००१ कृत्यादूषणम् ...{Loading}...
Whitney subject
- Against witchcraft and its practisers.
VH anukramaṇī
कृत्यादूषणम्।
१-३२ प्रत्यङ्गिरसः। कृत्यादूषणम्। अनुष्टुप्, १ महाबृहती, २ विराण्नाम गायत्री, ९ पथ्यापङ्क्तिः, १२ पङ्क्तिः, १३ उरोबृहती, १५ चतुष्पदा विराड्-जगती, १७, २०, २४ प्रस्तारपङ्क्तिः (२० विराट्), १६, १८ त्रिष्टुप्, १९ चतुष्पदा जगती, २२ एकावसाना द्विपदार्ची उष्णिक्, २३ त्रिपदा भुरिग्विषमा गायत्री,२८ त्रिपदा गायत्री २९ मध्ये ज्योतिष्मती जगती, ३२ द्व्यनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदातिजगती।
Whitney anukramaṇī
[Pratyan̄girasa.—dvātriṅśat. kṛtyādūṣaṇadevatyam. ānuṣṭubham: 1. mahābṛhatī; 2. virāṇ nāma gāyatrī; 9. pathyāpan̄kti; 12. pan̄kti; 13. urobṛhatī; 15. 4-p. virāḍ jagatī; 17, 20, 24. prastārapan̄kti (20. virāj); 16, 18. triṣṭubh; 19. 4-p. jagatī; 22. 1-av. 2-p. ārcy uṣṇih; 23. 3-p. bhurig viṣamā gāyatrī; 28. 3-p. gāyatrī; 29. madhyejyotiṣmatī jagatī; 32. dvyanuṣṭubgarbhā 5-p. atijagatī.]
Whitney
Comment
Found also in Pāipp. xvi. The hymn (vs. 1) is quoted in Kāuś. 39. 7, with several others, in a ceremony against witchcraft, and several of its verses or parts of verses elsewhere. The Vāit. uses only one half-verse (21 c, d).
Translations
Translated: Ludwig, p. 520; Henry, i, 39; Griffith, ii. 1; Bloomfield, 72, 602.
Griffith
A charm against witchcraft
०१ यां कल्पयन्ति
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यां क॒ल्पय॑न्ति वह॒तौ व॒धूमि॑व वि॒श्वरू॑पां॒ हस्त॑कृतां चिकि॒त्सवः॑।
सारादे॒त्वप॑ नुदाम एनाम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यां क॒ल्पय॑न्ति वह॒तौ व॒धूमि॑व वि॒श्वरू॑पां॒ हस्त॑कृतां चिकि॒त्सवः॑।
सारादे॒त्वप॑ नुदाम एनाम् ॥
०१ यां कल्पयन्ति ...{Loading}...
Whitney
Translation
- She whom the adepts {cikitsú) prepare, all-formed, hand-made, like
a bride at a wedding—let her go far off; we push her away.
Notes
‘She,’ because kṛtyā ‘witchcraft’ is feminine. The name, mahābṛhatī,
given to the verse, is improperly applied, ⌊if we understand it as
defined by RV. Prāt. xvi. 48: here is meant rather that defined as of
three jāgata pādas (12 + 12: 11) at Ind. Stud. viii. 243⌋.
Griffith
Afar let her depart: away we drive her whom, made with hands, all-beautiful, Skilled men prepare and fashion like a bride amid her nuptial train.
पदपाठः
याम्। क॒ल्पय॑न्ति। व॒ह॒तौ। व॒धूम्ऽइ॑व। वि॒श्वऽरू॑पाम्। हस्त॑ऽकृताम्। चि॒कि॒त्सवः॑। सा। आ॒रात्। ए॒तु॒। अप॑। नु॒दा॒मः॒। ए॒ना॒म्। १.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- महाबृहती
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (याम्) जिस (विश्वरूपाम्) अनेक रूपवाली, (हस्तकृताम्) हाथों से की हुई [हिंसा क्रिया] को (चिकित्सवः) संशय करनेवाले लोग (कल्पयन्ति) बनाते हैं, (इव) जैसे (वधूम्) वधू को (वहतौ) विवाह में, (सा) वह (आरात्) दूर (एतु) चली जावे, (एनाम्) इसको (अपनुदामः) हम हटाते हैं ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य छल करके देखने में सुखद और भीतर से दुःखदायी काम करें, राजा उसका यथावत् प्रतीकार करे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(याम्) कृत्याम्। हिंसाक्रियाम् (कल्पयन्ति) रचयन्ति। संस्कुर्वन्ति (वहतौ) अ० ३।३१।५। वह-चतु। विवाहे (वधूम्) अ० १।१।२। नवोढां जायाम् (इव) यथा (विश्वरूपाम्) अनेकविधाम् (हस्तकृताम्) हस्तेन निष्पादिताम् (चिकित्सवः) कित संशये रोगापनयने च−स्वार्थे सन्, उ प्रत्ययः। संशयशीलाः (सा) हिंसाक्रिया (आरात्) दूरे (एतु) गच्छतु (अप नुदामः) दूरे प्रेरयामः (एनाम्) हिंसाक्रियाम् ॥
०२ शीर्षण्वती नस्वती
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शी॑र्ष॒ण्वती॑ न॒स्वती॑ क॒र्णिनी॑ कृत्या॒कृता॒ संभृ॑ता वि॒श्वरू॑पा।
सारादे॒त्वप॑ नुदाम एनाम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
शी॑र्ष॒ण्वती॑ न॒स्वती॑ क॒र्णिनी॑ कृत्या॒कृता॒ संभृ॑ता वि॒श्वरू॑पा।
सारादे॒त्वप॑ नुदाम एनाम् ॥
०२ शीर्षण्वती नस्वती ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Having a head, having a nose, having ears, put together, all-formed,
by the witchcraft-maker—let her go far off; we push her away.
Notes
The addition of a ca at the end of a would rectify the meter, and
justify the Anukr. The pada-reading śīrṣaṇ॰vátī is by Prāt. iv. 99,
and the word is quoted there in the comment as an example. Ppp. puts the
adjectives in the accus., and reads, instead of our c: pratyak pra
hiṇmasi yaś cakāra tum ṛcchatu: cf. vs. 5 c and v. 14. 11 c.
Griffith
Complete, with head and nose and ears, all-beauteous, wrought with magic skill Afar let her depart: away we drive her.
पदपाठः
शी॒र्ष॒ण्ऽवती॑। न॒स्वती॑। क॒र्णिनी॑। कृ॒त्या॒ऽकृता॑। सम्ऽभृ॑ता। वि॒श्वऽरू॑पा। सा। आ॒रात्। ए॒तु॒। अप॑। नु॒दा॒मः॒। ए॒ना॒म्। १.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- विराड्गायत्री
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (शीर्षण्वती) शिरसम्बन्धी, (नस्वती) नाकसम्बन्धी, (कर्णिनी) कानसम्बन्धी [जो हिंसा क्रिया] (कृत्याकृता) हिंसा करनेवाले पुरुष द्वारा (संभृता) साधी गई (विश्वरूपा) अनेक रूपवाली है, (सा) वह (आरात्) दूर (एतु) चली जावे, (एनाम्) इसको (अप नुदामः) हम हटाते हैं ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - प्रजा के शरीरों को कष्ट देनेवाले उत्पातियों को यथावत् दण्ड दिया जावे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(शीर्षण्वती) तदस्यास्त्यस्मिन्निति मतुप्। पा० ५।२।९४। शिरःसम्बन्धिनी (नस्वती) नासासम्बन्धिनी (कर्णिनी) श्रोत्रसंबन्धिनी हिंसा (कृत्याकृता) अ० ४।९।५। कृञ् हिंसायाम्-क्यप्, तुक्+डुकृञ् करणे-क्विप्, तुक्। हिंसाकारकेण (संभृता) निष्पादिता (विश्वरूपा) अनेकविधा। इतरत् पूर्ववत्−म० १ ॥
०३ शूद्रकृता राजकृता
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
शू॒द्रकृ॑ता॒ राज॑कृता॒ स्त्रीकृ॑ता ब्र॒ह्मभिः॑ कृ॒ता।
जा॒या पत्या॑ नु॒त्तेव॑ क॒र्तारं॒ बन्ध्वृ॑च्छतु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
शू॒द्रकृ॑ता॒ राज॑कृता॒ स्त्रीकृ॑ता ब्र॒ह्मभिः॑ कृ॒ता।
जा॒या पत्या॑ नु॒त्तेव॑ क॒र्तारं॒ बन्ध्वृ॑च्छतु ॥
०३ शूद्रकृता राजकृता ...{Loading}...
Whitney
Translation
- śūdra-made, king-made, woman-made, made by Brahmans (brahmán), like
a wife expelled (nuttá) by her husband, let her go to her maker, as
connection.
Notes
Either ‘as her’ or ‘as his connection’; Ppp. decides for the former,
reading bandhum ⌊for our bándhu⌋. ⌊W’s alternative seems to be:
bándhum must be in apposition with kartā́ram; but bándhv (p.
bándhu) must be a neuter (as at v. 13. 7) and so in apposition with
the subject-nominative, kṛtyā́ understood.⌋
Griffith
Made by a Sidra or a Prince, by priests or women let her go. Back to her maker as her kin, like a dame banished by her lord.
पदपाठः
शूद्रऽकृ॑ता। राज॑ऽकृता। स्त्रीऽकृ॑ता। ब्र॒ह्मऽभिः॑। कृ॒ता। जा॒या। पत्या॑। नु॒त्ताऽइ॑व। क॒र्तार॑म्। बन्धु॑। ऋ॒च्छ॒तु॒। १.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- अनुष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (शूद्रकृता) शूद्रों के लिये की हुई, (राजकृता) राजाओं के लिये की हुई, (स्त्रीकृता) स्त्रियों के लिये की हुई, (ब्रह्मभिः=ब्रह्मभ्यः) ब्राह्मणों के लिये (कृता) की हुई [हिंसा क्रिया] (कर्तारम्) हिंसक पुरुष को (बन्धु) बन्धनसमान (ऋच्छतु) चली जावे, (इव) जैसे (पत्या) पति करके (नुत्ता) दूर की गई (जाया) पत्नी ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो दुष्कर्मी शूद्र, क्षत्रिय, स्त्री और विद्वानों पर अत्याचार करें, राजा उनको इस प्रकार बन्धन में करे, जैसे पति से निकाली गयी व्यभिचारिणी स्त्री बन्धन में की जाती है ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(शूद्रकृता) शूद्राय कृता (राजकृता) राजभ्यो निष्पादिता (स्त्रीकृता) स्त्रीभ्यः साधिता (ब्रह्मभिः) सुपां सुपो भवन्ति। वा० पा० ७।१।३९। चतुर्थ्यर्थे तृतीया। ब्रह्मभ्यः वेदज्ञानिभ्यः (कृता) (जाया) दुष्टा भार्या (पत्या) स्वामिना (नुत्ता) दूरीकृता (इव) यथा (कर्तारम्) कृञ् हिंसायाम्−तृच्। हिंसकम् (बन्धु) बन्धनं यथा (ऋच्छतु) गच्छतु ॥
०४ अनयाहमोषध्या सर्वाः
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अ॒नया॒हमोष॑ध्या॒ सर्वाः॑ कृ॒त्या अ॑दूदुषम्।
यां क्षेत्रे॑ च॒क्रुर्यां गोषु॒ यां वा॑ ते॒ पुरु॑षेषु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒नया॒हमोष॑ध्या॒ सर्वाः॑ कृ॒त्या अ॑दूदुषम्।
यां क्षेत्रे॑ च॒क्रुर्यां गोषु॒ यां वा॑ ते॒ पुरु॑षेषु ॥
०४ अनयाहमोषध्या सर्वाः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- With this herb have I spoiled all witchcrafts—what one they have made
in the field, what in the kine, or what in thy men.
Notes
This is a repetition of iv. 18. 5, above. The Anukr. here, as there,
takes no notice of the defective last pāda.
Griffith
I with this salutary herb have ruined all their magic arts, The spell which they have cast upon thy field, thy cattle, or thy men.
पदपाठः
अ॒नया॑। अ॒हम्। ओष॑ध्या। सर्वाः॑। कृ॒त्वाः। अ॒दू॒दु॒ष॒म्। याम्। क्षेत्रे॑। च॒क्रुः। याम्। गोषु॑। याम्। वा॒। ते॒। पुरु॑षेषु। १.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- अनुष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अहम्) मैंने (अनया ओषध्या) इस ओषधिरूप [तापनाशक तुझ राजा] के साथ (सर्वाः कृत्याः) सब हिंसाओं को (अदूदुषम्) खण्डित कर दिया है, (याम्) जिस [हिंसा] को (क्षेत्रे) खेत में, अथवा (याम्) जिसको (गोषु) गौओं में (वा) अथवा (याम्) जिसको (ते) तेरे (पुरुषेषु) पुरुषों में (चक्रुः) उन लोगों ने किया था ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो दुष्ट लोग प्रजा को किसी प्रकार से सतावें, प्रजा गण और राजपुरुष मिलकर दुष्टों का नाश करें ॥४॥ यह मन्त्र आचुका है-अ० ४।१८।५ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(कृत्याः) कृञ् हिंसायाम्-क्यप् तुक् च। हिंसाः। अन्यद् व्याख्यातम् अ० ४।१८।५ ॥
०५ अघमस्त्वघकृते शपथः
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अ॒घम॑स्त्वघ॒कृते॑ श॒पथः॑ शपथीय॒ते।
प्र॒त्यक्प्र॑ति॒प्रहि॑ण्मो॒ यथा॑ कृत्या॒कृतं॒ हन॑त् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒घम॑स्त्वघ॒कृते॑ श॒पथः॑ शपथीय॒ते।
प्र॒त्यक्प्र॑ति॒प्रहि॑ण्मो॒ यथा॑ कृत्या॒कृतं॒ हन॑त् ॥
०५ अघमस्त्वघकृते शपथः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Let evil be to the evil-doer, a curse to the curser; backward we send
[her] forth back, that she may slay the witchcraft-maker.
