००४ सर्पविषदूरीकरणम्

००४ सर्पविषदूरीकरणम् ...{Loading}...

Whitney subject
  1. Against snakes and their poison.
VH anukramaṇī

सर्पविषदूरीकरणम्।
१-२६ गरुत्मान्। तक्षकः। अनुष्टुप्, १ पथ्यापङ्क्तिः, २ त्रिपदा यवमध्या गायत्री, ३-४ पथ्याबृहती,
८ उष्णिग्गर्भा परा त्रिष्टुप्, १२ भुरिग्गायत्री, १६ त्रिपदा प्रतिष्ठागायत्री, २१ ककुम्मती,
२३ त्रिष्टुप्, २६ त्र्यवसाना षट्-पदा बृहतीगर्भा ककुम्मती भुरिक् त्रिष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Garutman.—ṣaḍviṅśati. takṣakadāivatam. ānuṣṭubham: 1. pathyāpan̄kti; 2. 3-p. yavamadhyā gāyatrī; 3, 4. pathyābṛhatī; 8. uṣṇiggarbhā parātriṣṭubh; 12. bhurig gāyatrī; 16. 3-p. pratiṣṭhā gāyatrī; 21. kakummatī; 23. triṣṭubh; 26. 3-av. 6-p. bṛhatīgarbhā kakummatī bhurik triṣṭubh.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. xvi. (with one or two changes of order: see below). Not noticed in Vāit. Quoted (vs. 1), as addressed to Takṣaka (king of the serpent-divinities), in Kāuś. 32. 20, and also 139. 8, in the ceremonies of beginning Vedic study (see further under vss. 25, 26).

Translations

Translated: Ludwig, p. 502; Henry, 11, 56; Griffith, ii. 14; Bloomfield, 152, 605.

Griffith

A charm to destroy venomous serpents

०१ इन्द्रस्य प्रथमो

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इन्द्र॑स्य प्रथ॒मो रथो॑ दे॒वाना॒मप॑रो॒ रथो॒ वरु॑णस्य तृ॒तीय॒ इत्।
अही॑नामप॒मा रथः॑ स्था॒णुमा॑र॒दथा॑र्षत् ॥

०१ इन्द्रस्य प्रथमो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Indra’s [was] the first chariot, the gods’ the after chariot,
    Varuna’s the third one; the snakes’ chariot, the furthest one (?), hath
    run against the pillar: then may it come to harm (?).
Notes

There are very questionable points here; the translation of d
implies emendation of apamā́ (p. apa॰mā́) to apamás; yet apa-mā́
might perhaps be understood adverbially (like upamā́, p. upa॰mā́:
twice in RV.). Ppp. reads upamā here. The translation of the last
clause implies the reading áthā riṣat, which is given by several mss.
(P.M.I.K.) and by Ppp., and which the meter favors; but such variants as
arisat for arsat are found elsewhere, and the ms. authority is decidedly
in favor of arṣat, as the pada-texts read (but Kp. ardvyat, by a
curious blunder)—if only we knew what to make of it. No indicative form
not an aorist can be coördinated with ārat.

Griffith

इन्द्र॑स्य प्रथ॒मो रथो॑ दे॒वाना॒मप॑रो॒ रथो॒ वरु॑णस्य तृ॒तीय॒ इत्।
अही॑नामप॒मा रथ॑ स्था॒णुमा॑र॒दथा॑र्षत्॥१॥

पदपाठः

इन्द्र॑स्य। प्र॒थ॒मः। रथः॑। दे॒वाना॑म्। अप॑रः। रथः॑। वरु॑णस्य। तृ॒तीयः॑। इत्। अही॑नाम्। अ॒प॒ऽमा। रथः॑। स्था॒णुम्। आ॒र॒त्। अथ॑। अ॒र्ष॒त्। ४.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रस्य) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] का (प्रथमः) पहिला (रथः) रथ है, (देवानाम्) विजयी [शूर मन्त्रियों] का (अपरः) दूसरा (रथः) रथ, और (वरुणस्य) वरुण [श्रेष्ठ वैद्य] का (तृतीयः) तीसरा (इत्) ही है (अहीनाम्) महाहिंसक [साँपों] का (अपमा) खोटा (रथः) रथ (स्थाणुम्) ठूँठ [सूखे पेड़] पर (आरत्) पहुँचा है, (अथ) अब (अर्षत्) वह चला जावे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राजा, मन्त्री और वैद्य के प्रयत्न से सर्परूप कुठौर में वर्तमान दुष्ट लोग और दुष्ट रोग प्रजा में से नष्ट हो जावें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतो राज्ञः (प्रथमः) अग्रगामी (रथः) यानम् (देवानाम्) विजिगीषूणां मन्त्रिणाम् (अपरः) द्वितीयः (रथः) (वरुणस्य) श्रेष्ठस्य वैद्यस्य (तृतीयः) (इत्) एव (अहीनाम्) अ० २।५।५। आङि श्रिहनिभ्यां ह्रस्वश्च। उ० ४।१३८। आङ्+हन हिंसागत्योः-इण् डित्, आङो ह्रस्वत्वम्। अहिरयनादिति अन्तरिक्षे, अयमपीतरोऽहिरेतस्मादेव, निर्ह्रसित उपसर्ग आहन्तीति-निरु० २।१७। आहन्तॄणाम्। महाहिंसकानाम्। सर्पाणाम् (अपमा) अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। अप+माङ् माने−ड। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। विभक्तेराकारः। अपमः। अवमः। कुत्सितः। नीचः (रथः) (स्थाणुम्) स्थो णुः। उ० ३।३७। ष्ठा गतिनिवृत्तौ−णु। निश्चलः। शुष्कवृक्षः (आरत्) ऋ गतौ−लुङ्। अगमत् (अथ) इदानीम् (अर्षत्) ऋषी गतौ−लेट्। लेटोऽडाटौ। पा० ३।४।९४। इत्यटि गुणश्च। गच्छेत् स रथः ॥

०२ दर्भः शोचिस्तरूणकमश्वस्य

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द॒र्भः शो॒चिस्त॒रूण॑क॒मश्व॑स्य॒ वारः॑ परु॒षस्य॒ वारः॑।
रथ॑स्य॒ बन्धु॑रम् ॥

०२ दर्भः शोचिस्तरूणकमश्वस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Darbhá-grass, brightness, young shoot (? tarū́ṇaka); horse’s
    tail-tuft, rough-one’s tail-tuft; chariot’s seat (? bándhura).
Notes

The translation, of course, is only mechanical. ⌊Henry, Mém. de la Soc.
de Ling.
, ix. 238, corrects an error of his version.⌋ We should have
expected the Anukr. at least to add bhurij to its definition of the
verse as a gāyatrī (8 + 11: 6 = 25). O. (and E. in margin) read
puruṣasya in b.

Griffith

Their lustre is the Darbha-grass, its young shoots are their horse’s tail: the reed’s plume is their chariot seat.

पदपाठः

द॒र्भः। शो॒चिः। त॒रूण॑कम्। अश्व॑स्य। वारः॑। प॒रु॒षस्य॑। वारः॑। रथ॑स्य। बन्धु॑रम्। ४.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • त्रिपदा यवमध्या गायत्री
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (दर्भः) दाभ घास [सर्पों का] (शोचिः) प्रकाश, (तरूणकम्) छोटी नवीन [दाभ] [उनके] (अश्वस्य) घोड़े की (वारः) पूँछ (परुषस्य) कड़े [दाभ] की (वारः) पूँछ [सिरा] [उनके] (रथस्य) रथ की (बन्धुरम्) बैठक है ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे साँप आदि छिपकर रहते हैं, वैसे ही चोर आदि दुष्कर्मी छिपे रहते हैं ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(दर्भः) तृणविशेषः। कुशः। काशः (शोचिः) प्रकाशः (तरूणकम्) ह्रस्वे च। पा० ५।३।८६। इति क प्रत्ययः। अन्येषामपि दृश्यते। पा० ६।३।१३७। इति दीर्घः। क्षुद्रनवीनदर्भः (अश्वस्य) घोटकस्य (वारः) बालः। पुच्छः (परुषस्य) कठोरदर्भस्य (वारः) (रथस्य) (बन्धुरम्) अ० ३।९।३। स्थितिस्थानम् ॥

०३ अव श्वेत

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अव॑ श्वेत प॒दा ज॑हि॒ पूर्वे॑ण॒ चाप॑रेण च।
उ॑दप्लु॒तमि॑व॒ दार्वही॑नामर॒सं वि॒षं वारु॒ग्रम् ॥

०३ अव श्वेत ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Smite down, O white one, with the foot, both the fore and the hind;
    like water-floated wood, sapless [is] the snakes’ poison, fierce water
    (vā́r).
Notes

Ppp. puts the verse after our 4, and reads at the end vār id ugram.
Part of our mss. (T.D.K.) read vā́r, accented, in both verses, and that
seems most likely to be the true reading; the translation adopts it.
⌊Pischel takes it as “halte auf,” Ved. Stud., ii. 75.⌋ The first
half-verse is read in several gṛhya-sūtras (AGS. ii. 3. 3; PGS. ii.
14. 4; śGS. iv. 18; HGS. ii. 16. 8), as part of a verse in a charm
against serpents; they all begin with apa instead of ava. ⌊Cf. also
MGS. ii. 7. i a.⌋ The verse (8 + 8: 8 + 8 + 3) would be more properly
called upariṣṭād bṛhatī.

