००४ प्राणः

००४ प्राणः ...{Loading}...

Whitney subject
  1. Extolling the breath (prāṇá).
VH anukramaṇī

प्राणः।
१-२६ भार्गवो वैदर्भिः। प्राणः। अनुष्टुप्, १ शङ्कुमती, ८ पथ्यापङ्क्तिः, १४ निचृत्, १५ भुरिक्, २० अनुष्टुगर्भा त्रिष्टुप्, २१ मध्येज्योतिर्जगती, २२ त्रिष्टुप्, २६ बृहतीगर्भा।

Whitney anukramaṇī

[Bhārgava Vāidarbhi.—ṣaḍviṅśakam. mantroktaprāṇadevatyam. ānuṣṭubham: 1. śin̄kumatī; 8. pathyāpan̄kti; 14. nicṛt; 15. bhurij; 20. anuṣṭubgarbhātriṣṭubh; 21. madhyejyotir jagatī; 22. triṣṭubh; 26. bṛhatīgarbhā.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. xvi. The whole hymn (together with a considerable number of others) is quoted by its opening words in Kāuś. 55. 17; 58. 3, 11, but not in a way to cast the least light upon its meaning and value. ⌊The hymn is reckoned to the āyuṣya gaṇa (note to Kāuś. 54. 11); the comm. quotes further uses from Nakṣatrakalpa 19, śāntikalpa 15, and a Pariśiṣṭa.⌋

Translations

Translated: Muir, v. 394 (the greater part); Scherman, p. 69 (nearly all); Deussen, Geschichte, i. 1. 301 (with a general introduction); Henry, iii, 147; Griffith, ii. 64; Bloomfield, 218, 622.—The hymn to Prāṇa, introduced into the second praśna of the Praśna Upanishad, contains reminiscences of this hymn: cf. vs. 19, and Deussen, Upanishads, p. 562.

Griffith

A glorification of Prana, Breath or Vital Spirit

०१ प्राणाय नमो

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प्रा॒णाय॒ नमो॒ यस्य॒ सर्व॑मि॒दं वशे॑।
यो भू॒तः सर्व॑स्येश्व॒रो यस्मि॒न्त्सर्वं॒ प्रति॑ष्ठितम् ॥

०१ प्राणाय नमो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Homage to breath (prāṇá) in whose control is this All, who hath
    been lord of all, in whom all stands firm.
Notes
Griffith

Homage to Prana, him who hath dominion o’er the universe, Who hath become the Sovran Lord of all, on whom the whole depends!

पदपाठः

प्रा॒णाय॑। नमः॑। यस्य॑। सर्व॑म्। इ॒दम्। वशे॑। यः। भू॒तः। सर्व॑स्य। ई॒श्व॒रः। यस्मि॑न्। सर्व॑म्। प्रति॑ऽस्थितम्। ६.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • शङ्कुमत्यनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राणाय) प्राण [जीवनदाता परमेश्वर] को (नमः) नमस्कार है, (यस्य) जिसके (वशे) वश में (सर्वम्) सब (इदम्) यह [जगत्] है। (भूतः) सदा वर्तमान (यः) जो (सर्वस्य) सबका (ईश्वरः) ईश्वर है और (यस्मिन्) जिसके भीतर (सर्वम्) सब (प्रतिष्ठितम्) अटल ठहरा है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सर्वपोषक, सर्वशक्तिमान् प्राणनाम जगदीश्वर की उपासना करके मनुष्य अपने प्राणों के बल को सदा बढ़ाते रहें ॥१॥परमेश्वर का प्राण नाम है, देखो प्रश्नोपनिषद् खण्ड २ श्लोक ६ ॥ अरा इव रथनाभौ प्राणे सर्वं प्रतिष्ठितम्। ऋचो यजूंषि सामानि यज्ञः क्षत्रं ब्रह्म च ॥१॥अरों के समान रथ की नाभि में, प्राण के बीच सब जड़ा हुआ है−ऋचाएँ [स्तुतिविद्याएँ] यजुर्मन्त्र [ईश्वरपूजा के मन्त्र] और साममन्त्र [मोक्षविद्याएँ-अर्थात् कर्म, उपासना और ज्ञान], यज्ञ [श्रेष्ठ व्यवहार] राज्य और धन ॥और देखो मनु अध्याय १२ श्लोक १२३। एतमेके वदन्त्यग्निं मनुमन्ये प्रजापतिम्। इन्द्रमेकेऽपरे प्राणमपरे ब्रह्म शाश्वतम् ॥१॥इस [परमेश्वर] को कोई अग्नि, कोई मनु और प्रजापति, कोई इन्द्र, कोई प्राण और कोई नित्य ब्रह्म कहते हैं ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(प्राणाय) प्र+अन प्राणने-घञ्। प्राणित्यनेनेति प्राणस्तस्मै जीवनदात्रे परमेश्वराय (नमः) सत्कारः (यस्य) (सर्वम्) समस्तम् (इदम्) दृश्यमानं जगत् (वशे) प्रभुत्वे (यः) (भूतः) सर्वदा लब्धसत्ताकः (सर्वस्य) (ईश्वरः) अश्नोतेराशुकर्मणि वरट् च। उ० ५।५७। अशू व्याप्तौ-वरट्, उपधाया ईत्वम्। शीघ्रकारी। यद्वा, स्थेशभासपिसकसो वरच्। पा० ३।२।१७५। ईश ऐश्वर्ये-वरच्। ईशिता स्वामी (यस्मिन्) (सर्वम्) (प्रतिष्ठितम्) दृढं स्थितम् ॥

०२ नमस्ते प्राण

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नम॑स्ते प्राण॒ क्रन्दा॑य॒ नम॑स्ते स्तनयि॒त्नवे॑।
नम॑स्ते प्राण वि॒द्युते॒ नम॑स्ते प्राण॒ वर्ष॑ते ॥

०२ नमस्ते प्राण ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Homage, O breath, to thy roaring, homage to thy thunder; homage, O
    breath, to thy lightning, homage to thee raining, O breath.
Notes

Ppp. reads in c ‘stu for prāṇa.

Griffith

Homage, O Prana, to thy roar, to thunder-peal and lightning flash! Homage, O Prana, unto thee what time thou sendest down thy rain!

पदपाठः

नमः॑। ते॒। प्रा॒ण॒। क्रन्दा॑य। नमः॑। ते॒। स्त॒न॒यि॒त्नवे॑। नमः॑। ते॒। प्रा॒ण॒। वि॒ऽद्युते॑। नमः॑। ते॒। प्रा॒ण॒। वर्ष॑ते। ६.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राण) हे प्राण ! [जीवनदाता परमेश्वर] (क्रन्दाय) दहाड़ने के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार, (स्तनयित्नवे) बादल की गर्जन के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार है। (प्राण) हे प्राण ! [परमेश्वर] (विद्युते) बिजुली के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार, (प्राण) हे प्राण ! [परमेश्वर] (वर्षते) वर्षा के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर की दया को विचारकर ऐसा प्रयत्न करें कि वर्षासम्बन्धी सब क्रियाएँ सर्वथा उपकारी होवें ॥२॥इस मन्त्र का मिलान अथर्व० का० १ सू० १३ म० १ से करो ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(नमः) (ते) तुभ्यम् (प्राण) म० १। हे जीवनप्रद (क्रन्दाय) क्रदि आह्वाने रोदने च-पचाद्यच्। ध्वनिहिताय (स्तनियत्नवे) अ० १।१३।१। मेघगर्जनहिताय (विद्युते) अ० १।१३।१। विद्युद्धिताय (वर्षते) वृष्टिहिताय। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०३ यत्प्राण स्तनयित्नुनाभिक्रन्दत्योषधीः

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यत्प्रा॒ण स्त॑नयि॒त्नुना॑भि॒क्रन्द॒त्योष॑धीः।
प्र वी॑यन्ते॒ गर्भा॑न्दध॒तेऽथो॑ ब॒ह्वीर्वि जा॑यन्ते ॥

०३ यत्प्राण स्तनयित्नुनाभिक्रन्दत्योषधीः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. When breath with thunder roars at the herbs, they are impregnated
    (pra-vī), they receive embryos, then they are born many.
Notes

Ppp. makes up the material of our vss. 3 and 4 differently, giving first
4 a, b and 3 c, d, and then 3 a, b and 4 c, d. It reads
garbhaṁ in c, and vi jāyate in d. The comm. paraphrases pra
vīyante
with garbhaṁ gṛhṇanti ⌊cf. xii. 4. 37⌋. ⌊For “many” one might
better say ‘in great numbers.’⌋

Griffith

When Prana with a thunderous voice shouts his loud message to the plants, They straightway are impregnate, they conceive, and bear abundantly.