Notes
Ppp. reads for a kṛtyās santu kṛtyākṛte, and, for c, d
pratyak pratipravartaya yaś cakāra turn ṛcchatu. To read in our c
hiṇmasi (as Ppp. in vs. 2 c) would rectify the meter, of whose
irregularity the Anukr. takes no notice. The pada-reading
prati॰prahiṇmaḥ is by Prāt. iv. 95; the word is quoted there in the
comment as example.
Griffith
Ill fall on him who doeth ill, on him who curseth fall the curse! We drive her back that she may slay the man who wrought the witchery.
पदपाठः
अ॒घम्। अ॒स्तु॒। अ॒घऽकृते॑। श॒पथः॑। श॒प॒थि॒ऽय॒ते। प्र॒त्यक्। प्र॒ति॒ऽप्रहि॑ण्मः। यथा॑। कृ॒त्या॒ऽकृत॑म्। हनत्। १.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- अनुष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अघम्) बुराई (अघकृते) बुराई करनेवाले को और (शपथः) शाप (शपथीयते) शाप करनेवाले को (अस्तु) होवे। [उस दुष्ट कर्म को] (प्रत्यक्) पीछे की ओर (प्रतिप्रहिण्मः) हम हटा देते हैं (यथा) जिस से [वह दुष्ट कर्म] (कृत्याकृतम्) हिंसा करनेवाले को (हनत्) मारे ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - दुष्कर्मी कटुभाषी दुष्ट को यथानीति दण्ड दिया जावे ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(अघम्) पापम् (अस्तु) (अघकृते) पापकारिणे (शपथः) शापः। दुर्वचनम् (शपथीयते) शपथ-क्यच्, शतृ। शापकारिणे (प्रत्यक्) प्रतिकूलगमनम् (प्रतिप्रहिण्मः) हि गतिवृद्ध्योः। प्रतिकूलं गमयामः (यथा) येन प्रकारेण (कृत्याकृतम्) हिंसाकारिणम् (हनत्) हन्यात् ॥
०६ प्रतीचीन आङ्गिरसोऽध्यक्षो
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प्र॑ती॒चीन॑ आङ्गिर॒सोऽध्य॑क्षो नः पु॒रोहि॑तः।
प्र॒तीचीः॑ कृ॒त्या आ॒कृत्या॒मून्कृ॑त्या॒कृतो॑ जहि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
प्र॑ती॒चीन॑ आङ्गिर॒सोऽध्य॑क्षो नः पु॒रोहि॑तः।
प्र॒तीचीः॑ कृ॒त्या आ॒कृत्या॒मून्कृ॑त्या॒कृतो॑ जहि ॥
०६ प्रतीचीन आङ्गिरसोऽध्यक्षो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Opposed [is] the Ān̄girasa, our appointed (puróhita) overseer; do
thou, having turned the witchcrafts in the opposite direction, slay
yonder witchcraft-makers.
Notes
Ppp. is corrupt, mixing up our verses 6 and 7. It combines pratīcīnā
”n̄gi- in 6 a.
Griffith
Against her comes the Angirasa, the Priest whose eye is over us. Turn back all witcheries and slay those practisers of magic arts.
पदपाठः
प्र॒ती॒चीनः॑। अ॒ङ्गि॒र॒सः। अधि॑ऽअक्षः। नः॒। पु॒रःऽहि॑तः। प्र॒तीचीः॑। कृ॒त्याः। आ॒ऽकृत्य॑। अ॒मून्। कृ॒त्या॒ऽकृतः॑। ज॒हि॒। १.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- अनुष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (प्रतीचीनः) प्रत्यक्ष चलनेवाला, (आङ्गिरसः) वेदों का जाननेवाला (नः) हमारा (अध्यक्षः) अध्यक्ष और (पुरोहितः) पुरोहित [अग्रगामी] तू (कृत्याः) हिंसाओं को (प्रतीचीः) प्रतिकूलगति (आकृत्य) सर्वथा करके (अमून्) उन (कृत्याकृतः) हिंसाकारियों को (जहि) मार डाल ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वेदज्ञाता नीतिनिपुण पुरुष दुराचारियों को यथावत् अनुसन्धान करके दण्ड देवे ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(प्रतीचीनः) अ० ४।३२।६। प्रत्यक्षं गच्छन् (आङ्गिरसः) अ० २।१२।४। तदधीते तद्वेद। पा० ४।२।५९। इत्यण्। अङ्गिरसां वेदानां ज्ञाता (अध्यक्षः) अधिपतिः (नः) अस्माकम् (पुरोहितः) अ० ३।१९।१। अग्रेसरः (प्रतीचीः) प्रतिकूलगतीः (कृत्याः) म० ४। हिंसाः (आकृत्य) निष्पाद्य (अमून्) (कृत्याकृतः) म० २। हिंसाकर्तॄन् (जहि) मारय ॥
०७ यस्त्वोवाच परेहीति
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यस्त्वो॒वाच॒ परे॒हीति॑ प्रति॒कूल॑मुदा॒य्य᳡म्।
तं कृ॑त्येऽभि॒निव॑र्तस्व॒ मास्मानि॑च्छो अना॒गसः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यस्त्वो॒वाच॒ परे॒हीति॑ प्रति॒कूल॑मुदा॒य्य᳡म्।
तं कृ॑त्येऽभि॒निव॑र्तस्व॒ मास्मानि॑च्छो अना॒गसः॑ ॥
०७ यस्त्वोवाच परेहीति ...{Loading}...
Whitney
Translation
- He who said to thee “go forth,” against the current, up-stream, him,
O witchcraft, do thou return against; seek not us who are innocent.
Notes
Of this verse is legible in Ppp. udāyyam in b; as for our mss.,
they cannot be relied upon in the least to distinguish pya and yya,
but the majority rather favor udāyyàm, while P. reads -āryyàm, D.
-ājyàm (?), W. -āhyam. Neither word has been found anywhere else,
but doubtless udāpyàm is the true form.
Griffith
Whoever said to thee, Go forth against the foeman up the stream, To him, O Kritya, go thou back. Pursue not us, the sinless ones.
पदपाठः
यः। त्वा॒। उ॒वाच॑। परा॑। इ॒हि॒। इति॑। प्र॒ति॒ऽकूल॑म्। उ॒त्ऽआ॒य्य᳡म्। तम्। कृ॒त्ये॒। अ॒भि॒ऽनिव॑र्तस्व। मा। अ॒स्मान्। इ॒च्छः॒। अ॒ना॒गसः॑। १.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- अनुष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जिस [दुष्ट] ने (त्वा) तुझ से (उवाच) कहा−“(उदाय्यम्) उदय को प्राप्त हुए (प्रतिकूलम्) विरुद्ध पक्षवाले शत्रु को (परा इहि इति) जाकर प्राप्त हो। (कृत्ये) हे हिंसा क्रिया ! (तम्) उसकी ओर (अभिनिवर्तस्व) लौटकर जा, (अस्मान्) हम (अनागसः) निर्दोषियों को (मा इच्छः) मत चाह ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो दुष्ट जन धर्मात्माओं को शत्रु जान कर सतावें, उन्हें पूरा-पूरा दण्ड मिले ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(यः) शत्रुः (त्वा) त्वाम् (उवाच) कथितवान् (परा) दूरे (इहि) प्राप्नुहि (इति) वाक्यसमाप्तौ (प्रतिकूलम्) विरुद्धपक्षवन्तं शत्रुम् (उदाय्यम्) उत्+आय-यत्। उदयं गच्छन्तम् (तम्) शत्रुम् (कृत्ये) म० ४। हे हिंसाक्रिये (अभिनिवर्तस्व) अभितो निवर्त्य प्राप्नुहि (मा इच्छः) मा वाञ्छ (अनागसः) निर्दोषान् ॥
०८ यस्ते परूंषि
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यस्ते॒ परूं॑षि संद॒धौ रथ॑स्येव॒र्भुर्धि॒या।
तं ग॑च्छ॒ तत्र॒ तेऽय॑न॒मज्ञा॑तस्ते॒ऽयं जनः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यस्ते॒ परूं॑षि संद॒धौ रथ॑स्येव॒र्भुर्धि॒या।
तं ग॑च्छ॒ तत्र॒ तेऽय॑न॒मज्ञा॑तस्ते॒ऽयं जनः॑ ॥
०८ यस्ते परूंषि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- He who put together thy joints, as an ṛbhú [those] of a chariot
with skill (dhī́), unto him go thou; there is thy going; this person is
unknown to thee.
Notes
All the saṁhitā-mss. read -va rbhur in b.
Griffith
He who composed thy limbs with thought as a deft joiner builds a car, Go to him: thither lies thy way. This man is all unknown to thee.
पदपाठः
यः। ते॒। परूं॑षि। स॒म्ऽद॒धौ। रथ॑स्यऽइव। ऋ॒भुः। धि॒या। तम्। ग॒च्छ॒। तत्र॑। ते॒। अय॑नम्। अज्ञा॑तः। ते॒। अ॒यम्। जनः॑। १.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- अनुष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे हिंसा क्रिया !] (यः) जिस [शत्रु] ने (ते) तेरे (परूंषि) जोड़ों को (सन्दधौ) जोड़ा था, (इव) जैसे (ऋभुः) बुद्धिमान् [शिल्पी] (रथस्य) रथ के [जोड़ों को] (धिया) अपनी बुद्धि से (तम्) उसको (गच्छ) पहुँच, (तत्र) वहाँ पर (ते) तेरा (अयनम्) घर है, (अयम्) यह (जनः) पुरुष (ते) तेरा (अज्ञातः) अनजान [होवे] ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य प्रपञ्च रचकर प्रजा जनों को गुप्त रीति से सतावें, उन्हें दण्ड दिया जावे ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(यः) शत्रुः (ते) तव (परूंषि) अवयवान् (संदधौ) संयोजितवान् (रथस्य) (इव) (ऋभुः) अ० १।२।३। मेधावी-निघ० ३।१५। शिल्पी (धिया) बुद्ध्या (तम्) शत्रुम् (गच्छ) प्राप्नुहि (तत्र) (ते) तव (अयनम्) गृहम् (अज्ञातः) अपरिचितः (अयम्) (जनः) ॥
०९ ये त्वा
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ये त्वा॑ कृ॒त्वाले॑भि॒रे वि॑द्व॒ला अ॑भिचा॒रिणः॑।
शं॒भ्वी॒३॒॑दं कृ॑त्या॒दूष॑णं प्रतिव॒र्त्म पु॑नःस॒रं तेन॑ त्वा स्नपयामसि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ये त्वा॑ कृ॒त्वाले॑भि॒रे वि॑द्व॒ला अ॑भिचा॒रिणः॑।
शं॒भ्वी॒३॒॑दं कृ॑त्या॒दूष॑णं प्रतिव॒र्त्म पु॑नःस॒रं तेन॑ त्वा स्नपयामसि ॥
०९ ये त्वा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- They who, having made, took hold of thee, cunning sorcerers—this is a
healthful (śambhú) spoiler of witchcraft, counteracting, reverting;
therewith do we bathe thee.
Notes
The address changes, as often elsewhere, from the witchcraft to the
bewitched person. Ppp. reads, in c, vidma for śambhu, and, in
d, pratisaram. Our text ought to read in c śambhv ìdám,
although all the mss. happen to agree here in lengthening the i.
Griffith
The cunning men, the sorcerers who fashioned thee and held thee fast,– This cures and mars their witchery, this, repellent, drives it back the way it came. With this we make thee swim.
