००८ अध्यात्मम्

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Whitney subject
  1. Mystic: especially on the constitution of man.
VH anukramaṇī

अध्यात्मम्।
१-३४ कौरुपथिः। अध्यात्मं, मन्युः। अनुष्टुप्, ३३ पथ्यापङ्क्तिः।

Whitney anukramaṇī

[Kāurupathi.—catustriṅśat. adhyātmamanyudāivatam. ānuṣṭubham: 33. pathyāpan̄kti.]

Whitney

Comment

Found also (except vss. 33, 34) in Pāipp. xvi. (in the verse-order 1-6, 8-10, 7, 12, 11, 13, 15, 14, 16-32). ⌊The hymn is noticed neither by Kāuś. nor by Vāit.⌋

Translations

Translated: Ludwig, p. 402; Scherman, p. 67 (8 vss.); Deussen, Geschichte, i. 1. 270-277 (with introduction and interpretation); Henry, 123, 160; Griffith, ii. 80.

Griffith

On the origin of some Gods and the creation of man

०१ यन्मन्युर्जायामावहत्सङ्कल्पस्य गृहादधि

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यन्म॒न्युर्जा॒यामाव॑हत्संक॒ल्पस्य॑ गृ॒हादधि॑।
क आ॑सं॒ जन्याः॒ के व॒राः क उ॑ ज्येष्ठव॒रो᳡भ॑वत् ॥

०१ यन्मन्युर्जायामावहत्सङ्कल्पस्य गृहादधि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. When fury (manyú) brought his wife away from the house of
    contrivance (saṁkalpá), who were the groomsmen (jánya)? who the
    wooers (vará)? who also was chief wooer?
Notes

Ppp. combines in c kā ”san. ⌊Its c, d = our 6 c, d.⌋

Griffith

When Manyu brought his consort home forth from Sankalpa’s dwelling-place, Who were the wooers of the bride, who was the chief who courted her?

पदपाठः

यत्। म॒न्युः। जा॒याम्। आ॒ऽअव॑हत्। स॒म्ऽक॒ल्पस्य॑। गृ॒हात्। अधि॑। के। आ॒स॒न्। जन्याः॑। के। व॒राः। कः। ऊं॒ इति॑। ज्ये॒ष्ठ॒ऽव॒रः। अ॒भ॒व॒त्। १०.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जब (मन्युः) सर्वज्ञ [परमेश्वर] (जायाम्) सृष्टि की क्रिया को (संकल्पस्य) सङ्कल्प [मनोविचार] के (गृहात्) ग्रहण [स्वीकार करने] से (अधि) अधिकारपूर्वक (आवहत्) सब ओर लाया [प्रकट किया]। (के) कौन (जन्याः) उत्पत्ति में साधक [योग्य] पदार्थ और (के) कौन (वराः) वर [वरणीय, इष्टफल] (आसन्) थे, (कः उ) कौन ही (ज्येष्ठवरः) सर्वोत्तम वरों [इष्टफलों] का देनेवाला (अभवत्) हुआ ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जब ईश्वर ने सृष्टि को रचना चाहा, तब यह प्रश्न उत्पन्न हुए−किन पदार्थों से सृष्टि की जावे, किस प्रयोजन के लिये वह होवे, और कौन उसका स्वामी हो। इस का उत्तर आगे है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(यत्) यदा (मन्युः) अ० १।१०।१। यजिमनिशुन्धि०। उ० ३।२०। मन ज्ञाने-युच्। सर्वज्ञः परमेश्वरः (जायाम्) जनेर्यक्। उ० ४।१११। जन जनने-यक्। जायतेऽस्यां सर्वं जगदिति जाया तां सृष्टिक्रियाम् (आवहत्) समन्तात् प्रापयत्। प्रकटीकृतवान् (सङ्कल्पस्य) मनोविचारस्य (गृहात्) गृह ग्रहणे क। ग्रहणात्। स्वीकरणात् (अधि) अधिकारपूर्वकम् (आसन्) अभवन् (जन्याः) तत्र साधुः। पा० ४।४।९८। जन-यत्। जने जनने, उत्पादने, साधका योग्याः पदार्थाः (के) (वराः) वरणीया इष्टपदार्थाः (कः) (उ) एव (ज्येष्ठवरः) ज्येष्ठाः सर्वोत्कृष्टा वरा वरणीयपदार्था यस्मात् सः ॥

०२ तपश्चैवास्तां कर्म

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तप॑श्चै॒वास्तां॒ कर्म॑ चा॒न्तर्म॑ह॒त्य᳡र्ण॒वे।
त आ॑सं॒ जन्या॑स्ते व॒रा ब्रह्म॑ ज्येष्ठव॒रो᳡भ॑वत् ॥

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Whitney
Translation
  1. Penance and also action were within the great sea (arṇavá); those
    were the groomsmen, those the wooers; the bráhman was chief wooer.
Notes

The pada-mss. (save one of SPP’s) divide evā́stām in a into evá:
ā́stām
, and the accent of the verb is perfectly defensible, though SPP.
alters to āstām. Some of the mss. (including our Bp.P.M.E.) leave
mahati unaccented: cf. vs. 6 b, and iii. 6. 3.

Griffith

Fervour and Action were the two, in depths of the great billowy sea? These were the wooers of the bride; Brahma the chief who courted her.

पदपाठः

तपः॑। च॒। ए॒व। आ॒स्ता॒म्। कर्म॑। च॒। अ॒न्तः। म॒ह॒ति। अ॒र्ण॒वे। ते। आ॒स॒न्। जन्याः॑। ते। व॒राः। ब्रह्म॑। ज्ये॒ष्ठ॒ऽव॒रः। अ॒भ॒व॒त्। १०.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तपः) तप [ईश्वर का सामर्थ्य] (च च) और (कर्म) कर्म [प्राणियों के कर्म का फल] (एव) ही (महति अर्णवे अन्तः) बड़े समुद्र [परमेश्वर के गम्भीर सामर्थ्य] के भीतर (आस्ताम्) दोनों थे। [तप और कर्म ही] (ते) वे प्रसिद्ध (जन्याः) उत्पत्ति में साधन [योग्य] पदार्थ और (ते) वे ही (वराः) वर [वरणीय इष्टफल] (आसन्) थे, (ब्रह्म) ब्रह्म [सबसे बड़ा परमात्मा] (ज्येष्ठवरः) सर्वोत्तम वरों [इष्ट फलों] का दाता (अभवत्) हुआ ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - अनादि चक्र रूप संसार में परमात्मा अपने सामर्थ्य से प्राणियों के कर्मानुसार सृष्टि रचकर आप ही सर्वनियन्ता हुआ। यह गत मन्त्र के तीनों प्रश्नों का उत्तर है। मन्त्र ३ तथा ४ में इसी का विवरण है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(तपः) तप ऐश्वर्ये-असुन्। ईश्वरसामर्थ्यम् (च) (एव) (आस्ताम्) अभवताम् (कर्म) प्राणिनां पुण्यपापकर्मफलम् (च) (अन्तः) मध्ये (महति) प्रभूते (अर्णवे) अ० १।१०।४। समुद्रे। परमेश्वरस्य गम्भीरसामर्थ्ये (ते) प्रसिद्धाः (ब्रह्म) प्रवृद्धः परमात्मा। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥

०३ दश साकमजायन्त

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दश॑ सा॒कम॑जायन्त दे॒वा दे॒वेभ्यः॑ पु॒रा।
यो वै तान्वि॒द्यात्प्र॒त्यक्षं॒ स वा अ॒द्य म॒हद्व॑देत् ॥

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Whitney
Translation
  1. Ten gods were born together from gods of old; whoever may know them
    plainly, he verily may talk big to-day.
Notes

‘May teach the unlimited brahman’ is the comm’s understanding of the
last clause.

Griffith

Ten Gods before the Gods were born together in the ancient time. Whoso may know them face to face may now pronounce the mighty word.

पदपाठः

दश॑। सा॒कम्। अ॒जा॒य॒न्त॒। दे॒वाः। दे॒वेभ्यः॑। पु॒रा। यः। वै। तान्। वि॒द्यात्। प्र॒ति॒ऽअक्ष॑म्। सः। वै। अ॒द्य। म॒हत्। व॒दे॒त्। १०.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (दश देवाः) दस दिव्य पदार्थ [पाँच ज्ञानेन्द्रिय, पाँच कर्मेन्द्रिय] (पुरा) पूर्व काल में [वर्तमान] (देवेभ्यः) दिव्य पदार्थों [कर्मफलों] से (साकम्) परस्पर मिले हुए (अजायन्त) उत्पन्न हुए। (यः) जो पुरुष (वै) निश्चय करके (तान्) उनको (प्रत्यक्षम्) प्रत्यक्ष (विद्यात्) जान लेवे, (सः) वह (वै) ही (अद्य) आज (महत्) महान् [ब्रह्म] को (वदेत्) बतलावे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - फिर उस ब्रह्म के सामर्थ्य से प्राणियों के पूर्वसंचित कर्म अनुसार पाँच ज्ञानेन्द्रिय, कान, त्वचा, नेत्र, जिह्वा, नासिका और पाँच कर्मेन्द्रिय वाक्, हाथ, पाँव, पायु, उपस्थ, कर्मों के जानने और करने के लिये उत्पन्न हुए। सूक्ष्मदर्शी पुरुष ही इसको जानकर परमात्मा का उपदेश करते हैं ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(दश) दशसंख्याकाः (साकम्) सह (अजायन्त) प्रादुरभवन् (देवाः) स्वस्वविषयप्रकाशनशीलानि ज्ञानकर्मेन्द्रियाणि (देवेभ्यः) पञ्चमी विभक्तिः। दिव्यपदार्थेभ्यः। पूर्वकर्मफलानां सकाशात् (पुरा) पुरातनकाले वर्तमानेभ्यः (यः) विवेकी (वै) (तान्) (विद्यात्) जानीयात् (प्रत्यक्षम्) साक्षात्कारेण (सः) (वै) (अद्य) अस्मिन् दिने (महत्) पूजनीयं ब्रह्म (वदेत्) उपदिशेत् ॥

०४ प्राणापानौ चक्षुः

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प्रा॑णापा॒नौ चक्षुः॒ श्रोत्र॒मक्षि॑तिश्च॒ क्षिति॑श्च॒ या।
व्या॑नोदा॒नौ वाङ्मन॒स्ते वा आकू॑ति॒माव॑हन् ॥

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Whitney
Translation
  1. Breath-and-expiration, sight, hearing, indestructibleness and
    destruction, out-breathing and up-breathing, speech, mind—they verily
    brought design (ā́kūti).
Notes

The first half-verse occurs also as 7. 25 a, b above, and the first
three pādas as vs. 26 a, b, c below. Ppp. combines vā ”kūtim in
d.

Griffith

Inbreath and outbreath, eye and ear, decay and freedom from. decay, Spiration upward and diffused, voice, mind have brought us wish and plan.

पदपाठः

प्रा॒णा॒पा॒नौ। चक्षुः॑। श्रोत्र॑म्। अक्षि॑तिः। च॒। क्षितिः॑। च॒। या। व्या॒न॒ऽउ॒दा॒नौ। वाक्। मनः॑। ते। वै। आऽकू॑तिम्। आ। अ॒व॒ह॒न्। १०.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राणापानौ) प्राण और अपान [भीतर और बाहिर जानेवाला श्वास], (चक्षुः) नेत्र, (श्रोत्रम्) कान, (च) और (या) जो (अक्षितिः) [सुख की] निर्हानि (च) और (क्षितिः) [दुःख की] हानि। (व्यानोदानौ) व्यान [सब नाड़ियों में रस पहुँचानेवाला वायु] और (वाक्) वाणी और (मनः) मन, (ते) इन सब ने (वै) निश्चय करके (आकूतिम्) सङ्कल्प [प्राणी के मनोविचार] को (आ) सब ओर से (अवहन्) प्राप्त कराया ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्राणियों के विहित कर्मों की सिद्धि के लिये परमेश्वर ने प्राण, अपान आदि बनाये। मन्त्र १ का उत्तर समाप्त हुआ ॥४॥इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध आ चुका है-अ० ११।७।२५ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(व्यानोदानौ) सर्वासु नाडीषु रसमनिति प्रेरयतीति व्यानः। उत् ऊर्ध्वमनिति चेष्टत इत्युदानः। तौ वायुव्यापारौ (वाक्) वचनसाधनमिन्द्रियम् (मनः) सङ्कल्पविकल्पात्मकवृत्तिमदन्तःकरणम् (ते) पूर्वोक्ताः पदार्थाः (वै) (आकूतिम्) संकल्पम् (आ अवहन्) समन्तात् प्रापितवन्तः प्रकटीं कृतवन्तः। अन्यद् व्याख्यातम्-अ० ११।७।२५ ॥

०५ अजाता आसन्नृतवोऽथो

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अजा॑ता आसन्नृ॒तवोऽथो॑ धा॒ता बृह॒स्पतिः॑।
इ॑न्द्रा॒ग्नी अ॒श्विना॒ तर्हि॒ कं ते ज्ये॒ष्ठमुपा॑सत ॥

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Whitney
Translation
  1. Unborn were the seasons, likewise Dhātar, Brihaspati, Indra-andAgni,
    the two Aśvins, at that time: whom did they worship (upa-ās) [as]
    chief?
Notes

The comm. reads at the end āsate.