पदपाठः

यत्। प्रा॒णः। स्त॒न॒यि॒त्नुना॑। अ॒भि॒ऽक्रन्द॑ति। ओष॑धीः। प्र। वी॒य॒न्ते॒। गर्भा॑न्। द॒ध॒ते॒। अथो॒ इति॑। ब॒ह्वीः। वि। जा॒य॒न्ते॒। ६.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जब (प्राणः) प्राण [जीवनदाता परमेश्वर] (स्तनयित्नुना) बादल की गर्जन द्वारा (ओषधीः) ओषधियों [अन्न आदि को] (अभिक्रन्दति) बल से पुकारता है, [तब] वे (प्र) अच्छे प्रकार (वीयन्ते) गर्भवती होती हैं और (गर्भान्) गर्भों को (दधते) पुष्ट करती हैं, (अथो) फिर ही (बह्वीः) बहुत सी होकर (वि जायन्ते) उत्पन्न हो जाती हैं ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर के सामर्थ्य से सूर्य द्वारा मेघ से वर्षा और गर्जन होकर ग्रामों और वनों में अनेक ओषधें उगती हैं ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(यत्) यदा (प्राणः) म० १। जीवनदाता परमेश्वरः (स्तनयित्नुना) मेघध्वनिना (अभिक्रन्दति) सर्वत आह्वयति (ओषधीः) व्रीहियवाद्या वीरुधः (प्र) प्रकर्षेण (वीयन्ते) वी गतिव्याप्तिप्रजनकान्त्यसनखादनेषु। गर्भं गृह्णन्ति (गर्भान्) उदरस्थपदार्थान् (दधते) पोषयन्ति (अथो) अनन्तरमेव (बह्वीः) बह्व्यो बहुप्रकाराः (वि जायन्ते) विविधमुत्पद्यन्ते ॥

०४ यत्प्राण ऋतावागतेऽभिक्रन्दत्योषधीः

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यत्प्रा॒ण ऋ॒तावाग॑तेऽभि॒क्रन्द॒त्योष॑धीः।
सर्वं॑ त॒दा प्र मो॑दते॒ यत्किं च॒ भूम्या॒मधि॑ ॥

०४ यत्प्राण ऋतावागतेऽभिक्रन्दत्योषधीः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. When, the season having come, breath roars at the herbs, then all is
    delighted, whatever is upon the earth.
Notes

In d in our text, kiṁ is a misprint for kíṁ. With c, d is to
be compared the similar half-verse RV. v. 83. 9 c, d.

Griffith

When the due season hath arrived and Prana shouteth to herbs, Then all is joyful, yea, each thing upon the surface of the earth.

पदपाठः

यत्। प्रा॒णः। ऋ॒तौ। आऽग॑ते। अ॒भि॒ऽक्रन्द॑ति। ओष॑धीः। सर्व॑म्। त॒दा। प्र। मो॒द॒ते॒। यत्। किम्। च॒। भूम्या॑म्। अधि॑। ६.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जब (प्राणः) प्राण [जीवनदाता परमेश्वर] (ऋतौआगते) ऋतुकाल आने पर (ओषधीः) ओषधियों [अन्न आदि] को (अभिक्रन्दति) बल से पुकारता है, (तदा) तब (सर्वम्) सब [जगत्] (प्र मोदते) बड़ा आनन्द मानता है, (यत् किम् च) जो कुछ भी (भूम्याम् अधि) भूमि पर है ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - उचित समय पर वर्षा होने से सब चर और अचर जगत् बल प्राप्त करके प्रसन्न होता है ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(यत्) यदा (प्राणः) म० १ (ऋतौ) ऋतुकाले वर्षतौ (आगते) प्राप्ते (अभिक्रन्दति) (ओषधीः) म० ३। (सर्वम्) चराचरं जगत् (तदा) (प्र मोदते) अत्यन्तं हृष्यति (यत्) (किम् च) किमपि (भूम्याम्) (अधि) उपरि ॥

०५ यदा प्राणो

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य॒दा प्रा॒णो अ॒भ्यव॑र्षीद्व॒र्षेण॑ पृथि॒वीं म॒हीम्।
प॒शव॒स्तत्प्र मो॑दन्ते॒ महो॒ वै नो॑ भविष्यति ॥

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Whitney
Translation
  1. When breath hath rained with rain upon the great earth, then the
    cattle are delighted: “verily there will be greatness for us.”
Notes

⌊Cf. vs. 17 below.⌋ Ppp. has, for a, b: yadā prāṇo abhyakrandīd
varṣeṇa stanayitnunā
. ⌊Pāda d doubtless means precisely the same
thing as the English slang, ’that’ll be great for us!’⌋

Griffith

When Prana hath poured down his flood of rain upon the mighty land. Cattle and beasts rejoice thereat: Now great will he our strength, they cry.

पदपाठः

य॒दा। प्रा॒णः। अ॒भि॒ऽअव॑र्षीत्। व॒र्षेण॑। पृ॒थि॒वीम्। म॒हीम्। प॒शवः॑। तत्। प्र। मो॒द॒न्ते॒। महः॑। वै। नः॒। भ॒वि॒ष्य॒ति॒। ६.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यदा) जब (प्राणः) [जीवनदाता परमेश्वर] ने (वर्षेण) वर्षा द्वारा (महीम्) विशाल (पृथिवीम्) पृथिवी को (अभ्यवर्षीत्) सींच दिया, (तत्) तब (पशवः) जीव-जन्तु (प्र मोदन्ते) बड़ा हर्ष मनाते हैं−“(नः) हमारी (महः) बढ़ती (वै) अवश्य (भविष्यति) होगी ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर की शक्ति से वृष्टि होने पर सब प्राणी बलवृद्धि कर के उत्सव मनाते हैं ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(यदा) यस्मिन् काले (प्राणः) म० १। जीवनदाता परमेश्वरः (अभ्यवर्षीत्) अभिषिक्तवान् (पृथिवीम्) भूमिम्। (महीम्) विशालाम् (पशवः) सर्वे जीवजन्तवः (तत्) तदा (प्रमोदन्ते) (प्रहृष्यन्ति) (महः) वर्धनम् (वै) खलु (नः) अस्माकम् (भविष्यति) ॥

०६ अभिवृष्टा ओषधयः

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अ॒भिवृ॑ष्टा॒ ओष॑धयः प्रा॒णेन॒ सम॑वादिरन्।
आयु॒र्वै नः॒ प्राती॑तरः॒ सर्वा॑ नः सुर॒भीर॑कः ॥

०६ अभिवृष्टा ओषधयः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The herbs, being rained on, have talked with breath: “verily thou
    hast extended our life-time; thou hast made us all fragrant.”
Notes

Ppp. reads in b avāciraṁ, and in c acīcarat.

Griffith

Watered by Prana’s rain the plants have raised their voices in accord: Thou hast prolonged our life, they say, and given fragrance to us all.

पदपाठः

अ॒भिऽवृ॑ष्टाः। ओष॑धयः। प्रा॒णेन॑। सम्। अ॒वा॒दि॒र॒न्। आयुः॑। वै। नः॒। प्र। अ॒ती॒त॒रः॒। सर्वाः॑। नः॒। सु॒र॒भीः। अ॒कः॒। ६.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अभिवृष्टाः) सींची हुई (ओषधयः) ओषधें [अन्न आदि] (प्राणेन) प्राण [जीवनदाता परमेश्वर] से (सम्) मिलकर (अवादिरन्) बोलीं−“(नः) हमारी (आयुः) आयु को (वै) निश्चय करके (प्र अतीतरः) तूने बढ़ाया है, (नः सर्वाः) हम सबको (सुरभीः) सुगन्धित (अकः) तूने बनाया है ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वृष्टि से सब अन्न वृक्ष आदि पदार्थ उत्पन्न और पुष्ट होकर संसार का उपकार करते हुए परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(अभिवृष्टाः) अभिषिक्ताः (ओषधयः) अन्नादिपदार्थाः (प्राणेन) म० १। जीवनप्रदेन परमेश्वरेण (सम्) मिलित्वा (अवादिरन्) भासनोपसंभाषाज्ञानयत्नविमत्युपमन्त्रणेषु वदः। पा–० १।३।४७। आत्मनेपदम्। भाषणं कृतवत्यः (आयुः) जीवनम् (वै) अवश्यम् (नः) अस्माकम् (प्रातीतरः) त्वं वर्धितवानसि (सर्वाः) (नः) अस्मान् (सुरभीः) सु+रभ-राभस्ये-इन्। सुगन्धयुक्ताः (अकः) कृतवानसि ॥

०७ नमस्ते अस्त्वायते

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नम॑स्ते अस्त्वाय॒ते नमो॑ अस्तु पराय॒ते।
नम॑स्ते प्राण॒ तिष्ठ॑त॒ आसी॑नायो॒त ते॒ नमः॑ ॥

०७ नमस्ते अस्त्वायते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Homage be to thee coming, homage be to [thee] going away; homage to
    thee, O breath, standing; to thee sitting also [be] homage.
Notes

Compare 2. 15 above, which differs only in the vocative used. Ppp. puts
the verse after our 8, and reads te ‘stu in a, and namo ‘stu in
b; a few of SPP’s authorities make the same combinations.

Griffith

Homage to thee when coming nigh, homage to thee departing hence! Homage, O Prana, be to thee when standing and when sitting still.

