००९ शतौदना गौः

००९ शतौदना गौः ...{Loading}...

Whitney subject
  1. With the offering of a cow and a hundred rice-dishes.
VH anukramaṇī

शतौदना गौः।
१-२७ अथर्वा। शतौदना। अनुष्टुप्, १ त्रिष्टुप्, १२ पथ्यापङ्क्तिः, २५ द्व्युष्णिग्गर्भाऽनुष्टुप्,
२६ पञ्चपदा बृहत्यनुष्टुबुष्णिग्गर्भा जगती, २७ पञ्चपदातिजागतानुष्टब्गर्भा शक्वरी।

Whitney anukramaṇī

[Atharvan.—saptaviṅśati. mantroktaśatāudanadevatyam. ānuṣṭubham: 1. triṣṭubh; 12. pathyāpan̄kti; 25. dvyuṣṇiggarbhā ’nuṣṭubh; 26. 5-p. bṛhatyanuṣṭubuṣṇiggarbhā jagatī; 27. 5-p. atijāgatānuṣṭubgarbhā śakvarī.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. xvi. The hymn (vs. 1) is quoted in Kāuś. 65. 1 to accompany the closing of the mouth of a victim, and some of the verses (1-3, 26, 27) in other neighboring parts of the sūtra. In Vāit. is used a single verse (26).

Translations

Translated: Ludwig, p. 270 (in great part); Henry, 32, 83; Griffith, ii. 42.

Griffith

The Sataudana or Hundredfold Oblation

०१ अघायतामपि नह्या

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अघाय॒तामपि॑ नह्या॒ मुखा॑नि स॒पत्ने॑षु॒ वज्र॑मर्पयै॒तम्।
इन्द्रे॑ण द॒त्ता प्र॑थ॒मा श॒तौद॑ना भ्रातृव्य॒घ्नी यज॑मानस्य गा॒तुः ॥

०१ अघायतामपि नह्या ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Fasten thou up the mouths of the mischief-making ⌊ones⌋; bring
    (arpay-) this thunderbolt upon our rivals; given by Indra, first, with
    a hundred rice-dishes, cousin-slaying, the success (gātú) of the
    sacrificer.
Notes

It is a cow (f.) accompanied by a whole hundred of odanas or offerings
of boiled rice, that is here the subject; we had in various places above
a goat (m.) with five such additions. Ppp. reads in d yajamānāya.
The Anukr. does not heed that the third pāda is jagatī.

Griffith

Binding the mouths of those who threaten mischief, against my rivals cast this bolt of thunder, Indra first gave the Hundredfold Oblation, welfare of him who worships, foe-destroying.

पदपाठः

अ॒घ॒ऽय॒ताम्। अपि॑। न॒ह्य॒। मुखा॑नि। स॒ऽपत्ने॑षु। वज्र॑म्। अ॒र्प॒य॒। ए॒तम्। इन्द्रे॑ण। द॒त्ता। प्र॒थ॒मा। श॒तऽओ॑दना। भ्रा॒तृ॒व्य॒ऽघ्नी। यज॑मानस्य। गा॒तुः। ९.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे वेदवाणी !] (अघायताम्) बुरा चीतनेवालों के (मुखानि) मुखों को (अपि नह्य) बाँध दे, (सपत्नेषु) वैरियों पर (एतम् वज्रम्) इस वज्र को (अर्पय) छोड़। [तू] (इन्द्रेण) परमेश्वर करके (दत्ता) दी हुई, (प्रथमा) पहिली (शतौदना) सैकड़ों प्रकार सींचनेवाली [वेदवाणी] (भ्रातृव्यघ्नी) शत्रु को नाश करनेवाली (यजमानस्य) यजमान [श्रेष्ठकर्म करनेवाले] का (गातुः) मार्ग [है] ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि जिस सर्वहितकारिणी वेदवाणी को परमेश्वर ने सृष्टि की आदि में दिया है, उस के द्वारा सुशिक्षित होकर अपने व्यवहारों को सुधारें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(अघायताम्) अ० १०।४।१०। अघमिच्छताम् (अपि) सर्वथा (नह्य) सांहितिको दीर्घः। बधान (मुखानि) (सपत्नेषु) शत्रुषु (वज्रम्) (अर्पय) क्षिप (एतम्) (इन्द्रेण) परमेश्वरेण (दत्ता) आविष्कृता (प्रथमा) सृष्ट्यादौ जाता (शतौदना) उन्देर्नलोपश्च। उ० २।७६। शत+उन्दी क्लेदने युच्, टाप्। ओदनो मेघः-निघ० १।१०। ओदनमुदकदानं मेघम्-निरु० ६।३४। शतप्रकारेण ओदनः सेचनं यस्याः सा वेदवाणी (भ्रातृव्यघ्नी) शत्रुनाशनी (यजमानस्य) श्रेष्ठकर्मकर्तुः (गातुः) अ० २।३४।२। गाङ् गतौ-तु। मार्गः ॥

०२ वेदिष्टे चर्म

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वेदि॑ष्टे॒ चर्म॑ भवतु ब॒र्हिर्लोमा॑नि॒ यानि॑ ते।
ए॒षा त्वा॑ रश॒नाग्र॑भी॒द्ग्रावा॑ त्वै॒षोऽधि॑ नृत्यतु ॥

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Whitney
Translation
  1. Be thy skin the sacrificial hearth, [be] the hairs which [are]
    thine the barhís; this rein (raśanā́) hath seized thee; let this
    pressing-stone dance over thee.
Notes

The parts of this and the preceding verse are prescribed in Kāuc. 65.
1-3 to be used to accompany certain sacrificial acts to which they are
adapted.

Griffith

Thy skin shall be the Altar; let thine hair become the Sacred Grass. This cord hath held thee firmly: let this pressing-stone dance round on thee:

पदपाठः

वेदिः॑। ते॒। चर्म॑। भ॒व॒तु॒। ब॒र्हिः। लोमा॑नि। यानि॑। ते॒। ए॒षा। त्वा॒। र॒श॒ना। अ॒ग्र॒भी॒त्। ग्रावा॑। त्वा॒। ए॒षः। अधि॑। नृ॒त्य॒तु॒। ९.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे वेदवाणी !] (चर्म) [मेरा] चर्म (ते) तेरे लिये (वेदिः) वेदि [यज्ञभूमि] (भवतु) होवे, [मेरे] (यानि लोमानि) जो लोम हैं [वे] (ते) तेरे लिये (बर्हिः) यज्ञासन [होवें]। (एषा) [मेरी] इस (रशना) जीभ ने (त्वा) तुझे (अग्रभीत्) ग्रहण किया है, (एषः) यह (ग्रावा) शास्त्रों का उपदेशक [विद्वान्] (त्वा) तुझको (अधि) अधिकारी करके (नृत्यतु) अङ्गों को हिलावे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य वेदविद्या के लिये अपने चर्म अर्थात् शरीर को वेदिसमान और अपने रोमों को कम्बल आदि आसन तुल्य बनावे अर्थात् अपने अङ्ग-अङ्ग में और रोम-रोम में वेदवाणी को व्यापक जाने और जिह्वा से अभ्यास करके संसार में विविध चेष्टा करे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(वेदिः) परिष्कृता यज्ञभूमिः (ते) तुभ्यम् (चर्म) मम शरीरम् (भवतु) (बर्हिः) कम्बलकुशाद्यासनम् (लोमानि) रोमाणि (यानि) (ते) तुभ्यम्, तानीति शेषः (एषा) दृश्यमाना (त्वा) त्वाम् (रशना) अशे रश च। उ० २।७५। अशू व्याप्तौ-युच्, टाप्। रशादेशश्च धातोः। जिह्वा-इति शब्दकल्पद्रुमः। रशनाः, अङ्गुलिनाम-निघ० २।५। (अग्रभीत्) गृहीतवती (ग्रावा) अ० ३।१०।५। गॄ विज्ञाने-क्वनिप्। शास्त्रविज्ञापकः। पण्डितः। ग्रावाणः पदनाम-निघ० ५।३। (त्वा) (एषः) (अधि) अधिकृत्य (नृत्यतु) अङ्गानि विक्षिपतु ॥

०३ बालास्ते प्रोक्षणीः

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बाला॑स्ते॒ प्रोक्ष॑णीः सन्तु जि॒ह्वा सं मा॑र्ष्ट्वघ्न्ये।
शु॒द्धा त्वं य॒ज्ञिया॑ भू॒त्वा दिवं॒ प्रेहि॑ शतौदने ॥

०३ बालास्ते प्रोक्षणीः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Be thy tail-tuft the sprinklers; let thy tongue do the cleansing, O
    inviolable one; do thou, having become clean, fit for sacrifice, go on
    to heaven, O thou of the hundred rice-dishes.
Notes

The form bā́las (which Ppp. also reads) ⌊as against vā́las⌋ is vouched
for ⌊incidentally⌋ by the comm. to Prāt. i. 66 ⌊in its discussion of the
exchange of r and l⌋. The verse is quoted in Kāuś. 65.9. Sam
mārṣṭu
= ‘serve as sammārjana.’

