००२ रुद्रः

००२ रुद्रः ...{Loading}...

Whitney subject
  1. To Rudra, especially as Bhava and śarva.
VH anukramaṇī

रुद्रः।
१-३१ अथर्वा। भव-शर्व रुद्राः। त्रिष्टुप्, १ परातिजागता विराड्जगती, २ अनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा पथ्याजगती, ३ चतुष्पदा स्वराडुष्णिक्, ४-५, ७, १३, १५-१६, २१ अनुष्टुप्, ६ आर्षी गायत्री, ८ महाबृहती, ९ आर्षी, १० पुरोकृती त्रिपदा विराट्, ११ पञ्पदा विराड् जगतीगर्भा शक्वरी, १२ भुरिक्, १४, १७-१९, २३, २६-२७ विराड्गायत्री, २० भुरिग्गायत्री, २२ विषमपादलक्ष्मा त्रिपदा महाबृहती, २४, २९ जगती, २५ पञ्पदातिशक्वरी, ३० चतुष्पदा उष्णिक्,३१ त्र्यवसाना विपरीतपाद लक्ष्मा षट् पदा (जगती)।

Whitney anukramaṇī

[Atharvan.—ekatriṅśat. mantroktarudradāivatam. trāiṣṭubham.* 1. parātijāgatā virāḍ jagatī; 2. anuṣṭubgarbhā 5-p. pathyājagatī; 3. 4-p. svarāḍ uṣṇih; 4, 5, 7, 13, 15, 16, 21. anuṣṭubh; 6. ārṣī gāyatrī; 8. mahābṛhatī; 9. ārṣī; 10. purokṛti 3-p. virāj; 11. 5-p. virāḍ jagatīgarbhā śakvarī; 12, bhurij; 14, 17, 18, 19, 23, 26, 27. virāḍ gāyatrī; 20. bhurig gāyatrī; 22. viṣamapādalakṣmyā 3-p. mahābṛhatī; 24, 29. jagatī; 25. 5-p. atiśakvarī; 30. 4-p. uṣṇih; 31. 3-av. viparītapādalakṣmyā 6-p. ⌊jagatī?⌋

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. xvi.—*⌊Verses 9 and 28 are triṣṭubh, the remaining 29 being exceptions!⌋

⌊The pratīka coincides with that of xi. 6. 9, bhavāśarvā́v idám brūmaḥ, and that of iv. 28, bhávāśarvāu manvé vām: see introduction to the latter. The only quotation in Vāit. is at 29. 10, where the hymn accompanies an offering to Rudra: and it is accordingly reckoned to the rāudra gaṇa (note to Kāuś. 50. 13). Verse 31 is reckoned to the abhaya gaṇa (note to Kāuś. 16. 8). Further citations in Kāuś. are as follows: the hymn is used (129. 3) with an oblation in deprecating an evil omen; Dārīla understands it as meant at 28. 8 (see introd. to iv. 28); Keśava and the comm. hold that it is to be used with a dozen other hymns in a rite (50. 13-14) for safety on a business journey; Keśava (not the comm.) takes it to be intended with v. 6 at 51. 7 in a rite for the safety of the cattle.—According to Caland’s interpretation of yuktayos at 50. 17, it is to be used (with vi. 128) in the rite there prescribed for keeping snakes etc. from house and field; but perhaps iii. 26 and 27 are rather intended (see my introduction to iii. 26).⌋

Translations

Translated: Muir, iv. 334; Ludwig, p. 549; Henry, 103, 139; Griffith, ii. 57; Bloomfield, 155, 618.—Cf. also Bergaigne-Henry, Manuel, p. 157; and von Schroeder, Tübinger Kaṭha-hss., p. 14-15, where the text corresponding to our verses 1-9 and 13 and 16 is given.

Griffith

Prayer and praise to Bhava, Sarva and Rudra

०१ भवाशर्वौ मृडतम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

भवा॑शर्वौ मृ॒डतं॒ माभि या॑तं॒ भूत॑पती॒ पशु॑पती॒ नमो॑ वाम्।
प्रति॑हिता॒माय॑तां॒ मा वि स्रा॑ष्टं॒ मा नो॑ हिंसिष्टं द्वि॒पदो॒ मा चतु॑ष्पदः ॥

०१ भवाशर्वौ मृडतम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O Bhava-and-śarva, be gracious; do not go against [us]; ye lords of
    beings, lords of cattle, homage to you! [the arrow] that is fitted,
    that is drawn, do not let fly; do not harm our bipeds nor quadrupeds.
Notes

The comm. first explains mā́ in a as if it were , object of
abhí yātam, and then, alternatively, in its proper sense. ⌊For
ā́yata, see note to vi. 65. 1.⌋

Griffith

Bhava and Sarva, spare us, be not hostile. Homage to you, twin Lords of beasts and spirits! Shoot not the arrow aimed and drawn against us: forbear to harm our quadrupeds and bipeds.

पदपाठः

भवा॑शर्वौ। मृ॒डत॑म्। मा। अ॒भि। या॒त॒म्। भूत॑पती॒ इति॒ भूत॑ऽपती। पशु॑पती॒ इति॒ पशु॑ऽपती। नमः॑। वा॒म्। प्रति॑ऽहिताम्। आऽय॑ताम्। मा। वि। स्रा॒ष्ट॒म्। मा। नः॒। हिं॒सि॒ष्ट॒म्। द्वि॒ऽपदः॑। मा। चतुः॑ऽपदः। २.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • परातिजागता विराड्जगती
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भवाशर्वौ) हे भव और शर्व ! [भव, सुख उत्पन्न करनेवाले और शर्व, शत्रुनाशक परमेश्वर के तुम] [दोनों गुणों] (मृडतम्) प्रसन्न हो, (मा अभियातम्) [हमारे] विरुद्ध मत चलो, (भूतपती) हे सत्ता के पालको ! (पशुपती) हे सब दृष्टिवालों के रक्षको ! (वाम्) तुम दोनों को (नमः) नमस्कार है। (प्रतिहिताम्) लक्ष्य पर लगाई हुई और (आयताम्) तानी हुई [इषु, तीर] को (मा वि स्राष्टम्) तुम दोनों मत छोड़ो, (मा) न (नः) हमारे (द्विपदः) दोपायों और (मा) न (चतुष्पदः) चौपायों को (हिंसिष्टम्) मारो ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे एक ही मनुष्य अपने अधिकारों से गुरुकुल में आचार्य और यज्ञ में ब्रह्मा आदि होता है, वैसे ही एक परमेश्वर अपने गुणों से (भव) सुख उत्पन्न करनेवाला और (शर्व) शत्रुनाशक कहाता है, अर्थात् गुणों के वर्णन से गुणी परमात्मा का ग्रहण है। कहीं (भवाशर्वौ, भवारुद्रौ) द्विवचनान्त और कहीं (भव, शर्व, रुद्र) आदि एकवचनान्त पद हैं। मन्त्र का आशय यह है कि मनुष्य परमेश्वर के गुणों के ज्ञान से सब उपकारी पदार्थों और प्राणियों की रक्षा करके धर्म में प्रवृत्त रहें, जिससे परमेश्वर उस पर क्रुद्ध न होवे ॥१॥इस सूक्त का मिलान अ० ४।२८ से करो ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(भवाशर्वौ) अ० ४।२८।१। भवत्युत्पद्यते सुखमस्मादिति भवः, सुखोत्पादको गुणः। शृणाति शत्रून् इति शर्वः, शॄ हिंसायाम्-व। भवश्च शर्वश्च भवाशर्वौ, ईश्वरगुणौ। देवताद्वन्द्वे च। पा० ६।३।२६। इति आनङ्। अस्मिन् सूक्ते गुणवर्णनेन गुणिग्रहणम् (मृडतम्) सुखिनौ प्रसन्नौ भवतम् (मा) निषेधे (अभियातम्) अभिमुखं विरुद्धं गच्छतम् (भूतपती) प्राणिनां पालकौ (पशुपती) दृष्टिमतां रक्षकौ (नमः) नमस्कारः (वाम्) युवाभ्याम् (प्रतिहिताम्) लक्ष्यीकृत्य संहितामारोपिताम् (आयताम्) आङ्+यम्-क्त। आकृष्टां प्रसारिताम् इषुमिति शेषः (मा वि स्राष्टम्) सृज विसर्गे तुदादिः। माङि लुङि रूपम्। नैव विसृजतम् (नः) अस्माकम् (मा हिंसिष्टम्) मा पीडयतम् (द्विपदः) पादद्वयोपेतान् मनुष्यादीन् (मा) निषेधे (चतुष्पदः) पादचतुष्टययुक्तान् गोमहिष्याश्वादीन् ॥

०२ शुने क्रोष्ट्रे

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शुने॑ क्रो॒ष्ट्रे मा शरी॑राणि॒ कर्त॑म॒लिक्ल॑वेभ्यो॒ गृध्रे॑भ्यो॒ ये च॑ कृ॒ष्णा अ॑वि॒ष्यवः॑।
मक्षि॑कास्ते पशुपते॒ वयां॑सि ते विघ॒से मा वि॑दन्त ॥

०२ शुने क्रोष्ट्रे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Make ye not bodies for the dog, the jackal, for the buzzards (?
    alíklava), the vultures, and them that are black [and] greedy
    (aviṣyú); let thy flies, lord of cattle, let thy birds not find
    themselves at food.
Notes

‘Bodies’ (śarīra) must be taken here in the sense of ‘dead bodies.’
The accent of kártam is, though rather strange, not indefensible, as
in the former of two parallel clauses; the comm. reads instead kartum*.*
Atíklava is found only here and in 9. 9, and is rendered purely
conjecturally; the comm. reads instead aviklabebhyas, and Ppp.
ariklavebhyas. All the pada-mss. separate mā́vidanta at the end
into mā́: avidanta; SPP., in his pada-text, makes, with the comm.,
the necessary emendation to vid-. The construction and sense of d
are obscure and doubtful; Ppp. has a wholly different reading: viśase
mā viśyantu
.

Griffith

Cast not our bodies to the dog or jackal, nor, Lord of Beasts! to carrion-kites or vultures. Let not thy black voracious flies attack them; let not thy birds obtain them for their banquet.

पदपाठः

शुने॑। क्रो॒ष्ट्रे। मा। शरी॑राणि। कर्त॑म। अ॒लिक्ल॑वेभ्यः। गृध्रे॑भ्यः। ये। चे॒। कृ॒ष्णाः। अ॒वि॒ष्यवः॑। मक्षि॑काः। ते॒। प॒शु॒ऽप॒ते॒। वयां॑सि। ते॒। वि॒ऽघ॒से। मा। वि॒द॒न्त॒। २.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा विराड्जगती
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शुने) कुत्ते के लिये, (क्रोष्ट्रे) गीदड़ के लिये, (अलिक्लवेभ्यः) अपने बल से भय देनेवाले [श्येन, चील आदियों] के लिये, (गृध्रेभ्यः) खाऊ [गिद्ध आदियों] के लिये (च) और (ये) जो (अविष्यवः) हिंसाकारी (कृष्णाः) कौवे हैं [उनके लिये] (शरीराणि) [हमारे] शरीरों को (मा कर्तम्) तुम दोनों मत करो। (पशुपते) हे दृष्टिवाले [जीवों] के रक्षक ! (ते) तेरी [उत्पन्न] (मक्षिकाः) मक्खियाँ और (ते) तेरे [उत्पन्न] (वयांसि) पक्षी (विघसे) भोजन पर (मा विदन्त) [हमें] न प्राप्त होवें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सावधान रहें कि कुत्ते आदि उन्हें न सतावें और न मक्खी आदि भोजन को बिगाड़ें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(शुने) कुक्कुराय (क्रोष्ट्रे) शृगालाय (शरीराणि) अस्माकं देहान् (मा कर्तम्) मा कुरुतम् (अलिक्लवेभ्यः) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। अल भूषणपर्याप्तिशक्तिवारणेषु-इन्+क्लव भये-अच्। अलिना शक्त्या बलेन भयानकाः। श्येनादयस्तेभ्यः (गृध्रेभ्यः) मांसाहारिभ्यः खगविशेषेभ्यः (ये) (च) (कृष्णाः) कृष्णवर्णा वायसाः (अविष्यवः) अ० ३।२६।२। अर्चिशुचि….इसिः। उ० २।१०८। अव रक्षणहिंसादिषु-इसि। छन्दसि परेच्छायामपि। वा० पा० ३।१।८। इति क्यच्। क्याच्छन्दसि। पा० ३।२।१७०। उ प्रत्ययः। परहिंसेच्छवः (मक्षिकाः) हनिमशिभ्यां सिकन्। उ० ४।१५४। मश ध्वनौ कोपे च-सिकन्। कीटभेदाः (ते) तव, उत्पन्ना इति शेषः (पशुपते) हे दृष्टिमतां पालक (वयांसि) पक्षिणः (ते) तव (विघसे) उपसर्गेऽदः। पा० ३।३।५९। अद भक्षणे-अप्। घञपोश्च। पा० २।३।३८। घस्लृ आदेशः। अन्ने। भोजने (मा विदन्त) विद्लृ लाभे माङि लुङि रूपम्। न लभन्ताम्, अस्मान् इति शेषः ॥

०३ क्रन्दाय ते

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

क्रन्दा॑य ते प्रा॒णाय॒ याश्च॑ ते भव॒ रोप॑यः।
नम॑स्ते रुद्र कृण्मः सहस्रा॒क्षाया॑मर्त्य ॥

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Whitney
Translation
  1. Unto thy noise (? kránda), [thy] breath, and what pangs (?
    rópi) are thine, O Bhava—homage we pay to thee that art thousand-eyed,
    O Rudra, immortal one.
Notes

The comm. glosses krandāya with krandanāya śabādya, and ropayas
with ropayitryo mohayitryas tanvaḥ; he reads at the end amartyas,
explaining it as used for a dative.

