००६ मणिबन्धनम्

००६ मणिबन्धनम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. With an amulet.
VH anukramaṇī

मणिबन्धनम्।
१-३५ बृहस्पतिः। फालमणिः, वनस्पतिः, ३ आपः। अनुष्टुप्, १,४,२१ गायत्री, ५ षट्-पदा जगती, ६ सप्तपदा विराट् शक्वरी, ७-१० त्र्यवसाना अष्टपदाऽष्टिः (१० नवपदा धृतिः), ११, २०, २३-२७ पथ्यापङ्क्तिः १२-१७ त्र्यवसाना षट्-पदा शक्वरी, ३१ त्र्यवसाना षट्-पदा जगती, ३५ पञ्चपदा त्र्यनुष्टुब्गर्भा जगती।

Whitney anukramaṇī

[Bṛhaspati.—pañcatriṅśat. mantroktaphālamaṇidevatyam uta vānaspaiyam. ⌊3. āpyā.⌋ ānuṣṭubham: 1, 4, 21. gāyatrī; 5. 6-p. jagatī; 6. 7-p. virāṭ śakvarī; 7-10. 3-av. 8-p. aṣṭi (10. 9-p. dhṛti); 11, 20, 23-27. pathyāpan̄kti; 12-17. 3-av. 7-p. śakvarī; 31. 3-av. 6-p. jagatī; 35. 5-p. tryanuṣṭubgarbhā jagatī.]

Whitney

Comment

Found also in great part (not vss. 18, 19, 23, 24, 26, 27, 29, 30, 33, 35) in Pāipp. xvi. A number of verses and parts of verses are prescribed in Kāuś. 19 ⌊and its schol.⌋ to be used in various acts of a ceremony for prosperity, and a few in other connections. Verses 1 and 3 are also used in Vāit. ⌊For details, see under the several verses.⌋

Translations

Translated: Henry, 18, 65; Griffith, ii. 21; Bloomfield, 84, 608.

Griffith

The glorification of an all-powerful amulet

०१ अरातीयोर्भ्रातृव्यस्य दुर्हार्दो

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अराती॒योर्भ्रातृ॑व्यस्य दु॒र्हार्दो॑ द्विष॒तः शिरः॑।
अपि॑ वृश्चा॒म्योज॑सा ॥

०१ अरातीयोर्भ्रातृव्यस्य दुर्हार्दो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The head of the niggardly (arātīyú) cousin, of the evil-hearted
    hater, I cut off with force.
Notes

The hymn (vs. 1) is quoted in Kāuś. 19. 22, with 3 and a couple of yet
earlier hymns. At 8. 12, also, the verse is used in connection with the
preparation of the darbha-sickle. Further, it is reckoned (note to
Kāuś. 19. 1) as a puṣṭika mantra. In Vāit. 10. 2, it accompanies the
cutting of a sacrificial post.

Griffith

With power I cut away the head of my malignant rival, of mine evil-hearted enemy.

पदपाठः

अ॒रा॒ति॒ऽयोः। भ्रातृ॑व्यस्य। दुः॒ऽहार्दः॑। द्वि॒ष॒तः। शिरः॑। अपि॑। वृ॒श्चा॒मि॒। ओज॑सा। ६.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • गायत्री
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अरातीयोः) कंजूसी करनेवाले, (भ्रातृव्यस्य) भ्रातृभाव से रहित, (दुर्हार्दः) दुष्ट हृदयवाले (द्विषतः) द्वेषी के (शिरः) शिर को (ओजसा) बल के साथ (अपि वृश्चामि) मैं काटे देता हूँ ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्रतापी मनुष्य शत्रुओं के मारने में सदा समर्थ होवे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(अरातीयोः) मृगय्वादयश्च। उ० १।३७। अराति+या गतिप्रापणयोः-कु। अदानशीलस्य। अनुदारस्य (भ्रातृव्यस्य) अ० २।१८।१। भ्रातृभावरहितस्य (दुर्हार्दः) अ–० २।७।५। दुष्टहृदयस्य (द्विषतः) शत्रोः (शिरः) (अपि वृश्चामि) अवच्छिनद्मि (ओजसा) बलेन ॥

०२ वर्म मह्यमयम्

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वर्म॒ मह्य॑म॒यं म॒णिः फाला॑ज्जा॒तः क॑रिष्यति।
पू॒र्णो म॒न्थेन॒ माग॑म॒द्रसे॑न स॒ह वर्च॑सा ॥

०२ वर्म मह्यमयम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. This amulet, born of the plow-share, shall make defense (várman)
    for me; it hath come to me filled with stir-about, with sap, together
    with splendor.
Notes

Ppp. reads tṛptas instead of púrṇas in c. ⌊Pada b is cited
with vss. 1, 4 c, 6 b in the schol. to Kāuś. 19. 23.⌋

Griffith

This Amulet of citron-wood shall make for me a trusty shield Filled with the mingled beverage, with sap and vigour hath it come.

पदपाठः

वर्म॑। मह्य॑म्। अ॒यम्। म॒णिः। फाला॑त्। जा॒तः। क॒रि॒ष्य॒ति॒। पू॒र्णः। म॒न्थेन॑। मा॒। आ। अ॒ग॒म॒त्। रसे॑न। स॒ह। वर्च॑सा। ६.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • अनुष्टुप्
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (फालात्) फल के [देने में] ईश्वर [परमात्मा] से (जातः) उत्पन्न हुआ (अयम्) यह (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (मह्यम्) मेरे लिये (वर्म) कवच (करिष्यति) बनावेगा। (मन्थेन) मथन [सूक्ष्म विचार] से (पूर्णः) पूर्ण [वह वैदिक नियम] (मा) मुझको (रसेन) बल और (वर्चसा सह) प्रताप के साथ (आ अगमत्) प्राप्त हुआ है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य ईश्वरप्रणीत वेद के सूक्ष्म विचार से बली और प्रतापी होवे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(वर्म) कवचम् (मह्यम्) (अयम्) (मणिः) अ–० ८।५।१। स्तुत्यो वैदिकनियमः (फालात्) तस्येश्वरः। पा० ५।१।४२। फल-अण्। फलस्येश्वरात्। परमेश्वरात् (जातः) प्रादुर्भूतः (करिष्यति) (पूर्णः) पूरितः (मन्थेन) मथनेन। सूक्ष्मविचारेण (मा) माम् (आ अगमत्) प्राप्तवान् (रसेन) बलेन (सह) (वर्चसा) प्रतापेन ॥

०३ यत्त्वा शिक्वः

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यत्त्वा॑ शि॒क्वः प॒राव॑धी॒त्तक्षा॒ हस्ते॑न॒ वास्या॑।
आप॑स्त्वा॒ तस्मा॑ज्जीव॒लाः पु॒नन्तु॒ शुच॑यः॒ शुचि॑म् ॥

०३ यत्त्वा शिक्वः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. In that the skilful smith (tákṣan) hath smitten thee away with the
    hand by a knife, from that let the lively, bright (śúci) waters purify
    thee, that art bright.
Notes

Ppp. has in b vāśyā, which is the more proper form of the word.
But vāsyā is read also in the Āp. (vii. 9. 9) version of the verse,
which further has te for tvā in a, and, for c, d, āpas tat
sarvaṁ jīvalāḥ śundhantu śucayaḥ śucim
. In Kāuś. 8. 13 and Vāit. 10. 3,
the verse is used to accompany the washing off of an instrument or post.

Griffith

What though the strong-armed carpenter have cleft thee with his hand and axe. Pure animating waters shall cleanse thee and make thee bright again.

पदपाठः

यत्। त्वा॒। शि॒क्वः। प॒रा॒ऽअव॑धीत्। तक्षा॑। हस्ते॑न। वास्या॑। आपः॑। त्वा॒। तस्मा॑त्। जी॒व॒लाः। पु॒नन्तु॑। शुच॑यः। शुचि॑म्। ६.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • आपः
  • बृहस्पतिः
  • अनुष्टुप्
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यदि (शिक्वः) छीलनेवाले, (तक्षा) दुर्बल करनेवाले [शत्रु] ने (हस्तेन) अपने हाथ से (वास्या) कुल्हाड़ी द्वारा (त्वा) तुझको (परा-अवधीत्) मार गिराया है। (जीवलाः) जीवनदाता, (शुचयः) शुद्ध स्वभाववाले (आपः) विद्वान् लोग (शुचिम् त्वा) तुझ पवित्र को (तस्मात्) उस [कष्ट] से (पुनन्तु) शुद्ध करें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परोपकारी धर्मात्मा विद्वान् लोग उत्पातियों से निर्बलों की रक्षा करें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(यत्) यदि (त्वा) (शिक्वः) अशूप्रुषिलटिकणि०। उ० १।१५१। शिञ् निशाने-क्विन् कुगागमश्च। छेत्ता (परा) दूरे (अवधीत्) अहिंसीत् (तक्षा) तनूकर्ता (हस्तेन) (वास्या) वसिवपियजि०। उ० ४।१२५। वस स्नेहच्छेदापहरणेषु-इन्। कुठारेण (आपः) अ० १०।५।६। विद्वांसः (त्वा) (तस्मात्) कष्टात् (जीवलाः) ला आदाने-क। जीवनदातारः (पुनन्तु) शोधयन्तु (शुचयः) पवित्रस्वभावाः (शुचिम्) पवित्रम् ॥

०४ हिरण्यस्रगयं मणिः

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हिर॑ण्यस्रग॒यं म॒णिः श्र॒द्धां य॒ज्ञं महो॒ दध॑त्।
गृ॒हे व॑सतु॒ नोऽति॑थिः ॥

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Whitney
Translation
  1. Let this golden-garlanded amulet, bestowing (dhā) faith, sacrifice,
    greatness, dwell a guest in our house.
Notes

⌊For Dārila’s citation of c, see under vs. 2.⌋

Griffith

This Amulet, decked with chain of gold, shall give faith, sacrifice, and might, and dwell as guest within our house.