⌊Cf. xviii. 1. 32 n.⌋

Griffith

Strike out, white courser! with thy foot, strike both with fore and hinder foot, Stay the dire poison of the Snakes, and make it weak as soaking wood.

पदपाठः

अव॑। श्वे॒त॒। प॒दा। ज॒हि॒। पूर्वे॑ण। च॒। अप॑रेण। च॒। उ॒दप्लु॒तम्ऽइ॑व। दारु॑। अही॑नाम्। अ॒र॒सम्। वि॒षम्। वाः। उ॒ग्रम्। ४.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • पथ्याबृहती
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (श्वेत) हे प्रवृद्ध [मनुष्य !] तू (पूर्वेण) अगले (च च) और (अपरेण) पिछले (पदा) पाद [पैर की चोट] से (अव जहि) मार डाल। (उदप्लुतम्) जल में बही हुई (दारु इव) लकड़ी के समान (अहीनाम्) सर्पों का (उग्रम्) क्रूर (वाः) जल [अर्थात्] (विषम्) विष (अरसम्) नीरस होवे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राजा के प्रबन्ध से दुष्ट लोग ऐसे निर्बल हो जावें, जैसे उत्तम वैद्य के प्रयत्न से विष निकम्मा हो जाता है, जैसे लकड़ी जल में बहती-बहती गलकर सारहीन हो जाती है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(श्वेत) हसिमृग्रिण्० उ० ३।८६। टुओश्वि गतिवृद्ध्योः-तन्। हे प्रवृद्ध। मनुष्य (पदा) पादेन (अव जहि) विनाशय (पूर्वेण) अग्रभागेन (च) (अपरेण) पश्चाद् भागेन (उदप्लुतम्) जले सृप्तम् (इव) (दारु) काष्ठम् (अहीनाम्) म० १। सर्पाणाम् (अरसम्) सारहीनम् (विषम्) गरलम् (वाः) जलम् (उग्रम्) क्रूरम् ॥

०४ अरङ्घुषो निमज्योन्मज

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अ॑रंघु॒षो नि॒मज्यो॒न्मज॒ पुन॑रब्रवीत्।
उ॑दप्लु॒तमि॑व॒ दार्वही॑नामर॒सं वि॒षं वारु॒ग्रम् ॥

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Whitney
Translation
  1. The araṁghuṣá, having immerged, having emerged, said again: like
    water-floated wood, sapless is the snake’s poison, fierce water.
Notes

The pada-text divides aram॰ghuṣáḥ in a, and the Pet. Lexx.
conjecture the meaning accordingly to be ’loud-sounding.’ ⌊Pischel
discusses the vs., Ved. Stud., ii. 74.⌋ Ppp. is corrupt at the
beginning, but seems to read udan̄ghojyonmajya punar etc.; ⌊again it
ends with vār id ugram⌋.

Griffith

Loud neighing he hath dived below, and rising up again replied, Stayed the dire poison of the Snakes, and made it weak as soaking wood.

पदपाठः

अ॒र॒म्ऽघु॒षः। नि॒ऽमज्य॑। उ॒त्ऽमज्य॑। पुनः॑। अ॒ब्र॒वी॒त्। उ॒द॒प्लु॒तम्ऽइ॑व। दारु॑। अही॑नाम्। अ॒र॒सम्। वि॒षम्। वाः। उ॒ग्रम्। ४.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • पथ्याबृहती
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अरंघुषः) पूरी घोषणा करनेवाले [पुरुष] ने (निमज्य) डुबकी लगाकर और (उन्मज्य) उछल कर (पुनः) फिर (अब्रवीत्) कहा।(उदप्लुतम्) जल में बही हुई (दारु इव) लकड़ी के समान (अहीनाम्) सर्पों का (उग्रम्) क्रूर (वाः) जल [अर्थात्] (विषम्) विष (अरसम्) नीरस [होवे] ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विवेकी जन घोषणा देकर विचारपूर्वक शत्रुओं को ऐसा निर्बल करे, जैसे वैद्य द्वारा विष जल में बही लकड़ी के समान निकम्मा हो जाता है ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(अरंघुषः) अलम्+घुषिर् अविशब्दने-क, लस्य रः। पर्याप्तघोषणाकारी (निमज्य) जले प्रविश्य यथा (उन्मज्य) जलादुद्गत्य यथा (पुनः) (अब्रवीत्)। अन्यत् पूर्ववत्−म० ३ ॥

०५ पैद्वो हन्ति

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पै॒द्वो ह॑न्ति कस॒र्णीलं॑ पै॒द्वः श्वि॒त्रमु॒तासि॒तम्।
पै॒द्वो र॑थ॒र्व्याः शिरः॒ सं बि॑भेद पृदा॒क्वाः ॥

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Whitney
Translation
  1. Pāidva slays the kasarṇī́la (snake), Pāidva the whitish and the
    black; Pāidva hath split altogether the head of the ratharvī́, of the
    pṛdākū́.
Notes

Pāidva ‘of Pedu’ is the white snake-destroying horse given by the Aśvins
to Pedu (RV. i. 117-119). ⌊Cf. Bergaigne, Rel. Véd. ii. 451.⌋ For
kasarṇīlam Ppp. reads kvaṣarṣṇīlam, and, for ratharvyās,
rathavrihā. The exceptional accent of pṛdākvā́ḥ is noted in the comm.
to Prāt. iii. 60. The pada-text divides neither kasarṇī́la nor
ratharvī́.

Griffith

Paidva kills Kasarnila, kills both the white Serpent and the black, Paidva hath struck and cleft in twain Ratharvi’s and the Viper’s head.

पदपाठः

पै॒द्वः। ह॒न्ति॒। क॒स॒र्णील॑म्। पै॒द्वः। श्वि॒त्रम्। उ॒त। अ॒सि॒तम्। पै॒द्वः। र॒थ॒र्व्याः। शिरः॑। सम्। बि॒भे॒द॒। पृ॒दा॒क्वाः। ४.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • अनुष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पैद्वः) शीघ्रगामी [पुरुष] (कसर्णीलम्) बुरे मार्ग में छिपे हुए और (पैद्वः) शीघ्रगामी हो (श्वित्रम्) श्वेत (उत) और (असितम्) काले [साँप] को (हन्ति) मारता है। (पैद्वः) शीघ्रगामी ने (रथर्व्याः) दौड़ती हुई (पृदाक्वाः) फुँसकारती हुई [साँपिन] का (शिरः) शिर (सम् बिभेद) तोड़ डाला था ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - फुरतीला वीर पुरुष पूर्वज शूरों के समान साँप और साँपिन रूप शत्रुओं और शत्रुसेना का नाश करे ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(पैद्वः) कॄगॄशॄदॄभ्यो वः। उ० १।१५५। पद गतौ-व प्रत्ययः, अस्यैकारः पैद्वः=अश्वः-निघ० १।१४। शीघ्रगामी पुरुषः (हन्ति) नाशयति (कसर्णीलम्) अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। क+सरणी+लीङ् श्लेषणे−ड, अकारलोपः। कोः कादेशः। कु कुत्सितायां सरण्यां मार्गे लीनं श्लिष्टम् (पैद्वः) (श्वित्रम्) अ० ३।२७।६। श्वेतम् (उत) अपि च (असितम्) अ० ३।२७।१। कृष्णसर्पम् (रथर्व्या) रथर्यतिर्गतिकर्मा-निघ० २।१४। कॄगॄशॄदॄभ्यो वः। उ० १।१५५। रथर् गतौ-च। जातेरस्त्री०। पा० ४।१।६३। ङीप्। शीघ्रगामिन्याः सर्पिण्याः (शिरः) (सम्) सम्यक् (बिभेद) चिच्छेद (पृदाक्वाः) अ० १।२७।१। पर्द कुत्सिते शब्दे−कः कु, ऊङ्। कुत्सितशब्दकारिण्याः सर्पिण्याः ॥

०६ पैद्व प्रेहि

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पैद्व॒ प्रेहि॑ प्रथ॒मोऽनु॑ त्वा व॒यमेम॑सि।
अही॒न्व्य᳡स्यतात्प॒थो येन॑ स्मा व॒यमे॒मसि॑ ॥

०६ पैद्व प्रेहि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Go forth first, O Pāidva; we come after thee; cast thou out the
    snakes from the road by which we come.
Notes
Griffith

Go onward, horse of Pedu! go thou first: we follow after thee. Cast thou aside the Serpents from the pathway whereupon we tread.

