००३ ओदनः ...{Loading}...
Whitney subject
- Extolling the rice-dish (odaná).
VH anukramaṇī
ओदनः।
(१)
१-३१ अथर्वा। ओदनः (बार्हस्पत्यौदनः।) ( त्रयः पर्याया)। १, १४ आसुरी गायत्री, २ त्रिपदा समविषमा गायत्री, ३, ६, १० आसुरी पङ्क्तिः, ४, ८ साम्न्यनुष्टुप्, ५, १३, १५, २५ साम्न्युष्णिक्, ७, १९-२२ प्राजापत्याऽनुष्टुप्, ९, १७-१८ आसुर्यनुष्टुप्, ११ भुरिगार्च्नुष्टुप्, १२ याजुषी जगती, १६ २३ आसुरी बृहती, २४ त्रिपदा प्राजापत्या बृहती, २६ आर्च्युष्णिक्, २७-२९ साम्नी बृहती, (२८-२९ भुरिक्), ३० याजुषी त्रिष्टुप्, ३१ अल्पशः पङ्क्तिरुत याजुषी।
(२)
३२-४९ मन्त्रोक्ताः। ३२, ३८, ४१ (प्रथमा), ३२-४९ (सप्तमी) साम्नी त्रिष्टुप्, ३२, ३५,४२ (द्वितीया), ३२-४९ (तृतीया) ३३-३४, ४४-४८ (पञ्चमी) एकपदाऽऽसुरी गायत्री, ३२, ४१, ४३, ४७ दैवी जगती, ३८, ४४, ४६ (द्विo), ३२, ३५-४३, ४९ (पञ्चo) एकपदाऽऽसुर्यनुष्टुप्, ३२-४९ (षष्ठी) साम्न्यनुष्टुप्, ३२-४९ (प्रo) आर्च्यनुष्टुप्, ३७ (प्रo) साम्नी पङ्क्तिः, ३३, ३६, ४०, ४७-४८ (द्विo) आसुरी जगती, ३४, ३७, ४१, ४३, ४५ (द्विo) आसुरी पङ्क्तिः, ३४ (चo) आसुरी त्रिष्टुप्, ३५, ४६, ४८ (चo) याजुषी गायत्री, ३६-३७, ४० (चo) दैवी पङ्क्तिः ३८-३९ (चo) प्राजापत्या गायत्री, ३९ (द्विo) आसुर्युष्णिक्, ४२, ४५, ४९ (चo) दैवी त्रिष्टुप्, ४९ (द्विo) एकपदा भुरिक्साम्नी बृहती।
Whitney anukramaṇī
[Atharvan.—trayaḥ paryāyāḥ.]
Whitney
Comment
⌊Prose, except vss. 19-22.⌋ A corresponding passage is found in Pāipp. xvi., but so different in detail that it would require to be given in full for comparison; and this has not been done.
SPP., without any good reason,* counts the three paryāyas or divisions of this hymn as so many independent hymns, thus not only defacing the structure of the book, but defeating all the references that had been made to it in lexicons and elsewhere.
*⌊Whether Whitney’s condemnation of SPP’s procedure is justified or not may be decided when all the facts are before us. Some of them have been put together by me, above, pages 610, 611, which see.⌋
⌊The hymn is not cited by Vāit.; nor in the text of Kāuś., unless vs. 31 is meant at 62. 8: but Keśava (p. 3531) cites it for use in witchcraft practices (so the comm.), and also (p. 3652) for use in the bṛhaspati sava (so comm.).⌋
Translations
Translated: Henry, 106, 145; Griffith, ii. 61.—Cf. especially Henry’s introduction, p. 145. The rice-dish, hot and yellow and nourishing, is a symbol of the sun (cf. vs. 50); its ingredients and the utensils used in making it are identified with all sorts of things in the most grotesque manner of the Brāhmaṇas.
Griffith
A glorification of the Odana or oblation of boiled rice
०१ तस्यौदनस्य बृहस्पतिः
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तस्यौ॑द॒नस्य॒ बृह॒स्पतिः॒ शिरो॒ ब्रह्म॒ मुख॑म् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तस्यौ॑द॒नस्य॒ बृह॒स्पतिः॒ शिरो॒ ब्रह्म॒ मुख॑म् ॥
०१ तस्यौदनस्य बृहस्पतिः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Of this rice-dish Brihaspati is the head, Brahman the mouth
(múkha).
Notes
The comm. combines in part two or three verses of the first paryāya
together in giving his explanations.
Griffith
Of that Odana Brihaspati is the head, Brahma the mouth.
पदपाठः
तस्य॑। ओ॒द॒नस्य॑। बृह॒स्पतिः॑। शिरः॑। ब्रह्म॑। मुख॑म्। ३.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- आसुरी गायत्री
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (तस्य) उस [प्रसिद्ध] (ओदनस्य) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] का (शिरः) शिर (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े जगत् का रक्षक वायु वा मेघ] और (मुखम्) मुख (ब्रह्म) अन्न है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे शरीर के लिये शिर और मुख आदि उपकारी हैं, वैसे ही परमात्मा ने अपनी सत्ता से वायु, मेघ और अन्न आदि रचकर सब संसार के साथ उपकार किया है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(तस्य) प्रसिद्धस्य (ओदनस्य) अ० ११।१।१७। सुखवर्षकस्य परमेश्वरस्य (बृहस्पतिः) अ० १।८।२। बृहत्-पति, सुडागमः, तलोपश्च। बृहस्पतिर्बृहतः पाता वा पालयिता वा-निरु० १०।११। इति मध्यस्थानदेवतासु पाठः। बृहतो महतो जगतो रक्षिता वायुर्मेघो वा (शिरः) मस्तकम् (ब्रह्म) अन्नम्-निघ० २।७। (मुखम्) ॥
०२ द्यावापृथिवी श्रोत्रे
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द्यावा॑पृथि॒वी श्रो॒त्रे सू॑र्याचन्द्र॒मसा॒वक्षि॑णी सप्तऋ॒षयः॑ प्राणापा॒नाः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
द्यावा॑पृथि॒वी श्रो॒त्रे सू॑र्याचन्द्र॒मसा॒वक्षि॑णी सप्तऋ॒षयः॑ प्राणापा॒नाः ॥
०२ द्यावापृथिवी श्रोत्रे ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Heaven-and-earth are the ears, sun-and-moon the eyes, the seven
seers the breaths-and-expirations.
Notes
Griffith
Heaven and Earth are the ears, the Sun and Moon are the eyes, the seven Rishis are the vital airs inhaled and exhaled.
पदपाठः
द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। श्रोत्रे॒ इति॑। सू॒र्या॒च॒न्द्र॒मसौ॑। अक्षि॑णी॒ इति॑। स॒प्त॒ऽऋ॒षयः॑। प्रा॒णा॒पा॒नाः। ३.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- त्रिपदा समविषमा गायत्री
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (द्यावापृथिवी) आकाश और पृथिवी, (श्रोत्रे) [परमेश्वर के] दो कान, (सूर्याचन्द्रमसौ) सूर्य और चन्द्रमा (अक्षिणी) [उसकी] दो आँखें, और (प्राणापानाः) प्राण और अपान [वायुसंचार, उसके] (सप्तऋषयः) सात ऋषि [पाँच ज्ञानेन्द्रिय त्वचा, नेत्र, श्रवण, जिह्वा, नासिका, मन और बुद्धि] हैं ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमेश्वर ने संसार में आकाश, पृथिवी, सूर्य, चन्द्रमा को शरीर की स्थूल इन्द्रियों के समान और वायुसंचार को सूक्ष्म ज्ञानेन्द्रियों मन बुद्धि के समान रचा है ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(द्यावापृथिवी) भूमिवियतौ (श्रोत्रे) श्रवणेन्द्रिये (सूर्याचन्द्रमसौ) (अक्षिणी) चक्षुषी (सप्तऋषयः) अ० ४।११।९। सप्त ऋषयः प्रतिहिताः शरीरे षडिन्द्रियाणि विद्या सप्तमी-निरु० १२।३७। त्वक्चक्षुःश्रवणरसनाघ्राणमनोबुद्धयः ॥
०३ चक्षुर्मुसलं काम
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चक्षु॒र्मुस॑लं॒ काम॑ उ॒लूख॑लम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
चक्षु॒र्मुस॑लं॒ काम॑ उ॒लूख॑लम् ॥
०३ चक्षुर्मुसलं काम ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Sight (cákṣus) the pestle, desire (kā́ma) the mortar.
Notes
Griffith
Vision is the pestle, Desire the mortar.
पदपाठः
चक्षुः॑। मुस॑लम्। कामः॑। उ॒लूख॑लम्। ३.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- आसुरी पङ्क्तिः
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (चक्षुः) [उसकी] दर्शन शक्ति (मुसलम्) मूसल [समान], [उसकी] (कामः) कामना (उलूखलम्) ओखली [समान] है ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमेश्वर संसार में दृष्टि मात्र से कूटने आदि व्यवहार करता और इच्छा मात्र से सूक्ष्म बनाकर यथावत् रखने की क्रिया करता है, अर्थात् स्थूल भूतों से सूक्ष्म समीचीन रचना करना उसी के वश में है ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(चक्षुः) दृष्टिसामर्थ्यम् (मुसलम्) अ० ९।६(१)।१५। मुस खण्डने-कल, चित्। कुट्टनसाधनम् (कामः) अभिलाषः (उलूखलम्) अ० ९।६(१)।१५। धान्यादिमर्दनसाधनम् ॥
०४ दितिः शूर्पमदितिः
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दितिः॒ शूर्प॒मदि॑तिः शूर्पग्रा॒ही वातोऽपा॑विनक् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
दितिः॒ शूर्प॒मदि॑तिः शूर्पग्रा॒ही वातोऽपा॑विनक् ॥
०४ दितिः शूर्पमदितिः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Diti the winnowing basket, Aditi the basket-holder; the wind
winnowed (apa-vic).
Notes
Griffith
Diti is the winnowing basket, Aditi is she who holds it, Vata is the sifter.
पदपाठः
दितिः॑। शूर्प॑म्। अदि॑तिः। शू॒र्प॒ऽग्रा॒ही। वातः॑। अप॑। अ॒वि॒न॒क्। ३.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- साम्न्यनुष्टुप्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (दितिः) [परमेश्वर की] खण्डन शक्ति (शूर्पम्) सूप [समान] है, (अदितिः) [उसकी] अखण्डन शक्ति ने (शूर्पग्राही) सूप पकड़नेवाले [के समान] (वातः-वातेन) पवन से (अप अविनक्) [शुद्ध और अशुद्ध पदार्थ को] अलग-अलग किया है ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे लोग सूप से वायु द्वारा अशुद्ध वस्तु को निकालकर शुद्ध वस्तु को ले लेते हैं, वैसे ही परमेश्वर अपने सामर्थ्य से प्रकृति द्वारा परमाणुओं का संयोग-वियोग करके जगत् को रचता है और वैसे ही विवेकी पुरुष विद्या द्वारा अवगुण छोड़कर गुण ग्रहण करता है ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(दितिः) दो अवखण्डने-क्तिन्। खण्डनशक्तिः परमेश्वरस्य (शूर्पम्) सुशॄभ्यां निच्च। उ० ३।२६। शॄ हिंसायाम्-प प्रत्ययः। यद्वा, शूर्प माने-घञ्। धान्यस्फोटकपात्रम् (अदितिः) अ० २।२९।४। नञ्+दो अवखण्डने-क्तिन्। अखण्डनशक्तिः (शूर्पग्राही) ग्रह उपादाने-णिनि। शूर्पग्राहकः पुरुषः (वातः) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। विभक्तेः सु। वातेन, वायुना (अप अविनक्) विचिर् पृथग्भावे-लङ्। पृथक् पृथक् कृतवान् शुद्धाशुद्धवस्तूनि ॥
०५ अश्वाः कणा
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अश्वाः॒ कणा॒ गाव॑स्तण्डु॒ला म॒शका॒स्तुषाः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अश्वाः॒ कणा॒ गाव॑स्तण्डु॒ला म॒शका॒स्तुषाः॑ ॥
०५ अश्वाः कणा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Horses the corns (káṇa), kine the grains (taṇḍulá), flies the
husks.
Notes
Griffith
Horses are the grains, oxen the winnowed ricegrains, gnats the husks.
पदपाठः
अश्वाः॑। कणाः॑। गावः॑। त॒ण्डु॒लाः। म॒शकाः॑। तुषाः॑। ३.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- साम्न्युष्णिक्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अश्वाः) घोड़े (कणाः) कण [समान], (गावः) गौवें (तण्डुलाः) चावल [समान] और (मशकाः) माछड़ (तुषाः) भुसी [समान] हैं ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - घोड़े आदि जीव परमेश्वर की महिमा के बहुत छोटे अंश है ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(अश्वाः) मार्गव्यापिनो घोटकाः (कणाः) क्षुद्रांशाः (गावः) गवादिजन्तवः (तण्डुलाः) अ० १०।९।२६। तुषरहिता व्रीहयः (मशकाः) अ० ४।२६।९। दशकाः (तुषाः) धान्यत्वचाः ॥
०६ कब्रु फलीकरणाः
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
कब्रु॑ फली॒कर॑णाः॒ शरो॒ऽभ्रम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
कब्रु॑ फली॒कर॑णाः॒ शरो॒ऽभ्रम् ॥
०६ कब्रु फलीकरणाः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Kábru the hulls, the cloud the stalk (śára).
Notes
The comm. reads kabhru, and gives a forced etymology, from ka ‘head’
and bhrū ‘brow’; he also has śíras for śáras, and this reading is
found in some of the mss. (including our B.p.m., E.s.m., O.p.m. ⌊and
some of SPP’s⌋).
Griffith
Kabru is the husked grain, the rain cloud is the reed.
पदपाठः
कब्रु॑। फ॒ली॒ऽकर॑णाः। शरः॑। अ॒भ्रम्। ३.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- आसुरी पङ्क्तिः
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कब्रु) विचित्र रङ्गवाला [जगत्] (फलीकरणाः) [उसका] फटकन [भुसी आदि] और (अभ्रम्) बादल (शरः) [उसका] घास-फूँस [समान] है ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - श्वेत पीत आदि वर्ण युक्त जगत् और मेघ आदि परमेश्वर की अति छोटी वस्तु हैं ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(कब्रु) मीपीभ्यां रुः। उ० ४।१०१। कबृ स्तुतौ वर्णे च। रु प्रत्ययः। वर्णितम्। विचित्रीकृतं जगत् (फलीकरणाः) ञिफला विदारणे-अच्+डुकृञ् करणे-ल्यु, च्वि च। स्फोटनेन विदारिततुषादयः (शरः) शॄ हिंसायाम्-अप्। तृणम् (अभ्रम्) अब्भ्रम्। मेघः ॥
०७ श्याममयोऽस्य मांसानि
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श्या॒ममयो॑ऽस्य मां॒सानि॒ लोहि॑तमस्य॒ लोहि॑तम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
श्या॒ममयो॑ऽस्य मां॒सानि॒ लोहि॑तमस्य॒ लोहि॑तम् ॥
०७ श्याममयोऽस्य मांसानि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Dark metal its flesh, red its blood (lóhita).
Notes
That is, doubtless, iron and copper respectively.
Griffith
Grey iron is its flesh, copper its blood.
पदपाठः
श्या॒मम्। अयः॑। अ॒स्य॒। मां॒सानि॑। लोहि॑तम्। अ॒स्य॒। लोहि॑तम्। ३.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- प्राजापत्यानुष्टुप्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (श्यामम्) श्याम वर्ण (अयः) लोहा (अस्य) इसके (मांसानि) मांस के अवयव [तुल्य] हैं और (लोहितम्) रक्त वर्णवाला [लोहा अर्थात् ताँबा] (अस्य) इसके (लोहितम्) रुधिर [समान] है ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - लोहा-ताँबा आदि धातु परमेश्वर की सत्ता से उत्पन्न हुए हैं ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(श्यामम्) इषियुधीन्धिदसिश्या०। उ० १।१४५। श्यैङ् गतौ-मक् कृष्णवर्णम् (अयः) इण् गतौ-असुन्। लौहः। धातुभेदः (अस्य) पूर्वोक्तस्य परमेश्वरस्य (मांसानि) मांसावयवाः (लोहितम्) रक्तवर्णम्। अयः। ताम्रमित्यर्थः (अस्य) (लोहितम्) रुधिरम् ॥
०८ त्रपु भस्म
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त्रपु॒ भस्म॒ हरि॑तं॒ वर्णः॒ पुष्क॑रमस्य ग॒न्धः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
त्रपु॒ भस्म॒ हरि॑तं॒ वर्णः॒ पुष्क॑रमस्य ग॒न्धः ॥
०८ त्रपु भस्म ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Tin [its] ash, greens (? háritam) [its] color, blue lotus
(púṣkara) its smell.
Notes
The comm. glosses hárita with heman ‘gold.’ ⌊Over “greens” W. has
interlined “gold? (so BR.).” He rendered hárita by “the yellow one” at
v. 28. 5, 9.⌋
Griffith
Tin is its ashes, gold its colour, the blue lotus flower its scent.
