०१० वशा गौः

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Whitney subject
  1. Extolling the cow (vaśā́).
VH anukramaṇī

वशा गौः।
१-३४ कश्यपः। वशा। अनुष्टुप्, १ ककुम्मती, ५ पञ्चपदा॰ स्कन्धोग्रीवी बृहती, ६, ८, १० विराट्,
२३ बृहती, २४ उपरिष्टाद् बृहती, २६ आस्तारपङ्क्तिः, २७ शंकुमती,
२९ त्रिपदा विराड् गायत्री, ३१ उष्णिग्गर्भा, ३२ विराट् पथ्याबृहती।

Whitney anukramaṇī

[Kaśyapa.—catustriṅśat. mantroktavaśādevatyam. ānuṣṭubham: 1. kakummatī; 5. skandhogrīvābṛhatī; 6, 8, 10. virāj; 23. bṛhatī; 24. upariṣṭādbṛhatī; 26. āstārapan̄kti; 27. śan̄kumatī; 29. 3-p. virāḍ gāyatrī; 31. uṣṇiggarbhā; 32. virāṭ pathyābṛhatī.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. xvi. ⌊with the verse-sequence 15 a, b, 14 c, d, 13, 14 a, b, 15 c, d, 17, 16, 18; vs. 3 is lacking⌋. Not noticed in Vāit., and only once in Kāuś., at 66. 20, where vs. 1 (or the hymn ⌊rather the hymn⌋) is used, with xii. 4, to accompany the sprinkling of an offered cow.

Translations

Translated: Ludwig, p. 534; Deussen, Geschichte, i. 1. 234 (cf. p. 230 f., 233 f.); Henry, 35, 85; Griffith, ii. 45.

Griffith

A glorification of the sacred Cow as representing the radiant heavens

०१ नमस्ते जायमानायै

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नम॑स्ते॒ जाय॑मानायै जा॒ताया॑ उ॒त ते॒ नमः॑।
बाले॑भ्यः श॒फेभ्यो॑ रू॒पाया॑घ्न्ये ते॒ नमः॑ ॥

०१ नमस्ते जायमानायै ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Homage to thee while being born, homage also to thee when born; to
    thy tail-tuft, hoofs, form, O inviolable one, be homage.
Notes

The Anukr. chooses to reject the common resolution -bhi-as (twice) in
c.

Griffith

Worship to thee springing to life, and worship unto thee when born! Worship, O Cow, to thy tail-hair, and to thy hooves, and to thy form!

पदपाठः

नमः॑। ते॒। जाय॑मानायै। जा॒तायै॑। उ॒त। ते॒। नमः॑। बाले॑भ्यः। श॒फेभ्यः॑। रू॒पाय॑। अ॒घ्न्ये॒। ते॒। नमः॑। १०.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • ककुम्मत्यनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ते जायमानायै) तुझ प्रकट होती हुई को (नमः) नमस्कार (उत) और (ते जातायै) तुझ प्रकट हो चुकी को (नमः) नमस्कार है। (अघ्न्ये) हे न मारनेवाली [परमेश्वरशक्ति !] (बालेभ्यः) बलों के लिये और (शफेभ्यः) शान्तिव्यवहारों के लिये (ते) तेरे (रूपाय) स्वरूप [फैलाव] को (नमः) नमस्कार है ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर के जिन गुणों को बुद्धिमान् लोग जानते जाते हैं और जिनको जान चुके हैं, विवेकी जन उन अद्भुत गुणों को साक्षात् करके बल वृद्धि और शान्तिप्रचार के लिये परमेश्वर को सदा नमस्कार करें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(नमः) सत्कारः (ते) तुभ्यम् (जायमानायै) उत्पद्यमानायै (जातायै) पूर्वकालात् प्रसिद्धायै (उत) अपि (बालेभ्यः) बल प्राणने धान्यावरोधने च-घञ्। नानाबलेभ्यः (शफेभ्यः) अ० ९।७।१०। शम शान्तौ-अच्, मस्य फः। शान्तिव्यवहाराणां सिद्धये (रूपाय) स्वरूपाय। विस्ताराय (अघ्न्ये) अ० १०।९।३। नञ्+हन हिंसागत्योः-यक्, टाप्। हे अहिंसिके रक्षिके। परमेश्वरशक्ते। अन्यद् गतम् ॥

०२ यो विद्यात्सप्त

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यो वि॒द्यात्स॒प्त प्र॒वतः॑ स॒प्त वि॒द्यात्प॑रा॒वतः॑।
शिरो॑ य॒ज्ञस्य॒ यो वि॒द्यात्स व॒शां प्रति॑ गृह्णीयात् ॥

०२ यो विद्यात्सप्त ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Whoso may know the seven advances (? pravát), [and] may know the
    seven distances, whoso may know the head of the sacrifice—he may accept
    the cow (vaśā́).
Notes

Ppp. reads in b veda instead of vidyāt. The verse is quoted by
pratīka in GB. i. 2. 16.

Griffith

The man who knows the Seven Floods, who knows the seven distances, Who knows the head of sacrifice, he may receive the holy Cow.

पदपाठः

यः। वि॒द्यात्। स॒प्त। प्र॒ऽवतः॑। स॒प्त। वि॒द्यात्। प॒रा॒ऽवतः॑। शिरः॑। य॒ज्ञस्य॑। यः। वि॒द्यात्। सः। व॒शाम्। प्रति॑। गृ॒ह्णी॒या॒त्। १०.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • अनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [विद्वान्] (सप्त) सात [२ हाथ, २ पाँव, १ पायु, १ उपस्थ और १ उदर] (प्रवतः) उत्तम गतिवाले [लोकों] को (विद्यात्) जाने, और (सप्त) सात [२ कान, २ नथने, २ आँखें और १ मुख] (परावतः) दूर गतिवाले [लोकों] को (विद्यात्) जान जावे। (यः) जो (यज्ञस्य) यज्ञ [श्रेष्ठकर्म] के (शिरः) शिर [प्रधान अपने आत्मा] को (विद्यात्) जान लेवे, (सः) वह [पुरुष] (वशाम्) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] को (प्रति) प्रतीति से (गृह्णीयात्) ग्रहण करे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अपने शरीर के सात नीचे और सात ऊँचे, चौदह लोकों अर्थात् इन्द्रियों की अद्भुत शक्तियों को अपने आत्मा के सम्बन्ध के सहित जान लेवे, वही पुरुष सबके निर्माता परमेश्वर की शक्ति को साक्षात् करके अपनी शक्ति बढ़ावे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(यः) विद्वान् (विद्यात्) जानीयात् (सप्त) हस्तपादद्वयपायूपस्थोदररूपान् (प्रवतः) अ० ३।१।४। प्र-वति धात्वर्थे साधने। प्रकृष्टगतीन् लोकान् (सप्त) कर्णनासिकाचक्षुर्द्वयमुखरूपान् (परावतः) अ० ३।४।५। परा-वति धात्वर्थे साधने। दूरगतीन् देशान् (शिरः) प्रधानः स्वात्मेत्यर्थः (यज्ञस्य) श्रेष्ठव्यवहारस्य (सः) पुरुषः (वशाम्) वशिरण्योरुपसंख्यानम्। वा० पा० ३।३।५८। वश कान्तौ-अप्। वशा स्वाधीना−महीधरभाष्ये-यजु० २।१६। वशा कमनीयानि-दयानन्दभाष्ये, ऋक्० २।२४।१३। कमनीयां परमेश्वरशक्तिम् (प्रति) प्रतीत्या (गृह्णीयात्) स्वीकुर्यात् ॥

०३ वेदाहं सप्त

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वेदा॒हं स॒प्त प्र॒वतः॑ स॒प्त वे॑द परा॒वतः॑।
शिरो॑ य॒ज्ञस्या॒हं वे॑द॒ सोमं॑ चास्यां विचक्ष॒णम् ॥

०३ वेदाहं सप्त ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. I know the seven advances, I know the seven distances; I know the
    head of the sacrifice, and the outlooking soma in her.
Notes

This verse, with a part of the preceding one, is wanting in Ppp.
Asyām, sc. vaśā́yām.⌋

Griffith

I know the Seven Water-floods, I know the seven distances, I know the head of sacrifice, and Soma shining bright in her.

पदपाठः

वेद॑। अ॒हम्। स॒प्त। प्र॒ऽवतः॑। स॒प्त। वे॒द॒। प॒रा॒ऽवतः॑। शिरः॑। य॒ज्ञस्य॑। अ॒हम्। वे॒द॒। सोम॑म्। च॒। अ॒स्या॒म्। वि॒ऽच॒क्ष॒णम्। १०.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • अनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अहम्) मैं (सप्त) सात [मन्त्र २] (प्रवतः) उत्तम गतिवाले [लोकों] को (वेद) जानता हूँ, (सप्त) सात [मन्त्र २] (परावतः) दूर गतिवाले [लोकों] को (वेद) जानता हूँ। (अहम्) मैं (यज्ञस्य) यज्ञ [श्रेष्ठ कर्म] के (शिरः) शिर [प्रधान अपने आत्मा] को (च) और (अस्याम्) इस [कमनीय शक्ति मन्त्र २] में वर्तमान (विचक्षणम्) विविध द्रष्टा [महापण्डित] (सोमम्) सर्वप्रेरक [परमात्मा] को (वेद) जानता हूँ ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जब मनुष्य अपने शरीर के चौदह भुवन और अपने आत्मा की विचित्र गति को जान लेता है, वह परमेश्वर को और उसकी शक्ति को जानने में समर्थ होता है−मन्त्र २ देखो ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(वेद) जानामि (अहम्) उपासकः (सोमम्) सोमः सूर्यः प्रसवनात्, सोम आत्माप्येतस्मादेव-निरु० १४।१२। सर्वोत्पादकं सर्वप्रेरकं वा परमात्मानम् (च) (अस्याम्) वशायाम्। कमनीयायां शक्तौ वर्तमानम् (विचक्षणम्) विविधद्रष्टारम्। अन्यत् पूर्ववत्−म० २ ॥

०४ यया द्यौर्यया

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यया॒ द्यौर्यया॑ पृथि॒वी ययापो॑ गुपि॒ता इ॒माः।
व॒शां स॒हस्र॑धारां॒ ब्रह्म॑णा॒च्छाव॑दामसि ॥

०४ यया द्यौर्यया ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. By whom the sky, by whom the earth, by whom these waters are
    guarded—the cow, of a thousand streams (-dhā́rā), we address with
    worship (bráhman).
Notes

We need to resolve -dhāra-ām in c in order to make out the full
pāda which the Anukr. assumes.

Griffith

Hitherward we invite with prayer the Cow who pours a thou- sand streams, By whom the heaven, by whom the earth, by whom these waters are preserved.