पदपाठः
ये। त्वा॒। कृ॒त्वा। आ॒ऽले॒भि॒रे। वि॒द्व॒लाः। अ॒भि॒ऽचा॒रिणः॑। श॒म्ऽभु। इ॒दम्। कृ॒त्या॒ऽदूष॑णम्। प्र॒ति॒ऽव॒र्त्म। पु॒नः॒ऽस॒रम्। तेन॑। त्वा॒। स्न॒प॒या॒म॒सि॒। १.९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- पथ्यापङ्क्तिः
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे हिंसा !] (ये) जिन (विद्वलाः) दुःखदायी, (अभिचारिणः) विरुद्ध आचरणवाले ने (त्वा) तुझे (कृत्वा) बनाकर (आलेभिरे) ग्रहण किया था, (इदम्) यह (शंभु) सुखदायी (कृत्यादूषणम्) हिंसा का खण्डन [उनके लिये] (पुनःसरम्) अवश्य ज्ञान करानेवाला (प्रतिवर्त्म) प्रत्यक्ष मार्ग है। (तेन) उसी [कारण] से (त्वा) तुझे (स्नपयामसि) हम शुद्ध करते हैं ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा दुराचारियों को ऐसी उत्तम नीति से सुधारे कि उन के आचार-विचार फिर धार्मिक हो जावें ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ९−(ये) (त्वा) त्वां कृत्याम् (आलेभिरे) गृहीतवन्तः (विद्वलाः) सानसिवर्णसि०। उ० ४।१०७। विद ज्ञाने वेदनायां च-वलच्, गुणाभावः। वेदनाशीलाः। दुःखदायिनः (अभिचारिणः) विरुद्धाचाराः (शम्भु) शन्तिकरम् (इदम्) (कृत्यादूषणम्) हिंसाखण्डनम् (प्रतिवर्त्म) प्रत्यक्षमार्गः (पुनःसरम्) पुनः अवधारणे+सृ गतौ-अच्। निश्चयेन सरो ज्ञाने यस्मात् तत् (तेन) कारणेन (त्वा) त्वां कृत्याम् (स्नपयामसि) स्नपयामः। शोधयामः ॥
१० यद्दुर्भगां प्रस्नपिताम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यद्दु॒र्भगां॒ प्रस्न॑पितां मृ॒तव॑त्सामुपेयि॒म।
अपै॑तु॒ सर्वं॒ मत्पा॒पं द्रवि॑णं॒ मोप॑ तिष्ठतु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यद्दु॒र्भगां॒ प्रस्न॑पितां मृ॒तव॑त्सामुपेयि॒म।
अपै॑तु॒ सर्वं॒ मत्पा॒पं द्रवि॑णं॒ मोप॑ तिष्ठतु ॥
१० यद्दुर्भगां प्रस्नपिताम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- In that we have come upon the ill-portioned one (fem.), bathed
forth, whose young (-vatsá) is dead—let all ill (pāpá) go away from
me; let property come unto (upa-sthā) me.
Notes
The pada-mss. have in b upa॰eyimá, and combination to upeyimá
falls under the rule Prāt. iii. 38, although the ā contained in
eyimá (= ā-īmiyá) does not appear ⌊as ā⌋ in the pada-text. ⌊Ppp.
ends a corruptly with pṛṣṇipathāṁ.⌋
Griffith
When we have found her ducked and drenched, a hapless cow whose calf hath died, Let all my woe depart and let abundant riches come to me.
पदपाठः
यत्। दुः॒ऽभगा॑म्। प्रऽस्न॑पिताम्। मृ॒तऽव॑त्साम्। उ॒प॒ऽए॒यि॒म्। अप॑। ए॒तु॒। सर्व॑म्। मत्। पा॒पम्। द्रवि॑णम्। मा॒। उप॑। ति॒ष्ठ॒तु॒। १.१०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- अनुष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यदि (दुर्भगाम्) दुर्भाग्यवाली, [अथवा] (स्नपिताम्) शुद्ध आचरणवाली, [अथवा] (मृतवत्साम्) मरे बच्चेवाली [शोकातुर स्त्री] के (उपेयिम) हम पास गये हैं, (सर्वम्) सब (पापम्) पाप (मत्) मुझ से (अप एतु) हट जावे, (द्रविणम्) बल (मा) मुझको (उप तिष्ठतु) प्राप्त हो ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य से दुष्कर्म हो जावे, वह यथावत् दण्ड भोगकर धर्म में प्रवृत्त होकर सुखी होवे ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १०−(यत्) यदि (दुर्भगाम्) दुर्भाग्यवतीम् (स्नपिताम्) शोधिताम् शुद्धाचाराम् (मृतवत्साम्) मृतबालकाम्। शोकग्रस्तामित्यर्थः (उपेयिम) उप+आङ्-ईयिम। वयं प्राप्तवन्तः (अपैतु) दूरे गच्छतु (सर्वम्) (मत्) मत्तः (पापम्) अनिष्टं दुःखम् (द्रविणम्) बलम् (मा) माम् (उप तिष्ठतु) प्राप्नोतु ॥
११ यत्ते पितृभ्यो
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यत्ते॑ पि॒तृभ्यो॒ दद॑तो य॒ज्ञे वा॒ नाम॑ जगृ॒हुः।
सं॑दे॒श्या॒३॒॑त्सर्व॑स्मात्पा॒पादि॒मा मु॑ञ्चन्तु॒ त्वौष॑धीः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यत्ते॑ पि॒तृभ्यो॒ दद॑तो य॒ज्ञे वा॒ नाम॑ जगृ॒हुः।
सं॑दे॒श्या॒३॒॑त्सर्व॑स्मात्पा॒पादि॒मा मु॑ञ्चन्तु॒ त्वौष॑धीः ॥
११ यत्ते पितृभ्यो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- In that they have taken (grah) the name of thee giving to the
Fathers, or at the sacrifice—let these plants free thee from all ill
that is designed (? saṁdeśyà).
Notes
It might be also (in a, b) ’those giving to the Fathers have taken
the name of thee’ (Ludwig, ’thy Fathers’). Saṁdeśyà is very obscure.
The first half-verse is wholly corrupt in Ppp.
Griffith
If, as they gave thy parents aught, they named thee, or at sacri- fice, From all their purposed evil let these healing herbs deliver thee.
पदपाठः
यत्। ते॒। पि॒तृऽभ्यः॑। दद॑तः। य॒ज्ञे। वा॒। नाम॑। ज॒गृ॒हुः। स॒म्ऽदे॒श्या᳡त्। सर्व॑स्मात्। पा॒पात्। इ॒माः। मु॒ञ्च॒न्तु॒। त्वा॒। ओष॑धीः। १.११।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- अनुष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यदि (यज्ञे) यज्ञ [श्रेष्ठ कर्म करने] में (पितृभ्यः) पितरों [माता पिता आचार्य आदि] को (ददतः) दान करते हुए (ते) तेरा (नाम वा) नाम (जगृहुः) उन्होंने लिया है, (सर्वस्मात्) [उनके] प्रत्येक (संदेश्यात्) अभीष्ट (पापात्) पाप से (इमाः) यह (औषधीः) ओषधियाँ [ओषधिरूप दुःखनाशक विद्वान् पुरुष] (त्वा) तुझको (मुञ्चन्तु) मुक्त करें ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - यदि कोई पुरुष किसी सत्पुरुष को दान आदि शुभकर्म में मिथ्या दोष लगावें, विद्वान् लोग यथायोग्य अनुसन्धान करके उस दोष से उसे मुक्त करें ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ११−(यत्) यदि (ते) तव (पितृभ्यः) मातापितृगुर्वादिभ्यः (ददतः) दानशीलस्य (यज्ञे) धर्मकर्मणि (वा) पादपूरणे (नाम) मिथ्यापवादम् (जगृहुः) गृहीतवन्तः। आरोपितवन्तः (सन्देश्यात्) दिश दाने-ण्यत्। अभिलषितात्। अभीष्टात् (सर्वस्मात्) (पापात्) (इमाः) (मुञ्चन्तु) वियोजयन्तु (त्वा) (ओषधीः) ओषधयः। ओषधिवत् तापनाशका विद्वांसः ॥
१२ देवैनसात्पित्र्यान्नामग्राहात्सन्देश्यादभिनिष्कृतात्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
दे॑वैन॒सात्पित्र्या॑न्नामग्रा॒हात्सं॑दे॒श्या᳡दभि॒निष्कृ॑तात्।
मु॒ञ्चन्तु॑ त्वा वी॒रुधो॑ वीर्ये᳡ण॒ ब्रह्म॑णा ऋ॒ग्भिः पय॑स॒ ऋषी॑णाम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
दे॑वैन॒सात्पित्र्या॑न्नामग्रा॒हात्सं॑दे॒श्या᳡दभि॒निष्कृ॑तात्।
मु॒ञ्चन्तु॑ त्वा वी॒रुधो॑ वीर्ये᳡ण॒ ब्रह्म॑णा ऋ॒ग्भिः पय॑स॒ ऋषी॑णाम् ॥
१२ देवैनसात्पित्र्यान्नामग्राहात्सन्देश्यादभिनिष्कृतात् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- From sin against the gods, against the Fathers, from name-taking,
that is designed, that is devised against [any one], let the plants
free thee by their energy (vīryà), with spell (bráhman), with
verses, with milk of the seers.
Notes
‘Milk’ (páyas) in the last pāda looks like a corrupt reading, but Ppp.
appears to have the same; Bp.E. accent payasā́. ⌊As for the
combinations of -ā ṛ-, see note to Prāt. iii. 46.⌋ Several mss.
(Bp.O.p.m.R.T.K.) read pitryā̀t in a. The verse, which ought to be
called an anuṣṭubgarbhā triṣṭubh (11 + 8: 11 + 11 = 41), is very
foolishly described by the Anukr. as a pan̄kti, because it contains
nearly (and can easily be reduced to precisely) 40 syllables.
Griffith
From mention of thy name, from sin against the Fathers or the Gods, These herbs of healing shall by prayer release thee, by power, by holy texts, the milk of .Rishis.
पदपाठः
दे॒व॒ऽए॒न॒सात्। पित्र्या॑त्। ना॒म॒ऽग्रा॒हात्। स॒म्ऽदे॒श्या᳡त्। अ॒भि॒ऽनिष्कृ॑तात्। मु॒ञ्चन्तु॑। त्वा॒। वी॒रुधः॑। वी॒र्ये᳡ण। ब्रह्म॑णा। ऋ॒क्ऽभिः। पय॑सा। ऋषी॑णाम्। १.१२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- पङ्क्तिः
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (देवैनसात्) विजयी पुरुषों के लिये पाप से, (पित्र्यात्) पितरों [माता पिता गुरु आदि] के लिये पाप से, (संदेश्यात्) अभीष्ट और (अभिनिष्कृतात्) प्रतिकूल सिद्ध किये हुए (नामग्राहात्) नामग्रहण से (वीरुधः) ओषधें [ओषधिसमान उपकारी लोग] (त्वा) तुझको (वीर्येण) अपने सामर्थ्य द्वारा, (ब्रह्मणा) तप द्वारा, (ऋग्भिः) वेदवाणियों द्वारा और (ऋषीणाम्) ऋषियों के (पयसा) ज्ञान द्वारा (मुञ्चन्तु) मुक्त करें ॥१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग दुष्कर्मियों को धर्मानुसार दण्ड देकर और यथावत् वेदादि शास्त्रों के उपदेश से उनको उनके दुष्ट स्वभावों से छोड़ावें ॥१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १२−(देवैनसात्) विजिगीषून् प्रति पापात् (पित्र्यात्) अ० ६।१२०।२। पितॄन् प्रति पापात् (नामग्राहात्) मिथ्यापवादात् (संदेश्यात्) म० ११। अभीष्टात् (अभिनिष्कृतात्) प्रतिकूलं साधितात् (मुञ्चन्तु) (त्वा) (वीरुधः) ओषधिवदुपकारिणः (वीर्येण) स्वसामर्थ्येन (ब्रह्मणा) तपसा (ऋग्भिः) वेदवाग्भिः (पयसा) पय गतौ-असुन्। ज्ञानेन (ऋषीणाम्) कृतसाक्षात्धर्मणाम् ॥
१३ यथा वातश्च्यावयति
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यथा॒ वात॑श्च्या॒वय॑ति॒ भूम्या॑ रे॒णुम॒न्तरि॑क्षाच्चा॒भ्रम्।
ए॒वा मत्सर्वं॑ दुर्भू॒तं ब्रह्म॑नुत्त॒मपा॑यति ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यथा॒ वात॑श्च्या॒वय॑ति॒ भूम्या॑ रे॒णुम॒न्तरि॑क्षाच्चा॒भ्रम्।
ए॒वा मत्सर्वं॑ दुर्भू॒तं ब्रह्म॑नुत्त॒मपा॑यति ॥
१३ यथा वातश्च्यावयति ...{Loading}...
Whitney
Translation
- As the wind sets in motion the dust from the earth and the cloud
(abhrá) from the atmosphere, so from me may everything of evil nature
go away, pushed by the spell (bráhman).
Notes
Griffith
As the wind stirs the dust from earth and drives the rain cloud from the sky, So, chased and banished by the spell, all misery departs from me.