पदपाठः
त्रपु॑। भस्म॑। हरि॑तम्। वर्णः॑। पुष्क॑रम्। अ॒स्य॒। ग॒न्धः। ३.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- साम्न्यनुष्टुप्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (त्रपु) सीसा वा राँगा (भस्म) भस्म [उसकी राख समान], (हरितम्) सुवर्ण (वर्णः) [उसका] रङ्ग [समान] और (पुष्करम्) कमल का फूल (अस्य) इसका (गन्धः) गन्ध [समान] हैं ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सीसा सुवर्ण और कमल आदि वस्तु परमेश्वर से उत्पन्न हैं ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(त्रपु) शॄस्वृस्निहित्रप्यसि०। उ० १।१०। त्रपु लज्जायाम्-उ। अग्निं प्राप्य यत् त्रपते लज्जितमिव भवतीति तत् त्रपु सीसकं रोगं वा (भस्म) भस दीप्तौ-मनिन्। दग्धगोमयादिविकारः (हरितम्) सुवर्णम् (वर्णः) शुक्लादिरूपम् (पुष्करम्) कमलपुष्पम् (अस्य) ईश्वरस्य (गन्धः) घ्राणग्राह्यो गुणः ॥
०९ खलः पात्रम्
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खलः॒ पात्रं॒ स्फ्यावंसा॑वी॒षे अ॑नू॒क्ये᳡ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
खलः॒ पात्रं॒ स्फ्यावंसा॑वी॒षे अ॑नू॒क्ये᳡ ॥
०९ खलः पात्रम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The threshing-floor [its] receptacle, the two splints (sphyá)
[its] shoulders, the two poles (īṣā́) [its] spines (anūkyā̀).
Notes
The comm. reads sphāu, and defines as pravṛddhāu dhānyādhārasya
śakaṭasyā ’vayavāu; and he defines anūkyè as aṅsayor madhyadehasya
ca saṁdhī. Bp. reads īśé for īṣé.
Griffith
The threshing-floor is its dish, the wooden swords its shoulders, the car-shafts its backbones.
पदपाठः
खलः॑। पात्र॑म्। स्फ्यौ। अंसौ॑। इ॒षे इति॑। अ॒नू॒क्ये॒३॒ इति॑। ३.९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- आसुर्यनुष्टुप्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (खलः) खलियान [धान्यमर्दन स्थान] (पात्रम्) [उसका] पात्र [बासन समान], (स्फ्यौ) दो फाने [लकड़ी की खपच] (अंसौ) [उसके] दो कन्धे, (ईषे) दोनों मूठ और हरस [हल के अवयव] (अनूक्ये) [उसकी] रीढ़ की दो हड्डियाँ हैं ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - खलियान आदि स्थान और हल के अवयव आदि परमेश्वर के उपदेश से बनाये जाते हैं ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ९−(खलः) धान्यमर्दनस्थानम् (पात्रम्) अमत्रम् (स्फ्यौ) माछाससिभ्यो यः। उ० ४।१०९। स्फायी वृद्धौ-य, स च डित्। प्रवृद्धौ काष्ठकीलकौ (अंसौ) स्कन्धौ (ईषे) अ० २।८।४। ईष गतौ-क, टाप्। लाङ्गलदण्डौ (अनूक्ये) अ० २।३३।२। अनु+उच समवाये-ण्यत्, टाप्। पृष्ठास्थिनी ॥
१० आन्त्राणि जत्रवो
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आ॒न्त्राणि॑ ज॒त्रवो॒ गुदा॑ वर॒त्राः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आ॒न्त्राणि॑ ज॒त्रवो॒ गुदा॑ वर॒त्राः ॥
१० आन्त्राणि जत्रवो ...{Loading}...
Whitney
आ॒न्त्राणि॑ ज॒त्रवो॒ गुदा॑ वर॒त्राः ॥१०॥
Griffith
Collar-bones are its entrails, straps its intestines.
पदपाठः
आ॒न्त्राणि॑। ज॒त्रवः॑। गुदाः॑। व॒र॒त्राः। ३.१०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- आसुरी पङ्क्तिः
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (जत्रवः) जोते [बैलों की ग्रावा के रस्से] (आन्त्राणि) [उसकी] आँतें और (वरत्राः) वरत्र [बरन, हल के बैलों के बड़े रस्से] (गुदाः) [उसकी] गुदाएँ [उदर की नाड़ी विशेष] हैं ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - बैल आदि का बाँधना और उपयोग ईश्वर से सिखाया गया है ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १०−(आन्त्राणि) अ० १।३।६। उदरनाडिविशेषाः (जत्रवः) जत्र्वादयश्च। उ० ४।१०२। जनी प्रादुर्भावे-रु नस्य तः। स्कन्धबन्धनानि (गुदाः) अ० २।३३।४। गुद खेलने-क, टाप्। अशितपीतान्नरससंचारणार्था उदरनाडिविशेषाः (वरत्राः) अ० ३।१७।६। वृञ् संवरणे-अत्रन्, टाप्। हले वृषभबन्धनबृहद्रज्जवः ॥
११ इयमेव पृथिवी
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इ॒यमे॒व पृ॑थि॒वी कु॒म्भी भ॑वति॒ राध्य॑मानस्यौद॒नस्य॒ द्यौर॑पि॒धान॑म् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
इ॒यमे॒व पृ॑थि॒वी कु॒म्भी भ॑वति॒ राध्य॑मानस्यौद॒नस्य॒ द्यौर॑पि॒धान॑म् ॥
११ इयमेव पृथिवी ...{Loading}...
Whitney
इ॒यमे॒व पृ॑थि॒वी कु॒म्भी भ॑वति॒ राध्य॑मानस्यौद॒नस्य॒ द्यौर॑पि॒धान॑म् ॥११॥
Griffith
This earth, verily becomes the jar, and heaven the cover of the Odana as it is cooking.
पदपाठः
इ॒यम्। ए॒व। पृ॒थि॒वी। कु॒म्भी। भ॒व॒ति॒। राध्य॑मानस्य। ओ॒द॒नस्य॑। द्यौः। अ॒पि॒ऽधान॑म्। ३.११।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- भुरिगार्च्यनुष्टुप्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इयम् एव) यही (पृथिवी) फैली हुई भूमि (राध्यमानस्य) पकते हुए (ओदनस्य) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] की (कुम्भी) बटलोही और (द्यौः) प्रकाशमान सूर्य (अपिधानम्) ढकनी [समान] (भवति) है ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमेश्वर इतना बड़ा है कि वह इन पृथिवी सूर्य आदि लोकों में निरन्तर व्यापक है ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ११−(इयम्) दृश्यमाना (एव) अवश्यम् (पृथिवी) प्रथिता भूमिः (कुम्भी) पाकस्थाली (भवति) वर्तते (राध्यमानस्य) पच्यमानस्य (ओदनस्य) सुखवर्षकस्यान्नरूपस्य परमेश्वरस्य (द्यौः) प्रकाशमानः सूर्यः (अपिधानम्) कुम्भीमुखच्छादनपात्रम् ॥
१२ सीताः पर्शवः
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सीताः॒ पर्श॑वः॒ सिक॑ता॒ ऊब॑ध्यम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सीताः॒ पर्श॑वः॒ सिक॑ता॒ ऊब॑ध्यम् ॥
१२ सीताः पर्शवः ...{Loading}...
Whitney
सीताः॒ पर्श॑वः॒ सिक॑ता॒ ऊब॑ध्यम् ॥१२॥
Griffith
Furrows are its ribs, sandy soils the undigested contents of its stomach.
पदपाठः
सीताः॑। पर्श॑वः। सिक॑ताः। ऊब॑ध्यम्। ३.१२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- याजुषी जगती
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सीताः) जोतने की रेखाएँ (पर्शवः) [उसकी पसलियाँ] और (सिकताः) बालू (ऊबध्यम्) [उसके] कुपचे अन्न [समान] है ॥१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - ईश्वर प्रत्येक परमाणु में व्यापक है ॥१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १२−(सीताः) कर्षणोत्पन्ना लाङ्गलपद्धतयः (पर्शवः) पार्श्वास्थीनि (सिकताः) बालुकाः (ऊबध्यम्) अ० ९।४।१६। दुर्+बध बन्धने-यत्, दकारलोपे, ऊत्वम्। अजीर्णमन्नम् ॥
१३ ऋतं हस्तावनेजनम्
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ऋ॒तं ह॑स्ताव॒नेज॑नं कु॒ल्यो᳡प॒सेच॑नम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ऋ॒तं ह॑स्ताव॒नेज॑नं कु॒ल्यो᳡प॒सेच॑नम् ॥
१३ ऋतं हस्तावनेजनम् ...{Loading}...
Whitney
ऋ॒तं ह॑स्ताव॒नेज॑नं कु॒ल्योऽप॒सेच॑नम् ॥१३॥
Griffith
Law is its water for the hands and family custom its aspersion.
पदपाठः
ऋ॒तम्। ह॒स्त॒ऽअ॒व॒नेज॑नम्। कुल्या᳡। उ॒प॒ऽसेच॑नम्। ३.१३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- साम्न्युष्णिक्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतम्) सत्यज्ञान (हस्तावनेजनम्) [उसके] हाथ धोने का जल, और (कुल्या) सब कुलों के लिये हितकारी [नीति] (उपसेचनम्) [उसका] उपसेचन [छिड़काव] है ॥१३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे जल द्वारा प्राणियों में शुद्धि और वृद्धि होती है, वैसे ही परमेश्वर ने वेदरूप सत्यज्ञान और सत्यनीति द्वारा संसार का उपकार किया है ॥१३॥श्री सायणाचार्य ने (ऋतम्) का अर्थजल अर्थात् संसार में विद्यमान सब जल और (कुल्या) का अर्थछोटी नदी किया है ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १३−(ऋतम्) सत्यज्ञानम् (हस्तावनेजनम्) णिजिर् शौचपोषणयोः-ल्युट्। हस्तप्रक्षालनजलम् (कुल्या) कुल-यत्, टाप्। कुलेभ्यो जगत्समूहेभ्यो हिता नीतिः (उपसेचनम्) जलेनार्द्रीकरणं वर्धनम् ॥
१४ ऋचा कुम्भ्यधिहितार्त्विज्येन
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ऋ॒चा कु॒म्भ्यधि॑हि॒तार्त्वि॑ज्येन॒ प्रेषि॑ता ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ऋ॒चा कु॒म्भ्यधि॑हि॒तार्त्वि॑ज्येन॒ प्रेषि॑ता ॥
१४ ऋचा कुम्भ्यधिहितार्त्विज्येन ...{Loading}...
Whitney
ऋ॒चा कु॒म्भ्यधि॑हि॒तार्त्विज्येन॒ प्रेषि॑ता ॥१४॥
Griffith
The jar covered with the Rich has been solemnly directed by the priestly office.
पदपाठः
ऋ॒चा। कु॒म्भी। अधि॑ऽहिता। आर्त्वि॑ज्येन। प्रऽइ॑षिता। ३.१४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- आसुरी गायत्री
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कुम्भी) कुम्भी [छोटा पात्र] (ऋचा) वेदवाणी के साथ (अधिहिता) ऊपर चढ़ाई गई और (आर्त्विज्येन) ऋत्विजों [सब ऋतुओं में यज्ञ करनेवालों] के कर्म से (प्रेषिता) भेजी गई है ॥१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे जल आदि के लिये कुम्भी उपकारी होती है, वैसे ही वेदवाणी विद्वानों द्वारा प्रचरित होकर हित करती है ॥१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १४−(ऋचा) ऋग् वाङ्नाम-निघ० १।११। स्तुत्या वेदवाण्या सह (कुम्भी) जलादिलघुपात्रम्। उखा (अधिहिता) उपरि स्थापिता (आर्त्विज्येन) गुणवचनब्राह्मणादिभ्यः कर्मणि च। पा० ५।१।१२४। ऋत्विज्−ष्यञ्। ऋत्विजां कर्मणा (प्रेषिता) प्रेरिता ॥
१५ ब्रह्मणा परिगृहीता
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ब्रह्म॑णा॒ परि॑गृहीता॒ साम्ना॒ पर्यू॑ढा ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ब्रह्म॑णा॒ परि॑गृहीता॒ साम्ना॒ पर्यू॑ढा ॥
१५ ब्रह्मणा परिगृहीता ...{Loading}...
Whitney
ब्रह्म॑णा॒ परि॑गृहीता॒ साम्ना॒ पर्यू॑ढा ॥१५॥
Griffith
Received by the Brahman, it has been carried round.
पदपाठः
ब्रह्म॑णा। परि॑ऽगृहिता। साम्ना॑। परि॑ऽऊढा। ३.१५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- साम्न्युष्णिक्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ब्रह्मणा) ब्रह्मा [वेदज्ञाता] करके (परिगृहीता) ग्रहण की गई वह [कुम्भी] (साम्ना) दुःखनाशक [मोक्ष ज्ञान] द्वारा (पर्यूढा) सब ओर ले जायी गयी है ॥१५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - ब्रह्मज्ञानी लोग वेदवाणी को ग्रहण करके मोक्ष प्राप्त करते हैं ॥१५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १५−(ब्रह्मणा) ब्रह्मवादिना ब्राह्मणेन (परिगृहीता) स्वीकृता (साम्ना) षो अन्तकर्मणि-मनिन्। दुःखनाशकेन मोक्षज्ञानेन (पर्यूढा) वह प्रापणे-क्त। सर्वतो नीता ॥
१६ बृहदायवनं रथन्तरम्
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बृ॒हदा॒यव॑नं रथन्त॒रं दर्विः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
बृ॒हदा॒यव॑नं रथन्त॒रं दर्विः॑ ॥
१६ बृहदायवनं रथन्तरम् ...{Loading}...
Whitney
बृ॒हदा॒यव॑नं रथन्त॒रं दर्विः॑ ॥१६॥
Griffith
The Brihat is, the stirring-spoon, the Rathantara the ladle.
पदपाठः
बृ॒हत्। आ॒ऽयव॑नम्। र॒थ॒म्ऽत॒रम्। दर्विः॑। ३.१६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- आसुरी बृहती
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (बृहत्) बृहत् [बड़ा आकाश] (आयवनम्) [उस परमेश्वर का] सब ओर से मिलाने का चमचा, और (रथन्तरम्) रथन्तर [रमणीय पदार्थों द्वारा पार लगानेवाला जगत्] (दर्विः) [उसकी] डोबी [परोसने की करछी है] ॥१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - यह सब आकाश और सब जगत् परमेश्वर के लिये ऐसे छोटे पदार्थ हैं, जैसे गृहस्थ के चमचे आदि पात्र होते हैं ॥१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १६−(बृहत्) प्रवृद्धमाकाशम् (आयवनम्) आङ्+यु मिश्रणामिश्रणयोः-ल्युट्। समन्ताद् मिश्रणसाधनं चमसः (रथन्तरम्) अ० ८।१०(२)।६। रमु क्रीडायाम्−क्थन्+तॄ प्लवनतरणयोः-खच् मुम् च। रथै रमणीयैः पदार्थैस्तरति येन तज् जगत् (दर्विः) अ० ४।१४।७। दॄ विदारणे-विन्। पाकोद्धारणसाधनम् ॥
१७ ऋतवः पक्तार
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ऋ॒तवः॑ प॒क्तार॑ आर्त॒वाः समि॑न्धते ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ऋ॒तवः॑ प॒क्तार॑ आर्त॒वाः समि॑न्धते ॥
१७ ऋतवः पक्तार ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The seasons the cooks; they of the seasons kindle fire.
Notes
Griffith
The Seasons are the dressers, the Groups of Seasons kindle the fire.
पदपाठः
ऋ॒तवः॑। प॒क्तारः॑। आ॒र्त॒वाः। सम्। इ॒न्ध॒ते॒। ३.१७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- आसुर्यनुष्टुप्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतवः) ऋतुएँ और (आर्तवाः) ऋतुओं के अवयव [महीने दिन राति आदि] (पक्तारः) पाककर्ता होकर [अग्नि को] (सम्) यथानियम (इन्धते) जलाते हैं ॥१७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - ऋतुएँ और महीने आदि ईश्वरनियम से संसार में पचन क्रिया करते हैं ॥१७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १७−(ऋतवः) वसन्तादयः (पक्तारः) पाचकाः (आर्तवाः) ऋतूनामवयवाः (सम्) सम्यक् (इन्धते) दीपयन्ति, अग्निं ज्वलयन्ति ॥
१८ चरुं पञ्चबिलमुखम्
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च॒रुं पञ्च॑बिलमु॒खं घ॒र्मो॒३॒॑भीन्धे॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
च॒रुं पञ्च॑बिलमु॒खं घ॒र्मो॒३॒॑भीन्धे॑ ॥
१८ चरुं पञ्चबिलमुखम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Heat (gharmá) burns upon the pot of five openings, the boiler
(ukhá).
