००१ ब्रह्मौदनम्

००१ ब्रह्मौदनम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. Accompanying a rice-dish offering.
VH anukramaṇī

ब्रह्मौदनम्।
१-३७ ब्रह्म। ओदनः। त्रिष्टुप्, १ अनुष्टुब्गर्भा, भुरिक्पङ्क्तिः, २ बृहतीगर्भा विराट्, ३ चतुष्पदा शाक्वरगर्भा जगती, ४, १५-१६ भुरिक्, ५ बृहतीगर्भा विराट्, ६ उष्णिक्, ८ विराड् गायत्री, ९ शाक्वरातिजागतगर्भा जगती, १० विराट् पुरोतिजगती विराड् जगती, ११ जगती, १७, २१, २४-२६, २९ (भुरिक्), ३७ विराड् जगती, १८ अतिजागतगर्भा परातिजागता विराडतिजगती, २० अतिजागतगर्भा परा शाक्वरा चतुष्पदा भुरिग्जगती,
२७ अतिजागतगर्भा जगती, ३१ भुरिक्, ३५ चतुष्पदा ककुम्मत्युष्णिक्, ३६ पुरोविराड् (व्याघ्रादिष्ववगन्तव्या)।

Whitney anukramaṇī

[Brahman.—saptatriṅśat. brāhmāudaniham. trāiṣṭubham: 1. anuṣṭubgarbhā bhurik pan̄kti; 2. bṛhatīgarbhā virāj; 3. 4-p. śākvaragarbhā jagatī; 4. bhurij; 5. brhatīgarbhā virāj; 6. uṣṇih; 8. virādgāyatrī; 6. śākvarātijāgaiagarbhā jagatī; 10. virāṭ purotijagatī virāḍjagatī; 11. jagatī; 15, 16. bhurij; 17. virāḍ jagatī; 18. atijāgatagarbhā parātijāgatā virāḍ atijagatī; 20. atijāgatagarbhā paraśākvarā 4-p. bhurig jagatī; 21, 24-26, 29. virāḍjagatī (29. bhurij); 27. atijāgatagarbhā jagatī; 3i. bhurij; 35. 4-p. kakummaty uṣṇih; 36. purovirāḍ vyāghrādiṣv avagantavyā*; 37. virāḍ jagatī.]

Whitney

Comment

⌊Verse 35 is prose.⌋ Found also in Pāipp. xvi. (in the verse-order 1-10, 12, 11, 13-18, 22, 19, 20, 21, 23-37). Nearly every verse of the hymn is quoted in Kāuś. 60-63 and 65 in connection with the description of the sava offerings; ⌊see Bloomfield, page 610 and the following for details so far as they are helpful⌋. ⌊Citations in other parts of Kāuś. are noted under the verses. The hymn is not noticed by Vāit.: see page 610.⌋ *⌊This curious addition to the Anukr., vyāghrādiṣv avagantavyā, recurs in the Anukr’s treatment of xiv. 1. 60 and of the c of xv. 5. 1-7. See note to xv. 5. 7.⌋

Translations

Translated: Henry, 97, 133; Griffith, ii. 51; Bloomfield, 179, 610.

Griffith

An accompaniment to the preparation and presentation of a Brahmaudana

०१ अग्ने जायस्वादितिर्नाथितेयम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अग्ने॒ जाय॒स्वादि॑तिर्नाथि॒तेयं ब्र॑ह्मौद॒नं प॑चति पु॒त्रका॑मा।
स॑प्तऋ॒षयो॑ भूत॒कृत॒स्ते त्वा॑ मन्थन्तु प्र॒जया॑ स॒हेह॑ ॥

०१ अग्ने जायस्वादितिर्नाथितेयम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O Agni, be thou born; Aditi here, suppliant, cooks a
    brahmán-rice-dish, desiring sons; the seven seers, being-makers—let
    them churn thee here together with progeny.
Notes

Aditi’s cooking of a rice-dish in order to obtain progeny is repeatedly
referred to in the Brāhmaṇas—probably by way of echo of this verse:
compare TS. vi. 5. 6¹; TB. i. 1. 9¹; K. vii. 15; MS. i. 6. 12; ⌊ii. 1.
12 and references⌋; ⌊also AV. vi. 81. 3⌋; the comm. quotes the TS.
passage in his explanation of the verse. He defines a brahmāudana as
brahmaṇe jagatsraṣṭre svāhākareṇa deya odanaḥ, and then adds: yad vā
brahmāudanasavākhye ‘smin karmaṇi brāhmaṇānām bhojanāya bhāgatvena
kalpita odano brahmāudanaḥ
.

Griffith

Agni, spring forth! Here Aditi, afflicted, cooks a Brahmaudana, yearning for children. Let the Seven Rishis, World-creators, rub thee into existence here with gift of offspring.

पदपाठः

अग्ने॑। जाय॑स्व। अदि॑तिः। ना॒थि॒ता। इ॒यम्। ब्र॒ह्म॒ऽओ॒द॒नम्। प॒च॒ति॒। पु॒त्रऽका॑मा। स॒प्त॒ऽऋ॒षयः॑। भू॒त॒ऽकृतः॑। ते। त्व‍ा॒। म॒न्थ॒न्तु॒। प्र॒ऽजया॑। स॒ह। इ॒ह। १.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • अनुष्टुब्गर्भा भुरिक्पङ्क्तिः
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे तेजस्वी विद्वान् पुरुष ! (जायस्व) प्रसिद्ध हो, [जैसे] (इयम्) यह (नाथिता) पतिवाली, (पुत्रकामा) पुत्रों की कामनावाली (अदितिः) अदिति [अखण्ड व्रतवाली वा अदीन स्त्री] (ब्रह्मौदनम्) ब्रह्म-ओदन [वेदज्ञान, अन्न वा धन के बरसानेवाले परमात्मा] को (पचति) पक्का [मनमें दृढ़] करती है, [वैसे ही] (ते) वे (भूतकृतः) उचित कर्म करनेवाले (सप्तऋषयः) सात ऋषि [व्यापनशील वा दर्शनशील अर्थात् त्वचा, नेत्र, कान, जिह्वा, नाक, मन और बुद्धि] (इह) यहाँ पर (प्रजया सह) प्रजा के साथ [मनुष्यों के सहित] (त्वा) तुझ [विद्वान्] को (मन्थन्तु) मथें [प्रवृत्त करें] ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - हे मनुष्य जैसे माता वेद आदि शास्त्रों में प्रवीण होकर सन्तान से प्रीति करती हुई परमेश्वर की आज्ञापालन में तत्पर होती है, वैसे ही तू अपनी इन्द्रियों मन और बुद्धि से उपकार लेकर सन्तानसहित पुरुषार्थ कर ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(अग्ने) हे तेजस्विन् विद्वन् (जायस्व) प्रसिद्धो भव (अदितिः) अ० २।२८।४। दो अवखण्डने, दीङ् क्षये वा-क्तिन्, नञ्समासः। अदितिरदीना देवमाता-निरु० ४।२२। अखण्डव्रताऽदीना स्त्री (नाथिता) अ० ४।२३।७। नाथ-इतच्, टाप्। नाथवती समभर्तृका (इयम्) प्रसिद्धा (ब्रह्मौदनम्) अ० ४।३५।७। बृंहेर्नोऽच्च। उ० ४।१४६। बृहि वृद्धौ-मनिन्, नकारस्य अकारः, रत्वं च। ब्रह्म, अन्नम् निघ० २।७। ब्रह्म धनम्-निघ० २।१०। उन्देर्नलोपश्च उ० २।७६। उन्दी क्लेदने-युच्। ओदनो मेघः-निघ० १।१०। ओदनमुदकदानं मेघम्-निरु० ६।३४। ब्रह्मणो वेदज्ञानस्यान्नस्य धनस्य वा सेचकं वर्षकं परमात्मानम् (पचति) पक्वं मनसि दृढं करोति (पुत्रकामा) शीलिकामिभक्ष्याचरिभ्यो णः। वा० पा–० ३।२।१। कामेर्णप्रत्ययः। पुत्रादीन् कामयमाना (सप्तऋषयः) अ० ४।११।९। ऋष गतौ दर्शने च-इन्। ऋत्यकः। पा० ६।१।१२८। इति प्रकृतिभावः। सप्त ऋषयः प्रतिहिताः शरीरे-यजु० ३४।५५। सप्त ऋषयः षडिन्द्रियाणि विद्या सप्तमी-निरु० १२।३७। त्वक्चक्षुःश्रवणरसनाघ्राणमनोबुद्धयः (भूतकृतः) अ० ६।१०८।४। भूतमुचितं कर्म कुर्वन्ति ते (ते) प्रसिद्धाः (त्वा) त्वां विद्वांसम् (मन्थन्तु) विलोडयन्तु। प्रवर्तयन्तु (प्रजया) प्रजागणेन (सह) साकम् (इह) अस्मिन् गृहाश्रमे ॥

०२ कृणुत धूमम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

कृ॑णु॒त धू॒मं वृ॑षणः सखा॒योऽद्रो॑घाविता॒ वाच॒मच्छ॑।
अ॒यम॒ग्निः पृ॑तना॒षाट् सु॒वीरो॒ येन॑ दे॒वा अस॑हन्त॒ दस्यू॑न् ॥

०२ कृणुत धूमम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Make ye smoke, O ye bulls, companions, ye that are aided by the
    unhateful (?), unto speech; this Agni [is] fight-overpowering, having
    good heroes, by whom the gods overpowered the barbarians.
Notes

The second pāda is mechanically rendered, being quite corrupt, as
appears ⌊from the meter and⌋ by comparison with the corresponding RV.
verse (iii. 29. 9), which reads instead ásredhanta itana vā́jam ácha.
The comm. explains ádrogh- as adrohakāriṇāṁ sucaritrāṇāṁ yajamānānām
avitā rakṣitā
, as if the pada-reading were -avitā instead of
-avitāḥ. ⌊W’s Collation-book gives -avitāḥ as pada-reading without
note of variant; and this is the reading also of two or three of SPP’s
mss.: but he admits -avitā into his pada-text, following one or two
mss.⌋ RV. begins also kṛṇóta, and has vṛ́ṣaṇam for vṛṣaṇas in
a; also devā́sas (rectifying the meter) in d. All the mss.
⌊save one or two⌋ read asahanta, unaccented, in d, but both
editions make the necessary emendation to ásahanta—which, of course,
RV. has. Ppp. is corrupt in d, reading devā ’santa*; after it
śatrūn. *⌊A most interesting instance of haplography on the part of
the AV.: cf. note to iv. 5. 5. Note the fourfold occurrence of the
sound-combination ās within the RV. pāda; and that three of these are
reduced by Ppp. to one.⌋

Griffith

Raise, as I bid, the smoke, my strong companions, lovers of free- dom from deceit and malice! Victor in fight heroic, here is Agni by whom the Gods subdued the hostile demons.

पदपाठः

कृ॒णु॒त। धू॒मम्। वृ॒ष॒णः॒। स॒खा॒यः॒। अद्रो॑घऽअविता। वाच॑म्। अच्छ॑। अ॒यम्। अ॒ग्निः। पृ॒त॒ना॒षाट्। सु॒ऽवीरः॑। येन॑। दे॒वाः। अस॑हन्त। दस्यु॑न्। १.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वृषणः) हे ऐश्वर्यवाले (सखायः) सखाओ ! (धूमम्) कम्पन [चेष्टा] (कृणुत) करो, (वाचम् अच्छ) [अपने] वचन का लक्ष्य करके (अद्रोघाविता) निद्रोहियों [शुभाचार्यों] का रक्षक (पृतनाषाट्) संग्रामों का जीतनेवाला, (सुवीरः) उत्तम वीरोंवाला (अयम्) यह (अग्निः) तेजस्वी वीर है, (येन) जिस [वीर] के साथ (देवाः) देवों [विजयी जनों] ने (दस्यून्) डाकुओं को (असहन्त) जीता है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब मनुष्य मित्रभाव से रहकर सुपरीक्षित शूरवीर विद्वान् पुरुष को सेनापति बनाकर शत्रुओं का नाश करें ॥२॥यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है-म० ३। सू० २९। म० ९ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(कृणुत) कुरुत (धूमम्) इषियुधीन्धिदसिश्याधूसूभ्यो मक्। कम्पनं चेष्टनम्। (वृषणः) अ० १।१२।१। वृषु सेचने प्रजनैश्ययोः-कनिन्। वा षपूर्वस्य निगमे। पा० ६।४।९। दीर्घाभावः। वृषाणः। ऐश्वर्यवन्तः। इन्द्राः (सखायः) सर्वमित्रभूताः (अद्रोघाविता) अद्रोहकारिणां सुचरित्राणामविता रक्षिता (वाचम्) वचनम् (अच्छ) अभिलक्ष्य (अयम्) (अग्निः) तेजस्वी विद्वान् (पृतनाषाट्) अ० ५।१४।८। संग्रामजेता (सुवीरः) नञ्सुभ्याम्। पा० ६।२।११२। इत्युत्तरपदेऽन्तोदात्ते प्राप्ते। वीरवीर्यौ च। पा० ६।२।१२०। उत्तरपदाद्युदात्तः। शोभनवीरोपेतः (येन) शूरेण (देवाः) विजयिनः (असहन्त) अभ्यभवन् (दस्यून्) चौरान्। महासाहसिकान् ॥

०३ अग्नेऽजनिष्ठा महते

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अग्नेऽज॑निष्ठा मह॒ते वी॒र्या᳡य ब्रह्मौद॒नाय॒ पक्त॑वे जातवेदः।
स॑प्तऋ॒षयो॑ भूत॒कृत॒स्ते त्वा॑जीजनन्न॒स्यै र॒यिं सर्व॑वीरं॒ नि य॑च्छ ॥

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Whitney
Translation
  1. O Agni, thou hast been born unto great heroism, unto the cooking of
    the brahmán-rice-dish, O Jātavedas; the seven seers,
    being-makers—they have given thee birth; do thou confirm to this woman
    wealth with all heroes.
Notes

Ppp. reads paktaye in b, combines saptarṣ- in c, and has in
d asme and ni yachatām.

Griffith

Thou, Agni, wart produced for mighty valour, to cook Brahmau- dana, O Jatavedas. Seven Rishis, makers of the world, begat thee, Grant to this woman wealth with store of heroes.

पदपाठः

अग्ने॑। अज॑निष्ठाःः। म॒ह॒ते। वी॒र्या᳡य। ब्र॒ह्म॒ऽओद॒नाय॑। पक्त॑वे। जा॒त॒ऽवे॒दः॒। स॒प्त॒ऽऋ॒षयः॑। भू॒त॒ऽकृतः॑। ते। त्वा॒। अ॒जी॒ज॒न॒न्। अ॒स्यै। र॒यिम्। सर्व॑ऽवीरम्। नि। य॒च्छ॒। १.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • चतुष्पदा शाक्वरगर्भा जगती
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (जातवेदः) हे प्रसिद्ध ज्ञानवाले (अग्ने) तेजस्वी वीर ! (महते) बड़े (वीर्याय) वीरत्व [पाने] के लिये (ब्रह्मौदनाय पक्तवे) ब्रह्म-ओदन [वेदज्ञान, अन्न वा धन बरसानेवाले परमात्मा] के पक्का [मन में दृढ़] करने को (अजनिष्ठाः) तू उत्पन्न हुआ है। (ते) उन (भूतकृतः) उचित कर्म करनेवाले (सप्तऋषयः) सात ऋषियों [त्वचा, नेत्र, कान, जिह्वा नाक, मन और बुद्धि] ने (त्वा) तुझ [शूर] को (अजीजनन्) प्रसिद्ध किया है, (अस्यै) इस [प्रजा म० १] को (सर्ववीरम्) सब वीरों से युक्त (रयिम्) धन (नि) नियम से (यच्छ) दे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् मनुष्य पराक्रम के साथ परमेश्वर की आज्ञा का पालन करे और मन बुद्धि द्वारा श्रेष्ठ कर्मों से प्रसिद्ध होकर प्रजापालन में तत्पर रहे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(अग्ने) हे तेजस्विन् (अजनिष्ठा) त्वमुत्पन्नोऽसि (महते) प्रभूताय (वीर्याय) वीरकर्मणे (ब्रह्मौदनाय) म० १। ब्रह्मणो वेदज्ञानस्य, अन्नस्य धनस्य वा सेचकाय वर्षकाय। परमेश्वराय (पक्तवे) डुपचष् पाके-तवेन्। पक्तुम्। मनसि दृढीकर्तुम् (जातवेदः) अ० १।७।२। हे प्रसिद्धज्ञानयुक्त (अजीजनन्) जनेर्ण्यन्ताल्लुङि चङि रूपम्। प्रसिद्धं कृतवन्तः (अस्यै) प्रजायै-म० १। (रयिम्) धनम् (सर्ववीरम्) सर्वैर्वीरैर्युक्तम् (नि) नियमेन (यच्छ) दाण् दाने-लोट्। देहि। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥

०४ समिद्धो अग्ने

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

समि॑द्धो अग्ने स॒मिधा॒ समि॑ध्यस्व वि॒द्वान्दे॒वान्य॒ज्ञियाँ॒ एह व॑क्षः।
तेभ्यो॑ ह॒विः श्र॒पयं॑ जातवेद उत्त॒मं नाक॒मधि॑ रोहये॒मम् ॥

०४ समिद्धो अग्ने ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Kindled, O Agni, be thou kindled with kindling (samídh); mayest
    thou bring hither, knowing, the worshipful gods; for them cooking
    (śrā) the oblation, O Jātavedas, make thou this man to ascend to the
    highest firmament (nā́ka).
Notes

Ppp. reads in b viśvā devān. In a, the comm. has samiddhaḥ
sa
for sám idhyasva. ⌊For d, cf. i. 9. 2, 4; vi. 63. 3.⌋

Griffith

Burn up, O Agni, kindled with the fuel. Knowing the Gods who merit worship, bring them. Cooking, for these, oblation, Jatavedas! lift up this man to heaven’s most lofty summit.

