेदवाणीरक्षको ब्रह्मचारी (न) निषेधे (उपशृणुयात्) गुरुकुले श्रवणं कुर्यात् (ऋचः) स्तुत्याया वेदवाण्याः (स्वयम्) सु+अय गतौ−अमु। सुष्ठु शास्त्ररीत्या यथा तथा (चरेत्) विचरेत्। अभ्यस्येत् (अस्य) व्यापकस्य परमेश्वरस्य (तावत्) (गोषु) वेदवाक्षु (न) संप्रति (अस्य) स्वकीयस्य (श्रुत्वा) श्रवणं कृत्वा (गृहे) गृहाश्रमे (वसेत्) निवसेत् ॥
२८ यो अस्या
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यो अ॑स्या॒ ऋच॑ उप॒श्रुत्याथ॒ गोष्वची॑चरत्।
आयु॑श्च॒ तस्य॒ भूतिं॑ च दे॒वा वृ॑श्चन्ति हीडि॒ताः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यो अ॑स्या॒ ऋच॑ उप॒श्रुत्याथ॒ गोष्वची॑चरत्।
आयु॑श्च॒ तस्य॒ भूतिं॑ च दे॒वा वृ॑श्चन्ति हीडि॒ताः ॥
२८ यो अस्या ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If any one, having overheard the verses of her, has then made her
go about among his kine (gó), both the life-time and the growth of him
do the gods, made wrathful, cut off (vraśc).
Notes
Nearly all our mss. (E. has ácī-) ⌊and all of SPP’s⌋ leave acīcarat
in b unaccented; and then, as if by way of compensation, they mostly
(except Bs.s.m.D.R.) accent vṛ́ścanti.
Griffith
He who hath heard her verses and still makes her roam among his kine. The Gods in anger rend away his life and his prosperity
पदपाठः
यः। अ॒स्याः॒। ऋचः॑। उ॒प॒ऽश्रुत्य॑। अथ॑। गोषु॑। अची॑चरत्। आयुः॑। च॒। तस्य॑। भूति॑म्। च॒। दे॒वाः। वृ॒श्च॒न्ति॒। ही॒डि॒ताः। ४.२८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अथ) यदि (यः) जिस [मनुष्य] ने (अस्याः) इस (ऋचः) स्तुतियोग्य वेदवाणी का (उपश्रुत्य) यथाविधि श्रवण करके (गोषु) इन्द्रियों में [इन्द्रियों के कुविषयों में अपने को] (अचीचरत्) चलाया है। (देवाः) देवता [विद्वान् लोग] (हीडिताः) क्रुद्ध होकर (तस्य) उस [पुरुष] का (आयुः) जीवन (च) और (भूतिम्) ऐश्वर्य (च) भी (वृश्चन्ति) काट देते हैं ॥२८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् वेदवाणी को जानकर कुविषयों में फँसता है, वह विद्वानों का क्रोधपात्र होकर संसार में उन्नति नहीं करता ॥२८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २८−(यः) पुरुषः (अस्याः) (ऋचः) स्तुत्याया वेदवाण्याः (उपश्रुत्य) यथाविधि श्रवणं कृत्वा (अथ) यदि (गोषु) इन्द्रियेषु। इन्द्रियाणां कुविषयेषु (अचीचरत्) चर गतिभक्षणयोः−णिच्, लुङ्। आत्मानं चालितवान् (आयुः) जीवनम् (च) (तस्य) पुरुषस्य (भूतिम्) ऐश्वर्यम् (च) अपि (देवाः) विद्वांसः (वृश्चन्ति) छिन्दन्ति (हीडिताः) हेडृ अनादरे क्रोधे च−क्त, ईकारश्छान्दसः। हेडते क्रुध्यतिकर्मा−निघ० २।१२। क्रुद्धाः सन्तः ॥
२९ वशा चरन्ती
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व॒शा चर॑न्ती बहु॒धा दे॒वानां॒ निहि॑तो नि॒धिः।
आ॒विष्कृ॑णुष्व रू॒पाणि॑ य॒दा स्थाम॒ जिघां॑सति ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
व॒शा चर॑न्ती बहु॒धा दे॒वानां॒ निहि॑तो नि॒धिः।
आ॒विष्कृ॑णुष्व रू॒पाणि॑ य॒दा स्थाम॒ जिघां॑सति ॥
२९ वशा चरन्ती ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The cow, going about variously, the deposited deposit of the gods,
manifests her forms, when she desires to go (?) to her station
(sthā́man).
Notes
That is, her rightful and appointed place. The translation implies in
b the reading kṛnute instead of kṛṇuṣva, although the former is
found only in O.p.m.D.T. (-uti). ⌊Three of SPP’s pada-mss. have
kṛṇute.⌋ The comm. to Prāt. ii. 63 quotes āviṣ kṛṇute rūpāṇi, which
is not found in the text unless here. The translation also implies at
the end jigāṅsati. The Prāt. (i. 86) seems to imply the occurrence in
the text of such forms, and the sense obviously calls for them here and
in the next verse; see the note to Prāt. i. 86. Ppp. reads in d
yathā for yadā.
Griffith
Roaming in many a place the Cow is the stored treasure of the Gods, Make manifest thy shape and form when she would seek her dwelling-place.
पदपाठः
व॒शा। चर॑न्ती। ब॒हु॒ऽधा। दे॒वाना॑म्। निऽहि॑तः। नि॒ऽधिः। आ॒विः। कृ॒णु॒ष्व॒। रू॒पाणि॑। य॒दा। स्थाम॑। जिघां॑सति। ४.२९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (देवानाम्) विद्वानों का (निहितः) नियम से रक्खा हुआ (निधिः) निधि, [अर्थात्] (बहुधा) नाना प्रकार से (चरन्ती) विचरती हुई (वशा) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] तू (रूपाणि) रूपों [तत्त्वज्ञानों] को (आविः कृणुष्व) प्रकट कर, (यदा) जब वह [ब्रह्मचारी] (स्थाम्) ठिकाने पर (जिघांसति) जाना चाहता है ॥२९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जब ब्रह्मचारी कटिबद्ध होकर वेदवाणी का उपार्जन करता है, तब ही वह तत्त्वज्ञानों को जानता चला जाता है ॥२९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २९−(वशा) कमनीया वेदवाणी (चरन्ती) विचरन्ती (बहुधा) नानाप्रकारेण (देवानाम्) विदुषाम् (निहितः) नियमेन स्थापितः (निधिः) कोशः (आविष्कृणुष्व) प्रकाशय (रूपाणि) तत्त्वज्ञानानि (यदा) (स्थाम) सर्वधातुभ्यो मनिन्। उ० ४।१४५। ष्ठा गतिनिवृत्तौ−मनिन्। स्थितिस्थानम् (जिघांसति) हन हिंसागत्योः−सन्। गन्तुमिच्छति ॥
३० आविरात्मानं कृणुते
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आ॒विरा॒त्मानं॑ कृणुते य॒दा स्थाम॒ जिघां॑सति।
अथो॑ ह ब्र॒ह्मभ्यो॑ व॒शा या॒च्ञाय॑ कृणुते॒ मनः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आ॒विरा॒त्मानं॑ कृणुते य॒दा स्थाम॒ जिघां॑सति।
अथो॑ ह ब्र॒ह्मभ्यो॑ व॒शा या॒च्ञाय॑ कृणुते॒ मनः॑ ॥
३० आविरात्मानं कृणुते ...{Loading}...
Whitney
Translation
- She manifests herself when she desires to go to her station; then
the cow ⌊vaśā́⌋ makes up her mind for the asking of the priests
(brahmán).
Notes
That is, prepares herself to be asked for by them; brahmábhyas, dat.
by attraction. ⌊Read again jígāṅsati: see note to vs. 29.⌋ Read in
d yācñyā́ya, though the mss. mostly have -ñcy-, as they often
blunder over such an unusual consonant-group. Ppp. reads uto for
atho in c.
Griffith
Her shape and form she manifests when she would seek her dwelling-place; Then verily the Cow attends to Brahman priests and their request.
पदपाठः
आ॒विः। आ॒त्मान॑म्। कृ॒णु॒ते॒। य॒दा। स्थाम॑। जिघां॑सति। अथो॒ इति॑। ह॒। ब्र॒ह्मऽभ्यः॑। व॒शा। या॒ञ्चाय॑। कृ॒णु॒ते॒। मनः॑। ४.३०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - वह [वेदवाणी] (आत्मानम्) अपने स्वरूप [तत्त्वज्ञान] को (आविः कृणुते) प्रकट करती है, (यदा) जब वह [ब्रह्मचारी] (स्थाम) ठिकाने पर (जिघांसति) जाना चाहता है। (अथो ह) तब ही (वशा) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] (ब्रह्मभ्यः) ब्रह्मचारियों के पाने को (याच्ञाय) माँगने के लिये (मनः) मनन (कृणुते) करती है ॥३०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे-जैसे ब्रह्मचारी प्रयत्न करता है वेदवाणी भी उसको वैसे-वैसे ही अधिक-अधिक मिलती चली जाती है ॥३०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३०−(आत्मानम्) तत्त्वबोधम् (आविष्कृणुते) प्रकटयति (अथो ह) तदैव (ब्रह्मभ्यः) ब्रह्मचारिभ्यः (वशा) कमनीया वेदवाणी (याच्ञाय) याचृ याच्ञायाम्−नङ्। याचनाय (कृणुते) करोति (मनः) मननम्। अन्यत् पूर्ववत्−म० २९ ॥
३१ मनसा सम्
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मन॑सा॒ सं क॑ल्पयति॒ तद्दे॒वाँ अपि॑ गच्छति।
ततो॑ ह ब्र॒ह्माणो॑ व॒शामु॑प॒प्रय॑न्ति॒ याचि॑तुम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
मन॑सा॒ सं क॑ल्पयति॒ तद्दे॒वाँ अपि॑ गच्छति।
ततो॑ ह ब्र॒ह्माणो॑ व॒शामु॑प॒प्रय॑न्ति॒ याचि॑तुम् ॥
३१ मनसा सम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- She plans (sam-kḷp) [it] with her mind; then she goes unto the
gods; thence the priests (brahmán) go on to ask for the cow.
