००९ शत्रुनिवारणम्

००९ शत्रुनिवारणम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. To conquer enemies: to Arbudi.
VH anukramaṇī

शत्रुनिवारणम् ।
१-२६ काङ्कायनः। अर्बुदिः। अनुष्टुप्, १ सप्तपदा विराट् शक्वरी त्र्यवसाना, ३ परोष्णिक्, ४ त्र्यवसाना उष्णिग्बृहतीगर्भा परा त्रिष्टुप् षट् पदातिजगती, ९, ११, १४, २३, २६ पथ्यापङ्क्तिः, १५, २२, २४-२५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी, १६ त्र्यवसाना पञ्चपदा विराडुपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १७ त्रिपदा गायत्री।

Whitney anukramaṇī

[Kān̄kāyana.—ṣaḍviṅśakam. mantroktārbudidevatyam. ānuṣṭubham: 1. 7-p. virāṭ śakvarī 3-av.; 3. paroṣṇiḥ; 4, 3-av. uṣṇigbṛhatīgarbhā parātriṣṭup 6-p. atijagatī; 9, 11, 14, 23, 26. pathyāpan̄kti; 15, 22, 24, 25. 3-av. 7-p. śakvarī; 16. 3-av. 5-p. virāḍ upariṣṭājjyotis triṣṭubh; 17. 3-p. gāyatrī.]

Whitney

Comment

This and the following hymn are wanting in Pāipp., although bits of vss. 15-17 of this one are to be found in Pāipp. xvii. The opening words of the two are quoted together in Kāuś. 16. 21, in connection with rites for insuring success in war. ⌊The use of the two hymns forms a sequel to the rites described in the introduction to viii. 8, which see; and cf. under viii. 8. 24.⌋

Translations

Translated: Ludwig, p. 530; Henry, 126, 164; Griffith, ii. 84; Bloomfield, 123, 631.

Griffith

An incantation for the destruction of a hostile army

०१ ये बाहवो

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ये बा॒हवो॒ या इष॑वो॒ धन्व॑नां वी॒र्या᳡णि च।
अ॒सीन्प॑र॒शूनायु॑धं चित्ताकू॒तं च॒ यद्धृ॒दि।
सर्वं॒ तद॑र्बुदे॒ त्वम॒मित्रे॑भ्यो दृ॒शे कु॑रूदा॒रांश्च॒ प्र द॑र्शय ॥

०१ ये बाहवो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What arms (bāhú) [there are], what arrows, and the powers
    (vīryà) of bows, swords (así), axes (paraśú), weapon, and what
    thought-and-design in the heart—all that, O Arbudi, do thou make our
    enemies to see; and do thou show forth specters (udārá).
Notes

The comm. refers to AB. vi. 1, where Arbuda is named and called a
serpent-sage, and declares Arbudi and Nyarbudi to be his two sons.
Udārān he explains as udgatān antarikṣacarān rakṣaḥpiśācādīn
mantrasāmarthyodbhāvitān
, or also as sūryaraśmiprabhavā ulkādaya
āntarikṣyā utpātāḥ
, specters or portents. ⌊Pāda d, below, vs. 13
b.⌋

Griffith

All arms and every arrow, all the power and might that bows possess, The warlike weapon, axes, swords, the plan and purpose in the heart, All this, O Arbudi, make thou visible to our enemies, and let them look on mist and fog.

पदपाठः

ये। बा॒हवः॑। याः। इष॑वः। धन्व॑नाम्। वी॒र्या᳡णि। च॒। अ॒सीन्। प॒र॒शून्। आयु॑धम्। चि॒त्त॒ऽआ॒कू॒तम्। च॒। यत्। हृ॒दि। सर्व॑म्। तत्। अ॒र्बु॒दे॒। त्वम्। अ॒मित्रे॑भ्यः। दृ॒शे। कु॒रु॒। उ॒त्ऽआ॒रान्। च॒। प्र। द॒र्श॒य॒। ११.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • त्र्यवसाना सप्तपदा विराट्शक्वरी
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (बाहवः) भुजाएँ, (याः) जो (इषवः) बाण, (च) और (धन्वनाम्) धनुषों के (वीर्याणि) वीर कर्म हैं [उनको] (असीन्) तरवारों, (परशून्) परसाओं [कुल्हाड़ों], (आयुधम्) अस्त्र-शस्त्र को, (च) और (यत्) जो कुछ (हृदि) हृदय में (चित्ताकूतम्) विचार और सङ्कल्प है, (तत् सर्वम्) उस सब [कर्म] को (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (त्वम्) तू (अमित्रेभ्यः दृशे) अमित्रों के लिये देखने को (कुरु) कर, (च) और (उदारान्) [हमें अपने] बड़े उपायों को (प्र दर्शय) दिखादे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सेनापति राजा अपने योद्धाओं, अस्त्र-शस्त्रों, हृदय के विचारों और मनोरथों को दृढ़ करके शत्रुओं को रोके और प्रजा की यथावत् रक्षा करे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(ये) (बाहवः) भुजदण्डाः (याः) (इषवः) बाणाः (धन्वनाम्) धनुषाम् (वीर्याणि) वीरकर्माणि। शत्रुजवसामर्थ्यानि (असीन्) खङ्गान् (परशून्) कुठारविशेषान् (आयुधम्) अस्त्रशस्त्रजातम् (चित्ताकूतम्) द्वन्द्वश्च प्राणितूर्यसेनाङ्गानाम्। पा० २।४।२। एकवद्भावादेकवचनम्। चित्तानां विचाराणाम्, आकूतानां संकल्पानां च समाहारः (च) (यत्) (हृदि) हृदये (सर्वम्) (तत्) (अर्बुदे) अर्ब गतौ हिंसायां च-उदिच् प्रत्ययः। हे पुरुषार्थिन् शत्रुनाशक शूर सेनापते (त्वम्) (अमित्रेभ्यः) शत्रुभ्यः (दृशे) अ० १।६।३। द्रष्टुम् (कुरु) अनुतिष्ठ (उदारान्) उद+आङ्+रा दाने-क। यद्वा उद्+ऋ गतिप्रापणयोः-घञ्। गम्भीरोपायान् (च) (प्र) प्रकृष्टेन (दर्शय) निरीक्षय ॥

०२ उत्तिष्ठत सम्

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उत्ति॑ष्ठत॒ सं न॑ह्यध्वं॒ मित्रा॒ देव॑जना यू॒यम्।
संदृ॑ष्टा गु॒प्ता वः॑ सन्तु॒ या नो॑ मि॒त्राण्य॑र्बुदे ॥

०२ उत्तिष्ठत सम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Stand up, equip ye yourselves (sam-nah), O friends, god-folk;
    beheld, concealed of you be [those] who are our friends, O Arbudi.
Notes

The occurrence of mitrās m. and mitrāṇi n. in the same verse is
puzzling, also the conjunction of saṁdṛṣṭa and gupta, and of vas
with the singular arbude. The comm. reads saṁdṛṣṭās and guptās in
c. Our Bp. reads yā́ḥ in d. ⌊Pāda a = 26 b and 10. 1
a.⌋ ⌊W. interlines “protected?” over “concealed."⌋

Griffith

Arise ye and prepare yourselves: ye, the celestial hosts, are friends. Let your mysterious natures be seen by our friends O Arbudi.

पदपाठः

उत्। ति॒ष्ठ॒त॒। सम्। न॒ह्य॒ध्व॒म्। मित्राः॑। देव॑ऽजनाः। यू॒यम्। सम्ऽदृ॑ष्टा। गु॒प्ता। वः॒। स॒न्तु॒। या। नः॒। मि॒त्राणि॑। अ॒र्बु॒दे॒। ११.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • अनुष्टुप्
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मित्राः) हे प्रेरक (देवजनाः) विजयी जनो ! (यूयम्) तुम (उत् तिष्ठत) उठो और (सम् नह्यध्वम्) कवचों को पहिनो। (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति-म० १] (या) जो (नः) हमारे (मित्राणि) मित्र हैं, [वे सब] (वः) तुम लोगों के (संदृष्टा) देखे हुए और (गुप्ता) रक्षिता (सन्तु) होवें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सेनापति राजा आदि अपने विजयी वीर सैनिकों और सहायक मित्रों को सावधान और अस्त्र-शस्त्रों से सजाकर निरीक्षण करें और व्यूहरचना से उन की रक्षा करें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(उत्तिष्ठत) उद्गच्छत (संनह्यध्वम्) संनाहान् कवचान् धारयत (मित्राः) डुमिञ् प्रक्षेपणे−क्त्र। हे प्रेरकाः (देवजनाः) विजिगीषुलोकाः (यूयम्) (संदृष्टा) सम्यङ् निरीक्षितानि (गुप्ता) रक्षितानि (वः) युष्माकम् (सन्तु) (या) यानि (नः) अस्माकम् (मित्राणि) सुहृद्गणाः (अर्बुदे) म० १। हे शूर सेनापते ॥

०३ उत्तिष्ठतमा रभेथामादानसन्दानाभ्याम्

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उत्ति॑ष्ठत॒मा र॑भेथामादानसंदा॒नाभ्या॑म्।
अ॒मित्रा॑णां॒ सेना॑ अ॒भि ध॑त्तमर्बुदे ॥

०३ उत्तिष्ठतमा रभेथामादानसन्दानाभ्याम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Stand ye (two) up, take ye hold; with tying up, with tying together,
    gird ye the armies of our enemies, O Arbudi.
Notes

The dual verbs doubtless imply, as the comm. also points out, the
inclusion of Nyarbudi in the address to Arbudi ⌊cf. vs. 11⌋. The comm.
reads senām in c.

Griffith

Rise both of you: begin your work with fettering and binding. fast, Assail, both of you, Arbudi, the armies of our enemies.