Griffith

As yet the Seasons were unborn, and Dilator and Prajapati, Both Asvins, Indra, Agni. Whom then did they worship as supreme?

पदपाठः

अजा॑ताः। आ॒स॒न्। ऋ॒तवः॑। अथो॒ इति॑। धा॒ता। बृह॒स्पतिः॑। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। अ॒श्विना॑। तर्हि॑। कम्। ते। ज्ये॒ष्ठम्। उप॑। आ॒स॒त॒। १०.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतवः) ऋतुएँ (अजाताः) अनुत्पन्न (आसन्) थे, (अथो) और भी (धाता) धाता [धारण करनेवाला आकाश], (बृहस्पतिः) [बड़े पदार्थों का रक्षक वायु], (इन्द्राग्नी) इन्द्र [मेघ] और अग्नि [सूर्य आदि] और (अश्विना) दिन और राति [अनुत्पन्न थे], (तर्हि) तब (ते) उन्होंने [ऋतु आदिकों ने] (कम् ज्येष्ठम्) कौन से सर्वश्रेष्ठ को (उप आसत) पूजा है ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जब वसन्त आदि ऋतुएँ और आकाश वायु आदि पदार्थ स्थूल दशा में नहीं थे, तब उनका अधिष्ठाता कौन था। इस प्रश्न का उत्तर अगले मन्त्र में है ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(अजाताः) अनुत्पन्नाः। अप्रादुर्भूताः (आसन्) अभवन् (ऋतवः) वसन्ताद्याः कालाः (अथो) अपि च (धाता) सर्वस्य विधाता-निरु० ११।१०। इति मध्यस्थानदेवतासु पाठात्। लोकानां धारक आकाशः (बृहस्पतिः) बृहस्पतिर्बृहतः पाता या पालयिता वा-निरु० १०।११। इति मध्यस्थानदेवतासु पाठात्। बृहतां प्राणिनां रक्षको वायुः (इन्द्राग्नी) मेघतापौ (अश्विना) अहोरात्रौ निरु० १२।१। (तर्हि) तदा (कम्) अधिष्ठातारम् (ते) पूर्वोक्ताः (ज्येष्ठम्) सर्वोत्कृष्टम् (उपासत) पूजितवन्तः ॥

०६ तपश्चैवास्तां कर्म

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तप॑श्चै॒वास्तां॒ कर्म॑ चा॒न्तर्म॑ह॒त्य᳡र्ण॒वे।
तपो॑ ह जज्ञे॒ कर्म॑ण॒स्तत्ते ज्ये॒ष्ठमुपा॑सत ॥

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Whitney
Translation
  1. Both penance, namely, and action were within the great sea; penance
    was born from action; that did they worship as chief.
Notes

The comm. again has āsate at the end. SPP. reads āstām in
pada-text, this time with two of his mss. Some mss. again (cf. vs. 2)
read mahati (so our Bp.E.; P.M. mahaty árṇavé).

Griffith

Fervour and Action were the two, in depths of the great billowy sea; Fervour sprang up from Action: this they served and worship- ped as supreme.

पदपाठः

तपः॑। च॒। ए॒व। आ॒स्ता॒म्। कर्म॑। च॒। अ॒न्तः। म॒ह॒त‍ि। अ॒र्ण॒वे। तपः॑। ह॒। ज॒ज्ञे॒। कर्म॑णः। तत्। ते। ज्ये॒ष्ठम्। उप॑। आ॒स॒त॒। १०.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तपः) तप [ईश्वर का सामर्थ्य] (च च) और (कर्म) कर्म [प्राणियों के कर्म का फल] (एव) ही (महति अर्णवे अन्तः) बड़े समुद्र [परमेश्वर के गम्भीर सामर्थ्य] के भीतर (आस्ताम्) दोनों थे। (तपः) तप [ईश्वर का सामर्थ्य] (ह) निश्चय करके (कर्मणः) कर्म [कर्म के फल अनुसार शरीर, स्वभाव आदि रचना] से (जज्ञे) प्रकट हुआ है, (तत्) सो (ते) उन्होंने [ऋतु आदिकों ने-म० ५] (ज्येष्ठम्) सर्वश्रेष्ठ परमात्मा को (उप आसत) पूजा है ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्रलय में प्राणियों के कर्म फल और ईश्वरसामर्थ्य भी ईश्वर सामर्थ्य में रक्षित थे। फिर सृष्टिकाल में कर्मफलों के अनुसार प्राणियों के विविध प्रकार शरीर और स्वभाव प्रकट हुए। उससे परमात्मा ही सर्वनियन्ता प्रतीत हुआ ॥६॥इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध ऊपर म० २ में आ चुका है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(तपः) ईश्वरसामर्थ्यम् (ह) एव (जज्ञे) प्रादुर्बभूव (कर्मणः) कर्मफलानुसारेण शरीरस्वभावादिरचनारूपात् कर्मसकाशात् (तत्) तदा (ते) ऋतुधात्रादयः-म० ५। (ज्येष्ठम्) सर्वोत्कृष्टं परमात्मानम् (उपासत) पूजितवन्तः। अन्यत् पूर्ववत्-म० २ ॥

०७ येत आसीद्भूमिः

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येत आसी॒द्भूमिः॒ पूर्वा॒ याम॑द्धा॒तय॒ इद्वि॒दुः।
यो वै तां॑ वि॒द्यान्ना॒मथा॒ स म॑न्येत पुराण॒वित् ॥

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Whitney
Translation
  1. The earth that was previous to this one (itás), which the sages
    (addhātí) indeed knew—whoever may know that by name, he may think
    himself knowing in ancient things.
Notes

The translation implies emendation of tā́n in c to tā́ṁ, which
SPP. gives in his text, with about half of his mss. Ppp’s version is
quite different; it reads for a ye ’to bhūmiṣ pūrvā ”sit; and, for
c, d, ke tasyan devā ”sate kasinin sā ’dhi śrutaḥ ⌊intending
tasyām and śritā?⌋.

Griffith

He may account himself well versed in ancient time who knows by name. The earth that was before this earth, which only wisest Sages know.

पदपाठः

या। इतः॒। आसी॑त्। भूमिः॑। पूर्वा॑। याम्। अ॒ध्दा॒तयः॑। इत्। वि॒दुः। यः। वै। ताम्। वि॒द्यात्। ना॒मऽथा॑। सः। म॒न्ये॒त॒। पु॒रा॒ण॒ऽवित्। १०.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इतः) इस [दीखती हुई भूमि] से (पूर्वा) पहिली [पहिले कल्पवाली] (या भूमिः) जो भूमि (आसीत्) थी और (याम्) जिस [भूमि] को (अद्धातयः) सत्यज्ञानी पुरुष (इत्) ही (विदुः) जानते हैं। (यः) जो (वै) निश्चय करके (ताम्) उस [पहिले कल्पवाली भूमि] को (नामथा) नाम द्वारा [तत्त्वतः] (विद्यात्) जान लेवे, (सः) वह (पुराणवित्) पुराणवेत्ता [पिछले वृत्तान्त जाननेवाला] (मन्येत) माना जावे ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वर्तमान सृष्टि में एक से साधन उपस्थित हो जाने पर भी किसी को ज्ञानी, किसी को अज्ञानी, किसी को धनी, किसी को निर्धनी आदि विचित्रता देखकर बुद्धिमान् लोग पूर्व सृष्टि का अनुभव करते और उसके कर्म को साक्षात् करते हैं ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(या) भूमिः (इतः) दृश्यमानाया भूमेः (आसीत्) अभवत् (भूमिः) (पूर्वा) पूर्वकल्पस्था (याम्) पूर्वां भूमिम् (अद्धातयः) अ० ६।७६।२। अद्धा+अत सातत्यगमने-इन्। अद्धा सत्यमतन्ति जानन्ति ते। सत्यज्ञातारः। मेधाविनः-निघ० ३।१५। (इत्) एव (विदुः) जानन्ति (यः) विद्वान् (वै) खलु (ताम्) पूर्वां भूमिम् (नामथा) नामप्रकारेण। यथार्थज्ञानेन (सः) (मन्येत) कर्मणि यक्। ज्ञायेत। बुध्येत (पुराणवित्) पूर्ववृत्तान्तवेत्ता ॥

०८ कुत इन्द्रः

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कुत॒ इन्द्रः॒ कुतः॒ सोमः॒ कुतो॑ अ॒ग्निर॑जायत।
कुत॒स्त्वष्टा॒ सम॑भव॒त्कुतो॑ धा॒ताजा॑यत ॥

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Whitney
Translation
  1. Whence was Indra, whence Soma, whence Agni born? whence did Tvashṭar
    come into being? whence was Dhātar born?
Notes

Ppp. has for d dhātā sam abhavat kutaḥ.

Griffith

From whom did Indra spring? from whom sprang Soma? whence was Agni born? From whom did Tvashtar spring to life? and whence is Dilator’s origin?

पदपाठः

कुतः॑। इन्द्रः॑। कुतः॑। सोमः॑। कुतः॑। अ॒ग्निः। अ॒जा॒य॒त॒। कुतः॑। त्वष्टा॑। सम्। अ॒भ॒व॒त्। कुतः॑। धा॒ता। अ॒जा॒य॒त॒। १०.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (कुतः) कहाँ से [किस कारण से] (इन्द्रः) इन्द्र [मेघ], (कुतः) कहाँ से (सोमः) सोम [प्रेरक वायु], (कुतः) कहाँ से (अग्निः) अग्नि [सूर्य आदि तेज] (अजायत) उत्पन्न हुआ है। (कुतः) कहाँ से (त्वष्टा) त्वष्टा [शरीर आदि का कारण पृथिवी तत्त्व] (सम् अभवत्) उत्पन्न हुआ है, (कुतः) कहाँ से (धाता) धाता [धारण करनेवाला आकाश] (अजायत) प्रकट हुआ है ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मेघ आदि पदार्थ किस कारण से उत्पन्न हुए हैं। इन प्रश्नों का उत्तर अगले मन्त्र में है ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(कुतः) कस्मात् कारणात् (इन्द्रः) मेघः (सोमः) इत्यस्य मध्यस्थानदेवतासु पाठात्-निरु० ११।२। प्रेरको वायुः (अग्निः) सूर्यादितापः (अजायत) उदपद्यत (त्वष्टा) त्वष्टा तूर्णमश्नुत इति नैरुक्तास्त्विषेर्वा स्याद् दीप्तिकर्मणस्त्वक्षतेर्वा स्यात्करोतिकर्मणः-निरु० ८।१३। इति भूस्थानदेवतासु पाठात्। शरीराणां कारणं पृथिवीतत्त्वम् (धाता) म० ५। लोकानां धारक आकाशः। अन्यद् गतम् ॥

०९ इन्द्रादिन्द्रः सोमात्सोमो

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इन्द्रा॒दिन्द्रः॒ सोमा॒त्सोमो॑ अ॒ग्नेर॒ग्निर॑जायत।
त्वष्टा॑ ह जज्ञे॒ त्वष्टु॑र्धा॒तुर्धा॒ताजा॑यत ॥

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Whitney
Translation
  1. From Indra Indra, from Soma Soma, from Agni Agni was born; Tvashṭar
    was born from Tvashṭar; from Dhātar Dhātar was born.
Notes

Ppp. arranges in d dhātā dhātur.