Griffith

We offer homage to thy shout, Bhava! thy breath, thy racking pains: Homage, Immortal One! to thee, to Rudra of the thousand eyes.

पदपाठः

क्रन्दा॑य। ते॒। प्रा॒णय॑। याः। च॒। ते॒। भ॒व॒। रोप॑यः। नमः॑। ते॒। रु॒द्र॒। कृ॒ण्मः॒। स॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षाय॑। अ॒म॒र्त्य॒। २.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • चतुष्पदा स्वराडुष्णिक्
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भव) हे भव ! [सुख उत्पन्न करनेवाले] (रुद्र) हे रुद्र ! [दुःखनाशक] (अमर्त्य) हे अमर ! [जगदीश्वर] (सहस्राक्षाय) सहस्रों कर्मों में दृष्टिवाले (ते) तुझको (क्रन्दाय) [अपना] रोदन मिटाने के लिये (ते) तुझे (प्राणाय) [अपना] जीवन बढ़ाने के लिये (च) और (ते) तुझे (याः) जो (रोपयः) [हमारी] पीड़ाएँ हैं [उन्हें हटाने के लिये] (नमः कृण्मः) हम नमस्कार करते हैं ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर की भक्ति से सब ओर दृष्टि करके और भीतरी क्लेश मिटाकर अपना जीवन सुफल करे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(क्रन्दाय) क्रदि आह्वाने रोदने च-घञ्। क्रियार्थोपपदस्य च कर्मणि स्थानिनः। पा० ३।२।१४। क्रन्दं रोदनं नाशयितुम् (ते) तुभ्यम् (प्राणाय) प्राणं जीवनं वर्धयितुम् (याः) (च) (ते) तुभ्यम् (भव) भू-अप्। हे सुखोत्पादक (रोपयः) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। रुप विमोहने-इन्। विमोहिकाः पीडाः (नमः) सत्कारः (ते) तुभ्यम् (रुद्र) अ० २।२७।६। रु वधे-क्विप्, तुक्+रु वधे-ड। हे दुःखनाशक। यद्वा, रु गतौ-क्विप्+रा दाने-क। हे ज्ञानदातः (कृण्मः) कुर्मः (सहस्राक्षाय) अ० ३।११।३। सहस्रेषु बहुषु कर्मसु अक्षीणि दर्शनशक्तयो यस्य तस्मै (अमर्त्य) हे अमर ॥

०४ पुरस्तात्ते नमः

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पु॒रस्ता॑त्ते॒ नमः॑ कृण्म उत्त॒राद॑ध॒रादु॒त।
अ॑भीव॒र्गाद्दि॒वस्पर्य॒न्तरि॑क्षाय ते॒ नमः॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. We pay thee homage in front, above, also below; forth from the sphere
    of the sky, homage [be] to thine atmosphere.
Notes

The comm. explains abhīvargá as = avakāśātmaka ākāśaḥ. The verse is
mostly wanting in Ppp.

Griffith

We offer reverence to thee from eastward, and from north and south, From all the compass of the sky, to thee and to the firmament.

पदपाठः

पु॒रस्ता॑त्। ते॒। नमः॑। कृ॒ण्मः॒। उ॒त्त॒रात्। अ॒ध॒रात्। उ॒त। अ॒भि॒ऽव॒र्गात्। दि॒वः। परि॑। अ॒न्तरि॑क्षाय। ते॒। नमः॑। २.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे परमात्मन् !] (ते) तुझे (पुरस्तात्) आगे से, (उत्तरात्) ऊपर से (उत) और (अधरात्) नीचे से (नमः) नमस्कार, (ते) तुझे (दिवः) आकाश के (अभीवर्गात् परि) अवकाश से (अन्तरिक्षाय) अन्तरिक्ष लोक को जानने के लिये (नमः कृण्मः) हम नमस्कार करते हैं ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर को सर्वत्र व्यापक जानकर विद्या की प्राप्ति से सब दिशाओं और अन्तरिक्ष के पदार्थों का ज्ञान प्राप्त करके अपनी रक्षा करें ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(पुरस्तात्) अग्रे वर्तमानाद् देशात् (ते) तुभ्यम् (उत्तरात्) उपरिस्थानात् (अधरात्) अधःस्थानात् (उत) अपि च (अभीवर्गात्) अभि+वृजी वर्जने-घञ्। उपसर्गस्य घव्यमनुष्ये बहुलम्। पा० ६।३।१२२। इति दीर्घः। अभितो वृज्यते गृहादिभिः परिच्छिद्यते यः। अवकाशात् (दिवः) आकाशस्य (परि) (अन्तरिक्षाय) अन्तरिक्षं ज्ञातुम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०५ मुखाय ते

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मुखा॑य ते पशुपते॒ यानि॒ चक्षूं॑षि ते भव।
त्व॒चे रू॒पाय॑ सं॒दृशे॑ प्रती॒चीना॑य ते॒ नमः॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. To thy face, O lord of cattle; the eyes that thou hast, O Bhava; to
    [thy] skin, form, aspect, to thee standing opposite [be] homage.
Notes

Or ’to thy mouth,’ instead of ‘face.’ The comm. paraphrases
pratīcīnāya with pratyagātmarūpiṇe.

Griffith

Homage, O Bhava, Lord of Beasts, unto thy face and all thine eyes, To skin, and hue, and aspect, and to thee when looked at from behind!

पदपाठः

मुखा॑य। ते॒। प॒शु॒ऽप॒ते॒। यानि॑। चक्षूं॑षि। ते॒। भ॒व॒। त्व॒चे। रू॒पाय॑। स॒म्ऽदृशे॑। प्र॒ती॒चीना॑य। ते॒। नमः॑। २.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पशुपते) हे दृष्टिवालों के रक्षक ! (ते) तुझे (मुखाय) [हमारे] मुख के हित के लिये, (भव) हे सुख उत्पादक ! (ते) तुझे, (यानि) जो (चक्षूंषि) [हमारे] दर्शनसाधन हैं [उनके लिये]। (त्वचे) [हमारी] त्वचा के लिये (रूपाय) सुन्दरता के लिये, (संदृशे) आकार के लिये (प्रतीचीनाय) प्रत्यक्ष व्यापक (ते) तुझे (नमः) नमस्कार है ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर की उपासनापूर्वक अपने मुख आदि इन्द्रियों और त्वचा आदि को उपयोगी बनाकर पुरुषार्थी होवें ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(मुखाय) मुखहिताय (ते) तुभ्यम् (पशुपते) हे दृष्टिमतां रक्षक (यानि) (चक्षूंषि) दर्शनसाधनानि (भव) हे सुखोत्पादक (त्वचे) त्वचाहिताय (रूपाय) सौन्दर्याय (संदृशे) सम्यग् दर्शनीयाय आकाराय (प्रतीचीनाय) अ० ४।३२।६। प्रत्यक्षं व्यापकाय (ते) तुभ्यम् (नमः) नमस्कारः ॥

०६ अङ्गेभ्यस्त उदराय

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अङ्गे॑भ्यस्त उ॒दरा॑य जि॒ह्वाया॑ आ॒स्या᳡य ते।
द॒द्भ्यो ग॒न्धाय॑ ते॒ नमः॑ ॥

०६ अङ्गेभ्यस्त उदराय ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. To thy members, belly, tongue, thy mouth, to thy teeth, smell, [be]
    homage.
Notes

Ppp. (omitting the first te) combines an̄gebhyo ’darāya and jihvāyā
”syāya
⌊and reads ca for te at end of b⌋.

Griffith

We offer homage to thy limbs, thy belly, and thy tongue, and mouth we offer homage to thy smell.

पदपाठः

अङ्गे॑भ्यः। ते॒। उ॒दरा॑य। जि॒ह्वायै॑। आ॒स्या᳡य। ते॒। द॒त्ऽभ्यः। ग॒न्धाय॑। ते॒। नमः॑। २.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • आर्षी गायत्री
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे परमात्मन् !] (ते) तुझे (अङ्गेभ्यः) [हमारे] अङ्गों के हित के लिये, (उदराय) उदर के हित के लिये, (ते) तुझे (जिह्वायै) [हमारी] जिह्वा के हित के लिये और (आस्याय) मुख के हित के लिये (ते) तुझे (दद्भ्यः) [हमारे] दाँतों के हित के लिये और (गन्धाय) गन्ध ग्रहण करने के लिये (नमः) नमस्कार है ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य अपने अङ्गों को यथावत् उपकारी बनाकर परमेश्वर की भक्ति करें ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(अङ्गेभ्यः) अस्माकं शरीरावयवेभ्यः (ते) तुभ्यम् (उदराय) उदरहिताय (आस्याय) मुखहिताय (ते) तुभ्यम् (दद्भ्यः) दन्तानां हिताय (गन्धाय) गन्धं ग्रहीतुम् (ते) तुभ्यम् (नमः) नमस्कारः ॥

०७ अस्त्रा नीलशिखण्डेन

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अस्त्रा॒ नील॑शिखण्डेन सहस्रा॒क्षेण॑ वा॒जिना॑।
रु॒द्रेणा॑र्धकघा॒तिना॒ तेन॒ मा सम॑रामहि ॥

०७ अस्त्रा नीलशिखण्डेन ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. With the blue-locked archer, the thousand-eyed, vigorous, with Rudra,
    the half-smiter (?)—with him may we not come into collision (sam-ṛ).
Notes

Ardhaka-ghātin, in c, is met with only here, and is of obscure
meaning; the comm. says senāyā ardhaṁ hantuṁ śīlam asya, i.e. ‘able to
destroy half an army at once.’ No variant is reported from Ppp. ⌊in the
Collation: but in his Notes, Roth does report adhvaga-⌋; the minor Pet
Lex. says “Ppp. adhvaga-” and itself conjectures andhaka-. ⌊Cf. the
notes of Henry, Griffith, Bloomfield. The Kaṭha reading, however, should
now be taken into account; and that has in fact adhvaga-: see
Kaṭha-hss., p. 15⁵.⌋ Ppp. has at the end samarāmasi.

Griffith

Never may we contend with him, the mighty archer, thousand- eyed. Rudra who wears black tufts of hair, the slaughterer of Ardhaka.

पदपाठः

अस्त्रा॑। नील॑ऽशिखण्डेन। स॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षेण॑। वा॒जिना॑। रु॒द्रेण॑। अ॒र्ध॒क॒ऽघा॒तिना॑। तेन॑। मा। सम्। अ॒रा॒म॒ह‍ि॒। २.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्त्रा) प्रकाश करनेवाले, (नीलशिखण्डेन) नीलों [निधियों] के पहुँचानेवाले, (सहस्राक्षेण) सहस्रों कर्मों में दृष्टिवाले (वाजिना) बलवान् (अर्धकघातिना) हिंसकों के मारनेवाले (तेन) उस (रुद्रेण) रुद्र [दुःख नाशक परमात्मा] के साथ (मा सम् अरामहि) हम समर [युद्ध] न करें ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य स्वयंप्रकाशमान, सर्वहितकारी, महाबली परमात्मा की आज्ञा में रहकर सदा सुखी रहे ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(अस्त्रा) अस दीप्तौ-तृन्, इडभावः। प्रकाशमानः (नीलशिखण्डेन) अ० २।२७।६। णीञ् प्रापणे-रक्, रस्य लः। नीयते प्राप्यते स नीलो निधिः। शिख शिखि गतौ-अण्डन्। निधीनां शिखण्डः प्राप्तिर्यस्मात् तेन। निधीनां प्रापकेण (सहस्राक्षेण) म० ३। सहस्रेषु कर्मसु दृष्टियुक्तेन (वाजिना) बलवता (रुद्रेण) म० ३। दुःखनाशकेन परमात्मना (अर्धकघातिना) अर्द हिंसायाम्-ण्वुल्, दस्य धः+हन हिंसागत्योः णिनि। हनस्तोऽचिण्णलोः पा० ७।३।३२। इति तत्वम्। हो हन्तेर्ञ्णिन्नेषु। पा० ७।३।५४। इति घत्वम्। अर्दकानां हिंसकानां नाशकेन (तेन) प्रसिद्धेन (मा सम् अरामहि) ऋ गतौ-माङि लुङि रूपम्। समो गम्यृच्छिप्रच्छि०। पा० १।३।२९। इत्यात्मनेपदम्। सर्तिशास्त्यर्तिभ्यश्च। पा० ३।१।५६। इति च्लेरङादेशः। समरं युद्धं न करवाम ॥

०८ स नो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

स नो॑ भ॒वः परि॑ वृणक्तु वि॒श्वत॒ आप॑ इवा॒ग्निः परि॑ वृणक्तु नो भ॒वः।
मा नो॒ऽभि मां॑स्त॒ नमो॑ अस्त्वस्मै ॥

०८ स नो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let this Bhava avoid us on every side; as fire the waters, let Bhava
    avoid us; let him not plot against us; homage be to him.
Notes

Ppp. reads āpāi ’vā ’gniṣ pari in b, and combines no abhi in
c. The comm. has in c the regular form maṅsta; but long ā in
this tense occurs a couple of times in other texts also.