पदपाठः

यया॑। द्यौः। यया॑। पृ॒थि॒वी। यया॑। आपः॑। गु॒पि॒ताः। इ॒माः। व॒शाम्। स॒हस्र॑ऽधाराम्। ब्रह्म॑णा। अ॒च्छ॒ऽआव॑दामसि। १०.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • अनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यया) जिस [शक्ति] करके (द्यौः) सूर्य, (यया) जिस करके (पृथिवी) पृथिवी और (यया) जिस करके (इमाः) यह (आपः) प्रजाएँ (गुपिताः) रक्षित हैं, (सहस्रधाराम्) सहस्रों पदार्थों की धारण करनेवाली (वशाम्) [उस] वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] को (ब्रह्मणा) वेद द्वारा (अच्छावदामसि) हम आदर से बुलाते हैं ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - हम लोग वेद द्वारा परमेश्वर की सर्वरक्षक शक्ति को यथावत् जानकर अपना सामर्थ्य बढ़ावें ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(यया) शक्त्या (द्यौः) सूर्यः (पृथिवी) (आपः) आप्ताः प्रजाः-दयानन्दभाष्ये, यजु० ६।२७ (गुपिताः) रक्षिताः (इमाः) दृश्यमानाः (वशाम्) म० २। कमनीयां परमात्मशक्तिम् (सहस्रधाराम्) अ० ७।१५।१। असंख्यपदार्थानां धरित्रीम् (ब्रह्मणा) वेदद्वारा (अच्छावदामसि) अ० ७।३८।३। सत्कारेणाह्वयामः। अन्यद् गतम् ॥

०५ शतं कंसाः

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श॒तं कं॒साः श॒तं दो॒ग्धारः॑ श॒तं गो॒प्तारो॒ अधि॑ पृ॒ष्ठे अ॑स्याः।
ये दे॒वास्तस्यां॑ प्रा॒णन्ति॑ ते व॒शां वि॑दुरेक॒धा ॥

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Whitney
Translation
  1. A hundred metal dishes (kaṅsá), a hundred milkers, a hundred
    guardians, upon the back of her; the gods that breathe in her, they know
    the cow singly.
Notes

The verse (9 + 11: 8 + 8 = 36) is a bṛhatī in number of syllables
only.

Griffith

Upon her back there are a hundred keepers, a hundred metal bowls, a hundred milkers. The Deities who breathe in her all separately know the Cow.

पदपाठः

श॒तम्। कं॒साः। श॒तम्। दो॒ग्धारः॑। श॒तम्। गो॒प्तारः॑। अधि॑। पृ॒ष्ठे। अ॒स्याः॒। ये। दे॒वाः। तस्या॑म्। प्रा॒णन्ति॑। ते। व॒शाम्। वि॒दुः॒। ए॒क॒ऽधा। १०.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • पञ्चपदातिजागतानुष्टुब्गर्भा स्कन्धोग्रीवी बृहती
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शतम्) सौ [बहुत से] (कंसाः) कामना करनेवाले, (शतम्) सौ (दोग्धारः) दोहनेवाले, (शतम्) सौ (गोप्तारः) रक्षा करनेवाले [पुरुष] (अस्याः) इस [शक्ति] की (पृष्ठे) पीठ पर [सहारे में] (अधि) अधिकारपूर्वक हैं। और (ये) जो (देवाः) विद्वान् लोग (तस्याम्) उस [शक्ति] में (प्राणन्ति) जीवन करते हैं, (ते) वे लोग (वशाम्) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] को (एकधा) एक प्रकार से [सत्य रीति से] (विदुः) जानते हैं ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो-जो पुरुष कामना करके खोज लगाते हुए परमेश्वर की शक्ति का आश्रय लेकर पुरुषार्थ से जीवन करते हैं, वे ही उस के सत्य ज्ञान को प्राप्त होते हैं ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(शतम्) शतं बहुनाम-निघ० ३।१ (कंसाः) वृतॄवदिवचिवसिहनिकमिकषिभ्यः सः। उ० ३।६२। कमु कान्तौ-स प्रत्ययः। कामयमानाः (दोग्धारः) प्रपूरयितारः। अन्वेष्टारः (गोप्तारः) रक्षितारः (अधि) अधिकारपूर्वकं (पृष्ठे) आश्रये (अस्याः) वशायाः (ये) देवाः विद्वांसः (तस्याम्) वशायाम् (प्राणन्ति) प्रकर्षेण जीवन्ति (ते) (वशाम्) म० २। कमनीयां परमात्मशक्तिम् (विदुः) जानन्ति (एकधा) एकप्रकारेण। सत्यरीत्या ॥

०६ यज्ञपदीराक्षीरा स्वधाप्राणा

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य॑ज्ञप॒दीरा॑क्षीरा स्व॒धाप्रा॑णा म॒हीलु॑का।
व॒शा प॒र्जन्य॑पत्नी दे॒वाँ अप्ये॑ति॒ ब्रह्म॑णा ॥

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Whitney
Translation
  1. Having the sacrifice for feet, cheer (írā-) for milk, svadhā́ for
    breath, being mahī́lukā, the cow, having Parjanya for spouse, goes unto
    the gods with worship (bráhman).
Notes

Ppp. reads for a, b yajñapatir ākṣīrāt svadhāprāṇā mahilokāḥ,
which does not solve the problem of the obscure word mahī́lukā (found
nowhere else). There is no need of calling the verse virāj.

Griffith

Her foot is sacrifice, her milk libation, Svadha her breath, Mahi- luka the mighty: To the God goes with prayer the Cow who hath Parjanya for her lord.

पदपाठः

य॒ज्ञ॒ऽप॒दी। इरा॑ऽक्षीरा। स्व॒धाऽप्रा॑णा। म॒हीलु॑का। व॒शा। प॒र्जन्य॑ऽपत्नी। दे॒वान्। अपि॑। ए॒ति॒। ब्रह्म॑णा। १०.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • विराडनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यज्ञपदी) यज्ञ [श्रेष्ठ व्यवहार] में स्थितिवाली, (इराक्षीरा) अन्न और जलवाली, (स्वधाप्राणा) अपनी धारण शक्ति से जानेवाली, (महीलुका) बड़ी दीप्तिवाली, (पर्जन्यपत्नी) मेघ की पालनेवाली (वशा) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (देवान्) विद्वानों को (ब्रह्मणा) वेद द्वारा (अपि एति) पहुँच जाती है ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग श्रेष्ठ कामों से वेद द्वारा ईश्वरशक्ति का ज्ञान प्राप्त करते हैं ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(यज्ञपदी) पद स्थैर्ये गतौ च-अच् ङीप्। यज्ञे श्रेष्ठव्यवहारे पदं स्थानं यस्याः सा (इराक्षीरा) इरा अन्नम्-निघ० २।७। क्षीरमुदकम्-निघ० १।१२। इरा च क्षीरं च इराक्षीरम्, ततो मत्वर्थे अर्शाद्यच्, टाप्। अन्नजलवती (स्वधाप्राणा) स्वधया स्वधारणशक्त्या प्राणिति जीवतीति सा तथा−भूता (महीलुका) रुच दीप्तावभिप्रीतौ च-क्विप्, टाप्। महती रुचा दीप्तिर्यस्याः सा (वशा) म० २। कमनीया परमेश्वरशक्तिः (पर्जन्यपत्नी) देवपत्न्यो देवानां पत्न्यः-निरु० १२।४४। मेघस्य पालयित्री (देवान्) विदुषः पुरुषान् (अपि) एव (एति) प्राप्नोति (ब्रह्मणा) वेदद्वारा ॥

०७ अनु त्वाग्निः

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अनु॑ त्वा॒ग्निः प्रावि॑श॒दनु॒ सोमो॑ वशे त्वा।
ऊध॑स्ते भद्रे प॒र्जन्यो॑ वि॒द्युत॑स्ते॒ स्तना॑ वशे ॥

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Whitney
Translation
  1. After thee entered Agni, after thee Soma, O cow; thine udder, O
    excellent one, is Parjanya; the lightnings are thy teats, O cow.
Notes
Griffith

Agni hath entered into thee; Soma, O Cow, hath entered thee. Thine udder is Parjanya, O blest Cow; the lightnings are thy teats.

पदपाठः

अनु॑। त्वा॒। अ॒ग्निः। प्र। अ॒वि॒श॒त्। अनु॑। सोमः॑। व॒शे॒। त्वा॒। ऊधः॑। ते॒। भ॒द्रे॒। प॒र्जन्यः॑। वि॒ऽद्युतः॑। ते॒। स्तनाः॑। व॒शे॒। १०.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • अनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वशे) हे वशा ! [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (त्वा अनु) तेरे पीछे-पीछे (अग्निः) अग्नि ने [पदार्थों में], (त्वा अनु) तेरे पीछे-पीछे (सोमः) प्रेरणा करनेवाले [जीवात्मा] ने [शरीर में] (प्र अविशत्) प्रवेश किया है। (भद्रे) हे कल्याणी ! (वशे) वशा ! (पर्जन्यः) मेघ (ते) तेरा (ऊधः) मेड़ [दुग्ध के छिद्रस्थान के समान] और (विद्युतः) बिजुलिएँ (ते) तेरे (स्तनाः) स्तन [दुग्ध के आधारों के समान] हैं ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर की ही शक्ति से अग्नि, जीवात्मा, मेघ, बिजुली आदि अपना-अपना काम करते हैं ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(अनु) अनुसृत्य (त्वा) त्वाम् (अग्निः) पावकः (प्र अविशत्) प्रविष्टवान् (अनु) (सोमः) सोमः सूर्यः प्रसवनात्, सोम आत्माप्येतस्मादेव-निरु० १४।१२। शरीरस्य प्रेरको जीवात्मा (वशे) म० २। कमनीये परमात्मशक्ते (त्वा) (ऊधः) आपीनम् (ते) तव (भद्रे) हे कल्याणि (पर्जन्यः) मेघः (विद्युतः) तडितः (स्तनाः) दुग्धाधाराः ॥

०८ अपस्त्वं धुक्षे

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अ॒पस्त्वं धु॑क्षे प्रथ॒मा उ॒र्वरा॒ अप॑रा वशे।
तृ॒तीयं॑ रा॒ष्ट्रं धु॒क्षेऽन्नं॑ क्षी॒रं व॑शे॒ त्वम् ॥

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Whitney
Translation
  1. The waters thou yieldest (duh) first, the cultivated fields after,
    O cow; thou yieldest kingdom third, food, milk, O cow.
Notes

The permissible resolution rāṣ-ṭṛ-ám in c would obviate the
necessity of reckoning the verse as virāj. Ppp. combines in b
urvarā ’parā.

Griffith

Thou pourest out the Waters first, and corn-lands afterward, O Cow. Thirdly thou pourest princely sway. O Cow, thou pourest food and milk.

पदपाठः

अ॒पः। त्वम्। धु॒क्षे॒। प्र॒थ॒माः। उ॒र्वराः॑। अप॑राः। व॒शे॒। तृ॒तीय॑म्। रा॒ष्ट्रम्। धु॒क्षे॒। अन्न॑म्। क्षी॒रम्। व॒शे॒। त्वम्। १०.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • विराडनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वशे) हे वशा ! [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (त्वम्) तू (प्रथमाः) प्रधान और (अपराः) अप्रधान (अपः) प्रजाओं को (उर्वराः) उपजाऊ भूमियों से (धुक्षे) भरपूर करती है। (वशे) हे वशा ! [कामनायोग्य शक्ति] (त्वम्) तू (अन्नम्) अन्न, (क्षीरम्) जल और (तृतीयम्) तीसरे (राष्ट्रम्) राज्य से [संसार] को (धुक्षे) भरपूर करती है ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर की शक्ति से ही बड़े छोटे तथा मध्यम जीवों के लिये भोजन उत्पन्न होते हैं, और संसार में अन्न, जल और राज्यव्यवस्था चलती है ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(अपः) म० ४। प्रजाः। सृष्टपदार्थाः (त्वम्) (धुक्षे) दुह प्रपूरणे-लट्, द्विकर्मकः। प्रपूरयसि (प्रथमाः) प्रधानाः (उर्वराः) सर्वशस्ययुक्तभूमिभ्यः सकाशात् (अपराः) अप्रधानाः (वशे) म० २ (तृतीयम्) (राष्ट्रम्) राज्यम् (धुक्षे) प्रपूरयसि संसारमिति शेषः (अन्नम्) भोजनम् (क्षीरम्) अ० १।१५।४। जलम्-निघ० १।१२। अन्यद् गतम् ॥

०९ यदादित्यैर्हूयमानोपातिष्ठ ऋतावरि

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यदा॑दि॒त्यैर्हू॒यमा॑नो॒पाति॑ष्ठ ऋतावरि।
इन्द्रः॑ स॒हस्रं॒ पात्रा॒न्त्सोमं॑ त्वापाययद्वशे ॥

०९ यदादित्यैर्हूयमानोपातिष्ठ ऋतावरि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. When, called by the Ādityas, thou didst approach, O righteous one,
    Indra made thee drink a thousand vessels (pā́tra) of soma, O cow.
Notes

By a notable inconsistency, the Anukr. reckons this verse as a complete
anuṣṭubh, although it requires, to make it such, precisely the same
resolution (pā́-tṛ-ān) as vs. 8.