Griffith

Indra from Indra, Soma from Soma, Agni from Agni sprang Tvashtar from Tvashtar was produced, Dilator was Dhatar’s origin.

पदपाठः

इन्द्रा॑त्। इन्द्रः॑। सोमा॑त्। सोमः॑। अ॒ग्नेः। अ॒ग्निः। अ॒जा॒य॒त॒। त्वष्टा॑। ह॒। ज॒ज्ञे॒। त्वष्टुः॑। धा॒तुः। धा॒ता। अ॒जा॒य॒त॒। १०.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रात्) इन्द्र [पूर्वकल्पवर्ती मेघ] से (इन्द्रः) इन्द्र [मेघ], (सोमात्) सोम [प्रेरक वायु] से (सोमः) सोम [प्रेरक वायु], (अग्नेः) अग्नि [सूर्य आदि तेज] से (अग्निः) अग्नि [सूर्य आदि तेज] (अजायत) उत्पन्न हुआ है। (त्वष्टा) त्वष्टा [शरीर आदि का कारण पृथिवी तत्त्व] (ह) निश्चय करके (त्वष्टुः) त्वष्टा [शरीर आदि के कारण पृथिवी तत्त्व] से (जज्ञे) प्रकट हुआ है और (धातुः) धाता [धारण करनेवाले आकाश] से (धाता) धाता [धारण करनेवाला आकाश] (अजायत) उत्पन्न हुआ है ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो पदार्थ प्रलय में परमाणुरूप थे, वे पूर्व कल्प के समान इस कल्प में भी ईश्वरसामर्थ्य से उत्पन्न हुए हैं ॥९॥ऋग्वेद १०।१९०।३। में ऐसा वर्णन है−(सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत्) सूर्य और चन्द्रमा को धाता [सर्वधारक परमेश्वर] ने पूर्वकल्प के समान रचा है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−इन्द्रादिशब्दा व्याख्याताः-म० ८ (इन्द्रात्) मेघात् (इन्द्रः) मेघः (सोमात्) वायोः (सोमः) वायुः (अग्नेः) सूर्यादितापात् (अग्निः) (अजायत) (त्वष्टा) शरीरादिकारणं भूमितत्त्वम् (ह) एव (जज्ञे) प्रादुर्बभूव (त्वष्टुः) (धातुः) (धाता) आकाशः (अजायत) ॥

१० ये त

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ये त आस॒न्दश॑ जा॒ता दे॒वा दे॒वेभ्यः॑ पु॒रा।
पु॒त्रेभ्यो॑ लो॒कं द॒त्त्वा कस्मिं॒स्ते लो॒क आ॑सते ॥

१० ये त ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The ten gods that were of old, born from gods—having given the world
    to [their] sons, in what world sit they?
Notes

Ppp. combines tā ”san in a, and reads puraḥ for purā in b.
⌊For consistency, the Berlin ed. should have dattvā́.⌋

Griffith

Those Gods who were of old, the Ten begotten earlier than the Gods, What world do they inhabit since they gave the world unto their sons?

पदपाठः

ये। ते। आस॑न्। दश॑। जा॒ताः। दे॒वाः। दे॒वेभ्यः॑। पु॒रा। पु॒त्रेभ्यः॑। लो॒कम्। द॒त्त्वा। कस्मि॑न्। ते। लो॒के। आ॒स॒ते॒। १०.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ये ते) वे जो (दश देवाः) दस दिव्य गुण [दस इन्द्रियों के विषयग्राहक गुण] (पुरा) पूर्वकाल में [वर्तमान] (देवेभ्यः) दिव्य पदार्थों [कर्मफलों] से (जाताः) उत्पन्न हुए (आसन्) थे, (ते) वे (पुत्रेभ्यः) पुत्रों [पुत्ररूप इन्द्रियों के गोलकों] को (लोकम्) स्थान [दर्शन वा विषयग्रहण सामर्थ्य] (दत्त्वा) देकर (कस्मिन् लोके) कौन से स्थान में (आसते) बैठते हैं ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - पूर्व कल्प के अनुसार आँख, कान आदि अपने-अपने गोलकों में दर्शन, श्रवण आदि गुणों के प्रवेश करने से विषयों का ग्रहणसामर्थ्य होता है। फिर वे दर्शन आदि गुण कहाँ रहते हैं। इसका उत्तर अन्य प्रश्नों के साथ आगे मन्त्र १३ में है ॥१०॥इस मन्त्र का मिलान-मन्त्र ३ से करो ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(ये) (ते) (आसन्) अभवन् (दश) दशसंख्याकाः (जाताः) प्रादुर्भूताः (देवाः) म० ३। ज्ञानकर्मेन्द्रियाणां विषयग्राहकगुणाः (देवेभ्यः) दिव्यपदार्थानां कर्मफलानां सकाशात् (पुरा) पूर्वकल्पे वर्तमानेभ्यः (पुत्रेभ्यः) पुत्ररूपेभ्य इन्द्रियगोलकेभ्यः (लोकम्) स्थानम्। दर्शनस्य विषयस्य वा ग्रहणसामर्थ्यम् (दत्त्वा) (कस्मिन्) (लोके) स्थाने (आसते) उपविशन्ति ॥

११ यदा केशानस्थि

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

य॒दा केशा॒नस्थि॒ स्नाव॑ मां॒सं म॒ज्जान॒माभ॑रत्।
शरी॑रं कृ॒त्वा पाद॑व॒त्कं लो॒कमनु॒ प्रावि॑शत् ॥

११ यदा केशानस्थि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. When he brought hair, bone, sinew, flesh, marrow, having made a body
    with feet, what world did he afterward enter?
Notes

The comm. reads sam abharat in b.

Griffith

When he had brought together hair, sinew and bone, marrow and flesh. And to the body added feet, then to what world did he depart?

पदपाठः

य॒दा। केशा॑न्। अस्थि॑। स्नाव॑। मां॒सम्। म॒ज्जान॑म्। आ॒ऽअभ॑रत्। शरी॑रम्। कृ॒त्वा। पाद॑ऽवत्। कम्। लो॒कम्। अनु॑। प्र। अ॒वि॒श॒त्। १०.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यदा) जब [प्राणी के] (केशान्) केशों, (अस्थि) हड्डी, (स्नाव) सूक्ष्म नाड़ी [वायु ले चलनेवाली नस], (मांसम्) मांस (मज्जानम्) मज्जा [हड्डियों के भीतर के रस] को (आभरत्) उस [कर्ता परमेश्वर] ने लाकर धरा। और (पादवत्) पैरोंवाला [हाथ-पाँव आदि अङ्गोंवाला] (शरीरम्) शरीर (कृत्वा) बनाकर (कम् लोकम्) कौन से स्थान में उस [परमेश्वर] ने (अनु) पीछे (प्र अविशत्) प्रवेश किया ॥११•॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्राणी के केश आदि धातु उपधातुओं और हाथ-पैर आदि अङ्गोंवाले शरीर को रच कर वह परमेश्वर कहाँ रहता है। इस दूसरे प्रश्न का भी उत्तर मन्त्र १३ में है ॥११•॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(यदा) यस्मिन् सृष्टिकाले (अस्थि) (स्नाव) अ० २।३३।६। वायुवाहिनी सूक्ष्मा नाडी (मांसम्) प्राणिदेहस्थशोणितपरिपाकजं धातुभेदम् (मज्जानम्) अ० १।११।४। अस्थिमध्यस्थस्नेहम् (आभरत्) आनीय धृतवान् स परमेश्वरः (शरीरम्) कलेवरम् (कृत्वा) निर्माय (पादवत्) हस्तपादाद्यङ्गोपाङ्गसहितम् (कम्) प्रश्ने (लोकम्) स्थानम् (अनु) पश्चात् (प्राविशत्) प्रविष्टवान् ॥•

१२ कुतः केशान्कुतः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

कुतः॒ केशा॒न्कुतः॒ स्नाव॒ कुतो॒ अस्थी॒न्याभ॑रत्।
अङ्गा॒ पर्वा॑णि म॒ज्जानं॒ को मां॒सं कुत॒ आभ॑रत् ॥

१२ कुतः केशान्कुतः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Whence brought he the hair, whence the sinew, whence the bones? the
    limbs, the joints, the marrow, the flesh who brought from whence?
Notes

Ppp. combines at the end kutā ”bharat. The comm. appears again to read
sam abharat at end of b. A few mss. (including our Bp.R.) read
snā́vaḥ in a.

Griffith

Whence, from what region did he bring the hair, the sinews, and the bones, Marrow and limbs, and joints, and flesh? Who was the bringer, and from whence?

पदपाठः

कुतः॑। केशा॑न्। कुतः॑। स्नावः॑। कुतः॑। अस्थी॑नि। आ। अ॒भ॒र॒त्। अङ्गा॑। पर्वा॑णि। म॒ज्जान॑म्। कः। मां॒सम्। कुतः॑। आ। अ॒भ॒र॒त्। १०.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (कुतः) किससे [किस उपादेय कारण से प्राणियों के] (केशान्) केशों को, (कुतः) कहाँ से (स्नाव) सूक्ष्मनाड़ी [वायु ले चलनेवाली नस], (कुतः) कहाँ से (अस्थीनि) हड्डियों को (आ अभरत्) उस [कर्त्ता परमेश्वर] ने लाकर धरा। (अङ्गा) अङ्गों, (पर्वाणि) जोड़ों, (मज्जानम्) मज्जा [हड्डी के भीतर के रस], और (मांसम्) मांस को (कः) कर्ता [प्रजापति परमेश्वर] ने (कुतः) कहाँ से (आ अभरत्) ला कर धरा ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर प्राणियों के शरीर के बड़े और छोटे अवयव किस सामग्री से बनाता है। इस का भी उत्तर अगले मन्त्र में है ॥१२॥यह मन्त्र १०, ११ तथा १२ का उत्तर है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(कुतः) पञ्चम्यास्तसिल्। पा० ५।३।७। कु तिहोः। पा० ७।२।१०४। किमस्तसिल् कु च। कस्मादुपादेयकारणात् (अङ्गा) शरीराङ्गानि (पर्वाणि) शरीरसन्धीन् (मज्जानम्) अस्थ्यन्तर्गतं रसम् (कः) करोतेः-ड। कर्ता प्रजापतिः। कः कमनो या क्रमणो वा सुखो वा-निरु० १०।२२। अन्यद् व्याख्यातम्-म० ११ ॥

१३ संसिचो नाम

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

सं॒सिचो॒ नाम॒ ते दे॒वा ये सं॑भा॒रान्त्स॒मभ॑रन्।
सर्वं॑ सं॒सिच्य॒ मर्त्यं॑ दे॒वाः पुरु॑ष॒मावि॑शन् ॥

१३ संसिचो नाम ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Pourers-together namely are those gods who brought together the
    bringings-together; having poured together the whole mortal, the gods
    entered man.
Notes

Ppp. reads śaṅsatas for saṁsicas in a, and saṁsṛjya for
saṁsicya in c.

Griffith

Casters, those Gods were called who brought together all the elements: When they had fused the mortal man complete, they entered into him.