Griffith

May he, may Bhava from all sides avoid us, avoid us even as fire avoids the waters. Let him not threaten us. To him be homage!

पदपाठः

सः। नः॒। भ॒वः। परि॑। वृ॒ण॒क्तु॒। वि॒श्वतः॑। आपः॑ऽइव। अ॒ग्निः। परि॑। वृ॒ण॒क्तु॒। नः॒। भ॒वः। मा। नः॒। अ॒भि। मां॒स्त॒। नमः॑। अ॒स्तु॒। अ॒स्मै॒। २.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • महाबृहती
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह (भवः) भव [सुख उत्पन्न करनेवाला परमेश्वर] (नः) हमें [दुष्ट कर्मों से] (विश्वतः) सब ओर (परि वृणक्तु) बरजता [रोकता] रहे, (इव) जैसे (आपः) जल और (अग्निः) अग्नि [एक दूसरे को रोकते हैं, वैसे ही] (भवः), भव [सुख उत्पन्न करनेवाला परमेश्वर] (नः) हमें (परि वृणक्तु) बरजता रहे। (नः) हमें (मा अभि मांस्त) वह न सतावे, (अस्मै) इस [परमेश्वर] को (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे जल अग्नि से और अग्नि जल से पृथक् होते हैं, वैसे ही हम दुष्ट कर्मों से पृथक् रहकर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करके सुरक्षित रहें ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(सः) प्रसिद्धः (नः) अस्मान् (भवः) म० ३। सुखोत्पादकः (परि वृणक्तु) परितो वर्जयतु, दुष्टकर्मस्य इति शेषः (विश्वतः) सर्वतः (आपः) जलानि (इव) यथा (अग्निः) (नः) अस्मान् (मा अभि मांस्त) अभिपूर्वो मन्यतिर्हिंसने-माङि लुङि रूपम्। न हिनस्तु (नमः) नमस्कारः (अस्तु) (अस्मै) भवाय। अन्यद् गतम् ॥

०९ चतुर्नमो अष्टकृत्वो

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च॒तुर्नमो॑ अष्ट॒कृत्वो॑ भ॒वाय॒ दश॒ कृत्वः॑ पशुपते॒ नम॑स्ते।
तवे॒मे पञ्च॑ प॒शवो॒ विभ॑क्ता॒ गावो॒ अश्वाः॒ पुरु॑षा अजा॒वयः॑ ॥

०९ चतुर्नमो अष्टकृत्वो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Four times ⌊catús⌋ homage, eight times, to Bhava; ten times, O lord
    of cattle, be homage to thee; thine are shared out these five creatures
    (paśú)—cows, horses, men, sheep and goats.
Notes

All the mss. agree in the inconsistent readings aṣṭakṛ́tvas and dáśa
kṛ́tvas
(cf. Prāt. iv. 27); SPP. regards the comm. as having
daśakṛtvas as a compound, but I do not see on what ground. Ppp. reads
in d gāvo ‘śvāṣ puruṣāṅd aj-.

Griffith

Four times, eight times be homage paid to Bhava, yea, Lord of Beasts, ten times be reverence paid thee! Thine are these animals, five several classes, oxen, and goats and sheep, and men, and horses

पदपाठः

च॒तुः। नमः॑। अ॒ष्ट॒ऽकृत्वः॑। भ॒वाय॑। दश॑। कृत्वः॑। प॒शु॒ऽप॒ते॒। नमः॑। ते॒। तव॑। इ॒मे। पञ्च॑। प॒शवः॑। विऽभ॑क्ताः। गावः॑। अश्वाः॑। पुरु॑षा। अ॒ज॒ऽअ॒वयः॑। २.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • आर्षी त्रिष्टुप्
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भवाय) भव [सखोत्पादक परमेश्वर] को (चतुः) चार बार, (अष्टकृत्वः) आठ बार (नमः) नमस्कार है, (पशुपते) हे दृष्टिवाले [जीवों] के रक्षक ! (ते) तुझे (दश कृत्वः) दस बार (नमः) नमस्कार है। (तव) तेरे ही (विभक्ताः) बाँटे हुए (इमे) यह (पञ्च) पाँच (पशवः) दृष्टिवाले [जीव] (गावः) गौवें, (अश्वाः) घोड़े, (पुरुषाः) पुरुष और (अजावयः) बकरी और भेड़ें हैं ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर को चार बार [ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास चार आश्रमों का ध्यान करके], आठ बार [यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि, आठ योग के अङ्गों का आश्रय लेकर−योगदर्शन, पाद २ सूत्र २९] और दस बार [पाँच ज्ञानेन्द्रिय और पाँच कर्मेन्द्रिय को वश में करके] नमस्कार करे। परमेश्वर ही कर्मानुसार गौ आदि पदार्थों को मनुष्यों के लिये बाँटता है ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(चतुः) द्वित्रिचतुर्भ्यः सुच्। पा० ५।४।१८। इति सुच्। चतुर्वारम्। ब्रह्मचर्यगृहस्थवानप्रस्थसंन्यासाश्रमान् ध्यात्वा (नमः) नमस्कारः (अष्टकृत्वः) संख्यायाः क्रियाभ्यावृत्तिगणने कृत्वसुच्। पा० ५।४।१०। इति कृत्वसुच्। अष्टवारम्। यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि−योगदर्शने, पा० २ सूत्रे २९-इत्येतानि आश्रित्य (भवाय) म० ३। सुखोत्पादकाय (दश कृत्वः) पूर्ववत् कृत्वसुच्, व्यवधानं छान्दसम्। दशवारम्। दशेन्द्रियाणि वशीकृत्वेति यावत् (पशुपते) (नमः) (ते) (तव) (इमे) समीपवर्तिनः (पशवः) दृष्टिमन्तो जीवाः (विभक्ताः) विभागं प्राप्ताः (गावः) धेनवः (अश्वाः) तुरङ्गाः (पुरुषाः) मनुष्याः (अजावयः) अजाश्च अवयश्च ते छागमेषाः ॥

१० तव चतस्रः

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तव॒ चत॑स्रः प्र॒दिश॒स्तव॒ द्यौस्तव॑ पृथि॒वी तवे॒दमु॑ग्रो॒र्व१॒॑न्तरि॑क्षम्।
तवे॒दं सर्व॑मात्म॒न्वद्यत्प्रा॒णत्पृ॑थि॒वीमनु॑ ॥

१० तव चतस्रः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thine are the four directions, thine the heaven, thine the earth,
    thine, O formidable one, this wide atmosphere, thine is all this that
    has life (ātmán), that is breathing upon (ánu) the earth.
Notes

Ppp. omits tava pṛthivī, thus rectifying the meter; and it has for
d yad ejad adhi bhūmyām.

Griffith

Thine the four regions, thine are earth and heaven, thine, Mighty One, this firmament between them; Thine everything with soul and breath here on the surface of the land.

पदपाठः

तव॑। चत॑स्रः। प्र॒ऽदिशः॑। तव॑। द्यौः। पृ॒थि॒वी। तव॑। इ॒दम्। उ॒ग्र॒। उ॒रु। अ॒न्तरि॑क्षम्। तव॑। इ॒दम्। सर्व॑म्। आ॒त्म॒न्ऽवत्। यत्। प्रा॒णत्। पृ॒थि॒वीम्। अनु॑। २.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • पुरोकृतिस्त्रिपदा विराट्त्रिष्टुप्
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (उग्र) हे तेजस्वी ! [परमेश्वर] (तव) तेरी (चतस्रः) चारों (प्रदिशः) बड़ी दिशाएँ हैं, (तव) तेरा (द्यौः) प्रकाशमान सूर्य, (तव) तेरी (पृथिवी) फैली हुई भूमि, (तव) तेरा (इदम्) यह (उरु) चौड़ा (अन्तरिक्षम्) आकाश लोक है। (तव) तेरा ही (इदम्) यह (सर्वम्) सब है, (यत्) जो (आत्मन्वत्) आत्मावाला और (प्राणत्) प्राणवाला [जगत्] (पृथिवीम् अनु) पृथिवी पर है ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - यह सब चराचर जगत् और पृथिवी आदि सब लोक परमेश्वर के आधीन हैं ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(तव) (चतस्रः) चतुःसंख्याकाः (प्रदिशः) प्रधानाः प्राच्याद्या महादिशः (द्यौः) प्रकाशमानः सूर्यः (पृथिवी) विस्तृता भूमिः (इदम्) सर्वत्र व्यापकम् (उग्र) हे तेजस्विन् (उरु) विस्तृतम् (अन्तरिक्षम्) सर्वमध्ये दृश्यमान आकाशः (इदम्) सर्वम् (आत्मन्वत्) अ० ४।१०।७। सात्मकं जगत् (यत्) (प्राणत्) प्राणव्यापारं कुर्वत् (पृथिवीम् अनु) भूमिं प्रति ॥

११ उरुः कोशो

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उ॒रुः कोशो॑ वसु॒धान॒स्तवा॒यं यस्मि॑न्नि॒मा विश्वा॒ भुव॑नान्य॒न्तः।
स नो॑ मृड पशुपते॒ नम॑स्ते प॒रः क्रो॒ष्टारो॑ अभि॒भाः श्वानः॑ प॒रो य॑न्त्वघ॒रुदो॑ विके॒श्यः᳡ ॥

११ उरुः कोशो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. This wide vessel, holder of good things, is thine, within which are
    all these beings; do thou be gracious to us, O lord of cattle; homage to
    thee; away let the jackals, the portents (abhibhā́), the dogs go, away
    the weepers of evil with disheveled hair.
Notes

The comm. identifies the vessel (kośa) with the aṇḍakaṭāha, the
shell of the world-egg. He takes abhibhā́s as = abhibhavitāras, and
epithet of kroṣṭāras, and agharudas as = aman̄galaṁ yathā bhavati
tathā rodanaṁ kurvatyaḥ;
⌊but see viii. i. 19 and references⌋. ⌊The
meter of b would be rectified by reading víśvāni in place of imā́
víśvā
.⌋

Griffith

Thine is this ample wealth-containing storehouse that holds with- in it all these living creatures. Favour us, Lord of Beasts, to thee be homage! Far from us go ill-omens, dogs, and jackals, and wild-haired women with their horrid shrieking!