पदपाठः
यथा॑। वातः॑। च्य॒वय॑ति। भूम्याः॑। रे॒णुम्। अ॒न्तरि॑क्षात्। च॒। अ॒भ्रम्। ए॒व। मत्। सर्व॑म्। दुः॒ऽभू॒तम्। ब्रह्म॑ऽनुत्तम्। अप॑। अ॒य॒ति॒। १.१३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- उरोबृहती
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (वातः) वायु (भूम्याः) भूमि से (रेणुम्) रेणु [धूलि] को (च) और (अन्तरिक्षात्) आकाश से (अभ्रम्) मेघ को (च्यावयति) सरका देता है। (एव) वैसे ही (मत्) मुझ से (सर्वम्) सब (ब्रह्मनुत्तम्) ब्राह्मणों द्वारा हटाया गया (दुर्भूतम्) पाप (अप अयति) दूर चला जावे ॥१३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य सदुपदेश पाकर पाप कर्म छोड़ने में शीघ्रता करे ॥१३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १३−(यथा) येन प्रकारेण (वातः) वायुः (च्यावयति) अपगमयति (भूम्याः) (रेणुम्) अजिवृरीभ्यो निच्च। उ० ३।३८। री गतिरेषणयोः−नु। धूलिम् (अन्तरिक्षात्) आकाशात् (च) (अभ्रम्) मेघम् (एव) एवम् (मत्) मत्तः (सर्वम्) (दुर्भूतम्) पापम्। दुःखम् (ब्रह्मनुत्तम्) ब्रह्मभिर्वेदविद्भिः प्रेरितम् (अप अयति) नश्यतु ॥
१४ अप क्राम
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अप॑ क्राम॒ नान॑दती॒ विन॑द्धा गर्द॒भीव॑।
क॒र्तॄन्न॑क्षस्वे॒तो नु॒त्ता ब्रह्म॑णा वी॒र्या᳡वता ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अप॑ क्राम॒ नान॑दती॒ विन॑द्धा गर्द॒भीव॑।
क॒र्तॄन्न॑क्षस्वे॒तो नु॒त्ता ब्रह्म॑णा वी॒र्या᳡वता ॥
१४ अप क्राम ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Step away, making much noise, like an unfastened she-ass; attain
thy makers, pushed hence by an energetic spell.
Notes
Some of the mss. (O.p.m.K.) read kartrén in c, as in other such
cases.
Griffith
Go with a resonant cry, depart, like a she-ass whose cords are loosed. Go to thy makers: hence! away! Go driven by the potent spell.
पदपाठः
अप॑। क्रा॒म॒। नान॑दीती। विऽन॑ध्दा। ग॒र्द॒भीऽइ॑व। क॒र्तृन्। न॒क्ष॒स्व॒। इ॒तः। नु॒त्ता। ब्रह्म॑णा। वी॒र्य᳡ऽवता। १.१४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- अनुष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (विनद्धा) खुली हुई, (गर्दभी इव) गदही के समान (मानदती) अति रेंकती हुई तू (अप क्राम) भाग जा। (वीर्यवता) पराक्रमी (ब्रह्मणा) ब्रह्मज्ञानी करके (इतः) यहाँ से (नुत्ता) निकाली हुई तू (कर्तॄन्) हिंसकों में (नक्षस्व) पहुँच ॥१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - नीतिनिपुण लोगों के उपाय से हिंसक लोग आपस में विरोध करके निर्बल होजावें ॥१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १४−(अप क्राम) दूरं गच्छ (नानदती) णद अव्यक्ते शब्दे यङ्लुकि-शतृ। भृशं ध्वनिं कुर्वती (विनद्धा) वियुक्ता (गर्दभी) गर्द रवे-अभच्। रासभी (इव) यथा (कर्तॄन्) म० ३। हिंसकान् (नक्षस्व) गच्छ (इतः) अस्मात् स्थानात् (नुत्ता) बहिष्कृता (ब्रह्मणा) चतुर्वेदिना (वीर्यवता) पराक्रमिणा ॥
१५ अयं पन्थाः
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अ॒यं पन्थाः॑ कृ॒त्य॒ इति॑ त्वा नयामोऽभि॒प्रहि॑तां॒ प्रति॑ त्वा॒ प्र हि॑ण्मः।
तेना॒भि या॑हि भञ्ज॒त्यन॑स्वतीव वा॒हिनी॑ वि॒श्वरू॑पा कुरू॒टिनी॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒यं पन्थाः॑ कृ॒त्य॒ इति॑ त्वा नयामोऽभि॒प्रहि॑तां॒ प्रति॑ त्वा॒ प्र हि॑ण्मः।
तेना॒भि या॑हि भञ्ज॒त्यन॑स्वतीव वा॒हिनी॑ वि॒श्वरू॑पा कुरू॒टिनी॑ ॥
१५ अयं पन्थाः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Saying “this is the road, O witchcraft,” we conduct thee; thee that
wast sent forth against [us] we send forth back again; by that
[road] go against [them], breaking, like a draft-cow with a cart,
all-formed, wearing a wreath (? kurūṭín).
Notes
The last word is found only here, and has to be rendered conjecturally
(with the Pet. Lexx.). All the saṁhitā-mss. ⌊or rather, most of them:
see also note to Prāt. iii. 35⌋ combine kṛtyé ’ti ⌊and thus indeed the
meter requires us to pronounce⌋; but our edition restores the more
correct reading ⌊kṛtya íti⌋, since the Prāt. does not countenance the
irregularity; we should expect to find it with vandane ’va (in ii.
56). Ppp. reads at the beginning ayaṁ panthā ’pinayāmi tvā kṛtye
prahitāṁ prati etc.; in c ⌊or rather c-d⌋, tuñjaty anasvinī
’va. In the Anukr. it seems as if catuṣpadā. must be a misreading for
pañcapadā (11 + 11: 8 + 8 + 8 = 46): but compare vs. 19.
Griffith
This, Kritya, is thy path, we say, and guide thee. We drive thee back who hast been sent against us. Go by this pathway, breaking loose for onslaught even as a host complete with cars and horses.
पदपाठः
अ॒यम्। पन्थाः॑। कृ॒त्ये॒। इति॑। त्वा॒। न॒या॒मः॒। अ॒भि॒ऽप्रहि॑ताम्। प्रति॑। त्वा॒। प्र॒। हि॒ण्मः॒। तेन॑। अ॒भि। या॒हि॒। भ॒ञ्ज॒ती। अन॑स्वतीऽइव। वा॒हिनी॑। वि॒श्वऽरू॑पा। कु॒रू॒टिनी॑। १.१५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- चतुष्पदा विराड्जगती
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - “(कृत्ये) हे हिंसा ! [अर्थात् हिंसक] (अयम् पन्थाः इति) यह मार्ग है−(त्वा) तुझे (नयामः) हम ले चलते हैं, (अभिप्रहिताम्) [हमारे] प्रतिकूल भेजी हुई (त्वा) तुझको (प्रति) उलटा (प्र हिण्मः) हम हटाते हैं, (तेन) उसी [मार्ग] से (भञ्जती) टूटती हुई तू [उन पर] (अभि याहि) चढ़ाई कर, (इव) जैसे (अनस्वती) बहुत रथोंवाली, (विश्वरूपा) सब अङ्गों [हाथी, घोड़ों आदि] वाली (कुरूटिनी) बाँकेपन से रोकनेवाली (वाहिनी) सेना [चढ़ाई करती है] ॥१५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - नीतिमान् सेनापति अपने पराक्रम से शत्रुसेना में शीघ्र हलचल मचा देवे कि वे आपस में लड़ने लगें ॥१५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १५−(अयम्) (पन्थाः) मार्गः (कृत्ये) हे हिंसाक्रिये (इति) वाक्यसमाप्तौ (त्वा) त्वाम् (नयामः) प्रापयामः (अभिप्रहिताम्) अस्मान् प्रति प्रेषिताम् (प्रति) प्रतिकूलम् (त्वा) (प्र) (हिण्मः) प्रेरयामः (तेन) (अभियाहि) तान् प्रति गच्छ (भञ्जती) भञ्जनं कुर्वती (अनस्वती) रथैर्युक्ता (इव) यथा (वाहिनी) सेना (विश्वरूपा) सर्वाङ्गोपेता (कुरूटिनी) कु+रुट प्रतिघाते भाषायां च-क, इनि, ङीप्, छान्दसो दीर्घः। कु कुटिलं प्रतिघातिनी, अवरोधिका ॥
१६ पराक्ते ज्योतिरपथम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
परा॑क्ते॒ ज्योति॒रप॑थं ते अ॒र्वाग॒न्यत्रा॒स्मदय॑ना कृणुष्व।
परे॑णेहि नव॒तिं ना॒व्या॒३॒॑ अति॑ दु॒र्गाः स्रो॒त्या मा क्ष॑णिष्ठाः॒ परे॑हि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
परा॑क्ते॒ ज्योति॒रप॑थं ते अ॒र्वाग॒न्यत्रा॒स्मदय॑ना कृणुष्व।
परे॑णेहि नव॒तिं ना॒व्या॒३॒॑ अति॑ दु॒र्गाः स्रो॒त्या मा क्ष॑णिष्ठाः॒ परे॑हि ॥
१६ पराक्ते ज्योतिरपथम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Offward is light for thee, hitherward is no road for thee; make thy
goings elsewhere than [toward] us; go thou by a distant [road]
beyond ninety difficult navigable streams; do not wound thyself; go
away.
Notes
One would like to emend kṣaṇiṣṭhās in d, perhaps to kṣamiṣṭhās
‘be patient’ i.e. ’linger’; Ppp. has instead ghāniṣṭhās, which
unfortunately gives no help. Ppp. also combines nāvyā ’ti in c;
and the description of the Anukr. appears to sanction it.
Griffith
No path leads hitherward for thee to travel. Turn thee from us: far off, thy light is yonder. Fly hence across the ninety floods, the rivers most hard to pass. Begone, and be not wounded.
पदपाठः
परा॑क्। ते॒। ज्योतिः॑। अप॑थम्। ते॒। अ॒र्वाक्। अ॒न्यत्र॑। अ॒स्मत्। अ॒यना। कृ॒णु॒ष्व॒। परे॑ण। इ॒हि॒। न॒व॒तिम्। ना॒व्याः᳡। अति॑। दुः॒ऽगाः। स्रो॒त्याः। मा। क्ष॒णि॒ष्ठाः॒। परा॑। इ॒हि॒। १.१६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- त्रिष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (पराक्) आगे की ओर (ते) तेरे लिये (ज्योतिः) ज्योति [अग्नि आदि प्रकाश] है, (अर्वाक्) इस ओर (ते) तेरे लिये (अपथम्) मार्ग नहीं है, (अस्मत्) हम से (अन्यत्र) दूसरे स्थान में [अपने] (अयना) मार्गों को (कृणुष्व) कर। (परेण) दूसरे [मार्ग] से (नवतिम्) नब्बे [अर्थात् अनेक] (दुर्गाः) बड़ी कठिन, (नाव्याः) नावों से उतरने योग्य (स्रोत्याः) नदियों को (अति) पार करके (इहि) जा, [हमको] (मा क्षणिष्ठाः) मत घायल कर, (परा इहि) हट जा ॥१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - चतुर सेनापति उचित व्यूहरचना से शत्रुसेना को आग्नेय आदि अस्त्र-शस्त्रों द्वारा आगे-पीछे से रोक दे और अपने बचाने के लिये पार्श्व मार्ग से उसे निकल जाने दे ॥१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १६−(पराक्) अभिमुखम् (ते) तुभ्यम् (ज्योतिः) प्रकाशः (अपथम्) पथो विभाषा। पा० ५।४।७२। नञ्+पथिन्-अ प्रत्ययः। अपथं नपुंसकम्। पा० २।४।३०। इति नपुंसकम्। मार्गाभावः। कुमार्गः (ते) तुभ्यम् (अर्वाक्) अवरदेशे (अन्यत्र) (अस्मत्) (अयना) मार्गान् (कृणुष्व) कुरु (परेण) यथा (इहि) गच्छ (नवतिम्) बह्वीः-इत्यर्थः (नाव्याः) अ० ८।५।९। नौभिस्तार्याः (अति) अतीत्य (दुर्गाः) दुर्गमनीयाः (स्रोत्याः) अ० १।३२।३। जलप्रवाहाः (मा क्षणिष्ठाः) क्षणु हिंसायाम्−लुङ्। मा हिंसीः (परा इहि) दूरं गच्छ ॥
१७ वात इव
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
वात॑ इव वृ॒क्षान्नि मृ॑णीहि पा॒दय॒ मा गामश्वं॒ पुरु॑ष॒मुच्छि॑ष एषाम्।
क॒र्तॄन्नि॒वृत्ये॒तः कृ॑त्येऽप्रजा॒स्त्वाय॑ बोधय ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
वात॑ इव वृ॒क्षान्नि मृ॑णीहि पा॒दय॒ मा गामश्वं॒ पुरु॑ष॒मुच्छि॑ष एषाम्।
क॒र्तॄन्नि॒वृत्ये॒तः कृ॑त्येऽप्रजा॒स्त्वाय॑ बोधय ॥
१७ वात इव ...{Loading}...
Whitney
Translation
- As the wind the trees, do thou crush (mṛ) down, cause to fall; do
not leave of them cow, horse, man; turning back, O witchcraft, from here
to thy makers, awaken them unto childlessness.
Notes
Here, in c, even a majority of the mss. (W.I.O.D.T.K.) read
kartrén. Ppp. combines at the beginning vāte ’va, as the meter
demands, and as the Anukr. assumes; úchiṣāi ’ṣām is doubtless also the
real reading in b.