Notes
Griffith
This thought he settles in his mind. This safely goeth to the Gods. Then verily the Brahman priests approach that they may beg the Cow
पदपाठः
मन॑सा। सम्। क॒ल्प॒य॒ति॒। तत्। दे॒वान्। अपि॑। ग॒च्छ॒ति॒। ततः॑। ह॒। ब्र॒ह्माणः॑। व॒शाम्। उ॒प॒ऽप्रय॑न्ति। याचि॑तुम्। ४.३१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - वह [वेदवाणी] (मनसा) मनन के साथ (देवान्) विजय चाहनेवाले [ब्रह्मचारियों] को (सम्) यथावत् (कल्पयति) समर्थ करती है, (तत्) तब [उनको] (अपि गच्छति) अवश्य मिलती है। (तथा ह) इसी कारण से (ब्रह्माणः) ब्रह्मचारी लोग (वशाम्) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] के (याचितुम्) माँगने के लिये (उपप्रयन्ति) पहुँचते जाते हैं ॥३१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे-जैसे ब्रह्मचारी लोग वेदवाणी के लिये प्रयत्न करते हैं, वैसे-वैसे ही वेदवाणी उन्हें समर्थ करके मिलती जाती है ॥३१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३१−(मनसा) मननेन (सम्) सम्यक् (कल्पयति) समर्थयति वेदवाणी (तत्) तदा (देवान्) विजिगीषून् ब्रह्मचारिणः (अपि) एव (गच्छति) प्राप्नोति (ततः) तस्मात् कारणात् (ह) एव (ब्रह्माणः) ब्रह्मचारिणः (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (उपप्रयन्ति) समीपे गच्छन्ति (याचितुम्) प्रार्थयितुम् ॥
३२ स्वधाकारेण पितृभ्यो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
स्व॑धाका॒रेण॑ पि॒तृभ्यो॑ य॒ज्ञेन॑ दे॒वता॑भ्यः।
दाने॑न राज॒न्यो᳡ व॒शाया॑ मा॒तुर्हेडं॒ न ग॑च्छति ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स्व॑धाका॒रेण॑ पि॒तृभ्यो॑ य॒ज्ञेन॑ दे॒वता॑भ्यः।
दाने॑न राज॒न्यो᳡ व॒शाया॑ मा॒तुर्हेडं॒ न ग॑च्छति ॥
३२ स्वधाकारेण पितृभ्यो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- By offering of svadhā́ to the Fathers, by sacrifice to the
deities, by giving of the cow, the noble (rājanyà) does not incur
(gam) the mother’s wrath.
Notes
Ppp. reads devebhyaḥ at end of b. The description of the Anukr.
very unnecessarily forbids us to resolve -bhi-aḥ in b.
Griffith
By Svadha to the Fathers, by sacrifice to the Deities, By giving them the Cow, the Prince doth not incur the mother’s. wrath.
पदपाठः
स्व॒धा॒ऽका॒रेण॑। पि॒तृऽभ्यः॑। य॒ज्ञेन॑। दे॒वता॑भ्यः। दाने॑न। रा॒ज॒न्यः᳡। व॒शायाः॑। मा॒तुः। हेड॑म्। न। ग॒च्छ॒ति॒। ४.३२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- उष्ण्ग्बृहतीगर्भा
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (राजन्यः) ऐश्वर्यवान् [राजा] (पितृभ्यः) पालन करनेवाले [विज्ञानियों] और (देवताभ्यः) विजय चाहनेवाले [शूरवीरों] को (स्वधाकारेण) स्वधारण सामर्थ्य देने से (यज्ञेन) सत्कार से और (दानेन) दान से (वशायाः) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] (मातुः) माता के (हेडम्) क्रोध को (न) नहीं (गच्छति) पाता है ॥३२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जहाँ राजा विद्वानों के दान-मान से वेदविद्या का प्रकाश करता है, वह राज्य चिरस्थायी होता है ॥३२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३२−(स्वधाकारेण) स्वधारणसामर्थ्यदानेन (पितृभ्यः) पालकेभ्यो विद्वद्भ्यः (यज्ञेन) सत्कारेण (देवताभ्यः) विजिगीषुभ्यः शूरेभ्यः (दानेन) पालनेन (राजन्यः) राजेरन्यः। उ० ३।१००। राजृ दीप्तौ ऐश्वर्ये च−अन्य। ऐश्वर्यवान्। राजा (वशायाः) कमनीयाया वेदवाण्याः (मातुः) मानकर्त्र्याः (हेडम्) कोपम् (न) निषेधे (गच्छति) प्राप्नोति ॥
३३ वशा माता
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व॒शा मा॒ता रा॑ज॒न्य᳡स्य॒ तथा॒ संभू॑तमग्र॒शः।
तस्या॑ आहु॒रन॑र्पणं॒ यद्ब्र॒ह्मभ्यः॑ प्रदी॒यते॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
व॒शा मा॒ता रा॑ज॒न्य᳡स्य॒ तथा॒ संभू॑तमग्र॒शः।
तस्या॑ आहु॒रन॑र्पणं॒ यद्ब्र॒ह्मभ्यः॑ प्रदी॒यते॑ ॥
३३ वशा माता ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The cow is mother of the noble; so came it (n.) into being in the
beginning; they call it a non-abandonment (? ánarpaṇa) of her that she
is presented to the priests (brahmán).
Notes
The Pet. Lexx. render the difficult ánarpaṇa by ‘a not giving away’;
Ludwig, by ’no restitution.’ Ppp. combines tasyā ”hur in c.
Griffith
The Prince’s mother is the Cow: so was it ordered from of old. She, when bestowed upon the priests, cannot be given back, they say.
पदपाठः
व॒शा। मा॒ता। रा॒ज॒न्य᳡स्य। तथा॑। सम्ऽभू॑तम्। अ॒ग्र॒ऽशः। तस्याः॑। आ॒हुः॒। अन॑र्पणम्। यत्। ब्र॒ह्मऽभ्यः॑। प्र॒ऽदी॒यते॑। ४.३३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (वशा) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] (राजन्यस्य) ऐश्वर्यवान् [राजा] की (माता) माता [मान करनेवाली] है, (तथा) वैसा ही (अग्रशः) पहिले से (संभूतम्) ठहरा हुआ [कर्म] है। (तस्याः) उस [वेदवाणी] का (अनर्पणम्) अत्याग (आहुः) वे [विद्वान्] कहते हैं, (यत्) जब कि (ब्रह्मभ्यः) ब्रह्मचारियों को (प्रदीयते) वह दे दी जाती है ॥३३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमेश्वर का नियम है कि विद्या के दान से राजा का मान बढ़ता है और विद्या भी अधिक-अधिक प्रचार से अधिक-अधिक बढ़ती है ॥३३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३३−(वशा) कमनीया वेदवाणी (माता) मानकर्त्री (राजन्यस्य) म० ३२। ऐश्वर्यवतः क्षत्रियस्य (तथा) तेन प्रकारेण (सम्भूतम्) समर्थितं परमेश्वरेण (अग्रशः) आदौ (तस्याः) वेदवाण्याः (आहुः) कथयन्ति विद्वांसः (अनर्पणम्) (अत्यागम्) सदावर्धनम् (यत्) यदा (ब्रह्मभ्यः) ब्रह्मचारिभ्यः (प्रदीयते) प्रकर्षेण दीयते सा ॥
३४ यथाज्यं प्रगृहीतमालुम्पेत्स्रुचो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यथाज्यं॒ प्रगृ॑हीतमालु॒म्पेत्स्रु॒चो अ॒ग्नये॑।
ए॒वा ह॑ ब्र॒ह्मभ्यो॑ व॒शाम॒ग्नय॒ आ वृ॑श्च॒तेऽद॑दत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यथाज्यं॒ प्रगृ॑हीतमालु॒म्पेत्स्रु॒चो अ॒ग्नये॑।
ए॒वा ह॑ ब्र॒ह्मभ्यो॑ व॒शाम॒ग्नय॒ आ वृ॑श्च॒तेऽद॑दत् ॥
३४ यथाज्यं प्रगृहीतमालुम्पेत्स्रुचो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- As one might snatch (? ā-lup) from the spoon sacrificial butter
held forth for the fire, so he who gives not the cow ⌊vaśā́⌋ ⌊to the
priests⌋ falls under the wrath of Agni.
Notes
Perhaps, ‘as [the fire] might snatch,’ etc.—seizing on the butter
before it is duly offered. Ppp. reads for a yad ājyaṁ
pratijāgrāha, and in d omits a, thus rectifying the meter. The
Anukr. takes no notice of the redundant syllable in our text; we are
doubtless to get rid of it by contracting to agnáy’ ā́. ⌊Were
emendation necessary, one might be tempted to suggest agnā́v ā́: but cf.
note to vs. 6 b.⌋
Griffith
As molten butter, held at length, drops down to Agni from the scoop, So falls away from Agni he who gives no Cow to Brahman priests.