पदपाठः

हिर॑ण्यऽस्रक्। अ॒यम्। म॒णिः। श्र॒ध्दाम्। य॒ज्ञम्। महः॑। दध॑त्। गृ॒हे। व॒स॒तु॒। नः॒। अति॑थिः। ६.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • गायत्री
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (हिरण्यस्रक्) कामनायोग्य [तेजों] का उत्पन्न करनेवाला (अतिथिः) सदा मिलने योग्य (अयम्) यह (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (श्रद्धाम्) श्रद्धा [सत्यधारण], (यज्ञम्) श्रेष्ठ कर्म, (महः) बड़प्पन (दधत्) देता हुआ (नः) हमारे (गृहे) घर में (वसतु) वसे ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य वेदों के नित्य विचार से श्रद्धावान्, यशस्वी और परोपकारी होवें ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(हिरण्यस्रक्) अ० १०।९।२। हर्य गतिकान्त्योः-कन्यन्, हिरादेशः। ऋत्विग्दधृक्स्रग्०। पा० ३।२।५९। सृज उत्पादने-क्विन्, अमागमः। कमनीयानां तेजसां स्रष्टा (अयम्) प्रसिद्धः (मणिः) म० २। प्रशंसनीयो वेदबोधः (श्रद्धाम्) सत्यधारणम्। विश्वासम् (यज्ञम्) श्रेष्ठव्यवहारम् (महः) महत्त्वम् (दधत्) प्रयच्छन् (गृहे) (वसतु) तिष्ठतु (नः) अस्माकम् (अतिथिः) अ० ७।२१।१। अत सातत्यगमने-इथिन्। अतनशीलः। नित्यं प्रापणीयः ॥

०५ तस्मै घृतम्

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तस्मै॑ घृ॒तं सुरां॒ मध्वन्न॑मन्नं क्षदामहे।
स नः॑ पि॒तेव॑ पु॒त्रेभ्यः॒ श्रेयः॑ श्रेयश्चिकित्सतु॒ भूयो॑भूयः॒ श्वःश्वो॑ दे॒वेभ्यो॑ म॒णिरेत्य॑ ॥

०५ तस्मै घृतम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. To it we distribute (kṣad) ghee, strong drink, honey, food after
    food; for us, as a father for his sons, let it provide (cikits-) what
    is better and better, more and more, morrow after morrow—the amulet,
    coming from the gods.
Notes

Ppp. omits the fifth pāda. By a curious blunder, most of our mss. (all
save I.O.D.) leave surām in a unaccented; ⌊and so do four of
SPP’s⌋.

Griffith

To this we give apportioned food, clarified butter, wine, and meath. May it provide each boon for us as doth a father for his sons. Again, again, from morn to morn, having approached the deities.

पदपाठः

तस्मै॑। घृ॒तम्। सुरा॑म्। मधु॑। अन्न॑म्ऽअन्नम्। क्ष॒दा॒म॒हे॒। सः। नः॒। पि॒ताऽइ॑व। पु॒त्रेभ्यः॑। श्रेयः॑ऽश्रयः। चि॒कि॒त्स॒तु॒। भूयः॑ऽभूयः। ‍ श्वःऽश्वः॑। दे॒वेभ्यः॑। म॒णिः। आ॒ऽइत्य॑। ६.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • षट्पदा जगती
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्मै) उस [वैदिक नियम की प्राप्ति] के लिये (मधु) मधुविद्या [यथार्थज्ञान], (सुराम्) ऐश्वर्य, (घृतम्) तेज और (अन्नमन्नम्) अन्न पर अन्न को (क्षदामहे) हम बाँटते हैं। (सः) वह (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (देवेभ्यः) विद्वानों से (एत्य) आकर (नः) हमें, (पिता इव) पिता के समान (पुत्रेभ्यः) पुत्रों के लिये, (श्रेयःश्रेयः) कल्याण के पीछे कल्याण को (भूयोभूयः) बहुत-बहुत, (श्वः श्वः) कल्प के पीछे कल्प [नित्य आगामी काल में] (चिकित्सतु) वैद्यरूप से बतावे ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य वेदविद्या की प्राप्ति के लिये अपनी शरीररक्षा कर के दूसरों को विद्यादान आदि करते हैं, वे संसार में नित्य नये आनन्द भोगते हैं ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(तस्मै) तस्य प्राप्तये (घृतम्) तेजः (सुराम्) अ० ६।६९।१। षुर ऐश्वर्यदीप्त्योः-क, टाप्। ऐश्वर्यम् (मधु) मधुविद्याम्। यथार्थज्ञानम् (अन्नमन्नम्) अन्नस्य पश्चादन्नम् (क्षदामहे) क्षद संपेषणे भक्षणे विभागे च, सौत्रः। वण्टयामः (सः) वैदिकनियमः (नः) अस्मभ्यम् (पिता इव) (पुत्रेभ्यः) (श्रेयःश्रेयः) कल्याणस्य परिकल्याणम् (चिकित्सतु) कित रोगापनयने। वैद्यवत् प्रज्ञापयतु (भूयोभूयो) बहुतरं बहुतरम् (श्वः श्वः) नित्यमागामिनि दिने (देवेभ्यः) विदुषां सकाशात् (मणिः) प्रशंसनीयो वैदिकनियमः (एत्य) आगत्य ॥

०६ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्मणिं फालम्

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यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॑र्म॒णिं फालं॑ घृत॒श्चुत॑मु॒ग्रं ख॑दि॒रमोज॑से।
तम॒ग्निः प्रत्य॑मुञ्चत॒ सो अ॑स्मै दुह॒ आज्यं॒ भूयो॑भूयः॒ श्वःश्व॒स्तेन॒ त्वं द्वि॑ष॒तो ज॑हि ॥

०६ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्मणिं फालम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What amulet, plow-share, ghee-dripping, the formidable khadirá,
    Brihaspati bound on, in order to force—that Agni fastened on; it yields
    (duh) to him sacrificial butter, more and more, morrow after morrow;
    with that do thou slay thy haters.
Notes

The series of epithets in b, c is an obscure one; perhaps ‘made of
khadira-wood and shaped like a plow-share,’ is meant; the comm. to
Kāuś. 19. 23 says khādiryāś cibukāyāḥ kartavyaḥ. Ppp. reads after
d ājyāya rasāya kam: so ‘smā ājyaṁ duhe. There is no reason why
the Anukr. should call the verse virāj.

Griffith

The Charm Brihaspati hath bound, the fatness-dropping citron- wood, the potent Khadira for strength, This Agni hath put on: it yields clarified butter for this man. Again, again, from morn to morn. With this subdue thine enemies.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। म॒णिम्। फाल॑म्। घृ॒त॒ऽश्चुत॑म्। उ॒ग्रम्। ख॒दि॒रम्। ओज॑से। तम्। अ॒ग्निः। प्रति॑। अ॒मु॒ञ्च॒त॒। सः। अ॒स्मै॒। दु॒हे॒। आज्य॑म्। भूयः॑ऽभूयः। श्वःऽश्वः॑। तेन॑। त्वम्। द्वि॒ष॒तः। ज॒हि॒। ६.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • सप्तदा विराट्शक्वरी
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े ब्रह्माण्डों के स्वामी परमात्मा] ने (यम्) जिस (फालम्) फल के ईश्वर, (घृतश्चुतम्) प्रकाश की बरसा करनेवाले, (उग्रम्) बलवान्, (खदिरम्) स्थिर गुणवाले (मणिम्) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] को (ओजसे) बल के लिये (अबध्नात्) बाँधा है [बनाया है]। (तम्) उस [नियम] को (अग्निः) अग्नि [अग्निसमान तेजस्वी पुरुष] ने (प्रति अमुञ्चत) स्वीकार किया है, (सः) वह [नियम] (अस्मै) इस [तेजस्वी] के लिये (आज्यम्) पाने योग्य पदार्थ को (भूयोभूयः) बहुत-बहुत, (श्वः श्वः) कल्प के पीछे कल्प [नित्य आगामी काल में] (दुहे) पूरा करता है, (तेन) उस [वैदिक नियम] से (त्वम्) तू (द्विषतः) वैरियों को (जहि) मार ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस ईश्वरनियम से अग्नि पदार्थों में व्यापकर बल बढ़ाता है, उस वैदिक नियम को विद्वान् लोग परम्परा मान कर अपना कर्तव्य करते आये हैं, उसी नियम को प्रत्येक मनुष्य ग्रहण करके सब शत्रुओं का नाश करे ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(यम्) (अबध्नात्) नियतवान्। कृतवान् (बृहस्पतिः) अ० १।८।२। बृहत्+पति, सुट्, तलोपः। बृहतां ब्रह्माण्डानां पालकः परमेश्वरः (मणिम्) म० २ प्रशंसनीयं वैदिकनियमम् (फालम्) म० २। फलस्येश्वरम् (घृतश्चुतम्) प्रकाशवर्षकम् (उग्रम्) तेजस्विनम् (खदिरम्) अ० ३।६।१। खद स्थैर्य्यहिंसयोः-किरच्। स्थिरगुणम् (ओजसे) बलाय (तम्) मणिम् (अग्निः) अग्निवत्तेजस्वी पुरुषः (प्रति अमुञ्चत) स्वीकृतवान् (सः) वैदिकनियमः (अस्मै) तेजस्विने पुरुषाय (दुहे) दुग्धे। प्रपूरयति (आज्यम्) अ० ५।८।१। आङ्+अञ्जू गतौ-क्यप्। गम्यं प्राप्तं पदार्थम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०७ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्मणिं फालम्

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यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॑र्म॒णिं फालं॑ घृत॒श्चुत॑मु॒ग्रं ख॑दि॒रमोज॑से।
तमिन्द्रः॒ प्रत्य॑मुञ्च॒तौज॑से वी॒र्या᳡य॒ कम्।
सो अ॑स्मै॒ बल॒मिद्दु॑हे॒ भूयो॑भूयः॒ श्वःश्व॒स्तेन॒ त्वं द्वि॑ष॒तो ज॑हि ॥

०७ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्मणिं फालम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What amulet etc. etc.—that Indra fastened on, in order to force, to
    heroism; it yields to him strength, more and more etc. etc.
Notes
Griffith

The Charm Brihaspati hath bound, the fatness-dropping citron- wood, the potent Khadira, for strength, This Charm hath Indra put on him for power and manly puissance. It yieldeth strength to strengthen him, again, again, from morn to morn, having approached the deities.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। म॒णिम्। फाल॑म्। घृ॒त॒ऽश्चुत॑म्। उ॒ग्रम्। ख॒दि॒रम्। ओज॑से। तम्। इन्द्रः॑। प्रति॑। अ॒मु॒ञ्च॒त॒। ओज॑से। वी॒र्या᳡य। कम्। सः। अ॒स्मै॒। बल॑म्। इत्। दु॒हे॒। भूयः॑ऽभूयः। श्वःऽश्वः॑। तेन॑। त्वम्। द्वि॒ष॒तः। ज॒हि॒। ६.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • त्र्यवसाना षट्पदा शक्वरी
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े ब्रह्माण्डों के स्वामी परमेश्वर] ने (यम्) जिस… म० ६। (तम्) उस [वैदिक नियम] को (इन्द्रः) इन्द्र [मेघसमान उपकारी पुरुष] ने (ओजसे) बल के लिये और (वीर्याय) पराक्रम के लिये (कम्) सुख से (प्रति अमुञ्चत) स्वीकार किया है। (सः) वह [वैदिक नियम] (अस्मै) इस [उपकारी] के लिये (इत्) ही (बलम्) बल को (भूयोभूयः) बहुत-बहुत….. म० ६ ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस परमेश्वर की आज्ञा से मेघ वृष्टि द्वारा अन्न आदि उत्पन्न करके संसार में पुष्टि करता है, उसी परमात्मा की उपासना से बल प्राप्त करके विद्वान् लोग सदा उपकार करते रहे हैं और करते रहें ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(इन्द्रः) मेघ इवोपकारी पुरुषः (ओजसे) बलाय (वीर्याय) वीरकर्मणे। पराक्रमाय (कम्) सुखेन (बलम्) सामर्थ्यम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०८ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्मणिं फालम्