Griffith

The holy water be thy hair: let thy tongue make thee clean, O Cow. Go, Hundredfold Oblation, made bright and adorable, to hea- ven.

पदपाठः

बालाः॑। ते॒। प्र॒ऽउक्ष॑णीः। स॒न्तु॒। जि॒ह्वा। सम्। मा॒र्ष्टु॒। अ॒घ्न्ये॒। शु॒ध्दा। त्वम्। य॒ज्ञिया॑। भू॒त्वा। दिव॑म्। प्र। इ॒हि॒। श॒त॒ऽओ॒द॒ने॒। ९.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अघ्न्ये) हे न मारनेवाली शक्ति ! [वेदवाणी] (ते) तेरी (प्रोक्षणीः) शोधन शक्तियाँ [मेरे लिये] (बालाः) बाल [कूची समान] (सन्तु) होवें, [मेरी] (जिह्वा) जीभ (सम्) यथावत् (मार्ष्टु) शुद्ध होवे। (शतौदने) हे सैकड़ों प्रकार सींचनेवाली ! [वेदवाणी] (त्वम्) तू (शुद्धा) शुद्ध और (यज्ञिया) यज्ञयोग्य (भूत्वा) होकर (दिवम्) प्रकाश को (प्र) अच्छे प्रकार (इहि) प्राप्त हो ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सदा रक्षा और वृद्धि करने हारी वेदवाणी द्वारा सत्यभाषण आदि से शुद्ध होकर वेदविद्या का प्रकाश करे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(बालाः) केशाः। कूर्चिका यथा (ते) तव (प्रोक्षणीः) शोधनशक्तयः (सन्तु) (जिह्वा) (सम्) सम्यक् (मार्ष्टु) शुध्यतु (अघ्न्ये) अ० ७।३।८। अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। नञ्+हन हिंसागत्योः-यक्, उपधालोपः, टाप्। अघ्न्यः प्रजापतिः। हे अहिंसिके रक्षिके वेदविद्ये (शुद्धा) पवित्रा (त्वम्) (यज्ञिया) यज्ञार्हा (भूत्वा) (दिवम्) प्रकाशम् (प्र) प्रकर्षेण (इहि) प्राप्नुहि (शतौदने) म० १। शतप्रकारेण सेचिके ॥

०४ यः शतौदनाम्

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यः श॒तौद॑नां॒ पच॑ति काम॒प्रेण॒ स क॑ल्पते।
प्री॒ता ह्य᳡स्य ऋ॒त्विजः॒ सर्वे॒ यन्ति॑ यथाय॒थम् ॥

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Whitney
Translation
  1. Whoso cooks her of the hundred rice-dishes, he is adapted to the
    fulfilment of wishes; for all his priests (ṛtvíj), being gratified, go
    as they should.
Notes

All the saṁhitā-mss. read in c asya rtv-.

Griffith

He who prepares the Hundredfold Oblation gains each wish thereby: For all his ministering priests, contented, move as fitteth them.

पदपाठः

यः। श॒तऽओ॑दनाम्। पच॑ति। का॒म॒ऽप्रेण॑। सः। क॒ल्प॒ते॒। प्री॒ताः। हि। अ॒स्य॒। ऋ॒त्विजः॑। सर्वे॑। यन्ति॑। य॒था॒ऽय॒थम्। ९.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [मनुष्य] (शतौदनाम्) सेकड़ों प्रकार सींचनेवाली [वेदवाणी] को (पचति) पक्का [दृढ़] करता है, (सः) वह (कामप्रेण) कामनाएँ पूर्ण करनेहारे व्यवहार से (कल्पते) समर्थ होता है। (हि) क्योंकि (अस्य) इस [मनुष्य] के (सर्वे) सब (ऋत्विजः) ऋत्विक् लोग [ऋतु-ऋतु में यज्ञ करनेवाले] (प्रीताः) सन्तुष्ट होकर (यथायथम्) जैसे का तैसा (यन्ति) पाते हैं ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य वेदविद्या को हृदय में दृढ़ करके व्यवहार करता है, वह अपनी शुभ कामनाएँ सिद्ध करके सब यज्ञकर्ताओं को प्रसन्न रखता है ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(यः) (शतौदनाम्) बहुप्रकारसेचिकां वेदवाणीम् (पचति) पक्वां दृढां करोति (कामप्रेण) काम+प्रा पूरणे-क। शुभमनोरथपूरकेण व्यवहारेण (सः) (कल्पते) समर्थो भवति (प्रीताः) सन्तुष्टाः (हि) यस्मात् कारणात् (अस्य) पुरुषस्य (ऋत्विजः) अ० ६।२।१। ऋतु+यजेः क्विन्। ऋतौ ऋतौ याजकाः (सर्वे) (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (यथायथम्) यथायोग्यम् ॥

०५ स स्वर्गमा

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स स्व॒र्गमा रो॑हति॒ यत्रा॒दस्त्रि॑दि॒वं दि॒वः।
अ॑पू॒पना॑भिं कृ॒त्वा यो ददा॑ति श॒तौद॑नाम् ॥

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Whitney
Translation
  1. He ascends the heavenly road (svargá), where is yon triple heaven
    of the heaven (dív), who, making [her] cake-naveled, gives her of
    the hundred rice-dishes.
Notes

The meaning and connection of c are not very clear. Ludwig renders
“and makes her the middle point of the apūpa,” which is against the
accent; probably ‘adding cakes numerous enough to cover her.’ ⌊Is it not
virtually equivalent to ‘putting a cake on her navel,’ as preparatory to
sacrificing her?⌋ Ppp. has hiraṇyajyotiṣam instead of apūpanābhim (cf.
the next verse). The resolution kṛtu-ā́, necessary to make the verse a
regular anuṣṭubh, is rather harsh.

Griffith

He rises up to heaven, ascends to younder third celestial height. Whoever gives the Hundredfold Oblation with the central cake.

पदपाठः

सः। स्वः॒ऽगम्। आ। रो॒ह॒ति॒। यत्र॑। अ॒दः। त्रि॒ऽदि॒वम्। दि॒वः। अ॒पू॒पऽना॑भिम्। कृ॒त्वा। यः। ददा॑ति। श॒तऽओ॑दनाम्। ९.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [पुरुष] (स्वर्गम्) स्वर्ग [सुख विशेष] को (आ रोहति) ऊँचा होकर पाता है, (यत्र) जहाँ पर (दिवः) विजय के (अदः) उस (त्रिदिवम्) तीन [आय, व्यय, वृद्धि] के व्यवहार का स्थान है। (यः) जो (शतौदनाम्) सैकड़ों प्रकार सींचनेवाली [वेदवाणी] को (अपूपनाभिम्) अक्षीणबन्धु (कृत्वा) बनाकर (ददाति) दान करता है ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जहाँ पर विद्या के लाभ, दान और वृद्धि का व्यवहार है, और जो मनुष्य पूर्ण हितकारिणी वेदवाणी का प्रचार करते हैं, वे उन्नति करके सुख विशेष पाते हैं ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(सः) पुरुषः (स्वर्गम्) सुखविशेषम् (आरोहति) उन्नत्या प्राप्नोति (यत्र) यस्मिन् स्वर्गे (अदः) तत्। प्रसिद्धम् (त्रिदिवम्) अ० ९।५।१०। त्रि+दिवु व्यवहारे-क। त्रयाणां दिवानामायव्ययवृद्धिव्यवहाराणां स्थानम् (दिवः) दिवु विजिगीषायाम्−डिवि। विजयस्य (अपूपनाभिम्) पानीविषिभ्यः पः। उ० ३।२३। नञ् पूयी विशरणे दुर्गन्धे च−प प्रत्ययः, यलोपः। नहो भश्च। उ० ४।१२६। णह बन्धने-इञ्, नस्य भः। अपूपमविशीर्णम् अक्षीणं नाभिं बन्धुम् (कृत्वा) मत्वा (यः) (ददाति) प्रयच्छति (शतौदनाम्) म० १। बहुप्रकारसेचिकां वेदवाणीम् ॥

०६ स तांल्लोकान्त्समाप्नोति

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स तांल्लो॒कान्त्समा॑प्नोति॒ ये दि॒व्या ये च॒ पार्थि॑वाः।
हिर॑ण्यज्योतिषं कृ॒त्वा यो ददा॑ति श॒तौद॑नाम् ॥

०६ स तांल्लोकान्त्समाप्नोति ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He obtains those worlds, [those] which are heavenly and ⌊those⌋
    which are earthly, who, having made [her] lighted with gold, gives her
    of the hundred rice-dishes.
Notes

Ppp. reads for b yeṣa devās samāsate, and has apūanābhim here in
c, instead of in 5 c.