पदपाठः

उ॒रुः। कोशः॑। व॒सु॒ऽधानः॑। तव॑। अ॒यम्। यस्मि॑न्। इ॒मा। विश्वा॑। भुव॑नानि। अ॒न्तः। सः। नः॒। मृ॒ड॒। प॒शु॒ऽप॒ते॒। नमः॑। ते॒। प॒रः। क्रो॒ष्टारः॑। अ॒भि॒ऽभाः। श्वानः॑। प॒रः। य॒न्तु॒। अ॒घ॒ऽरुदः॑। वि॒ऽके॒श्यः᳡। २.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • पञ्चपदा विराड्जगतीगर्भा शक्वरी
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [परमेश्वर !] (तव) तेरा (अयम्) यह (उरुः) चौड़ा (कोशः) कोश [निधि] (वसुधानः) श्रेष्ठ पदार्थों का आधार है, (यस्मिन् अन्तः) जिसके भीतर (इमा विश्वा) ये सब (भुवनानि) भुवन [सत्ताएँ] हैं। (पशुपते) हे दृष्टिवाले [जीवों] के रक्षक ! (सः) तू सो (नः) हमें (मृड) सुखी रख, (ते) तेरे लिये (नमः) नमस्कार हो, (क्रोष्टारः) चिल्लानेवाले गीदड़, (अभिभाः) सन्मुख चमकती हुई विपत्तियाँ, (श्वानः) घूमनेवाले कुत्ते (परः) दूर और (विकेश्यः) केश फैलाये हुए [भयानक] (अघरुदः) पाप की पीड़ाएँ (परः) दूर (यन्तु) चली जावें ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर के आश्रय भण्डार से यह सब लोक पलते हैं, उसी के आश्रय से सब मनुष्य पुरुषार्थ के साथ अनेक विपत्तियों और विघ्नों से बचकर आनन्दित होवें ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(उरुः) विस्तृतः (कोशः) निधिः। भाण्डागारः (वसुधानः) वसूनां श्रेष्ठपदार्थानामाधारः (तव) (अयम्) (यस्मिन्) कोशे (इमा) इमानि (विश्वा) सर्वाणि (भुवनानि) अस्तित्वानि। लोकाः (अन्तः) मध्ये (सः) स त्वम् (नः) अस्मान् (मृड) मृडय। सुखय (पशुपते) दृष्टिमतां जीवानां पालक (नमः) नमस्कारः (ते) तुभ्यम् (परः) परस्तात्। दूरम् (क्रोष्टारः) क्रोशनशीलाः शृगालाः (अभिभाः) अ० १।˜२०।१। अभि+भा दीप्तौ-क्विप्। अभितो दीप्यमाना विपत्तयः (श्वानः) अ० ४।३६।६। टुओश्वि गतिवृद्ध्योः-कनिन्। भ्रमणशीलाः कुक्कुराः (परः) दूरम् (यन्तु) गच्छन्तु (अघरुदः) अ० ८।—१।११। अघ+रुदेः क्विप्। पापस्य पीडाः (विकेश्यः) अ० १।२८।४। वि+केश- ङीप्। विकीर्णकेशाः। अतिभयकारिण्यः ॥

१२ धनुर्बिभर्षि हरितम्

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धनु॑र्बिभर्षि॒ हरि॑तं हिर॒ण्ययं॑ सहस्र॒घ्नि श॒तव॑धं शिखण्डिन्।
रु॒द्रस्येषु॑श्चरति देवहे॒तिस्तस्यै॒ नमो॑ यत॒मस्यां॑ दि॒शी॒३॒॑तः ॥

१२ धनुर्बिभर्षि हरितम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thou bearest a yellow golden bow, a thousand-slaying,
    hundred-weaponed, O tufted one; Rudra’s arrow goes, a god-missile; to
    that be homage, in whichever direction from here.
Notes

SPP. reads in b sahasraghní, with the majority of his authorities;
none of ours have it, but P.M.W. have -ghnyám, with two of SPP’s mss.,
and with the comm. ⌊cf. note to x. 4. 7 and Henry’s note⌋; Ppp. gives
-ghni. The comm. has śikhaṇḍi at end of b.

Griffith

A yellow bow of gold thou wieldest, slaying its hundred, tufted God! smiting its thousand. Weapon of Gods, far flies the shaft of Rudra: wherever it may be, we pay it homage.

पदपाठः

धनुः॑। बि॒भ॒र्षि॒। हरि॑तम्। हि॒र॒ण्यय॑म्। स॒ह॒स्र॒ऽघ्नि। श॒तऽव॑धम्। शि॒ख॒ण्डि॒न्। रु॒द्रस्य॑। इषुः॑। च॒र॒ति॒। दे॒व॒ऽहे॒तिः। तस्यै॑। नमः॑। य॒त॒मस्या॑म्। दि॒शि। इ॒तः। २.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • भुरिक्त्रिष्टुप्
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शिखण्डिन्) हे परम उद्योगी ! [रुद्र परमेश्वर] (हरितम्) शत्रुनाशक, (हिरण्यम्) बलयुक्त, (सहस्रघ्नि) सहस्रों [शत्रुओं] के मारनेवाले, (शतवधम्) सैकड़ों हथियारोंवाले, (धनुः) धनुष को तू (बिभर्षि) धारण करता है। (रुद्रस्य) रुद्र [दुःखनाशक परमेश्वर] का (इषुः) बाण (देवहेतिः) दिव्य [अद्भुत] वज्र (चरति) चलता रहता है, (तस्यै) उस [बाण] के रोकने के लिये (इतः) यहाँ से (यतमस्याम् दिशि) चाहे जौन-सी दिशा हो, उसमें (नमः) नमस्कार है ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे शूर पुरुष अनेक प्रकार के सहस्रघ्नि, शतघ्नी, शतवध आदि अस्त्र-शस्त्र बना के शत्रुओं को मारता है, वैसे ही सर्वशक्तिमान् परमात्मा अपने अनन्त सामर्थ्य से पापियों का नाश कर देता है। इससे हम लोग उसकी आज्ञा का उल्लङ्घन न करके उसकी शरण में रहें ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(धनुः) चापम् (बिभर्षि) धारयसि (हरितम्) हृश्याभ्यामितन्। उ० ३।९३। हृञ् नाशने-इतन्। शत्रुनाशकम् (हिरण्ययम्) हिरण्यं रेतो वीर्यं बलम्, तेन युक्तम् (सहस्रघ्नि) भुजेः किच्च। उ० ४।१४२। सहस्र+हन हिंसागत्योः-इप्रत्ययः, कित्। सहस्रशत्रुनाशकम् (शतवधम्) वधो वज्रनाम-निघ० २।२०। अनेकायुधोपेतम् (शिखण्डिन्) अ० ३७।४। शिख गतौ-अण्डन् कित्, तत इनि। हे महोद्योगिन् (रुद्रस्य) दुःखनाशकस्य (इषुः) बाणः (चरति) विचरति (देवहेतिः) अद्भुतवज्रः (तस्यै) तां निवारयितुम् (नमः) (यतमस्याम्) यस्यां कस्याम् (दिशि) दिशायाम् (इतः) अस्मात् स्थानात् ॥

१३ योभियातो निलयते

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यो॒३॒॑भिया॑तो नि॒लय॑ते॒ त्वां रु॑द्र नि॒चिकी॑र्षति।
प॒श्चाद॑नु॒प्रयु॑ङ्क्षे॒ तं वि॒द्धस्य॑ पद॒नीरि॑व ॥

१३ योभियातो निलयते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He who, attacked (abhi-yā), hides himself, [who] tries to put
    thee down, O Rudra, him from behind thou pursuest, like the tracker (?
    padanī́) of one that is pierced.
Notes

With the last pāda compare x. 1. 26 b; the expression is apparently
a familiar or proverbial one: ⌊cf. Manu viii. 44, ‘as the hunter follows
the track (padaṁ nayati) of a deer by the drops of blood’; also
Dhammapada, vss. 179, 180⌋. Ppp. reads ugra instead of rudra in
b.

Griffith

Thou, Rudra, followest close the foe who lies in wait to conquer thee. Even as a hunter who pursues the footsteps of the wounded game.

पदपाठः

यः। अ॒भिऽया॑तः। नि॒ऽलय॑ते। त्वाम्। रु॒द्र॒। नि॒ऽचिकी॑र्षति। प॒श्चात्। अ॒नु॒ऽप्रयु॑ङ्क्षे। तम्। वि॒ध्दस्य॑। प॒द॒नीःऽइ॑व। २.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [दुष्कर्मी] (अभियातः) हारा हुआ (निलयते) छिप जाता है, और (रुद्र) हे रुद्र ! [दुःखनाशक] (त्वा) तुझे (निचिकीर्षति) हराना चाहता है। (पश्चात्) पीछे-पीछे (तम्) उसका (अनुप्रयुङ्क्षे) तू अनुप्रयोग करता है [यथा अपराध दण्ड देता है], (इव) जैसे (विद्धस्य) घायल का (पदनीः) पद खोजिया ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो दुष्ट गुप्त रीति से भी परमेश्वर की आज्ञा का भङ्ग करता है, परमेश्वर उसे दण्ड ही देता है, जैसे व्याध घायल आखेट के रुधिर आदि चिह्न से खोज लगा कर उसे पकड़ लेता है ॥१३॥इस मन्त्र का मिलान करो-अ० १०।१।२६ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(यः) दुष्कर्मी (अभियातः) अभिगतः। अभिभूतः सन् (निलयते) निलीनो गुप्तो भवति (त्वाम्) (रुद्र) म० ३। हे दुःखनाशक (निचिकीर्षति) डुकृञ् करणे, यद्वा, कृञ् हिंसायाम् सन्। निराकर्तुं नितरां हिंसितुं वेच्छति (पश्चात्) निरन्तरम् (अनुप्रयुङ्क्षे) अनुप्रयोगं करोषि। यथापराधं दण्डयसि (तम्) दुष्टम् (विद्धस्य) ताडितस्य। क्षतस्य (पदनीः) पद+णीञ् प्रापणे-क्विप्। पदचिह्नानां नेता। पदानुगामी (इव) यथा ॥

१४ भवारुद्रौ सयुजा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

भ॑वारु॒द्रौ स॒युजा॑ संविदा॒नावु॒भावु॒ग्रौ च॑रतो वी॒र्या᳡य।
ताभ्यां॒ नमो॑ यत॒मस्यां॑ दि॒शी॒३॒॑तः ॥

१४ भवारुद्रौ सयुजा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Bhava-and-Rudra, allied, in concord, both go about, formidable, unto
    heroism; to them be homage, in whichever direction from here.
Notes

Ppp., instead of repeating vs. 12 d, reads tayor bhūmim antarikṣaṁ
svar dyāus tābhyāṁ namo bhavamatyāya
⌊cf. vs. 19 a?⌋ kṛṇva. The
comm. explains vīryāya ⌊altematively⌋ by svavīryaprakaṭanārtham,
which is doubtless correct.

Griffith

Accordant and allies, Bhava and Rudra, with mighty strength ye go to deeds of valour. Wherever they may be, we pay them homage.

पदपाठः

भ॒वा॒रु॒द्रौ। स॒ऽयुजा॑। स॒म्ऽवि॒दा॒नौ। उ॒भौ। उ॒ग्रौ। च॒र॒तः॒। वी॒र्या᳡य। ताभ्या॑म्। नमः॑। य॒त॒मस्या॑म्। दि॒शि। इ॒तः। २.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • विराड्गायत्री
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सयुजा) समान संयोगवाले, (संविदानौ) समान ज्ञानवाले, (उग्रौ) तेजस्वी (उभौ) दोनों (भवारुद्रौ) भव और रुद्र [सुखोत्पादक और दुःखनाशक गुण] (वीर्याय) वीरता देने को (चरतः) विचरते हैं। (इतः) यहाँ से (यतमस्याम् दिशि) चाहे जौन-सी दिशा हो, उसमें (ताभ्याम्) उन दोनों को (नमः) नमस्कार है ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - चाहे हम कहीं होवें, परमेश्वर को सर्वज्ञ और सर्वव्यापक जानकर अपना वीरत्व बढ़ावें ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४−(भवारुद्रौ) म० ३। भवश्च रुद्रश्च तौ। सुखोत्पादकदुःखनाशकौ गुणौ (सयुजा) समानं युञ्जानौ मित्रभूतौ (संविदानौ) समानं जानन्तौ (उभौ) (उग्रौ) तेजस्विनौ (चरतः) विचरतः (वीर्याय) वीरत्वं दातुम् (ताभ्याम्) भवारुद्राभ्याम्। अन्यत् पूर्ववत्-म० १३॥

१५ नमस्तेऽस्त्वायते नमो

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नम॑स्तेऽस्त्वाय॒ते नमो॑ अस्तु पराय॒ते।
नम॑स्ते रुद्र॒ तिष्ठ॑त॒ आसी॑नायो॒त ते॒ नमः॑ ॥

१५ नमस्तेऽस्त्वायते नमो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Homage be to thee coming, homage be [to thee] going away; homage
    to thee, O Rudra, standing; to thee sitting also [be] homage.
Notes

SPP’s text has in a te ‘stv, with about half of his authorities.
The verse is repeated as 4. 7, below, with prāṇa for rudra in c;
Ppp. reads prāṇa in both places. The first half-verse is found in AśS.
i. 12. 34 and Āp. ix. 2. 9, in both with rudra for astu in b.

Griffith

Be homage, Rudra, unto thee approaching and departing hence! Homage to thee when standing still, to thee when seated and at rest!