पदपाठः

सम्ऽइ॑ध्दः। अ॒ग्ने॒। स॒म्ऽइधा॑। सम्। इ॒ध्य॒स्व॒। वि॒द्वान्। दे॒वान्। य॒ज्ञिया॑न्। आ। इ॒ह। व॒क्षः। तेभ्यः॑। ह॒विः। श्र॒पय॑न्। जा॒त॒ऽवे॒दः॒। उ॒त्ऽत॒मम्। नाक॑म्। अधि॑। रो॒ह॒य॒। इ॒मम्। १.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • भुरिक्त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे तेजस्वी पुरुष ! (समिधा) काष्ठ आदि से (समिद्धः) प्रकाशित [अग्नि के समान] (सम् इध्यस्व) प्रकाश कर, (यज्ञियान्) पूजायोग्य (देवान्) देवों [विजयी जनों] को (विद्वान्) जानता हुआ तू (इह) यहाँ [उत्तम पद पर] (आ वक्षः) लाता रहे। (जातवेदः) हे प्रसिद्ध धनवाले (तेभ्यः) उनके लिये (हविः) दातव्य वस्तु को (श्रपयन्) पक्का [दृढ़] करता हुआ तू (इमम्) इस [प्राणी वा प्रजा गण] को (उत्तमम्) श्रेष्ठ (नाकम्) आनन्द में (अधि) ऊपर (रोहय) चढ़ा ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्या और पराक्रम से तेजस्वी होकर पूजनीय विद्वानों का यथावत् आदर करके अपने और प्रजागण के लिये उत्तम सुख बढ़ावे ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(समिद्धः) प्रदीप्तोऽग्निर्यथा (अग्ने) हे तेजस्विन् पुरुष (समिधा) काष्ठादिप्रज्वलनसाधनेन (सम्) सम्यक् (इध्यस्व) ञिइन्धी दीप्तौ, रुधादिः, दिवादित्वं छान्दसम्। इन्त्स्व। दीप्यस्व (विद्वान्) विदन्। जानन् (देवान्) विजयिनो जनान् (यज्ञियान्) यज्ञ-घ। पूजार्हान् (इह) अस्मिन् पदे (आ वक्षः) वहेर्लेटि, अडागमः। सिब्बहुलं लेटि। पा० ३।१।३४। इति सिप्, ढत्वकत्वषत्वानि। आवहेः (तेभ्यः) विद्वद्भ्यः (हविः) देयं वस्तु (श्रपयन्) श्रा पाके ण्यन्तात् शतृ आकारान्तलक्षणे पुकि कृते घटादिपाठात्। मितां ह्रस्वः। पा० ६।४।९२। उपधाह्रस्वः। पचन्। दृढीकुर्वन् (जातवेदः) हे प्रसिद्धधन (उत्तमम्) उत्कृष्टम् (नाकम्) आनन्दम् (अधि) उपरि (रोहय) प्रापय (इमम्) प्राणिनं प्रजागणं वा ॥

०५ त्रेधा भागो

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त्रे॒धा भा॒गो निहि॑तो॒ यः पु॒रा वो॑ दे॒वानां॑ पितॄ॒णां मर्त्या॑नाम्।
अंशा॑ञ्जानीध्वं॒ वि भ॑जामि॒ तान्वो॒ यो दे॒वानां॒ स इ॒मां पा॑रयाति ॥

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Whitney
Translation
  1. Threefold is set down the share that is yours of old—of gods, of
    Fathers, of mortals; know ye the portions (áṅśa); I share them out to
    you; that one that is the gods’ shall set this woman across.
Notes

That is (at the end), as the comm. paraphrases it, iṣṭaphalasya pāraṁ
gamayati
‘bring her to the further shore (the completion) of desired
result.’ Ppp. reads jātavedas in a for yaḥ purā vaḥ, inserts
uta before martyānām in b, and has in d sāi ’vaṁ for sa
imām
.

Griffith

Your portion from of old is triply parted, portion of Gods, of Fathers, and of mortals. Know, all, your shares. I deal them out among you. The portion of the Gods shall save this woman.

पदपाठः

त्रे॒धा। भा॒गः। निऽहि॑तः। यः। पु॒रा। वः॒। दे॒वाना॑म्। पि॒तॄ॒णाम्। मर्त्या॑नाम्। अंशा॑न्। जा॒नी॒ध्व॒म्। वि। भ॒जा॒मि॒। तान्। वः॒। यः। दे॒वाना॑म्। सः। इ॒माम्। पा॒र॒या॒ति॒। १.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्यो !] (त्रेधा) तीन प्रकार से, (देवानाम्) देवताओं [विजयी जनों] का, (पितॄणाम्) पितरों [पालक पुरुषों] का और (मर्त्यानाम्) मर्त्यों [मरणधर्मियों] का, (यः) जो (वः) तुम्हारे लिये (भागः) भाग (पुरा) पहिले से (निहितः) ठहराया हुआ है। (जानीध्वम्) तुम जानो कि (तान् अंशान्) उन भागों को (वः) तुम्हारे लिये (वि भजामि) मैं [परमेश्वर] बाँटता हूँ, (यः) जो [भाग] (देवानाम्) देवताओं का है, (सः) वह (इमाम्) इस [प्रजा-म० १] को (पारयाति) पार लगावे ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ईश्वरनियम से अनादि काल से कर्मानुसार मनुष्य तीन प्रकार के हैं−एक उत्तम देवसंज्ञक दूसरे मध्यम पितृसंज्ञक और तीसरे निकृष्ट मर्त्यसंज्ञक। देवसंज्ञक श्रेष्ठ पुरुष ही अपनी प्रजा को यथावत् सुख पहुँचाने में समर्थ होते हैं ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(त्रेधा) एधाच्च। पा–० ५।३।४६। त्रि-एधाच्। त्रिप्रकारेण (भागः) अंशः (निहितः) स्थापितः (यः) (पुरा) पूर्वकाले। सृष्ट्यादौ (वः) युष्मभ्यम् (देवानाम्) विजयिनाम्। श्रेष्ठपुरुषाणाम् (पितॄणाम्) पालकानां मध्यमजनानाम् (मर्त्यानाम्) मरणधर्मणां निकृष्टजनानाम् (अंशान्) भागान् (जानीध्वम्) अवगच्छत (विभजामि) वण्टयामि परमेश्वरोऽहम् (तान्) (वः) युष्मभ्यम् (यः) भागः (देवानाम्) श्रेष्ठजनानाम् (सः) (इमाम्) प्रजाम्-म० १ (पारयाति) पार कर्मसमाप्तौ-लट्। पारयेत्। पारं नयेत् ॥

०६ अग्ने सहस्वानभिभूरभीदसि

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अग्ने॒ सह॑स्वानभि॒भूर॒भीद॑सि॒ नीचो॒ न्यु᳡ब्ज द्विष॒तः स॒पत्ना॑न्।
इ॒यं मात्रा॑ मी॒यमा॑ना मि॒ता च॑ सजा॒तांस्ते॑ बलि॒हृतः॑ कृणोतु ॥

०६ अग्ने सहस्वानभिभूरभीदसि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O Agni, powerful, overcoming, thou overcomest; put down (ni-ubj)
    [our] hating rivals; let this measure (mā́trā), being measured, and
    measured, make [thy] fellows tribute-bringers to thee.
Notes

The comm. does not try to give ny ubja a more distinctive meaning than
adhomukhān pātaya; the obscure mā́trā he simply glosses by nirmātrā
⌊as instrumental sing, masc. (supplying iyaṁ śālā as subject); but the
three translators take it as nom.⌋.

Griffith

Strong art thou, Agni, conquering, all-surpassing. Crush down our foemen, ruin those who hate us. So let this measure, measured, being measured, make all our kin thy tributary vassals.

पदपाठः

अग्ने॑। सह॑स्वान्। अ॒भि॒ऽभूः। अ॒भि। इत्। अ॒सि॒। नीचः॑। नि। उ॒ब्ज॒। द्वि॒ष॒तः। स॒ऽपत्ना॑न्। इ॒यम्। मात्रा॑। मीय॑माना। मि॒ता। च॒। स॒ऽजा॒तान्। ते॒। ब॒लि॒ऽहृतः॑। कृ॒णो॒तु॒। १.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • उष्णिक्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे तेजस्वी शूर ! (सहस्वान्) बलवान् और (अभिभूः) [वैरियों का] हरानेवाला तू (इत्) ही (अभि असि) [शत्रुओं को] हराता है, (नीचः) नीच (द्विषतः) द्वेष करनेवाले (सपत्नान्) शत्रुओं को (नि उब्ज) नीचे गिरा दे। (इयम्) यह (मीयमाना) नापी जाती हुई (च) और (मिता) नापी गई (मात्रा) मात्रा [परिमाण] (ते) तेरे (सजातान्) सजातियों [साथियों] को (बलिहृतः) [शत्रुओं से] बलि [उपहार वा कर] लानेवाला (कृणोतु) करे ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - शूर वीर पुरुष शत्रुओं को वश में करके नियमपूर्वक अपने विश्वासपात्र मित्रों द्वारा शत्रुओं से कर एकत्र करे ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(अग्ने) हे तेजस्विन् शूर (सहस्वान्) बलवान् (अभिभूः) अभिभविता। वशयिता (इत्) एव (अभि असि) अभिभवसि (नीचः) ऋत्विग्दधृक्। पा० ३।२।५९। नि+अञ्चु गतिपूजनयोः क्तिन्। अनिदितां हल उपधायाः ङ्किति। पा० ६।४।२४। इति नलोपः। अचः। पा० ६।४।१३८। शसि भसंज्ञायाम्। अकारलोपे। चौ। पा० ६।३।१३८। इति दीर्घः। नीचगतीन्। अधमान् (न्युब्ज) उब्ज आर्जवे, निपूर्वात् अधोमुखीकरणे। अधोमुखान् कुरु (द्विषतः) अप्रियकारिणः (सपत्नान्) शत्रून् (इयम्) (मात्रा) हुयामाश्रुभसिभ्यस्त्रन्। उ० ४।१३८। माङ् माने-त्रन्। मात्रा मानात्-निरु० ४।२५। परिमाणम् (मीयमाना) क्रियमाणा (मिता) निर्मिता (च) (सजातान्) समानजन्मनः। बन्धून् (ते) तुभ्यम् (बलिहृतः) बलेरुपायनस्य करस्य वा हारकान् प्रापकान् शत्रुसकाशात् (कृणोतु) करोतु ॥

०७ साकं सजातैः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

सा॒कं स॑जा॒तैः पय॑सा स॒हैध्युदु॑ब्जैनां मह॒ते वी॒र्या᳡य।
ऊ॒र्ध्वो नाक॒स्याधि॑ रोह वि॒ष्टपं॑ स्व॒र्गो लो॒क इति॒ यं वद॑न्ति ॥

०७ साकं सजातैः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. In company with thy fellows, be thou united with milk; urge her up
    unto great heroism; ascend aloft to the summit (viṣṭáp) of the
    firmament (nā́ka), which they call by the name heavenly world.
Notes

Addressed, according to the comm., to the sacrificer; the Kāuś. (61. 20)
makes it accompany the pouring of rice into the mortar. The comm.
explains ud ubja as ud gamaya unnataśiraskāṁ kuru. Ppp. reads
sujātāiṣ in a, and viṣṭapas in c.

Griffith

Increase with kinsmen and with all abundance: to mighty strength and power lift up this woman. Erect, rise upward to the sky’s high station, rise to the lofty world which men call Svarga.

पदपाठः

सा॒कम्। स॒ऽजा॒तैः। पय॑सा। स॒ह। ए॒धि॒। उत्। उ॒ब्ज॒। ए॒ना॒म्। म॒ह॒ते। वी॒र्या᳡य। ऊ॒र्ध्वः। नाक॑स्य। अधि॑। रो॒ह॒। वि॒ष्टप॑म्। स्वः॒ऽगः। लो॒कः। इति॑। यम्। वद॑न्ति। १.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे शूर !] (सजातेः साकम्) [साथियों] के साथ (पयसा सह) अन्न के सहित (एधि) वर्तमान हो, (एनाम्) इस [प्रजा-म० १] को (महते) बड़े (वीर्याय) वीर कर्म के लिये (उत् उब्ज) ऊँचा उठा। (ऊर्ध्वः) ऊँचा होकर तू (नाकस्य) [उस] आनन्द के (विष्टपम्) स्थान पर (अधि रोह) ऊँचा चढ़, (यम्) जिस [आनन्द] को (वदन्ति) वे [विद्वान्] बताते हैं−“(स्वर्गः लोकः इति) यह स्वर्ग लोक है ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - बुद्धिमान् पुरुष अपने भाई-बन्धुओं का अन्न आदि से सत्कार करके प्रजा की उन्नति करें और उनकी उन्नति से अपनी उन्नति करके पूर्ण आनन्द भोगें, जिसका नाम स्वर्ग लोक है ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(साकम्) सार्धम् (सजातैः) समानजन्मभिः। बन्धुभिः (पयसा) अन्नेन-निघ० २।७। (सः) (एधि) अस्तेर्लोटि। भव। वर्तस्व (उदुब्ज) उद्गमय। उन्नतां करु (एनाम्) प्रजाम्-म० १। (महते) प्रभूताय (वीर्याय) वीरकर्मणे (ऊर्ध्वः) उन्नतः सन् (नाकस्य) सुखस्य (अधि रोह) अधिरूढो भव (विष्टपम्) अ० —१०।१०।३१। विश प्रवेशने कप् प्रत्ययः तुडागमः। प्रवेशम्। आश्रयम् (स्वर्गः) सुखप्रापकः (लोकः) दर्शनीयः प्रदेशः (इति) (यम्) नाकम् (वदन्ति) कथयन्ति विद्वांसः ॥

०८ इयं मही

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इ॒यं म॒ही प्रति॑ गृह्णातु॒ चर्म॑ पृथि॒वी दे॒वी सु॑मन॒स्यमा॑ना।
अथ॑ गच्छेम सुकृ॒तस्य॑ लो॒कम् ॥

०८ इयं मही ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let this great one (mahī́) accept the hide, the divine earth, with
    favoring mind; then may we go to the world of the well-done.
Notes

This accompanies, as is plain, the spreading-out of the ox-hide upon the
ground (so Kāuś. 60. 30). Ppp. reads in b pṛthivyāi, and, at the
end, sukṛtām u lokam. The last pāda is the same with vi. 121. 1 d;
vii. 83. 4 d.

Griffith

May this great Earth receive the skin, this Goddess Prithivi, showing us her love and favour. Then may we go unto the world of virtue.

पदपाठः

इ॒यम्। म॒ही। प्रति॑। गृ॒ह्णा॒तु॒। चर्म॑। पृ॒थि॒वी। दे॒वी। सु॒ऽम॒न॒स्यमा॑ना। अथ॑। ग॒च्छे॒म॒। सु॒ऽकृ॒तस्य॑। लो॒कम्। १.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • विराड्गायत्री
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इयम्) यह (मही) बड़ी (देवी) श्रेष्ठगुणवाली, (सुमनस्यमाना) प्रसन्न मनवाली [प्रजा] (पृथिवी) पृथिवी पर (चर्म) विज्ञान (प्रति गृह्णातु) ग्रहण करे। (अथ) फिर (सुकृतस्य) धर्म के (लोकम्) समाज में (गच्छेम) हम जावें ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्रशस्त विज्ञानी लोग धर्मात्माओं के समाज में प्रतिष्ठा पाकर आनन्दयुक्त होवें ॥८॥इस मन्त्र का उत्तरभाग आ चुका है-अथर्व० ६।१२१।१। और ७।८३।४ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(इयम्) उपस्थिता (मही) महती (प्रतिगृह्णातु) स्वीकरोतु (चर्म) सर्वधातुभ्यो मनिन्। उ० ४।१४५। चर गतिभक्षणयोः मनिन्। विज्ञानम्-दयानन्दभाष्ये, यजु० ३०।१५। (पृथिवी) विभक्तेः सु। पृथिव्याम् (देवी) उत्तमगुणा (सुमनस्यमाना) भृशादिभ्यो भुव्यच्वेर्लोपश्च हलः। पा० ३।१।१२। सुमनस्-क्यङ्, शानच्। शुभचिन्तिका (अथ) अनन्तरम् (गच्छेम) प्राप्नुयाम (सुकृतस्य) पुण्यस्य (लोकम्) समाजम् ॥

०९ एतौ ग्रावाणौ

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ए॒तौ ग्रावा॑णौ स॒युजा॑ युङ्ग्धि॒ चर्म॑णि॒ निर्भि॑न्ध्यं॒शून्यज॑मानाय सा॒धु।
अ॒व॒घ्न॒ती नि ज॑हि॒ य इ॒मां पृ॑त॒न्यव॑ ऊ॒र्ध्वं प्र॒जामु॑द्भर॒न्त्युदू॑ह ॥

०९ एतौ ग्रावाणौ ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Join thou on the hide these two allied stones; split apart the shoots
    (aṅśú) successfully for the sacrificer; smiting down, smite them that
    would fight her; bearing up thy progeny aloft, lift up.
Notes

The feminine participles in c, d indicate that the verse is
addressed to the wife of the sacrificer, though the comm. understands
the first half as for the priest. Aṅśu he regards as applied by a
figure to the rice, as grāvāṇāu ‘soma-pressing-stones,’ means mortar
and pestle. ‘Smite down’ and ’lift up’ are the alternate movements of
the pestle, each viewed as symbolical. Imām is redundant in c as
regards both meter and sense; perhaps it has blundered in here out of
11 c. Ppp. is corrupt in c and d, but can be seen to read
uddharantī in d. The verse and its parts are quoted in Kāuś. 61.
18, 22, 24.

Griffith

Fix on the skin these two joined press-stones, duly rending the fibres for the sacrificer. Strike down and slay those who assail this woman, and elevating raise on high her offspring.