Notes
Griffith
The caldron flames round the oblation (charu) whose mouth consists of five openings.
पदपाठः
च॒रुम्। पञ्च॑ऽबिलम्। उ॒खम्। घ॒र्मः। अ॒भि। इ॒न्धे॒। ३.१८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- आसुर्यनुष्टुप्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (घर्मः) तपनेवाला सूर्य (पञ्चबिलम्) पाँच [पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश रूप] बिल [छिद्र] वाले (चरुम्) पकाने के बर्तन, (उखम् अभि) हाँडी के आस-पास (इन्धे) जलता है ॥१८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमेश्वर के नियम से सूर्य अन्य लोकों को तपाकर आनन्द देता है ॥१८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १८−(चरुम्) पाकपात्रम् (पञ्चबिलम्) पञ्च पृथिवीजलतेजोवाय्वाकाशरूपाणि बिलानि च्छिद्राणि यस्मिन् तम् (उखम्) पुंस्त्वं छान्दसम्। उखां स्थालीम् (घर्मः) घर्मग्रीष्मौ। उ० १।१४९। घृ दीप्तौ-मक्, गुणो निपातितः। आतपः। ग्रीष्मः। सूर्यः (अभि) प्रति (इन्धे) दीप्यते ॥
१९ ओदनेन यज्ञवचः
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ओ॑द॒नेन॑ यज्ञव॒चः सर्वे॑ लो॒काः स॑मा॒प्याः᳡ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ओ॑द॒नेन॑ यज्ञव॒चः सर्वे॑ लो॒काः स॑मा॒प्याः᳡ ॥
१९ ओदनेन यज्ञवचः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- By the rice-dish of him who hath an offering (?) all worlds are to
be obtained together.
Notes
The translation implies emendation of the unintelligible yajñavacás to
yajñavatas, the Ppp. reading, as reported in the minor Pet. Lex. ⌊and
Roth’s notes⌋. The comm. explains the word as = yajñāir agniṣṭomādibhiḥ
prāptavyatveno ’cyamānaḥ.
Griffith
The sacrificial word, all worlds are to be won with Odana.
पदपाठः
ओ॒द॒नेन॑। य॒ज्ञ॒ऽव॒चः। सर्वे॑। लो॒काः। स॒म्ऽआ॒प्याः᳡। ३.१९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- प्राजापत्यानुष्टुप्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ओदनेन) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] द्वारा (यज्ञवचः) यज्ञों [श्रेष्ठकर्मों] से बताये गये (सर्वे) सब (लोकाः) स्थान (समाप्याः) यथावत् पाने योग्य हैं ॥१९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमेश्वर की आराधना से मनुष्य सब उत्तम-उत्तम अधिकार पा सकता है ॥१९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १९−(ओदनेन) अ० ९।५।१९। सुखवर्षकेण, अन्नरूपेण परमेश्वरेण (यज्ञवचः) वचेः कर्मणि-विच्। यज्ञैः श्रेष्ठकर्मभिः कथ्यमानाः (सर्वे) (लोकाः) भुवनानि (समाप्याः) सम्यक् प्रापणीयाः ॥
२० यस्मिन्त्समुद्रो द्यौर्भूमिस्त्रयोऽवरपरम्
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यस्मि॑न्त्समु॒द्रो द्यौर्भूमि॒स्त्रयो॑ऽवरप॒रं श्रि॒ताः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यस्मि॑न्त्समु॒द्रो द्यौर्भूमि॒स्त्रयो॑ऽवरप॒रं श्रि॒ताः ॥
२० यस्मिन्त्समुद्रो द्यौर्भूमिस्त्रयोऽवरपरम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- In which ⌊rice-dish⌋ are set (śritá), one below the other, the
three, sea, sky, earth.
Notes
Griffith
Whereon in order rest the three, the ocean, and the heaven, and earth.
पदपाठः
यस्मि॑न्। स॒मु॒द्रः। द्यौः। भूमिः॑। त्रयः॑। अ॒व॒र॒ऽप॒रम्। श्रि॒ताः। ३.२०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- प्राजापत्यानुष्टुप्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यस्मिन्) जिस [ओदन, परमेश्वर] में (द्यौः) सूर्य, (समुद्रः) अन्तरिक्ष और (भूमिः) भूमि, (त्रयः) तीनों [लोक] (अवरपरम्) नीचे-ऊपर (श्रिताः) ठहरे हैं ॥२०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र २२ के साथ ॥२०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २०−(यस्मिन्) ओदने, परमेश्वरे (समुद्रः) अ० १।१३।३। अन्तरिक्षम्-निघ० १।३। (द्यौः) प्रकाशमानः सूर्यः (भूमिः) (त्रयः) लोकाः (अवरपरम्) अधरोत्तरम् (श्रिताः) स्थिताः ॥
२१ यस्य देवा
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यस्य॑ दे॒वा अक॑ल्प॒न्तोच्छि॑ष्टे॒ षड॑शी॒तयः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यस्य॑ दे॒वा अक॑ल्प॒न्तोच्छि॑ष्टे॒ षड॑शी॒तयः॑ ॥
२१ यस्य देवा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- In the remnant (úchiṣṭa) of which took shape six times eighty
gods.
Notes
The comm. paraphrases akalpanta by samarthā vīryavanto ‘bhavan.
Griffith
Within the residue whereof the Gods arranged six eightieth parts–
पदपाठः
यस्य॑। दे॒वाः। अक॑ल्पन्त। उत्ऽशि॑ष्टे। षट्। अ॒शी॒तयः॑। ३.२१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- प्राजापत्यानुष्टुप्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) जिस [परमेश्वर] के (उच्छिष्टे) सबसे बड़े श्रेष्ठ [वा प्रलय में भी बचे] सामर्थ्य में (देवाः) [सूर्य आदि] दिव्य लोक और (षट्) छह [पूर्व आदि चार और नीचे ऊपर की] (अशीतयः) व्यापक दिशाएँ (अकल्पन्त) रची हैं ॥२१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र २२ के साथ ॥२१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २१−(यस्य) परमेश्वरस्य (देवाः) सूर्यादयो दिव्यलोकाः (अकल्पन्त) कृपू सामर्थ्ये-लङ्। रचिता अभवन् (उच्छिष्टे) शासु अनुशिष्टौ-क्त। शास इदङ्हलोः। पा० ६।४।३।४। उपधाया इकारः। शासिवसिघसीनां च। पा० ८।३।६०। इति षत्वम्। यद्वा शिष असर्वोपयागे-क्त। उच्छिष्टात् सर्वस्मादूर्ध्वं शिष्टात् परमेश्वरात् तत्सामर्थ्याच्च-इति दयानन्दकृतायाम् ऋग्वेदादिभाष्यभूमिकायां पृष्ठे १३६। सर्वोत्कृष्टे सामर्थ्ये। यद्वा प्रलयेऽप्यवशिष्टे। परिशिष्टे सामर्थ्ये (षट्) प्राच्यादिनीचोच्चषट्संख्याकाः (अशीतयः) अ० २।१२।४। वसेस्तिः उ० ४।१८०। अशू व्याप्तौ-ति, छान्दस इडागमो दीर्घश्च। व्यापिका दिशाः ॥
२२ तं त्वौदनस्य
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तं त्वौ॑द॒नस्य॑ पृच्छामि॒ यो अ॑स्य महि॒मा म॒हान् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तं त्वौ॑द॒नस्य॑ पृच्छामि॒ यो अ॑स्य महि॒मा म॒हान् ॥
२२ तं त्वौदनस्य ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Thee here I ask of the rice-dish, what is its great greatness.
Notes
Griffith
I ask thee, of this Odana what is the mighty magnitude.
पदपाठः
तम्। त्वा॒। ओ॒द॒नस्य॑। पृ॒च्छा॒मि॒। यः। अ॒स्य॒। म॒हि॒मा। म॒हान्। ३.२२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- प्राजापत्यानुष्टुप्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे आचार्य !] (त्वा) तुझसे (ओदनस्य) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] की (तम्) उस [महिमा] को (पृच्छामि) मैं पूछता हूँ, (यः) जो (अस्य) उसकी (महान्) बड़ी (महिमा) महिमा है ॥२२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस परमेश्वर के सामर्थ्य में सब लोक और सब दिशाएँ वर्तमान हैं, मनुष्य उसकी महिमा को खोज कर अपना सामर्थ्य बढ़ावे, म० २०-२२ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २२−(तम्) महिमानम् (त्वा) त्वामाचार्यम् (ओदनस्य) सुखवर्षकस्यान्नरूपस्य परमेश्वरस्य (पृच्छामि) अहं जिज्ञासे (यः) (अस्य) परमेश्वरस्य (महिमा) महत्त्वम् (महान्) अधिकः ॥
२३ स य
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स य ओ॑द॒नस्य॑ महि॒मानं॑ वि॒द्यात् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स य ओ॑द॒नस्य॑ महि॒मानं॑ वि॒द्यात् ॥
२३ स य ...{Loading}...
Whitney
Translation
- He who may know the greatness of the rice-dish—
Notes
Griffith
He who may know the magnitude of the Odana.
पदपाठः
सः। यः। ओ॒द॒नस्य॑। म॒हि॒मान॑म्। वि॒द्यात्। ३.२३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- आसुरी बृहती
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [योगी जन] (ओदनस्य) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] की (महिमानम्) महिमा को (विद्यात्) जानता हो (सः) वह (ब्रूयात्) कहे(न अल्पः इति) वह [परमेश्वर] थोड़ा नहीं है [अर्थात् बड़ा है], (न अनुपसेचनः इति) वह उपसेचनरहित नहीं है [अर्थात् सेचन वा वृद्धि करनेवाला है], (च) और (न इदम् किम् च इति) न वह यह कुछ वस्तु है [अर्थात् ब्रह्म में अङ्गुली का निर्देश नहीं हो सकता] ॥२३, २४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य जैसे-जैसे परमेश्वर को खोजता है, उसका सामर्थ्य बढ़ता जाता है, तौ भी उसका परिमाण, आदि सीमा नहीं जानता और न उसका यथावत् वर्णन कर सकता है ॥२३, २४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २३, २४−(सः) योगिजनः (यः) (ओनदस्य) सुखवर्षकस्यान्नरूपस्य परमात्मनः (महिमानम्) महत्त्वम् (विद्यात्) जानीयात् (न) निषेधे (अल्पः) न्यूनः (इति) वाक्यसमाप्तौ (ब्रूयात्) वदेत् (न) न ब्रूयात् (अनुपसेचनः) षिच सेके-ल्युट्। उपसेचनेन वर्धनेन रहितः (इति) (न) निषेधे (इदम्) निर्दिष्टम् ब्रह्म (च च) (किम् च) किंचन (इति) ॥
२४ नाल्प इति
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नाल्प॒ इति॑ ब्रूया॒न्नानु॑पसेच॒न इति॒ नेदं च॒ किं चेति॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
नाल्प॒ इति॑ ब्रूया॒न्नानु॑पसेच॒न इति॒ नेदं च॒ किं चेति॑ ॥
२४ नाल्प इति ...{Loading}...
Whitney
Translation
- May not say “[it is] little,” not “[it is] without onpouring,”
nor “[it is] this thing soever.”
Notes
Upasecana is explained by the comm. as ‘milk, butter, curd, or the
like, that is poured on’—we might render by ‘sauce.’
Griffith
Would say, Not small, nor devoid of moistening sauce; not this, nor any- thing whatever.
पदपाठः
न। अल्पः॑। इति॑। ब्रू॒या॒त्। न। अ॒नु॒प॒ऽसे॒च॒नः। इति॑। न। इ॒दम्। च॒। किम्। च॒। इति॑। ३.२४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- त्रिपदा प्राजापत्या बृहती
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [योगी जन] (ओदनस्य) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] की (महिमानम्) महिमा को (विद्यात्) जानता हो (सः) वह (ब्रूयात्) कहे(न अल्पः इति) वह [परमेश्वर] थोड़ा नहीं है [अर्थात् बड़ा है], (न अनुपसेचनः इति) वह उपसेचनरहित नहीं है [अर्थात् सेचन वा वृद्धि करनेवाला है], (च) और (न इदम् किम् च इति) न वह यह कुछ वस्तु है [अर्थात् ब्रह्म में अङ्गुली का निर्देश नहीं हो सकता] ॥२३, २४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य जैसे-जैसे परमेश्वर को खोजता है, उसका सामर्थ्य बढ़ता जाता है, तौ भी उसका परिमाण, आदि सीमा नहीं जानता और न उसका यथावत् वर्णन कर सकता है ॥२३, २४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २३, २४−(सः) योगिजनः (यः) (ओनदस्य) सुखवर्षकस्यान्नरूपस्य परमात्मनः (महिमानम्) महत्त्वम् (विद्यात्) जानीयात् (न) निषेधे (अल्पः) न्यूनः (इति) वाक्यसमाप्तौ (ब्रूयात्) वदेत् (न) न ब्रूयात् (अनुपसेचनः) षिच सेके-ल्युट्। उपसेचनेन वर्धनेन रहितः (इति) (न) निषेधे (इदम्) निर्दिष्टम् ब्रह्म (च च) (किम् च) किंचन (इति) ॥
२५ यावद्दाताभिमनस्येत तन्नाति
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याव॑द्दा॒ताभि॑मन॒स्येत॒ तन्नाति॑ वदेत् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
याव॑द्दा॒ताभि॑मन॒स्येत॒ तन्नाति॑ वदेत् ॥
२५ यावद्दाताभिमनस्येत तन्नाति ...{Loading}...
Whitney
Translation
- As much as the giver may set his mind upon, that one should not
overbid (ati-vad).
Notes
Griffith
He would not declare it to be greater than the giver imagines it to be.
पदपाठः
याव॑त्। दा॒ता। अ॒भि॒ऽम॒न॒स्येत॑। तत्। न। अति॑। व॒दे॒त्। ३.२५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- साम्न्युष्णिक्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यावत्) जितना [ब्रह्मज्ञान] (दाता) दाता [ज्ञानदाता] (अभिमनस्येत) मन से विचारे, (तत्) उस को (अति) अधिक करके वह [ज्ञानदाता] (न वदेत) न बोले ॥२५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - उपदेशक गुरु विचारपूर्वक ब्रह्मज्ञान का सत्य-सत्य उपदेश करे, कदापि मिथ्या न बोले ॥२५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २५−(यावत्) यत्प्रमाणं ब्रह्मज्ञानम् (दाता) ज्ञानदाता गुरुः (अभिमनस्येत) भृशादिभ्यो भुव्यच्वेर्लोपश्च हलः। पा० ३।१।१२। अभिमनस्-क्यङ्, न सलोपः। मनसा विचारयेत् (तत्) ब्रह्मज्ञानम् (न) निषेधे (अति) अधिकम् (वदेत्) ब्रूयात् ॥
२६ ब्रह्मवादिनो वदन्ति
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ब्र॑ह्मवा॒दिनो॑ वदन्ति॒ परा॑ञ्चमोद॒नं प्राशीः३ प्र॒त्यञ्चा३मिति॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ब्र॑ह्मवा॒दिनो॑ वदन्ति॒ परा॑ञ्चमोद॒नं प्राशीः३ प्र॒त्यञ्चा३मिति॑ ॥
२६ ब्रह्मवादिनो वदन्ति ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The theologues (brahmavādín) say: hast thou eaten (pra-aś) the
rice-dish as it was retiring (párāñc), or as it was coming on
(pratyáñc)?
Notes
The pluta- or protracted syllables in this and the next verse are
quoted in Prāt. i. 105, but nothing is said as to their accentuation,
from which it seems most plausible to infer that the protraction made no
difference in the accent; and though in the Brāhmaṇas a protracted
syllable is always accented ⌊see Gram. §78 a⌋, that is not the
invariable rule in the Vedic texts (thus, only once among the three
instances occurring in RV.). Here the mss. are greatly at variance.
⌊SPP’s V. (a then living śrotriya) read prā́śī́3ḥ; and by his ms.
D^(c) the reading prā́śī́ḥ3 is given secunda manu. Among our mss.,
O.R.Kp. (and E.?) give prā́śī́ḥ3. SPP. reports that 16 of his
authorities agree in giving pratyáñcā́3m; and (apart from the presence
or position of the 3) this seems to be the reading of many of W’s
mss.⌋ SPP’s text gives an accent to the protracted syllable in both
cases in both vs. 26 and vs. 27.—⌊SPP’s pada-reading in vs. 26 is
prá: āśī́3ḥ, and in 27 it is prá: ā́śī́3ḥ. An accented ā́ in āśī́3ḥ
would require pra॰ā́śī́3ḥ (cf. vs. 28); but one does not see why the ā
should be accented.⌋
Griffith
The theologians say, Thou hast eaten the averted Odana and the Odana turned hither- ward.
