००७ उच्छिष्ट-ब्रह्म-सूक्तम्

००७ उच्छिष्ट ब्रह्म-सूक्तम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. Extolling the remnant (úcchiṣṭa) of the offering.
VH anukramaṇī

उच्छिष्ट ब्रह्म-सूक्तम्।
१-२७ अथर्वा। अध्यात्मं, उच्छिष्टः। अनुष्टप्, ६ पुर उष्णिग्बार्हतपरा, २१ स्वराट्, २२ विराट् पथ्याबृहती।

Whitney anukramaṇī

[Atharvan.—saptaviṅśati, mantroktochiṣṭādhyātmadāivatam. ānuṣṭubham*: 6. puroṣṇigbārhataparā; 21. svarāj; 22. virāṭ pathyābṛhatī.] *⌊The Anukr. omits the definition of vs. 11 as pathyāpan̄kti.⌋

Whitney

Comment

Found also (except vs. 25) in Pāipp. xvi. ⌊The hymn is not cited in the text of Kāuś. nor of Vāit.⌋

Translations

Translated: Muir, v. 397 (part); Scherman, p. 87 (part); Deussen, Geschichte, i. 1. 305-310; Henry, 120, 156; Griffith, ii. 75; Bloomfield, 226, 629.—See Deussen’s valuable introduction. He does not believe that ucchiṣṭa means ‘remnant of the offering’ in this hymn, but rather ‘residuum in general,’ the remainder that we get after subtracting from the universe all the forms of the world of phenomena.

Griffith

A glorification of the Uchchhishta or Residue of Sacrifice

०१ उच्छिष्टे नाम

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

उच्छि॑ष्टे॒ नाम॑ रू॒पं चोच्छि॑ष्टे लो॒क आहि॑तः।
उच्छि॑ष्ट॒ इन्द्र॑श्चा॒ग्निश्च॒ विश्व॑म॒न्तः स॒माहि॑तम् ॥

०१ उच्छिष्टे नाम ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. In the remnant [are set] name and form, in the remnant [is] set
    the world; within the remnant both Indra and Agni, everything is set
    together.
Notes

The comm. connects the hymn with hymn 3, above, making the ucchiṣṭa
the remnant of Aditi’s rice-dish; he quotes Tāitt. Brah. i. 1. 9¹, where
it says “they gave her what remained” (uccheṣaṇa) etc. Ppp. reads
rūpāṇi for rūpaṁ ca in b.

Griffith

The Residue of Sacrifice containeth name, and from, and world: Indra and Agni and the whole universe are comprised therein.

पदपाठः

उत्ऽशि॑ष्टे। नाम॑। रू॒पम्। च॒। उत्ऽशि॑ष्टे। लो॒कः। आऽहि॑तः। उत्ऽशि॑ष्टे। इन्द्रः॑। च॒। अ॒ग्निः। च॒। विश्व॑म्। अ॒न्तः। स॒म्ऽआहि॑तम्। ९.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (उच्छिष्टे) शेष [उत्पत्ति और प्रलय से बचे हुए अनन्त परमेश्वर] में [संसार के] (नाम) नाम (च) और (रूपम्) रूप हैं, (उच्छिष्टे) शेष [परमात्मा] में (लोकः) दृश्यमान संसार (आहितः) रक्खा हुआ है। (उच्छष्टे अन्तः) शेष [जगदीश्वर] के भीतर (इन्द्रः) मेघ (च) और (अग्निः) अग्नि [सूर्य आदि] (च) भी और (विश्वम्) प्रत्येक पदार्थ (समाहितम्) बटोरा हुआ है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमात्मा के सामर्थ्य में यह सब विविध दृश्यमान संसार वर्तमान है ॥१॥परमेश्वर का नाम (उच्छिष्ट) अर्थात् शेष इसलिये है कि वह नित्य, अनादि, अनन्त और निर्विकार होकर उत्पत्ति और प्रलय से तथा स्थूल और सूक्ष्म रचना से बचा रहता है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(उच्छिष्टे) अ० ११।३।२१। उत्+शिष असर्वोपयोगे-क्त। य उत्पत्तिप्रलयाभ्यां स्थूलसूक्ष्मरचनाभ्यां चोत्कर्षेण शिष्यते शेषो भवति स उच्छिष्टस्तस्मिन् शेषे अनन्ते परमेश्वरे (नाम) सृष्टिपदार्थानां नामधेयम् (रूपम्) निरूपणीयं रचनम् (च) (उच्छिष्टे) (लोकः) दृश्यमानः संसारः (आहितः) आरोपितः। आश्रितः (उच्छिष्टे) (इन्द्रः) मेघः (च) (अग्निः) सूर्यादिरूपः (च) अपि (विश्वम्) (सर्वम्) प्रत्येकं वस्तु (समाहितम्) सम्यग् निहितम्। स्थापितम्। राशीकृतम् ॥

०२ उच्छिष्टे द्यावापृथिवी

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उच्छि॑ष्टे॒ द्यावा॑पृथि॒वी विश्वं॑ भू॒तं स॒माहि॑तम्।
आपः॑ समु॒द्र उच्छि॑ष्टे च॒न्द्रमा॒ वात॒ आहि॑तः ॥

०२ उच्छिष्टे द्यावापृथिवी ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. In the remnant heaven-and-earth, all existence is set together; in
    the remnant the waters, the ocean, the moon, the wind is set.
Notes

Ppp. combines at the end vātā ”hitaḥ.

Griffith

The Residue of Sacrifice holdeth Earth, Heaven, and all that is: The Residue of Sacrifice holdeth sea, waters, Moon, and Wind.

पदपाठः

उत्ऽशि॑ष्टे। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। विश्व॑म्। भू॒तम्। स॒म्ऽआहि॑तम्। आपः॑। स॒मु॒द्रः। उत्ऽशि॑ष्टे। च॒न्द्रमाः॑। वातः॑। आऽहि॑तः। ९.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (उच्छिष्टे) शेष [अनन्त परमेश्वर] में (द्यावापृथिवी) सूर्य और पृथिवी और (विश्वम्) प्रत्येक (भूतम्) सत्तावाला (समाहितम्) एकत्र किया गया है। (उच्छिष्टे) शेष [जगदीश्वर] में (आपः) जलधाराएँ (समुद्रः) समुद्र, (चन्द्रमाः) चन्द्रमा (वातः) पवन (आहितः) रक्खा गया है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - स्पष्ट है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(द्यावापृथिवी) द्यावापृथिव्यौ। सूर्यभूमी (विश्वम्) प्रत्येकम् (भूतम्) सत्तान्वितं द्रव्यम् (आपः) व्यापनशीला जलधाराः (समुद्रः) जलौघः (चन्द्रमाः) चन्द्रलोकः (वातः) वायुः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥

०३ सन्नुच्छिष्टे असंश्चोभौ

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सन्नुच्छि॑ष्टे॒ असं॑श्चो॒भौ मृ॒त्युर्वाजः॑ प्र॒जाप॑तिः।
लौ॒क्या उच्छि॑ष्ट॒ आय॑त्ता॒ व्रश्च॒ द्रश्चापि॒ श्रीर्मयि॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. In the remnant [are] the being one and the non-being one, both,
    death, vigor, Prajāpati; they of the world (lāukyá) are supported
    (ā-yat) on the remnant, both vrá and drá; also fortune (śrī́) in
    me.
Notes

Ppp. reads ‘saṅś; ⌊for asaṅś⌋ in a; in d, where we should
welcome its aid in making sense, it is corrupt, reading
pṛścadṛścāvṛścīr mayi; it also combines ucchiṣṭā ”yattās in c.
The comm. has āhitās again instead of āyattās in c; he supplies
prajās to lāukyās; and he explains vras as vārako varuṇaḥ and
dras as drāvako ‘mṛtamayaḥ somaḥ, and the last clause by
tatprasādāc chrīḥ sampad inayi viditṣy āhitā ”sthitā bhavatu.

Griffith

Real, non-real, both are there, Prajapati, and Death, and strength: Thereon depend the worldly ones: in me are glory Dra and Vra.

पदपाठः

सन्। उत्ऽशि॑ष्टे। अस॑न्। च॒। उ॒भौ। मृ॒त्युः। वाजः॑। प्र॒जाऽप॑तिः। लौ॒क्याः। उत्ऽशि॑ष्टे। आऽय॑त्ताः। व्रः। च॒। द्रः। च॒। अपि॑। श्रीः। मयि॑। ९.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (उच्छिष्टे) शेष [मन्त्र १। परमात्मा] में (उभौ) दोनों (सन्) सत्तावाला [दृश्यमान, स्थूल] और (च) (असन्) असत्तावाला [अदृश्यमान परमाणुरूप संसार], (मृत्युः) (वाजः) पराक्रम और (प्रजापतिः) प्रजापालक गुण [हैं]। (उच्छिष्टे) शेष [परमेश्वर] में (लौक्याः) लौकिक पदार्थ (आयत्ताः) वशीभूत हैं, (च) और (व्रः) समूह [समष्टिरूप संसार] (च) और (द्रः) व्यक्ति [पृथक्-पृथक् विशेष पदार्थ] (अपि) भी (मयि) मुझ [प्राणी] में [वर्तमान] (श्रीः) सम्पत्ति [परमात्मा में है] ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमात्मा के सामर्थ्य में ही यह सब स्थूल और परमाणुरूप जगत्, मृत्यु आदि और सब प्राणियों की (श्रीः) उत्तम सेवनीय शक्ति वर्तमान है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(सन्) अस सत्तायाम्-शतृ। सत्तां प्राप्नुवन् दृश्यमानः स्थूलसंसारः (उच्छिष्टे) म० १। शेषे परमात्मनि (असन्) असत्तां प्राप्नुवन्। अदृश्यमानः परमाणुरूपसंसारः (च) (उभौ) सदसतौ (मृत्युः) शरीरत्यागः (वाजः) पराक्रमः (प्रजापतिः) प्रजापालको गुणः (लौक्याः) तत्र भवः। पा० ४।३।५३। संसारे विद्यमानाः पदार्थाः (उच्छिष्टे) (आयत्ताः) आङ्+यती प्रयत्ने-क्त। अधीनाः (व्रः) अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। व्रज गतौ-ड। व्रजः समूहः। समष्टिरूपः (च) (द्रः) द्रु गतौ-ड प्रत्ययः पूर्ववत्। व्यक्तिः। व्यष्टिरूपः संसारः (च) (अपि) (श्रीः) सेवनीया संपत् (मयि) प्राणिनि वर्तमाना ॥

०४ दृढो दृंहस्थिरो

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दृ॒ढो दृं॑हस्थि॒रो न्यो ब्रह्म॑ विश्व॒सृजो॒ दश॑।
नाभि॑मिव स॒र्वत॑श्च॒क्रमुच्छि॑ष्टे दे॒वताः॑ श्रि॒ताः ॥

०४ दृढो दृंहस्थिरो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Being fixed, fix thou, being stanch, nyá, the bráhman, the ten
    all-creators; as the wheel on all sides of the nave, the divinities
    [are] set (śritá) in the remnant.
Notes

Ppp. gives no variant in a; at the end it has devatā hitāḥ (i.e.
”hitāḥ?). SPP., against the authority of all the pada-mss., combines
dṛṅhasthiras into one word, merely because the comm. so explains it
(dṛṅhaṇena sthirīkṛto lokaḥ)—which is no reason at all for such an
absurdity. Nyas the comm. glosses with netāras tatratyāḥ prāṇinaḥ,
which gives us no help.