पदपाठः
यथा॑। आज्य॑म्। प्रऽगृ॑हीतम्। आ॒ऽलु॒म्पेत्। स्रु॒चः। अ॒ग्नये॑। ए॒व। ह॒। ब्र॒ह्मऽभ्यः॑। व॒शाम्। अ॒ग्नये॑। आ। वृ॒श्च॒ते॒। अद॑दत्। ४.३४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (प्रगृहीतम्) फैला कर लिया गया (आज्यम्) घी (स्रुचः) स्रुचा [चमचा] से (अग्नये) अग्नि को (आलुम्पेत्) छोड़ दिया जावे। (एव ह) वैसे ही (ब्रह्मभ्यः) ब्रह्मचारियों को (वशाम्) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] (अददत्) न देता हुआ पुरुष (अग्नये) अग्नि [सन्ताप] पाने के लिये (आ वृश्चते) छिन्न-भिन्न हो जाता है ॥३४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे प्रज्वलित हवन अग्नि में छोड़ा हुआ घी शीघ्र भस्म हो जाता है, वैसे ही वेदविद्या के रोकने से संसार की हानि करके मनुष्य क्लेश में पड़कर नष्ट हो जाता है ॥३४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३४−(यथा) येन प्रकारेण (आज्यम्) घृतम् (प्रगृहीतम्) प्रकर्षेण धृतम् (आलुम्पेत्) लुप्लृ छेदने विनाशने च। समन्ताद् नश्येत् (स्रुचः) चिक् च। उ० २।६२। स्रु गतौ−चिक्। यज्ञपात्रविशेषात्। चमसात् (अग्नये) पावकाय (एव) तथा (ह) हि (ब्रह्मभ्यः) ब्रह्मचारिभ्यः (वशाम्) वेदवाणीम् (अग्नये) सन्तापाय। क्लेशाय (आ) समन्तात् (वृश्चते) वृश्च्यते। छिद्यते (अददत्) अप्रयच्छन् पुरुषः ॥
३५ पुरोडाशवत्सा सुदुघा
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पु॑रो॒डाश॑वत्सा सु॒दुघा॑ लो॒केऽस्मा॒ उप॑ तिष्ठति।
सास्मै॒ सर्वा॒न्कामा॑न्व॒शा प्र॑द॒दुषे॑ दुहे ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
पु॑रो॒डाश॑वत्सा सु॒दुघा॑ लो॒केऽस्मा॒ उप॑ तिष्ठति।
सास्मै॒ सर्वा॒न्कामा॑न्व॒शा प्र॑द॒दुषे॑ दुहे ॥
३५ पुरोडाशवत्सा सुदुघा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- With the sacrificial cake as calf, milking well, she draws near to
him in the world; she yields (duh) to him all his desires—[namely,]
the cow ⌊vaśā́⌋ to him who has presented her.
Notes
Ppp. reads, in b, loke ‘syo ’pa; and, for c, sahasmāi sarvān
kāmān mahe. The Anukr. takes no notice of the irregular meter in pādas
a and c. All the saṁhitā-mss. accent loké ‘smā in b; our
text emends to lokè.
Griffith
Good milker, with rice-cake as calf, she in the world comes nigh to him, To him who gave her as a gift the Cow grants every hope and. wish.
पदपाठः
पु॒रो॒डाश॑ऽवत्सा। सु॒ऽदुघा॑। लो॒के। अ॒स्मै॒। उप॑। ति॒ष्ठ॒ति॒। सा। अ॒स्मै॒। सर्वा॑न्। कामा॑न्। व॒शा। प्र॒ऽद॒दुषे॑। दु॒हे॒। ४.३५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (पुरोडाशवत्सा) बढ़कर दान करने [वा उत्तम अन्न पाने] के लिये उपदेश करनेवाली, (सुदुघा) सुन्दर रीति से पूर्ण करनेवाली (वशा) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] (लोके) संसार में (अस्मै) उस पुरुष के लिये (उप तिष्ठति) उपस्थित होती है। (सा) वह (अस्मै) इस (प्रददुषे) बड़े दानी के लिये (सर्वान्) सब (कामान्) श्रेष्ठ कामनाएँ (दुहे) पूरी करती है ॥३५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य सब गुणों की खान वेदविद्या के अभ्यास और प्रकाश से धार्मिक होकर अपनी सब कामनाएँ पूरी करता है ॥३५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३५−(पुरोडाशवत्सा) पुरो अप्रे दाश्यते दीयते, दाशृ दाने−घञ्+वृतॄवदिवचिवसि०। उ० ३।६२। वद व्यक्तायां वाचि−स, टाप्। पुरोडाशाय उत्तमदानाय परिपक्वान्नाय वा वदत्युपदिशति या सा (सुदुघा) अ० ७।७३।७। यथाविधि पूरयित्री। कामदा (लोके) संसारे (अस्मै) पुरुषाय (उपतिष्ठति) उपस्थिता भवति (सा) (अस्मै) (सर्वान्) (कामान्) श्रेष्ठाभिलाषान् (वशा) (प्रददुषे) प्रकर्षेण दत्तवते (दुहे) दुग्धे। प्रपूरयति ॥
३६ सर्वान्कामान्यमराज्ये वशा
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सर्वा॒न्कामा॑न्यम॒राज्ये॑ व॒शा प्र॑द॒दुषे॑ दुहे।
अथा॑हु॒र्नार॑कं लो॒कं नि॑रुन्धा॒नस्य॑ याचि॒ताम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सर्वा॒न्कामा॑न्यम॒राज्ये॑ व॒शा प्र॑द॒दुषे॑ दुहे।
अथा॑हु॒र्नार॑कं लो॒कं नि॑रुन्धा॒नस्य॑ याचि॒ताम् ॥
३६ सर्वान्कामान्यमराज्ये वशा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- All his desires, in Yama’s realm, does the cow ⌊vaśā́⌋ yield to him
who has presented her; likewise they call hell the world of him who
keeps her back when asked for.
Notes
The pada-text reads nárakam, and the difference of the two texts is
noted in Prāt. iii. 21; iv. 90. Ppp. reads tathā for atha in c.
Griffith
In Yama’s realm the Cow fulfils each wish for him who gave her up; But hell, they say, is for the man who, when they beg, bestow her not.
पदपाठः
सर्वा॑न्। कामा॑न्। य॒म॒ऽराज्ये॑। व॒शा। प्र॒ऽद॒दुषे॑। दु॒हे॒। अथ॑। आ॒हुः॒। नर॑कम्। लो॒कम्। नि॒ऽरु॒न्धा॒नस्य॑। या॒चि॒ताम्। ४.३६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (वशा) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] (यमराज्ये) न्यायकारी [परमेश्वर] के राज्य में (प्रददुषे) अपने बड़े दानी के लिये (सर्वान्) सब (कामान्) श्रेष्ठ कामनाएँ (दुहे) पूरी करती है। (अथ) और (याचिताम्) उस माँगी हुई को (निरुन्धानस्य) रोकनेवाले का (लोकम्) लोक [घर] (नरकम्) नरक [महाकष्टस्थान] (आहुः) वे [विद्वान्] बताते हैं ॥३६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमात्मा की व्यवस्था समझ कर वेदवाणी का प्रकाश करते हैं, वे अपने सब अभीष्ट सुख पाते हैं, और उसके रोकनेवाले मूर्ख अज्ञान बढ़ने से क्लेश में पड़ते हैं ॥३६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३६−(यमराज्ये) न्यायकारिणः परमेश्वरस्य राज्यनियमे (अथ) पुनः (आहुः) कथयन्ति विद्वांसः (नरकम्) नृणाति क्लेशं प्रापयतीति नरकः। कृञादिभ्यः संज्ञायां वुन्। उ० ५।३५। नॄ नये−वुन्। सांहितिको दीर्घः। महाक्लेशस्थानम् (लोकम्) गृहम् (निरुन्धानस्य) प्रतिरोधकस्य (याचिताम्) प्रार्थितां ताम्। अन्यत् पूर्ववत्−अ० ३५ ॥
३७ प्रवीयमाना चरति
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प्र॑वी॒यमा॑ना चरति क्रु॒द्धा गोप॑तये व॒शा।
वे॒हतं॑ मा॒ मन्य॑मानो मृ॒त्योः पाशे॑षु बध्यताम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
प्र॑वी॒यमा॑ना चरति क्रु॒द्धा गोप॑तये व॒शा।
वे॒हतं॑ मा॒ मन्य॑मानो मृ॒त्योः पाशे॑षु बध्यताम् ॥
३७ प्रवीयमाना चरति ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Being impregnated, the cow ⌊vaśā́⌋ goes about angry at her master:
thinking me barren, let him be bound in the fetters of death.
Notes
Griffith
Enraged against her owner roams the Cow when she hath been impregned. He deemed me fruitless is her thought; let him be bound in, snares of Death!