Griffith
As wind the trees, so smite and overthrow them: leave not cow, horse, or man of them surviving Return, O Kritya, unto those who made thee. Wake them from sleep to find that they are childless.
पदपाठः
वातः॑ऽइव। वृ॒क्षान्। नि। मृ॒णी॒हि॒। पा॒दय॑। मा। गाम्। अश्व॑म्। पुरु॑षम्। उत्। शि॒षः॒। ए॒षा॒म्। क॒र्तृन्। नि॒ऽवृत्य॑। इ॒तः। कृ॒त्ये॒। अ॒प्र॒जाः॒ऽत्वा॒य॑। बो॒ध॒य॒। १.१७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- प्रस्तारपङ्क्तिः
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कर्तॄन्) हिंसको को (नि मृणीहि) मार डाल और (पादय=पातय) गिरा दे, (वातः इव) जैसे वायु (वृक्षान्) वृक्षों को, (एषाम्) इनकी (गाम्) गौ, (अश्वम्) घोड़ा और (पुरुषम्) पुरुष को (मा उत् शिषः) मत छोड़। (कृत्ये) हे हिंसाशील ! (इतः) यहाँ से (निवृत्य) लौट कर (अप्रजास्त्वाय) [उनकी] प्रजा [पुत्र, पौत्र, सेवक आदि] की हानि के लिये [उन्हें] (बोधय) जगा दे ॥१७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सेनापति शत्रुओं को ऐसा हरा देवे कि वे सर्वथा उपायहीन और राज्यहीन हो जावें ॥१७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १७−(वातः) (इव) (वृक्षान्) (नि) नितराम् (मृणीहि) मारय (पादय) तस्य दः। पातय (मा उत् शिषः)। अ० ६।१२७।१। मोच्छेषय (गाम्) (अश्वम्) (पुरुषम्) (एषाम्) हिंसकानाम् (कर्तॄन्) म० ३। हिंसकान् (निवृत्य) परागत्य (इतः) अस्मात् स्थानात् (कृत्ये) हे हिंसाक्रिये (अप्रजास्त्वाय) अ० ८।६।२६। पुत्रपौत्रसेवकादिराहित्याय (बोधय) विज्ञापय ॥
१८ यां ते
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यां ते॑ ब॒र्हिषि॒ यां श्म॑शा॒ने क्षेत्रे॑ कृ॒त्यां व॑ल॒गं वा॑ निच॒ख्नुः।
अ॒ग्नौ वा॑ त्वा॒ गार्ह॑पत्येऽभिचे॒रुः पाकं॒ सन्तं॒ धीर॑तरा अना॒गस॑म् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यां ते॑ ब॒र्हिषि॒ यां श्म॑शा॒ने क्षेत्रे॑ कृ॒त्यां व॑ल॒गं वा॑ निच॒ख्नुः।
अ॒ग्नौ वा॑ त्वा॒ गार्ह॑पत्येऽभिचे॒रुः पाकं॒ सन्तं॒ धीर॑तरा अना॒गस॑म् ॥
१८ यां ते ...{Loading}...
Whitney
Translation
- What [witchcraft] they buried for thee in the barhís, what in
the cemetery, [what] witchcraft or secret spell (valagá) in the
field, or practised against thee in the householders’ fire—they, being
wiser, [against thee] who art simple, innocent.
Notes
Ppp. helps both meter and sense by inserting cakrus before barhiṣi
in a; it also arranges kṛtyāṁ kṣetre in b, combines dhīratarā
’nāg- at the end, and adds, to complete the verse, tam ⌊so Roth’s
Collation! for tām?⌋ ito nāśayāmasi. The Anukr. notices neither the
deficiency in a nor the redundancy in d.
Griffith
The charm or secret power which they have buried for thee in sacred grass, field, cemetery, Or spell in household fire which men more cunning have wrought against thee innocent and simple,–
पदपाठः
याम्। ते॒। ब॒र्हिषि॑। याम्। श्म॒शा॒ने। क्षेत्रे॑। कृ॒त्याम्। व॒ल॒गम्। वा॒। नि॒ऽच॒ख्नुः। अ॒ग्नौ। वा॒। त्वा॒। गार्ह॑ऽपत्ये। अ॒भि॒ऽचे॒रुः। पाक॑म्। सन्त॑म्। धीर॑ऽतराः। अ॒ना॒गस॑म्। १.१८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- त्रिष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्य !] (याम् याम्) जिस-जिस (कृत्याम्) हिंसा क्रिया को (वा) अथवा (वलगम्) गुप्त कर्म को (ते) तेरे (बर्हिषि) जल में, (श्मशाने) मरघट में [अथवा] (क्षेत्रे) खेत में (धीरतराः) धीरों के दबानेवालों ने (निचख्नुः) दबा दिया है। (वा) अथवा (गार्हपत्ये) गृहपतियों करके संयुक्त (अग्नौ) अग्नि में (पाकम्) परिपक्व स्वभाववाले, (सन्तम्) सन्त [सदाचारी] और (अनागसम्) निर्दोषी (त्वा) तेरे (अभिचेरुः) उन्होंने विरुद्ध आचरण किया है ॥१८॥ [उस] (अनुबुद्धम्) ताक लगाये गये, (उपाहृतम्) प्रयोग किये गये, (निखातम्) दबाये गये [सुरंग, गढ़े आदि में छिपाये गये] (वैरम्) वैररूप (त्सारि) टेढ़े (कर्त्रम्) कटार को (अनु अविदाम्) हमने ढूँढ़ लिया है। (तत्) वह (एतु) चला जावे, (यतः) जहाँ से (आभृतम्) लाया गया है, (तत्र) वहाँ पर (अश्वः इव) घोड़े के समान (वि वर्तताम्) लोट जावे, (कृत्याकृतः) हिंसा करनेवाले की (प्रजाम्) प्रजा [पुत्र, पौत्र, भृत्य आदि] को (हन्तु) मारे ॥१९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो शत्रु लोग जल आदि के उपयोगी स्थान में प्रकट वा गुप्त खाई, सुरंग आदि बनाकर हानिकारक क्रिया करें, चतुर सेनापति उन का खोज लगाकर उनको वैसी ही क्रियाओं से विध्वंस करे ॥१८,१९॥ इन मन्त्रों का मिलान करो-अथर्व० ५।३१।८, ९ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १८, १९−(याम्) (ते) तव (बर्हिषि) अ० ५।२२।१। जले-निघ० १।१३। (याम्) (श्मशाने) अ० ५।३१।८। शवदाहस्थाने (क्षेत्रे) शस्योत्पत्तिस्थाने (कृत्याम्) हिंसाम् (वलगम्) अ० ५।३१।४। आच्छादनम्। गुप्तकर्म (वा) (निचख्नुः) अ० ५।३१।४। आच्छादनम्। गुप्तकर्म (वा) (निचख्नुः) अ० ५।३१।८। निखातवन्तः (अग्नौ) (वा) (त्वा) (गार्हपत्ये) अ० ६।१२०।१। गृहपतिभिः संयुक्ते (अभिचेरुः) अ० ५।३०।२। दुष्कृतवन्तः (पाकम्) अ० ९।९।२२। परिपक्वमनस्कम् (सन्तम्) सदाचारिणम् (धीरतराः) धीर+तॄ प्लवने अभिभवे च-अच्। धीराणां बुद्धिमतामभिभवितारः (अनागसम्) अ० ७।६।३। अनपराधिनम् ॥ (उपाहृतम्) प्रयुक्तम् (अनुबुद्धम्) अनुक्रमेण विचारितम् (निखातम्) खनित्वा स्थापितम् (वैरम्) द्वेषम् (त्सारि) त्सर छद्मगतौ−णिनि। वक्रम् (अनु) अनुसन्धानेन (अविदाम) विद्लृ लाभे−लुङ्। वयं प्राप्तवन्तः (कर्त्रम्) सर्वधातुभ्यः ष्ट्रन्। उ० ४।१५९। कृती छेदने−ष्ट्रन्, तलोपः। यद्वा, कृञ् हिंसायाम्−ष्ट्रन्। कर्तनायुधम्। कृपाणम् (तत्) (एतु) (यतः) यस्मात् (आभृतम्) आहृतम् (तत्र) (अश्वः इव) (वि वर्तताम्) विविधं वर्तनं करोतु (हन्तु) (कृत्याकृतः) म० २। हिंसाकारकस्य (प्रजाम्) पुत्रपौत्रभृत्यादिरूपाम् ॥
१९ उपाहृतमनुबुद्धं निखातम्
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उ॒पाहृ॑त॒मनु॑बुद्धं॒ निखा॑तं॒ वैरं॑ त्सा॒र्यन्व॑विदाम॒ कर्त्र॑म्।
तदे॑तु॒ यत॒ आभृ॑तं॒ तत्राश्व॑ इव॒ वि व॑र्ततां॒ हन्तु॑ कृत्या॒कृतः॑ प्र॒जाम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उ॒पाहृ॑त॒मनु॑बुद्धं॒ निखा॑तं॒ वैरं॑ त्सा॒र्यन्व॑विदाम॒ कर्त्र॑म्।
तदे॑तु॒ यत॒ आभृ॑तं॒ तत्राश्व॑ इव॒ वि व॑र्ततां॒ हन्तु॑ कृत्या॒कृतः॑ प्र॒जाम् ॥
१९ उपाहृतमनुबुद्धं निखातम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- We have found out (anu-vid) the hostile sneaking magic (?
kártra) that was applied, perceived (? anu-budh), buried: let that
go whence it was brought; there let it roll about like a horse; let it
slay the progeny of the witchcraft -maker.
Notes
Ppp. reads in c āgatam for ābhṛtam, and combines in d aśve
’va, as called for by the meter. The Anukr. is as bad in its treatment
of this verse as of 15.
Griffith
That tool of hatred, understood, made ready, stealthy and buried deep, have we discovered, Let that go back to whence it came, turn thither like a horse and kill the children of the sorcerer.
पदपाठः
उ॒प॒ऽआहृ॑तम्। अनु॑ऽबुध्दम्। निऽखा॑तम्। वैर॑म्। त्सा॒रि। अनु॑। अ॒वि॒दा॒म॒। कर्त्र॑म्। तत्। ए॒तु॒। यतः॑। आऽभृ॑तम्। तत्र॑। अश्वः॑ऽइव। वि। व॒र्त॒ता॒म्। हन्तु॑। कृ॒त्या॒ऽकृतः॑। प्र॒ऽजाम्। १.१९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- चतुष्पदा जगती
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्य !] (याम् याम्) जिस-जिस (कृत्याम्) हिंसा क्रिया को (वा) अथवा (वलगम्) गुप्त कर्म को (ते) तेरे (बर्हिषि) जल में, (श्मशाने) मरघट में [अथवा] (क्षेत्रे) खेत में (धीरतराः) धीरों के दबानेवालों ने (निचख्नुः) दबा दिया है। (वा) अथवा (गार्हपत्ये) गृहपतियों करके संयुक्त (अग्नौ) अग्नि में (पाकम्) परिपक्व स्वभाववाले, (सन्तम्) सन्त [सदाचारी] और (अनागसम्) निर्दोषी (त्वा) तेरे (अभिचेरुः) उन्होंने विरुद्ध आचरण किया है ॥१८॥ [उस] (अनुबुद्धम्) ताक लगाये गये, (उपाहृतम्) प्रयोग किये गये, (निखातम्) दबाये गये [सुरंग, गढ़े आदि में छिपाये गये] (वैरम्) वैररूप (त्सारि) टेढ़े (कर्त्रम्) कटार को (अनु अविदाम्) हमने ढूँढ़ लिया है। (तत्) वह (एतु) चला जावे, (यतः) जहाँ से (आभृतम्) लाया गया है, (तत्र) वहाँ पर (अश्वः इव) घोड़े के समान (वि वर्तताम्) लोट जावे, (कृत्याकृतः) हिंसा करनेवाले की (प्रजाम्) प्रजा [पुत्र, पौत्र, भृत्य आदि] को (हन्तु) मारे ॥१९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो शत्रु लोग जल आदि के उपयोगी स्थान में प्रकट वा गुप्त खाई, सुरंग आदि बनाकर हानिकारक क्रिया करें, चतुर सेनापति उन का खोज लगाकर उनको वैसी ही क्रियाओं से विध्वंस करे ॥१८,१९॥ इन मन्त्रों का मिलान करो-अथर्व० ५।३१।८, ९ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १८, १९−(याम्) (ते) तव (बर्हिषि) अ० ५।२२।१। जले-निघ० १।१३। (याम्) (श्मशाने) अ० ५।३१।८। शवदाहस्थाने (क्षेत्रे) शस्योत्पत्तिस्थाने (कृत्याम्) हिंसाम् (वलगम्) अ० ५।३१।४। आच्छादनम्। गुप्तकर्म (वा) (निचख्नुः) अ० ५।३१।४। आच्छादनम्। गुप्तकर्म (वा) (निचख्नुः) अ० ५।३१।८। निखातवन्तः (अग्नौ) (वा) (त्वा) (गार्हपत्ये) अ० ६।१२०।१। गृहपतिभिः संयुक्ते (अभिचेरुः) अ० ५।३०।२। दुष्कृतवन्तः (पाकम्) अ० ९।९।२२। परिपक्वमनस्कम् (सन्तम्) सदाचारिणम् (धीरतराः) धीर+तॄ प्लवने अभिभवे च-अच्। धीराणां बुद्धिमतामभिभवितारः (अनागसम्) अ० ७।६।३। अनपराधिनम् ॥ (उपाहृतम्) प्रयुक्तम् (अनुबुद्धम्) अनुक्रमेण विचारितम् (निखातम्) खनित्वा स्थापितम् (वैरम्) द्वेषम् (त्सारि) त्सर छद्मगतौ−णिनि। वक्रम् (अनु) अनुसन्धानेन (अविदाम) विद्लृ लाभे−लुङ्। वयं प्राप्तवन्तः (कर्त्रम्) सर्वधातुभ्यः ष्ट्रन्। उ० ४।१५९। कृती छेदने−ष्ट्रन्, तलोपः। यद्वा, कृञ् हिंसायाम्−ष्ट्रन्। कर्तनायुधम्। कृपाणम् (तत्) (एतु) (यतः) यस्मात् (आभृतम्) आहृतम् (तत्र) (अश्वः इव) (वि वर्तताम्) विविधं वर्तनं करोतु (हन्तु) (कृत्याकृतः) म० २। हिंसाकारकस्य (प्रजाम्) पुत्रपौत्रभृत्यादिरूपाम् ॥
२० स्वायसा असयः
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स्वा॑य॒सा अ॒सयः॑ सन्ति नो गृ॒हे वि॒द्मा ते॑ कृत्ये यति॒धा परूं॑षि।
उत्ति॑ष्ठै॒व परे॑ही॒तोऽज्ञा॑ते॒ किमि॒हेच्छ॑सि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
स्वा॑य॒सा अ॒सयः॑ सन्ति नो गृ॒हे वि॒द्मा ते॑ कृत्ये यति॒धा परूं॑षि।
उत्ति॑ष्ठै॒व परे॑ही॒तोऽज्ञा॑ते॒ किमि॒हेच्छ॑सि ॥
२० स्वायसा असयः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- There are knives of good metal in our house; we know thy joints, O
witchcraft, how many they are; just stand up; go away from here; unknown
one, what seekest thou here?