पदपाठः

नमः॑। ते॒। अ॒स्तु॒। आ॒ऽय॒ते। नमः॑। अ॒स्तु॒। प॒रा॒ऽय॒ते। नमः॑। ते॒। रु॒द्र॒। तिष्ठ॑ते। आसी॑नाय। उ॒त। ते॒। नमः॑। २.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (आयते) आते हुए [पुरुष] के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार, (अस्तु) होवे, (परायते) दूर जाते हुए के हित के लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे। (रुद्र) हे रुद्र ! [दुःखनाशक] (तिष्ठते) खड़े होते हुए के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार, (उत) और (आसीनाय) बैठे हुए के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार है ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य आते, जाते, उठते, बैठते परमेश्वर का स्मरण करके पुरुषार्थ करे ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १५−(नमः) (ते) तुभ्यम् (अस्तु) (आयते) आगच्छतः पुरुषस्य हिताय (परायते) दूरं गच्छते (रुद्र) म० ३। हे दुःखनाशक (तिष्ठते) उत्तिष्ठतः पुरुषस्य हिताय (आसीनाय) उपविष्टस्य हिताय (उत) अपि च। अन्यद् गतम् ॥

१६ नमः सायम्

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नमः॑ सा॒यं नमः॑ प्रा॒तर्नमो॒ रात्र्या॒ नमो॒ दिवा॑।
भ॒वाय॑ च श॒र्वाय॑ चो॒भाभ्या॑मकरं॒ नमः॑ ॥

१६ नमः सायम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Homage in the evening, homage in the morning, homage by night,
    homage by day; to Bhava and to śarva, to both have I paid homage.
Notes
Griffith

Homage at evening and at morn, homage at night, homage by day . To Bhava and to Sarva, both, have I paid lowly reverence,

पदपाठः

नमः॑। सा॒यम्। नमः॑। प्रा॒तः। नमः॑। रात्र्या॑। नमः॑। दिवा॑। भ॒वाय॑। च॒। श॒र्वाय॑। च॒। उ॒भाभ्या॑म्। अ॒क॒र॒म्। नमः॑। २.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सायम्) सायं काल में (नमः) नमस्कारः (प्रातः) प्रातः काल में (नमः) नमस्कार (रात्र्या) रात्रि में (नमः) नमस्कार (दिवा) दिन में (नमः) नमस्कार। (भवाय) भव [सुख उत्पन्न करनेवाले] (च च) और (शर्वाय) शर्व [दुःख नाश करनेवाले] (उभाभ्याम्) दोनों [गुणों] को (नमः अकरम्) मैंने नमस्कार किया है ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रत्येक समय महाशक्तिमान् परमेश्वर का ध्यान करके सदा पराक्रम करता रहे ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६−(नमः) नमस्कारः (सायम्) सूर्यास्तसमये (प्रातः) प्रभातसमये (रात्र्या) रात्रिसमये (दिवा) दिनकाले (भवाय) म० ३। सुखोत्पादकाय (च च) समुच्चये (शर्वाय) म० ३। दुःखनाशकाय (उभाभ्याम्) द्वाभ्यां गुणाभ्याम् (अकरम्) अहं कृतवानस्मि। अन्यद् गतम् ॥

१७ सहस्राक्षमतिपश्यं पुरस्ताद्रुद्रमस्यन्तम्

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स॑हस्रा॒क्षम॑तिप॒श्यं पु॒रस्ता॑द्रु॒द्रमस्य॑न्तं बहु॒धा वि॑प॒श्चित॑म्।
मोपा॑राम जि॒ह्वयेय॑मानम् ॥

१७ सहस्राक्षमतिपश्यं पुरस्ताद्रुद्रमस्यन्तम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. With the thousand-eyed one, seeing across in front, with Rudra,
    hurling in many places, inspired one, may we not come in collision, as
    he goes about (ī́ya-) with the tongue.
Notes

The comm. paraphrases atipaśyám with atiśayenā ’tikramya vā paśyati
(the word is omitted in both Pet. Lexx.), and connects purastāt either
with it or with asyantam; jihváyé ”yamānam he explains as
jihvāgreṇa kṛtsnaṁ jagad vyāpnuvantam bhakṣaṇārthaṁ lihantam, which is
rather absurd; perhaps jihvayā (so Ludwig) belongs rather to ‘we’:
‘we, by what we say.’

Griffith

Let us not outrage with our tongue far-seeing Rudra, thousand- eyed, Inspired with varied lore, who shoots his arrows forward, far away.

पदपाठः

स॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षम्। अ॒ति॒ऽप॒श्यम्। पु॒रस्ता॑त्। रु॒द्रम्। अस्य॑न्तम्। ब॒हु॒ऽधा। वि॒पः॒ऽचित॑म्। मा। उप॑। अ॒रा॒म॒। जि॒ह्वया॑। ईय॑मानम्। २.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • विराड्गायत्री
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सहस्राक्षम्) सहस्रों कामों में दृष्टिवाले, (पुरस्तात्) सन्मुख से (अतिपश्यम्) आड़े-बेंड़े देखनेवाले, (बहुधा) अनेक प्रकार से [पापों को] (अस्यन्तम्) गिरानेवाले, (विपश्चितम्) महाबुद्धिमान्, (जिह्वया) जयशक्ति के साथ (ईयमानम्) चलते हुए (रुद्रम्) रुद्र [दुःखनाशक परमेश्वर] से (मा उप अराम) हम विरोध न करें ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमात्मा सब व्यवहारों को भली-भाँति देखता हुआ सबको कर्मों का फल यथावत् देता है, हम उसकी आज्ञा का सदा पालन करें ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७−(सहस्राक्षम्) सहस्रेषु कर्मसु दृष्टियुक्तम् (अतिपश्यम्) पाघ्राध्माधेट्दृशः शः। पा० ३।१।१३७। दृशिर् प्रेक्षणे-श प्रत्ययः। पाघ्राध्माधेट्०। पा० ७।३।७८। पश्यादेशः। सर्वानतिक्रम्य द्रष्टा (पुरस्तात्)) अग्रे (रुद्रम्) दुःखनाशकम् (अस्यन्तम्) शत्रुं क्षिपन्तम् (बहुधा) अनेकप्रकारेण (विपश्चितम्) मेधाविनम्। सूक्ष्मदर्शिनम् (मा उप अराम) ऋ गतौ हिंसायां वा माङि लुङि रूपम्। न हिंसेम (जिह्वया) शेवायह्वजिह्वा०। उ० १।१५४। जि जये-वन् हुक् च। जयशक्त्या सह (ईयमानम्) गच्छन्तम्। व्याप्नुवन्तम् ॥

१८ श्यावाश्वं कृष्णमसितम्

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श्या॒वाश्वं॑ कृ॒ष्णमसि॑तं मृ॒णन्तं॑ भी॒मं रथं॑ के॒शिनः॑ पा॒दय॑न्तम्।
पूर्वे॒ प्रती॑मो॒ नमो॑ अस्त्वस्मै ॥

१८ श्यावाश्वं कृष्णमसितम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. We go forward (pū́rva) to meet him of dark horses, black, swarthy,
    killing, fearful, making to fall the chariot of the hairy one (keśín);
    homage be to him.
Notes

The comm. understands the connection as here given, making keśín the
name of an Asura; Ludwig takes ratham as object of pratī ’mas and
the other words as its epithets. ⌊Ppp. reads śyāvāsyaṁ at the beginning,
and has, in b, bhīmo and pārayantam.⌋

Griffith

Foremost we go to meet his car, the chariot of the long-haired God, Drawn by brown horses, dusky, black, o’erthrowing, slaying, terrible. Let reverence be paid to him.

पदपाठः

श्या॒वऽअ॑श्वम्। कृ॒ष्णम्। असि॑तम्। मृ॒णन्त॑म्। भी॒मम्। रथ॑म्। के॒शिनः॑। पा॒दय॑न्तम्। पूर्वे॑। प्रति॑। इ॒मः॒। नमः॑। अ॒स्तु॒। अ॒स्मै॒। २.१८।

पदपाठः

श्या॒वऽअ॑श्वम्। कृ॒ष्णम्। असि॑तम्। मृ॒णन्त॑म्। भी॒मम्। रथ॑म्। के॒शिनः॑। पा॒दय॑न्तम्। पूर्वे॑। प्रति॑। इ॒मः॒। नमः॑। अ॒स्तु॒। अ॒स्मै॒। २.१८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • विराड्गायत्री
  • रुद्र सूक्त

१९ मा नोऽभि

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मा नो॒ऽभि स्रा॑ म॒त्यं᳡ देवहे॒तिं मा नः॑ क्रुधः पशुपते॒ नम॑स्ते।
अ॒न्यत्रा॒स्मद्दि॒व्यां शाखां॒ वि धू॑नु ॥

१९ मा नोऽभि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Do not let fly at us the club (? matyà), the god-missile; be not
    angry at us, O lord of cattle; homage to thee; elsewhere than [over]
    us shake out the heavenly bough.
Notes

The bough, namely (so it would seem), from which the portents that fall
from the sky appear to be shaken by a hostile divinity. The comm. reads
martyam instead of matyam in a. He recognizes that srās (i.e.
srā[kṣ]s) is from root sṛj ("= vi sṛja “). Ppp. has srā m.
devahitam
in a.

Griffith

Cast not thy club at us, thy heavenly weapon. Lord of Beasts, be not wroth with us. Let reverence be paid to thee. Shake thy celestial branch above some others elsewhere, not o’er us.

पदपाठः

मा। नः॒। अ॒भि। स्राः॒। म॒त्य᳡म्। दे॒व॒ऽहे॒तिम्। मा। नः॒। क्रु॒धः॒। प॒शु॒ऽप॒ते॒। नमः॑। ते॒। अ॒न्यत्र॑। अ॒स्मत्। दि॒व्याम्। शाखा॑म्। व‍ि। धू॒नु॒। २.१९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • विराड्गायत्री
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पशुपते) हे दृष्टिवाले [जीवों] के रक्षक ! (नः) हमारे लिये (देवहेतिम्) दिव्य [अद्भुत] वज्र, (मत्यम्) अपनी मुट्ठी [घूँसा] को (मा अभि स्राः) ताककर मत छोड़, (नः) हम पर (मा क्रुधः) मत क्रोध कर, (ते) तुझे (नमः) नमस्कार है। (अस्मत्) हमसे (अन्यत्र) दूसरों [दुष्टों] पर (दिव्याम्) दिव्य (शाखाम्) भुजा को (वि धूनु) हिला ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - हम सदा धर्म में प्रवृत्त रहकर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करें, जिस से वह हम पर क्रोध न करे और न भय दिखावे ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १९−(नः) अस्मभ्यम् (अभि) अभितः (मा स्राः) सृज विसर्गे माङि लुङि रूपम्। सृजिदृशोर्झल्यमकिति। पा० ६।१।५९। अमागमः, वृद्धौ। झलो झलि। पा० ८।२।२६। सिचो लोपः। बहुलं छन्दसि। पा० ७।३।९७। ईडभावः। हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात्०। पा० ६।१।६८। सिलोपः, जलोपश्छान्दसः। मा स्राक्षीः। मा त्यज (मत्यम्) अ० ८।८।११। मतजनहलात् करण०। पा० ४।४।९७। मत-यत्। मतं ज्ञानं तस्य करणमिति। मुष्टिम् (देवहेतिम्) अद्भुतवज्रम् (नः) अस्मभ्यम् (मा क्रुधः) क्रुध कोपे माङि लुङि-पुषादित्वात् च्लेः अङ् आदेशः। क्रोधं मा कुरु (पशुपते) हे दृष्टिमतां जीवानां पालक (नमः) (ते) तुभ्यम्। (अन्यत्र) अन्येषु शत्रुषु (अस्मत्) अस्मत्तः (दिव्याम्) अद्भुताम् (शाखाम्) शाखृ व्याप्तौ-अच्, टाप्। बाहुम्-यथा शब्दकल्पद्रुमकोषे (वि) विविधम् (धूनु) कम्पय ॥

२० मा नो

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मा नो॑ हिंसी॒रधि॑ नो ब्रूहि॒ परि॑ णो वृङ्ग्धि॒ मा क्रु॑धः।
मा त्वया॒ सम॑रामहि ॥

२० मा नो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Do not harm us; bless us; avoid us; be not angry; let us not come
    into collision with thee.
Notes

Ppp. omits nas before brūhi in a, and has at the end arāmasi
(as in vs. 7).

Griffith

Do us no harm, but comfort us: avoid thou us, and be not wroth. Never let us contend with thee.

पदपाठः

मा। नः॒। हिं॒सीः॒। अधि॑। नः॒। ब्रू॒हि॒। परि॑। नः॒। वृ॒ङ्ग्धि॒। मा। क्रु॒धः॒। मा। त्वया॑। सम्। अ॒रा॒म॒हि॒। २.२०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • भुरिग्गायत्री
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे रुद्र परमेश्वर !] (नः) हमें (मा हिंसीः) मत कष्ट दे, (नः) हमें (अधि) ईश्वर होकर (ब्रूहि) उपदेश कर, (नः) हमें [पाप से] (परि वृङ्ग्धि) सर्वथा अलग रख, (मा क्रुधः) क्रोध मत कर। (त्वया) तेरे साथ (मा सम् अरामहि) हम समर [युद्ध] न करें ॥˜२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमेश्वर की आज्ञा में चलते हैं, वे पुरुषार्थी पुरुष अपराध से बचकर सदा सुखी रहते हैं ॥˜२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २०−(नः) अस्मान् (मा हिंसीः) मा वधीः (अधि) ईश्वरत्वेन (नः) अस्मान् (परि) सर्वतः (वृङ्ग्धि) वर्जय। वियोजय (मा क्रुधः) म० १९। (त्वया) (मा सम् अरामहि) म० ७। समरं युद्धं न करवाम ॥˜

२१ मा नो

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मा नो॒ गोषु॒ पुरु॑षेषु॒ मा गृ॑धो नो अजा॒विषु॑।
अ॒न्यत्रो॑ग्र॒ वि व॑र्तय॒ पिया॑रूणां प्र॒जां ज॑हि ॥

२१ मा नो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. [Be] not [greedy] for our kine, our men; be not greedy for our
    goats and sheep; elsewhere, O formidable one, roll forth [thy
    missile]; smite the progeny of the mockers (píyāru).
Notes

The insertion in c seems unavoidable; the comm. ⌊in a passage
restored by SPP.?⌋ supplies tava hetim; Ludwig, deinen Pfeil. ⌊Ppp.
inserts ‘śveṣu before goṣu.⌋

Griffith

Covet not thou our kine or men, covet not thou our goats or sheep. Elsewhither, strong One! turn thine aim: destroy the mockers’ family.