Griffith

The firm, the fast, the strong, the hard, Brahma, the All-creating Ten. Gods, as a wheel about the nave, are fixed all round the Residue.

पदपाठः

दृ॒ढः। दृं॒ह॒ऽस्थि॒रः। न्यः। ब्रह्म॑। वि॒श्व॒ऽसृजः॑। दश॑। नाभि॑म्ऽइव। स॒र्वतः॑। च॒क्रम्। उत्ऽशि॑ष्टे। दे॒वताः॑। श्रि॒ताः। ९.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (दृढः) दृढ़, (दृंहस्थिरः) वृद्धि के साथ स्थिर और (न्यः) नायक [गुण] (ब्रह्म) वेदज्ञान और (दश) दस [आकाश, वायु, तेज, जल, पृथिवी यह पाँच भूत, और शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध ये पाँच तन्मात्राएँ] (विश्वसृजः) संसार बनानेवाले (देवताः) दिव्य पदार्थ (उच्छिष्टे) शेष [म० १ परमात्मा] में (आश्रिताः) आश्रित हैं, (इव) जैसे (नाभिम् सर्वतः) नाभि के सब ओर (चक्रम्) पहिया [पहिये का प्रत्येक अरा लगा होता है] ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमात्मा की शक्ति में संसार के उत्तम-उत्तम अचल नियम और पञ्चभूत और पञ्चतन्मात्रा आदि वर्तमान हैं ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(दृढः) प्रगाढः। कठिनः (दृंहस्थिरः) दृहि वृद्धौ घञ्+ष्ठा गतिनिवृत्तौ किरच्। वृद्ध्या दृढीकृतः (न्यः) कप्रकरणे मूलविभुजादिभ्य उपसंख्यानम्। वा० पा० ३।२।५। णीञ् प्रापणे-क। छान्दसो यणादेशः। नियः। नायको गुणः (ब्रह्म) (वेदज्ञानम्) (विश्वसृजः) जगतः स्रष्टारः (दश) आकाशवायुतेजोजलपृथिव्यः-इति, पञ्चभूतानि शब्दस्पर्शरूपरसगन्धाः-इति पञ्चतन्मात्राणि च दशसंख्याकाः (नाभिम्) चक्रावयवभेदम् (इव) यथा (सर्वतः) उभसर्वतसोः कार्या०। वा० पा० २।३।२। इति सर्वतसो योगे द्वितीया। सर्वं व्याप्य (चक्रम्) रथचक्रम् (उच्छिष्टे) म० १ परमात्मनि (देवताः) देवाः दिव्यपदार्थाः (श्रिताः) स्थिताः ॥

०५ ऋक्साम यजुरुच्छिष्ट

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ऋक्साम॒ यजु॒रुच्छि॑ष्ट उद्गी॒थः प्रस्तु॑तं स्तु॒तम्।
हि॑ङ्का॒र उच्छि॑ष्टे॒ स्वरः॒ साम्नो॑ मे॒डिश्च॒ तन्मयि॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. The verse (ṛ́c), the chant (sā́man), the formula (yájus) [are]
    in the remnant, [also] the song (udgīthá), the introductory praise
    (prástuta),the praise (stutá); the sound hing [is] in the
    remnant, the tone (svára), and the ring (? meḍí) of the chant; that
    in me.
Notes

The comm. gives alternative explanations of svára and meḍí, showing
that their technical meaning was doubtful to him, as to us. Ppp. has for
b udgītaṣ prastutaṁ sthitam; in d it has mīḍhus for meḍis.
⌊To the last clause the comm. supplies bhavatu: cf. vss. 12, 14.⌋

Griffith

Verse, Song, and Sacrificial Text, chanting, the prelude, and the laud, The hum is in the Residue, the tone, the murmur of the psalm.

पदपाठः

ऋक्। साम॑। यजुः॑। उत्ऽशि॑ष्टे। उ॒त्ऽगी॒थः। प्रऽस्तु॑तम्। स्तु॒तम्। हि॒ङ्ऽका॒र। उत्ऽशि॑ष्टे। स्वरः॑। साम्नः॑। मे॒डिः। च॒। तत्। मय‍ि॑। ९.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (उच्छिष्टे) शेष [म० १ परमात्मा] में [वर्तमान] (ऋक्) वेदवाणी, (साम) मोक्षविज्ञान, (यजुः) विद्वानों की पूजा, (उद्गीथः) उत्तम गान [वेदध्वनि आदि], (प्रस्तुतम्) प्रकरण अनुकूल (स्तुतम्) स्तोत्र [गुणों का व्याख्यान]। (उच्छिष्टे) शेष [जगदीश्वर] में [वर्त्तमान] (हिङ्कारः) वृद्धिकारक व्यवहार (स्वरः) स्वर [उदात्त, अनुदात्त और स्वरित भेद] (च) और (साम्नः) सामवेद [मोक्षज्ञान] की (मेडिः) वाणी, (तत्) वह [सब] (मयि) मुझ [उपासक] में [होवे] ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य वेद द्वारा मोक्षज्ञान आदि सब उत्तम विद्याएँ प्राप्त करके संसार में उपदेश करता हुआ कल्याण पावे ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(ऋक्) वाक्-निघ० १।११। वेदवाणी (साम) अ० ७।५४।१। दुःखनाशकं मोक्षज्ञानम् (यजुः) अ० ७।५४।२। देवपूजनम्। विदुषां सत्कारः (उच्छिष्टे) म० १। परमात्मनि (उद्गीथः) गश्चोदि। उ० २।१०। उद्+गै गाने-थक्। वेदध्वनिः। प्रणवः (प्रस्तुतम्) प्रासङ्गिकम् (स्तुतम्) स्तोत्रम् (हिङ्कारः) अ० ७।७३।८। हि गतिवृद्ध्योः-डि+करोतेः-अण्, छान्दसं रूपम्। हिं गतिं वृद्धिं वा करोतीति। वृद्धिकरो व्यवहारः, (उच्छिष्टे) (स्वरः) उदात्तादिभेदः (साम्नः) मोक्षज्ञानस्य (मेडिः) वसिवपियजि०। उ० ४।१२५। मिल संश्लेषणे इञ्। मेडिः वाङ्नाम-निघ० १।११। वाणी (च) (तत्) तत्सर्वम् (मयि) उपासके भवेदिति शेषः ॥

०६ ऐन्द्राग्नं पावमानम्

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ऐ॒न्द्रा॒ग्नं पा॑वमा॒नं म॒हाना॑म्नीर्महाव्र॒तम्।
उच्छि॑ष्टे य॒ज्ञस्याङ्गा॑न्य॒न्तर्गर्भ॑ इव मा॒तरि॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. That relating to Indra-and-Agni, that to the purifying [Soma]
    (pāvamāná), the great-named ones (f., mahā́nāmnīs), the great
    ceremony (makāvratá)—within the remnant are [all] the members of the
    sacrifice, like an embryo within a mother.
Notes

The āindrāgna and pāvamāna are explained by the comm. as two
sāmans; for the mahānāmnīs he refers to Āit. Ār. iv. 1.

Griffith

Within the Residue, like babes unborn, the parts of sacrifice, Aindragne Pavamana lie. Mahanamni, Mahavrata.

पदपाठः

ऐ॒न्द्रा॒ग्नम्। पा॒व॒मा॒नम्। म॒हाऽना॑म्नीः। म॒हा॒ऽव्र॒तम्। उत्ऽशि॑ष्टे। य॒ज्ञस्य॑। अङ्गा॑नि। अ॒न्तः। गर्भः॑ऽइव। मा॒तरि॑। ९.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • पुरोष्णिग्बार्हतपरानुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ऐन्द्राग्नम्) इन्द्र [मेघ] और अग्नि [सूर्य, बिजुली आदि] का ज्ञान, (पावमानम्) शुद्धिकारक वायु का ज्ञान, (महानाम्नीः) बड़े नामोंवाली [वेदविद्याएँ] और (महाव्रतम्) महाव्रत और (यज्ञस्य) यज्ञ [देवपूजा, सङ्गतिकरण और दानव्यवहार] के (अङ्गानि) सब अङ्ग (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में हैं, (इव) जैसे (मातरि अन्तः) माता के [उदर के] भीतर (गर्भः) गर्भ [रहता है] ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वररचित पदार्थों और नियमों के ज्ञान को अपने में धारण करके वृद्धि करे, जैसे माता गर्भ को उदर में रखकर बढ़ाती है ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(ऐन्द्राग्नम्) इन्द्राग्नि-अण्। इन्द्रस्य मेघस्य, अग्नेः सूर्यविद्युतादेश्च ज्ञानम् (पावमानम्) पवमानस्य शुद्धिकारकस्य पवनस्य ज्ञानम् (महानाम्नीः) महान्ति नामानि यासु ता महानाम्न्यः। वेदवाण्याः (महाव्रतम्) पूजनीयं व्रतम् (उच्छिष्टे) (यज्ञस्य) देवपूजासङ्गतिकरणदानव्यवहारस्य (अङ्गानि) अवयवाः (अन्तः) मध्ये (गर्भः) (इव) (मातरि) ॥

०७ राजसूयं वाजपेयमग्निष्टोमस्तदध्वरः

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रा॑ज॒सूयं॑ वाज॒पेय॑मग्निष्टो॒मस्तद॑ध्व॒रः।
अ॑र्काश्वमे॒धावुच्छि॑ष्टे जी॒वब॑र्हिर्म॒दिन्त॑मः ॥

०७ राजसूयं वाजपेयमग्निष्टोमस्तदध्वरः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The rājasūya (royal consecration), the vājapéya (vigor-drinking),
    the agniṣṭomá (fire-praise), then the sacrifice (adhvará), the
    arká and aśvamedhá (horse-sacrifice) [are] in the remnant, the one
    having a living barhís, most intoxicating.
Notes

Ppp. has in b the preferable reading tato ‘dhvaraḥ.