Griffith

That man completely wins those worlds, both of the heavens and of the earth, Whoever pays the Hundredfold. Oblation with its golden light.

पदपाठः

सः। तान्। लो॒कान्। सम्। आ॒प्नो॒ति॒। ये। दि॒व्याः। ये। च॒। पार्थि॑वाः। हिर॑ण्यऽज्योतिषम्। कृ॒त्वा। यः। ददा॑ति। श॒तऽओ॑दनाम्। ९.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [मनुष्य] (तान्) उन (लोकान्) दर्शनीय लोगों [जनों] को (सम्) यथावत् [आप्नोति] पाता है, (ये) जो [लोग] (दिव्याः) व्यवहार जाननेवाले (च) और (ये) जो (पार्थिवाः) चक्रवर्ती राजा हैं। (यः) जो (शतौदनाम्) सैकड़ों प्रकार सींचनेवाली [वेदवाणी] को (हिरण्यज्योतिषम्) सुवर्ण [वा वीर्य अर्थात् पराक्रम] को प्रकाश करनेवाली (कृत्वा) करके (ददाति) दान करता है ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य वेदद्वारा धनी और पराक्रमी होते हैं, वे व्यवहारकुशल और सार्वभौम राजा बनते हैं ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(सः) (तान्) प्रसिद्धान् (लोकान्) दर्शनीयान् जनान् (सम्) सम्यक् (आप्नोति) प्राप्नोति (ये) जनाः (दिव्याः) दिवु व्यवहारे-क्यप्। व्यवहारकुशलाः (ये) (च) (पार्थिवाः) सर्वभूमिपृथिवीभ्यामणञौ। पा० ५।१।४१। पृथिवी-अञ्। सार्वभौमाः। चक्रवर्तिनः (हिरण्यज्योतिषम्) हिरण्यस्य सुवर्णस्य वीर्यस्य पराक्रमस्य वा ज्योतिः प्रकाशो यया। ताम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०७ ये ते

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ये ते॑ देवि शमि॒तारः॑ प॒क्तारो॒ ये च॑ ते॒ जनाः॑।
ते त्वा॒ सर्वे॑ गोप्स्यन्ति॒ मैभ्यो॑ भैषीः शतौदने ॥

०७ ये ते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What people are thy quellers, O heavenly one ⌊f.⌋, and what thy
    cookers, they shall all guard thee: be not afraid of them, thou of the
    hundred rice-dishes.
Notes

Ppp. puts this verse before our 5.

Griffith

Thine Immolators, Goddess! and the men who dress thee for the feast, all these will guard thee, Hundredfold Oblation! Have no fear of them.

पदपाठः

ये। ते॒। दे॒वि॒। श॒मि॒तारः॑। प॒क्तारः॑। ये। च॒। ते॒। जनाः॑। ते। त्वा॒। सर्वे॑। गो॒प्स्य॒न्ति॒। मा। ए॒भ्यः॒। भै॒षीः॒। श॒त॒ऽओ॒द॒ने॒। ९.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवि) हे देवी ! [विजयिनी वेदवाणी] (ये) जो (ते) तेरे (शमितारः) विचारनेवाले (च) और (ये जनाः) जो जन (ते) तेरे (पक्तारः) पक्के [निश्चय] करनेवाले हैं, (ते सर्वे) वे सब (त्वा) तेरी (गोप्स्यन्ति) रक्षा करेंगे, (शतौदने) हे सैकड़ों प्रकार सींचनेवाली वेदवाणी ! (एभ्यः) इन [शत्रुओं] से (मा भैषीः) मत भय कर ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विचारवान् और दृढ़ विश्वासी पुरुष वेदविद्या की रक्षा करके शत्रुओं से निर्भय रहते हैं ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(ये) (ते) तव (देवि) हे विजयिनि वेदवाणि (शमितारः) अ० ९।५।५। शम आलोचने−तृच्। विचारवन्तः (पक्तारः) पक्वकारकाः। निश्चयकारकाः (ये) (च) (ते) (जनाः) मनुष्याः (ते) (त्वा) (सर्वे) (गोप्स्यन्ति) रक्षिष्यन्ति (एभ्यः) शत्रुभ्यः (मा भैषीः) भयं मा प्राप्नुहि (शतौदने) अन्यत् पूर्ववत्−म० १ ॥

०८ वसवस्त्वा दक्षिणत

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वस॑वस्त्वा दक्षिण॒त उ॑त्त॒रान्म॒रुत॑स्त्वा।
आ॑दि॒त्याः प॒श्चाद्गो॑प्स्यन्ति॒ साग्नि॑ष्टो॒ममति॑ द्रव ॥

०८ वसवस्त्वा दक्षिणत ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The Vasus shall guard thee on the right, thee the Maruts on the left
    (uttarā́t), the Ādityas behind; do thou run beyond the Agnishṭoma.
Notes

That is, probably, exceed or surpass even this important ceremony.

Griffith

The Vasus from the South will be thy guards, the Maruts from the North, Adityas from the West; o’ertake and pass the Agnishtoma, thou!

पदपाठः

वस॑वः। त्वा॒। द॒क्षि॒ण॒तः। उ॒त्त॒रात्। म॒रुतः॑। त्वा॒। आ॒दि॒त्याः। प॒श्चात्। गो॒प्स्य॒न्ति॒। सा। अ॒ग्नि॒ऽस्तो॒मम्। अति॑। द्र॒व॒। ९.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वसवः) श्रेष्ठ पुरुष (त्वा) तुझको (दक्षिणतः) दाहिनी ओर से, (मरुतः) शूर पुरुष (त्वा) तुझको (उत्तरात्) ऊँचे वा बाएँ स्थान से, (आदित्याः) आदित्य [अखण्ड ब्रह्मचारी लोग] (पश्चात्) पीछे से (गोप्स्यन्ति) बचावेंगे, (सा) सो तू (अग्निष्टोमम्) सर्वव्यापक परमात्मा की स्तुति को (अति) अत्यन्त करके (द्रव) शीघ्र प्राप्त हो [ग्रहण कर] ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब विद्वान् शूरवीर पुरुष वेद की रक्षा करें, जिससे ईश्वर के गुणों का अत्यन्त प्रकाश हो ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(वसवः) श्रेष्ठाः पुरुषाः (त्वा) (दक्षिणतः) दक्षिणहस्तस्थितदेशात् (उत्तरात्) उच्चस्थानात्। वामदेशात् (मरुतः) अ० १।२०।१। शूरवीराः (त्वा) (आदित्याः) अ० १।९।१। अ+दिति-ण्य। अखण्डव्रता ब्रह्मचारिणः (पश्चात्) (गोप्स्यन्ति) (सा) सा त्वम् (अग्निष्टोमम्) अग्नेः सर्वव्यापकस्य परमेश्वरस्य स्तुतिम् (अति) अत्यन्तम् (द्रव) शीघ्रं प्राप्नुहि ॥

०९ देवाः पितरो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

दे॒वाः पि॒तरो॑ मनु॒ष्या᳡ गन्धर्वाप्स॒रस॑श्च॒ ये।
ते त्वा॒ सर्वे॑ गोप्स्यन्ति॒ साति॑रा॒त्रमति॑ द्रव ॥

०९ देवाः पितरो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The gods, the Fathers, men (manuṣyà), and they that are
    Gandharvas-and-Apsarases—they shall all guard thee; do thou run beyond
    the over-night sacrifice (atirātrá).
Notes

Ppp. reads gandharvāpsaraso devā rudrān̄girasas tvā. ⌊Cf. note to vs.
8.⌋

Griffith

The Gods, the Fathers, mortal men, Gandharvas, and Apsara- ses, All these will be the guards: o’ertake and pass the Atiratra, thou!