पदपाठः

ए॒तौ। ग्रावा॑णौ। स॒ऽयुजा॑। यु॒ङ्ग्धि॒। चर्म॑णि। निः। भि॒न्धि॒। अं॒शून्। यज॑मानाय। सा॒धु। अ॒व॒ऽघ्न॒ती। नि। ज॒हि॒। ये। इ॒माम्। पृ॒त॒न्यवः। ऊ॒र्ध्वम्। प्र॒ऽजाम्। उ॒त्ऽभर॑न्ती। उत्। ऊ॒ह। १.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • शक्वरातिजागतगर्भा जगती
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे सेना !] (एतौ) इन दोनों (सयुजा) आपस में मिले हुए (ग्रावाणौ) सिलबट्टों को (चर्मणि) विज्ञान में [होकर] (युङ्ग्धि) मिला और (यजमानाय) यजमान [श्रेष्ठ कर्म करनेवाले] के लिये (अंशून्) कणों को (साधु) सावधानी से (निः भिन्द्धि) कूट डाल। (अवघ्नती) मारती हुई तू [उन लोगों को] (नि जहि) मार डाल, (ये) जो (इमाम् प्रजाम्) इस प्रजा पर (पृतन्यवः) सेना चढ़ानेवाले हैं और [प्रजा को] (ऊर्ध्वम्) ऊँची ओर (उद्भरन्ती) उठाती हुई तू (उत् ऊह) ऊँचा विचार कर ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सेनापति को योग्य है कि जैसे सिलबट्टे से अन्न आदि कूटकर निःसार वस्तु निकालकर ससार पदार्थ ग्रहण करते हैं, वैसे ही सेना द्वारा शत्रुओं को मारकर श्रेष्ठों की रक्षा करे ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(एतौ) पुरोवर्तिनौ (ग्रावाणौ) उलूखलमुसलरूपौ धान्याद्यवहननप्रस्तरौ (सयुजा) सयुजौ। सहयुञ्जानौ (युङ्ग्धि) योजय (चर्मणि) विज्ञाने-म० ८ (निर्भिन्द्धि) निरन्तरं छिन्द्धि (अंशून्) अंश विभाजने-कु। अवयवान् (यजमानाय) श्रेष्ठकर्मकारकाय (साधु) यथा तथा। सुन्दररीत्या (अवघ्नती) अवहननं कुर्वती (नि जहि) नितरां नाशय तान् शत्रून् (ये) (इमाम्) समीपस्थाम् (पृतन्यवः) अ० ७।३४।१। सङ्ग्रामेच्छवः (ऊर्ध्वम्) उन्नतं यथा तथा (प्रजाम्) प्रजां प्रति (उद्भरन्ती) उन्नतां धरन्ती (उत्) उत्तमम् (ऊह) ऊह वितर्के। परस्मैपदं छान्दसम्। विचारय ॥

१० गृहाण ग्रावाणौ

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गृ॑हा॒ण ग्रावा॑णौ स॒कृतौ॑ वीर॒ हस्त॒ आ ते॑ दे॒वा य॒ज्ञिया॑ य॒ज्ञम॑गुः।
त्रयो॒ वरा॑ यत॒मांस्त्वं वृ॑णी॒षे तास्ते॒ समृ॑द्धीरि॒ह रा॑धयामि ॥

१० गृहाण ग्रावाणौ ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Seize in thy hand, O hero, the two joint-acting (sakṛ́t) stones;
    the worshipful gods have come to thy sacrifice; three boons, whichsoever
    thou choosest—those successes do I here make successful for thee.
Notes

The comm. and one or two of SPP’s authorities read sukṛ́tāu in a
(Ppp. sayujā); sakṛ́t is not elsewhere found used as an adjective.
Ppp. further combines hasta ā into hastā in a-b, and reads
yajñeyā and ayus in b. The comm. renders te in b as if it
were . ⌊The definition of the Anukr. may perhaps mean ‘a jagatī of
elevens (virāḍ-jagatī), which possesses a thirteen at the beginning,
(and which is) deficient-by-two (virāṭ).’⌋

Griffith

Grasp with thy hand, O man, the well-formed press-stones: the holy Gods have come unto thy worship. Three wishes of thy heart which thou electest, these happy gains for thee I here make ready.

पदपाठः

गृ॒हा॒ण। ग्रावा॑णौ। स॒ऽकृतौ॑। वी॒र॒। हस्ते॑। आ। ते॒। दे॒वाः। य॒ज्ञियाः॑। य॒ज्ञम्। अ॒गुः। त्रयः॑। वराः॑। य॒त॒मान्। त्वम्। वृ॒णी॒षे। ताः। ते॒। सम्ऽऋ॑ध्दीः। इ॒ह। रा॒ध॒या॒मि॒। १.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • पुरोऽतिजगती विराड्जगती
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वीर) हे वीर ! (सकृतौ) मिलकर काम करनेवाले दोनों (ग्रावाणौ) सिलबट्टों को (हस्ते) हाथ में (गृहाण) ले, (यज्ञियाः) पूजायोग्य (देवाः) देवता [विजयी लोग] (ते) तेरे (यज्ञम्) यज्ञ [श्रेष्ठ व्यवहार में] (आ अगुः) आये हैं। (त्रयः) तीन [स्थान, नाम और जन्म] (वराः) वरदान हैं, (यतमान्) जिन-जिन को (त्वम्) तू (वृणीषे) माँगता है, (ते) तेरे लिये (ताः) उन (समृद्धीः) समृद्धियों को (इह) यहाँ [संसार में] (राधयामि) मैं सिद्ध करता हूँ ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो पराक्रमी पुरुष सिल-बट्टे के समान मिलकर काम करे, सब पुण्यात्मा विजयी पुरुष उसका साथ देवें और वह अपने स्थान वा स्थिति, नाम वा कीर्ति और जन्म वा मनुष्यजन्म को सफल करे ॥१०॥भगवान् यास्कमुनि का वचन है−“धाम तीन होते हैं, स्थान नाम और जन्म निरु० ९।२८ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(गृहाण) स्वीकुरु (ग्रावाणौ) म० ९। अवहननपाषाणौ (सकृतौ) सहकर्मकर्तारौ (वीर) हे शूर (हस्ते) करे (ते) तव (देवाः) विजिगीषवः (यज्ञियाः) पूजार्हाः (यज्ञम्) श्रेष्ठव्यवहारम् (आ अगुः) इण् गतौ-लुङ्। आगमन् (त्रयः) स्थाननामजन्मरूपाः (वराः) वरणीयाः। प्रार्थनीयाः पदार्थाः (यतमान्) बहुषु यान् वरान् (त्वम्) (वृणीषे) याचसे (ताः) (ते) तुभ्यम् (समृद्धीः) सम्पत्तीः (इह) संसारे (राधयामि) संसाधयामि ॥

११ इयं ते

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इ॒यं ते॑ धी॒तिरि॒दमु॑ ते ज॒नित्रं॑ गृ॒ह्णातु॒ त्वामदि॑तिः॒ शूर॑पुत्रा।
परा॑ पुनीहि॒ य इ॒मां पृ॑त॒न्यवो॒ऽस्यै र॒यिं सर्व॑वीरं॒ नि य॑च्छ ॥

११ इयं ते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. This [is] thy thought (? dhītí) and this thy place of birth; let
    Aditi, of hero-sons, seize thee; cleanse away them that would fight her;
    confirm to her wealth with all heroes.
Notes

Said, according to Kāuś. (61. 23), in connection with taking up the
winnowing fan (śūrpa). The comm. explains dhīti as = pāna, taking
it from the root dhā ‘suck.’ One would like to derive it from dhā
‘put,’ as ‘place’ or something similar. Ppp. reads at the end ni
yachāt
.

Griffith

Here thy devotion is, here is thy birthplace. Aditi, Mother of brave sons, accept thee! Wipe away those who fight against this woman with wealth and store of goodly sons endow her.

पदपाठः

इ॒यम्। ते॒। धी॒तिः। इ॒दम्। ऊं॒ इति॑। ते॒। ज॒नित्र॑म्। गृ॒ह्णातु॑। त्वाम्। अदि॑तिः। शूर॑ऽपुत्रा। परा॑। पु॒नी॒हि॒। ये। इ॒माम्। पृ॒त॒न्यवः॑। अ॒स्यै। र॒यिम्। सर्व॑ऽवीरम्। नि। य॒च्छ॒। १.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • जगती
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे वीर !] (इयम्) यह (ते) तेरी (धीतिः) धारणशक्ति [वा कर्म] (उ) और (इदम्) यह (ते) तेरा (जनित्रम्) जन्म [मनुष्यजन्म] (त्वाम्) (गृह्णातु) सहारा देवे, [जैसे] (शूरपुत्रा) शूर पुत्रोंवाली (अदितिः) अदिति [अखण्ड व्रतवाली माता सन्तान का हित करती है।] (परा पुनीहि) [उन्हें] धो डाल [उन पर पानी फेर दे] (ये) जो [शत्रु] (इमाम्) इस [प्रजा] पर (पृतन्यवः) चढ़ाई करनेवाले हैं, (अस्यै) इस [प्रजा] को (सर्ववीरम्) सब वीरों से युक्त (रयिम्) धन (नि) नित्य (यच्छ) दे ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य के शुभ कर्म और शुभ विचार सदा उसका सहाय करते हैं, जैसे ब्रह्मचारिणी माता सन्तान का हित करती है और वह आत्मावलम्बी वीर सन्तान शत्रुओं का नाश करके प्रजा को धनी और बली बनाता है ॥११॥इस मन्त्र का चतुर्थ पाद-म० ३ में आ चुका है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(इयम्) (ते) तव (धीतिः) अ० ७।१।१। धीङ् आधारे-क्तिन्, यद्वा, दधातेः क्तिन्। धीतिभिः-कर्मभिः-निरु० ११।१६। धारणशक्तिः। आत्मावलम्बनम्। कर्म (इदम्) (उ) च (ते) तव (जनित्रम्) मनुष्यजन्म (गृह्णातु) धारयतु (त्वाम्) शूरम् (अदितिः) म० १। अखण्डव्रता माता (शूरपुत्रा) वीरपुत्रयुक्ता (परा पुनीहि) संशोधय (ये) (इमाम्) प्रजाम् (पृतन्यवः) म० ९। संग्रामेच्छवः। अन्यत् पूर्ववत्-म० ३ ॥

१२ उपश्वसे द्रुवये

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उ॑पश्व॒से द्रु॒वये॑ सीदता यू॒यं वि वि॑च्यध्वं यज्ञियास॒स्तुषैः॑।
श्रि॒या स॑मा॒नानति॒ सर्वा॑न्त्स्यामाधस्प॒दं द्वि॑ष॒तस्पा॑दयामि ॥

१२ उपश्वसे द्रुवये ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Sit ye in the wooden blower (? upaśvasá); be ye winnowed,
    worshipful ones, from the husks. By fortune (śrī́) may we surpass all
    [our] equals; I make [our] haters to fall under foot.
Notes

⌊The second half-verse recurs below, vs. 21.⌋ The majority of SPP’s
authorities, and some of ours (P.M.W.O.s.m.R.T.) read dhruváye ⌊Ppp.
druye⌋ in a; also the comm., who explains it as = dhruvāya
sthirāya satyaphalāya karmaṇe;
upaśvasé ⌊Ppp. upasvade⌋ he absurdly
takes for a verb: (he taṇḍulā yuṣmān) upa samīpa āśvāsayāmi prabhūtān
karomi!
LThe meaning ‘das Blasen, Luftzug,’ is assigned to it in OB.
iii. 257 b.⌋ ⌊Ppp. reads pādayema at the end of d.⌋ The verse
accompanies (so Kāuś. 61. 29) the operation of winnowing. The comm.
treats yajñiyāsas in b as nominative.

Griffith

Rest in the roaring frame of wood: be parted from husk and chaff, ye Sacrificial Fibres. May we surpass in glory all our rivals. I cast beneath my feet the men who hate us.

पदपाठः

उ॒प॒ऽश्व॒से। द्रु॒वये॑। सी॒द॒त॒। यू॒यम्। वि। वि॒च्य॒ध्व॒म्। य॒ज्ञि॒या॒स0952गः। तुषैः॑। श्रि॒या। स॒मा॒नान्। अति॑। सर्वा॑न्। स्या॒म॒। अ॒धः॒ऽप॒दम्। द्वि॒ष॒तः। पा॒द॒या॒मि॒। १.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यज्ञियासः) हे पूजनीयो पुरुषो ! (उपश्वसे) उत्तम जीवनवाले (द्रुवये) उद्योग के लिये (यूयम्) तुम (सीदत) बैठो और (तुषैः) तुष [बुस] से (वि विच्यध्वम्) अलग हो जाओ। (सर्वान्) सब (समानान्) समानों [तुल्य गुणवालों] से (श्रिया) लक्ष्मी द्वारा (अति स्याम) हम बढ़ जावें, (द्विषतः) शत्रुओं को (अधस्पदम्) पैरों के तले (पादयामि) मैं गिरा दूँ ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब वीर पुरुष मिलकर पराक्रम के साथ दोषों का नाश करें और शत्रुओं को मिटाकर अधिक-अधिक सम्पत्ति बढ़ावें ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(उपश्वसे) श्वस प्राणने-क्विप्। उत्तमजीवनयुक्ताय (द्रवये) द्रु गतौ, औणादिकः कि प्रत्ययः। गतये। उद्योगाय (सीदत) उपविशत (यूयम्) (वि) विविधम् (विच्यध्वम्) विचिर् पृथग्भावे। पृथग् भवत (यज्ञियासः) असुगागमः। हे पूजार्हाः (तुषैः) धान्यत्वग्भिः। बुषैः (श्रिया) संपत्या (समानान्) तुल्यगुणयुक्तान् (सर्वान्) (अति) अतीत्य (स्याम) भवेम (अधस्पदम्) अ० २।७।२। पादयोरधस्तात् (द्विषतः) शत्रून् (पादयामि) पातयामि ॥

१३ परेहि नारि

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परे॑हि नारि॒ पुन॒रेहि॑ क्षि॒प्रम॒पां त्वा॑ गो॒ष्ठोऽध्य॑रुक्ष॒द्भरा॑य।
तासां॑ गृह्णीताद्यत॒मा य॒ज्ञिया॒ अस॑न्वि॒भाज्य॑ धी॒रीत॑रा जहीतात् ॥

१३ परेहि नारि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Go away, woman; come back quickly; the stall (goṣṭhá) of the waters
    hath ascended thee for bearing; seize then of them ⌊f.⌋ whichever shall
    be worshipful; having shared [them] out wisely, then leave the others.
Notes

The comm. explains goṣṭha by jalarāśi; it is rather, doubtless, the
vessel in which the water is brought, on the shoulder or head
(adhi-ruh: comm. śirasi ā-ruh). ⌊Cf. OB. iii. 261 b.⌋ The comm.
reads āsan at end of c. Ppp. combines yajñiā ’san in c, and
in d reads vibhajya, and hvayīta for jahītāt. SPP. reads in
b goṣṭhó ‘dhy, with the majority of his authorities.

Griffith

Go, Dame, and quickly come again: the waters, enclosed, have mounted thee that thou mayst bear them. Take thou of these such as are fit for service: skilfully separating. leave the others.

पदपाठः

परा॑। इ॒हि॒। ना॒रि॒। पुनः॑। आ। इ॒हि॒। क्षि॒प्रम्। अ॒पाम्। त्वा॒। गो॒ऽस्थः। अधि॑। अ॒रु॒क्ष॒त्। भरा॑य। तासा॑म्। गृ॒ह्णी॒ता॒त्। य॒त॒माः। य॒ज्ञियाः॑। अस॑न्। वि॒ऽभाज्य॑। धी॒री। इत॑राः। ज॒ही॒ता॒त्। १.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (नारि) हे नरों की शक्तिवाली स्त्री ! तू (परा) पराक्रम के साथ (इहि) चल, (पुनः) अवश्य (क्षिप्रम्) शीघ्र (आ इहि) आ (अपाम्) विद्या में व्याप्त स्त्रियों के (गोष्ठः) समाज ने (भराय) पोषण के लिये (त्वा) तुझे (अधि अरुक्षत्) ऊपर चढ़ाया है। (तासाम्) उन [स्त्रियों] में (यतमाः) जो-जो (यज्ञियाः) पूजायोग्य [स्त्रियाँ] (असन्) होवें, [उन्हें] (गृह्णीतात्) ग्रहण कर और (धीरी) बुद्धिमती तू (इतराः) दूसरी [स्त्रियों] को (विभाज्य) अलग करके (जहीतात्) छोड़ दे ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब स्त्रियाँ विदुषी समाज बनाकर अधिक गुणवती स्त्री को अपनी प्रधाना बनावें, और प्रधाना की सम्मति से विदुषी स्त्रियों को चुनकर कार्य्यकर्त्री सभा स्थापित करें ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(परा) पराक्रमेण (इहि) गच्छ (नारि) अ० १।११।१। नर-अञ्, ङीन्। नराणामियं शक्तिमती स्त्री तत्सम्बुद्धौ-दयानन्दभाष्ये, यजु० ५।२६। (पुनः) अवधारणे (एहि) आगच्छ (क्षिप्रम्) शीघ्रम् (अपाम्) व्याप्तविद्यानां स्त्रीणाम्-दयानन्दभाष्ये, यजु० १०।७। (त्वा) त्वाम् (गोष्ठः) गावोऽनेका वाचस्तिष्ठन्त्यत्र। गोष्ठी। समाजः (अधि अरुक्षत्) रुह बीजजन्मनि प्रादुर्भावे च-लुङ्। आरूढवान् (भराय) पोषणाय (तासाम्) स्त्रीणाम् (गृह्णीतात्) गृहाण। स्वीकुरु (यतमाः) बह्वीषु याः (यज्ञियाः) पूजार्हाः (असन्) लेटि रूपम्। भवेयुः (विभाज्य) विविच्य (धीरी) धीमती (इतराः) अन्याः (जहीतात्) ओहाक् त्यागे। जहीहि। परित्यज ॥

१४ एमा अगुर्योषितः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

एमा अ॑गुर्यो॒षितः॒ शुम्भ॑माना॒ उत्ति॑ष्ठ नारि त॒वसं॑ रभस्व।
सु॒पत्नी॒ पत्या॑ प्र॒जया॑ प्र॒जाव॒त्या त्वा॑गन्य॒ज्ञः प्रति॑ कु॒म्भं गृ॑भाय ॥

१४ एमा अगुर्योषितः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. These maidens (yoṣít) have come, adorning themselves; stand up,
    woman, take hold of the mighty one; well-spoused with husband,
    progeny-possessing with progeny; to thee hath come the sacrifice;
    receive thou the vessel (kumbhá).
Notes

The comm. explains the ‘maidens’ as the ‘water-bringing women,’ but they
are evidently the waters (fem.) themselves: compare vss. 17, 27 below.
The comm. reads tava sam, two separate words, in b; ⌊Roth, in his
Notes, adds that Ppp. reads tavas saṁ bharasva⌋; the ‘mighty one’ is
the ‘vessel’ of d. Verses 13-15 are quoted in Kāuś. (60. 25-29), but
not in natural sequence with the verses that precede and follow.

Griffith

Hither these Dames have come in radiant beauty. Arise and seize= upon thy strength, O woman. To thee hath sacrifice come: take the pitcher, blest with a good lord, children, children’s children.

