००६ पापमोचनम्

००६ पापमोचनम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. To many different gods: for relief.
VH anukramaṇī

पापमोचनम्।
१-२३ शन्तातिः। चन्द्रमाः, मन्त्रोक्ताः। अनुष्टुप्, २३ बृहतीगर्भा।

Whitney anukramaṇī

[śaṁtāti.—trayoviṅśakam. cāndramasam uta mantroktadevatyam. ānuṣṭubham*: 23. bṛhatīgarbhā.] *⌊The Anukr. omits the definition of 18 as pathyāpan̄kti.⌋

Whitney

Comment

Found also (except vss. 3, 20, 23) in Pāipp. xv. (in considerably altered verse-order: 1, 2, 4, 6, 5, 7, 15, 8, 9, 14, 17, 10, 11, 19, 13, 12, 18, 16, 22, 21).

⌊The hymn is included by Kāuś. 9. 2, 4 in the śānti gaṇas, major and minor; and all of the hymn except vss. 7, 9, 22, 23 (those in which the word aṅhas is missing) is reckoned to the aṅholin̄ga gaṇa (note to 32. 27). The last verse is cited separately at 58. 25 in a rite for long life. The same verse is variously cited by the subordinate works and the schol.: see note to 9. 2; 42. 13 (student’s return); 53. 8 (godāna); 55. 1 (upanayana); Keś. to 44. 5 (vaśāśamana). Verse 9 is reckoned to the rāudra gaṇa, note to 50. 13.⌋

Translations

Translated: Henry, 117, 155; Griffith, ii. 72; Bloomfield, 160, 628.

Griffith

A prayer to all Divinities and Sanctities for deliverance from distress

०१ अग्निं ब्रूमो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॒ग्निं ब्रू॑मो॒ वन॒स्पती॒नोष॑धीरु॒त वी॒रुधः॑।
इन्द्रं॒ बृह॒स्पतिं॒ सूर्यं॒ ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

०१ अग्निं ब्रूमो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. We address (brū) Agni, the forest trees, the herbs and the plants,
    Indra, Brihaspati, the sun: let them free us from distress.
Notes

The comm. questions whether to render brūmas by stumas or by
iṣṭaphalaṁ yācāmahe.

Griffith

We call on Agni, on the trees lords of the forest, herbs and. plants, Indra, Surya, Brihaspati: may they deliver us from woe.

पदपाठः

अ॒ग्निम्। ब्रू॒मः॒। वन॒स्पती॑न्। ओष॑धीः। उ॒त। वी॒रुधः॑। इन्द्र॑म्। बृह॒स्पति॑म्। सूर्य॑म्। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निम्) अग्नि, (वनस्पतीन्) वनस्पतियों [बड़े वक्षों] (ओषधीः) ओषधियों [अन्न आदिकों], (उत) और (वीरुधः) [विविध प्रकार उगनेवाली] जड़ी-बूटियों, (इन्द्रम्) इन्द्र [मेघ] और (बृहस्पतिम्) बड़े-बड़े लोकों के पालन करनेवाले (सूर्यम्) सूर्य का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं, (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वानों को योग्य है कि अग्नि आदि पदार्थों के गुण जानकर, उनसे यथावत् उपकार लेकर दुःखों का नाश करें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(अग्निम्) (ब्रूमः) कथयामः। स्तुमः (वनस्पतीन्) पिप्पलादिमहावृक्षान् (ओषधीः) अन्नादिरूपाः (उत) अपि च (वीरुधः) विरोहणशीला लताद्याः (इन्द्रम्) मेघम् (बृहस्पतिम्) बृहतां लोकानां पालकम् (सूर्यम्) आदित्यम् (ते) पूर्वोक्ताः (नः) अस्मान् (मुञ्चन्तु) मोचयन्तु, (अंहसः) अमेर्हुक् च। उ–० ४।२१३। अम रोगे पीडने च-असुन् हुक् च। कष्टा ॥

०२ ब्रूमो राजानम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ब्रू॒मो राजा॑नं॒ वरु॑णं मि॒त्रं विष्णु॒मथो॒ भग॑म्।
अंशं॒ विव॑स्वन्तं ब्रूम॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

०२ ब्रूमो राजानम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. We address king Varuṇa, Mitra, Vishṇu, likewise Bhaga; Aṅśa,
    Vivasvant we address: let them free us from distress.
Notes
Griffith

We call on Vishnu, Bhaga, on Mitra and Varuna the King, Ansa Vivasvan we address: may they deliver us from woe.

पदपाठः

ब्रू॒मः। राजा॑नम्। वरु॑णम्। मि॒त्रम्। विष्णु॑म्। अथो॒ इति॑। भग॑म्। अंश॑म्। विव॑स्वन्तम्। ब्रू॒मः॒। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वरुणम्) श्रेष्ठ (राजानम्) राजा, (मित्रम्) मित्र, (विष्णुम्) कर्मों में व्यापक विद्वान् (अथो) और (भगम्) ऐश्वर्यवान् पुरुष का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं। (अंशम्) विभाग करनेवाले और (विवस्वन्तम्) विविध स्थान में निवास करनेवाले पुरुष का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं, (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - धार्मिक राजा और सब विद्वान् पुरुष मिलकर परस्पर रक्षा करके यश प्राप्त करें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(राजानम्) ईशितारम् (वरुणम्) श्रेष्ठम् (मित्रम्) स्नेहिनम् (विष्णुम्) कर्मसु व्यापकं पण्डितम् (अथो) अपि च (भगम्) भगवन्तम्। ऐश्वर्यवन्तम् (अंशम्) विभाजकम् (विवस्वन्तम्) वि+वस निवासे क्विप्, मतुप् मस्य वः। विविधस्थाने निवासशीलम्। अन्यत् पूर्ववत् म० १ ॥

०३ ब्रूमो देवम्

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ब्रू॒मो दे॒वं स॑वि॒तारं॑ धा॒तार॑मु॒त पू॒षण॑म्।
त्वष्टा॑रमग्रि॒यं ब्रू॑म॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

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Whitney
Translation
  1. We address god Savitar, Dhatar and Pūshan; we address Tvashṭar at
    the head (agriyá): let them free us from distress.
Notes

MS. has nearly the same verse in ii. 7. 13, but with a like our 2
a.

Griffith

We call on Savitar the God, on Pushan the establisher, Tvashtar the foremost we address: may they deliver us from woe.

