००१ भूमिसूक्तम्

००१ भूमिसूक्तम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. To the earth.
VH anukramaṇī

भूमिसूक्तम्।
१-६३ अथर्वा। भूमिः।त्रिष्टुप्, २ भुरिक्, ४-६, १०,३८ त्र्यवसाना षट्-पदा जगती, ७ प्रस्तारपङ्क्तिः, ८, ११ त्र्यवo षट्o विराडष्टिः, ९ परानुष्टुप्, १२-१३, १५ पञ्चपदा शक्वरी (१२-१३ त्र्यवo), १४ महाबृहती, १६, २१ एकावo साम्नी त्रिष्टुप्, १८ त्र्यवo षट्o त्रिष्टुबनुष्टुब्गर्भातिशक्वरी, १९, २० पुरोबृहती (२० विराट्) २२ त्र्यवo षट्o विराडतिजगती, २३ पञ्चपदा विराडतिजगती, २४ पञ्चo अनुष्टुब्गर्भा जगती, २५ त्र्यवo सप्तo उष्णिगनुष्टुब्गर्भा शक्वरी, २६-२८, ३३, ३५, ३९-४१, ५०,५३-५४, ५६, ५९, ६३ अनुष्टुप् (५३ पुरोबार्हता), ३० विराड् गायत्री, ३२ पुरस्ताज्ज्योतिः, ३४ त्र्यवo षट्o त्रिष्टुब्बृहतीगर्भातिजगती, ३६ विपरीतपादलक्ष्मा पङ्क्तिः ३७ त्र्यवo पञ्चo शक्वरी, ४१ षट्o ककुम्मती शक्वरी, ४२ स्वराडनुष्टुप्, ४३ विराडास्तारपङ्क्तिः, ४४-४५, ४९ जगती, ४६ षट् पo अनुष्टुब्गर्भा परा शक्वरी, ४७ षट् पo उष्णिगनुष्टुब्गर्भा परातिशक्वरी, ४८ पुरोऽनुष्टुप्, ५१ त्र्यवo षट्o अनुष्टुब्गर्भा ककुम्मती शक्वरी, ५२ पञ्च॰ अनुष्टुब्गर्भा परातिजगती, ५७ पुरोतिजागता जगती, ५८ पुरस्ताद् बृहती, ६१ पुरोबार्हता, ६३ परा विराट्।

Whitney anukramaṇī

[Atharvan.—triṣaṣṭih. bhāumam. traiṣṭubham: 2. bhurij; 4-6, 10, 38. 3-av. 6-p. jagatī; 7. prastārapan̄kti; 8, 11. 3-av. 6-p. virāḍ aṣṭi; 9. parānuṣṭubh; 12, 13, 15. 5-p. śakvarī (12, 13. 3-av.); 14. mahābṛhatī; 16, 21. 1-av. sāmnī triṣṭubh; 18. 3-av. 6-p. triṣṭubanuṣṭubgarbhā ‘tiśakvarī; 19, 20. urobṛhatī (20. virāj); 22. 3-av. 6-p. virāḍ atijagatī: 24. 5-p. virāḍ atijagatī; 24. 5-p. anuṣṭubgarbhā jagatī; 25. 3-av. 7-p. uṣṇiganuṣṭubgarbhā śakvarī; 26-28, 33, 35, 39, 40, 50, 53, 54, 56, 59, 63. anuṣṭubh (53. purobārhatā); 30. virāḍ gāyatrī; 32. purastājjyots; 34. 3-av. 6-p. triṣṭubbṛhatīgarbhā ’tijagatī; 36. viparītapādalakṣmī pan̄kti; 37. 3-av. 5-p. śakvarī; 41. 3-av. 6-p. kakummati śakvarī; 42. svarāḍ anuṣṭubh; 43. virāḍ āstārapan̄kti; 44, 45, 49. jagatī; 46. 6-p. anuṣṭubgarbhā parāśakvarī; 47. 6-p. uṣṇiganuṣṭubgarbhā parātiśakvarī; 48. puro‘nuṣṭubh; 51. 3-av. 6-p. anuṣṭubgarbhā kakummatī śakvarī; 52. 5-p. anuṣṭubgarbhā parātijagatī; 57. puro‘tijāgatā jagatī; 58. purastādbṛhatī; 61. purobārhatā; 62. parāvirāj.]

Whitney

Comment

Griffith

A hymn of prayer and praise to Prithivi or deified Earth

०१ सत्यं बृहदृतमुग्रम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

स॒त्यं बृ॒हदृ॒तमु॒ग्रं दी॒क्षा तपो॒ ब्रह्म॑ य॒ज्ञः पृ॑थि॒वीं धा॑रयन्ति।
सा नो॑ भू॒तस्य॒ भव्य॑स्य॒ पत्न्यु॒रुं लो॒कं पृ॑थि॒वी नः॑ कृणोतु ॥

०१ सत्यं बृहदृतमुग्रम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Great (bṛhánt) truth, formidable right, consecration, penance,
    bráhman, sacrifice sustain the earth; let her for us, mistress of what
    is and what is to be—let the earth make for us wide room (loká);—
Notes

Found also in MS. (iv. 14. 11), which reads yajnā́s in b, and
bhúvanasya (for bhávyasya) in c. The Anukr. does not heed that
pāda a is jagatī. The verse (unless more of the hymn is meant to
be included with it) is, according to Vāit. 12. 6, to be repeated by one
who relieves on the ground the needs of nature. It is quoted by Kāuś.
24. 24 in the āgrahāyaṇī ceremony; also in the comm. to 24.35 (cf.
above); and it, with vs. 38, is reckoned (see note to Kāuś. 19. 1) among
the puṣṭika mantras.

Griffith

Truth, high and potent Law, the Consecrating Rite, Fervour, Brahma, and Sacrifice uphold the Earth. May she, the Queen of all that is and is to be, may Prithivi make ample space and room for us.

पदपाठः

स॒त्यम्। बृ॒हत्। ऋ॒तम्। उ॒ग्रम्। दी॒क्षा। तपः॑। ब्रह्म॑। य॒ज्ञः। पृ॒थि॒वीम्। धा॒र॒य॒न्ति॒। सा। नः॒। भू॒तस्य॑। भव्य॑स्य। पत्नी॑। उ॒रुम्। लो॒कम्। पृ॒थि॒वी। नः॒। कृ॒णो॒तु॒। १.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (बृहत्) बढ़ा हुआ (सत्यम्) सत्य कर्म, (उग्रम्) उग्र (ऋतम्) सत्यज्ञान, (दीक्षा) दीक्षा [आत्मनिग्रह], (ब्रह्म) ब्रह्मचर्य [वेदाध्ययन, वीर्यनिग्रह रूप] (तपः) तप [व्रतधारण] और (यज्ञः) यज्ञ [देवपूजा, सत्सङ्ग और दान] (पृथिवीम्) पृथिवी को (धारयन्ति) धारण करते हैं। (नः) हमारे (भूतस्य) बीते हुये और (भव्यस्य) होनेवाले [पदार्थ] की (पत्नी) पालन करनेवाली (सा पृथिवी) वह पृथिवी (उरुम्) चौड़ा (लोकम्) स्थान (नः) हमारे लिये (कृणोतु) करे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सत्यकर्मी, सत्यज्ञानी, जितेन्द्रिय, ईश्वर और विद्वानों से प्रीति करनेवाले चतुर पुरुष पृथिवी पर उन्नति करते हैं। यह नियम भूत और भविष्यत् के लिये समान है ॥१॥ इस सूक्त का नामपृथिवीसूक्त है। इसमें वर्णित धर्म और नीति के पालने से राजा प्रजा और प्रत्येक गृहस्थ और मनुष्यमात्र का कल्याण होता है ॥ इस सूक्त का संस्कृत और भाषा में सविस्तार भाष्यवैदिक राष्ट्रगीत नामक श्रीयुत पं० श्रीपाद दामोदर सातवलेकर सुखप्रकाश, अनारकली लाहौर का बनाया बड़ा उत्तम है। पाठकवृन्द उसे भी पढ़ें, मैं उनका बहुत धन्यवाद करता हूँ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(सत्यम्) यथार्थकर्म (बृहत्) महत् (ऋतम्) यथार्थज्ञानम् (उग्रम्) प्रचण्डम् (दीक्षा) अ० ८।५।१५। आत्मनिग्रहः (तपः) तपश्चरणम्। व्रतधारणम् (ब्रह्म) ब्रह्मचर्यम्। वेदाध्ययनवीर्यनिग्रहादिरूपव्रतम् (यज्ञः) देवपूजासत्सङ्गदानानि (पृथिवीम्) अ० १।२।१। प्रथेः षिवन्षवन्ष्वनः सम्प्रसारणं च। उ० १।१५०। प्रथ ख्यातौ विस्तारे च−षिवन् सम्प्रसारणं च। षित्त्वान्ङीष्। यः पर्थति सर्वं जगद्विस्तृणाति स पृथिवी…. परमेश्वरः−इति श्रीदयानन्दकृते सत्यार्थप्रकाशे। प्रथनात् पृथिवी−निरु० १।१३। भूमिः राज्यम् (धारयन्ति) धरन्ति (सा) (नः) अस्माकम् (भूतस्य) अतीतवस्तुनः (भव्यस्य) भविष्यत्पदार्थस्य (पत्नी) पालयित्री (उरुम्) विस्तृतम् (लोकम्) दर्शनीयं स्थानम् (पृथिवी) (नः) अस्मभ्यम् (कृणोतु) करोतु ॥

०२ असम्बाधं बध्यतो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॑संबा॒धं ब॑ध्य॒तो मा॑न॒वानां॒ यस्या॑ उ॒द्वतः॑ प्र॒वतः॑ स॒मं ब॒हु।
नाना॑वीर्या॒ ओष॑धी॒र्या बिभ॑र्ति पृथि॒वी नः॑ प्रथतां॒ राध्य॑तां नः ॥

०२ असम्बाधं बध्यतो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Unoppressedness in the midst of men (mānavá). Whose are the ascents
    (udvát), the advances (pravát), the much plain (samá); who bears
    the herbs of various virtue (nā́nāvīrya)—let the earth be spread out
    for us, be prosperous for us.
Notes

The mss, vary in a between badhyatás and madhyatás (Bp.P.M.I.
have ba-), but only the latter can be right, and the translation
adopts it; the former (which Ppp. also has, and mānaveṣu) seems to
have come in under the influence of -bādham. ⌊Correct the edition.⌋ As
the text stands, pāda a can only be an adjunct to vs. 1, and so Ppp.
reckons it, and begins our b with asyās. But MS. (iv. 14. 11)
reads asambādhā́ yā́ madhyató mānavébhyo; it also has mahát for bahú
at end of b, and nā́nārūpās and bibhárti in c. This time the
Anukr. notices that b has 12 syllables. Kāuś. 137. 16 quotes the
verse ⌊in the preparation of the vedi⌋.

Griffith

Not over awded by the crowd of Manu’s sons, she who hath many heights and floods and level plains; She who bears plants endowed with many varied powers, may Prithivi for us spread wide and favour us.

पदपाठः

अ॒स॒म्ऽबा॒धम्। म॒ध्य॒तः। मा॒न॒वाना॑म्। यस्याः॑। उ॒त्ऽवतः॑। प्र॒ऽवतः॑। स॒मम्। ब॒हु। नाना॑ऽवीर्याः। ओष॑धीः। या। बिभ॑र्ति। पृ॒थि॒वी। नः॒। प्र॒थ॒ता॒म्। राध्य॑ताम्। नः॒। १.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • भुरिक्त्रिष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मानवानाम्) मानवालों वा मननशीलों के (असंबाधम्) गति रोकनेवाले व्यवहार को (बध्यतः) मिटाती हुई (यस्याः) जिस [पृथिवी] के [मध्य] (उद्वतः) ऊँचे और (प्रवतः) नीचे देश और (बहु) बहुत से (समम्) सम स्थान हैं। (या) जो (नानावीर्याः) अनेकवीर्य [बल]वाली (ओषधीः) ओषधियों [अन्न, सोमलता आदि] को (बिभर्ति) रखती है, (पृथिवी) वह पृथिवी (नः) हमारे लिये (प्रथताम्) चौड़ी होवे और (नः) हमारे लिये (राध्यताम्) सिद्धि करे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विचारशील मनुष्य पृथिवी पर ऊँचे, नीचे और सम स्थानों में विघ्नों को मिटाकर अन्न आदि पदार्थ प्राप्त करके कार्यसिद्धि करते जाते हैं ॥२॥ (बध्यतः) शब्द के स्थान पर गवर्नमेन्ट बुक् डिपो बम्बई के पदपाठ में [मध्यतः] शब्द है। हम ने अजमेर वैदिक यन्त्रालय और सेवकलाल कृष्णदास के संहितापाठ के अनुसार (बध्यतः) पद मानकर अर्थ किया है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(असंबाधम्) अस गतिदीप्त्यादानेषु−अच्+संज्ञायां भृतॄवृजिधारि०। पा० ३।२।४६। बाधृ विलोडने−खच्, खित्वाद् मुम्। असं गतिं बाधते यः सः, असंबाधः। तं गतिनिरोधकं व्यवहारम् (बध्यतः) वर्तमाने पृषद्बृहन्महज्जगच्छतृवच्च। उ० २।८४। बध हिंसायाम्−अति, शतृवत्, छान्दसो यकारः। हिंसन्त्याः (मानवानाम्) अ० ४।२२।५। मनु−अण्, यद्वा मान−व प्रत्ययो मत्वर्थे। मननशीलानां मानवताम् (यस्याः) पृथिव्याः (उद्वतः) उपसर्गाच्छन्दसि धात्वर्थे। पा० ५।१।११८। उत्−वतिप्रत्ययः। प्रवत उद्वतो निवत इत्यवतिर्गतिकर्मा−निरु० १०।२०। उन्नतदेशाः (प्रवतः) पूर्ववत् सिद्धिः। प्रणतदेशाः (समम्) अविषमं स्थानम् (बहु) (नानावीर्याः) अनेकबलाः (ओषधीः) अ० १।३०।३। अन्नसोमलतादिपदार्थान् (या) (बिभर्ति) धरति (पृथिवी) (नः) अस्मभ्यम् (प्रथताम्) विस्तीर्यताम् (राध्यताम्) सिध्यतु (नः) अस्मभ्यम् ॥

०३ यस्यां समुद्र

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यस्यां॑ समु॒द्र उ॒त सिन्धु॒रापो॒ यस्या॒मन्नं॑ कृ॒ष्टयः॑ संबभू॒वुः।
यस्या॑मि॒दं जिन्व॑ति प्रा॒णदेज॒त्सा नो॒ भूमिः॑ पूर्व॒पेये॑ दधातु ॥

०३ यस्यां समुद्र ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. On whom [are] the ocean and the river (síndhu), the waters; on
    whom food, plowings, came into being; on whom quickens this that
    breathes, that stirs—let that earth (bhū́mi) set us in first drinking.
Notes

That is, doubtless, give us precedence over others (but MS. reads
pūrvapéyam: see note to vs. 5). Ppp. reads for b yasyāṁ devā
’mṛtam anvavindan;
and for second half-verse it has our 4 c, d,
giving our 3 c, d as second half of vs. 5, with the easier reading
jīvati, ⌊followed by⌋ viśvam ejāt in c. We should expect
kṛṣáyas in b.

Griffith

In whom the sea, and Sindhu, and the waters, in whom our food and corn-lands had their being, In whom this all that breathes and moves is active, this Earth. assign us foremost rank and station!

पदपाठः

यस्या॑म्। स॒मु॒द्रः। उ॒त। सिन्धुः॑। आपः॑। यस्या॑म्। अन्न॑म्। कृ॒ष्टयः॑। स॒म्ऽब॒भू॒वुः। यस्या॑म्। इ॒दम्। जिन्व॑ति। प्रा॒णत्। एज॑त्। सा। नः॒। भूमिः॑। पू॒र्व॒ऽपेये॑। द॒धा॒तु॒। १.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्याम्) जिस [भूमि] पर (समुद्रः) समुद्र (उत) और (सिन्धुः) नदी और (आपः) जलधाराएँ [झरने कूप आदि] हैं, (यस्याम्) जिस पर (अन्नम्) अन्न और (कृष्टयः) खेतियाँ (संबभूवुः) उत्पन्न हुई हैं। (यस्याम्) जिस पर (इदम्) यह (प्राणत्) श्वास लेता हुआ और (एजत्) चेष्टा करता हुआ [जगत्] (जिन्वति) चलता है, (सा भूमिः) वह भूमि (नः) हमें (पूर्वपेये) श्रेष्ठों से रक्षा योग्य पद पर (दधातु) ठहरावे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य समुद्र, नदी, कूप और वृष्टि के जल तथा अन्य खेती आदि से नौका, यान, कलायन्त्र आदि में अनेक प्रकार उपकार लेते हैं, वे सब जगत् को आनन्द देकर श्रेष्ठ पद पाते हैं ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(यस्याम्) भूम्याम् (समुद्रः) जलौघः (उत) अपि च (सिन्धुः) नदी (आपः) जलधाराः (अन्नम्) भोज्यम् (कृष्टयः) सस्यभूभवः (संबभूवुः) उत्पन्ना बभूवुः (यस्याम्) (इदम्) दृश्यमानम् (जिन्वति) गच्छति−निघ० २।१४। (प्राणत्) श्वासं कुर्वत् (एजत्) चेष्टायमानं जगत् (सा) (नः) अस्मान् (भूमिः) पृथिवी (पूर्वपेये) अचो यत्। पा० ३।१।९७। पा० रक्षणे−यत्। ईद्यति। पा० ६।४।६५। आत ईत्त्वम्। पूर्वैः श्रेष्ठै रक्षितुं योग्ये पदे (दधातु) स्थापयतु ॥

०४ यस्याश्चतस्रः प्रदिशः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यस्या॒श्चत॑स्रः प्र॒दिशः॑ पृथि॒व्या यस्या॒मन्नं कृ॒ष्टयः॑ संबभू॒वुः।
या बिभ॑र्ति बहु॒धा प्रा॒णदेज॒त्सा नो॒ भूमि॒र्गोष्वप्यन्ने॑ दधातु ॥

०४ यस्याश्चतस्रः प्रदिशः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Whose, the earth’s, [are] the four quarters; on whom food,
    plowings, came into being; who bears manifoldly what breathes, what
    stirs—let that earth (bhū́mi) set us among kine, also in
    inexhaustibleness (? ánya).
Notes

Ppp. reads in a yasyām and pṛthivyām, and in b gṛṣṭayas
⌊cf. note to ii. 13. 3⌋. As second half-verse it has our 5 c, d,
giving our 4 c, d as 3 c, d, reading (after bahudhā) prāṇine
jan̄gano bhūmir goṣv aśveṣu pinve kṛṇotu
, thus relieving us of the
difficult ánye. Kāuś. (137. 17) uses the verse next after vs. 2, in
connection with making the sacrificial hearth four-cornered. The
description given by the Anukr. of this and the two following verses is
so wholly wrong that we cannot help suspecting a corrupt text. This
verse is, if we make no resolutions in d, a regular triṣṭubh.

Griffith

She who is Lady of the earth’s four regions, in whom our food and corn-lands had their being, Nurse in each place of breathing, moving creatures, this Earth. vouchsafe us kine with milk that fails not!

पदपाठः

यस्याः॑। चत॑स्रः। प्र॒ऽदिशः॑। पृ॒थि॒व्याः। यस्या॑म्। अन्न॑म्। कृ॒ष्टयः॑। स॒म्ऽब॒भू॒वुः। या। बिभ॑र्ति। ब॒हु॒ऽधा। प्रा॒णत्। एज॑त्। सा। नः॒। भूमिः॑। गोषु॑। अपि॑। अन्ने॑। द॒धा॒तु॒। १.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्र्यवसाना षट्पदा जगती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्याः पृथिव्याः) जिस पृथिवी की (चतस्रः) चारों (प्रदिशः) बड़ी दिशाएँ हैं, (यस्याम्) जिस में (अन्नम्) अन्न और (कृष्टयः) खेतियाँ (संबभूवुः) उत्पन्न हुई हैं। (या) जो (बहुधा) अनेक प्रकार से (प्राणत्) श्वास लेते हुए और (एजत्) चेष्टा करते हुए [जगत्] को (बिभर्ति) पोषती है, (सा भूमिः) वह भूमि (नः) हमें (गोषु) गौओं में (अपि) और भी (अन्ने) अन्न में (दधातु) रक्खे ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सब ओर दृष्टि फैलाकर अन्न आदि पदार्थ प्राप्त करके सब प्राणियों की रक्षा करते हैं, वे इस भूमि पर गौ, बैल, अश्व आदि और अन्न आदि पदार्थों से परिपूर्ण रहते हैं ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(यस्याः) (चतस्रः) (प्रदिशः) महादिशाः (पृथिव्याः) भूमेः (या) (बिभर्ति) पोषयति (बहुधा) अनेकप्रकारेण (प्राणत्) श्वासं कुर्वत् (एजत्) चेष्टायमानं जगत् (सा) (नः) अस्मान् (भूमिः) (गोषु) धेनुषु (अपि) (अन्ने) (दधातु) धरतु। अन्यत् पूर्ववत्−म० ३ ॥

०५ यस्यां पूर्वे

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यस्यां॒ पूर्वे॑ पूर्वज॒ना वि॑चक्रि॒रे यस्यां॑ दे॒वा असु॑रान॒भ्यव॑र्तयन्।
गवा॒मश्वा॑नां॒ वय॑सश्च वि॒ष्ठा भगं॒ वर्चः॑ पृथि॒वी नो॑ दधातु ॥

०५ यस्यां पूर्वे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. On whom the people of eld (pūrvajaná) formerly spread themselves (?
    vi-kṛ); on whom the gods overcame the Asuras; the station (? viṣṭhā́)
    of kine, of horses, of birds (váyas)—let the earth assign us fortune
    (bhága), splendor.
Notes

Ppp. reads in a nicakrire, and in b atyavartayan; also in
c (found as ⌊its⌋ 4 c) vayasayya ⌊?⌋. MS. has a verse made up
of our 5 a, b (without variant), 4 c (accenting bibhárti), and
3 d (with pūrvapéyam). The verse is mixed triṣṭubh and jagatī.
⌊In Ppp. this verse precedes our 4.—The sequence of the half-verses of
the Vulgate as they stand in Ppp. seems therefore to be as follows: 3
a, b, 4 c, d, 5 a, b, 3 c, d, 4 a, b, 5 c, d.⌋

Griffith

On whom the men of old before us battled, on whom the Gods attacked the hostile demons, The varied home of bird, and kine and horses, this Prithivi vouchsafe us luck and splendour!

पदपाठः

यस्या॑म्। पूर्वे॑। पू॒र्व॒ऽज॒नाः। वि॒ऽच॒क्रि॒रे। यस्या॑म्। दे॒वाः। असु॑रान्। अ॒भि॒ऽअव॑र्तयन्। गवा॑म्। अश्वा॑नाम्। वय॑सः। च॒। वि॒ऽस्था। भग॑म्। वर्चः॑। पृ॒थि॒वी। नः॒। द॒धा॒तु॒। १.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्र्यवसाना षट्पदा जगती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्याम्) जिस [पृथिवी] पर (पूर्वे) पूर्वकाल में (पूर्वजनाः) पूर्वजों ने (विचक्रिरे) बढ़कर कर्तव्य किये हैं, (यस्याम्) जिस पर (देवाः) देवताओं [विजयी जनों] ने (असुरान्) असुरों [दुष्टों] को (अभ्यवर्तयन्) हराया है। (गवाम्) गौओं, (अश्वानाम्) अश्वों (च) और (वयसः) अन्न की (विष्ठा) चौकी [ठिकाना], (पृथिवी) वह पृथिवी (नः) हम को (भगम्) ऐश्वर्य और (वर्चः) तेज (दधातु) देवे ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस प्रकार पूर्वजों ने विघ्नों को हटाकर कर्तव्य करके ऐश्वर्य पाया है, इसी प्रकार मनुष्य पुरुषार्थ करके ऐश्वर्यवान् और प्रतापवान् होवें ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(यस्याम्) पृथिव्याम् (पूर्वे) पूर्वस्मिन् काले (पूर्वजनाः) पूर्वजाः पुरुषाः (विचक्रिरे) विशेषेण कर्तव्यानि कृतवन्तः (यस्याम्) (देवाः) विजिगीषवः (असुरान्) दुष्टान् (अभ्यवर्तयन्) अभिभूतवन्तः। पराजितवन्तः (गवाम्) धेनूनाम् (अश्वानाम्) घोटकानाम् (वयसः) अन्नस्य−निघ० २।७। (च) (विष्ठा) विशेषस्थितिस्थानम् (भगम्) ऐश्वर्यम् (वर्चः) तेजः (पृथिवी) (नः) अस्मभ्यम् (दधातु) ददातु ॥

०६ विश्वम्भरा वसुधानी

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

वि॑श्वंभ॒रा व॑सु॒धानी॑ प्रति॒ष्ठा हिर॑ण्यवक्षा॒ जग॑तो नि॒वेश॑नी।
वै॑श्वान॒रं बिभ्र॑ती॒ भूमि॑र॒ग्निमिन्द्रऋ॑षभा॒ द्रवि॑णे नो दधातु ॥

०६ विश्वम्भरा वसुधानी ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. All-bearing, good-holding, firm-standing, gold-backed (-vákṣas),
    reposer of moving things (jágat), bearing the universal (vāiśvānará)
    fire, let the earth (bhū́mi), whose bull is Indra, set us in property.
Notes

The verse is found also in MS. (iv. 14. 11), which reads, in a-b,
purukṣúd dhíraṇyavarṇā jágataḥ pratiṣṭhā́; and in d dráviṇam (the
editor also admits in his text the bad reading índra ṛṣabhā́). It is
quoted in Kāuś. 137. 28. ⌊I do not see why W. has preferred
‘gold-backed’ to ‘gold-breasted’ here and in vs. 26.⌋ ⌊By ‘reposer’ he
means ‘bringer-to-rest.’⌋

Griffith

Firm standing-place, all-bearing, store of treasures, gold-breasted, harbourer of all that moveth. May Earth who bears Agni Vaisvanara, Consort of mighty Indra, give us great possessions

पदपाठः

वि॒श्व॒म्ऽभ॒रा। व॒सु॒ऽधानी॑। प्र॒ति॒ऽस्था। हिर॑ण्यऽवक्षाः। जग॑तः। नि॒ऽवेश॑नी। वै॒श्वा॒न॒रम्। बिभ्र॑ती। भूमिः॑। अ॒ग्निम्। इन्द्र॑ऽऋषभा। द्रवि॑णे। नः॒। द॒धा॒तु॒। १.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्र्यवसाना षट्पदा जगती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वम्भरा) सब को सहारा देनेवाली, (वसुधानी) धनों की रखनेवाली (प्रतिष्ठा) दृढ़ आधार (हिरण्यवक्षाः) सुवर्ण छाती में रखनेवाली, (जगतः) चलनेवाले [उद्योगी] की (निवेशनी) सुख देनेवाली, (वैश्वानरम्) सब नरों के हितकारी (अग्निम्) अग्नि [समान प्रतापी मनुष्य] की (बिभ्रती) पोषण करनेवाली, (इन्द्रऋषभा) इन्द्र [परमात्मा वा मनुष्य वा सूर्य] को प्रधान माननेवाली (भूमिः) भूमि (द्रविणे) बल [वा धन] के बीच (नः) हम को (दधातु) रक्खे ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य उद्योग करते हैं, वे भूपति होकर इस वसुधा पृथिवी पर सोना-चाँदी आदि की प्राप्ति से बली और धनी होकर सुख पाते हैं ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(विश्वम्भरा) संज्ञायां भृतॄवृजि०। पा०। ३।२।४६। विश्व+डुभृञ् धारणपोषणयोः−खच्, मुम्। सर्वधात्री (वसुधानी) धनानां धर्त्री (प्रतिष्ठा) दृढाधारभूता (हिरण्यवक्षाः) सुवर्णादीनि वक्षसि मध्ये यस्याः सा (जगतः) जङ्गमस्य गतिमतः पुरुषस्य (निवेशनी) सुखस्य प्रवेशयित्री दात्री (वैश्वानरं) सर्वनरहितम् (बिभ्रती) पोषयन्ती (भूमिः) (अग्निम्) अग्निवत्प्रतापिनं मनुष्यम् (इन्द्रऋषभा) इन्द्रः परमेश्वरो मनुष्यः सूर्यो वा ऋषभः। प्रधानो यस्याः सा (द्रविणे) बले−निघ० २।९। धने−निघ० २।१०। (नः) अस्मान् (दधातु) धरतु ॥

०७ यां रक्षन्त्यस्वप्ना

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यां रक्ष॑न्त्यस्व॒प्ना वि॑श्व॒दानीं॑ दे॒वा भूमिं॑ पृथि॒वीमप्र॑मादम्।
सा नो॒ मधु॑ प्रि॒यं दु॑हा॒मथो॑ उक्षतु॒ वर्च॑सा ॥

०७ यां रक्षन्त्यस्वप्ना ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. She the earth (bhū́mi pṛthivī́), whom the gods, sleepless, defend all
    the time without failure—let her yield (duh) to us honey, what is
    dear; then let her sprinkle us with splendor.
Notes

The verse is found also in MS. (iv. 14. 11), which reads in c
ghṛtám instead of priyám.