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यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॑र्म॒णिं फालं॑ घृत॒श्चुत॑मु॒ग्रं ख॑दि॒रमोज॑से।
तं सोमः॒ प्रत्य॑मुञ्चत म॒हे श्रोत्रा॑य॒ चक्ष॑से।
सो अ॑स्मै॒ वर्च॒ इद्दु॑हे॒ भूयो॑भूयः॒ श्वःश्व॒स्तेन॒ त्वं द्वि॑ष॒तो ज॑हि ॥

०८ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्मणिं फालम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What amulet etc. etc.—that Soma fastened on, in order to great
    hearing (śrótra) [and] sight (cákṣas); it yields to him splendor,
    more and more etc. etc.
Notes
Griffith

The Charin Brihaspati, etc. This Charm hath Soma put on him for might, for hearing, and for sight. This yields him energy indeed, again, again, etc.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। म॒णिम्। फाल॑म्। घृ॒त॒ऽश्चुत॑म्। उ॒ग्रम्। ख॒दि॒रम्। ओज॑से। तम्। सोमः॑। प्रति॑। अ॒मु॒ञ्च॒त॒। म॒हे। श्रोत्रा॑य। चक्ष॑से। सः। अ॒स्मै॒। वर्चः॑। इत्। दु॒हे॒। भूयः॑ऽभूयः। श्वःऽश्वः॑। तेन॑। त्वम्। द्वि॒ष॒तः। ज॒हि॒। ६.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • त्र्यवसाना षट्पदा शक्वरी
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े ब्रह्माण्डों के स्वामी परमेश्वर] ने (यम्) जिस…. म० ६। (तम्) उस [वैदिक नियम] को (सोमः) सोम [सोमरस, अन्न आदि अमृतसमान सुख उत्पन्न करनेवाले पुरुष] ने (महे) महत्त्व के लिये, (श्रोत्राय) श्रवण सामर्थ्य के लिये और (चक्षसे) दर्शन सामर्थ्य के लिये (प्रति अमुञ्चत) स्वीकार किया है। (सः) वह [वैदिक नियम] (अस्मै) इस [पुरुष] के लिये (इत्) ही (वर्चः) तेज (भूयोभूयः) बहुत-बहुत…. म० ६ ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस परमेश्वर के नियम से अन्न आदि अमृत पदार्थ शरीर को पुष्ट कर इन्द्रियों को स्वस्थ रखते हैं, उसी परमात्मा के ज्ञान से पूर्वजों के समान दूरदर्शी होकर सब लोग सुखवृद्धि करें ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(सोमः) सोमरसः। अन्नाद्यमृतपदार्थः (महे) मह पूजायाम्-क्विप् महत्त्वाय (श्रोत्राय) श्रवणसामर्थ्याय (चक्षसे) दर्शनसामर्थ्याय (वर्चः) तेजः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०९ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्मणिं फालम्

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यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॑र्म॒णिं फालं॑ घृत॒श्चुत॑मु॒ग्रं ख॑दि॒रमोज॑से।
तं सूर्यः॒ प्रत्य॑मुञ्चत॒ तेने॒मा अ॑जय॒द्दिशः॑।
सो अ॑स्मै॒ भूति॒मिद्दु॑हे॒ भूयो॑भूयः॒ श्वःश्व॒स्तेन॒ त्वं द्वि॑ष॒तो ज॑हि ॥

०९ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्मणिं फालम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What amulet etc. etc.—that the sun fastened on; therewith he
    conquered these quarters; it yields to him growth (bhū́ti), more and
    more etc. etc.
Notes

Ppp. has Soma in this verse, and the sun in the preceding one; and here
it reads varcas for bhūtim; for 8 e it has draviṇāya rasāya
kam;
and, for varcas, mahit (?).

Griffith

The Charm Brihaspati, etc. This Surya put on him, with this conquered the regions of the sky. This yieldeth him ability, again, etc.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। म॒णिम्। फाल॑म्। घृ॒त॒ऽश्चुत॑म्। उ॒ग्रम्। ख॒दि॒रम्। ओज॑से। तम्। सूर्यः॑। प्रति॑। अ॒मु॒ञ्च॒त॒। तेन॑। इ॒माः। अ॒ज॒य॒त्। दिशः॑। सः। अ॒स्मै॒। भूति॑म्। इत्। दु॒हे॒। भूयः॑ऽभूयः। श्वःऽश्वः॑। तेन॑। त्वम्। द्वि॒ष॒तः। ज॒हि॒। ६.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • त्र्यवसाना षट्पदा शक्वरी
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े ब्रह्माण्डों के स्वामी परमेश्वर] ने (यम्) जिस…. म० ६। (तम्) उस [वैदिक नियम] को (सूर्यः) सूर्य [सूर्यसमान राज्य चलानेवाले वीर] ने (प्रति अमुञ्चत) स्वीकार किया है, (तेन) उस [वैदिक नियम] से (इमाः दिशः) इन दिशाओं को (अजयत्) जीता है। (सः) वह [वैदिक नियम] (अस्मै) इस [वीर पुरुष] के लिये (इत्) ही (भूतिम्) विभूति [सम्पत्ति] (भूयोभूयः) बहुत-बहुत…. म० ६ ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे सूर्य अपने परिधि के लोकों को आकर्षण द्वारा मर्यादा में चलाता है, उसी प्रकार नीतिनिपुण राजा परमेश्वरनियम से प्रजा का सुख बढ़ा कर अपना अभ्युदय करे ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(सूर्यः) सूर्यवत्सविता राज्यप्रेरको वीरः (इमाः) दृश्यमानाः (अजयत्) वशीकृतवान् (दिशः) पूर्वादयः (भूतिम्) विभूतिम्। सम्पत्तिम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१० यमबध्नाद्बृहस्पतिर्मणिं फालम्

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यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॑र्म॒णिं फालं॑ घृत॒श्चुत॑मु॒ग्रं ख॑दि॒रमोज॑से।
त बिभ्र॑च्च॒न्द्रमा॑ म॒णिमसु॑राणां॒ पुरो॑ऽजयद्दान॒वानां॑ हिर॒ण्ययीः॑।
सो अ॑स्मै॒ श्रिय॒मिद्दु॑हे॒ भूयो॑भूयः॒ श्वःश्व॒स्तेन॒ त्वं द्वि॑ष॒तो ज॑हि ॥

१० यमबध्नाद्बृहस्पतिर्मणिं फालम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What amulet etc. etc.—bearing that amulet, the moon conquered the
    strongholds of the Asuras, the golden [strongholds] of the Dānavas; it
    yields to him fortune, more and more etc. etc.
Notes

Ppp. reads tejas for śriyam.

Griffith

The Charm Brihaspati, etc. This Charm did Chandra wear, with this conquered the forts of Asuras, the golden forts of Danavas. This yields him glory and renown, again, etc.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। म॒णिम्। फाल॑म्। घृ॒त॒ऽश्चुत॑म्। उ॒ग्रम्। ख॒दि॒रम्। ओज॑से। तम्। बिभ्र॑त्। च॒न्द्रमाः॑। म॒णिम्। असु॑राणाम्। पुरः॑। अ॒ज॒य॒त्। दा॒न॒वाना॑म्। हि॒र॒ण्ययीः॑। सः। अ॒स्मै॒। श्रिय॑म्। इत्। दु॒हे॒। भूयः॑ऽभूयः। श्वःऽश्वः॑। तेन॑। त्वम्। द्वि॒ष॒तः। ज॒हि॒। ६.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • त्र्यवसाना नवपदाधृतिः
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े ब्रह्माण्डों के स्वामी परमात्मा] ने (यम्) जिस (फालम्) फल के ईश्वर, (घृतश्चुतम्) प्रकाश की बरसा करनेवाले, (उग्रम्) बलवान्, (खदिरम्) स्थिर गुणवाले (मणिम्) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] को (ओजसे) बल के लिये (अबध्नात्) बाँधा है [बनाया है]। (तम्) उस (मणिम्) मणि [वैदिक नियम] को (बिभ्रत्) धारण करनेवाले (चन्द्रमाः) चन्द्रमा [चन्द्रमा समान आनन्दकारी पुरुष] ने (असुराणाम्) असुरों [देवताओं के विरोधियों] और (दानवानाम्) दानवों [छेदनस्वभाववाले दुष्टों] की (हिरण्ययीः) सुवर्णमयी (पुरः) नगरियों को (अजयत्) जीता है, (सः) वह [वैदिक नियम] (अस्मै) इस [आनन्दकारी पुरुष] के लिये (इत्) ही (श्रियम्) श्री [सेवनीय सम्पत्ति] (भूयोभूयः) बहुत-बहुत…. म० ८ ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे चन्द्रमा अपने शीतलता आदि गुण से प्राणियों को पुष्ट करता है, उसी प्रकार पूर्व महात्माओं के समान परमेश्वर की महिमा को साक्षात् करके दूरदर्शी विवेकी पुरुष संसार में सुखवृद्धि करे ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(चन्द्रमाः) अ० ५।२४।१०। चन्द्र इवाह्लादकः पुरुषः (असुराणाम्) देवविरोधिनाम् (पुरः) नगरीः (अजयत्) जितवान् (दानवानाम्) अ० ४।२४।२। दा छेदने-ल्युट्, मत्वर्थे व। छेदनशीलानाम्। दुष्टानाम् (हिरण्ययीः) सुवर्णमयीः (श्रियम्) सेवनीयां सम्पत्तिम्। अन्यत् पूर्ववत् म० ६ ॥

११ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्वाताय मणिमाशवे

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यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॒र्वाता॑य म॒णिमा॒शवे॑।
सो अ॑स्मै वा॒जिन॒मिद्दु॑हे॒ भूयो॑भूयः॒ श्वःश्व॒स्तेन॒ त्वं द्वि॑ष॒तो ज॑हि ॥

११ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्वाताय मणिमाशवे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What amulet Brihaspati bound on for the swift wind, that yields him
    vigor (vā́jina), more and more etc. etc.
Notes

A number of our mss. (I.O.R.D.) read vājínam in c. ⌊So do the
great majority of SPP’s, and he adopts it in his text. But four of his
read vā́jinam.⌋ In this batch of verses (11-17) Ppp. has sundry
unimportant exchanges and variants; the details are not given.