पदपाठः
ब्र॒ह्म॒ऽवा॒दिनः॑। व॒द॒न्ति॒। परा॑ञ्चम्। ओ॒द॒नम्। प्र। आ॒शी३ः। प्र॒त्यञ्चा३म्। इति॑। ३.२६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- आर्च्युष्णिक्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ब्रह्मवादिनः) ब्रह्मवादी [ईश्वर वा वेद को विचारनेवाले] (वदन्ति) कहते हैं−“[हे मनुष्य ! क्या] (पराञ्चम्) दूरवर्ती (ओदनम्) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] को (प्र आशीः ३) तूने खाया है, [अथवा] (प्रत्यञ्चा३म् इति) प्रत्यक्षवर्ती को ? ॥२६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - प्रश्न है कि क्या परमेश्वर किसी दूर वा प्रत्यक्ष स्थान विशेष में मिलता है ? इसका उत्तर आगे मन्त्र २८ तथा २९ में है ॥२६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २६−(ब्रह्मवादिनः) ब्रह्मणः परमेश्वरस्य वेदस्य वा विचारका महर्षयः (वदन्ति) भाषन्ते (पराञ्चम्) परा+अञ्चु गतिपूजनयोः-क्विन्। दूरे गच्छन्तम् (ओदनम्) सुखवर्षकमन्नरूपं परमेश्वरम् (प्र) प्रकर्षेण (आशीः३) अश भोजने-लुङ्। विचार्यमाणानाम्। पा० ८।२।९७। इति टेः प्लुतः। भक्षितवानसि (प्रत्यञ्चा३म्) प्रति+अञ्चु गतिपूजनयोः क्विन्, पूर्ववत् प्लुतः। प्रत्यञ्चनम् प्रत्यक्षवर्तिनम् (इति) वाक्यसमाप्तौ ॥
२७ त्वमोदनं प्राशी३स्त्वामोदना३
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
त्वमो॑द॒नं प्राशी३स्त्वामो॑द॒ना३ इति॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
त्वमो॑द॒नं प्राशी३स्त्वामो॑द॒ना३ इति॑ ॥
२७ त्वमोदनं प्राशी३स्त्वामोदना३ ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Hast thou eaten the rice-dish, or the rice-dish thee?
Notes
The mss. again disagree as to the accent of prāśī3s, the majority
(including our Bp.P.M.) having prā́śī3s as odaná happens to have its
natural accent on the final, there is no discordance as to odanā́3ḥ.
Griffith
Thou hast eaten the Odana and the Odana will eat thee.
पदपाठः
त्वम्। ओ॒द॒नम्। प्र। आ॑शी३ः। त्वाम्। ओ॒द॒ना३ः। इति॑। ३.२७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- साम्नी गायत्री
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [क्या] (त्वम्) तूने (ओदनम्) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] को (प्र आशीः३) खाया है, [अथवा] (त्वा) तुझको (ओदना३ इति) ओदन [सुखवर्षक अन्नरूप परमेश्वर] ने ? ॥२७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - प्रश्न है कि क्या मनुष्य परमेश्वर को अन्न समान खाता है, वा परमेश्वर मनुष्य को अन्न तुल्य खाता है। इसका उत्तर मन्त्र ३० तथा ३१ में है ॥२७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २७−(त्वम्) (ओदनम्) सुखवर्षकमन्नरूपं परमात्मानम् (प्र) (आशीः३) म० २६। भक्षितवानसि (ओदनाः ३) विचार्यमाणानाम्। पा० ८।२।९७। इति प्लुतः। सुखवर्षकोऽन्नतुल्यः परमेश्वरः (इति) वाक्यसमाप्तौ ॥
२८ पराञ्चं चैनम्
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परा॑ञ्चं चैनं॒ प्राशीः॑ प्रा॒णास्त्वा॑ हास्य॒न्तीत्ये॑नमाह ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
परा॑ञ्चं चैनं॒ प्राशीः॑ प्रा॒णास्त्वा॑ हास्य॒न्तीत्ये॑नमाह ॥
२८ पराञ्चं चैनम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it retiring, thy breaths (prāṇá) will quit
thee: so one says to him.
Notes
Griffith
Thou hast eaten this averted; thy inward breath will leave thee; so he said to this one.
पदपाठः
परा॑ञ्चम्। च॒। ए॒न॒म्। प्र॒ऽआशीः॑। प्रा॒णाः। त्वा॒। हा॒स्य॒न्ति॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। ३.२८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- साम्नी बृहती
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - “(च) यदि (पराञ्चम्) दूरवर्ती (एनम्) इस [ओदन] को (प्राशीः) तूने खाया है, (प्राणाः) श्वास के बल (त्वा) तुझे (हास्यन्ति) त्यागेंगे (इति) ऐसा वह [आचार्य] (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) कहता है ॥२८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र २९ के साथ ॥२८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २८−(पराञ्चम्) म० २६। दूरे गच्छन्तम् (च) चेत् (एनम्) ओदनम् (प्राशीः) म० २६। प्रकर्षेण भक्षितवानसि (प्राणाः) श्वासबलानि (त्वा) (हास्यन्ति) ओहाक् त्यागे। त्यक्ष्यन्ति (इति) एवम् (एनम्) जिज्ञासुम् (आह) ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि लट्। ब्रवीति ॥
२९ प्रत्यञ्चं चैनम्
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प्र॒त्यञ्चं॑ चैनं॒ प्राशी॑रपा॒नास्त्वा॑ हास्य॒न्तीत्ये॑नमाह ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
प्र॒त्यञ्चं॑ चैनं॒ प्राशी॑रपा॒नास्त्वा॑ हास्य॒न्तीत्ये॑नमाह ॥
२९ प्रत्यञ्चं चैनम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it coming on, thine expirations (apāná) will
quit thee: so one says to him.
Notes
Griffith
Thou hast eaten this turned hitherward; thy downward breath will leave thee; so he said to this one.
पदपाठः
प्र॒त्यञ्च॑म्। च॒। ए॒न॒म्। प्र॒ऽआशीः॑। अ॒पा॒नाः। त्वा॒। हा॒स्य॒न्ति॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। ३.२९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- भुरिक्साम्नी बृहती
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - “(च) यदि (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्षवर्ती (एनम्) इस [ओदन] को (प्राशीः) तूने खाया है। (अपानाः) प्रश्वासबल (त्वा) तुझे (हास्यन्ति) त्यागेंगे (इति) ऐसा वह [आचार्य] (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) कहता है ॥२९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र २६ का उत्तर है। आचार्य उपदेश करता है, जो मनुष्य परमेश्वर को दूरवर्ती वा समीपवर्ती अर्थात् एकस्थानी मानता है, वह श्वास और प्रश्वास से हीन होकर निर्बल हो जाता है ॥२९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २९−(प्रत्यञ्चम्) म० २६। प्रत्यक्षवर्तिनम् (अपानाः) प्रश्वासबलानि। अन्यत् पूर्ववत् म० २८॥
३० नैवाहमोदनं न
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नैवाहमो॑द॒नं न मामो॑द॒नः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
नैवाहमो॑द॒नं न मामो॑द॒नः ॥
३० नैवाहमोदनं न ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Not I, indeed, [have eaten] the rice-dish, nor the rice-dish me.
Notes
Griffith
I indeed have not eaten the Odana, nor has the Odana eaten me.
पदपाठः
न। ए॒व। अ॒हम्। ओ॒द॒नम्। न। माम्। ओ॒द॒नः। ३.३०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- याजुषी त्रिष्टुप्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (न एव) न तो (अहम्) मैंने (ओदनम्) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] को [खाया है] और (न) न (माम्) मुझको (ओदनः) ओदन [सुख बरसानेवाले परमेश्वर] ने [खाया] है ॥३०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - यह मन्त्र २७ का उत्तर है। जीवात्मा और परमात्मा दोनों अनादि, अन्तरहित और अविनाशी हैं ॥३०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३०−(न) निषेधे (एव) निश्चयेन (अहम्) प्राणी प्राशिषमिति शेषः म० २७। (ओदनम्) सुखवर्षकमन्नरूपं परमात्मानम् (न) निषेधे (माम्) जीवात्मानम् (ओदनः) अन्नरूपः परमेश्वरः प्राशीदिति शेषः म० २७॥
३१ ओदन एवौदनम्
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ओ॑द॒न ए॒वौद॒नं प्राशी॑त् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ओ॑द॒न ए॒वौद॒नं प्राशी॑त् ॥
३१ ओदन एवौदनम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The rice-dish itself hath eaten the rice-dish.
Notes
[Paryāya II.—dvāsaptati. mantroktadevatyam. a, of 32, 38,
41, g of 32-49. sāmnī triṣṭubh; b of 32, 35, 42, c
32-49, e of 33, 34, 44-48, 1-p. āsurī gāyatrī; d of 32, 41,
43, 47. dāivī jagatī; b of 38, 44, 46, e of 32, 33-43, 49.
1-p. āsury anuṣṭubh; f of 32-49. sāmny anuṣṭubh; a of
33-49.* ārcy anuṣṭubh; a of 37. sāmnī pan̄kti; b of 33, 36,
40, 47, 48. āsurī jagatī; b of 34, 37, 41, 43, 45. āsurī pan̄kti;
d of 34. āsurī triṣṭubh; d of 35, 46, 48. yājuṣī gāyatrī;
d of 36, 37, 40. dāivi pan̄kti; d of 38, 39. prājāpatyā
gāyatrī; b of 39. āsury uṣṇih; d of 42, 45, 49, dāivi
triṣṭubh; b of 49. 1-p. bhurik sāmnī bṛhatī.†]
*⌊The text of the Anukr. reads enam anyābhyāṁ śrotrābhyām (= a of
33) ity āditaḥ saptadaśā ”rcyanuṣṭubhaḥ. The definition applies (perhaps
with occasional forcing) to 14 of the 17 first avasānas of vss. 33-49.
As for the other 3, the a of 38 and the a of 41 are accurately
defined above, in the first line of the Anukr. excerpts for this
paryāya; and the a of 37, in the definition next following the
asterisk.⌋
†⌊The definition of 33 d, 44 d (9 syllables) is omitted by the
Anukr.⌋
The second paryāya of this hymn is reckoned in the Anukr. as of 72
divisions in 18 gaṇas or paragraphs; but the actual division in the
mss. is into 126 such divisions (7 to each gaṇa), as given in both
editions; and the metrical description of the Anukr. (as reported above)
is also on that basis.
⌊The division of this paryāya into 72 avasānas.—In his Critical
Notice, p. 20-21, at the beginning of his first volume, SPP. treats of
this matter; and just after the end (p. 356) of the text of his third
volume, he prints again this paryāya, but divided into 72 avasānas
“according to the instructions contained in the Sarvānukramaṇikā” which
he had printed in the Critical Notice, l.c.⌋
⌊The Major Anukr. calls the 18 main divisions of this paryāya
(answering to the “verses” of the Berlin ed.) by the name of daṇḍakas.
Since the daṇḍakas are all subdivided, they are also (see p. 472)
called ganas. Each dandaka falls into 7 subdivisions or avasānas,
which may be designated as a, b, c, d, e, f, g. Each of these 7 is
written out and counted for the first and last daṇḍaka (vss. 32 and
49, Berlin).⌋
⌊Similarly, in a sequence of refrains or anuṣan̄gas, the refrain is
given and counted as an avasāna only for its first and last occurrence
in that sequence. The third subdivision (or c: beginning taṁ vā
aham) of each daṇḍaka, being unvaried throughout the paryāya,
constitutes a sequence of 18 and is given and counted independently only
for vss. 32 and 49; while for the 16 vss., 33-48, it is given (see SPP.
in vol. iii.) and counted as one with b, thus making the avasāna
to consist of b-c.—In like manner, the sixth subdivision (or f:
beginning eṣa vā odanaḥ) and the seventh subdivision (or g:
beginning sarvān̄ga eva), being unvaried throughout, constitute a
sequence of 18 and are given and counted independently only for vss. 32
and 49; while for the other 16 vss. they are counted as one with e,
thus making the avasāna to consist of e-g.⌋
⌊Furthermore, and on the other hand, subdivision e varies as to its
beginning between tenāi ’nam, tayāi ’nam, and tāir enam, and
tābhyām enam: but we find no unvaried sequences of more than two
except tenāi ’nam etc. in the 5 vss., 39-43, and tābhyām enam
etc. in the 5 vss., 44-48. For vss. 40, 41, 42, accordingly, and for
vss. 45, 46, 47, as well, not only is f-g reckoned to e, but
also e-f-g is reckoned as an anuṣan̄ga to d, thus making the
avasāna to consist of d-g.⌋
⌊For these six verses, therefore, arranged and counted as 3 avasānas
(a, b-c, d-g), we have the reckoning 6 × 3 = 18.—For verses 32 and
49 (counted as a, b, c, d, e, f, g, as above noted), we have the
reckoning 2 × 7 = 14.—And for the remaining ten verses, we have the
arrangement and count, a, b-c, d, e-g, or 10 × 4 = 40. This gives us
(18 + 14 + 40 =) 72, which is the count, not only of the Major Anukr.,
but of the Old Anukr. or Pañcapaṭalikā. as well.⌋
Griffith
The Odana has just eaten the Odana. 2
पदपाठः
ओ॒द॒नः। ए॒व। ओ॒द॒नम्। प्र। आ॒शी॒त्। ३.३१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- बार्हस्पत्यौदनः
- अथर्वा
- अल्पशः पङ्क्तिरुत याजुषी
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ओदनः) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] ने (एव) हि (ओदनम्) ओदन [सुखवर्षक स्थूल जगत्] को (प्र आशीत्) खाया है ॥३१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमेश्वर अपने सामर्थ्य से सृष्टि के समय स्थूल जगत् को उत्पन्न करता और प्रलय के समय सबको सूक्ष्म कारण में लीन कर देता है। जीवात्मा के लिये स्थूल जगत् में स्थूल शरीर मुक्ति का साधन है ॥३१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३१−(ओदनः) सुखवर्षकोऽन्नरूपः परमात्मा (एव) (ओदनम्) सुखवर्षकमन्नरूपं स्थूलं जगत् (प्राशीत्) भक्षितवान् ॥
३२ ततश्चैनमन्येन शीर्ष्णा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तत॑श्चैनम॒न्येन॑ शी॒र्ष्णा प्राशी॒र्येन॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
ज्ये॑ष्ठ॒तस्ते॑ प्र॒जा म॑रिष्य॒तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
बृ॑ह॒स्पति॑ना शी॒र्ष्णा।
तेनै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तेनै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्येन॑ शी॒र्ष्णा प्राशी॒र्येन॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
ज्ये॑ष्ठ॒तस्ते॑ प्र॒जा म॑रिष्य॒तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
बृ॑ह॒स्पति॑ना शी॒र्ष्णा।
तेनै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तेनै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
३२ ततश्चैनमन्येन शीर्ष्णा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If ⌊ca⌋ thou hast eaten it with another head than that (tátas)
with which the ancient seers ate this, thy progeny, from the oldest
down, will die: so one says to him; it verily I [have] not [eaten]
coming hither (arvā́ñc), nor retiring, nor coming on; with Brihaspati
[as] head, therewith have I eaten it, therewith have I made it go;
this rice-dish, verily, is whole-limbed, whole-jointed, whole-bodied;
whole-limbed, whole-jointed, whole-bodied becometh he who knoweth thus.
Notes
The pada-reading of prā́śīs in a is pra॰ā́śīḥ.
Griffith
And thence he said to this one, Thou hast eaten this with a different head from that with which the ancient Rishis ate: thy offspring, reckoning from the eldest, will die. I have eaten it neither turned downward, nor turned away, nor turned hitherward. With Brihaspati as head: with him I have eaten, with him have I come to it. Now this Odana is complete with all members, joints, and body. Complete, verily, with all his members, joints, and body is he who possess this knowledge.