पदपाठः

दे॒वाः। पि॒तरः॑। म॒नु॒ष्याः᳡। ग॒न्ध॒र्व॒ऽअ॒प्सरसः॑। च॒। ये। ते। त्वा॒। सर्वे॑। गो॒प्स्य॒न्ति॒। सा। अ॒ति॒ऽरा॒त्रम्। अति॑। द्र॒व॒। ९.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) विजय चाहनेवाले, (पितरः) पालन करनेवाले (मनुष्याः) मनन करनेवाले (च) और (ये) जो (गन्धर्वाप्सरसः) गन्धर्व [पृथिवी धारण करनेवाले] और अप्सर लोग [आकाश में विमान आदि से चलनेवाले, विवेकी लोग] हैं, (ते सर्वे) वे सब (त्वा) तेरी (गोप्स्यन्ति) रक्षा करेंगे, (सा) सो तू (अतिरात्रम्) उत्कृष्ट दान क्रिया को (अति) उत्तमरीति से (द्रव) शीघ्र प्राप्त हो [ग्रहण कर] ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् सर्वोपकारी विवेकी जन वेद की रक्षा करके अत्यन्त दानशील होते हैं ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(देवाः) विजिगीषवः (पितरः) पालकाः (मनुष्याः) मननशीलाः (गन्धर्वाप्सरसः) अ० २।१।२, ४।३७।२। गो+धृञ् धारणे-व प्रत्ययः, गमादेशः+अप्+सृ गतौ-असि। गां पृथिवीं धरन्तीति गन्धर्वास्ते, अप्सु आकाशे विमानादिना सरन्तीति अप्सरसः ते च पुरुषाः (च) (ये) (सा) सा त्वम् (अतिरात्रम्) राशदिभ्यां त्रिप्। उ० ४।६७। रा दाने−त्रिप्। अहः सर्वैकदेश०। पा० ५।४।८७। अच्। अति उत्कृष्टां रात्रिं दानक्रियाम् (अति) उत्कर्षेण (द्रव) शीघ्रं प्राप्नुहि ॥

१० अन्तरिक्षं दिवम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॒न्तरि॑क्षं॒ दिवं॒ भूमि॑मादि॒त्यान्म॒रुतो॒ दिशः॑।
लो॒कान्त्स सर्वा॑नाप्नोति॒ यो ददा॑ति श॒तौद॑नाम् ॥

१० अन्तरिक्षं दिवम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He obtains the atmosphere, the sky, the earth, the Ādityas, the
    Maruts, the quarters, all worlds, who gives her of the hundred
    rice-dishes.
Notes
Griffith

The man who pays the Hundredfold Oblation winneth all the worlds, Air, heaven, and earth, Adityas, and Maruts, and regions of the sky.

पदपाठः

अ॒न्तरि॑क्षम्। दिव॑म्। भूमि॑म्। आ॒दि॒त्यान्। म॒रुतः॑। दिशः॑। लो॒कान्। सः। सर्वा॑न्। आ॒प्नो॒ति॒। यः। ददा॑ति। श॒तऽओ॑दनाम्। ९.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह [मनुष्य] (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष, (दिवम्) सूर्यलोक, (भूमिम्) भूमि, (आदित्यान्) अखण्ड ब्रह्मचारियों, (मरुतः) शूरों, (दिशः) आदेष्टाओं [शासकों], [अर्थात्] (सर्वान्) सब (लोकान्) दर्शनीय जनों को (आप्नोति) पाता है, (यः) जो (शतौदनाम्) सैकड़ों प्रकार सींचनेवाली [वेदवाणी] का (ददाति) दान करता है ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सर्वहितकारिणी वेदविद्या के प्रचार से मनुष्य ज्ञान और यान विमान आदि द्वारा नीचे, ऊपर और मध्य लोक में गति करके उत्तम-उत्तम पुरुषों के सङ्ग से अति आनन्द पाता है ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(अन्तरिक्षम्) (दिवम्) सूर्यलोकम् (भूमिम्) (आदित्यान्) म० ८। अखण्डव्रतान् ब्रह्मचारिणः (मरुतः) म० ८। शूरान्। देवान् (दिशः) दिश दाने आज्ञापने च-क्विप्। आदेष्टॄन्। शासकान् (लोकान्) जनान् (सर्वान्) (आप्नोति) प्राप्नोति। अन्यत् पूर्ववत्−म० ५ ॥

११ घृतं प्रोक्षन्ती

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

घृ॒तं प्रो॒क्षन्ती॑ सु॒भगा॑ दे॒वी दे॒वान्ग॑मिष्यति।
प॒क्तार॑मघ्न्ये॒ मा हिं॑सी॒र्दिवं॒ प्रेहि॑ शतौदने ॥

११ घृतं प्रोक्षन्ती ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Sprinkling forth ghee, well-portioned, the divine one will go to
    the gods; hurt not him who cooks thee, O inviolable one; go on to
    heaven, O thou of the hundred rice-dishes.
Notes

Ppp. reads in b devāṅ devī.

Griffith

Sprinkling down fatness, to the Gods will the beneficent God- dess go. Harm not thy dresser, Cow! To heaven, O Hundredfold Obla- tion, speed!

पदपाठः

घृ॒तम्। प्र॒ऽउ॒क्षन्ती॑। सु॒ऽभगा॑। दे॒वी। दे॒वान्। ग॒मि॒ष्य॒ति॒। प॒क्तार॑म्। अ॒घ्न्ये॒। मा। हिं॒सीः॒। दिव॑म्। प्र। इ॒हि॒। श॒त॒ऽओ॒द॒ने॒। ९.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (घृतम्) घृत [तत्त्व पदार्थ] (प्रोक्षन्ती) सींचती हुई, (सुभगा) बड़े ऐश्वर्यवाली (देवी) देवी [विजयिनी वेदवाणी] (देवान्) विद्वानों को (गमिष्यति) पहुँचेगी। (अघ्न्ये) हे न मारनेवाली ! [वेदवाणी] (पक्तारम्) [अपने] पक्के [दृढ़] करनेवाले को (मा हिंसीः) मत मार, (शतौदने) हे सैकड़ों प्रकार सींचनेवाली ! (दिवम्) प्रकाश को (प्र) अच्छे प्रकार (इहि) प्राप्त हो ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग वेदविद्या के तत्त्व को जानकर पुरुषार्थी होकर शुभ मनोरथ सिद्ध करें ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(घृतम्) सारपदार्थम् (प्रोक्षन्ती) प्रकर्षेण सिञ्चन्ती (सुभगा) परमैश्वर्यवती (देवी) विजयिनी वेदविद्या (देवान्) विदुषः पुरुषान् (गमिष्यति) प्राप्स्यति (पक्तारम्) दृढकारकम् (अघ्न्ये) म० ३। हे अहिंसिके (मा हिंसीः) मा नाशय। अन्यत् पूर्ववत्−म० ३ ॥

१२ ये देवा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ये दे॒वा दि॑वि॒षदो॑ अन्तरिक्ष॒सद॑श्च॒ ये ये चे॒मे भूम्या॒मधि॑।
तेभ्य॒स्त्वं धु॑क्ष्व सर्व॒दा क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥

१२ ये देवा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The gods that are stationed (-sad) in the sky, and that are
    stationed in the atmosphere, and these that are upon the earth—to them
    do thou always yield (duh) milk, butter, also honey.
Notes

Several of the mss., with a carelessness common in such cases, read
dhukṣa in d. We have to resolve deva-ā in a, in order to
make a normal pāda. Ppp. rectifies the meter of a by reading instead
pitaras for devās. ⌊Ppp. combines -ṣado ‘ntar- in a-b.⌋

Griffith

From all the Gods enthroned in heaven, in air, from those who dwell on earth, Draw forth for evermore a stream of milk, of butter, and of mead.