Griffith

The Vajapeya, Royal Rite, the Agnishoma and its forms, Hymns, joyfullest with living grass the Asvamedha, are therein,

पदपाठः

रा॒ज॒ऽसूय॑म्। वा॒ज॒ऽपेय॑म्। अ॒ग्नि॒ऽस्तो॒मः। तत्। अ॒ध्व॒रः। अ॒र्क॒ऽअ॒श्व॒मे॒धौ। उत्ऽशि॑ष्टे। जी॒वऽब॑र्हिः। म॒दिन्ऽत॑मः। ९.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (राजसूयम्) राजसूय [राजतिलक यज्ञ], (वाजपेयम्) वाजपेय [विज्ञान और बल का रक्षक यज्ञ] (अग्निष्टोमः) अग्निष्टोम [आग वा परमेश्वर वा विद्वान् के गुणों की स्तुति], (तत्) तथा (अध्वरः) सन्मार्ग देनेवाला वा हिंसारहित व्यवहार, (अर्काश्वमेधौ) पूजनीय विचार और अश्वमेध [चक्रवर्ती राज्य पालन की मेधा अर्थात् बुद्धिवाला व्यवहार] और [अन्य] (मदिन्तमः) अत्यन्त हर्षदायक (जीवबर्हिः) जीवों की बढ़तीवाला व्यवहार (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमेश्वर] में हैं ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि परमेश्वर की आराधना करते हुए राजसूय, वाजपेय, अश्वमेध आदि यज्ञों से समस्त प्राणियों को आमन्त्रण देवें ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(राजसूयम्) अ० ४।८।१। राजन्+षुञ् अभिषवे-क्यप्। राजाभिषेकयज्ञः (वाजपेयम्) वज गतौ-घञ्। अचो यत्। पा० ३।१।९७। पा रक्षणे-यत्। ईद्यति। पा० ६।४।६५। आत इत्वम्, गुणः। वाजो विज्ञानं बलं च पेयं रक्षणीयं यस्मिन् कर्मणि तत्। विज्ञानस्य बलस्य च रक्षको यज्ञः (अग्निष्टोमः) अ० ९।६(४)।२। अग्नेः पावकस्य परमेश्वरस्य विदुषो वा स्तुतिव्यवहारः (अध्वरः) अ० ३।२६।६। सन्मार्गदायको हिंसारहितो वा व्यवहारः (अर्काश्वमेधौ) अर्कः-अ० ३।३।२। अर्च पूजायाम्-क। अर्को मन्त्रो भवति यदनेनार्चन्ति-निरु० ५।४। अशूप्रुषिलटि०। उ० १।१५१। अशू व्याप्तौ-क्वन्। अश्विनौ…राजानौ पुण्यकृतौ-निरु० १२।१। इति वचनाद् अश्वो राज्यवाचकः। मिधृ मेधृ सङ्गमे हिंसामेधयोश्च-घञ्, टाप् इति मेधा। अर्को मन्त्रः पूजनीयविचारः, अश्वे राज्यव्याप्तौ चक्रवर्तिराज्यपालनेमेधा बह्वी धारणावती बुद्धिर्यस्मिन् व्यवहारे स च तावुभौ (उच्छिष्टे) म० १। परमात्मनि (जीवबर्हिः) बृंहेर्नलोपश्च। उ० २।१०९। जीव+बृहि वृद्धौ-इसि। जीवानां वृद्धिव्यवहारः (मदिन्तमः) अत इनिठनौ। पा० ५।२।११५। मद-इनि। मदिन्-तमप्। नाद्घस्य। पा० ८।२।१७। तमपो नुडागमः। अतिशयेन हर्षकरः ॥

०८ अग्न्याधेयमथो दीक्षा

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अ॑ग्न्या॒धेय॒मथो॑ दी॒क्षा का॑म॒प्रश्छन्द॑सा स॒ह।
उत्स॑न्ना य॒ज्ञाः स॒त्राण्युच्छि॒ष्टेऽधि॑ स॒माहि॑ताः ॥

०८ अग्न्याधेयमथो दीक्षा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The establishing of a fire, also the consecration, the
    desire-fulfiller, together with the meter (chándas); the removed (?
    útsanna) sacrifices, the sacrificial sessions (sattrá), are set
    together in the remnant.
Notes

All the pada-mss. read in b kāma॰práḥ: chándasā:, but no
saṁhitā-ms. gives correspondingly kāmapráś chán- they vary between
-prá chán- (thus the majority) and -práḥ chán- (including our I.K.);
both editions emend to -práś chán-; the comm. understands the two
words as one compound. He also reads utsannayajñās as a compound in
c, and takes it to mean sacrifices that have gone out of use and
knowledge.

Griffith

Diksha and Agnyadheya rite that sates the wish, with magic- hymn, Suspended rites, long sessions, are contained within the Residue.

पदपाठः

अ॒ग्नि॒ऽआ॒धेय॑म्। अथो॒ इति॑। दी॒क्षा। का॒म॒ऽप्रः। छन्द॑सा। स॒ह। उत्ऽस॑न्नाः। य॒ज्ञाः। स॒त्त्राणि॑। उत्ऽशि॑ष्टे। अधि॑। स॒म्ऽआहि॑ताः। ९.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्न्याधेयम्) अग्न्याधान [अग्नि की स्थापना] (अथो) और (दीक्षा) दीक्षा [नियमपालन व्रत] (छन्दसा सह) वेद के साथ (कामप्रः) कामनापूरक व्यवहार, (उत्सन्नाः) ऊँचे चढ़े हुए (यज्ञाः) यज्ञ [पूजनीय व्यवहार] और (सत्राणि) बैठकें (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में (अधि) अधिकारपूर्वक (समाहिताः) एकत्र किये गये हैं ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर ने अपने सामर्थ्य से मनुष्य को यथावत् उन्नति करने के लिये वेद के साथ सत्यव्रत धारण आदि नियमों का उपदेश किया है ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(अग्न्याधेयम्) अग्नि+आ+दधातेः-यत्। वाजपेयवत् सिद्धिः-म० ७। अग्न्याधानम् (अथो) अपि च (दीक्षा) अ० ८।५।१५। नियमपालनव्रतम् (कामप्रः) आतोऽनुपसर्गे कः। पा० ३।२।३। काम+प्रा पूरणे-क। कामनापूरको व्यवहारः (छन्दसा) वेदेन (सह) साकम् (उत्सन्नाः) उत्+षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु-क्त। ऊर्ध्वं गताः। उन्नताः (यज्ञाः) पूजनीया व्यवहाराः (सत्राणि) गुधृपचिवचियमिसदि०। उ० ४।१६७। षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु-त्र। सदनानि। सभास्थानानि (उच्छिष्टे) (अधि) अधिकारपूर्वकम् (समाश्रिताः) राशीकृताः ॥

०९ अग्निहोत्रं च

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अ॑ग्निहो॒त्रं च॑ श्र॒द्धा च॑ वषट्का॒रो व्र॒तं तपः॑।
दक्षि॑णे॒ष्टं पू॒र्तं चोच्छि॒ष्टेऽधि॑ स॒माहि॑ताः ॥

०९ अग्निहोत्रं च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both the fire-offering (agnihotrá) and faith, the
    váshaṭ-exclamation, the vow (vratá), penance, the sacrificial gift
    (dákṣiṇā), what is offered (iṣṭá) and what is bestowed (pūrtá)—are
    set together in the remnant.
Notes

Ppp. reads ‘ti instead of ‘dhi in d. The comm. explains iṣṭá
as śrutivihitaṁ yāgahomādi karma, and pūrtá as smṛtipurāṇābhihitaṁ
vāpīkūpataṭākadevāyatanārāmādinirmāṇam
.

Griffith

Faith fire-oblation, fervent zeal, service, and sacrificial cry, Guerdon, good works and their reward, are stored within the Residue.