पदपाठः

आ। इ॒माः। अ॒गुः॒। यो॒षितः॑। शुम्भ॑मानाः। उत्। ति॒ष्ठ॒। ना॒रि॒। त॒वस॑म्। र॒भ॒स्व॒। सु॒ऽपत्नी॑। पत्या॑। प्र॒ऽजया॑। प्र॒जाऽव॑ती। आ। त्वा॒। अ॒ग॒न्। य॒ज्ञः। प्रति॑। कु॒म्भम्। गृ॒भा॒य॒। १.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इमाः) ये सब (शुम्भमानाः) शुभगुणोंवाली (योषितः) सेवायोग्य स्त्रियाँ (आ अगुः) आई हैं, (नारि) हे शक्तिमती स्त्री। (उत् तिष्ठ) खड़ी हो, (तवसम्) बलयुक्त व्यवहार को (रभस्व) आरम्भ कर। (पत्या) [श्रेष्ठ] पति के साथ (सुपत्नी) श्रेष्ठ पत्नी, (प्रजया) [उत्तम] सन्तान के साथ (प्रजावती) उत्तम सन्तानवाली [तू है], (यज्ञः) श्रेष्ठ व्यवहार (त्वा) तुझको (आ अगन्) प्राप्त हुआ है, तू (कुम्भम्) भूमि को पूरण करनेवाले [शुभ व्यवहार] को (प्रति गृभाय) स्वीकार कर ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस गुणवती स्त्री को गुणवती स्त्रियाँ प्रधाना बनावें, वह अपने गुणी पति और सन्तानों के साथ आनन्द करती हुई सबको सुखी रक्खे ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४−(आ अगुः) आगमन् (इमाः) (योषितः) अ० १।१७।१। सेव्याः स्त्रियः (शुम्भमानाः) शोभनगुणवत्यः (उत्तिष्ठ) उत्थिता भव (नारि) म० १३। हे शक्तिमति स्त्रि (तवसम्) तवस्-अर्शआद्यच्। तवो बलनाम-निघ० २।९। बलयुक्तं व्यवहारम् (रभस्व) आरम्भितं कुरु (सुपत्नी) पत्नीनां श्रेष्ठतमा (पत्या) श्रेष्ठसन्तानेन सह (प्रजावती) उत्तमसन्तानयुक्ता (त्वा) त्वाम् (आ अगन्) प्रापत् (यज्ञः) श्रेष्ठव्यवहारः (कुम्भम्) अ० १।६।४। कु+उम्भ पूरणे-अच्, शकन्ध्वादिरूपम्। कुं भूमिमुम्भति पूरयति यस्तं श्रेष्ठव्यवहारम् (प्रतिगृभाय) प्रतिगृहाण। स्वीकुरु ॥

१५ ऊर्जो भागो

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ऊ॒र्जो भा॒गो निहि॑तो॒ यः पु॒रा व॒ ऋषि॑प्रशिष्टा॒प आ भ॑रै॒ताः।
अ॒यं य॒ज्ञो गा॑तु॒विन्ना॑थ॒वित्प्र॑जा॒विदु॒ग्रः प॑शु॒विद्वी॑र॒विद्वो॑ अस्तु ॥

१५ ऊर्जो भागो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The portion of refreshment (ū́rj) [is] set down which [is]
    yours of old; do thou, instructed by the seer, bring these waters; let
    this sacrifice be for you progress-gaining (gātu-víd), refuge-gaining,
    progeny-gaining, formidable, cattle-gaining, hero-gaining.
Notes

‘Thou’ in b is fem., the water-bearer, doubtless, of vs. 13. The
‘yours’ of a and the ‘you’ of d refer probably to those
interested in the ceremony, though the comm. understands the former of
the waters. Ppp. reads nihatas in a, combines and reads -ṣṭā ’pā
’harāi ’tāḥ
in b, puts nāthavid before gātuvid in c, and
elides vo ‘stu in d.

Griffith

Instructed by the Rishis, bring those waters, the share of strength which was of old assigned you. Let this effectual sacrifice afford you protection, fortune, off- spring, men, and cattle.

पदपाठः

ऊ॒र्जः। भा॒गः। निऽहि॑तः। यः। पु॒रा। वः॒। ऋषि॑ऽप्रशिष्टा। अ॒पः। आ। भ॒र॒। ए॒ताः। अ॒यम्। य॒ज्ञः। गा॒तु॒ऽवित्। ना॒थ॒ऽवित्। प्र॒जा॒ऽवित्। उ॒ग्रः। प॒शु॒ऽवित्। वी॒र॒ऽवित्। वः॒। अ॒स्तु॒। १.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • भुरिक्त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे विदुषी स्त्रियो ! यही] (ऊर्जः) पराक्रम का (भागः) सेवनीय व्यवहार है, (यः) जो (पुरा) पहिले (वः) तुम्हारे लिये (निहितः) ठहराया गया है, [हे प्रधाना !] (ऋषिप्रशिष्टा) ऋषियों [माता, पिता और आचार्य्या] से शिक्षित तू (एताः) इन (अपः) विद्या में व्याप्त स्त्रियों को (आ) सब ओर से (भर) पुष्ट कर। [हे स्त्रियो !] (अयम्) यह (उग्रः) तेजस्वी (यज्ञः) यज्ञ [श्रेष्ठ व्यवहार] (गातुवित्) मार्ग देनेवाला, (नाथवित्) ऐश्वर्य पहुँचानेवाला, (प्रजावित्) प्रजाएँ देनेवाला, (पशुवित्) [गौ घोड़ा आदि] पशुओं का पहुँचानेवाला, (वीरवित्) वीरों का लानेवाला (वः) तुम्हारे लिये (अस्तु) होवे ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विदुषी सुशिक्षित स्त्रियाँ ईश्वरनियम से समाज द्वारा सब प्रकार का ऐश्वर्य प्राप्त करें ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १५−(ऊर्जः) पराक्रमस्य (भागः) सेवनीयो व्यवहारः (निहितः) स्थापितः (यः) (पुरा) पूर्वकाले (वः) युष्मभ्यम् (ऋषिप्रशिष्टा) शासु अनुशिष्टौ-क्त। मातापित्राचार्याभिः शिक्षिता (अपः) म० १३। व्याप्तविद्याः स्त्रीः (आ) समन्तात् (भर) पोषय (एताः) स्त्रीः (अयम्) (यज्ञः) श्रेष्ठव्यवहारः (गातुवित्) सुमार्गस्य लम्भयिता (नाथवित्) ऐश्वर्यस्य प्रापकः (प्रजावित्) प्रजानां प्रापकः (उग्रः) तेजस्वी (पशुवित्) गवाश्वादीनां लम्भकः (वीरवित्) वीराणां प्रापयिता (वः) युष्मभ्यम् (अस्तु) भवतु ॥

१६ अग्ने

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अग्ने॑ च॒रुर्य॒ज्ञिय॒स्त्वाध्य॑रुक्ष॒च्छुचि॒स्तपि॑ष्ठ॒स्तप॑सा तपैनम्।
आ॑र्षे॒या दै॒वा अ॑भिसं॒गत्य॑ भा॒गमिमं तपि॑ष्ठा ऋ॒तुभि॑स्तपन्तु ॥

१६ अग्ने ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O Agni, the worshipful pot hath ascended thee; bright (śúci), very
    hot, do thou heat it with heat; let those of the seers, those of the
    gods, gathering unto their share, very hot, heat this with the seasons.
Notes

The comm. understands the epithets in b as belonging to carús,
which is doubtless wrong; those in c he understands of ‘Brahmans’
and ‘attendants on Indra and the other gods’; without much question, the
flames of Agni are intended. Ppp. reads in c devā ’bhisaṁhatya.
The verse plainly accompanies the setting of the vessel for boiling on
the fire: so Kāuś. 61. 31; also 2. 7.

Griffith

Agni, on thee the sacrificial caldron hath mounted: shining,. fiercely flaming, heat it. May hottest flames, divine, sprung from the Rishis, gathering, with the Seasons, heat this portion.

पदपाठः

अग्ने॑। च॒रुः। य॒ज्ञियः॑। त्वा॒। अधि॑। अ॒रु॒क्ष॒त्। शुचिः॑। तपि॑ष्ठः। तप॑सा। त॒प॒। ए॒न॒म्। आ॒र्षे॒याः। दै॒वाः। अ॒भि॒ऽसं॒गत्य॑। भा॒गम्। इ॒मम्। तपि॑ष्ठाः। ऋ॒तुऽभिः॑। त॒प॒न्तु॒। १.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • भुरिक्त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे विद्वान् ! (यज्ञियः) पूजायोग्य (चरुः) ज्ञान ने (त्वा) तुझे (अधि अरुक्षत्) ऊँचा चढ़ाया है, (शुचिः) शुद्ध आचरणवाला, (तपिष्ठः) अतिशय तपवाला तू (तपसा) [ब्रह्मचर्य आदि] तप से (एनम्) इस [ज्ञान] को (तप) तपा [उपकार में ला]। (आर्षेयाः) ऋषियों में विख्यात, (दैवाः) उत्तम गुणवाले (तपिष्ठाः) बड़े तपस्वी लोग (अभिसंगत्य) सर्वथा मिलकर (इमम्) इस (भागम्) सेवनीय [ज्ञान] को (ऋतुभिः) ऋतुओं के साथ (तपन्तु) तपावें [उपकार में लावें] ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे विद्वान् ब्रह्मचर्य, जितेन्द्रियता आदि तपश्चरण से प्रख्यात होकर उपकार करके उन्नति करते आये हैं, वैसे ही सब विद्वान् लोग मिलकर संसार में शुभगुणों से उपकार करें ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६−(अग्ने) हे विद्वन् (चरुः) भृमृशीङ्तृचरि० उ० १।७। चर गतिभक्षणयोः-उ। चरुर्मेघनाम-निघ० १।१०। चरुर्मृच्चयो भवति चरतेर्वा समुचन्त्यस्मादापः-निरु० ६।११। चरुं ज्ञानलाभं मेघं वा-दयानन्दभाष्ये, ऋक्० १।७।६। बोधः (यज्ञियः) पूजार्हः (त्वा) ब्रह्मचारिणम् (अधि अरुक्षत्) उन्नतं कृतवान् (शुचिः) शुद्धस्वभावः (तपिष्ठः) तप्तृ-इष्ठन्। तुरिष्ठेमेयस्सु। पा० ६।४।१५४। तृलोपः। तप्तृतमः। अतिशयेन तपस्वी (तपसा) ब्रह्मचर्यादितपश्चरणेन (तप) तप्तमुपकृतं कुरु (एनम्) बोधम् (आर्षेयाः) ढश्छन्दसि। पा० ४।४।१०६। इति ऋषिः-ढ प्रत्ययो बाहुलकात्। ऋषिषु विख्यात आर्षेयः महीधरभाष्ये, यजु० ७।४६। आर्षेय, ऋषिषु साधुस्तत्सम्बुद्धौ-दयानन्दभाष्ये, यजु० २१।६१। ऋषिषु विख्याताः साधवो वा (दैवाः) दिव्यगुणयुक्ताः (अभिसंगत्य) सर्वतो मिलित्वा (भागम्) सेवनीयं बोधम् (इमम्) (तपिष्ठाः) तप्तृतमाः। तपस्वितमाः (ऋतुभिः) वसन्तादिकालविशेषैः (तपन्तु) तप्तमुपकृतं कुर्वन्तु ॥

१७ शुद्धाः पूता

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शु॒द्धाः पू॒ता यो॒षितो॑ य॒ज्ञिया॑ इ॒मा आप॑श्च॒रुमव॑ सर्पन्तु शु॒भ्राः।
अदुः॑ प्र॒जां ब॑हु॒लान्प॒शून्नः॑ प॒क्तौद॒नस्य॑ सु॒कृता॑मेतु लो॒कम् ॥

१७ शुद्धाः पूता ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let these cleansed, purified, worshipful maidens, the waters,
    beauteous ones, creep down to the pot; they have given us abundant
    progeny, cattle; let the cooker of the rice-dish go to the world of the
    well-doers.
Notes

⌊Pāda a is identical with vs. 27 a and vi. 122. 5 a.⌋ The
mss. are about equally divided in c between bahulā́m and bahulā́n
(our I.T.K.Kp. have the latter; O. has -lāṁn); SPP. accepts the
latter, we the former; the comm. has -lān; and he reads pakvā for
paktā in d ⌊or c⌋. Ppp. has dadat for adus in c, and
eti for etu in d. The verse concerns the pouring in of the
water: so Kāuś. 61. 34-5, and 2. 8.—⌊If we read bahulā́ṅś ca in c,
and in d pakvāúdanasya as a compound (against the pada-division,
which reckons paktā́ to c, and against the double accent) and u for
etu, we get most acceptable sense and meter: lokám would be
construed as coördinate with paśū́n and pakvāúdanasya as coördinate
with nas (cf. xi. 8. 10 c and Speyer, Vedische Syntax, §71,
end). The heroic surgery implies no worse corruptions than we have often
seen. But this is all mere suggestion.⌋

Griffith

Purified, bright, and holy, let these Women, these lucid waters glide into the caldron. Cattle and many children may they give us. May he who cooks. the Odana go to heaven.

पदपाठः

शु॒ध्दाः। पू॒ताः। यो॒षितः॑। य॒ज्ञियाः॑। इ॒माः। आपः॑। च॒रुम्। अव॑। स॒र्प॒न्तु॒। शु॒भ्राः। अदुः॑। प्र॒ऽजाम्। ब॒हु॒लान्। प॒शून्। नः॒। प॒क्ता। ओ॒द॒नस्य॑। सु॒ऽकृता॑म्। ए॒तु॒। लो॒कम्। १.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • विराड्जगती
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शुद्धाः) शुद्धस्वभाववाली, (पूताः) पवित्र आचरणवाली, (यज्ञियाः) पूजनीय (योषितः) सेवायोग्य, (शुभ्राः) चरित्रवाली (इमाः) यह (आपः) विद्या में व्याप्त स्त्रियाँ (चरुम्) ज्ञान को (अव) निश्चय करके (सर्पन्तु) प्राप्त हों। इन [शिक्षित स्त्रियों] ने (नः) हमें (प्रजाम्) सन्तान और (बहुलान्) बहुविध (पशून्) [गौ भैंस आदि] पशु (अदुः) दिये हैं, (ओदनस्य) सुख बरसानेवाले [वा मेघरूप परमेश्वर] का (पक्ता) पक्का [मन में दृढ़] करनेवाला मनुष्य (सुकृताम्) सुकर्मियों के (लोकम्) समाज को (एतु) पहुँचे ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - गुणवती स्त्रियों के शुभ प्रबन्ध से उत्तम सन्तान और उत्तम गौ, भैंस, बकरी आदि उपकारी पशु घर में होते हैं और परमेश्वर की आज्ञा पालनेवाला पुरुष अवश्य प्रतिष्ठा पाता है ॥१७॥इस मन्त्र का पहिला पाद आ चुका है-अ० ६।१२२।५ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७−(शुद्धाः) निर्मलस्वभावाः (पूताः) पवित्राचाराः (योषितः) अ० १।१७।१। सेव्याः स्त्रियः (यज्ञियाः) पूजार्हाः (आपः) म० १३। व्याप्तविद्याः स्त्रियः (चरुम्) म० १६। बोधम् (सर्पन्तु) गच्छन्तु। प्राप्नुवन्तु (शुभ्रः) शुभचरित्राः (अदुः) प्रायच्छन् (प्रजाम्) सन्तानम् (बहुलान्) (बहून्) (पशून्) गोमहिष्याद्यान् (नः) अस्मभ्यम् (पक्ता) दृढकर्त्ता (ओदनस्य) अ० ९।५।१९। सुखस्य सेचकस्य वर्षकस्य मेघरूपस्य वा परमेश्वरस्य (सुकृताम्) पुण्यकर्मिणाम् (एतु) प्राप्नोतु (लोकम्) दर्शनीयं समाजम् ॥

१८ ब्रह्मणा शुद्धा

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ब्रह्म॑णा शु॒द्धा उ॒त पू॒ता घृ॒तेन॒ सोम॑स्यां॒शव॑स्तण्डु॒ला य॒ज्ञिया॑ इ॒मे।
अ॒पः प्र वि॑शत॒ प्रति॑ गृह्णातु वश्च॒रुरि॒मं प॒क्त्वा सु॒कृता॑मेत लो॒कम् ॥

१८ ब्रह्मणा शुद्धा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Cleansed with prayer (bráhman) and purified with ghee, shoots of
    Soma [are] these worshipful rice-grains; enter ye the waters; let the
    pot receive you; having cooked this, go ye to the world of the
    well-doers.
Notes

A few mss. (including our O.) read etu for eta in d. Ppp. has
instead eti; further, in a, utpūtās, and, in c, apa
praviśyatu
. The verse accompanies the pouring of the rice-grains into
the water; so Kāuś. 61. 36, and 2. 9. ⌊Read somāṅśā́vas?⌋ ⌊The Anukr.
seems to scan as 12 + 13: 12 + 13 = 50; but the mark of pāda-division is
after carur, not before it.⌋

Griffith

Ye, Sacrificial Rice and Soma Fibres, cleansed and made pure by prayer and molten butter. Enter the water: let the caldron take you. May he who dresses this ascend to heaven.

पदपाठः

ब्रह्म॑णा। शु॒ध्दाः। उ॒त। पू॒ताः। घृ॒तेन॑। सोम॑स्य। अं॒शवः॑। त॒ण्डु॒लाः। य॒ज्ञियाः॑। इ॒मे। अ॒पः। प्र। वि॒श॒त॒। प्रति॑। गृ॒ह्णा॒तु॒। वः॒। च॒रुः। इ॒मम्। प॒क्त्वा। सु॒ऽकृता॑म्। ए॒ते॒। लो॒कम्। १.१८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • अतिजागतगर्भा परातिजागता विराडतिजगती
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ब्रह्मणा) वेद द्वारा (शुद्धाः) शुद्ध किये गये (उत) और (घृतेन) ज्ञानप्रकाश से (पूताः) पवित्र किये हुए, (सोमस्य) ऐश्वर्य के (अंशवः) बाँटनेवाले (यज्ञियाः) पूजनीय, (तण्डुलाः) दुःखभञ्जक (इमे) यह तुम (अपः) प्रजाओं में (प्र विशत्) प्रवेश करो, (चरुः) ज्ञान (वः) तुमको (प्रतिगृह्णातु) ग्रहण करे, (इमम्) इस [ज्ञान] को (पक्त्वा) पक्का करके (सुकृताम्) सुकर्मियों के (लोकम्) समाज को (एत) जाओ ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य वैदिक ज्ञान से शुद्ध आचरणवाले होकर संसार में प्रवेश करते हैं, वे पुण्यात्माओं के साथ आनन्द पाते हैं ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १८−(ब्रह्मणा) ब्रह्मज्ञानेन (शुद्धाः) शोधिताः (उत) अपि च (पूताः) पवित्राः (घृतेन) ज्ञानप्रकाशेन (सोमस्य) ऐश्वर्यस्य (अंशवः) अंश विभाजने-कु। विभाजकाः (तण्डुलाः) अ० १०।६।२६। तडि आघाते-उलच्। दुःखभञ्जकाः (यज्ञियाः) पूजार्हाः (इमे) समीपस्थाः (अपः) आपः, आप्ताः प्रजाः-दयानन्दभाष्ये, यजु० ६।२७। प्रजागणान् (प्र विशत्) (प्रतिगृह्णातु) स्वीकरोतु (चरुः) म० १६। बोधः (इमम्) बोधम् (पक्त्वा) पक्वं दृढं कृत्वा (सुकृताम्) सुकर्मिणाम् (एत) तप्तनप्तनथनाश्च। पा० ७।१।४५। इण् गतौ तस्य स्थाने तप्। इत। गच्छत (लोकम्) समाजम् ॥

१९ उरुः प्रथस्व

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

उ॒रुः प्र॑थस्व मह॒ता म॑हि॒म्ना स॒हस्र॑पृष्ठः सुकृ॒तस्य॑ लो॒के।
पि॑ताम॒हाः पि॒तरः॑ प्र॒जोप॒जाऽहं प॒क्ता प॑ञ्चद॒शस्ते॑ अस्मि ॥

१९ उरुः प्रथस्व ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Spread thyself broad, with great greatness, thousand-backed, in the
    world of the well-done: grandfathers, fathers, progeny, descendants
    (upajā́): I am thy fifteen-fold cooker.
Notes

Fifteen-fold ⌊cf. Skt. Gram. §488⌋, probably, as representing so many
generations, or degrees of kindred. The verse accompanies the boiling
⌊Kāuś. 61. 37: employed also in connection with other verses at 68. 27⌋,
and alludes apparently to the swelling of the mess in the process. Ppp.
combines te ‘smi at the end. The mss. vary between paktā́ and
paktvā́ in d (our T.K.Kp. have -tā́) SPP. reads paktā́, with the
large majority of his authorities, and it is doubtless the true reading.
The comm. has again pakvā. ⌊Correct the Berlin ed. to paktā́.⌋

Griffith

Expand thyself abroad in all thy greatness, with thousand Prish- thas, in the world of virtue. Grandfathers, fathers, children, and descendants, fifteenth am I to thee when I have dressed it.