पदपाठः

उत्। ति॒ष्ठ॒त॒म्। आ। र॒भे॒था॒म्। आ॒दा॒न॒ऽसं॒दा॒नाभ्या॑म्। अ॒मित्रा॑णाम्। सेनाः॑। अ॒भि। ध॒त्त॒म्। अ॒र्बु॒दे॒। ११.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • परोष्णिक्
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [हे शूर सेनापति राजन् और प्रजागण] तुम दोनों (उत् तिष्ठतम्) खड़े हो जाओ, (आदानसन्दानाभ्याम्) दोनों पकड़ने और बाँधने के यन्त्रों से [युद्ध] (आ रभेथाम्) आरम्भ करो, और (अमित्राणाम्) वैरियों की (सेनाः) सेनाओं को (अभि धत्तम्) तुम दोनो बाँध लो ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सेनापति राजा और सब प्रजागण मिलकर वीरता के साथ अनेक यन्त्रसमूहों से शत्रुओं को घेर लेवें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(उत्तिष्ठतम्) उच्चलतम् (आरभेथाम्) युद्धमुपक्रमेथाम् (आदानसन्दानाभ्याम्) आदीयते-गृह्यत अनेनेति आदानं ग्रहणयन्त्रम्, सन्दीयते बध्यते अनेनेति बन्धनयन्त्रम्। ताभ्यां यन्त्राभ्याम् (अमित्राणाम्) शत्रूणाम् (सेनाः) (अभिधत्तम्) युवां बध्नीतम् (अर्बुदे) म० १। हे शूर सेनापते त्वम् हे राजागण त्वं च युवाम् ॥

०४ अर्बुदिर्नाम यो

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अर्बु॑दि॒र्नाम॒ यो दे॒व ईशा॑नश्च॒ न्य᳡र्बुदिः।
याभ्या॑म॒न्तरि॑क्ष॒मावृ॑तमि॒यं च॑ पृथि॒वी म॒ही।
ताभ्या॒मिन्द्र॑मेदिभ्याम॒हं जि॒तमन्वे॑मि॒ सेन॑या ॥

०४ अर्बुदिर्नाम यो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The God that is Arbudi by name, and the lord (ī́śāna) Nyarbudi, by
    whom the atmosphere is involved (ā-vṛ), and this great earth—by those
    (two) who are allied with Indra, I go after what is conquered with an
    army.
Notes

Probably ‘I follow up with my army what is already conquered by them.’
The two last pādas are by the comm. reckoned as the first line of the
next verse.

Griffith

The God whose name is Arbudi, and Nyarbudi the Mighty One, The two by whom the air and this great earth are compassed and possessed, With these two friends of Indra I go forth to conquer with the host.

पदपाठः

अर्बु॑दिः। नाम॑। यः। दे॒वः। ईशा॑नः। च॒। निऽअ॑र्बुदि ः। याभ्या॑म्। अ॒न्तरि॑क्षम्। आऽवृ॑तम्। इ॒यम्। च॒। पृ॒थि॒वी। म॒ही। ताभ्या॑म्। इन्द्र॑मेदिऽभ्याम्। अ॒हम्। जि॒तम्। अनु॑। ए॒मि॒। सेन॑या। ११.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • त्र्यवसानोष्णिग्बृहतीगर्भा षट्पदातिजगती
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अर्बुदिः) अर्बुदि [शूर सेनापति राजा], (यः) जो (नाम) प्रसिद्ध (देवः) विजयी पुरुष है, (च) और [जो] (ईशानः) ऐश्वर्यवान् (न्यर्बुदिः) न्यर्बुदि [निरन्तर पुरुषार्थी प्रजागण] है। (याभ्याम्) जिन दोनों से (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष (आवृतम्) घिरा हुआ है (च) और (इयम्) यह (मही) बड़ी (पृथिवी) पृथिवी [घिरी है]। (ताभ्याम्) उन दोनों (इन्द्रमेदिभ्याम्) जीवों के स्नेहियों के द्वारा (सेनया) [अपनी] सेना से (जितम्) जीते हुए [प्रयोजन] को (अहम्) मैं [प्रजागण] (अनु) निरन्तर (एमि) पाऊँ ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राजा और प्रजाजन पृथिवी, आकाश और जल में भी राज्य बढ़ाकर प्रजागण को जीते हुए देशों में विद्या प्रचार और वाणिज्य आदि से लाभ पहुँचावें ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(अर्बुदिः) म० १। शूरसेनापती राजा (नाम) प्रसिद्धौ (यः) (देवः) विजिगीषुः (ईशानः) ईशिता (च) (न्यर्बुदिः) नि+अर्ब गतौ हिंसायां च-उदिच्। निरन्तरपुरुषार्थी प्रजागणः (याभ्याम्) अर्बुदिन्यर्बुदिभ्याम् (अन्तरिक्षम्) (आवृतम्) आच्छादितम् (इयम्) दृश्यमाना (च) (पृथिवी) (मही) महती (ताभ्याम्) (इन्द्रमेदिभ्याम्) ञिमिदा स्नेहने-णिनि। जीवानां स्नेहिभ्याम् (अहम्) प्रजागणः (जितम्) जयेन प्राप्तं प्रयोजनम् (अनु) निरन्तरम् (एमि) प्राप्नोमि (सेनया) स्वसेनया ॥

०५ उत्तिष्ठ त्वम्

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उत्ति॑ष्ठ॒ त्वं दे॑वज॒नार्बु॑दे॒ सेन॑या स॒ह।
भ॒ञ्जन्न॒मित्रा॑णां॒ सेनां॑ भो॒गेभिः॒ परि॑ वारय ॥

०५ उत्तिष्ठ त्वम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Stand thou up, O god-folk, Arbudi, with the army; breaking (bhañj)
    the army of our enemies, envelop it with [thy] coils (bhogá).
Notes

The comm. explains bhogébhis as ātmīyāiḥ sarpaśarīrāiḥ.

Griffith

Rise with our army stand thou up. O Godlike Being, Arbudi. Breaking the hosts of enemies, surround them with thy winding coils.

पदपाठः

उत्। ति॒ष्ठ॒। त्वम्। दे॒व॒ऽज॒न॒। अर्बु॑दे। सेन॑या। स॒ह। भ॒ञ्जन्। अ॒मित्रा॑णाम्। सेना॑म्। भो॒गेभिः॑। परि॑। वा॒र॒य॒। ११.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • अनुष्टुप्
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवजन) हे विजयी जन ! (अर्बुदे) अर्बुदि [शूर सेनापति राजन्] (त्वम्) तू (सेनया सह) [अपनी] सेना के साथ (उत् तिष्ठ) खड़ा हो। (अमित्राणाम्) अमित्रों की (सेनाम्) सेना को (भञ्जन्) पीसता हुआ तू (भोगेभिः) भोग व्यूहों [साँप की कुण्डली के समान सेना की रचनाओं] से (परि वारय) घेर ले ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सेनापति अपनी सेना को अस्त्र-शस्त्रों से सजाकर भोगव्यूह, चक्रव्यूह, दण्डव्यूह, शकटव्यूह आदि बनाकर शत्रुसेना को चूर-चूर करके घेर लेवे ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(उत्तिष्ठ) उद्गच्छ (त्वम्) (देवजन) हे विजिगीषुजन (अर्बुदे) म० १। हे शूर सेनापते (सेनया) (सह) (भञ्जन्) आमर्दयन्। चूर्णयन् (अमित्राणाम्) शत्रूणाम् (सेनाम्) (भोगेभिः) भुजो कौटिल्ये-घञ्। भोगैः। सर्पशरीरवत् सेनाव्यूहविशेषैः (परिवारय) सर्वतो वेष्टय ॥

०६ सप्त जातान्न्यर्बुद

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स॒प्त जा॒तान्न्य᳡र्बुद उदा॒राणां॑ समी॒क्षय॑न्।
तेभि॒ष्ट्वमाज्ये॑ हु॒ते सर्वै॒रुत्ति॑ष्ठ॒ सेन॑या ॥

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Whitney
Translation
  1. Presenting to view, O Nyarbudi, the seven kinds of specters, with
    them all do thou stand up, when the butter is offered, with the army.
Notes

The pada-text reads in a jātā́n: ni॰arbude; but the reading is
plainly false, and should be either jātā́: ni॰arbude, or jātā́ni:
arbude;
either of these, considering that to the scribes nya and
nnya are entirely equivalent and exchangeable (see my Skt. Gr. §§
229, 232), would correctly represent the saṁhitā-reading. ⌊Cf. the
reading of the comm. at 10. 21.⌋

Griffith

Exhibiting, O Arbudi, seven children of the mist and fog, When butter hath been offered, rise with all of these and with the host.

पदपाठः

स॒प्त। जा॒तान्। नि॒ऽअ॒र्बु॒दे॒। उ॒त्ऽआ॒राणा॑म्। स॒म्ऽई॒क्षय॑न्। तेभिः॑। त्वम्। आज्ये॑। हु॒ते। सर्वैः॑। उत्। ति॒ष्ठ॒। सेन॑या। ११.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • अनुष्टुप्
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (न्यर्बुदे) हे न्यर्बुदि [निरन्तर पुरुषार्थी प्रजागण] (उदाराणाम्) बड़े उपायों में से (सप्त) सात (जातान्) उत्तम [उपायों अर्थात् राज्य के अङ्गों] को (समीक्षयन्) दिखाता हुआ तू (तेभिः सर्वैः) उन सब [शत्रुओं] के साथ [जैसे अग्नि में] (आज्ये हुते) घी चढ़ने पर, (त्वम्) तू (सेनया) [अपनी] सेना सहित (उत् तिष्ठ) खड़ा हो ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे अग्नि घी डालने से प्रचण्ड होता है, वैसे ही शत्रु से भारी युद्ध ठनने पर सब प्रजा गण राज्य के सात अङ्गों को दृढ़ करके टूट पड़ें ॥६॥राज्य के सात अङ्ग शब्दकल्पद्रुम में इस प्रकार हैं−[स्वाम्यमात्यश्च राष्ट्रञ्च दुर्गं कोपो बलं सुहृत्। परस्परोपकारीदं सप्ताङ्गं राज्यमुच्यते ॥१॥] १-स्वामी अर्थात् राजा, और २-मन्त्री और ३-राजधानी आदि राज्य, ४-गढ़, ५-सुवर्ण आदि कोष, ६-सैन्य दल, और ७-मित्र, परस्पर उपकारी सात अङ्गोंवाला यह राज्य कहा जाता है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(सप्त) सप्तसंख्याकान् स्वाम्यमात्यादीन् राज्योपायान् (जातान्) प्रशस्तान् (न्यर्बुदे) म० ४। हे निरन्तरपुरुषार्थिन् प्रजागण (उदाराणाम्) म० १। गम्भीराणामुपायानां मध्ये (समीक्षयन्) ईक्ष दर्शने-णिच् शतृ। सम्यग् दर्शयन्। प्रकटयन् (तेभिः) तैः शत्रुभिः (त्वम्) (आज्ये) घृते (हुते) अग्नौ प्रक्षिप्ते सति (सर्वैः) समस्तैः (उत्तिष्ठ) (सेनया) ॥

०७ प्रतिघ्नानाश्रुमुखी कृधुकर्णी

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प्र॑तिघ्ना॒नाश्रु॑मु॒खी कृ॑धुक॒र्णी च॑ क्रोशतु।
वि॑के॒शी पुरु॑षे ह॒ते र॑दि॒ते अ॑र्बुदे॒ तव॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. Smiting herself, tear-faced, and crop-eared (?), let her yell, with
    disheveled hair, when the man is slain, bitten (? rad), O Arbudi, of
    thee.
Notes

‘Her’—namely, the wife or sister or the like; more distinctly pointed to
in the next verse. Radita ought to mean rather ‘scraped’ or
‘scratched’; there seems to be no other example of it in the sense
‘bitten’: perhaps as a mere scratch from the fang of a serpent is enough
to kill. The comm. takes radita as a noun (like ruta, stnita, citta,
etc.), = dantāir vilekhane khādane sati. Of kṛdhukarṇ#i the comm.
says: kṛdhv iti hrasvanāma: karṇābharaṇaparityāgena hrasvakarṇī. The
verse is translated (also vs. 14, and 10. 7) by Bloomfield, in AJP. xi.
340.