Griffith

May Earth, may Prithivi, always protected with ceaseless care by Gods who never slumber, May she pour out for us delicious nectar, may she bedew us with a flood of splendour.

पदपाठः

याम्। रक्ष॑न्ति। अ॒स्व॒प्नाः। वि॒श्व॒ऽदानी॑म्। दे॒वाः। भूमि॑म्। पृ॒थि॒वीम्। अप्र॑ऽमादम्। सा। नः॒। मधु॑। प्रि॒यम्। दु॒हा॒म्। अथो॒ इति॑। उ॒क्ष॒तु॒। वर्च॑सा। १.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • प्रस्तारपङ्क्तिः
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (याम्) जिस (विश्वदानीम्) सब कुछ देनेवाली (भूमिम्) भूमि [आश्रय स्थान], (पृथिवीम्) पृथिवी [फैले हुए धरातल] को (अस्वप्नाः) बिना सोते हुए (देवाः) देवता [विजयी पुरुष] (अप्रमादम्) बिना चूक (रक्षन्ति) बचाते हैं। (सा) वह (नः) हमको (प्रियम्) प्रिय (मधु) मधु [मधुविद्या, पूर्ण विज्ञान] (दुहाम्) दुहा करे, (अथो) और भी (वर्चसा) तेज [बल पराक्रम] के साथ (उक्षतु) बढ़ावे ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य निरालसी और अप्रमादी होकर भूमि की रक्षा करते हैं, वे इस पृथिवी पर विज्ञानी और तेजस्वी होते हैं ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(याम्) (रक्षन्ति) पान्ति (अस्वप्नाः) अनिद्राः। जागरूकाः। निरलसाः (विश्वदानीम्) अ० ७।७३।११। विश्वानि समग्राणि दानानि यस्यास्ताम् (देवाः) विजिगीषवः (भूमिम्) आधारभूताम् (पृथिवीम्) विस्तृतां वसुधाम् (अप्रमादम्) यथा तथा प्रमादराहित्येन (सा) पृथिवी (नः) अस्मभ्यम् (मधु) मधुविद्याम्। पूर्णविज्ञानम्। (प्रियम्) प्रीतिकरम् (दुहाम्) दुग्धाम्। पूरयतु (उक्षतु) सिञ्चतु। वर्धयतु। उक्षण उक्षतेर्वृद्धिकर्मणः−निरु० १२।९। (वर्चसा) तेजसा। बलेन। पराक्रमेण ॥

०८ यार्णवेऽधि सलिलमग्र

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यार्ण॒वेऽधि॑ सलि॒लमग्र॒ आसी॒द्यां मा॒याभि॑र॒न्वच॑रन्मनी॒षिणः॑।
यस्या॒ हृद॑यं पर॒मे व्यो᳡मन्त्स॒त्येनावृ॑तम॒मृतं॑ पृथि॒व्याः।
सा नो॒ भूमि॒स्त्विषिं॒ बलं॑ रा॒ष्ट्रे द॑धातूत्त॒मे ॥

०८ यार्णवेऽधि सलिलमग्र ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. She who in the beginning was sea (salilá) upon the ocean
    (arṇavá); whom the skilful (manīṣín) moved after with their devices
    (māyā́); the earth whose immortal heart covered with truth is in the
    highest firmament (vyòman)—let that earth (bhū́mi) assign to us
    brilliancy, strength, in highest royalty.
Notes

The verse is properly 11 + 12: 11 + 11; 8 + 8 = 61 syllables, and not
very well described by the Anukr. The last two clauses perhaps have
independent construction: ‘[assign] to us brilliancy [and] strength,
[and] set [us] in highest royalty.’

Griffith

She who at first was water in the ocean, whom with their wond- rous powers the sages followed, May she whose heart is in the highest heaven, compassed about wit h truth, and everlasting, May she, this Earth, bestow upon us lustre, and grant us power in loftiest dominion.

पदपाठः

या। अ॒र्ण॒वे। अधि॑। स॒लि॒लम्। अग्ने॑। आसी॑त्। याम्। मा॒याभिः॑। अ॒नु॒ऽअच॑रन्। म॒नी॒षिणः॑। यस्याः॑। हृद॑यम्। प॒र॒मे। विऽओ॑मन्। स॒त्येन॑। आऽवृ॑तम्। अ॒मृत॑म्। पृ॒थि॒व्याः। सा। नः॒। भूमिः॑। त्विषि॑म्। बल॑म्। रा॒ष्ट्रे। द॒धा॒तु॒। उ॒त्ऽत॒मे। १.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्रयवसाना षट्पदा विराडष्टिः
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (या) जो [भूमि] (अर्णवे अधि) जल से भरे समुद्र के ऊपर (सलिलम्) जल [भाप] (अग्रे) पहिले (आसीत्) थी, (मनीषिणः) मननशील लोग (मायाभिः) अपनी बुद्धियों से (यान् अन्वचरन्) जिस [भूमि] के पीछे-पीछे चले हैं [सेवा करते रहे हैं]। (यस्याः पृथिव्याः) जिस पृथिवी का (हृदयम्) हृदय [भीतरी बल] (परमे) बहुत बड़े (व्योमन्) विविध रक्षक [आकाश] में (सत्येन) सत्य [अविनाशी परमात्मा] से (आवृतम्) ढका हुआ (अमृतम्) बिना मरा [सदा उपजाऊ] है। (सा भूमिः) वह भूमि (नः) हम को (त्विषिम्) तेज और (बलम्) बल वा सेना (उत्तमे) सब से श्रेष्ठ (राष्ट्रे) राज्य के बीच (दधातु) दान करे ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सृष्टि के आदि में जल के मध्य यह पृथिवी बुदबुदे के समान थी, वह आकाश में ईश्वरनियम से दृढ़ होकर अनेक रत्नों की खानि है। पहिले विचारवानों के समान सब मनुष्य पराक्रम से पृथिवी की सेवा करके बड़े राज्य के भीतर तेजस्वी और बली होकर बढ़ती करें ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(या) भूमिः (अर्णवे) जलवति समुद्रे (अधि) ऊपरि (सलिलम्) उदकम्−निघ० १।१२। वाष्परूपम् (अग्रे) सृष्ट्यादौ (आसीत्) (मायाभिः) प्रज्ञाभिः−निघ० ३।९। (अन्वचरन्) अन्वगच्छन्। सेवितवन्तः (मनीषिणः) मेधाविनः−निघ० ३।१५। (यस्याः) (हृदयम्) अन्तर्बलम् (परमे) महति (व्योमन्) अ० ९।१०।१८। विविधं रक्षके। आकाशे (सत्येन) अविनाशिना परमात्मना (आवृतम्) आच्छादितम् (अमृतम्) मरणरहितम्। उत्पादनसमर्थम् (पृथिव्याः) (सा) (नः) अस्मभ्यम् (भूमिः) (त्विषिम्) तेजः (बलम्) सामर्थ्यम् (राष्ट्रे) राज्ये (दधातु) ददातु (उत्तमे) सर्वोत्कृष्टे ॥

०९ यस्यामापः परिचराः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यस्या॒मापः॑ परिच॒राः स॑मा॒नीर॑होरा॒त्रे अप्र॑मादं॒ क्षर॑न्ति।
सा नो॒ भूमि॒र्भूरि॑धारा॒ पयो॑ दुहा॒मथो॑ उक्षतु॒ वर्च॑सा ॥

०९ यस्यामापः परिचराः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. On whom the circulating waters flow the same, night and day, without
    failure—let that earth (bhū́mi), of many streams (-dhā́rā) yield
    (duh) us milk; then let her sprinkle [us] with splendor.
Notes

The Anukr. does not heed that c is jagatī pāda. ⌊In Ppp., this
verse precedes our 7.⌋

Griffith

On whom the running universal waters flow day and night with never-ceasing motion, May she with many streams pour milk to feed us, may she bedew us with a flood of splendour.

पदपाठः

यस्या॑म्। आपः॑। प॒रि॒ऽच॒राः। स॒मा॒नीः। अ॒हो॒रा॒त्रे इति॑। अप्र॑ऽमादम्। क्षर॑न्ति। सा। नः॒। भूमिः॑। भूरि॑ऽधारा। पयः॑। दु॒हा॒म्। अथो॒ इति॑। उ॒क्ष॒तु॒। वर्च॑सा। १.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • परानुष्टुप्त्रिष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्याम्) जिस भूमि पर (परिचराः) सेवाशीलवाले (समानीः) एक से स्वभाववाली (आपः) आप्त प्रजाएँ [सत्यवक्ता लोग] (अहोरात्रे) दिन-राति (अप्रमादम्) बिना चूक (क्षरन्ति) बहते हैं। (भूरिधारा) अनेक धारण शक्तियोंवाली (सा भूमिः) वह भूमि (नः) हमको (पयः) अन्न (दुहाम्) दुहा करे, (अथो) और भी (वर्चसा) तेज के साथ (उक्षतु) बढ़ावे ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि समदर्शी परोपकारी महात्माओं के समान दृढ़चित्त होकर परस्पर सेवा करते हुए पृथिवी पर अन्न आदि के लाभ से बल वीर्य बढ़ावें ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(यस्याम् भूम्याम्) (आपः) आप्ताः प्रजाः−दयानन्दभाष्ये, यजु० ६।२७। (परिचराः) परिचारकाः। सेवाशीलाः (समानीः) समानचित्ताः (अहोरात्रे) अहर्निशम् (अप्रमादम्) प्रमादराहित्येन (क्षरन्ति) सञ्चलन्ति। वहन्ति (सा) (नः) अस्मभ्यम् (भूमिः) (भूरिधारा) बहुधारयुक्ता (पयः) अन्नम्−निघ० २।७। अन्यत् पूर्ववत्−म० ७ ॥

१० यामश्विनावमिमातां विष्णुर्यस्याम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

याम॒श्विना॒वमि॑मातां॒ विष्णु॒र्यस्यां॑ विचक्र॒मे।
इन्द्रो॒ यां च॒क्र आ॒त्मने॑ऽनमि॒त्रां शची॒पतिः॑।
सा नो॒ भूमि॒र्वि सृ॑जतां मा॒ता पु॒त्राय॑ मे॒ पयः॑ ॥

१० यामश्विनावमिमातां विष्णुर्यस्याम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Whom the Aśvins measured; on whom Vishṇu strode out; whom Indra,
    lord of might (śacī-), made free from enemies for himself—let that
    earth (bhū́mi) to us, a mother to a son, release (vi-sṛj) milk ⌊to
    me⌋.
Notes

Some of the mss. read in d -trā́ṅ chácī-, and Bp. has accordingly
-trā́n. Ppp. also has cakrā ”tmane ‘namitrāṅ cchacī-; and, at the
end, naṣ payaḥ. ⌊Ppp’s repetition of nas is more tolerable than the
harsh change from pl. to sing, which W. seems to have overlooked.⌋

Griffith

She whom the Asvins measured out, o’er whom the foot of Vishnu strode, Whom Indra, Lord of Power and Might, freed from all foemen for himself, May Earth pour out her milk for us, a mother unto me her son.

पदपाठः

याम्। अ॒श्विनौ॑। अमि॑माताम्। विष्णुः॑। यस्या॑म्। वि॒ऽच॒क्र॒मे। इन्द्रः॑। याम्। च॒क्रे। आ॒त्मने॑। अ॒न॒मि॒त्राम्। शची॒ऽपतिः॑। सा। नः॒। भूमिः॑। वि। सृ॒ज॒ता॒म्। मा॒ता। पु॒त्राय॑। मे॒। पयः॑। १.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्र्यवसाना षट्पदा जगती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (याम्) जिस [भूमि] को (अश्विनौ) दिन और राति ने (अमिमाताम्) नापा है, (यस्याम्) जिस [भूमि] पर (विष्णुः) व्यापक सूर्य ने (विचक्रमे) पाँव रक्खा है। (याम्) जिस [भूमि] को (शचीपतिः) वाणियों, कर्मों और बुद्धियों में चतुर (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] ने (आत्मने) अपने लिये (अनमित्राम्) शत्रुरहित (चक्रे) किया है। (सा भूमिः) वह भूमिः (नः) हमारे [हम सब के] हित के लिये (मे) मुझ को (पयः) अन्न [वा दूध] (वि) विविध प्रकार (सृजताम्) देवे, [जैसे] (माता) माता (पुत्राय) पुत्रको [अन्न वा दूध देती है] ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस पृथिवी को दिन और राति अपने गुणों से उपजाऊ बनाते हैं, जिस को सूर्य अपने आकर्षण, प्रकाश और वृष्टि आदि कर्म से स्थिर रखता है, और जिस पर यथार्थवक्ता, यथार्थकर्मा और यथार्थज्ञाता पुरुष विजय पाते हैं, उस पृथिवी को उपयोगी बनाकर प्रत्येक मनुष्य सब का हित करे ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(याम्) भूमिम् (अश्विनौ) अ० २।२९।६। अहोरात्रौ−निरु० १२।१। (अमिमाताम्) माङ् माने शब्दे च−लङ्। परिमितां कृतवन्तौ (विष्णुः) व्यापकः सूर्यः (यस्याम्) भूम्याम् (विचक्रमे) पादविक्षेपं कृतवान् (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् जीवः (याम्) (चक्रे) कृतवान् (आत्मने) स्वहिताय (अनमित्राम्) शत्रुरहिताम् (शचीपतिः) अ० ३।१०।१२। शची=वाक्−निघ० १।११, कर्म−२।१, प्रज्ञा−३।९। शचीनां वाचां कर्मणां प्रज्ञानां वा पालकः (सा) (नः) अस्मभ्यम्। अस्माकं सर्वेषां हिताय (भूमिः) (वि) विविधम् (सृजताम्) ददातु (माता) जननी (पुत्राय) (मे) मह्यम् (पयः) अन्नम्। दुग्धम् ॥

११ गिरयस्ते पर्वता

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

गि॒रय॑स्ते॒ पर्व॑ता हि॒मव॒न्तोऽर॑ण्यं ते पृथिवि स्यो॒नम॑स्तु।
ब॒भ्रुं कृ॒ष्णां रोहि॑णीं वि॒श्वरू॑पां ध्रु॒वां भूमिं॑ पृथि॒वीमिन्द्र॑गुप्ताम्।
अजी॒तोऽह॑तो॒ अक्ष॒तोऽध्य॑ष्ठां पृथि॒वीमह॑म् ॥

११ गिरयस्ते पर्वता ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let thy hills (girí) [and] snowy mountains (párvata), let thy
    forest-land (áraṇya), O earth, be pleasant (syoná); upon the brown,
    black, red, all-formed, fixed (dhruvá) earth (bhū́mi), the earth
    guarded by Indra—I, unharassed, unsmitten, unwounded, have stood upon
    the earth.
Notes

Ppp. reads in b āraṇyaṁ corrected to ar-, and naḥ after
astu; also in c lohinīṁ, and in f adhi ṣṭhāṁ, which is
better. ⌊Roth’s Collation has in fact addhi.⌋ The verse (11 + 11: 11 +
11: 8 + 8 = 60) should be called atiśakvarī rather than virāḍ aṣṭi.
Verses 11 and 12 are reckoned to the svastyayana gaṇa (see note to
Kāuś. 25. 36).

Griffith

O Prithivi, auspicious be thy woodlands, auspicious be thy hills and snow-clad mountains. Unslain, unwounded, unsubdued, I have set foot upon the Earth, On earth brown, black, ruddy and every-coloured, on the firm earth that Indra guards from danger.

पदपाठः

गि॒रयः॑। ते॒। पर्व॑ताः। हि॒मऽव॑न्तः। अर॑ण्यम्। ते॒। पृ॒थि॒व‍ि॒। स्यो॒नम्। अ॒स्तु॒। ब॒भ्रुम्। कृ॒ष्णाम्। रोहि॑णीम्। वि॒श्वऽरू॑पाम्। ध्रु॒वाम्। भूमि॑म्। पृ॒थि॒वीम्। इन्द्र॑ऽगुप्ताम्। अजी॑तः। अह॑तः। अक्ष॑तः। अधि॑। अ॒स्था॒म्। पृ॒थि॒वीम्। अ॒हम्। १.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्रयवसाना षट्पदा विराडष्टिः
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पृथिवी) हे पृथिवि ! [हमारे लिये] (ते) तेरी (गिरयः) पहाड़ियाँ और (हिमवन्तः) हिमवाले (पर्वताः) पहाड़, और (ते) तेरा (अरण्यम्) वन भी (स्योनम्) मनभावना (अस्तु) होवे। (बभ्रुम्) पोषण करनेवाली, (कृष्णाम्) जोतने योग्य, (रोहिणीम्) उपजाऊ, (विश्वरूपाम्) अनेक [सुनैले, रुपैले आदि] रूपवाली, (ध्रुवाम्) दृढ़ स्वभाववाली, (भूमिम्) आश्रय स्थान, (पृथिवीम्) फैली हुई, (इन्द्रगुप्ताम्) इन्द्रों [ऐश्वर्यशाली वीर पुरुषों] से रक्षा कियी गई (पृथिवीम्) पृथिवी का (अजीतः) बिना जीर्ण हुए, (अहतः) बिना मारे गये और (अक्षतः) बिना घायल हुए (अहम्) मैं (अधि अस्थाम्) अधिष्ठाता बना हूँ ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य कला, यन्त्र, यान, विमान आदि से दुर्गम्य स्थानों में निर्विघ्न पहुँचकर पृथिवी को उपजाऊ बनावें ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(गिरयः) क्षुद्रपर्वताः (ते) तव (पर्वताः) विशालशैलाः (हिमवन्तः) प्रचुरहिमयुक्ताः (अरण्यम्) वनम् (ते) तव (पृथिवी) हे भूमे (स्योनम्) सुखदम् (अस्तु) (बभ्रुम्) भरणशीलाम्। पोषयित्रीम् (कृष्णाम्) कर्षणयोग्याम् (रोहिणीम्) रुहेश्च। उ० २।५५। रुह बीजजन्मनि प्रादुर्भावे च−इनन्, ङीष्। उत्पादनशीलाम् (विश्वरूपाम्) अनेकरूपयुक्ताम् (ध्रुवाम्) दृढाम् (भूमिम्) आश्रयभूताम् (पृथिवीम्) विस्तृताम् (इन्द्रगुप्ताम्) इन्द्रैः परमैश्वर्यवद्भिः शूरैः पालिताम् (अजीतः) ज्या वयोहानौ−क्त, नत्वादेशाभावः। अजीनः। अजीर्णः। जराहीनः (अहतः) अमारितः (अक्षतः) क्षतरहितः। व्रणादिशून्यः (अध्यष्ठाम्) अधिकृतवानस्मि (पृथिवीम्) वसुधाम् (अहम्) मनुष्यः ॥

१२ यत्ते मध्यम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यत्ते॒ मध्यं॑ पृथिवि॒ यच्च॒ नभ्यं॒ यास्त॒ ऊर्ज॑स्त॒न्वः संबभू॒वुः।
तासु॑ नो धेह्य॒भि नः॑ पवस्व मा॒ता भूमिः॑ पु॒त्रो अ॒हं पृ॑थि॒व्याः प॒र्जन्यः॑ पि॒ता स उ॑ नः पिपर्तु ॥

१२ यत्ते मध्यम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What is thy middle, O earth, and what thy navel, what refreshments
    (ū́rj) arose (sam-bhū) out of thy body—in them do thou set us; be
    purifying () toward us; earth (bhū́mi) is mother, I am earth’s son;
    Parjanya is father—let him save (fill? pṛ) us.
Notes

Ppp. reads at end of a yaś ca nādyā.

Griffith

O Prithivi, thy centre and thy navel, all forces that have issued from thy body Set us amid those forces; breathe upon us. I am the son of Earth, Earth is my Mother. Parjanya is my Sire; may he promote me.

पदपाठः

यत्। ते॒। मध्य॑म्। पृ॒थि॒व‍ि॒। यत्। च॒। नभ्य॑म्। याः। ते॒। ऊर्जः॑। त॒न्वः। स॒म्ऽब॒भू॒वुः। तासु॑। नः॒। धे॒हि॒। अ॒भि। नः॒। प॒य॒स्व॒। मा॒ता। भूमिः॑। पु॒त्रः। अ॒हम्। पृ॒थि॒व्याः। प॒र्जन्यः॑। पि॒ता। सः। ऊं॒ इति॑। नः॒। पि॒प॒र्तु॒। १.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्र्यवसाना पञ्चपदा शक्वरी
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पृथिवी) हे पृथिवी ! (यत्) जो (ते) तेरा (मध्यम्) न्याययुक्त कर्म है, (च) और (यत्) जो (नभ्यम्) क्षत्रियों का हितकारी कर्म है, और (याः) जो (ऊर्जः) बलदायक [अन्न आदि] पदार्थ (ते) तेरे (तन्वः) शरीर से (संबभूवुः) उत्पन्न हुए हैं। (तासु) उन सब [क्रियाओं] के भीतर (नः) हम को (धेहि) तू रख, और (नः) हमें (अभि) सब ओर से (पवस्व) शुद्ध कर, (भूमिः) भूमि (माता) [मेरी] माता [तुल्य है], (अहम्) मैं (पृथिव्याः) पृथिवी का (पुत्रः) पुत्र [नरक, महाकष्ट से बचानेवाला हूँ]। (पर्जन्यः) सींचनेवाला मेघ (पिता) [मेरे] पिता [तुल्य पालक है], (सः) वह (उ) भी (नः) हमें (पिपर्तु) पूर्ण करे ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य नीतिविद्या, भूगर्भविद्या, भूतलविद्या और मेघविद्या आदि में निपुण होकर पृथिवी को उपकारी और सुखदायक बनावें ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(यत्) (ते) तव (मध्यम्) अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। मन ज्ञाने−यक्। न्यायकर्म (पृथिवी) हे भूमे (यत्) (च) (नभ्यम्) उगवादिभ्यो यत्। पा० ५।१।२। नाभि−यत्। नाभि नभं च, इति नभादेशः। नाभिभ्यः क्षत्रियेभ्यो हितं कर्म। (याः) (ते) तव (ऊर्जः) बलवर्धका अन्नादिपदार्थाः (तन्वः) शरीरात् (संबभूवुः) उत्पन्ना बभूवुः (तासु) सर्वासु क्रियासु (नः) अस्मान् (धेहि) धर (अभि) सर्वतः (नः) अस्मान् (पवस्व) शोधय (माता) जननी यथा (भूमिः) (पुत्रः) अ० १।११।५। पुन्नरकं ततस्त्रायते−निरु० २।११। दुःखाद्रक्षकः (अहम्) (पृथिव्याः) (पर्जन्यः) सेचको मेघः (पिता) जनको यथा पालकः (सः) (उ) (नः) अस्मान् (पिपर्तु) पॄ पालनपूरणयोः। पूरयतु ॥

१३ यस्यां वेदिम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यस्यां॒ वेदिं॑ परिगृ॒ह्णन्ति॒ भूम्यां॒ यस्यां॑ य॒ज्ञं त॒न्वते॑ वि॒श्वक॑र्माणः।
यस्यां॑ मी॒यन्ते॒ स्वर॑वः पृथि॒व्यामू॒र्ध्वाः शु॒क्रा आहु॑त्याः पु॒रस्ता॑त्।
सा नो॒ भूमि॑र्वर्धय॒द्वर्ध॑माना ॥

१३ यस्यां वेदिम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. On what earth (bhū́mi) they enclose the sacrificial hearth; on what
    [earth] men of all works extend the sacrifice; on what earth are set
    up (mi) the sacrificial posts, erect, bright, before the oblation—let
    that earth (bhū́mi), increasing, make us increase.
Notes

Ppp. reads in b viśvakarmaṇaḥ, and in d reads and combines
śukrā ”hutyā pur-. All the mss. accent at the end vardhamānā́. In
Vāit. 15. 8, the verse is used to accompany the enclosing of the
sacrificial hearth. In virtue of one jagatī pāda (b), the verse is
a full śakvarī (56 syll.).

Griffith

यस्यां॒ वेदिं॑ परिगृ॒ह्णन्ति॒ भूम्यां॒ यस्यां॑ य॒ज्ञं त॒न्वते॑ वि॒श्वक॑र्माणः ।
यस्यां॑ मी॒यन्ते॒ स्वर॑वः पृथि॒व्यामू॒र्ध्वाः शु॒क्रा आहु॑त्याः पु॒रस्ता॑त्।
सा नो॒ भूमि॑र्वर्धय॒द् वर्ध॑माना ॥१३॥

पदपाठः

यस्या॑म्। वेदि॑म्। प॒रि॒ऽगृ॒ह्णन्ति॑। भूम्या॑म्। यस्या॑म्। य॒ज्ञम्। त॒न्वते॑। वि॒श्वऽक॑र्माणः। यस्या॑म्। मी॒यन्ते॑। स्वर॑वः। पृ॒थि॒व्याम्। ऊ॒र्ध्वाः। शु॒क्राः। आऽहु॑त्याः। पु॒रस्ता॑त्। सा। नः॒। भूमिः॑। व॒र्ध॒य॒त्। वर्ध॑माना। १.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्र्यवसाना पञ्चपदा शक्वरी
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्याम् भूम्याम्) जिस भूमि पर (विश्वकर्माणः) विश्वकर्मा [सब कामों में चतुर] लोग (वेदिम्) वेदी [यज्ञस्थान] को (परिगृह्णन्ति) घेर लेते हैं, (यस्याम्) जिस [भूमि] पर (यज्ञम्) यज्ञ [देवपूजा, संगतिकरण और दानव्यवहार] को (तन्वते) फैलाते हैं। (यस्याम् पृथिव्याम्) जिस पृथिवी पर (ऊर्ध्वाः) ऊँचे और (शुक्राः) उजले (स्वरवः) विजयस्तम्भ (आहुत्याः) आहुति [पूर्णाहुति, यज्ञपूर्ति] से (पुरस्तात्) पहिले (मीयन्ते) गाढ़े जाते हैं। (सा) वह (वर्धमाना) बढ़ती हुई (भूमिः) भूमि (नः) हमें (वर्धयत्) बढ़ाती रहे ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को उचित है कि कर्मकुशल लोगों के समान अपना कर्त्तव्य पूरा करके संसार में दृढ़ कीर्ति स्थापित करें ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(यस्याम्) (वेदिम्) परिष्कृतां यज्ञभूमिम् (परिगृह्णन्ति) परितः सीदन्ति (भूम्याम्) (यस्याम्) (यज्ञम्) देवपूजासंगतिकरणदानव्यवहारम् (तन्वते) विस्तारयन्ति (विश्वकर्माणः) सर्वकर्मकुशलाः (यस्याम्) (मीयन्ते) डुमिञ् प्रक्षेपणे। निक्षिप्यन्ते (पृथिव्याम्) (ऊर्ध्वाः) उन्नताः (शुक्राः) शुक्लाः (आहुत्याः) पूर्णयज्ञादित्यर्थः (पुरस्तात्) अग्रे (सा) (नः) अस्मान् (भूमिः) (वर्धयत्) वर्धयेत् (वर्धमाना) वृद्धिं गच्छन्ती ॥

१४ यो नो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यो नो॒ द्वेष॑त्पृथिवि॒ यः पृ॑त॒न्याद्यो᳡भि॒दासा॒न्मन॑सा॒ यो व॒धेन॑।
तं नो॑ भूमे रन्धय पूर्वकृत्वरि ॥

१४ यो नो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Whoso shall hate us, O earth; whoso shall fight [us]; whoso shall
    vex [us] with mind, who with deadly weapon—him, O prior-acting earth
    (bhū́mi), do thou put in our power.
Notes

‘Prior-acting,’ i.e., apparently, ‘getting the start of him’; we should
expect a nom. rather than a vocative case. Ppp. reads instead
pūrvakṛtvane; also, in b, ‘bhimanyā tāindanamā dhanena. Read in
our text pṛtanyā́d yò (an accent-sign omitted); one of our mss. ⌊and
five of SPP’s authorities, and his text!⌋, however, read . According
to the usual nomenclature of the Anukr., the verse is a virāḍ gāyatrī
(11 + 11: 12 = 34, hence bhurij). ⌊Dr. Ryder suggests that the
mahābṛhatī here intended is one of 3 jāgata pādas (see Ind. Stud.
viii. 243-4). Both this vs. and 17 may be scanned as 12 + 12: 12—cf.
under vs. 17.⌋

Griffith

The man who hates us, Earth! who fights against us, who threaten us with thought or deadly weapon, make him our thrall as thou hast done aforetime.