पदपाठः
प्र॒ऽवी॒यमा॑ना। च॒र॒ति॒। क्रु॒ध्दा। गोऽप॑तये। व॒शा। वे॒हत॑म्। मा॒। मन्य॑मानः। मृ॒त्योः। पाशे॑षु। ब॒ध्य॒ता॒म्। ४.३७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (प्रवीयमाना) फेंकी जाती हुई (वशा) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] (गोपतये) पृथिवीपालक [राजा] के लिये (क्रुद्धा) क्रुद्ध होकर (चरति) विचरती है।(मा) मुझ को (वेहतम्) गर्भघातिनी स्त्री [के समान रोगिणी] (मन्यमानः) मानता हुआ [वह राजा] (मृत्योः) मृत्यु के (पाशेषु) फन्दों में (बध्यताम्) बाँधा जावे ॥३७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस राजा के राज्य में वेदवाणी प्रचार से रोकी जाती है, वह राजा अपने राज्यसहित अधर्म बढ़ने से नष्ट हो जाता है ॥३७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३७−(प्रवीयमाना) वी गत्यसनादिषु−कर्मणि शानच्, असनं क्षेपणम्, प्रक्षिप्यमाणा (चरति) विचरति (क्रुद्धा) कुपिता (गोपतये) भूपालाय। राज्ञे (वशा) कमनीया वेदवाणी (वेहतम्) अ० ३।२३।१। संश्चत्तृपद्वेहत्। उ० २।८५। वि+हन हिंसागत्योः−अति। पृषोदरादिरूपम्। गर्भघातिनीस्त्रीतुल्यरोगिणीम् (मा) माम् (मन्यमानः) जानन् (मृत्योः) मरणस्य (पाशेषु) बन्धेषु (बध्यताम्) गृह्यताम् ॥
३८ यो वेहतम्
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यो वे॒हतं॒ मन्य॑मानो॒ऽमा च॒ पच॑ते व॒शाम्।
अप्य॑स्य पु॒त्रान्पौत्रां॑श्च या॒चय॑ते॒ बृह॒स्पतिः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यो वे॒हतं॒ मन्य॑मानो॒ऽमा च॒ पच॑ते व॒शाम्।
अप्य॑स्य पु॒त्रान्पौत्रां॑श्च या॒चय॑ते॒ बृह॒स्पतिः॑ ॥
३८ यो वेहतम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- And he who, thinking her barren, cooks the cow ⌊vaśā́⌋ at home
(amā́)—his sons and sons’ sons also does Brihaspati cause to be asked
for.}}
Notes
Ppp. reads in b, for amā ca, the equivalent gṛheṣu; further, in
c, d, asya svaputrān pāutrāś cātayate bṛh-. ⌊Over “at home” W.
interlines “in private”: see vs. 53.⌋
Griffith
Whoever looking on the Cow as fruitless, cooks her flesh at home, Brihaspati compels his sons and children of his sons to beg.
पदपाठः
यः। वे॒हत॑म्। मन्य॑मानः। अ॒मा। च॒। पच॑ते। व॒शाम्। अपि॑। अ॒स्य॒। पु॒त्रान्। पौत्रा॑न्। च॒। या॒चय॑ते। बृह॒स्पतिः॑। ४.३८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (च) और (वशाम्) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] को (वेहतम्) गर्भघातिनी स्त्री [के समान रोगिणी] (मन्यमानः) मानता हुआ (यः) जो पुरुष (अमा) अपने घर में [उसकी निन्दा] (पचते) विख्यात करता है। (बृहस्पतिः) बड़े-बड़े लोकों का स्वामी [परमेश्वर] (अस्य) उस पुरुष के (पुत्रान्) पुत्रों (च) और (पौत्रान्) पौत्रों को (अपि) भी (याचयते) भिखारी बना देता है ॥३८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य वृथा दोष लगाकर वेदवाणी से अपने सन्तानों को रोकता है, वह उन्हें अविवेकी करके निर्धनी और नीच बनाता है ॥३८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३८−(यः) पुरुषः (वेहतम्) म० ३७। गर्भघातिनीस्त्रीतुल्यरोगिणीम् (मन्यमानः) जानन् सन् (अमा) गृहे (च) (पचते) पच व्यक्तीकरणे। व्यक्तीकरोति (वशाम्) कामनीयां वेदवाणीम् (अपि) एव (अस्य) (पुत्रान्) (पौत्रान्) (च) (याचयते) याचृ याच्ञायाम्, णिच्। भिक्षन् करोति। भिक्षयते ॥
३९ महदेषाव तपति
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म॒हदे॒षाव॑ तपति॒ चर॑न्ती॒ गोषु॒ गौरपि॑।
अथो॑ ह॒ गोप॑तये व॒शाद॑दुषे वि॒षं दु॑हे ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
म॒हदे॒षाव॑ तपति॒ चर॑न्ती॒ गोषु॒ गौरपि॑।
अथो॑ ह॒ गोप॑तये व॒शाद॑दुषे वि॒षं दु॑हे ॥
३९ महदेषाव तपति ...{Loading}...
Whitney
Translation
- She sends down great heat, going about a cow (gó) among kine;
further, to the master who has not given her the cow (vaśā́) milks
poison.
Notes
In b, apparently, ‘being treated as an ordinary cow.’ The ‘milks’ in
d does not necessarily mean that she gives actual milk. Ppp. reads
tato in c, for atho ha, thus rectifying the meter; the Anukr.
takes no notice of the redundancy of the pāda, caused by the apparently
intrusive ha.
Griffith
Downward she sends a mighty heat, though amid kine a Cow she roams. Poison she yields for him who owns and hath not given her away.
पदपाठः
म॒हत्। ए॒षा। अव॑। त॒प॒ति॒। चर॑न्ती। गोषु॑। गौः। अपि॑। अथो॒ इति॑। ह॒। गोऽप॑तये। व॒शा। अद॑दुषे। वि॒षम्। दु॒हे॒। ४.३९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (एषा) यह (गौः) प्राप्तियोग्य [वेदवाणी] (गोषु) सब भूमि प्रदेशों में (अपि) ही (चरन्ती) विचरती हुई (महत्) बहुत (अव) निश्चय करके (तपति) प्रताप [ऐश्वर्य]वाली होती है। (अथो ह) और कि (वशा) वशा [वह कामनायोग्य वेदवाणी] (अददुषे) [उसके] न देनेवाले (गोपतये) भूपति [राजा] के लिये (विषम्) विष [महाकष्ट] (दुहे) पूर्ण करती है ॥३९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वेदवाणी की प्रवृत्ति होने से संसार में ऐश्वर्य बढ़ता है, और जो दुष्ट राजा उसे रोकता है, वह नष्ट हो जाता है ॥३९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३९−(महत्) बृहत् (एषा) वर्तमाना (अव) निश्चयेन (तपति) तप ऐश्वर्ये। ईष्टे। प्रतापिनी भवति (चरन्ती) विचरन्ती (गोषु) भूमिप्रदेशेषु (गौः) प्राप्तव्या वेदवाणी (अपि) (अथो ह) पुनश्च (गोपतये) भूपालाय। राज्ञे (वशा) (अददुषे) ददातेः क्वसु। अदत्तवते (विषम्) सरलम् (दुहे) दुग्धे। प्रपूरयति ॥
४० प्रियं पशूनाम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
प्रि॒यं प॑शू॒नां भ॑वति॒ यद्ब्र॒ह्मभ्यः॑ प्रदी॒यते॑।
अथो॑ व॒शाया॒स्तत्प्रि॒यं यद्दे॑व॒त्रा ह॒विः स्यात् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
प्रि॒यं प॑शू॒नां भ॑वति॒ यद्ब्र॒ह्मभ्यः॑ प्रदी॒यते॑।
अथो॑ व॒शाया॒स्तत्प्रि॒यं यद्दे॑व॒त्रा ह॒विः स्यात् ॥
४० प्रियं पशूनाम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- It is a thing dear to the cattle that she is presented to the
priests (brahmán); further, that is a thing dear to the cow ⌊vaśā́⌋,
that she be an oblation to the gods.
Notes
Lit. ‘among the gods’ (p. deva॰trā́).
Griffith
The animal is happy when it is bestowed upon the priests: But happy is the Cow when she is made a sacrifice to Gods.
पदपाठः
प्रि॒यम्। प॒शू॒नाम्। भ॒व॒ति॒। यत्। ब्र॒ह्मऽभ्यः॑। प्र॒ऽदी॒यते॑। अथो॒ इति॑। व॒शायाः॑। तत्। प्रि॒यम्। यत्। दे॒व॒ऽत्रा। ह॒विः। स्यात्। ४.४०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (पशूनाम्) सब प्राणियों का (प्रियम्) प्रिय [हित] (भवति) होता है, (यत्) जब (ब्रह्मभ्यः) ब्रह्मचारियों को (प्रदीयते) वह दी जाती है। (अथो) और (तत्) यह (वशायाः) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] का (प्रियम्) प्रिय [हित] है, (यत्) कि वह [वेदवाणी] (देवत्रा) विद्वानों में (हविः) ग्राह्य वस्तु (स्यात्) होवे ॥४०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - ब्रह्मचर्य आदि विधि से वेदविद्या से दान और ग्रहण से सब संसार का हित होता है ॥४०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४०−(प्रियम्) हितम् (पशूनाम्) प्राणिनाम् (भवति) (यत्) यदा (ब्रह्मभ्यः) ब्रह्मचारिभ्यः (प्रदीयते) प्रकर्षेण दीयते वेदवाणी (अथो) अपि च (वशायाः) कमनीयाया वेदवाण्याः (तत्) प्रियम्। हितम् (यत्) (देवत्रा) देवमनुष्यपुरुषपुरुमर्त्येभ्यो द्वितीयासप्तम्योर्बहुलम्। पा० ५।४।५६। इति त्रा। विद्वत्सु (हविः) ग्राह्यं वस्तु (स्यात्) ॥
४१ या वशा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
या व॒शा उ॒दक॑ल्पयन्दे॒वा य॒ज्ञादु॒देत्य॑।
तासां॑ विलि॒प्त्यं भी॒मामु॒दाकु॑रुत नार॒दः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
या व॒शा उ॒दक॑ल्पयन्दे॒वा य॒ज्ञादु॒देत्य॑।
तासां॑ विलि॒प्त्यं भी॒मामु॒दाकु॑रुत नार॒दः ॥
४१ या वशा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- What cows the gods shaped out (ut-kḷp), rising up from the
sacrifice, of them Nārada selected for himself the fearful viliptī́.