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्येन॑। शी॒र्ष्णा। प्र॒ऽआशीः॑। येन॑। च॒। ए॒तम्। पूर्वे॑। ऋष॑यः। प्र॒ऽआश्न॑न्। ज्ये॒ष्ठ॒तः। ते॒। प्र॒ऽजा। म॒रि॒ष्य॒ति॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। न। अ॒र्वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्च॑म्। बृह॒स्पती॑ना। शी॒र्ष्णा। तेन॑। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। तेन॑। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒द॒नः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन, अन्नरूप परमेश्वर] को (ततः) उससे (अन्येन) भिन्न (शीर्ष्णा) शिर से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (येन) जिस [शिर] से (च) ही (एतम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। (ज्येष्ठतः) अति बड़े से लेकर (ते) तेरे (प्रजा) [राज्य की] प्रजा (मरिष्यति) मरेगी, (इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया है]। (तेन) उसी [ऋषियों के समान] (बृहस्पतिना) बड़े ज्ञानों के रक्षक (शीर्ष्णा) शिर से (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (तेन) उसी से (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥(एषः) यह (वै) ही (ओदनः) ओदन [सुखवर्षक अन्नसमान परमेश्वर] (सर्वाङ्गः) सब उपायोंवाला, (सर्वपरुः) सब पालनोंवाला और (सर्वतनूः) सब उपकारोंवाला है। वह [मनुष्य] (एव) ही (सर्वाङ्गः) सब उपायोंवाला, (सर्वपरुः) सब पालनोंवाला और (सर्वतनूः) सब उपकारोंवाला (सम् भवति) हो जाता है, (यः) जो [मनुष्य] (एवम्) ऐसा (वेद) जानता है ॥३२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - आचार्य उपदेश करे−हे शिष्य तू वेदानुगामी ऋषियों के समान परमेश्वर में प्रीति कर, यदि उससे विरुद्ध चलेगा तो शरीर और आत्मा से गिरकर संसार का अपकार करेगा। तब शिष्य परमात्मा में पूर्ण भक्ति से प्रतिज्ञा करके आत्मिक, शारीरिक और सामाजिक बल बढ़ावे ॥३२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३२−(ततः) तस्माद् मस्तकात् (च) चेत् (एनम्) ओदनम् (अन्येन) भिन्नेन (शीर्ष्णा) शिरसा। शिरोविचारेण (प्राशीः) म० २६। भक्षितवानसि। अनुभूतवानसि (येन) शिरसा (च) एव (एतम्) ओदनम् (पूर्वे) पूर्वजाः (ऋषयः) वेदार्थज्ञातारः (प्राश्नन्) भक्षितवन्तः। अनुभूतवन्तः (ज्येष्ठतः) ज्येष्ठमारभ्य (ते) तव (प्रजा) राज्यजनता (मरिष्यति) मरणं प्राप्स्यति (इति) अनेन प्रकारेण (एनम्) जिज्ञासुम् (आह) ब्रवीति योगिजनः (तम्) ओदनम् (वै) निश्चयेन (अहम्) जिज्ञासुः (न) सम्प्रति-निरु० ७।३१। (अर्वाञ्चम्) अवरे पश्चात् काले प्रलये वर्तमानम् (न) सम्प्रति (पराञ्चम्) दूरे गतम् (न) सम्प्रति (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्षं प्राप्तम् (बृहस्पतिना) बृहतां ज्ञानानां रक्षकेण (शीर्ष्णा) शिरसा (तेन) (एनम्) ओदनम् (प्राशिषम्) भक्षितवानस्मि। अनुभूतवानस्मि (तेन) (एनम्) (अजीगमम्) गमेः स्वार्थण्यन्ताल्लुङि चङि रूपम्। अगमम्। प्राप्तवानस्मि (एषः) (वै) (ओदनः) सुखवर्षकोऽन्नरूपः परमेश्वरः (सर्वाङ्गः) अङ्ग पदे लक्षणे च-अच्। सर्वोपाययुक्तः (सर्वपरुः) अर्तिपॄवपियजितनि०। उ० २।११७। पॄ पालनपूरणयोः उसि। सर्वपालनयुक्तः (सर्वतनूः) कृषिचमितनिधनि०। उ० १।८०। तनु विस्तारे श्रद्धोपकरणयोश्च-ऊ। सर्वोपकारयुक्तः (सर्वाङ्गः) सर्वोपायः (एव) (सर्वपरुः) सर्वपालनः (सर्वतनूः) सर्वोपकारः (सम्) सम्यक् (भवति) (यः) पुरुषः (एवम्) (वेद) वेत्ति परमात्मानम् ॥
३३ ततश्चैनमन्याभ्यां श्रोत्राभ्याम्
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तत॑श्चैनम॒न्याभ्यां॒ श्रोत्रा॑भ्यां॒ प्राशी॒र्याभ्यां॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
ब॑धि॒रो भ॑विष्य॒सीत्ये॑नमाह।
तं वा॑ अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
द्यावा॑पृथि॒वीभ्यां॒ श्रोत्रा॑भ्याम्।
ताभ्या॑मेनं॒ प्राशि॑षं॒ ताभ्या॑मेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्याभ्यां॒ श्रोत्रा॑भ्यां॒ प्राशी॒र्याभ्यां॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
ब॑धि॒रो भ॑विष्य॒सीत्ये॑नमाह।
तं वा॑ अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
द्यावा॑पृथि॒वीभ्यां॒ श्रोत्रा॑भ्याम्।
ताभ्या॑मेनं॒ प्राशि॑षं॒ ताभ्या॑मेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
३३ ततश्चैनमन्याभ्यां श्रोत्राभ्याम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it with other ears than those ⌊tátas⌋ with
which the ancient seers ate this, thou wilt become deaf: thus one says
to him; it verily [have] I not [eaten] coming hither, nor retiring,
nor coming on; with heaven-and-earth as ears, with them have I eaten it,
with them have I made it go etc. etc.
Notes
Griffith
And thence he said to him, Thou hast eaten this with other ears than those with which the ancient Rishis ate it. Thou wilt be deaf. I have eaten it neither, etc. (as in verse 32). With Heaven and Earth as ears, with these I have eaten it, with these I have come to it. Now this Odana, etc. (as in 32).
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्याभ्या॑म्। श्रोत्रा॑भ्याम्। प्र॒ऽआशीः॑। याभ्या॑म्। च॒। ए॒तम्। पूर्वे॑। ऋष॑यः। प्र॒ऽआश्न॑न्। ब॒धि॒रः। भ॒वि॒ष्य॒सि॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। न। अ॒र्वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्च॑म्। द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॑म्। श्रोत्रा॑भ्याम्। ताभ्या॑म्। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। ताभ्या॑म्। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒द॒नः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽतनूः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन नाम परमेश्वर] को (ततः) उन [कानों] से (अन्याभ्याम्) भिन्न (श्रोत्राभ्याम्) दो कानों से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (याभ्याम्) जिन दोनों से (च) ही (एतम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। तू (बधिरः) बहिरा (भविष्यसि) हो जावेगा−(इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया अर्थात् अनुभव किया है]। (ताभ्याम्) उन (द्यापृथिवीभ्याम्) आकाश और पृथिवी रूप (श्रोत्राभ्याम्) दोनों कानों से [अर्थात् पदार्थ ज्ञान के श्रवण मनन से] (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (ताभ्याम्) उन दोनों से (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥ (एषः वै) यह ही… म० ३२ ॥३३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ३२ के समान ॥३३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३३−(ततः) ताभ्यां श्रोत्राभ्याम् (अन्याभ्याम्) भिन्नाभ्याम् (श्रोत्राभ्याम्) श्रवणाभ्याम् (बधिरः) इषिमदिमुदिखिदि०। उ० १।५१। बन्ध बन्धने-किरच्। श्रुतिशक्तिशून्यः (भविष्यसि) (द्यावापृथिवीभ्याम्) आकाशभूमिरूपाभ्याम्। अन्यत् पूर्ववत्-म० ३२ ॥
३४ ततश्चैनमन्याभ्यामक्षीभ्यां प्राशीर्याभ्याम्
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तत॑श्चैनम॒न्याभ्या॑म॒क्षीभ्यां॒ प्राशी॒र्याभ्यां॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
अ॒न्धो भ॑विष्य॒सीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
सू॑र्याचन्द्रम॒साभ्या॑म॒क्षीभ्या॑म्।
ताभ्या॑मेनं॒ प्राशि॑षं॒ ताभ्या॑मेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्याभ्या॑म॒क्षीभ्यां॒ प्राशी॒र्याभ्यां॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
अ॒न्धो भ॑विष्य॒सीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
सू॑र्याचन्द्रम॒साभ्या॑म॒क्षीभ्या॑म्।
ताभ्या॑मेनं॒ प्राशि॑षं॒ ताभ्या॑मेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
३४ ततश्चैनमन्याभ्यामक्षीभ्यां प्राशीर्याभ्याम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it with other eyes than those with which the
ancient seers ate this, thou wilt become blind: thus one says to him; it
verily [have] I not [eaten] coming hither, nor retiring, nor coming
on; with sun-and-moon as eyes, with them have I eaten it, with them etc.
etc.
Notes
All the mss. read sūryācandramasā́bhyām, which SPP. has very properly
retained in his text; ours was altered to agree with vi. 128. 3, but the
alteration should have been the other way.
Griffith
And thence he said to him. Thou hast eaten this with other eyes . . . thou wilt be blind. With Sun and Moon, etc.
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्याभ्या॑म्। अ॒क्षीभ्या॑म्। प्र॒ऽआशीः॑। याभ्या॑म्। च॒। ए॒तम्। पूर्वे॑। ऋष॑यः। प्र॒ऽआश्न॑न्। अ॒न्धः। भ॒वि॒ष्य॒सि॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। अ॒र्वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्च॑म्। सू॒र्या॒च॒न्द्र॒म॒साभ्या॑म्। अ॒क्षीभ्या॑म्। ताभ्या॑म्। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। ताभ्या॑म्। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒द॒नः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन नाम परमेश्वर] को (ततः) उन [नेत्रों] से (अन्याभ्याम्) भिन्न (अक्षीभ्याम्) दो नेत्रों से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (याभ्याम्) जिन दोनों से (च) ही (एतम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। तू (अन्धः) अन्धा (भविष्यसि) हो जावेगा−(इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया अर्थात् अनुभव किया है]। (ताभ्याम्) उन दोनों (सूर्याचन्द्रमसाभ्याम्) सूर्य और चन्द्रमा रूप [उन के समान नियम में चलकर] (अक्षीभ्याम्) दो नेत्रों से (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (ताभ्याम्) उन दोनों से (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥(एषः वै) यह ही… म० ३२ ॥३४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ३२ के समान ॥३४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३४−(ततः) ताभ्याम् (अक्षीभ्याम्) अ० २।३३।१। नेत्राभ्याम् (अन्धः) अन्ध दृष्टिनाशे-अच्। दृष्टिशक्तिरहितः (सूर्याचन्द्रमसाभ्याम्) अच् प्रत्यन्ववपूर्वात्सामलोम्नः। पा० ५।४।७५। अजिति योगविभागात्-अच् प्रत्ययः। सूर्यचन्द्ररूपाभ्याम्। अन्यत् पूर्ववत्-म० ३२ ॥
३५ ततश्चैनमन्येन मुखेन
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तत॑श्चैनम॒न्येन॒ मुखे॑न॒ प्राशी॒र्येन॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
मु॑ख॒तस्ते॑ प्र॒जा म॑रिष्य॒तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
ब्रह्म॑णा॒ मुखे॑न।
तेनै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तेनै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्येन॒ मुखे॑न॒ प्राशी॒र्येन॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
मु॑ख॒तस्ते॑ प्र॒जा म॑रिष्य॒तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
ब्रह्म॑णा॒ मुखे॑न।
तेनै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तेनै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
३५ ततश्चैनमन्येन मुखेन ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it with another mouth (múkha) than that with
which the ancient seers ate this, thy progeny will die from in front
(mukhatás): thus one says to him; it verily [have] I not [eaten]
coming hither, nor retiring, nor coming on; with bráhman as mouth,
therewith have I etc. etc.
Notes
Griffith
And thence, etc. . . with other month. Thy offspring will die, reckoning from the head . . . With Brahma as mouth.
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्येन॑। मुखे॑न। प्र॒ऽआशीः॑। येन॑। च॒। ए॒तम्। पूर्वे॑। ऋष॑यः। प्र॒ऽआश्न॑न्। मु॒ख॒तः। ते॒। प्र॒ऽजा। म॒रि॒ष्य॒ति॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। न। अ॒र्वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्च॑म्। ब्रह्म॑णा। मुखे॑न। तेन॑। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। तेन॑। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒द॒नः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन नाम परमेश्वर] को (ततः) उस [मुख] से (अन्येन) भिन्न (मुखेन) मुख से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (येन) जिस [मुख] से (च) ही (एनम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। (मुखतः) मुख के बल (ते) तेरे (प्रजा) [राज्य की] प्रजा (मरिष्यति) मरेगी−(इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान, और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया अर्थात् अनुभव किया है], (तेन) उस (ब्रह्मणा) वेदरूप (मुखेन) मुख से (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (तेन) उस [मुख] से (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥(एषः वै) यही…. म० ३२ ॥३५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ३२ के समान ॥३५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३५−(ततः) तस्माद् मुखात् (मुखेन) (मुखतः) मुखबलात् (ते) तव (प्रजा) राज्यजनता (मरिष्यति) विनङ्क्ष्यति (ब्रह्मणा) वेदरूपेण। अन्यत् पूर्ववत् ॥
३६ ततश्चैनमन्यया जिह्वया
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तत॑श्चैनम॒न्यया॑ जि॒ह्वया॒ प्राशी॒र्यया॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
जि॒ह्वा ते॑ मरिष्य॒तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
अ॒ग्नेर्जि॒ह्वया॑।
तयै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तयै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्यया॑ जि॒ह्वया॒ प्राशी॒र्यया॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
जि॒ह्वा ते॑ मरिष्य॒तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
अ॒ग्नेर्जि॒ह्वया॑।
तयै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तयै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
३६ ततश्चैनमन्यया जिह्वया ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it with another tongue than that with which the
ancient seers ate this, thy tongue will die: thus one says to him; it
verily [have] I not [eaten] coming hither, nor retiring, nor coming
on; with Agni’s tongue, therewith have I etc. etc.
Notes
Griffith
And thence, etc. . . . with other tongue . . . Thy tongue will die . . . With the tongue of Agni.
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्यया॑। जि॒ह्वया॑। प्र॒ऽआशीः॑। यया॑। च॒। ए॒तम्। पूर्वे॑। ऋष॑यः। प्र॒ऽआश्न॑न्। जि॒ह्वा। ते॒। म॒रि॒ष्य॒ति॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। न। अ॒र्वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्च॑म्। अ॒ग्नेः। जि॒ह्वया॑। तया॑। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। तया॑। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒द॒नः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन नाम परमेश्वर] को (ततः) उस [जीभ] से (अन्यया) भिन्न (जिह्वया) जीभ से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (यया) जिस [जीभ] से (च) ही (एतम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। (ते) तेरी (जिह्वा) जीभ (मरिष्यति) मर जावेगी [असमर्थ हो जावोगी]−(इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया अर्थात् अनुभव किया है]। (अग्नेः) अग्नि की [अग्नि समान लहराती हुई] (तया) उस (जिह्वया) जीभ से (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (तया) उस [जीभ] से (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥(एषः वै) यही…. म० ३२ ॥३६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ३२ के समान ॥३६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३६−(ततः) तस्या जिह्वायाः सकाशात् (जिह्वया) रसनया (जिह्वा) रसना (ते) तव (मरिष्यति) मृङ् प्राणत्यागे। प्राणांस्त्यक्ष्यति। असमर्था भविष्यति (अग्नेः) पावकस्य। पावकवच् चञ्चलशिखया (जिह्वया), अन्यत् पूर्ववत् ॥
३७ ततश्चैनमन्यैर्दन्तैः प्राशीर्यैश्चैतम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तत॑श्चैनम॒न्यैर्दन्तैः॒ प्राशी॒र्यैश्चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
दन्ता॑स्ते शत्स्य॒न्तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
ऋ॒तुभि॒र्दन्तैः॑।
तै॑रेनं॒ प्राशि॑षं तैरेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्यैर्दन्तैः॒ प्राशी॒र्यैश्चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
दन्ता॑स्ते शत्स्य॒न्तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
ऋ॒तुभि॒र्दन्तैः॑।
तै॑रेनं॒ प्राशि॑षं तैरेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
३७ ततश्चैनमन्यैर्दन्तैः प्राशीर्यैश्चैतम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it with other teeth than those with which the
ancient seers ate this, thy teeth will fall out (śad): thus one says
to him; it verily [have] I not [eaten] coming hither, nor retiring,
nor coming on; with the seasons as teeth, therewith have I etc. etc.
Notes
The comm. reads satsyanti for śatsyanti.
Griffith
And thence, etc. . . With other teeth . . . Thy teeth will fall out . . . With the Seasons as teeth.
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्यैः। दन्तैः॑। प्र॒ऽआशीः॑। यैः। च॒। ए॒तम्। पूर्वे॑। ऋष॑यः। प्र॒ऽआश्न॑न्। दन्ताः॑। ते॒। श॒त्स्य॒न्ति॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। न। अ॒र्वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्च॑म्। ऋ॒तुऽभिः॑। दन्तैः॑। तैः। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। तैः। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒द॒नः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन नाम परमेश्वर] को (ततः) उन [दाँतों] से (अन्यैः) भिन्न (दन्तैः) दाँतों से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (यैः) जिन [दाँतों] से (च) ही (एतम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। (ते) तेरे (दन्ताः) दाँत (शत्स्यन्ति) गिर पड़ेंगे−(इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया अर्थात् अनुभव किया है]। (ऋतुभिः) ऋतुओं के तुल्य [आपस में मिले हुए] (तैः) उन (दन्तैः) दाँतों से (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (तैः) उन से (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥(एषः वै) यही…. म० ३२ ॥३७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ३२ के समान ॥३७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३७−(ततः) तेभ्यो दन्तेभ्यः (अन्यैः) भिन्नैः (दन्तैः) अ० ४।३।६। दमु उपशमे-तन्। दशनैः (दन्ताः) दशनाः (शत्स्यन्ति) शद्लृ शातने=विशीर्णतायाम्। विशीर्णा भविष्यन्ति (ऋतुभिः) वसन्तादिभिः। ऋतुवत् परस्परसम्मिलितैः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
३८ ततश्चैनमन्यैः प्राणापानैः
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तत॑श्चैनम॒न्यैः प्रा॑णापा॒नैः प्राशी॒र्यैश्चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
प्रा॑णापा॒नास्त्वा॑ हास्य॒न्तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
स॑प्तऋ॒षिभिः॑ प्राणापा॒नैः।
तै॑रेनं॒ प्राशि॑षं तैरेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्यैः प्रा॑णापा॒नैः प्राशी॒र्यैश्चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
प्रा॑णापा॒नास्त्वा॑ हास्य॒न्तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
स॑प्तऋ॒षिभिः॑ प्राणापा॒नैः।
तै॑रेनं॒ प्राशि॑षं तैरेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
३८ ततश्चैनमन्यैः प्राणापानैः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it with other breaths-and-expirations than those
with which the ancient seers ate this, breaths-and-expirations will quit
thee: thus one says to him; it verily [have] I not [eaten] coming
hither, nor retiring, nor coming on; with the seven seers as
breaths-and-expirations, therewith have I etc. etc.