पदपाठः

ब्रू॒मः। दे॒वम्। स॒वि॒तार॑म्। धा॒तार॑म्। उ॒त। पू॒षण॑म्। त्वष्टा॑रम्। अ॒ग्रि॒यम्। ब्रू॒मः॒। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवम्) विजयी, (सवितारम्) प्रेरक, (धातारम्) धारण करनेवाले (उत) और (पूषणम्) पोषण करनेवाले पुरुष को (ब्रूमः) हम पुकारते हैं। (अग्रियम्) अग्रगामी (त्वष्टारम्) सूक्ष्मदर्शी पुरुष को (ब्रूमः) हम पुकारते हैं, (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जहाँ पर शूरवीर विद्वान् पुरुष होते हैं, वे परस्पर रक्षा करते हैं ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(देवम्) विजयिनम् (सवितारम्) प्रेरकम् (धातारम्) धारकम् (उत) अपि च (पूषणम्) पोषकम् (त्वष्टारम्) त्वक्षू तनूकरणे-तृन्। सूक्ष्मीकर्तारम्। प्रवीणं पुरुषम् (अग्रियम्) अ० ५।२।८। अग्रेभवम्। अन्यत् पूर्ववत् म० १ ॥

०४ गन्धर्वाप्सरसो ब्रूमो

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ग॑न्धर्वाप्स॒रसो॑ ब्रूमो अ॒श्विना॒ ब्रह्म॑ण॒स्पति॑म्।
अ॑र्य॒मा नाम॒ यो दे॒वस्ते॑ नो मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

०४ गन्धर्वाप्सरसो ब्रूमो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The Gandharvas-and-Apsarases we address, the (two) Aśvins,
    Brahmaṇaspati, the god that is Aryaman by name: let them free us from
    distress.
Notes
Griffith

Gandharvas and Apsarases; the Asvins, Brahmanaspati, Aryaman, God, by name we call: may they deliver us from woe.

पदपाठः

ग॒न्ध॒र्व॒ऽअ॒प्स॒रसः॑। ब्रू॒मः॒। अ॒श्विना॑। ब्रह्म॑णः। पति॑म्। अ॒र्य॒मा। नाम॑। यः। दे॒वः। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (गन्धर्वाप्सरसः) गन्धर्वों [पृथिवी के धारण करनेवालों और अप्सरों आकाश में चलनेवाले पुरुषों] को और (अश्विना) कामों में व्यापक रहनेवाले दोनों [माता-पिता के समान हितकारी] (ब्रह्मणः पतिम्) वेद के रक्षक [आचार्य आदि] को (ब्रूमः) हम पुकारते हैं। (यः) जो (अर्यमा) न्यायकारी (नाम) प्रसिद्ध (देवः) विजयी पुरुष है [उसको भी], (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - हम विविध विद्यानिपुण पुरुषों से सहाय लेकर परस्पर रक्षा करें ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(गन्धर्वाप्सरसः) अ० ८।८।१५। गां पृथिवीं धरन्ति ये ते गन्धर्वाः। अप्सु आकाशे सरन्ति ते अप्सरसः। तान् पुरुषान् (ब्रूमः) (अश्विना) अ० २।२९।६। कार्येषु व्याप्तिमन्तौ जननीजनकौ यथा तथा हितकारिणम् (ब्रह्मणस्पतिम्) वेदस्य रक्षकमाचार्यम् (अर्यमा) अ० ३।१४।२। अरीणां नियामकः। न्यायकारी पुरुषः (नाम) प्रसिद्धौ (यः) (देवः) विजयी। अन्यद् गतम्-म० १ ॥

०५ अहोरात्रे इदम्

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अ॑होरा॒त्रे इ॒दं ब्रू॑मः सूर्याचन्द्र॒मसा॑वु॒भा।
विश्वा॑नादि॒त्यान्ब्रू॑म॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

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Whitney
Translation
  1. Day-and-night now we address, sun-and-moon both; all the Ādityas we
    address: let them free us from distress.
Notes

Ppp. combines, in b, -masā ubhā, and reads in c ādityān
sarvān
.

Griffith

This word of ours to Day and Night, and to the Sun and Moon we speak, All the Adityas we address: may they deliver us from woe.

पदपाठः

अ॒हो॒रा॒त्रे इति॑। इ॒दम्। ब्रू॒मः॒। सू॒र्या॒च॒न्द्र॒मसौ॑। उ॒भा। विश्वा॑न्। आ॒दि॒त्यान्। ब्रू॒मः॒। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) अब (अहोरात्रे) दिन और राति का और (उभा) दोनों (सूर्याचन्द्रमसौ) सूर्य और चन्द्रमा का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं। (विश्वान्) सब (आदित्यान्) प्रकाशमान विद्वानों का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं, (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्वानों के सत्सङ्ग से सूर्य और चन्द्रमा की विद्या और नियम जानकर अपने समय का सुप्रबन्ध करें ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(अहोरात्रे) (इदम्) इदानीम् (ब्रूमः) (सूर्याचन्द्रमसौ) सूर्यचन्द्रविद्यां नियमं च (उभा) उभौ (विश्वान्) सर्वान् (आदित्यान्) अ० १।९।१। आङ् दीपी दीप्तौ-यक्। आदीप्यमानान्। प्रकाशमानान्। विदुषः पुरुषान्। शेषं गतम्-म० १ ॥

०६ वातं ब्रूमः

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वातं॑ ब्रूमः प॒र्जन्य॑म॒न्तरि॑क्ष॒मथो॒ दिशः॑।
आशा॑श्च॒ सर्वा॑ ब्रूम॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

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Whitney
Translation
  1. The wind we address, Parjanya, the atmosphere, also the quarters, and
    all regions we address: let them free us from distress.
Notes
Griffith

Vata, Parjanya we address, the Quarters, and the Firmament, And all the Regions of the sky: may they deliver us from woe.

पदपाठः

वात॑म्। ब्रू॒मः॒। प॒र्जन्य॑म्। अ॒न्तरि॑क्षम्। अथो॒ इति॑। दिशः॑। आशाः॑। च। सर्वाः॑। ब्रू॒मः॒। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वातम्) वायु, (पर्जन्यम्) मेघ, (अन्तरिक्षम्) आकाश (अथो) और (दिशः) दिशाओं का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं। (च) और (सर्वाः) सब (आशाः) विदिशाओं का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं, (ते) वे [पदार्थ] (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य वायु, मेघ, अन्तरिक्ष और दिशा और विदिशाओं के पदार्थों से उपकार लेकर सुखी होवें ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(वातम्) वायुम् (ब्रूमः) (पर्जन्यम्) अ० २।१।२। पृषु सेचने-अन्य प्रत्ययः, षस्य जकारः। सेचकं मेघम् (अन्तरिक्षम्) आकाशम् (अथो) अपि च (दिशः) पूर्वाद्याः (आशाः) विदिशः (च) (सर्वाः) समस्ताः। अन्यद् गतम्-म० १ ॥

०७ मुञ्चन्तु मा

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मु॒ञ्चन्तु॑ मा शप॒थ्या᳡दहोरा॒त्रे अथो॑ उ॒षाः।
सोमो॑ मा दे॒वो मु॑ञ्चतु॒ यमा॒हुश्च॒न्द्रमा॒ इति॑ ॥

०७ मुञ्चन्तु मा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let day-and-night, likewise dawn, free me from what comes from a
    curse; let god Soma free me, whom they call the moon.
Notes

Ppp. reads at end of b vṛṣā for uṣāḥ, and in c ādityas for
devas. ⌊C.f. Hillebrandt, Ved. Mythol., i. 270.⌋

Griffith

From all that brings a curse may Day and Night and Dawn deliver me, May Soma free me, God to whom they give the name of Chan- dramas.