पदपाठः

स॒म्ऽसिचः॑। नाम॑। ते। दे॒वाः। ये। स॒म्ऽभा॒रान्। स॒म्ऽअभ॑रन्। सर्व॑म्। स॒म्ऽसिच्य॑। मर्त्य॑म्। दे॒वाः। पुरु॑षम्। आ। अ॒वि॒श॒न्। १०.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (संसिचः) परस्पर सींचनेवाले (नाम) प्रसिद्ध (ते) वे (देवाः) दिव्य पदार्थ [पृथिवी आदि पञ्चभूत] हैं, (ये) जिन्होंने (संभारान्) [उन] संग्रहों [उपकरण द्रव्यों को] (समभरन्) मिलाकर भरा है। (देवाः) [उन] दिव्य पदार्थों ने (सर्वम्) सब (मर्त्यम्) मरणधर्मी [शरीर] को (संसिच्य) परस्पर सींचकर (पुरुषम्) पुरुष में [आत्मा सहित शरीर में] (आ अविशन्) प्रवेश किया है ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर के सामर्थ्य से पूर्व कल्प के समान पृथिवी, जल आदि पाँचों तत्त्व आपस में मिलाकर शरीर के इन्द्रिय आदि अवयवों को बना कर स्वयम् भी प्राणियों के शरीर में प्रवेश कर रहे हैं ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(संसिचः) परस्परसेचकाः सन्धायकाः (नाम) प्रसिद्धौ (ते) पूर्वोक्ताः (देवाः) दिव्यपदार्थाः पृथिव्यादिपञ्चभूतरूपाः (ये) (संभारान्) सम्+डुभृञ् धारणपोषणयोः-घञ्। संग्राहान्। उपकरणद्रव्यानि (समभरन्) एकीकृत्य धृतवन्तः (सर्वम्) (संसिच्य) परस्परमार्द्रीकृत्य (मर्त्यम्) मरणधर्माणं देहम् (देवाः) (पुरुषम्) अ० १।१६।४। सात्मकं शरीरम् (आ अविशन्) प्रविष्टवन्तः ॥

१४ ऊरू पादावष्ठीवन्तौ

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ऊ॒रू पादा॑वष्ठी॒वन्तौ॒ शिरो॒ हस्ता॒वथो॒ मुख॑म्।
पृ॒ष्टीर्ब॑र्जह्ये᳡ पा॒र्श्वे कस्तत्सम॑दधा॒दृषिः॑ ॥

१४ ऊरू पादावष्ठीवन्तौ ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thighs, feet, knee-joints, head, hands, also face, ribs, nipples (?
    barjahyà), sides: what seer put that together?
Notes

The comm. has nothing to say for barjahyè except ’the parts so
called.’ Ppp. reads instead majjahye; and it has śroṇī for śiras
in b. It also makes our 14 c, d and 15 c, d exchange places.

Griffith

The thighs, the knee-bones, and the feet, the head, the face, Land both the hands, The ribs, the nipples, and the sides–what I ishi hath constructed that?

पदपाठः

ऊ॒रू इति॑। पादौ॑। अ॒ष्ठी॒वन्तौ॑। शिरः॑। हस्तौ॑। अथो॒ इति॑। मुख॑म्। पृ॒ष्टीः। ब॒र्ज॒ह्ये॒३॑ इति॑। पा॒र्श्वे इति॑। कः। तत्। सम्। अ॒द॒धा॒त्। ऋषिः॑। १०.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ऊरू) दोनों जंघाओं, (अष्ठीवन्तौ) दोनों घुटनों, (पाद) दोनों पैरों, (हस्तौ) दोनों हाथों, (अथो) और भी (शिरः) शिर, (मुखम्) मुख, (पृष्ठीः) पसलियों, (बर्जह्ये) दोनों कुच की टीपनी, (पार्श्वे) दोनों कोखों को (तत्) तब (कः) किस (ऋषिः) ऋषि [ज्ञानवान्] ने (सम् अदधात्) मिला दिया ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - शरीर के भीतर जंघा आदि को किस चतुर ज्ञानी ने आपस में जोड़कर जमा दिया है। इसका उत्तर अगले मन्त्र में है ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४−(ऊरू) जानूपरिभागौ (पादौ) (अष्ठीवन्तौ) अ० २।२३।५। ऊरुपादयोर्मध्यस्थे जानुनी (शिरः) मस्तकम् (हस्तौ) (अथो) अपि च (मुखम्) (पृष्ठीः) अ० २।७।५। पर्श्वस्थीनि (बर्जह्ये) बल जीवने-विच्, लस्य रः+जनेर्यक्। उ० ४।१११। ओहाक् त्यागे-यक्। जहातेर्द्वे च। उ० २।४। इति श्रवणाद् द्वित्वम्। कुचाग्रभागौ (पार्श्वे) अ० २।३३।३। कक्षयोरधोभागौ (कः) प्रश्ने (समदधात्) संहितवान् संश्लिष्टवान् (ऋषिः) अ० २।६।१। ज्ञानवान् ॥

१५ शिरो हस्तावथो

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शिरो॒ हस्ता॒वथो॒ मुखं॑ जि॒ह्वां ग्री॒वाश्च॒ कीक॑साः।
त्व॒चा प्रा॒वृत्य॒ सर्वं॒ तत्सं॒धा सम॑दधान्म॒ही ॥

१५ शिरो हस्तावथो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Head, hands, also face, tongue and neck, vertebræ—all that, having
    enveloped with skin, the great putting-together put together.
Notes

Ppp. reads ⌊bāhu for mukham in a and has⌋ in c tat sarvam.
The comm. paraphrases saṁdhā in d with saṁdhānakartrī devatā.

Griffith

Head, both the hands, and face, and tongue, and neck, and inter- coastal parts, All this, investing it with skins, Mahi conjoined with bond and tie.

पदपाठः

शिरः॑। हस्तौ॑। अथो॒ इति॑। मुख॑म्। जि॒ह्वाम्। ग्री॒वाः। च॒। कीक॑साः। त्व॒चा। प्र॒ऽआ॒वृत्य॑। सर्व॑म्। तत्। स॒म्ऽधा। सम्। अ॒द॒धा॒त्। म॒ही। १०.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (हस्तौ) दोनों हाथों, (शिरः) शिर, (अथो) और भी (मुखम्) मुख, (जिह्वाम्) जीभ, (ग्रीवाः) गले की नाड़ियों, (च) और (कीकसाः) हंसली की हड्डियों (तत् सर्वम्) इस सबको (त्वचा) खाल से (प्रावृत्य) ढक कर (मही) बड़ी (संधा) जोड़नेवाली [शक्ति, परमेश्वर] ने (सम् अदधात्) मिला दिया ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर ने तत्त्वों के संयोग-वियोग से प्राणियों के अङ्गों को बनाकर और ऊपर से खाल में लपेट कर एक दूसरे में मिला दिया है। यह गत मन्त्र का उत्तर है ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १५−(जिह्वाम्) रसनाम् (ग्रीवाः) अ० २।३३।२। कन्धरावयवान् (च) (कीकसाः) अ० २।३३।२। जत्रुवक्षोगतास्थीनि (त्वचा) चर्मणा (प्रावृत्य) आच्छाद्य (सर्वम्) (तत्) पूर्वोक्तम् (सन्धा) आतश्चोपसर्गे। पा० ३।१।१३६। इति संदधातेः कर्तरि-क प्रत्ययः। सन्धानकर्त्री शक्तिः परमेश्वरः (मही) महती। अन्यत् पूर्ववत्-म० १४ ॥

१६ यत्तच्छरीरमशयत्सन्धया संहितम्

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यत्तच्छरी॑र॒मश॑यत्सं॒धया॒ संहि॑तं म॒हत्।
येने॒दम॒द्य रोच॑ते॒ को अ॑स्मि॒न्वर्ण॒माभ॑रत् ॥

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Whitney
Translation
  1. The great body which lay there, put together by the
    putting-together—who brought into it the color with which it shines
    (ruc) here today?
Notes

Ppp. reads adadhat for aśayat in a, mayi for mahat in b,
and ko ‘smin in d. SPP. reports all his pada-mss. as having at
the end ā॰ábharat, which he emends to ā́: abharat; our pada-mss.
give the latter.

Griffith

What time the might body lay firmly compact with tie and bond, Who gave its colour to the form, the hue wherewith it shines to-day?

पदपाठः

यत्। तत्। शरी॑रम्। अश॑यत्। स॒म्ऽधया॑। सम्ऽहि॑तम्। म॒हत्। येन॑। इ॒दम्। अ॒द्य। रोच॑ते। कः। अ॒स्मि॒न्। वर्ण॑म्। आ। अ॒भ॒र॒त्। १०.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जब (संधया) जोड़नेवाली [शक्ति, परमेश्वर] करके (संहितम्) जोड़ा हुआ (तत्) वह (महत्) महान् [समर्थ] (शरीरम्) शरीर (अशयत्) पड़ा हुआ था, [तब] (येन) जिस [रंग] से (इदम्) यह [शरीर] (अद्य) आज (रोचते) रुचता है, (कः) किसने (अस्मिन्) इस [शरीर] में (वर्णम्) वर्ण [रंग] (आ अभरत्) सब ओर से भर दिया ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जब शरीर अवयवों सहित चर्म में लपेटकर रख दिया गया, फिर उस पर गोरा, काला, पीला आदि रंग किसने चढ़ाया। इस मन्त्र का उत्तर अगले मन्त्र में है ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६−(यत्) यदा (तत्) उक्तप्रकारम् (शरीरम्) (अशयत्) शीङ् स्वप्ने-लुङि छान्दसं रूपम्। अशयिष्ट। वर्तते रूपम् (संधया) म० १५। सन्ध्यात्र्या शक्त्या (संहितम्) संश्लिष्टम् (महत्) समर्थम् (येन) वर्णेन (इदम्) शरीरम् (अद्य) (रोचते) रुचिरं दृश्यते। दीप्यते (कः) (अस्मिन्) शरीरे (वर्णम्) शुक्लादिरूपम् (आ) समन्तात् (अभरत्) धृतवान् ॥

१७ सर्वे देवा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

सर्वे॑ दे॒वा उपा॑शिक्ष॒न्तद॑जानाद्व॒धूः स॒ती।
ई॒शा वश॑स्य॒ या जा॒या सास्मि॒न्वर्ण॒माभ॑रत् ॥

१७ सर्वे देवा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. All the gods assisted (? upa-śikṣ); that she who was a woman knew;
    she who was wife of control (? váśa), mistress (īśā́), brought color
    into it.
Notes

Ppp. reads in a upāsikṣan, and viṣasya for vaśasya in c;
the comm. (with two or three of SPP’s mss.) has instead of the latter
viśvasya. There are, failing help from sense, various questionable
points in the construction.

Griffith

All Deities had lent their aid: of this a noble Dame took note, Tsa, the Consort of Command. She gave its colour to the form.

पदपाठः

सर्वे॑। दे॒वाः। उप॑। अ॒शि॒क्ष॒न्। तत्। अ॒जा॒ना॒त्। व॒धूः। स॒ती। ई॒शा। वश॑स्य। या। जा॒या। सा। अ॒स्मि॒न्। वर्ण॑म्। आ। अ॒भ॒र॒त्। १०.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सर्वे) सब (देवाः) दिव्य पदार्थों [तत्त्वों के गुणों] ने (उप) उपकारीपन से (अशिक्षन्) समर्थ [सहायक] होना चाहा, (तत्) उस [कर्म] को (सती) सत्यव्रता (वधूः) चलानेवाली [परमेश्वर शक्ति] (अजानात्) जानती थी। (वशस्य) वश करनेवाले [परमेश्वर] की (या) जो (ईशा) ईश्वरी (जाया) उत्पन्न करनेवाली शक्ति है, (सा) उसने (अस्मिन्) इस [शरीर] में (वर्णम्) रङ्ग (आ) सब ओर से (अभरत्) भर दिया ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - तत्त्वों के संयोग-वियोग क्रिया जाननेवाले महारासायनिक, सर्वनियन्ता, सत्यव्रती, परमेश्वर ने अपनी शक्ति से व्यक्ति-व्यक्ति को विशेष करके जानने के लिये शरीर पर गोरा, काला, पीला आदि रंग चढ़ा दिया ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७−(सर्वे) (देवाः) दिव्यपदार्थाः। तत्त्वगुणाः (उप) उपकारकत्वेन (अशिक्षन्) शक्लृ शक्तौ-सन्, लङ्। शक्ताः सहायका भवितुमैच्छन् (तत्) वर्णकर्म (अजानात्) ज्ञातवती (वधूः) वहेर्धश्च। उ० १।८३। वह प्रापणे-ऊ, हस्य धः। वहनशक्तिः परमेश्वरः (सती) सत्यव्रता (ईशा) ईश ऐश्वर्ये क, टाप्। ईश्वरी नियन्त्री (वशस्य) वश कान्तौ-कर्तरि अच्। वशयितुः परमेश्वरस्य (या) (जाया) म० १। उत्पादनशक्तिः (सा) नियन्त्री शक्तिः ॥

१८ यदा त्वष्टा

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य॒दा त्वष्टा॒ व्यतृ॑णत्पि॒ता त्वष्टु॒र्य उत्त॑रः।
गृ॒हं कृ॒त्वा मर्त्यं॑ दे॒वाः पुरु॑ष॒मावि॑शन् ॥

१८ यदा त्वष्टा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. When Tvashṭar bored through [him?] who [was] the superior father
    of Tvashṭar, having made the mortal a house, the gods entered into man.
Notes

Probably c is adjunct of devā́s; whether b is object of the
verb in a is more doubtful. Ppp. gives no help. The comm. makes
b define Tvaṣṭar himself, and understands the ‘boring’ of the
openings for the senses, the eyes and ears etc. ⌊Ludwig renders c:
“machten die götter den sterblichen zu [ihrem] hause."⌋

Griffith

When Tvashtar, Tvashtar’s loftier Sire, had bored it out and hollowed it. Gods made the mortal their abode, and entered and possessed the man.