पदपाठः

उ॒रुः। प्र॒थ॒स्व॒। म॒ह॒ता। म॒हि॒म्ना। स॒हस्र॑ऽपृष्ठः। सु॒ऽकृ॒तस्य॑। लो॒के। पि॒ता॒म॒हाः। पि॒तरः॑। प्र॒ऽजा। उ॒प॒ऽजा। अ॒हम्। प॒क्ता। प॒ञ्च॒ऽद॒शः। ते॒। अ॒स्मि॒। १.१९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे परमात्मन् !] (महता) बड़ी (महिम्ना) महिमा से (उरुः) विस्तृत और (सहस्रपृष्ठः) सहस्रों स्तोत्रवाला तू (सुकृतस्य) सुकर्म के (लोके) समाज में (प्रथस्व) प्रसिद्ध हो। (पितामहाः) पितामह [पिता के पिता] आदि, (पितरः) पिता आदि [सब गुरुजन], (प्रजा) सन्तान, और (उपजा) सन्तान के सन्तान [ये हैं] (पञ्चदशः) [पाँच प्राण, अर्थात् प्राण, अपान, व्यान, समान और उदान+पाँच इन्द्रिय अर्थात् श्रोत्र, त्वचा, नेत्र, रसना और घ्राण+पाँच भूत अर्थात् भूमि, जल, अग्नि, वायु, और आकाश इन] पन्द्रह पदार्थवाला जीवात्मा (अहम्) मैं (ते) तेरा (पक्ता) पक्का [अपने हृदय में दृढ़] करनेवाला (अस्मि) हूँ ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य को योग्य है कि परमेश्वर की आज्ञा पालन करके संसार में अपने बड़ों और छोटों के साथ सुकर्मी होकर आनन्द भोगें ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १९−(उरुः) विस्तीर्णः (प्रथस्व) प्रख्यातो भव (महता) अधिकेन (महिम्ना) महत्त्वेन (सहस्रपृष्ठः) तिथपृष्ठगूथयूथप्रोथाः। उ० २।१२। पृषु सेचने-थक्। पृष्ठं शरीरस्य पश्चाद्भागः स्तोत्रं वा। सहस्राणि स्तोत्राणि यस्य सः परमेश्वरः (सुकृतस्य) सुकर्मणः (लोके) समाजे (पितामहाः) अ० ५।५।१। पितुः पितृतल्याः पितामहादयः (पितरः) पितृसदृशा माननीयाः (प्रजा) सन्तानः (उपजा) सन्तानस्य सन्तानः (अहम्) प्राणी (पक्ता) मनसि दृढकर्ता (पञ्चदशः) अ० ८।९।—१५। संख्याऽव्ययासन्नादूराधिकसंख्याः संख्येये। पा० २।२।२५। इति पञ्चाधिका दश यत्र स पञ्चदशः। बहुव्रीहौ संख्येये डजबहुगणात्। पा० ५।४।७३। पञ्चदशन्-डच्। पञ्चप्राणेन्द्रियभूतानि यस्मिन् स जीवात्मा (ते) तव (अस्मि) ॥

२० सहस्रपृष्ठः शतधारो

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स॒हस्र॑पृष्ठः श॒तधा॑रो॒ अक्षि॑तो ब्रह्मौद॒नो दे॑व॒यानः॑ स्व॒र्गः।
अ॒मूंस्त॒ आ द॑धामि प्र॒जया॑ रेषयैनान्बलिहा॒राय॑ मृडता॒न्मह्य॑मे॒व ॥

२० सहस्रपृष्ठः शतधारो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thousand-backed, hundred-streamed, unexhausted, [is] the
    brahmán-rice-dish, god-traveled, heaven-going; them yonder I assign to
    thee; lessen (?) thou them with progeny; be gracious then to me [as]
    bringer of tribute.
Notes

Kāuś. makes no use of this parenthetical verse of praise, prayer, and
imprecation. The comm. and two of SPP’s authorities read reśaya in
c, and the comment to Prāt. iii. 94 (though reading reṣayāi ’nān)
quotes it as an example of a palatal or lingual or dental mute
interposed between r and n, which would seem to imply recaya.*
The comm. glosses his reśaya with leśaya alpīkuru, and, as the
expression looks as if meant for the opposite to that in vs. 21 a,
the translation has been made accordingly. ⌊Ppp. reads akṣato at end
of a.⌋ ⌊Where the Anukr. finds a pāda of 13 syllables I know
not.—The one of 14 must be c: does para mean simply the second
half-verse?⌋ *⌊That is, it implies the mute (c) rather than the
sibilant (ś), the intervention of which was treated in the preceding
rule, iii. 93.⌋

Griffith

With thousand streams and Prishthas, undecaying, Brahmaudana is celestial, God-reaching. Those I give up to thee with all their children. Force them to tribute, but to me be gracious.

पदपाठः

स॒हस्र॑ऽपृष्ठः। श॒तऽधा॑रः। अक्षि॑तः। ब्र॒ह्म॒ऽओ॒द॒नः। दे॒व॒ऽयानः॑। स्वः॒ऽगः। अ॒मून्। ते॒। आ। द॒धा॒मि॒। प्र॒ऽजया॑। रे॒ष॒य॒। ए॒ना॒न्। ब॒लि॒ऽहा॒राय॑। मृ॒ड॒ता॒त्। मह्य॑म्। ए॒व। १.२०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • अतिजागतगर्भा परशाक्वरा चतुष्पदा भुरिग्जगती
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सहस्रपृष्ठः) सहस्रों स्तोत्रवाला (शतधारः) बहुविध जगत् का धारण करनेवाला, (अक्षितः) क्षयरहित, (देवयानः) विद्वानों से पाने योग्य, (स्वर्गः) आनन्द पहुँचानेवाला, (ब्रह्मौदनः) ब्रह्म-ओदन [वेदज्ञान, अन्न वा धन का बरसानेवाला, तू परमात्मा है]। (अमून्) उन [वैरियों] को (ते) तुझे (आ दधामि) सौंपता हूँ, (एनान्) इन [शत्रुओं] को (प्रजया) [उनकी] प्रजासहित (रेषय) नाश करा, (मह्यम्) मुझे (बलिहाराय) सेवा विधि स्वीकार करने के लिये (एव) ही (मृडतात्) सुख दे ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमात्मा के दिव्य गुणों को अनेक प्रकार साक्षात् करके अपने दोषों को उनकी प्रजासहित, अर्थात् दोषों से उत्पन्न दोषों सहित, विचारपूर्वक नाश करके संसार की सेवा करे ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २०−(सहस्रपृष्ठः) बहुस्तोत्रयुक्तः (शतधारः) शतं बहुविधं जगद् धरतीति यः (अक्षितः) अक्षीणः (ब्रह्मौदनः) म० १। ब्रह्मणो वेदज्ञानस्यान्नस्य धनस्य वा सेचको वर्षकः परमात्मा (देवयानः) विद्वद्भिः प्राप्यः (स्वर्गः) सुखस्य गमयिता प्रापकः (अमून्) शत्रून् (ते) तुभ्यम् (आ दधामि) समर्पयामि (प्रजया) सन्तानेन सह (रेषय) हिंसय (एनान्) अरीन् (बलिहाराय) हृञ् स्वीकरणे-घञ्। बलेः सेवाविधेः स्वीकरणाय (मृडतात्) सुखं देहि (मह्यम्) उपासकाय (एव) निश्चयेन ॥

२१ उदेहि वेदिम्

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उ॒देहि॒ वेदिं॑ प्र॒जया॑ वर्धयैनां नु॒दस्व॒ रक्षः॑ प्रत॒रं धे॑ह्येनाम्।
श्रि॒या स॑मा॒नानति॒ सर्वा॑न्त्स्यामाधस्प॒दं द्वि॑ष॒तस्पा॑दयामि ॥

२१ उदेहि वेदिम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Go thou up to the sacrificial hearth; increase her with progeny;
    push [away] the demon; set her further forward; by fortune may we
    surpass all [our] equals; I make [our] haters to fall under foot.
Notes

The last half-verse is the same with vs. 12 c, d above. The whole
evidently accompanies the bringing of the cooked dish to the place of
offering: according to Kāuś. 61. 41, its removal from the fire. Ppp.
reads enam at end of a, pratiraṁ dhehy enam at end of b,
paśyā for śriyā in c, and pādayema ⌊cf. vs. 12⌋ at end of
d.

Griffith

Rise to the altar: bless this dame with offspring. Promote this woman; drive away the demons. May we surpass in glory all our rivals. I cast beneath my feet the men who hate us.

पदपाठः

उ॒त्ऽएहि॑। वेदि॑म्। प्र॒ऽजया॑। व॒र्ध॒य॒। ए॒ना॒म्। नु॒दस्व॑। रक्षः॑। प्र॒ऽत॒रम्। धे॒हि॒। ए॒ना॒म्। श्रि॒या। स॒मा॒नान्। अति॑। सर्वा॑न्। स्या॒म॒। अ॒धः॒ऽप॒दम्। द्वि॒ष॒तः। पा॒द॒या॒मि॒। १.२१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • विराड्जगती
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे परमात्मन् !] (वेदिम्) वेदी पर [यज्ञभूमिरूप हृदय में] (उदेहि) उदय हो (प्रजया) सन्तान के साथ (एनाम्) इस [प्रजा अर्थात् मुझ] को (वर्धय) बढ़ा, (रक्षः) राक्षस [विघ्न] को (नुदस्व) हटा, (एनाम्) इस [प्रजा अर्थात् मुझ] को (प्रतरम्) अधिक उत्तमता से (धेहि) पुष्ट कर। (सर्वान्) सब (समानान्) समानों [तुल्य गुणवालों] से (श्रिया) लक्ष्मीद्वारा (अति स्याम) हम बढ़ जावें, (द्विषतः) शत्रुओं को (अधस्पदम्) पैरों के तले (पादयामि) मैं गिरा दूँ ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमात्मा को अपने हृदय में विद्यमान जानते हैं, वे अपने सन्तानों सहित उन्नति करके विघ्नों को हटाकर सुख पाते हैं ॥२१॥इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध-म० १२ में आ चुका है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २१−(उदेहि) उदागच्छ (वेदिम्) अ० ५।२२।१। यज्ञभूमिम् (प्रजया) सन्तानेन सह (वर्धय) समर्धय (एनाम्) प्रजाम्, मामित्यर्थः (नुदस्व) प्रेरय (रक्षः) यज्ञविघातकं विघ्नम् (धेहि) पोषय (एनाम्) अन्यत् पूर्ववत्-म० १३ ॥

२२ अभ्यावर्तस्व पशुभिः

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अ॒भ्याव॑र्तस्व प॒शुभिः॑ स॒हैनां॑ प्र॒त्यङे॑नां दे॒वता॑भिः स॒हैधि॑।
मा त्वा॒ प्राप॑च्छ॒पथो॒ माभि॑चा॒रः स्वे क्षेत्रे॑ अनमी॒वा वि रा॑ज ॥

२२ अभ्यावर्तस्व पशुभिः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Turn thou toward her together with cattle; be opposite to her
    together with the divinities; let not curse attain thee, nor witchcraft
    (abhicārá); bear rule (vi-rāj) in thine own field (kṣétra), free
    from disease.
Notes

The comm. reads enān in both a and b. ⌊All⌋ pada-mss. read
anamīvā́ḥ in d ⌊save SPP’s J. prima manu: W’s translation and the
comm. imply -vā́, and this SPP. has adopted as his pada-reading⌋.
Ppp. has in a prajayā sahāi ’nam, and, for c, d, a very
different (and corrupt) text: svargo lokam abhi saṁvihīnam ādityo deva
parame vyoma;
⌊its b is corrupt⌋. According to Kāuś. 61. 42, with
this verse the vessel is made to take a turn to the right. In b the
duplication of before enām is overlooked in nearly all the mss.,
and SPP. admits in his text the ungrammatical combination.

Griffith

Approach this woman here with store of cattle: together with the deities come to meet her. Let not a curse or imprecation reach thee: in thine own seat shine forth exempt from sickness.

पदपाठः

अ॒भि॒ऽआव॑र्तस्व। प॒शुऽभिः॑। स॒ह। ए॒ना॒म्। प्र॒त्यङ्। ए॒ना॒म्। दे॒वता॑भिः। स॒ह। ए॒धि॒। मा। त्वा॒। प्र। आ॒प॒त्। श॒पथः॑। मा। अ॒भि॒ऽचा॒रः। स्वे। क्षेत्रे॑। अ॒न॒मी॒वा। वि। रा॒ज॒। १.२२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे जीव !] (पशुभिः सह) सब दृष्टिवाले प्राणियों के साथ [मिलकर] (एनाम्) इस [प्रजा अर्थात् आत्मा] की ओर (अभ्यावर्तस्व) आकर घूम, (देवताभिः सह) जय की इच्छाओं के साथ (एनाम्) इस [प्रजा अपने आत्मा] की ओर (प्रत्यङ्) आगे बढ़ता हुआ तू (एधि) वर्तमान हो। [हे प्रजा !] (त्वा) तुझको (मा) न तो (शपथः) शाप (प्र आपत्) प्राप्त होवे और (मा) न (अभिचारः) विरुद्ध आचरण, (स्वे) अपने (क्षेत्रे) खेत [अधिकार] में (अनमीवा) नीरोग होकर (वि) विविध प्रकार (राज) राज्य कर ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सब प्राणियों को अपने आत्मा से मिलाकर उन्नति करता जाता है, वह विजयी होकर पूरा आधिपत्य पाता है और धर्मात्मा होने के कारण उसको दुष्ट जन वाचिक और कायिक क्लेश नहीं दे सकते ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २२−(अभ्यावर्तस्व) अभिलक्ष्य वर्तनं कुरु (पशुभिः) अ० १।३०।३। पशवो व्यक्तवाचश्चाव्यक्तवाचश्च-निरु० ११।२९। द्रष्टृभिः प्राणिभिः (सह) (एनाम्) प्रजाम् (प्रत्यङ्) प्रत्यञ्चन्, आभिमुख्येन गच्छन् (एनाम्) (देवताभिः) विजिगीषाभिः (सह) (एधि) भव। वर्तस्व (मा प्रापत्) मा प्राप्नोतु (त्वा) (शपथः) शापः (मा) निषेधे (अभिचारः) विरुद्धाचारः (स्वे) स्वकीये (क्षेत्रे) अधिकारे (अनमीवा) रोगरहिता सती (वि) विविधम् (राज) शासनं कुरु ॥

२३ ऋतेन तष्टा

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ऋ॒तेन॑ त॒ष्टा मन॑सा हि॒तैषा ब्र॑ह्मौद॒नस्य॒ विहि॑ता॒ वेदि॒रग्रे॑।
अं॑स॒द्रीं शु॒द्धामुप॑ धेहि नारि॒ तत्रौ॑द॒नं सा॑दय दै॒वाना॑म् ॥

२३ ऋतेन तष्टा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Fashioned by righteousness (ṛtá), set by mind, this was ordained
    in the beginning the sacrificial hearth of the brahmán-rice-dish;
    apply, O woman, the cleansed shoulder-bearer (?); on that set the
    rice-dish of them of the gods.
Notes

SPP. reads in c aṅsadrī́m, with rather the larger number of
authorities (of our mss. Bp.P.M.W.I.K.Kp.), though only -dhrīm seems
to offer any etymology, and that an unsatisfactory one. The comm. has
aṅśadhrīm ‘portion-holder,’ which is perhaps the true reading. The
pada-text leaves the word undivided. The mss. of Kāuś. (61. 44), it
may be noted, also vary between aṅsadhrīm and -drīm in quoting the
pratīka of the second half-verse. Dāivyānām would rectify the meter
of d, but no ms. reads it, though two of SPP’s, and the comm., give
devānām. Ppp. reads in a manaso kite ’yaṁ, in b nihaṅtā
for vihitā, in c aśadhriyaṁ, emended by another hand to
-ddhiyaṁ.

Griffith

Fashioned at first by Right, set by the spirit, this altar of Brahmau- dana was appointed. Place the pure boiler on it, woman! set thou therein the rice mess of Celestial Beings.

पदपाठः

ऋ॒तेन॑। त॒ष्टा। मन॑सा। हि॒ता। ए॒षा। ब्र॒ह्म॒ऽओ॒द॒नस्य॑। विऽहि॑ता। वेदिः॑। अग्रे॑। अं॒स॒द्रीम्। शु॒ध्दाम्। उप॑। धे॒हि॒। ना॒रि॒। तत्र॑। ओ॒द॒नम्। सा॒द॒य॒। दै॒वाना॑म्। १.२३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतेन) सत्य ज्ञान करके (तष्टा) बनाई गई, (मनसा) विज्ञान द्वारा (हिता) धरी गई (ब्रह्मौदनस्य) ब्रह्म-ओदन [वेदज्ञान, अन्न वा धन के बरसानेवाले परमात्मा] की (एषा) यह (वेदिः) वेदी [यज्ञभूमि अर्थात् हृदय] (अग्रे) पहिले से (विहिता) बताई गयी है। (नारि) हे शक्तिमती [प्रजा !] (शुद्धाम्) शुद्ध (अंसद्रीम्) अंसदी [कन्धों वा कानोंवाली कढ़ाही अर्थात् बुद्धि] को (उप धेहि) चढ़ा दे, (तत्र) उसमें (दैवानाम्) उत्तम गुणवाले पुरुषों के (ओदनम्) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] को (सादय) बैठा दे ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - योगी मन की वेदी अर्थात् यज्ञकुण्ड पर बुद्धि की कढ़ाही में अन्नरूप परमात्मा को सावधानी से धरे ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २३−(ऋतेन) सत्येन (तष्टा) तनूकृता। निर्मिता (मनसा) विज्ञानेन (हिता) धृता (एषा) (ब्रह्मौदनस्य) म० १। ब्रह्मणो वेदज्ञानस्यान्नस्य वा सेचकस्य वर्षकस्य परमात्मनः (विहिता) विधिना बोधिता (वेदिः) यज्ञभूमिः, हृदयमित्यर्थः (अग्रे) पूर्वकाले (अंसद्रीम्) अमेः सन्। उ० ५।२१। अम रोगे, पीडने, गतौ भोजने च-सन्+द्रु गतौ-ड, ङीप्। भोजनपाचनपात्रम्। कटाहम् (शुद्धाम्) निर्मलाम् (उप धेहि) उपरि धारय (नारि) म० १३। हे शक्तिमति प्रजे (तत्र) तस्मिन् पात्रे (ओदनम्) म० १७। अन्नरूपं परमात्मानम् (सादय) स्थापय (दैवानाम्) दिव्यगुणवतां पुरुषाणाम् ॥

२४ अदितेर्हस्तां स्रुचमेताम्

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अदि॑ते॒र्हस्तां॒ स्रुच॑मे॒तां द्वि॒तीयां॑ सप्तऋ॒षयो॑ भूत॒कृतो॒ यामकृ॑ण्वन्।
सा गात्रा॑णि वि॒दुष्यो॑द॒नस्य॒ दर्वि॒र्वेद्या॒मध्ये॑नं चिनोतु ॥

२४ अदितेर्हस्तां स्रुचमेताम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Aditi’s hand, this second ladle (srúc), which the seven seers,
    being-makers, made—let that spoon, knowing the members of the rice-dish,
    collect it upon the sacrificial hearth.
Notes

The comm. reads in a hastam and dvitīyam, indicating that he
regards the adjective as qualifying hastām rather than srucam—which
may well be the case. Ppp. ⌊has hastāṁ and⌋ combines saptarṣayas.