Notes
The root kḷp (kalpay-) with ud occurs nowhere else. In c,
P.M.W.I.E.p.m.R. read viliptī́m, which would be the more normal accus.
of -tī́, but the meter is against it. But the accent -tyám is
entirely inadmissible; it must be emended to -tyàm; ⌊cf. JAOS. x. 379.
369⌋. What sort of a cow (vaśā́) is intended by viliptī́ (which ought
to signify ‘smeared over’) is altogether obscure. Ppp. reads instead
vilapatiṁ.
Griffith
Narada chose the terrible Vilipti out of all the cows Which the Gods formed and framed when they had risen up from sacri- fice
पदपाठः
याः। व॒शाः। उ॒त्ऽअक॑ल्पयन्। दे॒वाः। य॒ज्ञात्। उ॒त्ऽएत्य॑। तासा॑म्। वि॒ऽलि॒प्त्यम्। भी॒माम्। उ॒त्ऽआकु॑रुत। ना॒र॒दः। ४.४१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (याः) जिन (वशाः) कामनायोग्य [शक्तियों] को (देवाः) विजय चाहनेवाले [जिज्ञासुओं] ने (यज्ञात्) यज्ञ [परमेश्वर की पूजा, संगतिकरण और दानव्यवहार] से (उदेत्य) ऊँचे होकर (उदकल्पयन्) उत्तम माना है। (तासाम्) उन [शक्तियों] के बीच (विलिप्त्यम्) विशेष वृद्धिवाली और (भीमाम्) भयानक [वेदवाणी] को (नारदः) नीति देनेवाले [आचार्य] ने (उदाकुरुत) स्वीकार किया है ॥४१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सदा से विद्वानों ने अनेक शक्तियों की कल्पना करके यही निश्चय किया है कि संसार में शिष्टों की वृद्धि करनेवाली और दुष्टों की ताड़नेवाली इस वेदवाणी के तुल्य अन्य कोई शक्ति नहीं है ॥४१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४१−(याः) (वशाः) कमनीयाः शक्तयः (उदकल्पयन्) उत्तमाः कल्पितवन्तः (देवाः) विजिगीषवः। जिज्ञासवः (यज्ञात्) ईश्वरपूजासंगतिकरणदानव्यवहारात् (उदेत्य) उदयं प्राप्य (तासाम्) वशानां मध्ये (विलिप्त्यम्) वि+लिप उपदेहे−क्तिन्, उपदेहो वृद्धिः। नित्यं छन्दसि। पा० ४।१।४६। इति ङीप्। अमि यणादेशश्छान्दसः। विशेषा वृद्धिर्यस्यास्ताम् (भीमाम्) भयङ्ककराम् (उदाकुरुत) स्वीकृतवान् (नारदः) म० १६। नीतिप्रदो विद्वान् ॥
४२ तां देवा
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तां दे॒वा अ॑मीमांसन्त व॒शेया३मव॒शेति॑।
ताम॑ब्रवीन्नार॒द ए॒षा व॒शानां॑ व॒शत॒मेति॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तां दे॒वा अ॑मीमांसन्त व॒शेया३मव॒शेति॑।
ताम॑ब्रवीन्नार॒द ए॒षा व॒शानां॑ व॒शत॒मेति॑ ॥
४२ तां देवा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The gods questioned (mīmāṅs-) about her: is this a cow ⌊vaśā́⌋,
or not a cow.’ Of her Nārada said: she is of cows the most truly cow
(vaśátama).
Notes
The more proper reading in b would seem to be ávaśā́3íti; but all
the saṁhitā-mss. read ávaśé ’ti, as in our text, although the pāda
gives the sign of protraction (3) also after avaśā, as it should be.
But the Prāt. (i. 97) requires -śé ’ti simply: see the rules i. 97 and
105, and the notes to them. The verse (8 + 8: 7 + 10) is very ill
described by the Anukr. Ppp. reads in a devā ’mīm-; for b,
vaśe ’yāṁ ntavaśe ’ti and it omits iti at the end. ⌊For the use of
the superlative in d, cf. the punning lampoon on the name of Gotama,
Indische Sprüche², 4875.⌋
Griffith
The Gods considered her in doubt whether she were a Cow or not. Mirada spake of her and said, The veriest Cow of cows is she.
पदपाठः
ताम्। दे॒वाः। अ॒मी॒मां॒स॒न्त॒। व॒शा। इ॒या३म्। अव॑शा३। इति॑। ताम्। अ॒ब्र॒वी॒त्। ना॒र॒दः। ए॒षा। व॒शाना॑म्। व॒शऽत॑मा। इति॑। ४.४२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- बृहतीगर्भानुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) विजय चाहनेवाले [जिज्ञासुओं] ने (ताम्) उस [वेदवाणी] को (अमीमांसन्त) विचारा−“(इयम्) यह [वेदवाणी] (वशा) कामनायोग्य है, [अथवा] (अवशा इति) कामनायोग्य नहीं है। (ताम्) उसके विषय में (नारदः) नीति बतानेवाले [आचार्य] ने (अब्रवीत्) कहा−“(एषा) यह [वेदवाणी] (वशानाम्) सब कामनायोग्य [शक्तियों] में (वशतमा इति) अत्यन्त कामनायोग्य है ॥४२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - प्रथम से जिज्ञासु ब्रह्मचारियों ने परस्पर प्रश्नोत्तर और परीक्षा करके निश्चय किया है कि यह वेदवाणी ही संसार भर में ऐसी है कि जिसके अभ्यास से मनुष्य सब इष्ट पदार्थ पा लेता है ॥४२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४२−(ताम्) वेदवाणीम् (देवाः) विजिगीषवः (अमीमांसन्त) मान जिज्ञासायाम्−स्वार्थे सन्−लङ्। विचारितवन्तः (वशा) कमनीया (इयम्) वेदवाणी (अवशा) अकमनीया (इति) (ताम्) वेदवाणीम् (अब्रवीत्) कथितवान् (नारदः) म० १६। नीतिप्रदः (एषा) वेदवाणी (वशानाम्) कमनीयानां शक्तीनां मध्ये (वशतमा) अतिशयेन कमनीया (इति) ॥
४३ कति नु
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कति॒ नु व॒शा ना॑रद॒ यास्त्वं वे॑त्थ मनुष्य॒जाः।
तास्त्वा॑ पृच्छामि वि॒द्वांसं॒ कस्या॒ नाश्नी॑या॒दब्रा॑ह्मणः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
कति॒ नु व॒शा ना॑रद॒ यास्त्वं वे॑त्थ मनुष्य॒जाः।
तास्त्वा॑ पृच्छामि वि॒द्वांसं॒ कस्या॒ नाश्नी॑या॒दब्रा॑ह्मणः ॥
४३ कति नु ...{Loading}...
Whitney
Translation
- How many, pray (nú), Nārada, are the cows which thou knowest, born
among men (manuṣyà-)? those I ask of thee who knowest; of which may a
non-Brahman not partake (aś)?
Notes
Ppp. reads, for c, katimā ”sāṁ bhīmatamā (like our vs. 45 c).
Griffith
How many cows, O Narada, knowest thou, born among man- kind I ask thee who dost know, of which must none who is no Brahman eat?
पदपाठः
कति॑। नु। व॒शाः। ना॒र॒द॒। याः। त्वम्। वेत्थ॑। म॒नु॒ष्य॒ऽजाः। ताः। त्वा॒। पृ॒च्छा॒मि॒। वि॒द्वांस॑म्। कस्याः॑। न। अ॒श्नी॒या॒त्। अब्रा॑ह्मणः। ४.४३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - “(नारद) हे नीति बतानेवाले [आचार्य] ! (कति नु) कितनी ही (वशाः) कामनायोग्य [शक्तियाँ] हैं, (याः) जिनको (मनुष्यजाः) मननशीलों में उत्पन्न हुआ (त्वम्) तू (वेत्थ) जानता है, (ताः) उन को (विद्वांसम्) जाननेवाले (त्वा) तुझसे (पृच्छामि) मैं पूछता हूँ, (अब्राह्मणः) अब्रह्मचारी [ब्रह्मचर्य न रखता हुआ पुरुष] (कस्याः) कौनसी [शक्ति] का (न) नहीं (अश्नीयात्) भोग [अनुभव] कर सकता ॥४३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिज्ञासु बहुश्रुत विद्वान् से निश्चय करे कि जितनी शक्तियाँ आप जानते हैं, उनमें वह कौनसी है, जिससे मनुष्य विना ब्रह्मचर्य धारण किये सुख पा लेवे। इस प्रश्न का उत्तर आगे है ॥४३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४३−(कति) किंपरिमाणाः (नु) प्रश्ने (वशाः) कमनीयाः शक्तयः (नारद) म० १६। हे नीतिप्रद (याः) (त्वम्) (वेत्थ) जानासि (मनुष्यजाः) मनुष्य+जनी प्रादुर्भावे−विट्। मनुष्येषु मननशीलेषूत्पन्नः (ताः) (त्वा) (पृच्छामि) अहं जिज्ञासे (विद्वांसम्) जानन्तम् (कस्याः) (न) निषेधे (अश्नीयात्) भुञ्जीत। अनुभवेत् (अब्राह्मणः) अब्रह्मचारी ॥
४४ विलिप्त्या बृहस्पते
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वि॑लि॒प्त्या बृ॑हस्पते॒ या च॑ सू॒तव॑शा व॒शा।
तस्या॒ नाश्नी॑या॒दब्रा॑ह्मणो॒ य आ॒शंसे॑त॒ भूत्या॑म् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
वि॑लि॒प्त्या बृ॑हस्पते॒ या च॑ सू॒तव॑शा व॒शा।
तस्या॒ नाश्नी॑या॒दब्रा॑ह्मणो॒ य आ॒शंसे॑त॒ भूत्या॑म् ॥
४४ विलिप्त्या बृहस्पते ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The viliptī́, O Brihaspati, and the cow ⌊vaśā́⌋ that has given
birth to [such] a cow—of that one a non-Brahman who should hope for
prosperity (bhū́ti) may not partake.