पदपाठः

यः। नः॒। द्वेष॑त्। पृ॒थि॒वि॒। यः। पृ॒त॒न्यात्। यः। अ॒भि॒ऽदासा॑त्। मन॑सा। यः। व॒धेन॑। तम्। नः॒। भू॒मे॒। र॒न्ध॒य॒। पू॒र्व॒ऽकृ॒त्व॒रि॒। १.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • महाबृहती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पृथिवि) हे पृथिवी ! (यः) जो [दुष्ट] (नः) हम से (द्वेषत्) वैर करे, (यः) जो (पृतन्यात्) सेना चढ़ावे, (यः) जो (मनसा) मन से, (यः) जो (वधेन) मारू हथियार से (अभिदासात्) सतावे। (पूर्वकृत्वरि) हे श्रेष्ठों के लिये काम करनेवाली (भूमे) भूमि ! (तम्) उस को (नः) हमारे लिये (रन्धय) नाश कर ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य धर्म से सत्कारपूर्वक पृथिवी की रक्षा करते हैं, वे शत्रुओं को नाश कर सकते हैं ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४−(यः) दुष्टः (नः) अस्मान् (द्वेषत्) शत्रून् जानीयात् (पृथिवि) (यः) (पृतन्यात्) अ० ६।७५।१। सेनामात्मन इच्छेत् (यः) शत्रुः (अभिदासात्) अ० ५।६।१०। दास वधे−लेट्। हिंस्यात् (मनसा) चित्तेन (यः) (वधेन) घातकेनायुधेन (तम्) (नः) अस्मभ्यम् (रन्धय) अ० ४।२२।१। नाशय (पूर्वकृत्वरि) शीङ्क्रुशिरुहि०। उ० ४।११४। पूर्व+करोतेः−क्वनिप्। वनो र च। पा० ४।१।७। ङीब्रेफौ। पूर्वेभ्यः श्रेष्ठपुरुषेभ्यः कर्मकुशले ॥

१५ त्वज्जातास्त्वयि चरन्ति

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

त्वज्जा॒तास्त्वयि॑ चरन्ति॒ मर्त्या॒स्त्वं बि॑भर्षि द्वि॒पद॒स्त्वं चतु॑ष्पदः।
तवे॒मे पृ॑थिवि॒ पञ्च॑ मान॒वा येभ्यो॒ ज्योति॑र॒मृतं॒ मर्त्ये॑भ्य उ॒द्यन्त्सूर्यो॑ र॒श्मिभि॑रात॒नोति॑ ॥

१५ त्वज्जातास्त्वयि चरन्ति ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Born from thee, mortals go about upon thee; thou bearest bipeds,
    thou quadrupeds; thine, O earth, are these five [races] of men, for
    whom, mortals, the rising sun extends with his rays immortal light.
Notes

Ppp. reads in b ca instead of the second tvam.

Griffith

Produced from thee, on thee move mortal creatures: thou bearest them, both quadruped and biped. Thine, Prithivi, are these Five human Races, for whom, though mortal, Surya as he rises spreads with his rays the light that is immortal.

पदपाठः

त्वत्। जा॒ताः। त्वयि॑। च॒र॒न्ति॒। मर्त्याः॑। त्वम्। बि॒भ॒र्षिः॒। द्वि॒ऽपदः॑। त्वम्। चतुः॑ऽपदः। तव॑। इ॒मे। पृ॒थि॒वि॒। पञ्च॑। मा॒न॒वाः। येभ्यः॑। ज्योतिः॑। अ॒मृत॑म्। मर्त्ये॑भ्यः। उ॒त्ऽयन्। सूर्यः॑। र॒श्मिऽभिः॑। आ॒ऽत॒नोति॑। १.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • पञ्चपदा शक्वरी
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वत्) तुझ से (जाताः) उत्पन्न हुए (मर्त्याः) मनुष्य (त्वयि) तुझ पर (चरन्ति) चलते हैं, (त्वम्) तू (द्विपदः) दो पायों को और (त्वम्) तू (चतुष्पदः) चौपायों को (बिभर्षि) आश्रय देती है। (पृथिवि) हे पृथिवी ! (इमे) यह सब (पञ्च) पाँच [पृथिवी, जल, तेज, वायु और आकाश, इन पाँच तत्त्व से] संबन्धवाले (मानवाः) मनुष्य (तव) तेरे हैं, (येभ्यः मर्त्येभ्यः) जिन मनुष्यों के लिये (उद्यन्) उदय होता हुआ (सूर्यः) सूर्य (अमृतम्) विना मरी हुई (ज्योतिः) ज्योति (रश्मिभिः) अपनी किरणों से (आतनोति) सब ओर फैलाता है ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य पृथिवी पर उत्पन्न होकर उद्योग करते हैं, वे सब प्राणियों की रक्षा करके सूर्य की पुष्टिकारक किरणों से वृष्टि आदि द्वारा सदा आनन्द पाते हैं ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १५−(त्वत्) तव सकाशात् (जाताः) उत्पन्नाः (त्वयि) (चरन्ति) गच्छन्ति (मर्त्याः) मनुष्याः (त्वम्) (बिभर्षि) धरसि (द्विपदः) पादद्वयोपेतान् (त्वम्) (चतुष्पदः) पादचतुष्टयोपेतान् (तव) (इमे) (पृथिवी) (पञ्च मानवाः) अ० ३।२१।५। पञ्चभूतसम्बन्धिनो मनुष्याः (येभ्यः) (ज्योतिः) तेजः (अमृतम्) अनष्टम् (मर्त्येभ्यः) मनुष्येभ्यः (उद्यन्) उद्गच्छन् (सूर्यः) (रश्मिभिः) किरणैः (आतनोति) समन्ताद् विस्तारयति ॥

१६ ता नः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ता नः॑ प्र॒जाः सं दु॑ह्रतां सम॒ग्रा वा॒चो मधु॑ पृथिवि धेहि॒ मह्य॑म् ॥

१६ ता नः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let those creatures, without exception (samagrá), together yield
    fruit (duh) to us; the honey of speech, O earth, do thou assign unto
    me.
Notes

for tā́s at the beginning, allowing us to regard prajā́s as
accus., would be a welcome emendation.

Griffith

In concert may these creatures yield us blessings. With honey of discourse, O Earth, endow me.

पदपाठः

ताः। नः॒। प्र॒ऽजाः। सम्। दु॒ह्र॒ता॒म्। स॒म्ऽअ॒ग्राः। वा॒चः। मधु॑। पृ॒थि॒वि॒। धे॒हि॒। मह्य॑म्। १.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • एकावसाना साम्नी त्रिष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (समग्राः) सब (ताः) वे (प्रजाः) प्रजाएँ (नः) हमें (सम् दुह्रताम्) मिलकर भरपूर करें, (पृथिवि) हे पृथिवी ! (वाचः) वाणी की (मधु) मधुरता (मह्यम्) मुझ को (धेहि) दे ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य वाणी की मधुरता अर्थात् सत्य वचन आदि से सब प्राणियों से उपकार लेते हैं, वे सुख पाते हैं ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६−(ताः) (नः) अस्मान् (प्रजाः) प्राणिनः (सम्) मिलित्वा (दुह्रताम्) प्रपूरयन्तु (समग्राः) समस्ताः (वाचः) वचनस्य (मधु) माधुर्यम् (पृथिवि) (धेहि) देहि (मह्यम्) ॥

१७ विश्वस्वं मातरमोषधीनाम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

वि॑श्व॒स्वं᳡ मा॒तर॒मोष॑धीनां ध्रु॒वां भूमिं॑ पृथि॒वीं धर्म॑णा धृ॒ताम्।
शि॒वां स्यो॒नामनु॑ चरेम वि॒श्वहा॑ ॥

१७ विश्वस्वं मातरमोषधीनाम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The all-producing (-sū́) mother of herbs, the fixed earth
    (bhū́mi), the earth maintained by ordinance, the auspicious, the
    pleasant, may we go about over always.
Notes

This verse (10 ⌊properly 11⌋ + 12: 12 = 34 syll.) is overlooked by the
Anukr.; it nearly accords in structure with vs. 14, above. ⌊Dr. Ryder
observes that the dual (mahābṛhatyāu) of the Anukr.-text suggests the
possible falling out of the pratīka of this verse. See under vs. 14.⌋
⌊There is a play of words in dhármaṇā dhṛtā́m which cannot easily be
reproduced in translation.⌋

Griffith

Kind, ever gracious be the Earth we tread on, the firm Earth, Prithivi, borne up by Order, mother of plants and herbs, the all-producer.

पदपाठः

वि॒श्व॒ऽस्व᳡म्। मा॒तर॑म्। ओष॑धीनाम्। ध्रु॒वाम्। भूमि॑म्। पृ॒थि॒वीम्। धर्म॑णा। धृ॒ताम्। शि॒वाम्। स्यो॒नाम्। अनु॑। च॒रे॒म॒। वि॒श्वहा॑। १.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्र्यवसाना पञ्चपदा शक्वरी
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वस्वम्) सब उत्पन्न करनेवाली, (ओषधीनाम्) ओषधियों [अन्न सोमलता आदि] की (मातरम्) माता, (ध्रुवाम्) दृढ़, (भूमिम्) आश्रय स्थान, (धर्मणा) धर्म [धरने योग्य स्वभाव वा कर्म] से (धृताम्) धारण की गयी, (शिवाम्) कल्याणी, (स्योनाम्) मनभावनी (पृथिवीम् अनु) पृथिवी के पीछे (विश्वहा) अनेक प्रकार (चरेम) हम चलें ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य धर्म के साथ भूमि का शासन करके समस्त उत्तम गुणों और पदार्थों से सुख प्राप्त करें ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७−(विश्वस्वम्) षूङ् प्राणिगर्भविमोचने−क्विप्। सर्वस्य प्रसवित्रीम्, उत्पादयित्रीम् (मातरम्) जननीम् (ओषधीनाम्) अन्नसोमलतादीनाम् (ध्रुवाम्) दृढाम् (भूमिम्) निवासस्थानम् (पृथिवीम्) (धर्मणा) धरणीयेन स्वभावेन कर्मणा वा (धृताम्) धारिताम् (शिवाम्) कल्याणीम् (स्योनाम्) सुखदाम् (अनु) अनुसृत्य (चरेम) गच्छेम (विश्वहा) विश्वधा। अनेकप्रकारेण ॥

१८ महत्सधस्थं महती

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

म॒हत्स॒धस्थं॑ मह॒ती ब॒भूवि॑थ म॒हान्वेग॑ ए॒जथु॑र्वे॒पथु॑ष्टे।
म॒हांस्त्वेन्द्रो॑ रक्ष॒त्यप्र॑मादम्।
सा नो॑ भूमे॒ प्र रो॑चय॒ हिर॑ण्यस्येव सं॒दृशि॒ मा नो॑ द्विक्षत॒ कश्च॒न ॥

१८ महत्सधस्थं महती ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thou hast become great, a great station (sadhástha) great is thy
    trembling, stirring, quaking; great Indra defends thee unremittingly. Do
    thou, O earth (bhū́mi), make us to shine forth as in the aspect
    (saṁdṛ́ś) of gold; let no one soever hate us.
Notes

Ppp. reads vīryeṇa for apramādam in c, and from e
samdṛśi⌋ passes directly on to our 19 c (agnir antaṣ pur-
etc.): probably an accidental omission. The verse (12 + 11: 8 + 8 + 8 =
58) lacks two syllables of a full atiśakvarī.

Griffith

A vast abode hast thou become, the Mighty. Great stress is on thee, press and agitation, but with unceasing care great Indra guards thee. So make us shine, O Earth, us with the splendour of gold. Let no man look on us with hatred.

पदपाठः

म॒हत्। स॒धऽस्थ॑म्। म॒ह॒ती। ब॒भू॒वि॒थ॒। म॒हान्। वेगः॑। ए॒जथुः॑। वे॒पथुः॑। ते॒। म॒हान्। त्वा॒। इन्द्रः॑। र॒क्ष॒ति॒। अप्र॑ऽमादम्। सा। नः॒। भू॒मे॒। प्र। रो॒च॒य॒। हिर॑ण्यस्यऽइव। स॒म्ऽदृशि॑। मा। नः॒। द्वि॒क्ष॒त॒। कः। चन। १.१८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुब्गर्भा शक्वरी
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (महती) बड़ी होकर तू (महत्) बड़ा (सधस्थम्) सहवास (बभूविथ) हुई है, (ते) तेरा (वेगः) वेग, (एजथुः) चलना और (वेपथुः) हिलना (महान्) बड़ा है। (महान्) बड़ा (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला मनुष्य] (अप्रमादम्) बिना चूक (त्वा रक्षति) तेरी रक्षा करता है। (सा) सो तू, (भूमे) हे भूमि ! (नः) हमें (हिरण्यस्य इव) सुवर्ण के जैसे (संदृशि) रूप में (प्र रोचय) प्रकाशमान कर दे, (कश्चन) कोई भी (नः) हम से (मा द्विक्षत्) न द्वेष करे ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - पुरुषार्थी पुरुष अनेक प्रयत्नों के साथ पृथिवी पर सब से मिलकर विद्या द्वारा सुवर्ण आदि धन प्राप्त करके तेजस्वी होते हैं ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १८−(महत्) बृहत् (सधस्थम्) सहस्थानम् (महती) विशाला (बभूविथ) (महान्) विपुलः (वेगः) जवः (एजथुः) ट्वितोऽथुच्। पा० ३।३।८९। एजृ कम्पने−अथुच्, बाहुलकात्। चेष्टाव्यवहारः (वेपथुः) टुवेपृ कम्पने−अथुच्। कम्पः (ते) तव (महान्) पूजनीयः (त्वा) त्वाम् (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् पुरुषः (रक्षति) पालयति (अप्रमादम्) सावधानम् (सा) सा त्वम् (नः) अस्मान् (भूमेः) (प्र) प्रकर्षेण (रोचय) प्रकाशय (हिरण्यस्य इव) सुवर्णस्य यथा (संदृशि) संदर्शने स्वरूपे (नः) अस्मान् (मा द्विक्षत) न द्विष्यात् (कश्चन) कोऽपि ॥

१९ अग्निर्भूम्यामोषधीष्वग्निमापो बिभ्रत्यग्निरश्मसु

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॒ग्निर्भूम्या॒मोष॑धीष्व॒ग्निमापो॑ बिभ्रत्य॒ग्निरश्म॑सु।
अ॒ग्निर॒न्तः पुरु॑षेषु॒ गोष्वश्वे॑ष्व॒ग्नयः॑ ॥

१९ अग्निर्भूम्यामोषधीष्वग्निमापो बिभ्रत्यग्निरश्मसु ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Agni is in the earth (bhū́mi), in the herbs; the waters bear Agni;
    Agni [is] in the stones (áśman); Agni is within men; in kine, in
    horses are Agnis.
Notes

This and the two following verses are quite out of connection here, and
seem to be an intrusion. They are quoted together in Kāuś. 2. 41 as
accompanying the feeding of the fire with fuel; in 120. 5, in a ceremony
against the cleaving open of the ground; and in 137. 30 (each singly) to
accompany the strewing of the sacrificial hearth in the ājyatantra.
The first part of the verse (as noted above) is wanting in Ppp.

Griffith

Agni is in the earth, in plants; the waters hold Agni in them, in the stones is Agni. Agni abideth deep in men: Agnis abide in cows and steeds.

पदपाठः

अ॒ग्निः। भूम्या॑म्। ओष॑धीषु। अ॒ग्निम्। आपः॑। बि॒भ्र॒ति॒। अ॒ग्निः। अश्म॑ऽसु। अ॒ग्निः। अ॒न्तः। पुरु॑षेषु। गोषु॑। अश्वे॑षु। अ॒ग्नयः॑। १.१९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • उरोबृहती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भूम्याम्) भूमि में [वर्तमान] (अग्निः) अग्नि [ताप] (ओषधीषु) ओषधियों [अन्न सोमलता आदि] में है, (अग्निम्) अग्नि को (आपः) जल (बिभ्रति) धारण करते हैं, (अग्निः) अग्नि (अश्मसु) पत्थरों [वा मेघों] में है। (अग्निः) अग्नि (पुरुषेषु अन्तः) पुरुषों के भीतर है, (अग्नवः) अग्नि [के ताप] (गोषु) गौओं में और (अश्वेषु) घोड़ों में हैं ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ईश्वरनियम से पृथिवी में का अग्निताप अन्न आदि पदार्थों और प्राणियों में प्रवेश करके उन में बढ़ने तथा पुष्ट होने का सामर्थ्य देता है ॥१९॥ यहाँ पर अथर्व० ३।२१।१, २। भी देखो ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १९−(अग्निः) अग्नितापः (भूम्याम्) पृथिव्याम् (ओषधीषु) अन्नसोमलतादिषु (अग्निम्) तापम् (आपः) जलानि (बिभ्रति) धारयन्ति (अग्निः) (अश्मसु) अ० १।२।२। पाषाणेषु। मेघेषु−निघ० १।१०। (अग्निः) (अन्तः) मध्ये (पुरुषेषु) (गोषु) (अश्वेषु) (अग्नयः) अग्नितापाः ॥

२० अग्निर्दिव आ

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॒ग्निर्दि॒व आ त॑पत्य॒ग्नेर्दे॒वस्यो॒र्व१॒॑न्तरि॑क्षम्।
अ॒ग्निं मर्ता॑स इन्धते हव्य॒वाहं॑ घृत॒प्रिय॑म् ॥

२० अग्निर्दिव आ ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Agni sends heat from the sky; the wide atmosphere is god Agni’s;
    mortals kindle Agni [as] oblation-bearer, ghee-lover.
Notes

Ppp. combines in a divā ”tapaty.

Griffith

Agni gives shine and heat in heaven: the spacious air is his, the God’s Lover of fatness, bearer of oblation, men enkindle him.

पदपाठः

अ॒ग्निः। दि॒वः। आ। त॒प॒ति॒। अ॒ग्नेः। दे॒वस्य॑। उ॒रु। अ॒न्तरि॑क्षम्। अ॒ग्निम्। मर्ता॑सः। इ॒न्ध॒ते॒। ह॒व्य॒ऽवाह॑म्। ह॒व्य॒ ऽवाह॑म्। घृ॒त॒ऽप्रिय॑म्। १.२०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • विराडुरोबृहती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निः) अग्नि [ताप] (दिवः) सूर्य से (आ तपति) आकर तपता है, (देवस्य) कामनायोग्य (अग्नेः) अग्नि का (उरु) चौड़ा (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष [अवकाश] है। (हव्यवाहम्) हव्य [आहुति के द्रव्य अथवा नाड़ियों में अन्न के रस] को ले चलनेवाले, (घृतप्रियम्) घृत के चाहनेवाले (अग्निम्) अग्नि को (मर्तासः) मनुष्य लोग (इन्धते) प्रकाशमान करते हैं ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वह अग्नि ताप भूमि में [म० १९] सूर्य से आता है, तथा आकाश के पदार्थों में प्रवेश करके उन्हें बलयुक्त करता है। उस अग्नि को मनुष्य आदि प्राणी भोजन आदि से शरीर में बढ़ा कर पुष्ट और बलवान् होते हैं। तथा उसी अग्नि को हव्यद्रव्यों से प्रज्वलित करके मनुष्य वायु, जल और अन्न को शुद्ध निर्दोष करते हैं ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २०−(अग्निः) तापः (दिवः) सूर्यात् (आ) आगत्य (तपति) दहति (अग्नेः) तापस्य (देवस्य) कमनीयस्य (उरु) विस्तृतम् (अन्तरिक्षम्) अवकाशः (अग्निम्) (मर्तासः) मनुष्याः (इन्धते) दीपयन्ति (हव्यवाहम्) होमद्रव्यस्य अन्नरसस्य वा वाहकम् (घृतप्रियम्) घृतेच्छुकम् ॥

२१ अग्निवासाः पृथिव्यसितज्ञूस्त्विषीमन्तम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॒ग्निवा॑साः पृथि॒व्य᳡सित॒ज्ञूस्त्विषी॑मन्तं॒ संशि॑तं मा कृणोतु ॥

२१ अग्निवासाः पृथिव्यसितज्ञूस्त्विषीमन्तम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let the earth, fire-clad, black-kneed, make me sharpened, brilliant
    (tvíṣīmant).
Notes

This verse is quoted by pratīka in GB. i. 2. 9. As to the ritual uses
of it and of vs. 20, see the note to vs. 19. Ppp. reads tviṣīvantaṁ in
b.

Griffith

Dark-kneed, invested with a fiery mantle, Prithivi sharpen me and give me splendour!

पदपाठः

अ॒ग्निऽवा॑साः। पृ॒थि॒वी। अ॒सि॒त॒ऽज्ञूः। त्विषि॑ऽमन्तम्। सम्ऽशि॑तम्। मा॒। कृ॒णो॒तु॒। १.२१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • एकावसाना साम्नी त्रिष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निवासाः) अग्नि के साथ निवास करनेवाली [अथवा अग्नि के वस्त्रवाली], (असितज्ञूः) बन्धनरहित कर्म को [जतानेवाली] (पृथिवी) पृथिवी (मा) मुझ को (त्विषिमन्तम्) तेजस्वी और (संशितम्) तीक्ष्ण [फुरतीला] (कृणोतु) करे ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे भूमि भीतर और बाहिर सूर्यताप से बल पाकर अपने मार्ग पर बेरोक चलती रहती है, वैसे ही मनुष्य भीतरी और बाहिरी बल बढ़ाकर सुमार्ग में बढ़ता चले ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २१−(अग्निवासाः) वसेर्णित्। उ० ४।११८। वस निवासे आच्छादने च−असुन्। अग्निना तापेन सह निवासो यस्याः सा। यद्वा, तापो वस्त्रं यस्याः सा (पृथिवी) (असितज्ञूः) षिञ् बन्धने−क्त+ अन्दूदृम्फूजम्बू०। उ० १।९३। ज्ञा विज्ञापने−कू। अबद्धं कर्म ज्ञापयति बोधयति नियोजयति वा सा (त्विषिमन्तम्) दीप्तिमन्तम् (संशितम्) तीक्ष्णीकृतम् (मा) माम् (कृणोतु) करोतु ॥

२२ भूम्यां देवेभ्यो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

भूम्यां॑ दे॒वेभ्यो॑ ददति य॒ज्ञं ह॒व्यमरं॑कृतम्।
भूम्यां॑ मनु॒ष्या॑ जीवन्ति स्व॒धयान्ने॑न॒ मर्त्याः॑।
सा नो॒ भूमिः॑ प्रा॒णमायु॑र्दधातु ज॒रद॑ष्टिं मा पृथि॒वी कृ॑णोतु ॥

२२ भूम्यां देवेभ्यो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. On the earth (bhū́mi) they give to the gods the sacrifice, the
    oblation, duly prepared; on the earth (bhū́mi) mortal men (manuṣyà)
    live by svadhā́, by food; let that earth (bhū́mi) assign us breath,
    life-time; let earth make me one who attains old age.
Notes

The verse (8 + 8: 8 + 8: 11 + 11 = 54) should be called by the Anukr.
svarāj instead of virāj. Ppp. reads in a juhvati instead of
dadati.

Griffith

On earth they offer sacrifice and dressed oblation to the Gods. Men, mortals, live upon the earth by food in their accustomed way. May that Earth grant us breath and vital power. Prithivi give me life of long duration!

पदपाठः

भूम्या॑म्। दे॒वेभ्यः॑। द॒द॒ति॒। य॒ज्ञम्। ह॒व्यम्। अर॑म्ऽकृतम्। भूम्या॑म्। म॒नु॒ष्याः᳡। जी॒व॒न्ति॒। स्व॒धया॑। अन्ने॑न। मर्त्याः॑। सा। नः॒। भूमिः॑। प्रा॒णम्। आयुः॑। द॒धा॒तु॒। ज॒रत्ऽअ॑ष्टिम्। मा॒। पृ॒थि॒वी। कृ॒णो॒तु॒। १.२२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्र्यवसाना षट्पदा विराडतिजगती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भूम्याम्) भूमि पर (देवेभ्यः) उत्तम गुणों के लिये (मनुष्याः) मनुष्य (हव्यम्) देने-लेने योग्य, (अरंकृतम्) शोभित करनेवाले वा शक्तिमान् करनेवाले (यज्ञम्) संगतिकरण व्यवहार को (ददति) दान करते हैं। (भूम्याम्) भूमि पर (मर्त्याः) मनुष्य (स्वधया) अपनी धारण शक्ति से (अन्नेन) अन्न द्वारा (जीवन्ति) जीवते हैं। (सा भूमिः) वह भूमि (नः) हम को (प्राणम्) प्राण [आत्मबल] और (आयुः) आयु [जीवन] (दधातु) देवे, और [वही] (पृथिवी) पृथिवी (मा) मुझ को (जरदष्टिम्) स्तुति के साथ प्रवृत्ति वा भोजनवाला (कृणोतु) करे ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस प्रकार मनुष्य उत्तम पुरुषों से मिलकर श्रेष्ठ-श्रेष्ठ गुण प्राप्त करते और दूसरों को प्राप्त कराते हैं, उसी प्रकार हम उत्तम गुण प्राप्त करके अपना जीवन श्रेष्ठ बनावें ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २२−(भूम्याम्) (देवेभ्यः) कमनीयगुणानां प्राप्तये (ददति) प्रयच्छन्ति (यज्ञम्) संगतिव्यवहारम् (हव्यम्) दानादानयोग्यम् (अरंकृतम्) अलम्+करोतेः−क्विप्। शोभितं शक्तिमन्तं वा करोतीति तम् (भूम्याम्) (मनुष्याः) (जीवन्ति) प्राणान् धारयन्ति (स्वधया) स्व+दधातेः क्विप्। आत्मधारणशक्त्या (अन्नेन) जीवनसाधनेन (मर्त्याः) (सा) (नः) अस्मभ्यम् (प्राणम्) आत्मबलम् (आयुः) जीवनम् (दधातु) ददातु (जरदष्टिम्) अ० २।२८।५। जीर्यतेरतृन् पा० ३।२।१०४। जॄ स्तुतौ−अतृन्। जरा स्तुतिर्जरतेः स्तुतिकर्मणः−निरु० १०।८। अशू व्याप्तौ अश भोजने च−क्तिन्। जरता स्तुत्या सह अष्टिः कार्यव्याप्तिर्भोजनं वा यस्य तम् (मा) माम् (पृथिवी) भूमिः (कृणोतु) करोतु ॥

२३ यस्ते गन्धः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यस्ते॑ ग॒न्धः पृ॑थिवि संब॒भूव॒ यं बिभ्र॒त्योष॑धयो॒ यमापः॑।
यं ग॑न्ध॒र्वा अ॑प्स॒रस॑श्च भेजि॒रे तेन॑ मा सुर॒भिं कृ॑णु॒ मा नो॑ द्विक्षत॒ कश्च॒न ॥

२३ यस्ते गन्धः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What odor of thine, O earth, came into being, which the herbs,
    which the waters bear, which the Gandharvas and Apsarases shared—with
    that do thou make me odorous; let no one soever hate us.
Notes

Ppp. adds, after bhejire, yas te gām aśvam arhati; and it reads for
our d tenā ’smān surabhīṣ kṛṇu, and, in our e, dvakṣata. The
verse (11 + 11: 12: 8 + 8 = 50) is as well described by the Anukr. as
the latter’s system admits. Verses 23-25 ⌊so the schol.⌋ are called in
Kāuś. 13. 12 and 54. 5 gandhapravādās (likewise in the comm. to 24.
24); they are also reckoned as belonging to the second varcasya gaṇa
(see note to Kāuś. 12. 10).