पदपाठः

ये। दे॒वाः। दि॒वि॒ऽसदः॑। अ॒न्त॒रि॒क्ष॒ऽसदः॑। च॒। ये। ये। च॒। इ॒मे। भूम्या॑म्। अधि॑। तेभ्‍यः॑। त्वम्। धु॒क्ष्व॒। स॒र्व॒दा। क्षी॒रम्। स॒र्पिः। अथो॒ इति॑। मधु॑। ९.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (देवाः) दिव्य गुण (दिविषदः) सूर्य में वर्तमान (च) और (ये) जो (अन्तरिक्षसदः) अन्तरिक्ष में व्याप्तिवाले (च) और (ये) जो (इमे) यह (भूम्याम् अधि) भूमि पर हैं, (त्वम्) तू (तेभ्यः) उन सब से (सर्वदा) सर्वदा (क्षीरम्) दूध (सर्पिः) घी (अथो) और भी (मधु) मधुविद्या [ब्रह्मज्ञान] (धुक्ष्व) भरपूर कर ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य वेद द्वारा संसार के सब पदार्थों से यथावत् उपकार लेकर दुग्ध, घृत आदि पदार्थ शरीरपुष्टि के लिये और ब्रह्मज्ञान, आत्मतुष्टि के लिये सदा प्राप्त करें ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(ये) (देवाः) दिव्यगुणाः (दिविषदः) सूर्ये स्थिताः (अन्तरिक्षसदः) अन्तरिक्षे वर्तमानाः (च) (ये) (ये) (च) (इमे) (भूम्याम्) (अधि) उपरि (तेभ्यः) देवेभ्यः सकाशात् (त्वम्) (धुक्ष्व) दुग्धि। प्रपूरय (सर्वदा) (क्षीरम्) दुग्धम् (सर्पिः) घृतम् (अथो) अपि च (मधु) मधुज्ञानम्। ब्रह्मविद्याम् ॥

१३ यत्ते शिरो

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यत्ते॒ शिरो॒ यत्ते॒ मुखं॒ यौ कर्णौ॒ ये च॑ ते॒ हनू॑।
आ॒मिक्षां॑ दुह्रतां दा॒त्रे क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥

१३ यत्ते शिरो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What head is thine, what mouth is thine, what ears and what jaws are
    thine—let them yield to thy giver curd, milk, butter, also honey.
Notes

Ppp. reads ye te śṛn̄ge for second half of a, and so for second
part of b yāu ca te akṣāu ⌊cf. vs. 14⌋.

Griffith

Let thy head, let thy mouth, let both thine ears, and those two jaws of thine. Pour for the giver mingled curd, and flowing butter, milk, and mead.

पदपाठः

यत्। ते॒। शिरः॑। यत्। ते॒। मुख॑म्। यौ। कर्णौ॑। ये इति॑। च॒। ते॒। हनू॒ इति॑। अ॒मिक्षा॑म्। दु॒ह्र॒ता॒म्। दा॒त्रे। क्षी॒रम्। स॒र्पिः। अथो॒ इति॑। मधु॑। ९.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो (ते) तेरा (शिरः) शिर, (यत्) जो (ते) तेरा (मुखम्) मुख, (यौ) जो (कर्णौ) दो कान, (च) और (ये) जो (ते) तेरे (हनू) दो जावड़े हैं, वे सब (आमिक्षाम्) आमिक्षा [पकाये उष्ण दूध में दही मिलाने से उत्पन्न वस्तु], (क्षीरम्) दूध, (सर्पिः) घी (अथो) और भी (मधु) मधु ज्ञान [ब्रह्मविद्या] (दात्रे) दाता को (दुह्रताम्) भरपूर करें ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - यहाँ से मन्त्र २४ तक वेदवाणी को गौ आदि के समान आकारवाली मानकर वर्णन है। तात्पर्य्य यह है कि जैसे शरीर के अङ्ग प्राणियों के लिये अनेक प्रकार उपकारी बने हैं, वैसे ही वेदवाणी से अनेक उपकार लेकर मनुष्य शारीरिक और आत्मिक पुष्टि करें ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(हनू) अ० १।२१।३। कपोलद्वयोपरिमुखभागौ (आमिक्षाम्) अ० ९।४।४। आङ्+मिष सेचने-सक्। पक्वोष्णक्षीरे दध्ना कृतं द्रव्यम् (दुह्रताम्) अ० ७।८२।६। दुहताम्। प्रपूरयन्तु (दात्रे) दानशीलाय। अन्यत् स्पष्टं गतं च−म० १२ ॥

१४ यौ त

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यौ त॒ ओष्ठौ॒ ये नासि॑के॒ ये शृङ्गे॒ ये च॒ तेऽक्षि॑णी।
आ॒मिक्षां॑ दुह्रतां दा॒त्रे क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥

१४ यौ त ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What lips are thine, what nostrils, what horns, and what thine
    eyes—let them yield etc. etc.
Notes

Ppp. reads instead yat te mukhaṁ yā te jihvā ye dantā yā ca te hanū.

Griffith

Let both thy lips, thy nostrils, both thy horns, and these two eyes of thine. Pour for the given, etc.

पदपाठः

यौ। ते॒। ओष्ठौ॑। ये‍। इति॑। नासि॑के॒। इति॑। ये इति॑। शृङ्गे॒ इति॑। ये इति॑। च॒। ते॒। अक्षि॑णी॒ इति॑। अ॒मिक्षा॑म्। दु॒ह्र॒ता॒म्। दा॒त्रे। क्षी॒रम्। स॒र्पिः। अथो॒ इति॑। मधु॑। ९.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यौ) जो (ते) तेरे (ओष्ठौ) दो ओठ, (ये) जो (नासिके) दो नथने, (ये) जो (शृङ्गे) दो सींग (च) और (ये) जो (ते) तेरी (अक्षिणी) दो आँखें हैं, वे सब (आमिक्षाम्) आमिक्षा…. म० १३ ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १३ के समान है ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४−(अक्षिणी) नेत्रे। अन्यत् स्पष्टम् ॥

१५ यत्ते क्लोमा

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यत्ते॑ क्लो॒मा यद्धृद॑यं पुरी॒तत्स॒हक॑ण्ठिका।
आ॒मिक्षां॑ दुह्रतां दा॒त्रे क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥

१५ यत्ते क्लोमा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What lungs are thine, what heart, the purītát with the throat—let
    them yield etc. etc.
Notes

Yás at the beginning is emended from yát, which all the mss. ⌊both
W’s and SPP’s⌋ read.

Griffith

Let heart and pericardium, let thy lungs with all the bronchial tubes, etc.

पदपाठः

यत्। ते॒। क्लो॒मा। यत्। हृद॑यम्। पु॒रि॒ऽतत्। स॒हऽक॑ण्ठिका। अ॒मिक्षा॑म्। दु॒ह्र॒ता॒म्। दा॒त्रे। क्षी॒रम्। स॒र्पिः। अथो॒ इति॑। मधु॑। ९.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो (ते) तेरा (क्लोमा) फेफड़ा, (यत्) जो (हृदयम्) हृदय और (सहकण्ठिका) कण्ठ के सहित (पुरीतत्) पुरीतत् [शरीर को फैलानेवाली सूक्ष्म आँत] है, वे सब (आमिक्षाम्) आमिक्षा….. म० १३ ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १३ के समान है ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १५−(क्लोमा) अ० २।३३।३। फुप्फुसम् (पुरीतत्) अ० ९।७।११। पुरिं शरीरं तनोतीति। सूक्ष्मान्तरम् (सहकण्ठिका) कण्ठेन सहिता। अन्यत् स्पष्टं गतं च ॥

१६ यत्ते यकृद्ये

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यत्ते॒ यकृ॒द्ये मत॑स्ने॒ यदा॒न्त्रं याश्च॑ ते॒ गुदाः॑।
आ॒मिक्षां॑ दुह्रतां दा॒त्रे क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥

१६ यत्ते यकृद्ये ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What liver is thine, what two mátasnās, what entrail, and what
    thine intestines—let them yield etc. etc.
Notes

Ppp. reads in b yā ”ntrāṇi.

Griffith

Let liver, and let kidneys, let thine entrails, and the parts within, etc.

पदपाठः

यत्। ते॒। यकृ॑त्। ये इति॑। मत॑स्ने॒ इति॑। यत्। आ॒न्त्रम्। याः। च॒। ते॒। गुदाः॑। अ॒मिक्षा॑म्। दु॒ह्र॒ता॒म्। दा॒त्रे। क्षी॒रम्। स॒र्पिः। अथो॒ इति॑। मधु॑। ९.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो (ते) तेरा (यकृत्) कलेजा, (ये) जो (मतस्ने) दो मतस्ने [गुर्दे], (यत्) जो (आन्त्रम्) आँत (च) और (याः) जो (ते) तेरी (गुदाः) गुदा [मलत्याग नाड़ियाँ] हैं, वे सब (आमिक्षाम्) आमिक्षा …..म० १३ ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १३ के समान है ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६−(यकृत्) अ० ९।७।११। कालखण्डम् (मतस्ने) अ० २।३३।३। ग्रीवाधस्ताद्भागस्थितहृदयोभयपार्श्वस्थे अस्थिनी (आन्त्रम्) अ० २।३३।४। उदरनाडीविशेषः (गुदाः) अ० २।३३।४। मलत्यागनाड्यः। अन्यत् स्पष्टम् ॥

१७ यस्ते प्लाशिर्यो

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यस्ते॑ प्ला॒शिर्यो व॑नि॒ष्ठुर्यौ कु॒क्षी यच्च॒ चर्म॑ ते।
आ॒मिक्षां॑ दुह्रतां दा॒त्रे क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥

१७ यस्ते प्लाशिर्यो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What plāśí is thine, what rectum (? vaniṣṭhú), what (two)
    paunches, and what thy skin—let them yield etc. etc.
Notes
Griffith

Let rectum and omentum, let thy belly’s hollows, and thy skin, etc.