पदपाठः

मा। नः॒। गोषु॑। पुरु॑षेषु। मा। गृ॒धः॒। नः॒। अ॒ज॒ऽअ॒विषु॑। अ॒न्यत्र॑। उ॒ग्र॒। वि। व॒र्त॒य॒। पिया॑रूणाम्। प्र॒ऽजाम्। ज॒हि॒। २.२१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे रुद्र परमात्मन् !] (मा) न तो (नः) हमारी (गोषु) गौओं में और (पुरुषेषु) पुरुषों में, और (मा) न (नः) हमारी (अजाविषु) बकरी और भेड़ों में [मारने की] (मा गृधः) अभिलाषा कर। (उग्र) हे बलवान् ! (अन्यत्र) दूसरे [वैरियों] में (विवर्तय) घूम जा, और (पियारूणाम्) हिंसकों की (प्रजाम्) प्रजा [जनता] को (जहि) मार ॥˜२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - पुरुषार्थी मनुष्य परमेश्वर की शरण लेकर उपकारी दोपाये और चौपायों की रक्षा करके शत्रुओं का नाश करें ॥˜२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २१−(मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (गोषु) गवादिषु (पुरुषेषु) मनुष्येषु (मा गृधः) गृधु अभिकाङ्क्षायां माङि लुङि पुषादित्वात् च्लेः अङादेशः। अभिलाषं मा कुरु, नाशनायेति शेषः (नः) (अजाविषु) अजेषु अविषु च (अन्यत्र) अन्येषु शत्रुषु (उग्र) हे महाबलवन् (वि) विविधम् (वर्तय) वर्तस्व (पियारूणाम्) पीयतिर्हिंसाकर्मा-निघ० ४।२५। अङ्गिमदिमन्दिभ्य आरन्। उ० ३।१३४। अत्र बाहुलकात् पीयतेः-आरुप्रत्ययो ह्रस्वश्च। यद्वा पि गतौ-आरु। हिंसकानाम् (प्रजाम्) जनताम् (जहि) नाशय ॥˜

२२ यस्य तक्मा

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यस्य॑ त॒क्मा कासि॑का हे॒तिरेक॒मश्व॑स्येव॒ वृष॑णः॒ क्रन्द॒ एति॑।
अ॑भिपू॒र्वं नि॒र्णय॑ते॒ नमो॑ अस्त्वस्मै ॥

२२ यस्य तक्मा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Of whom the takmán, the kā́sikā, goes as one weapon, like the
    noise of a stallion horse, to him, leading out in succession, be homage.
Notes

The verse is very obscure, and the translation mechanical; Ppp. reads,
in a-b, eka ’śvasya, and this reading is followed; the comm.
supplies, to ekam, apakāriṇam puruṣam, and makes it object of eti
= prāpnoti. Ludwig understands nirṇayate as ’extracting arrows from
the quiver.’ ⌊As for vṛ́ṣaṇas, cf. JAOS. x. 534, 524.⌋

Griffith

Homage to him whose weapon, Cough or Fever, assails one like the neighing of a stallion; to him who draws one forth and then another!

पदपाठः

यस्य॑। त॒क्मा। कासि॑का। हे॒तिः। एक॑म्। अश्व॑स्यऽइव। वृष॑णः। क्रन्दः॑। एति॑। अ॒भि॒ऽपू॒र्वम्। निः॒ऽनय॑ते। नमः॑। अ॒स्तु॒। अ॒स्मै॒। २.२२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • त्रिपदा विषमपादलक्ष्मा महाबृहती
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) जिस [रुद्र] का (हेतिः) वज्र (तक्मा) तुच्छ जीवन करनेवाला [ज्वर] और (कासिका) खाँसी (एकम्) एक [उपद्रवी] को (एति) प्राप्त होती है, (इव) जैसे (वृषणः) बलवान् (अश्वस्य) घोड़े के (क्रन्दः) हिनहिनाने का शब्द। (अभिपूर्वम्) एक-एक को यथाक्रम (निर्णयते) निर्णय करनेवाले (अस्मै) इस [रुद्र] को (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे ॥˜२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्रत्येक उपद्रवी मनुष्य परमेश्वर के नियम से ज्वर आदि अनेक पीड़ाएँ प्राप्त करता है ॥˜२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २२−(यस्य) रुद्रस्य (तक्मा) अ० १।२५।१। तकि कृच्छ्रजीवने-मनिन्। कृच्छ्रजीवनकरो ज्वरः (कासिका) कासृ शब्दकुत्सायाम्-घञ्, स्वार्थे कन्, अत इत्वम्। कुत्सितशब्दकारी रोगविशेषः। कासः (हेतिः) वज्रः (एकम्) अपकारिणम् (अश्वस्य) (इव) यथा (वृषणः) बलवतः (क्रन्दः) हेषा शब्दः (एति) प्राप्नोति (अभिपूर्वम्) पूर्वं पूर्वमभिलक्ष्य। यथाक्रमम् (निर्णयते) निः+णीञ् प्रापणे-शतृ। निर्णयं निश्चयं कुर्वते। अन्यद् गतम् ॥˜

२३ योन्तरिक्षे तिष्ठति

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यो॒३॒॑न्तरि॑क्षे॒ तिष्ठ॑ति॒ विष्ट॑भि॒तोऽय॑ज्वनः प्रमृ॒णन्दे॑वपी॒यून्।
तस्मै॒ नमो॑ द॒शभिः॒ शक्व॑रीभिः ॥

२३ योन्तरिक्षे तिष्ठति ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He who stands propped up in the atmosphere, killing the
    non-sacrificing, the god-mockers—to him be homage with the ten clever
    ones (śákvarī).
Notes

The ’ten clever ones’ are probably the fingers: cf. v. 28. 11; the comm.
glosses the word with an̄gulibhis, as = karmasu śaktābhiḥ. Ppp.
begins yas tiṣṭhati viśvabhṛto antarikṣe ‘yajvanaṣ pra-.

Griffith

Homage be paid him with ten Sakvari verses who stands established in the air’s mid-region, slaying non-sacrificing God-despisers!

पदपाठः

यः। अ॒न्तर‍ि॑क्षे। तिष्ठ॑ति। विऽस्त॑भितः। अय॑ज्वनः। प्र॒ऽमृ॒णन्। दे॒व॒ऽपी॒यून्। तस्मै॑। नमः॑। द॒शऽभिः॑। शक्व॑रीभिः। २.२३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • विराड्गायत्री
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (अन्तरिक्षे) आकाश में (विष्टभितः) दृढ़ जमा हुआ [परमेश्वर] (अयज्वनः) यज्ञ न करनेवाले [दुर्जन] (देवपीयून्) विद्वानों के हिंसकों को (प्रमृणन्) मारता हुआ (तिष्ठति) ठहरता है। (दशभिः) दस (शक्वरीभिः) शक्तिवाली [दिशाओं] के साथ [वर्तमान] (तस्मै) उस [परमेश्वर] को (नमः) नमस्कार है ॥˜२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो परमात्मा आकाश में और सब दिशा-विदिशाओं में और ऊपर-नीचे व्यापक है, सब मनुष्य उसका आश्रय लेकर दुष्ट विघ्नों और शत्रुओं का नाश करें ॥˜२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २३−(यः) परमेश्वरः (अन्तरिक्षे) आकाशे (तिष्ठति) वर्तते (विष्टभितः) विविधं स्तभितो दृढीभूतः सन् (अयज्वनः) अ० ३।२४।२। यजेर्ङ्वनिप्। देवपूजारहितान् दुर्जनान् (देवपीयून्) अ० ४।३५।७। विदुषां हिंसकान् (तस्मै) परमेश्वराय (नमः) प्रणामः (शक्वरीभिः) अ० ३।१७।७। शक्लृ शक्तौ-वनिप्, ङीब्रेफौ। उच्चनीचदिग्विदिशाभिः सह वर्तमानायेति शेषः ॥˜

२४ तुभ्यमारण्याः पशवो

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तुभ्य॑मार॒ण्याः प॒शवो॑ मृ॒गा वने॑ हि॒ता हं॒साः सु॑प॒र्णाः श॑कु॒ना वयां॑सि।
तव॑ य॒क्षं प॑शुपते अ॒प्स्व१॒॑न्तस्तुभ्यं॑ क्षरन्ति दि॒व्या आपो॑ वृ॒धे ॥

२४ तुभ्यमारण्याः पशवो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. To thee are assigned the forest animals ⌊paśú⌋, the wild beasts in
    the woods, the geese (haṅsá), eagles, hawks, birds; thine, O lord of
    cattle, is the monster (? yakṣá) within the waters; for thine increase
    flow the waters of the heaven.
Notes

Ppp. reads, for b, tubhyaṁ vayāṅsi śakunāṣ patatriṇaḥ, elides the
a of apsu in c, and combines divyā ”po in d. The comm. has
mṛdhe at the end, explaining it as = undanāya. He takes yakṣam as
= pūjyaṁ svarūpam, but does not give any reason why, etymological or
other. ⌊Our a is nearly xii. 1. 49 a (with the same redundancy
of a dissyllable), and b is precisely xii. 1. 51 b: for
paśavas, cf. also iii. 31. 3, xi. 5. 21, and iii. 10. 6 note.⌋

Griffith

For thee were forest beasts and sylvan creatures placed in the wood, and small birds, swans, and eagles. Floods, Lord of Beasts! contain thy living beings: to swell thy strength flow the celestial Waters.

पदपाठः

तुभ्य॑म्। आ॒र॒ण्याः। प॒शवः॑। मृ॒गाः। वने॑। हि॒ताः। हं॒साः। सु॒ऽप॒र्णाः। श॒कु॒नाः। वयां॑सि। तव॑। य॒क्षम्। प॒शु॒ऽप॒ते॒। अ॒प्ऽसु। अ॒न्तः। तुभ्य॑म्। क्ष॒र॒न्ति॒। दि॒व्याः। आपः॑। वृ॒धे। २.२४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • जगती
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तुभ्यम्) तेरे [शासन मानने] के लिये (आरण्याः) वनैले (पशवः) पशु [जीव], (मृगाः) हरिण आदि, (हंसाः) हंस, (सुपर्णाः) बड़े उड़नेवाले [गरुड़ आदि], (शकुनाः) शक्तिवाले [गिद्ध चील्ह आदि] (वयांसि) पक्षी (वने) वन में (हिताः) स्थापित हैं। (पशुपते) हे दृष्टिवाले [जीवों] के रक्षक [परमेश्वर] (तव) तेरा (यज्ञम्) पूजनीय स्वरूप (अप्सु अन्तः) तन्मात्राओं के भीतर है, (तुभ्यम्) तेरे [शासन मानने] के लिये (दिव्याः) दिव्य [अद्भुत] (आपः) तन्मात्राएँ (वृधे) वृद्धि करने को (क्षरन्ति) चलती हैं ॥˜२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - संसार के भीतर सब भयानक और शीघ्रगामी प्राणी परमेश्वर के आज्ञापालक हैं और अणु-अणु में संयोग-वियोग उसी की शक्ति से है ॥˜२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २४−(तुभ्यम्) तवाज्ञापालनाय (आरण्याः) अरण्ये भवाः (पशवः) जन्तवः (मृगाः) हरिणादयः (वने) अरण्ये (हिताः) स्थापिताः (हंसाः) पक्षिविशेषाः (सुपर्णाः) शोभनपतनाः (शकुनाः) शक्तिमन्तो गृध्रचिल्हादयः (वयांसि) पक्षिणः (तव) (यक्षम्) यक्ष पूजायाम्-घञ्। पूज्यं स्वरूपम् (पशुपते) हे दृष्टिमतां जीवानां रक्षक (अप्सु) आपो व्यापिकास्तन्मात्राः-दयानन्दभाष्ये, यजु० २७।२५। तन्मात्रासु (तुभ्यम्) (क्षरन्ति) संचरन्ति) (दिव्याः) अद्भुताः (आपः) तन्मात्राः (वृधे) वर्धनाय ॥˜