पदपाठः

अ॒ग्नि॒ऽहो॒त्रम्। च॒। श्र॒ध्दा। च॒। व॒ष॒ट्ऽका॒रः। व्र॒तम्। तपः॑। दक्षि॑णा। इ॒ष्टम्। पू॒र्तम्‌। च॒। उत्ऽशि॑ष्टे। अधि॑। स॒म्ऽआहि॑ताः। ९.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निहोत्रम्) अग्निहोत्र [अग्नि में हवन] (च) और (श्रद्धा) श्रद्धा [भक्ति], (च) और (वषट्कारः) दानकर्म, (व्रतम्) व्रत [नियम] (तपः) तप [चित्त की एकाग्रता], (दक्षिणा) दक्षिणा [प्रतिष्ठा] (इष्टम्) वेदाध्ययन, आतिथ्य आदि (च) और (पूर्तम्) अन्नदानादि पुण्य कर्म (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में (अधि) अधिकारपूर्वक (समाहिताः) एकत्र किये गये हैं ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - हवन और शिल्प आदि व्यवहारों में अग्नि का प्रयोग ईश्वर और वेद में श्रद्धा आदि कर्म परमेश्वर ने जगत् के हित के लिये नियत किये हैं ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(अग्निहोत्रम्) अग्नौ होमः (च) (श्रद्धा) भक्तिः (च) (वषट्कारः) अ० १।११।१। वह प्रापणे-डषटि। आहुतिकरणम्। दानक्रिया (व्रतम्) (तपः) चित्तैकाग्र्यम् (दक्षिणा) अ० १।५।१। प्रतिष्ठा (इष्टम्) अ० २।१२।४। वेदाध्यनातिथ्यादि कर्म (पूर्तम्) अ० २।१२।४। अन्नदानादिपुण्यकर्म। अन्यत् पूर्ववत्-म० ८ ॥

१० एकरात्रो द्विरात्रः

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ए॑करा॒त्रो द्वि॑रा॒त्रः स॑द्यः॒क्रीः प्र॒क्रीरु॒क्थ्यः᳡।
ओतं॒ निहि॑त॒मुच्छि॑ष्टे य॒ज्ञस्या॒णूनि॑ वि॒द्यया॑ ॥

१० एकरात्रो द्विरात्रः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The one-night [sacrifice], the two-night, the same-day-purchase
    (sadyaḥkrī́), the purchasable (? prakrī́), the praiseworthy
    (ukthyà)—[it] is woven, deposited, in the remnant; the minute things
    of the sacrifice, by wisdom.
Notes

Ppp. betters the grammar of the last half-verse by reading for d
yajñasyā ’no nu vidyayā. The comm. reads in b sadyaskrīḥ;
sadyaḥkrī is especially prescribed by Prāt. ii. 62.

Griffith

Sacrifice of one night, or two, Sadyaskri, Ukthya, and Prakri, Call, deep-toned summons are therein, fine parts, through lore, of sacrifice,

पदपाठः

ए॒क॒ऽरा॒त्रः। द्वि॒ऽरा॒त्रः। स॒द्यः॒ऽक्रीः। प्र॒ऽक्रीः। उ॒क्थ्याः᳡। आऽउ॑तम्। निऽहि॑तम्। उत्ऽशि॑ष्टे। य॒ज्ञस्य॑। अ॒णूनि॑। वि॒द्यया॑। ९.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (एकरात्रः) एक रात्रिवाला, (द्विरात्रः) दो रात्रिवाला, (सद्यःक्रीः) तुरन्त ही मोल किया गया, (प्रक्रीः) मोल लेने योग्य, (उक्थ्यः) प्रशंसनीय [व्यवहार वा यज्ञ], [यह सब] (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में (ओतम्) ओत-प्रोत [भली-भाँति बुना हुआ] (निहितम्) रक्खा हुआ है, और (विद्यया) विद्या के साथ (यज्ञस्य) [ईश्वरपूजा आदि] के (अणूनि) सूक्ष्म रूप [रक्खे हैं] ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमात्मा को सर्वव्यापक जानकर एक दिन वा दो दिन में वा तुरन्त, अथवा क्रय-विक्रय आदि से समाप्तियोग्य कर्मों को विचार कर अपना कर्त्तव्य सिद्ध करे ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(एकरात्रः) अहःसर्वैकदेशसंख्यातपुण्याच्च रात्रेः। पा० ५।४।८। अच् समासान्तः। एका रात्रिरेकरात्रः। ततो मत्वर्थे। अर्शआदिभ्योऽच् पा० ५।२।१२७। इत्यच्। एकां रात्रिं व्याप्य वर्तमानो व्यवहारः (द्विरात्रः) द्वे रात्री व्याप्य वर्तमानः (सद्यःक्रीः) क्विप् च। पा० ३।२।७६। डुक्रीञ् द्रव्यविनिमये-क्विप्। तत्कालावक्रीतः (प्रक्रीः) प्रकर्षेण क्रेयः (उक्थ्यः) प्रशंसनीयः (ओतम्) व्यूतम् (निहितम्) निक्षिप्तम् (उच्छिष्टे) (यज्ञस्य) (अणूनि) सूक्ष्माणि रूपाणि (विद्यया) तत्त्वज्ञानेन ॥

११ चतूरात्रः पञ्चरात्रः

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चतूरा॒त्रः प॑ञ्चरा॒त्रः ष॑ड्रा॒त्रश्चो॒भयः॑ स॒ह।
षो॑ड॒शी स॑प्तरा॒त्रश्चोच्छि॑ष्टाज्जज्ञिरे॒ सर्वे॒ ये य॒ज्ञा अ॒मृते॑ हि॒ताः ॥

११ चतूरात्रः पञ्चरात्रः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The four-night [sacrifice], the five-night, and the six-night, of
    both kinds, together, the one of sixteen (ṣoḍaśín), and the
    seven-night—from the remnant were born all the sacrifices that are put
    in immortality.
Notes

Ppp. combines yajñā ’mṛte near the end. The comm. understands by
ubhayas in b the doubles of the numbers of nights given. Ṣoḍaśin
is the subject of Prāt. iv. 51, and catūrātra (p. catuḥ॰rātraḥ) of
Prāt. iv. 80.

Griffith

Sacrifice of four nights, of five, of six nights, day and night conjoined, Shodai, seven-night sacrifice, all these sprang from the Residue, these which the Immortal One contains.

पदपाठः

च॒तुः॒ऽरा॒त्रः। प॒ञ्च॒ऽरा॒त्रः। ष॒ट्ऽरा॒त्रः। च॒। उ॒भयः॑। स॒ह। षो॒ड॒शी। स॒प्त॒ऽरा॒त्रः। च॒। उत्ऽशि॑ष्टात्। ज॒ज्ञि॒रे॒। सर्वे॑। ये। य॒ज्ञाः। अ॒मृते॑। हि॒ताः। ९.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (चतूरात्रः) चार रात्रि [तक रहने] वाला, (पञ्चरात्रः) पाँच रात्रिवाला, (षड्रात्रः) छह रात्रिवाला, (च) और (सह) मिलकर (उभयः) दूने समय [८+१०+१२=३० रात्रि] वाला। (षोडशी) सोलह [रात्रि] वाला (च) और (सप्तरात्रः) सात रात्रिवाला [यज्ञ वा व्यवहार] (उच्छिष्टात्) शेष [म० १। परमेश्वर] से (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए हैं, [और वे भी] (ये) जो (सर्वे) सब (यज्ञाः) यज्ञ [श्रेष्ठ व्यवहार] (अमृते) अमरपन [पौरुष वा मोक्ष पद] में (हिताः) स्थापित हैं ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमात्मा ने बताया है कि मनुष्य पहिले से ही चार दिन, पाँच दिन आदि काल का विचार करके मोक्षपर्यन्त अपना कर्तव्यव्यवहार साधे ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(चतूरात्रः) एकरात्र इति शब्दवत् सिद्धिः-म–० १। चतस्रो रात्रीर्व्याप्य समाप्यमानः (पञ्चरात्रः) पञ्चभी रात्रिभिः समाप्यमानः (षड्रात्रः) षड्भी रात्रिभिः समाप्यमानः (च) (उभयः) द्विगुणितः (सह) साहाय्येन (षोडशी) षोडशरात्रः (सप्तरात्रः) सप्तभी रात्रिभिः समाप्यमानः (उच्छिष्टात्) (जज्ञिरे) उत्पन्ना बभूवुः (सर्वे) (ये) (यज्ञाः) (अमृते) नास्ति मरणं दुःखं यस्मिंस्तस्मिन् पौरुषे मोक्षे वा (हिताः) धृताः ॥

१२ प्रतीहारो निधनम्

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प्र॑तीहा॒रो नि॒धनं॑ विश्व॒जिच्चा॑भि॒जिच्च॒ यः।
सा॑ह्नातिरा॒त्रावुच्छि॑ष्टे द्वादशा॒होऽपि॒ तन्मयि॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. The response (pratīhārá), the conclusion (nidhánd), both the
    all-conquering and the on-conquering (abhijít) one, the same-day and
    overnight ones [are] in the remnant, the twelve-day one: also that in
    me.
Notes

Ppp. has at the beginning pratihāro. ⌊The comm. joins the “also” to
what precedes and says that “that in me” (supply bhavatu) is to be
understood as a prayer: cf. vss. 5, 14.⌋

Griffith

Pratihara and Nidhanam, the Visvajit, the Abhijit, The two Sahnatiratras and Twelve-day rite are stored therein.

पदपाठः

प्र॒ति॒ऽहा॒रः। नि॒ऽधन॑म्। वि॒श्व॒ऽजित्। च॒। अ॒भि॒ऽजित्। च॒। यः। सा॒ह्न॒ऽअ॒ति॒रा॒त्रौ। उत्ऽशि॑ष्टे। द्वा॒द॒श॒ऽअ॒हः। अपि॑। तत्। मयि॑। ९.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रतीहारः) प्रत्युपकार, (निधनम्) कुल [कुलवृद्धि] (च) और (विश्वजित्) संसार का जीतनेवाला (च) और (यः) जो (अभिजित्) सब ओर से जीतनेवाला [यज्ञ वा व्यवहार है, वह] (साह्नातिरात्रौ) उसी दिन पूरा होनेवाला और रात्रि बिताकर पूरा होनेवाला और (द्वादशाहः) बारह दिन में पूरा होनेवाला [यज्ञ वा व्यवहार] (अपि) भी (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में हैं, (तत्) वह (मयि) मुझ [उपासक] में [होवे] ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमात्मा में आत्मसमर्पण करते हैं, वे संसार में परस्पर उपकार, कुलवृद्धि, जय और विविध समय का उपयोग करके उत्तम सुख भोगते हैं ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(प्रतीहारः) प्रति+हृञ् स्वीकारे-घञ्। उपसर्गस्य घञ्यमनुष्ये बहुलम्। पा० ६।३।१२२। इति सांहितिको दीर्घः। प्रत्युपकारः (निधनम्) नि+धा−क्यु। कुलम्। कुलवर्धनम् (विश्वजित्) सर्वजेता (च) (अभिजित्) सर्वतो जेता यज्ञः (च) (यः) (साह्नातिरात्रौ) एकरात्र इति शब्दवत् सिद्धिः-म० १०। समानेन दिनेन समाप्यमानो रात्रिमतीत्य वर्तमानश्च तौ यज्ञौ व्यवहारौ वा (उच्छिष्टे) (द्वादशाहः) अ० ९।६(४)।८। द्वादशभिर्दिनैः समाप्यमानो यज्ञः (अपि) एव (तत्) पूर्वोक्तम् (मयि) उपासके ॥

१३ सूनृता सन्नतिः

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सू॒नृता॒ संन॑तिः॒ क्षेमः॑ स्व॒धोर्जामृतं॒ सहः॑।
उच्छि॑ष्टे॒ सर्वे॑ प्र॒त्यञ्चः॒ कामाः॒ कामे॑न तातृपुः ॥

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Whitney
Translation
  1. Pleasantness, compliance (sáṁnati), comfort (kṣéma), custom (?
    svadhā́), refreshment, immortality, power—in the remnant all occurring
    (pratyáñc) desires are satisfied with desire.
Notes

Ppp. reads at the end tṛmpanti. Most of the pada-mss. and many of
the saṁhitā-mss. read simply kṣéma in a (including our
Bp.O.D.R.K.Kp.).