Notes
The mss., as usual, are divided between saptarṣibhis and saptaṛṣi-
in this verse; SPP. adopts the former.
Griffith
And thence, etc. . . . with other vital airs. . . . Thy vital airs will leave thee . . . With the Seven Rishis as the vital airs.
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्यैः। प्रा॒णा॒पा॒नैः। प्र॒ऽआशीः॑। यैः। च॒। ए॒तम्। पूर्वे॑। ऋष॑य। प्र॒ऽआश्न॑न्। प्रा॒णा॒पा॒नाः। त्वा॒। हा॒स्य॒न्ति॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। न। अ॒र्वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्च॑म्। स॒प्त॒र्षिऽभिः॑। प्रा॒णा॒पा॒नैः। तैः। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। तैः। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒द॒नः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनुः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन नाम परमेश्वर] को (ततः) उन [प्राण और अपानों] से (अन्यैः) भिन्न (प्राणापानैः) प्राण और अपानों से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (यैः) जिनसे (च) ही (एतम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। (ते) तेरे (प्राणापानाः) प्राण और अपान (त्वा) तुझको (हास्यन्ति) छोड़ देंगे−(इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया अर्थात् अनुभव किया है]। (सप्तऋषिभिः) सात ऋषियों [त्वचा, नेत्र, जिह्वा, नाक, मन और बुद्धि] रूप (तैः) उन (प्राणापानैः) प्राण और अपानों से (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (तैः) उन से (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥(एषः वै) यही…. म० ३२ ॥३८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ३२ के समान ॥३८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३८−(ततः) तेभ्यः प्राणापानेभ्यः (प्राणापानैः) श्वासप्रश्वासैः (प्राणापानाः) (हास्यन्ति) म० २८। त्यक्ष्यन्ति (सप्तऋषिभिः) अ० ४।११।९। सप्तऋषयः प्रतिहिताः शरीरे षडिन्द्रियाणि विद्या सप्तमी-निरु० १२।३७। त्वक्चक्षुःश्रवणरसनाघ्राणमनोबुद्धिरूपैः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
३९ ततश्चैनमन्येन व्यचसा
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तत॑श्चैनम॒न्येन॒ व्यच॑सा॒ प्राशी॒र्येन॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
रा॑जय॒क्ष्मस्त्वा॑ हनिष्य॒तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
अ॒न्तरि॑क्षेण॒ व्यच॑सा।
तेनै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तेनै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्येन॒ व्यच॑सा॒ प्राशी॒र्येन॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
रा॑जय॒क्ष्मस्त्वा॑ हनिष्य॒तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
अ॒न्तरि॑क्षेण॒ व्यच॑सा।
तेनै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तेनै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
३९ ततश्चैनमन्येन व्यचसा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it with another bulk (vyácas) than that with
which the ancient seers ate this, the king-yákshma will slay thee:
thus one says to him; it verily [have] I not [eaten] coming hither,
nor retiring, nor coming on; with the atmosphere as bulk, therewith have
I etc. etc.
Notes
The comm. explains vyacasā by vyāptimatā rūpeṇa.
Griffith
And thence, etc. . . . with other expanse . . . Consumption will destroy thee . . . With the firmament as expanse.
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्येन॑। व्यच॑सा। प्र॒ऽआशीः॑। येन॑। च॒। ए॒तम्। पूर्वे॑। ऋष॑यः। प्र॒ऽआश्न॑न्। रा॒ज॒ऽयक्ष्मः॒। त्वा॒। ह॒नि॒ष्य॒ति॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। न। अ॒र्वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्च॑म्। अ॒न्तरि॑क्षेण। व्यच॑सा। तेन॑। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। तेन॑। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒द॒नः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन नाम परमेश्वर] को (ततः) उस [व्यापकपन] से (अन्येन) भिन्न (व्यचसा) व्यापकपन से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (येन) जिससे (च) ही (एतम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। [तब] (राजयक्ष्मः) राजरोग [व्यापक क्षयरोग] (त्वा) तुझे (हनिष्यति) मारेगा−(इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया अर्थात् अनुभव किया है]। (अन्तरिक्षेण) आकाशरूप (तेन) उस (व्यचसा) व्यापकपन से (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (तेन) उससे (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥(एषः वै) यही…. म० ३२ ॥३९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ३२ के समान ॥३९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३९−(ततः) तस्माद् व्यचसः (व्यचसा) अ० ४।१९।६। सम्बन्धेन व्यापकत्वेन (राजयक्ष्मः) अ० ३।११।१। यक्ष्माणां राजा। क्षयरोगः (हनिष्यति) मारयिष्यति (अन्तरिक्षेण) आकाशरूपेण। अन्यत् पूर्ववत् ॥
४० ततश्चैनमन्येन पृष्ठेन
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तत॑श्चैनम॒न्येन॑ पृ॒ष्ठेन॒ प्राशी॒र्येन॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
वि॒द्युत्त्वा॑ हनिष्य॒तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
दि॒वा पृ॒ष्ठेन॑।
तेनै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तेनै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्येन॑ पृ॒ष्ठेन॒ प्राशी॒र्येन॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
वि॒द्युत्त्वा॑ हनिष्य॒तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
दि॒वा पृ॒ष्ठेन॑।
तेनै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तेनै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
४० ततश्चैनमन्येन पृष्ठेन ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it with another back than that with which the
ancient seers ate this, the lightning will slay thee: thus one says to
him; it verily [have] I not [eaten] coming hither, nor retiring, nor
coming on; with the sky as back, therewith have I etc. etc.
Notes
Griffith
And thence, etc. . . . with other back. . . . Lightning will slay thee. . . With the heaven as back.
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्येन॑। पृ॒ष्ठेन॑। प्र॒ऽआशीः॑। येन॑। च॒। ए॒तम्। पूर्वे॑। ऋष॑यः। प्र॒ऽआश्न॑न्। वि॒ऽद्युत्। त्वा॒। ह॒नि॒ष्य॒ति॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। न। अ॒र्वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्च॑म्। दि॒वा। पृ॒ष्ठेन॑। तेन॑। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। तेन॑। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒द॒नः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन नाम परमेश्वर] को (ततः) उस [पीठ से] (अन्येन) भिन्न (पृष्ठेन) पीठ से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (येन) जिस [पीठ] से (च) ही (एनम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। (तब) (विद्युत्) बिजुली (त्वा) तुझे (हनिष्यति) मारेगी−(इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया अर्थात् अनुभव किया है]। (दिवा) आकाशरूप (तेन) उस (पृष्ठेन)) पीठ से (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (तेन) उससे (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥(एषः वै) यही…. म० ३२ ॥४०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ३२ के समान ॥४०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४०−(ततः) तस्मात् पृष्ठात् (पृष्ठेन) शरीरपश्चाद्भागेन (विद्युत्) विद्योतमाना तडित् (दिवा) आकाशरूपेण। अन्यत् पूर्ववत् ॥
४१ ततश्चैनमन्येनोरसा प्राशीर्येन
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तत॑श्चैनम॒न्येनोर॑सा॒ प्राशी॒र्येन॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
कृ॒ष्या न रा॑त्स्य॒सीत्ये॑नमाह।
तं वा॑ अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
पृ॑थि॒व्योर॑सा।
तेनै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तेनै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्येनोर॑सा॒ प्राशी॒र्येन॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
कृ॒ष्या न रा॑त्स्य॒सीत्ये॑नमाह।
तं वा॑ अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
पृ॑थि॒व्योर॑सा।
तेनै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तेनै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
४१ ततश्चैनमन्येनोरसा प्राशीर्येन ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it with another breast than that with which the
ancient seers ate this, thou wilt not prosper with plowing: thus one
says to him; it verily [have] I not [eaten] coming hither, nor
retiring, nor coming on; with the earth as breast, therewith have I etc.
etc.
Notes
Griffith
And thence, etc. . . . with other breast . . . Thou wilt fail in agriculture. . . . With the earth as breast.
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्येन॑। उर॑सा। प्र॒ऽआशीः॑। येन॑। च॒। ए॒त॒म्। पूर्वे॑। ऋष॑यः। प्र॒ऽआश्न॑न्। कृ॒ष्या। न। रा॒त्स्य॒सि॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। न। अ॒र्वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्च॑म्। पृ॒थि॒व्या। उर॑सा। तेन॑। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। तेन॑। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒द॒नः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽतनूः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.१०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन नाम परमेश्वर] को (ततः) उस [छाती] से (अन्येन) भिन्न (उरसा) छाती से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (येन) जिस [छाती] से (च) ही (एनम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। (तब) (कृष्या) खेती से (न रात्स्यसि) तू न बढ़ेगा−(इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया अर्थात् अनुभव किया है]। (पृथिव्या) पृथिवी रूप [पृथिवी समान सहनशील] (तेन) उस (उरसा) छाती से (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (तेन) उससे (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥(एषः वै) यही…. म० ३२ ॥४१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ३२ के समान ॥४१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४१−(ततः) तस्मादुरसः (उरसा) वक्षःस्थलेन (कृष्या) कर्षणविद्यया (न) निषेधे (रात्स्यसि) राध संसिद्धौ−लृट्। समृद्धो भविष्यसि (पृथिव्या) पृथिवीरूपेण सहनशीलेन। अन्यत् पूर्ववत् ॥
४२ ततश्चैनमन्येनोदरेण प्राशीर्येन
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तत॑श्चैनम॒न्येनो॒दरे॑ण॒ प्राशी॒र्येन॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
उ॑दरदा॒रस्त्वा॑ हनिष्य॒तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
स॒त्येनो॒दरे॑ण।
तेनै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तेनै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्येनो॒दरे॑ण॒ प्राशी॒र्येन॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
उ॑दरदा॒रस्त्वा॑ हनिष्य॒तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
स॒त्येनो॒दरे॑ण।
तेनै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तेनै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
४२ ततश्चैनमन्येनोदरेण प्राशीर्येन ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it with another belly than that with which the
ancient seers ate this, the colic (? udaradārá) will slay thee: thus
one says to him; it verily [have] I not [eaten] coming hither, nor
retiring, nor coming on; with truth as belly, therewith have I etc. etc.
Notes
The comm. explains udaradāra as udarasya daraṇātmako ’tīsārākhyo
rogaḥ, or diarrhœa.
Griffith
And thence, etc. . . . with other belly . . . colic will destroy thee . . . With truth as belly.
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्येन॑। उ॒दरे॑ण। प्र॒ऽआशीः॑। येन॑। च॒। ए॒तम्। पूर्वे॑। ऋष॑यः। प्र॒ऽआश्न॑न्। उ॒द॒र॒ऽदा॒रः। त्वा॒। ह॒नि॒ष्य॒ति॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। न। अ॒र्वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्च॑म्। स॒त्येन॑। उ॒दरे॑ण। तेन॑। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। तेन॑। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒द॒नः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.११।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन नाम परमेश्वर] को (ततः) उस [पीठ से] (अन्येन) भिन्न (उदरेण) पेट से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (येन) जिस [पेट] से (च) ही (एनम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। (तब) (उदरदारः) उदररोग [अतीसार आदि] (त्वा) तुझे (हनिष्यति) मारेगा−(इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया अर्थात् अनुभव किया है]। (सत्येन) सत्य [यथार्थ कथनरूप] (तेन) उस (उदरेण) पेट से (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (तेन) उससे (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥(एषः वै) यही…. म० ३२ ॥४२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ३२ के समान ॥४२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४२−(ततः) तस्मादुदरात् (उदरेण) उद्+ऋ गतौ-अप्। जठरेण (उदरदारः) उदर+दॄ विदारणे-णिच्, अच्। उदरविदारकः। अतीसारादिरोगः (हनिष्यति) मारयिष्यति (सत्येन) यथार्थकथनरूपेण। अन्यत् पूर्ववत् ॥
४३ ततश्चैनमन्येन वस्तिना
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तत॑श्चैनम॒न्येन॑ व॒स्तिना॒ प्राशी॒र्येन॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
अ॒प्सु म॑रिष्य॒सीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
स॑मु॒द्रेण॑ व॒स्तिना॑।
तेनै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तेनै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्येन॑ व॒स्तिना॒ प्राशी॒र्येन॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
अ॒प्सु म॑रिष्य॒सीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
स॑मु॒द्रेण॑ व॒स्तिना॑।
तेनै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तेनै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
४३ ततश्चैनमन्येन वस्तिना ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it with another bladder than that with which the
ancient seers ate this, thou wilt die in the waters: thus one says to
him; it verily [have] I not [eaten] coming hither, nor retiring, nor
coming on; with the ocean as bladder, therewith have I etc. etc.
Notes
Griffith
And thence, etc. . . . with other abdomen . . . Thou wilt die in the water . . . With the sea as abdomen.
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्येन॑। व॒स्तिना॑। प्र॒ऽआशीः॑। येन॑। च॒। ए॒तम्। पूर्वे॑। ऋष॑यः। प्र॒ऽआश्न॑न्। अ॒प्ऽसु। म॒रि॒ष्य॒सि॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। न। अ॒र्वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्च॑म्। स॒मु॒द्रेण॑। व॒स्तिना॑। तेन॑। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। तेन॑। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒द॒नः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.१२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन नाम परमेश्वर] को (ततः) उस [वस्ति] से (अन्येन) भिन्न (वस्तिना) वस्ति [पेडू, नाभि से नीचे भाग] से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (येन) जिस [वस्ति] से (च) ही (एतम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। (तब) (अप्सु) जल के भीतर (मरिष्यसि) तू मरेगा−(इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया अर्थात् अनुभव किया है]। (समुद्रेण) समुद्ररूप (तेन) उस (वस्तिना) वस्ति [पेड़ू] से (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (तेन) उससे (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥(एषः वै) यही…. म० ३२ ॥४३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ३२ के समान ॥४३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४३−(ततः) तस्माद् वस्तेः प्रकाशात् (वस्तिना) वसेस्तिः। उ० ४।१८०। वस आच्छादने-ति। नाभेरधोभागेन। मूत्राधारेण (अप्सु) जलेषु (मरिष्यसि) प्राणांत्स्यक्ष्यसि (समुद्रेण) जलधिरूपेण। अन्यत् पूर्ववत् ॥
४४ ततश्चैनमन्याभ्यामूरुभ्यां प्राशीर्याभ्याम्
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तत॑श्चैनम॒न्याभ्या॑मू॒रुभ्यां॒ प्राशी॒र्याभ्यां॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
ऊ॒रू ते॑ मरिष्यत॒ इत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
मि॒त्राव॑रुणयोरू॒रुभ्या॑म्।
ताभ्या॑मेनं॒ प्राशि॑षं॒ ताभ्या॑मेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑।
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्याभ्या॑मू॒रुभ्यां॒ प्राशी॒र्याभ्यां॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
ऊ॒रू ते॑ मरिष्यत॒ इत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
मि॒त्राव॑रुणयोरू॒रुभ्या॑म्।
ताभ्या॑मेनं॒ प्राशि॑षं॒ ताभ्या॑मेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑।
४४ ततश्चैनमन्याभ्यामूरुभ्यां प्राशीर्याभ्याम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it with other thighs than those with which the
ancient seers ate this, thy thighs will die: thus one says to him; it
verily [have] I not [eaten] coming hither, nor retiring, nor coming
on; with the thighs of Mitra-and-Varuṇa, therewith have I etc. etc.
Notes
Griffith
And thence, etc. . . . with other thighs . . . Thy thigh will perish . . . With Mitra-Varuna as thighs.