Griffith

When, Holy One, thou camest nigh invited by the Adityas’ call, Indra gave thee to drink, O cow, a thousand bowls of Soma juice.

पदपाठः

यत्। आ॒दि॒त्यैः। हू॒यमा॑ना। उ॒प॒ऽअति॑ष्ठः। ऋ॒त॒ऽव॒रि॒। इन्द्रः॑। स॒हस्र॑म्। पात्रा॑न्। सोम॑म्। त्वा॒। अ॒पा॒य॒य॒त्। व॒शे॒। १०.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतावरि) हे सत्यशीला ! (यत्) जब (आदित्यैः) आदित्यों [अखण्ड ब्रह्मचारियों] करके (हूयमाना) पुकारी गई तू (उपातिष्ठः) पास पहुँची, (वशे) हे वशा ! [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (इन्द्रः) इन्द्र [परमेश्वर] ने (सहस्रम्) सहस्र [अनेक] (पात्रान्) रक्षणीय दानयोग्य पुरुषों को (सोमम्) मोक्षरूपी अमृत (त्वा=त्वया) तुझ से (अपाययत्) पान कराया है ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग ईश्वरशक्ति को पहिचानते हैं और वे सब पुरुष परमेश्वर के नियम अनुसार दुःखों से छूटकर आनन्द भोगते हैं ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(यत्) यदा (आदित्यैः) अखण्डब्रह्मचारिभिः (हूयमाना) कृताह्वाना (उपातिष्ठः) समीपं स्थितवती (ऋतावरि) अ० ३।१३।७। हे सत्यशीले (इन्द्रः) परमेश्वरः (सहस्रम्) बहून् (पात्रान्) रक्षणीयान् दानयोग्यान् पुरुषान् (सोमम्) मोक्षरूपममृतम् (त्वा) त्वया इत्यर्थः (अपाययत्) पानं कारितवान् (वशे) म० २ ॥

१० यदनूचीन्द्रमैरात्त्वा ऋषभोह्वयत्

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यद॒नूचीन्द्र॒मैरात्त्वा॑ ऋष॒भो᳡ह्व॑यत्।
तस्मा॑त्ते वृत्र॒हा पयः॑ क्षी॒रं क्रु॒द्धो᳡ह॑रद्वशे ॥

१० यदनूचीन्द्रमैरात्त्वा ऋषभोह्वयत् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. When thou didst go following (anváñc) Indra, then the bull called
    thee; therefore the Vṛitra-slayer, angry, took thy milk (páyas), milk
    (kṣīrá), O cow.
Notes

All the saṁhitā-mss. accent in b -bhó ‘hvayat, and one.
pada-ms. (D.) has accordingly áhvayat. In like manner, all save
R.p.m. have kruddhó ‘har- in d. In both cases our edition emends
to ò. In this verse also (as in 6, 8) the designation virāj is
uncalled-for. Ppp. reads uvūcī in a, and ād vṛṣabho in b.

Griffith

The Bull, what time thou followedst the way of Indra, summon- ed thee: Thence the Fiend-slayer, angered, took thy water and thy milk away.

पदपाठः

यत्। अ॒नूची॑। इन्द्र॑म्। ऐः। आत्। त्वा॒। ऋ॒ष॒भः। अ॒ह्व॒य॒त्। तस्मा॑त्। ते॒। वृ॒त्र॒ऽहा। पयः॑। क्षी॒रम्। क्रु॒ध्दः। अ॒ह॒र॒त्। व॒शे॒। १०.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
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  • विराडनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जब (इन्द्रम् अनूची) जीवात्मा के पीछे चलती हुई तू (ऐः) गई है, (आत्) तब (ऋषभः) सूक्ष्मदर्शी परमेश्वर ने (त्वा) तुझे (अह्वयत्) बुलाया। (वशे) हे वशा ! [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (तस्मात्) उस [पुरुष] से (ते) तेरे लिये (क्रुद्धः) क्रुद्ध (वृत्रहा) अन्धकारनाशक [परमेश्वर] ने (पयः) अन्न और (क्षीरम्) जल को (अहरत्) ले लिया ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमेश्वर की सर्वव्यापक शक्ति में झगड़ा करके हाथ बढ़ाना चाहता है, वह मनुष्य मतिभ्रष्ट होकर दुःख भोगता है ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(यत्) यदा (अनूची) अ० ३।१।४। अनु+अञ्चु गतिपूजनयोः-क्विन्, ङीप्। पश्चाद् गच्छन्ती (इन्द्रम्) जीवात्मानम् (ऐः) अगच्छः (आत्) तदा (त्वा) त्वाम् (ऋषभः) अ० ३।४।६। ऋषिर्दर्शनात्-निरु० २।११। सूक्ष्मदर्शी परमेश्वरः (अह्वयत्) आहूतवान् (तस्मात्) जीवात्मनः (ते) तुभ्यम् (वृत्रहा) अन्धकारनाशकः परमात्मा (पयः) अन्नम्-निघ० २।७। (क्षीरम्) जलम्-निघ० १।१२। (क्रुद्धः) कुपितः (अहरत्) हूतवान् (वशे) म० २ ॥

११ यत्ते क्रुद्धो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यत्ते॑ क्रु॒द्धो धन॑पति॒रा क्षी॒रमह॑रद्वशे।
इ॒दं तद॒द्य नाक॑स्त्रि॒षु पात्रे॑षु रक्षति ॥

११ यत्ते क्रुद्धो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. When the lord of riches, angry, took thy milk, O cow, then this the
    firmament (nā́ka) now keeps (rakṣ) in three vessels.
Notes

Ppp. reads, in a-b, -patiḥ kṣīraṁ dehi bharad vaśe.

Griffith

O Cow, the milk which in his wrath the Lord of Riches took from thee, That same the vault of heaven now preserveth in three reser- voirs.

पदपाठः

यत्। ते॒। क्रु॒ध्दः। धन॑ऽपतिः। आ। क्षी॒रम्। अह॑रत्। व॒शे॒। इ॒दम्। तत्। अ॒द्य। नाकः॑। त्रि॒षु। पात्रे॑षु। र॒क्ष॒ति॒। १०.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वशे) हे वशा ! [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (यत्) जब (क्रुद्धः) क्रुद्ध (धनपतिः) धनों के स्वामी [परमेश्वर] ने (ते) तेरे लिये (क्षीरम्) जल [उत्पत्ति साधन] को (आ अहरत्) [दुष्ट जन से] ले लिया, (तत्) तब (इदम्) जल को (अद्य) आज (नाकः) क्लेशशून्य [आनन्दस्वरूप परमात्मा] (त्रिषु) तीन [ऊँचे, नीचे और मध्य] (पात्रेषु) रक्षा के आधार [लोकों] में (रक्षति) रक्षित रखता है ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमात्मा की महिमा को न माननेवाले पुरुष को [मन्त्र १० देखो] वह क्रुद्ध जगदीश्वर निर्बल करके उत्पत्ति साधन आदि द्रव्य को यथानियम ऊपर-नीचे और मध्य लोकों में विभाग करके देता है ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(यत्) यदा (ते) तुभ्यम् (क्रुद्धः) कुपितः (धनपतिः) धनानां स्वामी परमेश्वरः (आ) समन्तात् (क्षीरम्) जलम् (अहरत्) गृहीतवान् (वशे) म० २। हे कमनीये (इदम्) इन्देः कमिन्नलोपश्च। उ० ४।१५७। इदि परमैश्वर्ये-कमिन्, नलोपः। उदकम्-निघ० १।१२। (तत्) तदा (अद्य) अस्मिन् दिने (नाकः) क्लेशशून्यः। सुखस्वरूपः परमेश्वरः (त्रिषु) उच्चनीचमध्येषु (पात्रेषु) रक्षाधारेषु लोकेषु (रक्षति) पाति ॥

१२ त्रिषु पात्रेषु

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त्रि॒षु पात्रे॑षु॒ तं सोम॒मा दे॒व्य᳡हरद्व॒शा।
अथ॑र्वा॒ यत्र॑ दीक्षि॒तो ब॒र्हिष्यास्त॑ हिर॒ण्यये॑ ॥

१२ त्रिषु पात्रेषु ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. In three vessels the heavenly cow took that soma, where Atharvan,
    consecrated, sat on a golden barhís.
Notes

Ppp. reads hitaṁ for tam in a, and ādyevy abharad in b.

Griffith

The Cow Celestial received that Soma in three vessels, where. Atharvan, consecrated, sate upon the Sacred Grass of gold.

पदपाठः

त्रि॒षु। पात्रे॑षु। तम्। सोम॑म्। आ। दे॒वी। अ॒ह॒र॒त्। व॒शा। अथ॑र्वा। यत्र॑। दी॒क्षि॒तः। ब॒र्हिषि॑। आस्त॑। हि॒र॒ण्यये॑। १०.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (त्रिषु) तीन [ऊँचे, नीचे और मध्य] (पात्रेषु) रक्षा के आधार [लोकों] में वर्तमान (तम्) उस (सोमम्) सर्वप्रेरक [परमेश्वर] को (देवी) विजयिनी (वशा) [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] ने (आ) सब प्रकार (अहरत्) स्वीकार किया। (यत्र) जहाँ [तीनों लोकों] में (दीक्षितः) नियमवान् (अथर्वा) निश्चल परमात्मा (हिरण्यये) तेजोमय (बर्हिषि) वृद्धि के बीच (आस्त) बैठा है ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - बुद्धिमान् लोग ईश्वरशक्ति को त्रिलोकवर्ती परमेश्वर के आधीन जानते हैं, जो तेजोमय सदा प्रवृद्ध स्वतन्त्र परमात्मा सबका स्वामी है। तात्पर्य यह है कि ईश्वर और ईश्वरशक्ति में नित्य सम्बन्ध है ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(त्रिषु) उच्चनीचमध्येषु (पात्रेषु) रक्षाधारेषु लोकेषु (सोमम्) सर्वप्रेरकं परमात्मानम् (आ) समन्तात् (देवी) विजयिनी (अहरत्) स्वीकृतवती (वशा) म० २। कमनीया परमात्मशक्तिः (अथर्वा) अ० ४।१।७। अ+थर्व चरणे-वनिप्। निश्चलः परमेश्वरः (यत्र) त्रिषु लोकेषु (दीक्षितः) तदस्य संजातं तारकादिभ्य इतच्। पा० ५।२।६। दीक्षा-इतच्। नियमवान् (बर्हिषि) वृद्धौ (आस्त) आस-लङ्। उपविष्टवान् (हिरण्यये) तेजोमये ॥

१३ सं हि

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सं हि सोमे॒नाग॑त॒ समु॒ सर्वे॑ण प॒द्वता॑।
व॒शा स॑मु॒द्रमध्य॑ष्ठाद्गन्ध॒र्वैः क॒लिभिः॑ स॒ह ॥

१३ सं हि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Since she has united (sam-gam) with soma, and with all that has
    feet, the cow has stood upon the ocean, together with the Gandharvas,
    the kalís.
Notes

Before this verse, Ppp. sets one made up of our 15 a, b and 14 c,
d
. Pada-text in c ádhi: asthāt. ⌊As to kali, cf. Bergaigne,
Rel. Véd. ii. 482.⌋ ⌊For ágata, see Gram. §834 b.⌋

Griffith

Come hither with the Soma, come with every footed thing; the Cow With Kalis and Gandharvas by her side hath stepped upon the sea.