पदपाठः

पैद्व॑। प्र। इ॒हि॒। प्र॒थ॒मः। अनु॑। त्वा॒। व॒यम्। आ। ई॒म॒सि॒। अही॑न्। वि। अ॒स्य॒ता॒त्। प॒थः। येन॑। स्म॒। व॒यम्। आ॒ऽई॒मसि॑। ४.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • अनुष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पैद्व) हे शीघ्रगामी [पुरुष !] (प्रथमः) आगे होकर (प्र इहि) बढ़ा चल, (त्वा अनु) तेरे पीछे-पीछे (वयम्) हम (आ ईमसि) आते हैं। (अहीन्) महाहिंसक [साँपों] को (पथः) उस मार्ग से (वि अस्यतात्) मार गिरा (येन) जिस से (वयम्) हम (स्म) ही (आ-ईमसि) आते हैं ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - अग्रगामी शूर को शत्रुओं के नाश करने में सब लोग सहाय करें ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(पैद्वः) म० ५। हे शीघ्रगामिन् (प्र इहि) अग्रे गच्छ (प्रथमः) प्रधानः (अनु) अनुसृत्य (त्वा) (वयम्) (आ-ईमसि) ई गतौ-लट्, मसो मसि। ईमः। आगच्छामः (अहीन्) म० १। महाहिंसकान्। सर्पान् (वि) विशेषेण (अस्यतात्) अस्य। क्षिप (पथः) मार्गात् (येन) यथा (स्म) अवधारणे (वयम्, आ ईमसि) ॥

०७ इदं पैद्वो

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इ॒दं पै॒द्वो अ॑जायते॒दम॑स्य प॒राय॑णम्।
इ॒मान्यर्व॑तः प॒दाहि॒घ्न्यो वा॒जिनी॑वतः ॥

०७ इदं पैद्वो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Here was Pāidva born; this [is] his going-away; these [are] the
    tracks of the snake-slaying vigorous steed.
Notes

⌊For the difficult and debatable form ahighnyo, BR. and W. assume a
stem ahighnī́. This is probably to be considered, not as a feminine
formation (cf. my Noun-Inflection, JAOS. x., p. 384), but rather as a
masculine, like the masc. proper names Tiraścī́ (l.c., p. 367 end), or,
better, like the masculines ahī́, āpathī́, prāvī́, starī́ etc.
(about a dozen of them. l.c., p. 369, middle: genitive ahyò etc.). In
the latter case we might regard the printed accent ahighnyó, when
contrasted with the ahyò of the RV., as characteristic of the AV. (cf.
l.c., p. 369 top): but both W’s and SPP’s authorities are here uncertain
as to the accent: the majority have ahighnyó, p. ahi॰ghnyáḥ; K. and
three of SPP’s have ahighnyò; while W’s D. and SPP’s P.² have
áhi॰ghnyaḥ.—Or have we, after all, to assume a stem ahighní (cf.
sahasraghní, xi. 2. 12), of which this would be a genitive like
ary-ás?—One wonders why the reading is not simply ahighnó; but not a
ms., either of W’s or of SPP’s, gives that reading.—Cf. atighnyàs, xi.
7. 16.⌋

Griffith

Here was the horse of Pedu born: this is the way that takes him hence. These are the tracks the courser left, the mighty slayer of the Snakes.

पदपाठः

इ॒दम्। पै॒द्वः। अ॒जा॒य॒त॒। इ॒दम्। अ॒स्‍य॒। प॒रा॒ऽअय॑नम्। इ॒मानि॑। अर्व॑तः। प॒दा। अ॒हि॒ऽघ्न्यः। वा॒जिनी॑ऽवतः। ४.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • अनुष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) अब (पैद्वः) शीघ्रगामी पुरुष (अजायत) प्रकट हुआ है, (इदम्) यह (अस्य) इसका (परायणम्) पराक्रम का मार्ग है। (अर्वतः) शीघ्रगामी (अहिघ्न्यः) महाहिंसक [साँपों] के मारनेवाले (वाजिनीवतः) अन्नयुक्त क्रियावाले [पुरुष] के (इमानि) यह (पदा) पदचिह्न हैं ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - पूर्वज महात्माओं के चरित्रों पर चलकर मनुष्य आगे बढ़े ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(इदम्) इदानीम् (पैद्वः) म० ५। शीघ्रगामी (अजायत) प्रादुरभवत् (इदम्) (अस्य) पुरुषस्य (परायणम्) परा पराक्रमयुक्तम् अयनं मार्गः (इमानि) (अर्वतः) अ० ६।९२।२। ऋ गतौ-वनिप्। शीघ्रगामिनः। विज्ञानिनः (पदा) पदचिह्नानि (अहिघ्न्यः) अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। अहि+हन हिंसागत्योः-यक्। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। षष्ठ्याः सुः। अहिघ्न्यस्य महाहिंसकस्य सर्पस्य नाशकस्य (वाजिनीवतः) अ० ४।३८।६। अन्नवतीक्रियायुक्तस्य ॥

०८ संयतं न

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संय॑तं॒ न वि ष्प॑र॒द्व्यात्तं॒ न सं य॑मत्।
अ॒स्मिन्क्षेत्रे॒ द्वावही॒ स्त्री च॒ पुमां॑श्च॒ तावु॒भाव॑र॒सा ॥

०८ संयतं न ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What is shut together may it not open; what is opened may it not shut
    together; in this field [are] two snakes, both a female and a male;
    those [are] both sapless.
Notes

The first half-verse we had above as vi. 56. 1 c, d ⌊see note for
suggested emendation⌋, also applied to a snake. The curiously irregular
verse (7 + 7: 8 [7?] + 11 = 33) is strangely defined by the Anukr.

Griffith

Let him not close the opened mouth, nor open that which now is closed. Two snakes are in this field, and both, female and male, are powerless.

पदपाठः

सम्ऽय॑तम्। न। वि। स्प॒र॒त्। वि॒ऽआत्त॑म्। च। सम्। य॒म॒त्। अ॒स्मिन्। क्षेत्रे॑। द्वौ। अही॒ इति॑। स्त्री। च॒। पुमा॑न्। च॒। तौ। उ॒भौ। अ॒र॒सा। ४.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • उष्णिग्गर्भा परात्रिष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - वह [साँप] (संयतम्) मुँदे हुए मुख को (न) न (वि स्परत्) खोले और (व्यात्तम्) खुले मुख को (न) न (सम् यमत्) मूँदे। (अस्मिन्) इस (क्षेत्रे) खेत [संसार] में (द्वौ) दो (अही) महाहिंसक [साँप] (स्त्री) स्त्री (च च) और (पुमान्) नर हैं, (तौ) वे (उभौ) दोनों (अरसा) नीरस [हो जावें] ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् पुरुष ऐसा प्रयत्न करें सर्पिणी सर्प समान स्त्री और पुरुष रूप दोनों प्रकार की प्रजाएँ उपद्रव न मचावें ॥८॥ इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध-अ० ६।५६।१। के उत्तर भाग में आ चुका है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(संयतम्) संकुचितं मुखम् (न) निषेधे (वि) विवृत्य (स्परत्) स्पृ प्रीतिचालनयोः−लेट्। चालयेत् (व्यात्तम्) अ० ६।५६।१। विवृतं मुखम् (संयतम्) संश्लिष्येत् (अस्मिन्) प्रत्यक्षे (क्षेत्रे) क्षेत्ररूपे संसारे (द्वौ) (अही) म० १। महाहिंसकौ सर्पौ (स्त्री) (च) (पुमान्) अ० १।८।१। नरः (च) (तौ) (उभौ) (अरसा) सारहीनौ ॥

०९ अरसास इहाहयो

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अ॑र॒सास॑ इ॒हाह॑यो॒ ये अन्ति॒ ये च॑ दूर॒के।
घ॒नेन॑ हन्मि॒ वृश्चि॑क॒महिं॑ द॒ण्डेनाग॑तम् ॥

०९ अरसास इहाहयो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Sapless here [are] the snakes, they that are near and they that are
    far; with a club (ghaná) I slay the stinger (vṛ́ścika), with a staff
    the snake that has come.
Notes

The second half-verse is found in a suppl. to RV. i. 191; see Aufrecht’s
RV.², p. 672; instead of ahim is there read aham. Ppp. reads ye
‘nti te ca
in b; and all our mss. ⌊save D., which has áti⌋ leave
anti unaccented (it is emended to ánti in our text), as if by some
carelessness yé ‘nti had been changed to yé anti; it is one of the
strangest of the many strange blunders of the AV. text. ⌊One might think
that this vs. or one much like it was had in mind by Karṇa in his
address to śalya, MBh. viii. 40. 33 = 1848.⌋

Griffith

Powerless are the serpents here, those that are near and those afar. I kill the scorpion with a club, and with a staff the new-come snake.