Griffith

This second hand of Aditi, this ladle which the Seven Rishis, world-creators, fashioned. May this scoop deftly pile upon the altar, therein, the members of the rice-oblation.

पदपाठः

अदि॑तेः। हस्ता॑म्। स्रुच॑म्। ए॒ताम्। द्वि॒तीया॑म्। स॒प्त॒ऽऋ॒षयः॑। भू॒त॒ऽकृतः॑। याम्। अकृ॑ण्वन्। सा। गात्रा॑णि। वि॒दुषी॑। ओ॒द॒नस्य॑। दर्विः॑। वेद्या॑म्। अधि॑। ए॒न॒म्। चि॒नो॒तु॒। १.२४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • विराड्जगती
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भूतकृतः) उचित कर्म करनेवाले (सप्तऋषयः) सात ऋषियों [व्यापनशील वा दर्शनशील, अर्थात् त्वचा, नेत्र, कान, जिह्वा, नाक, मन और बुद्धि] ने (अदितेः) अदिति [अखण्ड व्रतवाली प्रजा] के (याम्) जिस (हस्ताम्) खिली हुई [एताम्] इस (द्वितीयाम्) दूसरी [शारीरिक से भिन्न मानसिक] (स्रुचम्) स्रुचा [डोई अर्थात् चित्तवृत्ति] को (अकृण्वन्) बनाया है, (ओदनस्य) ओदन [सुख की वर्षा करनेवाले अन्नरूप परमात्मा] के (गात्राणि) अङ्गों [गुणों के तत्त्वों] को (विदुषी) जानती हुई (सा) वह (दर्विः) करछी [चित्तवृत्ति] (वेद्याम्) वेदी पर [हृदय में] (एनम्) इस [अन्नरूप परमात्मा] को (अधि) अधिक-अधिक (चिनोतु) एकत्र करे ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - इन्द्रियों द्वारा विषयों के ज्ञान से बाहिरी और भीतरी दो वृत्तियाँ उत्पन्न होती हैं। बाहिरी वृत्ति भीतरी वृत्ति के आधीन है। योगी को उचित है कि भीतरी वृत्तियों को परमात्मा के गुणों में लगाकर उस जगदीश्वर को अपने हृदय में बैठावे, जैसे वेदी पर चढ़ी बटलोही के घृत आदि को करछी से संभाल-संभाल कर उपकारी बनाते हैं ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २४−(अदितेः) म० १। अखण्डव्रतायाः प्रजायाः (हस्ताम्) इडभावः। हसिताम्। विकसिताम्। मनोहराम् (स्रुचम्) चिक् च। उ० २।६२। स्रु गतौ- चिक्। यज्ञपात्रम्। चमसम्। चित्तवृत्तिमित्यर्थः (एताम्) (द्वितीयाम्) शारीरिकभिन्नां मानसीम् (सप्तऋषयः) म० १। त्वक्चक्षुःश्रवणादयः (भूतकृतः) म० १। उचितकर्मकर्तारः (याम्) स्रुचम्। (अकृण्वन्) अकुर्वन् (सा) (गात्राणि) अङ्गानि। गुणतत्त्वानि (विदुषी) जानती (ओदनस्य) सुखवर्षकस्यान्नरूपस्य परमात्मनः (दर्विः) उल्मुकदर्विर्होमनः। उ० ३।८४। दॄ विदारणे-विन्। व्यञ्जनादिहारकं पात्रम् (वेद्याम्) यज्ञभूमौ (अधि) उपरि (एनम्) ब्रह्मौदनम् (चिनोतु) राशीकरोतु ॥

२५ शृतं त्वा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

शृ॒तं त्वा॑ ह॒व्यमुप॑ सीदन्तु दै॒वा निः॒सृप्या॒ग्नेः पुन॑रेना॒न्प्र सी॑द।
सोमे॑न पू॒तो ज॒ठरे॑ सीद ब्र॒ह्मणा॑मार्षे॒यास्ते॒ मा रि॑षन्प्राशि॒तारः॑ ॥

२५ शृतं त्वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let them of the gods sit by thee, a cooked (śṛtá) oblation; having
    crept out of the fire, sit thou forward again to them; purified by soma,
    sit thou in the belly of the worshipers (brahmán); let not them of the
    seers, partakers (prāśitṛ́) of thee, suffer harm.
Notes

Ppp. begins śrutaṁ tvā havir, has for b anusṛpyā ’gne punar enaṁ
pra sṛpyas
(without any avasāna), reads in c-d brāhmaṇā
ārṣeyās
, and reads and combines ma rṣaṁ in d. The comm. ⌊with two
of SPP’s authorities⌋ reads devās at end of a, and treats te in
d as . Accompanies, according to Kāuś. 63. 3, the seating of
‘four ārṣeyas, who know the bhṛgvan̄giras’ by the offering.

Griffith

Let the dressed offering and divine Ones serve thee: creep from. the fire again, own these as masters. Made pure with Soma rest within the Brahmans: let not thine eaters, Rishis’ sons, be injured.

पदपाठः

शृ॒तम्। त्वा॒। ह॒व्यम्। उप॑। सी॒द॒न्तु॒। दै॒वाः। निः॒ऽसृप्य॑। अ॒ग्नेः। पुनः॑। ए॒ना॒न्। प्र। सी॒द॒। सोमे॑न। पू॒तः। ज॒ठरे॑। सी॒द॒। ब्र॒ह्मणा॑म्। आ॒र्षे॒याः। ते॒। मा। रि॒ष॒न्। प्र॒ऽअ॒शि॒तारः॑। १.२५

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • विराड्जगती
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे ओदन] (दैवाः) उत्तम गुणवाले पुरुष (शृतम्) परिपक्व, (हव्यम्) ग्रहण करने योग्य (त्वा उप) तेरे समीप (सीदन्तु) बैठें, (अग्नेः) अग्नि से (निःसृप्य) निकलकर (पुनः) अवश्य (एनाम्) इन [पुरुषों] को (प्रसीद) प्रसन्न कर। (सोमेन) अमृत रस से (पूतः) शोधा हुआ तू (ब्रह्मणाम्) ब्राह्मणों [ब्रह्मज्ञानियों] के (जठरे) पेट में (सीद) बैठ, (ते) तेरे (प्राशितारः) भोग करनेवाले (आर्षेयाः) ऋषियों में विख्यात पुरुष (मा रिषन्) न दुःखी होवें ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य ब्रह्मचर्य आदि तप से परमात्मा को अपने हृदय में दृढ़ करके बैठालते हैं, वे क्लेशों से छूटकर आनन्द भोगते हैं, जैसे मनुष्य परिपक्व उत्तम अन्न को अग्नि पर से उतार कर परोसते और भोजन करके भूख से निवृत्त होकर तृप्त होते हैं ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २५−(शृतम्) श्रा पाके-क्त। शृतं पाके। पा० ६।१।२७। इति शृभावः। परिपक्वम् (त्वा) त्वाम्। ओदनम् (हव्यम्) ग्राह्यत (उप सीदन्तु) समीपे तिष्ठन्तु (दैवाः) दिव्यगुणाः पुरुषाः (निः सृप्य) निर्गत्य (अपि) सम्भावनायाम् (अग्नेः) पावकात् (पुनः) अवश्यम् (एनान्) उपसत्तॄन् (प्र सीद) प्रसन्नान् कुरु। संतोषय (सोमेन) अमृतरसेन (पूतः) शोधितः (जठरे) उदरे (सीद) उपविश (ब्रह्मणाम्) ब्रह्मज्ञानिनाम् (आर्षेयाः) म० १६। ऋषिषु विख्याताः (ते) तव (मा रिषन्) मा विनश्यन्तु (प्राशितारः) प्रकर्षेण भोक्तारः ॥

२६ सोम राजन्त्सञ्ज्ञानमा

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सोम॑ राजन्त्सं॒ज्ञान॒मा व॑पैभ्यः॒ सुब्रा॑ह्मणा यत॒मे त्वो॑प॒सीदा॑न्।
ऋषी॑नार्षे॒यांस्तप॒सोऽधि॑ जा॒तान्ब्र॑ह्मौद॒ने सु॒हवा॑ जोहवीमि ॥

२६ सोम राजन्त्सञ्ज्ञानमा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O king Soma, strew harmony for them, for whatsoever good Brahmans
    shall sit by thee; with good call, I call loudly to the
    brahmán-rice-dish the seers, them of the seers, born from penance
    (tápas).
Notes

In a-b, for -bhyaḥ súbṛāhmaṇās, Ppp. reads -bhyo brāhm-
⌊intending perhaps ábrāhmaṇās? cf. vs. 32⌋; in c it has ṛṣīṇām
ṛṣayas tap-
, and jātā (so also the comm.) for -tān; ⌊and begins
d with brāhmāudane⌋. The comm. understands suhavā in d as
fem., and makes the sacrificer’s wife the speaker. The verse is not
quoted in Kāuś.; ⌊but Keśava cites it just before vs. 25 in 63. 3⌋.

Griffith

Give understanding unto these, King Soma! all the good Brah mans who attend and serve thee. Oft, in Brahmaudana, and well I call on: Rishis, their sons, and those who sprang from Fervour.

पदपाठः

सोम॑। रा॒ज॒न्। स॒म्ऽज्ञान॑म्। आ। व॒प॒। ए॒भ्यः॒। सुऽब्रा॒ह्म॒णाः। य॒त॒मे। त्वा॒। उ॒प॒ऽसीदा॑न्। ऋषी॑न्। आ॒र्षे॒यान्। तप॑सः। अधि॑। जा॒तान्। ब्र॒ह्म॒ऽओ॒द॒ने। सु॒ऽहवा॑। जो॒ह॒वी॒मि॒। १.२६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • विराड्जगती
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सर्वप्रेरक (राजन्) राजन् ! [परमात्मन्] (संज्ञानम्) चेतन्यता (एभ्यः) उनके लिये (आ वप) फैला दे, (यतमे) जो-जो (सुब्राह्मणाः) अच्छे-अच्छे ब्राह्मण [बड़े ब्रह्मज्ञानी] (त्वा) तुझको (उप सीदान्) प्राप्त होवें। (तपसः) तप से (अधि) अधिकारपूर्वक (जातान्) प्रसिद्ध (ऋषीन्) ऋषियों और (आर्षेयान्) ऋषियों में विख्यात पुरुषों को (ब्रह्मौदने) ब्रह्म-ओदन [वेदज्ञान, अन्न वा धन के बरसानेवाले परमेश्वर] के विषय में (सुहवा) सुन्दर बुलावे से (जोहवीमि) मैं पुकार-पुकार कर बुलाता हूँ ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य बड़े ब्रह्मज्ञानी ऋषि महात्माओं से आदरपूर्वक ब्रह्मज्ञान प्राप्त करके आनन्द पावे ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २६−(सोम) हे सर्वप्रेरक (राजन्) परमैश्वर्यवन् (संज्ञानम्) यथार्थज्ञानम् (आ वप) प्रक्षिप (एभ्यः) ब्राह्मणेभ्यः (सुब्राह्मणाः) श्रेष्ठब्रह्मज्ञानिनः (यतमे) बहुषु ये (त्वा) (उप सीदान्) सेदतेर्लेटि, आडागमः। उपसीदन्तु। सेवन्ताम् (ऋषीन्) सूक्ष्मदर्शिनः पुरुषान् (आर्षेयान्) म० १६। ऋषिषु व्याख्यातान् (तपसः) तपश्चरणात् (अधि) अधिकारपूर्वकम् (जातान्) प्रसिद्धान् (ब्रह्मौदने) म० १। परमेश्वरविषये (सुहवा) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इत्याकारः। सुहवेन। यथाविध्यावाहनेन (जोहवीमि) अ० २।१२।३। पुनः पुनराह्वयामि ॥

२७ शुद्धाः पूता

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शु॒द्धाः पू॒ता यो॒षितो॑ य॒ज्ञिया॑ इ॒मा ब्र॒ह्मणां॒ हस्ते॑षु प्रपृ॒थक् सा॑दयामि।
यत्का॑म इ॒दम॑भिषि॒ञ्चामि॑ वो॒ऽहमिन्द्रो॑ म॒रुत्वा॒न्त्स द॑दादि॒दं मे॑ ॥

२७ शुद्धाः पूता ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. These cleansed purified worshipful maidens I seat in separate
    succession in the hands of the priests (brahmán); with what desire I
    now pour you on, may Indra here with the Maruts grant me that.
Notes

⌊Pāda a = vs. 17 a.⌋ Nearly identical with vi. 122. 5, and
slightly different from x. 9. 27. The verse is quoted by Kāuś. 63. 4;
⌊so the comm.: under vi. 122. 5 he made the sūtra apply to that verse⌋.
Ppp. has a wholly different a: iyam āpo madhnmatī ghṛtaścyuto; ⌊it
reads brāhmaṇā at beginning of b⌋; and combines yatkāme ‘dam in
c.

Griffith

Here I set singly in the hands of Brahmans these cleansed and. purifie d and holy Women, May Indra, Marut girt, grant me the blessing which as I sprinkle you, my heart desireth.

पदपाठः

शु॒ध्दाः। पू॒ताः। यो॒षितः॑। य॒ज्ञियाः॑। इ॒माः। ब्र॒ह्मणा॑म्। हस्ते॑षु। प्र॒ऽपृ॒थक्। सा॒द॒या॒मि॒। यत्ऽका॑मः। इ॒दम्। अ॒भि॒ऽसि॒ञ्चामि॑। वः॒। अ॒हम्। इन्द्रः॑। म॒रुत्वा॑न्। सः। द॒दा॒त्। इ॒दम्। मे॒। १.२७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • अतिजागतगर्भा जगती
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शुद्धाः) शुद्ध स्वभाववाली, (पूताः) पवित्र आचरणवाली, (यज्ञियाः) पूजनीय (इमाः) इन (योषितः) सेवायोग्य [प्रजाओं] को (ब्रह्मणाम्) ब्रह्मज्ञानियों के (हस्तेषु) हाथों में [विज्ञान के बलों में] (प्रपृथक्) नाना प्रकार से (सादयामि) मैं बिठलाता हूँ। [हे प्रजाओ !] (यत्कामः) जिस उत्तम कामनावाला (अहम्) मैं (इदम्) इस समय (वः) तुम्हारा (अभिषिञ्चामि) अभिषेक करता हूँ, (सः) वह (मरुत्वान्) दोषनाशक गुणोंवाला (इन्द्रः) संपूर्ण ऐश्वर्यवान् जगदीश्वर (इदम्) वह वस्तु (मे) मुझे (ददात्) देवे ॥२७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब प्रजाएँ अर्थात् स्त्री-पुरुष महात्माओं के सत्सङ्ग से ईश्वरज्ञान द्वारा शुद्ध आचरण करके उन्नति करें ॥२७॥यह मन्त्र कुछ भेद से आ चुका है-अ० ६।१२२।५। और दूसरा, तीसरा पाद-अ० १०।६।२७ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २७−(योषितः) अ० १।१७।१। सेव्याः प्रजाः (ददात्) लेटि रूपम्। ददातु (इदम्) काम्यमानं फलम्। अन्यत् पूर्ववत्-अ० ६।१२२।५ ॥

२८ इदं मे

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इ॒दं मे॒ ज्योति॑र॒मृतं॒ हिर॑ण्यं प॒क्वं क्षेत्रा॑त्काम॒दुघा॑ म ए॒षा।
इ॒दं धनं॒ नि द॑धे ब्राह्म॒णेषु॑ कृ॒ण्वे पन्थां॑ पि॒तृषु॒ यः स्व॒र्गः ॥

२८ इदं मे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. This my light (jyótis), immortal gold, cooked (pakvá) from the
    field, this my desire-milker; this riches I deposit in the Brahmans; I
    make a road to the Fathers that is heaven-going.
Notes

The construction of the nominatives in a, b is left undetermined in
the translation, as it is in the text. ⌊Cf. Griffith’s version and note,
p. 55.⌋ Ppp. has hiraṇmayaṁ in a, and yat svargāiḥ at the end of
d. The verse is quoted by Kāuś. at 62. 22 and 68. 27; and at 63. 5
Kāuś. cites b ⌊comm. b and c⌋ as accompanying a removal of
something (ity apakarṣati: it is not clear what; ⌊the comm. thinks the
rice-dish and reads upa- for apa-⌋).

Griffith

Here is my gold, a light immortal: ripened grain from the field this Cow of Plenty give me! This wealth I place among the Brahmans, making a path that leads to heaven among the Fathers.