पदपाठः

य॒दा। त्वष्टा॑। वि॒ऽअतृ॑णत्। पि॒ता। त्वष्टुः॑। यः। उत्त॑रः। गृ॒हम्। कृ॒त्वा। मर्त्य॑म्। दे॒वाः। पुरु॑षम्। आ। अ॒वि॒श॒न्। १०.१८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (त्वष्टुः) कर्मकर्ता [जीव] का (उत्तरः) अधिक उत्तम (पिता) पिता [पालक] है, (यदा) जब (त्वष्टा) विश्वकर्ता [उस सृष्टिकर्ता परमेश्वर] ने [जीव के शरीर में] (व्यतृणत्) विविध छेद किये, [तब] (देवाः) दिव्य पदार्थों [इन्द्रिय की शक्तियों] ने (मर्त्यम्) मरणधर्मी [नश्वर शरीर] को (गृहम्) घर (कृत्वा) बनाकर (पुरुषम्) पुरुष [पुरुषशरीर] में (आ अविशन्) प्रवेश किया ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जब जगत्पिता परमेश्वर ने शरीर में नेत्र, कान आदि गोलक बनाये, तब उसने उनमें उन की शक्तियों को प्रवेश कर दिया ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १८−(यदा) यस्मिन् सृष्टिकाले (त्वष्टा) विश्वकर्मा। सृष्टिकर्ता परमेश्वरः (व्यतृणत्) उतृदिर् हिंसानादरयोः। विविधं छिद्राणि कृतवान् पुरुषशरीरे (पिता) पालकः (त्वष्टुः) कर्मकर्तुः प्राणिनः (यः) (उत्तरः) उत्कृष्टतरः (गृहम्) आवासस्थानम् (कृत्वा) निर्माय (मर्त्यम्) मरणधर्मकं नश्वरं शरीरम् (देवाः) दिव्यपदार्थाः। इन्द्रियशक्तयः (पुरुषम्) पुरुषशरीरम् (आ अविशन्) प्रविष्टवन्तः ॥

१९ स्वप्नो वै

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स्वप्नो॒ वै त॒न्द्रीर्निरृ॑तिः पा॒प्मानो॒ नाम॑ दे॒वताः॑।
ज॒रा खाल॑त्यं॒ पालि॑त्यं॒ शरी॑र॒मनु॒ प्रावि॑शन् ॥

१९ स्वप्नो वै ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Sleep, weariness, misery (nírṛti), the deities named evils, old
    age, baldness, hoariness, entered the body afterward (ánu).
Notes

The comm. reads tandrī in a, and khālityam in c. Anu
perhaps rather ‘one after another.’

Griffith

Sleep, specially, Sloth, Nirriti, and deities whose name is Sin, Baldness, old age, and hoary hairs within the body found their way.

पदपाठः

स्वप्नः॑। वै। त॒न्द्रीः। निःऽऋ॑तिः। पा॒प्मानः॑। नाम॑। दे॒वताः॑। ज॒रा। खाल॑त्यम्। पालि॑त्यम्। शरी॑रम्। अनु॑। प्र। अ॒वि॒श॒न्। १०.१९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वप्नः) नींद (वै) और भी (तन्द्रीः) थकावटें, (निर्ऋतिः) अलक्ष्मी, [महामारी, दरिद्रता आदि], (नाम), अर्थात् (पाप्मानः) पाप व्यवहार, (देवताः) दुःखदायी इच्छाएँ, (जरा) बुढ़ापा (खालत्वम्) गंजापन, (पालित्यम्) केशों के भूरेपन ने (शरीरम्) शरीर में (अनु) धीरे-धीरे (प्र अविशन्) प्रवेश किया ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्राणियों के दुष्टकर्मों के फल से उन के शरीर में निर्बलता के कारण निद्रा आदि दोष घुस पड़ते हैं ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १९−(स्वप्नः) निद्रा (वै) अपि (तन्द्रीः) तन्द्र्यः आलस्यानि (निर्ऋतिः) अ० २।१०।१। कृच्छ्रापत्तिः-निरु० २।७। (पाप्मानः) अ० ३।३१।३। पापव्यवहाराः (नाम) प्रसिद्धौ (देवताः) दिवु मर्दने-अच्, तल्। हिंसनेच्छा (जरा) वृद्धावस्था (खालत्यम्) खलतिः। उ० ३।११२। स्थल संचलने अतच्, सलोपः, अत इत्वं च। खलतिर्निष्केशशिराः पुरुषः। ततो भावे ष्यञ्। इन्द्रलुप्तरोगः। केशनाशकरोगः (पालित्यम्) पलित−ष्यञ्। केशेषु जरया श्वेतत्वम् (शरीरम्) (अनु) अनुक्रमेण (प्र अविशन्) प्रविष्टवन्तः ॥

२० स्तेयं दुष्कृतम्

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स्तेयं॑ दुष्कृ॒तं वृ॑जि॒नं स॒त्यं य॒ज्ञो यशो॑ बृ॒हत्।
बलं॑ च क्ष॒त्रमोज॑श्च॒ शरी॑र॒मनु॒ प्रावि॑शन् ॥

२० स्तेयं दुष्कृतम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Theft, ill-doing, wrong, truth, sacrifice, great glory, both
    strength, dominion, and force, entered the body afterward.
Notes

Ppp. has the better reading sahas for bṛhat in b.

Griffith

Theft, evil-doing, and deceit, truth, sacrifice, exalted fame, Strength, princely power, and energy entered the body as a home.

पदपाठः

स्तेय॑म्। दुः॒ऽकृ॒तम्। वृ॒जि॒नम्। स॒त्यम्। य॒ज्ञः। यशः॑। बृ॒हत्। बल॑म्। च॒। क्ष॒त्रम्। ओजः॑। च॒। शरी॑रम्। अनु॑। प्र। अ॒वि॒श॒न्। १०.२०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (स्तेयम्) चोरी, (दुष्कृतम्) दुष्टकर्म, (वृजिनम्) पाप, (सत्यम्) सत्य [यथार्थ कथन कर्म आदि], (यज्ञः) यज्ञ [देवपूजा आदि] और (बृहत्) वृद्धिकारक (यशः) यश, (बलम्) बल (च) और (ओजः) पराक्रम (च) और (क्षत्रम्) हानि से रक्षक गुण [क्षत्रियपन] ने (शरीरम्) शरीर में (अनु) धीरे-धीरे (प्र अविशन्) प्रवेश किया ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य के दुष्ट विचारों से चोरी आदि दुष्ट कर्म और उनके नरक आदि बुरे फल और शुभ विचारों से सत्य कर्म आदि उत्तम कर्म और उनके मोक्ष आदि उत्तम फल शरीर द्वारा प्राप्त होते हैं ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २०−(स्तेयम्) चौरत्वम् (दुष्कृतम्) दुष्टकर्म (वृजिनम्) अ० १।१०।३। पापम् (सत्यम्) यथार्थकथनादिकर्म (यज्ञः) देवपूजादिव्यवहारः (यशः) कीर्तिः (बृहत्) सुखवृद्धिकरम् (बलम्) (च) (क्षत्रम्) अ० २।१५।४। क्षत्+त्रैङ् पालने-क। क्षतः क्षतात्, हानेः रक्षकं क्षत्रियत्वम् (खोजः) पराक्रमः (च) अन्यत् पूर्ववत् ॥

२१ भूतिश्च वा

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भूति॑श्च॒ वा अभू॑तिश्च रा॒तयोऽरा॑तयश्च॒ याः।
क्षुध॑श्च॒ सर्वा॒स्तृष्णा॑श्च॒ शरी॑र॒मनु॒ प्रावि॑शन् ॥

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Whitney
Translation
  1. Both growth (bhū́ti) and diminution, generosities and
    niggardlinesses, both hungerings and all thirstings, entered the body
    afterward.
Notes

Ppp. combines vā ’bhūtiś in a.

Griffith

Prosperity and poverty, kindnesses and malignities, Hunger and thirst of every kind entered the body as a home.

पदपाठः

भूतिः॑। च॒। वै। अभू॑तिः। च॒। रा॒तयः॑। अरा॑तयः। च॒। याः। क्षुधः॑। च॒। सर्वाः॑। तृष्णा॑। च॒। शरी॑रम्। अनु॑। प्र। अ॒वि॒श॒न्। १०.२१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भूतिः) सम्पत्ति, (च वै) और भी (अभूतिः) निर्धनता (च) और (रातयः) दानशक्तियाँ, (च) और (याः) जो (अरातयः) कंजूसी की बातें [हैं, उन्होंने] (च) और (क्षुधः) भूख (च) और (सर्वाः) सब (तृष्णाः) तृष्णाओं ने (शरीरम्) शरीर में (अनु) धीरे-धीरे (प्र अविशन्) प्रवेश किया ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन की स्थिरता से सम्पत्ति आदि सुख, और उसकी चञ्चलता से निर्धनता आदि कष्ट प्राणी को शरीर द्वारा प्राप्त होते हैं ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २१−(भूतिः) सम्पत्तिः (च) (वै) एव (अभूतिः) निर्धनता (च) (रातयः) दानशक्तयः (अरातयः) कार्पण्यानि (च) (याः) (क्षुधः) बुभुक्षाः (च) (सर्वाः) (तृष्णाः) पिपासाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

२२ निन्दाश्च वा

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नि॒न्दाश्च॒ वा अनि॑न्दाश्च॒ यच्च॒ हन्तेति॒ नेति॑ च।
शरी॑रं श्र॒द्धा दक्षि॒णाश्र॑द्धा॒ चानु॒ प्रावि॑शन् ॥

२२ निन्दाश्च वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both revilings and non-revilings, both what [says] “come on”
    (hánta) and “no,” faith, the sacrificial fee, and non-faith, entered
    the body afterward.
Notes

Ppp. combines vā ’nindāś in a. The majority of mss. (including our
Bp.B.P.M.E.T.R.K.) read dakṣiṇā́ in c; ⌊if I understand W’s
Collation Book, only Bp.T.K. among his mss. are noted as so reading;⌋
both editions give dákṣiṇā. The comm. explains the word as meaning
dhanasamṛddhi. ⌊Cf. Oldenberg, ZDMG. l. 449.⌋

Griffith

Reproaches, freedom from reproach, all blamable, all blameless deeds, Bounty, belief, and unbelief entered the body as a home.