पदपाठः

नमः॑। ते॒। अ॒स्तु॒। आ॒ऽय॒ते। नमः॑। अ॒स्तु॒। प॒रा॒ऽय॒ते। नमः॑। ते॒। प्रा॒ण॒। तिष्ठ॑ते। आसी॑नाय। उ॒त। ते॒। नमः॑। ६.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (आयते) आते हुए [पुरुष] के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार (अस्तु) हो, (परावते) जाते हुए के हित के लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) हो। (प्राण) हे प्राण ! [जीवनदाता परमेश्वर] (तिष्ठते) खड़े होते हुए के हित के लिये (नमः) नमस्कार, (उत) और (आसीनाय) बैठे हुए के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार (अस्तु) हो ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य अपनी चेष्टाओं से उपकार लेता हुआ परमेश्वर का धन्यवाद करे ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(नमः) नमस्कारः (ते) तुभ्यम् (अस्तु) भवतु (आयते) आगच्छते पुरुषाय (परायते) बहिर्गच्छते (प्राण) हे जीवनप्रद परमेश्वर (तिष्ठते) स्थितिं कुर्वते (आसीनाय) उपविष्टपुरुषहिताय (उत) अपि च। अन्यद् गतम् ॥

०८ नमस्ते प्राण

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नम॑स्ते प्राण प्राण॒ते नमो॑ अस्त्वपान॒ते।
प॑रा॒चीना॑य ते॒ नमः॑ प्रती॒चीना॑य ते॒ नमः॒ सर्व॑स्मै त इ॒दं नमः॑ ॥

०८ नमस्ते प्राण ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Homage to thee breathing, O breath; homage be to [thee] making
    expiration; homage to thee turned away, homage to thee turned toward
    [us]; to the whole of thee [be] this homage.
Notes

Ppp. reads in b namo ‘stu, and makes parācīnāya and
pratīcīnāya change places in c, d.

Griffith

Homage to thee at every breath thou drawest in and sendest forth! Homage to thee when turned away, homage to thee seen face to face! This reverence be to all of thee!

पदपाठः

नमः॑। ते॒। प्रा॒ण॒। प्रा॒ण॒ते। नमः॑। अ॒स्तु॒। अ॒पा॒न॒ते। प॒रा॒चीना॑य। ते॒। नमः॑। प्र॒ती॒चीना॑य। ते॒। नमः॑। सर्व॑स्मै। ते॒। इ॒दम्। नमः॑। ६.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राण) हे प्राण ! [जीवनदाता परमेश्वर] (प्राणते) श्वास लेते हुए [पुरुष] के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार, (अपानते) प्रश्वास लेते हुए के हित के लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे। (पराचीनाय) बाहिर जाते हुए [पुरुष] के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार (प्रतीचीनाय) सन्मुख जाते हुए के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार, (सर्वस्मै) सबके हित के लिये (ते) तुझे (इदम्) यह (नमः) नमस्कार हो ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रत्येक श्वास-प्रश्वास आदि चेष्टा करते हुए संसार का हित करके परमेश्वर को धन्यवाद देवे ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(नमः) (ते) तुभ्यम् (प्राण) म० १। हे परमेश्वर (प्राणते) श्वसते पुरुषाय (अपानते) प्रश्वासं कुर्वते (पराचीनाय) विभाषाञ्चेरदिक्स्त्रियाम्। पा० ५।४।८। इति स्वार्थिकः खः। पराञ्चनाय। बहिर्गच्छते पुरुषाय (प्रतीचीनाय) प्रतिमुखं सम्मुखं गच्छते पुरुषाय (सर्वस्मै) सर्वहिताय (इदम्) क्रियमाणम् (नमः) नमस्कारः। अन्यद् गतम् ॥

०९ या ते

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या ते॑ प्राण प्रि॒या त॒नूर्यो ते॑ प्राण॒ प्रेय॑सी।
अथो॒ यद्भे॑ष॒जं तव॒ तस्य॑ नो धेहि जी॒वसे॑ ॥

०९ या ते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The dear body that is thine, O breath, and the dearer one that is
    thine, O breath, likewise what remedy is thine, assign thou of it to us
    in order to life (jīvás).
Notes

For in b (to be read yā́ u) the comm. has yāu, regarding it
as dual.

Griffith

Prana, communicate to us thy dear, thy very dearest form. Whatever healing balm thou hast, give us thereof that we may live.

पदपाठः

या। ते॒। प्रा॒ण॒। प्रि॒या। त॒नूः। यो इति॑। ते॒। प्रा॒ण॒। प्रेय॑सी। अथो॒ इति॑। यत्। भे॒ष॒जम्। तव॑। तस्य॑। नः॒। धे॒हि॒। जी॒वसे॑। ६.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राण) हे प्राण ! [जीवनदाता परमेश्वर] (ते) तेरी (या) जो (प्रिया) प्रीति करनेवाली (यो) और जो, (प्राण) हे प्राण ! (ते) तेरी (प्रेयसी) अधिक प्रीति करनेवाली (तनूः) उपकार क्रिया है। (अथो) और भी (यत्) जो (तव) तेरा (भेषजम्) भयनिवारक कर्म है, (तस्य) उसका (नः) हमारे (जीवसे) जीवन के लिये (धेहि) दान कर ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमेश्वर के उपकारों को ध्यान में रखकर कार्य करते हैं, वह अपना जीवन बढ़ाते हैं ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(या) (ते) तव (प्राण) (प्रिया) प्रीतिकरी (तनूः) तन उपकारे-ऊ। उपकारक्रिया (यो) या-उ। या च (प्रेयसी) प्रिय-ईयसुन्, प्रादेशः। प्रियतरा (अथो) अपि च (भेषजम्) भयनिवारकं कर्म (तस्य) (नः) अस्माकम् (धेहि) डुधाञ् दाने। दानं कुरु (जीवसे) जीवनवर्धनाय। अन्यद् गतम् ॥

१० प्राणः प्रजा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

प्रा॒णः प्र॒जा अनु॑ वस्ते पि॒ता पु॒त्रमि॑व प्रि॒यम्।
प्रा॒णो ह॒ सर्व॑स्येश्व॒रो यच्च॑ प्रा॒णति॒ यच्च॒ न ॥

१० प्राणः प्रजा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Breath clothes (anu-vas) human beings (prajā́), as a father a
    dear son; breath is lord of all, both what breathes and what does not.
Notes

Ppp. combines prajā ’nu in a, and in d reads twice yas for
yat. Prāṇáti in d remains undivided in pada-text by Prāt. iv.
57.

Griffith

Prana robes living creatures as a father his beloved son. Prana is sovran Lord of all, of all that breathes not, all that breathes

पदपाठः

प्रा॒णः। प्र॒ऽजाः। अनु॑। व॒स्ते॒। पि॒ता। पु॒त्रम्ऽइ॑व। प्रि॒यम्। प्रा॒णः। ह॒। सर्व॑स्‍य। ई॒श्व॒रः। यत्। च॒। प्रा॒णति॑। यत्। च॒। न। ६.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राणः) प्राण [जीवनदाता परमेश्वर] (प्रजाः) सब उत्पन्न प्राणियों को (अनु) निरन्तर (वस्ते) ढक लेता है, (इव) जैसे (पिता) पिता (प्रियम्) प्रिय (पुत्रम्) पुत्र को [वस्त्र आदि से]। (प्राणः) प्राण [परमेश्वर] (ह) ही (सर्वस्य) सबका (ईश्वरः) ईश्वर है, (यत् च) जो कुछ भी (प्राणति) श्वास लेता है, (यत् च) और जो (न) नहीं श्वास लेता है ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य जगत्स्वामी परमेश्वर को सब चर और अचर सृष्टि में व्यापक जानकर अपना ऐश्वर्य बढ़ावे ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(प्राणः) जीवनप्रदः परमेश्वरः (प्रजाः) उत्पद्यमाना मनुष्याद्याः (अनु) अनुक्रमेण (वस्ते) आच्छादयति (पिता) जनकः (पुत्रम्) दुःखात् त्रातारं सुतम् (इव) यथा (प्रियम्) स्निग्धम् (ह) एव (सर्वस्य) चराचरस्य (ईश्वरः) म० १। स्वामी (यत्) यत्किंचिज् जङ्गमात्मकं वस्तु (प्राणति) प्राणिति। प्राणव्यापारं करोति (यत् च) स्थावरात्मकम् (न) निषेधे ॥

११ प्राणो मृत्युः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

प्रा॒णो मृ॒त्युः प्रा॒णस्त॒क्मा प्रा॒णं दे॒वा उपा॑सते।
प्रा॒णो ह॑ सत्यवा॒दिन॑मुत्त॒मे लो॒क आ द॑धत् ॥

११ प्राणो मृत्युः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Breath [is] death, breath takmán; breath the gods worship
    (upa-ās); breath may set the truth-speaker in the highest world.
Notes

Ppp. has for a prāṇo mṛtyuṣ prāṇo amṛtaṁ ⌊cf. RV. x. 121. 2⌋,
which is less devoid of sense; at the end it reads lokaṁ dadhat.