Griffith

The Amulet Brihaspati bound on the swiftly-moving Wind. This yieldeth him a vigorous steed, again, etc.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। वाता॑य। म॒णिम्। आ॒शवे॑। सः। अ॒स्मै॒। वा॒जिन॑म्। दु॒हे॒। भूयः॑ऽभूयः। श्वःऽश्वः॑। तेन॑। त्वम्। द्वि॒ष॒तः। ज॒हि॒। ६.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस (मणिम्) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] को (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े ब्रह्माण्डों के स्वामी परमेश्वर] ने (वाताय) गमनशील (आशवे) भोक्ता [प्राणी] के लिये (अबध्नात्) बाँधा है। (सः) वह [वैदिक नियम] (अस्मै) इस [प्राणी] के लिये (वाजिनम्) बल (भूयोभूयः) बहुत-बहुत…. म० ६ ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - अनुभवी विद्वानों के समान पुरुषार्थी मनुष्य वैदिक नियम से यथावत् बल बढ़ा कर विघ्नों को हटावे ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(वाताय) अ० १।११।६। वा गतौ-तन्। गमनशीलाय। उद्योगिने (आशवे) कृवापा०। उ० १।१। अश भोजने-उण्। भोक्त्रे प्राणिने (वाजिनम्) महेरिनण् च। उ० २।५६। वज गतौ-इनण्। बलम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१२ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्वाताय मणिमाशवे

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यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॒र्वाता॑य म॒णिमा॒शवे॑।
तेने॒मां म॒णिना॑ कृ॒षिम॒श्विना॑व॒भि र॑क्षतः।
स भि॒षग्भ्यां॒ महो॑ दुहे॒ भूयो॑भूयः॒ श्वःश्व॒स्तेन॒ त्वं द्वि॑ष॒तो ज॑हि ॥

१२ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्वाताय मणिमाशवे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What amulet Brihaspati bound on for the swift wind, with that amulet
    the Aśvins defend this plowing (kṛṣí); it yields for the two
    physicians greatness, more and more etc. etc.
Notes
Griffith

The Asvins with this Amulet protect this culture of our fields. This yields the two Physicians might, again, etc.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। वाता॑य। म॒णिम्। आ॒शवे॑। तेन॑। इ॒माम्। म॒णिना॑। कृ॒षिम्। अ॒श्विनौ॑। अ॒भि। र॒क्ष॒तः॒। सः। भि॒षक्ऽभ्या॑म्। महः॑। दु॒हे॒। भूयः॑ऽभूयः। श्वःऽश्वः॑। तेन॑। त्वम्। द्वि॒ष॒तः। ज॒हि॒। ६.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुब्गर्भा जगती
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस (मणिम्) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] को…. म० ११ (अबध्नात्) बाँधा है। (तेन) उस (मणिना) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] से (इमाम् कृषिम्) इस खेती की (अश्विनौ) कामों में व्याप्तिवाले दोनों [स्त्री पुरुष] (अभि रक्षतः) रक्षा करते रहते हैं (सः) वह [वैदिक नियम] (भिषग्भ्याम्) उन दोनों वैद्यों के लिये (महः) बड़ाई (भूयोभूयः) बहुत-बहुत… म० ६ ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वैदिक विज्ञान द्वारा स्त्री-पुरुष खेती रूप इस संसार के व्यवहार के सिद्ध कर के सुख भोगें ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(तेन) (इमाम्) (मणिना) प्रशंसनीयेन वैदिकनियमेन (कृषिम्) कृषिरूपं संसारम् (अश्विनौ) अ० २।२९।६। कार्येषु व्यापिनौ स्त्रीपुरुषौ (अभि रक्षतः) (सः) (भिषग्भ्याम्) वैद्याभ्यां स्त्रीपुरुषाभ्याम्। अन्यत् पूर्ववत्−म० ६ ॥

१३ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्वाताय मणिमाशवे

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यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॒र्वाता॑य म॒णिमा॒शवे॑।
तं बिभ्र॑त्सवि॒ता म॒णिं तेने॒दम॑जय॒त्स्वः᳡।
सो अ॑स्मै सू॒नृतां॑ दुहे॒ भूयो॑भूयः॒ श्वःश्व॒स्तेन॒ त्वं द्वि॑ष॒तो ज॑हि ॥

१३ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्वाताय मणिमाशवे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What amulet Brihaspati bound on for the swift wind, Savitar,
    bearing that amulet, conquered with it this heaven (svàr); it yields
    to him pleasantness (sūnṛ́tā), more and more etc. etc.
Notes
Griffith

Savitar wore this Amulet: herewith he won this lucid heaven. This yields him glory and delight, again, etc.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। वाता॑य। म॒णिम्। आ॒शवे॑। तम्। बिभ्र॑त्। स॒वि॒ता। म॒णिम्। तेन॑। इ॒दम्। अ॒ज॒य॒त्। स्वः᳡। सः। अ॒स्मै॒। सू॒नृता॑य। दु॒हे॒। भूयः॑ऽभूयः। श्वःऽश्वः॑। तेन॑। त्वम्। द्वि॒ष॒तः। ज॒हि॒। ६.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुब्गर्भा जगती
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस (मणिम्) मणि [प्रशंसनीय वैदिकनियम] को….. म० ११ (अबध्नात्) बाँधा है। (तम्) उस (मणिम्) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] को (बिभ्रत्) धारण करके (सविता) सब के चलानेवाले [मनुष्य] ने (तेन) उस [वैदिक नियम] द्वारा (इदम् स्वः) यह सुख (अजयत्) जीता है। (सः) वह [वैदिक नियम] (अस्मै) इस [प्राणी] के लिये (सूनृताम्) प्रिय सत्य वाणी को (भूयोभूयः) बहुत-बहुत…. म० ६ ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य वेद द्वारा सुशिक्षा प्राप्त करके सत्य और हित वचन बोलकर आनन्दित होवे ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(बिभ्रत्) धारयन् (सविता) सर्वप्रेरकः पुरुषः (स्वः) सुखम्। स्वर्गम् (अस्मै) प्राणिने (सूनृताम्) अ० ३।१२।२। प्रियसत्यात्मिकां वाणीम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१४ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्वाताय मणिमाशवे

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यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॒र्वाता॑य म॒णिमा॒शवे॑।
तमापो॒ बिभ्र॑तीर्म॒णिं सदा॑ धाव॒न्त्यक्षि॑ताः।
स आ॑भ्यो॒ऽमृत॒मिद्दु॑हे॒ भूयो॑भूयः॒ श्वःश्व॒स्तेन॒ त्वं द्वि॑ष॒तो ज॑हि ॥

१४ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्वाताय मणिमाशवे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What amulet Brihaspati bound on for the swift wind, bearing that
    amulet the waters run always unexhausted; it yields to them immortality
    (amṛ́ta), more and more etc. etc.
Notes
Griffith

Wearing this Charm the Waters flow eternally inviolate. This yieldeth them ambrosia, again etc.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। वाता॑य। म॒णिम्। आ॒शवे॑। तम्। आपः॑। बिभ्र॑तीः। म॒णिम्। सदा॑। धा॒व॒न्ति॒। अक्षि॑ताः। सः। आ॒भ्यः॒। अ॒मृत॑म्। इत्। दु॒हे॒। भूयः॑ऽभूयः। श्वःऽश्वः॑। तेन॑। त्वम्। द्वि॒ष॒तः। ज॒हि॒। ६.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुब्गर्भा जगती
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस (मणिम्) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] को…. म० ११ (अबध्नात्) बाँधा है। (तम्) उस (मणिम्) [प्रशंसनीय वैदिक नियम] को (बिभ्रतीः) धारण करती हुई (आपः) प्रजाएँ (अक्षिताः) अक्षीण होकर (सदा) सदा (धावन्ति) दौड़ती हैं। (सः) वह [वैदिक नियम] (आभ्यः) इन [प्रजाओं] के लिये (इत्) ही (अमृतम्) अमृत [पुरुषार्थ] को (भूयोभूयः) बहुत-बहुत…. म० ६ ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब प्राणी वैदिक ज्ञान से निरालसी और स्वस्थ रहकर सदा प्रयत्न करते रहें ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४−(आपः) आप्ताः प्रजाः-दयानन्दभाष्ये, यजु० ६।२७ (बिभ्रतीः) धारयन्त्यः (सदा) (धावन्ति) वेगेन गच्छन्ति (अक्षिताः) अक्षीणाः (आभ्यः) प्रजाभ्यः (अमृतम्) मरणराहित्यम्। पुरुषार्थम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१५ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्वाताय मणिमाशवे

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यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॒र्वाता॑य म॒णिमा॒शवे॑।
तं राजा॒ वरु॑णो म॒णिं प्रत्य॑मुञ्चत शं॒भुव॑म्।
सो अ॑स्मै स॒त्यमिद्दु॑हे॒ भूयो॑भूयः॒ श्वःश्व॒स्तेन॒ त्वं द्वि॑ष॒तो ज॑हि ॥

१५ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्वाताय मणिमाशवे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What amulet Brihaspati bound on for the swift wind, that healthful
    amulet king Varuṇa fastened on; it yields to him truth, more and more
    etc. etc.
Notes
Griffith

King Varuna assumed and wore this salutary Amulet. This yieldeth him his truthfulness, again, etc.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। वाता॑य। म॒णिम्। आ॒शवे॑। तम्। राजा॑। वरु॑णः। म॒णिम्। प्रति॑। अ॒मु॒ञ्च॒त॒। श॒म्ऽभुव॑म्। सः। अ॒स्मै॒। स॒त्यम्। इत्। दु॒हे॒। भूयः॑ऽभूयः। श्वःऽश्वः॑। तेन॑। त्वम्। द्वि॒ष॒तः। ज॒हि॒। ६.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुब्गर्भा जगती
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस (मणिम्) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] को…. म० ११ (अबध्नात्) बाँधा है। (तम्) उस (शंभुवम्) शान्तिकारक (मणिम्) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] को (वरुणः) श्रेष्ठ (राजा) राजा ने (प्रति अमुञ्चत) स्वीकार किया है। (सः) वह [वैदिक नियम] (अस्मै) इस [राजा] के लिये (इत्) ही (सत्यम्) सत्य को (भूयोभूयः) बहुत-बहुत…. म० ६ ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राजा प्राचीन इतिहासों को विचार कर वैदिक शिक्षा स्वीकार करके सत्य के प्रचार में सदा प्रवृत्त रहे ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १५−(राजा) शासकः (वरुणः) वरणीयः। श्रेष्ठः (प्रत्यमुञ्चत) स्वीकृतवान् (शंभुवम्) शम्+भू-क्विप्। शान्तिकारकम् (अस्मै) राज्ञे (सत्यम्) यथार्थम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१६ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्वाताय मणिमाशवे

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यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॒र्वाता॑य म॒णिमा॒शवे॑।
तं दे॒वा बिभ्र॑तो म॒णिं सर्वां॑ल्लो॒कान्यु॒धाज॑यन्।
स ए॑भ्यो॒ जिति॒मिद्दु॑हे॒ भूयो॑भूयः॒ श्वःश्व॒स्तेन॒ त्वं द्वि॑ष॒तो ज॑हि ॥

१६ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्वाताय मणिमाशवे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What amulet Brihaspati bound on for the swift wind, bearing that
    amulet, the gods conquered by fight all worlds; it yields to them
    conquest, more and more etc. etc.
Notes

The pada-text resolves yudhā́jayan erroneously into yudhā́ ájayan
(instead of aj-).