पदपाठः

सम्। हि। सोमे॑न। अग॑त। सम्। ऊं॒ इति॑। सर्वे॑ण। प॒त्ऽवता॑। व॒शा। स॒मु॒द्रम्। अधि॑। अ॒स्था॒त्। ग॒न्ध॒र्वैः। क॒लिऽभिः॑। स॒ह। १०.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वशा) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (हि) ही (सोमेन) ऐश्वर्य के साथ (उ) और (सर्वेण) प्रत्येक (पद्वता) पाँववाले [चलते-फिरते पुरुषार्थी] के साथ (सम् सम् अगत्) निरन्तर संयुक्त हुई है, और (गन्धर्वैः) पृथिवी धारण करनेवाले और (कलिभिः सह) गणना करनेवाले [गुणों] के साथ (समुद्रम्) अन्तरिक्ष की (अधि अस्थात्) अधिष्ठात्री हुई है ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्रत्येक पुरुषार्थी जीव अपने पुरुषार्थ के अनुसार ईश्वरशक्ति से फल पाता है ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(हि) निश्चयेन (सोमेन) ऐश्वर्येण (सम् सम् अगत्) अभ्यासे भूयांसमर्थं मन्यन्ते-निरु० १०।४२। समो गम्यृच्छिप्रच्छि०। पा–० १।३।२९। आत्मनेपदम्। मन्त्रे घसह्वरणश०। पा० २।४।८०। च्लेर्लुक्। अनुदात्तोपदेशवनतितनोत्यादीनाम०। पा० ६।४।३७। अनुनासिकलोपः। निरन्तरं संगतवती (उ) च (सर्वेण) प्रत्येकेन (पद्वता) पदयुक्तेन। गतिशीलेन (वशा) म० २। (समुद्रम्) अन्तरिक्षम् (अध्यष्ठात्) अधिकृतवती (गन्धर्वैः) अ० २।१।२। पृथिवीधारकैर्गुणैः (कलिभिः) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। कल गतौ संख्याने च। गणकैर्गुणैः (सह) ॥

१४ सं हि

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सं हि वाते॒नाग॑त॒ समु॒ सर्वैः॑ पत॒त्रिभिः॑।
व॒शा स॑मु॒द्रे प्रानृ॑त्य॒दृचः॒ सामा॑नि॒ बिभ्र॑ती ॥

१४ सं हि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Since she has united with the wind, and with all winged ones, the
    cow danced forth in the ocean, bearing the verses, the chants.
Notes

Ppp. combines (as above noted) our 15 a, b and 14 c, d, and then
again our 14 a, b and 15 c, d, without other variant.

Griffith

Come hither with the Wind, yea, come with every creature borne on wings. Laden with holy verse and song the Cow hath leapt into the sea.

पदपाठः

सम्। हि। वाते॑न। अग॑त। सम्। ऊं॒ इति॑। सर्वैः॑। प॒त॒त्रिऽभिः॑। व॒शा। स॒मु॒द्रे। प्र। अ॒नृ॒त्य॒त्। ऋचः॑। सामा॑नि। बिभ्र॑ती। १०.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋचः) स्तुतियोग्य [वेदवाणियों] और (सामानि) मोक्षज्ञानों को (बिभ्रती) रखती हुई (वशा) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (हि) ही (वातेन) वायु से (उ) और (सर्वैः) सब (पतत्रिभिः) पक्षियों से (सम् सम् अगत) निरन्तर मिली है, और उसने (समुद्रे) अन्तरिक्ष में (प्र) अच्छे प्रकार (अनृत्यत्) अङ्ग फड़काए हैं ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ईश्वरशक्ति ईश्वरवाणी को मानती हुई वायु, पक्षियों और सब लोकों को अन्तरिक्ष में चलाती हुई विराजमान है ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४−(वातेन) वायुना (सम् सम् अगत) म० १३। निरन्तरं संगतवती (सर्वैः) समस्तैः (पतत्रिभिः) पक्षिभिः (समुद्रे) अन्तरिक्षे (प्र) प्रकर्षेण (अनृत्यत्) अङ्गानि विक्षिप्तवती (ऋचः) स्तुत्या वेदवाणीः (सामानि) अ० ७।५४।१। मोक्षज्ञानानि (बिभ्रती) धारयन्ती। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१५ सं हि

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सं हि सूर्ये॑णागत॒ समु॒ सर्वे॑ण॒ चक्षु॑षा।
व॒शा स॑मु॒द्रमत्य॑ख्यद्भ॒द्रा ज्योतीं॑षि॒ बिभ्र॑ती ॥

१५ सं हि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Since she has united with the sun, and with all sight, the cow has
    overlooked the ocean, bearing excellent lights.
Notes

Some of the mss. (P.M.E.) read in c aty akṣad (K. akṣyad).

Griffith

Come with the Sun, come hitherward with every creature that hath eyes, Bearing auspicious lights with her the Cow hath looked across the sea.

पदपाठः

सम्। हि। सूर्ये॑ण। अग॑त। सम्। ऊं॒ इति॑। सर्वे॑ण। चक्षु॑षा। व॒शा। स॒मु॒द्रम्। अति॑। अ॒ख्य॒त्। भ॒द्रा। ज्योतीं॑षि। बिभ्र॑ती। १०.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (भद्रा) उत्तम (ज्योतींषि) ज्योतियों को (बिभ्रती) रखती हुई (वशा) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (हि) ही (सूर्येण) सूर्य के साथ (उ) और (सर्वेण) प्रत्येक (चक्षुषा) दृष्टि के साथ (सम् सम् अगत) निरन्तर मिली है और उसने (समुद्रम्) अन्तरिक्ष को (अति) अत्यन्त करके (अख्यत्) प्रकाशित किया है ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ईश्वर की शक्ति से ही सूर्य में, और सूर्य द्वारा आँख में और अन्तरिक्ष के सब लोकों को प्रकाश पहुँचता है ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १५−(सूर्येण) सूर्यमण्डलेन (चक्षुषा) दर्शनशक्त्या (अति) अत्यन्तम् (अख्यत्) चक्षिङ् व्यक्तायां वाचि दर्शने च। प्रकाशितवती (भद्रा) श्रेष्ठानि (ज्योतींषि) प्रकाशान्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१६ अभीवृता हिरण्येन

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अ॒भीवृ॑ता॒ हिर॑ण्येन॒ यद॑तिष्ठ ऋतावरि।
अश्वः॑ समु॒द्रो भू॒त्वाध्य॑स्कन्दद्वशे त्वा ॥

१६ अभीवृता हिरण्येन ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. As, O righteous one, thou didst stand decked (abhi-vṛ) with gold,
    the ocean, having become a horse, mounted (adhi-skand) thee, O cow.
Notes

Ppp. puts this verse after our 17.

Griffith

When, covered round about with gold, thou stoodest there, O Holy One, The ocean turned into a horse and mounted on thy back, O Cow,

पदपाठः

अ॒भिऽवृ॑ता। हिर॑ण्येन। यत्। अति॑ष्ठः। ऋ॒त॒ऽव॒रि॒। अश्वः॑। स॒मु॒द्रः। भू॒त्वा। अधि॑। अ॒स्क॒न्द॒त्। व॒शे॒। त्वा॒। १०.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतावरि) हे सत्यशील ! (यत्) जब (हिरण्येन) तेज वा पराक्रम से (अभिवृता) घिरी हुई तू (अतिष्ठः) खड़ी हुई, (वशे) हे वशा ! [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (समुद्रः) [प्राणियों के अच्छे प्रकार चलने का आधार] परमेश्वर (अश्वः) व्यापक (भूत्वा) होकर (त्वा) तुझको (अधि) अधिकारपूर्वक (अस्कन्दत्) प्राप्त हुआ ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर अपनी शक्ति को अपने वश में रखकर यथासमय उसका प्रकाश करता है ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६−(अभिवृता) वेष्टिता (हिरण्येन) तेजसा वीर्येण वा (यत्) यदा (अतिष्ठः) स्थितवती (ऋतावरि) म० ९। सत्यशीले (अश्वः) अशूप्रुषिलटि०। उ० १।१५१। अशू व्याप्तौ-क्वन्। व्यापकः (समुद्रः) समभिद्रवन्त्येनं भूतानि। समुद्र आदित्यः समुद्र आत्मा-निरु० १४।१६। सर्वभूतगमनाधारः परमात्मा (भूत्वा) (अधि) अधिकारपूर्वकम् (अस्कन्दत्) स्कन्दिर् गतिशोषणयोः। प्राप्तवान् (वशे) (त्वा) ॥

१७ तद्भद्राः समगच्छन्त

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तद्भ॒द्राः सम॑गच्छन्त व॒शा देष्ट्र्यथो॑ स्व॒धा।
अथ॑र्वा॒ यत्र॑ दीक्षि॒तो ब॒र्हिष्यास्त॑ हिर॒ण्यये॑ ॥

१७ तद्भद्राः समगच्छन्त ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. There the excellent ones united, the cow, the directress, also the
    svadhā́, where Atharvan, consecrated, sat on a golden barhís.
Notes

The second half-verse is identical with 12 c, d above. Ppp. reads in
a gachanti.

Griffith

Then came and met the Blessed Ones, Deshtri, the Cow, and Svadha, where Atharvan, consecrated. sate upon the Sacred Grass of gold.

पदपाठः

यत्। भ॒द्राः। सम्। अ॒ग॒च्छ॒न्त॒। व॒शा। देष्ट्री॑। अथो॒ इति॑। स्व॒धा। अथ॑र्वा। यत्र॑। दी॒क्षि॒तः। ब॒र्हिषि॑। आस्त॑। हि॒र॒ण्यये॑। १०.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • अनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तत्) वहाँ (भद्राः) श्रेष्ठ गुण (सम् अगच्छन्त) मिले हैं, और (देष्ट्री) शासन करनेवाली (वशा) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (अथो) और (स्वधा) अन्न [मिले हैं]। (यत्र) जहाँ (दीक्षितः) नियमवान् (अथर्वा) निश्चल परमात्मा (हिरण्यये) तेजोमय (बर्हिषि) वृद्धि के बीच (आस्त) बैठा है ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विज्ञानी पुरुष अनन्त श्रेष्ठ गुणों और अन्न आदि को परमेश्वर की शक्ति के साथ पाकर परमात्मा की महिमा को ध्यान में रखते हैं ॥१७॥ इस मन्त्र का दूसरा भाग−म० १२ में आ चुका है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७−(तत्) तत्र (भद्राः) शुभगुणाः (सम् अगच्छन्त) संगतवन्तः (देष्ट्री) आदेष्ट्री। शासिका (अथो) अपि च (स्वधा) अन्नम्-निघ० २।७। अन्यत् पूर्ववत्−म० १२ ॥

१८ वशा माता

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

व॒शा मा॒ता रा॑ज॒न्य᳡स्य व॒शा मा॒ता स्व॑धे॒ तव॑।
व॒शाया॑ य॒ज्ञ आयु॑धं॒ तत॑श्चि॒त्तम॑जायत ॥

१८ वशा माता ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The cow is mother of the noble (rājanyà), the cow thy mother, O
    svadhā́; from the cow was born the weapon; from it was born intent
    (cittá).
Notes

The translation implies the obvious emendation of yajñé in c to
jajñé, as at iv. 24. 6 ⌊see note thereto⌋.