पदपाठः

अ॒र॒सासः॑। इ॒ह। अह॑यः। ये। अन्ति॑। ये। च॒। दू॒र॒के। घ॒नेन॑। ह॒न्मि॒। वृश्चि॑कम्। अहि॑म्। द॒ण्डेन॑। आऽग॑तम्। ४.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • अनुष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इह) यहाँ पर (अहयः) महाहिंसक [साँप] (अरसासः) नीरस हों, (ये) जो (अन्ति) पास (च) और (ये) जो (दूरके) दूर हैं। (आगतम्) आये हुए (वृश्चिकम्) डङ्क मारनेवाले बिच्छू और (अहिम्) महाहिंसक [साँप] को (घनेन) सोटें वा मोंगरे से और (दण्डेन) दण्डे से (हन्मि) मैं मारता हूँ ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य साँप रूप दुःखदायिओं को यथावत् दण्ड देवें ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(अरसासः) अरसाः। सारहीनाः (इह) अत्र (अहयः) म० १। महाहिंसकाः। सर्पाः (ये) (अन्ति) पार्श्वे (ये) (च) (दूरके) दूरे (घनेन) काष्ठस्य लोहस्य वा मुद्गरेण (हन्मि) (वृश्चिकम्) वृश्चिकृषोः किकन्। उ० २।४०। ओव्रश्चू छेदने-किकन्। छेदनशीलम्। कीटभेदम् (अहिम्) (दण्डेन) ञमन्ताड् डः। उ० १।११४। दमु-उपशमे−ड, यद्वा दण्ड दण्डपातने-अच्। दमनसाधनेन लगुडेन (आगतम्) ॥

१० अघाश्वस्येदं भेषजमुभयो

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अ॑घा॒श्वस्ये॒दं भे॑ष॒जमु॒भयो॑ स्व॒जस्य॑ च।
इन्द्रो॒ मेऽहि॑मघा॒यन्त॒महिं॑ पै॒द्वो अ॑रन्धयत् ॥

१० अघाश्वस्येदं भेषजमुभयो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. This is the remedy of both, of the ill-horse (aghāśvá) and of the
    constrictor; the mischievous (aghāy-) snake hath Indra, the snake hath
    Pāidva put in my power (randhay-).
Notes

The Anukr. takes no notice of any deficiency in b; it can only be
supplied by the violent resolution su-dj-. Ppp. rectifies the meter by
the better reading vṛścikasya ca ⌊cf. our 15 c, d, below⌋.

Griffith

This is the remedy against Aghasva and the adder, both: Indra and Paidva have subdued and tamed the vicious snake for me.

पदपाठः

अ॒घ॒ऽअ॒श्वस्य॑। इ॒दम्। भे॒ष॒जम्। उ॒भयोः॑। स्व॒जस्य॑। च॒। इन्द्रः॑। मे॒। अहि॑म्। अ॒घ॒ऽयन्त॑म्। अहि॑म्। पै॒द्वः। अ॒र॒न्ध॒य॒त्। ४.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • अनुष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (उभयोः) दोनों, (अघाश्वस्य) अघाश्व [कष्ट फैलानेवाले सर्पविशेष] का (च) और (स्वजस्य) स्वज [लिपट जानेवाले सर्पविशेष] का (इदम्) यह (भेषजम्) औषध है। (इन्द्रः) बड़े ऐश्वर्यवाले (पैद्वः) शीघ्रगामी [पुरुष] ने (मे) मेरे लिये (अघायन्तम्) बुरा चीतनेवाले (अहिम्) महाहिंसक (अहिम्) साँप को (अरन्धयत्) मारा है ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे वैद्यराज बड़े-बड़े विषैले साँपों को वश में करता है, वैसे ही राजा दुष्टों को वश में करे ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(अघाश्वस्य) अघमश्नुते। अघ पापकरणे-अच्+अशू व्याप्तौ-क्वन्। कष्टप्रस्तारकस्य सर्पविशेषस्य (इदम्) (भेषजम्) औषधम् (उभयोः) (स्वजस्य) ष्वञ्ज आलिङ्गने-क। आलिङ्गनशीलस्य। सर्पविशेषस्य (च) (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (मे) मह्यम् (अहिम्) म० १। महाहिंसकम् (अघायन्तम्) छन्दसि परेच्छायामपि वक्तव्यम्। वा० पा० ३।१।८। अघ-क्यच्-शतृ। अश्वाघस्यात्। पा० ७।४।३७। आत्वं सांहितिकम्। अघमिच्छन्तम् (अहिम्) सर्पम् (पैद्वः) म० ५। शीघ्रगामी (अरन्धयत्) रध हिंसासंराद्ध्योः−णिच्-लङ्। रध्यतिर्वशगमनेऽपि दृश्यते-निरु० १०।४०। मारितवान्। वशीकृतवान् ॥

११ पैद्वस्य मन्महे

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पै॒द्वस्य॑ मन्महे व॒यं स्थि॒रस्य॑ स्थि॒रधा॑म्नः।
इ॒मे प॒श्चा पृदा॑कवः प्र॒दीध्य॑त आसते ॥

११ पैद्वस्य मन्महे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. We reverence Pāidva, the staunch one, of staunch abode (-dhā́man);
    here behind sit pṛ́dākus, plotting forth.
Notes

Ppp. combines at the end -dhyatā ”sate. The Anukr. treats b as
regular, thus sanctioning the resolution -dhā-ma-naḥ.

Griffith

We fix our thoughts on Pedu’s horse, strong, off-spring of a stedfast line. Behind our backs the vipers here crouch down and lie in wait for us.

पदपाठः

पै॒द्वस्य॑। म॒न्म॒हे॒। व॒यम्। स्थि॒रस्य॑। स्थि॒रऽधा॑म्नः। इ॒मे। प॒श्चा। पृदा॑कवः। प्र॒ऽदीध्य॑तः। आ॒स॒ते॒। ४.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • अनुष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (स्थिरस्य) स्थिर स्वभाववाले (स्थिरधाम्नः) स्थिरः तेजवाले (पैद्वस्य) शीघ्रगामी [पुरुष] का (वयम्) हम (मन्महे) चिन्तन करते हैं। (इमे) यह (प्रदीध्यतः) क्रीड़ा करते हुए (पृदाकवः) फुँसकारनेवाले [साँप] (पश्चा) पीछे (आसते) बैठते हैं ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य कुटिल साँप के समान छिपे उपद्रवियों का खोज लगाते हैं, वे संसार में स्मरणीय होते हैं ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(पैद्वस्य) म० ५। शीघ्रगामिनः पुरुषस्य। अधीगर्थदयेशां कर्मणि। पा० २।३।५२। इति षष्ठी (मन्महे) चिन्तयामः। स्मरामः (वयम्) (स्थिरस्य) दृढस्वभावस्य (स्थिरधाम्नः) दृढतेजस्कस्य (इमे) (पश्चा) तलोपः। पश्चात् (पृदाकवः) कुत्सितशब्दकारकाः। सर्पाः (प्रदीध्यतः) वर्तमाने पृषद्बृहन्०। उ० २।८४। दीधीङ् दीप्तिदेवनयोः-अति। कीडन्तः (आसते) तिष्ठन्ति ॥

१२ नष्टासवो नष्टविषा

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न॒ष्टास॑वो न॒ष्टवि॑षा ह॒ता इ॑न्द्रेण व॒ज्रिणा॑।
ज॒घानेन्द्रो॑ जघ्नि॒मा व॒यम् ॥

१२ नष्टासवो नष्टविषा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Of lost lives, of lost poison [are they], slain by the
    thunderbolt-bearing Indra; Indra hath slain, we have slain.
Notes
Griffith

Bereft of life and poison they lie slain by bolt-armed Indra’s hand. Indra and we have slaughtered them.

पदपाठः

न॒ष्टऽअ॑सवः। न॒ष्टऽवि॑षाः। ह॒ताः। इन्द्रे॑ण। व॒ज्रिणा॑। ज॒घान॑। इन्द्रः॑। ज॒घ्नि॒म। व॒यम्। ४.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • भुरिग्गायत्री
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वज्रिणा) वज्रधारी (इन्द्रेण) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले मनुष्य] करके (हताः) मारे गये [साँप] (नष्टासवः) प्राणों से नष्ट और (नष्टविषाः) विष से नष्ट [होवें]। (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] ने [साँपों को] (जघान) मारा था, और (वयम्) हम ने (जघ्निम) मारा था ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - दुष्टों के मारने में पूर्वजों के समान सब लोग शूर का साथ देवें ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(नष्टासवः) विगतप्राणाः (नष्टविषाः) विगतगरलाः (हताः) मारिताः (इन्द्रेण) परमैश्वर्यवता पुरुषेण (वज्रिणा) वज्रधारिणा (जघान) नाशितवान् (जघ्निम) नाशितवन्तः (वयम्) ॥

१३ हतास्तिरश्चिराजयो निपिष्टासः

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ह॒तास्तिर॑श्चिराजयो॒ निपि॑ष्टासः॒ पृदा॑कवः।
दर्विं॒ करि॑क्रतं श्वि॒त्रं द॒र्भेष्व॑सि॒तं ज॑हि ॥

१३ हतास्तिरश्चिराजयो निपिष्टासः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Slain [are] the cross-lined ones, crushed down the pṛ́dākus;
    slay thou the whitish [snake] that makes a great hood, the black
    snake, in the darbhá-grasses.
Notes

‘Hood,’ dárvi, lit. ‘spoon.’ Ppp. reads in c kanikradam. ⌊The
first half recurs as the second of vs. 20.⌋

Griffith

Tiraschirajis have been slain, and vipers crushed and brayed to bits. Slay Darvi in the Darbha-grass, Karikrata, and White and Black.