Griffith

Scent that hath risen from thee, O Earth, the fragrance which. growing herbs and plants and waters carry, Shared by Apsarases, shared by Gandharvas therewith make thou me sweet: let no man hate me.

पदपाठः

यः। ते॒। ग॒न्धः। पृ॒थि॒वि॒। स॒म्ऽब॒भूव॑। यम्। बिभ्र॑ति। ओष॑धयः। यम्। आपः॑। यम्। ग॒न्ध॒र्वाः। अ॒प्स॒रसः॑। च॒। भे॒जि॒रे। तेन॑। मा॒। सु॒र॒भिम्। कृ॒णु॒। मा। नः॒। द्वि॒क्षत। कः। चन। १.२३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • पञ्चपदातिजगती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पृथिवी) हे पृथिवी ! (यः) जो (ते) तेरा (गन्धः) गन्ध [अंश] (संबभूव) उत्पन्न हुआ है, (यम्) जिस [अंश] को (ओषधयः) ओषधें [अन्न, सोमलता आदि] और (यम्) जिसको (आपः) जल (बिभ्रति) धारण करते हैं। (यम्) जिसको (गन्धर्वाः) पृथिवी [के अंशः] को धारण करनेवाले [प्राणियों ने (च) और (अप्सरसः)] आकाश में चलनेवाले [जीवों और लोकों] ने (भेजिरे) भोगा है, (तेन) उस [गन्ध वा अंश] से (मा) मुझे (सुरभिम्) ऐश्वर्यवान् (कृणु) तू कर, (कश्चन) कोई भी [प्राणी] (नः) हम से (मा द्विक्षत) न वैर करे ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - गन्धवती पृथिवी का आश्रय लेकर अनेक प्रकार से सब प्राणी और सब लोक आकार धारण करके ठहरते हैं। मनुष्य उस पृथिवी के तत्त्वज्ञान से सब कार्य सिद्ध करके ऐश्वर्यवान् होवें ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २३−(यः) (ते) तव (गन्धः) घ्राणग्राह्यो गुणभेदः। लेशः (पृथिवी) (संबभूव) उत्पन्नो बभूव (यम्) गन्धम् (बिभ्रति) धारयन्ति (ओषधयः) अन्नसोमलतादयः (यम्) (आपः) जलानि (गन्धर्वाः) अ० ४।३७।२। कॄगॄशॄदॄभ्यो वः। उ० १।१५५। गो+धृञ् धारणे−व प्रत्ययः, गो शब्दस्य गमादेशः। गोर्भूमेर्धारकाः प्राणिनः (अप्सरसः) अ० ४।३७।२। अप्+सृ गतौ−असि। अप्सु आकाशे जले वा सरणशीला जीवा लोकाश्च (च) (भेजिरे) सेवितवन्तः (तेन) गन्धेन (मा) माम् (सुरभिम्) सुर ऐश्वर्यदीप्त्योरित्यस्माद् बाहुलकादौणादिकोऽमिच् प्रत्ययः−इति दयानन्दो यजु० १२।३५। ऐश्वर्यवन्तम् (कृणु) कुरु। अन्यद्गतम्−म० १८ ॥

२४ यस्ते गन्धः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यस्ते॑ ग॒न्धः पुष्क॑रमावि॒वेश॒ यं सं॑ज॒भ्रुः सू॒र्याया॑ विवा॒हे।
अम॑र्त्याः पृथिवि ग॒न्धमग्रे॒ तेन॒ मा सु॑र॒भिं कृ॑णु॒ मा नो॑ द्विक्षत॒ कश्च॒न ॥

२४ यस्ते गन्धः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What odor of thine entered into the blue lotus; which they brought
    together at Sūryā’s wedding—the immortals, O earth, [what] odor in the
    beginning—with that do thou make me odorous; let no one soever hate us.
Notes

Ppp. has again tenā ’smān surabhīṣ kṛṇu, and dvakṣata. ⌊To the
definition of the⌋ verse (11 + 11: 11 + 8 + 8 = 49) ⌊should be added
bhurij"⌋.

Griffith

Thy scent which entered and possessed the lotus, the scent which they prepared at Surya’s bridal, Scent which Immortals Earth! of old collected, therewith make thou me sweet: let no man hate me.

पदपाठः

यः। ते॒। ग॒न्धः। पुष्क॑रम्। आ॒ऽवि॒वेश॑। यम्। स॒म्ऽज॒भ्रुः। सू॒र्यायाः॑। वि॒ऽवा॒हे। अम॑र्त्याः। पृ॒थि॒वि॒। ग॒न्धम्। अग्रे॑। तेन॑। मा॒। सु॒र॒भिम्। कृ॒णु॒। मा। नः॒। द्वि॒क्ष॒त॒। कः। च॒न। १.२४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • पञ्चपदानुष्टुब्गर्भा जगती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पृथिवी) हे पृथिवी ! (यः) जो (ते) तेरा (गन्धः) [अंश] (पुष्करम्) पोषक पदार्थ [वा कमल] में (आविवेश) प्रविष्ट हुआ है, (यं गन्धम्) जिस गन्ध को (सूर्यायाः) सूर्य की चमक के (विवाहे) ले चलने में (अमर्त्याः) अमर [पुरुषार्थी] लोगों ने (अग्रे) पहिले (संजभ्रुः) समेटा है, (तेन) उसी [अंश] से (मा) मुझको (सुरभिम्) ऐश्वर्यवान् (कृणु) तू कर, (कश्चन) कोई भी [प्राणी] (नः) हम से (मा द्विक्षत) न वैर करे ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - पृथिवी का गन्ध अर्थात् अंश प्रविष्ट होकर पदार्थों को पुष्ट करता और सूर्य के ताप द्वारा देश-देशान्तरों में पहुँचता है। उस पृथिवी से तत्त्ववेत्ता लोग उपकार लेकर प्रसन्न होते हैं ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २४−(यः) (ते) तव (गन्धः) म० २३ (पुष्करम्) पूषः कित्। उ० ४।४। पुष्णातेः−करन्। पोषकं पदार्थम्। कमलम् (आविवेश) प्रविष्टवान् (यम्) (संजभ्रुः) हृञ् हरणे−लिट्, हस्य भः संजह्रुः। संगृहीतवन्तः (सूर्यायाः) अ० ९।४।१४। सूर्यदीप्तेः (विवाहे) प्रवाहे। प्रापणे (अमर्त्याः) अमरधर्माणः। पुरुषार्थिनो जनाः (पृथिवी) (गन्धम्) (अग्रे)। अन्यत् पूर्ववत् म० २३ ॥

२५ यस्ते गन्धः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यस्ते॑ ग॒न्धः पुरु॑षेषु स्त्री॒षु पुं॒सु भगो॒ रुचिः॑।
यो अश्वे॑षु वी॒रेषु॒ यो मृ॒गेषू॒त ह॒स्तिषु॑।
क॒न्या᳡यां॒ वर्चो॒ यद्भू॑मे॒ तेना॒स्माँ अपि॒ सं सृ॑ज॒ मा नो॑ द्विक्षत॒ कश्च॒न ॥

२५ यस्ते गन्धः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What odor of thine is in human beings (púruṣa); in women, in men,
    [what] portion, pleasure; what in horses, in heroes, what in wild
    animals and in elephants; what splendor, O earth (bhū́mi), in a
    maiden—with that do thou unite us also; let no one soever hate us.
Notes

Or, in d, mṛgeṣu hastiṣu may mean simply ’elephants’ (lit. ‘wild
beasts having a hand’). Ppp. reads yas te bhāume puruṣeṣu…rucir yo
vadhūṣu: yo goṣv aśveṣu yo mṛgeṣu:…yad bhāume abhi sāṁ sṛja;
and in
g dvakṣata. If the verse contains an uṣṇih pāda (namely c,
the resolution aś-u-eṣu being rejected), it is nicṛt as a śakvarī.

Griffith

Thy scent in women and in men, the luck and light that is in. males, That is in heroes and in steeds in sylvan beasts and elephants, The splendid energy of maids, therewith do thou unite us,. Earth! Let no man look on us with hate.

पदपाठः

यः। ते॒। ग॒न्धः। पुरु॑षेषु। स्त्री॒षु। पु॒म्ऽसु। भगः॑। रुचिः॑। यः। अश्वे॑षु। वी॒रेषु॑। यः। मृ॒गेषु॑। उ॒त। ह॒स्तिषु॑। क॒न्या᳡याम्। वर्चः॑। यत्। भू॒मे॒। तेन॑। अ॒स्मान्। अपि। सम्। सृ॒ज॒। मा। नः॒। द्वि॒क्ष॒त॒। कः। च॒न। २.२५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्र्यवसाना सप्तपदोष्णिगनुष्टुब्गर्भा शक्वरी
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (ते) तेरा (गन्धः) गन्ध [अंश] (पुरुषेषु) अग्रगामी (पुंसु) रक्षक मनुष्यों में और (स्त्रीषु) स्त्रियों में (भगः) सेवनीय ऐश्वर्य और (रुचिः) कान्ति है। (यः) जो [गन्ध] (वीरेषु) वेगवान् (अश्वेषु) घोड़ों में (उत) और (यः) जो (मृगेषु) हरिणों में और (हस्तिषु) हाथियों में है और (यत्) जो (वर्चः) तेज (कन्यायाम्) चमकती हुई कन्या [कन्या आदि राशि ज्योतिश्चक्र] में है, (भूमे) हे भूमि ! (तेन) उस [तेज] के साथ (अस्मान् अपि) हमें भी (सं सृज) मिला, (कश्चन) कोई भी [प्राणी] (मा) मुझ से (मा द्विक्षत) वैर न करे ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - पृथिवी का आश्रय लेकर संसार के देहधारी मनुष्य आदि सब प्राणी और अन्तरिक्ष के तारागण आदि सब लोक स्थित हैं, वैसे ही मनुष्य सब प्रकार उपकारी और तेजस्वी होकर विघ्नों का नाश करें ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २५−(यः) (ते) (गन्धः) (पुरुषेषु) पुरः कुषन्। उ० ४।७४। पुर अग्रगतौ−कुषन्। अग्रगामिषु (स्त्रीषु) (पुंसु) पातेर्डुमसुन्। उ० ४।१७८। पा रक्षणे डुमसुन्। रक्षकेषु मनुष्येषु (भगः) सेवनीयमैश्वर्यम् (रुचिः) कान्तिः (यः) (अश्वेषु) तुरङ्गेषु (वीरेषु) वि+ईर गतौ−अच्। वेगवत्सु (यः) (मृगेषु) हरिणेषु (हस्तिषु) गजेषु (कन्यायाम्) अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। कन प्रीतौ द्युतौ गतौ−यक्, टाप् च। कन्या कमनीया भवति क्वेयं नेतव्येति वा कमनेनानीयत इति वा कनतेर्वा स्यात्कान्तिकर्मणः−निरु० ४।१५। मेषादितः षष्ठे राशौ। ज्योतिश्चक्रे (वर्चः) तेजः (यत्) (भूमे) (तेन) वर्चसा (अस्मान्) (अपि) (संसृज) संजनय। संयोजय। अन्यत् पूर्ववत्−म० २४ ॥

२६ शिला भूमिरश्मा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शि॒ला भूमि॒रश्मा॑ पां॒सुः सा भूमिः॒ संधृ॑ता धृ॒ता।
तस्यै॒ हिर॑ण्यवक्षसे पृथि॒व्या अ॑करं॒ नमः॑ ॥

२६ शिला भूमिरश्मा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Rock [is?] earth (bhū́mi), stone, dust; this earth (bhū́mi)
    [is] held together, held; to that earth, gold-backed (-vákṣas) have
    I paid homage.
Notes

Ppp. reads, in a-b, pāṅsv aryā bhūmi stṛtā dhṛtā, and omits c,
d
. ⌊Cf. note to vs. 6.⌋

Griffith

Rock earth, and stone, and dust, this Earth is held together,. firmly bound. To this gold-breasted Prithivi mine adoration have I paid.

पदपाठः

शि॒ला। भूमिः॑। अश्मा॑। पां॒सुः। सा। भूमिः॑। सम्ऽधृ॑ता। धृ॒ता। तस्यै॑। हिर॑ण्यऽवक्षसे। पृ॒थि॒व्यै। अ॒क॒र॒म्। नमः॑। २.२६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भूमिः) भूमि (शिला) शिला, (अश्मा) पत्थर और (पांसुः) धूलि है, (सः) वह (संधृता) यथावत् धारण की गयी (भूमिः) भूमि (धृतः) धरी हुई है। (तस्यै) उस [हिरण्यवक्षसे] सुवर्ण आदि धन छाती में रखनेवाली (पृथिव्यै) पृथिवी के लिये (नमः अकरम्) मैंने अन्न किया [खाया] है ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस भूमि पर अनेक बड़े-छोटे पदार्थ हैं और जिस में अनेक रत्न भरे हैं, उस पृथिवी के हित के लिये मनुष्य अन्न जल आदि पदार्थ खावें ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २६−(शिला) क्षुद्रपाषाणः (भूमिः) (अश्मा) प्रस्तरः (पांसुः) धूलिः (सा) (भूमिः) (संधृता) सम्यग् धारिता (धृता) स्थिरा (तस्यै) (हिरण्यवक्षसे) हिरण्यानि सुवर्णादीनि रत्नानि वक्षसि−मध्ये यस्यास्तस्यै (पृथिव्यै) (अकरम्) कृतवानस्मि (नमः) अन्नम्−निघ० २ ॥

२७ यस्यां वृक्षा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यस्यां॑ वृ॒क्षा वा॑नस्प॒त्या ध्रु॒वास्तिष्ठ॑न्ति वि॒श्वहा॑।
पृ॑थि॒वीं वि॒श्वधा॑यसं धृ॒ताम॒च्छाव॑दामसि ॥

२७ यस्यां वृक्षा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. On whom stand always fixed the trees, the forest trees
    (vānaspatyá), the all-supporting earth that is held [together] do we
    address.
Notes

Ppp. reads for d bhūmyāi hiraṇyavakṣasi dhṛtam acchāv-. Vāit. 2. 8
quotes the verse to accompany the laying down of the enclosing sticks.

Griffith

Hither we call the firmly held, the all-supporting Prithivi, On whom the trees, lords of the wood, stand evermore immov- able.

पदपाठः

यस्या॑म्। वृ॒क्षाः। वा॒न॒स्प॒त्याः। ध्रु॒वाः। तिष्ठ॑न्ति। वि॒श्वहा॑। पृ॒थि॒वीम्। वि॒श्वऽधा॑यसम्। धृ॒ताम्। अ॒च्छ॒ऽआव॑दामसि। १.२७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्याम्) जिस [पृथिवी] पर (वानस्पत्याः) वनस्पतियों [बड़े-बड़े पेड़ों] से उत्पन्न हुए (वृक्षाः) वृक्ष (ध्रुवाः) दृढ़ होकर (विश्वहा) अनेक प्रकार (तिष्ठन्ति) ठहरते हैं (विश्वधायसम्) [उस] सब की धारण करनेवाली, (धृताम्) [वीरों से] धारण की गयी (पृथिवीम्) पृथिवी को (अच्छावदामसि) स्वागत करके हम आवाहन करते हैं ॥२७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस पृथिवी पर हमारे उपकार के लिये फल फूल पत्र आदिवाले वृक्ष उत्पन्न होते हैं, उसकी सावधानी हम सदा करते रहें ॥२७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २७−(यस्याम्) पृथिव्याम् (वृक्षाः) वृक्ष वरणे−अच्। स्वीकरणीयास्तरवः (वानस्पत्याः) अ० ३।६।६। वनस्पति-ण्य। वनस्पतिभ्योऽश्वत्थादिभ्य उत्पन्नाः (ध्रुवाः) दृढाः सन्तः (तिष्ठन्ति) (विश्वहा) अनेकधा (पृथिवीम्) (विश्वधायसम्) अ० ३।˜२२।२। सर्वधारयित्रीम् (धृताम्) वीरपुरुषैर्धारिताम् (अच्छावदामसि) अ० ६।५९।३। अच्छ सुष्ठु स्वागतेन आवदामः आह्वयामः ॥

२८ उदीराणा उतासीनास्तिष्ठन्तः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

उ॒दीरा॑णा उ॒तासी॑ना॒स्तिष्ठ॑न्तः प्र॒क्राम॑न्तः।
प॒द्भ्यां द॑क्षिणस॒व्याभ्यां॒ मा व्य॑थिष्महि॒ भूम्या॑म् ॥

२८ उदीराणा उतासीनास्तिष्ठन्तः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Arising (ud-īr), also sitting, standing, striding forth, with
    right and left feet, let us not stagger upon the earth.
Notes

The Anukr. seems to assume the resolution -kṛ-ā- in b. This verse
and 33 below are quoted in Kāuś. 24. 33 to accompany the taking of three
steps, while looking around, in the āgrahāyaṇī ceremony.

Griffith

Sitting at ease or rising up, standing or going on our way. With our right foot and with our left we will not reel upon the earth.

पदपाठः

उ॒त्ऽईरा॑णाः। उ॒त। आसी॑नाः। तिष्ठ॑न्तः। प्र॒ऽक्राम॑न्तः। प॒त्ऽभ्याम्। द॒क्षि॒ण॒ऽस॒व्याभ्या॑म्। मा। व्य॒थि॒ष्म॒हि॒। भूम्या॑म्। १.२८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (उदीराणाः) उठते हुए (उत) और (आसीनाः) बैठे हुए (तिष्ठन्तः) खड़े होते हुए और (प्रक्रामन्तः) चलते-फिरते हुए हम (दक्षिणसव्याभ्याम्) दोनों सीधे और डेरे (पद्भ्याम्) पाँवों से (भूम्याम्) भूमि पर (मा व्यथिष्महि) न डगमगावें ॥२८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पृथिवी पर सावधान और स्वस्थ रहकर सदा सब को सुख देवें ॥२८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २८−(उदीराणाः) ईर गतौ−शानच्। उद्गच्छन्तः (उत) अपि च (आसीनाः) उपविष्टाः (तिष्ठन्तः) गतिनिवृत्तिं कुर्वन्तः (प्रक्रामन्तः) प्रकर्षेण पादविक्षेपं कुर्वन्तः (पद्भ्याम्) चरणाभ्याम् (दक्षिणसव्याभ्याम्) दक्षिणवामाभ्याम् (मा व्यथिष्महि) व्यथ भयसंचलनयोः−लुङ्। न संचलेम (भूम्याम्) ॥

२९ विमृग्वरीं पृथिवीमा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

वि॒मृग्व॑रीं पृथि॒वीमा व॑दामि क्ष॒मां भूमिं॒ ब्रह्म॑णा वावृधा॒नाम्।
ऊर्जं॑ पु॒ष्टं बिभ्र॑तीमन्नभा॒गं घृ॒तं त्वा॑भि॒ नि षी॑देम भूमे ॥

२९ विमृग्वरीं पृथिवीमा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The cleansing (vimṛ́gvan) earth do I address, the patient (kṣamá)
    earth (bhū́mi), increasing by worship (bráhman); may we sit down, O
    earth (bhū́mi), upon thee, that bearest refreshment, prosperity
    (puṣṭá), food-portion, ghee.
Notes

Ppp. reads at the beginning vimargvāya, in b vāvṛdhānaḥ, in
c puṣṭiṁ, in d bhāume. The verse is quoted four times in
Kāuś.: in 3. 8; 24. 28; 137. 40, to accompany a sitting down in
different ceremonies; and in 90. 15, when causing a guest to stand upon
a cushion.

Griffith

I speak to Prithivi the purifier, to patient Earth who groweth strong through Brahma. O Earth, may we recline on thee who bearest strength, increase, portioned share of food, and fatness.

पदपाठः

वि॒ऽमृग्व॑रीम्। पृ॒थि॒वीम्। आ। व॒दा॒मि॒। क्ष॒माम्। भूमि॑म्। ब्रह्म॑णा। व॒वृ॒धा॒नाम्। ऊर्ज॑म्। पु॒ष्टम्। बिभ्र॑तीम्। अ॒न्न॒ऽभा॒गम्। घृ॒तम्। त्वा॒। अ॒भि। नि। सी॒दे॒म॒। भू॒मे॒। १.२९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (विमृग्वरीम्) विविध खोजने योग्य, (पृथिवीम्) चौड़ी, (क्षमाम्) सहनशील, (ब्रह्मणा) ब्रह्म [वेदज्ञान, अन्न वा धन] द्वारा (वावृधानाम्) बढ़ी हुई (भूमिम्) भूमि को (आ वदामि) मैं आवाहन करता हूँ।(भूमि) हे भूमि ! (ऊर्जम्) बलकारक पदार्थ, (पुष्टम्) पोषण, (अन्नभागम्) अन्न के विभाग और (घृतम्) घी को (बिभ्रतीम्) धारण करती हुई (त्वा अभि) तुझ पर (निषीदेम) हम बैठें ॥२९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विज्ञानी लोग भूगर्भविद्या, भूतलविद्या आदि द्वारा भूमि को खोजकर अनेक प्रकार के उपकारी पदार्थ प्राप्त करके स्वस्थ पुष्ट होवें ॥२९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २९−(विमृग्वरीम्) शीङ्क्रुशिरुहि०। उ० ४।११४। वि+मृग अन्वेषणे−क्वनिप्। वनो र च पा० ४।१।७। डीब्रेफौ। विविधान्वेषणीयाम् (पृथिवीम्) विस्तृताम् (आवदामि) आह्वयामि (क्षमाम्) सहनशीलाम् (भूमिम्) (ब्रह्मणा) अ० १।८।४। वेदज्ञानेन। अन्नेन−निघ० २।७। धनेन−निघ० २।१०। (वावृधानाम्) वृधु−कानच्, सांहितिको दीर्घः प्रवृद्धाम् (ऊर्जम्) बलकरं पदार्थम् (पुष्टम्) पोषणम् (बिभ्रतीम्) धारयन्तीम् (अन्नभागम्) भोज्यपदार्थविभागम् (घृतम्) (त्वा) (अभि) प्रति (निषीदेम) अधितिष्ठेम (भूमे) ॥

३० शुद्धा न

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शु॒द्धा न॒ आप॑स्त॒न्वे᳡ क्षरन्तु॒ यो नः॒ सेदु॒रप्रि॑ये॒ तं नि द॑ध्मः।
प॒वित्रे॑ण पृथिवि॒ मोत्पु॑नामि ॥

३० शुद्धा न ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let cleansed (śuddhá) waters flow for our body; what mucus (?
    syédu) is ours, that we deposit on him we love not (ápriya); with a
    purifier (pavítra), O earth, do I purify myself.
Notes

Part of the pada-mss. (Bp. ⌊and one of SPP’s⌋) accent mā́ in c.
Ppp. has for nas in a; and, in b, yo me sehnur. The
verse is quoted in Kāuś. 58. 7 (and at second hand under 24. 24) in
connection with rinsing the mouth after spitting; also in Vāit. 12. 6 in
connection with easing nature.

Griffith

Purified for our bodies flow the waters: we bring distress on him who would attack us. I cleanse myself, O Earth, with that which cleanseth.

पदपाठः

शु॒ध्दाः। नः॒। आपः॑। त॒न्वे᳡। क्ष॒र॒न्तु॒। यः। नः॒। सेदुः॑। अप्रि॑ये। तम्। नि। द॒ध्मः॒। प॒वित्रे॑ण। पृ॒थि॒वि॒। मा॒। उत्। पु॒ना॒मि॒। १.३०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • विराड्गायत्री
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शुद्धाः) शुद्ध (आपः) जल (नः) हमारे (तन्वे) शरीर के लिये (क्षरन्तु) बहें, (यः) जो (नः) हमारा (सेदुः) नाश करने का व्यवहार है, (तम्) उस [व्यवहार] को (अप्रिये) [अपने] अप्रिय [शत्रु] पर (नि दध्मः) हम डालते हैं। (पृथिवि) हे पृथिवी ! (पवित्रेण) शुद्ध व्यवहार से (मा) अपने को (उत् पुनामि) सर्वथा शुद्ध करता हूँ ॥३०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे निर्मल जल से शरीर शुद्ध करके मल का नाश करते हैं, वैसे ही मनुष्य अन्तःकरण का मल दूर करके पृथिवी पर धार्मिक व्यवहार से आत्मा की शुद्धि करें ॥३०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३०−(शुद्धाः) निर्मलाः (नः) अस्माकम् (आपः) जलानि (तन्वे) शरीराय (क्षरन्तु) वहन्तु (यः) (नः) अस्माकम् (सेदुः) कुर्भ्रश्च। उ० १।२२। षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु−कु, अकारस्य एकारः पृषोदरादित्वात्। अवसादनस्य नाशनस्य व्यवहारः (अप्रिये) शत्रौ (तम्) सेदुम् (नि दध्मः) नितरां धारयामः (पवित्रेण) शुद्धकर्मणा (पृथिवी) (मा) माम् (उत्) उत्कर्षेण (पुनामि) शोधयामि ॥

३१ यास्ते प्राचीः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यास्ते॒ प्राचीः॑ प्र॒दिशो॒ या उदी॑ची॒र्यास्ते॑ भूमे अध॒राद्याश्च॑ प॒श्चात्।
स्यो॒नास्ता मह्यं॒ चर॑ते भवन्तु॒ मा नि प॑प्तं॒ भुव॑ने शिश्रिया॒णः ॥

३१ यास्ते प्राचीः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What forward directions are thine, what upward, what are thine, O
    earth (bhū́mi), downward, and what behind, let those be pleasant to me
    going about; let me not fall down [when] supported (śri) on creation
    (bhúvana).
Notes

The verse is found also in MS. (iv. 14. 11), which reads, for b,
yā́ś ca bhūmy adharā́g yā́ś ca paścā́; also śivā́s for syonā́s in c.
Ppp. has in b bhāume ‘dharād, and in d śuśriyāṇe. This and
the following verse are reckoned to the svastyayana gaṇa: see note to
Kāuś. 25. 36.

Griffith

Earth, be thine eastern and thy northern regions, those lying southward and those lying westward. Propitious unto me in all my movements. Long as I tread the ground let me not stumble.