Griffith

Wearing this Amulet the Gods conquered in battle all the worlds. This yieldeth victory for them, again, etc.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। वाता॑य। म॒णिम्। आ॒शवे॑। तम्। देवाः। बिभ्र॑तः। म॒णिम्। सर्वा॑न्। लो॒कान्। यु॒धा। अ॒ज॒य॒न्। सः। ए॒भ्यः॒। जिति॑म्। इत्। दु॒हे॒। भूयः॑ऽभूयः। श्वःऽश्वः॑। तेन॑। त्वम्। द्वि॒ष॒तः। ज॒हि॒। ६.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुब्गर्भा जगती
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस (मणिम्) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] को… म० ११ (अबध्नात्) बाँधा है। (तम्) उस (मणिम्) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] को (बिभ्रतः) धारण करते हुए (देवाः) विजयी लोगों ने (सर्वान् लोकान्) सब लोकों को (युधा) युद्ध से (अजयन्) जीता है। (सः) वह [वैदिक नियम] (एभ्यः) इन [विजयी लोगों] के लिये (इत्) ही (जितिम्) जीत (भूयोभूयः) बहुत-बहुत…. म० ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस प्रकार पुरुषार्थी लोगों ने ईश्वरनियम पर चलकर विजय पाया है, वैसे ही सब मनुष्य वेदविद्या द्वारा निरालसी होकर दुःखों से अलग होवें ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६−(देवाः) विजिगीषवः पुरुषाः (बिभ्रतः) धारयन्तः (सर्वान् लोकान्) (युधा) युद्धेन (अजयन्) जितवन्तः (एभ्यः) देवेभ्यः (जितिम्) जयम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१७ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्वाताय मणिमाशवे

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यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॒र्वाता॑य म॒णिमा॒शवे॑।
तमि॒मं दे॒वता॑ म॒णिं प्रत्य॑मुञ्चन्त श॒म्भुव॑म्।
स आ॑भ्यो॒ विश्व॒मिद्दु॑हे॒ भूयो॑भूयः॒ श्वःश्व॒स्तेन॒ त्वं द्वि॑ष॒तो ज॑हि ॥

१७ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्वाताय मणिमाशवे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What amulet Brihaspati bound on for the swift wind, that healthful
    amulet here the deities fastened on; it yields to them everything, more
    and more etc. etc.
Notes

Part of our mss. (Bp.P.W.I.D.K.) ⌊and a great majority of SPP’s⌋ read
amuñcata in d. ⌊The error has doubtless crept in by confusion with
the oft repeated abadhnata below and perhaps with the amuñcata of
vs. 15. Cf. my note to vi. 74. 2.⌋

Griffith

The Amulet Brihaspati formed for the swiftly-moving Wind, This salutary Amulet the Deities assumed and wore. This yieldeth them the universe, again, again, from morn to morn. With this subdue thine enemies.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। वाता॑य। म॒णिम्। आ॒शवे॑। तम्। इ॒मम्। दे॒वताः॑। म॒णिम्। प्रति॑। अ॒मु॒ञ्च॒न्त॒। श॒म्ऽभुव॑म्। सः। आ॒भ्यः॒। विश्व॑म्। इत्। दु॒हे॒। भूयः॑ऽभूयः। श्वःऽश्वः॑। तेन॑। त्वम्। द्वि॒ष॒तः। ज॒हि॒। ६.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुब्गर्भा जगती
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस (मणिम्) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] को (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े ब्रह्माण्डों के स्वामी परमेश्वर] ने (वाताय) गमनशील (आशवे) भोक्ता [प्राणी] के लिये (अबध्नात्) बाँधा है। (तम् इमम्) उस ही (शंभुवम्) शान्तिकारक (मणिम्) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] को (देवताः) देवताओं [विद्वानों] ने (प्रति अमुञ्चन्त) स्वीकार किया है। (सः) वह [वैदिक नियम] (आभ्यः) इन [देवताओं] के लिये (इत्) ही (विश्वम्) प्रत्येक वस्तु (भूयोभूयः) बहुत-बहुत, (श्वः श्वः) कल्प के पीछे कल्प [अर्थात् नित्य आगामी समय में] (दुहे) पूरा करता है, (तेन) उस [वैदिक नियम] से (त्वम्) तू (द्विषतः) वैरियों को (जहि) मार ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ईश्वरविहित वैदिक नियम को विद्वान् मानकर सदा आनन्द पाते रहे हैं, इसी प्रकार सब मनुष्य वेदमार्ग पर चलकर आनन्द भोगें ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७−(देवताः) विद्वांसः (प्रति अमुञ्चन्त) स्वीकृतवन्तः (आभ्यः) देवताभ्यः (विश्वम्) प्रत्येकं वस्तु। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१८ ऋतवस्तमबध्नतार्तवास्तमबध्नत संवत्सरस्तम्

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ऋ॒तव॒स्तम॑बध्नतार्त॒वास्तम॑बध्नत।
सं॑वत्स॒रस्तं ब॒द्ध्वा सर्वं॑ भू॒तं वि र॑क्षति ॥

१८ ऋतवस्तमबध्नतार्तवास्तमबध्नत संवत्सरस्तम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The seasons bound it on; they of the seasons bound it on; the year,
    having bound it on, defends all existence.
Notes

As noted above, this verse and the one following are wanting in Ppp.

Griffith

The seasons formed that Amulet, the Groups of Seasons fashion- ed it. The Year having constructed it preserveth everything that is.

पदपाठः

ऋ॒तवः॑। तम्। अ॒ब॒ध्न॒त॒। आ॒र्त॒वाः। तम्। अ॒ब॒ध्न॒त॒। स॒म्ऽव॒त्स॒रः। तम्। ब॒ध्द्वा। सर्व॑म्। भू॒तम्। वि। र॒क्ष॒ति॒। ६.१८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • अनुष्टुप्
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतवः) ऋतुओं ने (तम्) उस [मणि, वैदिक नियम] को (अबध्नत) बाँधा है, (आर्तवाः) ऋतुओं के अवयवों ने (तम्) उस को (अबध्नत) बाँधा [माना] है, (संवत्सरः) संवत्सर [वर्ष वा काल] (तम्) उसको (बद्ध्वा) बाँधकर (सर्वम्) सब (भूतम्) जगत् को (वि) विविध प्रकार (रक्षति) पालता है ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - कारण और कार्य रूप काल परमात्मा के नियम से संसार का उपकार करता है ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १८−(ऋतवः) वसन्तादयः कालविशेषाः (तम्) नियमम् (अबध्नत) गृहीतवन्तः (आर्तवाः) ऋतु-अण्। ऋतूनामवयवाः (संवत्सरः) वर्षकालः (बद्ध्वा) गृहीत्वा (सर्वम्) (भूतम्) जगत् (वि) विविधम् (रक्षति) पाति ॥

१९ अन्तर्देशा अबध्नत

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अ॑न्तर्दे॒शा अ॑बध्नत प्र॒दिश॒स्तम॑बध्नत।
प्र॒जाप॑तिसृष्टो म॒णिर्द्वि॑ष॒तो मेऽध॑राँ अकः ॥

१९ अन्तर्देशा अबध्नत ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The intermediate quarters bound on; the directions bound it on; the
    amulet created by Prajāpati hath made my haters beneath me (ádhard).
Notes
Griffith

The regions of the heaven, the points that lie between them fashioned it. Created by Prajapati, may the Charm cast my foemen down.

पदपाठः

अ॒न्तः॒ऽदे॒शाः। अ॒ब॒ध्न॒त॒। प्र॒ऽदिशः॑। तम्। अ॒ब॒ध्न॒त॒। प्र॒जाप॑तिऽसृष्टः। म॒णिः। द्वि॒ष॒तः। मे॒। अध॑रान्। अ॒कः॒। ६.१९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • अनुष्टुप्
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अन्तर्देशाः) अन्तर्देशों ने (अबध्नत) [वैदिक नियम को] बाँधा है, (प्रदिशः) बड़ी दिशाओं ने (तम्) उस [वैदिक नियम] को (अबध्नत) बाँधा है। (प्रजापतिसृष्टः) प्रजापति [परमात्मा] के उत्पन्न किये हुए (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] ने (मे) मेरे (द्विषतः) वैरियों को (अधरान्) नीचे (अकः) किया है ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब स्थानों के पदार्थ ईश्वरनियम अनुसार मनुष्य का उपकार करते हैं ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १९−(अन्तर्देशाः) अन्तराला दिशाः (प्रदिशः) पूर्वादयो दिशाः (प्रजापतिसृष्टः) प्रजापालकेन परमेश्वरेणोत्पन्नः (मणिः) प्रशस्तो वैदिक नियमः (द्विषतः) शत्रून् (मे) मम (अधरान्) नीचान् (अकः) अकार्षीत्। कृतवान्। अन्यद्गतम् ॥

२० अथर्वाणो अबध्नताथर्वणा

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अथ॑र्वाणो अबध्नताथर्व॒णा अ॑बध्नत।
तैर्मे॒दिनो॒ अङ्गि॑रसो॒ दस्यू॑नां बिभिदुः॒ पुर॒स्तेन॒ त्वं द्वि॑ष॒तो ज॑हि ॥

२० अथर्वाणो अबध्नताथर्वणा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The Atharvans bound on; the descendants of Atharvan bound on;
    allied (medín) with them, the An̄girases split the strongholds of the
    barbarians; with it do thou slay thy haters.
Notes
Griffith

Atharvan made the Amulet, Atharvan’s children fashioned it. With them the sage Angirases broke through the Dasyus’ fortresses. With this subdue thine enemies.

पदपाठः

अथ॑र्वाणः। अ॒ब॒ध्न॒त॒। आ॒थ॒र्व॒णाः। अ॒ब॒ध्न॒त॒। तैः। मे॒दिनः॑। अङ्गि॑रसः। दस्यू॑नाम्। बि॒भि॒दुः॒। पुरः॑। तेन॑। त्वम्। द्वि॒ष॒तः। ज॒हि॒। ६.२०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अथर्वाणः) निश्चल स्वभाववाले [ऋषियों] ने [वैदिक नियम] (अबध्नत) बाँधा [माना] है, (आथर्वणाः) निश्चल परमात्मा के जाननेवाले [विवेकियों] ने [उसे] (अबध्नत) बाँधा है। (तैः) उन [विवेकियों] के साथ (मेदिनः) स्नेही वा बुद्धिमान् (अङ्गिरसः) ऋषियों ने (दस्यूनाम्) डाकुओं की (पुरः) नगरियों को (बिभिदुः) तोड़ा था, (तेन) उस [वैदिक नियम] से (त्वम्) तू (द्विषतः) वैरियों को (जहि) मार ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे ईश्वरनियम पर चल कर विद्वानों की सहायता से दूसरे विद्वानों ने संसार में जीत पाई है, उसी प्रकार सब मनुष्य परस्पर सहायक होकर विघ्नों का नाश करें ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २०−(अथर्वाणः) अ० ४।१।७। अ+थर्व चरणे-वनिप्। निश्चलस्वभावा मुनयः (अबध्नत) आथर्वाणः अ० ६।१।१। अथर्वन्-अण्, ज्ञाने। अथर्वाणं निश्चलस्वभावं परमात्मानं ये जानन्ति ते महर्षयः (तैः) आथर्वणैः सह (मेदिनः) ञिमिदा स्नेहने, यद्वा, मिदृ मेदृ मेधाहिंसनयोः−णिनि। स्नेहिनः। मेधाविनः (अङ्गिरसः) अ० २।१२।४। ज्ञानिनो महर्षयः (दस्यूनाम्) चौराणाम् (बिभिदुः) चिच्छिदुः (पुरः) नगरीः। अन्यद् गतम् ॥

२१ तं धाता

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तं धा॒ता प्रत्य॑मुञ्चत॒ स भू॒तं व्य᳡कल्पयत्।
तेन॒ त्वं द्वि॑ष॒तो ज॑हि ॥

२१ तं धाता ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Dhātar fastened it on; he disposed (vi-kḷp) [all] existence;
    with it do thou slay thy haters.
Notes

Ppp. reads in b subhūtāny akalpayat.