Griffith

Pleasantness, reverence, peace, and power, strength, vigour, immortality All forward wishes are with love satisfied in the Residue.

पदपाठः

सू॒नृता॑। सम्ऽन॑तिः। क्षेमः॑। स्व॒धा। ऊ॒र्जा। अ॒मृत॑म्। सहः॑। उत्ऽशि॑ष्टे। सर्वे॑। प्र॒त्यञ्चः॑। कामाः॑। कामे॑न। त॒तृ॒पुः॒। ९.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सूनृता) प्रिय सत्य वाणी, (संनतिः) यथावत् नम्रता, (क्षेमः) रक्षा, (स्वधा) अन्न, (ऊर्जा) पराक्रम, (सहः) बल और (अमृतम्) अमृत [मृत्यु वा दुःख से बचना अर्थात् पुरुषार्थ]। (सर्वे) [इन] सब (कामाः) कामनायोग्य विषयों ने (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में (प्रत्यञ्चः) व्याप कर (कामेन) इष्ट फल के साथ [मनुष्य को] (ततृपुः) तृप्त किया है ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य प्रिय सत्य वचन आदि के साथ आत्मिक और शारीरिक बल बढ़ाते हैं, वे परमात्मा के अनुग्रह से सब उत्तम कामनाएँ सिद्ध करते हैं ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(सूनृता) अ० ३।१२।२। प्रियसत्यात्मिका वाक् (संनतिः) सम्यग् नम्रता (क्षेमः) परिरक्षणम् (स्वधा) अ० २।२९।९। अन्नम् (ऊर्जा) ऊर्ज बलप्राणनयोः-पचाद्यच्। पराक्रमः (अमृतम्) मरणराहित्यम् पौरुषम् (सहः) बलम् (उच्छिष्टे) (सर्वे) (प्रत्यञ्चः) अभिमुखमञ्चन्तः प्राप्नुवन्तः (कामाः) काम्यमानाः पदार्थाः (कामेन) इष्टफलेन (ततृपुः) तृप प्रीणने लिट्, सांहितिको दीर्घः। तर्पितवन्तः ॥

१४ नव भूमीः

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नव॒ भूमीः॑ समु॒द्रा उच्छि॑ष्टेऽधि॑ श्रि॒ता दिवः॑।
आ॒ सूर्यो॑ भा॒त्युच्छि॑ष्टेऽहोरा॒त्रे अपि॒ तन्मयि॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. The nine earths, oceans, skies, are set (śritá) in the remnant;
    the sun shines in the remnant; day-and-night: also that in me.
Notes

The pada-mss. in general read simply śritā́ (or śṛtā́) in b. Two
or three mss. (including our O.) read ‘pi in d. Ppp. reads in a,
b
bhūmyāṁ samudrasyo ’chiṣṭe, and has ca for api in d. ⌊The
comm. treats the last words of the vs. as under vs. 12.⌋

Griffith

Nine several oceans, earths, and skies are set within, the Residue, Bright shines the Sun therein, in me, the Residue, are Day and Night.

पदपाठः

नव॑। भूमीः॑। स॒मु॒द्राः। उत्ऽशि॑ष्टे। अधि॑। श्रि॒ताः। दिवः॑। आ। सूर्यः॑। भा॒ति॒। उत्ऽशि॑ष्टे। अ॒हो॒रा॒त्रे इति॑। अपि॑। तत्। मयि॑। ९.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (नव) नौ [हमारे दो कान, दो आँख, दो नथने, मुख, पायु और उपस्थ इन नौ अर्थात् सब इन्द्रियों से जाने गये] (भूमीः) भूमि के देश, (समुद्राः) अन्तरिक्ष के लोक और (दिवः) प्रकाशमान लोक (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में (अधि) अधिकारपूर्वक (श्रिताः) ठहरे हैं। (सूर्यः) सूर्य (उच्छिष्टे) शेष [परमेश्वर] में (आ) सब ओर (भाति) चमकता है, और (अहोरात्रे) दिन-रात्रि (अपि) भी, (तत्) वह [उनका सुख] (मयि) मुझ [उपासक] में [होवे] ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य अपनी इन्द्रियों से विद्या द्वारा परमेश्वररचित भूमि आदि से यथावत् उपकार लेकर सुखी होवें ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४−(नव) द्वे श्रोत्रे, चक्षुषी, नासिके, मुखम्, द्वे पायूपस्थे नवभिः शरीरच्छिद्रैर्ज्ञायमानाः-इत्यर्थः (भूमीः) भूमयः। भूमिदेशः। (समुद्राः) अन्तरिक्षलोकाः (उच्छिष्टे) म० १। शेषे। परमात्मनि (अधि) अधिकृत्य (श्रिताः) स्थिताः (दिवः) प्रकाशमाना लोकाः (आ) समन्तात् (सूर्यः) भास्करः (भाति) दीप्यते (उच्छिष्टे) अहोरात्रे रात्रिदिने (अपि) (तत्) सुखम् (मयि) उपासके ॥

१५ उपहव्यं विषूवन्तम्

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उ॑प॒हव्यं॑ विषू॒वन्तं॒ ये च॑ य॒ज्ञा गुहा॑ हि॒ताः।
बिभ॑र्ति भ॒र्ता विश्व॒स्योच्छि॑ष्टो जनि॒तुः पि॒ता ॥

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Whitney
Translation
  1. The added oblation (upahávya), the dividing [day], and the
    sacrifices that are put in secret, the remnant bears, bearer of all,
    father of the generator.
Notes

Ppp. reads divi śrutaḥ ⌊intending śritāḥ?⌋ for guhā hitāḥ in
b. The mss. are divided between upahávyam and upahavyám; the
latter is read by our B.W.O.s.m.D.R.T.; and K. has -havyàm.

Griffith

The Residue the Father’s sire, who bears this universe, supports Vishuvan, Upahavya, and all worship offered secretly.

पदपाठः

उ॒प॒ऽहव्य॑म्। वि॒षु॒ऽवन्त॑म्। ये। च॒। य॒ज्ञाः। गुहा॑। हि॒ताः। बिभ॑र्ति। भ॒र्ता। विश्व॑स्य। उत्ऽशि॑ष्टः। ज॒नि॒तुः। पि॒ता। ९.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (उपहव्यम्) प्राप्तियोग्य (विषुवन्तम्) व्याप्तिवाले [बाहिरी उत्तम गुण] को (च) और (ये) जो (यज्ञाः) श्रेष्ठ गुण (गुहा) बुद्धि के भीतर (हिताः) रक्खे हैं, [उनको भी] (विश्वस्य) सबका (भर्त्ता) पोषक (जनितुः) जनक [हमारे उत्पन्न करनेवाले] का (पिता) पिता [पालक] (उच्छिष्टः) शेष [म० १। परमात्मा] (बिभर्ति) धारण करता है ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य अनादि सर्वपोषक परमेश्वर के ज्ञान द्वारा अपने बाहिरी और भीतरी गुणों का ज्ञान प्राप्त करें ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १५−(उपहव्यम्) हु दानादानयोः-यत्। ग्नाह्यं गुणम् (विषुवन्तम्) व्याप्तिमन्तं विस्तारवन्तं गुणम् (ये) (च) (यज्ञाः) श्रेष्ठगुणाः (गुहा) गुहायाम्। बुद्धौ (हिताः) धृताः (बिभर्ति) धरति (भर्ता) पोषकः (विश्वस्य) सर्वस्य (उच्छिष्टः) म० १। शेषः (जनितुः) जनयितुः। जनकस्य (पिता) पालकः। जनकः ॥

१६ पिता जनितुरुच्छिष्टोऽसोः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

पि॒ता ज॑नि॒तुरुच्छि॒ष्टोऽसोः॒ पौत्रः॑ पिताम॒हः।
स क्षि॑यति॒ विश्व॒स्येशा॑नो॒ वृषा॒ भूम्या॑मति॒घ्न्यः᳡ ॥

१६ पिता जनितुरुच्छिष्टोऽसोः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The remnant, father of the generator, of breath (ásu) the
    grandson, grandfather—he dwells, ruler of all, an overpowering (?
    atighnyà) bull upon the earth.
Notes

Ppp. reads in b ‘sāu putraś ca, which, without the ca, is an
acceptable improvement.

Griffith

The Father’s sire, the Residue, grandson of Spirit, primal Sire, Lord of the universe, the Bull, dwells on the earth victorious.