पदपाठः

मु॒ञ्चन्तु॑। मा॒। श॒प॒थ्या᳡त्। अ॒हो॒रा॒त्रे इति॑। अथो॒ इति॑। उ॒षाः। सोमः॑। मा॒। दे॒वः। मु॒ञ्च॒तु॒। यम्। आ॒हुः। च॒न्द्रमाः॑। इति॑। ८.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अहोरात्रे) दिन और राति (अथो) और (उषाः) उषा [प्रभात वेला] (मा) मुझे (शपथ्यात्) शपथ में होनेवाले दोष से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें। (देवः) उत्तम गुणवाला (सोमः) ऐश्वर्यवान्, (यम्) जिसको,(चन्द्रमाः इति) यह चन्द्रमा है−(आहुः) कहते हैं, (मा) मुझे (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य दिन-राति और प्रातः-सायं चन्द्रमा के समान शान्तस्वभाव होकर सत्य शपथ आदि वचन करके आनन्द भोगें ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(मुञ्चन्तु) मोचयन्तु (मा) माम् (शपथ्यात्) शपथे सत्यताकरणाय दिव्यभेदे भवाद् दोषात् (अहोरात्रे) (उषाः) प्रभातवेला (सोमः) ऐश्वर्यवान् (मा) माम् (देवः) उत्तमगुणयुक्तः (मुञ्चन्तु) वियोजयतु (यम्) (आहुः) कथयन्ति (चन्द्रमाः) चन्द्रलोकः (इति) वाक्यसमाप्तौ ॥

०८ पार्थिवा दिव्याः

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पार्थि॑वा दि॒व्याः प॒शव॑ आर॒ण्या उ॒त ये मृ॒गाः।
श॒कुन्ता॑न्प॒क्षिणो॑ ब्रूम॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

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Whitney
Translation
  1. The earthly, the heavenly cattle, also the beasts (mṛgá) that are
    of the forest; we address the hawks (śakúnta), the birds (pakṣín):
    let them free us from distress.
Notes

Or, ’the winged hawks.’ Ppp. has a better and more independent a
(ours = 5. 21 a, above): ye grāmyās sapta paśavaḥ ⌊cf. iii. 10. 6
note⌋.

Griffith

All creatures both of heaven and earth, wild beasts and sylvan animals, And winged birds of air we call: may they deliver us from woe.

पदपाठः

पार्थि॑वाः। दि॒व्याः। प॒शवः॑। आ॒र॒ण्याः। उ॒त। ये। मृ॒गाः। श॒कुन्ता॑न्। प॒क्षिणः॑। ब्रू॒मः॒। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (पार्थिवाः) पृथिवी के, (दिव्याः) आकाश के (पशवः) प्राणी (उत) और (आरण्याः) जंगल के (मृगाः) जन्तु हैं [उनको] और (शकुन्तान्) शक्तिवाले (पक्षिणः) पक्षियों को (ब्रूमः) हम पुकारते हैं, (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रयत्न करें कि पृथिवी, जङ्गल और आकाश के सब प्राणी सुखदायक होवें ॥८॥इस मन्त्र का मिलान-अथर्व० ११।५।२१। से करो ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(पार्थिवाः) पृथिवीभवाः (दिव्याः) आकाशे भवाः (पशवः) प्राणिनः (आरण्याः) जङ्गलभवाः (उत) (ये) (मृगाः) जन्तवः (शकुन्तान्) शकेरुनोन्तोन्त्युनयः। उ० ३।४९। शक्लृ शक्तौ-उन्त प्रत्ययः। शक्तियुक्तान् (पक्षिणः) वयांसि। अन्यद् गतम्-म० १ ॥

०९ भवाशर्वाविदं ब्रूमो

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भ॑वाश॒र्वावि॒दं ब्रू॑मो रु॒द्रं प॑शु॒पति॑श्च॒ यः।
इषू॒र्या ए॑षां संवि॒द्म ता नः॑ सन्तु॒ सदा॑ शि॒वाः ॥

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Whitney
Translation
  1. Bhava-and-śarva now we address, Rudra and him that is lord of cattle;
    the arrows of them which we well know (saṁ-vid)—let those be ever
    propitious to us.
Notes

Ppp. reads in b ugraṣ for rudram, and, instead of d, the
refrain te no muñcantv aṅhasaḥ. The comm. has vidmas for -ma in
c. ⌊Pāda d is nearly repeated at vs. 22 d.⌋

Griffith

Bhava and Sarva we address, and Rudra who is Lord of Beasts, Their arrows which we feel and know: may they be ever kind to us.

पदपाठः

भ॒वा॒श॒र्वौ। इ॒दम्। ब्रू॒मः॒। रु॒द्रम्। प॒शु॒ऽपतिः॑। च॒। यः। इषूः॑। याः। ए॒षा॒म्। स॒म्ऽवि॒द्म। ताः। नः॒। स॒न्तु॒। सदा॑। शि॒वाः। ८.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) अब (भवाशर्वौ) भव [सुखोत्पादक] और शर्व [दुःखनाशक दोनों पुरुषों] को (च) और (रुद्रम्) रुद्र [ज्ञानदाता पुरुष] को, (यः) जो (पशुपतिः) प्राणियों का रक्षक है, (ब्रूमः) हम पुकारते हैं, [इसलिये कि] (एषाम्) इन सबके (याः इषूः) जिन तीरों को (संविद्म) हम पहिचानते हैं, (ताः) वे (नः) हमारे लिये (सदा) सदा (शिवाः) कल्याणकारी (सन्तु) होवें ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिन पुरुषों के अस्त्र-शस्त्रधारी योद्धा पुरुष सहायक होते हैं, वे शत्रुओं का नाश करके सुख पाते हैं ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(भवाशर्वौ) अ० ४।२८।१। सुखोत्पादकशत्रुनाशकौ पुरुषौ (इदम्) इदानीम् (ब्रूमः) (रुद्रम्) अ० २।२७।६। रु गतौ-क्विप्, तुक्+रा दाने-क। ज्ञानदातारम् (पशुपतिः) प्राणिरक्षकः (च) (यः) (इषूः) शरान् (याः) (एषाम्) पूर्वोक्तानाम् (सं विद्म) सम्यग् जानीमः (ताः) इषवः (नः) अस्मभ्यम् (सन्तु) (सदा) (शिवाः) सुखहेतवः ॥

१० दिवं ब्रूमो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

दिवं॑ ब्रूमो॒ नक्ष॑त्राणि॒ भूमिं॑ य॒क्षाणि॒ पर्व॑तान्।
स॑मु॒द्रा न॒द्यो᳡ वेश॒न्तास्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

१० दिवं ब्रूमो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. We address the sky, the asterisms, the earth, the yakṣās, the
    mountains; the oceans, the rivers, the pools—let them free us from
    distress.
Notes

Ppp. reads in b bhāumam. The comm. explains yakṣāṇi as pūjyāni
tatrayāni puṇyakṣetrāṇi
. MS. has the verse in ii. 7. 13, but reads
samudrā́n and veśantā́n in c.