पदपाठः

इ॒दम्। मे॒। ज्योतिः॑। अ॒मृत॑म्। हिर॑ण्यम्। प॒क्वम्। क्षेत्रा॑त्। का॒म॒ऽदुघा॑। मे॒। ए॒षा। इ॒दम्। धन॑म्। नि। द॒धे॒। ब्रा॒ह्म॒णेषु॑। कृ॒ण्वे। पन्था॑म्। पि॒तृषु॑। यः। स्वः॒ऽगः। १.२८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) यह (मे) मेरा (ज्योतिः) चमकता हुआ (अमृतम्) मृत्यु से बचानेवाला (हिरण्यम्) सुवर्ण, (क्षेत्रात्) खेत से [लाया गया] (पक्वम्) पका हुआ [अन्न], और (एषा) यह (मे) मेरी (कामदुघा) कामना पूरी करनेवाली [कामधेनु गौ] है। (इदम्) इस (धनम्) धन को (ब्राह्मणेषु) ब्रह्मज्ञानों में [वेदप्रचार व्यवहारों में] (नि दधे) मैं धरता हूँ, और (पन्थाम्) मार्ग को (कृण्वे) मैं बनाता हूँ, (यः) जो (पितृषु) पालन करनेवाले [विज्ञानियों] के बीच (स्वर्गः) सुख पहुँचानेवाला है ॥२८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अपना सर्वस्व परमेश्वर को समर्पण करके सत्यज्ञान द्वारा संसार का उपकार करते हैं, वे विद्वानों के बीच कीर्ति पाते हैं ॥२८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २८−(इदम्) उपस्थितम् (मे) मम (ज्योतिः) दीप्यमानम् (अमृतम्) नास्ति मृतं मरणं यस्मात् तत् (हिरण्यम्) सुवर्णम् (पक्वम्) परिणतमन्नम् (क्षेत्रात्) सस्यप्रदेशात् (कामदुघा) अ० ४।३४।८। कामनां दोग्ध्री प्रपूरयित्री। कामधेनुर्गौः (मे) मम (एषा) (इदम्) (धनम्) (नि दधे) स्थापयामि (ब्राह्मणेषु) ब्रह्मज्ञानप्रचारेषु (कृण्वे) करोमि (पन्थाम्) पन्थानम्। मार्गम्। (पितृषु) पालकेषु विज्ञानिषु (यः) पन्थाः (स्वर्गः) सुखस्य गमयिता प्रापकः ॥

२९ अग्नौ तुषाना

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अ॒ग्नौ तुषा॒ना व॑प जा॒तवे॑दसि प॒रः क॒म्बूकाँ॒ अप॑ मृड्ढि दू॒रम्।
ए॒तं शु॑श्रुम गृहरा॒जस्य॑ भा॒गमथो॑ विद्म॒ निरृ॑तेर्भाग॒धेय॑म् ॥

२९ अग्नौ तुषाना ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Strew thou the husks in the fire, in Jātavedas; wipe off far away
    the chaff (? kambū́kān); this we have heard to be the share of the
    house-king; also we know the portion (bhāgadhéya) of Perdition
    (nírṛti).
Notes

Ppp. reads upa mṛḍhvayetām for apa mṛḍḍhi dūram in b. The comm.
explains kambūkān as = phalīkaraṇān, and follows Kāuś. (63. 7) in
regarding the ‘wiping away’ as done with the foot.

Griffith

Lay thou the chaff in Agni Jatavedas: remove the husks and drive them to a distance. That, we have heard, that is the House-Lord’s portion: we know the share allotted to Destruction.

पदपाठः

अ॒ग्नौ। तुषा॑न्। आ। व॒प॒। जा॒तऽवे॑दसि। प॒रः। क॒म्बूका॑न्। अप॑। मृ॒ड्ढि॒। दू॒रम्। ए॒तम्। शु॒श्रु॒म॒। गृ॒ह॒ऽरा॒जस्य॑। भा॒गम्। अथो॒ इति॑। वि॒द्म॒। निःऽऋ॑तेः। भा॒ग॒ऽधेय॑म्। १.२९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • भुरिग्विराड्जगती
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्य !] (तुषान्) तुष [भुस] को (जातवेदसि) उत्पन्न पदार्थों में विद्यमान (अग्नौ) अग्नि के बीच (आ वप) फैला दे, (कम्बूकान्) कम्बूकों [छिलकों] को (परः) बहुत (दूरम्) दूर (अप मृड्ढि) धोकर फेंक दे। (एतम्) इसको (गृहराजस्य) घर के राजा [गार्हपत्य अग्नि] का (भागम्) भाग (शुश्रुम) हमने सुना है, (अथो) और भी (निर्ऋतेः) पृथिवी का (भागधेयम्) भाग (विद्म) हम जानते हैं ॥२९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - अन्न का जो चोकर भुसी कुछ आग में और कुछ धो-धाकर पृथिवी पर दूर फेंक देते हैं, उस सब में अर्थात् तुच्छ, पदार्थ में भी विज्ञानी पुरुष परमेश्वर की महिमा देखते हैं ॥२९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २९−(अग्नौ) पावके (तुषान्) धान्यत्वचः (आ वप) प्रक्षिप (जातवेदसि) उत्पन्नपदार्थेषु विद्यमाने (परः) परस्तात् (कम्बूकान्) उलूकादयश्च। उ० ४।४१। कमु कान्तौ-ऊक, बुगागमः। बल्कलानि (अप मृड्ढि) मृजू शौचालङ्कारयोः-लोट्, अदादिश्चुरादिश्च। विशेषेण मार्जय शोधय (दूरम्) (एतम्) (शुश्रुम) वयं श्रुतवन्तः (गृहराजस्य) राजाहःसखिभ्यष्टच्। पा० ५।४।९१। इति टच्। गार्हपत्यस्याग्नेः (भागम्) अंशम् (अथो) अपि च (विद्म) विदो लटो वा। पा० ३।४।८३। मसो मादेशः। विद्मः। जानीमः (निर्ऋतेः) निः+ऋ गतौ-क्तिन्। नितराम् ऋतिर्गतिर्यस्याः सा निर्ऋतिः। तस्याः पृथिव्याः। निर्ऋतिः पृथिवीनाम-निघ० १।१। निर्ऋतिर्निरमणाद् ऋच्छतेः कृच्छ्रापत्तिरितरा-निरु० २।७। (भागधेयम्) भागम् ॥

३० श्राम्यतः पचतो

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श्राम्य॑तः॒ पच॑तो विद्धि सुन्व॒तः पन्थां॑ स्व॒र्गमधि॑ रोहयैनम्।
येन॒ रोहा॒त्पर॑मा॒पद्य॒ यद्वय॑ उत्त॒मं नाकं॑ पर॒मं व्यो᳡म ॥

३० श्राम्यतः पचतो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Know thou the toiling, cooking, soma-pressing one; make him to
    ascend the heaven-going road, by which he may ascend, arriving at the
    vigor that is beyond, to the highest firmament, to the furthest vault
    (vyòmati).
Notes

‘Know,’ i.e. take note or be mindful of. The comm. takes the three
participles in a as accus. pl. instead of gen. sing.; ⌊and reads
accordingly enān at end of b⌋. Ppp. has, for b, svargaṁ lokam
adhi rohaye ’nam
, and omits d. The quotation in Kāuś. 63. 20 casts
no light on the verse.

Griffith

Mark him who toils and cooks and pours oblation: make this man climb the path that leads to heaven, That he may mount and reach life that is highest, ascending to the loftiest vault above us.

पदपाठः

श्राम्य॑तः। पच॑तः। वि॒ध्दि॒। सु॒न्व॒तः। पन्था॑म्। स्वः॒ऽगम्। अधि॑। रो॒ह॒य॒। ए॒न॒म्। येन॑। रोहा॑त्। पर॑म्। आ॒ऽपद्य॑। यत्। वयः॑। उ॒त्ऽत॒मम्। नाक॑म्। प॒र॒मम्। विऽओ॑म। १.३०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे ईश्वर !] (श्राम्यतः) श्रमी [ब्रह्मचारी आदि तपस्वी] का, (पचतः) पक्का करनेवाले [दृढ़ निश्चय करनेवाले], (सुन्वतः) तत्त्व निचोड़नेवाले [विज्ञानी पुरुष] का (विद्धि) तू ज्ञान कर और (स्वर्गम्) सुख पहुँचानेवाले (पन्थाम्) मार्ग में (एनम्) इस [जीव] को (अधि) ऊपर (रोहय) चढ़ा, (येन) जिस [मार्ग] से वह [जीव] (यत्) जो (परम्) बड़ा उच्च (वयः) जीवन है, [उसको] (आपद्य) पाकर (उत्तमम्) उत्तम (नाकम्) सुखस्वरूप (परमम्) सर्वोत्कृष्ट (व्योम) विविध रक्षक [परब्रह्म ओ३म्] को (रोहात्) ऊँचा होकर पावे ॥३०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य तपस्वी, दृढ़विश्वासी और विवेकी होकर अपना जीवन सुधारते हैं, वे ही सर्वरक्षक, [ओ३म्] परमात्मा को पाते अर्थात् उसकी आज्ञा पालकर संसार का सुधार करते हैं ॥३०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३०−(श्राम्यतः) श्रमु तपसि खेदे च-शतृ। शमामष्टानां दीर्घः श्यनि। पा० ७।३।७४। इति दीर्घः। तप्यमानस्य ब्रह्मचारिणः (पचतः) डुपचष् पाके-शतृ। परिपक्वस्य। दृढनिश्चयस्य (विद्धि) ज्ञानं कुरु (सुन्वतः) षुञ् पीडने-शतृ। तत्त्वस्य पीडनं मन्थनं कुर्वतः पुरुषस्य (पन्थाम्) मार्गम् (स्वर्गम्) सुखप्रापकम् (अधि) उपरि (रोहय) आरोहय, स्थापय (एनम्) जीवम् (येन) पथा (रोहात्) रोहेत्। अधितिष्ठेत् (परम्) उच्चम् (आपद्य) प्राप्य (यत्) (वयः) सर्वधातुभ्योऽसुन्। उ० ४।१८९। वी गतिव्याप्तिप्रजनकान्त्यसनखादनेषु, यद्वा वय गतौ-असुन्। वयः=अन्नम्-निघ० २।७। जीवनम् (उत्तमम्) (नाकम्) सुखस्वरूपम् (परमम्) सर्वोत्कृष्टम् (व्योम) वि+अव-मनिन्। व्योमन्-व्यवने-निरु० ११।४०। विविधं रक्षकम्, ओ३म्, इति संज्ञकं परब्रह्म ॥

३१ बभ्रेरध्वर्यो मुखमेतद्वि

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ब॒भ्रेर॑ध्वर्यो॒ मुख॑मे॒तद्वि मृ॒ड्ढ्याज्या॑य लो॒कं कृ॑णुहि प्रवि॒द्वान्।
घृ॒तेन॒ गात्रानु॒ सर्वा॒ वि मृ॑ड्ढि कृ॒ण्वे पन्थां॑ पि॒तृषु॒ यः स्व॒र्गः ॥

३१ बभ्रेरध्वर्यो मुखमेतद्वि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Wipe off, O serving priest (adhvaryú), this face of the bearing
    one (? babhrí); make thou, understanding it, room for the sacrificial
    butter; wipe off with ghee along all [its] members; I make a road to
    the Fathers that is heaven-going.
Notes

The real sense of the epithet babhri applied to the odana or
rice-dish is obscure; the comm. explains it here with bharaṇaśīlasya
poṣakasya pakvasyā odanasya
, ‘supporting’ or ’nourishing.’ The comm.
appears to read vidvān instead of pravidvān in b; Ppp. has
prajānan. Ppp. has yat for yas in d. According to Kāuś. 62.
15, the verse accompanies the making of an āpāna (? the mss. vary as
to the word) above (upari); which the comm. explains by odanasyo
’pari gartaṁ kuryāt
, glossing lokam in b with sthānaṁ
gartarūpam;
what is meant is obscure.

Griffith

Adhvaryu, cleanse that face of the Supporter. Make room, well knowing, for the molten butter. Purify duly all the limbs with fatness. I make a path to heaven amid the Fathers.

पदपाठः

ब॒भ्रेः। अ॒ध्व॒र्यो॒ इति॑। मुख॑म्। ए॒तत्। वि। मृ॒ड्ढि॒। आज्या॑य। लो॒कम्। कृ॒णु॒हि॒। प्र॒ऽवि॒द्वान्। घृ॒तेन॑। गात्रा॑। अनु॑। सर्वा॑। वि। मृ॒ड्ढि॒। कृ॒ण्वे। पन्था॑म्। पि॒तृषु॑। यः। स्वः॒ऽगः। १.३१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • भुरिक्त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अध्वर्यो) हे हिंसा के न करनेवाले पुरुष ! (बभ्रेः) पोषण करनेवाले [अन्नरूप परमेश्वर] के (एतत्) इस (मुखम्) मुख [भोजन के ऊपरी भाग] को (वि मृड्ढि) संवार ले, (प्रविद्वान्) बड़ा ज्ञानवान् तू (आज्याय) घी के लिये (लोकम्) स्थान (कृणुहि) बना। (घृतेन) घी से (सर्वा) सब (गात्रा) अङ्गों को (अनु) निरन्तर [देख-भाल कर के] (वि मृड्ढि) शोध ले, (पन्थाम्) मार्ग (कृण्वे) मैं बनाता हूँ (यः) जो [मार्ग] (पितृषु) पालन करनेवाले [विज्ञानियों] के बीच (स्वर्गः) सुख पहुँचानेवाला है ॥३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे थाली में चावल आदि भोजन परोसकर और संवार कर ऊपर घृत आदि छोड़कर स्वादिष्ठ बनाते हैं, वैसे ही योगी भोजनरूप परमात्मा को [थालीरूप] हृदय में धारण करके [घृतरूप] ज्ञान से विचारता हुआ विज्ञानियों में आनन्द पावे ॥३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३१−(बभ्रेः) आदृगमहनजनः किकिनौ लिट् च। पा० ३।२।१७१। डुभृञ् धारणपोषणयोः-कि प्रत्ययः। पोषकस्य। अन्नरूपस्य परमेश्वरस्य (अध्वर्यो) अ० ७।७३।५। न ध्वरति न हिनस्तीति अध्वरः। ध्वृ कौटिल्ये हिंसायां च-अच्। ध्वरतिर्वधकर्मा-निघ० २।१९। अध्वर+या प्रापणे-कु। हे अहिंसाप्रापक (मुखम्) उपरिदेशम् (एतत्) (विमृड्ढि) म० २९। विशेषेण शोधय भूषय (आज्याय) घृतमिश्रणाय (लोकम्) स्थानम् (कृणुहि) कुरु (प्रविद्वान्) प्रकर्षेण जानन् (घृतेन) सर्पिषा (गात्रा) अङ्गानि (अनु) अनुक्रमेण (सर्वा) सर्वाणि (विमृड्ढि) (कृण्वे) करोमि (पन्थाम्) पन्थानम् (पितृषु) पालकेषु। विज्ञानिषु (यः) (पन्थाः) (स्वर्गः) सुखस्य गमयिता ॥

३२ बभ्रे रक्षः

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बभ्रे॒ रक्षः॑ स॒मद॒मा व॑पै॒भ्योऽब्रा॑ह्मणा यत॒मे त्वो॑प॒सीदा॑न्।
पु॑री॒षिणः॒ प्रथ॑मानाः पु॒रस्ता॑दार्षे॒यास्ते॒ मा रि॑षन्प्राशि॒तारः॑ ॥

३२ बभ्रे रक्षः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O bearing one, [as] a demon, strew discord for them, for
    whatsoever non-Brahmans shall sit by thee; rich in ground (? purīṣín),
    spreading themselves forward, let not them of the seers, partakers of
    thee, suffer harm.
Notes

With the first half-verse compare vs. 26 a, b, above; the last pāda
is the same with 25 d. The construction of rákṣas in a is
doubtful; it might be vocative; the comm. combines it into a compound
with samadam; and he treats te, as before, as if it were . Ppp.
reads at beginning of b, as our text in vs. 26, subrāhmaṇās. The
verse is not quoted in Kāuś.

Griffith

Supporter, send to those men fiends and battle, to all non-Brah- mans who attend and serve thee. Famous and foremost, with their great possessions, let not these here, the Rishis sons, be injured.

पदपाठः

ब॒भ्रे। रक्षः॑। स॒ऽमद॑म्। आ। व॒प॒। ए॒भ्यः॒। अब्रा॑ह्मणाः। य॒त॒मे। त्वा॒। उ॒प॒ऽसीदा॑न्। पु॒रीषिणः॑। प्रथ॑मानाः। पु॒रस्तात्। आ॒र्षे॒याः। ते॒। मा। रि॒ष॒न्। प्र॒ऽअ॒शि॒तारः॑। १.३२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (बभ्रे) हे पोषक ! [अन्नरूप परमात्मन्] (रक्षः) विघ्न और (समदम्) लड़ाई (एभ्यः) उनके लिये (आ वपः) फैला दे, (यतमे) जो (अब्राह्मणाः) अब्राह्मण [अब्रह्मज्ञानी] (त्वा) तुझको (उपसीदान्) प्राप्त होवें। (पुरीषिणः) पूर्ति रखनेवाले, (पुरस्तात्) आगे-आगे (प्रथमानाः) फैलते हुए, (आर्षेयाः) ऋषियों में विख्यात (ते) तेरे (प्राशितारः) भोग करनेवाले पुरुष (मा रिषन्) न दुःखी होवें ॥३२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे कुपथ्यभोजी प्राणी रोगी हो जाते हैं, वैसे ही नास्तिक पाखण्डी लोग क्लेश पाते हैं और जैसे सुपथ्यभोजी तृप्त होकर बली होते हैं, वैसे ही ऋषि-मुनि परमात्मा की आज्ञा पालने में आनन्द पाते हैं ॥३२॥इस मन्त्र के पूर्वार्द्ध का मिलान पूर्वार्द्ध-म० २६ से और उत्तरार्द्ध-म० २५ से करो ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३२−(बभ्रे) म० ३१। हे पोषक (रक्षः) रक्ष्यते यस्मात्। विघ्नम् (समदम्) सम्+अद भक्षणे-क्विप्। यद्वा सम्+मदी हर्षे-क्विप्, समो मलोपः समत्सु संग्रामनाम-निघ० २।१७। समदः समदो वात्तेः सम्मदो वा मदतेः-निरु० ९।१७। युद्धम् (आ वप) प्रक्षिप (एभ्यः) वक्ष्यमाणेभ्यः (अब्राह्मणः) अब्रह्मज्ञानिनः (पुरीषिणः) शृपॄभ्यां किच्च। उ० ४।२७। पॄ पालनपूरणयोः-ईषन्, कित्, णिनि। पुरीषमुदकनाम-निघ० १।१२। पुरीषं पृणातेः पूरयतेर्वा-निरु० २।२२। पूर्तियुक्ताः (प्रथमानाः) विस्तीर्यमाणाः (पुरस्तात्) अग्रे (आर्षेयाः) म० १६। ऋषिषु विख्याताः (ते) तव (मा रिषन्) मा हिंसन्ताम् (प्राशितारः) प्रकर्षेण भोक्तारः ॥

३३ आर्षेयेषु नि

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आ॑र्षे॒येषु॒ नि द॑ध ओदन त्वा॒ नाना॑र्षेयाणा॒मप्य॒स्त्यत्र॑।
अ॒ग्निर्मे॑ गो॒प्ता म॒रुत॑श्च॒ सर्वे॒ विश्वे॑ दे॒वा अ॒भि र॑क्षन्तु प॒क्वम् ॥

३३ आर्षेयेषु नि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. I set thee down, O rice-dish, among them of the seers; for them that
    are not of the seers there is no portion here; let Agni my guardian, and
    all the Maruts, let all the gods defend the cooked [offering].
Notes

‘Is no portion for,’ lit’ly ‘is not also (api) of—a common form of
expression in the Brāhmaṇas. Ppp. reads rakṣanti in d. The verse
is quoted with vs. 25 c in Kāuś. 65. 12.