पदपाठः

पि॒ता। ज॒नि॒तुः। उत्ऽशि॑ष्टः। असोः॑। पौत्रः॑। पि॒ता॒म॒हः। सः। क्षि॒य॒ति॒। विश्व॑स्य। ईशा॑नः। वृषा॑। भूम्या॑म्। अ॒ति॒ऽघ्न्यः᳡। ९.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (उच्छिष्टः) शेष [म० १। परमात्मा] (जनितुः) जनक [हमारे उत्पादक] का (पिता) पिता और (असोः) प्राण [हमारे जीवन] का (पौत्रः) पोता [पुत्र के पुत्र समान पीछे वर्तमान] और (पितामहः) दादा [पिता के पिता समान पहिले वर्तमान] है। (सः) वह (विश्वस्य) सबका (ईशानः) ईश्वर, (वृषा) महापराक्रमी [परमात्मा] (भूम्याम्) भूमि पर (अतिघ्न्यः) बिना हराया हुआ (क्षियति) बसता है ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सर्वजनक, अनादि, अनन्त परमेश्वर सर्वविजयी है, उसकी उपासना सब मनुष्य करें ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६−(पिता) जनकः (जनितुः) जनकस्य (उच्छिष्टः) म० १। परमात्मा (असोः) असु क्षेपणे-उन्। असुरिति प्राणनामास्तः शरीरे भवति-निरु० ३।८। प्राणस्य जीवनस्य (पौत्रः) पुत्रस्य पुत्रवत् पश्चाद्भावी (पितामहः) अ० ५।५।१। पितुः पितृसमानः प्रथमभवः (सः) (क्षियति) निवसति (विश्वस्य) सर्वस्य (ईशानः) ईश्वरः (वृषा) वृषु सेचने ऐश्वर्ये च-कनिन्। महापराक्रमी। इन्द्रः (भूम्याम्) पृथिव्याम् (अतिघ्न्यः) अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। अति+हन हिंसागत्योः-यक्। अतिक्रान्तहननः। अहन्तव्यः। अजेयः ॥

१७ ऋतं सत्यम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ऋ॒तं स॒त्यं तपो॑ रा॒ष्ट्रं श्रमो॒ धर्म॑श्च॒ कर्म॑ च।
भू॒तं भ॑वि॒ष्यदुच्छि॑ष्टे वी॒र्यं᳡ ल॒क्ष्मीर्बलं॒ बले॑ ॥

१७ ऋतं सत्यम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Righteousness, truth, penance, kingship, toil, and virtue
    (dhárma) and deed (kárman), being (bhūtá), what will be, [is] in
    the remnant; heroism, fortune (lakṣmī́), strength in strength.
Notes

Ppp. has dīkṣā for rāṣṭram in a: a better reading. The comm.
explains ṛta here by manasā yathārthasaṁkalpanam ‘right conception’;
bale at the end he makes = balavati tasminn ucchiṣṭe.

Griffith

Right, truth, dominion, fervent zeal, toil, duty, action, future, past, Valour; prosperity, and strength dwell in the Residue in strength.

पदपाठः

ऋ॒तम्। स॒त्यम्। तपः॑। रा॒ष्ट्रम्। श्रमः॑। धर्मः॑। च॒। कर्म॑। च॒। भू॒तम्। भ॒वि॒ष्यत्। उत्ऽशि॑ष्टे। वी॒र्य᳡म्। ल॒क्ष्मीः। बल॑म्। बले॑। ९.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतम्) सत्य शास्त्र, (सत्यम्) सत्यवचन, (तपः) तप [इन्द्रियदमन], (राष्ट्रम्) राज्य, (श्रमः) परिश्रम (च) और (धर्मः) धर्म [पक्षपातरहित न्याय और सत्य आचरण] (च) और (कर्म) कर्म। (भूतम्) उत्पन्न हुआ और (भविष्यत्) उत्पन्न होनेवाला जगत्, (वीर्यम्) वीरता, (लक्ष्मीः) लक्ष्मी [सर्वसम्पत्ति] और (बले) बले के भीतर [वर्तमान] (बलम्) बल (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में हैं ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सर्वशक्तिमान् परमेश्वर की उपासना से सत्य व्यवहार वीरता आदि करके लक्ष्मीवान् होवें ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७−(ऋतम्) सत्यशास्त्रम्। यथार्थसंकल्पनम् (सत्यम्) यथार्थभाषणम् (तपः) इन्द्रियदमनम् (राष्ट्रम्) राज्यम् (श्रमः) परिश्रमः (धर्मः) अर्त्तिस्तुसुहुसृधृ०। उ० १।१४०। धृञ् धारणे-मन्। ध्रियते सुखप्राप्तये सेव्यते स धर्मः। पक्षपातरहितो न्यायः। सत्याचारः (कर्म) विहितं कार्यम् (च) (भूतम्) उत्पन्नं जगत् (भविष्यत्) उत्पत्स्यमानम् (उच्छिष्टे) (वीर्यम्) वीरकर्म (लक्ष्मीः) लक्षेर्मुट् च। उ० ३।१६०। लक्ष दर्शने अङ्कने च। ई प्रत्ययो मुट् च। दर्शनीया सर्वसम्पत्तिः (बलम्) सामर्थ्यम् (बले) सामर्थ्ये ॥

१८ समृद्धिरोज आकूतिः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

समृ॑द्धि॒रोज॒ आकू॑तिः क्ष॒त्रं रा॒ष्ट्रं षडु॒र्व्यः᳡।
सं॑वत्स॒रोऽध्युच्छि॑ष्ट॒ इडा॑ प्रै॒षा ग्रहा॑ ह॒विः ॥

१८ समृद्धिरोज आकूतिः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Success, force, design, dominion, kingship, the six wide
    [quarters], the year [is] in the remnant, íḍā, the orders
    (prāiṣá), the dips (gráha), the oblation.
Notes

Ppp. combines ojā ”hūtiḥ in a. ⌊W. interlines ‘potions’ as an
alternative for ‘dips.’⌋

Griffith

Welfare, resolve and energy, the six expanses, kingship, sway, Prayer, and direction, and the year, oblation, planets, are there- in;

पदपाठः

सम्ऽऋ॑ध्दिः। ओजः॑। आऽकू॑तिः। क्ष॒त्रम्। रा॒ष्ट्रम्। षट्। उ॒र्व्यः᳡। स॒म्ऽव॒त्स॒रः। अधि॑। उत्ऽशि॑ष्टे। इडा॑। प्र॒ऽए॒षाः। ग्रहाः॑। ह॒विः। ९.१८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (समृद्धिः) समृद्धि [सर्वथा वृद्धि] (ओजः) पराक्रम (आकूतिः) संकल्प [मन में विचार] (क्षत्रम्) हानि से रक्षक [क्षत्रियपन] (राष्ट्रम्) राज्य और (षट्) छह (उर्व्यः) फैली [दिशाएँ]। (संवत्सरः) वर्ष (इडा) वाणी, (प्रैषाः) प्रेरणाएँ, (ग्रहाः) अनेक प्रयत्न और (हविः) ग्राह्य वस्तु (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में (अधि) अधिकारपूर्वक हैं ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर में पूर्ण विश्वास से मनुष्य दिशाओं अर्थात् देश और संवत्सर अर्थात् काल का विचार करके सदा प्रयत्न के साथ राज्य आदि व्यवहार करें ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १८−(समृद्धिः) अभिवृद्धिः (ओजः) बलम् (आकूतिः) संकल्पः (क्षत्रम्) अ० २।१५।४। क्षत्+त्रैङ् पालने-क। क्षतो हाने रक्षकं क्षत्रियधर्मः (राष्ट्रम्) राज्यम् (षट्) (उर्व्यः) विस्तृता दिशः (संवत्सरः) वर्षकालः (अधि) (उच्छिष्टे) (इडा) अ० ३।१०।६। इल गतौ-क, टाप्। वाणी-निघ० ३।११। (प्रैषाः) प्र+इष गतौ-घञ्। प्रादूहोढोढ्येषैष्येषु। वा० पा० ६।१।८९। इति वृद्धिः। प्रैषणव्यवहाराः। प्रेरणाः (ग्रहाः) ग्राह्याः प्रयत्नाः। उद्यमाः (हविः) ग्राह्यं वस्तु ॥

१९ चतुर्होतार आप्रियश्चातुर्मास्यानि

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चतु॑र्होतार आ॒प्रिय॑श्चातुर्मा॒स्यानि॑ नी॒विदः॑।
उच्छि॑ष्टे य॒ज्ञा होत्राः॑ पशुब॒न्धास्तदिष्ट॑यः ॥

१९ चतुर्होतार आप्रियश्चातुर्मास्यानि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The four-priest (cátur-hotṛ) [sacrifices], the āprī́s, the
    seasonal [oblations], the nivíds—in the remnant [are] the
    sacrifices, the invocations, the victim-offerings (paśubandhá), then
    the offerings (íṣṭi).
Notes

Tádiṣṭayaḥ at the end in our edition is a misprint for tád íṣṭayaḥ.

Griffith

And the four Hotars, Apri hymns, the Nivids, and Four- monthly rites, Oblations, sacrifices, and animal offerings, and their forms.