पदपाठः

यः। ते॒। प्ला॒शिः। यः। व॒नि॒ष्ठुः। यौ। कु॒क्षी इति॑। यत्। च॒। चर्म॑। ते॒। अ॒मिक्षा॑म्। दु॒ह्र॒ता॒म्। दा॒त्रे। क्षी॒रम्। स॒र्पिः। अथो॒ इति॑। मधु॑। ९.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (ते) तेरी (प्लाशिः) प्लाशि [अन्न की आधार आँत], (यः) जो (वनिष्ठुः) [अन्न, रक्त आदि बाँटनेवाली आँत], (यौ) जो (कुक्षी) दो कोखें (च) और (यत्) जो (ते) तेरा (चर्म) चर्म है, वे सब (आमिक्षाम्) आमिक्षा …… म० १३ ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १३ के समान है ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७−(प्लाशिः) अ० ९।७।१२। अन्नाधार आन्त्रविशेषः (वनिष्ठुः) अ० ९।७।१२। अन्नरक्तादिसंभाजकं स्थूलान्त्रम् (कुक्षी) उदरपार्श्वौ। अन्यत् स्पष्टम् ॥

१८ यत्ते मज्जा

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यत्ते॑ म॒ज्जा यदस्थि॒ यन्मां॒सं यच्च॒ लोहि॑तम्।
आ॒मिक्षां॑ दुह्रतां दा॒त्रे क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥

१८ यत्ते मज्जा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What marrow is thine, what bone, what flesh, and what blood—let
    them yield etc. etc.
Notes

Ppp. reads in a yāny asthīni, thus rectifying the meter. The
Anukr. does not notice the lacking syllable in the pāda. Yás at the
beginning is again emendation for the yát of all the mss. ⌊both W’s
and SPP’s⌋.

Griffith

Let all thy marrow, every bone, let all thy flesh, and all thy blood, etc.

पदपाठः

यत्। ते॒। म॒ज्जा। यत्। अस्थि॑। यत्। मां॒सम्। यत्। च॒। लोहि॑तम्। अ॒मिक्षा॑म्। दु॒ह्र॒ता॒म्। दा॒त्रे। क्षी॒रम्। स॒र्पिः। अथो॒ इति॑। मधु॑। ९.१८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो (ते) तेरी (मज्जा) मज्जा [हड्डी की मींग] (यत्) जो (अस्थि) हड्डी, (यत्) जो (मांसम्) मांस (च) और (यत्) जो (लोहितम्) रक्त है, वे सब (आमिक्षाम्) आमिक्षा…. मन्त्र १३ ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १३ के समान है ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १८−(मज्जा) अ० १।११।४। छान्दसो दीर्घः। अस्थिमध्यस्थस्नेहः। अन्यत् स्पष्टम् ॥

१९ यौ ते

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यौ ते॑ बा॒हू ये दो॒षणी॒ यावंसौ॒ या च॑ ते क॒कुत्।
आ॒मिक्षां॑ दुह्रतां दा॒त्रे क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥

१९ यौ ते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What fore-legs (bāhú) are thine, what shanks (doṣán), what
    shoulders ⌊áṅsa⌋, and what thy hump—let them yield etc. etc.
Notes

Ppp. reads, after bāhū, yāu te aṅsāu dūhanaṁ yā ca etc.

Griffith

Let both thy shoulders and thy hump, thy forelegs, and their lower parts, etc.

पदपाठः

यौ। ते॒। बा॒हू इति॑। ये इति॑। दो॒षणी॒ इति॑। यौ। अंसौ॑। या। च॒। ते॒। क॒कुत्। अ॒मिक्षा॑म्। दु॒ह्र॒ता॒म्। दा॒त्रे। क्षी॒रम्। स॒र्पिः। अथो॒ इति॑। मधु॑। ९.१९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यौ) जो (ते) तेरी (बाहू) दो भुजाएँ (ये), जो (दोषणी) दो भुजदण्ड, (यौ) जो (अंसौ) दो कन्धे (च) और (या) जो (ते) तेरा (ककुत्) कूबर [कुब्ब] है। वे सब (आमिक्षाम्) आमिक्षा….. मन्त्र १३ ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १३ के समान है ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १९−(दोषणी) अ० ९।७।७। भुजदण्डौ (ककुत्) अ० ३।४।२। वृषादिस्कन्धपृष्ठस्थमांसपिण्डः। अन्यत् स्पष्टम् ॥

२० यास्ते ग्रीवा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यास्ते॑ ग्री॒वा ये स्क॒न्धा याः पृ॒ष्टीर्याश्च॒ पर्श॑वः।
आ॒मिक्षां॑ दुह्रतां दा॒त्रे क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥

२० यास्ते ग्रीवा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What neck-bones (grīvā́) are thine, what shoulder-bones
    skandhá⌋, what side-bones (pṛṣṭí), and what ribs (párśu)—let them
    yield etc. etc.
Notes

The Anukr. does not notice the lacking syllable in a.

Griffith

Let neck and nape and shoulder-joints, thy ribs and inter-costal parts, etc.

पदपाठः

याः। ते॒। ग्री॒वाः। ये। स्क॒न्धाः। याः। पृ॒ष्टीः। याः। च॒। पर्श॑वः। अ॒मिक्षा॑म्। दु॒ह्र॒ता॒म्। दा॒त्रे। क्षी॒रम्। स॒र्पिः। अथो॒ इति॑। मधु॑। ९.२०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (याः) जो (ते) तेरी (ग्रीवाः) गले की नाड़ियाँ, (ये) जो (स्कन्धाः) कन्धे की हड्डियाँ, (याः) जो (पृष्टीः) छोटी पसलियाँ (च) और (याः) जो (पर्शवः) बड़ी पसलियाँ हैं, वे सब (आमिक्षाम्) आमिक्षा …… म० १३ ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १३ के समान है ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २०−(ग्रीवाः) कण्ठस्थनाड्यः (स्कन्धाः) स्कन्धास्थीनि (पृष्टीः) अ० ९।७।६। पार्श्वस्थीनि (पर्शवः) अ० ९।७।६। पार्श्वाधःस्थास्थीनि। अन्यत् स्पष्टम् ॥

२१ यौ त

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यौ त॑ उ॒रू अ॑ष्ठी॒वन्तौ॒ ये श्रोणी॒ या च॑ ते भ॒सत्।
आ॒मिक्षां॑ दुह्रतां दा॒त्रे क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥

२१ यौ त ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What thighs are thine, knee-joints, what hips, and what thy rump—let
    them yield etc. etc.
Notes
Griffith

So let thy thighs and thy knee-bones, thy hinder quarters, and thy hips, etc.

पदपाठः

यौ। ते॒। ऊ॒रू इति॑। अ॒ष्ठी॒वन्तौ॑। ये इति॑। श्रोणी॒ इति॑। या। च॒। ते॒। भ॒सत्। अ॒मिक्षा॑म्। दु॒ह्र॒ता॒म्। दा॒त्रे। क्षी॒रम्। स॒र्पिः। अथो॒ इति॑। मधु॑। ९.२१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यौ) जो (ते) तेरे (ऊरू) दो घुटने और (अष्ठीवन्तौ) घुटनों के दो जोड़, (ये) जो (श्रोणी) दो कूल्हे (च) और (या) जो (ते) तेरा (भसत्) पेडू है, वे सब (आमिक्षाम्) आमिक्षा….. म० १३ ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १३ के समान है ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २१−(ऊरू) जानुनी (अष्ठीवन्तौ) अ० २।३३।५। जानुसंयोगास्थिनी (श्रोणी) कटिदेशौ (भसत्) नाभितलभागः। अन्यत् स्पष्टम् ॥

२२ यत्ते पुच्छम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यत्ते॒ पुच्छं॒ ये ते॒ बाला॒ यदूधो॒ ये च॑ ते॒ स्तनाः॑।
आ॒मिक्षां॑ दुह्रतां दा॒त्रे क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥

२२ यत्ते पुच्छम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What tail is thine, what thy tail-tuft, what udder, and what thy
    teats—let them yield etc. etc.
Notes
Griffith

So let thy tail and all the hairs thereof, thine udder, and thy teats, etc.