Griffith

Beating her breast, with tearful face, let the short-earned, the wild-haired hag. Shriek loudly when a man is slain, pierced through by thee, O Arbudi;

पदपाठः

प्र॒ति॒ऽघ्ना॒ना। अ॒श्रु॒ऽमु॒खी। कृ॒धु॒ऽक॒र्णी। च॒। क्रो॒श॒तु॒। वि॒ऽके॒शी। पुरु॑षे। ह॒ते। र॒दि॒ते। अ॒र्बु॒दे॒। तव॑। ११.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • अनुष्टुप्
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रतिघ्नाना) [शिर आदि] धुनती हुई, (अश्रुमुखी) मुख पर आँसू बहाती हुई, (कृधुकर्णी) मन्द कानोंवाली (च) और (विकेशी) केश बिखरे हुए [शत्रु की माता, पत्नी बहिन आदि] (पुरुषे हते) [अपने] पुरुष के मारे जाने में, (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (तव) तेरे (रदिते) तोड़ने-फोड़ने पर (क्रोशतु) रोवे ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - शूर सेनापति शत्रुओं को ऐसा मारे कि उनकी स्त्रियाँ अति व्याकुल होकर विलाप करें ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(प्रतिघ्नाना) प्रति+हन हिंसागत्योः-शानच्। गमहनजन०। पा० ६।४।९८। उपधालोपः। शिरआद्यङ्गं ताडयन्ती (अश्रुमुखी) वाष्पमुखी (कृधुकर्णी) कृधु ह्रस्वनाम-निघ० २।३। अल्पश्रोत्रा। पटहध्वन्यादिना हतश्रवणसामर्थ्या (च) (क्रोशतु) क्रुश आह्वाने रोदने च। रोदितु (विकेशी) अ० १।२८।४। विकीर्णकेशयुक्ता (पुरुषे) स्वबन्धौ (हते) मारिते सति (रदिते) रद विलेखने-भावे क्त। विदारणे सति (अर्बुदे) म० १। हे शूर सेनापते (तव) ॥

०८ सङ्कर्षन्ती करूकरम्

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सं॒कर्ष॑न्ती क॒रूक॑रं॒ मन॑सा पु॒त्रमि॒च्छन्ती॑।
पतिं॒ भ्रात॑र॒मात्स्वान्र॑दि॒ते अ॑र्बुदे॒ तव॑ ॥

०८ सङ्कर्षन्ती करूकरम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Drawing in her karū́kara, seeking with her mind her son, husband,
    brother, also her people (svá)—in case of thy bite, O Arbudi.
Notes

The ending is the same with that of vs. 7, understood as the comm. takes
it; we might also supply ‘[he being] bitten’ etc. The Pet. Lex.
renders karūkara ‘vertebra of the neck and spine’: rather (in śB. xii.
2. 4^(10, 14)), perhaps, ‘a point or spinous process of a vertebra.’ The
comm. explains karu as an imitative word, and karūkara as meaning
anything that makes the sound karu, and so designating
hastapādādyavayavagataṁ saṁdhimad asthijātam; and he goes on loke hi
bhayavaśād ubhayor hastayoḥ parasparān̄gulinipīḍanena tādṛśaṁ śabdam
utpādayanti
. This is far from relieving satisfactorily the obscurity.
Most of our mss. accent svā̀n in c.

Griffith

Snatching away the vertebra, while with her thought she seeks her son, Her husband, brother, kin, when one, Arbudi! hath been pierc- ed by thee.

पदपाठः

स॒म्ऽकर्ष॑न्ती। क॒रूक॑रम्। मन॑सा। पु॒त्रम्। इ॒च्छन्ती॑। पति॑म्। भ्रात॑रम्। आत्। स्वान्। र॒दि॒ते। अ॒र्बु॒दे॒। तव॑। ११.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • अनुष्टुप्
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (करूकरम्) कार्यकर्ता (पुत्रम्) पुत्र (पतिम्) पति, (भ्रातरम्) भाई (आत्) और (स्वान्) बन्धुओं को (संकर्षन्ती) समेटती हुई और (मनसा) मन से (इच्छन्ती) चाहती हुई [माता, पत्नी, भगिनी आदि स्त्री] (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति-म० १] (ते) तेरे (रदिते) तोड़ने-फोड़ने पर, [रोवे-म० ७] ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - शूर सेनापति से शत्रुओं के मारे जाने पर उनकी स्त्रियाँ अपने घरों के कार्यकर्ताओं के बिना अत्यन्त दुःखी होवें ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(संकर्षन्ती) सम्यग् गृह्णन्ती (करूकरम्) कृषिचमितनि०। उ० १।८०। करोतेः-ऊ प्रत्ययः स्त्रियाम्। कृञो हेतुताच्छील्यानुलोम्येषु। पा० ३।२।२०। करोतेष्टः। करूं क्रियां करोतीति करूकरस्तं कार्यकर्तारम् (मनसा) हृदयेन (पुत्रम्) सुतम् (इच्छन्ती) कामयमाना (पतिम्) (भ्रातरम्) सहोदरम् (आत्) तथा (स्वान्) ज्ञातीन्। अन्यत् पूर्ववत्-म० ७ ॥

०९ अलिक्लवा जाष्कमदा

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अ॒लिक्ल॑वा जाष्कम॒दा गृध्राः॑ श्ये॒नाः प॑त॒त्त्रिणः॑।
ध्वाङ्क्षाः॑ श॒कुन॑यस्तृप्यन्त्व॒मित्रे॑षु समी॒क्षय॑न्रदि॒ते अ॑र्बुदे॒ तव॑ ॥

०९ अलिक्लवा जाष्कमदा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let the buzzards, jāṣkamadás, vultures, falcons, winged ones, let
    the crows, the birds (śakúni), satisfy themselves—exhibiting among the
    enemies—in case of thy bite, O Arbudi.
Notes

We have here two refrain-phrases, neither of which stands in any
grammatical connection with its surroundings (the pple. ’exhibiting’
being nom. sing. masc). The comm. reads in a aliklabāḥ and yāḥ
klamadāḥ;
and some of the mss. have jāḥkam- (so our B.O.s.m.).

Griffith

Let vultures, ravens, kites, and crows, and every carrion-eating bird. Feast on our foes, and show where one, Arbudi! hath been pierced by thee.

पदपाठः

अ॒लिक्ल॑वाः। जा॒ष्क॒म॒दाः। गृध्राः॑। श्ये॒नाः। प॒त॒त्रिणः॑। ध्वाङ्क्षाः॑। श॒कुन॑यः। तृ॒प्य॒न्तु॒। अ॒मित्रे॑षु। स॒म्ऽई॒क्षय॑न्। र॒दि॒ते। अ॒र्बु॒दे॒। तव॑। ११.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अलिक्लवाः) अपने बल से भय देनेवाले [चील आदि] (जाष्कमदाः) हिंसा में सुख मनानेवाले [सारस आदि], (गृध्राः) खाऊ [गिद्ध], (श्येनाः) श्येन [बाज], (ध्वाङ्क्षाः) कौवे, (शकुनयः) चीलें, (पतत्रिणः) पक्षीगण (तृप्यन्तु) तृप्त होवें, [जिन पक्षियों को] (अमित्रेषु) अमित्रों पर (समीक्षयन्) दिखाता हुआ, तू (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (तव) अपने (रदिते) तोड़-फोड़ कर्म में [वर्तमान हो] ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - शूर सेनापति शत्रुओं को युद्ध में मारकर गिरा दे और चील आदि मांसभक्षक पक्षी उनकी लोथों को नोंच-नोंच कर खावें ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(अलिक्लवाः) अ० ११।२।२। अलिना शक्त्या स्वबलेन भयानकाः पक्षिणः (जाष्कमदाः) इण्भीकापा–०। उ० ३, ४३। जष हिंसायाम्-कन्, छान्दसी वृद्धिः+मदी हर्षे-पचाद्यच्। हिंसने हर्षशीलाः। सारसादयः पक्षिणः (गृध्राः) मांसभक्षकाः खगविशेषाः (श्येनाः) अ० ३।३।३। शीघ्रगतयः पक्षिविशेषाः (पतत्त्रिणः) अ० १।१५।१। पक्षिणः (ध्वाङ्क्षाः) ध्वाक्षि घोरशब्दे-अच्। काकाः (शकुनयः) अ० ७।६४।१। विल्लपक्षिणः (तृप्यन्तु) हृष्यन्तु (अमित्रेषु) शत्रुषु (समीक्षयन्) म० ६−त्वं सम्यग् दर्शयन् यान् पक्षिणः (रदिते) विदारणे, त्वं वर्त्तस्वेति शेषः (अर्बुदे) म० १। हे शूर सेनापते राजन् (तव) स्वकीये ॥

१० अथो सर्वम्

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अथो॒ सर्वं॒ श्वाप॑दं॒ मक्षि॑का तृप्यतु॒ क्रिमिः॑।
पौरु॑षे॒येऽधि॒ कुण॑पे रदि॒ते अ॑र्बुदे॒ तव॑ ॥

१० अथो सर्वम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Then let all wild beasts, let the fly, let the worm satisfy itself
    upon the carrion of men, bitten, O Arbudi, of thee.
Notes

Here the refrain stands again in grammatical connection.

Griffith

Then let each greedy beast of prey, and fly and worm regale itself Upon the human corpse where one, Arbudi, hath been pierced by thee.