Griffith

Prana is Fever, he is Death. Prana is worshipped by the Gods. Prana sets in the loftiest sphere the man who speaks the words of truth.

पदपाठः

प्रा॒णः। मृ॒त्युः। प्रा॒णः। त॒क्मा। प्रा॒णम्। दे॒वाः। उप॑। आ॒स॒ते॒। प्रा॒णः। ह॒। स॒त्य॒ऽवा॒दिन॑म्। उ॒त्ऽत॒मे। लो॒के। आ। द॒ध॒त्। ६.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राणः) प्राण [जीवनदाता परमेश्वर] (मृत्युः) मृत्यु और (प्राणः) प्राण (तक्मा) जीवन को कष्ट देनेवाला [ज्वर आदि रोग] है, (प्राणम्) प्राण की (देवाः) विद्वान् लोग (उप आसते) उपासना करते हैं। (प्राणः) प्राण [जीवनदाता परमेश्वर] (ह) ही (सत्यवादिनम्) सत्यवादी को (उत्तमे लोके) उत्तम लोक पर (आ दधत्) स्थापित कर सकता है ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ईश्वरीय नियम से विरुद्ध चलने पर मनुष्य मृत्यु और रोग को पाते हैं। विद्वान् लोग इसलिये परमात्मा की उपासना करते और जितेन्द्रिय होकर अपने श्वास-प्रश्वास को वश में करते हैं कि वे सत्यवादी होकर श्रेष्ठ पद पावें ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(प्राणः) जीवनप्रदः परमेश्वरः (मृत्युः) मरणस्य कर्त्ता (तक्मा) अ० १।२५।१। कृच्छ्रजीवनकरो ज्वरादिरोगः (देवाः) विद्वांसः (उपासते) सेवन्ते (ह) एव (सत्यवादिनम्) यथार्थवक्तारम् (उत्तमे) उत्कृष्टे (लोके) दर्शनीये स्थाने (आ दधत्) लेटि रूपम्। स्थापयेत् ॥

१२ प्राणो विराट्प्राणो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

प्रा॒णो वि॒राट्प्रा॒णो देष्ट्री॑ प्रा॒णं सर्व॒ उपा॑सते।
प्रा॒णो ह॒ सूर्य॑श्च॒न्द्रमाः॑ प्रा॒णमा॑हुः प्र॒जाप॑तिम् ॥

१२ प्राणो विराट्प्राणो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Breath is virā́j, breath the directress; breath all worship; breath
    is the sun, the moon; breath they call Prajāpati.
Notes

Ppp. reads prāṇo sarvam ⌊sandhi!⌋ for prāṇaṁ sarve in b, and its
c is prāṇo ‘gniś candramās sūryaṣ. The comm. explains deṣṭrī as
= svasvavyāpāreṣu sarveṣām prerayitrī paradevatā.

Griffith

Prana is Deshtri, and Viraj Prana is reverenced by all. He is the Sun, he is the Moon. Prana is called Prajapati.

पदपाठः

प्रा॒णः। वि॒ऽराट्। प्रा॒णः। देष्ट्री॑। प्रा॒णम्। सर्वे॑। उप॑। आ॒स॒ते॒। प्रा॒णः। ह॒। सूर्यः॑। च॒न्द्रमा॑। प्रा॒णम। आ॒हुः॒। प्र॒जाऽप॑तिम्। ६.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राणः) प्राण [जीवनदाता परमेश्वर] (विराट्) विराट् [विविध प्रकार ईश्वर] और (प्राणः) प्राण [परमेश्वर] (देष्ट्री) मार्गदर्शिका शक्ति है, (प्राणम्) प्राण [परमेश्वर] की (सर्वे) सब (उप आसते) उपासना करते हैं (प्राणः) प्राण [परमेश्वर] (ह) ही (सूर्यः) प्रेरणा करनेवाला और (चन्द्रमाः) आनन्ददाता है, (प्राणम्) प्राण [परमेश्वर] को (प्रजापतिम्) प्रजापति [सृष्टिपालक] (आहुः) वे [विद्वान्] कहते हैं ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब मनुष्य परमात्मा की उपासना करके विविध प्रकार समर्थ होकर आनन्द पाते हैं ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(प्राणः) म० १ (विराट्) विविधेश्वरः (देष्ट्री) दिश दाने आज्ञापने च-तृच्, ङीप्। मार्गदर्शिका शक्तिः (प्राणम्) परमात्मानम् (सर्वे) जनाः (उपासते) सेवन्ते (ह) एव (सूर्यः) सर्वप्रेरकः परमेश्वरः (चन्द्रमाः) आह्लादकरः (प्राणम्) (आहुः) कथयन्ति विद्वांसः (प्रजापतिम्) सृष्टिपालकम् ॥

१३ प्राणापानौ व्रीहियवावनड्वान्प्राण

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प्रा॑णापा॒नौ व्री॑हिय॒वाव॑न॒ड्वान्प्रा॒ण उ॑च्यते।
यवे॑ ह प्रा॒ण आहि॑तोऽपा॒नो व्री॒हिरु॑च्यते ॥

१३ प्राणापानौ व्रीहियवावनड्वान्प्राण ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Breath-and-expiration are rice-and-barley; breath is called the
    draft-ox; breath is set in barley; expiration is called rice.
Notes

Ppp. combines prāṇā ”hito in c. Our P.M.W. read yávena for yáve
ha
in c.

Griffith

Both breaths are rice and barley, and Prana is called the toiling ox: In barley is the inbreath laid, and rice is named the outward breath.

पदपाठः

प्रा॒णा॒पा॒नौ। व्री॒हि॒ऽय॒वौ। अ॒न॒ड्वान्। प्रा॒णः। उ॒च्य॒ते॒। यवे॑। ह॒। प्रा॒णः। आऽहि॑तः। अ॒पा॒नः। व्री॒हिः। उ॒च्य॒ते॒। ६.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राणापानौ) प्राण और अपान [श्वास और प्रश्वास] (व्रीहियवौ) चावल और जौ [के समान पुष्टिकारक] हैं, (प्राणः) प्राण [जीवनदाता परमेश्वर] (अनड्वान्) जीवन का चलानेवाला (उच्यते) कहा जाता है। (यवे) जौ में (ह) भी (प्राणः) प्राण [श्वासवायु] (आहितः) रक्खा हुआ है, (अपानः) अपान [प्रश्वास वायु] (व्रीहिः) चावल (उच्यते) कहा जाता है ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर ने प्राणियों के भीतर श्वास-प्रश्वास को चावल जौ अन्न आदि के समान पुष्टिकारक बनाया है ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(प्राणापानौ) प्राणस्य वृत्तिविशेषौ। श्वासप्रश्वासौ (व्रीहियवौ) अ० ६।१४०।२। अन्नविशेषौ (अनड्वान्) अ० ४।११।१। अनः+वह प्रापणे-क्विप्। अनसो जीवनस्य वाहकः संचालकः (प्राणः) (उच्यते) (यवे) (ह) एव (आहितः) स्थापितः (अपानः) प्रश्वासः (व्रीहिः) (उच्यते) ॥

१४ अपानति प्राणति

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अपा॑नति॒ प्राण॑ति॒ पुरु॑षो॒ गर्भे॑ अन्त॒रा।
य॒दा त्वं प्रा॑ण॒ जिन्व॒स्यथ॒ स जा॑यते॒ पुनः॑ ॥

१४ अपानति प्राणति ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. A man breathes out (ápānati), breathes (prā́ṇati) within the
    womb; when, O breath, thou quickenest, then he is born again.
Notes

Ppp. reads, in b and beyond: garbhe antaḥ: yā vā tvaṁ prāṇa jinvaḥ
sa damba vāyase tvat
. The comm. has atho in d.

Griffith

The human infant in the womb draws vital breath and sends it Lout: When thou, O Prana, quickenest the babe it springs anew to life.

पदपाठः

अप॑। अ॒न॒ति॒। प्र। अ॒न॒ति॒। पुरु॑षः। गर्भे॑। अ॒न्त॒रा। य॒दा। त्वम्। प्रा॒ण॒। जिन्व॑सि। अथ॑। सः। जा॒य॒ते॒। पुनः॑। ६.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • निचृदनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुषः) पुरुष (गर्भे अन्तरा) गर्भ के भीतर (प्र अनति) श्वास लेता है और (अप अनति) प्रश्वास [बाहिर को श्वास] लेता है। (यदा) जब (त्वम्) तू, (प्राण) हे प्राण ! [जीवनदाता परमेश्वर] (जिन्वसि) तृप्त करता है, (अथ) तब (सः) वह [पुरुष] (पुनः) फिर (जायते) उत्पन्न होता है ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर के सामर्थ्य से प्राणी गर्भ के भीतर श्वास-प्रश्वास लेता और पूरे दिन होने पर उत्पन्न होता है ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४−(अपानति) प्रश्वसिति (प्राणति) प्राणव्यापारं करोति (पुरुषः) प्राणी (गर्भे) गर्भाशये (अन्तरा) मध्ये (यदा) यस्मिन्काले (त्वम्) (प्राण) हे जीवनप्रद परमेश्वर (जिन्वसि) जिवि प्रीणने। प्रीणयसि। सन्तोषयसि। तर्पयसि (अथ) तदा (सः) पुरुषः (जायते) उत्पद्यते (पुनः) पश्चात् ॥

१५ प्राणमाहुर्मातरिश्वानं वातो

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प्रा॒णमा॑हुर्मात॒रिश्वा॑नं॒ वातो॑ ह प्रा॒ण उ॑च्यते।
प्रा॒णे ह॑ भू॒तं भव्यं॑ च प्रा॒णे सर्वं॒ प्रति॑ष्ठितम् ॥

१५ प्राणमाहुर्मातरिश्वानं वातो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Breath they call Mātariśvan; breath is called the wind; in breath
    what has been and what will be, in breath is all established
    (prátiṣṭhita).
Notes

Ppp. has at the end samāhitāḥ.