पदपाठः

याः। ते॒। प्राचीः॑। प्र॒ऽदिशः॑। याः। उदी॑चीः। याः। ते॒। भू॒मे॒। अ॒ध॒रात्। याः। च॒। प॒श्चात्। स्यो॒नाः। ताः। मह्य॑म्। चर॑ते। भ॒व॒न्तु॒। मा। नि। प॒प्त॒म्। भुव॑ने। शि॒श्रि॒याणः। १.३१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भूमे) हे भूमि ! (याः) जो (ते) तेरी (प्राचीः) सन्मुखवाली (प्रदिशः) बड़ी दिशाएँ, (याः) जो (उदीचीः) ऊपरवाली, (याः) जो (ते) तेरी (अधरात्) नीचे की ओर (च) और (याः) जो (पश्चात्) पीछे की ओर हैं। (ताः) वे सब (मह्यम् चरते) मुझ विचरते हुए के लिये (स्योनाः) सुख देनेवाली (भवन्तु) होवें, (भुवने) संसार में (शिश्रियाणः) ठहरा हुआ मैं (मा नि पप्तम्) न गिर जाऊँ ॥३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य चलते-फिरते रहकर पुरुषार्थ करते रहते हैं, वे पृथिवी पर सब दिशाओं में सुख भोगते हैं ॥३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३१−(याः) (ते) तव (प्राचीः) अ० ३।२६।१। प्राच्यः। स्वाभिमुखीभूताः (प्रदिशः) प्रकृष्टा दिशः (याः) (उदीचीः) अ० ३।२६।४। उदीच्यः। उपरिवर्तमाना दिशाः (याः) (ते) (भूमे) (अधरात्) अधस्तात् (याः) (च) (पश्चात्) (स्योनाः) सुखदाः (ताः) (मह्यम्) (चरते) विचरणशीलाय (भवन्तु) (मा नि पप्तम्) पत्लृ गतौ−लुङ्। अहं न निपतानि (भुवने) संसारे (शिश्रियाणः) अ० १।१२।२। श्रिञ्−कानच्। आश्रयं गृह्णानः ॥

३२ मा नः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

मा नः॑ प॒श्चान्मा पु॒रस्ता॑न्नुदिष्ठा॒ मोत्त॒राद॑ध॒रादु॒त।
स्व॒स्ति भू॑मे नो भव॒ मा वि॑दन्परिप॒न्थिनो॒ वरी॑यो यावया व॒धम् ॥

३२ मा नः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Do not push (nud) us behind, nor in front, nor above and below;
    become thou welfare for us, O earth (bhū́mi); let not the waylayers
    find [us]; keep very far off the deadly weapon.
Notes

The directions ‘forward’ etc., in this and the preceding verse, are also
equivalent, as elsewhere, to ’eastern’ etc. Pāda d occurs below as
xiv. 2. 11 a; e was found above as i. 20. 3 d etc. Ppp.
reads for nas in a, omits b, reads in c bhāume me
kṛṇu
, and makes d and e change places, reading also vāyas for
varīyas ⌊and vidhan for vidan⌋. The verse (11 + 8: 8 + 8 + 8 = 43)
is curiously defined by the Anukr.

Griffith

Drive us not from the west or east, drive us not from the north or south, Be gracious unto us, O Earth: let not the robbers find us; keep the deadly weapon far away.

पदपाठः

मा। नः॒। प॒श्चात्। मा। पु॒रस्ता॑त्। नु॒दि॒ष्ठाः॒। मा। उ॒त्त॒रात्। अ॒ध॒रात्। उ॒त। स्व॒स्ति। भू॒मे॒। नः॒। भ॒व॒। मा। वि॒द॒न्। प॒रि॒ऽप॒न्थिनः॑। वरी॑यः। य॒व॒य॒। व॒धम्। १.३२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • पुरस्ताज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भूमे) हे भूमि ! (नः) हम को (मा) न तो (पश्चात्) पीछे से, (मा) न (पुरस्तात्) आगे से, (मा) न (उत्तरात्) ऊपर से (उत) और (अधरात्) नीचे से (नुदिष्ठाः) ढकेल, (नः) हमारे लिये (स्वस्ति) कल्याणी (भव) हो, (परिपन्थिनः) वटमार लोग [हम को] (मा विदन्) न पावें, (वधम्) मारू हथियार को (वरीयः) बहुत दूर (यावय) हटा दे ॥३२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सब दिशाओं में सावधान रहकर दुराचारियों के फन्दों से बचें ॥३२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३२−(मा) निषेधे (नः) अस्मान् (पश्चात्) (पुरस्तात्) पुरोभागात् (मा नुदिष्ठाः) णुद प्रेरणे−लुङ्। न प्रेरय (मा) (उत्तरात्) उपरिदेशात् (अधरात्) निम्नस्थानात् (उत) अपि (स्वस्ति) कल्याणी (भूमे) (नः) अस्मभ्यम् (भव) (मा विदन्) अ० १।१९।१। मा लभन्ताम् (परिपन्थिनः) अ० १।२७।१। प्रतिकूलाचारिणः (वरीयः) अ० १।२०।३। उरुतरम्। दूरतरम् (यावय) वियोजय (वधम्) शस्त्रप्रहारम् ॥

३३ यावत्तेऽभि विपश्यामि

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

याव॑त्ते॒ऽभि वि॒पश्या॑मि॒ भूमे॒ सूर्ये॑ण मे॒दिना॑।
ताव॑न्मे॒ चक्षु॒र्मा मे॒ष्टोत्त॑रामुत्तरां॒ समा॑म् ॥

३३ यावत्तेऽभि विपश्यामि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. How much of thee I look forth upon, O earth (bhū́mi), with the sun
    for ally (medín), so far let my sight not fail (), from one year
    (sámā) to another.
Notes

Ppp. has again bhāume in b. For the use of the verse in Kāuś., see
note to vs. 28. It is quoted also in Vāit. 27. 7 as used by one gazing
at the earth after mounting the sacrificial post. ⌊Pāda d we had at
iii. 10. i; 17. 4.⌋

Griffith

Long as, on thee, I look around, possessing Surya as a friend, So long, through each succeeding year, let not my power of vision fail.

पदपाठः

याव॑त्। ते॒। अ॒भि। वि॒ऽपश्या॑मि। भूमे॑। सूर्ये॑ण। मे॒दिना॑। ताव॑त्। मे॒। चक्षुः॑। मा। मे॒ष्ट॒। उत्त॑राम्ऽउत्तराम्। समा॑म्। १.३३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भूमे) हे भूमि ! (यावत्) जब तक (मेदिना) स्नेही (सूर्येण) सूर्य के साथ (अभि) सब ओर (ते विपश्यामि) तेरा विविध प्रकार दर्शन करूँ। (तावत्) तब तक (मे) मेरी (चक्षुः) दृष्टि (उत्तरामुत्तराम्) उत्तम-उत्तम (समाम्) अनुकूल क्रिया को (मा मेष्ट) नहीं नाश करे ॥३३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य ऐसा प्रयत्न करें कि विद्यायत्नपूर्वक ईश्वर की अद्भुत रचनाओं से सदा उत्तम-उत्तम क्रियाएँ करते रहें, जैसे सूर्य प्रकाश आदि से उपकार करता है ॥३३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३३−(यावत्) यत्परिमाणम् (ते) तव (अभि) अभितः (वि पश्यामि) विविधं दर्शनं करोमि (भूमे) (सूर्येण) आदित्येन (मेदिना) स्नेहिना (तावत्) तत्परिमाणम् (मे) मम (चक्षुः) दृष्टिः (मा मेष्ट) मीञ् हिंसायाम्−लुङ्, माङि अडभावः। न हिनस्तु (उत्तरामुत्तराम्) अ० ३।१७।४। अतिशयेनोत्कृष्टाम् (समाम्) अ० ३।१०।१। समक्रियाम्। अनुकूलक्रियाम् ॥

३४ यच्छयानः पर्यावर्ते

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यच्छया॑नः प॒र्याव॑र्ते॒ दक्षि॑णं स॒ख्यम॒भि भू॑मे पा॒र्श्वम्।
उ॒त्ता॒नास्त्वा॑ प्र॒तीचीं॒ यत्पृ॒ष्टीभि॑रधि॒शेम॑हे।
मा हिं॑सी॒स्तत्र॑ नो भूमे॒ सर्व॑स्य प्रतिशीवरि ॥

३४ यच्छयानः पर्यावर्ते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. In that, lying, I turn myself about upon the right [or] the left
    side, O earth (bhū́mi); in that we with our ribs lie stretched out upon
    thee that meetest us—do not in that case injure us, O earth (bhū́mi),
    thou underlier of everything.
Notes

‘Underlier,’ lit. ‘counter-lier, one whose lying answers to that of
another.’ In a, b, perhaps rather ‘in that I turn over toward
[thee] the one or the other side’ ⌊cf. vii. 100. 1⌋. Our Bp. puts its
sign of pāda-division between c and d before instead of after
yát, and the Anukr. supports it by counting a bṛhatī element in the
verse (which is properly 8 + 11: 8 + 8: 8 + 8 = 51). The verse is
prescribed in Kaug. 24. 30, to accompany the act of turning over while
lying down, in the āgrahāyaṇī ceremony. All the mss., with the
edition, ⌊likewise SPP’s mss. and ed.,⌋ accent paryā´varte; it should
ht paryāvárte. Ppp. puts the verse after 35, and reads api for
abhi in b; and, for d, pṛṣṭvā yad ṛdva śemahe; and bhāume
both times for bhūme.

Griffith

When, as I lie, O Earth, I turn upon my right side and my left, When stretched at all our length we lay our ribs on thee who meetest us. Do us no injury there, O Earth who furnishest a bed for all.

पदपाठः

यत्। शया॑नः। प॒रि॒ऽआव॑र्ते। दक्षि॑णम्। स॒व्यम्। अ॒भि। भू॒मे॒। पा॒र्श्वम्। उ॒त्ता॒नाः। त्वा॒। प्र॒तीची॑म्। यत्। पृ॒ष्टीभिः॑। अ॒धि॒ऽशेम॑हे। मा। हिं॒सीः॒। तत्र॑। नः॒। भू॒मे॒। सर्व॑स्य। प्र॒ति॒ऽशी॒व॒रि॒। १.३४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुब्बृगतीगर्भातिजगती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भूमे) हे भूमि ! (यत्) जब (शयानः) सोता हुआ मैं (दक्षिणम्) दाहिने [वा] (सव्यम्) बाएँ (पार्श्वम् अभि) करवट से (पर्य्यावर्ते) लेटता हूँ। (यत्) जब (उत्तानाः) चित होकर हम (प्रतीचीम्) प्रत्यक्ष मिलती हुई (त्वा) तुझ पर (पृष्टीभिः) [अपनी] पसलियों से (अधिशीमहे) सोते हैं। (सर्वस्य प्रतिशीवरि) हे सब को शयन देनेवाली (भूमे) भूमि ! (तत्र) उस [काल] में (नः) हमको (मा हिंसीः) मत कष्ट दे ॥३४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य पृथिवी को समचौरस बनाकर रहते हैं, वे सुख पाते हैं ॥३४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३४−(यत्) यदा (शयानः) शयनं कुर्वन् (पर्यावर्ते) परिलुष्ठामि (दक्षिणम्) (सव्यम्) वामम् (भूमे) (पार्श्वम्) कक्षाधोभागम् (उत्तानाः) उत्+तनु विस्तारे−घञ्। ऊर्ध्वमुखशयानाः (त्वा) भूमिम् (प्रतीचीम्) प्रत्यक्षमञ्चन्ती प्राप्नुवतीम् (यत्) यदा (पृष्टीभिः) पार्श्वास्थिभिः (अधिशेमहे) शयनं कुर्मः (मा हिंसीः) मा वधीः (तत्र) तस्मिन् काले (नः) अस्मान् (भूमे) (सर्वस्य) (प्रतिशीवरि) शीङ्क्रुशिरुहि०। उ० ४।११४। शीङ् स्वप्ने−क्वनिप्। वनो र च। पा० ४।१।७। ङीब्रेफौ। प्राणिनः प्रत्यक्षं शेरतेऽस्यां सा प्रतिशीवरी तत्सम्बुद्धौ ॥

३५ यत्ते भूमे

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यत्ते॑ भूमे वि॒खना॑मि क्षि॒प्रं तदपि॑ रोहतु।
मा ते॒ मर्म॑ विमृग्वरि॒ मा ते॒ हृद॑यमर्पिपम् ॥

३५ यत्ते भूमे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What of thee, O earth (bhū́mi), I dig out, let that quickly grow
    over; let me not hit (arpay-) thy vitals nor thy heart, O cleansing
    one.
Notes

‘Grow over,’ i.e. heal up, like a wound. Ppp. has again bhāume in
a; also oṣaṁ for kṣipram in b, and arpitam in d; this
time (cf. vs. 29) it agrees with our text in the peculiar epithet
vimṛgvari, lit. ‘wiping off.’ Kāuś. (46. 51) quotes the verse to
accompany an act of digging in a prāyaścitta ceremony; and again
similarly at 137. 12.

Griffith

Let what I dig from thee, O Earth, rapidly spring and grow again. O Purifier, let me not pierce through thy vitals or thy heart.

पदपाठः

यत्। ते॒। भू॒मे॒। वि॒ऽखना॑मि। क्षि॒प्रम्। तत्। अपि॑। रो॒ह॒तु॒। मा। ते॒। मर्म॑। वि॒ऽमृ॒ग्व॒रि॒। मा। ते॒। हृद॑यम्। अ॒र्पि॒प॒म्। १.३५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भूमे) हे भूमि ! (यत्) जो कुछ (ते) तेरा (विखनामि) मैं खोद डालूँ, (तत्) वह (क्षिप्रम् अपि) शीघ्र ही (रोहतु) उगे। (विमृग्वरि) हे खोजने योग्य ! (मा) न तो (ते) तेरे (मर्म) मर्म स्थल को और (मा) न (ते) तेरे (हृदयम्) हृदय को (अर्पिपम्) मैं हानि करूँ ॥३५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - भूतलविद्या और भूगर्भविद्या में चतुर लोग भूमि को उचित रीति से खोदकर और हल से जोतकर रत्न और अन्न आदि पदार्थ प्राप्त करें ॥३५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३५−(यत्) यत् किञ्चित् (ते) तव (भूमे) (विखनामि) विदारयामि (क्षिप्रम्) शीघ्रम् (तत्) (अपि) एव (रोहतु) उत्पद्यताम् (मा) निषेधे (ते) तव (मर्म) सन्धिस्थानम् (विमृग्वरि) म० २९। हे अन्वेषणीये (ते) (हृदयम्) (मा) (अर्पिपम्) ऋ गतौ हिंसायां च−णिचि पुकि लुङि रूपम्। न हिनसानि ॥

३६ ग्रीष्मस्ते भूमे

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ग्री॒ष्मस्ते॑ भूमे व॒र्षाणि॑ श॒रद्धे॑म॒न्तः शिशि॑रो वस॒न्तः।
ऋ॒तव॑स्ते॒ विहि॑ता हाय॒नीर॑होरा॒त्रे पृ॑थिवि नो दुहाताम् ॥

३६ ग्रीष्मस्ते भूमे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let thy hot season, O earth (bhū́mi), rainy season, autumn, winter,
    cool season, spring—let thine arranged seasons, years, let
    day-and-night, O earth, yield milk (duh) to us.
Notes

One would expect in c hāyanā́s ‘belonging to or constituting the
year’; and Ppp., combining hāyanā ’hor-, favors that reading. Ppp. has
also again bhāume in a. The irregularity of the verse (8 + 11: 10

  • 11 = 40) indicates corruption; it is a pan̄kti, of course, only by
    the sum of syllables. It is quoted in Kāuś. 137. 9, as one approaches to
    measure out the sacrificial hearth. ⌊Cf. 137. 4, note.⌋
Griffith

Earth, may thy summer, and thy rains, and autumn, thy winter, and thy dewy frosts, and spring-time. May thy years, Prithivi! and ordered seasons, and day and night pour out for us abundance.

पदपाठः

ग्री॒ष्मः। ते॒। भू॒मे॒। व॒र्षाणि॑। श॒रत्। हे॒म॒न्तः। शिशि॑रः। व॒स॒न्तः। ऋ॒तवः॑। ते॒। विऽहि॑ताः। हा॒य॒नीः। अ॒हो॒रा॒त्रे इति॑। पृ॒थि॒वि॒। नः॒। दु॒हा॒ता॒म्। १.३६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • विपरीतपादलक्ष्मा पङ्क्तिः
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भूमे) हे भूमि ! (ते) तेरे (ग्रीष्मः) घाम ऋतु [ज्येष्ठ-आषाढ़], (वर्षाणि) बरसा [श्रावण-भाद्र], (शरत्) शरद् ऋतु [आश्विन-कार्तिक], (हेमन्तः) शीतकाल [अग्रहायण-पौष], (शिशिरः) उतरता हुआ शीतकाल [माघ-फाल्गुन] और (वसन्तः) वसन्त काल [चैत्र-वैशाख] (ऋतवः) ऋतु हैं, [उनको] (पृथिवि) हे पृथिवी ! (विहिताः) विहित [स्थापित] (हायनीः) वर्षों, तक (ते) तेरे (अहोरात्रे) दिन-राति [दोनों] (नः) हमारे लिये (दुहाताम्) पूर्ण करें ॥३६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को उचित है कि पृथिवी पर सब ऋतुओं में उचित कर्म करके पूर्ण आयु भागें ॥३६॥ इस मन्त्र का मिलान करो−अ० ६।५५।२ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३६−ग्रीष्मादयः शब्दा व्याख्याताः अ० ६।५५।२। (ग्रीष्मः) निदाघः। ज्येष्ठाषाढात्मकः कालः (ते) तव (भूमे) (वर्षाणि) श्रावणभाद्रात्मको मेघकालः (शरत्) आश्विनकार्तिकात्मकः कालः (हेमन्तः) अग्रहायणपौषात्मकः शीतकालः (शिशिरः) माघफाल्गुनात्मकः शीतान्तः कालः (वसन्तः) चैत्रवैशाखात्मकः पुष्पकालः (ऋतवः) कालभेदाः (ते) तव (विहिताः) विधृताः। विधिना बोधिताः (हायनीः) कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे। पा० २।३।५। इति द्वितीया। संवत्सरान् (अहोरात्रे) रात्रिदिने (पृथिवि) (नः) अस्मभ्यम् (दुहाताम्) पूरयताम् ॥

३७ याप सर्पम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

याप॑ स॒र्पं वि॒जमा॑ना वि॒मृग्व॑री॒ यस्या॒मास॑न्न॒ग्नयो॒ ये अ॒प्स्व१॒॑न्तः।
परा॒ दस्यू॒न्दद॑ती देवपी॒यूनिन्द्रं॑ वृणा॒ना पृ॑थि॒वी न वृ॒त्रम्।
श॒क्राय॑ दध्रे वृष॒भाय॒ वृष्णे॑ ॥

३७ याप सर्पम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. She who, cleansing one, trembling away the serpent; on whom were the
    fires that are within the waters, abandoning the god-insulting
    barbarians, choosing, she the earth, Indra [and] not Vṛitra, kept
    herself (dhṛ) for the mighty one (śakrá), the virile bull.
Notes

The first pāda is extremely obscure; it is here translated mechanically,
as closely as possible to the text. Bruce understands at the beginning
yā́: ā́pa (instead of the yā́: ápa of the pada-text); and that would
be a natural and easy emendation, if only the resulting sense were more
acceptable. Ludwig renders as if we read sárpāt (’trembling at the
serpent’). The totally different reading of Ppp., ya āpas sarpan
yatamānā vimṛgvari
, indicates that the text is corrupt. Ppp. further
reads in b agnayo ‘psv, and stops the verse at dadatī, then
adding our vs. 40. Our verse (12 + 11: 11 + 11: 11 = 56) adds up as a
true śakvarī.

Griffith

The purifier, shrinking from the Serpent, she who held fires that lie within the waters, Who gives as prey the God-blaspheming Dasyus, Earth choosing Indra for her Lord, not Vritra, hath clung to Sakra, to the Strong and Mighty.

पदपाठः

या। अप॑। स॒र्पम्‌। वि॒जमा॑ना। वि॒ऽमृग्व॑री। यस्या॑म्। आस॑न्। अ॒ग्नयः॑। ये। अ॒प्ऽसु। अ॒न्तः। परा॑। दस्यू॑न्। दद॑ती। दे॒व॒ऽपी॒यून्। इन्द्र॑म्। वृ॒णा॒ना। पृ॒थि॒वी। न। वृ॒त्रम्। श॒क्राय॑। द॒ध्रे॒। वृ॒ष॒भाय॑। वृष्णे॑। १.३७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (या) जो (विमृग्वरी) विविध प्रकार खोजने योग्य [पृथिवी] (अप सर्पम्) सरक कर (विजमाना) चलनेवाली है, (यस्याम्) जिस [पृथिवी] पर (अग्नयः) वे अग्नि ताप (आसन्) हैं (ये) जो (अप्सु अन्तः) प्राणियों के भीतर हैं (देवपीयून्) विद्वानों के सतानेवाले (दस्यून्) दुष्टों को (परा ददती) दूर छोड़ती हुई, [इस प्रकार] (इन्द्रम्) ऐश्वर्यवान् पुरुष को (वृणाना) चाहती हुई और (वृत्रम्) शत्रु को (न) न [चाहती हुई] (पृथिवी) पृथिवी (शक्राय) शक्तिमान्, (वृषभाय) बलवान्, (वृष्णे) वीर्यवान् पुरुष के लिये (दध्रे) धारण की गयी है ॥३७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य आगे की चलती हुई पृथिवी को खोजकर अपने भीतर पुरुषार्थरूप तेज धारण करते हैं, उन विघ्ननाशक वीरों के लिये यह पृथिवी सुखदायिनी और दुराचारी दुष्टों को दुःखदायिनी होती है ॥३७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३७−(या) पृथिवी (अप सर्पम्) अपसर्पणेन अपसरणेन तथा यथा (विजमाना) ओविजी भयचलनयोः−शानच्। चलन्ती (विमृग्वरी) म० २९। विविधमन्वेषणीयां (यस्याम्) पृथिव्याम् (आसन्) सन्ति (अग्नयः) अग्नितापाः (ये) (अप्सु) आपः=आप्ताः प्रजाः−दयानन्दभाष्ये, यजु० ६।२७। प्रजासु। प्राणिषु (अन्तः) मध्ये (परा) दूरे (दस्यून्) अ० २।१४।५। परपदार्थनाशकान् (ददती) दद दाने−शतृ छन्दसि। ददमाना। त्यजन्ती (देवपीयून्) अ० ४।३५।७। विदुषां हिंसकान् (इन्द्रम्) ऐश्वर्यवन्तं पुरुषम् (वृणाना) स्वीकुर्वाणा (पृथिवी) (न) निषेधे (वृत्रम्) धर्मात्मनां वारकं शत्रुम् (शक्राय) शक्तिमते (दध्रे) बहुलं छन्दसि। पा० ७।१।८। लिटो रुडागमः। दधे। धृतास्ति (वृषभाय) बलवते (वृष्णे) वीर्यवते पुरुषाय ॥

३८ यस्यां सदोहविर्धाने

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यस्यां॑ सदोहविर्धा॒ने यूपो॒ यस्यां॑ निमी॒यते॑।
ब्र॒ह्माणो॒ यस्या॒मर्च॑न्त्यृ॒ग्भिः साम्ना॑ यजु॒र्विदः॑।
यु॒ज्यन्ते॒ यस्या॑मृ॒त्विजः॒ सोम॒मिन्द्रा॑य॒ पात॑वे ॥

३८ यस्यां सदोहविर्धाने ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. On whom are the seat and oblation-holder; on whom the sacrificial
    post (yū́pa) is planted; on whom worshipers (brahmán) praise (arc)
    with verses, with the chant, knowing the sacrificial formulas; on whom
    are joined the priests (ṛtvíj), for Indra to drink the soma;—
Notes

Ppp. reads in e yujyante ‘syām ṛtyavas s-. The verse is quoted in
Kāuś. 24. 37 to accompany an oblation ⌊and by Dārila to 24. 24, in the
āgrahāyaṇī ceremony⌋. It is also reckoned with vs. 1 among the
puṣṭika mantras (see note to Kāuś. 19. i). In Vāit. 15. 4, this verse
and the two following are prescribed to accompany the subrahmaṇyā
recitation; in 10. 8, it is used at the setting up of the sacrificial
post.

Griffith

Base of the seat and sheds, on whom the sacrificial stake is reared, On whom the Yajus-knowing priests recite their hymns and chant their psalms, And ministers are busied that Indra may drink the Soma juice;

पदपाठः

यस्या॑म्। स॒दा॒ह॒वि॒र्धा॒ने इति॑ स॒दः॒ऽह॒वि॒र्धा॒ने। यूपः॑। यस्या॑म्। नि॒ऽमी॒यते॑। ब्र॒ह्माणः॑। यस्या॑म्। अर्च॑न्ति। ऋ॒क्ऽभिः। साम्ना॑। य॒जुः॒ऽविदः॑। यु॒ज्यन्ते॑। यस्या॑म्। ऋ॒त्विजः॑। सोम॑म्। इन्द्रा॑य। पात॑वे। १.३८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्र्यवसाना षट्पदा जगती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्याम्) जिस [भूमि] पर (सदोहविर्धाने) सभा और अन्नस्थान हैं, (यस्याम्) जिस पर (यूपः) जयस्तम्भ (निमीयते) गाड़ा जाता है। (यस्याम्) जिस पर (ब्रह्माणः) ब्रह्मा [वेदवेत्ता] लोग (ऋग्भिः) ऋचाओं [वेदवाणियों] से और (यजुर्वेदः) यजुर्वेदी [परमात्मा देव की पूजा जाननेवाले] लोग (साम्ना) मोक्षज्ञान के साथ [परमात्मा को] (अर्चन्ति) पूजते हैं। (यस्याम्) जिस पर (ऋत्विजः) सब ऋतुओं में यज्ञ [परमात्मा का पूजन] करनेवाले [योगी जन] (इन्द्राय) इन्द्र [ऐश्वर्ययुक्त जीव] के लिये (सोमम्) सोम [अमृत, मोक्षसुख] (पातवे) पान करने को (युञ्जन्ते) समाधि लगाते हैं ॥३८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस भूमि पर जितेन्द्रिय वीर पुरुष शत्रुओं को जीतते हैं, और वेदज्ञानी, योगीन्द्र परमात्मा के तत्त्वज्ञान से मोक्ष आनन्द भोगते हैं, उस भूमि पर हम अपना इष्ट सिद्ध करें। मन्त्र ३८ और ३९ का अन्वय मन्त्र ४० के साथ है ॥३८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३८−(यस्याम्) भूम्याम् (सदोहविर्धाने) षद्लृ गतौ−असुन्, हु दानादानादनेषु−इसि। सभाऽन्नस्थानं च द्वे (यूपः) जयस्तम्भः (यस्याम्) (निमीयते) निक्षिप्यते (ब्रह्माणः) वेदवेत्तारः (यस्याम्) (अर्चन्ति) पूजयन्ति परमात्मानम् (ऋग्भिः) वेदवाग्भिः (साम्ना) मोक्षज्ञानेन (यजुर्विदः) अर्तिपॄवपियजि०। उ० २।११७। यज देवपूजायाम्−उसि+विद ज्ञाने−क्विप्। परमात्मपूजाज्ञातारः (युञ्जन्ते) युज समाधौ। समादधति (यस्याम्) (ऋत्विजः) अ० ६।२।१। सर्वेषु ऋतुषु परमात्मपूजनशीलाः (सोमम्) अमृतम्। मोक्षसुखम् (इन्द्राय) ऐश्वर्यवते पुरुषाय (पातवे) पा पाने−तवेन्। पानं कर्तुम् ॥

३९ यस्यां पूर्वे

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यस्यां॒ पूर्वे॑ भूत॒कृत॒ ऋष॑यो॒ गा उदा॑नृ॒चुः।
स॒प्त स॒त्रेण॑ वे॒धसो॑ य॒ज्ञेन॒ तप॑सा स॒ह ॥

३९ यस्यां पूर्वे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. On whom the former being-making seers sang out (ud-arc) the
    kine—the seven pious ones (vedhás), by their session, together with
    sacrifice [and] penance;—
Notes

Ppp. reads udānāt for udānṛcus in b; all our mss. accent úd
ānṛcús
, but the edited text has emended to udān-. Vāit. 22. 1 gives
the verse as prescribed by a certain authority to be used instead of
iii. 14. 2, in driving out the kine from the place of sacrifice.