Griffith

We speak to Constellations, Heaven, to Earth, to Genii, and to Hills, To Seas, to Rivers, and to Lakes: may they deliver us from woe.

पदपाठः

दिव॑म्। ब्रू॒मः॒। नक्ष॑त्राणि। भूमि॑म्। य॒क्षाणि॑। पर्व॑तान्। स॒मु॒द्राः। न॒द्यः᳡। वे॒श॒न्ताः। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (दिवम्) आकाश, (नक्षत्राणि) नक्षत्रों, (भूमिम्) भूमि, (यक्षाणि) पुण्य स्थानों, और (पर्वतान्) पर्वतों का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं। (समुद्राः) सब समुद्र, (नद्यः) नदियाँ और (वेशन्ताः) सरोवर [जो हैं, उनका भी], (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य आकाश, नक्षत्र, भूमि आदि पदार्थों के गुण कर्म जानकर और उनका यथावत् उपयोग करके आनन्दित रहें ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(दिवम्) आकाशम् (ब्रूमः) (नक्षत्राणि) णक्ष गतौ-अत्रन्। तारागणान् (भूमिम्) (यक्षाणि) यक्ष पूजायाम्-घञ्। पूजास्थानानि। पुण्यक्षेत्राणि (पर्वतान्) शैलान् (समुद्राः) (नद्यः) सरितः (वेशन्ताः) जॄविशिभ्यां झच्। उ० ३।१२६। विश प्रवेशने झच्। अल्पजलाशयाः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥

११ सप्तर्षीन्वा इदम्

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सप्त॒र्षीन्वा इ॒दं ब्रू॑मो॒ऽपो दे॒वीः प्र॒जाप॑तिम्।
पि॒तॄन्य॒मश्रे॑ष्ठान्ब्रूम॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

११ सप्तर्षीन्वा इदम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The seven seers now we address, the heavenly waters, Prajāpati; the
    Fathers with Yama as their chief (śréṣṭha) we address: let them free
    us from distress.
Notes

Most of the mss. (including all of ours that are noted) read saptarṣī́n
in a, and SPP. gives it in his text; the comm. has saptaṛṣīn.

Griffith

Or the Seven Rishis we address, Waters divine, Prajapati, Fathers with Yama at their head: may they deliver us from woe.

पदपाठः

स॒प्त॒ऽऋ॒षीन्। वै। इ॒दम्। ब्रू॒मः॒। अ॒पः। दे॒वीः। प्र॒जाऽप॑तिम्। पि॒तॄन्। य॒मऽश्रे॑ष्ठान्। ब्रू॒मः॒। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) अब (वै) निश्चय करके (सप्तर्षीन्) सात ऋषियों [व्यापनशील वा दर्शनशील अर्थात् त्वचा, नेत्र, कान, जिह्वा, नाक मन और बुद्धि] का (देवीः) [उनकी] दिव्य गुणवाली (अपः) व्याप्तियों का और (प्रजापतिम्) प्रजापति [प्रजापालक आत्मा] का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं, (यमश्रेष्ठान्) यम-नियमों को श्रेष्ठ [प्रधान] रखनेवाले (पितॄन्) पालन करनेवाले गुणों का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं। (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सब इन्द्रियों, मन बुद्धि, उनकी शक्तियों, आत्मा और यम-नियमों से पाने योग्य उत्तम गुणों का यथावत् विचार करके दुःख से निवृत्ति पावें ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(सप्तर्षीन्) अ० ४।११।९। सप्त ऋषयः प्रतिहिताः शरीरे-यजु० ३४।५५। त्वक्चक्षुःश्रवणरसनाघ्राणमनोबुद्धीः (वै) एव (इदम्) इदानीम् (ब्रूमः) (अपः) व्यापनशक्तीः (देवीः) दिव्यगुणयुक्ताः (प्रजापतिम्) प्रजापालकमात्मानम् (पितॄन्) पालकान् गुणान् (यमश्रेष्ठान्) यमनियमाः श्रेष्ठाः प्रधाना येषां तान्। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥

१२ ये देवा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ये दे॒वा दि॑वि॒षदो॑ अन्तरिक्ष॒सद॑श्च॒ ये।
पृ॑थि॒व्यां श॒क्रा ये श्रि॒तास्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

१२ ये देवा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The gods that are seated in the sky, and that are seated in the
    atmosphere, the mighty ones (śakrá) that are set (śri) on the
    earth—let them free us from distress.
Notes

⌊We had a, b above at x. 9. 12. In a read devaso?

Griffith

Gods whose abode is in the heaven and those who dwell in middle air, And Mighty ones who rest on earth: may they deliver us from. woe.

पदपाठः

ये। दे॒वाः। दि॒वि॒ऽसदः॑। अ॒न्त॒रि॒क्ष॒ऽसदः॑। च॒। ये। पृ॒थि॒व्याम्। श॒क्राः। ये। श्रि॒ताः। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (देवाः) दिव्य गुण (दिविषदः) सूर्य में वर्तमान (च) और (ये) जो (अन्तरिक्षसदः) अन्तरिक्ष में व्याप्त हैं और (ये) जो (शक्राः) शक्तिवाले गुण (पृथिव्याम्) पृथिवी पर (श्रिताः) स्थित हैं, (ते) (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सूर्य आदि के गुणों को साक्षात् करके सुख प्राप्त करें ॥१२॥इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध-अथर्व० १०।९।१२। में आ चुका है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(ये) (देवाः) दिव्यगुणाः (दिविषदः) सूर्ये स्थिताः (अन्तरिक्षसदः) अन्तरिक्षे वर्तमानाः (च) (ये) (पृथिव्याम्) भूमौ (शक्राः) अ० २।५।४। शक्तिमन्तः (ये) (श्रिताः) स्थिताः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥

१३ आदित्या रुद्रा

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आ॑दि॒त्या रु॒द्रा वस॑वो दि॒वि दे॒वा अथ॑र्वाणः।
अङ्गि॑रसो मनी॒षिण॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

१३ आदित्या रुद्रा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The Ādityas, the Rudras, the Vasus, the gods in heaven, the
    Atharvans, the An̄girases full of wisdom—let them free us from distress.
Notes

Perhaps b is rather ’the divine Atharvans in heaven’; Ppp. reads
devā dāivā atharvaṇaḥ.