Notes
The translation implies at the beginning emendation to viliptī́ yā́ (as
in vs. 46); the proper reading might also be viliptyàs, nom. pl.;
-tyā́s seems inadmissible; Ppp. reads vilaptyā (for -ās?). Ppp. has
further tāsāṁ for tasyās in c. Sūtávaśā is rendered according
to the requirement of the accent; the Pet. Lexx. define as ‘a cow
remaining barren after the birth of one calf’; and the legends told in
explanation of the name in TS. vi. 1. 3⁶ and MS. ii. 5. 4 support that
understanding. ⌊Cf. Henry’s translation, p. 208, and note, p. 256.⌋ Pāda
c is redundant in this verse, as are also 46 c and 43 d; the
Anukr. heeds none of these cases.
Griffith
Vilipti, cow, and she who drops no second calf, Brihaspati! Of these none not a Brahmana should eat if he hope for emi- nence.
पदपाठः
वि॒ऽलि॒प्त्याः। बृ॒ह॒स्प॒ते॒। या। च॒। सू॒तऽव॑शा। व॒शा। तस्याः॑। न। अ॒श्नी॒या॒त्। अब्रा॑ह्मणः। यः। आ॒ऽशंसे॑त। भूत्या॑म्। ४.४४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - “(बृहस्पते) हे बड़ी वेदवाणियों के रक्षक [जिज्ञासु] ! (या) जो (च) निश्चय करके (सूतवशा) उत्पन्न जगत् को वश में करनेवाली (वशा) कामनायोग्य [वेदवाणी] है, (तस्याः) उस (विलिप्त्याः) विशेष वृद्धिवाली का (न अश्नीयात्) वह भोग [अनुभव] नहीं कर सकता, (यः) जो (अब्राह्मणः) अब्रह्मचारी [ब्रह्मचर्य न रखनेवाला पुरुष] (भूत्याम्) ऐश्वर्य में (आशंसेत) इच्छा करे ॥४४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस वेदवाणी के वश में सब संसार है, उसको वही मनुष्य पाकर प्रभुता कर सकता है, जो पूरा ब्रह्मचारी हो, अन्यथा नहीं। यह गत मन्त्र का उत्तर है ॥४४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४४−(विलिप्त्याः) म० ४१। विशेषवृद्धियुक्तायाः (बृहस्पते) हे बृहतीनां वेदवाणीनां रक्षक (या) (च) निश्चयेन (सूतवशाः) सूतस्योत्पन्नस्य जगतो वशयित्री (वशा) कमनीया वेदवाणी (तस्याः) (न) निषेधे (अश्नीयात्) भुञ्जीत। अनुभवेत् (यः) (आशंसेत) इच्छेत् (भूत्याम्) ऐश्वर्ये ॥
४५ नमस्ते अस्तु
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नम॑स्ते अस्तु नारदानु॒ष्ठु वि॒दुषे॑ व॒शा।
क॑त॒मासां॑ भी॒मत॑मा॒ यामद॑त्त्वा परा॒भवे॑त् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
नम॑स्ते अस्तु नारदानु॒ष्ठु वि॒दुषे॑ व॒शा।
क॑त॒मासां॑ भी॒मत॑मा॒ यामद॑त्त्वा परा॒भवे॑त् ॥
४५ नमस्ते अस्तु ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Homage be to thee, O Nārada; [be] the cow to him who at once knows
it. Which one of them is the most fearful, not having given which, one
would perish?
Notes
Ppp. reads in a te ‘stu, and in b vaśām, which is easier
(Ludwig translates ⌊as if the text were vaśā́ḥ⌋). In d, our text
might better read ádattvā.
Griffith
Homage, O Narada, to thee who hast quick knowledge of the cows. Which of these is the direst, whose withholding bringeth death to man?
पदपाठः
नमः॑। ते॒। अ॒स्तु॒। ना॒र॒द॒। अ॒नु॒ष्ठु। वि॒दुषे॑। व॒शा। क॒त॒मा। आ॒सा॒म्। भी॒मऽत॑मा। याम्। अद॑त्वा। प॒रा॒ऽभवे॑त्। ४.४५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - “(नारद) हे नीति बतानेवाले [ऋषि] ! (अनुष्ठु) अनुष्ठान [कर्मारम्भ] (विदुषे) जानते हुए (ते) तुझ को (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे। (आसाम्) इन [संसार की शक्तियों] में से (कतमा) कौनसी (वशा) कामनायोग्य शक्ति (भीमतमा) अत्यन्त भयानक है, (याम्) जिस को (अदत्त्वा) न देकर (पराभवेत्) [मनुष्य] हार पावे ॥४५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिज्ञासु विद्वान् से प्रश्न करे कि संसार के बीच शक्तियों में से वह कौन सी शक्ति है, जिसकी प्रवृत्ति रोकने से मनुष्य गिरकर कष्ट पाता है ॥४५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४५−(नमः) सत्कारः (ते) तुभ्यम् (अस्तु) (नारद) म० १६। हे नीतिप्रद (अनुष्ठु) अपदुःसुषु स्थः। उ० १।२५। अनु+ष्ठा गतिनिवृत्तौ−कु। अनुष्ठानम्। कर्मारम्भम् (विदुषे) जानते (वशा) कमनीया शक्तिः (कतमा) बह्वीषु का (आसाम्) वशानाम् (भीमतमा) अतिशयेन भयङ्करा (याम्) (अदत्त्वा) (पराभवेत्) पराजयं प्राप्नुयात् पुरुषः ॥
४६ विलिप्ती या
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वि॑लि॒प्ती या बृ॑हस्प॒तेऽथो॑ सू॒तव॑शा व॒शा।
तस्या॒ नाश्नी॑या॒दब्रा॑ह्मणो॒ य आ॒शंसे॑त॒ भूत्या॑म् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
वि॑लि॒प्ती या बृ॑हस्प॒तेऽथो॑ सू॒तव॑शा व॒शा।
तस्या॒ नाश्नी॑या॒दब्रा॑ह्मणो॒ य आ॒शंसे॑त॒ भूत्या॑म् ॥
४६ विलिप्ती या ...{Loading}...
Whitney
Translation
- She that is viliptī́, O Brihaspati, further the cow that has given
birth to [such] a cow—of that one a non-Brahman who should hope for
prosperity may not partake.
Notes
Ppp. reads at the beginning viluptiṁ bṛhaspataye yā ca sū-, and in
c again (as in vs. 44) tāsāṁ.
Griffith
Vilipti, O Brihaspati, cow, mother of no second calf–Of these none not a Brahman should eat if he hope for eminence.
पदपाठः
वि॒ऽलि॒प्ती। या। बृ॒ह॒स्प॒ते॒। अथो॒ इति॑। सू॒तऽव॑शा। व॒शा। तस्याः॑। न। अ॒श्नी॒या॒त्। अब्रा॑ह्मणः। यः। आ॒ऽशंसे॑त। भूत्या॑म्। ४.४६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - “(बृहस्पते) हे बड़ी वेदवाणियों के रक्षक ! (या) जो (विलिप्ती) विशेष वृद्धिवाली (अथो) और भी (सूतवशा) उत्पन्न जगत् को वश में करनेवाली (वशा) कामनायोग्य [वेदवाणी] है। (तस्याः) उस [वेदवाणी] का (न अश्नीयात्) वह भोग [अनुभव] नहीं कर सकता, (यः) जो (अब्राह्मणः) अब्रह्मचारी [ब्रह्मचर्य न रखनेवाला पुरुष] (भूत्याम्) ऐश्वर्य में (आशंसेत) इच्छा करे ॥४६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - संसार का हित करनेवाली वेदवाणी को मनुष्य विना ब्रह्मचर्य कभी नहीं पा सकता और न ऐश्वर्यवान् हो सकता है। यह गत मन्त्र का उत्तर है ॥४६॥ इस मन्त्र का मिलान ऊपर मन्त्र ४४ से करो ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४६−(विलिप्ती) म० ४१। विशेषवृद्धियुक्ता (अथो) अपि च। अन्यत् पूर्ववत्−म० ४४ ॥
४७ त्रीणि वै
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त्रीणि॒ वै व॑शाजा॒तानि॑ विलि॒प्ती सू॒तव॑शा व॒शा।
ताः प्र य॑च्छेद्ब्र॒ह्मभ्यः॒ सो᳡ना॑व्र॒स्कः प्र॒जाप॑तौ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
त्रीणि॒ वै व॑शाजा॒तानि॑ विलि॒प्ती सू॒तव॑शा व॒शा।
ताः प्र य॑च्छेद्ब्र॒ह्मभ्यः॒ सो᳡ना॑व्र॒स्कः प्र॒जाप॑तौ ॥
४७ त्रीणि वै ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Three verily are the kinds of cow: the vilipti, she that has given
birth to [such] a cow, the [simple] cow yagd; these one should
present to the priests (brahman), [then] he falls not under the wrath
of Prajapati.