Griffith

The name of Prana is bestowed on Matarisvan and on Wind. On Prana, past and future, yea, on Prana everything depends.

पदपाठः

प्रा॒णम्। आ॒हुः॒। मा॒त॒रिश्वा॑नम्। वातः॑। ह॒। प्रा॒णः। उ॒च्य॒ते॒। प्रा॒णे। ह॒। भू॒तम्। भव्य॑म्। च॒। प्रा॒णे। सर्व॑म्। प्रति॑ऽस्थितम्। ६.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • भुरिगनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राणम्) प्राण [जीवनदाता परमेश्वर] को (मातरिश्वानम्) आकाश में व्यापक [सूत्रात्मा वायु के समान] (आहुः) वे बताते हैं, (वातः) वायु (ह) भी (प्राणः) [जीवनदाता परमेश्वर] (उच्यते) कहा जाता है। (प्राणे) प्राण [परमेश्वर] में (ह) ही (भूतम्) बीता हुआ (च) और (भव्यम्) होनहार [वस्तु] और (प्राणे) प्राण [परमेश्वर] में (सर्वम्) सब [जगत्] (प्रतिष्ठितम्) टिका हुआ है ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - महात्मा लोग अनुभव करते हैं कि परमात्मा ही सर्वशक्तिमान्, सर्वेश्वर और सर्वव्यापक है ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १५−(प्राणम्) जीवनप्रदं परमेश्वरम् (आहुः) कथयन्ति (मातरिश्वानम्) अ० ५।१०।८। मातरि मानकर्तरि अन्तरिक्षे व्यापकं सूत्रात्मरूपम् (वातः) गमनशीलो वायुः (ह) अपि (प्राणः) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। विभक्तेः सुः। प्राणे। जीवनप्रदे परमेश्वरे (उच्यते) कथ्यते (प्राणे) परमात्मनि (ह) एव (भूतम्) व्यतीतं पदार्थजातम् (भव्यम्) भविष्यत्। उत्पत्स्यमानं वस्तु (च) (प्राणे) (सर्वम्) समस्तं जगत् (प्रतिष्ठितम्) आश्रितम् ॥

१६ आथर्वणीराङ्गिरसीर्दैवीर्मनुष्यजा उत

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आ॑थर्व॒णीरा॑ङ्गिर॒सीर्दै॒वीर्म॑नुष्य॒जा उ॒त।
ओष॑धयः॒ प्र जा॑यन्ते य॒दा त्वं प्रा॑ण॒ जिन्व॑सि ॥

१६ आथर्वणीराङ्गिरसीर्दैवीर्मनुष्यजा उत ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. They of the Atharvans, they of the An̄girases, they of the gods,
    also those born of men—the herbs are generated (pra-jā), when thou, O
    breath, quickenest.
Notes

Ppp. has ca yās instead of uta at end of b, and, for c,
sarvā pra modanty oṣadhīḥ. The adjectives are feminine, denoting the
herbs.

Griffith

All herbs and plants spring forth and grow when thou, O Prana quickenest, Plants of Atharvan, Angiras, plants of the deities and men.

पदपाठः

आ॒थ॒र्व॒णीः। आ॒ङ्गि॒र॒सीः। दैवीः॑। म॒नु॒ष्य॒ऽजाः। उ॒त। ओष॑धयः। प्र। जा॒य॒न्ते॒। य॒दा। त्वम्। प्रा॒ण॒। जिन्व॑सि। ६.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (आथर्वणीः) निश्चल स्वभाववाले महर्षियों की प्रकाशित की हुई और (आङ्गिरसीः) विज्ञानियों की बताई हुई (दैवीः) देव [मेघ] से उत्पन्न (उत) और (मनुष्यजाः) मनुष्यों से उत्पन्न (ओषधयः) ओषधें (प्र जायन्ते) उत्पन्न हो जाती हैं, (यदा) जब (त्वम्) तू, (प्राण) हे प्राण ! [जीवनदाता परमेश्वर] [उन को] (जिन्वसि) तृप्त करता है ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मेघ द्वारा स्वयं उत्पन्न और मनुष्य द्वारा खेती आदि से उत्पन्न अन्न और ओषधें परमेश्वर के सामर्थ्य से वृष्टि होने पर उत्पन्न होती हैं, जिनका प्रचार अनुभवी महात्मा लोग संसार में करते हैं ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६−(आथर्वणीः) अथर्वा व्याख्यातः-अ० ४।१।७। तेन प्रोक्तम्। पा० ४।३।१०१। इत्यण्, ङीप् जसि पूर्वसवर्णदीर्घः। अथर्वभिर्निश्चलबुद्धिभिः प्रकाशिताः (आङ्गिरसीः) अङ्गिरा व्याख्यातः-अ० २।१२।४। पुनः पूर्ववत् सिद्धिः। अङ्गिरोभिर्विज्ञानिभिः प्रोक्ताः (दैवीः) अ० १।१९।२। देव-अञ्, अन्यत् पूर्ववत् साधु। देवाद् मेघादागता व्युत्पन्नाः (मनुष्यजाः) क्षेत्राद् मनुष्येभ्य उत्पन्नाः (ओषधयः) नानाविधा अन्नाद्याः (प्रजायन्ते) प्रकर्षेणोत्पद्यन्ते। अन्यद्गतम्-म० १४ ॥

१७ यदा प्राणो

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य॒दा प्रा॒णो अ॒भ्यव॑र्षीद्व॒र्षेण॑ पृथि॒वीं म॒हीम्।
ओष॑धयः॒ प्र जा॑य॒न्तेऽथो॒ याः काश्च॑ वी॒रुधः॑ ॥

१७ यदा प्राणो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. When breath hath rained with rain on the great earth, the herbs are
    generated, likewise whatever plants [there are].
Notes

Compare vs. 5 above, of which this is an imitation; Ppp. makes it yet
closer, by reading modante for jāyante in c. Some of the
saṁhitā-mss. read jāyante ‘tho (losing the accent of átho) in
c-d.

Griffith

When Prana hath poured down his flood of rain upon the mighty earth, The plants are wakened into life, and every herd that grows on ground.

पदपाठः

य॒दा। प्रा॒णः। अ॒भि॒ऽअव॑र्षीत्। व॒र्षेण॑। पृ॒थि॒वीम्। म॒हीम्। ओष॑धयः। प्र। जा॒य॒न्ते॒। अथो॒ इति॑। याः। काः। च॒। वी॒रुधः॑। ६.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यदा) जब (प्राणः) प्राण [जीवनदाता परमेश्वर] ने (वर्षेण) वर्षा द्वारा (महीम्) विशाल (पृथिवीम्) पृथिवी को (अभ्यवर्षीत्) सींच दिया, (अथो) तब ही (ओषधयः) अन्न आदि पदार्थ (च) और (याः काः) जो कोई (वीरुधः) जड़ी-बूटी हैं, वे भी (प्र जायन्ते) बहुत उत्पन्न होती हैं ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर के नियम से वृष्टि होने पर ग्राम्य और आरण्य पदार्थ उत्पन्न होकर संसार का उपकार करते हैं ॥१७॥इस मन्त्र का पूर्वार्ध ऊपर मन्त्र ५ में आया है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७−पूर्वार्धर्चो व्याख्यातः-म० ५ (ओषधयः) अन्नादिपदार्थाः (प्र जायन्ते) (अथो) अनन्तरमेव (याः) (काः) (च) (वीरुधः) अ० १।३२।१। विरोहणशीला लतादयः ॥

१८ यस्ते प्राणेदम्

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यस्ते॑ प्राणे॒दं वे॑द॒ यस्मिं॑श्चासि॒ प्रति॑ष्ठितः।
सर्वे॒ तस्मै॑ ब॒लिं ह॑रान॒मुष्मिं॑ल्लो॒क उ॑त्त॒मे ॥

१८ यस्ते प्राणेदम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He who knoweth this of thee, O breath, and in whom thou art
    established—to him shall all bring tribute in yon highest world.
Notes

Ppp. separates prāṇa idaṁ in a.

Griffith

The man who knows this truth of thee, O Prana, and what bears thee up To him will all present their gift of tribute in that loftiest will all present their gift of tribute in that loftiest world.