Griffith

Adityas, Rudra, Vasus, Gods aloft in heaven, Atharvan’s sons, The sages, sons of Angiras: may they deliver us from woe.

पदपाठः

आ॒दि॒त्याः। रु॒द्राः। वस॑वः। दि॒वि। दे॒वाः। अथ॑र्वाणः। अङ्गि॑रसः। म॒नी॒षिणः॑। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (दिवि) विजय की इच्छा में [वर्तमान] (आदित्याः) प्रकाशमान, (रुद्राः) दुःखनाशक, (वसवः) निवास करानेवाले, (देवाः) व्यवहारकुशल (अथर्वाणः) निश्चलस्वभाव, (अङ्गिरसः) ज्ञानी और (मनीषिणः) बुद्धिमान् लोग [जो हैं], (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - तेजस्वी, महर्षि महात्मा लोग इन्द्रियदमन आदि से बाहिरी और भीतरी दोषों का नाश करते हैं ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(आदित्याः) अ० १।९।१। आदीप्यमानाः (रुद्राः) अ० २।२७।६। दुःखनाशकाः (वसवः) वासयितारः (दिवि) विजिगीषायाम् (देवाः) व्यवहारकुशलाः (अथर्वाणः) अ० ४।१।७। निश्चलस्वभावाः (अङ्गिरसः) अ० २।१२।४। ज्ञानिनो महर्षयः (मनीषिणः) अ० ३।५।६। मेधाविनः-निघ० ३।१५। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥

१४ यज्ञं ब्रूमो

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य॒ज्ञं ब्रू॑मो॒ यज॑मान॒मृचः॒ सामा॑नि भेष॒जा।
यजूं॑षि॒ होत्रा॑ ब्रूम॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

१४ यज्ञं ब्रूमो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. We address the sacrifice, the sacrificer, the verses (ṛ́c), the
    chants (sā́man), the remedies; the sacred formulas (yā́jus), the
    invocations we address: let them free us from distress.
Notes

Bheṣajā, which probably refers to material like that included in the
Atharva-Veda, is explained by the comm. as śāntikarāṇi vāmadevyādīni;
no hymns in our collection receive any such title in the Kāuśika.

Griffith

To sacrifice, to worshipper, hymns, songs, and healing charms, we speak, To priestly acts and Yajus texts: may they deliver us from woe.

पदपाठः

य॒ज्ञम्। ब्रू॒मः॒। यज॑मानम्। ऋचः॑। सामा॑नि। भे॒ष॒जा। यजूं॑षि। होत्राः॑। ब्रू॒मः॒। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
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  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यज्ञम्) यज्ञ [सङ्गतिकरण आदि व्यवहार], (यजमानम्) यजमान [सङ्गतिकरण आदि व्यवहार करनेवाले], (ऋचः) ऋचाओं [स्तुतिविद्याओं] और (भेषजा) भयनिवारक (सामानि) मोक्षज्ञानों का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं, (यजूंषि) सत्कर्मों के ज्ञानों और (होत्राः) [दान करने और ग्रहण करने योग्य] वेदविद्याओं का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं, (ते) वे [पदार्थ] (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है यज्ञ, यज्ञकर्त्ता और पदार्थों के गुण और मोक्षविद्याओं आदि के तत्त्वज्ञान से आनन्द प्राप्त करें ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४−(यज्ञम्) सङ्गतिकरणादिव्यवहारम् (यजमानम्) सङ्गतिकरणादिव्यवहारसाधकम् (ऋचः) अ० ६।२८।१। स्तुतिविद्याः (सामानि) अ० ७।५४।१। षो अन्तकर्मणि-मनिन्। मोक्षज्ञाननि (भेषजा) भयनिवारकानि (यजूंषि) अ० ७।५४।२। सत्कर्मज्ञानानि (होत्राः) हुयामाश्रुभसिभ्यस्त्रन्। उ० ४।१६८। हु दानादानयोः−त्रन्, टाप्। दानादानयोग्या वेदवाचः। होत्रा वाङ्नाम-निघ० १।११। (ते) पूर्वोक्ताः पदार्थाः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥

१५ पञ्च राज्यानि

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पञ्च॑ रा॒ज्यानि॑ वी॒रुधां॒ सोम॑श्रेष्ठानि ब्रूमः।
द॒र्भो भ॒ङ्गो यवः॒ सह॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

१५ पञ्च राज्यानि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The five kingdoms of plants, having Soma as their chief (śréṣṭha),
    we address; the darbhá, hemp, barley, sáha—let them free us from
    distress.
Notes

Ppp. rectifies the meter of b by reading brūmasi; in c it puts
bhan̄gas before darbhas. The mss., as usual, differ as to the accent
of rājya; several (including our O.) read rā́jyāni, and our R.s.m.
has rājyā̀ni. The comm. calls saha simply ‘a kind of herb.’

Griffith

To the five kingdoms of the plants which Soma rules as Lord we speak. Darbha, hemp, barley, mighty power: may these deliver us from woe,

पदपाठः

पञ्च॑। रा॒ज्यानि॑। वी॒रुधा॑म्। सोम॑ऽश्रेष्ठानि। ब्रू॒मः॒। द॒र्भः। भ॒ङ्गः। यवः॑। सहः॑। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वीरुधाम्) जड़ी-बूटियों के (सोमश्रेष्ठानि) सोम [ओषधिविशेष] को प्रधान रखनेवाले (पञ्च) पाँच [पत्ता, डण्डी, फूल-फल और जड़रूप] (राज्यानि) राज्यों का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं। [रोगों का] (दर्भः) चीर फाड़ना, (भङ्गः) नाश़ करना, (यवः) मिलाना [भर देना] और (सहः) बल [यह उनके गुण हैं], (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सोम आदि जड़ी-बूटियों के पत्ते आदि के गुणों से यथोचित उपकार लेकर रोगनिवृत्ति करके हृष्ट-पुष्ट रहें ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १५−(पञ्च) पत्रकाण्डपुष्पफलमूलरूपाणि (राज्यानि) राज्ञा भिषजा नियुज्यमानानि कर्माणि (वीरुधाम्) विरोहणशीलानां लतादीनाम् (सोमश्रेष्ठानि) सोम ओषधिविशेषः श्रेष्ठः प्रशस्यतमो येषां तथाविधानि (दर्भः) दॄदलिभ्यां भः। उ० ३।१५१। दॄ विदारणे-भ प्रत्ययः। रोगविदारणगुणः (भङ्गः) भञ्जो आमर्दने-घञ्। नाशनगुणः (यवः) मिश्रणगुणः (सहः) बलम्। प्रभावः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१६ अरायान्ब्रूमो रक्षांसि