Notes
Ppp. once more reads vilitptīs sū- in b; it is easier to
conjecture a meaning for viluptī than for viliptī. Most of our
saṁhitā-mss. accent só ‘nāv- in d; our text makes the necessary
correction to sò. The irregularities of b and c are unnoticed
in the Anukr.; ⌊or rather, it lets them balance each the other⌋.
Griffith
Threefold are kine, Vilipti, cow, the mother of no seeond calf: These one should give to priests, and he will not offend Praja- pati.
पदपाठः
त्रीणि॑। वै। व॒शा॒ऽजा॒तानि॑। वि॒ऽलि॒प्ती। सू॒तऽव॑शा। व॒शा। ताः। प्र। य॒च्छे॒त्। ब्र॒ह्मऽभ्यः॑। सः। अ॒ना॒व्र॒स्कः। प्र॒जाऽप॑तौ। ४.४७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (त्रीणि) तीन [कर्म, उपासना, ज्ञान] (वै) ही (वशाजातानि) कामनायोग्य [वेदवाणी] के प्रसिद्ध कर्म हैं, (विलिप्ती) वह विशेष वृद्धिवाली (सूतवशा) उत्पन्न जगत् को वश में करनेवाली, (वशा) कामनायोग्य [वेदवाणी] है। (सः) वह [विद्वान्] (प्रजापतौ) प्रजापालक [परमेश्वर] में (अनाव्रस्कः) अच्छेद्य [अति दृढ़] होकर (ताः=ताम्) उसे (ब्रह्मभ्यः) ब्रह्मचारियों को (प्र यच्छेत्) दान करे ॥४७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य सर्वनियन्त्री वेदवाणी द्वारा कर्म, उपासना, ज्ञान प्राप्त करके आस्तिक बुद्धि से ब्रह्मचारियों को विद्या दान करे ॥४७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४७−(त्रीणि) कर्मोपासनाज्ञानानि (वै) एव (वशाजातानि) वशायाः कमनीयाया वेदवाण्याः प्रसिद्धकर्माणि (विलिप्ती) म० ४१। विशेषवृद्धियुक्ता (सूतवशा) म० ४४। उत्पन्नस्य जगतो वशयित्री (वशा) कमनीया वेदवाणी (ताः) एकवचनस्य बहुवचनम्। ताम् (प्र) (यच्छेत्) दद्यात् (ब्रह्मभ्यः) ब्रह्मचारिभ्यः (अनाव्रस्कः) नञ्+आङ्+ओव्रश्चू छेदने−घञ्। चजोः कु घिण्ण्यतोः। पा० ७।३।५२। इति कुत्वम्। अच्छेद्यः। सुदृढः (प्रजापतौ) जीवानां पालके परमेश्वरे ॥
४८ एतद्वो ब्राह्मणा
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ए॒तद्वो॑ ब्राह्मणा ह॒विरिति॑ मन्वीत याचि॒तः।
व॒शां चेदे॑नं॒ याचे॑यु॒र्या भी॒माद॑दुषो गृ॒हे ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ए॒तद्वो॑ ब्राह्मणा ह॒विरिति॑ मन्वीत याचि॒तः।
व॒शां चेदे॑नं॒ याचे॑यु॒र्या भी॒माद॑दुषो गृ॒हे ॥
४८ एतद्वो ब्राह्मणा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- This, O Brahmans, is your oblation—so, when asked ⌊therefor⌋, should
he think, if they should ask of him the cow, which in the house of him
who has not given her is fearful.
Notes
Griffith
This Brahmans! is your sacrifice: thus should one think when he is asked, What time they beg from him the Cow fearful in the with- holder’s house.
पदपाठः
ए॒तत्। वः॒। ब्रा॒ह्म॒णाः॒। ह॒विः। इति॑। म॒न्वी॒त॒। या॒चि॒तः। व॒शाम्। च॒। इत्। ए॒न॒म्। याचे॑युः। या। भी॒मा। अद॑दुषः। गृ॒हे। ४.४८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - “(ब्राह्मणाः) हे ब्रह्मचारियो ! (एतत्) यह (वः) तुम्हारा (हविः) ग्राह्य द्रव्य है−(इति) ऐसा (याचितः) जिससे [वेदवाणी] माँगी जावे वह [विद्वान्] (मन्वीत) माने। (वशाम्) कामनायोग्य [वेदवाणी] को (च इत्) ही (एनाम्) इस [विद्वान्] से (याचेयुः) वे [ब्रह्मचारी] माँगे, (या) जो [वेदवाणी] (अददुषः) दान न करनेवाले के (गृहे) घर में (भीमा) डरावनी है ॥४८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - विद्वान् को चाहिये के ब्रह्मचारियों को वेदवाणी का दान करके संसार का उपकार करे। विद्या की रोक से अविद्या के कारण विपत्तियाँ फैलती हैं ॥४८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४८−(एतत्) (वः) युष्माकम् (ब्राह्मणाः) हे ब्रह्मचारिणः (हविः) ग्राह्यं वस्तु (इति) एवम् (मन्वीत) जानीयात् (याचितः) प्रार्थितः पुरुषः (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (च इत्) एव (एनम्) पुरुषम् (याचेयुः) भिक्षेरन् (या) वेदवाणी (भीमा) भयङ्करा (अददुषः) अदत्तवतः पुरुषस्य (गृहे) गेहे ॥
४९ देवा वशाम्
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दे॒वा व॒शां पर्य॑वद॒न्न नो॑ऽदा॒दिति॑ हीडि॒ताः।
ए॒ताभि॑रृ॒ग्भिर्भे॒दं तस्मा॒द्वै स परा॑भवत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
दे॒वा व॒शां पर्य॑वद॒न्न नो॑ऽदा॒दिति॑ हीडि॒ताः।
ए॒ताभि॑रृ॒ग्भिर्भे॒दं तस्मा॒द्वै स परा॑भवत् ॥
४९ देवा वशाम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The gods talked about the cow in wrath, saying: he hath not given
it to us; with these verses (ṛ́c) [they talked about] Bheda;
therefore indeed he perished.
Notes
Ppp. reads upa for pari in a, and, for b, sa no rājata
heḍitā; and in c it rectifies the meter by giving bhedasya. The
Anukr. does not heed the deficiency in our verse.
Griffith
He gave her not to us, so spake the Gods, in anger, of the Cow. With these same verses they addressed Bheda: this brought him to his death.
पदपाठः
दे॒वाः। व॒शाम्। परि॑। अ॒व॒द॒न्। न। नः॒। अ॒दा॒त्। इति॑। ही॒डि॒ताः। ॒ए॒ताभिः॑। ऋ॒क्ऽभिः। भे॒दम्। तस्मा॑त्। वै। सः। परा॑। अ॒भ॒व॒त्। ४.४९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (हीडिताः) क्रोधित (देवाः) विद्वान् लोग (एताभिः) इन (ऋग्भिः) स्तुतियोग्य वेदवाणियों द्वारा (भेदम्) फूट डालनेवाले से (परि) घिर कर (अवदन्) बोले−“(वशाम्) कामनायोग्य [वेदवाणी] (नः) हमको (न अदात्) उसने नहीं दी है, (इति) सो (तस्मात् वै) इससे ही (सः) वह (परा अभवत्) हारा है ॥४९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग निश्चय कर देते हैं कि वेदवाणी का रोकनेवाला पुरुष अज्ञान बढ़ने से क्लेश में पड़ता है ॥४९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४९−(देवाः) विद्वांसः (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (परि) परीत्य (अवदन्) अब्रुवन् (न) निषेधे (नः) अस्मभ्यम् (अदात्) दत्तवान् (इति) एवम् (हीडिताः) म० २८। क्रुद्धाः (एताभिः) (ऋग्भिः) स्तुत्याभिर्वेदवाणीभिः (भेदम्) भिदिर् विदारणे−अच्। भेदकम्। कुटिलम् (तस्मात्) कारणात् (वै) (एव) (सः) भेदकः (पराभवत्) पराजितोऽभवत् ॥
५० उतैनां भेदो
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उ॒तैनां॑ भे॒दो नाद॑दाद्व॒शामिन्द्रे॑ण याचि॒तः।
तस्मा॒त्तं दे॒वा आग॒सोऽवृ॑श्चन्नहमुत्त॒रे ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उ॒तैनां॑ भे॒दो नाद॑दाद्व॒शामिन्द्रे॑ण याचि॒तः।
तस्मा॒त्तं दे॒वा आग॒सोऽवृ॑श्चन्नहमुत्त॒रे ॥
५० उतैनां भेदो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- And Bheda gave her not, when asked by Indra for the cow ⌊vaśā́⌋;
for that offense the gods cut him off in the contest for superiority.
Notes
Some of our mss. (Bp.E.D.K.) read etām (unaccented) in a; nearly
all (not Bs.s.m.D.) accent āgasó ‘vṛścan in d. Ppp. has at the
beginning utāi ’tāṁ bh-; its second half-verse is corrupt.
Griffith
Solicited by Indra, still Bheda refused to give this Cow. In strife for victory the Gods destroyed him for that sin of his.