पदपाठः

यत्। ते॒। पुच्छ॑म्। ये। ते॒। बालाः॑। यत्। ऊधः॑। ये। च॒। । ते॒। स्तनाः॑। अ॒मिक्षा॑म्। दु॒ह्र॒ता॒म्। दा॒त्रे। क्षी॒रम्। स॒र्पिः। अथो॒ इति॑। मधु॑। ९.२२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो (ते) तेरी (पुच्छम्) पूँछ, (ये) जो, (ते) तेरे (बालाः) बाल, (यत्) जो (ऊधः) मेड़ [दूध का छिद्रस्थान] (च) और (ये) जो (ते) तेरे (स्तनाः) स्तन [दूध के आधार] हैं, वे सब (आमिक्षाम्) आमिक्षा…. म० १३ ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १३ के समान है ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २२−(पुच्छम्) लाङ्गूलम् (बालाः केशाः) (ऊधः) दुग्धच्छिद्रस्थानम् (स्तनाः) दुग्धाधाराः। अन्यत् स्पष्टम् ॥

२३ यास्ते जङ्घा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यास्ते॒ जङ्घा॒ याः कुष्ठि॑का ऋ॒च्छरा॒ ये च॑ ते श॒फाः।
आ॒मिक्षां॑ दुह्रतां दा॒त्रे क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥

२३ यास्ते जङ्घा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What hind-thighs are thine, what dew-claws, [what] pasterns
    (ṛchára), and what thy hoofs—let them yield etc. etc.
Notes

One of our mss. (O.) reads in b ṛtsárās, and Ppp. supports it by
giving kṛtsarās.

⌊The reading ṛtsárās seems to be supported by E. as well as by O. and
Ppp. Its phonetic relation to ṛcchárās resembles that of Pāli
ucchādana, jighacchā, bībhaccha to Skt. utsādana, jighatsā, bībhatsa
(Kuhn, Pāli-gram., p. 52, gives kucchā = kutsā, vaccha = vatsa).
Unless I err, our vulgate text here shows a Prākritism such as we have
good right to assume also at iii. 12. 4, in case of the much-discussed
ucchántu, which may be a mere vernacularized rendering of ukṣántu
(cf. tacchaka = takṣaka, Kuhn, l.c.).⌋

Griffith

Let all thy legs, the refuse of thy feet, thy heelropes, and thy hooves. Pour for the giver mingled curd, and flowing butter milk, and mead.

पदपाठः

याः। ते॒। जङ्घाः॑। याः। कुष्ठि॑काः। ऋ॒च्छराः॑। ये। च॒। ते॒। श॒फा। अ॒मिक्षा॑म्। दु॒ह्र॒ता॒म्। दा॒त्रे। क्षी॒रम्। स॒र्पिः। अथो॒ इति॑। मधुः॑। ९.२३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (याः) जो (ते) तेरी (जङ्घाः) जङ्घाएँ, (याः) जो (कुष्ठिकाः) कुष्ठिकाएँ [नख अङ्गुली बाहिरी अङ्ग] और (ऋच्छराः) ऋच्छराएँ [खुरों के ऊपर के भाग] (च) और (ये) जो (ते) तेरे (शफाः) खुर हैं, वे सब (आमिक्षाम्) आमिक्षा…. म० १३ ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १३ के समान है ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २३−(जङ्घाः) अ० ९।७।१०। गुल्फजान्वोरन्तराले अवयवाः (कुष्ठिकाः) अ० ९।४।१६। नखाङ्गुल्यादि-बहिर्भूता अवयवाः (ऋच्छराः) ऋच्छेररः। उ० ३।१३१। ऋच्छ गतौ-अर। खुरोपरिस्थभागाः (शफाः) खुराः। अन्यत् स्पष्टम् ॥

२४ यत्ते चर्म

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यत्ते॒ चर्म॑ शतौदने॒ यानि॒ लोमा॑न्यघ्न्ये।
आ॒मिक्षां॑ दुह्रतां दा॒त्रे क्षी॒रं स॒र्पिरथो॒ मधु॑ ॥

२४ यत्ते चर्म ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What hide is thine, O thou of the hundred rice-dishes, what hairs, O
    inviolable one—let them yield etc. etc.
Notes
Griffith

Let all thy skin, Sataudana! let every hair thou hast, O Cow, Pour for the giver mingled curd, and flowing butter, milk, and mead.

पदपाठः

यत्। ते॒। चर्म॑। श॒त॒ऽओ॒द॒ने॒। यानि॑। लोमा॑नि। अ॒घ्न्ये॒। आ॒मिक्षा॑म्। दु॒ह्र॒ता॒म्। दा॒त्रे। क्षी॒रम्। स॒र्पिः। अथो॒ इति॑। मधु॑। ९.२४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शतौदने) हे सैकड़ों प्रकार सींचनेवाली ! और (अघ्न्ये) हे न मारनेवाली ! [वेदवाणी] (यत्) जो (ते) तेरा (चर्म) चर्म और (यानि) जो (लोमानि) लोम हैं, वे सब (आमिक्षाम्) आमिक्षा [पकाये उष्ण दूध में दही मिलाने से उत्पन्न वस्तु], (क्षीरम्) दूध, (सर्पिः) घी (अथो) और भी (मधु) मधुज्ञान [ब्रह्मविद्या] (दात्रे) दाता को (दुह्रताम्) भरपूर करें ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १३ के समान है ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २४−(शतौदने) म० १। हे बहुप्रकारसेचनशीले (अघ्न्ये) म० ३। हे अहिंसिके वेदवाणि। अन्यद् गतम्−म० १३ स्पष्टं च ॥

२५ क्रोडौ ते

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क्रो॒डौ ते॑ स्तां पुरो॒डाशा॒वाज्ये॑ना॒भिघा॑रितौ।
तौ प॒क्षौ दे॑वि कृ॒त्वा सा प॒क्तारं॒ दिवं॑ वह ॥

२५ क्रोडौ ते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let thy two breasts (kroḍá) be sacrificial cakes, smeared over
    with sacrificial butter; having made them wings, O divine one, do thou
    carry him who cooks thee to heaven (dív).
Notes

The Anukr. very strangely ignores the two resolutions in b and
c, and reckons the pādas as 7 syllables each.

Griffith

Sprinkled with molten butter, let the two meal-cakes be sport for thee. Make them thy wings, O Goddess, and bear him who dresses thee to heaven.

पदपाठः

क्रो॒डौ। ते॒। स्ता॒म्। पु॒रो॒डाशौ॑। आज्ये॑न। अ॒भिऽधा॑रितौ। तौ। प॒क्षौ। दे॒वि॒। कृ॒त्वा। सा। प॒क्तार॑म्। दिव॑म्। व॒ह॒। ९.२५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • द्व्यनुष्टुब्गर्भानुष्टुप्
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) तेरी (क्रोडौ) दो गोदें (आज्येन) घी से (अभिघारितौ) चुपड़ी हुई (पुरोडाशौ) दो रोटियाँ [मुनि अन्न की पवित्र रोटियाँ] (स्ताम्) होवें। (देवि) हे देवी ! [विजयिनी वेदविद्या] (सा) सो तू (तौ) उन दोनों [गोदों] को (पक्षौ) दो पंख (कृत्वा) बनाकर (पक्तारम्) अपने पक्के [दृढ़] करनेवाले को (दिवम्) प्रकाश में (वह) पहुँचा दे ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य वेदवाणी के एक विद्यादायक और दूसरे पुरुषार्थवर्धक गुणों को शीघ्र प्राप्त करके आत्मा को प्रकाशयुक्त करे, जैसे बालक माता की दोनों गोदों में रहकर दुग्ध आदि से शीघ्र पुष्ट होता हुआ उत्तम मार्ग पर चलता है ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २५−(क्रोडौ) क्रुड बाल्ये, निमज्जने भक्षणे च-घञ्। अङ्कौ (ते) तव (स्ताम्) भवताम् (पुरोडाशौ) अ० ९।६।(१)।१२। मुन्यन्नरोटिकाविशेषौ (आज्येन) घृतेन (अभिघारितौ) घृ क्षरणे−णिच्-क्त। सर्वतः स्निग्धौ (तौ) क्रोडौ (पक्षौ) पक्षिणां पतत्रौ (देवि) हे विजयिनि (कृत्वा) (सा) सा त्वम् (पक्तारम्) पक्वकारकं दृढकारकम् (दिवम्) प्रकाशं प्रति (वह) नय ॥

२६ उलूखले मुसले

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

उ॒लूख॑ले॒ मुस॑ले॒ यश्च॒ चर्म॑णि॒ यो वा॒ शूर्पे॑ तण्डु॒लः कणः॑।
यं वा॒ वातो॑ मात॒रिश्वा॒ पव॑मानो म॒माथा॒ग्निष्टद्धोता॒ सुहु॑तं कृणोतु ॥

२६ उलूखले मुसले ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What in the mortar, on the pestle, and on the hide, or what
    rice-grain, [what] kernel in the winnowing-basket, or what the wind,
    Mātariśvan, blowing (), shook (math)—let Agni as hótar make that
    well-offered.
Notes

It is very much out of place to reckon five pādas (12 + 9: 8 + 7 + 11 =
47) in this verse; but the pada-ms. supports the Anukr., by making a
mark of pāda-division after mātaríśvā; evidently either this word or
pávamānas (rather the former) is an intrusion in c. ⌊The last pāda
we had as vi. 71. 1 d.⌋ The verse is quoted in Vāit. 4. 9; also
(with vi. 122, 123) in Kāuś. 63. 29, to accompany the closing libations.
Ppp. reads in b ye vā śūrpe taṇḍulāṣ kaṇāḥ.