Griffith

On whom the ancient Rishis, they who made the world, sang forth the cows, Seven worshippers, by session, with their fervent zeal and sacrifice;

पदपाठः

यस्या॑म्। पूर्वे॑। भू॒त॒ऽकृतः॑। ऋष॑यः। गाः। उत्। आ॒नृ॒चुः। स॒प्त। स॒त्त्रेण॑। वे॒धसः॑। य॒ज्ञेन॑। तप॑सा। स॒ह। १.३९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्याम्) जिस [भूमि] पर (पूर्वे) निवासस्थान [शरीर] में [वर्तमान] (भूतकृतः) यथार्थ कर्म करनेवाले, (वेधसः) ज्ञानवान् (सप्त) सात (ऋषयः) विषय प्राप्त करनेवाले ऋषियों [त्वचा, नेत्र, कान, जिह्वा, नाक, मन और बुद्धि] ने (सत्त्रेण) सत्पुरुषों के रक्षक (यज्ञेन) यज्ञ [देवपूजा, संगतिकरण और दान] और (तपसा सह) [ब्रह्मचर्य आदि] तप के साथ (गाः) वेदवाणियों को (उत्) उत्तमता से (आनृचुः) पूजा है ॥३९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस भूमि पर मनुष्य अपने शरीर की इन्द्रियों द्वारा वेदज्ञान प्राप्त करके आत्मोन्नति करते हैं, उस भूमि पर हम पुरुषार्थ करके सुख प्राप्त करें−मन्त्र ४० देखो ॥३९॥ यजुर्वेद ३४।५५। में वर्णन है−(सप्त ऋषयः प्रतिहिताः शरीरे) सात ऋषि अर्थात् शब्द आदि विषय को प्राप्त करनेवाले पाँच ज्ञानेन्द्रिय, मन और बुद्धि शरीर में प्रतीति के सात ठहरे हुए हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३९−(यस्याम्) भूम्याम् (पूर्वे) पूर्व निवासे निमन्त्रणे च−अच्। निवासे शरीरे (भूतकृतः) भूतं यथार्थं कुर्वन्ति ये ते (ऋषयः) अ० ४।११।९। विषयप्रापकाः पञ्चज्ञानेन्द्रियाणि मनो बुद्धिश्च (गाः) वेदवाणीः (उत्) उत्तमतया (आनृचुः) अर्च पूजायाम्−लिट्। अपस्पृधेथामानृचुरानृहु०। पा० ६।१।३६। धातोर्लिटि उसि सम्प्रसारणमकारलोपश्च। यद्वृत्तान्नित्यम्। पा० ८।१।६६। इति निघातप्रतिषेधः। आनर्चुः। पूजितवन्तः (सप्त) सप्तसंख्याकाः (सत्त्रेण) सत्+त्रैङ् पालने−क। सतां सत्पुरुषाणां त्रायकेण (वेधसः) मेधाविनः ज्ञानवन्तः (यज्ञेन) देवपूजासंगतिकरणदानव्यवहारेण (तपसा) ब्रह्मचर्यादितपश्चरणेन (सह) ॥

४० सा नो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

सा नो॒ भूमि॒रा दि॑शतु॒ यद्धनं॑ का॒मया॑महे।
भगो॑ अनु॒प्रयु॑ङ्क्ता॒मिन्द्र॑ एतु पुरोग॒वः ॥

४० सा नो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let that earth (bhū́mi) appoint unto us what riches we desire; let
    Bhaga join on after; let Indra go [as our] forerunner.
Notes

For consistency, our text should read in c -yun̄tām, as called for
by Prāt. ii. 20 (see the note). As noticed above, this verse is in Ppp.
joined on to 37 as a part of it; in its place, as conclusion of 39, is
given here sā naṣ paśūn viśvarūpān dadhātu jaradaṣṭiṁ mā pṛthivī
kṛṇotu
. ⌊In d of our vs. 40, Ppp. reads indro yātu.⌋

Griffith

May she, the Earth, assign to us the opulence for which we yearn, May Bhaga share and aid the task and Indra come to lead the way.

पदपाठः

सा। नः॒। भूमिः॑। आ। दि॒श॒तु॒। यत्। धन॑म्। का॒मया॑महे। भगः॑। अ॒नु॒ऽप्रयु॑ङ्क्ताम्। इन्द्रः॑। ए॒तु॒। पु॒रः॒ऽग॒वः। १.४०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सा भूमिः) वह भूमि (नः) हमको (धनम्) वह धन (आ) यथावत् (दिशतु) देवे, (यत्) जिसे (कामयामहे) हम चाहते हैं। (भगः) ऐश्वर्य [हमें] (अनुप्रयुङ्क्ताम्) निरन्तर मिले, (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् पुरुष (पुरोगवः) अग्रगामी होकर (एतु) चले ॥४०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का अन्वय मन्त्र ३८ और ३९ के साथ है। मनुष्य पृथिवी पर वीर, महात्मा, ब्राह्मणों, योगियों के अनुकरण से वेदविद्या प्राप्त करके ऐश्वर्यवान् होकर अग्रगामी होवें ॥४०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४०−(सा) पूर्वोक्ता−म–० ३८, ३९ (नः) अस्मभ्यम् (भूमिः) (आ) समन्तात् (दिशतु) ददातु (यत्) (धनम्) (कामयामहे) इच्छामः (भगः) ऐश्वर्यम् (अनुप्रयुङ्क्ताम्) निरन्तरं प्राप्नोतु (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् पुरुषः (एतु) गच्छतु (पुरोगवः) गोरतद्धितलुकि। पा० ५।४।९२। इति पुरस्+गो समासे टच्। अग्रगामी सन् ॥

४१ यस्यां गायन्ति

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यस्यां॒ गाय॑न्ति॒ नृत्य॑न्ति॒ भूम्यां॒ मर्त्या॒ व्यै᳡लबाः।
यु॒ध्यन्ते॒ यस्या॑माक्र॒न्दो यस्यां॒ वद॑ति दुन्दु॒भिः।
सा नो॒ भूमिः॒ प्र णु॑दतां स॒पत्ना॑नसप॒त्नं मा॑ पृथि॒वी कृ॑णोतु ॥

४१ यस्यां गायन्ति ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. On whom, the earth (bhū́mi), mortals sing [and] dance with loud
    noises (? vyāìlaba); on whom they fight; on whom speaks the shout
    (ākrandá), the drum—let that earth (bhū́mi) push forth our rivals;
    let earth make me free from rivals.
Notes

Yudhyánte should be emended to yúdhyante. The verse (8 + 8: 8 + 8:
11 + 11 = 54) has no kakubh element in it, but as śakvarī it is
virāj. Ppp. puts the verse after our vs. 42, and reads for b:
janā martyā dvāilavā; ⌊in c yudhyante ‘syām; and, for e, f,
sā no bhūmiṣ pra dadhatāṁ sapatnāṅ: yo no dveṣṭy adharaṁ taṁ kṛṇotu.

Griffith

May she, the Earth, whereon men sing and dance with varied shout and noise, Whereon men meet in battle, and the war-cry and the drum resound, May she drive off our foemen, may Prithivi rid me of my foes.

पदपाठः

यस्या॑म्। गाय॑न्ति। नृत्य॑न्ति। भूम्या॑म्। मर्त्याः॑। विऽऐ॑लबाः। यु॒ध्यन्ते॑। यस्या॑म्। आ॒ऽक्र॒न्दः। यस्या॑म्। वद॑ति। दु॒न्दु॒भिः। सा। नः॒। भूमिः॑। प्र। नु॒द॒ता॒म्। स॒ऽपत्ना॑न्। अ॒स॒प॒त्न॒म्। मा॒। पृ॒थि॒वी। कृ॒णो॒तु॒। १.४१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्र्यवसाना षट्पदा ककुम्मती शक्वरी
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्यां भूम्याम्) जिस भूमि पर (व्यैलबाः) विविध प्रकार वाणियों के बोलनेवाले (मर्त्याः) मनुष्य (गायन्ति) गाते हैं और (नृत्यन्ति) नाचते हैं। (यस्यां भूम्याम्) जिस भूमि पर (आक्रन्दः) कोलाहल करनेवाले [योद्धा] (युध्यन्ते) लड़ते हैं, (यस्याम्) जिस पर (दुन्दुभिः) ढोल (वदति) बजता है। (सा भूमिः) वह भूमि (नः) हमारे (सपत्नान्) वैरियों को (प्र णुदताम्) हटा देवे, (पृथिवी) पृथिवी (मा) मुझ को (असपत्नम्) बिना शत्रु (कृणोतु) करे ॥४१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस पृथिवी पर मनुष्य ऊँचे, नीचे और मध्यम स्वर से गाते, नाचते और बाजे बजाकर युद्ध करते हैं, वहाँ पर धर्मात्मा लोग निर्विघ्न होकर सुख प्राप्त करें ॥४१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४१−(यस्याम्) (गायन्ति) गानं कुर्वन्ति (नृत्यन्ति) नृत्यं कुर्वन्ति (भूम्याम्) (मर्त्याः) मनुष्याः (व्यैलबाः) इला=वाक्। वि+इला−अण् समूहार्थे+वण शब्दे−ड। विविधमिलानां वाचां शब्दयितारः (युध्यन्ते) संप्रहरन्ति (यस्याम्) (आक्रन्दः) क्रदि आह्वाने रोदने च−क्विप्। कोलाहलशीलाः (यस्याम्) (वदति) ध्वनति (दुन्दुभिः) बृहड्ढक्का (सा) (नः) अस्माकम् (भूमिः) (प्रणुदताम्) प्रेरयतु (सपत्नान्) शत्रून् (असपत्नम्) अशत्रुम् (मा) माम् (पृथिवी) (कृणोतु) करोतु ॥

४२ यस्यामन्नं व्रीहियवौ

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यस्या॒मन्नं॑ व्रीहिय॒वौ यस्या॑ इ॒माः पञ्च॑ कृ॒ष्टयः॑।
भूम्यै॑ प॒र्जन्य॑पत्न्यै॒ नमो॑ऽस्तु व॒र्षमे॑दसे ॥

४२ यस्यामन्नं व्रीहियवौ ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. On whom is food, rice-and-barley; whose are these five races
    (kṛṣṭí)—to the earth, whose spouse is Parjanya, fattened (-médas) by
    the rain, be homage.
Notes

With the irregular, but not infrequent, combination yásye ’mā́ḥ in
b, the verse is a regular anuṣṭubh; for the epithet svarāj of
the Anukr. there is no ⌊sufficient⌋ reason. Ppp. reads for b yatre
’māṣ pañca gṛṣṭayaḥ
, and ends with -medhase. Kāuś. uses the verse at
24. 38 (next after vs. 38), and at 137. 24, with homage to the ⌊earth
(bhūmi)⌋.

Griffith

On whom is food, barley and rice, to whom these Races Five belong, Homage to her, P arjanya’s wife, to her whose marrow is the rain!

पदपाठः

यस्या॑म्। अन्न॑म्। व्री॒हि॒ऽय॒वौ। यस्याः॑। इ॒माः। पञ्च॑। कृ॒ष्टयः॑। भूम्यै॑। प॒र्जन्य॑ऽपत्न्यै। नमः॑। अ॒स्तु॒। व॒र्षऽमे॑दसे। १.४२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • स्वराडनुष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्याम्) जिस [भूमि] पर (अन्नम्) अन्न, (व्रीहियवौ) चावल और जौ हैं, (यस्याः) जिस के [ऊपर] (पञ्च) पाँच [पृथिवी, जल, तेज, वायु और आकाश] से सम्बन्धवाले (इमाः) यह (कृष्टयः) मनुष्य हैं। (वर्षमेदसे) वर्षा से स्नेह रखनेवाली, (पर्जन्यपत्न्यै) मेघ से पालन की गयी (भूम्यै) उस भूमि के लिये (नमः अस्तु) [हमारा] अन्न होवे ॥४२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पृथिवी के हित के लिये पृथिवी आदि पाँच तत्त्वों से उपकार लेकर अन्न आदि प्राप्त करें ॥४२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४२−(यस्याम्) भूम्याम् (अन्नम्) (व्रीहियवौ) (यस्याः) (इमाः) दृश्यमानाः (पञ्च) पृथिव्यादिपञ्चभूतैः संबद्धाः (कृष्टयः) अ० ३।२४।३। मनुष्याः−निघ० २।३। (भूम्यै) (पर्जन्यपत्न्यै) मेघेन पालनीयायै (नमः) अन्नम्−निघ० २।७। (अस्तु) (वर्षमेदसे) ञिमिदा स्नेहने−असुन्। वर्षाभिः स्नेहशीलायै ॥

४३ यस्याः पुरो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यस्याः॒ पुरो॑ दे॒वकृ॑ताः॒ क्षेत्रे॒ यस्या॑ विकु॒र्वते॑।
प्र॒जाप॑तिः पृथि॒वीं वि॒श्वग॑र्भा॒माशा॑माशां॒ रण्यां॑ नः कृणोतु ॥

४३ यस्याः पुरो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Whose are the god-made strongholds; in whose field [men] fall out
    (? vi-kṛ)—the earth, womb of everything, let Prajāpati make pleasant
    (ráṇya) to us, spot by spot.
Notes

⌊BR. render viśvágarbha by ‘Alles im Schoosse tragend.’⌋ Ppp. reads
yasyāṁ both times for yasyāḥ; also, at the end, niṣ ṭaṇotu. The
Anukr. is more than usually scrupulous in calling the verse virāj.
Read in b vikurváte.

Griffith

Whose castles are the work of Gods, and men wage war upon her plain The Lord of Life make Prithivī, who beareth all things in her womb, pleasant to us on every side!

पदपाठः

यस्याः॑। पुरः॑। दे॒वऽकृ॑ताः। क्षेत्रे॑। यस्याः॑। वि॒ऽकु॒र्वते॑। प्र॒जाऽप॑तिः। पृ॒थि॒वीम्। वि॒श्वऽग॑र्भाम्। आशा॑म्ऽआशाम्। रण्या॑म्। नः॒। कृ॒णो॒तु॒। १.४३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • विराडास्तारपङ्क्तिः
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्याः) जिसके (पुरः) नगर [राजभवन, गढ़ आदि] (देवकृताः) विद्वानों के बनाये हैं, (यस्याः) जिसके (क्षेत्रे) खेत में [मनुष्य] (विकुर्वते) विविध कर्म करते हैं। (प्रजापतिः) प्रजापति [परमेश्वर] (विश्वगर्भाम्) सब के गर्भ (पृथिवीम्) पृथिवी को (आशामाशाम्) दिशा-दिशा में (नः) हमारे लिये (रण्याम्) रमणीय (कृणोतु) करे ॥४३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस भूमि पर धर्मात्मा पुरुष राजभवन, कार्यालय आदि बनाकर अनेक प्रकार से उन्नति के काम करते हैं और जिस में से अनेक रत्न उत्पन्न होते हैं, उस पर परमात्मा हमें धर्म में स्थिर रखकर सर्वत्र प्रसन्न रक्खे ॥४३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४३−(यस्याः) (पुरः) नगर्य्यः। राजभवनदुर्गादयः (देवकृताः) विद्वद्भिर्निर्मिताः (क्षेत्रे) प्रदेशे (यस्याः) (विकुर्वते) विविधकर्माणि कुर्वन्ति मनुष्याः (प्रजापतिः) प्रजापालकः परमेश्वरः (पृथिवीम्) (विश्वगर्भाम्) सर्वस्य गर्भभूताम् (आशामाशाम्) प्रतिदिशम् (रण्याम्) अ० ९।३।६। रमणीयाम्−निरु० ६।३३। (नः) अस्मभ्यम् (कृणोतु) करोतु ॥

४४ निधिं बिभ्रती

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

नि॒धिं बिभ्र॑ती बहु॒धा गुहा॒ वसु॑ म॒णिं हिर॑ण्यं पृथि॒वी द॑दातु मे।
वसू॑नि नो वसु॒दा रास॑माना दे॒वी द॑धातु सुमन॒स्यमा॑ना ॥

४४ निधिं बिभ्रती ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Bearing treasure [and] good in many places hiddenly, let the earth
    give me jewel (maṇí), gold; giver of good, bestowing good things on
    us, let the divine one assign [them to us] with favoring mind.
Notes

Ppp. ⌊puts the verse after our 30, and⌋ reads at end of b dadhātu
naḥ
. Kāuś. quotes the verse at 24. 39, as used by one who desires
jewels or gold. ⌊So Keś., p. 322: also SPP. (maṇihiraṇyādikāmaḥ) at p.
201¹⁸; but at 201²⁶ he cites the sūtra with Bl’s reading (maṇiṁ
hir-
); cf. Caland, p. 66.⌋

Griffith

May Earth the Goddess, she who bears her treasure stored up in many a place, gold, gems, and riches, Giver of opulence, grant great possessions to us bestowing them with love and favour.

पदपाठः

नि॒ऽधिम्। बिभ्र॑ती। ब॒हु॒ऽधा। गुहा॑। वसु॑। म॒णिम्। हिर॑ण्यम्। पृ॒थि॒वी। द॒दा॒तु॒। मे॒। वसू॑नि। नः॒। व॒सु॒ऽदाः। रास॑माना। दे॒वी। द॒धा॒तु॒। सु॒ऽम॒न॒स्यमा॑ना। १.४४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • जगती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (गुहा) अपनी गुहा [गढ़े] में (निधिम्) निधि [धन का कोश] (बहुधा) अनेक प्रकार (बिभ्रती) रखती हुई (पृथिवी) पृथिवी (मे) मुझे (वसु) धन (मणिम्) मणि और (हिरण्यम्) सुवर्ण (ददातु) देवे। (वसुदाः) धन देनेवाली, (वसूनि) धनों को (रासमाना) देती हुई (देवी) वह देवी [उत्तम गुणवाली पृथिवी] (सुमनस्यमाना) प्रसन्न मन होकर (नः दधातु) हमारा पोषण करे ॥४४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो विद्वान् मनुष्य पृथिवी को खोजते हैं, वे खानों में से अनेक रत्न और सुवर्ण आदि पाकर प्रसन्नचित्त होते हैं ॥४४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४४−(निधिम्) धनसञ्चयम् (बिभ्रती) धरन्ती (बहुधा) अनेकप्रकारेण (गुहा) गुहायाम्। मर्ते (वसु) धनम् (मणिम्) (हिरण्यम्) सुवर्णम् (पृथिवी) (ददातु) (मे) मह्यम् (वसूनि) धनानि (नः) अस्मभ्यम् (वसुदाः) धनदात्री (रासमाना) रासतिर्दानकर्मा−निघ० ३।२०। ददती (देवी) दिव्यगुणा (दधातु) पोषतु (सुमनस्यमाना) अ० १।३५।१। शोभनमनस्का सती ॥

४५ जनं बिभ्रती

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

जनं॒ बिभ्र॑ती बहु॒धा विवा॑चसं॒ नाना॑धर्माणं पृथि॒वी य॑थौक॒सम्।
स॒हस्रं॒ धारा॒ द्रवि॑णस्य मे दुहां ध्रु॒वेव॑ धे॒नुरन॑पस्फुरन्ती ॥

४५ जनं बिभ्रती ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let the earth, bearing in many places people of different speech, of
    diverse customs (-dhárman), according to their homes, yield (duh) me
    a thousand streams of property, like a steady (dhruvá) unresisting
    milch-cow.
Notes

Ppp. reads in a janaṁ yaṁ bibhratī bahuvācasaṁ, and in c nas
for me. The Anukr. does not heed that the last pāda in this verse, and
the last two in vs. 44, are triṣṭubh. ⌊Keś., p. 322³¹, couples this vs.
with the preceding: cf. note to vs. 44.⌋

Griffith

Earth, bearing folk of many a varied language with divers rites as suits their dwelling-places, Pour, like a constant cow that never faileth, a thousand streams of treasure to enrich me!

पदपाठः

जन॑म्। बिभ्र॑ती। ब॒हु॒ऽधा। विऽवा॑चसम्। नाना॑ऽधर्माणम्। पृ॒थि॒वी। य॒था॒ऽओ॒क॒सम्। स॒हस्र॑म्। धाराः॑। द्रवि॑णस्य। मे॒। दु॒हा॒म्। ध्रु॒वाऽइ॑व। धे॒नुः। अन॑पऽस्‍फुरन्ती। १.४५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • जगती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (विवाचसम्) विशेष वचन सामर्थ्यवाले, (नानाधर्माणम्) अनेक गुणवाले (जनम्) जन [मनुष्यसमूह] को (यथौकसम्) स्थान के अनुसार (बहुधा) बहुत प्रकार से (बिभ्रती) धारण करती हुई (पृथिवी) पृथिवी, (ध्रुवा) दृढ़ स्वभाववाली, (अनपस्फुरन्ती) निश्चल (धेनुः इव) गौ के समान, (मे) मेरे लिये (द्रविणस्य) धन की (सहस्रम्) सहस्र (धाराः) धाराएँ (दुहाम्) दुहे ॥४५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे गौ अल्पमूल्य तृण आदि खाकर गोपाल की चतुराई के अनुसार बहुमूल्य दूध देती है, वैसे ही मनुष्य परिश्रम से अनेक विद्याएँ और अनेक गुण प्राप्त करके पृथिवी पर अपनी योग्यता के अनुसार बहुत प्रकार से धनवान् होवें ॥४५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४५−(जनम्) मनुष्यसमूहम् (बिभ्रती) धरन्ती (बहुधा) (विवाचसम्) वि+वचस्−अण्। विशेषेण वचांसि वचनसामर्थ्यानि यस्य तम् (नानाधर्माणम्) बहुगुणवन्तम् (पृथिवी) (यथौकसम्) अव्ययीभावे शरत्प्रभृतिभ्यष्टच्। पा० ५।४।१०७। इति बाहुलकाट् टच्। यथास्थानम्। योग्यतामनुसृत्य (सहस्रम्) बहु (धाराः) प्रवाहान् (द्रविणस्य) धनस्य (मे) मह्यम् (दुहाम्) दुग्धाम्। प्रपूरयतु (ध्रुवा) दृढस्वभावा (इव) यथा (धेनुः) गौः (अनपस्फुरन्ती) अ० ९।१।७। निश्चलन्ती ॥

४६ यस्ते सर्पो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यस्ते॑ स॒र्पो वृश्चि॑कस्तृ॒ष्टदं॑श्मा हेम॒न्तज॑ब्धो भृम॒लो गुहा॒ शये॑।
क्रिमि॒र्जिन्व॑त्पृथिवि॒ यद्य॒देज॑ति प्रा॒वृषि॒ तन्नः॒ सर्प॒न्मोप॑ सृप॒द्यच्छि॒वं तेन॑ नो मृड ॥

४६ यस्ते सर्पो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What stinging (vṛ́ścika) harsh-biting serpent of thine lies in
    secret, winter-harmed, torpid (? bhṛmalá); whatever worm, O earth,
    becoming lively, stirs in the early rainy season—let that, crawling, not
    crawl upon us; be thou gracious to us with that which is propitious.
Notes

Ppp. reads in a vṛścakas, and for b ff. hemantalabdho
bhramalo (!) kṛmir lisaṁ pṛthivyāi prāvṛṣī yad ejati
. The treatment of
krímis in c as neuter is very strange. ⌊Is it a collective neuter
like Gewürm? cf. Noun-Inflection, JAOS. x. 570.⌋ In the description
of the verse (11 + 12: 7 + 8 + 8 + 8 = 54) by the Anukr. there is
perhaps something omitted (or we are to read virāṭ śakvarī for
parāś-). The verse is used according to Kāuś. 50. 17 (with ⌊iii. 26
(see introduction thereto) and 27 and⌋ vi. 56. 1) in the removal of
vermin; also, according to 139. 8, with a number of other verses about
serpents and the like; and it is reckoned to the rāudra gaṇa (note to
Kāuś. 50. 13). In Vāit. 29. 10 it accompanies a libation to Rudra.

Griffith

Thy snake, thy sharply stinging scorpion, lying concealed, be- wildered, chilled with cold of winter, The worm, O Prithivi, each thing that in the Rains revives and stirs, Creeping, forbear to creep on us! With all things gracious bless thou us.

पदपाठः

यः। ते॒। स॒र्पः। वृश्चि॑कः। तृ॒ष्टऽदं॑श्मा। हे॒म॒न्तऽज॑ब्धः। भृ॒म॒लः। गुहा॑। शये॑। क्रिमिः॑। जिन्व॑त्। पृ॒थि॒वि॒। यत्ऽय॑त्। एज॑ति। प्रा॒वृषि॑। तत्। नः॒। सर्प॑त्। मा। उप॑। सृ॒प॒त्। यत्। शि॒वम्। तेन॑। नः॒। मृ॒ड॒। १.४६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • षट्पदानुष्टुब्गर्भा पराशक्वरी
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (तृष्टदंश्मा) डंक मारने से पियास उत्पन्न करनेवाला (सर्पः) साँप [वा] (वृश्चिकः) बिच्छू (हेमन्तजब्धः) ठण्ड से ठिठरा हुआ, (भृमलः) भ्रमल [घबड़ाता हुआ] (ते) तेरे (गुहा) गढ़े में (शये) सोता है। (क्रिमिः) [जो] कीड़ा और (यद्यत्) जो-जो (प्रावृषि) वर्षा ऋतु में (जिन्वत्) प्रसन्न होता हुआ (एजति) रेंगता है, (पृथिवि) हे पृथिवि ! (तत्) वह (सर्पत्) रेंगता हुआ [जन्तु] (नः) हम पर (मा उप सृपत्) आकर न रेंगे, (यत्) जो कुछ (शिवम्) मङ्गल है, (तेन) उस से (नः) हमें (मृड) सुखी कर ॥४६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सदा सावधान रहें कि सब ऋतुओं में दुष्ट जीव-जन्तुओं से उन्हें क्लेश न होवे ॥४६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४६−(यः) (ते) तव (सर्पः) भुजङ्गः (वृश्चिकः) अ० १०।४।९। कीटभेदः (तृष्टदंश्मा) दंश−मनिन्। यस्य दंशनेन तृषा भवति सः (हेमन्तजब्धः) जभ हिंसायाम्−क्त। हेमन्तेन हिंसितः (भृमलः) वृषादिभ्यश्चित्। उ० १।१०६। भ्रमु अनवस्थाने−कलप्रत्ययः संप्रसारणं च। अनवस्थितमनाः (गुहा) गर्ते (शये) तलोपः। शेते (क्रिमिः) क्षुद्रजन्तुः (जिन्वत्) तृप्यत् (पृथिवि) (यद्यत्) (एजति) चेष्टते (प्रावृषि) क्विब् वचिप्रच्छिश्रि०। उ० २।५७। प्र+वृषु सेचने−क्विप् दीर्घश्च। वर्षाकाले (तत्) सत्त्वम्। जन्तुः (नः) अस्मान् (सर्पत्) सर्पणं कुर्वत् (उप) समीपे (मा सृपत्) न सर्पतु (यत्) (शिवम्) मङ्गलम् (तेन) (नः) अस्मान् (मृड) सुखय ॥

४७ ये ते

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ये ते॒ पन्था॑नो ब॒हवो॑ ज॒नाय॑ना॒ रथ॑स्य॒ वर्त्मान॑सश्च॒ यात॑वे।
यैः सं॒चर॑न्त्यु॒भये॑ भद्रपा॒पास्तं पन्था॑नं जयेमानमि॒त्रम॑तस्क॒रं यच्छि॒वं तेन॑ नो मृड ॥

४७ ये ते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What many roads thou hast, for people to go upon, a track
    (vártman) for the chariot, and for the going of the cart, by which
    (pl.) men of both kinds, excellent and evil, go about—that road, free
    from enemies, free from robbers, may we conquer; be thou gracious to us
    with that which is propitious.
Notes

Ppp. reads bahudhā (for bahavas) in a, yebhiś car- at
beginning of c, and panthām in d; and it omits the last pāda
⌊repeated from vs. 46⌋. The pratīka (ye te panthānaḥ), quoted in
Kāuś. 50. 1, might refer either to this verse or to vii. 55. 1; the
comm. to vii. 55 declares the latter to be intended.

Griffith

Thy many ways on which the people travel, the road for car and wain to journey over, Thereon meet both the good and bad, that pathway may we attain without a foe or robber. With all things gracious bless thou us.