पदपाठः

नि॒न्दाः। च॒। वै। अनि॑न्दाः। च॒। यत्। च॒। हन्त॑। इति॑। न। इति॑। च॒। शरी॑रम्। श्र॒ध्दा। दक्षि॑णा। अश्र॑ध्दा। च॒। अनु॑। प्र। अ॒वि॒श॒न्। १०.२२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (निन्दाः) निन्दाएँ [गुणों में दोष लगाने] (च च वै) और भी (अनिन्दाः) अनिन्दाएँ [स्तुति, गुणों के कथन] (च) और (यत्) जो कुछ (हन्त)हां−(इति) ऐसा, (च) और (न)ना−(इति) ऐसा है और (दक्षिणा) दक्षिणा [प्रतिष्ठा], (श्रद्धा) श्रद्धा [सत्य ईश्वर और वेद में विश्वास] (च) और (अश्रद्धा) अश्रद्धा [ईश्वर और वेद में भक्ति न होना] [इन सब ने] (शरीरम्) शरीर में (अनु) धीरे-धीरे (प्र अविशन्) प्रवेश किया ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विहित कर्मों के करने और निषिद्ध कर्मों को छोड़ने से सुसंस्कार के कारण शरीर द्वारा सुख प्राप्त करता है ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २२−(निन्दाः) गुरोश्च हलः। पा० ३।३।१०३। णिदि कुत्सायाम्-अ प्रत्ययः। गुणेषु दोषारोपाः (च च) समुच्चये (वै) एव (अनिन्दाः) स्तुतयः। गुणकथनानि (च) (यत्) (च) (हन्त) हन हिंसागत्योः-त प्रत्ययः। हर्षे। स्वीकारे कर्मणां विधिसूचकः शब्दः (इति) वाक्यसमाप्तौ (न) निषेधे। कर्मणां निषेधसूचकः शब्दः (इति) (च) (शरीरम्) (श्रद्धा) सत्ये परमेश्वरे वेदे च विश्वासः (दक्षिणा) प्रतिष्ठा (अश्रद्धा) नास्तिकबुद्धिः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

२३ विद्याश्च वा

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वि॒द्याश्च॒ वा अवि॑द्याश्च॒ यच्चा॒न्यदु॑पदे॒श्य᳡म्।
शरी॑रं॒ ब्रह्म॒ प्रावि॑श॒दृचः॒ सामाथो॒ यजुः॑ ॥

२३ विद्याश्च वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both knowledges and ignorances, and what else is to be taught
    (upa-diś); the bráhman entered the body; the verses, the chant, also
    the formula.
Notes

Ppp. combines vā ’vidyāś in a, and reads for c śarīraṁ sarve
prā ’viśan
⌊= our 25 c⌋. Bráhman perhaps is here the ‘charm,’
representing the Atharvan hymns.

Griffith

All knowledge and all ignorance, each other thing that one may learn, Entered the body, prayer, and hymns, and songs, and sacrificial texts.

पदपाठः

वि॒द्याः। च॒। वै। अवि॑द्याः। च॒। यत्। च॒। अ॒न्यत्। उ॒प॒ऽदे॒श्य᳡म्। शरी॑रम्। ब्रह्म॑। प्र। अ॒वि॒श॒त्। ऋचः॑। साम॑। अथो॒ इति॑। यजुः॑। १०.२३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (विद्याः) विद्याएँ [तत्त्वज्ञान] (च च वै) और भी (अविद्याः) अविद्याएँ [मिथ्या कल्पनाएँ] (च) और (यत्) जो कुछ (अन्यत्) दूसरा (उपदेश्यम्) उपदेशयोग्य कर्म [विद्या और अविद्या से सम्बन्धवाला विषय है, वह] और (ब्रह्म) ब्रह्म [ब्रह्मचर्य, इन्द्रियसंयम आदि तप] (ऋचः) ऋचाएँ [पदार्थों की गुणप्रकाशक विद्याएँ] (साम=सामानि) सामज्ञान [मोक्षविद्याएँ] (अथो) और भी (यजुः=यजूंषि) यजुर्ज्ञान [ब्रह्मनिरूपक विद्याएँ], [इस सब ने] (शरीरम्) शरीर में (प्र अविशत्) प्रवेश किया ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य आचार्य द्वारा विद्या और अविद्या के ज्ञान और ब्रह्मचर्य के धारण करने से चारों वेदों में वर्णित कर्म, उपासना, ज्ञान−त्रयी विद्या में निष्ठा करके आनन्द पाता है ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २३−(विद्याः) तत्त्वज्ञानानि (च) (वै) (अविद्याः) मिथ्याकल्पनाः (च) (यत्) (च) (अन्यत्) कर्म (उपदेश्यम्) हितकथनेन गम्यम्। विद्याविद्ययोराश्रयभूतम् (शरीरम्) (ब्रह्म) ब्रह्मचर्यम्। इन्द्रियसंयमरूपं तपः (प्राविशत्) प्रविष्टमभवत् (ऋचः) पदार्थानां गुणप्रकाशिका विद्याः (साम) सामानि। मोक्षज्ञानानि (अथो) अपि च (यजुः) यजूंषि। ब्रह्मनिरूपकज्ञानानि ॥

२४ आनन्दा मोदाः

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आ॑न॒न्दा मोदाः॑ प्र॒मुदो॑ऽभिमोद॒मुद॑श्च॒ ये।
ह॒सो न॑रिष्टा नृ॒त्तानि॒ शरी॑र॒मनु॒ प्रावि॑शन् ॥

२४ आनन्दा मोदाः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Delights, joys, enjoyments, and they that enjoy enjoyments,
    laughter, sport, dances, entered the body afterward.
Notes

Ppp. reads for a ānandā nandāṣ pramado. The comm. reads nur
iṣṭās
in c ⌊see SPP’s note, p. 163⌋. The first half-verse is
identical with 7. 26 a, b above.

Griffith

Enjoyments, pleasures, and delights, gladness, and rapturous ecstasies. Laughter and merriment and dance entered the body as a home.

पदपाठः

आ॒ऽन॒न्दाः। मोदाः॑। प्र॒ऽमुदः॑। अ॒भि॒मो॒द॒ऽमुदः॑। च॒। ये। ह॒सः। न॒रिष्टा॑। नृ॒त्तानि॑। शरी॑रम्। अनु॑। प्र। अ॒वि॒श॒न्। १०.२४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (आनन्दाः) आनन्द, (मोदाः) हर्ष (प्रमुदः) बड़े आनन्द (च) और (ये) (अभिमोदमुदः) बड़े उत्सवों से हर्ष देनेवाले पदार्थ हैं [वे सब और]। (हसः) हंसी, (नृत्तानि) नाचों और (नरिष्टा) मङ्गल कामों [खेल-कूद आदि] [इन सब ने] (शरीरम्) शरीर में (अनु) धीरे-धीरे (प्र अविशन्) प्रवेश किया ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य शरीर द्वारा अनेक शुभ कर्म करके अनेक मङ्गल मनावें ॥२४॥इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध आ चुका है-अ० ११।७।२६ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २४−पूर्वार्धर्चो व्याख्यातः-अ० ११।७।२६। (हसः) स्वनहसोर्वा। पा० ३।३।६२। हसे हसने-अप्। हासः (नरिष्टा) न+रिष हिंसायाम्-कर्तरि-क्त। शेर्लोपः। अरिष्टानि। अहिंसकानि। मङ्गलकर्माणि (नृत्तानि) नृती गात्रविक्षेपे-क्त। तालमानयुक्तान्यङ्गविक्षेपरूपाणि नर्तनानि। अन्यत् पूर्ववत्-म० २२ ॥

२५ आलापाश्च प्रलापाश्चाभीलापलपश्च

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आ॑ला॒पाश्च॑ प्रला॒पाश्चा॑भीलाप॒लप॑श्च॒ ये।
शरी॑रं॒ सर्वे॒ प्रावि॑शन्ना॒युजः॑ प्र॒युजो॒ युजः॑ ॥

२५ आलापाश्च प्रलापाश्चाभीलापलपश्च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both appeals (ālāpá) and pratings (pralāpá), and they who utter
    (-lap) addresses (abhīlāpa-)—all entered the body, joiners-on
    (āyúj), joiners-forth (prayúj), joiners.
Notes

Ppp. reads prāyujas in d. The comm. explains the last words as =
āyojanāni, prayojanāni, and yojanāni. The first half-verse is as
it were a change rung on 24 a, b.

Griffith

Discourse and conversation, and the shrill-resounding cries of woe, All entered in, the motives and the purposes combined there- with.

पदपाठः

आ॒ऽला॒पाः। च॒। प्र॒ऽला॒पाः। च॒। अ॒भि॒ला॒प॒ऽलपः॑। च॒। ये। शरी॑रम्। सर्वे॑। प्र। अ॒वि॒श॒न्। आ॒ऽयुजः॑। प्र॒ऽयुजः॑। युजः॑। १०.२५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (आलापाः) आलाप [सार्थक बातें] (च) और (प्रलापाः) प्रलाप [अनर्थक बातें, बकवाद] (च च) और (ये) जो (अभिलापलपः) व्याख्यानों के कथनव्यवहार हैं, [उन सब ने और] (आयुजः) उद्योगों, (प्रयुजः) प्रयोजनों और (युजः) योगों [समाधिक्रियाओं], (सर्वे) इन सब ने (शरीरम्) शरीर में (प्र अविशन्) प्रवेश किया ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - उत्साह के बढ़ानेवाले आलाप आदि व्यवहार शरीर के साथ मनुष्य को सुखदायक होते हैं ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २५−(आलापाः) आङ्+लप व्यक्तायां वाचि-घञ्। सार्थकानि वचनानि (प्रलापाः) निरर्थकानि वचनानि (च) (अभिलापलपः) लपेः क्विप्। अभिलापानां व्याख्यानां कथनव्यवहाराः (च) (ये) (सर्वे) (आयुजः) आङ्+युजिर् योगे, युज संयमने-क्विप्। आयोजनानि। उद्योगाः (प्रयुजः) प्रयोजनानि। कारणानि (युजः) युज समाधौ-क्विप्। ध्यानक्रियाः ॥

२६ प्राणापानौ चक्षुः

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प्रा॑णापा॒नौ चक्षुः॒ श्रोत्र॒मक्षि॑तिश्च॒ क्षिति॑श्च॒ या।
व्या॑नोदा॒नौ वाङ्मनः॒ शरी॑रेण॒ त ई॑यन्ते ॥

२६ प्राणापानौ चक्षुः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Breath-and-expiration, sight, hearing, indestructibleness and
    destruction, out-breathing and up-breathing, speech, mind—they go about
    (īja-) with the body.
Notes

The first three pādas are the same with 4 a, b, c, above.

Griffith

Inbreath and outbreath, ear and eye, decay and freedom from decay. Breath upward and diffused, voice, mind, these quickly with the body move,

पदपाठः

प्रा॒णा॒पा॒नौ। चक्षुः॑। श्रोत्र॑म्। अक्षि॑तिः। च॒। क्षितिः॑। च॒। या। व्या॒न॒ऽउ॒दा॒नौ। वाक्। मनः॑। शरी॑रेण। ते। ई॒य॒न्ते॒। १०.२६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राणापानौ) प्राण और अपान [भीतर और बाहिर जानेवाला श्वास], (चक्षुः) नेत्र, (श्रोत्रम्) कान, (च) और (या) जो (अक्षितिः) [सुख की] निर्हानि (च) और (क्षितिः) [दुःख की] हानि। (व्यानोदानौ) व्यान [सब नाड़ियों में रस पहुँचानेवाला वायु] और उदान [ऊपर को चढ़नेवाला वायु], (वाक्) वाणी और (मनः) मन, (ते) ये सब (शरीरेण) शरीर के साथ (ईयन्ते) चलते हैं ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जीवों में प्राण अपान आदि सब व्यापार शरीर के साथ होते हैं ॥२६॥इस मन्त्र के पहिले तीन पाद ऊपर मन्त्र ४ में आ चुके हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २६−त्रयः पादाः पूर्ववत्-म० ४। (शरीरेण) देहेन (ते) पूर्वोक्ताः पदार्थाः (ईयन्ते) ईङ् गतौ−श्यन्। गच्छन्ति। प्रवर्तन्ते ॥

२७ आशिषश्च प्रशिषश्च

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आ॒शिष॑श्च प्र॒शिष॑श्च सं॒शिषो॑ वि॒शिष॑श्च॒ याः।
चि॒त्तानि॒ सर्वे॑ संक॒ल्पाः शरी॑र॒मनु॒ प्रावि॑शन् ॥

२७ आशिषश्च प्रशिषश्च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both blessings (āśís) and precepts (praśís), demands (saṁśís)
    and explanations (viśís), thoughts, all devisings, entered the body
    afterward.
Notes

The comm. explains the difficult compounds of -śis as mechanically as
those of -yuj in vs. 25: āśāsanāni, praśāsanāni, saṁśāsanāni,
vividhāni śāsanāni.