पदपाठः

अथो॒ इति॑। सर्व॑म्। श्वाप॑दम्। मक्षि॑का। तृ॒प्य॒तु॒। क्रिमिः॑। पौरु॑षेये। अधि॑। कुण॑पे। र॒दि॒ते। अ॒र्बु॒दे॒। तव॑। ११.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • अनुष्टुप्
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अथो) और भी (सर्वम्) सब (श्वापदम्) कुत्ते के से पैरवाले [सियार आदि हिंसकों का समूह], (मक्षिका) मक्खी और (क्रिमिः) कीड़ा (पौरुषेये) पुरुषों की (कुणपे अधि) लोथों के ऊपर, (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (तव) तेरे (रदिते) तोड़ने-फोड़ने पर (तृप्यतु) तृप्त होवें ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - शूर सेनापति के विध्वंस करने पर शत्रुओं की लोथों से हिंसक पशु-पक्षी पेट भरें ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(अथो) अपि च (सर्वम्) (श्वापदम्) शुनो दन्तदंष्ट्राकर्णकुन्दवराहपुच्छपदेषु दीर्घो वाच्यः। वा० पा० ६।३।१३७। दीर्घः। शुन इव पदं यस्य सः श्वापदः, ततः समूहार्थे-अण्। हिंस्रपशूनां शृगालादीनां समूहः (मक्षिका) अ० ११।२।२। कीटभेदः (तृप्यतु) (क्रिमिः) (पौरुषेये) अ० ७।१०५।१। पुरुष−ढञ्। पुरुषसम्बन्धिनि (अधि) उपरि (कुणपे) क्वणेः सम्प्रसारणं च। उ० ३।१४३। क्वण शब्दे-कपन्, सम्प्रसारणम्, यद्वा कुण शब्दोपकरणयोः-कपन्। मृतदेहे। शवे। अन्यत् पूर्ववत्-म० ७ ॥

११ आ गृह्णीतम्

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आ गृ॑ह्णीतं॒ सं बृ॑हतं प्राणापा॒नान्न्य॑र्बुदे।
नि॑वा॒शा घोषाः॒ सं य॑न्त्व॒मित्रे॑षु समी॒क्षय॑न्रदि॒ते अ॑र्बुदे॒ तव॑ ॥

११ आ गृह्णीतम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Take ye (two) hold, tear out (sam-bṛh) [their]
    breath-and-expiration, O Nyarbudi; let groaning (? nivāśá) noises
    assemble—exhibiting among the enemies—in case of thy bite, O Arbudi.
Notes

Again (as in vs. 3) the other serpent-deity is included in a in the
invocation ⌊this time of Nyarbudi⌋. The comm. reads vṛhatam in a.
He explains nivāśās as nīcīnaṁ vāśyamānā ābhāṣyamāṇāḥ.

Griffith

Attack them, both of you; bear off their vital breath O Nyar- budi. Let mingled shouts and echoing cries of woe amid our foemen show where thou, O Arbudi, hast pierced

पदपाठः

नि॒ऽवा॒शाः। घोषाः॑। सम्। य॒न्तु॒। अ॒मित्रे॑षु। स॒म्ऽई॒क्षय॑न्। र॒दि॒ते। अ॒र्बु॒दे॒। तव॑। १.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (न्यर्बुदे) हे न्यर्बुदि ! [निरन्तर पुरुषार्थी प्रजागण और शूर सेनापति राजन्] [शत्रुओं को] (आ गृह्णीतम्) तुम दोनों घेर लो, और [उनके] (प्राणापानान्) श्वास-प्रश्वासों को (सम् बृहतम्) उखाड़ दो। (निवाशाः) लगातार बोले हुए (घोषाः) घोषणा शब्द (सम् यन्तु) गूँज उठें, [जिन घोषणाओं को] (अमित्रेषु) अमित्रों पर (समीक्षयन्) दिखाता हुआ तू (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (तव) अपने (रदिते) तोड़-फोड़ कर्म में [वर्तमान हो] ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्रजाजन राजगणों के सहायक होकर शत्रुओं को घेर कर व्याकुल कर देवें ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(आ गृह्णीतम्) समन्तात् प्राप्नुतम् (सं बृहतम्) बृहू उद्यमने-लोट्। उत्खिदतं युवाम् (प्राणापानान्) (न्यर्बुदे) म० ४। हे निरन्तपुरुषार्थिन् प्रजागण त्वं च, हे शूर सेनापते राजन् त्वं च। (निवाशाः) वाशृ शब्दे-घञ्। निरन्तरभाष्यमाणाः (घोषाः) घोषणाशब्दाः (सं यन्तु) प्रतिध्वनिना संगच्छन्ताम् (अमित्रेषु) (समीक्षयन्) सम्यग् दर्शयन्, यान् घोषानिति शेषः। अन्यत् पूर्ववत्-म० ९ ॥

१२ उद्वेपय सम्

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उद्वे॑पय॒ सं वि॑जन्तां भिया॒मित्रा॒न्त्सं सृ॑ज।
उ॑रुग्रा॒हैर्बा॑ह्व॒ङ्कैर्विध्या॑मित्रान्न्यर्बुदे ॥

१२ उद्वेपय सम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Make thou [them] tremble; let them quake together; unite our
    enemies with fear; with broad-gripping arm-hooks pierce thou our
    enemies, O Nyarbudi.
Notes

The comm. reads in c ūrugrāhāis (which is not bad) and
bāhuvan̄kāis, explaining the latter by bāhunā vakrabandhanāiḥ. Our
P.M.W. read at the end amítrāṇy arbude: compare 6 a, above.

Griffith

Shake them, and let them sink with fear: e’erwhelm our enemies with dread. With widely-grasping bends of arm, O Arbudi, crush down our foes.

पदपाठः

उत्। वे॒प॒य॒। सम्। वि॒ज॒न्ता॒म्। भि॒या। अ॒मित्रा॑न्। सम्। सृ॒ज॒। उ॒रु॒ऽग्रा॒हैः। बा॒हु॒ऽअ॒ङ्कैः। विध्य॑। अ॒मित्रा॑न्। नि॒ऽअ॒र्बु॒दे॒। ११.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • अनुष्टुप्
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [उन्हें] (उद् वेपय) कँपा दे, (संविजन्ताम्) वे घबड़ाकर चले जावें, (अमित्रान्) अमित्रों को (भिया) भय के साथ (सं सृज) संयुक्त कर। (न्यर्बुदे) हे न्यर्बुदि ! [निरन्तर पुरुषार्थी प्रजागण] (उरुग्राहैः) चौड़ी पकड़वाले (बाह्वङ्कैः) भुज बन्धनों से (अमित्रान्) अमित्रों को (विध्य) बेध ले ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - युद्धचतुर प्रजागण शत्रुओं को पकड़ने और मारने में उत्साह करें ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(उद्वेपय) टुवेपृ कम्पने। उत्कम्पय (संविजन्ताम्) ओविजी भयचलनयोः। व्याकुलीभूय चलन्तु (भिया) भयेन (अमित्रान्) शत्रून् (संसृज) संयोजय (उरुग्राहैः) विस्तृतग्रहणयन्त्रयुक्तैः (बाह्वङ्कैः) अङ्क पदे लक्षणे च-घञ्। भुजबन्धनैः (विध्य) ताडय (अमित्रान्) (न्यर्बुदे) ॥

१३ मुह्यन्त्वेषां बाहवश्चित्ताकूतम्

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मुह्य॑न्त्वेषां बा॒हव॑श्चित्ताकू॒तं च॒ यद्धृ॒दि।
मैषा॒मुच्छे॑षि॒ किं च॒न र॑दि॒ते अ॑र्बुदे॒ तव॑ ॥

१३ मुह्यन्त्वेषां बाहवश्चित्ताकूतम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let their arms be confounded, and what thought-and-design is in
    their heart; let not anything of them be left—in case of thy bite, O
    Arbudi.
Notes

The second pāda is the same with vs. 1 d, above.

Griffith

Let those mens’ arms grow faint and weak, dull be the purpose of their heart; And let not aught of them be left when thou, O Arbudi, hast pierced.

पदपाठः

मुह्य॑न्तु। ए॒षा॒म्। बा॒हवः॑। चि॒त्त॒ऽआ॒कू॒तम्। च॒। यत्। हृ॒दि। मा। ए॒षा॒म्। उत्। शे॒षि॒। किम्। च॒न। र॒दि॒ते। अ॒र्बु॒दे॒। तव॑। ११.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • अनुष्टुप्
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (एषाम्) इन [शत्रुओं] की (बाहवः) भुजाएँ (मुह्यन्तु) निकम्मी हो जावें, (च) और (यत्) जो कुछ (हृदि) हृदय में (चित्ताकूतम्) विचार और सङ्कल्प हैं, (एषाम्) इनका (किं चन) वह कुछ भी, (अर्बुदे) हे अर्बुदि [शूर सेनापति राजन्] (तव) तेरे (रदिते) तोड़ने-फोड़ने पर (मा उत् शेषि) न बचा रहे ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - युद्धविशारद सेनापति की वीरता प्रकट होने पर शत्रुदल और उनके विचार और मनोरथ निष्फल पड़ जावें ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(मुह्यन्तु) मूढा निरर्थका भवन्तु (एषाम्) शत्रूणाम् (बाहवः) (चित्ताकूत्तम्) म० १। विचाराणां सङ्कल्पानां च समाहारः (च) (यत्) (हृदि) हृदये (एषाम्) (मा उच्छेषि) शिष्लृ विशेषणे-कर्मणि लुङ्। अवशिष्टं मा भूत् (किंचन) तत् किमपि। अन्यद् गतम्-म० ७ ॥

१४ प्रतिघ्नानाः सम्

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प्र॑तिघ्ना॒नाः सं धा॑व॒न्तूरः॑ पटू॒रावा॑घ्ना॒नाः।
अ॑घा॒रिणी॑र्विके॒श्यो᳡ रुद॒त्यः१॒॑ पुरु॑षे ह॒ते र॑दि॒ते अ॑र्बुदे॒ तव॑ ॥

१४ प्रतिघ्नानाः सम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Smiting themselves let them (f.) run together, smiting on the
    breast, the thighs (? paṭāurá), not anointing, with disheveled hair,
    wailing when the man is slain, bitten, O Arbudi, of thee.
Notes

Translated by Bloomfield, ib. (see vs. 7). I follow both translators in
rendering paṭāurá by ’thigh,’ although it is not too acceptable,
considering the familiarity of ūru as name for ’thigh.’ SPP. reads
instead paṭūrāú, with a very small minority of his mss. (of ours, only
B.s.m. has it), and with the comm. The latter defines it simply as
tat- (i.e. uraḥ) pradeśāu. He makes aghārin from agha and root
ṛ: aghena bhartṛviyogajanitena duḥkhenā ”rtāḥ!

Griffith

Self-smiting, beating breast and thigh, careless of unguent, with their hair dishevelled, weeping, hags shall run together, when a man is slain, when thou, O Arbudi, hast pierced.