पदपाठः

ये। ते॒। पन्था॑नः। ब॒हवः॑। ज॒न॒ऽअय॑नाः। रथ॑स्य। वर्त्म॑। अन॑सः। च॒। यात॑वे। यैः। स॒म्ऽच॑रन्ति। उ॒भये॑। भ॒द्र॒ऽपा॒पाः। तम्। पन्था॑नम्। ज॒ये॒म॒। अ॒न॒मि॒त्रम्। अ॒त॒स्क॒रम्। यत्। शि॒वम्। तेन॑। नः॒। मृ॒ड॒। १.४७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • षट्पदानुष्टुब्गर्भा परातिशक्वरी
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (ते) तेरे (बहवः) बहुत से (पन्थानः) मार्ग (जनायनाः) मनुष्यों के चलने योग्य हैं, [और जो] (रथस्य) रथ के (च) और (अनसः) छकड़े [वा अन्न] के (यातवे) चलने के लिये (वर्त्म) मार्ग है। (यैः) जिनसे (उभये) दोनों (भद्रपापाः) भले और बुरे [प्राणी] (संचरन्ति) चले चलते हैं, (तम्) उस (अनमित्रम्) शत्रुरहित और (अतस्करम्) तस्करशून्य (पन्थानम्) मार्ग को (जयेम) हम जीतें, (यत्) जो कुछ (शिवम्) मङ्गल है, (तेन) उससे (नः) हमें (मृड) सुखी कर ॥४७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य पृथिवी पर ऊँचे-नीचे, भले-बुरे मार्गो का विचार करके सुमार्ग पर चलते हैं, वे कुमार्गियों से बचकर सदा सुखी रहते हैं ॥४७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४७−(ये) (ते) तव (पन्थानः) मार्गाः (बहवः) नानाप्रकाराः (जनायनाः) जन+अयनाः। मनुष्यैर्गन्तुं योग्याः (रथस्य) रमणीययानस्य (वर्त्म) मार्गः (अनसः) अन जीवने−असुन्। शकटस्य। अन्नस्य। (च) (यातवे) यातुम् (यैः) मार्गैः (संचरन्ति) विचरन्ति (उभये) द्वित्वविशिष्टाः (भद्रपापाः) साध्वसाधवः (तम्) पन्थानम् (जयेम) जयेन प्राप्नुयाम (अनमित्रम्) अशत्रुम् (अतस्करम्) अचौरम्। अन्यत् पूर्ववत्−म० ४६ ॥

४८ मल्वं बिभ्रती

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

म॒ल्वं बिभ्र॑ती गुरु॒भृद्भ॑द्रपा॒पस्य॑ नि॒धनं॑ तिति॒क्षुः।
व॑रा॒हेण॑ पृथि॒वी सं॑विदा॒ना सू॑क॒राय॒ वि जि॑हीते मृ॒गाय॑ ॥

४८ मल्वं बिभ्रती ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Bearing the fool, bearer of what is heavy, enduring (titikṣú) the
    death (? nidhána) of the excellent and of the evil, the earth, in
    concord with the boar, opens itself to the wild (mṛgá) hog.
Notes

Ludwig understands gurubhṛ́t in a as ‘bearer of the wise’ (guru
as antithesis of malva); the Pet. Lexx. translate nidhána as
‘residence’ (and so Bruce, ‘abode’). Ppp. has at the beginning a very
different text: sarpaṁ bibhratī surabhir; and it reads sūkareṇa in
c and varāhāya in d.

Griffith

Supporting both the foolish and the weighty she bears the death both of the good and evil. In friendly concord with the boar, Earth opens herself for the wild swine that roams the forest.

पदपाठः

म॒ल्वम्। बिभ्र॑ती। गु॒रु॒ऽभृत्। भ॒द्र॒ऽपा॒पस्य॑। नि॒ऽधन॑म्। ति॒ति॒क्षुः। व॒रा॒हेण॑। पृ॒थि॒वी। स॒म्ऽवि॒दा॒ना। सू॒क॒राय॑। वि। जि॒ही॒ते॒। मृ॒गाय॑। १.४८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • पुरोऽनुष्टुप्त्रिष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मल्वम्) धारण सामर्थ्य को और (गुरुभृत्) गुरुत्व [भारीपन] रखनेवाले सामर्थ्य को (बिभ्रती) धारण करनेवाली, (भद्रपापस्य) भले और बुरे के (निधनम्) कुल [समूह] को (तितिक्षुः) सहनेवाली, (वराहेण) मेघ के साथ (संविदाना) मिली हुई (पृथिवी) पृथिवी (सूकराय) सुन्दर [सुखद] किरणोंवाला (मृगाय) गमनशील सूर्य के लिये (वि) विविध प्रकार (जिहीते) प्राप्त होती है ॥४८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - पृथिवी अपने धारण आकर्षण से सब पदार्थों को अपने पर रखती है और सूर्य के सन्मुख चलने से जल आकाश में चढ़ता और बरसता है। उस पृथिवी को उपयोगी बनाने में मनुष्य प्रयत्न करें ॥४८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४८−(मल्वम्) कॄगॄशॄदॄभ्यो वः। उ० १।१५५। मल धारणे−व। धारणसामर्थ्यम् (बिभ्रती) धारयन्ती (गुरुभृत्) कृग्रोरुच्च। उ० १।२४। गॄ विज्ञापने−कु, उत्त्वं च+डुभृञ् धारणपोषणयोः−क्विप्। गुरुत्वस्य धारकं सामर्थ्यम् (भद्रपापस्य) साध्वसाधुपुरुषस्य (निधनम्) कुलम्। समूहम् (तितिक्षुः) तिज क्षमायाम्−स्वार्थे सन्−उ प्रत्ययः। सहमाना (वराहेण) अ० ८।७।२३। मेघेन−निरु० ५।४। (पृथिवी) (संविदाना) अ–० २।२८।२। संपूर्वाद् वेत्तेरकर्मकाद् आत्मनेपदम्, लटः शानच्। संगच्छमाना (सूकराय) ॠदोरप्। पा० ३।३।५७। सु+कॄ विदारणे−अप्। उपसर्गस्य दीर्घः। सुष्ठु सुखदाः कराः किरणा यस्य तस्मै (वि) विविधम् (जिहीते) ओहाङ् गतौ। गम्यते। प्राप्यते (मृगाय) मृग अन्वेषणे गतौ च−क। मृगो मार्ष्टेर्गतिकर्मणः−निरु० १३।३। अन्वेषकाय गतिशीलाय वा सूर्याय ॥

४९ ये त

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ये त॑ आर॒ण्याः प॒शवो॑ मृ॒गा वने॑ हि॒ताः सिं॒हा व्या॒घ्राः पु॑रु॒षाद॒श्चर॑न्ति।
उ॒लं वृकं॑ पृथिवि दु॒च्छुना॑मि॒त ऋ॒क्षीकां॒ रक्षो॒ अप॑ बाधया॒स्मत् ॥

४९ ये त ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What forest animals of thine, wild beasts set in the woods, lions,
    tigers, go about man-eating—the jackal (? ulá), the wolf, O earth,
    misfortune, the ṛkṣī́kā, the demon, do thou force (bādh) away from us
    here.
Notes

The translation here given agrees with its predecessors in assuming
emendation of in a to te. Some of our mss. read in c-d
itá rakṣī́kām; and Bp. has after it ṛ́kṣaḥ. Ppp. gives eta rakṣīkāṁ
rakṣo ‘pa bādhā mat;
and, at the beginning, yatārṇyāṣ paś-; ⌊and
ulaṁ in c like our text⌋. With a compare the nearly identical
xi. 2. 24 a; in spite of their agreement, one can hardly help
regarding mṛgās as an intruded word. The Anukr. apparently accepts the
two redundant syllables as making up for the deficiency in b and
d, since 14 + 11: 12 11 = 48 syllables. ⌊As to the “man-eaters,” cf.
note to xv. 5. 7.⌋

Griffith

All sylvan beasts of thine that love the woodlands, man-eaters,. forest-haunting, lions, tigers, Hyena, wolf, Misfortune, evil spirit, drive from us, chase the demons to a distance.

पदपाठः

ये। ते। आ॒र॒ण्याः। प॒शवः॑। मृ॒गाः। वने॑। हि॒ताः। सिं॒हाः। व्या॒घ्रा। पु॒रु॒ष॒ऽअदः॑। चर॑न्ति। उ॒लम्। वृक॑म्। पृ॒थि॒व‍ि॒। दु॒च्छुना॑म्। इ॒तः। ऋ॒क्षीका॑म्। रक्षः॑। अप॑। बा॒ध॒य॒। अ॒स्मत्। १.४९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • जगती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ये ते) वे जो (आरण्याः) वन में उत्पन्न हुए (पशवः) पशु (हितः) हितकारी (मृगाः) हरिण आदि और (पुरुषादः) मनुष्यों के खानेवाले (सिंहाः) [हिंसक] सिंह और (व्याघ्राः) [सूँघ कर मारनेवाले] बाघ आदि (वने) वन के बीच (चरन्ति) चरते-फिरते हैं। [उनमें से] (पृथिवि) हे पृथिवि ! (उलम्) [उष्ण स्वभाववाले] बनबिलाव, (वृकम्) भेड़िये को और (दुच्छुनाम्) दुष्ट गतिवाली (ऋक्षीकाम्) [हिंसक] रीछिनी आदि, (रक्षः) राक्षस [दुष्ट जीवों] को (इतः) यहाँ पर (अस्मत्) हम से (अप बाधय) हटा दे ॥४९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को उचित है कि हितकारी पशुओं की रक्षा करके हिंसक प्राणियों का नाश करें ॥४९॥ इस मन्त्र के प्रथम पाद का मिलान अ० ११।२।२४। के प्रथम पाद से करो ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४९−(ये) (ते) प्रसिद्धाः (आरण्याः) अरण्याण् णो वक्तव्यः। वा० पा० ४।२।१०४। अरण्य-ण। अरण्ये भवाः (पशवः) (मृगाः) हरिणाः (वने) (हिताः) हितकराः (सिंहाः) अ० ४।८।७। हिंसका जन्तुविशेषाः (व्याघ्राः) अ० ४।३।१। विशिष्टाघ्राणमात्रेण प्राणिनां हिंसकजन्तुविशेषाः (पुरुषादः) मनुष्यभक्षकाः (चरन्ति) विचरन्ति (उलम्) उल दाहे सौत्रो धातुः−क। उष्णस्वभावं वनमार्जारम् (वृकम्) अ० ३।४।१। हिंस्रजन्तुविशेषम् (पृथिवी) (दुच्छुनाम्) टुदु उपतापे−क्विप् तुक् च, शुन गतौ−क, टाप्। दुष्टगतिम् (इतः) अस्मात् स्थानात् (ऋक्षीकाम्) कषिदूषिभ्यामीकन्। उ० ४।१६। ऋक्ष हिंसायाम्−ईकन्। हिंसिकां भल्लूकीम् (रक्षः) राक्षसम् (अपबाधय) अपबाधस्व। दूरीकुरु (अस्मत्) ॥

५० ये गन्धर्वा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ये ग॑न्ध॒र्वा अ॑प्स॒रसो॒ ये चा॒रायाः॑ किमी॒दिनः॑।
पि॑शा॒चान्त्सर्वा॒ रक्षां॑सि॒ तान॒स्मद्भू॑मे यावय ॥

५० ये गन्धर्वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What Gandharvas, Apsarases [there are], and what arā́yas,
    kimīdíns:
    the piśācás, all demons—them do thou keep away from us, O
    earth (bhū́mi).
Notes

Ppp. combines in a gandharvā ’ps-, and has at the end bhāume
yāvayaḥ
.

Griffith

Gandharvas and Apsarases, Kimidins, and malignant sprites, Pisachas all, and Rakshasas, these keep thou, Earth! afar from us.

पदपाठः

ये। ग॒न्ध॒र्वाः। अ॒प्स॒रसः॑। ये। च॒। अ॒रायाः॑। कि॒मी॒दिनः॑। पि॒शा॒चान्। सर्वा॑। रक्षां॑सि। तान्। अ॒स्मत्। भू॒मे॒। य॒व॒य॒। १.५०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (गन्धर्वाः) दुखदायी हिंसक (अप्सरसः) विरुद्ध चलनेवाले हैं, (च) और (ये) जो (अरायाः) कंजूस (किमीदिनुः) दूसरे पुरुष हैं। (भूमे) हे भूमि ! (तान्) उन (पिशाचान्) पिशाचों [मांसभक्षकों, पीड़ाप्रदों] और (सर्वा) सब (रक्षांसि) राक्षसों को (अस्मत्) हम से (यावय) अलग रख ॥५०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विवेकी मनुष्यों को योग्य है कि पृथिवी पर के दुष्ट प्राणियों और रोगों का नाश करके धर्मात्माओं को सुखी रक्खें ॥५०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५०−(ये) (गन्धर्वाः) अ० ८।६।१९। गन्ध अर्दने−अच्+अर्व हिंसायाम्−अच्, शकन्ध्वादित्वात् पररूपम्। दुःखदायिपीडकाः (अप्सरसः) म० २३। सर्तेरप्पूर्वादसिः। उ० ४।२३७। अप्+सृ गतौ−असि उपसर्गान्त्यलोपः। अपसरणशीलान्। विरुद्धगामिनः (ये) (च) (अरायाः) अ० ११।६।१६। अदातारः (किमीदिनः) अ० १।७।१। पिशुनाः (पिशाचान्) अ० १।१६।३। मांसभक्षकान्। पीडाप्रदान् (सर्वा) सर्वाणि (रक्षांसि) राक्षसान् (तान्) (अस्मत्) (भूमे) (यावय) वियोजय ॥

५१ यां द्विपादः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यां द्वि॒पादः॑ प॒क्षिणः॑ सं॒पत॑न्ति हं॒साः सु॑प॒र्णाः श॑कु॒ना वयां॑सि।
यस्यां॒ वातो॑ मात॒रिश्वेय॑ते॒ रजां॑सि कृ॒ण्वंश्च्या॒वयं॑श्च वृ॒क्षान्।
वात॑स्य प्र॒वामु॑प॒वामनु॑ वात्य॒र्चिः ॥

५१ यां द्विपादः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. She to whom two-footed winged-ones fly together, swans, eagles,
    hawks, birds; on whom the wind, Mātariśvan, goes about, making clouds of
    dust (? rájas) and setting in motion the trees—flame (arcís) blows
    after the forth-blowing, the toward-blowing, of the wind.
Notes

The second pāda is identical with xi. 2. 24 b. Upavā́m is
metrically an intrusion into e: with the pāda is to be compared RV.
i. 148. 4 c (which, however, casts little light upon it). Ppp. reads
in c-d vātayate mātariśvā raj-; and, in e, it omits upavām,
and has at the end arciṣe. The Anukr. appears to divide the last
redundant pāda into two, an anuṣṭubh (8) and a kakubh (6); the whole
makes two syllables more than a proper śakvarī (11 + 11: 11 + 11: 8 +
6 = 58). ⌊Hopkins, JAOS. xx.² 217, thinks that fire caused by the
friction of branches is here alluded to, and cites parallels. We may add
Indische Sprüche, 3759, which is very clear.⌋

Griffith

To whom the winged bipeds fly together, birds of each various kind, the swans, the eagles; On whom the Wind comes rushing, Matarisvan, rousing the dust and causing trees to tremble, and flame pursues the blast. hither and thither;

पदपाठः

याम्। द्वि॒ऽपादः॑। प॒क्षिणः॑। स॒म्ऽपत॑न्ति। हं॒साः। सु॒ऽप॒र्णाः। श॒कु॒नाः। वयां॑सि। यस्या॑म्। वातः॑। मा॒त॒रिश्वा॑। ईयते॑। रजां॑सि। कृ॒ण्वन्। च्य॒वय॑न्। च॒। वृ॒क्षान्। वात॑स्य। प्र॒ऽवाम्। उ॒प॒ऽवान्। अनु॑। वा॒ति॒। अ॒र्चिः। १.५१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्र्यवसाना षट्पदानुष्टुब्गर्भा ककुम्मती शक्वरी
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (याम्) जिस पर (द्विपादः) दो पाँववाले (पक्षिणः) पक्षी [अर्थात्] (हंसाः) हंस, (सुपर्णाः) बड़े उड़नेवाले, [गरुड़ आदि], (शकुनाः) शक्तिवाले [गिद्ध चील आदि] (वयांसि) पक्षीगण (संपतन्ति) उड़ते रहते हैं। (यस्याम्) जिस पर (मातरिश्वा) आकाश में चलनेवाला (वातः) वायु (रजांसि) जलवाले बादलों को (कृण्वन्) बनाता हुआ (च) और (वृक्षान्) वृक्षों को (च्यावयन्) हिलाता हुआ (ईयते) चलता है। और (अर्चिः) प्रकाश (वातस्य) वायु के (प्रवाम्) फैलाव और (उपवाम् अनु) संकोच के साथ-साथ (वाति) चलता है ॥५१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पक्षियों, वायु, मेघ, प्रकाश आदि के ज्ञान और गुणों से लाभ उठाकर आनन्दित होवें−इस मन्त्र का अन्वय अगले मन्त्र ५२ के साथ है ॥५१॥ इस मन्त्र का दूसरा पाद अ० ११।२।२४। के दूसरे पाद में आया है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५१−(याम्) पृथिवीम् (द्विपादः) पादद्वयोपेताः (पक्षिणः) (संपतन्ति) उड्डीयन्ते (हंसाः) पक्षिविशेषाः (सुपर्णाः) शोभनपतना गरुडादयः (शकुनाः) शक्तिमन्तो गृध्रचिल्लादयः (वयांसि) पक्षिणः (यस्याम्) (वातः) वायुः (मातरिश्वा) अ–० ५।१०।८। अन्तरिक्षगामी (ईयते) गच्छति (रजांसि) अ–० ४।१।४। उदकं रज उच्यते−निरु–० ४।१९। उदकवतो मेघान् (कृण्वन्) कुर्वन्। रचयन् (च्यवयन्) सांहितिको दीर्घः। गमयन्। कम्पयन् (च) (वृक्षान्) (वातस्य) वायोः (प्रवाम्) वा गतौ−क्विप्। प्रकृष्टां गतिम्। प्रसृतिम्। (उपवाम्) समीपगतिम्। संकोचम् (अनु) अनुसृत्य (वाति) गच्छति (अर्चिः) प्रकाशः ॥

५२ यस्यां कृष्णमरुणम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यस्यां॑ कृ॒ष्णम॑रु॒णं च॒ संहि॑ते अहोरा॒त्रे विहि॑ते॒ भूम्या॒मधि॑।
व॒र्षेण॒ भूमिः॑ पृथि॒वी वृ॒तावृ॑ता॒ सा नो॑ दधातु भ॒द्रया॑ प्रि॒ये धाम॑निधामनि ॥

५२ यस्यां कृष्णमरुणम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. On whom the black and the ruddy, combined, [namely] day-and-night,
    [are] disposed upon the earth (bhū́mi); the broad (pṛthivī́) earth
    (bhū́mi), wrapped [and] covered with rain—let her kindly (bhadráyā)
    set us in each loved abode.
Notes

Ppp. reads gṛṣṭam for kṛṣṇam in a, reads and combines saṁbhṛte
‘horātre
in a-b, and reads vṛtāvṛdhā in c, and dhāmnidhāmni
in e. In c is to be understood, with the pada-text, vṛtā́:
ā́॰vṛtā
. An accent-mark under the final is needed in order to
indicate the acute of sā́ in the next line. The verse (11 + 12: 12 + 8

  • 8 = 51)is not well described by the Anukr. ⌊A ca with syllabic
    value, inserted after kṛṣṇám, would be an effective, albeit cheap,
    means of improving the meter of a.⌋ The verse is quoted in Kāuś. 24.
    41 (next after various of the preceding verses), as accompanying a
    mouth-rinsing and head-splashing with rainwater; and pāda c, again,
    in 137. 23, with a sprinkling with water.
Griffith

Earth, upon whom are settled, joined together, the night and day, the dusky and the ruddy, Prithivi compassed by the rain about her, Happily may she stablish us in each delightful dwelling place.

पदपाठः

यस्या॑म्। कृ॒ष्णम्। अ॒रु॒णम्। च॒। संहि॑ते इति॒ सम्ऽहि॑ते। अ॒हो॒रा॒त्रे इति॑। विहि॑ते॒ इति॒ विऽहि॑ते। भूम्या॑म्। अधि॑। व॒र्षेण॑। भूमिः॑। पृ॒थि॒वी। वृ॒ता। आऽवृ॑ता। सा। नः॒। द॒धा॒तु॒। भ॒द्रया॑। प्रि॒ये। धाम॑निऽधामनि। १.५२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • पञ्चपदानुष्टुब्गर्भा परातिजगती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्यां भूम्याम् अधि) जिस भूमि के ऊपर (अरुणम्) सूर्यवाले (च) और (कृष्णम्) काले वर्णवाले (संहिते) आपस में मिले हुए (अहोरात्रे) दिन और राति (विहिते) विधानपूर्वक ठहराये गये हैं। (वर्षेण) मेह से (वृता) लपेटी हुई और (आवृता) ढकी हुई (सा) वह (पृथिवी) चौड़ी (भूमिः) भूमि [आश्रय स्थान] (नः) हमको (भद्रया) कल्याणी मति के साथ (प्रिये धामनिधामनि) प्रत्येक रमणीय स्थान में (दधातु) रक्खे ॥५२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ईश्वरनियम से जिस प्रकार दिन-राति मिले हुए हैं और पृथिवी मेघमण्डल से छायी है, वैसे ही मनुष्य पृथिवी पर उत्तम बुद्धि के साथ रहकर सब स्थानों में आनन्द करें ॥५२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५२−(यस्याम्) (कृष्णम्) कृष्णवर्णम् (अरुणम्) अरुण−अर्शआद्यच्। सूर्येण युक्तम् (च) (संहिते) परस्परमिलिते (अहोरात्रे) रात्रिदिने (विहिते) विधानेन स्थापिते (भूम्याम्) (अधि) उपरि (वर्षेण) वृष्ट्या (भूमिः) (पृथिवी) विस्तृता (वृता) वेष्टिता (आवृता) आच्छादिता (सा) (नः) अस्मान् (दधातु) धरतु (भद्रया) कल्याण्या मेधया (प्रिये) हितकरे (धामनिधामनि) प्रत्येकस्थाने ॥

५३ द्यौश्च म

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

द्यौश्च॑ म इ॒दं पृ॑थि॒वी चा॒न्तरि॑क्षं च मे॒ व्यचः॑।
अ॒ग्निः सूर्य॒ आपो॑ मे॒धां विश्वे॑ दे॒वाश्च॒ सं द॑दुः ॥

५३ द्यौश्च म ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both heaven and earth and atmosphere [have given] me this expanse;
    fire, sun, waters, and all the gods have together given me wisdom
    (medhā́).
Notes

The translation of a, b is doubtful; vyácas may be in apposition
with antárikṣam, and the gift as in the second line. The Anukr. takes
no notice of the irregular combination me ’dam in a, which is
needed to make the verse a simple anuṣṭubh. Ppp. combines māi ’daṁ,
and it has at the end saṁ dadhāu. Not this verse, but vi. 53. 1
(according to the comm. on the latter), is quoted in Kāuś. 10. 20, in a
ceremony for wisdom; ⌊but Dārila understands our verse as the one
intended⌋.

Griffith

Heaven, Earth, the realm of Middle Air have granted me this ample room, Agni, Sun, Waters, all the Gods have joined to give me mental power.

पदपाठः

द्यौः। च॒। मे॒। इ॒दम्। पृ॒थि॒वी। च॒। अ॒न्तरि॑क्षम्। च॒। मे॒। व्यचः॑। अ॒ग्निः। सूर्यः॑। आपः॑। मे॒धाम्। विश्वे॑। दे॒वाः। च॒। सम्। द॒दुः॒। १.५३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • पुरोबार्हतानुष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मुझ को (द्यौः) प्रकाश (च) और (पृथिवी) पृथिवी (च च) और (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष ने (इदम्) यह (व्यचः) विस्तार [दिया है], (मे) मुझ को (अग्निः) अग्नि, (सूर्यः) सूर्य, (आपः) जल (च) और (विश्वे) सब (देवाः) उत्तम पदार्थों ने (मेधाम्) धारणावती बुद्धि (सम्) ठीक-ठीक (ददुः) दी है ॥५३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य संसार के पदार्थों में विज्ञानपूर्वक फैलते चले जाते हैं, वे ही विज्ञानी बुद्धि बढ़ाकर संसार को सुख देते हैं ॥५३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५३−(द्यौः) प्रकाशः (च) (मे) मह्यम् (इदम्) प्रत्यक्षम् (पृथिवी) (च) (अन्तरिक्षम्) (च) (मे) मह्यम् (व्यचः) विस्तारम् (अग्निः) (सूर्यः) (आपः) जलानि (मेधाम्) धारणावतीं बुद्धिम् (विश्वे) सर्वे (देवाः) दिव्यपदार्थाः (च) (सम्) सम्यक् (ददुः) दत्तवन्तः ॥

५४ अहमस्मि सहमान

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॒हम॑स्मि॒ सह॑मान॒ उत्त॑रो॒ नाम॒ भूम्या॑म्।
अ॑भी॒षाड॑स्मि विश्वा॒षाडाशा॑माशां विषास॒हिः ॥

५४ अहमस्मि सहमान ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. I am overpowering, superior by name on the earth (bhū́mi); I am
    subduing, all-overpowering, vanquishing in every region.
Notes

The treatment of the compounds of sah (p. also abhīṣā́ṭ, viśvāṣā́ṭ)
is the subject of several rules in the Prāt. (ii. 82; iii. 1; iv. 70).
⌊Cf. above, iii. 18. 5.⌋ The verse is by Kāuś. 38. 30 prescribed to be
repeated as one goes to an assembly (pariṣad).

  1. When yonder, O divine one, spreading thyself forward, told by the
    gods, thou didst expand (

vi-sṛp

) to greatness, then entered into thee well-being; thou didst make fit
the four directions.

Ppp. at the beginning puts yat before adas; it has in b sṛṣṭā
instead of uktā, and mahitvā (which is better); and in c ā
vāmabhūtam av-
. The Anukr. does not heed the redundant syllable in
a.

Griffith

I am victorious, I am called the lord superior on earth, Triumphant, all-o’erpowering the conqueror on every side

पदपाठः

अ॒हम्। अ॒स्मि॒। सह॑मानः। उत्त॑रः। नाम॑। भूम्या॑म्। अ॒भी॒षाट्। अ॒स्मि॒। वि॒श्वा॒षाट्। आशा॑म्ऽआशाम्। वि॒ऽस॒स॒हिः। १.५४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अहम्) मैं [मनुष्य] (सहमानः) जीतनेवाला और (भूम्याम्) भूमि पर (नाम) नाम के साथ (उत्तरः) अधिक ऊँचा (अस्मि) हूँ। मैं (अभीषाट्) विजयी, (विश्वाषाट्) सर्वविजयी और (आशामाशाम्) प्रत्येक दिशा में (विषासहिः) हरा देनेवाला (अस्मि) हूँ ॥५४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जब मनुष्य योग्यता प्राप्त करके आगे बढ़ता जाता है, तब संसार में कीर्ति बढ़ाकर सब में उच्च पद पाता है ॥५४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५४−(अहम्) मनुष्यः (अस्मि) (सहमानः) अभिभवनशीलः (उत्तरः) उच्चतरः (नाम) नाम्ना। कीर्त्या (भूम्याम्) (अभीषाट्) छन्दसि सहः। पा० ३।२।६३। षह मर्षणे−ण्वि। अन्येषामपि दृश्यते। पा० ६।३।१३७। पूर्वपदस्य दीर्घः। सहेः साडः सः। पा० ८।३।५६। इति षत्वम्। सर्वतो जेता (अस्मि) (विश्वाषाट्) पूर्ववत् सिद्धिः। सर्वजेता (आशामाशाम्) प्रतिदिशम् (विषासहिः) अ० १।२९।६। विविधजयशीलः ॥

५५ अदो यद्देवि

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॒दो यद्दे॑वि॒ प्रथ॑माना पु॒रस्ता॑द्दे॒वैरु॒क्ता व्यस॑र्पो महि॒त्वम्।
आ त्वा॑ सुभू॒तम॑विशत्त॒दानी॒मक॑ल्पयथाः प्र॒दिश॒श्चत॑स्रः ॥

५५ अदो यद्देवि ...{Loading}...