पदपाठः

ह॒ताः। तिर॑श्चिऽराजयः। निऽपि॑ष्टासः। पृदा॑कवः। दर्वि॑म्। करि॑क्रतम्। श्वि॒त्रम्। द॒र्भेषु॑। अ॒सि॒तम्। ज॒हि॒। ४.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • अनुष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तिरश्चिराजयः) तिरछी धारीवाले (पृदाकवः) फुँसकारनेवाले [साँप] (हताः) मार डाले गये और (निपिष्टासः) कुचिल डाले गये [हों]। (दर्भेषु) दाभों में (दर्विम्) फन को (करिक्रतम्) बड़ा करनेवाले, (श्वित्रम्) श्वेत और (असितम्) काले [साँप] को (जहि) मार डाल ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य महाउपद्रवियों को साँपों के समान मारें ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(हताः) नाशिताः (तिरश्चिराजयः) अ० ३।२७।२। तिर्यगवस्थितरेखाः (निपिष्टासः) अत्यन्तचूर्णिताः (पृदाकवः) कुत्सितशब्दाः। सर्पाः (दर्विम्) अ० ४।१४।७। दॄ विदारणे-विन्। सूपचालनपात्रवद्विदारकं फणम् (करिक्रतम्) दाधर्तिदर्धर्ति०। पा० ७।४।६५। करोतेर्यङ्लुकि शतृ। भृशं कुर्वन्तम् (श्वित्रम्) म० ५। श्वेतम् (दर्भेषु) काशेषु (असितम्) म० ५। कृष्णम् (जहि) नाशय ॥

१४ कैरातिका कुमारिका

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कै॑राति॒का कु॑मारि॒का स॒का खन॑ति भेष॒जम्।
हि॑र॒ण्ययी॑भि॒रभ्रि॑भिर्गिरी॒णामुप॒ सानु॑षु ॥

१४ कैरातिका कुमारिका ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The little girl of the Kirātas, she the little one, digs a remedy,
    with golden shovels, upon the ridges (sā́nu) of the mountains.
Notes
Griffith

The young maid of Kirata race, a little damsel, digs the drug, Digs it with shovels wrought of gold on the high ridges of the hills.

पदपाठः

कै॒रा॒ति॒का। कु॒मा॒रि॒का। स॒का। ख॒न॒ति॒। भे॒ष॒जम्। हि॒र॒ण्ययी॑भिः। अभ्रि॑ऽभिः। गि॒री॒णाम्। उप॑। सानु॑षु। ४.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • अनुष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सका) वह [प्रसिद्ध] (कैरातिका) चिरायता और (कुमारिका) कुवारपाठा, (औषधम्) ओषधि (हिरण्ययीभिः) तेजोमयी [चमकीली, उजली] (अभ्रिभिः) खुरपियों से (गिरीणाम्) पहाड़ों की (सानुषु उप) सम भूमियों के ऊपर (खनति=खन्यते) खोदी जाती है ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वैद्य लोग दूर-दूर से मँगाकर उपकारी ओषधियों का प्रयोग करते हैं, वैसे ही विद्वान् लोग विद्या प्राप्त करके मूर्खता का नाश करें ॥१४॥ यह (कैरातिका) शब्द कैरात वा किरातक अर्थात् चिरायते के लिये और (कुमारिका) शब्द कुमारी अर्थात् गुआरपाठे [घी गुआर] के लिये आया है ॥ चिरायते के संक्षिप्त नाम और गुण इस प्रकार हैं−भावप्रकाश, हरीतक्यादिवर्ग, श्लोक १४४, १४६ ॥ किराततिक्त, कैरात, कटुतिक्त और किरातक चिरायते के नाम हैं। वह सन्निपातज्वर, श्वास, कफ़, पित्त, रुधिरविकार और दाहनाशक तथा खाँसी, सूजन, प्यास, कुष्ठ, ज्वर, व्रण और कृमिरोगनाशक है ॥ गुआरपाठे के संक्षिप्त नाम और गुण−भावप्रकाश, गुडूच्यादिवर्ग, श्लोक २१३, २१४ ॥ कुमारी, गृहकन्या, कन्या, घृतकुमारिका घी कुवार के नाम हैं, घी-कुवार रेचक, शीतल, कड़वी, नेत्रों को हितकारी, रसायनरूप, मधुर, पुष्टिकारक, बलकारक, वीर्यवर्धक और वात, विषनाशक है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४−(कैरातिका) किरात−स्वार्थे कन्, अण् टाप् च। भूनिम्बः, ओषधिविशेषः (कुमारिका) कुमारी−स्वार्थे कन्, टाप् च। घृतकुमारिका, ओषधिविशेषः (सका) अव्ययसर्वनाम्नामकच् प्राक् टेः। पा० ५।३।७१। सा-अकच्। सा प्रसिद्धा (खनति) कर्मणि कर्तृप्रयोगः। खन्यते (भेषजम्) औषधम् (हिरण्ययीभिः) तेजोमयीभिः। उज्ज्वलाभिः (अभ्रिभिः) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। अभ्र गतौ-इन् तीक्षाग्रैर्लोहदण्डैः (गिरीणाम्) शैलानाम् (उप) उपरि (सानुषु) समभूमिदेशेषु ॥

१५ आयमगन्युवा भिषक्पृश्निहापराजितः

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आयम॑ग॒न्युवा॑ भि॒षक्पृ॑श्नि॒हाप॑राजितः।
स वै स्व॒जस्य॒ जम्भ॑न उ॒भयो॒र्वृश्चि॑कस्य च ॥

१५ आयमगन्युवा भिषक्पृश्निहापराजितः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Hither hath come the young physician, slayer of the spotted ones,
    unconquered; he verily is a grinder-up of both, the constrictor and the
    stinger.
Notes
Griffith

Hither the young uuconquered leech who slays the speckled snake hath come. He verily demolishes adder and scorpion; both of them.

पदपाठः

आ। अ॒यम्। अ॒ग॒न्। युवा॑। भि॒षक्। पृ॒श्नि॒ऽहा। अप॑राऽजितः। सः। वै। स्व॒जस्य॑। जम्भ॑नः। उ॒भयोः॑। वृश्चि॑कस्य। च॒। ४.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • अनुष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) यह (युवा) युवा (पृश्निहा) स्पर्श करनेवाले [सर्प] का नाश करनेवाला, (अपराजितः) न हारा हुआ (भिषक्) वैद्य (आ अगन्) आया है। (सः) वह (वै) निश्चय करके (उभयोः) दोनों (स्वजस्य) स्वज [लिपट जानवाले सर्पविशेष] (च) और (वृश्चिकस्य) डङ्क मारनेवाले बिच्छू का (जम्भनः) नाश करनेवाला है ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - बलवान् चतुर वैद्य सब प्रकार के विषैले जीवों का नाश करे ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १५−(आ अगन्) आगतवान् (अयम्) प्रसिद्धः (भिषक्) चिकित्सकः (पृश्निहा) घृणिपृश्निपार्ष्णि०। उ० ४।५२। स्पृश स्पर्शे-नि, सलोपः+हन हिंसागत्योः-क्विप्। स्पर्शनशीलानां सर्पाणां नाशकः (अपराजितः) अनभिभूतः (सः) भिषक् (वै) निश्चयेन (स्वजस्य) म० १०। आलिङ्गनशीलस्य सर्पस्य (जम्भनः) नाशकः (वृश्चिकस्य) छेदनशीलस्य कीटस्य (च) ॥

१६ इन्द्रो मेऽहिमरन्धयन्मित्रश्च

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इन्द्रो॒ मेऽहि॑मरन्धयन्मि॒त्रश्च॒ वरु॑णश्च।
वा॑तापर्ज॒न्यो॒३॒॑भा ॥

१६ इन्द्रो मेऽहिमरन्धयन्मित्रश्च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Indra hath put the snake in my power, [also] both Mitra and
    Varuṇa, and Vāta (‘wind’) and Parjanya, both of them.
Notes

The name given by the Anukr. to the verse is of uncertain value; it is
possible to read the last pāda either as 8 or as 6 syllables. Ppp. reads
in a me ‘hīn ajambhayat. Many of our mss. (P.I.O.R.T.K.) ⌊and the
majority of SPP’s⌋ read in c -janyò ’bhā́, but it is contrary to
all rule and analogy; ⌊and W’s Bp. and SPP’s pada-text give -janyā̀
ubhā́
⌋.

Griffith

Indra, Mitra and Varuna, and Vata and Parjanya both have given the serpent up to me.