पदपाठः

प्र॒ति॒ऽघ्ना॒नाः। सम्। धा॒व॒न्तु॒। उरः॑। प॒टू॒रौ। आ॒ऽघ्ना॒नाः। अ॒घा॒रिणीः॑। वि॒ऽके॒श्यः᳡। रु॒द॒त्यः᳡। पुरु॑षे। ह॒ते। र॒दि॒ते। अ॒र्बु॒दे॒। तव॑। ११.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (उरुः) छाती और (पटूरौ) दोनों पटूरों [छाती के दोनों ओर के भागों] को (प्रतिघ्नानाः) धुनती हुई और (आघ्नानाः) पीटती हुई, (अघारिणीः) बिना तेल लगाये, (विकेश्यः) केश बिखेरे हुए, (रुदत्यः) रोती हुई [स्त्रियाँ] (पुरुषे हते) [अपने] पुरुष के मारे जाने में, (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (तव) तेरे (रदिते) तोड़ने-फोड़ने पर (संधावन्तु) दौड़ती फिरें ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - रणक्षेत्र में शत्रुओं के मारे जाने पर उनकी स्त्रियाँ व्याकुल होकर इधर-उधर फिरती फिरें ॥१४॥इस मन्त्र का मिलान ऊपर मन्त्र ७ से करो ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४−(प्रतिघ्नानाः) म० ७। ताडयन्त्यः (संधावन्तु) इतस्ततः शीघ्रं गच्छन्तु (उरः) वक्षःस्थलम् (पटूरौ) मीनातेरूरम्। उ० १।६७। पट गतौ दीप्तौ वेष्टने च-ऊरन्। उरःप्रदेशौ। कण्ठाधोभागौ (आघ्नानाः) म० ७। हन शानच्। समन्तात् पीडयन्त्यः (अघारिणीः) अ+घृ सेके-घञ्, अघार-इनि, ङीप्। अघारिण्यः। घारेण सेचनद्रव्येण तैलादिना रहिताः (विकेश्यः) अ० १।२८।४। विकीर्णकेशाः (रुदत्यः) अश्रून् विमोचयन्त्यः। अन्यद् गतम् म० ७ ॥

१५ श्वन्वतीरप्सरसो रूपका

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श्व᳡न्वतीरप्स॒रसो॑ रूपका उ॒तार्बु॑दे।
अ॑न्तःपा॒त्रे रेरि॑हतीं रि॒शां दु॑र्णिहितै॒षिणी॑म्।
सर्वा॒स्ता अ॑र्बुदे॒ त्वम॒मित्रे॑भ्यो दृ॒शे कु॑रूदा॒रांश्च॒ प्र द॑र्शय ॥

१५ श्वन्वतीरप्सरसो रूपका ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Dog-accompanied Apsarases, she-jackals (? rū́pakā) also, O Arbudi,
    the riśā́, licking much in the inner vessel, seeking what is
    ill-deposited—all these (f.), O Arbudi, do thou make our enemies to see,
    and do thou show forth specters;—
Notes

The conclusion is nearly the same with vs. 1 e, f, g, above, and is
also repeated below ⌊vss. 22, 24⌋. The accent of śvànvatīs seems
certainly wrong, but it is read by all the mss., and avouched by the
commentary to Prāt. iii. 73. The translation of rūpakā is that of the
minor Pet. Lex., apparently founded solely on an Avestan analogue; the
comm. defines it as māyāvaśāt kevalaṁ rūpamātreṇo ’palabhyamānāḥ
senārūpakāḥ
. He reads antaḥ and pātre as two independent words,
according to his custom of caring nothing for accent. For riśām
(“tearing one, as designating some small animal,” minor Pet. Lex.) he
reads vaśām ‘cow,’ so that we lose any light he might have cast on the
obscure description. Bp. reads riṣā́m. Prāt. iii. 75 and iv. 77
prescribe the pada-reading durnihita-.

Griffith

Apsarases with dog-like mates, and Rupakas, O Arbudi, And her who licks the cup inside, and seeks to wound in ill- kept place, All these, O Arbudi, do thou make visible to our enemies and let them look on mists and fog.

पदपाठः

श्व᳡न्ऽवतीः। अ॒प्स॒रसः॑। रूप॑काः। उ॒त। अ॒र्बु॒दे॒। अ॒न्तः॒ऽपा॒त्रे। रेरि॑हतीम्। रि॒शाम्। दु॒र्नि॒हि॒त॒ऽए॒ष‍िणी॑म्। सर्वाः॑। ताः। अ॒र्बु॒दे॒। त्वम्। अ॒मित्रे॑भ्यः। दृ॒शे। कु॒रु॒। उ॒त्ऽआ॒रान्। च॒। प्र। द॒र्श॒य॒। ११.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (श्वन्वतीः) वृद्धिवाली (उत) और (अप्सरसः) प्रजाओं में व्यापनेवाली (रूपकाः) सुन्दरताएँ जतानेवाली क्रियायों को [मित्रों के लिये] (अन्तःपात्रे) भीतरले पात्र [अन्तःकरण] में (रेरिहतीम्) अत्यन्त युद्ध करनेवाली (दुर्णिहितैषिणीम्) दुष्ट प्रयोजन को खोजनेवाली (रिशाम्) पीड़ा को, (ताः सर्वाः) उन सब [पीड़ाओं] को, (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (त्वम्) तू (अमित्रेभ्यः दृशे) अमित्रों के लिये देखने को (कुरु) कर, (च) और [हमें अपने] (उदारान्) बड़ें उपायों को (प्र दर्शय) दिखादे ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राजा को योग्य है कि शिष्टों के साथ उनके श्रेष्ठ व्यवहारों के अनुसार श्रेष्ठ व्यवहार करे और दुष्टों को खोजकर उनकी दुष्टता के अनुसार दण्ड देवे, जिससे राजा की उत्तम नीति का प्रभाव सबको विदित हो जावे ॥१५॥मन्त्र के अन्तिम भाग के लिये मन्त्र १ तथा २२ और २४ देखो ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १५−(श्वन्वतीः) श्वन्नुक्षन्पूषन्०। उ० १।१५९। टुओश्वि गतिवृद्ध्योः कनिन्, मतुप्। अनो नुट्। पा० ८।२।१६। अन्नन्ताद् मतोर्नुट्। वृद्धिमतीः (अप्सरसः) अ० ४।३७।२। अप्+सृ गतौ-असि। अप्सु प्रजासु व्यापनशीलाः (रूपकाः) आतोऽनुपसर्गे कः। पा० ३।२।३। रूप+कै शब्दे−कः। उपपदमतिङ्। पा० २।२।१९। इति समासः। रूपाणि सौन्दर्याणि काययन्ति शब्दयन्ति ज्ञापयन्ति यास्ताः क्रियाः (उत) अपि च (अर्बुदे) म० १। हे शूर सेनापते राजन् (अन्तःपात्रे) मध्यवर्तिनि पात्रे। अन्तःकरणे (रेरिहतीम्) रिह कत्थनयुद्धनिन्दाहिंसादानेषु-यङ्लुकि शतृ, ङीप्। भृशं युध्यमानाम् (रिशाम्) रिश हिंसायाम्-क, टाप्। पीडाम् (दुर्णिहितैषिणीम्) दुर्+नि+धा-क्त+इष इच्छायाम्-णिनि। दुष्टं स्थापितं प्रयोजनमन्विच्छन्तीम् (सर्वाः) (ताः) पीडाः। अन्यद् गतम्-म० १ ॥

१६ खडूरेऽधिचङ्क्रमां खर्विकाम्

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ख॒डूरे॑ऽधिचङ्क्र॒मां खर्वि॑कां खर्ववा॒सिनी॑म्।
य उ॑दा॒रा अ॒न्तर्हि॑ता गन्धर्वाप्स॒रस॑श्च॒ ये स॒र्पा इ॑तरज॒ना रक्षां॑सि ॥

१६ खडूरेऽधिचङ्क्रमां खर्विकाम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Her that strides upon the khaḍū́ra, mutilated, wearing what is
    mutilated (?); the specters that are concealed, and what
    Gandharvas-and-Apsarases [there are], serpents, other-folk, demons;—
Notes

The comm. reads at the beginning khadūre, and explains it as ākāśe
dūradeśe;
our Bp.Kp. have ṣaḍū́re. Again neglecting the accent, he
takes adhi and can̄kramām as two independent words. He also reads
-vāśinīm in b; -vāsin might be ‘dwelling’ (so understood by the
Pet. Lexx. and Ludwig). Finally, he reckons the last (irregular) pāda to
the following verse. ⌊Pada e = 10. 1 c.⌋

Griffith

The fiend who creeps upon the sword, maimed, dwelling where Lthe wounded lie, The misty shapes that lurk concealed, Gandharvas and Apsara- ses, demons, and snakes and Other Folk;

पदपाठः

ख॒डूरे॑। अ॒धि॒ऽच॒ङ्क॒माम्। खर्वि॑काम्। ख॒र्व॒ऽवा॒सिनी॑म्। ये। उ॒त्ऽआ॒राः। अ॒न्तःऽहि॑ताः। ग॒न्ध॒र्व॒ऽअ॒प्स॒रसः॑। च॒। ये। स॒र्पाः। इ॒त॒र॒ऽज॒नाः। रक्षां॑सि। ११.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • त्र्यवसाना पञ्चपदा विराडुपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (खडूरे) खङ्ग [तरवार] पर (अधिचङ्क्रमाम्) निधड़क चढ़ जानेवाली, (खर्विकाम्) अभिमानिनी, (खर्ववासिनीम्) खर्वों [बहुत गिनती मनुष्यों] में रहनेवाली [सेना] को और (ये) जो (उदाराः) उदार [दानशील] (च) और (ये) जो (अन्तर्हिताः) अन्तःकरण से हितकारी (गन्धर्वाप्सरसः) गन्धर्व [पृथिवी के धारण करनेवाले] और अप्सर [प्रजाओं वा आकाश में चलनेवाले विवेकी लोग हैं, उनको, दिखा-म–० १५] और [जो] (सर्पाः) सर्प [के समान हिंसक], (इतरजनाः) पामरजन (रक्षांसि) राक्षस हैं [उनको, कँपा दे-म० १८] ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में (दर्शय) [दिखा] मन्त्र १५ से और (उत् वेपय) (कँपा दे) क्रिया पद-मन्त्र १८ से लाया गया है। राजा अपनी सुनीति से सुशिक्षित वीर सेना और हितैषी, भूमिविद्या और आकाशविद्या जाननेवाले विज्ञानियों द्वारा दुष्टों को दण्ड देवे, जिससे शत्रु लोग पृथिवी वा आकाशमार्ग से कष्ट न दे सकें ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६−(खडूरे) मीनातेरूरन् उ० १।६७। खड भेदने-ऊरन्। खङ्गे। तरवारौ (अधिचङ्क्रमाम्) क्रमु पादविक्षेपे, यङ्लुकि नुक्-पचाद्यच्। यङोऽचि च। पा० २।४।७३। यङो लुक्। भृशमधिक्रमणशीलाम् (खर्विकाम्) खर्व दर्पे-ण्वुल्। अभिमानिनीम् (खर्ववासिनीम्) खर्वेषु संख्याविशेषेषु निवसन्तीं सेनाम् (ये) (उदाराः) दानशीलाः (अन्तर्हिताः) अन्तःकरणेन हितकारिणः (गन्धर्वाप्सरसः) अ० ११।६।४। गां पृथिवीं धरन्ति ये ते गन्धर्वाः। अप्सु प्रजासु आकाशे वा सरन्ति ये ते अप्सरसः। ते सर्वे विवेकिनः (च) (ये) (सर्पाः) सर्ववत् क्रूराः (इतरजनाः) पामरलोकाः (रक्षांसि) राक्षसाः ॥

१७ चतुर्दंष्ट्राञ्छ्यावदतः कुम्भमुष्काँ

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चतु॑र्दंष्ट्राञ्छ्या॒वद॑तः कु॒म्भमु॑ष्काँ॒ असृ॑ङ्मुखान्।
स्व॑भ्य॒सा ये चो॑द्भ्य॒साः ॥

१७ चतुर्दंष्ट्राञ्छ्यावदतः कुम्भमुष्काँ ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The four-tusked ones, the black-toothed, the pot-testicled, the
    blood-faced; they that are self-frighting and frighting.
Notes

The first four epithets are accus. pl. masc.; probably, like the accus.
fem. at beginning of vs. 16, objects of prá darśaya ‘show forth’ in
vs. 15. The comm. explains svabhyasās and udbhy- by svāyattabhītayo
rākṣaṣāḥ
and udgatabhītayaḥ.