Griffith

Dhatar bound on this Amulet: he ranged and ordered all that is. With this do thou subdue thy foes.

पदपाठः

तम्। धा॒ता। प्रति॑। अ॒मु॒ञ्च॒त॒। सः। भू॒तम्। वि। अ॒क॒ल्प॒य॒त्। तेन॑। त्वम्। द्व‍ि॒ष॒तः। ज॒हि॒। ६.२१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • गायत्री
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) उस [वैदिक नियम] को (धाता) धारणकर्त्ता [राजा] ने (प्रति अमुञ्चत) स्वीकार किया है, और (सः) उसने (भूतम्) जगत् को (वि अकल्पयत्) संभाला है। (तेन) उस [वैदिक नियम] से (त्वम्) तू (द्विषतः) वैरियों को (जहि) मार ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे राजा वेद द्वारा राज्य का प्रबन्ध करता है, वैसे ही प्रत्येक मनुष्य करे ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २१−(तम्) (धाता) प्रजापालको राजा (भूतम्) जगत् (वि) विविधम् (अकल्पयत्) संस्कृतवान्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

२२ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम्

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यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॑र्दे॒वेभ्यो॒ असु॑रक्षितिम्।
स मा॒यं म॒णिराग॑म॒द्रसे॑न स॒ह वर्च॑सा ॥

२२ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What [amulet] Brihaspati bound on for the gods, a destruction of
    Asuras—that amulet hath come here to me, together with sap, with
    splendor.
Notes

Ppp. reads in b -kṣatim, and substitutes for c, d our 23 c,
d
(23, 24, 26, 27, 29, 30, 33, 35 being wanting in Ppp.).

Griffith

The Amulet Brihaspati formed for the Gods, that slew the fiends. That Amulet here hath come to me combined with sap and energy.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। दे॒वेभ्यः॑। असु॑रऽक्षितिम्। सः। मा॒। अ॒यम्। म॒णिः। आ। अ॒ग॒म॒त्। रसे॑न। स॒ह। वर्च॑सा। ६.२२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • अनुष्टुप्
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस (असुरक्षितिम्) असुरनाशक [वैदिक नियम] को (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े ब्रह्माण्डों के स्वामी परमेश्वर] ने (देवेभ्यः) विजयी लोगों के लिये (अबध्नात्) बाँधा है। (सः अयम्) वही (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (मा) मुझे (रसेन) पराक्रम और (वर्चसा सह) प्रताप के साथ (आ अगमत्) प्राप्त हुआ ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमात्मा के बाँधे नियम पर चल कर सब मनुष्य बल और कीर्ति बढ़ावें ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २२−(यम्) (अबध्नात्) बद्धवान्। नियोजितवान्। (बृहस्पतिः) बृहतां ब्रह्माण्डानां स्वामी (देवेभ्यः) विजयिभ्यः (असुरक्षितिम्) दुष्टनाशकम् (सः) (मा) माम् (अयम्) एव (मणिः) (आगमत्) प्राप्तवान् (रसेन) पराक्रमेण (सह) (वर्चसा) प्रतापेन ॥

२३ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम्

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यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॑र्दे॒वेभ्यो॒ असु॑रक्षितिम्।
स मा॒यं म॒णिराग॑मत्स॒ह गोभि॑रजा॒विभि॒रन्ने॑न प्र॒जया॑ स॒ह ॥

२३ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What [amulet] etc. etc., together with kine, with goats and sheep,
    together with food, with progeny.
Notes
Griffith

The Amulet, etc. That Amulet here hath come to me, hath come with cows, and goats, and sheep, hath come with food and progeny.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। दे॒वेभ्यः॑। असु॑रऽक्षितिम्। सः। मा॒। अ॒यम्। म॒णिः। आ। अ॒ग॒म॒त्। स॒ह। गोभिः॑। अ॒जा॒विऽभिः॑। अन्ने॑न। प्र॒ऽजया॑। स॒ह। ६.२३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस (असुरक्षितिम्) असुरनाशक…. म० २२। (सः अयम्) वही (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (मा) मुझे (गोभिः) गौओं और (अजाविभिः सह) बकरी और भेड़ों के साथ, (अन्नेन) अन्न और (प्रजया सह) प्रजा [सन्तान] के साथ (आ अगमत्) प्राप्त हुआ है ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य ईश्वरनियम पर चलकर गौ आदि प्राणियों से उपकार लेकर सुखी रहे ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २३−(अजाविभिः) अजाश्च अवयश्च ताभिः (प्रजया) सन्तानेन सह। अन्यत् सुगमम् ॥

२४ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम्

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यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॑र्दे॒वेभ्यो॒ असु॑रक्षितिम्।
स मा॒यं म॒णिराग॑मत्स॒ह व्री॑हिय॒वाभ्यां॒ मह॑सा॒ भूत्या॑ स॒ह ॥

२४ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What [amulet] etc. etc., together with rice and barley, together
    with greatness, growth.
Notes
Griffith

The Amulet, etc. That Amulet here hath come to me with store of barley and of rice, with greatness and prosperity.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। दे॒वेभ्यः॑। असु॑रऽक्षितिम्। सः। मा॒। अ॒यम्। म॒णिः। आ। अ॒ग॒म॒त्। स॒ह। व्री॒हि॒ऽय॒वाभ्या॑म्। मह॑सा। भूत्या॑। स॒ह। ६.२४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस (असुरक्षितिम्) असुरनाशक…. म० २२। (सः अयम्) बही (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (मा) मुझे (व्रीहियवाभ्याम् सह) चावल और जव के साथ और (महसा) बड़ाई और (भूत्या सह) विभूति [सम्पत्ति] के साथ (आ अगमत्) प्राप्त हुआ है ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य धर्म से अन्न आदि पदार्थ प्राप्त करके यश और ऐश्वर्य बढ़ावें ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २४−(महसा) महत्त्वेन (भूत्या) सम्पत्या। अन्यत् सुगमम् ॥

२५ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम्

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यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॑र्दे॒वेभ्यो॒ असु॑रक्षितिम्।
स मा॒यं म॒णिराग॑म॒न्मधो॑र्घृ॒तस्य॒ धार॑या की॒लाले॑न म॒णिः स॒ह ॥

२५ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What [amulet] etc. etc., with a stream of honey, of ghee,
    together with sweet drink—the amulet.
Notes
Griffith

The Amulet, etc. That Amulet here hath come to me with streams of butter and of mead, with sweet delicious beverage.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। दे॒वेभ्यः॑। असु॑रऽक्षितिम्। सः। मा॒। अ॒यम्। म॒णिः। आ। अ॒ग॒म॒त्। मधोः॑। घृ॒तस्‍य॑। धार॑या। की॒लाले॑न। म॒णिः। स॒ह। ६.२५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस (असुरक्षितिम्) असुरनाशक…. म० २२। (सः अयम्) वह (मणिः) प्रशंसनीय (मणिः) मणि [वैदिक नियम] (मा) मुझे (मधोः) मधुर रस की और (घृतस्य) घृत की (धारया) धारा से (कीलालेन सह) अच्छे पके अन्न के सहित (आ अगमत्) प्राप्त हुआ है ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य धर्म से अन्न आदि पदार्थ लाकर निर्वाह करें ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २५−(मधोः) मधुररसस्य (घृतस्य) सर्पिषः (धारया) प्रवाहेण (कीलालेन) अ० ४।११।१०। कीलालमन्ननाम-निघ० २।७। सुसंस्कृतेनान्नेन। अन्यद् गतम् ॥

२६ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम्

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यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॑र्दे॒वेभ्यो॒ असु॑रक्षितिम्।
स मा॒यं म॒णिराग॑मदू॒र्जया॒ पय॑सा स॒ह द्रवि॑णेन श्रि॒या स॒ह ॥

२६ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What [amulet] etc. etc., together with refreshment, with milk,
    together with property, with fortune.
Notes
Griffith

The Amulet, etc. That Amulet here hath come to me with power and abundant strength, hath come with glory and with wealth.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। दे॒वेभ्यः॑। असु॑रऽक्षितिम्। सः। मा॒। अ॒यम्। म॒णिः। आ। अ॒ग॒म॒त्। ऊ॒र्जया॑। पय॑सा। स॒ह। द्रवि॑णेन। श्रि॒या। स॒ह। ६.२६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस (असुरक्षितिम्) असुरनाशक…. म० २२। (सः अयम्) वही (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (मा) मुझे (ऊर्जया) पराक्रम और (पयसा सह) ज्ञान के साथ [तथा] (द्रविणेन) धन और (श्रिया सह) श्री [सेवनीय सम्पत्ति] के सहित (आ अगमत्) प्राप्त हुआ है ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य धर्म्मानुसार पराक्रमी, ज्ञानी, धनी और ऐश्वर्यवान् होवें ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २६−(ऊर्जया) पराक्रमेण (पयसा) ज्ञानेन (द्रविणेन) धनेन (श्रिया) सेवनीयया संपत्या। अन्यत् पूर्ववत् ॥

२७ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॑र्दे॒वेभ्यो॒ असु॑रक्षितिम्।
स मा॒यं म॒णिराग॑म॒त्तेज॑सा॒ त्विष्या॑ स॒ह यश॑सा की॒र्त्या᳡ स॒ह ॥

२७ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What [amulet] etc. etc., together with brightness, with
    brilliance, together with glory, with fame.
Notes

The mss. vary greatly as to the accent of kīrtyā, only D. having the
correct kīrtyā́; P.M.T. have kī́rtyā, the rest kīrtyā̀. ⌊C.f. JAOS.
x. 381. Correct the Berlin edition, and also that of SPP., who has
kīrtyā̀, against the majority of his authorities.⌋

Griffith

The Amulet, etc.. That Amulet here hath come to me with splendour and a blaze of light, with honour and illustrious fame.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। दे॒वेभ्यः॑। असु॑रऽक्षितिम्। सः। मा॒। अ॒यम्। म॒णिः। आ। अ॒ग॒म॒त्। तेज॑सा। त्विष्या॑। स॒ह। यश॑सा। की॒र्त्या᳡। स॒ह। ६.२७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस (असुरक्षितिम्) असुरनाशक…. म० २२। (सः अयम्) वही (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (मा) मुझे (तेजसा) तेज और (त्विष्या सह) शोभा के साथ [तथा] (यशसा) यश और (कीर्त्या सह) कीर्त्ति के साथ (आ अगमत्) प्राप्त हुआ है ॥२७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य ईश्वरनियम से पुरुषार्थी होकर प्रतापी और यशस्वी होवें ॥२७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २७−(त्विष्या) इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। त्विष दीप्तौ-इन्, कित्। दीप्त्या। शोभया। अन्यत् पूर्ववत् ॥

२८ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॑र्दे॒वेभ्यो॒ असु॑रक्षितिम्।
स मा॒यं म॒णिराग॑म॒त्सर्वा॑भि॒र्भूति॑भिः स॒ह ॥

२८ यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What [amulet] etc. etc., together with all growths.
Notes

Ppp. reads ojasā tejasā saha.