Griffith

The Kshatriya’s mother is the Cow, thy mother, Svadha! is the Cow. Sacrifice is the weapon of the Cow: the thought arose from, her.

पदपाठः

व॒शा। मा॒ता। रा॒ज॒न्य᳡स्य। व॒शा। मा॒ता। स्व॒धे॒। तव॑। व॒शायाः॑। य॒ज्ञे। आयु॑धम्। ततः॑। चि॒त्तम्। अ॒जा॒य॒त॒। १०.१८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • अनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वशा) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (राजन्यस्य) शासनकर्ता की (माता) माता [निर्मात्री], और (स्वधे) हे अन्न ! (वशा) वशा (तव) तेरी (माता) माता [जननी] है। (यज्ञे) यज्ञ [श्रेष्ठ कर्म] में (वशायाः) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] का (आयुधम्) जीवनधारक कर्म है। (ततः) उससे (चित्तम्) चित्त [विचार सामर्थ्य] (अजायत) उत्पन्न हुआ है ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ईश्वरशक्ति के ज्ञान से मनुष्य को शासनशक्ति, अन्नप्राप्ति, जीवनधारण और विचारसामर्थ्य होता है ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १८−(वशा) कमनीया परमेश्वरशक्तिः (माता) निर्मात्री (राजन्यस्य) अ० ५।१७।९। ऐश्वर्यवतः। शासकस्य (स्वधे) हे अन्न (वशायाः) परमेश्वरशक्तेः (यज्ञे) श्रेष्ठकर्मणि (आयुधम्) आयु+डुधाञ् धारणपोषणयोः-क। जीवनधारकं कर्म (ततः) तस्याः। वशायाः सकाशात् (चित्तम्) ज्ञानम् (अजायत) अन्यद् गतम् ॥

१९ ऊर्ध्वो बिन्दुरुदचरद्ब्रह्मणः

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ऊ॒र्ध्वो बि॒न्दुरुद॑चर॒द्ब्रह्म॑णः॒ ककु॑दा॒दधि॑।
तत॒स्त्वं ज॑ज्ञिषे वशे॒ ततो॒ होता॑जायत ॥

१९ ऊर्ध्वो बिन्दुरुदचरद्ब्रह्मणः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The globule (bindú) went (car) up aloft, out of the summit
    (kákuda) of the bráhman; thence wast thou born, O cow; thence was
    the invoker born.
Notes
Griffith

From Brahma’s summit there went forth a drop that mounted up on high: From that wast thou produced, O Cow, from that the Hotar sprang to life.

पदपाठः

ऊ॒र्ध्वः। बि॒न्दुः। उत्। अ॒च॒र॒त्। ब्रह्म॑णः। ककु॑दात्। अधि॑। ततः॑। त्वम्। ज॒ज्ञि॒षे॒। व॒शे॒। ततः॑। होता॑। अ॒जा॒य॒त॒। १०.१९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • अनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ऊर्ध्वः) ऊँचा (बिन्दुः) बिन्दु [थोड़ा अंश] (ब्रह्मणः) ब्रह्म [परमेश्वर] की (ककुदात्) प्रधानता से (अधि) अधिकारपूर्वक (उत् अचरत्) ऊँचा गया। (ततः) उससे (वशे) हे वशा ! [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (त्वम्) तू (जज्ञिषे) उत्पन्न हुई थी, (ततः) और उसी से (होता) पुकारनेवाला [यह जीवात्मा] (अजायत) उत्पन्न हुआ है ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर के बिन्दु अर्थात् थोड़े सामर्थ्य से संसार में यह दृश्यमान शक्ति और सब प्राणी प्रकट हैं ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १९−(ऊर्ध्वः) उच्चस्थः (बिन्दुः) बिदि अवयवे-उ। अल्पांशः (उदचरत्) उदगच्छत् (ब्रह्मणः) परमेश्वरस्य (ककुदात्) कस्य सुखस्य कुं भूमिं ददातीति, क+कु+दा-क। प्राधान्ये राजलिङ्गे च वृषाङ्गे ककुदोऽस्त्रियाम्। इत्यमरः २३।९२। प्राधान्यात् (अधि) अधिकारपूर्वकम् (ततः) बिन्दुसकाशात् (त्वम्) (जज्ञिषे) प्रादुर्बभूविथ (वशे) (ततः) तस्माद् बिन्दोः (होता) आह्वाता जीवः (अजायत) ॥

२० आस्नस्ते गाथा

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आ॒स्नस्ते॒ गाथा॑ अभवन्नु॒ष्णिहा॑भ्यो॒ बलं॑ वशे।
पा॑ज॒स्या᳡ज्जज्ञे य॒ज्ञ स्तने॑भ्यो र॒श्मय॒स्तव॑ ॥

२० आस्नस्ते गाथा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. From thy mouth came (bhū) the songs (gā́thā), from thy
    nape-bones, O cow, [came] force; from thy belly (? pājasyà) was born
    the sacrifice, from thy teats the rays.
Notes

Ppp. reads in a bhavanti for abhavan.

Griffith

Forth from thy mouth the Gathas came, from thy neck’s nape sprang strength, O Cow. Sacrifice from thy flanks was born, and rays of sunlight from. thy teats,

पदपाठः

आ॒स्नः। ते॒। गाथाः॑। अ॒भ॒व॒न्। उ॒ष्णिहा॑भ्यः। बल॑म्। व॒शे॒। पा॒ज॒स्या᳡त्। ज॒ज्ञे॒। य॒ज्ञः। स्तने॑भ्यः। र॒श्मयः॑। तव॑। १०.२०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • अनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वशे) हे वशा ! [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (ते) तेरे (आस्नः) मुख से (गाथाः) गाथाएँ [गाने योग्य वेदवाणियाँ] (अभवन्) हुई हैं और (उष्णिहाभ्यः) उष्णियों [गले की हड्डियों] से (बलम्) बल [हुआ है]। (तव) तेरे (पाजस्यात्) उदर से (यज्ञः) यज्ञ [श्रेष्ठ व्यवहार] (जज्ञे) उत्पन्न हुआ था, (स्तनेभ्यः) स्तनों [दूध के आधारों] से (रश्मयः) किरणें ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर की शक्ति से ही वेदविद्याएँ, बल, यज्ञ और प्रकाश उत्पन्न हुए हैं ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २०−(आस्नः) मुखात् (ते) तव (गाथाः) उषिकुषिगार्तिभ्यस्थन्। उ० २।४। गै गाने-थन्। गाथा वाङ्नाम-निघ० १।११। गानयोग्या वेदवाण्यः अभवन् (उष्णिहाभ्यः) अ० २।३३।२। ग्रीवानाडीभ्यः (बलम्) सामर्थ्यम् (पाजस्यात्) अ० ४।१४।८। उदरात्। अन्यत् सुगमम् ॥

२१ ईर्माभ्यामयनं जातम्

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ई॒र्माभ्या॒मय॑नं जा॒तं सक्थि॑भ्यां च वशे॒ तव॑।
आ॒न्त्रेभ्यो॑ जज्ञिरे अ॒त्रा उ॒दरा॒दधि॑ वी॒रुधः॑ ॥

२१ ईर्माभ्यामयनं जातम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. From thy (two) fore-legs (īrmá) motion (áyana) was born, and
    from thy thighs (sákthi), O cow; from thine entrails were born eaters
    (attrá), out from thy belly (udára) the plants.
Notes

Ppp. reads at the beginning ayurmābhyām, and in c yatrā jajñire.
⌊For atrā́s, cf. note to i. 7. 3.⌋

Griffith

From thy fore-quarters and thy thighs motion was generated, Cow! Food from thine entrails was produced, and from thy belly came the plants.

पदपाठः

ई॒र्माभ्या॑म्‌। अय॑नम्। जा॒तम्। सक्थि॑ऽभ्याम्। च॒। व॒शे॒। तव॑। आ॒न्त्रेभ्यः॑। ज॒ज्ञि॒रे॒। अ॒त्राः। उ॒दरा॑त्। अधि॑। वी॒रुधः॑। १०.२१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • अनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वशे) हे वशा ! [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (तव) तेरी (ईर्माभ्याम्) दोनों ईर्म [टाँगों वा गोड़ों] से (च) और (सक्थिभ्याम्) दोनों जङ्घाओं से (अयनम्) सूर्य का दक्षिण और उत्तर मार्ग (जातम्) उत्पन्न हुआ है। (आन्त्रेभ्यः) आँतों से (अत्राः) भोजन पदार्थ और (उदरात्) पेट से (वीरुधः) विविध उगनेवाली ओषधियाँ (अधि जज्ञिरे) उत्पन्न हुई थीं ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ईश्वरशक्ति से सूर्य के दक्षिणायन और उत्तरायण मार्ग, जिनसे तीन-तीन ऋतुएँ बनती हैं, सब भोजन पदार्थ और रोगनाशक पदार्थ उत्पन्न हुए हैं ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २१−(ईर्माभ्याम्) इषियुधीन्धि०। उ० १।१४५। ईर गतिकम्पनयोः−मक्। जङ्घाधोभागाभ्याम् (अयनम्) अय गतौ-ल्युट्। गतिः। दक्षिणत उत्तरस्याम्, उत्तरतश्च दक्षिणस्यां दिशि सूर्यस्य गतिः (सक्थिभ्याम्) अ० ६।९।१। जङ्घाभ्याम् (च) (वशे) (तव) (अत्राः) अ० ९।७।१६। अद भक्षणे−क्त्र। भोजनपदार्थाः। अन्यद् गतम्-अ० ९।७।१६ ॥

२२ यदुदरं वरुणस्यानुप्राविशथा

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यदु॒दरं॒ वरु॑ण॒स्यानु॒प्रावि॑शथा वशे।
तत॑स्त्वा ब्र॒ह्मोद॑ह्वय॒त्स हि ने॒त्रमवे॒त्तव॑ ॥

२२ यदुदरं वरुणस्यानुप्राविशथा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. When (yát), O cow, thou didst enter along the belly of Varuṇa,
    thence the priest (brahmán) called thee up; for he knew thy guidance
    (netrá).
Notes
Griffith

When into Varuna’s belly thou hadst found a passage for thy- self, The Brahman called thee thence, for he knew how to guide and lead thee forth.