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अ॒राया॑न्ब्रूमो॒ रक्षां॑सि स॒र्पान्पु॑ण्यज॒नान्पि॒तॄन्।
मृ॒त्यूनेक॑शतं ब्रूम॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

१६ अरायान्ब्रूमो रक्षांसि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The niggards we address, the demons, the serpents, the pure-folk,
    the Fathers; the hundred-and-one deaths we address: let them free us
    from distress.
Notes

⌊With b, cf. viii. 8. 15, and 9. 24 below. Cf. note to iii. 1 1. 5
for the “hundred-and-one deaths.” Cf. also Chāndogya Up., viii. 7³, 9³,
10³, where Indra passes three thirty-two-year terms of studentship with
Prajāpati and is then bidden (viii. 11³) to pass five years more, to
make out the full tale of 101 years.⌋

Griffith

To demons and fierce fiends we speak, to Holy Genii, Fathers,. Snakes, And to the hundred deaths and one: may these deliver us from woe.

पदपाठः

अ॒राया॑न्। ब्रू॒मः॒। रक्षां॑सि। स॒र्पान्। पु॒ण्य॒ऽज॒नान्। पि॒तॄन्। मृ॒त्यून्। एक॑ऽशतम्। ब्रू॒मः॒। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अरायान्) अदाताओं, (रक्षांसि) राक्षसों, (सर्पान्) सर्पों [सर्पसमान क्रूरस्वभावों], (पुण्यजनान्) पुण्यात्माओं और (पितॄन्) पालनकर्ताओं का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं। (एकशतम्) एक सौ एक [अपरिमित] (मृत्यून्) मृत्युओं [मृत्यु के कारणों] का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं, (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य दुःखदायी दुष्टों के त्याग से और पुण्यात्माओं के सत्सङ्ग से मृत्यु के कारणों से बचकर सदा आनन्द भोगें ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६−(अरायान्) अ+रा दानादानयोः-घञ्, युक्। अदातॄन् (रक्षांसि) राक्षसान् (सर्पान्) सर्पवत् क्रूरान् (पुण्यजनान्) पूञो यण् णुण्घ्रस्वश्च। उ० ५।१५। पूञ् शोधने-यत्, णुक् ह्रस्वत्वं च। पवित्रात्मनः (पितॄन्) पालकान् (मृत्यून्) मरणकारणानि (एकशतम्) अ० ३।९।६। एकोत्तरशतसंख्याकान्। अपरिमितान्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१७ ऋतून्ब्रूम ऋतुपतीनार्तवानुत

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ऋ॒तून्ब्रू॑म ऋतु॒पती॑नार्त॒वानु॒त हा॑य॒नान्।
समाः॑ संवत्स॒रान्मासां॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

१७ ऋतून्ब्रूम ऋतुपतीनार्तवानुत ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The seasons we address, the lords of the seasons, the year-divisions
    and the winters, the summers, the years, the months: let them free us
    from distress.
Notes

The verse nearly agrees with iii. 10. 9. The comm. quotes from Tāitt.
Brah. ii. 6. 19 in explanation of what gods are lords of the several
seasons. Ārtavān he defines as tattadṛtuviśeṣasatnbandhinaḥ
padārthān;
hāyana and samā are to him simply other names for
‘year.’

Griffith

We speak to Seasons, Season-Lords, to years and sections of the year, To Months, half-months, and years complete: may they deliver us from woe.

पदपाठः

ऋ॒तून्। ब्रू॒मः॒। ऋ॒तु॒ऽपती॑न्। आ॒र्त॒वान्। उ॒त। हा॒य॒नान्। समाः॑। स॒म्ऽव॒त्स॒रान्। मासा॑न्। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतून्) ऋतुओं, (ऋतुपतीन्) ऋतुओं के स्वामियों [सूर्य, वायु आदिकों], (आर्तवान्) ऋतुओं से उत्पन्न होनेवाले (हायनान्) पाने योग्य चावल आदि पदार्थों, (संवत्सरान्) बरसों, (मासान्) महीनों (उत) और (समाः) सब अनुकूल क्रियाओं का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं, (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ज्ञानी पुरुष ज्योतिष आदि विद्या से वसन्त आदि ऋतुओं, और उनके कारणों सूर्य, चन्द्र, वायु, पृथिवी आदि और उनकी अनुकूल क्रियाओं से सब काल में उपकार लेकर आनन्द पावें ॥१७॥यह मन्त्र बहुत कुछ-अथर्व० ३।१०।९। से मिलता है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७−(ऋतून्) अ० ३।१०।९। वसन्तादिकालान् (ऋतुपतीन्) सूर्यचन्द्रपृथिवीवाय्वादीन् देवान् (आर्तवान्) अ० ३।१०।९। ऋतूद्भवान् (उत) अपि च (हायनान्) अ० ३।१०।९। ओहाङ् गतौ−ण्युट्। प्राप्तव्यान् व्रीह्याद्यान् भोज्यपदार्थान् (समाः) अ० २।६।१। अनुकूलाः क्रियाः (संवत्सरान्) वर्षकालान् (मासान्) चैत्रादिकालान्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१८ एत देवा

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एत॑ देवा दक्षिण॒तः प॒श्चात्प्राञ्च॑ उ॒देत॑।
पु॒रस्ता॑दुत्त॒राच्छ॒क्रा विश्वे॑ दे॒वाः स॒मेत्य॒ ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

१८ एत देवा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Come, ye gods, from the south; from the west come up eastward; from
    the east, from the north, mighty, all the gods, coming together: let
    them free us from distress.
Notes

Ppp. rectifies the meter of b by adding nas at the end.

Griffith

Come hither from the south, ye Gods, rise and come forward from the west. Gathered together, all ye Gods, ye mighty Ones, from east and and north: may they deliver us from woe.