Griffith

All earnest wishes, all commands, directions, and admonish- ments. Reflections, all deliberate plans entered the body as a home.

पदपाठः

आ॒ऽशिषः॑। च॒। प्र॒ऽशिषः॑। च॒। स॒म्ऽशिषः॑। वि॒ऽशिषः॑। च॒। याः। चि॒त्तानि॑। सर्वे॑। स॒म्ऽक॒ल्पाः। शरी॑रम्। अनु॑। प्र। अ॒वि॒श॒न्। १०.२७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (आशिषः) आशीर्वादों [हितप्रार्थनाओं], (च) और (प्रशिषः) उत्तम शासनों (च) और (संशिषः) यथावत् प्रबन्धों (च) और (याः) जो (विशिषः) विशेष परामर्श हैं [उन्होंने] (चित्तानि) अनेक विचारों और (सर्वे) सब (सङ्कल्पाः) सङ्कल्पों [मनोरथों] ने (शरीरम्) शरीर में (अनु) धीरे-धीरे (प्र अविशन्) प्रवेश किया ॥२७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य शरीर के सम्बन्ध से ज्ञान प्राप्त करके हितप्रार्थनाओं और शासन आदि क्रियाओं को दृढ़ सङ्कल्पी होकर सिद्ध करें ॥२७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २७−(आशिषः) आङः शासु इच्छायाम्-क्विप्। उपधाया इत्वम्। आशीर्वादाः। हितप्रार्थनाः (प्रशिषः) शासु अनुशिष्टौ-क्विप्। उत्तमानि शासनानि (संशिषः) सम्यक् शासनानि। प्रबन्धकर्माणि (विशिषः) विशेषपरामर्शाः (च) (याः) (चित्तानि) विचाराः (सर्वे) (सङ्कल्पाः) दृढमनोरथाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

२८ आस्तेयीश्च वास्तेयीश्च

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आस्ते॑यीश्च॒ वास्ते॑यीश्च त्वर॒णाः कृ॑प॒णाश्च॒ याः।
गुह्याः॑ शु॒क्रा स्थू॒ला अ॒पस्ता बी॑भ॒त्साव॑सादयन् ॥

२८ आस्तेयीश्च वास्तेयीश्च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both those of the blood and those of the bladder, the hasting and
    those that are pitiable, the secret, the clear, the thick waters—those
    they caused to settle in the repugnant one.
Notes

That is, apparently, in the body that was loth to receive them. SPP.
reads unaccountably at the beginning ā́steyīs, against the great
majority of his mss., the comm., and the sense. The reading has not been
noted at all among our mss., but sn and st are very imperfectly
distinguished in general by the scribes, and the latter may possibly
have been intended by some among them. The comm. derives the word from
ā + snā, instead of from asan; the form in which he gives it is
āsneyyas. The second word he reads vāsneyyas, and derives it from
‘or’ + snā! Then he adds another derivation for both words, from
āsana ‘sitting,’ and vasna ‘price’ respectively. He reads then
āpas in c. Ppp. reads śukriyā in c.

Griffith

They laid in the abhorrent frame those waters hidden, bright, and thick, Which in the bowels spring from blood, from mourning or from hasty toil.

पदपाठः

आस्ते॑यीः। च॒। वास्ते॑यीः। च॒। त्व॒र॒णाः। कृ॒प॒णाः। च॒। याः। गुह्याः॑। शु॒क्राः। स्थू॒लाः। अ॒पः। ताः। बी॒भ॒त्सौ। अ॒सा॒द॒य॒न्। १०.२८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (आस्तेयीः) अस्ति [रुधिर] में रहनेवाले (च) और (वास्तेयीः) वस्ति [पेड़ू वा मूत्राशय] में रहनेवाले (च) और (त्वरणाः) शीघ्र चलनेवाले (च) और (कृपणाः) दुर्बल [पतले], (स्थूलाः) गाढ़े (गुह्याः) गुहा [शरीर के गुप्त स्थान] में रहनेवाले और (शुक्राः) वीर्य [वा रज] में रहनेवाले (याः) जो [जल हैं], (ताः अपः) उन जलों को (बीभत्सौ) परस्पर बँधे हुए [शरीर] में (असादयन्) उन [ईश्वरनियमों] ने पहुँचाया ॥२८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर ने नाड़ियों द्वारा वायु की गति से जल को विविध प्रकार पहुँचा कर शरीर को काम करने योग्य बनाया है ॥२८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २८−(आस्तेयीः) वसेस्तिः। उ० ४।१८०। असु क्षेपणे-ति। अस्यते क्षिप्यते या नाडीषु सा अस्तिः, असृग् रक्तम्। दृतिकुक्षिकलशिवस्त्यस्त्यहेर्ढञ्। पा० ४।३।५६। अस्ति−ढञ्। तत्र भव इत्यर्थे, ङीप्−च। आस्तेय्यः। रक्ते वर्तमानाः (वास्तेयीः) वस्ति−ढञ् पूर्ववत्। मूत्राधारे नाभेरधोभागे भवाः (च) (त्वरणाः) त्वरया गच्छन्त्यः (कृपणाः) रञ्जेः क्युन्। उ० २।७९। कृप दौर्बल्ये−क्युन्। दुर्बलाः। कृशाः (च) (याः) आपः (गुह्याः) गुहायां गर्ते भवाः (शुक्राः) शुक्रे वीर्ये रजसि वा भवाः (स्थूलाः) घनाः। स्निग्धाः (अपः) जलानि (ताः) पूर्वोक्ताः (बीभत्सौ) मान्बधदान्शान्भ्यो दीर्घश्चाभ्यासस्य। पा० ३।१।६। बध बन्धने-सन् स्वार्थे। सनाशंसभिक्ष उः। पा० ३।२।१६८। उ प्रत्ययः। परस्परसम्बन्धिनि शरीरे (असादयन्) षद्लृ गतौ-णिच्, लङ्। प्रापितवन्तः। प्रेरितवन्तः ॥

२९ अस्थि कृत्वा

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अस्थि॑ कृ॒त्वा स॒मिधं॒ तद॒ष्टापो॑ असादयन्।
रेतः॑ कृत्वाज्यं॑ दे॒वाः पुरु॑ष॒मावि॑शन् ॥

२९ अस्थि कृत्वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Having made bone [their] fuel, then they caused eight waters to
    settle; having made seed [their] sacrificial butter, the gods entered
    man.
Notes

The first part of the verse is spoiled in Ppp. The comm. has the more
regular accus. pl. apas in b (the pada-text aṣṭá: ā́paḥ, as
required by the accent; the comm. in general pays no heed to accent). He
acutely refers to Tāitt. Brāh. i. 1. 9⁴, where bone is identified with
fuel, and seed with sacrificial butter.

Griffith

Fuel they turned to bone, and then they set light waters in the frame. The molten butter they made seed: then the Gods entered into man.

पदपाठः

अस्थि॑। कृ॒त्वा। स॒म्ऽइध॑म्। तत्। अ॒ष्ट। आपः॑। अ॒सा॒द॒य॒न्। रेतः॑। कृ॒त्वा। आज्य॑म्। दे॒वाः। पुरु॑षम्। आ। अ॒वि॒श॒न्। १०.२९।

अधिमन्त्रम् (VC)
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (आपः) व्यापक (देवाः) दिव्य गुणों [ईश्वरनियमों] ने (तत्) फिर (अस्थि) हड्डी को (समिधम्) समिधा [इन्धन समान पाकसाधन] (कृत्वा) बनाकर और (रेतः) वीर्य [वा स्त्रीरज] को (आज्यम्) घृत [घृत समान पुष्टिकारक] (कृत्वा) बनाकर (अष्ट) आठ प्रकार से [रस अर्थात् खाये अन्न का सार, रक्त, मांस, मेदा, अस्थि, मज्जा, वीर्य, वा स्त्रीरज इन सात धातुओं और मन के द्वारा] (पुरुषम्) पुरुष [प्राणी के शरीर] को (असादयन्) चलाया, और [उस में] (आ अविशन्) उन्होंने प्रवेश किया ॥२९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सर्वव्यापक परमेश्वर ने अपनी शक्ति के प्रवेश से प्रधानता से हड्डियों को काष्ठ रूप अन्न आदि के पाक का साधन और पुरुष के वीर्य वा स्त्री के रज को घृत समान पुष्टिकारक बनाकर रस, रक्त, मांस आदि सात धातुओं और मन के द्वारा प्राणियों के शरीर को कार्ययोग्य किया है ॥२९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २९−(अस्थि) (कृत्वा) निर्माय (समिधम्) समिन्धनसाधनं शरीरपरिपाकस्य निमित्तम् (तत्) तदा (अष्ट) अष्टधा। रसासृङ्मांसमेदोऽस्थिमज्जशुक्राणि धातवः-इत्येते सप्तधातवो मनश्चेत्येभिः (आपः) आपः=आपनाः-निरु० १२।३७। व्यापकाः (असादयन्) म० २८। प्रेरितवन्तः (रेतः) वीर्यं स्त्रीरजो वा (कृत्वा) (आज्यम्) घृतवत्पुष्टिकरम् (देवाः) दिव्याः परमेश्वरगुणाः (पुरुषम्) प्राणिशरीरम् (आ अविशन्) प्रविष्टवन्तः ॥

३० या आपो

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या आपो॒ याश्च॑ दे॒वता॒ या वि॒राड्ब्रह्म॑णा स॒ह।
शरी॑रं॒ ब्रह्म॒ प्रावि॑श॒च्छरी॒रेऽधि॑ प्र॒जाप॑तिः ॥

३० या आपो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What waters [there are], and what deities, what virā́j, with
    bráhman; bráhman entered the body; on (ádhi) the body [is]
    Prajāpati.
Notes
Griffith

All Waters, all the Deities. Viraj with Brahma at her side: Brahma into the body passed: Prajapati is Lord thereof.

पदपाठः

याः। आपः॑। याः। च॒। दे॒वताः॑। या। वि॒ऽराट्। ब्रह्म॑णा। स॒ह। शरी॑रम्। ब्रह्म॑। प्र। अ॒वि॒श॒त्। शरी॑रे। अधि॑। प्र॒जाऽप॑तिः। १०.३०।

अधिमन्त्रम् (VC)
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (याः) जो (आपः) व्यापक [इन्द्रियों की शक्तियाँ] (च) और (याः) जो (देवताः) दिव्य गुणवाले [इन्द्रियों के गोलक] हैं, और (या) जो (विराट्) विराट् [विविध प्रकार शोभायमान प्रकृति] (ब्रह्मणा सह) ब्रह्म [परमात्मा] के साथ है, [इस सब ने और] (ब्रह्म) अन्न ने (शरीरम्) शरीर में (प्र अविशत्) प्रवेश किया, और (प्रजापतिः) प्रजापति [इन्द्रिय आदि प्रजाओं का स्वामी, जीवात्मा] (शरीरे) शरीर में (अधि) अधिकारपूर्वक [ठहरा] ॥३०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमात्मा ने जीव के शरीर में इन्द्रियों को उनकी शक्तियों सहित प्रकृति द्वारा रचा और शरीरपुष्टि के लिये अन्न आदि पदार्थ देकर सबका अधिष्ठाता जीवात्मा को किया ॥३०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३०−(याः) (आपः) आप आपनानि-निरु० १२।३७। व्यापकानीन्द्रियसामर्थ्यानि (याः) (च) (देवताः) दिव्यगुणानीन्द्रियच्छिद्राणि (या) (विराट्) विविधराजमाना प्रकृतिः (ब्रह्मणा) परमात्मना (सह) (शरीरम्) (ब्रह्म) अन्नम्-निघ० २।७। (प्राविशत्) (शरीरे) (अधि) अधिकारपूर्वकम् (प्रजापतिः) इन्द्रियादिप्रजानां पालको जीवात्मा-अतिष्ठत् इति शेषः ॥

३१ सूर्यश्चक्षुर्वातः प्राणम्

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सूर्य॒श्चक्षु॒र्वातः॑ प्रा॒णं पुरु॑षस्य॒ वि भे॑जिरे।
अथा॒स्येत॑रमा॒त्मानं॑ दे॒वाः प्राय॑च्छन्न॒ग्नये॑ ॥

३१ सूर्यश्चक्षुर्वातः प्राणम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The sun, the wind, shared [respectively] the eye, the breath of
    man; then his other self the gods bestowed (pra-yam) on Agni.
Notes

‘Shared’ (ví bhejire, pl.) is ungrammatical as taken with the subject
(which is only two-fold) given in the text. The comm. understands that
the other ‘senses’ with their deities are viewed as included with these
two. Ppp. reads tathā instead of atha in c.