Griffith

I set thee, Odana, with Rishis’ children: naught here belongs to men not sprung from Rishis. Let Agni my protector, all the Maruts, the Visve Devas guard the cooked oblation.

पदपाठः

आ॒र्षे॒येषु॑। नि। द॒धे॒। ओ॒द॒न॒। त्वा॒। न। अना॑र्षेयाणाम्। अपि॑। अ॒स्ति॒। अत्र॑। अ॒ग्निः। मे॒। गो॒प्ता। म॒रुतः॑। च॒। सर्वे॑। विश्वे॑। दे॒वाः। अ॒भि। र॒क्ष॒न्तु॒। प॒क्वम्। १.३३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ओदन) हे ओदन ! [सुख की बरसा करनेवाले, अन्नरूप परमेश्वर] (आर्षेयेषु) ऋषियों में विख्यातों के बीच (त्वा) तुझको (निदधे) मैं धरता हूँ, (अनार्षेयाणाम्) ऋषियों में विख्यातों से भिन्न लोगों का [भाग] (अत्र) इसमें (आप) कभी (न) नहीं (अस्ति) है। (मे) मेरा (गोप्ता) रक्षक (अग्निः) अग्नि [शारीरिक अग्नि] (च) और (सर्वे) सब (मरुतः) प्राण वायु [प्राण, अपान, व्यान, समान और उदान] और (विश्वे) सब (देवाः) इन्द्रियाँ (पक्वम्) पक्के [दृढ़स्वभाव परमात्मा] का (अभि) सब ओर से (रक्षन्तु) रक्खें ॥३३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ऋषि महात्मा लोग ही परमात्मा के गुणों को जान सकते हैं, इतर लोग नहीं। मनुष्य अपने शरीरस्थ अग्नि, वायु आदि और इन्द्रियों के सूक्ष्म संगठन और कर्मों के भीतर परमेश्वर की महिमा को विचारें ॥३३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३३−(आर्षेयेषु) म० १६। ऋषिषु विख्यातेषु (नि दधे) स्थापयामि (ओदन) म० १७। हे सुखस्य वर्षक (त्वा) त्वाम् (न) निषेधे (अनार्षेयाणाम्) ऋषिषु विख्यातेभ्यो भिन्नानां पाखण्डिनाम् भाग इति शेषः (अपि) सम्भावनायाम् (अस्ति) (अत्र) ओदनविषये (अग्निः) जाठराग्निः (मे) मम (गोप्ता) गोपायिता रक्षिता (मरुतः) प्राणादयो वायवः (च) (सर्वे) (विश्वे) समस्ताः (देवाः) इन्द्रियाणि (अभि) सर्वतः (रक्षन्तु) धरन्तु (पक्वम्) दृढस्वभावं परमेश्वरम् ॥

३४ यज्ञं दुहानम्

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य॒ज्ञं दुहा॑नं॒ सद॒मित्प्रपी॑नं॒ पुमां॑सं धे॒नुं सद॑नं रयी॒णाम्।
प्र॑जामृत॒त्वमु॒त दी॒र्घमायू॑ रा॒यश्च॒ पोषै॒रुप॑ त्वा सदेम ॥

३४ यज्ञं दुहानम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The offering, yielding milk (duh), constantly full (prápīna), a
    male (púmāṅs) milch-cow, seat of wealth, immortality through
    offspring, and a long life-time—and may we sit by thee with abundance
    (pl.) of wealth.
Notes

The construction of the third pāda is very indeterminate; the words may
be either nominative or accusative; they express in some way what the
offering is to procure. To illustrate prajāmṛtatvam, the comm. quotes,
quite appositely, TB. i. 5. 5⁶ and RV. v. 4. 10, ‘by progeny, O Agni,
may I obtain immortality.’ Prapīnam he explains as =
pravṛddhodhaskam, which is doubtless its true meaning. Ppp. reads in
d poṣam for poṣāis. Neither this nor the following verse, nor
vs. 37, is quoted in Kāuś. ⌊Cf. Henry’s version, p. 102; and, for the
awkward ca, his note, p. 139.⌋

Griffith

May we adore thee, Sacrifice that yieldeth an everlasting son, cow, home of treasures, Together with increasing store of riches, long life and immor- tality of children.

पदपाठः

य॒ज्ञम्। दुहा॑नम्। सद॑म्। इत्। प्रऽपी॑नम्। पुमां॑सम्। धे॒नुम्। सद॑नम्। र॒यी॒णाम्। प्र॒जा॒ऽअ॒मृ॒त॒त्वम्। उ॒त। दी॒र्घम्। आयुः॑। रा॒यः। च॒। पोषैः॑। उप॑। त्वा॒। स॒दे॒म॒। १.३४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे परमात्मन् !] (यज्ञम्) यज्ञ [पूजनीय व्यवहार] को, (प्रपीनम्) बढ़े हुए [समृद्ध] (पुमांसम्) रक्षक [पुरुषार्थी] को, (धेनुम्) तृप्त करनेवाली [वाणी अर्थात् विद्या, वा गौ] को, (रयीणाम्) धनों के (सदनम्) घर को, (प्रजामृतत्वम्) प्रजा [जनता वा सन्तान] के अमरण को, (उत) और (दीर्घम्) दीर्घ (आयुः) जीवन को (च) निश्चय करके (रायः) धन की (पोषैः) पुष्टियों से (सदम् इत्) सदा ही (दुहानम्) पूर्ण करते हुए (त्वा) तुझको (उप) आदर से (सदेम) हम प्राप्त होवें ॥३४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमेश्वर की उपासना में तत्पर रहते हैं, वे उत्तम व्यवहार, समृद्ध पुरुषों, विद्या, गौ, धन के कोष, प्रजा और सन्तान की वृद्धि और दीर्घ जीवन को प्राप्त होकर आनन्द भोगते हैं ॥३४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३४−(यज्ञम्) पूजनीयं व्यवहारम् (दुहानम्) दुह प्रपूरणे-शानच्। प्रपूरयन्तम् (सदम्) सदा (इत्) एव (प्रपीतम्) ओप्यायी वृद्धौ-क्त। प्रवृद्धं समृद्धम् (पुमांसम्) अ० १।८।१। पा रक्षणे- डुमसुन्। पातारं रक्षकं पुरुषम् (धेनुम्) अ० ३।१०।१। धि धारणतर्पणयोः-नु। धेनुर्वाङ्नाम-निघ० १—१।४२। तर्पयित्रीं वाचं विद्याङ्गां वा (सदनम्) गृहम् (रयीणाम्) धनानाम् (प्रजामृतत्वम्) जनतायाः) सन्तानस्य वा मृत्युराहित्यम् (उत) अपि (दीर्घम्) प्रवृद्धम् (आयुः) जीवनम् (रायः) धनस्य (च) अवधारणे (पोषैः) समृद्धिभिः सह (उप) आदरेण (त्वा) त्वां परमात्मानम् (सदेम) षद्लृ गतौ-आशीर्लिङ्। लिङ्याशिष्यङ् पा० ३।१।८६। इत्यङ्। सद्यास्म। गम्यास्म ॥

३५ वृषभोसि स्वर्ग

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वृ॑ष॒भो᳡सि॑ स्व॒र्ग ऋषी॑नार्षे॒यान्ग॑च्छ।
सु॒कृतां॑ लो॒के सी॑द॒ तत्र॑ नौ संस्कृ॒तम् ॥

३५ वृषभोसि स्वर्ग ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thou art a heaven-going bull; go to the seers, to them of the seers;
    sit in the world of the well-doing; there is there preparation
    (saṁskṛtá) for us both.
Notes

⌊Prose.⌋ Ppp. reads ṛṣabhas at the beginning, and lokaṁ for loke
in c. With the second half-verse is to be compared TS. i. 4. 43²,
and MS. i. 3. 37 (end) and iv. 8. 2 (end), which read: sukṛ́tām loké
sīdata tán naḥ saṁskṛtám;
and VS. iv. 34 has the last pāda, reading
tán for tátra. The pada-texts do not divide saṁskṛtam; the case
falls under rule iv. 58 of the AV. Prāt.

Griffith

Thou art a Bull that mounts to heaven: to Rishis and their off- spring go. Rest in the world of pious men: there is the place prepared for us.

पदपाठः

वृ॒ष॒भः। अ॒सि॒। स्वः॒ऽगः। ऋषी॑न्। आ॒र्षे॒यान्। ग॒च्छ॒। सु॒ऽकृता॑म्। लो॒के। सी॒द॒। तत्र॑। नौ॒। सं॒स्कृ॒तम्। १.३५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • चतुष्पदा ककुम्मत्युष्णिक्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे परमात्मन् !] तू (वृषभः) महाबली और (स्वर्गः) सुख पहुँचानेवाला (असि) है, (ऋषीन्) ऋषियों [सूक्ष्मदर्शियों] को और (आर्षेयान्) ऋषियों में विख्यात पुरुषों को (गच्छ) प्राप्त हो। (सुकृताम्) सुकर्मियों के (लोके) समाज में (सीद) बैठ, (तत्र) वहाँ (नौ) हम दोनों का (संस्कृतम्) संस्कार होवे [अर्थात् मैं तेरी उपासना करूँ और तू मुझे बल देवे] ॥३५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य जगदीश्वर की उपासना करके पुण्यात्माओं के समान व्यवहार करते हैं, वे बली और सुखी होते हैं ॥३५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३५−(वृषभः) अ० ४।५।१। वृषु प्रजनैश्ययोः-अभच्, कित्। महाबली (असि) (स्वर्गः) सुखस्य गमयिता (ऋषीन्) सूक्ष्मदर्शिनः पुरुषान् (आर्षेयान्) म० १३। ऋषिषु विख्यातान् (गच्छ) प्राप्नुहि (सुकृताम्) सुकर्मिणाम् (लोके) समाजे (सीद) तिष्ठ (तत्र) समाजे (नौ) आवयोः। मम च तव च (संस्कृतम्) संस्कारः ॥

३६ समाचिनुष्वानुसम्प्रयाह्यग्ने पथः

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स॒माचि॑नुष्वानुस॒म्प्रया॒ह्यग्ने॑ प॒थः क॑ल्पय देव॒याना॑न्।
ए॒तैः सु॑कृ॒तैरनु॑ गच्छेम य॒ज्ञं नाके॒ तिष्ठ॑न्त॒मधि॑ स॒प्तर॑श्मौ ॥

३६ समाचिनुष्वानुसम्प्रयाह्यग्ने पथः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Gather thou together unto, go thou together forth after; O Agni,
    make ready (kalpay-) the roads traveled by the gods; by them,
    well-made, may we go after the offering, that stands upon the
    seven-rayed firmament.
Notes

All the mss. ⌊save one or two of SPP’s⌋ leave agne unaccented, as if
it belonged to a, and Bp. puts the double division-mark after it
accordingly; SPP. reads with the ⌊majority of his⌋ mss.; we have made
the necessary emendation to ágne. Ppp. reads at the beginning
samātanuṣva; for c it has yebhis sukṛtāir anu prajñeṣṭhaṅs sa
yajñe
. The comm. regards a as addressed to the rice-dish, which is
to ‘gather up ’ all its members. The verse is quoted in Kāuś. 63. 9, but
not in a way to cast any light upon it. TS. iv. 7. 13⁴ and MS. ii. 12. 4
are to be compared with the first half-verse, but they vary much from it
and from one another.

Griffith

Level the ways: go thitherward, O Agni. Make ready thou the Godward-leading pathways. By these our pious actions may we follow sacrifice dwelling in the seven-rayed heaven.

पदपाठः

स॒म्ऽआचि॑नुष्व। अ॒नु॒ऽसं॒प्रया॑हि। अ॒ग्ने॒। प॒थः। क॒ल्प॒य॒। दे॒व॒ऽयाना॑न्। ए॒तैः। सु॒ऽकृ॒तैः। अनु॑। ग॒च्छे॒म॒। य॒ज्ञम्। नाके॑। तिष्ठ॑न्तम्। अधि॑। स॒प्तऽर॑श्मौ। १.३६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • पुरोविराट्त्रिष्टुप्
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे विद्वान् पुरुष ! (देवयानान्) देवताओं [विजय चाहनेवालों] के चलने योग्य (पथः) मार्गों को (समाचिनुष्व) चौरस करके ठीक-ठीक सुधार, [उन पर] (अनु संप्रयाहि) निरन्तर यथाविधि आगे बढ़, [और उन्हें दूसरों के लिये] (कल्पय) बना। (एतैः) इन (सुकृतैः) सुन्दर [विचार से] बनाये हुए [मार्गों] द्वारा (सप्तरश्मौ) सात किरणोंवाले (नाके) [लोकों वा प्रकाश आदि के चलानेवाले] सूर्य पर (अधि) राजा होकर (तिष्ठन्तम्) ठहरे हुए (यज्ञम्) पूजनीय [परमात्मा] को (अनु) निरन्तर (गच्छेम) पावें ॥३६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि वे वेदद्वारा विचारपूर्वक अपना आचरण ऐसा धार्मिक बनावें, जिसके अनुकरण से सब मनुष्य सूर्य आदि के प्रकाशक परमात्मा को प्राप्त होकर शुभ गुणों से प्रकाशमान होवें। सूर्य की किरणों में शुल्क, नील, पीत, रक्त, हरित, कपिश और चित्र, ये सात वर्ण हैं ॥३६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३६−(समाचिनुष्व) चिञ् चयने-लोट्। समाभावेन समन्ताद् रचनं कुरु (अनु संप्रयाहि) निरन्तरं सम्यक् प्रकर्षेण गच्छ (अग्ने) हे विद्वन् पुरुष (पथः) मार्गान् (कल्पय) विरचय (देवयानान्) विजिगीषुभिर्गन्तव्यान् (एतैः) पूर्वोक्तैः (सुकृतैः) सुनिर्मितैः पथिभिः (अनु) निरन्तरम् (गच्छेम) प्राप्नुयाम (यज्ञम्) पूजनीयं परमात्मानम् (नाके) अ० १।९।२। पिनाकादयश्च। उ० ४।१५। णीञ् प्रापणे आकप्रत्ययः, टिलोपः। नाक आदित्यो भवति नेता रसानां नेता भासां ज्योतिषां प्रणयः-निरु० २।१४। लोकानां प्रकाशादीनां वा नेतरि सूर्ये। यस्मादधिकं यस्य चेश्वरवचनं तत्र सप्तमी। पा० २।३।९। इति कर्मप्रवचनीययुक्ते सप्तमी (तिष्ठन्तम्) विद्यमानम् (अधि) अधिरीश्वरे। पा० १।४।९९। इति ईश्वरार्थे कर्मप्रवचनीयत्वम्। ईश्वरो भूत्वा (सप्तरश्मौ) अ० ६।५।१५। शुक्लनीलपीतादिवर्णाः सप्तकिरणाः सन्ति यस्मिन् तस्मिन् ॥

३७ येन देवा

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येन॑ दे॒वा ज्योति॑षा॒ द्यामु॒दाय॑न्ब्रह्मौद॒नं प॒क्त्वा सु॑कृ॒तस्य॑ लो॒कम्।
तेन॑ गेष्म सुकृ॒तस्य॑ लो॒कं स्व᳡रा॒रोह॑न्तो अ॒भि नाक॑मुत्त॒मम् ॥

३७ येन देवा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. With what light the gods went up to the sky, having cooked the
    brahmán-rice-dish, to the world of the well-done, with that may we go
    to the world of the well-done, ascending the heaven, unto the highest
    firmament.
Notes

The second half-verse is identical with iv. 14. 6 c, d, above ⌊see
my note⌋. The comm. reads jeṣma in c, explaining it by jayema ⌊=
prāpnuyāma⌋. Ppp. has, instead of this repetition, a new half-verse:
taṁ tvā pacāmi jyotiṣāṁ jyotir uttamaṁ sa nas tad dhehi sukṛtām u
loke.

⌊The quoted Anukr. here says saptā ’nupūrveṇa śeṣāḥ syus triṅśateḥ
parāḥ
.⌋

Griffith

May we invested with that light go upward, ascending to the sky’s most lofty summit. Wherewith the Gods, what time they had made ready Brahmaudana, mounted to the world of virtue.

पदपाठः

येन॑। दे॒वाः। ज्योति॑षा। द्याम्। उ॒त्ऽआय॑न्। ब्र॒ह्म॒ऽओ॒द॒नम्। प॒क्त्वा। सु॒ऽकृ॒तस्य॑। लो॒कम्। तेन॑। गे॒ष्म॒। सु॒ऽकृ॒तस्य॑। लो॒कम्। स्वः॑। आ॒ऽरोह॑न्तः। अ॒भि। नाक॑म्। उ॒त्ऽत॒मम्। १.३७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • ब्रह्मौदनः
  • ब्रह्मा
  • विराड्जगती
  • ब्रह्मौदन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (येन ज्योतिषा) जिस ज्योति द्वारा (देवाः) देवता [विजय चाहनेवाले लोग] (ब्रह्मौदनम्) ब्रह्म-ओदन [वेदज्ञान, अन्न वा धन के बरसानेवाले परमेश्वर] को (पक्त्वा) पक्का [मन में दृढ़] करके (सुकृतस्य) पुण्य कर्म के (द्याम्) प्रकाशमान (लोकम्) लोक [समाज] को (उदायन्) ऊपर पहुँचे हैं, (तेन) उसी [ज्योति] से (उत्तमम्) उत्तम (नाकम्) दुःखरहित (स्वः) सुखस्वरूप परब्रह्म को (अभि=अभिलक्ष्य) लखकर (आरोहन्तः) चढ़ते हुए हम (सुकृतस्य) पुण्य कर्म के (लोकम्) समाज को (गेष्म) खोजें ॥३७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस वैदिक ज्योति द्वारा विजयी महात्मा लोगों ने चलकर परमात्मा को पाया है, उसी वैदिक ज्योति द्वारा परमात्मा को देखते हुए हम सब पुण्यात्माओं के बीच सुख पावें ॥३७॥इस मन्त्र का उत्तरार्ध आ चुका है-अ० ४।१४।६ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३७−(येन) (देवाः) विजिगीषवः (ज्योतिषा) प्रकाशेन (द्याम्) प्रकाशमानम् (उदायन्) इण् गतौ-लङ्। उदगच्छन् (ब्रह्मौदनम्) म० १। ब्रह्मणो वेदज्ञानस्यान्नस्य धनस्य वा सेचकं वर्षकं परमात्मानम् (पक्त्वा) दृढं कृत्वा (सुकृतस्य) सुकर्मणः (लोकम्) समाजम् (गेष्म) गेषृ अन्विच्छायाम्-लोट्। गेषामहै। अन्वेषणेन प्राप्नवामः। अन्यत् पूर्ववत्-अ० ४।१४।६ ॥