Griffith

Armed with four fangs and yellow teeth, deformed, with faces smeared with blood, the terrible and fearless ones,

पदपाठः

चतुः॑ऽदंष्ट्रान्। श्या॒वऽद॑तः। कु॒म्भऽमु॑ष्कान्। असृ॑क्ऽमुखान्। स्व॒ऽभ्य॒साः। ये। चे॒। उ॒त्ऽभ्य॒साः। ११.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • त्रिपदा गायत्री
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (चतुर्दंष्ट्रान्) चार डाढ़ोंवालों [बड़े हाथियों] और (श्यावदतः) काले दातोंवाले, (कुम्भमुष्कान्) कुम्भसमान [घड़ा समान बड़े] अण्डकोशवाले (असृङ्मुखान्) रुधिरमुखों [सिंह आदि जीवों] को (च) और (ये) जो (स्वभ्यसाः) स्वभाव से भयानक [और जो] (उद्भ्यसाः) ऊपरी [आकार से] भयानक हैं [उनको, कँपा दे म० १८] ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में (उत् वेपय) [कँपा दे] क्रिया पद-मन्त्र १८ से आता है। राजा भयानक हिंसक जीवों और उनके समान दुष्ट मनुष्यों को राज्य से हटाकर प्रजापालन करें ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७−(चतुर्दंष्ट्रान्) चतुर्दन्तान् महागजान् (श्यावदतः) श्यामवर्णदन्तयुक्तान् (कुम्भमुष्कान्) कुम्भाकृतिमुष्कयुक्तान् (असृङ्मुखान्) रुधिरमुखान् सिंहादीन् (स्वभ्यसाः) भ्यस भये-घञर्थे क प्रत्ययः। स्वेन आत्मना स्वभावेन भयानकाः (ये) (च) (उद्भ्यसाः) ऊर्ध्वप्रकारेण भयानकाः ॥

१८ उद्वेपय त्वमर्बुदेऽमित्राणाममूः

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उद्वे॑पय॒ त्वम॑र्बुदे॒ऽमित्रा॑णाम॒मूः सिचः॑।
जयां॑श्च जि॒ष्णुश्चा॒मित्राँ॒ जय॑ता॒मिन्द्र॑मेदिनौ ॥

१८ उद्वेपय त्वमर्बुदेऽमित्राणाममूः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Do thou, O Arbudi, make to tremble yonder lines (síc) of our
    enemies; let both the conquering one and the conqueror, allied with
    Indra, conquer our enemies.
Notes

SPP. reads in his saṁhitā-text jáyāṅś ca in c, with the large
majority of his mss., and with part of ours (E.O.s.m.K.). The
prolongation being so anomalous, and unsupported by the Prāt., I thinkk
jáyaṅś ca decidedly the more acceptable reading. The comm. gives it.
He also has śucas for sicas in b. Read amitrāṅ at end of
c, with anusvāra-sign, not anunāsika. ⌊Pāda b = 10. 20
b.⌋

Griffith

Make thou, O Arbudi, those wings of hostile armies quake with dread. Let Conqueror and Victor, friends of Indra, overcome our foes.

पदपाठः

उत्। वे॒प॒य॒। त्वम्। अ॒र्बु॒दे॒। अ॒मित्रा॑णाम्। अ॒मूः। सिचः॑। जय॑न्। च॒। जि॒ष्णुः। च॒। अ॒मित्रा॑न्। जय॑ताम्। इन्द्र॑ऽमेदिनौ। ११.१८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • अनुष्टुप्
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (त्वम्) तू (अमित्राणाम्) शत्रुओं की (अमूः) उन (सिचः) सेचनशील [उमड़ती हुई सेनाओं] को (उत् वेपय) कँपा दे। (जयन्) जीतता हुआ [प्रजागण] (च च) और (जिष्णुः) विजयी [राजा], (इन्द्रमेदिनौ) जीवों के स्नेही आप दोनों (अमित्रान्) वैरियों को (जयताम्) जीतें ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परस्पर प्रसन्नचित्त प्रजागण और राजगण शत्रुओं की सहायक सेनाओं को तुरन्त जीत लेवें ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १८−(उत्) उत्कर्षेण (वेपय) म० १२। कम्पय (त्वम्) (अर्बुदे) म० १। शूर सेनापते राजन् (अमित्राणाम्) शत्रूणाम् (अमूः) दृश्यमानाः (सिचः) षिच आर्द्रीकरणे-क्विप्। सेचनशीलाः सहायिकाः सेनाः (जयन्) सांहितिको दीर्घः। पराभावयन् प्रजागणः (जिष्णुः) जयशीलः सेनापतिः (च) (अमित्रान्) शत्रून् (जयताम्) पराभावयताम् (इन्द्रमेदिनौ) म० ४। जीवानां स्नेहिनौ राजप्रजागणौ ॥

१९ प्रब्लीनो मृदितः

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प्रब्ली॑नो मृदि॒तः श॑यां ह॒तोऽमित्रो॑ न्यर्बुदे।
अ॑ग्निजि॒ह्वा धू॑मशि॒खा जय॑न्तीर्यन्तु॒ सेन॑या ॥

१९ प्रब्लीनो मृदितः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let our enemy lie squelched, crushed, slain, O Nyarbudi; let tongues
    of fire, tufts of smoke, go conquering with the army.
Notes

The comm. reads in a pravlīnas, in accordance with the more usual
form.

Griffith

Stifled and crushed, O Nyarbudi, low let the smitten foeman lie. With tongue of fire and crest of smoke go conquering maidens with our host!

पदपाठः

प्रऽब्ली॑नः। मृ॒दि॒तः। श॒या॒म्। ह॒तः। अ॒मित्रः॑। नि॒ऽअ॒र्बु॒दे॒। अ॒ग्नि॒ऽजि॒ह्वाः। धू॒म॒ऽशि॒खाः। जय॑न्तीः। य॒न्तु॒। सेन॑या। ११.१९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • अनुष्टुप्
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (न्यर्बुदे) हे न्यर्बुदि ! [निरन्तर पुरुषार्थी प्रजागण] (प्रब्लीनः) घिरा हुआ, (मृदितः) कुचला हुआ (हतः) मारा गया (अमित्रः) वैरी (शयाम्) सो जावे। (अग्निजिह्वाः) अग्नि की जीभें [लपटें] और (धूमशिखाः) धुएँ की चोटियाँ [आग्नेय शस्त्रों से] (सेनया) सेना द्वारा (जयन्तीः) जीतती हुई (यन्तु) चलें ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - धर्मात्माओं के सेना दल आग्नेय आदि शस्त्रों को जल, थल और आकाश से इस प्रकार छोड़ें कि शत्रु लोग रुन्ध-खुँद कर मर जावें ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १९−(प्रब्लीनः) व्ली स्वीकरणे वेष्टने गतौ च-क्त, वस्य बः। वेष्टितः। आच्छादितः (मृदितः) संपिष्टगात्रः (शयाम्) लोपस्त आत्मनेपदेषु। पा० ७।१।४१। तलोपः। शेताम् (हतः) नाशितः (अमित्रः) पीडकः शत्रुः (न्यर्बुदे) म० ४। हे निरन्तरपुरुषार्थिन् प्रजागण (अग्निजिह्वाः) आग्नेयशस्त्राणामग्नेर्ज्वालाः (धूमशिखाः) धूमस्य शिखररूपाः समुच्चयाः (जयन्तीः) शत्रुबलं जयन्त्यः (यन्तु) गच्छन्तु (सेनया) ॥

२० तयार्बुदे प्रणुत्तानामिन्द्रो

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तया॑र्बुदे॒ प्रणु॑त्ताना॒मिन्द्रो॑ हन्तु॒ वरं॑वरम्।
अ॒मित्रा॑णां॒ शची॒पति॒र्मामीषां॑ मोचि॒ कश्च॒न ॥

२० तयार्बुदे प्रणुत्तानामिन्द्रो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Of our enemies, pushed forth by it, O Arbudi, let Indra, lord of
    might (śácīpáti), slay each best man (vára); let no one soever of
    them be freed.
Notes

‘By it’—i.e. by the army; the comm. reads instead tvayā ‘by thee.’
With a, b compare vi. 67. 2 c, d. ⌊Our d occurs several
times: see note to iii. 19. 8.⌋

Griffith

May Indra, Lord of Might, strike down each bravest warrior of the foes, Whom this our band hath put to flight: let not one man of those escape.

पदपाठः

तया॑। अ॒र्बु॒दे॒। प्रऽनु॑त्तानाम्। इन्द्रः॑। ह॒न्तु॒। वर॑म्ऽवरम्। अ॒मित्रा॑णाम्। श॒ची॒ऽपतिः॑। मा। अ॒मीषा॑म्। मो॒चि॒। कः। च॒न। ११.२०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • अनुष्टुप्
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (शचीपतिः) वाणियों, कर्मों और बुद्धियों के पालनेवाले, (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले आप] (तया) उस [सेना के द्वारा] (प्रणुत्तानाम्) बाहिर हटाये गये (अमित्राणाम्) वैरियों में से (वरंवरम्) अच्छे-अच्छे को (हन्तु) मारे। (अमीषाम्) इनमें से (कः चन) कोई भी (मा मोचि) न छूटे ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - युद्धकुशल (शचीपति) यथार्थ बोलनेवाला, यथार्थ कर्मवाला और यथार्थ बुद्धिवाला सेनापति शत्रुओं के सब नायकों को मार कर परास्त कर देवे ॥२०॥देखो-अथर्व० ६।६७।२। और-अथर्व० ३।१९।८ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २०−(तया) सेनया (अर्बुदे) म० १। हे शूरसेनापते राजन् (प्रणुत्तानाम्) बहिष्प्रेरितानाम् (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सेनापतिः (हन्तु) मारयतु (वरंवरम्) अ० ६।६७।२। श्रेष्ठं श्रेष्ठं नायकम् (अमित्राणाम्) (शचीपतिः) अ० ३।१०।१२। शची=वाक्-निघ० १।११। कर्म २।१। प्रज्ञा−३।९। शचीनां वाचां कर्मणां प्रज्ञानां च पालकः। यथार्थवक्ता यथार्थकर्मा यथार्थप्रज्ञश्च (अमीषाम्) शत्रूणाम् (मा मोचि) अ० ३।१९।८। मा मुच्यताम् (कश्चन) कोऽपि ॥

२१ उत्कसन्तु हृदयान्यूर्ध्वः

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उत्क॑सन्तु॒ हृद॑यान्यू॒र्ध्वः प्रा॒ण उदी॑षतु।
शौ॑ष्का॒स्यमनु॑ वर्तताम॒मित्रा॒न्मोत मि॒त्रिणः॑ ॥

२१ उत्कसन्तु हृदयान्यूर्ध्वः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let their hearts burst open (ut-kas), their breath pass up aloft;
    let dryness of mouth follow after our enemies, ⌊and⌋ not those who are
    friendly.
Notes

The comm. renders ut kasantu by śarīrād udgacchantu, and ud īṣatu
equivalently.