Whitney

अ॒दो यद् दे॑वि॒ प्रथ॑माना पु॒रस्ता॑द् दे॒वैरु॒क्ता व्यस॑र्पो महि॒त्वम्।
आ त्वा॑ सुभू॒तम॑विशत् त॒दानी॒मक॑ल्पयथाः प्र॒दिश॒श्चत॑स्रः ॥५५॥

Griffith

There, when the Gods, O Goddess, named thee, spreading thy wide expanse as thou wast broadening eastward, Then into thee passed many a charm and glory: thou madest for thyself the world’s four regions.

पदपाठः

अ॒दः। यत्। दे॒वि॒। प्रथ॑माना। पु॒रस्ता॑त्। दे॒वैः। उ॒क्ता। वि॒ऽअस॑र्पः। म॒हि॒ऽत्वम्। आ। त्वा॒। सु॒ऽभू॒तम्। अ॒वि॒श॒त्। त॒दानी॑म्। अक॑ल्पयथाः। प्र॒ऽदिशः॑। चत॑स्रः। १.५५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवि) हे देवी ! [उत्तम गुणवाली पृथिवी] (यत्) जब (पुरस्तात्) आगे को (प्रथमाना) फैलती हुई और (देवैः) व्यवहारकुशलों करके (उक्ता) कही गयी तूने (अदः) उस (महित्वम्) महिमा को (व्यसर्पः) फैलाया। (तदानीम्) तब (सुभूतम्) सुभूति [सुन्दर ऐश्वर्य] ने (त्वा) तुझ में (आ सब ओर से (अविशत्) प्रवेश किया, और (चतस्रः) चारों (प्रदिशः) बड़ी दिशाओं को (अकल्पयथाः) तूने समर्थ बनाया ॥५५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जब मनुष्य पृथिवी की विस्तृत महिमा को खोजते हुए आगे बढ़ते हैं, वे ऐश्वर्यवान् होकर सब दिशाओं से समर्थ होते हैं ॥५५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५५−(अदः) तत् (यत्) यदा (देवि) हे दिव्यगुणवति (प्रथमाना) विस्तीर्यमाणा (पुरस्तात्) अग्रे वर्तमाना सती (देवैः) व्यवहारकुशलैः (उक्ता) कथिता (व्यसर्पः) त्वं विस्तारितवती (महित्वम्) महिमानम् (आ) समन्तात् (त्वा) पृथिवीम् (सुभूतम्) सुभूतिम्। महैश्वर्यम् (अविशत्) प्रविष्टम् (तदानीम्) (अकल्पयथाः) त्वं समर्थाः कृतवती (प्रदिशः) प्रकृष्टा दिशाः (चतस्रः) ॥

५६ ये ग्रामा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ये ग्रामा॒ यदर॑ण्यं॒ याः स॒भा अधि॒ भूम्या॑म्।
ये सं॑ग्रा॒माः समि॑तय॒स्तेषु॒ चारु॑ वदेम ते ॥

५६ ये ग्रामा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What villages, what forest, what assemblies, [are] upon the earth
    (bhū́mi), what hosts, gatherings—in them may we speak what is pleasant
    (cā́ru) to thee.
Notes

With the first half-verse may be compared VS. iii. 45 a, b. Ppp.
reads for a ye grāmyā yāny araṇyāni, and for c, d teṣv ahaṁ devi
pṛthvi vibhyāsaṁ mayu satva ca
.

Griffith

In hamlets and in woodland, and in all assemblages on earth, In gatherings, meeting of the folk, we will speak glorious things of thee.

पदपाठः

ये। ग्रामाः॑। यत्। अर॑ण्यम्। याः। स॒भाः। अधि॑। भूम्या॑म्। ये। स॒म्ऽग्रा॒माः। सम्ऽइ॑तयः। तेषु॑। चारु॑। व॒दे॒म॒। ते॒। १.५६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ये ग्रामाः) जो गाँव, (यत् अरण्यम्) जो वन, (याः सभाः) जो सभाएँ (भूम्याम् अधि) भूमि पर हैं। (ये संग्रामाः) जो संग्राम और (समितयः) समितिएँ [सम्मेलन] हैं, (तेषु) उन सब में (ते) तेरा (चारु) सुन्दर यश (वदेम) हम कहें ॥५६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को उचित है कि सब स्थानों, सब अवस्थाओं और राजसभा, न्यायसभा, धर्मसभा आदि में पृथिवी के गुणों की महिमा जानकर और बखानकर देशभक्ति करें ॥५६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५६−(ये) (ग्रामाः) वासस्थानानि (यत्) (अरण्यम्) वनम् (याः) (सभाः) समाजाः (अधि) उपरि (भूम्याम्) (ये) (संग्रामाः) रणक्षेत्राणि (समितयः) सम्मेलनानि (तेषु) (चारु) सुन्दरं यशः (वदेम) कथयेम (ते) तव ॥

५७ अश्व इव

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अश्व॑ इव॒ रजो॑ दुधुवे॒ वि ताञ्जना॒न्य आक्षि॑यन्पृथि॒वीं यादजा॑यत।
म॒न्द्राग्रेत्व॑री॒ भुव॑नस्य गो॒पा वन॒स्पती॑नां॒ गृभि॒रोष॑धीनाम् ॥

५७ अश्व इव ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. As a horse the dust, she has shaken apart those people who dwelt
    upon the earth since (yā́t) she was born—pleasing, going at the head,
    keeper of creation (bhúvana), container of forest trees, of herbs.
Notes

Ppp. reads at the beginning aśvī ’va and is corrupt throughout; ⌊but
it reads gṛbhir like our text⌋. The Anukr. calls the first pāda an
atijagatī rather than admit the abbreviated form ’va for iva.

Griffith

As the horse scattereth the dust, the people who dwelt upon the land, at birth, she scattered, Leader and head of all the world, delightful, the trees’ protectress and the plants’ upholder.

पदपाठः

अश्वः॑ऽइव। रजः॑। दु॒धु॒वे॒। वि। तान्। जना॑न्। ये। आ॒ऽअक्षि॑यन्। पृ॒थि॒वीम्। यात्। आजा॑यत। म॒न्द्रा। अ॒ग्र॒ऽइत्व॑री। भुव॑नस्य। गो॒पाः। वन॒स्पती॑नाम्। गृभिः॑। ओष॑धीनाम्। १.५७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • पुरोऽतिजागता जगती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यात्) जब से (अजायत) वह उत्पन्न हुई है [तब से], (अश्वः इव) जैसे घोड़ा (रजः) धूलि को, [वैसे ही] (मन्द्रा) हर्षदायिनी, (अग्रेत्वरी) अग्रगामिनी, (भुवनस्य) संसार की (गोपाः) रक्षाकारिणी, (वनस्पतीनाम्) वनस्पतियों [पीपल आदि] और (ओषधीनाम्) ओषधियों [सोमलता अन्न आदि] की (गृभिः) ग्रहण स्थान उस [पृथिवी] ने (तान् जनान्) उन मनुष्यों को (वि दुधुवे) हिला दिया है, (ये) जिन्होंने (पृथिवीम्) पृथिवी को (आक्षियन्) सताया है ॥५७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिन अभिमानियों ने पृथिवी पर अत्याचार करके मस्तक उठाया है, वे ईश्वरनियम से सदा नष्ट हुए हैं, जैसे घोड़ा थकावट उतारने को पृथिवी पर लोटकर शरीर की मलिन धूलि हिलाकर गिरा देता है ॥५७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५७−(अश्वः) तुरङ्गः (इव) यथा (रजः) धूलिम् (दुधुवे) धुञ्, धूञ् कम्पने−लिट्। कम्पितवती (वि) विविधम् (तान्) (जनान्) (ये) (आ−अक्षियन्) क्षि क्षये हिंसायां च−लङ्, तुदादित्वं छान्दसम्। अक्षयन्। हिंसितवन्तः (पृथिवीम्) (यात्) यत्कालमारभ्य (अजायत) उत्पन्ना अभूत् (मन्द्राः) स्फायितञ्चि०। उ० २।१३। मदि स्तुतिमोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु-रक्। मोदयित्री (अग्रेत्वरी) शीङ्क्रुशिरुहिजि०। उ० ४।११४। अग्र+इण् गतौ−क्वनिप्। वनो र च। पा० ४।१।७। ङीब्रेफौ। अग्रगामिनी (भुवनस्य) संसारस्य (गोपाः) गोपायतीति गोपाः, गुपू रक्षणे−विच्, अतो लोपः, यलोपः। रक्षिका (वनस्पतीनाम्) अश्वत्थादिवृक्षाणाम् (गृभिः) भ्रमेः सम्प्रसारणं च। उ० ४।१२१। ग्रह उपादाने−इन्, स च कित्। ग्रहणस्थानम् (ओषधीनाम्) सोमलतान्नादीनाम् ॥

५८ यद्वदामि मधुमत्तद्वदामि

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यद्वदा॑मि॒ मधु॑म॒त्तद्व॑दामि॒ यदीक्षे॒ तद्व॑नन्ति मा।
त्विषी॑मानस्मि जूति॒मानवा॒न्यान्ह॑न्मि॒ दोध॑तः ॥

५८ यद्वदामि मधुमत्तद्वदामि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What I speak, rich in honey I speak it; what I view, that they win
    (? van) me; brilliant am I, possessed of swiftness; I smite down others
    that are violent (? dódhat).
Notes

The sense of b is obscure. Ppp. reads vadantu (for vananti); Bp.
has vadanti, and O.s.m. (p.m.?) vahanti. Ppp. has at the end
dodhata. Kāuś. quotes the verse at 24. 14 and 38. 29, each time adding
mantroktam ‘as expressed in the verse.’ ⌊Ppp. puts this verse before
our 57.⌋

Griffith

Whate’er I say I speak with honey-sweetness, whatever I behold for that they love me. Dazzling, impetuous am I: others who fiercely stir I slay.

पदपाठः

यत्। वदा॑मि। मधु॑ऽमत्। तत्। व॒दा॒मि॒। यत्। ईक्षे॑। तत्। व॒न॒न्ति॒। मा॒। त्विषि॑ऽमान्। अ॒स्मि॒। जू॒ति॒ऽमान्। अव॑। अ॒न्यान्। ह॒न्मि॒। दोध॑तः। १.५८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • पुरस्ताद्बृहती
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो कुछ (वदामि) मैं बोलता हूँ, (तत्) वह (मधुमत्) उत्तम ज्ञान युक्त (वदामि) बोलता हूँ, (यत्) जो कुछ (ईक्षे) मैं देखता हूँ, (तत्) उसको (मा) मुझे (वनन्ति) वे [ईश्वरनियम] सेवते हैं। मैं (त्विषिमान्) तेजस्वी, (जूतिमान्) वेगवान् (अस्मि) हूँ, (दोधतः) क्रोधी (अन्यान्) दूसरे [शत्रुओं] को (अव हन्मि) मार गिराता हूँ ॥५८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य समझ-बूझकर बोलते, देखते और काम करते हैं, वे ईश्वरनियम से प्रतापी और फुरतीले होकर विघ्नों को मिटाते हैं ॥५८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५८−(यत्) यत् किञ्चित् (वदामि) कथयामि (मधुमत्) श्रेष्ठज्ञानयुक्तम् (तत्) वचनम् (वदामि) (यत्) (ईक्षे) पश्यामि (तत्) (वनन्ति) संभजन्ति परमेश्वरनियमाः (मा) माम् (त्विषिमान्) दीप्तिमान् (अस्मि) (जूतिमान्) जु रंहसि−क्तिन्। वेगवान् (अन्यान्) शत्रून् (अव हन्मि) विनाशयामि (दोधतः) दोधतिः क्रुध्यतिकर्मा−निघ० २।१२, ततः शतृ। क्रुध्यतः ॥

५९ शन्तिवा सुरभिः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

श॑न्ति॒वा सु॑र॒भिः स्यो॒ना की॒लालो॑ध्नी॒ पय॑स्वती।
भूमि॒रधि॑ ब्रवीतु मे पृथि॒वी पय॑सा स॒ह ॥

५९ शन्तिवा सुरभिः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Tranquil, fragrant, pleasant, with sweet drink in her udder, rich in
    milk, let earth (bhū́mi) bless me, earth together with milk.
Notes

Ppp. reads at the beginning santivā ⌊cf. iii. 30. 2, note⌋, and in
c no ‘dhi (in place of adhi). The verse is quoted in Kāuś. 24.
31, among many other verses from this hymn; ⌊further, by Dārila to 3. 4,
and by Keś. to 70. 8, 9⌋.

Griffith

Mild, gracious, sweetly odorous, milky, with nectar in her breast, May Earth, may Prithivi bestow her benison, with milk, on me.

पदपाठः

श॒न्ति॒ऽवा। सु॒र॒भिः। स्यो॒ना। की॒लाल॑ऽऊध्नी। पय॑स्वती। भूमिः॑। अधि॑। ब्र॒वी॒तु॒। मे॒। पृ॒थि॒वी॒। पय॑सा। स॒ह। १.५९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शन्तिवा) शान्तिवाली, (सुरभिः) ऐश्वर्यवाली, (स्योना) सुखदा, (कीलालोघ्नी) अमृतमय स्तनवाली (पयस्वती) दुधैल, (भूमिः) सर्वाधार (पृथिवी) पृथिवी (पयसा सह) अन्न के साथ (मे) मेरे लिये (अधि ब्रवीतु) अधिकारपूर्वक बोले ॥५९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - उद्योगी पुरुष परस्पर उपदेश करके पृथिवी से अनेक सुख प्राप्त करते और कराते हैं ॥५९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५९−(शन्तिवा) अ० ३।३०।२। शान्तियुक्ता (सुरभिः) म० २३। ऐश्वर्यवती (स्योना) सुखप्रदा (कीलालोघ्नी) उधसोऽनङ्। पा० ५।४।१३१। कीलाल+ऊधस्−अनङ्। बहुव्रीहेरूधसो ङीष्। पा० ४।१।२५। इति ङीष्। अमृतस्तनी (पयस्वती) दुग्धवती (भूमिः) सर्वधाराः (अधि) अधिकृत्य (ब्रवीतु) वदतु (मे) मह्यम् (पृथिवी) विस्तृता भूमिः (पयसा) अन्नेन−निघ० २।७। (सह) ॥

६० यामन्वैच्छद्धविषा विश्वकर्मान्तरर्णवे

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

याम॒न्वैच्छ॑द्ध॒विषा॑ वि॒श्वक॑र्मा॒न्तर॑र्ण॒वे रज॑सि॒ प्रवि॑ष्टाम्।
भु॑जि॒ष्यं१॒॑ पात्रं॒ निहि॑तं॒ गुहा॒ यदा॒विर्भोगे॑ अभवन्मातृ॒मद्भ्यः॑ ॥

६० यामन्वैच्छद्धविषा विश्वकर्मान्तरर्णवे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Whom Viśvakarman sought after with oblation within the ocean, when
    she was entered into the mist (? rájas); an enjoyable vessel that was
    deposited in secret became manifest in enjoyment (bhóga) for them that
    have mothers.
Notes

Ppp. reads for b yasyām āsann ugrayo ⌊intending agnayo?‘psv
antaḥ;
and, in c, d, guhā śāir āvir bhor abhavan mātṛmadbhiḥ: which
casts no light on the strange and obscure meaning.

Griffith

Whom Visvakarman with oblation followed, when she was set in mid-air’s billowy ocean A useful vessel, hid, when, for enjoyment, she was made mani- fest to those with mothers.

पदपाठः

याम्। अ॒नु॒ऽऐच्छ॑त्। ह॒विषा॑। वि॒श्वऽक॑र्मा। अ॒न्तः। अ॒र्ण॒वे। रज॑सि। प्रऽवि॑ष्टाम्। भु॒मि॒ष्य᳡म्। पात्र॑म्। निऽहि॑तम्। गुहा॑। यत्। आ॒विः। भोगे॑। अ॒भ॒व॒त्। मा॒तृ॒मत्ऽभ्यः॑। १.६०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वकर्मा) विश्वकर्मा [सब कर्मों में चतुर मनुष्य] ने (हविषा) देने लेने योग्य गुण के साथ [वर्तमान], (अर्णवे) जलवाले (रजसि अन्तः) अन्तरिक्ष के भीतर (प्रविष्टाम्) प्रवेश की हुई (याम्) जिस [पृथिवी] को (अन्वैच्छत्) खोजा। (भुजिष्यम्) भोजनयोग्य (पात्रम्) पात्र [रक्षासाधन] (गुहा) [पृथिवी के] गढ़े में (यत्) जो (निहितम्) रक्खा था [वह] (मातृमद्भ्यः) माताओंवाले [प्राणियों] के लिये (भोगे) आहार [वा पालन] में (आविः अभवत्) प्रकट हुआ है ॥६०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे-जैसे मनुष्य मेघमण्डल से घिरी पृथिवी को खोजते जाते हैं, उसमें अधिक-अधिक पालनशक्तियों को पाते हैं, जैसे माताओं में प्राणियों के पालन के लिये दुग्ध प्रकट होता है ॥६०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६०−(याम्) पृथिवीम् (अन्वैच्छत्) अन्वेषणेन प्राप्तवान् (हविषा) दातव्याग्राह्यगुणेन सह वर्तमानाम् (विश्वकर्मा) सर्वकर्मसु कुशलः पुरुषः (अन्तः) मध्ये (अर्णवे) जलवति (रजसि) अन्तरिक्षे (प्रविष्टाम्) (भुजिष्यम्) भुवः कित्। उ० २।१२२। भुज पालनाभ्यव्यवहारयोः−इसिन् कित्। तस्मै हितम्। पा० ५।१।५। इति यत्। भुजिषे भोजनाय हितम् (पात्रम्) रक्षासाधनम्। अमत्रम् (निहितम्) स्थापितम् (गुहा) गर्ते (यत्) (आविः) प्रकटम् (भोगे) आहारे। पालने (अभवत्) (मातृमद्भ्यः) जननीयुक्तेभ्यः प्राणिभ्यः ॥

६१ त्वमस्यावपनी जनानामदितिः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

त्वम॑स्या॒वप॑नी॒ जना॑ना॒मदि॑तिः काम॒दुघा॑ पप्रथा॒ना।
यत्त॑ ऊ॒नं तत्त॒ आ पू॑रयाति प्र॒जाप॑तिः प्रथम॒जा ऋ॒तस्य॑ ॥

६१ त्वमस्यावपनी जनानामदितिः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thou art the scatterer (? āvápana) of people, [art] a
    wish-fulfilling (kāmadúgha) Aditi, spreading out; what of thee is
    deficient, may Prajāpati, first-born of righteousness, fill that up for
    thee.
Notes

The word āvápana seems to mean sometimes, and perhaps here, a (wide,
shallow?) receptacle onto which things are strewn or scattered. Ppp. has
at the beginning vim for tvam, and in b viśvarūpā for
paprathānā; for c, d it reads yat tāu ”naṁ tat tāpūrayāti
prajāpatiḥ prajābhis saṁvidānām;
and it ends the hymn here. The Anukr.
refuses to admit two familiar resolutions in a, and gratuitously
calls the pāda a bārhata (9 syll.). The second half-verse is twice
quoted in Kāuś. (46. 52; 137. 13) in connection with filling up a hole
that has been dug (iti saṁvapati) and the verse, in 137. 14, with
removing elsewhither the dirt taken out.

Griffith

Thou art the vessel that containeth people, Aditi, granter of the wish, far-spreading. Prajapati, the first-born Son of Order, supplieth thee with what- soe’er thou lackest.

पदपाठः

त्वम्। अ॒सि॒। आ॒ऽवप॑नी। जना॑नाम्। अदि॑तिः। का॒म॒ऽदुघा॑। प॒प्र॒था॒ना। यत्। ते॒। ऊ॒नम्। तत्। ते॒। आ। पू॒र॒य॒ति॒। प्र॒जाऽप॑तिः। प्र॒थ॒म॒ऽजाः। ऋ॒तस्य॑। १.६१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • पुरोबार्हता त्रिष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे पृथिवी !] (त्वम्) तू (आवपनी) बड़ी उपजाऊ होकर (जनानाम्) मनुष्यों की (अदितिः) अखण्डव्रता, (कामदुघा) कामना पूरी करनेवाली (पप्रथाना) प्रख्यात (असि) है। (यत्) जो (ते) तेरा (ऊतम्) न्यून है, (ऋतस्य) यथावत् नियम का (प्रथमजाः) पहिले उत्पन्न करनेवाला (प्रजापतिः) प्रजापति [जगत्पालक परमेश्वर] (ते) तेरे (तत्) उस [न्यून भाग] को (आ) सब प्रकार (पूरयाति) पूरा करे ॥६१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे परमेश्वर ने पृथिवी में अन्न आदि से प्राणियों की पालन शक्ति दी है, वैसे ही प्राणी जो कुछ खाते-पीते हैं, वह न्यूनता ईश्वरनियम से वृष्टि आदि द्वारा पूर्ण हो जाती है ॥६१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६१−(त्वम्) (असि) (आवपनी) समन्ताद् बीजजनयित्री (जनानाम्) मनुष्याणाम् (अदितिः) अखण्डव्रता (कामदुघा) अ० ४।३४।८। मनोरथपूरयित्री (पप्रथाना) प्रथ प्रख्याने−कानच्। प्रख्याता (यत्) (ते) तव (ऊतम्) न्यूनम्। हीनम् (तत्) (ते) तव (आ) समन्तात् (पूरयाति) पूरयेत् (प्रजापतिः) जगत्पालकः परमेश्वरः (प्रथमजाः) अ० २।१।४। जन जनने−विट्, आत्त्वम्। प्रथमजनयिता (ऋतस्य) सत्यनियमस्य ॥

६२ उपस्थास्ते अनमीवा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

उ॑प॒स्थास्ते॑ अनमी॒वा अ॑य॒क्ष्मा अ॒स्मभ्यं॑ सन्तु पृथिवि॒ प्रसू॑ताः।
दी॒र्घं न॒ आयुः॑ प्रति॒बुध्य॑माना व॒यं तुभ्यं॑ बलि॒हृतः॑ स्याम ॥

६२ उपस्थास्ते अनमीवा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let slanders upon thee, free from disease, free from yákṣma, be
    produced (prásūta) for us, O earth; awakening to meet our long
    lifetime, may we be tribute-bearers to thee.
Notes

The sense of upasthā́s (p. upa॰sthā́ḥ) in a is doubtful; Ludwig
renders ’laps,’ as if upásthās; ⌊and so Bloomfield⌋; Bruce ’that shall
dwell in thee.’ The verse is quoted in Kāuś. 50. 10, in a ceremony for
success. The description of the Anukr. is unintelligible, as the verse
is a perfectly regular triṣṭubh.

Griffith

Let thy breasts, frec from sickness and Consumption, be. Prithivi, produced for our advantage. Through long-extended life wakeful and watching still may we be thy tributary servants.

पदपाठः

उ॒प॒ऽस्थाः। ते॒। अ॒न॒मी॒वाः। अ॒य॒क्ष्माः। अ॒स्मभ्य॑म्। स॒न्तु॒। पृ॒थि॒वि॒। प्रऽसू॑ताः। दी॒र्घम्। नः॒। आयुः॑। प्र॒ति॒ऽबुध्य॑मानाः। व॒यम्। तुभ्य॑म्। ब॒लि॒ऽहृतः॑। स्या॒म॒। १.६२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • परानुष्टुप्त्रिष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पृथिवी) हे पृथिवी ! (ते) तेरी (उपस्थाः) गोदें (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (अनमीवाः) नीरोग और (अयक्ष्माः) राजरोगरहित (प्रसूताः) उत्पन्न (सन्तु) होवें। (नः) अपने (आयुः) आयु [जीवन] को (दीर्घम्) दीर्घकाल तक (प्रतिबुध्यमानाः) जगाते हुए (वयम्) हम (तुभ्यम्) तेरे लिये (बलिहृतः) बलि [सेवा धर्म] देनेवाले (स्याम) रहें ॥६२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रयत्नपूर्वक पृथिवी पर स्वस्थ और चेतन्य रहकर धर्म के साथ परस्पर पालन करें ॥६२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६२−(उपस्थाः) क्रोडाः (ते) तव (अनमीवाः) रोगरहिताः (अयक्ष्माः) राजरोगशून्याः (अस्मभ्यम्) (सन्तु) (पृथिवि) (प्रसूताः) उत्पन्नाः (दीर्घम्) बहुकालपर्यन्तम् (नः) अस्माकम्। स्वकीयम् (आयुः) जीवनम् (प्रतिबुध्यमानाः) जागरणेन चेतयन्तः (वयम्) (तुभ्यम्) (बलिहृतः) बलेरुपायनस्य हारकाः। प्रापकाः (स्याम) भवेम ॥

६३ भूमे मातर्नि

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

भूमे॑ मात॒र्नि धे॑हि मा भ॒द्रया॒ सुप्र॑तिष्ठितम्।
सं॑विदा॒ना दि॒वा क॑वे श्रि॒यां मा॑ धेहि॒ भूत्या॑म् ॥

६३ भूमे मातर्नि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O mother earth (bhū́mi), do thou kindly set me down well
    established; in concord with the heaven, O sage (kávi), do thou set me
    in fortune, in prosperity (bhū́ti).
Notes

The verse is used by Kāuś. (24. 27) in connection with vss. 1-7; also by
the comm. to 58. 19 in the annaprāśana ceremony. Vāit. 27. 8
prescribes it on descending from the sacrificial post (cf. note to vs.
33). ⌊For śriyā́m, the only form of its kind in the AV., see JAOS. x.
389.⌋

⌊Here ends the first anuvāka, of 1 hymn and 63 verses. The quoted
Anukr. says bhāumas tryadhikā ṣaṣṭiḥ.

Griffith

O Earth, my Mother, set thou me happily in a place secure. Of one accord with Heaven, O Sage, set me in glory and in wealth.

पदपाठः

भूमे॑। मा॒तः॒। नि। धे॒हि॒। मा॒। भ॒द्रया॑। सुऽप्र॑तिस्थितम्। स॒म्ऽवि॒दा॒ना। दि॒वा। क॒वे॒। श्रि॒याम्। मा॒। धे॒हि॒। भूत्या॑म्। १.६३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • भूमिः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • भूमि सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राज्य की रक्षा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भूमे मातः) हे धरती माता ! (मा) मुझ को (भद्रया) कल्याणा मति के साथ (सुप्रतिष्ठितम्) बड़ी प्रतिष्ठावाला (नि धेहि) बनाए रख। (कवे) हे गतिशीले ! [जो चलती है वा जिस पर हम चलते हैं] (दिवा) प्रकाश के साथ (संविदाना) मिली हुई तू (मा) मुझ को (श्रियाम्) श्री [सम्पत्ति] में और (भूत्याम्) विभूति [ऐश्वर्य] में (धेहि) धारण कर ॥६३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य उत्तम भाव से पृथिवी पर अपना कर्तव्य पालते हैं, वे बड़ी प्रतिष्ठा पाकर ऐश्वर्यवान् और श्रीमान् होते हैं ॥६३॥ इति प्रथमोऽनुवाकः ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६३−(भूमे) हे धरित्रि (मातः) हे निर्मात्रि (नि धेहि) स्थापय (भद्रया) कल्याण्या मत्या (सुप्रतिष्ठितम्) सुप्रतिष्ठायुक्तम् (संविदाना) म० ४८। संगच्छमाना (दिवा) प्रकाशेन (कवे) अ० ४।१।७। कुङ् गतिशोषणयोः हृञ्। कवते, गतिकर्मा−निघ० २।१४। हे गतिशीले (श्रियाम्) सेवनीयायां सम्पत्तौ (मा) माम् (धेहि) धारय (भूत्याम्) प्रापणीयायां विभूतौ। ऐश्वर्ये ॥