पदपाठः

यत्। उ॒दर॑म्। वरु॑णस्य। अ॒नु॒ऽप्रावि॑शथाः। व॒शे॒। ततः॑। त्वा॒। ब्र॒ह्मा। उत्। अ॒ह्व॒य॒त्। सः। हि। ने॒त्रम्। अवे॑त्। तव॑। १०.२२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • अनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वशे) हे वशा ! [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (यत्) जब [प्रलय में] (वरुणस्य) वरुण [सब के ढकनेवाले परमेश्वर] के (उदरम्) पेट में (अनुप्रविशथाः) तूने प्रवेश किया। (ततः) फिर [सृष्टिकाल में] (त्वा) तुझे (ब्रह्मा) ब्रह्मा [महाविद्वान् परमेश्वर] ने (उत् अह्वयत्) ऊपर बुलाया, (हि) क्योंकि (सः) उस ने (ते) तेरा (नेत्रम्) नायकपन (अवेत्) जाना था ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सर्वनेता परमेश्वर अपनी शक्ति को प्रलयसमय में अपने भीतर लय और सृष्टि समय में संसार के भीतर प्रकट करता है ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २२−(यत्) यदा। प्रलये (उदरम्) जठरम्। स्वरूपम् (वरुणस्य) सर्वस्य वारकस्याच्छादकस्य परमेश्वरस्य (अनुप्रविशथाः) अनुक्रमेण प्रविष्टवती त्वम् (वशे) म० २। हे कमनीये परमेश्वरशक्ते (ततः) तदुपरान्ते। सृष्टिकाले (ब्रह्मा) प्रवृद्धो महापण्डितः परमेश्वरः (उदह्वयत्) उत्कर्षेणाहूतवान्। प्रकटीकृतवान् (सः) ब्रह्मा (हि) यस्मात् (नेत्रम्) सर्वधातुभ्यः ष्ट्रन्। उ० ४।१५९। णीञ् प्रापणे−ष्ट्रन्। नयनम्। नेतृत्वम् (अवेत्) विद ज्ञाने-लङ्। अजानात् (तव) ॥

२३ सर्वे गर्भादवेपन्त

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सर्वे॒ गर्भा॑दवेपन्त॒ जाय॑मानादसू॒स्वः᳡।
स॒सूव॒ हि तामा॒हुर्व॒शेति॒ ब्रह्म॑भिः॒ क्लृप्तः स ह्य᳡स्या॒ बन्धुः॑ ॥

२३ सर्वे गर्भादवेपन्त ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. All trembled at the embryo, while being born, of her who gives not
    birth (? asūsū́); for “the cow hath given birth,” they say of her;
    shaped (m.) by charms (bráhman); for it is her connection.
Notes

Much here is obscure and doubtful. Asūsū́ (not divided in p.) ought, by
its accent, to be asū-sū ‘giving birth to one who does not herself
give birth’ ⌊Gram. § 1147 c⌋. The connection of kḷptás with vaśā́
is strange; the former belongs probably to gárbhas understood. The
accent of āhús indicates that belongs with it, and not with
sasū́va. The name vaśā́ used for the cow throughout the hymn implies
non-pregnancy. Ppp. reads at the end brahmaṇā kḷpta ⌊R’s Collation
spells it kliptauta bandhur asyāt. ⌊The verse may be counted as 36
syllables; but the nearest approach to a natural scansion would seem to
be 8 + 8: 11 (taām) + 11.⌋ ⌊I will not attempt to revise W’s treatment
of this verse. Griffith and the other translators may be consulted.⌋

Griffith

All trembled at the babe that came from him who brings not to the birth. He hath produced her–thus they cried–He is a cow, and formed by spells, he hath become skin to her.

पदपाठः

सर्वे॑। गर्भा॑त्। अ॒वे॒प॒न्त॒। जाय॑मानात्। अ॒सू॒प्स्वः᳡। स॒सूव॑। हि। ताम्। आ॒हुः। व॒शा। इति॑। ब्रह्म॑ऽभिः। क्लृ॒प्तः। सः। हि। अ॒स्याः॒। बन्धुः॑। १०.२३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • बृहती
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सर्वे) सब [ऋषि] (असूस्वः) सत्ता की उत्पन्न करनेवाली [परमेश्वरशक्ति] के (जायमानात्) उत्पन्न होते हुए (गर्भात्) गर्भ [संसार] से (अवेपन्त) थरथराये, (हि) क्योंकि (ताम्) उस [शक्ति] को (आहुः) वे [ब्रह्मज्ञानी] बताते हैं कि−“(वशा) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] ने (ससूव इति) उत्पन्न किया था, (हि) क्योंकि (ब्रह्मभिः) वेदज्ञानों से (क्लृप्तः) समर्थ (सः) वह [परमेश्वर] (अस्याः) इस [शक्ति] का (बन्धुः) बन्धु [संबन्धवाला] है ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ऋषि लोग बड़ा आश्चर्य मानते हैं कि महाबली परमेश्वर की महाबलवती शक्ति है, जिसने यह महान् संसार रचा है ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २३−(सर्वे) ऋषयः (गर्भात्) गर्भरूपात् संसारात् (अवेपन्त) कम्पितवन्तः (जायमानात्) उत्पद्यमानात् (असूस्वः) असू−स्वः। कृषिचमितनि०। उ० १।८०। अस सत्तायाम्-ऊ+षूङ् प्राणिगर्भविमोचने-क्विप्। आडभावो यणादेशश्च। असूं सत्तां सृष्टिं सूयते सा असूसूस्तस्याः असूस्वाः। सत्तायाः सृष्टेः जनयित्र्याः परमेश्वरशक्तेः (ससूव) षूङ् प्राणिगर्भविमोचने-लिट्। ससूवेति निगमे। पा० ७।४।७४। इति परस्मैपदे रूपम्। सुषुवे। जनयामास (हि) यस्मात् (ताम्) परमेश्वरशक्तिं प्रति (आहुः) कथयन्ति मनीषिणः (वशा) कमनीया परमेश्वरशक्तिः (ब्रह्मभिः) वेदज्ञानैः (क्लृप्तः) समर्थः (सः) परमेश्वरः (हि) यस्मात् (अस्याः) वशायाः (बन्धुः) सम्बन्धी ॥

२४ युध एकः

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युध॒ एकः॒ सं सृ॑जति॒ यो अ॑स्या॒ एक॒ इद्व॒शी।
तरां॑सि य॒ज्ञा अ॑भव॒न्तर॑सां॒ चक्षु॑रभवद्व॒शा ॥

२४ युध एकः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. One combines (sam-sṛj) the fighters who alone is in control
    (vaśín) of her; the sacrifices became energies (? táras); the cow
    became the eye of energies.
Notes

The Anukr. should have qualified the name of this bṛhatī by adding
virāj. Ppp. combines at the beginning yudhe ’kas s-.

Griffith

He only joineth battle, yea, he who alone controlleth her. Now sacrifices have become victories, and the Cow their eye.

पदपाठः

युधः॑। एकः॑। सम्। सृ॒ज॒ति॒। यः। अ॒स्याः॒। एकः॑। इत्। व॒शी। तरां॑सि। य॒ज्ञा। अ॒भ॒व॒न्। तर॑साम्। चक्षुः॑। अ॒भ॒व॒त्। व॒शा। १०.२४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • उपरिष्टाद्बृहती
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (एकः) एक [परमेश्वर] (युधः) लड़ाकों [परस्पर विरोधी, सुख-दुःख, अग्नि-जल, सिंह-बकरी आदि] को (सम्) यथावत् (सृजति) उत्पन्न करता है, (यः) जो [परमेश्वर] (एकः इत्) एक ही (अस्याः) इस [शक्ति] का (वशी) वश करनेवाला है। [श्रेष्ठ व्यवहार] (अभवन्) हुए हैं, और (वशा) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (तरसाम्) [उन] पराक्रमों की (चक्षुः) नेत्र (अभवत्) हुई है ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर अपनी शक्ति और पराक्रम से समस्त संसार को रचकर सब की यथावत् सुधि रखता है ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २४−(युधः) योद्धारः। परस्परविरोधिनः (एकः) अद्वितीयः (सम्) सम्यक् (सृजति) जनयति (यः) परमेश्वरः (अस्याः) वशायाः (एकः) (इत्) एव (वशी) वशयिता। शासकः (तरांसि) बलानि-निघ० २।९। पराक्रमाः (यज्ञाः) श्रेष्ठव्यवहाराः (अभवन्) (तरसाम्) बलानाम् (चक्षुः) दृष्टिः (अभवत्) (वशा) ॥

२५ वशा यज्ञम्

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व॒शा य॒ज्ञं प्रत्य॑गृह्णाद्व॒शा सूर्य॑मधारयत्।
व॒शाया॑म॒न्तर॑विशदोद॒नो ब्र॒ह्मणा॑ स॒ह ॥

२५ वशा यज्ञम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The cow accepted the sacrifice; the cow sustained the sun; within
    the cow entered the rice-dish together with the priest (brahmán).
Notes

Ppp. reads yajñam instead of sūryam in b. All the mss. have
brahmáṇā.

Griffith

The Cow hath welcomed sacrifice: the Cow hath held the Sun in place. Together with the prayer the mess of rice hath passed into the Cow.

पदपाठः

व॒शा। य॒ज्ञम्। प्रति॑। अ॒गृ॒ह्णा॒त्। व॒शा। सूर्य॑म्। अ॒धा॒र॒य॒त्। व॒शाया॑म्। अ॒न्तः। अ॒वि॒श॒त्। ओ॒द॒नः। ब्र॒ह्मणा॑। स॒ह। १०.२५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • अनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वशा) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] ने (यज्ञम्) यज्ञ [संगतियोग्य संसार] को (प्रति अगृह्णात्) ग्रहण कर लिया है, (वशा) वशा ने (सूर्यम्) सूर्य को (अधारयत्) धारण किया है। (वशायाम् अन्तः) वशा के भीतर (ओदनः) सींचनेवाले [मेघ] ने (ब्रह्मणा सह) अन्न के साथ (अविशत्) प्रवेश किया है ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर की ही शक्ति में यह सब संसार सूर्य आदि लोकों और सब पालन साधनों सहित वर्तमान है ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २५−(वशा) कमनीया परमेश्वरशक्तिः (यज्ञम्) संगन्तव्यं संसारम् (प्रत्यगृह्णात्) प्रत्यक्षं स्वीकृतवती (वशा) (सूर्यम्) (अधारयत्) धृतवती (वशायाम्) परमेश्वरशक्तौ (अन्तः) मध्ये (अविशत्) प्रविष्टवान् (ओदनः) अ० ९।५।१९। सेचकः। मेघः-निघ० १।१०। (ब्रह्मणा) अन्नेन-निघ० २।७। (सह) ॥

२६ वशामेवामृतमाहुर्वशां मृत्युमुपासते

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व॒शामे॒वामृत॑माहुर्व॒शां मृ॒त्युमुपा॑सते।
व॒शेदं सर्व॑मभवद्दे॒वा म॑नु॒ष्या॒३॒॑ असु॑राः पि॒तर॒ ऋष॑यः ॥

२६ वशामेवामृतमाहुर्वशां मृत्युमुपासते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The cow they call immortality (amṛ́ta); the cow they worship
    (upa-ās) as death; the cow became this all—gods, men, Asuras, Fathers,
    seers.
Notes

Ppp. reads āhur amṛtaṁ in a. The definition of the meter by the
Anukr. is bad; it ⌊seems to be 8 + 8: 8 + 14⌋.

Griffith

They call the Cow immortal life, pay homage to the Cow as Death. She hath become this universe, Fathers, and Rishis, hath become the Gods, and men, and Asuras.