Griffith

The Sun and Wind formed, separate, the eye and vital breath of man. His other person have the Gods bestowed on Agni as a gift.

पदपाठः

सूर्यः॑। चक्षुः॑। वातः॑। प्रा॒णम्। पुरु॑षस्य। वि। भे॒जि॒रे॒। अथ॑। अ॒स्य॒। इत॑रम्। आ॒त्मान॑म्। दे॒वाः। प्र। अ॒य॒च्छ॒न्। अ॒ग्नये॑। १०.३१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सूर्यः) सूर्य ने (पुरुषस्य) [जीवात्मा] के (चक्षुः) नेत्र को, (वातः) वायु ने (प्राणम्) प्राण [उसके श्वास प्रश्वास] को (वि) विशेष करके (भेजिरे=भेजे) स्वीकार किया। (अथ) फिर (देवाः) दिव्य पदार्थों [दूसरे इन्द्रिय आदि] ने (अस्य) इस [जीवात्मा] का (इतरम्) दूसरा (आत्मानम्) शरीर का अवयवसमूह (अग्नये) अग्नि को (प्र अयच्छन्) दान किया ॥३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ईश्वरनियम से जैसे शरीर में सूर्य का प्रधानत्व नेत्र पर और वायु का श्वास-प्रश्वास पर है, इसी प्रकार अग्नि तत्त्व की विशेषता शरीर के अन्य सब अङ्गों में है ॥३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३१−(सूर्यः) प्रकाशप्रेरको लोकविशेषः (चक्षुः) नेत्रम् (वातः) वायुः (प्राणम्) श्वासप्रश्वासरूपम् (पुरुषम्) जीवात्मनः (वि) विशेषेण (भेजिरे) एकवचनस्य बहुवचनम्। भेजे। स्वीचकार (अथ) अपि च (अस्य) प्राणिनः (इतरम्) अन्यम् (आत्मानम्) शरीरावयवसमूहम् (देवाः) इन्द्रियाद्या दिव्यपदार्थाः (प्र अयच्छन्) दत्तवन्तः (अग्नये) अग्नितत्त्वाय ॥

३२ तस्माद्वै विद्वान्पुरुषमिदम्

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तस्मा॒द्वै वि॒द्वान्पुरु॑षमि॒दं ब्रह्मेति॑ मन्यते।
सर्वा॒ ह्य᳡स्मिन्दे॒वता॒ गावो॑ गो॒ष्ठ इ॒वास॑ते ॥

३२ तस्माद्वै विद्वान्पुरुषमिदम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Therefore, indeed, one who knows man ⌊púruṣa⌋ thinks “this is
    bráhman”; for all deities are seated in him, as cows in a cow-stall.
Notes

Our text should read at the end ivā́ ”sate with SPP. and nearly all the
mss. (our Bp.B. ivā ”sate). Ppp. has a less naive d: śarīre ‘dhi
samāhitaḥ
.

Griffith

Therefore whoever knoweth man regardeth him as Brahman’s self: For all the Deities abide in him as cattle in their pen.

पदपाठः

तस्मा॑त्। वै। वि॒द्वान्। पुरु॑षम्। इ॒दम्। ब्रह्म॑। इति॑। म॒न्य॒ते॒। सर्वाः॑। हि। अ॒स्मि॒न्। दे॒वताः॑। गावः॑। गो॒स्थेऽइ॑व। आस॑ते। १०.३२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्मात्) उससे [ब्रह्म से उत्पन्न] (वै) निश्चय करके (पुरुषम्) पुरुष [पुरुष शरीर] को (विद्वान्) जाननेवाला मनुष्य ब्रह्म [परमात्मा] (इदम्) परम ऐश्वर्यवाला है (इति) ऐसा (मन्यते) मानता है। (हि) क्योंकि (अस्मिन्) इस [परमात्मा] में (सर्वाः) सब (देवताः) दिव्यपदार्थ [पृथिवी, सूर्य आदि लोक] (आसते) ठहरते हैं, (इव) जैसे (गावः) गौएँ (गोष्ठे) गोशाला में [सुख से रहती] हैं ॥३२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य अपने शरीर में परमात्मा की अद्भुत स्थूल और सूक्ष्म रचना देखकर समस्त ब्रह्माण्ड का कर्ता, धर्ता और आधार उसको जाने ॥३२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३२−(तस्मात्) परमात्मनः सकाशात् (वै) एव (विद्वान्) जानन् (पुरुषम्) पुरुषशरीरम् (इदम्) इन्देः कमिन्नलोपश्च। उ० ४।१५७। इदि परमैश्वर्ये-कमिन्। परमैश्वर्ययुक्तम् (ब्रह्म) परमात्मा (इति) एवम् (मन्यते) जानाति (सर्वाः) समस्ताः (हि) यस्मात् (अस्मिन्) परमात्मनि (देवताः) दिव्यपदार्थाः पृथिवीसूर्यादिलोकाः (गावः) धेनवः (गोष्ठे) गोशालायाम् (इव) (आसते) तिष्ठन्ति ॥

३३ प्रथमेन प्रमारेण

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प्र॑थ॒मेन॑ प्रमा॒रेण॑ त्रे॒धा विष्व॒ङ्वि ग॑च्छति।
अ॒द एके॑न॒ गच्छ॑त्य॒द एके॑न गच्छती॒हैके॑न॒ नि षे॑वते ॥

३३ प्रथमेन प्रमारेण ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. By the first dying, it goes apart dividing threefold: yonder goes it
    with one [part]; yonder goes it with one; here with one it dwells (?
    ni-sev).
Notes

This verse and the one following are (as above noted) wanting in Ppp.
The comm. reads ni for vi in b. He regards the two ‘yonders’ as
pointing respectively to heaven and hell, and paraphrases ni ṣevate by
nitarāṁ sukhaduḥkhātmakān bhogān sevate. ⌊He makes jīvātmā the
subject: and a masculine subject seems required by víṣvan̄, unless we
read just after it.⌋

Griffith

At his first death he goeth hence, asunder, in three separate parts. He goeth yonder with one part, with one he goeth yonder: here he sinketh downward with a third.

पदपाठः

प्र॒थ॒मेन॑। प्र॒ऽभा॒रेण॑। त्रे॒धा। विष्व॑ङ्। वि। ग॒च्छ॒ति॒। अ॒दः। एके॑न। गच्छ॑ति। अ॒दः। एके॑न। ग॒च्छ॒ति॒। इ॒ह। एके॑न। नि। से॒व॒ते॒। १०.३३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रथमेन) पहिले [मरणसमय के पहिले] से और (प्रमारेण) मरण के साथ (त्रेधा) तीन प्रकार पर (विष्वङ्) नाना गति से वह [प्राणी] (वि गच्छति) चला चलता है। वह [प्राणी] (एकेन) एक [शुभ कर्म] से (अदः) उस [मोक्षसुख] को (गच्छति) पाता है, (एकेन) एक [पाप कर्म] से (अदः) उस [नरक स्थान] को (गच्छति) पाता है, (एकेन) एक [पुण्य-पाप के साथ मिले कर्म] से (इह) यहाँ पर [मध्य अवस्था में] (नि सेवते) नियम से रहता है ॥३३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य जीवनकाल और परलोक में अपने शुभ कर्म से मोक्ष, अशुभ कर्म से नरक, और दोनों पुण्य-पाप की मध्य अवस्था में मोक्ष और नरक की मध्य अवस्था भोगता है ॥३३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३३−(प्रथमेन) मरणात् प्रथमकालेन (प्रमारेण) मरणेन सह (त्रेधा) त्रिप्रकारेण (विष्वङ्) विषु+अञ्चु गतिपूजनयोः-क्विन्। नानागत्या (वि गच्छति) व्याप्य चलति (अदः) तत्। मोक्षपदम् (एकेन) पुण्यकर्मणा (गच्छति) प्राप्नोति (अदः) तत्। नरकस्थानम् (एकेन) पापकर्मणा (इह) अत्र। मोक्षनरकयोर्मध्यावस्थायाम् (एकेन) पुण्यपापमिश्रितेन कर्मणा (नि) नितराम्। नियमेन (सेवते) भुनक्ति ॥

३४ अप्सु स्तीमासु

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अ॒प्सु स्ती॒मासु॑ वृ॒द्धासु॒ शरी॑रमन्त॒रा हि॒तम्।
तस्मि॒ञ्छवोऽध्य॑न्त॒रा तस्मा॒च्छवोऽध्यु॑च्यते ॥

३४ अप्सु स्तीमासु ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Within waters that are sluggish (? stīmá), old, is the body
    placed; within that is might (? śáva, śávas?); thence is it called
    might.
Notes

There is perhaps in c, d a play upon the word śávas, which may
mean either ‘might’ (as neut.) or (as masc.) ‘corpse.’ The comm.
paraphrases it both times with balātmakaḥ sūtrātmā ⌊i.e. the
parameśvara⌋. He explains stīmāsu as anārdraṁ sarvaṁ jagad ārdraṁ
kurvatīṣu
.

⌊Here ends the fourth anuvāka, with 2 hymns and 61 verses. The quoted
Anukr. says with reference to this eighth hymn “yan manyur” ity atra
caturdaśa ca:
that is 14 over 20.⌋

Griffith

In the primeval waters cold the body is deposited. In this there is the power of growth: from this is power of growth declared.

पदपाठः

अ॒प्ऽसु। स्ती॒मासु॑। वृ॒ध्दासु॑। शरी॑रम्। अ॒न्त॒रा। हि॒तम्। तस्मि॑न्। शवः॑। अधि॑। अ॒न्त॒रा। तस्मा॑त्। शवः॑। अधि॑। उ॒च्य॒ते॒। १०.३४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अध्यात्मम्, मन्युः
  • कौरुपथिः
  • अनुष्टुप्
  • अध्यात्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (स्तीमासु) बाफवाले, (वृद्धासु) बढ़े हुए (अप्सु अन्तरा) अन्तरिक्ष के भीतर (शरीरम्) शरीर (हितम्) रक्खा हुआ है। (तस्मिन् अन्तरा) उस [शरीर] के भीतर (शवः) बल [गतिकारक वा वृद्धिकारक जीवात्मा] (अधि) अधिकारपूर्वक है, (तस्मात्) उस [जीवात्मा] से (अधि) ऊपर (शवः) बल [गतिकारक वा वृद्धिकारक परमात्मा] (उच्यते) कहा जाता है ॥३४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विशाल आकाश के भीतर मेघ, वायु आदि पदार्थ हैं। उस आकाश के भीतर सब शरीर हैं, शरीरों में चेतन्य जीवात्मा अधिष्ठाता है। उस जीवात्मा का भी अधिष्ठाता सर्वनियन्ता परमात्मा है ॥३४॥ इति चतुर्थोऽनुवाकः ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३४−(अप्सु) आपः=अन्तरिक्षम्-निघ–० १।३। अन्तरिक्षे। आकाशे (स्तीमासु) ष्टीम आर्द्रीभावे-पचाद्यच्। आर्द्रं कुर्वतीषु। वाष्पयुक्तासु (वृद्धासु) वृद्धियुक्तासु (शरीरम्) (अन्तरा) मध्ये (हितम्) धृतम् (तस्मिन्) शरीरे (शवः) अ० ५।२।२। श्वेः सम्प्रसारणं च। उ० ४।१५३। टुओश्वि गतिवृद्ध्योः-असुन्। बलम्-निघ० २।९। गतिकरं वृद्धिकरं वा जीवात्मरूपं बलम् (अधि) उपरि (तस्मात्) जीवात्मनः सकाशात् (शवः) गतिकरं वृद्धिकरं वा परमात्मरूपं बलम् (अधि) उपरि (उच्यते) कथ्यते ॥