पदपाठः

आ। इ॒त॒। दे॒वाः॒। द॒क्षि॒ण॒तः। प॒श्चात्। प्राञ्चः॑। उ॒त्ऽएत॑। पु॒रस्ता॑त्। उ॒त्त॒रात्। श॒क्राः। विश्वे॑। दे॒वाः। स॒म्ऽएत्य॑। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.१८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) हे देवताओ ! [वीर पुरुषो] (दक्षिणतः) दक्षिण से (आ इत) आओ (पश्चात्) पश्चिम से, (पुरस्तात्) पूर्व से (उत्तरात्) उत्तर से, (शक्राः) शक्तिमान् (विश्वे) सब (देवाः) महात्माओं तुम (समेत्य) मिलकर (प्राञ्चः) आगे बढ़ते हुए (उदेत) ऊपर आओ, (ते) वे [आप] (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) बचावें ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सब देशों के वीर विद्वानों से विद्या प्राप्त करके विपत्तियों को हटावें ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १८−(एत) आगच्छत (देवाः) विजिगीषवः (दक्षिणतः) दक्षिणदेशात् (पश्चात्) पश्चिमदेशात् (प्राञ्चः) प्रकर्षेण गच्छन्तः (उदेत) उदयं प्राप्नुत (पुरस्तात्) पूर्वदेशात् (उत्तरात्) उत्तरदेशात् (शक्राः) शक्तिमन्तः (विश्वे) सर्वे (देवाः) महात्मानः (समेत्य) समागत्य। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१९ विश्वान्देवानिदं ब्रूमः

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विश्वा॑न्दे॒वानि॒दं ब्रू॑मः स॒त्यसं॑धानृता॒वृधः॑।
विश्वा॑भिः॒ पत्नी॑भिः स॒ह ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

१९ विश्वान्देवानिदं ब्रूमः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. All the gods now we address, of true agreements, increasers of
    righteousness, together with all their spouses: let them free us from
    distress.
Notes
Griffith

This we address to all the Gods, faithful, maintainers of the Right, With all their Consorts by their side: may they deliver us from woe.

पदपाठः

विश्वा॑न्। दे॒वान्। इ॒दम्। ब्रू॒मः॒। स॒त्यऽसं॑धान्। ऋ॒त॒ऽवृधः॑। विश्वा॑भिः। पत्नी॑भिः। स॒ह। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.१९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) अब (विश्वान्) सब (देवान्) विजय चाहनेवालों, (सत्यसंधान्) सत्य प्रतिज्ञावालों और (ऋतवृधः) सत्य ज्ञान के बढ़ानेवालों का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं। [अपनी] (विश्वाभिः) सब (पत्नीभिः सह) पत्नियों [वा पालनशक्तियों] के साथ (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य वीर, सत्यवक्ता, सत्यकर्मी और सत्य विद्याओं के प्रचारक स्त्री-पुरुषों के सत्सङ्ग और सहाय से सुख बढ़ावें ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १९−(विश्वान्) सर्वान् (देवान्) विजिगीषून् (इदम्) इदानीम् (सत्यसंधान्) सत्यप्रतिज्ञान् (ऋतवृधः) सत्यज्ञानस्य वर्धयितॄन् (पत्नीभिः) अ० २।१२।१। योषिद्भिः। पालनशक्तिभिः (सह) अन्यत् पूर्ववत् ॥

२० सर्वान्देवानिदं ब्रूमः

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सर्वा॑न्दे॒वानि॒दं ब्रू॑मः स॒त्यसं॑धानृता॒वृधः॑।
सर्वा॑भिः॒ पत्नी॑भिः स॒ह ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

२० सर्वान्देवानिदं ब्रूमः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The collective gods now we address, of true agreements, increasers
    of righteousness, together with their collective spouses: let them free
    us from distress.
Notes

This verse (omitted in Ppp.) differs from the preceding only by twice
reading sarva instead of viśva. The epithet ṛtāvṛ́dh may also
signify ‘increasing by righteousness.’

Griffith

We speak to the collected Gods, faithful, maintainers of the Right. Present with their collective Dames: may these deliver us from woe.

पदपाठः

सर्वा॑न्। दे॒वान्। इ॒दम्। ब्रू॒मः॒। स॒त्यऽसं॑धान्। ऋ॒त॒ऽवृधः॑। सर्वा॑भिः। पत्नी॑भिः। स॒ह। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.२०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) अब (सर्वान्) सब (देवान्) व्यवहार जाननेवालों, (सत्यसंधान्) सत्य के खोजनेवालों, और (ऋतवृधः) सत्य ज्ञान से बढ़ानेवालों का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं। [अपनी] (सर्वाभिः) सब (पत्नीभिः सह) पत्नियों [वा पालन शक्तियों] के साथ, (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) बचावें ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सब व्यवहारकुशल, सत्यशील, धर्म्मात्मा स्त्री-पुरुषों से शिक्षा प्राप्त करके आनन्दित होवें ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २०−(सर्वान्) समस्तान् (देवान्) व्यवहारिणः पुरुषान् (सत्यसंधान्) सत्या संधा, अनुसन्धानमन्वेषणं येषां तान् (ऋतवृधः) सत्यज्ञानेन बुद्धिशीलान्। धार्मिकान्। अन्यत् पूर्ववत्-म० १९ ॥

२१ भूतं ब्रूमो

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भू॒तं ब्रू॑मो भूत॒पतिं॑ भू॒ताना॑मु॒त यो व॒शी।
भू॒तानि॒ सर्वा॑ सं॒गत्य॒ ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

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Whitney
Translation
  1. Existence we address, the lord of existences, and who is controller
    of existences; all existences, assembling—let them free us from
    distress.
Notes

Bhūtám at the beginning may be adjective, ‘him who is.’ Ppp. reads
patis for vaśī at end of b, and, for c, bhūtāni sarvā
brūmas
.

Griffith

The spirit, yea, the spirits’ Lord, ruler of spirits, we address. Together let all spirits meet: may these deliver us from woe.

पदपाठः

भू॒तम्। ब्रू॒मः॒। भू॒त॒ऽपति॑म्। भू॒ताना॑म्। उ॒त। यः। व॒शी। भू॒तानि॑। सर्वा॑। स॒म्ऽगत्य॑। ते। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ८.२१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भूतम्) ऐश्वर्यवान्, विचारशील [योगीन्द्र] का, (भूतपतिम्) प्राणियों के पालनकर्ता का, (उत) और (भूतानाम्) तत्त्वों [पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश द्रव्यों] को (यः) जो (वशी) वश करनेवाला पुरुष है [उसका] (ब्रूमः) हम कथन करते हैं। (सर्वा) सब (भूतानि) प्राणियों से (संगत्य) मिलकर (ते) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य जितेन्द्रिय, सर्वहितैषी, तत्त्ववेत्ता जनों से गुण ग्रहण कर के क्लेश का नाश करें ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २१−(भूतम्) भू सत्तायाम्, शुद्धिचिन्तनयोः, मिश्रणे, प्राप्तौ च-कर्मणि कर्तरि वा-क्त, भूत-अर्शआद्यच्। भूतं विभूतिरैश्वर्यं यस्य तम्। तत्त्वचिन्तनशीलम्। योगीन्द्रम्। शिवम् (भूतपतिम्) प्राणिनां पालकम् (भूतानाम्) पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशद्रव्याणाम् (उत) अपि च (यः) (वशी) वशयिता नियन्ता (भूतानि) प्राणिनः। जीवान् (सर्वा) सर्वाणि (संगत्य) मिलित्वा। अन्यत् पूर्ववत् ॥

२२ या देवीः

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या दे॒वीः पञ्च॑ प्र॒दिशो॒ ये दे॒वा द्वाद॑श॒र्तवः॑।
सं॑वत्स॒रस्य॒ ये दंष्ट्रा॒स्ते नः॑ सन्तु॒ सदा॑ शि॒वाः ॥

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Whitney
Translation
  1. They that are the five divine directions, that are the twelve
    divine seasons, that are the fangs of the year—let them be ever
    propitious to us.
Notes

All the saṁhitā-mss. happen to read together in b dvā́daśa
rtávaḥ
, which SPP. adopts; Ppp. makes the same combination. ⌊Pāda d
is nearly 9 d above.⌋

Griffith

The five Sky regions, Goddesses, and the twelve Seasons which are Gods. The teeth of the completed year, may these deliver us from woe.