पदपाठः

यः। ते॒। प्रा॒ण॒। इ॒दम्। वेद॑। यस्मि॑न्। च॒। असि॑। प्रति॑ऽस्थितः। सर्वे॑। तस्मै॑। ब॒लिम्। ह॒रा॒न्। अ॒मुष्मि॑न्। लो॒के। उ॒त्ऽत॒मे। ६.१८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राण) हे प्राण ! [जीवनदाता परमेश्वर] (यः) जो [पुरुष] (ते) तेरे (इदम्) इस [महत्त्व] को (वेद) जानता है, (च) और (यस्मिन्) जिस [पुरुष] में तू (प्रतिष्ठितः) दृढ़ ठहरा हुआ (असि) है। (सर्वे) सब [प्राणी] (अमुष्मिन्) उस (उत्तमे) उत्तम (लोके) लोक [स्थान] पर [वर्तमान] (तस्मै) उस [पुरुष] के लिये (बलिम्) बलि [उपहार] (हरान्) लावें ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमेश्वर के महत्त्व को साक्षात् करके उसे अपने हृदय में दृढ़ करता है, वह पुरुष संसार में सबसे उच्च स्थान पाता है ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १८−(यः) पुरुषः (ते) तव (प्राण) (इदम्) महत्त्वम् (वेद) जानाति (यस्मिन्) पुरुषे (च) (असि) (प्रतिष्ठितः) दृढं स्थितः (सर्वे) प्राणिनः (तस्मै) पुरुषाय (बलिम्) उपहारम् (हरान्) हरतेर्लेटि आडागमः। इतश्च लोपः परस्मैपदेषु। पा० ३।४।९७। इकारलोपः, संयोगान्तलोपः। हरन्तु प्रापयन्तु (अमुष्मिन्) तस्मिन् प्रसिद्धे (लोके) स्थाने वर्तमानाय (उत्तमे) श्रेष्ठे ॥

१९ यथा प्राण

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यथा॑ प्राण बलि॒हृत॒स्तुभ्यं॒ सर्वाः॑ प्र॒जा इ॒माः।
ए॒वा तस्मै॑ ब॒लिं ह॑रा॒न्यस्त्वा॑ शृ॒णव॑त्सुश्रवः ॥

१९ यथा प्राण ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. As, O breath, all these human beings (prajā́) are tribute-bearers
    to thee, so shall they bring tribute to him who shall hear thee, O thou
    of good report (suśrávas).
Notes

Ppp. has for d yas tvā śuśrāva śuśruvaḥ; and the comm. also reads
śuśruvaḥ. ⌊With this vs., cf. Praśna Upanishad, ii. 7.⌋

Griffith

As all these living creatures are thy tributaries, Prana, so Shall they bring tribute unto him who hears thee with attentive ears.

पदपाठः

यथा॑। प्रा॒ण॒। ब॒लि॒ऽहृतः॑। तुभ्य॑म्। सर्वाः॑। प्र॒ऽजाः। इ॒माः। ए॒व। तस्मै॑। ब॒लिम्। ह॒रा॒न्। यः। त्वा॒। शृ॒णव॑त्। सु॒ऽश्र॒वः॒। ६.१९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राण) हे प्राण ! [परमेश्वर] (यथा) जैसे (तुभ्यम्) तेरे लिये (इमाः) यह (सर्वाः) सब (प्रजाः) प्रजाएँ (बलिहृतः) भक्तिरूप उपहार देनेवाली हैं, (एव) वैसे ही (तस्मै) उस [पुरुष] के लिये (बलिम्) बलि [उपहार] (हरान्) वे लावें, (यः) जो पुरुष, (सुश्रवः) हे बड़ी कीर्तिवाले [परमेश्वर] (त्वा) तुझको (शृणवत्) सुने ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर की आज्ञा माननेवाला पुरुष सब प्राणियों को अपने वश में कर लेता है ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १९−(यथा) येन प्रकारेण (प्राण) (बलिहृतः) बलेर्भक्तिरूपस्योपहारस्य हर्त्र्यः प्रापिकाः (तुभ्यम्) (सर्वाः) (प्रजाः) उत्पन्नाः प्राणिनः (इमाः) दृश्यमानाः (एव) तथैव (तस्मै) पुरुषाय (बलिम्) उपहारम् (हरान्) म० १८ (यः) पुरुषः (त्वा) त्वाम् (शृणवत्) लेटि, अडागमः। शृणुयात् (सुश्रवः) श्रु श्रवणे-असुन्। हे बहुकीर्त्ते ॥

२० अन्तर्गर्भश्चरति देवतास्वाभूतो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॒न्तर्गर्भ॑श्चरति दे॒वता॒स्वाभू॑तो भू॒तः स उ॑ जायते॒ पुनः॑।
स भू॒तो भव्यं॑ भवि॒ष्यत्पि॒ता पु॒त्रं प्र वि॑वेशा॒ शची॑भिः ॥

२० अन्तर्गर्भश्चरति देवतास्वाभूतो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He moves, an embryo, within the divinities; having come into being
    (? ā́bhūta), having been (bhūtá), he is born again; he, having been,
    entered with might (śácībhis) what is to be, what will be, [as] a
    father a son.
Notes

The understanding of this very obscure verse is not helped by the comm.,
and Ppp. offers no variants. The comm. reads bhūtam instead of
bhavyam in c. A part of the mss. read viveśa (not -śā) in
d.

Griffith

Filled with a babe, mid deities he wanders: grown; near at hand, he springs again to being. That Father, grown the present and the future, hath past into the son with mighty powers.

पदपाठः

अ॒न्तः। गर्भः॑। च॒र॒ति॒। दे॒वता॑सु। आऽभू॑तः। भू॒तः। सः। ऊं॒ इति॑। जा॒य॒ते॒। पुनः॑। सः। भू॒तः। भव्य॑म्। भ॒वि॒ष्यत्। पि॒ता। पु॒त्रम्। प्र। वि॒वे॒श॒। शची॑भिः। ६.२०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुब्गर्भा त्रिष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः उ) वही [परमेश्वर] (आभूतः) सब ओर से व्याप्त और (भूतः) वर्तमान होकर (देवतासु अन्तः) सब दिव्य पदार्थों के भीतर (गर्भः) गर्भ [के समान] (चरति) विचरता है और (पुनः) फिर (जायते) प्रकट होता है। (सः) उस (भूतः) वर्तमान [परमेश्वर] ने (भव्यम्) होनहार (भविष्यत्) आगामी जगत् में (शचीभिः) अपने कर्मों से (प्र विवेश) प्रवेश किया है, [जैसे] (पिता) पिता (पुत्रम्) पुत्र में [उत्तम शिक्षादान से प्रवेश करता है] ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - नित्य अनादि परमेश्वर सब पदार्थों के भीतर और बाहिर परिपूर्ण होकर भूत भविष्यत् और वर्तमान में सबका उपकार करता है, जैसे पिता पुत्र को शिक्षा दान करता है ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २०−(अन्तः) मध्ये (गर्भः) गर्भो यथा (चरति) गच्छति। व्याप्नोति (देवतासु) देवेषु। दिव्यपदार्थेषु (आभूतः) समन्ताद् व्याप्तः (भूतः) वर्तमानः। नित्यः (सः) प्राणः परमेश्वरः (उ) एव (जायते) प्रादुर्भवति (पुनः) पश्चात् (सः) प्राणः (भूतः) नित्यः (भव्यम्) भावि (भविष्यत्) उत्पत्स्यमानं जगत् (पिता) रक्षको जनकः (पुत्रम्) (प्र विवेश) प्रविष्टवान् (शचीभिः) कर्मभिः-निघ० २।१। प्रज्ञाभिः-निघ० ३।९ ॥

२१ एकं पादम्

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एकं॒ पादं॒ नोत्खि॑दति सलि॒लाद्धं॒स उ॒च्चर॑न्।
यद॒ङ्ग स तमु॑त्खि॒देन्नैवाद्य न श्वः स्या॑न्न रात्री॒ नाहः॑ स्या॒न्न व्यु᳡च्छेत्क॒दा च॒न ॥

२१ एकं पादम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The swan (haṅsá), ascending, does not extract (ut-khid) one foot
    from the sea; verily, if he should extract that, there would not be
    today nor tomorrow; there would not be night nor day; at no time soever
    would it dawn (vi-vas).
Notes

Ppp. reads utpapadam at end of b, and goes on thus: imaṁ sa tum
utkhide ahnāivācya naḥ śyo na rātrī nna ha syā hnaṣ prajñā tu ki cana
.
The comm. explains the verse first as relating to the sun, for which it
appears to be really intended, and then as applied to breath, to which
it may be conceived to belong as being for the microcosm what the sun is
to the macrocosm. ⌊Cf. my note to viii. 7. 24. Here one would indeed be
reluctant to translate haṅsa by ‘goose.’⌋

Griffith

Hansa, what time he rises up, leaves in the flood one foot un- moved. If he withdrew it there would be no more tomorrow or to-day, Never would there be night, no more would daylight shine or morning flush.