पदपाठः

इन्द्रः॑। मे॒। अहि॑म्। अ॒र॒न्ध॒य॒त्। मि॒त्रः। च॒। वरु॑णः। च॒। वा॒ता॒प॒र्ज॒न्या᳡। उ॒भा। ४.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • त्रिपदा प्रतिष्ठा गायत्री
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मित्रः) सूर्य [के समान] (च च) और (वरुणः) जल [के समान] और (उभा) दोनों (वातापर्जन्या) वायु और मेघ [के समान गुणवाले] (इन्द्रः) बड़े ऐश्वर्यवान् पुरुष ने (मे) मेरे लिये (अहिम्) महाहिंसक [सर्प] को (अरन्धयत्) मारा है ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परोपकारी विद्वान् वैद्य संसार के उपकार के लिये विषैले जीवों को वश में करे ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् वैद्यः (मे) मह्यम् (अहिम्) म० १। महाहिंसकं सर्पम् (अरन्धयत्) म० १०। मारितवान् (मित्रः) प्रेरकः सूर्यो यथा (च) (वरुणः) जलवद् गुणकारी (वातापर्जन्या) वायुमेघौ यथा (उभा) द्वौ ॥

१७ इन्द्रो मेऽहिमरन्धयत्पृदाकुम्

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इन्द्रो॒ मेऽहि॑मरन्धय॒त्पृदा॑कुं च पृदा॒क्व᳡म्।
स्व॒जं तिर॑श्चिराजिं कस॒र्णीलं॒ दशो॑नसिम् ॥

१७ इन्द्रो मेऽहिमरन्धयत्पृदाकुम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Indra hath put the snake in my power, the pṛ́dāku and the
    she-pṛ́dāku, the constrictor, the cross-lined one, the kasarṇī́la, the
    dáśonasi.
Notes

The accent pṛdākvám (instead of -kvàm) is read by all the mss., and
hence by our text; but it is incontestably wrong. The Anukr. takes no
notice of the lacking syllable in c. Ppp. reads ⌊for apāidvo
me ‘hīn ajambhayat
, and ⌊for dkuśirṇīlaṁ naśonaśīṁ.

Griffith

Indra hath given him up to me, the female viper and the male, The adder, him with stripes athwart. Kasarnila, Dasonasi.

पदपाठः

इन्द्रः॑। मे॒। अहि॑म्। अ॒र॒न्ध॒य॒त्। पृदा॑कुम्। च॒। पृ॒दा॒क्वम्। स्व॒जम्। तिर॑श्चिऽराजिम्। क॒स॒र्णील॑म्। दशो॑नसिम्। ४.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • अनुष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) बड़े ऐश्वर्यवान् पुरुष ने (मे) मेरे लिये (पृदाकुम्) फुँसकारनेवाले (अहिम्) साँप (च) और (पृदाक्कम्) फुँसकारती हुई साँपिन को, (स्वजम्) स्वज [लिपट जानेवाले], (तिरश्चिराजिम्) तिरछी धारावाले, (कसर्णीलम्) बुरे मार्ग में छिपे हुए और (दशोनसिम्) काटकर हानि पहुँचानेवाले [साँप] को (अरन्धयत्) नाश किया है ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मन्त्र १६ के समान है ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् पुरुषः (मे) मह्यम् (अहिम्) महाहिंसकम् (अरन्धयत्) म० १० मारितवान् (पृदाकुम्) कुत्सितशब्दकारिणम् (च) (पृदाक्कम्) कुत्सितशब्दकरी सर्पिणीम् (स्वजम्) आलिङ्गनशीलम् (तिरश्चिराजिम्) म० १३। तिर्यगवस्थितरेखम् (कसर्णीलम्) म० ५। कुत्सितमार्गे लीनं श्लिष्टम् (दशोनसिम्) दंश दंशने-घञर्थे क। सानसिवर्णसि०। उ० ४।१०७। ऊन परिहाणे-असि। दशेन दंशनेन ऊनसिर्हानिर्यस्मात् तं सर्पम् ॥

१८ इन्द्रो जघान

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

इन्द्रो॑ जघान प्रथ॒मं ज॑नि॒तार॑महे॒ तव॑।
तेषा॑मु तृ॒ह्यमा॑णानां॒ कः स्वि॒त्तेषा॑मस॒द्रसः॑ ॥

१८ इन्द्रो जघान ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Indra hath slain first thy progenitor, O snake; of them, being
    shattered, what forsooth can be their sap?
Notes

Ppp. reads vas instead of u in c.

Griffith

O Serpent, Indra hath destroyed the sire who first engendered thee: And when these snakes are pierced and bored what sap and vigour will be theirs?

पदपाठः

इन्द्रः॑। ज॒घा॒न॒। प्र॒थ॒मम्। ज॒नि॒तार॑म्। अ॒हे॒। तव॑। तेषा॑म्। ऊं॒ इति॑। तृ॒ह्यमा॑णानाम्। कः। स्वि॒त्। तेषा॑म्। अ॒स॒त्। रसः॑। ४.१८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • अनुष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अहे) हे महाहिंसक [साँप !] (इन्द्रः) बड़े ऐश्वर्यवान् पुरुष ने (तव) तेरे (जनितारम्) जन्मदाता को (प्रथमम्) पहिले (जघान) मारा था। (तेषाम् तेषाम्) उन्हीं (तृह्यमाणानाम्) छिदे हुओं का (उ) ही (कः स्वित्) कौनसा (रसः) रस [पराक्रम] (असत्) होवे ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - बलवान् प्रतापी पुरुष हिंसक जीवों के बड़े और छोटों को नाश करे ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १८−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् पुरुषः (जघान) नाशितवान् (प्रथमम्) आदौ (जनितारम्) जनयितारं जनकम् (अहे) हे महाहिंसक (तव) (तेषाम् तेषाम्) तेषामेव (उ) निश्चयेन (तृह्यमाणानाम्) हिंस्यमानानाम् (कः स्वित्) (असत्) भवेत् (रसः) पराक्रमः ॥

१९ सं हि

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

सं हि शी॒र्षाण्यग्र॑भं पौञ्जि॒ष्ठ इ॑व॒ कर्व॑रम्।
सिन्धो॒र्मध्यं॑ प॒रेत्य॒ व्य᳡निज॒महे॑र्वि॒षम् ॥

१९ सं हि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Since I have grasped together their heads, as a fisherman the
    kárvara; having gone away to the middle of the river, I have washed
    out the snake’s poison.
Notes

The mss. do not in general distinguish ṣṭ and ṣṭh, and pāuñjiṣṭa
would be equally correct here. Ppp. reads pāuñjiṣṭhī ’va.

Griffith

Their heads have I seized firmly as a fisher grasps the spotted prey, Waded half through the stream and washed the poison of the serpents off.

पदपाठः

सम्। हि। शी॒र्षाणि॑। अग्र॑भम्। पौ॒ञ्जि॒ष्ठःऽइ॑व। कर्व॑रम्। सिन्धोः॑। मध्य॑म्। प॒रा॒ऽइत्य॑। वि। अ॒नि॒ज॒म्। अहेः॑। वि॒षम्। ४.१९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • अनुष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (हि) क्योंकि [साँपों के] (शीर्षाणि) शिरों को (सम् अग्रभम्) मैंने पकड़ लिया है, (पौञ्जिष्ठः इव) जैसे महा ओजस्वी पुरुष (कर्वरम्) व्याघ्र को [पकड़ लेता है]। (सिन्धोः) नदी के (मध्यम्) मध्य में (परेत्य) दूर जाकर (अहेः) महाहिंसक [साँप] के (विषम्) विष को (वि अनिजम्) मैंने धो डाला है ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे पराक्रमी मनुष्य व्याघ्र आदि को पकड़ लेता है, वैसे ही बलवान् गुणवान् पुरुष उपद्रवियों की दुष्टता को इस प्रकार नष्ट कर दे, जैसे मल आदि को नदी में बहा देते हैं ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १९−(सम्) सम्यक् (हि) यस्मात् कारणात् (शीर्षाणि) मस्तकानि (अग्रभम्) अग्रहम्। अग्रहीषम् (पौञ्जिष्ठः) प्र−ओजिष्ठः प्र−ओजस्वी-इष्ठन्। विन्मतोर्लुक्। पा० ५।३।६५। विनो लुक् छान्दसं रूपम्। ओजिष्ठः। पराक्रमितमः (इव) यथा (कर्वरम्) कॄगृशॄवृञ्चतिभ्यः ष्वरच्। उ० २।१२१। कॄ क्षेपे हिंसायां च यद्वा कृञ् हिंसायाम्−ष्वरच्। हिंसकम्। व्याघ्रम्। राक्षसम् (सिन्धोः) नद्याः (मध्यम्) (परेत्य) दूरं गत्वा (वि) विविधम् (अनिजम्) णिजिर् शौचपोषणयोः−लुङ् (अहेः) म० १। सर्पस्य (विषम्) ॥

२० अहीनां सर्वेषाम्

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अही॑नां॒ सर्वे॑षां वि॒षं परा॑ वहन्तु सिन्धवः।
ह॒तास्तिर॑श्चिराजयो॒ निपि॑ष्टासः॒ पृदा॑कवः ॥

२० अहीनां सर्वेषाम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The poison of all snakes let the rivers carry away; slain [are]
    the cross-lined ones, crushed down the pṛ́dākus.
Notes
Griffith

Let the floods hurry on and bear the poison of all snakes afar. Tiraschirajis have been slain and vipers crushed and brayed to bits.