Notes
That is, ’thou who art no acquaintance of ours.’ The Anukr. is much more
scrupulous than usual in calling the verse (12 + 11: 8 + 8 = 39) virāj
⌊scanning a perhaps as 11⌋. Ppp. begins with svayasā. The third pāda
is quoted in Kāuś. 39. 19.
Griffith
Within our house are swords of goodly iron. Kritya, we know thy joints and all their places. Arise this instant and begone! What, stranger! art thou seek- ing here?
पदपाठः
सु॒ऽआ॒य॒साः। अ॒सयः॑। स॒न्ति॒। नः॒। गृ॒हे। वि॒द्म। ते॒। कृ॒त्ये॒। य॒ति॒ऽधा। परूं॑षि। उत्। ति॒ष्ठ॒। ए॒व। परा॑। इ॒हि॒। इ॒तः। अज्ञा॑ते। किम्। इ॒ह। इ॒च्छ॒सि॒। १.२०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- विराट्प्रस्तारपङ्क्तिः
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (स्वायसाः) सुन्दर रीति से लोहे की बनी (असयः) तलवारें (नः गृहे) हमारे घर में (सन्ति) हैं, (कृत्ये) हे हिंसा क्रिया ! (ते) तेरे (परूंषि) जोड़ों को, (यतिधा) जितने प्रकार के हैं, (विद्म) हम जानते हैं। (एव) बस (उत् तिष्ठ) खड़ी हो जा, (इतः) यहाँ से (परा इहि) चली जा, (अज्ञाते) हे अपरिचित ! तू (इह) यहाँ (किम्) क्या (इच्छसि) चाहती है ॥२०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सेनापति अच्छे-अच्छे अस्त्र-शस्त्रों से शत्रुओं के अस्त्र-शस्त्र और सेना का नाश करे, और अनजान पुरुष को न आने दे ॥२०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २०−(स्वायसाः) अयस्-अण्। सु सुष्ठु अयसा लौहेन निर्मिताः (असयः) तरवारयः (सन्ति) (नः) अस्माकम् (गृहे) (विद्म) जानीमः (ते) तव (कृत्ये) हे हिंसाक्रिये (यतिधा) यत्प्रकाराणि (परूंषि) ग्रन्थीन् (उत्तिष्ठ) (एव) अवश्यम्, (परेहि) (इतः) (अज्ञाते) हे अपरिचिते हिंसे (किम्) (इह) (इच्छसि) आकाङ्क्षसि ॥
२१ ग्रीवास्ते कृत्ये
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ग्री॒वास्ते॑ कृत्ये॒ पादौ॒ चापि॑ कर्त्स्यामि॒ निर्द्र॑व।
इ॑न्द्रा॒ग्नी अ॒स्मान्र॑क्षतां॒ यौ प्र॒जानां॑ प्र॒जाव॑ती ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ग्री॒वास्ते॑ कृत्ये॒ पादौ॒ चापि॑ कर्त्स्यामि॒ निर्द्र॑व।
इ॑न्द्रा॒ग्नी अ॒स्मान्र॑क्षतां॒ यौ प्र॒जानां॑ प्र॒जाव॑ती ॥
२१ ग्रीवास्ते कृत्ये ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Thy neck-bones (grīvā́), O witchcraft, and thy (two) feet I will
cut up; run thou out; let Indra-and-Agni defend us, they who are of
progeny rich in progeny.
Notes
Prajā́vatī at the end looks like a corruption of prajā́patī, which
Ppp. reads ⌊R’s collation has prajapatī⌋. Ppp. also has in c enāṁ
vṛścatā. But Kāuś., which quotes the last half-verse in full in 5. 2,
reads prajāvatī. The same half-verse appears also by pratīka in
Vāit. 8. 6 (unless Vāit. takes it rather from Kāuś.).
Griffith
O Kritya, I will cut thy throat and hew thy feet off. Run, be- gone! Indra and Agni, Guardian Lords of living creatures, shield us well!
पदपाठः
ग्री॒वाः। ते॒। कृ॒त्ये॒। पादौ॑। च॒। अपि॑। क॒र्त्स्या॒मि॒। निः। द्र॒व॒। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। अ॒स्मान्। र॒क्ष॒ता॒म्। यौ। प्र॒ऽजाना॑म्। प्र॒जाव॑ती॒ इति॑ प्र॒जाऽव॑ती। १.२१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- अनुष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कृत्ये) हे हिंसा क्रिया ! (ते) तेरी (ग्रीवाः) ग्रीवा की नाड़ियों (च) और (पादौ) दोनों पैरों को (अपि) भी (कर्त्स्यामि) मैं काटूँगा, (निः द्रव) निकल जा। (इन्द्राग्नी) वायु और अग्नि [के समान राजा और मन्त्री] (अस्मान्) हमारी (रक्षताम्) रक्षा करें, (यौ) जो दोनों (प्रजानाम्) प्रजाओं के बीच (प्रजावती) श्रेष्ठ प्रजावाली [माता के तुल्य हैं] ॥२१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा और मन्त्री दुराचारियों के गले और पदादि अङ्ग कटवा कर प्रजा की सदा रक्षा करें ॥२१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २१−(ग्रीवाः) कण्ठनाडीः (ते) तव (कृत्ये) हे हिंसाक्रिये (पादौ, च, अपि) (कर्त्स्यामि) छेत्स्यामि (निर्द्रव) निर्गच्छ (इन्द्राग्नी) वाय्वग्नितुल्यौ राजमन्त्रिणौ (अस्मान्) प्रजागणान् (रक्षताम्) (यौ) (प्रजानाम्) प्रजानां मध्ये (प्रजावता) श्रेष्ठप्रजायुक्ता माता यथा ॥
२२ सोमो राजाधिपा
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सोमो॒ राजा॑धि॒पा मृ॑डि॒ता च॑ भू॒तस्य॑ नः॒ पत॑यो मृडयन्तु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सोमो॒ राजा॑धि॒पा मृ॑डि॒ता च॑ भू॒तस्य॑ नः॒ पत॑यो मृडयन्तु ॥
२२ सोमो राजाधिपा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- King Soma [is] our over-ruler and favorer (mṛḍitṛ́); let the
lords of being favor us.
Notes
The verse properly contains 22 syllables (11 + 11), and should therefore
be called a sāmnī triṣṭubh. Ppp. reads in b ṛtasya naṣ.
Griffith
May Soma, gracious friend, imperial Sovran, and the world’s Masters look on us with favour.
पदपाठः
सोमः॑। राजा॑। अ॒धि॒ऽपाः। मृ॒डि॒ताः। च॒। भू॒तस्य॑। नः॒। पत॑यः। मृ॒ड॒य॒न्तु॒। १.२२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- एकावसाना द्विपदार्च्युष्णिक्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सोमः) ऐश्वर्यवान् (राजा) राजा (अधिपाः) अधिक पालन करनेवाला (च) और (मृडिता) सुख देनेवाला है, (भूतस्य) संसार के (पतयः) पालन करनेवाले [राजपुरुष] (नः) हमें (मृडयन्तु) सुख देते रहें ॥२२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा और राजपुरुष प्रजा को सुख पहुँचाने में सदा तत्पर रहें ॥२२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २२−(सोमः) ऐश्वर्यवान् (राजा) शासकः (अधिपाः) अधिकपालकः (मृडिता) सुखयिता (च) (भूतस्य पतयः) संसारस्य पालका राजपुरुषाः (नः) अस्मान् (मृडयन्तु) सुखयन्तु ॥
२३ भवाशर्वावस्यतां पापकृते
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भ॑वाश॒र्वाव॑स्यतां पाप॒कृते॑ कृत्या॒कृते॑।
दु॒ष्कृते॑ वि॒द्युतं॑ देवहे॒तिम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
भ॑वाश॒र्वाव॑स्यतां पाप॒कृते॑ कृत्या॒कृते॑।
दु॒ष्कृते॑ वि॒द्युतं॑ देवहे॒तिम् ॥
२३ भवाशर्वावस्यतां पापकृते ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Let Bhava-and-śarva hurl (as) at the evil-doer, the
witchcraft-maker, the ill-doer, the missile of the gods, the lightning.
Notes
Ppp. reads in a pāpakṛtvane ⌊which is metrically much better⌋. The
definition of the verse by the Anukr. is very stupid; it is plainly two
triṣṭubh pādas, with an intruded word of three syllables (either
duṣkṛ́te or vidyútam; either could be spared). The mss. insert a
cesura-mark after kṛtyākṛ́te.
Griffith
Bhava and Sarva cast the flash of lightning, the weapon of the Gods, against the sinner who made the evil thing, who deals in witchcraft!
पदपाठः
भ॒वा॒श॒र्वौ। अ॒स्य॒ता॒म्। पा॒प॒ऽकृते॑। कृ॒त्या॒ऽकृते॑। दुः॒ऽकृते॑। वि॒ऽद्युत॑म्। दे॒व॒ऽहे॒तिम्। १.२३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- त्रिपदा भुरिग्विषमा गायत्री
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (भवाशर्वौ) सुख देनेवाले और दुःख नाश करनेवाले [राजा और मन्त्री दोनों] (पापकृते) पाप करनेवाले (कृत्याकृते) हिंसा करनेवाले और (दुष्कृते) दुष्कर्मी पुरुष के लिये (देवहेतिम्) विद्वानों के वज्र (विद्युतम्) बिजुली [के शस्त्र] को (अस्यताम्) गिरावें ॥२३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा और मन्त्री दुष्टों को यथावत् दण्ड देकर प्रजा में शान्ति रक्खें ॥२३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २३−(भवाशर्वौ) अ० ८।२।७। सुखस्य भावयिता कर्ता भवो राजा, दुःखस्य शरिता नाशकः शर्वो मन्त्री च तौ (अस्यताम्) प्रेरयताम् (पापकृते) पापकारिणे (कृत्याकृते) म० २। हिंसाकारिणे (दुष्कृते) दुष्कर्मिणे (विद्युतम्) अशनिरूपं शस्त्रम् (देवहेतिम्) विदुषां वज्रम् ॥
२४ यद्येयथ द्विपदी
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यद्ये॒यथ॑ द्वि॒पदी॒ चतु॑ष्पदी कृत्या॒कृता॒ संभृ॑ता वि॒श्वरू॑पा।
सेतो॒३॒॑ष्टाप॑दी भू॒त्वा पुनः॒ परे॑हि दुच्छुने ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यद्ये॒यथ॑ द्वि॒पदी॒ चतु॑ष्पदी कृत्या॒कृता॒ संभृ॑ता वि॒श्वरू॑पा।
सेतो॒३॒॑ष्टाप॑दी भू॒त्वा पुनः॒ परे॑हि दुच्छुने ॥
२४ यद्येयथ द्विपदी ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If thou camest [as] biped, as quadruped, put together by the
witchcraft-maker, all-formed, do thou, becoming octoped, go away again
from here, O misfortune!
Notes
The verse has the same structure as 20. The pada-text here and in vs.