Griffith

The Amulet Brihaspati made for the Gods, that slew the fiends, That Amulet here hath come to me combined with all prosperities.

पदपाठः

यम्। अब॑ध्नात्। बृह॒स्पतिः॑। दे॒वेभ्यः॑। असु॑रऽक्षितिम्। सः। मा॒। अ॒यम्। म॒णिः। आ। अ॒ग॒म॒त्। सर्वा॑भिः। भूतिः॑ऽभिः। स॒ह। ६.२८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • अनुष्टुप्
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस (असुरक्षितिम्) असुरनाशक [वैदिक नियम] को (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े ब्रह्माण्डों के स्वामी परमेश्वर] ने (देवेभ्यः) विजयी लोगों के लिये (अबध्नात्) बाँधा है, (यः अयम्) वही (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (मा) मुझे (सर्वाभिः) सब प्रकार की (भूतिभिः सह) सम्पत्तियों सहित (आ अगमत्) प्राप्त हुआ है ॥२८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमात्मा के नियम पर चलकर सब प्रकार की सम्पत्तियाँ प्राप्त करें ॥२८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २८−(भूतिभिः) विभूतिभिः। सम्पत्तिभिः। सिद्धिभिः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

२९ तमिमं देवता

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

तमि॒मं दे॒वता॑ म॒णिं मह्यं॑ ददतु॒ पुष्ट॑ये।
अ॑भि॒भुं क्ष॑त्र॒वर्ध॑नं सपत्न॒दम्भ॑नं म॒णिम् ॥

२९ तमिमं देवता ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. This amulet here let the deities give to me in order to
    prosperity—the overpowering, dominion-increasing, rival-damaging amulet.
Notes

This verse and the one following are quoted in Kāuś. 19. 25, in
connection with earlier quotations from this same hymn; ⌊the second pāda
of this verse further in the schol. to 19. 22⌋.

Griffith

That Amulet may the Deities bestow on me to win success, The conquering, strength-increasing Charm, the damager of enemies.

पदपाठः

तम्। इ॒मम्। दे॒वताः॑। म॒णिम्। मह्य॑म्। द॒द॒तु॒। पुष्ट॑ये। अ॒भि॒ऽभुम्। क्ष॒त्र॒ऽवर्ध॑नम्। स॒प॒त्न॒ऽदम्भ॑नम्। म॒णिम्। ६.२९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • अनुष्टुप्
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवताः) देवता [विद्वान् जन] (मह्यम्) मुझे (पुष्टये) पुष्टि [वृद्धि] के लिये (तम् इमम्) उस ही (मणिम्) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम], (अभिभुम्) [शत्रुओं को] हरानेवाले, (क्षत्रवर्धनम्) राज्य बढ़ानेवाले, (सपत्नदम्भनम्) वैरियों के दबानेवाले (मणिम्) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] को (ददतु) दान करें ॥२९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्वानों के सत्सङ्ग से वैदिक मार्ग पर चल कर सब के पालन-पोषण के लिये राज्य आदि व्यवहार सिद्ध करें ॥२९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २९−(देवताः) विद्वज्जनाः (ददतु) प्रयच्छन्तु (पुष्टये) पालनाय (अभिभुम्) शत्रूणामभिभवितारं पराजेतारम् (क्षत्रवर्धनम्) राज्यवर्धकम् (सपत्नदम्भनम्) शत्रुनाशकम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

३० ब्रह्मणा तेजसा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ब्रह्म॑णा॒ तेज॑सा स॒ह प्रति॑ मुञ्चामि मे शि॒वम्।
अ॑सप॒त्नः स॑पत्न॒हा स॒पत्ना॒न्मेऽध॑राँ अकः ॥

३० ब्रह्मणा तेजसा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Together with bráhman, with brightness, I fasten on myself the
    propitious one; free from rivals, rival-slaying, it hath made my rivals
    beneath me.
Notes

Besides the quotation in Kāuś. 19. 25 (see just above), this verse is
used in the comm. to Kāuś. 26. 40. Muñcāsi in b is a misprint for
muñcāmi.

Griffith

I bind on me my happy fate with holy prayer and energy. Foeless destroyer of the foe, it hath subdued mine enemies.

पदपाठः

ब्रह्म॑णा। तेज॑सा। स॒ह। प्रति॑। मु॒ञ्चा॒मि॒। मे॒। शि॒वम्। अ॒स॒प॒त्नः। स॒प॒त्न॒ऽहा। स॒ऽपत्ना॑न्। मे॒। अध॑रान्। अ॒क॒। ६.३०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • अनुष्टुप्
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ब्रह्मणा) वेद द्वारा (तेजसा सह) प्रकाश के साथ (मे) अपने लिये (शिवम्) शिव [मङ्गलकारी परमात्मा] को (प्रति मुञ्चामि) मैं स्वीकार करता हूँ। (असपत्नः) शत्रुरहित, (सपत्नहा) शत्रुनाशक [परमेश्वर] ने (मे) मेरे (सपत्नान्) शत्रुओं को (अधरान्) नीचे (अकः) कर दिया है ॥३०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वेद द्वारा परमात्मा के विचार से जिनकी बुद्धि प्रकाशमयी हो जाती है, वे अपने शत्रुओं को नाश करके सुख पाते हैं ॥३०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३०−(ब्रह्मणा) वेदद्वारा (तेजसा) प्रकाशेन सह (प्रति मुञ्चामि) स्वीकरोमि (मे) मह्यम्। आत्मने (शिवम्) मङ्गलप्रदं परमात्मानम् (असपत्नः) शत्रुनाशकः (सपत्नान्) शत्रून् (मे) मम (अधरान्) नीचान् (अकः) अ० १।८।१। अकार्षीत्। कृतवान् ॥

३१ उत्तरं द्विषतो

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उत्त॑रं द्विष॒तो माम॒यं म॒णिः कृ॑णोतु देव॒जाः।
यस्य॑ लो॒का इ॒मे त्रयः॒ पयो॑ दु॒ग्धमु॒पास॑ते।
स मा॒यमधि॑ रोहतु म॒णिः श्रैष्ठ्या॑य मूर्ध॒तः ॥

३१ उत्तरं द्विषतो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let this god-born amulet make me superior to my hater; whose
    milked-out milk these three worlds worship, let that amulet mount here
    upon me, in order to supremacy, at the head.
Notes

That is, probably, ‘mount upon my head.’ According to Prāt. ii. 65, we
ought to read maṇíṣ kṛ-; ⌊this is the reading of three of SPP’s mss.,
but of none of W’s so far as noted: both texts give maṇíḥ⌋. The pāda
sa mā ’yam adhi rohatu (31 e, 32 c) is quoted in the comm. to
Kāuś. 19. 25. The Anukr. takes no notice of the redundant syllable in
a. Ppp. reads, for e, sa tvā ’yam abhi rakṣatu.

Griffith

May this Chaim, offspring of the Gods, make me superior to my foe. So may this charm whose milk expressed these three worlds longingly await, Be fastened on me here, that it may crown me with surpassing power.

पदपाठः

उत्ऽत॑रम्। द्वि॒ष॒तः। माम्। अ॒यम्। म॒णिः। कृ॒णो॒तु॒। दे॒व॒ऽजाः। यस्य॑। लो॒काः। इ॒मे। त्रयः॑। पयः॑। दु॒ग्धम्। उ॒प॒ऽआस॑ते। सः। मा॒। अ॒यम्। अधि॑। रो॒ह॒तु॒। म॒णिः। श्रैष्ठ्या॑य। मू॒र्ध॒तः। ६.३१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • त्र्यवसाना षट्पदा जगती
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) यह (देवजाः) देव [परमेश्वर] से उत्पन्न (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (मा) मुझको (द्विषतः) वैरी से (उत्तरम्) अधिक ऊँचा (कृणोतु) करे। (इमे) यह (त्रयः) तीनों [सृष्टि, स्थिति और प्रलय] (लोकाः) लोक (यस्य) जिस [वैदिक नियम] के (दुग्धम्) पूर्ण (पयः) ज्ञान को (उपासते) भजते हैं, (सः अयम्) वही (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (मा) मुझको (मूर्धतः) शिर पर से (श्रैष्ठ्याय) प्रधान पद के लिये (अधि) ऊपर (रोहतु) चढ़ावे ॥३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य ईश्वरप्रणीत सत्य नियम को मानकर संसार में प्रधान पद प्राप्त करे ॥३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३१−(उत्तरम्) उच्चतरम् (द्विषतः) शत्रुसकाशात् (मा) माम् (अयम्) (मणिः) प्रशस्तो वैदिकनियमः (कृणोतु) करोतु (देवजाः) जनसनखनक्रमगमो विट्। पा० ३।२।६७। देव+जनी प्रादुर्भावे-विट्। विड्वनोरनुनासिकस्यात्। पा० ६।४।४१। नस्य आत्त्वम्। देवात् परमेश्वराज् जातः (यस्य) (लोकाः) (इमे) (त्रयः) सृष्टिस्थितिप्रलयरूपाः (पयः) पय गतौ-असुन्। ज्ञानम् (दुग्धम्) प्रपूर्णम् (उपासते) पूजयन्ति (सः) (मा) माम् (अयम्) (अधि) उपरि (रोहतु) रोहयतु (मणिः) (श्रैष्ठ्याय) श्रेष्ठपदाय (मूर्धतः) मस्तकात् ॥

३२ यं देवाः

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यं दे॒वाः पि॒तरो॑ मनु॒ष्या᳡ उप॒जीव॑न्ति सर्व॒दा।
स मा॒यमधि॑ रोहतु म॒णिः श्रैष्ठ्या॑य मूर्ध॒तः ॥

३२ यं देवाः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What gods. Fathers, men, always subsist upon, let that amulet mount
    here upon me, in order to supremacy, at the head.
Notes

The Anukr. passes without notice the redundant syllable in a.