Griffith

Let their hearts burst asunder, let their breath fly up and pass away. Let dryness of the mouth o’ertake our foemen, not the friendly ones.

पदपाठः

उत्। क॒स॒न्तु॒। हृद॑यानि। ऊ॒र्ध्वः। प्रा॒णः। उत्। ई॒ष॒तु॒। शौ॒ष्क॒ऽआ॒स्यम्। अनु॑। व॒र्त॒ता॒म्। अ॒मित्रा॑न्। मा। उ॒त। मि॒त्रिणः॑। १९.२१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • अनुष्टुप्
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [शत्रुओं के] (हृदयानि) हृदय (उत् कसन्तु) उकस जावें [हिल जावें], (प्राणः) प्राण [श्वास-प्रश्वास] (ऊर्ध्वः) ऊँचा होकर (उत् ईषतु) चढ़ जावे। (शौष्कास्यम्) मुख की सुखाई (अमित्रान् अनु) शत्रुओं को (वर्तताम्) व्यापे, (उत) और (मित्रिणः) [हमारे लिये] मित्र रखनेवाले जनों को (मा) न [व्यापे] ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो लोग अपने मित्रों सहित हमारे सहायक होते हैं, उन वीरों के भय से शत्रुदल व्याकुल होकर कष्ट पावें और धर्मात्मा लोग सुख पावें ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २१−(उत् कसन्तु) कस गतौ। उद्गच्छन्तु (हृदयानि) अन्तःकरणानि (ऊर्ध्वः) उच्चगतिः सन् (प्राणः) श्वासप्रश्वासव्यापारः (उदीषतु) ईष गतौ। निर्गच्छतु (शौष्कास्यम्) शुष्कास्यता। मुखस्य निर्द्रवत्वम् (अनु) प्रति (वर्तताम्) व्याप्यताम् (अमित्रान्) पीडकान् (मा) निषेधे (उत) अपि च (मित्रिणः) मित्र-इनि। अस्मभ्यं मित्राणि सन्ति येषां तान् जनान्-अनु-वर्ततामिति शेषः ॥

२२ ये च

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ये च॒ धीरा॒ ये चाधी॑राः॒ परा॑ञ्चो बधि॒राश्च॒ ये।
त॑म॒सा ये च॑ तूप॒रा अथो॑ बस्ताभिवा॒सिनः॑।
सर्वां॒स्ताँ अ॑र्बुदे॒ त्वम॒मित्रे॑भ्यो दृ॒शे कु॑रूदा॒रांश्च॒ प्र द॑र्शय ॥

२२ ये च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both they who are wise (dhī́ra) and they who are unwise, those
    going away and they who are deaf, they of darkness arid they who are
    hornless (tūpará), likewise those that smell of (?) the goat—all
    those (m.), O Arbudi, do thou make our enemies to see, and do thou show
    forth specters.
Notes

The meaning of -abhivāsin is wholly uncertain ⌊cf. Pāli vāsita⌋; the
Pet. Lex. conjectures instead -abhivāśin, and the comm. reads
bastāvivāśin, as from basta + avi + vāśin. He also, in defiance of
pada-text and accent, renders tamasā́s as támasā. ⌊Cf. nabhasá-s
(not nábhas-as), ix. 4. 22.⌋

Griffith

The clever and the foolish ones, those who are twisted round, the deaf, The dusky-hued, the hornless goats and those whose voice is like the buck’s, All these, O Arbudi, do thou make visible to our enemies: cause them to look on mists and fog.

पदपाठः

ये। च॒। धीराः॑। ये। च॒। अधी॑राः। परा॑ञ्चः। ब॒धि॒राः। च॒। ये। त॒म॒साः। ये। च॒। तू॒प॒राः। अथो॒ इति॑। ब॒स्त॒ऽअ॒भि॒वा॒सिनः॑। सर्वा॑न्। तान्। अ॒र्बु॒दे॒। त्वम्। अ॒मित्रे॑भ्यः। दृ॒शे। कु॒रु॒। उ॒त्ऽआ॒रान्। च॒। प्र। द॒र्श॒य॒। ११.२२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (धीराः) धीर [धैर्यवान्] (च च) और (ये) जो (अधीराः) अधीर [चंचल], (पराञ्चः) हट जानेवाले (च) और (ये) जो (बधिराः) बहिरे [शिक्षा न सुननेवाले] हैं। (च) और (ये) जो (तमसाः) अन्धकारयुक्त, (तूपराः) हिंसक (अथो) और (बस्ताभिवासिनः) उद्योगों में रहनेवाले हैं। (तान् सर्वान्) इन सब [लोगों] को, (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (त्वम्) तू (अमित्रेभ्यः दृशे) अमित्रों के लिये देखने के लिये (कुरु) कर (च) और [हमें अपने] (उदारान्) बड़े उपायों को (प्र दर्शय) दिखादे ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राजा को योग्य है कि वह धीर-अधीर, शूर-कातर, उद्योगी-अनुद्योगी आदि पुरुषों की विवेचना करके शत्रुओं को अपनी सुनीति का निश्चय करादे ॥२२॥मन्त्र के अन्तिम भाग के लिये मन्त्र १।१५ तथा २४ देखो ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २२−(ये) मनुष्याः) (च) (धीराः) धैर्यवन्तः। प्रज्ञानवन्तो ध्यानवन्तः निरु० ४।१०। (ये) (च) (अधीराः) चञ्चलाः (पराञ्चः) पराङ्मुखाः। पलायमानाः (बधिराः) शिक्षायां हतश्रवणसामर्थ्याः (च) (ये) (तमसाः) तमस्-अर्शआद्यच्। अन्धकारेण युक्ताः शठाः (ये) (च) (तूपराः) ऋच्छेररः। उ० ३।१३१। तुप हिंसायाम्-अर प्रत्ययः, गुणाभावे दीर्घः। हिंसकाः (अथो) अपि च (बस्ताभिवासिनः) वस्त गतिहिंसायाचनेषु-घञ्, वस्य बः+वस निवासे-णिनि। गतिषु उद्योगेषु निवासशीलाः (सर्वान्) (तान्) अन्यद्गतम्-म० १ ॥

२३ अर्बुदिश्च त्रिषन्धिश्चामित्रान्नो

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अर्बु॑दिश्च॒ त्रिष॑न्धिश्चा॒मित्रा॑न्नो॒ वि वि॑ध्यताम्।
यथै॑षामिन्द्र वृत्रह॒न्हना॑म शचीपते॒ऽमित्रा॑णां सहस्र॒शः ॥

२३ अर्बुदिश्च त्रिषन्धिश्चामित्रान्नो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let both Arbudi and Trishandhi pierce through our enemies, in order
    that, O Indra, Vṛitra-slayer, lord of might, we may slay of them, of our
    enemies, by thousands.
Notes

Triṣandhi, lit. ‘of three joints,’ is conspicuous especially in the
next hymn. The comm. explains it here as kaścit senāmohako devaḥ
saṁdhitrayopetavajrāyudhābhimānī vā
.

Griffith

Arbudi and Trishandhi fall upon our foes and scatter them, So that, O Indra, Lord of Might, Slayer of Vritra, we may kill thousands of these our enemies!

पदपाठः

अर्बु॑दिः। च॒। त्रिऽसं॑धिः। च॒। अ॒मित्रा॑न्। नः॒। वि। वि॒ध्य॒ता॒म्। यथा॑। ए॒षा॒म्। इ॒न्द्र॒। वृ॒त्र॒ऽह॒न्। हना॑म। श॒ची॒ऽप॒ते॒। अ॒मित्रा॑णाम्। स॒ह॒स्र॒ऽशः। ११.२३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अर्बुदिः) अर्बुदि [शूर सेनापति राजा] (च च) और (त्रिषन्धिः) त्रिसन्धि [तीनों कर्म, उपासना और ज्ञान में मेल अर्थात् प्रीति रखनेवाला विद्वान् पुरुष, आप दोनों] (नः) हमारे (अमित्रान्) शत्रुओं को (वि विध्यताम्) छेद डालें। (यथा) जिससे (वृत्रहन्) हे अन्धकारनाशक ! (शचीपते) वाणियों, कर्मों और बुद्धियों के पालनेवाले (इन्द्र) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (एषाम्) इन (अमित्राणाम्) शत्रुओं को (सहस्रशः) सहस्र-सहस्र करके (हनाम) हम मारें ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - बलवान् राजगण और त्रयी विद्या में कुशल, अर्थात् कर्म अपने कर्तव्य, उपासना ईश्वरभक्ति और ज्ञान सूक्ष्मदर्शितावाले विद्वान् जन परस्पर मिलकर शत्रुओं को हराकर प्रजापालन करें ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २३−(अर्बुदिः) म० १। शूरः सेनापतिः राजा (च) (त्रिषन्धिः) त्रिषु कर्मोपासनाज्ञानेषु सन्धिः संयोगः प्रीतिर्यस्य स त्रयीकुशलो विद्वान् पुरुषः (च) (अमित्रान्) (शत्रून्) (नः) अस्माकम् (वि) विविधम् (विध्यताम्) बहु ताडयताम् (यथा) येन प्रकारेण (एषाम्) कर्मणि षष्ठी। इमान् (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (वृत्रहन्) अन्धकारनाशक (हनाम) मारयाम (शचीपते) म० २०। शचीनां वाचां कर्मणां प्रज्ञानां च पालक (अमित्राणाम्) शत्रूणाम् (सहस्रशः) अ० ८।८।१। सहस्रं सहस्रम् ॥

२४ वनस्पतीन्वानस्पत्यानोषधीरुत वीरुधः

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वन॒स्पती॑न्वानस्प॒त्यानोष॑धीरु॒त वी॒रुधः॑।
ग॑न्धर्वाप्स॒रसः॑ स॒र्पान्दे॒वान्पु॑ण्यज॒नान्पि॒तॄन्।
सर्वां॒स्ताँ अ॑र्बुदे॒ त्वम॒मित्रे॑भ्यो दृ॒शे कु॑रूदा॒रांश्च॒ प्र द॑र्शय ॥

२४ वनस्पतीन्वानस्पत्यानोषधीरुत वीरुधः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The forest-trees, them of the forest-trees, herbs and plants,
    Gandharvas-and-Apsarases, serpents, gods, pure-folk (puṇyajaná).
    Fathers—all those, O Arbudi, do thou make our enemies to see, and do
    thou show forth specters.
Notes

The comm. identifies the ‘pure-folk’ with the yakṣas. ⌊With c, d,
cf. viii. 8. 15, above.⌋ ⌊Cf. Kāuś. 73. 5.⌋

Griffith

Tall trees, and those who live in woods, the herbs and creeping plants of Earth, Gandharvas, and Apsarases, Snakes, Beings, Fathers, Gods, All these do thou, O Arbudi, make visible to our enemies: cause them to look on mists and fog.