28 reads ā॰iyátha.
Griffith
If thou hast come two-footed or four-footed, made by the sorcerer, wrought in perfect beauty, Become eight-footed and go hence. Speed back again, thou evil one.
पदपाठः
यदि॑। आ॒ऽइ॒यथ॑। द्वि॒ऽपदी॑। चतुः॑ऽपदी। कृ॒त्या॒ऽकृता॑। सम्ऽभृ॑ता। वि॒श्वऽरू॑पा। सा। इ॒तः। अ॒ष्टाऽप॑दी। भू॒त्वा। पुनः॑। परा॑। इ॒हि॒। दु॒च्छु॒ने॒। १.२४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- अनुष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) जो (कृत्याकृता) हिंसा करनेवाले पुरुष द्वारा (संभृता) साधी गयी, (विश्वरूपा) अनेक रूपवाली [हिंसा] (द्विपदी) दोनों [स्त्री-पुरुष समूह] में गतिवाली, (चतुष्पदी) चारों [ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यासाश्रम] में पदवाली और (अष्टापदी) आठों [चार पूर्व आदि और चार आग्नेय आदि मध्य दिशाओं] में व्याप्तिवाली (भूत्वा) होकर (एयथ) तू आयी है। (सा) सो (दुच्छुने) हे दुष्टगतिवाली ! तू (इतः) यहाँ से (पुनः) लौटकर (परा इहि) चली जा ॥२४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - स्त्री-पुरुषों में हिंसा कर्म बढ़ने से आश्रमव्यवस्था टूटकर संसार में दुःख फैलता है, इस से बुद्धिमान् राजा हिंसा को सदा नष्ट करे ॥२४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २४−(यदि) सम्भावनायाम् (एयथ) आ+इण् गतौ-लिट्। एयेथ। त्वमागतवती (द्विपदी) द्वयोः स्त्रीपुरुषसमूहयोर्मध्ये पदं गमनं यस्याः सा (चतुष्पदी) चतुर्षु ब्रह्मचर्याद्याश्रमेषु पदं स्थितिर्यस्याः सा (कृत्याकृता) म० २। हिंसाकारकेण (संभृता) निष्पादिता (विश्वरूपा) अनेकविधा (सा) सा त्वम् (इतः) अस्मात् स्थानात् (अष्टापदी) अष्टसु चतसृषु पूर्वादिदिक्षु आग्नेयादिमध्यदिक्षु च पदं व्याप्तिर्यस्याः सा (भूत्वा) (पुनः) पश्चात् (परेहि) निर्गच्छ (दुच्छुने) अ० ५।१७।४। हे दुष्टगते ॥
२५ अभ्यक्ताक्ता स्वरङ्कृता
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अ॒भ्य१॒॑क्ताक्ता॒ स्व॑रंकृता॒ सर्वं॒ भर॑न्ती दुरि॒तं परे॑हि।
जा॑नीहि कृत्ये क॒र्तारं॑ दुहि॒तेव॑ पि॒तरं॒ स्वम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒भ्य१॒॑क्ताक्ता॒ स्व॑रंकृता॒ सर्वं॒ भर॑न्ती दुरि॒तं परे॑हि।
जा॑नीहि कृत्ये क॒र्तारं॑ दुहि॒तेव॑ पि॒तरं॒ स्वम् ॥
२५ अभ्यक्ताक्ता स्वरङ्कृता ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Anointed, smeared, well-adorned, bearing all difficulty, go thou
away; recognize (jñā), O witchcraft, thy maker, as a daughter her own
father.
Notes
The definition of this verse appears to be omitted in the Anukr., as we
can hardly be meant to take it for an anuṣṭubh. The first pāda is
capable of being crowded together into 8 syllables, or expanded into 12
(either procedure being about equally strained), making the verse either
an urobṛhatī or a prastārapan̄kti. It is quoted in Kāuś. 39. 18.
Griffith
Anointed, balmed, and well adorned, bearing all trouble with thee, go. Even as a daughter knows her sire, so know thy marker, Kritya, thou.
पदपाठः
अ॒भिऽअ॑क्ता। आऽअ॑क्ता। सुऽअ॑रंकृता। सर्व॑म्। भर॑न्ती। दुः॒ऽइ॒तम्। परा॑। इ॒हि॒। जा॒नी॒हि॒। कृ॒त्ये॒। क॒र्तार॑म्। दु॒हि॒ताऽइ॑व। पि॒तर॑म्। स्वम्। १.२५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- अनुष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अभ्यक्ता) मली गयी, (आक्ता) चिकनी की गयी, (स्वरङ्कृता) भले प्रकार सजाई गयी, (सर्वम्) प्रत्येक (दुरितम्) सङ्कट को (भरन्ती) धारण करती हुई तू (परा इहि) चली जा। (कृत्ये) हे हिंसा ! तू (कर्तारम्) अपने बनानेवाले को (जानीहि) जान, (इव) जैसे (दुहिता) पुत्री (स्वम् पितरम्) अपने पिता को [जानती है] ॥२५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो शत्रु लोग छल करके दुःख देनेवाली क्रिया को सुखदायी दिखावें, विद्वान् उस भेद को जानकर दुष्टों को दण्ड देवें ॥२५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २५−(अभ्यक्ता) अञ्जू-क्त। अभितो मर्दिता (आक्ता) आङ् अञ्जू-क्त। समन्तात् स्निग्धा (स्वरङ्कृता) सुभूषिता (सर्वम्) (भरन्ती) धरन्ती (दुरितम्) कष्टम् (परेहि) (जानीहि) (कृत्ये) हे हिंसाक्रिये (कर्तारम्) रचयितारम् (दुहिता इव) पुत्री यथा (पितरम्, स्वम्) ॥
२६ परेहि कृत्ये
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परे॑हि कृत्ये॒ मा ति॑ष्ठो वि॒द्धस्ये॑व प॒दं न॑य।
मृ॒गः स मृ॑ग॒युस्त्वं न त्वा॒ निक॑र्तुमर्हति ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
परे॑हि कृत्ये॒ मा ति॑ष्ठो वि॒द्धस्ये॑व प॒दं न॑य।
मृ॒गः स मृ॑ग॒युस्त्वं न त्वा॒ निक॑र्तुमर्हति ॥
२६ परेहि कृत्ये ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Go away, O witchcraft; stand not; lead, as it were, the track of one
pierced; it is a deer, thou a deer-hunter; it is unable to put thee
down.
Notes
‘Lead,’ in b, appears to be used in the sense of ‘follow’; the
’track’ is doubtless that of the maker: ⌊cf. note to xi. 2. 13⌋. The
pada-text divides mṛga॰yúḥ: cf. Prāt. iii. 18.
Griffith
Kritya, begone, stay not. Pursue as ’twere the wounded crea- ture’s track. He is the chase, the hunter thou he may not slight or humble thee.
पदपाठः
परा॑। इ॒हि॒। कृ॒त्ये॒। मा। ति॒ष्ठः॒। वि॒ध्दस्य॑ऽइव। प॒दम्। न॒य॒। मृ॒गः। सः। मृ॒ग॒ऽयुः। त्वम्। न। त्वा॒। निऽक॑र्तृम्। अ॒र्ह॒ति॒। १.२६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- अनुष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कृत्ये) हे हिंसा ! (परा इहि) चली जा, (मा तिष्ठः) मत खड़ी हो, (विद्धस्य) घायल के [पद से] (इव) जैसे (पदम्) ठिकाने को (नय) पाले। [हे शूर !] (सः) वह [शत्रु] (मृगः) मृग [समान है], और (त्वम्) तू (मृगयुः) व्याध [समान है], वह (त्वा) तुझको (न) नहीं (निकर्तुम् अर्हति) गिरा सकता है ॥२६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा प्रयत्नपूर्वक अन्वेषण करके दुराचारियों का खोज लगावे, जैसे व्याध घायल आखेट के रुधिर चिह्न से उसे ढूढ़ लेता है ॥२६॥ मनु महाराज कहते हैं−अध्याय ८ श्लोक ४४ ॥ यथा नयत्यसृक्पातैर्मृगस्य मृगयुः पदम्। नयेत्तथानुमानेन धर्मस्य नृपतिः पदम् ॥१॥ जैसे व्याध रुधिर के गिरने से मृग का ठिकाना पा लेता है, वैसे ही राजा अनुमान से धर्म का ठिकाना पावे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २६−(परेहि) निर्गच्छ (कृत्ये) हे हिंसे (मा तिष्ठः) (विद्धस्य) व्यध ताडने-क्त। प्रहृतस्य (इव) (पदम्) स्थानम् (नय) प्राप्नुहि (मृगः) (सः) शत्रुः (मृगयुः) मृगय्वादयश्च। उ० १।३७। मृग+या प्रापणे-कु। व्याधः (त्वम्) (न) निषेधे (त्वा) (निकर्तुम्) अभिभवितुम् (अर्हति) युज्यते ॥
२७ उत हन्ति
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उ॒त ह॑न्ति पूर्वा॒सिनं॑ प्रत्या॒दायाप॑र॒ इष्वा॑।
उ॒त पूर्व॑स्य निघ्न॒तो नि ह॒न्त्यप॑रः॒ प्रति॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उ॒त ह॑न्ति पूर्वा॒सिनं॑ प्रत्या॒दायाप॑र॒ इष्वा॑।
उ॒त पूर्व॑स्य निघ्न॒तो नि ह॒न्त्यप॑रः॒ प्रति॑ ॥
२७ उत हन्ति ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Also the after one (ápara) slays with an arrow, fitting it (?),
the one shooting (-āsin) in front; also of the front one, smiting
down, the after one smites down in return.
Notes
This obscure and probably corrupt verse gets no help from Ppp., which
merely reads uto for uta in c. The Pet. Lex. suggests emendation
of -dā́ya to -dhā́ya in b, and the translation implies the change.
Griffith
He waits, and aiming with his shaft smites him who first would shoot at him, And, when the foeman deals a blow before him, following strikes him down.
पदपाठः
उ॒त। ह॒न्ति॒। पू॒र्व॒ऽआ॒सिन॑म्। प्र॒ति॒ऽआ॒दाय॑। अप॑रः। इष्वा॑। उ॒त। पूर्व॑स्य। नि॒ऽघ्न॒तः। नि। ह॒न्ति॒। अप॑रः। प्रति॑। १.२७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- अनुष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अपरः) अति श्रेष्ठ [बड़ा सावधान पुरुष] (उत) ही (पूर्वासिनम्) पहिले [चोट] चलानेवाले को (प्रत्यादाय) उलटा पकड़कर (इष्वा) तीर से (हन्ति) मारता है। (अपरः) अति श्रेष्ठ (उत) ही (पूर्वस्य निघ्नतः) पहिले चोट मारनेवाले का (प्रति) बदले में (नि निरन्तर (हन्ति) हनन करता है ॥२७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सावधान दूरदर्शी पुरुष शत्रु की चोट लगने से पहिले ही उसे मारता है, और वीर मनुष्य ही वैरी की चोट से बचकर उसका ही हनन करता है ॥२७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २७−(उत) एव। (हन्ति) (पूर्वासिनम्) पूर्व+असु क्षेपणे−णिनि। पूर्वशस्त्रक्षेप्तारम् (प्रत्यादाय) प्रतिकूलं गृहीत्वा (अपरः) नास्ति परः श्रेष्ठो यस्मात् सः। अनुत्तमः। अतिसावधानः (इष्वा) बाणेन (उत) (पूर्वस्य) अग्रवर्तिनः (निघ्नतः) नितरां हननं कुर्वतः (नि) निरन्तरम् (हन्ति) (अपरः) अतिसावधानः (प्रति) प्रतिकूलत्वेन ॥
२८ एतद्धि शृणु
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ए॒तद्धि शृ॒णु मे॒ वचोऽथे॑हि॒ यत॑ ए॒यथ॑।
यस्त्वा॑ च॒कार॒ तं प्रति॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ए॒तद्धि शृ॒णु मे॒ वचोऽथे॑हि॒ यत॑ ए॒यथ॑।
यस्त्वा॑ च॒कार॒ तं प्रति॑ ॥
२८ एतद्धि शृणु ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Hear thou, verily, these words of mine; then go whence thou camest,
to meet him who made thee.
Notes
Ppp. reads at the end punaḥ for prati.
Griffith
Hearken to this my word; then go thither away whence thou hast come; to him who made thee go thou back.