पदपाठः

अही॑नाम्। सर्वे॑षाम्। वि॒षम्। परा॑। व॒ह॒न्तु॒। सिन्ध॑वः। ह॒ताः। तिर॑श्चिऽराजयः। निऽपि॑ष्टासः। पृदा॑कवः। ४.२०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • अनुष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सिन्धवः) नदियाँ (सर्वेषाम्) सब (अहीनाम्) महाहिंसक [साँपों] के (विषम्) विष को (परा वहन्तु) दूर बहा ले जावें (तिरश्चिराजयः) तिरछी धारीवाले, (पृदाकवः) फुँसकारनेवाले साँप (हताः) मार डाले गये और (निपिष्टासः) कुचिल डाले गये [हों] ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सर्पसमान दुःखदायी दुर्गुणों को ऐसा नष्ट करे, जैसे मल आदि को पानी में बहा देते हैं ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २०−(अहीनाम्) म० १। सर्पाणाम् (सर्वेषाम्) (विषम्) (परा) दूरे (वहन्तु) नयन्तु (सिन्धवः) नद्यः। अन्यत् पूर्ववत्−म० १३ ॥

२१ ओषधीनामहं वृण

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ओष॑धीनाम॒हं वृ॑ण उ॒र्वरी॑रिव साधु॒या।
नया॒म्यर्व॑तीरि॒वाहे॑ नि॒रैतु॑ ते वि॒षम् ॥

२१ ओषधीनामहं वृण ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. I choose as it were the filaments of herbs successfully; I conduct
    as it were mares; O snake, let thy poison come out.
Notes

Apparently processes analogous to that of extracting the poison are
referred to. The pada-division sādhu॰yā́ is prescribed by Prāt. iv.
30. There seems to be no reason why the Anukr. should call the verse
kakummatī.

Griffith

As from the salutary plants I deftly pick the fibres out, And guide them skilfully like mares, so let thy venom, Snake! depart,

पदपाठः

ओष॑धीनाम्। अ॒हम्। वृ॒णे॒। उ॒र्वरीः॑ऽइव। सा॒धु॒ऽया। नया॑मि। अर्व॑तीःऽइव। अहे॑। निः॒ऽऐतु॑। ते॒। वि॒षम्। ४.२१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • ककुम्मत्यनुष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ओषधीनाम्) ओषधियों में से (उर्वरीः इव) बड़ों को मिलने योग्य [ओषधियों] को (साधुया) योग्यता से (अहम्) मैं (वृणे) अङ्गीकार करता हूँ। और (अर्वतीः इव) बड़ी बुद्धिमती [स्त्रियों] के समान (नयामि) मैं लाता हूँ, (अहे) हे महाहिंसक [साँप !] (ते विषम्) तेरा विष (निरैतु) निकल जावे ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वैद्य लोग रोगनिवृत्ति के लिये उत्तम ओषधियों को ऐसे आदर से ग्रहण करें, जैसे विद्वान् गुणवती बुद्धिमती स्त्रियों का मान करते हैं ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २१−(ओषधीनाम्) (अहम्) (वृणे) अङ्गीकरोमि (उर्वरीः) उरु+ऋ गतिप्रापणयोः-अच्, ङीप्। उरुभिर्महद्भिः प्रापणीया ओषधीः (इव) पादपूरणः (साधुया) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। विभक्तेर्याजादेशः। साधुना धर्मेण सह (नयामि) प्रापयामि (अर्वतीः) अ० ६।९२।२। ऋ गतिप्रापणयोः-वनिप्। अर्वणस्त्रसावनञः। पा० ६।४।१२७। इति तृ, उगित्वाद् ङीप् बुद्धिमतीः स्त्रीः। अर्वतीः प्रशस्तबुद्धिमत्यः कन्याः-दयानन्दभाष्ये, ऋ० १, ३ (इव) यथा (अहे) हे सर्प (निरैतु) बहिरागच्छतु (ते) तव ॥

२२ यदग्नौ सूर्ये

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यद॒ग्नौ सूर्ये॑ वि॒षं पृ॑थि॒व्यामोष॑धीषु॒ यत्।
का॑न्दावि॒षं क॒नक्न॑कं नि॒रैत्वैतु॑ ते वि॒षम् ॥

२२ यदग्नौ सूर्ये ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What poison is in fire, in the sun, what in the earth, in herbs,
    kāndā-poison, kanáknaka—let thy poison come out; let it come.
Notes

Ppp. has karikradam ⌊cf. vs. 13⌋ instead of kanaknakam, and at the
end vahī ⌊intending ahe?⌋ instead of viṣam; and it puts next our
vs. 25.

Griffith

All poison that the sun and fire, all that the earth and plants contain, Poison of most effectual power–let all thy venom pass away.

पदपाठः

यत्। अ॒ग्नौ। सूर्ये॑। वि॒षम्। पृ॒थि॒व्याम्। ओष॑धीषु। यत्। का॒न्दा॒ऽवि॒षम्। क॒नक्न॑कम्। निः॒ऽऐतु॑। आ। ए॒तु॒। ते॒। वि॒षम्। ४.२२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • अनुष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे सर्प !] (यत् विषम्) जो विष (अग्नौ) अग्नि में, (सूर्ये) सूर्य में, (पृथिव्याम्) पृथिवी में, और (यत्) जो (ओषधीषु) ओषधियों [अन्न आदि पदार्थों] में है। (कान्दाविषम्) मेघ के उत्पन्न [ओषधियों] में व्यापक, (कनक्नकम्) गति [उद्योग] नाशक (ते विषम्) तेरा विष (निरैतु) निकल जावे, (आ एतु) [निकल] आवे ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि अग्नि आदि पदार्थों में अति वृद्धि वा अति न्यूनता के कारण सर्प के विष के समान रोगकारक क्रिया को त्याग कर विचारपूर्वक समता ग्रहण करके स्वस्थ रहें ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २२−(कान्दाविषम्) अब्दादयश्च। उ० ४।९८। कनी दीप्तिकान्तिगतिषु-द प्रत्ययः। कन्दो मेघः। तस्यापत्यम्। पा० ४।१।९२। अण्, टाप् कन्दात् मेघात् जातासु ओषधीषु विषं प्रवेशो यस्य तत् (कनक्नकम्) कनी दीप्त्यादिषु अच्+क्नथ वधे−ड, स्वार्थे-कन्। गतिनाशकम्। उद्योगवर्जकम् (ऐतु) आगच्छतु। अन्यत् सुगमं गतं च ॥

२३ ये अग्निजा

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ये अ॑ग्नि॒जा ओ॑षधि॒जा अही॑नां॒ ये अ॑प्सु॒जा वि॒द्युत॑ आबभू॒वुः।
येषां॑ जा॒तानि॑ बहु॒धा म॒हान्ति॒ तेभ्यः॑ स॒र्पेभ्यो॒ नम॑सा विधेम ॥

२३ ये अग्निजा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Whichever of the snakes [are] fire-born, herb-born, whichever came
    hither (ā-bhū) [as] water-born lightnings; those of which the kinds
    are variously great—to those serpents would we pay worship with
    reverence.
Notes

Ppp. reads, for b etc., ye abhrajā vidyutā ”babhūvuḥ: tāsāṁ jātāni
bahudhā bahūni tebhyaḥ sarvebhyo
etc.

Griffith

Serpents which fire or plants have generated, those which have sprung from waters or the lightning, Whose mighty broods are found in many places, these serpents we will reverently worship.

पदपाठः

ये। अ॒ग्निः॒ऽजाः। ओ॒ष॒धि॒ऽजाः। अही॑नाम्। ये। अ॒प्सु॒ऽजाः। वि॒ऽद्युतः॑। आ॒ऽब॒भू॒वुः। येषा॑म्। जा॒तानि॑। ब॒हु॒ऽधा। म॒हान्ति॑। तेभ्यः॑। स॒र्पेभ्यः॑। नम॑सा। वि॒धे॒म॒। ४.२३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • त्रिष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अहीनाम्) सर्पों में से (ये) जो (अग्निजाः) अग्नि में उत्पन्न, (ओषधिजाः) ओषधियों [अन्न आदि में उत्पन्न], (ये) जो (अप्सुजाः) जल में उत्पन्न होकर (विद्युतः) बिजुलियों [समान] (आबभूवुः) सब ओर हुए हैं। (येषाम्) जिनके (जातानि) समूह (बहुधा) बहुधा [नाना प्रकार से] (महान्ति) बड़े-बड़े हैं, (तेभ्यः सर्पेभ्यः) उन सर्पों के [नाश के] लिये (नमसा) वज्र से (विधेम) हम शासन करें ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य अग्नि आदि पदार्थों में से सर्परूप हानिकारक अवगुणों का नाश करके स्वास्थ्य बढ़ावें ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २३−(ये) अहयः (अग्निजाः) अग्नौ जाताः (ओषधिजाः) ओषधिषु जाताः (अहीनाम्) सर्पाणां मध्ये (ये) (अप्सुजाः) जलजाताः (विद्युतः) तडितो यथा (आबभूवुः) समन्तात्प्रादुर्बभूवुः (येषाम्) (जातानि) वृन्दानि (बहुधा) नानाप्रकारेण (महान्ति) विशालानि (तेभ्यः) (सर्पेभ्यः) सर्पान् नाशयितुम् (नमसा) वज्रेण (विधेम) विध विधाने=शासने-लिङ्। शासनं कुर्याम ॥

२४ तौदी नामासि

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तौदी॒ नामा॑सि क॒न्या᳡ घृ॒ताची॒ नाम॒ वा अ॑सि।
अ॑धस्प॒देन॑ ते प॒दमा द॑दे विष॒दूष॑णम् ॥

२४ तौदी नामासि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thou art a girl, tāúdī by name; verily thou art by name ghee-like
    (ghṛtā́cī); I take beneath thy poison-spoiling track.
Notes

That is, possibly, ‘I put it beneath me, walk in it.’ The obscure
tāudī (ultimately from tud ’thrust’?) is read also by Ppp., which
combines vā ’si in b, and has the easier reading pados for
padam in c.