पदपाठः

एक॑म्। पाद॑म्। न। उत्। खि॒द॒ति॒। स॒लि॒लात्। हं॒सः। उ॒त्ऽचर॑न्। यत्। अ॒ङ्ग। सः। तम्। उ॒त्ऽखि॒देत्। न। ए॒व। अ॒द्य। न। श्वः। स्या॒त्। न। रात्री॑। न। अहः॑। स्या॒त्। न। वि। उ॒च्छे॒त्। क॒दा। च॒न। ६.२१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • मध्येज्योतिर्जगती
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (हंसः) हंस [सर्वव्यापक वा सर्वज्ञानी परमात्मा] (सलिलात्) समुद्र [समुद्रसमान अपने अगम्य सामर्थ्य] से (उच्चरन्) उदय होता हुआ (एकम्) एक [सत्य वा मुख्य] (पादम्) पाद [स्थितिनियम] को (न) नहीं (उत् खिदति) उखाड़ता है। (अङ्ग) हे विद्वान् ! (यत्) जो (सः) वह [परमात्मा] (तम्) उस [नियम] को (उत्खिदेत्) उखाड़ देवे, (न एव) न तो (अद्य) आज, (न) न (श्वः) कल (स्यात्) होवे, (न) न (रात्री) रात्री, (न) न (अहः) दिन (स्यात्) होवे, (न) न (कदा चन) कभी भी (वि उच्छेत्) प्रभात होवे ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे हंस परमात्मा अपने अचल नियम से विचल न होकर सूर्य आदि को अपने केन्द्र पर ठहरा कर सब संसार का उपकार करता है, वैसे ही परमहंस, जितेन्द्रिय, विज्ञानी पुरुष सब प्राणियों का हित करता है ॥२१॥(हंस) शब्द का मिलान-अथर्व० १०।८।१७ तथा १८ में करो ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २१−(एकम्) इण्भीकापा०। उ० ३।४३। इण् गतौ-कन्। व्यापकम्। सत्यम्। मुख्यम् (पादम्) पद गतौ स्थैर्ये च-घञ्। स्थितिनियमम् (न) निषेधे (उत् खिदति) उद्धरति। उत्क्षिपति (सलिलात्) अ० ९।१०।९। समुद्रादिवाऽगम्यसामर्थ्यात् (हंसः) अ० १०।८।१७। वृतॄवदि०। उ० ३।६२। हन हिंसागत्योः-स। पक्षिविशेषः। सूर्यः। परमात्मा। योगिभेदः। शरीरस्थवायुविशेषः। एवमादयः-शब्दकल्पद्रुमे (उच्चरन्) उद्गच्छन् (अङ्ग) संबोधने (सः) हंसः। परमात्मा (तम्) पादम्। स्थितिनियमम् (उत्खिदेत्) उत्क्षिपेत् (नैव) न कदापि (अद्य) वर्तमानं दिनम् (न) (श्वः) आगामिदिनम् (स्यात्) (न) (न) (रात्री) (न) (अहः) दिनम् (न) (वि उच्छेत्) व्युच्छनम्, उषसः प्रादुर्भावो भवेत् (कदाचन) कदापि ॥

२२ अष्टाचक्रं वर्तत

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॒ष्टाच॑क्रं वर्तत॒ एक॑नेमि स॒हस्रा॑क्षरं॒ प्र पु॒रो नि प॒श्चा।
अ॒र्धेन॒ विश्वं॒ भुव॑नं ज॒जान॒ यद॑स्या॒र्धं क॑त॒मः स के॒तुः ॥

२२ अष्टाचक्रं वर्तत ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The eight-wheeled [thing, neut.] rolls, having one rim,
    thousand-syllabled, forth in front, down behind; with a half it has
    generated all existence; what its [other] half [is]—which sign is
    that?
Notes

This verse also evidently belongs to the sun; with its mystic
ascriptions are to be compared those of the partly corresponding verses
x. 8. 7, 13. Ppp. ends instead with kim u tasya ketuḥ; it also
combines vartate ’kanemi in a. The comm. reads paścāt at end of
b, and two or three of the mss. (including our O.) do the same. ‘In
front’ and ‘behind’ are, of course, = ‘in the east’ and ‘in the west.’
The d of aṣṭā́cakra, and its retention in the pada-text
(aṣṭā́॰cakram) are by Prāt. iii. 2 and iv. 94.

Griffith

It rolleth on, eight-wheeled and single-fellied, and with a thousand eyes, forward and backward. With one half it engendered all creation. What sign is there to tell us of the other?

पदपाठः

अ॒ष्टाऽच॑क्रम्। व॒र्त॒ते॒। एक॑ऽनेमि। स॒हस्र॑ऽअक्षरम्। प्र। पु॒रः। नि। प॒श्चा। अ॒र्धेन॑। विश्व॑म्। भुव॑नम्। ज॒जान॑। यत्। अ॒स्य॒। अ॒र्धम्। क॒त॒मः। सः। के॒तुः। ६.२२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • त्रिष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अष्टाचक्रम्) आठ [दिशाओं] में चक्रवाला, (एकनेमि) एक नेमि [नियमवाला] और (सहस्राक्षरम्) सहस्र प्रकार से व्याप्तिवाला [ब्रह्म] (प्र) भलीभाँति (पुरः) आगे और (नि) निश्चय करके (पश्चा) पीछे (वर्तते) वर्तमान है। उसने (अर्धेन) आधे खण्ड से (विश्वम्) सब (भुवनम्) अस्तित्व [जगत्] को (जजान) उत्पन्न किया, और (यत्) जो (अस्य) इस [ब्रह्म] का (अर्धम्) [दूसरा कारणरूप] आधा है, (सः) वह (कतमः) कौन सा (केतुः) चिह्न है ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वह परब्रह्म अपने अटूट नियम से सब जगत् में व्यापकर सबसे पहिले और पीछे निरन्तर वर्तमान है, उसी की सामर्थ्य से यह सब जगत् उत्पन्न हुआ है और उसी की शक्ति में अनन्त कारणरूप पदार्थ वर्तमान है ॥२२॥यह मन्त्र कुछ भेद से आ चुका है, देखो-अथर्व० १०।८।७। तथा १३ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २२−(अष्टाचक्रम्) अष्टसु दिक्षु चक्रं यस्य तद् ब्रह्म। अन्यद्व्याख्यातम्-अथर्व० १०।८।७ तथा १३ ॥

२३ यो अस्य

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यो अ॒स्य वि॒श्वज॑न्मन॒ ईशे॒ विश्व॑स्य॒ चेष्ट॑तः।
अन्ये॑षु क्षि॒प्रध॑न्वने॒ तस्मै॑ प्राण॒ नमो॑ऽस्तु ते ॥

२३ यो अस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He who is lord of this that has every (víśva) [kind of] birth,
    of every stirring thing—to thee being such, O breath, having a quick bow
    among the unexhausted (? ánya), be homage.
Notes

The very rare ánya is rendered, at a venture, with the Pet. Lexx. ⌊see
BR. under ányā, and OB. i. 66 a, end⌋; ⌊and the parallelism of the
next vs., with its átandra, favors this rendering⌋. The wholly obscure
pāda in which it occurs is explained by the comm. to mean prāṇiśarīreṣu
kṣipraṁ gacchate vyāpnuvate:
he takes ánya from the root an
‘breathe,’ and -dhanvan from dhav ‘go.’ Ppp. has no variants to help
us.

Griffith

Homage, O Prana unto thee armed with swift bow among the rest, In whose dominion is this All of varied sort that stirs and works!

पदपाठः

यः। अ॒स्य। वि॒श्वऽज॑न्मनः। ईशे॑। विश्व॑स्य। चेष्ट॑तः। अन्ये॑षु। क्षि॒प्रऽध॑न्वने। तस्मै॑। प्रा॒ण॒। नमः॑। अ॒स्तु॒। ते॒। ६.२३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [परमेश्वर] (अस्य) इस (विश्वजन्मनः) विविध जन्मवाले और (विश्वस्य) सब (चेष्टतः) चेष्टा करनेवाले [कार्यरूप] जगत् का (ईशे) ईश्वर है, [इनसे] (अन्येषु) भिन्न [परमाणुरूप पदार्थों] पर (क्षिप्रधन्वने) शीघ्र व्यापक होनेवाले (तस्मै) उस (ते) तुझको, (प्राण) हे प्राण ! [जीवनदाता परमेश्वर] (नमः अस्तु) नमस्कार हो ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर सब कार्यरूप और कारणरूप जगत् का स्वामी है, उस जगदीश्वर को हमारा नमस्कार है ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २३−(यः) प्राणः परमेश्वरः (अस्य) दृश्यमानस्य (विश्वजन्मनः) विविधजन्मोपेतस्य (ईशे) तलोपः। ईष्टे। ईश्वरो भवति (विश्वस्य) सर्वस्य (चेष्टतः) व्याप्रियमाणस्य (अन्येषु) भिन्नेषु। कारणरूपेषु। (क्षिप्रधन्वने) कनिन् युवृषितक्षिराजिधन्वि०। उ० १।१५६। धवि गतौ-कनिन्, इदित्वान्नुम्। शीघ्रं गच्छते व्याप्नुवते (तस्मै) तथाविधाय (प्राण) (नमः) (अस्तु) (ते) तुभ्यम् ॥

२४ यो अस्य

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यो अ॒स्य स॒र्वज॑न्मन॒ ईशे॒ सर्व॑स्य॒ चेष्ट॑तः।
अत॑न्द्रो॒ ब्रह्म॑णा॒ धीरः॑ प्रा॒णो मानु॑ तिष्ठतु ॥

२४ यो अस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He who is lord of this that has all (sárva) [kinds of] birth, of
    all that stirs, unwearied, wise by bráhman—let breath go after
    (anu-sthā) me.
Notes

Ppp. has at the end the easier reading mām abhi rakṣatu. ⌊W.
interlines “attend” as a rendering of anu-sthā.⌋

Griffith

May he who rules this Universe of varied sort, that stirs and works, Prana, alert and resolute, assist me through the prayer I pray.