पदपाठः
ए॒तत्। हि। शृ॒णु। मे॒। वचः॑। अथ॑। इ॒हि॒। यतः॑। आ॒ऽइ॒यथ॑। यः। त्वा॒। च॒कार॑। तम्। प्रति॑। १.२८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- त्रिपदा गायत्री
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे (एनत्) इस [निर्णयसूचक] (वचः) वचन को (हि) अवश्य (शृणु) सुन, (अथ) फिर (इहि) जा, (यतः) जहाँ से (एयथ) तू आयी है। (यः) जिसने (त्वा) तुझे (चकार) बनाया है (तम् प्रति) उसके पास [जा] ॥२८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा निर्णयपूर्वक अपराधी को दोष बताकर दोष के अनुसार दण्ड देवे ॥२८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २८−(एतत्) इदं निर्णयसूचकम् (हि) अवश्यम् (शृणु) (मे) मम (वचः) वचनम् (अथ) तदा (इहि) गच्छ (यतः) यस्मात् स्थानात् (एयथ) आङ्+इण् गतौ-लिट्। एयेथ। आगतवती त्वम् (यः त्वा, चकार, तम् प्रति) ॥
२९ अनागोहत्या वै
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अ॑नागोह॒त्या वै भी॒मा कृ॑त्ये॒ मा नो॒ गामश्वं॒ पुरु॑षं वधीः।
यत्र॑य॒त्रासि॒ निहि॑ता॒ तत॒स्त्वोत्था॑पयामसि प॒र्णाल्लघी॑यसी भव ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॑नागोह॒त्या वै भी॒मा कृ॑त्ये॒ मा नो॒ गामश्वं॒ पुरु॑षं वधीः।
यत्र॑य॒त्रासि॒ निहि॑ता॒ तत॒स्त्वोत्था॑पयामसि प॒र्णाल्लघी॑यसी भव ॥
२९ अनागोहत्या वै ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The slaying of an innocent person is indeed fearful, O witchcraft;
slay thou not our cow, horse, man; wheresoever thou art set down, from
there we make thee stand up; become thou lighter than a leaf.
Notes
The pada-text has in d út: sthāp-; the example of the omitted
s is quoted under Prāt. ii. 18. The verse (10+ 10: 8 + 8 + 8 = 44) is
very badly defined by the Anukr. Ppp. reads in a -hatyam and
bhīmam.
Griffith
The slaughter of an innocent, O Kritya, is an awful deed. Slay not cow, horse, or man of ours. In whatsoever place thou art concealed we rouse thee up there- from: become thou lighter than a leaf.
पदपाठः
अ॒ना॒गः॒ऽह॒त्या। वै। भी॒मा। कृ॒त्ये॒। मा। नः॒। गाम्। अश्व॑म्। पुरु॑षम्। व॒धीः॒। यत्र॑ऽयत्र। असि॑। निऽहि॑ता। ततः॑। त्वा॒। उत्। स्था॒प॒या॒म॒सि॒। प॒र्णात्। लघी॑यसी। भ॒व॒। १.२९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- मध्ये ज्योतिष्मती जगती
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कृत्ये) हे हिंसा क्रिया ! (अनागोहत्या) निर्दोषी की हत्या (वै) अवश्य (भीमा) भयानक है, (नः) हमारी (गाम्) गौ, (अश्वम्) घोड़े और (पुरुषम्) पुरुष को (मा वधीः) मत मार। (यत्रयत्र) जहाँ-जहाँ पर तू (निहिता) गुप्त रक्खी गयी (असि) है, (ततः) वहाँ से (त्वा) तुझको (उत् स्थापयामसि) हम उठाये देते हैं, तू (पर्णात्) पत्ते से (लघीयसी) अधिक हलकी (भव) हो जा ॥२९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - राजा विचारपूर्वक अनपराधियों के गुप्त रीति से सतानेवाले दुराचारियों को उचित दण्ड देकर अपने वश में रक्खे ॥२९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २९−(अनागोहत्या) अनपराधिनो घातः (वै) अवश्यम् (भीमा) भयावहा (कृत्ये) हे हिंसाक्रिये (नः) अस्माकम् (गाम्, अश्वम्, पुरुषम्) (मा वधीः) मा हिंसीः (यत्रयत्र) यस्मिंश्चित् स्थाने (असि) (निहिता) गुप्तं स्थापिता (ततः) (त्वा) (उत् स्थापयामसि) उत्थापयामः (पर्णात्) तरुपत्रात् (लघीयसी) लघुतरा (भव) ॥
३० यदि स्थ
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यदि॒ स्थ तम॒सावृ॑ता॒ जाले॑न॒भिहि॑ता इव।
सर्वाः॑ सं॒लुप्ये॒तः कृ॒त्याः पुनः॑ क॒र्त्रे प्र हि॑ण्मसि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यदि॒ स्थ तम॒सावृ॑ता॒ जाले॑न॒भिहि॑ता इव।
सर्वाः॑ सं॒लुप्ये॒तः कृ॒त्याः पुनः॑ क॒र्त्रे प्र हि॑ण्मसि ॥
३० यदि स्थ ...{Loading}...
Whitney
Translation
- If ye are covered (ā-vṛ) with darkness, like those who are girt
(abhi-dhā) with a net—having torn up (sam-lup) all witchcrafts from
here, we send them forth again to the maker.
Notes
The pada-txt strangely reads ā́॰vṛtā in a, instead of -tāḥ.
Griffith
If ye be girt about with clouds of darkness, bound as with a net. We rend and tear all witcheries hence and to their maker send them back.
पदपाठः
यदि॑। स्थ। तम॑सा। आऽवृ॑ता। जाले॑न। अ॒भिहि॑ताःऽइव सर्वाः॑। स॒म्ऽलुप्य॑। इ॒तः। कृ॒त्याः। पुनः॑। क॒र्त्रे। प्र। हि॒ण्म॒सि॒। १.३०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- अनुष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यदि) जो तुम (तमसा) अन्धकार से (आवृता) ढक लेनेवाले (जालेन) जाल से (अभिहिताः इव) बन्धी हुई के समान (स्थ) हो। (इतः) यहाँ से (सर्वाः) सब (कृत्याः) हिंसा क्रियाओं को (संलुप्य) काट डालकर (पुनः) फिर (कर्त्रे) बनानेवाले के पास (प्र हिण्मसि) हम भेजे देते हैं ॥३०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो छली मनुष्य दीन अज्ञानियों को फाँसकर उनसे अपराध करावें, राजा खोज करके उन बहकानेवालों को उचित दण्ड देवे ॥३०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३०−(यदि, स्थ) (तमसा) अन्धकारेण (आवृता) वृणोतेः-क्विप् तुक् च। आवरकेण (जालेन) पाशेन (अभिहिताः) बद्धाः (इव) (सर्वाः) (संलुप्य) सम्यक् छित्वा (कृत्याः) दोषक्रियाः (इतः) अस्मात् स्थानात् (पुनः) पश्चात् (कर्त्रे) रचयित्रे पुरुषाय (प्र हिण्मसि) प्रेरयामः ॥
३१ कृत्याकृतो वलगिनोऽभिनिष्कारिणः
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कृ॑त्या॒कृतो॑ वल॒गिनो॑ऽभिनिष्का॒रिणः॑ प्र॒जाम्।
मृ॑णी॒हि कृ॑त्ये॒ मोच्छि॑षो॒ऽमून्कृ॑त्या॒कृतो॑ जहि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
कृ॑त्या॒कृतो॑ वल॒गिनो॑ऽभिनिष्का॒रिणः॑ प्र॒जाम्।
मृ॑णी॒हि कृ॑त्ये॒ मोच्छि॑षो॒ऽमून्कृ॑त्या॒कृतो॑ जहि ॥
३१ कृत्याकृतो वलगिनोऽभिनिष्कारिणः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The progeny of the witchcraft-maker, of him of secret spells, of him
that devises against [others], O witchcraft, do thou kill; do not
leave [them alive]; slay yonder witchcraft-makers.
Notes
Ppp. uses the singular in d.
Griffith
The brood of wizard, sorcerer, the purposer of evil deed. Crush thou, O Kritya spare not, kill those practisers of magic arts.
पदपाठः
कृ॒त्या॒ऽकृतः॑। व॒ल॒गिनः॑। अ॒भि॒ऽनि॒ष्का॒रिणः॑। प्र॒ऽजाम्। मृ॒णी॒हि। कृ॒त्ये॒। मा। उत्। शि॒षः॒। अ॒मून्। कृ॒त्या॒ऽकृतः॑। ज॒हि॒। १.३१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- अनुष्टुप्
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कृत्ये) हे कर्तव्यकुशल [सेना !] (कृत्याकृतः) हिंसा करनेवाले (वलगिनः) गुप्त कर्म करनेवाले और (अभिनिष्कारिणः) विरुद्ध यत्न करनेवाले की (प्रजाम्) प्रजा [सेवक आदि] को (मृणीहि) मार डाल, (मा उत् शिषः) मत छोड़, (अमून्) उन (कृत्याकृतः) हिंसा करनेवालों को (जहि) नाश कर ॥३१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - चतुर सेनापति अपनी सुशिक्षित सेना द्वारा शत्रुओं को दल-बल सहित नाश कर दे ॥३१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३१−(कृत्याकृतः) म० २। हिंसाकारकस्य (वलगिनः) अ० ५।३१।१२। गुप्तकर्मकारिणः (अभिनिष्कारिणः) प्रतिकूलयत्नसाधकस्य (प्रजाम्) भृत्यादिरूपाम् (मृणीहि) मारय (कृत्ये) करोतेः क्यप् तुक् च, ततः अर्शआद्यच्, टाप्, तत्सम्बुद्धौ। हे कृत्ये कर्तव्ये कुशले सेने प्रजे वा (अमून्) (कृत्याकृतः) हिंसाकारकान् (जहि) नाशय ॥
३२ यथा सूर्यो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यथा॒ सूर्यो॑ मु॒च्यते॒ तम॑स॒स्परि॒ रात्रिं॒ जहा॑त्यु॒षस॑श्च के॒तून्।
ए॒वाहं सर्वं॑ दुर्भू॒तं कर्त्रं॑ कृत्या॒कृता॑ कृ॒तं ह॒स्तीव॒ रजो॑ दुरि॒तं ज॑हामि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यथा॒ सूर्यो॑ मु॒च्यते॒ तम॑स॒स्परि॒ रात्रिं॒ जहा॑त्यु॒षस॑श्च के॒तून्।
ए॒वाहं सर्वं॑ दुर्भू॒तं कर्त्रं॑ कृत्या॒कृता॑ कृ॒तं ह॒स्तीव॒ रजो॑ दुरि॒तं ज॑हामि ॥
३२ यथा सूर्यो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- As the sun is freed out of darkness, [and] quits the night and the
ensigns of the dawn, so do I quit all evil-natured magic made by the
witchcraft-maker, as an elephant the difficult haze (? rájas).
Notes
Ppp. puts tamasas before mucyate in a, reads ketum at end of
b, and omits d altogether. The verse (12 + 11: 8 + 8 + 11 = 50)
lacks two syllables of being a full atijagatī (52). The pratīka
(yathā sūrya) is quoted in Kāuś. 39. 26; but the comm. regards vii.
13. 1, and not this, as the verse intended.
⌊The quoted Anukr. says dve (i.e. 2 above the norm of 30).⌋
Griffith
As Surya frees himself from depth of darkness, and casts away the night and rays of morning, So I repel each baleful charm which an enchanter hath pre- pared; And, as an elephant shakes off the dust, I cast the plague aside.
पदपाठः
यथा॑। सूर्यः॑। मु॒च्यते॑। तम॑सः। परि॑। रात्रि॑म्। जहा॑ति। उ॒षसः॑। च॒। के॒तून्। ए॒व। अ॒हम्। सर्व॑म्। दुः॒ऽभू॒तम्। कर्त्र॑म्। कृ॒त्या॒ऽकृता॑। कृ॒तम्। ह॒स्तीऽइव॑। रजः॑। दुः॒ऽइ॒तम्। ज॒हा॒मि॒। १.३२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कृत्यादूषणम्
- प्रत्यङ्गिरसः
- द्व्यनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदातिजगती
- कृत्यादूषण सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (सूर्यः) सूर्य (तमसः परि) अन्धकार में से (मुच्यते) छुटता है और (रात्रिम्) (च) और (उषसः) उषा [प्रभात समय] के (केतून्) चिह्नों को (जहाति) त्यागता है, (एव) वैसे ही (अहम्) मैं (कृत्याकृता) हिंसा करनेवाले करके (कृतम्) किये हुए (सर्वम्) सब (दुर्भूतम्) दुष्ट (कर्त्रम्) कर्म को (जहामि) त्यागता हूँ, (इव) जैसे (हस्ती) हाथी (दुरितम्) कठिन (रजः) देश को [पार कर जाता है] ॥३२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य को योग्य है कि अपनी तीव्र बुद्धि द्वारा दुष्टों की दुष्टता से पार होकर प्रकाशमान और प्रसन्न होवे, जैसे सूर्य अन्धकार को हटाकर प्रकाशमान होता है, अथवा जैसे हाथी कठिन स्थानों को पार कर जाता है ॥३२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३२−(यथा, सूर्यः) (मुच्यते) त्यज्यते (तमसः) अन्धकारात् (परि) पृथक् (रात्रिम्) (जहाति) त्यजति (उषसः) प्रभातवेलायाः (च) (केतून्) चिह्नानि (एव) तथा (अहम्) (सर्वम्) (दुर्भूतम्) दुष्टम् (कर्त्रम्) करोतेः ष्ट्रन्। कर्म (कृत्याकृता) म० २। हिंसाकारिणा (कृतम्) निष्पादितम् (हस्ती, इव) (रजः) लोकम्-निरु० ४।१९। देशम् (दुरितम्) दुर्गमनीयम् (जहामि) त्यजामि ॥