२५ शिंशुमारा अजगराः

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शिं॒शु॒मारा॑ अजग॒राः पु॑री॒कया॑ ज॒षा मत्स्या॑ रज॒सा येभ्यो॒ अस्य॑सि।
न ते॑ दू॒रं न प॑रि॒ष्ठास्ति॑ ते भव स॒द्यः सर्वा॒न्परि॑ पश्यसि॒ भूमिं॒ पूर्व॑स्माद्धं॒स्युत्त॑रस्मिन्समु॒द्रे ॥

२५ शिंशुमारा अजगराः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The dolphins (śiṅśumā́ra), boas (ajagará), purīkáyas, jashás,
    fishes, rajasás, at which thou hurlest: there is no distance for thee
    nor hindrance for thee, O Bhava; at once thou loolcest over the whole
    earth; from the eastern thou smitest in the northern ocean.
Notes

Ppp. begins siśumārā ‘jagarāḥ purīṣayā jagā mat-. The comm. has
pulīkayās (like MS.); he takes rajasā́ (p. -sā́ḥ) as if it were the
instr. sing, rájasā; he passes jaṣā́s and mátsyās without mention,
but defines śiṅśumāra as ‘a kind of crocodile (nakra)’ and ajagara
as ‘a kind of serpent.’ For jaṣā́s, some of the mss. (including our
Bp.P.M.W.) have jakhā́s, one or two (including our I.) have jaghā́s,
and one of SPP’s jhaṣā́s; doubtless it is the sea-monster called later
jhaṣa. Nearly all the mss. have sárvān in d (only our B. ⌊and
D.Kp.?⌋ and two of SPP’s sárvāṁ), and SPP’s text accordingly admits
it, though it seems an evident error, and the comm. reads -vām. Most
of the pada-mss. resolve pariṣṭhā́sti into -sthā́: ásti (instead of
asti). We are surprised to find a ’northern’ ocean spoken of, and set
over against the ’eastern’ one ⌊cf. xi. 5. 6⌋, but úttara cannot well
mean anything else. Consistency requires the reading -smint sam- in
e, but the t is accidentally omitted in our text, and SPP’s also
leaves it out.

Griffith

Porpoises, serpents, strange aquatic monsters, fishes, and things unclean at which thou shootest. Nothing is far for thee, naught checks thee, Bhava! The whole earth in a moment thou surveyest. From the east sea thou smitest in the northern.

पदपाठः

शिं॒शु॒माराः॑। अ॒ज॒ग॒राः। पु॒री॒कथाः॑। ज॒षाः। मत्स्याः॑। र॒ज॒साः। येभ्यः॑। अस्य॑सि। न। ते॒। दू॒रम्। न। प॒रि॒ऽस्था। अ॒स्ति॒। ते॒। भ॒व॒। स॒द्यः। सर्वा॑न्। परि॑। प॒श्य॒सि॒। भूमि॑म्। पूर्व॑स्मात्। हं॒सि॒। उत्त॑रस्मिन्। स॒मु॒द्रे। २.२५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • पञ्चपदातिशक्वरी
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अजगराः) अजगर [सर्पविशेष], (शिंशुमाराः) शिशुमार [सूसमार, जलजन्तु], (पुरीकयाः) पुरीकय [जलचर विशेष], (जषाः) जष [झष, मछली विशेष] और (रजसाः) जल में रहनेवाले (मत्स्याः) मच्छ हैं, (येभ्यः) जिन से (अस्यसि=अससि) तू प्रकाशमान है। (भव) हे भव ! [सुखोत्पादक परमेश्वर] (ते) तेरे लिये (दूरम्) कुछ दूर (न) नहीं है और (न) न (ते) तेरे लिये (परिष्ठा) रोक-टोक (अस्ति) है, और (सर्वान्) सबों को (सद्यः) तुरन्त ही (परि पश्यसि) तू देख-भाल लेता है, और (पूर्वस्मात्) पूर्वी [समुद्र] से (उत्तरस्मिन् समुद्रे) उत्तरी समुद्र में (भूमिम्) भूमि को (हंसि) तू पहुँचाता है ॥˜२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - हे परमेश्वर ! इन सब बड़े-बड़े थलचर और जलचर जन्तुओं के देखने से तेरी अनन्त महिमा जान पड़ती है। तू सब स्थानों में विद्यमान रहकर क्षणभर में इधर के जगत् को उधर कर देता है ॥˜२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २५−(शिंशुमाराः) अनुनासिकश्छान्दसः। शिशुमाराः। जलजन्तुविशेषाः (अजगराः) अज+गॄ निगरणे-अच्। अजेन अजनेन श्वासबलेन गिरन्ति ये ते। बृहत्सर्पाः (पुरीकयाः) कषिदूषीभ्यामीकन्। उ० ४।१६। पॄ पालनपूरणयोः-ईकन्+या प्रापणे-ड। शॄपॄभ्यां किच्च। उ० ४।२७। पुरीषमुदकनाम-निघ० १।१२। पुरीकं पुरीषं जलं यान्ति गच्छन्ति ये ते। जलचरविशेषाः (जषाः) जष झष हिंसायाम्-घ प्रत्ययः। झषाः। मीनभेदाः (मत्स्याः) जनिदाच्युसृवृमदि०। उ० ४।१०४। मदी हर्षे-स्य प्रत्ययः। जलजन्तुभेदाः। मीनाः (रजसाः) उदकं रज उच्यते-निरु० ४।१९। रजस्-अर्शआद्यच्। उदके भवाः। जलचराः। (येभ्यः) येषां सकाशात् (अस्यसि) अस दीप्तौ दिवादित्वं छान्दसम्। अससि दीप्यसे (न) निषेधे (ते) तव (दूरम्) विप्रकृष्टम् (परिष्ठा) परिवर्जनम् (अस्ति) (ते) (भव) हे सुखोत्पादक परमेश्वर (सद्यः) तत्क्षणम् (सर्वान्) पूर्वोक्तान्, समस्तान् (परि) सर्वतः (पश्यसि) अवलोकयसि (भूमिम्) भूलोकम् (पूर्वस्मात्) पूर्ववर्तिनः समुद्रात् (हंसि) हन हिंसागत्योः अन्तर्गतण्यर्थः। घातयसि। गमयसि (उत्तरस्मिन्) उत्तरदिग्वर्तिनि (समुद्रे) जलधौ ॥˜

२६ मा नो

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मा नो॑ रुद्र त॒क्मना॒ मा वि॒षेण॒ मा नः॒ सं स्रा॑ दि॒व्येना॒ग्निना॑।
अ॒न्यत्रा॒स्मद्वि॒द्युतं॑ पातयै॒ताम् ॥

२६ मा नो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Do not, O Rudra, unite (sam-sṛj) us with the takmán, not with
    poison, not with the fire of heaven; elsewhere than [on] us make that
    lightning fall.
Notes

The comm. again correctly paraphrases saṁ srāḥ with saṁ sṛja.

Griffith

O’erwhelm us not with Fever or with poison, nor, Rudra! with the fire that comes from heaven. Elsewhere, and not on us, cast down this lightning.

पदपाठः

मा। नः॒। रु॒द्र॒। त॒क्मना॑। मा। वि॒षेण॑। मा। नः॒। सम्। स्राः॒। दि॒व्येन॑। अ॒ग्निना॑। अ॒न्यत्र॑। अ॒स्मत्। वि॒ऽद्युत॑म्। पा॒त॒य॒। ए॒ताम्। २.२६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • विराड्गायत्री
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (रुद्र) हे रुद्र ! [दुःखनाशक परमेश्वर] (मा) न तो (नः) हमें (तक्मना) दुःखी जीवन करनेवाले [ज्वर आदि] से, (मा) न (विषेण) विष से, और (मा) न (नः) हमें (दिव्येन) सूर्य के (अग्निना) अग्नि से (संस्राः) संयुक्त कर। (अस्मत्) हम से (अन्यत्र) दूसरों [अर्थात् दुराचारियों] पर (एताम्) इस (विद्युतम्) लपलपाती [बिजुली] को (पातय) गिरा ॥˜२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रयत्नपूर्वक परमेश्वर का ध्यान रखकर कुपथ छोड़ कर रोगों और उत्पातों से सुरक्षित रहें ॥˜२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २६−(मा) निषेधे (नः) अस्मान् (तक्मना) अ० १।२५।१। कृच्छ्रजीवनकारिणा ज्वरादिना (मा) (विषेण) (मा) (नः) (संस्राः) म० १९। संसृज। संयोजय (दिव्येन) दिवि सूर्ये भवेन (अग्निना) तापेन (अन्यत्र) अन्येषु। दुष्टेषु (अस्मत्) अस्मत्तः (विद्युतम्) विद्योतमानां तडितम् (पातय) प्रक्षिप (एताम्) दृश्यमानाम् ॥˜

२७ भवो दिवो

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भ॒वो दि॒वो भ॒व ई॑शे पृथि॒व्या भ॒व आ प॑प्र उ॒र्व१॒॑न्तरि॑क्षम्।
तस्मै॒ नमो॑ यत॒मस्यां॑ दि॒शी॒३॒॑तः ॥

२७ भवो दिवो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Bhava is master (īś) of the heaven, Bhava of the earth; Bhava has
    filled the wide atmosphere; to him be homage, in whichever direction
    from here.
Notes

All our mss., and nearly all SPP’s, strangely read tásyāi at beginning
of c, as if governed by the example of vs. 12 d. SPP. emends to
tásmāi in his text, with the comm. and less than a quarter of his
authorities; ⌊and the translation implies the change⌋. Ppp- has a
different c: tasya vā (with written over it) prāpad duchunā
kā cane ’ha;
it also combines bhavā ”papraurv⌋ in b.

Griffith

Ruler of heaven and Lord of earth is Bhava: Bhava hath filled the spacious air’s mid-region. Where’er he be, to him be paid our homage!

पदपाठः

भ॒वः। दि॒वः। भ॒वः। ई॒शे॒। पृ॒थि॒व्याः। भ॒वः। आ। प॒प्रे॒। उ॒रु। अ॒न्तरि॑क्षम्। तस्मै॑। नमः॑। य॒त॒मस्या॑म्। दि॒शि। इ॒तः। २.२७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • विराड्गायत्री
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भवः) भव [सुख उत्पन्न करनेवाला परमेश्वर] (दिवः) सूर्य का, (भवः) भव (पृथिव्याः) पृथिवी का (ईशे) राजा है, (भवः) भव ने (उरु) विस्तृत (अन्तरिक्षम्) आकाश को (आ पप्रे) सब ओर से पूरण किया है। (इतः) यहाँ से (यतमस्याम् दिशि) चाहे जौन-सी दिशा हो, उसमें (तस्मै) उस [भव] को (नमः) नमस्कार है ॥˜२७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो परमात्मा सब सूर्य आदि लोकों का स्वामी है, उसको हम सब स्थानों में नमस्कार करके अपना ऐश्वर्य बढ़ावें ॥˜२७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २७−(भवः) म० ३। सुखोत्पादकः परमेश्वरः (दिवः) सूर्यस्य (ईशे) तलोपः। ईष्टे। राजति (पृथिव्याः) भूमेः (आ) समन्तात् (पप्रे) प्रा पूरणे-लिट्, आत्मनेपदं छान्दसम्। पप्रौ। पूरितवान् (उरु) विस्तृतम् (अन्तरिक्षम्) आकाशम् (तस्मै) (भवाय) परमेश्वराय। अन्यद् गतं पूर्ववच्च-म० १२।१४ ॥˜

२८ भव राजन्यजमानाय

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भव॑ राज॒न्यज॑मानाय मृड पशू॒नां हि प॑शु॒पति॑र्ब॒भूथ॑।
यः श्र॒द्दधा॑ति॒ सन्ति॑ दे॒वा इति॒ चतु॑ष्पदे द्वि॒पदे॑ऽस्य मृड ॥

२८ भव राजन्यजमानाय ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O king Bhava, be gracious to the sacrificer, for thou hast become
    cattle-lord of cattle; whoever has faith, saying “the gods are,” be thou
    gracious to his bipeds [and] quadrupeds.
Notes
Griffith

King Bhava, favour him who offers worship, for thou art Pasupati, Lord of victims. Be gracious to the quadruped and biped of the believer in the Gods’ existence.