Griffith

Each grain of rice in mortar or on pestle, all on the skin or in the winnowing-basket, Whatever purifying Matarisvan, the Wind, hath sifted, let the Hotar Agni make of it an acceptable oblation.

पदपाठः

उ॒लूख॑ले। मुस॑ले। यः। च॒। चर्म॑णि। यः। वा॒। शूर्पे॑। त॒ण्डु॒लः। कणः॑। यम्। वा॒। वातः॑। मा॒त॒रिश्वा॑। पव॑मानः। म॒माथ॑। अ॒ग्निः। तत्। होता॑। सुऽहु॑तम्। कृ॒णो॒तु॒। ९.२६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • पञ्चपदा बृहत्यनुष्टुबुष्णिग्गर्भा जगती
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (तण्डुलः) चावल [वा] (कणः) कनी [चावल का टुकड़ा] (उलूखले) ओखली में, (मुसले) मूसल में (च) और (चर्मणि) चर्म [मृग छाला वा बाघम्बर] में (वा) अथवा (यः) जो (शूर्पे) सूप में है, (वा) अथवा (यम्) जिसको (मातरिश्वा) आकाश में चलनेवाले (पवमानः) शोधनेवाले (वातः) वायु ने (ममाथ) मथा था, (होता) दाता, (अग्निः) सर्वव्यापक परमेश्वर (तत्) उस को (सुहुतम्) धार्मिक रीति से स्वीकार किया हुआ (कृणोतु) करे ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे मनुष्य अन्न को एक-एक बीज करके अनेक प्रकार कूट-फटक कर उपयोगी बनाते हैं, वैसे ही मनुष्य वेदवाणी को ब्रह्मचर्य आदि अनेक तप से प्राप्त करके परमेश्वर के आश्रय से संसार में उपकारी बनें ॥२६॥ इस मन्त्र का अन्तिम पाद अथर्व० ६।७१।२। में आ चुका है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २६−(उलूखले) अ० ९।६(१)।१५। धान्यादिकण्डनसाधने (मुसले) अ० ६।(१)।१५। धान्यादिखण्डनसाधने (चर्मणि) आजनं चर्म कृतिः स्त्री-इत्यमरः १७।४७। अजिने। मृगचर्मणि। व्याघ्रचर्मणि (शूर्पे) अ० ९।६(१)।१६। धान्यस्फोटकयन्त्रे (तण्डुलः) सानसिवर्णसिपर्णसितण्डुला०। उ० ४।१७। तडि आघाते-उलच्। यद्वा, वृञ्लुटितनितडिभ्य उलच् तण्डश्च। उ० ५।९। वृञादिभ्यः-उलच्, सर्वेषां तण्डादेशश्च। तुषरहितो व्रीहिः (कणः) धान्यादेरतिसूक्ष्मांशः (यम्) (वा) (वातः) वायुः (मातरिश्वा) अ० ५।१०।८। आकाशगमनः (पवमानः) संशोधकः (ममाथ) मथितवान् (अग्निः) सर्वव्यापकः परमेश्वरः (तत्) (होता) दाता (सुहुतम्) सुष्ठु स्वीकृतम् (कृणोतु) करोतु ॥

२७ अपो देवीर्मधुमतीर्घृतश्चुतो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॒पो दे॒वीर्मधु॑मतीर्घृत॒श्चुतो॑ ब्र॒ह्मणां॒ हस्ते॑षु प्रपृ॒थक्सा॑दयामि।
यत्का॑म इ॒दम॑भिषि॒ञ्चामि॑ वो॒ऽहं तन्मे॒ सर्वं॒ सं प॑द्यतां व॒यं स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम् ॥

२७ अपो देवीर्मधुमतीर्घृतश्चुतो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The heavenly waters, rich in honey, dripping with ghee, I seat in
    separate succession in the hands of the priests (brahmán); with what
    desire I now pour you on, let all that fall to my lot; may we be lords
    of wealth.
Notes

Ppp. begins a with imā āpo madh-, and c with yatkāme ’dam.
Compare the verses vi. 122. 5 and xi. 1. 27, which are in part
coincident with this; ⌊also MGS. i. 5. 4 and Index under devīr āpo.
The verse (rather than i. 4. 3, which has the same pratīka) is quoted
in Kāuś. 65. 8, to accompany the setting of water pots. The metrical
definition of the Anukr. suits well enough.

⌊The quoted Anukr. says “aghāyatām”: cf . vs. 1.⌋

Griffith

In the priest’s hands I lay, in separate order, the sweet celestial Waters, dropping fatness. As here I sprinkle them may all my wishes be granted unto me in perfect fulness. May we have ample wealth in our posses- sion.

पदपाठः

अ॒पः। दे॒वीः। मधु॑ऽमतीः। घृ॒त॒ऽश्चुतः॑। ब्र॒ह्माणा॑म्। हस्ते॑षु। प्र॒ऽपृ॒थक्। सा॒द॒या॒मि॒। यत्ऽका॑मः। इ॒दम्। अ॒भि॒ऽसि॒ञ्चामि॑। वः॒। अ॒हम्। तत्। मे॒। सर्व॑म्। सम्। प॒द्य॒ता॒म्। व॒यम्। स्या॒म॒। पत॑यः। र॒यी॒णाम्। ९.२७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शतौदना (गौः)
  • अथर्वा
  • पञ्चपदातिजागतानुष्टुब्गर्भा शक्वरी
  • शतौदनागौ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

वेदवाणी की महिमा का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवीः) देवी [विजयिनी] (मधुमतीः) श्रेष्ठ मधुविद्या [ब्रह्मज्ञान] वाली, (घृतश्चुतः) घृत [सारतत्त्व] बरसानेवाली (अपः) व्यापनशील [वेदवाणियों] को (ब्रह्मणाम्) ब्रह्माओं [वेदवेत्ताओं] के (हस्तेषु) हाथों में (प्रपृथक्) नाना प्रकार से (सादयामि) मैं रखता हूँ। [हे विद्वानो !] (यत्कामः) जिस उत्तम कामनावाला (अहम्) मैं (इदम्) इस समय (वः) तुम्हारा (अभिषिञ्चामि) अभिषेक करता हूँ, (तत् सर्वम्) वह सब (मे) मेरे लिये (सम् पद्यताम्) सम्पन्न हो, (वयम्) हम (रयीणाम्) अनेक धनों के (पतयः) स्वामी (स्याम) होवें ॥२७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को उचित है कि सर्वगुणसम्पन्न वेदविद्या को विद्वानों के साथ विचार कर उत्तम शिक्षा प्राप्त करें, जिस से सब लोग विद्याधन और सुवर्ण आदि धन पाकर आनन्द भोगें ॥२७॥ इस मन्त्र के पाद दो और तीन अथर्व ६।१२२, ५। में आये हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २७−(अपः) व्यापनशीला वेदविद्याः (देवीः) विजयिनीः (मधुमतीः) ब्रह्मज्ञानेन युक्ताः (घृतश्चुतः) अ० ३।३३।४। सारतत्त्वस्राविणीः (ब्रह्मणाम्) वेदज्ञानम् (हस्तेषु) (प्रपृथक्) अ० ६।१२२।५। नानाप्रकारेण (सादयामि) स्थापयामि (यत्कामः) यत्पदार्थं कामयमानः (इदम्) इदानीम् (अभिषिञ्चामि) अभिषिक्तान् करोमि (वः) युष्मान् (अहम्) (तत्) (मे) मह्यम् (सर्वम्) (सम् पद्यताम्) सम्पन्नं साधितं भवतु (वयम्) (स्याम) (पतयः) स्वामिनः (रयीणाम्) नानाधनानाम् ॥