पदपाठः

वन॒स्पती॑न्। वा॒न॒स्प॒त्यान्। ओष॑धीः। उ॒त। वी॒रुधः॑। ग॒न्ध॒र्व॒ऽअ॒प्स॒रसः॑। स॒र्पान्। दे॒वान्। पु॒ण्य॒ऽज॒नान्। पि॒तॄन्। सर्वा॑न्। तान्। अ॒र्बु॒दे॒। त्वम्। अ॒मित्रे॑भ्यः। दृ॒शे। कु॒रु॒। उ॒त्ऽआ॒रान्। च॒। प्र। द॒र्श॒य॒। ११.२४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वनस्पतीन्) सेवनीय शास्त्रों के पालन करनेवाले पुरुषों (वानस्पत्यान्) सेवनीय शास्त्रों के पालन करनेवालों के सम्बन्धी पदार्थों (ओषधीः) अन्न आदि ओषधियों, (उत) और (वीरुधः) जड़ी-बूटियों को, (गन्धर्वाप्सरसः) गन्धर्वों [पृथिवी के धारण करनेवालों] और अप्सरों [आकाश में चलनेवालों] (सर्पान्) सर्पों [सर्पों के समान तीव्र दृष्टिवालों] (देवान्) विजय चाहनेवालों, (पुण्यजनान्) पुण्यात्मा (पितॄन्) पितरों [महाविद्वानों] (तान् सर्वान्) इन सब लोगों को (अर्बुदे) हे अर्बुदि [शूर सेनापति राजन्] (त्वम्) तू (अमित्रेभ्यः दृशे) अमित्रों के लिये देखने को (कुरु) कर (च) और [हमें अपने] (उदारान्) बड़े उपायों को (प्र दर्शय) दिखादे ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राजा वेदवेत्ताओं, उत्तम अन्न आदि पदार्थों, विश्वकर्मा शिल्पियों और वैज्ञानिक आदि लोगों का संग्रह करके शत्रुओं को अपना वैभव दिखावे ॥२४॥इस मन्त्र का पहिला और दूसरा भाग अ० ८।८।१४। तथा १५ में और तीसरा भाग इस सूक्त के मन्त्र २२ में आया है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २४−प्रथमद्वितीयभागौ व्याख्यातौ-अ० ८।८।१४, १५ तथा तृतीयो व्याख्यातोऽस्मिन् सूक्ते-म० २२ ॥

२५ ईशां वो

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ई॒शां वो॑ म॒रुतो॑ दे॒व आ॑दि॒त्यो ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑।
ई॒शां व॒ इन्द्र॑श्चा॒ग्निश्च॑ धा॒ता मि॒त्रः प्र॒जाप॑तिः।
ई॒शां व॒ ऋष॑यश्चक्रुर॒मित्रे॑षु समी॒क्षय॑न्रदि॒ते अ॑र्बुदे॒ तव॑ ॥

२५ ईशां वो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Mastery over you have the Maruts [gained], the heavenly Āditya,
    Brahmaṇaspati; mastery over you have both Indra and Agni, Dhātar, Mitra,
    Prajāpati; mastery over you have the seers gained (kṛ)—exhibiting
    among the enemies—in case of thy bite, O Arbudi.
Notes

One would like to emend devás to devā́s in a.

Griffith

High sway have Maruts, and the God Aditya, Brahmanaspati, High sway have Indra, Agni, and Dilator, Mitra, Prajapati, High sway have Rishis given to you, showing upon our enemies where thou, O Arbudi, hast pierced.

पदपाठः

ई॒शाम्। वः॒। म॒रुतः॑। दे॒वः। आ॒दि॒त्यः। ब्रह्म॑णः। पतिः॑। ई॒शाम्। वः॒। इन्द्रः॑। च॒। अ॒ग्निः। च॒। धा॒ता। मि॒त्रः। प्र॒जाऽप॑तिः। ई॒शाम्। वः॒। ऋष॑यः। च॒क्रुः॒। अ॒मित्रे॑षु। स॒म्ऽई॒क्षय॑न्। र॒दि॒ते। अ॒र्बु॒दे॒। तव॑। ११.२५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्यो !] (मरुतः) शूर लोग, (देवः) विजयी, (आदित्यः) आदित्य [अखण्ड ब्रह्मचारी] और, (ब्रह्मणः प्रतिः) वेद का रक्षक पुरुष (वः) तुम्हारे (ईशाम्) शासक [हुए हैं]। (इन्द्रः) बड़ा ऐश्वर्यवान्, (अग्निः) तेजस्वी, (धाता) धारणकर्ता (च) और (मित्रः) प्रेरक (च) और (प्रजापतिः) प्रजापालक मनुष्य (वः) तुम्हारे (ईशाम्) शासक [हुए हैं]। (ऋषयः) ऋषि लोग [महाज्ञानी पुरुष] (वः) तुम्हारे (ईशां चक्रुः) शासक हुए हैं, [जिन विद्वानों को] (अमित्रेषु) वैरियों पर (समीक्षयन्) दिखाता हुआ, (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (तव) अपने (रदिते) तोड़-फोड़ कर्म में [तू वर्तमान हुआ है] ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे पूर्वकाल में शूर वीर और महर्षियों के सत्सङ्ग से राजा लोग शासनविद्या में चतुर हुए हैं, वैसे ही सब मनुष्य पूर्वजों के अनुकरण से कार्यसिद्धि करें ॥२५॥अन्तिम भाग का मिलान मन्त्र ९ के अन्तिम भाग से करो ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २५−(ईशाम्) प्रत्ययश्रवणसामर्थ्यात्, चक्रुरिति अन्ते श्रूयमाणं सर्वत्र संबध्यते। ईशांचक्रुः (वः) अधीगर्थदयेशां कर्मणि। पा० २।३।५२। इति षष्ठी। युष्माकम् (मरुतः) अ० १।२०।१। शूरवीराः पुरुषाः (देवः) विजिगीषुः (आदित्यः) अ० १।९।१। अ+दो अवखण्डने-क्तिन्, अदिति-ण्य। अदितिर्व्रतखण्डराहित्यं यस्य सः। अखण्डव्रती (ब्रह्मणः) वेदस्य (पतिः) पालकः (ईशाम्) (वः) (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् पुरुषः (च) (अग्निः) तेजस्वी (च) (धाता) धाता (मित्रः) प्रेरकः (प्रजापतिः) प्रजापालकः (ईशांचक्रुः) ईश ऐश्वर्ये-लिट्। इजादेश्च गुरुमतोऽनृच्छः। पा० ३।१।३६। आम् प्रत्ययः। आम् प्रत्ययवत् कृञोऽनुप्रयोगस्य। पा० १।३।६३। अनुप्रयुज्यमानस्य करोतेरात्मनेपदाभावश्छान्दसः। ईशांचक्रिरे। ईश्वरा नियन्तारो बभूवुः (वः) (ऋषयः) अ० २।६।१। साक्षात्कृतधर्माणः। अन्यद् गतम् म० ९ ॥

२६ तेषां सर्वेषामीशाना

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तेषां॒ सर्वे॑षा॒मीशा॑ना॒ उत्ति॑ष्ठत॒ सं न॑ह्यध्वं॒ मित्रा॒ देव॑जना यू॒यम्।
इ॒मं सं॑ग्रा॒मं सं॒जित्य॑ यथालो॒कं वि ति॑ष्ठध्वम् ॥

२६ तेषां सर्वेषामीशाना ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Masters (ī́śāna) of them all, stand ye up, equip yourselves, ye
    friends, god-folks; having wholly conquered in this conflict, scatter ye
    to your several worlds.
Notes

The mss. set the avasāna in this verse after yūyám, and SPP. very
properly does the same. ⌊Our b, c = 2 a, b: b = 10. 1
a.⌋

⌊The quoted Anukr. says “ye bāhavaḥ”: see vs. 1.⌋

Griffith

With full dominion over these, rise, stand ye up, prepare your- selves, Ye are our friends, celestial hosts. When ye have won this battle, go, each to his several sphere, apart. HYMN X

पदपाठः

तेषा॑म्। सर्वे॑षाम्। ईशा॑नाः। उत्। ति॒ष्ठ॒त॒। सम्। न॒ह्य॒ध्व॒म्। मित्राः॑। देव॑ऽजनाः। यू॒यम्। इ॒मम्। स॒म्ऽग्रा॒मम्। स॒म्ऽजित्य॑। य॒था॒ऽलो॒कम्। वि। ति॒ष्ठ॒ध्व॒म्। ११.२६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अर्बुदिः
  • काङ्कायनः
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • शत्रुनिवारण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तेषां सर्वेषाम्) उन सबों के (ईशानाः) शासक होकर, (मित्राः) हे प्रेरक (देवजनाः) विजयी जनो ! (यूयम्) तुम (उत् तिष्ठत) उठो और (संनह्यध्वम्) कवचों को पहिनो। (इमं सङ्ग्रामम्) इस संग्राम को (संजित्य) जीतकर (यथालोकम्) अपने-अपने लोकों [स्थानों] को (वि तिष्ठध्वम्) फैलकर ठहरो ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब मनुष्य कर्मकुशल और पुरुषार्थी होकर अपने-अपने कर्तव्य करके अपने-अपने पद पर आनन्दित होवें ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २६−(तेषाम्) (सर्वेषाम्) शत्रूणाम् (ईशानाः) ईश्वराः। नियामकाः सन्तः (उत्तिष्ठत) इत्यादयो व्याख्यातः-म० २। (इमम्) प्रस्तुतम् (सङ्ग्रामम्) युद्धम् (संजित्य) सम्यग् जित्वा (यथालोकम्) स्वस्वस्थानम् (वि तिष्ठध्वम्) समवप्रविभ्यः स्थः। पा० १।३।२˜२। इत्यात्मनेपदम्। विस्तारेण तिष्ठत ॥