पदपाठः

चतुः॑ऽहोतारः। आ॒प्रिय॑। चा॒तुः॒ऽमा॒स्यानि॑। नि॒ऽविदः॑। उत्ऽशि॑ष्टे। य॒ज्ञाः। होत्राः॑। प॒शु॒ऽब॒न्धाः। तत्। इष्ट॑यः। ९.१९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (चतुर्होतारः) चार [ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, चार वर्णों] से ग्राह्य व्यवहार, (चातुर्मास्यानि) चार महीनों में सिद्ध होनेवाले कर्म (आप्रियः) सर्वथा प्रीति उत्पन्न करनेवाली क्रियाएँ और (निविदः) निश्चित विद्याएँ, (यज्ञाः) यज्ञ [श्रेष्ठ व्यवहार], (होत्राः) देने लेने योग्य [वेदवाचाएँ] (पशुबन्धाः) प्राणियों के प्रबन्ध (तत्) तथा (इष्टयः) इष्ट क्रियाएँ (उच्छिष्टे) शेष [म० १।५ परमात्मा] में हैं ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सर्वविद्यामय, सर्वाधार परमेश्वर की उपासना से मनुष्य अपने-अपने योग्य कर्मों में प्रवृत्ति करें ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १९−(चतुर्होतारः) चत्वारो ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यशूद्रा होतारो ग्रहीतारो येषां ते व्यवहाराः (आप्रियः) प्रीञ् तर्पणे कान्तौ च-क्विप्। सर्वथा प्रीत्युत्पादिकाः क्रियाः (चातुर्मास्यानि) चतुर्मासाण् ण्यो यज्ञे। वा० पा० ५।१।९४। चतुर्षु मासेषु साध्यानि कर्माणि (निविदः) अ० ५।२६।४। निश्चितविद्याः (उच्छिष्टे) (यज्ञाः) श्रेष्ठव्यवहाराः (होत्राः) अ० ११।६।१४। दानादानयोग्या वेदवाचः (पशुप्रबन्धाः) पशवो व्यक्तवाचश्चाव्यक्तवाचश्च-निरु० ११।२९। पशूनां प्राणिनां प्रबन्धाः (तत्) तथा (इष्टयः) इष्टक्रियाः ॥

२० अर्धमासाश्च मासाश्चार्तवा

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अ॑र्धमा॒साश्च॒ मासा॑श्चार्त॒वा ऋ॒तुभिः॑ स॒ह।
उच्छि॑ष्टे घो॒षिणी॒रापः॑ स्तनयि॒त्नुः श्रुति॑र्म॒ही ॥

२० अर्धमासाश्च मासाश्चार्तवा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both the half-months and the months, the year-divisions (ārtavá)
    with the seasons; in the remnant [are] the noisy waters, the thunder,
    the great sound (? śrúti).
Notes

The comm. reads śuci in d, so we lack his conjecture as to the
meaning of śruti.

Griffith

Months, half-months, sections of the year, seasons are in the Residue, The waters resonant afar, the thunder, and the mighty noise.

पदपाठः

अ॒र्ध॒ऽमा॒साः। च॒। मासाः॑। च॒। आ॒र्त॒वाः। ऋ॒तुऽभिः॑। स॒ह। उत्ऽशि॑ष्टे। घो॒षिणीः॑। आपः॑। स्त॒न॒यि॒त्नुः। श्रुतिः॑। म॒ही। ९.२०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अर्धमासाः) आधे महीने (च) और (मासाः) महीने (च) और (ऋतुभिः सह) ऋतुओं के साथ (आर्तवाः) ऋतुओं के पदार्थ, (घोषिणीः) शब्द करनेवाली (आपः) जलधाराएँ, (स्तनयित्नुः) मेघ की गर्जन, (श्रुतिः) सुनने योग्य [वेदवाणी] और (मही) भूमि (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में हैं ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर ने मनुष्य के सुख के लिये पखवाड़े, महीने, ऋतुएँ और ऋतुओं की उपज और अन्य सब पदार्थ उत्पन्न किये हैं ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २०−(अर्धमासाः) मासपक्षाः (च) (मासाः) चैत्राद्याः (आर्तवाः) ऋतुषु समुत्पन्नाः पदार्थाः (ऋतुभिः) वसन्तादिभिः (सह) (उच्छिष्टे) (घोषिणीः) शब्दवत्यः (आपः) जलधाराः (स्तनयित्नुः) अ० ४।१५।११। मेघध्वनिः (श्रुतिः) श्रवणीया वेदवाणी (मही) भूमिः ॥

२१ शर्कराः सिकता

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शर्क॑राः॒ सिक॑ता॒ अश्मा॑न॒ ओष॑धयो वी॒रुध॒स्तृणा॑।
अ॒भ्राणि॑ वि॒द्युतो॑ व॒र्षमुच्छि॑ष्टे॒ संश्रि॑ता श्रि॒ता ॥

२१ शर्कराः सिकता ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Pebbles, gravel, stones, herbs, plants, grasses, clouds, lightnings,
    rain—in the remnant [are they] set together, set.
Notes

Ppp. combines sikatā ’śm- in a. ⌊Read oṣadhīr?

Griffith

Pebbles, sand, stones, and herbs, and plants, and grass are in the Residue, Closely embraced and laid therein are lightnings and the clouds and rain.

पदपाठः

शर्क॑राः। सिक॑ताः। अश्मा॑नः। ओष॑धयः। वी॒रुधः॑। तृणा॑। अ॒भ्राणि॑। वि॒ऽद्युतः॑। व॒र्षम्। उत्ऽशि॑ष्टे। सम्ऽश्रि॑ता। श्रि॒ता। ९.२१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • स्वराडनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शर्कराः) कंकड़ आदि (अश्मानः) पत्थर, (सिकताः) बालू, (ओषधयः) ओषधें [अन्नादि], (वीरुधः) जड़ी-बूटियाँ, (तृणा) घासें, (अभ्राणि) बादल, (विद्युतः) बिजुलियाँ, (वर्षम्) बरसात, (संश्रिता) [ये सब] परस्पर आश्रित द्रव्य (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में (श्रिता) ठहरे हैं ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर की महिमा को विचार कर कंकड़-पत्थर आदि पदार्थों से यथायोग्य कार्य सिद्ध करें ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २१−(शर्कराः) श्रः करन्। उ० ४।३। शॄ हिंसायाम्-करन्, टाप्। उपलखण्डाः (सिकताः) बालुकाः (अश्मानः) प्रस्तराः (ओषधयः) अन्नादयः (वीरुधः) विरोहणशीला लतादयः (तृणा) गवादिभक्षणानि (अभ्राणि) अभ्र गतौ-अच्। गतिमन्तो मेघाः (विद्युतः) तडितः (वर्षम्) वृष्टिः, (उच्छिष्टे) (संश्रिता) परस्परस्थितानि (श्रिता) स्थितानि ॥

२२ राद्धिः प्राप्तिः

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राद्धिः॒ प्राप्तिः॒ समा॑प्ति॒र्व्या᳡प्ति॒र्मह॑ एध॒तुः।
अत्या॑प्ति॒रुच्छि॑ष्टे॒ भूति॒श्चाहि॑ता॒ निहि॑ता हि॒ता ॥

२२ राद्धिः प्राप्तिः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Success (rā́ddhi), attainment, obtainment, permeation, greatness,
    prosperity ⌊edhatú⌋—in the remnant over-attainment and growth
    (bhū́ti) [is] put in, put down, put.
Notes

Several of our mss. (P.M.W.I.O.) accent vyā́pti in b. All the mss.
save one or two (including our B.) leave edhatuḥ unaccented, as if it
were taken for a 3d dual perfect; both editions read edhatúḥ. The
comm. strangely reads at the end hitāḥ; ⌊but the pada-text makes all
three words of d singular⌋.

Griffith

Gain, acquisition, and success, fulness, complete prosperity. Great gain and wealth, are laid, concealed and treasured, in the Residue.

पदपाठः

राध्दिः॑। प्रऽआ॑प्तिः। सम्ऽआ॑प्तिः। विऽआ॑प्तिः। महः॑। ए॒ध॒तुः। अति॑ऽआप्तिः। उत्ऽशि॑ष्टे। भूतिः॑। च॒। आऽहि॑ता। निऽहि॑ता। हि॒ता। ९.२२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • विराट्पथ्याबृहती
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (राद्धिः) अर्थसिद्धि, (प्राप्तिः) प्राप्ति [लाभ], (समाप्तिः) समाप्ति [पूर्ति], (व्याप्तिः) व्याप्ति [फैलाव], (महः) बड़ाई, (एधतुः) बढ़ती, (अत्याप्तिः) अत्यन्त प्राप्ति (च) और (आहिता) सब ओर से रक्खी हुई और (निहिता) गहरी रक्खी हुई (भूतिः) विभूति [सम्पत्ति] (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में (हिता) रक्खी हैं ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर के आश्रय से अर्थसिद्धि आदि प्राप्त करके ऐश्वर्यवान् होवें ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २२−(राद्धिः) अर्थसिद्धिः (प्राप्तिः) लाभः (समाप्तिः) पूर्तिः (व्याप्तिः) विस्तृतिः (महः) महत्त्वम् (एधतुः) एधिवह्योश्चतुः। उ० १।७७। एध वृद्धौ−चतु। वृद्धिः (अत्याप्तिः) अत्यन्तप्राप्तिः (उच्छिष्टे) (आहिता) समन्ताद् धृता (निहिता) निक्षिप्ता (हिता) स्थिता ॥

२३ यच्च प्राणति

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यच्च॑ प्रा॒णति॑ प्रा॒णेन॒ यच्च॒ पश्य॑ति॒ चक्षु॑षा।
उच्छि॑ष्टाज्जज्ञिरे॒ सर्वे॑ दि॒वि दे॒वा दि॑वि॒श्रितः॑ ॥

२३ यच्च प्राणति ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both what breathes with breath and what sees with sight: from the
    remnant were born all the gods in heaven, heaven-resorters.
Notes
Griffith

All things that breathe the breath of life, all creatures that have eyes to see, All the celestial Gods whose home is heaven sprang from the Residue.