पदपाठः

व॒शाम्। ए॒व। अ॒मृत॑म्। आ॒हुः॒। व॒शाम्। मृ॒त्युम्। उप॑। आ॒स॒ते॒। व॒शा। इ॒दम्। सर्व॑म्। अ॒भ॒व॒त्। दे॒वाः। म॒नु॒ष्याः᳡। असु॑राः। पि॒तरः॑। ऋष॑यः। १०.२६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • आस्तारपङ्क्तिः
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वशाम्) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] को (एव) ही (अमृतम्) अमृत [अमरपन] (आहुः) वे [ऋषिः] बताते हैं, (वशाम्) वशा को (मृत्युम्) मृत्यु [समान] (उप आसते) वे मानते हैं। (वशा) वशा (इदम् सर्वम्) इस सब में (अभवत्) व्यापक हुई है, और (देवाः) देव [विजयी] (मनुष्यः) मनुष्य [मननशील], (असुराः) असुर [बुद्धिमान्], (पितरः) पितर [पालन करनेवाले] और (ऋषयः) ऋषि [सूक्ष्मदर्शी लोग] [जो हैं, उन सब में वह व्यापक हुई है] ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ईश्वरशक्ति से प्राणी अपने कर्मानुसार अमृत अर्थात् मोक्ष और मृत्यु अर्थात् बन्धन पाते हैं। वही ईश्वरशक्ति समस्त जगत् में व्यापक है, जितेन्द्रिय विचारशील पुरुष उस शक्ति का अनुभव करते हैं ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २६−(वशाम्) कमनीयां परमेश्वरशक्तिम् (एव) (अमृतम्) अमरणम्। मोक्षम् (आहुः) कथयन्ति विद्वांसः (वशाम्) (मृत्युम्) मरणम्। दुःखभोगम् (उपासते) मन्यन्ते। पूजयन्ति (वशा) (इदम्) दृश्यमानम् (सर्वम्) जगत् (अभवत्) भू प्राप्तौ। व्याप्नोत् (देवाः) विजयिनः (मनुष्याः) मननशीलाः (असुराः) अ० १।१०।१। असुरत्वं प्रज्ञावत्त्वम्-निरु० १०।३४। प्रज्ञावन्तः (पितरः) पालकाः (ऋषयः) सूक्ष्मदर्शिनः। ये तान् अभवत् व्याप्नोत्-इति शेषः ॥

२७ य एवम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

य एवं॑ वि॒द्यात्स व॒शां प्रति॑ गृह्णी॒यात्।
तथा॒ हि य॒ज्ञः सर्व॑पाद्दु॒हे दा॒त्रेऽन॑पस्फुरन् ॥

२७ य एवम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Whoso knoweth thus, he may accept the cow; for so doth the
    all-footed sacrifice yield milk (duh) to the giver, unresisting.
Notes
Griffith

The man who hath this knowledge may receive the Cow with. welcoming. So for the giver willingly doth perfect sacrifice pour milk.

पदपाठः

यः। ए॒वम्। वि॒द्यात्। सः। व॒शाम्। प्रति॑। गृ॒ह्णी॒या॒त्। तथा॑। हि। य॒ज्ञः। सर्व॑ऽपात्। दु॒हे। दा॒त्रे। अन॑पऽस्फुरन्। १०.२७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • शङ्कुमत्यनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [मनुष्य] (एवम्) ऐसा (विद्यात्) जाने, (सः) वह (वशाम्) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] को (प्रति) प्रतीति से (गृह्णीयात्) ग्रहण करे। (हि) क्योंकि (तथा) उसी प्रकार से (सर्वपात्) पूर्ण स्थितिवाला (अनपस्फुरन्) निश्चल रहता हुआ (यज्ञः) यज्ञ [श्रेष्ठ व्यवहार] (दात्रे) दाता को (दुहे) भरपूर रहता है ॥२७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य दृढ़ निश्चय से ईश्वरशक्ति को साक्षात् करता है, उसको उत्तम कर्मों के अभ्यास से उत्तम फल मिलता रहता है ॥२७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २७−(यः) पुरुषः (एवम्) पूर्वोक्तं यथा (विद्यात्) जानीयात् (सः) (वशाम्) (प्रति) प्रत्यक्षम् (गृह्णीयात्) स्वीकुर्यात् (तथा) तेन प्रकारेण (हि) यस्मात् कारणात् (यज्ञः) श्रेष्ठव्यवहारः (सर्वपात्) पूर्णस्थितिः (दुहे) दुग्धे। दुह्यते। प्रपूर्यते (दात्रे) सुखदानशीलाय (अनपस्फुरन्) अ० ९।१।७। स्फुर संचलने-शतृ। निश्चलन् ॥

२८ तिस्रो जिह्वा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ति॒स्रो जि॒ह्वा वरु॑णस्या॒न्तर्दी॑द्यत्या॒सनि॑।
तासां॒ या मध्ये॒ राज॑ति॒ सा व॒शा दु॑ष्प्रति॒ग्रहा॑ ॥

२८ तिस्रो जिह्वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Three tongues glisten (dīdī) within the mouth of Varuṇa; of
    these, the one that shines (rāj) in the middle is the cow, hard of
    acceptance.
Notes

The mss., as is usual in such cases, are divided between duḥpr- and
duṛpr- in d.

Griffith

Within the mouth of Varuna three tongues are glittering with light. That which shines midmost of them is this Cow most difficult to hold.

पदपाठः

ति॒स्रः। जि॒ह्वाः। वरु॑णस्य। अ॒न्तः। दी॒द्य॒ति॒। आ॒सनि॑। तासा॑म्। या। मध्ये॑। राज॑ति। सा। व॒शा। दुः॒ऽप्र॒ति॒ग्रहा॑। १०.२८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • अनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वरणस्य) वरुण [श्रेष्ठ परमेश्वर] के (आसनि अन्तः) मुख के भीतर (तिस्रः) तीन [सत्त्व, रज और तम रूप] (जिह्वाः) जीभें (दीद्यति=०-न्ति) चमकती हैं। (तासाम्) उन [जीभों] के (मध्ये) बीच में (या) जो (राजति) राज करती है, (सा) वह (दुष्प्रतिग्रहा) पाने में कठिन (वशा) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] है ॥२८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमेश्वर के मुखरूप सृष्टि में सत्त्व गुण, रजोगुण और तमोगुण रूप तीन जिह्वा हैं। इन तीनों की अधिष्ठात्री विशाल परमेश्वरशक्ति है, जिस का प्रभाव समझना मनुष्य को बड़ा कठिन है ॥२८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २८−(तिस्रः) सत्त्वरजस्तमोरूपाः (जिह्वाः) (वरुणस्य) वरणीयस्य श्रेष्ठस्य परमेश्वरस्य (अन्तः) मध्ये (दीद्यति) दीदयतिर्ज्वलतिकर्मा-निघ० १।१६। नैरुक्तो धातुः, दिवादित्वम् एकवचनं च छान्दसम्। दीद्यन्ति। दीप्यन्ते (आसनि) मुखे (तासाम्) जिह्वानाम् (या) (मध्ये) (राजति) ईष्टे। दीप्यते (सा) (वशा) म० २ (दुष्प्रतिग्रहा) दुःखेन ग्राह्या प्राप्तव्या ॥

२९ चतुर्धा रेतो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

च॑तु॒र्धा रेतो॑ अभवद्व॒शायाः॑।
आप॒स्तुरी॑यम॒मृतं॒ तुरी॑यं य॒ज्ञस्तुरी॑यं प॒शव॒स्तुरी॑यम् ॥

२९ चतुर्धा रेतो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The seed of the cow was quartered: the waters a quarter, the amṛ́ta
    a quarter, the sacrifice a quarter, the domestic animals a quarter.
Notes
Griffith

Four-parted was the Cow’s prolific humour. One-fourth is Water, one-fourth life eternal, one-fourth is sacri- fice, one-fourth are cattle.

पदपाठः

च॒तुः॒ऽधा। रेतः॑। अ॒भ॒व॒त्। व॒शायाः॑। आपः॑। तुरी॑यम्। अ॒मृत॑म्। तुरी॑यम्। य॒ज्ञः। तुरी॑यम्। प॒शवः॑। तुरी॑यम्। १०.२९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • त्रिपदा विराड्गायत्री
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वशायाः) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] का (रेतः) वीर्य [वा सामर्थ्य] (चतुर्धा) चार प्रकार पर (अभवत्) हुआ है। (आपः) व्यापक तन्मात्राएँ (तुरीयम्) एक चौथाई, (अमृतम्) अमृत [अमरपन] (तुरीयम्) एक चौथाई, (यज्ञः) यज्ञ [संगति किया हुआ संसार] (तुरीयम्) एक चौथाई और (पशवः) दृष्टिवाले [सब प्राणी] (तुरीयम्) एक चौथाई खण्ड हैं ॥२९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ईश्वरशक्ति चार प्रकार से प्रकट है−एक सूक्ष्म तन्मात्राओं में, दूसरे उनके अमृत अर्थात् अविनाश में, तीसरे संगतिकरण व्यवहार अर्थात् पृथवी सूर्य आदि की रचना में, और चौथे चराचर प्राणियों की पालन-पोषण क्रिया में ॥२९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २९−(चतुर्धा) चतुष्प्रकारेण (रेतः) वीर्यम्। सामर्थ्यम् (अभवत्) आसीत् (वशायाः) कमनीयायाः परमेश्वरशक्तेः (आपः) व्यापिकास्तन्मात्राः-दयानन्दभाष्ये, यजुः २७।२५ (तुरीयम्) चतुर्थं खण्डम् (अमृतम्) अमरणम् अविनाशः (यज्ञः) संगतिकरणव्यवहारः संसारः (पशवः) दृष्टिमन्तः प्राणिनः। अन्यद् गतम् ॥

३० वशा द्यौर्वशा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

व॒शा द्यौर्व॒शा पृ॑थि॒वी व॒शा विष्णुः॑ प्र॒जाप॑तिः।
व॒शाया॑ दु॒ग्धम॑पिबन्त्सा॒ध्या वस॑वश्च ये ॥

३० वशा द्यौर्वशा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The cow [is] the sky, the cow the earth, the cow Vishṇu,
    Prajāpati; the yield (dugdhá) of the cow did the Perfectibles
    (sādhyá) and they who are Vasus drink.
Notes
Griffith

The Cow is Heaven, the Cow is Earth, the Cow is Vishnu, Lord of Life. e The Sadhyas and the Vasus have drunk the out-pourings of the Cow.

पदपाठः

व॒शा। द्यौः। व॒शा। पृ॒थि॒वी। व॒शा। विष्णुः॑। प्र॒जाऽप॑तिः। व॒शायाः॑। दु॒ग्धम्। अ॒पि॒ब॒न्। सा॒ध्याः। वस॑वः। च॒। ये। १०.३०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • अनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वशा) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] (द्यौः) आकाश में, (वशा) वशा (पृथिवी) पृथिवी में, (वशा) वशा (प्रजापतिः) प्रजापालक (विष्णुः) व्यापक सूर्य में है। (वशायाः) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] की (दुग्धम्) पूर्णता को (अपिबन्) उन्होंने पान किया है, (ये) जो (साध्याः) परोपकार साधनेवाले [साधु] (च) और (वसवः) श्रेष्ठ स्वभाववाले हैं ॥३०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सर्वव्यापिनी परमेश्वरशक्ति के सुख दान का अनुभव करके परोपकारी ऋषि महात्मा लोग आनन्द पाते हैं ॥३०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३०−(वशा) म० २। कमनीया परमेश्वरशक्तिः (द्यौः) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। विभक्तेः सुः। दिवि। आकाशे (पृथिवी) पृथिव्याम् (विष्णुः) विष्णौ व्यापके सूर्ये। शिपिविष्टो विष्णुरिति विष्णोर्देवनामनी भवतः निरु० ५।७। (प्रजापतिः) प्रजापालके (वशायाः) परमेश्वरशक्तेः (दुग्धम्) पूर्णत्वम् (अपिबन्) ते पीतवन्तः (साध्याः) अ० ७।५।१। परोपकारसाधकाः साधवः (वसवः) श्रेष्ठस्वभावयुक्ताः (च) (ये) ॥

३१ वशाया दुग्धम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

व॒शाया॑ दु॒ग्धं पी॒त्वा सा॒ध्या वस॑वश्च ये।
ते वै ब्र॒ध्नस्य॑ वि॒ष्टपि॒ पयो॑ अस्या॒ उपा॑सते ॥

३१ वशाया दुग्धम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Having drunk the yield of the cow, the Perfectibles and they who
    are Vasus—they verily worship the milk (páyas) of her at the summit of
    the ruddy one.
Notes

Ppp. reads ime instead of te vāi at beginning of c. The
definition of the meter by the Anukr. is bad, the verse being, by usual
and easy resolutions, a regular anuṣṭubh.