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्याभ्या॑म्। ऊ॒रुऽभ्या॑म्। प्र॒ऽआशीः॑। याभ्या॑म्। च॒। ए॒तम्। पूर्वे॑। ऋष॑यः। प्र॒ऽआश्न॑न्। ऊ॒रू॑ इति॑। ते॒। म॒रि॒ष्य॒तः॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। न। अ॒वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्च॑म्। मि॒त्रावरु॑णयोः। ऊ॒रुऽभ्या॑म्। ताभ्या॑म्। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। ताभ्या॑म्। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒द॒नः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.१३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन नाम परमेश्वर] को (ततः) उन [दो जाँघों] से (अन्याभ्याम्) भिन्न (ऊरुभ्याम्) दो जंघाओं से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (याभ्याम्) जिन दोनों से (च) ही (एनम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। [तब] (ते) तेरे (ऊरु) दोनों जंघाएँ (मरिष्यतः) मरेंगी−(इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया अर्थात् अनुभव किया है]। (मित्रावरुणयोः) दोनों प्रेरणा करनेवाले, और श्रेष्ठ गुणवाले [आचार्य और शिष्य] के (ताभ्याम्) उन (ऊरुभ्याम्) दोनों जंघाओं से (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (ताभ्याम्) उन दोनों से (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥(एषः वै) यही…. म० ३२ ॥४४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ३२ के समान ॥४४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४४−(ततः) ताभ्यामूरुभ्याम् (ऊरुभ्याम्) जङ्घाभ्याम् (ऊरू) जानूपरिभागौ (मरिष्यतः) त्यक्तप्राणौ भविष्यतः (मित्रावरुणयोः) अ० १।३।२, ३। डुमिञ् प्रक्षेपणे−क्त्र। मित्रः प्रेरकः। वृञ् वरणे-उनन्। वरुणो वरो वरणीयः। प्रेरकश्रेष्ठगुणयोः। आचार्यशिष्ययोः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
४५ ततश्चैनमन्याभ्यामष्ठीवद्भ्यां प्राशीर्याभ्याम्
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तत॑श्चैनम॒न्याभ्या॑मष्ठी॒वद्भ्यां॒ प्राशी॒र्याभ्यां॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
स्रा॒मो भ॑विष्य॒सीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
त्वष्टु॑रष्ठी॒वद्भ्या॑म्।
ताभ्या॑मेनं॒ प्राशि॑षं॒ ताभ्या॑मेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्याभ्या॑मष्ठी॒वद्भ्यां॒ प्राशी॒र्याभ्यां॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
स्रा॒मो भ॑विष्य॒सीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
त्वष्टु॑रष्ठी॒वद्भ्या॑म्।
ताभ्या॑मेनं॒ प्राशि॑षं॒ ताभ्या॑मेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
४५ ततश्चैनमन्याभ्यामष्ठीवद्भ्यां प्राशीर्याभ्याम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it with other knees (aṣṭhīvánt) than those
with which the ancient seers ate this, thou wilt become lame: thus one
says to him; it verily [have] I not [eaten] coming hither, nor
retiring, nor coming on; with Tvashṭar’s knees, therewith have I etc.
etc.
Notes
Griffith
And thence, etc. . . . with other knees . . . Thou wilt become a sick man . . . With the knees of Tvashtar.
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्याभ्या॑म्। अ॒ष्ठी॒वत्ऽभ्या॑म्। प्र॒ऽआशीः॑। याभ्या॑म्। च॒। ए॒तम्। पूर्वे॑। ऋष॑यः। प्र॒ऽआश्न॑न्। स्रा॒मः। भ॒वि॒ष्य॒सि॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। न। अ॒र्वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्च॑म्। त्वष्टुः॑। अ॒ष्ठी॒वत्ऽभ्या॑म्। ताभ्या॑म्। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। ताभ्या॑म्। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒द॒नः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.१४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन नाम परमेश्वर] को (ततः) उन [दोनो घुटनों] से (अन्याभ्याम्) भिन्न (अष्ठीवद्भ्याम्) दोनों घुटनों से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (याभ्याम्) जिन दोनों [घुटनों] से (च) ही (एतम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। [तब] (स्रामः) फोड़े का रोगी (भविष्यसि) तू होगा−(इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया अर्थात् अनुभव किया है]। (त्वष्टुः) विश्वकर्मा [सब कामों में चतुर मनुष्य] के (ताभ्याम्) उन दोनों (अष्ठीवद्भ्याम्) घुटनों से (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (ताभ्याम्) उन दोनों से (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥(एषः वै) यही…. म० ३२ ॥४५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ३२ के समान ॥४५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४५−(ततः) ताभ्यां जानुभ्याम् (अष्ठीवद्भ्याम्) अ० २।३३।५। जानुभ्याम् (स्रामः) इषियुधीन्धिदसिश्या०। उ० १।१४५। स्रै, श्रै पाके-मक्। आदेच उपदेशेऽशिति। पा० ६।१।४५। ऐकारस्य आकारः। ततोऽर्श-आद्यच्। स्रामेण पाकेन व्रणादिना युक्तः (त्वष्टुः) अ० २।५।६। विश्वकर्मणः सर्वकर्मसु प्रवीणस्य मनुष्यस्य। अन्यत् पूर्ववत् ॥
४६ ततश्चैनमन्याभ्यां पादाभ्याम्
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तत॑श्चैनम॒न्याभ्यां॒ पादा॑भ्यां॒ प्राशी॒र्याभ्यां॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
ब॑हुचा॒री भ॑विष्य॒सीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
अ॒श्विनोः॒ पादा॑भ्याम्।
ताभ्या॑मेनं॒ प्राशि॑षं॒ ताभ्या॑मेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
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मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्याभ्यां॒ पादा॑भ्यां॒ प्राशी॒र्याभ्यां॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
ब॑हुचा॒री भ॑विष्य॒सीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
अ॒श्विनोः॒ पादा॑भ्याम्।
ताभ्या॑मेनं॒ प्राशि॑षं॒ ताभ्या॑मेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
४६ ततश्चैनमन्याभ्यां पादाभ्याम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it with other feet than those with which the
ancient seers ate this, thou wilt be much-wandering: thus one says to
him; it verily [have] I not [eaten] coming hither, nor retiring,
nor coming on; with the feet of the two Aśvins, therewith have I etc.
etc.
Notes
Griffith
And thence, etc. . . . with other feet . . . Thou wilt become a wanderer . . . With the feet of the Asvins.
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्याभ्या॑म्। पादा॑भ्याम्। प्र॒ऽआशीः॑। याभ्या॑म्। च॒। ए॒तम्। पूर्वे॑। ऋष॑यः। प्र॒ऽआश्न॑न्। ब॒हु॒ऽचा॒री। भ॒वि॒ष्य॒सि॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। न। अ॒र्वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्च॑म्। अ॒श्विनोः॑। पादा॑भ्याम्। ताभ्या॑म्। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। ताभ्या॑म्। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒द॒नः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.१५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन नाम परमेश्वर] को (ततः) उन [दो पैरों] से (अन्याभ्याम्) भिन्न (पादाभ्याम्) दोनों पैरों से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (याभ्याम्) जिन दोनों से (च) ही (एनम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। [तब] (बहुचारी) बहुत घूमनेवाला (भविष्यसि) तू होगा−(इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया अर्थात् अनुभव किया है]। (अश्विनोः) दोनों चतुर माता-पिता के (ताभ्याम्) उन (पादाभ्याम्) दोनों पैरों से (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (ताभ्याम्) उन दोनों से (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥(एषः वै) यही…. म० ३२ ॥४६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ३२ के समान ॥४६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४६−(ततः) ताभ्यां पादाभ्याम् (पादाभ्याम्) (बहुचारी) बहु+चर गतौ-णिनि। बहुभ्रमणशीलः (भविष्यसि) (अश्विनोः) अ० २।२९।६। अशू व्याप्तौ-क्वन्, इनि। कार्येषु अश्वो व्याप्तिर्ययोस्तयोः। जननी जनकयोः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
४७ ततश्चैनमन्याभ्यां प्रपदाभ्याम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
तत॑श्चैनम॒न्याभ्यां॒ प्रप॑दाभ्यां॒ प्राशी॒र्याभ्यां॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
स॒र्पस्त्वा॑ हनिष्य॒तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
स॑वि॒तुः प्रप॑दाभ्याम्।
ताभ्या॑मेनं॒ प्राशि॑षं॒ ताभ्या॑मेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्याभ्यां॒ प्रप॑दाभ्यां॒ प्राशी॒र्याभ्यां॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
स॒र्पस्त्वा॑ हनिष्य॒तीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
स॑वि॒तुः प्रप॑दाभ्याम्।
ताभ्या॑मेनं॒ प्राशि॑षं॒ ताभ्या॑मेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
४७ ततश्चैनमन्याभ्यां प्रपदाभ्याम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it with other front-feet than those with which
the ancient seers ate this, a serpent will slay thee: thus one says to
him; it verily [have] I not [eaten] coming hither, nor retiring, nor
coming on; with Savitar’s front-feet, therewith have I etc. etc.
Notes
Read in our text savitúḥ in d (an accent-mark slipped out of
place).
Griffith
And thence, etc. . . with other fore-parts of the feet . . . A serpent will kill thee . . . With the fore-parts of Savitar’s feet.
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्याभ्या॑म्। प्रऽप॑दाभ्याम्। प्र॒ऽआशीः॑। याभ्या॑म्। च॒। ए॒तम्। पूर्वे॑। ऋष॑यः। प्र॒ऽआश्न॑न्। स॒र्पः। त्वा॒। ह॒नि॒ष्य॒ति॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। न। अ॒र्वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्च॑म्। स॒वि॒तुः। प्रऽप॑दाभ्याम्। ताभ्या॑म्। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। ताभ्या॑म्। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒द॒नः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.१६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन नाम परमेश्वर] को (ततः) उन [दोनों पैर के पञ्जों] से (अन्याभ्याम्) भिन्न (प्रपदाभ्याम्) दोनों पैरों के पञ्जों से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (याभ्याम्) जिन दोनों से (च) ही (एनम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। [तब] (सर्पः) सर्प (त्वा) तुझको (हनिष्यति) मारेगा−(इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया अर्थात् अनुभव किया है]। (सवितुः) ऐश्वर्यवान् पुरुष के (ताभ्याम्) उन (प्रपदाभ्याम्) दोनों पैरों के पंजों से (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (ताभ्याम्) उन दोनों से (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥(एषः वै) यही…. म० ३२ ॥४७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ३२ के समान ॥४७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४७−(ततः) ताभ्याम् (प्रपदाभ्याम्) पादाग्राभ्याम् (सर्पः) उरगः (हनिष्यति) मारविष्यति (सवितुः) षु प्रसवैश्वर्ययोः-तृच्। ऐश्वर्यवतः पुरुषस्य। अन्यत् पूर्ववत् ॥
४८ ततश्चैनमन्याभ्यां हस्ताभ्याम्
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तत॑श्चैनम॒न्याभ्यां॒ हस्ता॑भ्यां॒ प्राशी॒र्याभ्यां॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
ब्रा॑ह्म॒णं ह॑निष्य॒सीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
ऋ॒तस्य॒ हस्ता॑भ्याम् ।
ताभ्या॑मेनं॒ प्राशि॑षं॒ ताभ्या॑मेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्याभ्यां॒ हस्ता॑भ्यां॒ प्राशी॒र्याभ्यां॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
ब्रा॑ह्म॒णं ह॑निष्य॒सीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
ऋ॒तस्य॒ हस्ता॑भ्याम् ।
ताभ्या॑मेनं॒ प्राशि॑षं॒ ताभ्या॑मेनमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
४८ ततश्चैनमन्याभ्यां हस्ताभ्याम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it with other hands than those with which the
ancient seers ate this, thou wilt slay a Brahman: thus one says to him;
it verily [have] I not [eaten] coming hither, nor retiring, nor
coming on; with the hands of righteousness (ṛtá), therewith have I
etc. etc.
Notes
Griffith
And thence, etc. . . . with other hands . . . The Brahmana (divine power) will kill thee . . . With the hands of Right.
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्याभ्या॑म्। हस्ता॑भ्याम्। प्र॒ऽआशीः॑। याभ्या॑म्। च॒। ए॒तम्। पूर्वे॑। ऋष॑यः। प्र॒ऽआश्न॑न्। ब्रा॒ह्म॒णम्। ह॒नि॒ष्य॒सि॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। न। अ॒र्वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्च॑म्। ऋ॒तस्य॑। हस्ता॑भ्याम्। ताभ्या॑म्। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। ताभ्या॑म्। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒दनः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.१७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन नाम परमेश्वर] को (ततः) उन [दोनों हाथों] से (अन्याभ्याम्) भिन्न (हस्ताभ्याम्) दोनों हाथों से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (याभ्याम्) जिन दोनों से (च) ही (एनम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। [तब] (ब्राह्मणम्) ब्राह्मण [वेदज्ञाता पुरुष] को (हनिष्यसि) तू मारेगा−(इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया अर्थात् अनुभव किया है]। (ऋतस्य) सत्य ज्ञान के (ताभ्याम्) उन (हस्ताभ्याम्) दोनों हाथों से (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (ताभ्याम्) उन दोनों से (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥(एषः वै) यही…. म० ३२ ॥४८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ३२ के समान ॥४८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४८−(ततः) ताभ्याम् (हस्ताभ्याम्) कराभ्याम् (ब्राह्मणम्) अ० २।६।३। वेदविदम् (हनिष्यसि) (ऋतस्य) सत्यज्ञानस्य। अन्यत् पूर्ववत् ॥
४९ ततश्चैनमन्यया प्रतिष्ठया
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तत॑श्चैनम॒न्यया॑ प्रति॒ष्ठया॒ प्राशी॒र्यया॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
अ॑प्रतिष्ठा॒नो᳡नायत॒नो म॑रिष्य॒सीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
स॒त्ये प्र॑ति॒ष्ठाय॑।
तयै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तयै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तत॑श्चैनम॒न्यया॑ प्रति॒ष्ठया॒ प्राशी॒र्यया॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न्।
अ॑प्रतिष्ठा॒नो᳡नायत॒नो म॑रिष्य॒सीत्ये॑नमाह।
तं वा अ॒हं ना॒र्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म्।
स॒त्ये प्र॑ति॒ष्ठाय॑।
तयै॑नं॒ प्राशि॑षं॒ तयै॑नमजीगमम्।
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः।
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
४९ ततश्चैनमन्यया प्रतिष्ठया ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou hast eaten it with another firm standing (pratiṣṭhā́) than
that with which the ancient seers ate this, without firm standing,
without support (āyátana) wilt thou die: thus one says to him; it
verily [have] I not [eaten] coming hither, nor retiring, nor coming
on; standing firm in truth, therewith have I etc. etc.
Notes
All our saṁhitā-mss., and the majority of SPP’s, have the false accent
apratiṣṭhānó ‘nāy- in b; both editions emend to -ṣṭhānò. Some of
our mss. (B.P.M.) read pratiṣṭhā́yā in d, as if aiming at
pratiṣṭháyā.
[Paryāya III.—saptakaḥ. mantroktadevatyam. 50. āsury anuṣṭubh; 51.
ārcy uṣṇih; 52. 3-p. bhurik sāmnī triṣṭubh; 53. āsurī bṛhatī; 54. 2-p.
bhurik sāmnī bṛhatī; 55. sāmny uṣṇih; 56. prājāpatyā bṛhatī.]
Griffith
And thence, etc. . . . with other basis . . . Without standing-ground and resting-place thou wilt die . . . Having taken my stand on truth. With this I ate it, with this I came to it. Now this Odana is complete with all members, joints, and body. Complete, verily, with all his members, joints, and body is he who possesses this knowledge.