पदपाठः

भव॑। रा॒ज॒न्। यज॑मानाय। मृ॒ड॒। प॒शू॒नाम्। हि। प॒शु॒ऽपतिः॑। ब॒भूथ॑। यः। श्र॒त्ऽदधा॑ति। सन्ति॑। दे॒वाः। इति॑। चतुः॑ऽपदे। द्वि॒ऽपदे॑। अ॒स्य॒। मृ॒डे॒। २.२८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भव) हे भव ! [सुखोत्पादक] (राजन्) राजन् ! [परमेश्वर] (यजमानाय) यजमान [श्रेष्ठ कर्म करनेवाले] को (मृड) सुख दे, (हि) क्योंकि (पशूनाम्) दृष्टिवाले जीवों की [रक्षा के लिये] (पशुपतिः) दृष्टिवाले [जीवों] का रक्षक (बभूथ) तू हुआ है। (यः) जो [पुरुष] (श्रद्दधाति) श्रद्धा रखता है किदेवाः सन्ति इति [परमेश्वर के] उत्तम गुण हैं, (अस्य) उसके (द्विपदे) दोपाये और (चतुष्पदे) चौपाये को (मृड) तू सुख दे ॥२८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सर्वरक्षक परमेश्वर श्रद्धालु सत्पुरुष को उत्तम मनुष्य आदि दोपायों और गौ आदि चौपायों की बहुतायत से सुखी रखता है ॥२८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २८−(भव) म० ३। हे सुखोत्पादक (राजन्) हे सर्वशासक (यजमानाय) देवपूजादिकर्त्रे (मृड) सुखं देहि (पशूनाम्) दृष्टिमतां जीवानां रक्षणायेति शेषः (हि) यस्मात् कारणात् (पशुपतिः) दृष्टिमतां पालकः (बभूथ) इडभावः। बभूविथ (यः) पुरुषः (श्रद्दधाति) श्रद्धां धारयति। विश्वसिति (सन्ति) भवन्ति (देवाः) दिव्यगुणाः परमेश्वरस्य (इति) वाक्यसमाप्तौ (चतुष्पदे) पादचतुष्टयोपेताय गवाश्वादिप्राणिने (द्विपदे) पादद्वयोपेताय मनुष्यादये (अस्य) श्रद्धाधारकस्य पुरुषस्य (मृड) ॥

२९ मा नो

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मा नो॑ म॒हान्त॑मु॒त मा नो॑ अर्भ॒कं मा नो॒ वह॑न्तमु॒त मा नो॑ वक्ष्य॒तः।
मा नो॑ हिंसीः पि॒तरं॑ मा॒तरं॑ च॒ स्वां त॒न्वं᳡ रुद्र॒ मा री॑रिषो नः ॥

२९ मा नो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Not our great one, and not our small, not our carrying one, and not
    those that will carry, not our father and mother do thou harm; our own
    self (tanū́), O Rudra, do not injure.
Notes

The verse occurs also as RV. i. 114. 7; VS. xvi. 15; TS. iv. 5. 10²; TA.
x. 52, with úkṣantam and ukṣitám for váhantam and vakṣyatás in
b; vadhīs for hiṅsīs and mó ’tá mātáram for mātáraṁ ca in
c; and, for d, mā́ naḥ priyā́s (TS.TA. priyā́ mā́ nas) tanvò
rudra rīriṣaḥ
. The comm. has vakṣatas in b. ⌊Ppp. has, for b,
mā na kṣīyanta uta mā no akṣata.⌋

Griffith

Harm thou among us neither great nor little, not one who bears us, not our future bearers. Injure no sire among us, harm no mother. Forbear to injure our own bodies, Rudra.

पदपाठः

मा। नः॒। म॒हान्त॑म्। उ॒त। मा। नः॒। अ॒र्भ॒कम्। मा। नः॒। वह॑न्तम्। उ॒त। मा। नः॒। व॒क्ष्य॒तः। मा। नः॒। हिं॒सीः॒। पि॒तर॑म्। मा॒तर॑म्। च॒। स्वाम्। त॒न्व᳡म्। रु॒द्र॒। मा। रि॒रि॒षः॒। नः॒। २.२९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • जगती
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (रुद्र) हे रुद्र ! [ज्ञानदाता परमेश्वर] (मा) न तो (नः) हमारे (महान्तम्) पूजनीय [वयोवृद्ध वा विद्यावृद्ध] को (उत) और (मा) न (नः) हमारे (अर्भकम्) बालक को, (मा) न (नः) हमारे (वहन्तम्) ले चलते हुए [युवा] को (उत) और (मा) न (नः) हमारे (वक्ष्यतः) भावी ले चलनेवालों [होनहार सन्तानों] को (मा) न (नः) हमारे (पितरम्) पालनेवाले पिता को (च) और (मातरम्) मान करनेवाली माता को (हिंसीः) मार, और (मा) न (नः) हमारे (स्वाम्) अपने ही (तन्वम्) शरीर को (रीरिषः) नाश कर ॥२९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमात्मा की प्रार्थना करते हुए शुभ कर्मों का अनुष्ठान करके अपने सब सम्बन्धियों की और अपनी रक्षा करें ॥२९॥यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है-१।११४।७। तथा यजुर्वेद-अ० १६। म० १५ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २९−(मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (महान्तम्) पूजनीयम्। वयोवृद्धं विद्यावृद्धं वा (अर्भकम्) अ० १।२७।३। अर्भकपृथुकपाका वयसि। उ० ५।५३। ऋधु वृद्धौ-वुन्, धस्य भः। बालकम् (वहन्तम्) वह प्रापणे-शतृ। वहनशीलं युवानम् (सत्) अपि च (वक्ष्यतः) लृटः सद्वा। पा० ३।३।११४। वह प्रापणे- लृटः स्य-शतृ। भविष्यति काले वहनशीलान् (हिंसीः) माङि लुङि रूपम्। हिन्धि (पितरम्) पालकं जनकम् (मातरम्) मानप्रदां जननीम् (स्वाम्) स्वकीयाम् (तन्वम्) शरीरम् (रुद्र) म० ३। हे ज्ञानप्रद (रीरिषः) अ० ५।३।८। जहि (नः) अस्माकम्। अन्यद्गतम् ॥

३० रुद्रस्यैलबकारेभ्योऽसंसूक्तगिलेभ्यः इदम्

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रु॒द्रस्यै॑लबका॒रेभ्यो॑ऽसंसूक्तगि॒लेभ्यः॑।
इ॒दं म॒हास्ये॑भ्यः॒ श्वभ्यो॑ अकरं॒ नमः॑ ॥

३० रुद्रस्यैलबकारेभ्योऽसंसूक्तगिलेभ्यः इदम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. To Rudra’s howl-making, unhymned-swallowing (?), great-mouthed dogs
    I have paid this homage.
Notes

The obscure asaṁsūktagilá (Ppp. -girebhyas) is paraphrased by the
comm. with asamīcīnam aśobhanavacanaṁ gṛṇanti bhāṣante. How
asaṁsūkta should come to mean ‘unmasticated,’ as given in the Pet.
Lexx., does not appear. The translation given conjectures ’not having a
hymn with it.’ The comm. reads elavak- in a.

Griffith

This lowly reverence have I paid to Rudra’s dogs with mighty mouths, Hounds terrible with bark and howl, who gorge unmasticated food.

पदपाठः

रु॒द्रस्य॑। ऐ॒ल॒ब॒ऽका॒रेभ्यः॑। अ॒सं॒सू॒क्त॒ऽगि॒लेभ्यः॑। इ॒दम्। म॒हाऽआ॑स्येभ्यः। श्वऽभ्यः॑। अ॒क॒र॒म्। नमः॑। २.३०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • चतुष्पदोष्णिक्
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ऐलवकारेभ्यः) लगातार भों-भों ध्वनि करनेवाले (असंसूक्तगिलेभ्यः) अमङ्गल शब्द बोलनेवाले, (महास्येभ्यः) बड़े-बड़े मुँहवाले (श्वभ्यः) कुत्तों के रोकने के लिये (रुदस्य) रुद्र [दुःखनाशक परमेश्वर] को (इदम्) यह (नमः) नमस्कार (अकरम्) मैंने किया है ॥३०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रयत्न करें कि चोर आदि दुर्जन इधर-उधर न घूमें, जिनके न होने से चौकसी के कुत्ते भयानक शब्द न करें ॥३०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३०−(रुद्रस्य) चतुर्थ्यर्थे बहुलं छन्दसि। पा० २।३।६२। इति षष्ठी। रुद्राय। दुःखनाशकाय (ऐलवकारेभ्यः) आङ्+इल स्वप्नक्षेपणयोः-घञ्+वण, वण शब्दे-ड+करोतेः-अण्। आक्षेपध्वनिकारकेभ्यः (असंसूक्तगिलेभ्यः) जलिकल्यनिमहि०। उ० १।५४। अ+सम्+सूक्त+गॄ शब्दे-इलच्। असंसूक्तस्य अशुभवचनस्य भाषणशीलेभ्यः (इदम्) (महास्येभ्यः) विशालमुखेभ्यः (श्वभ्यः) क्रियार्थोपपदस्य च कर्मणि स्थानिनः। पा० २।३।१४। इति चतुर्थी। शुनः कुक्कुरान् निवारयितुम् (अकरम्) करोतेर्लुङ्। कृमृदृरुहिभ्यश्छन्दसि। पा० ३।१।५९। च्लेरङ्। अहं कृतवानस्मि ॥

३१ नमस्ते घोषिणीभ्यो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

नम॑स्ते घो॒षिणी॑भ्यो॒ नम॑स्ते के॒शिनी॑भ्यः।
नमो॒ नम॑स्कृताभ्यो॒ नमः॑ संभुञ्ज॒तीभ्यः॑।
नम॑स्ते देव॒ सेना॑भ्यः स्व॒स्ति नो॒ अभ॑यं च नः ॥

३१ नमस्ते घोषिणीभ्यो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Homage to thy noisy ones, homage to thy hairy ones, homage to those
    to whom homage is paid, homage to the jointly-enjoying—homage,
    [namely], O god, to thine armies; welfare [be] to us, and
    fearlessness to us.
Notes

The adjectives are fem., as belonging to senābhyas. Ppp. disagrees
with our text in the last two thirds of the verse, but is corrupt. The
comm. reads cana at the end. ⌊The vs., as noted above, is quoted in
the first abhaya gaṇa (note to 16. 8).⌋

⌊Here ends the first anuvāka, with 2 hymns and 68 verses. The quoted
Anukr. says tathāi ’va rāudre ‘pi parās tu viṅśateḥ, designating the
hymn as a “Rudra-hymn."⌋

Griffith

Homage to thy loud-shouting hosts and thy long-haired followers! Homage to hosts that are adored, homage to armies that enjoy Homage to all thy troops, O God. Security and bliss be ours!

पदपाठः

नमः॑। ते॒। घो॒षिणी॑भ्यः। नमः॑। ते॒। के॒शिनी॑भ्यः। नमः॑। नमः॑ऽकृताभ्यः। नमः॑। स॒म्ऽभु॒ञ्ज॒तीभ्यः॑। नमः॑। ते॒। दे॒व॒। सेना॑भ्यः। स्व॒स्ति। नः॒। अभ॑यम्। च॒। नः॒। २.३१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • रुद्रः
  • अथर्वा
  • त्र्यवसाना षट्पदा विपरीतपादलक्ष्मा त्रिष्टुप्
  • रुद्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे परमेश्वर !] (घोषिणीभ्यः) बड़े कोलाहल करनेवाली [सेनाओं] के पाने को (ते) तुझे (नमः) नमस्कार, (केशिनीभ्यः) प्रकाश करनेवाली [सेनाओं] के पाने को (ते) तुझे (नमः) नमस्कार है। (नमस्कृताभ्यः) नमस्कार की हुई [सेनाओं] के पाने को (नमः) नमस्कार, (संभुञ्जतीभ्यः) मिल कर भोग, [आनन्द] करनेवाली (सेनाभ्यः) सेनाओं के पाने को (नमः) नमस्कार है। (देव) हे विजयी ! [परमेश्वर] (ते) तुझे (नमः) नमस्कार है, (नः) हमारे लिये (स्वस्ति) स्वस्ति [कल्याण] (च) और (नः) हमारे लिये (अभयम्) अभय हो ॥३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमात्मा की उपासना करके अपना सामर्थ्य बढ़ाते हैं, वे उत्तम, बलवती, सुशिक्षित थलचर, जलचर, नभचर आदि सेनाएँ रख कर प्रजा की रक्षा कर सकते हैं ॥३१॥ इति प्रथमोऽनुवाकः ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३१−(नमः) प्रणामः (ते) तुभ्यम् (घोषिणीभ्यः) क्रियार्थोपपदस्य च कर्मणि स्थानिनः। पा० २।३।१४। इति चतुर्थी। प्रभूतघोषयुक्ताः सेनाः प्राप्तुम् (केशिनीभ्यः) केशी केशा रश्मयस्तैस्तद्वान् भवति काशनाद्वा प्रकाशनाद्वा-निरु० १२।२५। प्रकाशयुक्ताः सेनाः प्राप्तुम् (नमस्कृताभ्यः) सत्कृताः सेनाः प्राप्तुम् (संभुञ्जतीभ्यः) सह भोगं कुर्वतीः सेनाः प्राप्तुम् (देव) हे विजयिन् परमात्मन् (सेनाभ्यः) सेनाः प्राप्तुम् (स्वस्ति) शोभनां सत्ताम्। कल्याणम् (नः) अस्मभ्यम् (अभयम्) भयराहित्यम् (च) (नः) अस्मभ्यम् ॥