Griffith

Thou art a maid called Taudi, or Ghritachi is thy name. Thy place; Is underneath my foot. I take the poison-killing remedy.

पदपाठः

तौदी॑। नाम॑। अ॒सि॒। क॒न्या᳡। घृ॒ताची॑। नाम॑। वै। अ॒सि॒। अ॒धः॒ऽप॒देन॑। ते॒। प॒दम्। आ। द॒दे॒। वि॒ष॒ऽदूष॑णम्। ४.२४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • अनुष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तौदी) वृद्धि [बलवृद्धि] वाली (कन्या) कामनायोग्य [कन्या अर्थात् गुआरपाठा] (नाम) नामवाली (असि) तू है, (घृताची) घृत [समान रस] पहुँचानेवाली (नाम) नामवाली (वै) ही (असि) तू है। (अधस्पदेन) [शत्रु के] नीचे पद के कारण (ते) तेरे (विषदूषणम्) विषखण्डक (पदम्) पद को (आ ददे) मैं ग्रहण करता हूँ ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - गुआरपाठा ओषधि पुष्टिकारक और विषनाशक है, टिप्पणी मन्त्र १४ देखो। मनुष्य गुआरपाठे आदि ओषधियों द्वारा रोगों का नाश करके स्वस्थ रहें ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २४−(तौदी) अब्दादयश्च। उ० ४।९८। तु गतिवृद्ध्योः-द प्रत्ययः। तोदो वृद्धिः, अण्, ङीप्। तोदेन बलवृद्ध्या युक्ता (नाम) नाम्ना (असि) (कन्या) अ० १।१४।२। कनी दीप्तिकान्तिगतिषु-यक्। कमनीया। कुमारिका। ओषधिविशेषः (घृताची) घृतं रसमञ्चयति प्रापयति सा (नाम) (वै) एव (अधस्पदेन) शत्रूणां नीचपदेन (ते) तव (पदम्) प्रापणीयं गुणम् (आ ददे) गृह्णामि (विषदूषणम्) विषनाशकम् ॥

२५ अङ्गादङ्गात्प्र च्यावय

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अङ्गा॑दङ्गा॒त्प्र च्या॑वय॒ हृद॑यं॒ परि॑ वर्जय।
अधा॑ वि॒षस्य॒ यत्तेजो॑ऽवा॒चीनं॒ तदे॑तु ते ॥

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Whitney
Translation
  1. Remove thou [it] from every limb; make [it] avoid the heart;
    then, what keenness (téjas) the poison has, let that go downward for
    thee.
Notes

Ppp. reads hṛdayo in b, and combines tejo av- in c, d. The
verse is quoted in Kāuś. 32. 23.

Griffith

From every member drive away the venom, and avoid the heart. Then let the poison’s burning heat pass downward and away- from thee.

पदपाठः

अङ्गा॑त्ऽअङ्गात्। प्र। च्य॒व॒य॒। हृद॑यम्। परि॑। व॒र्ज॒य॒। अध॑। वि॒षस्य॑। यत्। तेजः॑। अ॒वा॒चीन॑म्। तत्। ए॒तु॒। ते॒। ४.२५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • अनुष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे ओषधि !] (अङ्गादङ्गात्) अङ्ग-अङ्ग से [विष को] (प्र च्यवय) सरका दे और (हृदयम्) हृदय को [उस से] (परि वर्जय) त्याग करा दे। (अध) फिर (विषस्य) विष का (यत् तेजः) जो तेज [प्रचण्डता] है, (तत्) वह (ते) तेरे लिये (अवाचीनम्) नीचे (एतु) जावे ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सब रोगों को ओषधि द्वारा शान्त करके प्रसन्न रहें ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २५−(अङ्गादङ्गात्) (प्र च्यवय) बहिर्गमय (हृदयम्) (परि) सर्वतः (वर्जय) रोधय (अध) अथ (विषस्य) (यत्) (तेजः) तीक्ष्णता (अवाचीनम्) अधोमुखं गतम् (तत्) (एतु) गच्छतु (ते) तुभ्यम् ॥

२६ आरे अभूद्विषमरौद्विषे

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आ॒रे अ॑भूद्वि॒षम॑रौद्वि॒षे वि॒षम॑प्रा॒गपि॑।
अ॒ग्निर्वि॒षमहे॒र्निर॑धा॒त्सोमो॒ निर॑णयीत्।
दं॒ष्टार॒मन्व॑गाद्वि॒षमहि॑रमृत ॥

२६ आरे अभूद्विषमरौद्विषे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He (it?) hath come to be afar; he hath obstructed the poison; he
    hath mixed poison in poison; Agni hath put out the snake’s poison; Soma
    hath conducted [it] out; the poison hath gone after the biter; the
    snake hath died.
Notes

Ppp. reads (corruptly) āre ‘bhūd viṣam aro viṣe viṣam aprayāg api:
agnir aher nir adhād viṣam somo anṛnāiḥ dviṣam ahīr amṛtaḥ
. Kāuś.
prescribes the use of the verse in 32. 24. ⌊With the ideas of b and
e, cf. vii. 88. 1. With reference to the auto-toxic action of
snake-venoms, see note to v. 13. 4.⌋ ⌊Here ends the second anuvāka,
with 2 hymns and 51 verses. The quoted Anukr. says “indrasya
prathamaḥ
” (see vs. i).⌋

Griffith

The bane hath fled afar. It wept, and asked the poison how it fared.

पदपाठः

आ॒रे। अ॒भू॒त्। वि॒षम्। अ॒रौ॒त्। वि॒षे। वि॒षम्। अ॒प्रा॒क्। अपि॑। अ॒ग्निः। वि॒षम्। अहेः॑। निः। अ॒धा॒त्। सोमः॑। निः। अ॒न॒यी॒त्। दं॒ष्टार॑म्। अनु॑। अ॒गा॒त्। वि॒षम्। अहिः॑। अ॒मृ॒तः॒। ४.२६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • तक्षकः
  • गरुत्मान्
  • त्र्यवसाना षट्पदा बृहतीगर्भा ककुम्मती भुरिक्त्रिष्टुप्
  • सर्पविषदूरीकरण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - वह [विष] (आरे) दूर (अभूत्) हुआ है, [क्योंकि] उस [वैद्य] ने (विषम्) विष को (अरौत्) रोक दिया है, और (विषे) विष में (विषम्) विष को (अपि) भी (अप्राक्) मिला दिया है। (सोमः) ऐश्वर्यवान् (अग्निः) ज्ञानी [पुरुष] ने (अहेः) महाहिंसक [साँप के] (विषम्) विष को (निः अधात्) निकाल लिया है और (निः अनयीत्) बाहिर पहुँचा दिया है। (विषम्) विष (दंष्टारम् अनु) काटनेवाले के साथ (अगात्) गया है और (अहिः) साँप (अमृत) मर गया है ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का मिलान अ० ७।८८।१। से भी करो। जैसे सद्वैद्य विष ओषधि द्वारा विषरोग को हटाता है, वैसे ही विद्वान् एक इन्द्रिय को वश में करके दूसरे इन्द्रियदोष को मिटावे ॥२६॥ इति द्वितीयोऽनुवाकः ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २६−(आरे) दूरे-निघ० ३।२६। (अभूत्) (विषम्) (अरौत्) रुधिर् आवरणे-छान्दसो लुङ्। अरुधत्। अरौत्सीत् (विषे) (विषम्) (अप्राक्) पृची सम्पर्के लुङ्। अपर्चीत् (अपि) एव (अग्निः) ज्ञानवान् पुरुषः (विषम्) (अहेः) सर्पस्य (निरधात्) बहिर्धृतवान् (निर् अनयीत्) णीञ् प्रापणे। अनैषीत्। प्रापितवान् (दंष्टारम्) दंशकं सर्पम् (अनु) अनुसृत्य (अगात्) अगच्छत् (विषम्) (अहिः) (अमृत) मृङ् प्राणत्यागे−लुङ्। मृतवान् ॥