पदपाठः

यः। अ॒स्य। स॒र्वऽज॑न्मनः। ईशे॑। सर्व॑स्य। चेष्ट॑तः। अत॑न्द्रः। ब्रह्म॑णा। धीरः॑। प्रा॒णः। मा॒। अनु॑। ति॒ष्ठ॒तु॒। ६.२४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [परमेश्वर] (अस्य) इस (सर्वजन्मनः) विविध जन्मवाले और (सर्वस्य) सब (चेष्टतः) चेष्टा करनेवाले [कार्यरूप जगत्] का (ईशे) ईश्वर है, [वह] (अतन्द्रः) आलस रहित, (धीरः) धीर [बुद्धिमान्] (प्राणः) प्राण [जीवनदाता परमेश्वर] (ब्रह्मणा) वेदज्ञान द्वारा (मा अनु) मेरे साथ-साथ (तिष्ठतु) ठहरा रहे ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सर्वशक्तिमान्, सर्वनियन्ता परमेश्वर की महिमा जानकर निरालसी, धीर, वीर होकर पुरुषार्थ करे ॥२४॥इस मन्त्र का पूर्वार्ध कुछ भेद से ऊपर मन्त्र २३ में आया है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २४−पूर्वार्धर्चो व्याख्यातः, म० २३। विश्वशब्दस्य स्थाने सर्वशब्दो विशेषः। (अतन्द्रः) निरलसः। (ब्रह्मणा) वेदज्ञानेन (धीरः) धीमान्। बुद्धिमान् (प्राणः) जीवनदाता परमेश्वरः (मा) माम् (अनु) अनुलक्ष्य (तिष्ठतु) वर्तताम् ॥

२५ ऊर्ध्वः सुप्तेषु

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ऊ॒र्ध्वः सु॒प्तेषु॑ जागार न॒नु ति॒र्यङ्नि प॑द्यते।
न सु॒प्तम॑स्य सु॒प्तेष्वनु॑ शुश्राव॒ कश्च॒न ॥

२५ ऊर्ध्वः सुप्तेषु ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Upright among the sleeping he wakes; by no means (nanú) does he
    fall down horizontal (tiryán̄); no one soever has heard of his sleeping
    among the sleeping.
Notes

The comm. reads in a jāgara and understands it as impv. 2d sing.
Ppp. has in c ⌊? or in a?⌋ svapneṣu. The combination of
suptám and asya seems to make it necessary to take the former in the
sense of svapna, or of svāpa, as the comm. glosses it. The activity
of the breath while the other powers and senses of the body are asleep
is a theme of wonder elsewhere also. For supéṣú in a, read
suptéṣu (an accent-mark slipped over the wrong syllable).

Griffith

Erect among the sleepers he wakes, and is never laid at length, No one hath ever heard that he hath been asleep while others slept.

पदपाठः

ऊ॒र्ध्वः। सु॒प्तेषु॑। जा॒गा॒र॒। न॒नु। ति॒र्यङ्। नि। प॒द्य॒ते॒। न। सु॒प्तम्। अ॒स्‍य॒। सु॒प्तेषु॑। अनु॑। शु॒श्रा॒व॒। कः। च॒न। ६.२५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • अनुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सुप्तेषु) सोते हुए [प्राणियों] पर वह [प्राण, परमात्मा] (ऊर्ध्वः) ऊपर रहकर (जागार) जागता है, और (ननु) कभी नहीं (तिर्यङ्) तिरछा [होकर] (नि पद्यते) गिरता है। (कः चन) किसी ने भी (सुप्तेषु) सोते हुओं में (अस्य) इस [प्राण परमात्मा] का (सुप्तम्) सोना (न अनु शुश्राव) कभी [परम्परा से] नहीं सुना ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे परमात्मा चेतन्य रहकर सर्वदा सब प्राणियों की सुधि रखता है, वैसे ही मनुष्यों को निरालस होकर पुरुषार्थ करना चाहिये ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २५−(ऊर्ध्वः) उपरि स्थितः सन् (सुप्तेषु) निद्रागतेषु (जागार) लडर्थे लिट्। जागर्ति (ननु) नैव (तिर्यङ्) तिर्यगवस्थितः सन् (निपद्यते) नि पतति (न) निषेधे (सुप्तम्) सुप्तिः (अस्य) प्राणस्य परमेश्वरस्य (सुप्तेषु) (अनु) अनुक्रमेण। परम्परया (शुश्राव) श्रुतवान् (कश्चन) कोऽपि पुरुषः ॥

२६ प्राण मा

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प्राण॒ मा मत्प॒र्यावृ॑तो॒ न मद॒न्यो भ॑विष्यसि।
अ॒पां गर्भ॑मिव जी॒वसे॒ प्राण॑ ब॒ध्नामि॑ त्वा॒ मयि॑ ॥

२६ प्राण मा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O breath, turn not about from me; not another than I shalt thou be;
    like the embryo of the waters, in order to life (jīvás), I bind thee
    to me, O breath.
Notes

The obscure second pāda is by the comm. explained to mean mayā saha
tādātmyāpanna eva vartase
. Some mss. (including our O.) accent mát
both times, and SPP. follows them in his text: compare xii. 3. 46.

⌊The quoted Anukr. says “prāṇāya."⌋

⌊Here ends the second anuvāka, with 2 hymns and 82 verses, according to
the count of the Berlin edition: that is 1 paryāya-sūkta with 3
paryāyas and 56 verses and 1 artha-sūkta with 26 verses. But some
mss. sum up the anuvāka as containing 136 “verses of both sorts,” that
is the no avasāna-rcas of our h. 3 (see p. 632, top, and p. 629, top)
and the 26 ṛcas of our h. 4.⌋

⌊The following quotation from the Old Anukr. seems to be put after the
end of h. 4 as pertaining to the anuvāka: trayas “tasyāu ’dano”
bhavet
. Does this mean that we have no right to count the
tasyāudana” as less than 3 hymns? Cf. p. 611, ¶ 4.⌋

Griffith

Thou, Prana, never shalt be hid, never shalt be estranged from me. I bind thee on myself for life, O Prana, like the Waters’ germ.

पदपाठः

प्राण॑। मा। मत्। प॒रि॒ऽआवृ॑तः। न। मत्। अ॒न्यः। भ॒वि॒ष्य॒सि॒। अ॒पाम्। गर्भ॑म्ऽइव। जी॒वसे॑। प्राण॑। ब॒ध्नामि॑। त्वा॒। मयि॑। ६.२६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • प्राणः
  • भार्गवो वैदर्भिः
  • बृहतीगर्भानुष्टुप्
  • प्राण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

प्राण की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राण) हे प्राण ! [जीवनदाता परमेश्वर] (मत्) मुझ से (पर्यावृतः) पृथक् वर्तमान (मा) मत [हो] तू, (मत्) मुझ से (अन्यः) अन्य (न भविष्यसि) न होगा। (प्राण) हे प्राण ! [जीवनदाता परमेश्वर] (अपाम्) प्राणियों [वा जल] के (गर्भम् इव) गर्भ के समान (त्वा) तुझको (जीवसे) [अपने] जीवन के लिये (मयि) अपने में (बध्नामि) बाँधता हूँ ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे गर्भ प्राणियों में और अग्नि, जल के भीतर चेष्टा करता है, वैसे ही मनुष्य परमात्मा को हृदय में धारण करके उन्नति करे ॥२६॥ इति द्वितीयोऽनुवाकः ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २६−(प्राण) हे प्राणप्रद परमेश्वर (मा) निषेधे (मत्) मत्तः (पर्यावृतः) वृञ् वरणे-क्त। पृथग् वेष्टितः (न) निषेधे (मत्) (अन्यः) पृथग्भूतः (भविष्यसि) (अपाम्) प्राणिनाम्। जलानां वा (गर्भम्) उदरस्थं सन्तानम्, गर्भवद् वर्तमानं जलं वा (इव) यथा (जीवसे) जीवनाय (प्राण) (बध्नामि) धरामि (त्वा) त्वाम् (मयि) आत्मीये ॥