Griffith

The Charm to which men, Fathers, Gods look ever for their maintenance, May this be fastened on me here, to crown me with surpassing power

पदपाठः

यम्। दे॒वाः। पि॒तरः॑। म॒नु॒ष्याः᳡। उ॒प॒ऽजीव॑न्ति। स॒र्व॒दा। सः। मा॒। अ॒यम्। अधि॑। रो॒ह॒तु॒। म॒णिः। श्रैष्ठ्या॑य। मू॒र्ध॒तः। ६.३२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • अनुष्टुप्
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) व्यवहार जाननेवाले, (पितरः) पालन करनेवाले और (मनुष्याः) मनन करनेवाले लोग (यम्) जिस [वैदिक नियम] के (सर्वदा) सर्वदा (उपजीवन्ति) आश्रय में रहते हैं, (सः अयम्) वही (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (मा) मुझको (मूर्धतः) शिर पर से (श्रैष्ठ्याय) प्रधान पद के लिये (अधि) ऊपर (रोहतु) चढ़ावे ॥३२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब उत्तम पुरुष परमेश्वर के आश्रय से संसार में उच्चपद प्राप्त करें ॥३२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३२−(यम्) वैदिकनियमम् (देवाः) व्यवहारकुशलाः (पितरः) पालकाः (मनुष्याः) अ० ३।४।६। मननशीलाः (उपजीवन्ति) आश्रयन्ति। अन्यत् पूर्ववत्−म० ३१ ॥

३३ यथा बीजमुर्वरायाम्

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यथा॒ बीज॑मु॒र्वरा॑यां कृ॒ष्टे फाले॑न॒ रोह॑ति।
ए॒वा मयि॑ प्र॒जा प॒शवोऽन्न॑मन्नं॒ वि रो॑हतु ॥

३३ यथा बीजमुर्वरायाम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. As seed in a cultivated field (urvárā) grows up in what is dragged
    with the plow-share, so in me let progeny, cattle, food upon food, grow
    up.
Notes

The Anukr. seems to read c, d as 9 + 7 syllables.

Griffith

As, when the plough hath tilled the soil, the seed springs up in. fertile land, Let cattle, progeny, and food of every kind spring up with me.

पदपाठः

यथा॑। बीज॑म्। उ॒र्वरा॑याम्। कृ॒ष्टे। फाले॑न। रोह॑ति। ए॒व। मयि॑। प्र॒ऽजा। प॒शवः॑। अन्न॑म्ऽअन्नम्। वि। रो॒ह॒तु॒। ६.३३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • अनुष्टुप्
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (बीजम्) बीज (उर्वरायाम्) उपजाऊ धरती में (फालेन) फाल [हल की कील] से (कृष्टे) जोते हुए [खेत] में (रोहति) उपजता है, (एव) वैसे ही (मयि) मुझ में (प्रजा) प्रजा [सन्तान आदि], (पशवः) पशु [गौ घोड़ा आदि] और (अन्नमन्नम्) अन्न के ऊपर अन्न (वि) विविध प्रकार (रोहतु) उत्पन्न होवे ॥३३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - यह बात प्रसिद्ध है कि उत्तम अन्न उपजाऊ धरती में क्रियाविशेष द्वारा बोये बीज से उत्तम अन्न आदि उत्पन्न होते हैं, वैसे ही सुशिक्षित गुणी पुरुषों के सुविचारित कर्म से बड़े-बड़े उपकारी लाभ होते हैं ॥३३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३३−(यथा) येन प्रकारेण (बीजम्) अ० ३।१७।२। उत्पत्तिकारणम् (उर्वरायाम्) उरु−ऋ गतौ-अच्, टाप्। शस्याढ्यायां भूमौ (कृष्टे) विलिखिते क्षेत्रे (फालेन) फल विदारणे-घञ्। लाङ्गलमुखस्येन लौहेन (रोहति) उत्पद्यते (एव) तथा (मयि) (प्रजा) सन्तानः (पशवः) गवाश्वादयः (अन्नमन्नम्) बहुपरिमाणमन्नम् (वि) विविधम् (रोहतु) जायताम् ॥

३४ यस्मै त्वा

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यस्मै॑ त्वा यज्ञवर्धन॒ मणे॑ प्र॒त्यमु॑चं शि॒वम्।
तं त्वं श॑तदक्षिण॒ मणे॑ श्रैष्ठ्याय जिन्वतात् ॥

३४ यस्मै त्वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. On whom, O sacrifice-increasing amulet, I have fastened thee,
    propitious, him do thou quicken unto supremacy, O amulet of a hundred
    sacrificial gifts.
Notes

⌊Cf. Bloomfield, AJP. xvii. 409.⌋

Griffith

Charm, forwarder of sacrifice, who hast a hundred priestly fees. Speed to preeminence him to whom I have attached thy happy fate.

पदपाठः

यस्मै॑। त्वा॒। य॒ज्ञ॒ऽव॒र्ध॒न॒। मणे॑। प्र॒ति॒ऽअमु॑ञ्चम्। शि॒वम्। तम्। त्वम्। श॒त॒ऽद॒क्षि॒ण॒। मणे॑। श्रैष्ठ्या॑य। जि॒न्व॒ता॒त्। ६.३४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • अनुष्टुप्
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यज्ञवर्धन) हे श्रेष्ठ व्यवहार बढ़ानेवाले (मणे) मणि ! [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (यस्मै) जिस [पुरुष] के लिये (शिवम् त्वा) तुझ मङ्गलकारी को (प्रत्यमुचम्) मैंने स्वीकार किया है, (शतदक्षिण) हे सैकड़ों वृद्धिवाले (मणे) मणि ! [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (त्वम्) तू (तम्) उस [पुरुष] को (श्रैष्ठ्याय) श्रेष्ठपद के लिये (जिन्वतात्) तृप्त कर ॥३४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य वेदज्ञान से अनेक प्रकार वृद्धि करके योग्यतापूर्वक श्रेष्ठ पद प्राप्त करे ॥३४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३४−(यस्मै) पुरुषहिताय (त्वा) (यज्ञवर्धन) हे श्रेष्ठव्यवहारवर्धक (मणे) (प्रत्यमुचम्) अहं स्वीकृतवान् (शिवम्) (मङ्गलकारकम्) (तम्) पुरुषम् (त्वम्) (शतदक्षिण) बहुप्रकारवृद्धियुक्त (मणे) (श्रैष्ठ्याय) श्रेष्ठपदाय (जिन्वतात्) तर्पय ॥

३५ एतमिध्मं समाहितम्

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ए॒तमि॒ध्मं स॒माहि॑तं जुष॒णो अग्ने॒ प्रति॑ हर्य॒ होमैः॑।
तस्मि॑न्विधेम सुम॒तिं स्व॒स्ति प्र॒जां चक्षुः॑ प॒शून्त्समि॑द्धे जा॒तवे॑दसि॒ ब्रह्म॑णा ॥

३५ एतमिध्मं समाहितम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. This fuel, laid on together, do thou, O Agni, enjoying, welcome with
    oblations; in him may we find favor, welfare, progeny, sight, cattle—in
    Jātavedas kindled with worship (bráhman).
Notes

Some of our mss. (R.T.p.m.D.) read agne without accent, and this is
decidedly preferable, since a pāda-division before juṣāṇás gives an
anuṣṭubh pāda followed by a triṣṭubh, while one after the same word
gives a triṣṭubh followed by an irregular combination of syllables.
The pada-text puts its mark of pāda-division after juṣāṇas, to
correspond with its accentuation of ágne. ⌊Of SPP’s authorities, only
four have agne against nine with ágne, and his text adopts the
latter reading.⌋ The concluding division is hopelessly unmetrical. The
Anukr. intends us to divide 8 + 11 (or 11 + 8): 8 + 8 + 11 = 46, a
virāḍ jagatī. The verse is thrice quoted in Kāuś. (2. 41; 19. 24; 137.
30) to accompany the piling of fuel on the fire. It is wanting in Ppp.

⌊The quoted Anukr. says for this sixth hymn pañca (i.e. 5 over
30).—Here ends the third anuvāka, with 2 hymns and 85 verses.⌋

Griffith

Love thou, O Agni, pleased with burnt oblations, this sacred fuel that is ranged in order. In him may we find grace and loving-kindness, happiness, progeny, and sight and cattle, in Jatavedas kindled with devotion.

पदपाठः

ए॒तम्। इ॒ध्मम्। स॒म्ऽआहि॑तम्। जु॒षा॒णः। अग्ने॑। प्रति॑। ह॒र्य॒। होमैः॑। तस्मि॑न्। वि॒दे॒म॒। सु॒ऽम॒तिम्। स्व॒स्ति। प्र॒ऽजाम्। चक्षुः॑। प॒शून्। सम्ऽइ॑ध्दे। जा॒तऽवे॑दसि। ब्रह्म॑णा। ६.३५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • फालमणिः, वनस्पतिः
  • बृहस्पतिः
  • पञ्चपदा त्र्यनुष्टुब्गर्भा जगती
  • मणि बन्धन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे अग्नि ! [अग्निसमान तेजस्वी मनुष्य] (एतम्) इस (समाहितम्) ध्यान किये गये (इध्मम्) प्रकाशस्वरूप [परमेश्वर] को, (जुषाणः) प्रसन्न होकर तू (होमैः) दानों [आत्मसमर्पणों] से (प्रति हर्य) प्रत्यक्ष प्रीति कर। (ब्रह्मणा) वेदज्ञान से (समिद्धे) प्रकाशित (तस्मिन्) उस (जातवेदसि) उत्पन्न पदार्थों के जाननेवाले [परमात्मा] में (सुमतिम्) सुमति, (स्वस्ति) सुसत्ता [कुशल], (प्रजाम्) प्रजा [सन्तान आदि] (चक्षुः) दृष्टि और (पशून्) पशुओं को (विदेम) हम पावें ॥३५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रीतिपूर्वक परमात्मा का ध्यान रखकर सब पदार्थों से उपकार लेकर आनन्द भोगें ॥३५॥ इति तृतीयोऽनुवाकः ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३५−(एतम्) प्रसिद्धम् (इध्मम्) प्रकाशस्वरूपं परमात्मानम् (समाहितम्) सम्यग् ध्यातम् (जुषाणः) प्रीतः सन् (अग्ने) अग्निवत्तेजस्विन् विद्वन् (प्रति) प्रत्यक्षम् (हर्य) कामयस्व (होमैः) दानैः। आत्मसमर्पणैः (तस्मिन्) (विदेम) प्राप्नुयाम (सुमतिम्) कल्याणबुद्धिम् (स्वस्ति) सुसत्ताम्। शुभम् (प्रजाम्) (चक्षुः) दृष्टिम् (पशून्) (समिद्धे) प्रकाशिते (जातवेदसि) अ० १।७।२। उत्पन्नपदार्थानां ज्ञातरि (ब्रह्मणा) वेदद्वारा ॥