पदपाठः
ततः॑। च॒। ए॒न॒म्। अ॒न्यया॑। प्र॒ति॒ऽस्थया॑। प्र॒ऽआशीः॑। यया॑। च॒। ए॒तम्। पूर्वे॑। ऋष॑यः। प्र॒ऽआश्न॑न्। अ॒प्र॒ति॒ऽस्था॒नः। अ॒ना॒य॒त॒नः। म॒रि॒ष्य॒सि॒। इति॑। ए॒न॒म्। आ॒ह॒। तम्। वै। अ॒हम्। न। अ॒र्वाञ्च॑म्। न। परा॑ञ्चम्। न। प्र॒त्यञ्चम्। स॒त्ये। प्र॒ति॒ऽस्थाय॑। तया॑। ए॒न॒म्। प्र। आ॒शि॒ष॒म्। तया॑। ए॒न॒म्। अ॒जी॒ग॒म॒म्। ए॒षः। वै। ओ॒द॒नः। सर्व॑ऽअङ्गः। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सर्व॑ऽअङ्गः। ए॒व। सर्व॑ऽपरुः। सर्व॑ऽतनूः। सम्। भ॒व॒ति॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ४.१८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे जिज्ञासु !] (च) यदि (एनम्) इस [ओदन नाम परमेश्वर] को (ततः) उस [प्रतिष्ठा] से (अन्यया) भिन्न (प्रतिष्ठया) प्रतिष्ठा [कीर्ति] से (प्राशीः) तूने खाया [अनुभव किया] है, (याभ्याम्) जिन दोनों से (च) ही (एनम्) इस [परमेश्वर] को (पूर्वे) पहिले (ऋषयः) ऋषियों [वेदार्थ जाननेवालों] ने (प्राश्नन्) खाया [अनुभव किया] था। [तब] (अप्रतिष्ठानः) कीर्तिरहित और (अनायतनः) और विना घर होकर (मरिष्यसि) तू मरेगा−(इति) ऐसा (एनम्) इस [जिज्ञासु] से (आह) वह [आचार्य] कहे ॥[जिज्ञासु का उत्तर]−(अहम्) मैंने (वै) निश्चय करके (न) अब (तम्) उस (अर्वाञ्चम्) पीछे वर्तमान रहनेवाले, (न) अब (पराञ्चम्) दूर वर्तमान और (न) अब (प्रत्यञ्चम्) प्रत्यक्ष वर्तमान [परमेश्वर] को [खाया अर्थात् अनुभव किया है]। (सत्ये) सत्य [सत्यस्वरूप परमात्मा] में (प्रतिष्ठाय) प्रतिष्ठा [आदर] पाकर (तया) उसी [ऋषियों के समान प्रतिष्ठा] से (एनम्) इस [परमेश्वर] को (प्र आशिषम्) मैंने खाया [अनुभव किया] है, (ताभ्याम्) उन दोनों से (एनम्) इसको (अजीगमम्) मैंने पाया है ॥(एषः) यह (वै) ही (ओदनः) ओदन [सुखवर्षक अन्नसमान परमेश्वर] (सर्वाङ्गः) सब उपायोंवाला, (सर्वपरुः) सब पालनोंवाला और (सर्वतनूः) सब उपकारोंवाला है। वह [मनुष्य] (एव) ही (सर्वाङ्गः) सब उपायोंवाला, (सर्वपरुः) सब पालनोंवाला और (सर्वतनूः) सब उपकारोंवाला (सम् भवति) हो जाता है, (यः) जो [मनुष्य] (एवम्) ऐसा (वेद) जानता है ॥४९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मन्त्र ३२ के समान ॥४९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४९−(ततः) तया (प्रतिष्ठया) कीर्त्या। गौरवेण (अप्रतिष्ठानः) कीर्तिरहितः (अनायतनः) यती प्रयत्ने-आधारे ल्युट्। गृहरहितः (मरिष्यसि) (सत्ये) अविनाशिस्वरूपे परमात्मनि (प्रतिष्ठाय) प्रतिष्ठितः सगौरवो भूत्वा। अन्यत् पूर्ववत् ॥
५० एतद्वै ब्रध्नस्य
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
ए॒तद्वै ब्र॒ध्नस्य॑ वि॒ष्टपं॒ यदो॑द॒नः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ए॒तद्वै ब्र॒ध्नस्य॑ वि॒ष्टपं॒ यदो॑द॒नः ॥
५० एतद्वै ब्रध्नस्य ...{Loading}...
Whitney
Translation
- This—namely, the rice-dish—is indeed the summit (viṣṭápa) of the
ruddy one (bradhná).
Notes
The comm. explains bradhna as sūryamaṇḍalamadhyavartī ”śvaraḥ, and
viṣṭapa as viyati viṣṭabdham maṇḍalam.
Griffith
ताभ्या॑मेनं॒ प्राशि॑षं॒ ताभ्या॑मेनमजीगमम् ॥५॥
पदपाठः
ए॒तत्। वै। ब्र॒ध्नस्य॑। वि॒ष्टप॑म्। यत्। ओ॒द॒नः। ५.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- आसुर्यनुष्टुप्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (एतत्) यह (वै) ही (ब्रध्नस्य) महान् [पृथिवी आदि के आकर्षक सूर्य] का (विष्टपम्) आश्रय (यत्) यजनीय [पूजनीय ब्रह्म], (ओदनः) ओदन [सुख बरसानेवाला अन्नरूप परमेश्वर] है ॥५०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा के ही आश्रय अर्थात् धारण आकर्षण सामर्थ्य से सूर्य आदि लोक स्थित हैं ॥५०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५०−(एतत्) सर्वत्र दृश्यमानम् (वै) एव (ब्रध्नस्य) अ० ७।२२।२। बन्ध बन्धने-नक् ब्रधादेशश्च। ब्रध्नो महन्नाम-निघ० ३।३। महतो बन्धकस्य पृथिव्यादिलोकानामाकर्षकस्य सूर्यस्य (विष्टपम्) अ० १०।१०।३१। वि+ष्टभि प्रतिबन्धे-क्विप्, भस्य पः। यद्वा, विश प्रवेशने-कप् तुडागमश्च। आश्रयः (यत्) त्यजितनियजिभ्यो डित्। उ० १।१३२। यजेः-अदि, डित्। यजनीयं पूजनीयं ब्रह्म (ओदनः) अ० ९।५।१९। सुखवर्षकोऽन्नरूपः परमेश्वरः ॥
५१ ब्रध्नलोको भवति
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ब्र॒ध्नलो॑को भवति ब्र॒ध्नस्य॑ वि॒ष्टपि॑ श्रयते॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ब्र॒ध्नलो॑को भवति ब्र॒ध्नस्य॑ वि॒ष्टपि॑ श्रयते॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
५१ ब्रध्नलोको भवति ...{Loading}...
Whitney
Translation
- He cometh to have the ruddy one for his world, he resorteth (śri)
to the summit of the ruddy one, who knoweth thus.
Notes
Griffith
ए॒ष वा ओ॑द॒नः सर्वा॑ङ्गः॒ सर्वपरुः॒ सर्व॑तनूः ॥६॥
पदपाठः
ब्र॒ध्नऽलो॑कः। भ॒व॒ति॒। ब्र॒ध्नस्य॑। वि॒ष्टपि॑। श्र॒य॒ते॒। यः। ए॒वम्। वेद॑। ५.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- आर्च्युष्णिक्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - वह [मनुष्य] (ब्रध्नलोकः) महान् [सबके नियामक परमेश्वर] में निवासवाला (भवति) होता है और [उसी] (ब्रध्नस्य) महान् [सर्वनियामक परमेश्वर] के (विष्टपि) सहारे में (श्रयते) आश्रय लेता है, (यः) जो [मनुष्य] (एवम्) ऐसा (वेद) जानता है ॥५१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो ज्ञानी पुरुष परमात्मा का आश्रय लेता है, वह पुरुषार्थी आनन्द पाता है ॥५१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५१−(ब्रध्नलोकः) ब्रध्ने सर्वनियामके परमेश्वरे लोको निवासो यस्य सः (भवति) (ब्रध्नस्य) म० ५०। महतः सर्वनियामकस्य परमेश्वरस्य (विष्टपि) म० ५०। आश्रये (श्रयते) तिष्ठति (यः) मनुष्यः (एवम्) उक्तप्रकारेण (वेद) जानाति परमात्मानम् ॥
५२ एतस्माद्वा ओदनात्त्रयस्त्रिंशतम्
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ए॒तस्मा॒द्वा ओ॑द॒नात्त्रय॑स्त्रिंशतं लो॒कान्निर॑मिमीत प्र॒जाप॑तिः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ए॒तस्मा॒द्वा ओ॑द॒नात्त्रय॑स्त्रिंशतं लो॒कान्निर॑मिमीत प्र॒जाप॑तिः ॥
५२ एतस्माद्वा ओदनात्त्रयस्त्रिंशतम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Out of this rice-dish Prajāpati verily fashioned thirty-three
worlds.
Notes
Griffith
सर्वा॑ङ्ग ए॒व सर्व॑परुः॒ सर्व॑तनूः॒ सं भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥७॥ ३४॥
पदपाठः
ए॒तस्मा॑त्। वै। ओ॒द॒नात्। त्रयः॑ऽत्रिंशतम्। लो॒कान्। निः। अ॒मि॒मी॒त॒। प्र॒जाऽप॑तिः। ५.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- भुरिक्साम्नी त्रिपदा त्रिष्टुप्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (एतस्मात्) इस (वै) ही (ओदनात्) [अपने] ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप सामर्थ्य] से (त्रयस्त्रिंशतम्) तेंतीस (लोकान्) लोकों [दर्शनीय देवताओं] को (प्रजापतिः) प्रजापति [सृष्टिपालक परमेश्वर] ने (निः अमिमीत) निर्माण किया है ॥५२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमेश्वर ने अपने सर्वपोषक सामर्थ्य से जगदुपकारक तेंतीस देवताओं को रचा है। वे तेंतीस देवता ये हैं−८ वसु, ११ रुद्र, १२ महीने, १ बिजुली, १ यज्ञ−देखो अथर्व० ६।१३९।१ ॥५२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५२−(एतस्मात्) (वै) एव (ओदनात्) स्वस्मात् सुखवर्षकात् सामर्थ्यात् (त्रयस्त्रिंशतम्) वसुरुद्रादीन्-अ० ६।१३९।१। (लोकान्) दर्शनीयान् देवान् (निरमिमीत) अ० ५।१२।११। निर्मितवान् (प्रजापतिः) सृष्टिपालकः परमेश्वरः ॥
५३ तेषां प्रज्ञानाय
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तेषां॑ प्र॒ज्ञाना॑य य॒ज्ञम॑सृजत ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
तेषां॑ प्र॒ज्ञाना॑य य॒ज्ञम॑सृजत ॥
५३ तेषां प्रज्ञानाय ...{Loading}...
Whitney
Translation
- In order to the knowledge (prajñā́na) of them he created the
sacrifice.
Notes
Griffith
तत॑श्चैनम॒न्येन॒ मुखे॑न॒ प्राशी॒र्येन॑ चै॒तं पूर्व॒ ऋष॑यः॒ प्राश्न॑न् ॥१॥
पदपाठः
तेषा॑म्। प्र॒ऽज्ञाना॑य। य॒ज्ञम्। अ॒सृ॒ज॒त॒। ५.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- आसुरी बृहती
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - उस [परमेश्वर] ने (तेषाम्) उन [तेंतीस देवताओं के सामर्थ्य] के (प्रज्ञानाय) प्रकृष्ट ज्ञान के लिये (यज्ञम्) यज्ञ [परस्पर जगत् संसार] को (असृजत) सृजा ॥५३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमात्मा ने उन वसु आदि देवताओं से यह संसार इसलिये रचा है कि मनुष्य परमात्मा के संगठन सामर्थ्य को जानकर परस्पर बल बढ़ावें ॥५३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५३−(तेषाम्) त्रयस्त्रिंशतो लोकानाम् (प्रज्ञानाय) प्रकृष्टबोधाय (यज्ञम्) परस्परसंगतसंसारम् (असृजत) सृष्टवान् ॥
५४ स य
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स य ए॒वं वि॒दुष॑ उपद्र॒ष्टा भव॑ति प्रा॒णं रु॑णद्धि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स य ए॒वं वि॒दुष॑ उपद्र॒ष्टा भव॑ति प्रा॒णं रु॑णद्धि ॥
५४ स य ...{Loading}...
Whitney
Translation
- He who becomes the on-looker (upadraṣṭṛ́) of one knowing thus
stops [his own] breath.
Notes
Upadraṣṭṛ́ ought to have here some special and offensive sense; but
what? All the mss. leave bhavati unaccented, and SPP’s text follows
them; ours makes the necessary emendation to bhávati. We might expect
runddhe, middle, but the following verses show whose breath is meant.
Griffith
मु॒ख॒तस्ते॑ प्र॒जा म॑रिष्य॒तीत्ये॑नमाह ॥२॥
पदपाठः
सः। यः। ए॒वम्। वि॒दुषः॑। उ॒प॒ऽद्र॒ष्टा। भ॒व॒ति॒। प्रा॒णम्। रु॒ण॒ध्दि॒। ५.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- द्विपदा भुरिक्साम्नी बृहती
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [मनुष्य] (एवम्) ऐसे [बड़े] (विदुषः) विद्वान् [सर्वज्ञ परमेश्वर] का (उपद्रष्टा) उपद्रष्टा [सूक्ष्मदर्शी वा साक्षात्कर्ता] (भवति) होता है, (सः) वह (प्राणम्) [अपने] प्राण [जीवन] को (रुणद्धि) रोकता है ॥५४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमात्मा के गुण, कर्म, स्वभाव को सूक्ष्म बुद्धि से साक्षात् करता है, वह जितेन्द्रिय होकर अपना जीवन और यश बढ़ाता है ॥५४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५४−(सः) पुरुषः (यः) (एवम्) अनेन प्रकारेण (विदुषः) जानतः सर्वज्ञस्य परमेश्वरस्य (उपद्रष्टा) उपेत्य दर्शकः सूक्ष्मदर्शी। साक्षात्कर्ता (भवति) (प्राणम्) जीवनम् (रुणद्धि) आवृणोति। वर्धयतीत्यर्थः ॥
५५ न च
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न च॑ प्रा॒णं रु॒णद्धि॑ सर्वज्या॒निं जी॑यते ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
न च॑ प्रा॒णं रु॒णद्धि॑ सर्वज्या॒निं जी॑यते ॥
५५ न च ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If he does not stop [his own] breath, he is scathed a complete
scathing.
Notes
The comm. explains sarvajyāním by prajāpśvādirūpasya sarvasyā
’bhimatasya vastunaḥ…hānir yathā bhavati tathā. ⌊Cf. GB. i. 3. 13, p.
52¹⁸; LśS. x. 17. 7.⌋
Griffith
तं वा अ॒हं नार्वाञ्चं॒ न परा॑ञ्चं॒ न प्र॒त्यञ्च॑म् ॥३॥
पदपाठः
न। च॒। प्रा॒णम्। रु॒णध्दि॑। स॒र्व॒ऽज्या॒निम्। जी॒य॒ते॒। ५.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- साम्न्युष्णिक्
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (च) यदि वह (प्राणम्) [अपने] प्राण को (न) नहीं (रुणद्धि) रोकता है, वह (सर्वज्यानिम्) सब हानि से (जीयते) निर्बल हो जाता है ॥५५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमेश्वर के सामर्थ्य को देखते हुए भी जितेन्द्रिय नहीं होता, वह मनुष्यपन से गिरकर बलहीन हो जाता है ॥५५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५५−(न) निषेधे (च) यदि (प्राणम्) श्वासप्रश्वासव्यापारम् (रुणद्धि) वशं करोति (सर्वज्यानिम्) ज्या वयोहानौ-क्तिन्, सुपां सुपो भवन्ति। वा० पा० ७।१।३९। तृतीयास्थाने द्वितीया। सर्वज्यान्या। सर्वहान्या (जीयते) ज्या वयोहानौ कर्मणि-लट्। हीयते ॥
५६ न च
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न च॑ सर्वज्या॒निं जी॒यते॑ पु॒रैनं॑ ज॒रसः॑ प्रा॒णो ज॑हाति ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
न च॑ सर्वज्या॒निं जी॒यते॑ पु॒रैनं॑ ज॒रसः॑ प्रा॒णो ज॑हाति ॥
५६ न च ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If he is not scathed a complete scathing, before old age breath
quits him.
Notes
⌊The quotations from the Old Anukr. for the paryāya-sūkta are given
piecemeal at the end of each paryāya. They may here be given together
in their metrical form:
ekatriṅśad bhavet pūrvas tasmād dvāsaptatiḥ paraḥ:
tṛtīyaḥ saptako dṛṣṭo “bṛhaspatiḥ śirasy” api:
‘In the [hymn beginning] “bṛhaspatiḥ śiraḥ”’ etc.—The summations of
gaṇas and (gaṇa-)avasāna-rcas are as follows: I. g., o; av.,
31; 11. g., 18; av., 72; III. g., o; av., 7. Total of av.,
110.—The second paryāya-sūkta is called also a gaṇa-sūkta.⌋
Griffith
ब्रह्म॑णा॒ मुखे॑न ॥४॥
पदपाठः
न। च॒। स॒र्व॒ऽज्या॒निम्। जी॒यते॑। पु॒रा। ए॒न॒म्। ज॒रसः॑। प्रा॒णः। ज॒हा॒ति॒। ५.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- मन्त्रोक्ताः
- अथर्वा
- प्राजापत्या बृहती
- ओदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - वह (सर्वज्यानिम्) सब हानि से (च) ही (न) नहीं (जीयते) हीन होता है, [किन्तु] (एनम्) इस [मनुष्य] को (जरसः) जरा [स्तुति का बुढ़ापा पाने] से (पुरा) पहिले (प्राणः) [जीवनव्यापार] (जहाति) छोड़ देता है ॥५६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमेश्वर का विरोधी मनुष्य निर्बल, अपकीर्तिवाला, अल्पजीवी और दुर्बलेन्द्रिय होता है ॥५६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५६−(न) निषेधे (च) अवधारणे (सर्वज्यानिम्) म० ५५। सर्वहान्या (जीयते) हीयते (पुरा) पुरस्तात् (एनम्) पुरुषम् (जरसः) अ० १।३०।२। जॄ स्तुतौ, यद्वा जॄष् वयोहानौ-असुन्। जरायाः स्तुतेर्वयोहानेर्वा सकाशात् (प्राणः) श्वासप्रश्वासव्यापारः (जहाति) त्यजति ॥