पदपाठः

याः। दे॒वीः। पञ्च॑। प्र॒ऽदिशः॑। ये। दे॒वाः। द्वाद॑श। ऋ॒तवः॑। स॒म्ऽव॒त्स॒रस्य॑। ये। दंष्ट्रा॑। ते। नः॒। स॒न्तु॒। सदा॑। शि॒वाः। ८.२२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • अनुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (याः) जो (देवीः) उत्तम गुणवाली (पञ्च) पाँच [पूर्वादि चार और एक ऊपर-नीचे की] (प्रदिशः) बड़ी दिशाएँ और (ये) जो (देवाः) उत्तम गुणवाले (द्वादश) बारह [मन, बुद्धि सहित पाँच ज्ञानेन्द्रिय और पाँच कर्मेन्द्रिय रूप] (ऋतवः) ऋतुएँ [चलनेवाले पदार्थ] हैं और (संवत्सरस्य) वर्ष काल के (ये) जो (दंष्ट्राः) डँसनेवाले गुण हैं, (ते) वे (नः) हमारे लिये (सदा) सदा (शिवाः) कल्याणकारी (सन्तु) होवें ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सब स्थानों और सब कालों में मन, बुद्धि और इन्द्रियों द्वारा शुभ काम करके विघ्नों से बचे ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २२−(याः) (देवीः) दिव्यगुणयुक्ताः (पञ्च) पञ्चसंख्याकाः। ऊर्ध्वनीचदिक्सहिताः प्राच्याद्यः (प्रदिशः) प्रधानदिशः (ये) (देवाः) दिव्यगुणयुक्ताः (द्वादश) अ० ४।११।११। मनोबुद्धिसहिता दशेन्द्रियरूपाः (ऋतवः) गमनशीलाः पदार्थाः (संवत्सरस्य) वर्षकालस्य (ये) (दंष्ट्राः) सर्वधातुभ्यः ष्ट्रन्। उ० ४।१५९। दंश दंशने−ष्ट्रन्। दंशनगुणाः (ते) अन्यद्गतम्-म० ९ ॥

२३ यन्मातली रथक्रीतममृतम्

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यन्मात॑ली रथक्री॒तम॒मृतं॒ वेद॑ भेष॒जम्।
तदिन्द्रो॑ अ॒प्सु प्रावे॑शय॒त्तदा॑पो दत्त भेष॒जम् ॥

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Whitney
Translation
  1. The immortal remedy, chariot-bought, which Mātalī knows—that Indra
    made enter into the waters; that remedy, O waters, give ye.
Notes

The pada-text reads mā́talī also. ⌊Concerning Mātalī, see Weber, Sb.
1895, p. 837.⌋ All the mss. accent ā́po in d, and it accordingly is
read by both editions; but the sense requires the emendation to āpo,
as translated; ⌊so the comm.: he āpaḥ⌋. The verse is so discordant
with the rest of the hymn as to seem an addition made to it; ⌊it is not
found in Ppp.⌋.

The comm. ⌊p. 123⌋ regards the verse as referred to in Vāit. 3. 13,
quoting the whole sūtra, but with mātalyā instead of pātrāṇy at
the beginning; the mss. of Vāit. read mātalyā or mārttalyā.

⌊Here ends the third anuvāka, with 2 hymns and 49 verses. The quoted
Anukr. says agnim-brūmake tisraḥ: i.e. ‘in the hymn agnim brūmaḥ,
there are three [over twenty].’⌋

Griffith

The deathless balm that Matali knows, purchased at a chariot’s price, Indra effused into the floods. Waters, give us that healing balm!

पदपाठः

यत्। मात॑ली। र॒थ॒ऽक्री॒तम्। अ॒मृत॑म्। वेद॑। भे॒ष॒जम्। तत्। इन्द्रः॑। अ॒प्ऽसु। प्र। अ॒वे॒श॒य॒त्। तत्। आपः॑। द॒त्त॒। भे॒ष॒जम्। ८.२३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
  • शन्तातिः
  • बृहतीगर्भानुष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

कष्ट हटाने के लिये उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मातली) इन्द्र [जीव] का रथवान् [मन] (रथक्रीतम्) रथ [शरीर] द्वारा पाये हुए (यत्) जिस (भेषजम्) भयनिवारक (अमृतम्) अमृत [अमरपन, मोक्षसुख] को (वेद) जानता है, (तत्) उस [अमृत] को (इन्द्रः) इन्द्र [परमेश्वर] ने (अप्सु) सब प्रजाओं में (प्र अवेशयत्) प्रवेश किया है, (आपः) हे प्रजाओ ! (तत्) उस (भेषजम्) भयनिवारक वस्तु [मोक्षसुख] का (दत्त) दान करो ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मोक्षसुख शरीर द्वारा प्राप्त होकर मन से अनुभव किया जाता है, वह मोक्ष सुख ईश्वरनियम से सब प्राणियों को प्राप्य है। उसके पाने का प्रत्येक मनुष्य प्रयत्न करे ॥२३॥इस मन्त्र का मिलान अथर्व० ८।९।५। से करो। इति तृतीयोऽनुवाकः ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २३−(यत्) (मातली) अ० ८।९।५। मतल-इञ्, विभक्तेः पूर्वसवर्णदीर्घः। मातलिः। इन्द्रस्य जीवस्य सारथिः। मनः (रथक्रीतम्) रथेन शरीरेण प्राप्तम् (अमृतम्) मोक्षसुखम् (वेद) जानाति (भेषजम्) भयनिवारकम् (तत्) अमृतम् (इन्द्रः) परमेश्वरः (अप्सु) आपः (आप्ताः) प्रजाः-दयानन्दभाष्ये यजु० ६।२७। प्रजासु। प्राणिषु (प्रावेशयत्) प्रविष्टवान् (तत्) (आपः) हे प्रजाः (दत्त) प्रयच्छत (भेषजम्) भयनिवारकं वस्तु। मोक्षसुखम् ॥