पदपाठः
उ॒त। ए॒ना॒म्। भे॒दः। न। अ॒द॒दा॒त्। व॒शाम्। इन्द्रे॑ण। या॒चि॒तः। तस्मा॑त्। तम्। दे॒वाः। आग॑सः। अवृ॑श्चन्। अ॒ह॒म्ऽउ॒त्त॒रे। ४.५०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (उत) और (इन्द्रेण) ऐश्वर्यवान् [ब्रह्मचारी] से (याचितः) याचना किये हुए (भेदः) फूट डालनेवाले ने (एनाम्) इस (वशाम्) [कामनायोग्य वेदवाणी] को (न अददात्) नहीं दिया। (देवाः) विद्वानों ने (तस्मात् आगसः) उस पाप से (अहमुत्तरे) संग्राम में [जहाँ अपनी-अपनी बड़ाई के लिये झगड़ते हैं] (तम्) उस [वेदशत्रु] को (अवृश्चन्) छिन्न-भिन्न किया है ॥५०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य वेदविद्या के दान को रोकता है, विद्वान् लोग उस जगत् के हानिकारक को नष्ट कर देते हैं ॥५०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५०−(उत) अपि च (एनम्) (भेदः) म० ४९। भेदकः। कुटिलः (न) निषेधे (अददात्) दत्तवान् (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (इन्द्रेण) परमैश्वर्यवता ब्रह्मचारिणा (याचितः) प्रार्थितः (तम्) (देवाः) विद्वांसः (आगसः) पापात् (अवृश्चन्) छिन्नभिन्नं कृतवन्तः (अहमुत्तरे) अ० ४।२२।१। अहम्+उत्तरे। अहमुत्तरो भवामि अहमुत्तरो भवामीति कथनं यत्र। परस्परोत्कर्षाय योधानां धावनकर्मणि। महासंग्रामे ॥
५१ ये वशाया
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ये व॒शाया॒ अदा॑नाय॒ वद॑न्ति परिरा॒पिणः॑।
इन्द्र॑स्य म॒न्यवे॑ जा॒ल्मा आ वृ॑श्चन्ते॒ अचि॑त्त्या ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ये व॒शाया॒ अदा॑नाय॒ वद॑न्ति परिरा॒पिणः॑।
इन्द्र॑स्य म॒न्यवे॑ जा॒ल्मा आ वृ॑श्चन्ते॒ अचि॑त्त्या ॥
५१ ये वशाया ...{Loading}...
Whitney
Translation
- They who, wheedling, advise (vad) to the non-giving of the cow
⌊vaśā́⌋, the villains fall under the fury of Indra through ignorance.
Notes
Ppp. combines in a vaśāyā ’dā-, and in c-d jālmā ”vṛś-.
Griffith
The men of evil counsel who advise refusal of the Cow, Miscreants, through their foolishness, are subjected to Indra’s wrath.
पदपाठः
ये। व॒शायाः॑। अदा॑नाय। वद॑न्ति। प॒रि॒ऽरा॒पिणः॑। इन्द्र॑स्य। म॒न्यवे॑। जा॒ल्माः। आ। वृ॒श्च॒न्ते॒। अचि॑त्त्या। ४.५१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (परिरापिणः) बतबने लोग (वशायाः) कामनायोग्य [वेदवाणी] के (अदानाय) न दान करने के लिये (वदन्ति) कहते हैं। (जाल्माः) वे क्रूर (अचित्या) अज्ञान से (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यवान् पुरुष के (मन्यवे) क्रोध के कारण (आ) सब ओर से (वृश्चन्ते) छिन्न-भिन्न होते हैं ॥५१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो लोग वेदवाणी के प्रकाश रोकने के लिये दूसरों को बहकाते हैं, उन दुष्टों को प्रतापी मनुष्य नष्ट कर देवे ॥५१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५१−(ये) (वशायाः) कमनीयाया वेदवाण्याः (वदन्ति) (परिरापिणः) रप व्यक्तायां वाचि−णिनि। परिलपनशीलाः (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतः पुरुषस्य (मन्यवे) क्रोधाय (जाल्माः) जल अपवारणे−णिच्−म प्रत्ययः। पामराः। क्रूराः (आ) समन्तात् (वृश्चन्ते) छिद्यन्ते (अचित्या) अज्ञानेन ॥
५२ ये गोपतिम्
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ये गोप॑तिं परा॒णीया॑था॒हुर्मा द॑दा॒ इति॑।
रु॒द्रस्या॑स्तां ते हे॒तिं परि॑ य॒न्त्यचि॑त्त्या ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ये गोप॑तिं परा॒णीया॑था॒हुर्मा द॑दा॒ इति॑।
रु॒द्रस्या॑स्तां ते हे॒तिं परि॑ य॒न्त्यचि॑त्त्या ॥
५२ ये गोपतिम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- They who, leading away her master, then say: do not give—they,
through ignorance, go to meet the hurled missile of Rudra.
Notes
Pari yanti is rendered as if prati y-, for which it is perhaps a
misreading. Ppp. reads cetasas for acittyā. Part of our mss.
(Bp.R.K.) leave āhus unaccented, and all have te instead of té in
c.
Griffith
They who seduce the owner of the Cow and say, Bestow her not. Encounter through their want of sense the missile shot by Rudra’s hand.
पदपाठः
ये। गोऽप॑तिम्। प॒रा॒ऽनीय॑। अथ॑। आ॒हुः। मा। द॒दाः॒। इति॑। रु॒द्रस्य॑। अ॒स्ताम्। ते। हे॒तिम्। परि॑। य॒न्ति॒। अचि॑त्त्या। ४.५२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अथ) और (ये) जो (गोपतिम्) भूपति [राजा] को (पराणीय) बहका कर (आहुः) कहते हैं−“(मा ददाः इति) मत दे। (ते) वे लोग (अचित्त्या) अज्ञान से (रुद्रस्य) दुःखनाशक शूर पुरुष के (अस्ताम्) चलाये हुए (हेतिम्) वज्र को (परि) सब ओर से (यन्ति) पाते हैं ॥५२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो दुष्ट दुर्बलेन्द्रिय राजा को कुमार्ग में डाल कर वेदवाणी के प्रचार में रुकावट डाले, उसको शूरवीर पुरुष यथावत् दण्ड देवे ॥५२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५२−(ये) दुष्टाः (गोपतिम्) भूपालम्। राजानम् (पराणीय) कुमार्गे नीत्वा (अथ) पुनः (आहुः) कथयन्ति (मा ददाः) मा देहि (इति) (रुद्रस्य) दुःखनाशकस्य (अस्ताम्) क्षिप्ताम् (ते) दुष्टाः (हेतिम्) वज्रम् (परि) सर्वतः (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (अचित्त्या) अज्ञानेन ॥
५३ यदि हुताम्
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यदि॑ हु॒तां यद्यहु॑ताम॒मा च॒ पच॑ते व॒शाम्।
दे॒वान्त्सब्रा॑ह्मणानृ॒त्वा जि॒ह्मो लो॒कान्निरृ॑च्छति ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यदि॑ हु॒तां यद्यहु॑ताम॒मा च॒ पच॑ते व॒शाम्।
दे॒वान्त्सब्रा॑ह्मणानृ॒त्वा जि॒ह्मो लो॒कान्निरृ॑च्छति ॥
५३ यदि हुताम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If as offered (hu) and if as unoffered one cooks the cow ⌊vaśā́⌋
in private (amā́), coming into collision with the gods accompanied by
the Brahmans, he goes supine (jihmá) out of the world.
Notes
All the saṁhitā-mss. curiously read in c sábrāhmaṇānn (O.
-ṇāṁn) ṛtvā́; the pada-text has sá॰brāhmaṇān: ṛtvā́. ⌊For amā́,
cf. vs. 38.⌋
⌊Here ends the fourth anuvāka, with 1 hymn and 53 verses. The quoted
Anukr. says saptabhir ūnā tu “vaśāḥ," i.e. ’the cows[-hymn] is a
[sixty] deficient by seven.’⌋
Griffith
If in his home one cooks the Cow, sacrificed or not sacrificed. Wronger of Gods and Brahmans’ he departs, dishonest, from the world.
पदपाठः
यदि॑। हु॒ताम्। यदि॑। अहु॑ताम्। अ॒मा। च॒। पच॑ते। व॒शाम्। दे॒वान्। सऽब्रा॑ह्मणान्। ऋ॒त्वा। जि॒ह्मः। लो॒कात्। निः। ऋ॒च्छ॒ति॒। ४.५३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वशा
- कश्यपः
- अनुष्टुप्
- वशा गौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) यदि (हुताम्) दान की हुई [आचार्य से सीखी हुई], (यदि) यदि (अहुताम्) न दान की हुई [बल से ली हुई] (वशाम्) कामनायोग्य [वेदवाणी] को (अमा) अपने घर में (च) ही (पचते) मनुष्य विख्यात करता है। (सब्राह्मणान्) ब्रह्मचारियों सहित (देवान्) विद्वानों को (ऋत्वा) दुखाकर (जिह्मः) वह कुटिल (लोकात्) समाज से (निःऋच्छति) निकल जाता है ॥५३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो पुरुष वेदविद्या को प्राप्त करके वा छल-कपट से लेकर उसके प्रचार से विद्वानों को रोके, उस दुःखदायी को विद्वान् लोग पद से गिरा देवें ॥५३॥ इति चतुर्थोऽनुवाकः ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५३−(यदि) सम्भावनायाम् (हुताम्) दत्ताम्। आचार्येण दत्ताम् (यदि) (अहुताम्) अदत्ताम्। बलात्कारेण गृहीताम् (अमा) गृहे (च) (पचते) व्यक्तीकरोति (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (देवान्) विदुषः (सब्राह्मणान्) सहितान् (ऋत्वा) हिंसित्वा (जिह्मः) जहातेः सन्वदाकारलोपश्च। उ० १।१४१। ओहाक् त्यागे−मन्। कुटिलः। मन्दः (लोकात्) दर्शनीयात् समाजात् (निर्ऋच्छति) बहिर्गच्छति ॥