पदपाठः

यत्। च॒। प्रा॒णति॑। प्रा॒णेन॑। यत्। च॒। पश्य॑ति। चक्षु॑षा। उत्ऽशि॑ष्टात्। ज॒ज्ञि॒रे॒। सर्वे॑। दि॒वि। दे॒वाः। दि॒वि॒ऽश्रितः॑। ९.२३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (च) और (यत्) जो कुछ (प्राणेन) प्राण [श्वास-प्रश्वास] के साथ (प्राणति) जीता है, (च) और (यत्) जो कुछ (चक्षुषा) नेत्र से (पश्यति) देखता है, [वह सब और] (दिवि) आकाश में [वर्तमान] (दिविश्रितः) सूर्य [के आकर्षण] में ठहरे हुए (सर्वे) सब (देवाः) गतिमान् लोक (उच्छिष्टात्) शेष [म० १। परमात्मा] से (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए हैं ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर ने सब प्राणवाले जगत् और सब लोकों को सूर्य के आकर्षण में रखकर मनुष्य के सुख के लिये उत्पन्न किया है ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २३−(यत्) यत् किञ्चित् जगत् (च) (प्राणति) प्रकर्षेण जीवति (प्राणेन) श्वासप्रश्वासव्यापारेण (यत् च) (पश्यति) अवलोकयति (चक्षुषा) नेत्रेण (उच्छिष्टात्) म० १। शेषात्परमेश्वरात् (जज्ञिरे) उत्पन्ना बभूवुः (सर्वे) (दिवि) आकाशे वर्तमानाः (देवाः) दिवु गतौ-पचाद्यच्। गतिमन्तो लोकाः (दिविश्रितः) दिवि सूर्ये सूर्याकर्षणे स्थिताः ॥

२४ ऋचः सामानि

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ऋचः॒ सामा॑नि॒ च्छन्दां॑सि पुरा॒णं यजु॑षा स॒ह।
उच्छि॑ष्टाज्जज्ञिरे॒ सर्वे॑ दि॒वि दे॒वा दि॑वि॒श्रितः॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. The verses (ṛ́c), the chants, the meters, the ancient (purāṇá),
    together with the formula (yájus): from the remnant were born etc.
    etc.
Notes

Ppp. reads, for ṛcaḥ sāmāni, ṛgyajussāmāni, and also prefixes to the
verse our 27 a, b (combining devāṣ pit-).

Griffith

Verses, and Songs, and magic hymns, Purana, sacrificial text. All the celestial Gods whose home is heaven sprang from the Residue.

पदपाठः

ऋचः॑। सामा॑नि। छन्दां॑सि। पु॒रा॒णम्। यजु॑षा। स॒ह। उत्ऽशि॑ष्टात्। ज॒ज्ञि॒रे॒। सर्वे॑। दि॒वि। दे॒वाः। दि॒वि॒ऽश्रितः॑। ९.२४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋचः) स्तुतिविद्याएँ [वा ऋग्वेदमन्त्र] (सामानि) मोक्षज्ञान [वा सामवेदमन्त्र] और (यजुषा सह) विद्वानों के सत्कारसहित [वा यजुर्वेदसहित] (छन्दांसि) आनन्दप्रद कर्म [वा अथर्ववेदमन्त्र] और (पुराणम्) पुराण [पुरातन वृत्तान्त]। [यह सब और] (दिवि) आकाश में [वर्तमान] (दिविश्रितः) सूर्य [के आकर्षण] में ठहरे हुए (सर्वे) सब (देवाः) गतिमान् लोक (उच्छिष्टात्) शेष [म० १। परमात्मा] से (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए हैं ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर ने सब उत्तम कर्म और वेद आदि शास्त्र और सब पदार्थ मनुष्य के सुख के लिये प्रकट किये हैं ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २४−(ऋचः) अ० ११।६।१४। स्तुतिविद्याः। ऋग्वेदमन्त्राः (सामानि) अ० ११।६।१४। मोक्षज्ञानानि। साममन्त्राः (छन्दांसि) अ० ४।३४।१। चदि आह्लादने-असुन्, चस्य छः। आह्लादकर्माणि। अथर्ववेदमन्त्राः (पुराणम्) अ० १०।७।२६। पुरातनवृत्तान्तः (यजुषा) अ० ७।५४।२। विदुषां सत्कारेण। यजुर्मन्त्रेण (सह) शेषं पूर्ववत् ॥

२५ प्राणापानौ चक्षुः

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प्रा॑णापा॒नौ चक्षुः॒ श्रोत्र॒मक्षि॑तिश्च॒ क्षिति॑श्च॒ या।
उच्छि॑ष्टाज्जज्ञिरे॒ सर्वे॑ दि॒वि दे॒वा दि॑वि॒श्रितः॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. Breath-and-expiration, sight, hearing, indestructibleness and
    destruction: from the remnant etc. etc.
Notes

The first half-verse is found below as 8. 4 a, b, 26 a, b. The
verse, as noted above, is wanting in Ppp.

Griffith

Inbreath and outbreath, eye and ear, decay and freedom from decay, All the celestial Gods whose home is heaven sprang from the Residue.

पदपाठः

प्रा॒णा॒पा॒नौ। चक्षुः॑। श्रोत्र॑म्। अक्षि॑तिः। च॒। क्षितिः॑। च॒। या। उत्ऽशि॑ष्टात्। ज॒ज्ञि॒रे॒। सर्वे॑। दि॒वि। दे॒वाः। दि॒वि॒ऽश्रितः॑। ९.२५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राणापानौ) प्राण और अपान [भीतर और बाहिर जानेवाले श्वास], (चक्षुः) नेत्र, (श्रोत्रम्) कान (च) और (या) जो (अक्षितिः) [तत्त्वों की] निर्हानि [बढ़ती] (च) और (क्षितिः) [तत्त्वों की] हानि। [यह सब और] (दिवि) आकाश में [वर्तमान] (दिविश्रितः) सूर्य [के आकर्षण] में ठहरे हुए (सर्वे) सब (देवाः) गतिमान् लोक (उच्छिष्टात्) शेष [म० १। परमात्मा] से (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए हैं ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमात्मा ने शरीर में पृथिवी आदि तत्त्वों के बढ़ाव-घटाव से मनुष्य को जीवधारण, देखने और सुनने आदि के साधन देकर और सृष्टि के पदार्थों का साक्षात् कराकर सुख बढ़ाने का उपदेश किया है ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २५−(प्राणापानौ) श्वासप्रश्वासौ (चक्षुः) नेत्रम् (श्रोत्रम्) करणम् (अक्षितिः) तत्त्वानां निर्हानिः (च) (क्षितिः) तत्त्वानां हानिः (च) (या)। अन्यत् पूर्ववत् ॥

२६ आनन्दा मोदाः

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आ॑न॒न्दा मोदाः॑ प्र॒मुदो॑ऽभिमोद॒मुद॑श्च॒ ये।
उच्छि॑ष्टाज्जज्ञिरे॒ सर्वे॑ दि॒वि दे॒वा दि॑वि॒श्रितः॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. Delights, joys, enjoyments, and they that enjoy enjoyments—from the
    remnant etc. etc.
Notes

⌊The first half-verse recurs as 8. 24 a, b.⌋ ⌊in the Berlin ed.,
there should be a space between módāḥ and pra-.⌋

Griffith

All pleasures and enjoyments, all delights and rapturous ecsta- sies, All the celestial Gods whose home is heaven sprang from the Residue.

पदपाठः

आ॒ऽन॒न्दाः। मोदाः॑। प्र॒ऽमुदः॑। अ॒भि॒ऽमो॒द॒ऽमुदः॑। च॒। ये। उत्ऽशि॑ष्टात्। ज॒ज्ञि॒रे॒। सर्वे॑। दि॒वि। दे॒वाः। दि॒वि॒ऽश्रितः॑। ९.२६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (आनन्दाः) आनन्द, (मोदाः) हर्ष, (प्रमुदः) बड़े आनन्द (च) और (ये) जो (अभिमोदमुदः) बड़े उत्सवों से हर्ष देनेवाले पदार्थ हैं। [यह सब और] (दिवि) आकाश में [वर्तमान] (दिविश्रितः) सूर्य [के आकर्षण] में ठहरे हुए (सर्वे) सब (देवाः) गतिमान् लोक (उच्छिष्टात्) शेष [म० १ परमात्मा] से (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए हैं ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर ने मनुष्य को अनेक प्रकार से आनन्द पाने के लिये अनेक आनन्दसाधन प्रदान किये हैं ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २६−(आनन्दाः) सुखविशेषाः (मोदाः) हर्षाः (प्रमुदः) प्रकृष्टहर्षाः (अभिमोदमुदः) अभिमोदैर्महोत्सवैर्हर्षयितारः पदार्थाः (च) (ये) अन्यत् पूर्ववत् ॥

२७ देवाः पितरो

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दे॒वाः पि॒तरो॑ मनु॒ष्या᳡ गन्धर्वाप्स॒रस॑श्च॒ ये।
उच्छि॑ष्टाज्जज्ञिरे॒ सर्वे॑ दि॒वि दे॒वा दि॑वि॒श्रितः॑ ॥

२७ देवाः पितरो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The gods, the Fathers, human beings, and they that are
    Gandharvas-and-Apsarases: from the remnant etc. etc.
Notes

⌊The quoted Anukr. says “uchiṣṭe."⌋

Griffith

The Deities, the Fathers, men, Gandharvas, and Apsarases. All the celestial Gods whose home is heaven sprang from the Residue.

पदपाठः

दे॒वाः। पि॒तरः॑। म॒नु॒ष्याः᳡। ग॒न्ध॒र्व॒ऽअ॒प्स॒रसः॑। च॒। ये। उत्ऽशि॑ष्टात्। ज॒ज्ञि॒रे॒। सर्वे॑। दि॒वि। दे॒वाः। दि॒वि॒ऽश्रितः॑। ९.२७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) विद्वान् लोग, (पितरः) ज्ञानी लोग, (मनुष्याः) मननशील लोग (च) और (ये) जो (गन्धर्वाप्सरसः) गन्धर्व [पृथिवी के धारण करनेवाले] और अप्सर [आकाश में चलनेवाले पुरुष] हैं। [यह सब और] (दिवि) आकाश में [वर्तमान] (दिविश्रितः) सूर्य [के आकर्षण] में ठहरे हुए (सर्वे) सब (देवाः) गतिमान् लोक (उच्छिष्टात्) शेष [म० १। परमात्मा] से (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए हैं ॥२७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमात्मा के सामर्थ्य से अनेक विद्वान् लोग और अनेक पदार्थ संसार में सुख बढ़ाने के लिये उत्पन्न हुए हैं ॥२७॥यह मन्त्र महर्षि दयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पृष्ठ १३५, १३६ में व्याख्यात है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २७−(देवाः) विद्वांसः (पितरः) ज्ञानिनः (मनुष्याः) मननशीलाः (गन्धर्वाप्सरसः) अ० ८।८।१५। गां पृथिवीं धरन्ति ये ते गन्धर्वाः। अप्सु आकाशे सरन्ति ते अप्सरसः। तथाभूताः पुरुषाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