Griffith

When these, Sadhyas and Vasus, have drunk the out-pourings of the Cow, They in the Bright One’s dwelling-place pay adoration to her milk.

पदपाठः

व॒शायाः॑। दु॒ग्धम्। पी॒त्वा। सा॒ध्याः। वस॑वः। च॒। ये। ते। वै। ब्र॒ध्नस्य॑। वि॒ष्टपि॑। पयः॑। अ॒स्याः॒। उप॑। आ॒स॒ते॒। १०.३१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • उष्णिग्गर्भानुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो लोग (साध्याः) परोपकार साधनेवाले [साधु] (च) और (वसवः) श्रेष्ठ स्वभाववाले हैं, (ते वै) वे ही (वशायाः) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] की (दुग्धम्) पूर्णता को (पीत्वा) पान करके (ब्रध्नस्य) नियन्ता [महान् परमेश्वर] के (विष्टपि) सहारे में (अस्याः) इस [परमेश्वरशक्ति] के (पयः) ज्ञान का (उप आसते) सेवन करते हैं ॥३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परोपकारी साधु महात्मा परमेश्वर की सूक्ष्म शक्तियों के ध्यान से अपना ज्ञान और बल बढ़ाकर सुखी होते हैं ॥३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३१−(पीत्वा) अनुभूय (ते) (वै) एव (ब्रध्नस्य) अ० ७।२२।२। बन्ध बन्धने-नक्, ब्रधादेशः। ब्रध्नो महन्नाम-निघ–० ३।३। बन्धकस्य नियामकस्य महतः परमेश्वरस्य (विष्टपि) वि+ष्टभि प्रतिबन्धे-क्विप् भस्य पः। यद्वा, विटपविष्टपविशिपोलपाः। उ० ३।१४५। विश प्रवेशने-कप् प्रत्ययः, तुडागमः, अन्त्याऽकारलोपः। विष्टपं साधारणनाम-निघ० १।४। विष्टबादित्यो भवत्याविष्टो रसानाविष्टो भासं ज्योतिषामाविष्टो भासेति वाथ द्यौराविष्टा ज्योतिर्भिः पुण्यकृद्भिश्च-निरु० २।१४। विष्टम्भने। प्रवेशे। आश्रये (पयः) पय गतौ-असुन्। ज्ञानम् (अस्याः) वशायाः (उपासते) सेवन्ते। अन्यत् पूर्ववत्−म० ३० ॥

३२ सोममेनामेके दुह्रे

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सोम॑मेना॒मेके॑ दुह्रे घृ॒तमेक॒ उपा॑सते।
य ए॒वं वि॒दुषे॑ व॒शां द॒दुस्ते॑ ग॒तास्त्रि॑दि॒वं दि॒वः ॥

३२ सोममेनामेके दुह्रे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Some milk her for soma; some worship ghee; they who gave the cow to
    the one knowing thus are gone to the triple heaven of the heaven.
Notes

The pada-mss., by an absurd blunder, read yā́ before evám into
yáḥ instead of . It is apparently the intrusion of vaśā́m into
c that makes the meter irregular. ⌊Pādas a, b are a reminiscence
of RV. x. 154. 1 (= AV. xviii. 2. 14).⌋

Griffith

For Soma some have milked her: some worship the fatness she hath poured. They who have given a cow to him who hath this knowledge have gone up to the third region of the sky.

पदपाठः

सोम॑म्। ए॒ना॒म्। एके॑। दु॒ह्रे॒। घृ॒तम्। एके॑। उप॑। आ॒स॒ते॒। ये। ए॒वम्। वि॒दुषे॑। व॒शाम्। द॒दुः। ते। ग॒ताः। त्रि॒ऽदि॒वम्। दि॒वः। १०.३२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • विराट्पथ्या बृहती
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (एके) कोई-कोई [महात्मा] (एनाम्) इससे (सोमम्) ऐश्वर्य को (दुह्ने) दुहते हैं, (एके) कोई-कोई [इस के] (घृतम्) तत्त्व का (उप आसते) सेवन करते हैं, (ये) जिन्होंने (एवम्) ऐसे (विदुषे) विद्वान् को (वशाम्) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] का (ददुः) दान किया है, (ते) वे (दिवः) विजय के (त्रिदिवम्) तीन [आय, व्यय, वृद्धि] के व्यवहारस्थान में (गताः) पहुँचे हैं ॥३२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ऋषि लोग ईश्वरशक्ति के विचार से अपना ऐश्वर्य और और ज्ञान बढ़ाते और अन्य विद्वानों को उपदेश करके संसार में विजयसीमा तक पहुँचते हैं ॥३२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३२−(सोमम्) ऐश्वर्यम् (एनाम्) वशाम् (एके) महात्मानः (दुह्रे) दुह प्रपूरणे-लट्। बहुलं छन्दसि। पा० ७।१।४१। तलोपः। दुहते। प्रपूरयन्ति (घृतम्) तत्त्वम् (एके) (उपासते) सेवन्ते (ये) विद्वांसः (एवम्) अनेन प्रकारेण (विदुषे) विदते−जानते पुरुषाय (वशाम्) म० २। कमनीयां परमेश्वरशक्तिम् (ददुः) दत्तवन्तः (ते) विद्वांसः (गताः) प्राप्ताः (त्रिदिवम्) अ० १०।९।५। त्रयाणां दिवानामायव्ययवृद्धिव्यवहाराणां स्थानम् (दिवः) अ० १०।९।५। विजयस्य ॥

३३ ब्राह्मणेभ्यो वशाम्

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ब्रा॑ह्म॒णेभ्यो॑ व॒शां द॒त्त्वा सर्वां॑ल्लो॒कान्त्सम॑श्नुते।
ऋ॒तं ह्य।
᳡स्या॒मार्पि॑त॒मपि॒ ब्रह्मा॑थो॒ तपः॑ ॥

३३ ब्राह्मणेभ्यो वशाम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Having given the cow to the Brahmans, one attains all worlds; for
    righteousness is set in her, also bráhman, likewise penance.
Notes

Ppp. reads in a vaśā dattvā brāh-, and in c āhitam instead
of ārpitam.

Griffith

He who hath given a Cow unto the Brahmans winneth all the worlds. For Right is firmly set in her devotion, and religious zeal.

पदपाठः

ब्रा॒ह्म॒णेभ्यः॑। व॒शाम्। द॒त्वा। सर्वा॑न्। लो॒कान्। सम्। अ॒श्नु॒ते॒। ऋ॒तम्। हि। अ॒स्या॒म्। आर्पि॑तम्। अपि॑। ब्रह्म॑। अथो॒ इति॑। तपः॑। १०.३३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • अनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ब्राह्मणेभ्यः) ब्राह्मणों [ब्रह्मज्ञानियों] को (वशाम्) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] का (दत्त्वा) दान करके (सर्वान् लोकान्) सब लोकों [दर्शनीय पदों] को [यह प्राणी] (सम्) ठीक-ठीक (अश्नुते) पाता है, (हि) क्योंकि (अस्याम्) इस [परमेश्वरशक्ति] में (ऋतम्) सत्यव्यवहार (अपि) और (ब्रह्म) वेदज्ञान (अथो) और (तपः) तप [ऐश्वर्य] (आर्पितम्) स्थापित है ॥३३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग ईश्वर के सत्यज्ञान से दूसरे विद्वानों की उन्नति करके अनेक प्रकार अपनी उन्नति करते हैं ॥३३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३३−(ब्राह्मणेभ्यः) ब्रह्मज्ञानिभ्यः (वशाम्) म० २ (दत्त्वा) (सर्वान्) (लोकान्) दर्शनीयान् व्यवहारान् (सम्) सम्यक् (अश्नुते) प्राप्नोति मनुष्यः (ऋतम्) सत्यव्यवहारः (हि) यस्मात् कारणात् (अस्याम्) वशायाम् (आर्पितम्) स्थापितम् (अपि) समुच्चये (ब्रह्म) वेदज्ञानम् (अथो) अपि च (तपः) ऐश्वर्यम् ॥

३४ वशां देवा

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व॒शां दे॒वा उप॑ जीवन्ति व॒शां म॑नु॒ष्या᳡ उ॒त।
व॒शेदं सर्व॑मभव॒द्याव॒त्सूर्यो॑ वि॒पश्य॑ति ॥

३४ वशां देवा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. On the cow the gods subsist; on the cow, men also; the cow became
    this all, so far as the sun looks abroad.
Notes

The Anukr. takes no notice of the redundant syllable in a (read, by
irregular combination, devó ’pa).

⌊Here ends the fifth anuvāka, with 2 hymns and 61 verses. The quoted
Anukr. says, referring to this last hymn, catasraḥ (i.e. 4 over 30).⌋

⌊One ms. (P.) sums up the verses aright as 350.⌋

⌊Here ends the twenty-third prapāṭhaka.⌋

Griffith

Both Gods and mortal men depend for life and being on the Cow. She hath become this universe: all that the Sun surveys is she.

पदपाठः

व॒शाम्। दे॒वाः। उप॑। जी॒व॒न्ति॒। व॒शाम्। म॒नु॒ष्याः᳡। उ॒त। व॒शा। इ॒दम्। सर्व॑म्। अ॒भ॒व॒त्। याव॑त्। सूर्यः॑। वि॒ऽपश्य॑ति। १०.३४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • वशा
  • कश्यपः
  • अनुष्टुप्
  • वशागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ईश्वर शक्ति की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) देव [विजयी जन] (वशाम्) वशा [कामनायोग्य परमेश्वरशक्ति] के, (उत) और (मनुष्याः) मनुष्य [मननशील लोग] (वशाम्) वशा के (उप जीवन्ति) आश्रय से जीते हैं। (वशा) वशा (इदम् सर्वम्) इस सब में (अभवत्) व्यापक हुई है, (यावत्) जितना कुछ (सूर्यः) सूर्य [सर्वप्रेरक परमात्मा] (विपश्यति) विविध प्रकार देखता है ॥३४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमात्मा की समस्त सृष्टि में उसकी शक्ति से सब पुरुषार्थी और विवेकी लोग बल प्राप्त करके आनन्दित रहते हैं ॥३४॥ इति पञ्चमोऽनुवाकः ॥ इति त्रयोविंशः प्रपाठकः ॥ इति दशमं काण्डम् ॥ इति श्रीमद्राजाधिराजप्रथितमहागुणमहिमश्रीसयाजीरावगायकवाड़ाधिष्ठितबड़ोदेपुरीगतश्रावणमास- परीक्षायाम् ऋक्सामाथर्ववेदभाष्येषु लब्धदक्षिणेन श्रीपण्डितक्षेमकरणदासत्रिवेदिना कृते अथर्ववेदभाष्ये दशमं काण्डं समाप्तम् ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३४−(वशाम्) मन्त्र २। कमनीयां परमेश्वरशक्तिम् (देवाः) विजयिनो जनाः (उप जीवन्ति) उपेत्य प्राणान् धारयन्ति (वशाम्) (मनुष्याः) मननशीलाः (उत) अपि (वशा) (इदम्) दृश्यमानम् (सर्वम्) जगत् (अभवत्) व्याप्नोत् (यावत्) यत्प्रमाणम् (सूर्यः) सर्वप्रेरकः परमेश्वरः (वि पश्यति) विविधमवलोकते ॥