००५ पञ्चौदनो अजः

००५ पञ्चौदनो अजः ...{Loading}...

Whitney subject
  1. With the offering of a goat and five rice-dishes.
VH anukramaṇī

पञ्चौदनो अजः।
१-३८ भृगुः। पञ्चौदनोऽजः, मन्त्रोक्ताः। त्रिष्टुप्, ३ चतुष्पदा पुरोतिशक्वरी जगती, ४, १० जगती,
१४, १७, २७-३० अनुष्टुप् ( ३० ककुम्मती), १६ त्रिपदानुष्टुप्, १८, ३७ त्रिपदा विराड् गायत्री,
२३ पुर उष्णिक्, २४ पञ्चपदानुष्टुबुष्णिग्गर्भोपरिष्टाद्विराड् जगती, २०-२२, २६ पञ्चपदानुष्टुबुष्णिग्गर्भोपरिष्टाद्बार्हता भुरिक्,
३१ सप्तपदाष्टिः, ३२-३५ दशपदा प्रकृतिः, ३६ दशपदाऽऽकृतिः, ३८ एकावसाना द्विपदा साम्नी त्रिष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Bhṛgu.—aṣṭātriṅśat. mantroktājam pañcāudanadevatyam. trāiṣṭubham: 3. 4-p. purotiśakvarī jagatī; 4, 10. jagatī; 14, 17, 27-30. anuṣṭubh (30. kakummatī); 16. 3-p. anuṣṭubh; 18, 37. 3-p. virāḍ gājyatrī; 23. purauṣṇih; 24. 5-p. anuṣṭubuṣṇiggarbho ’pariṣṭādbārhatā virāḍ jagatī; 20-22.?; 26. 5-p. anuṣṭubuṣṇiggarbho ’pariṣṭādbārhatā bhurij; 31. 7-p. aṣṭi; 32-35. 10-p. prakṛti; 36. 10-p. ākṛti; 38. 1-av. 2-p. sāmnī triṣṭubh.]

Whitney

Comment

⌊Partly prose—“vss.” 16, 20-22, 31-36; also considerable parts of 23-30.⌋ Found for the most part also in Pāipp., but not all together, nor even all in the same book; the greater part of the vss. (1, 3-6, 8, 7, 11, 9, 12, 10, 13-15, 19-21, 23, 24, 2) occur in xvi.; vss. 16, 17, 37 (part) in iii.; vss. 27, 28 in viii.; vss. 24-26, 31-36 are represented by similar, but briefer and very corrupt material, in xvi.; vss. 18, 22, 37 (part), 38 are wanting ⌊apparently also 29-30⌋. Three of the verses are quoted in Vāit., and more in Kāuś.: see under the verses.

Translations

Translated: Muir, v. 304-6 (parts); Ludwig, p. 435; Henry, 93, 133; Griffith, i. 442.

Griffith

A glorification of a sacrificial goat

०१ आ नयैतमा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

आ न॑यै॒तमा र॑भस्व सु॒कृतां॑ लो॒कमपि॑ गच्छतु प्रजा॒नन्।
ती॒र्त्वा तमां॑सि बहु॒धा म॒हान्त्य॒जो नाक॒मा क्र॑मतां तृ॒तीय॑म् ॥

०१ आ नयैतमा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Conduct him hither; take hold; let him go, foreknowing, unto the
    world of the well-doing; crossing the great darknesses variously, let
    the goat step unto the third firmament (nā́ka).
Notes

Ppp. has, in c, vipaśyaṁ for mahānti: cf. our 3 c. The first
six verses of the hymn are quoted in their order in Kāuś. 64. 6-16 (vs.
1 also in 64. 27) in connection with the bringing in, slaughtering, and
cooking of a goat; vss. 1 and 2 also in Vāit. 10. 14, 15, in connection
with the sacrifice of an animal. This verse is called by the Anukr.
simply a triṣṭubh, although its first half is very irregular (8 + 13).

Griffith

Seize him and bring him hither. Let him travel. foreknowing, to the regions of the pious. Crossing in many a place the mighty darkness, let the Goat mount to the third heaven above us.

पदपाठः

आ। न॒य॒। ए॒तम्। आ। र॒भ॒स्व॒। सु॒ऽकृता॑म्। लो॒कम्। अपि॑। ग॒च्छ॒तु॒। प्र॒ऽजा॒नन्। ती॒र्त्वा। तमां॑सि। ब॒हु॒ऽधा। म॒हान्ति॑। अ॒जः। नाक॑म्। आ। क्र॒म॒ता॒म्। तृ॒तीय॑म्। ५.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्य !] (एतम्) इस [जीवात्मा] को (आ नय) ला और (आ) भले प्रकार (रभस्व) उत्सुक [उत्साही] बन, (प्रजानन्) भले प्रकार जानता हुआ वह (सुकृताम्) सुकर्मियों के (लोकम्) दर्शनीय लोक को (अपि) ही (गच्छतु) प्राप्त हो। (बहुधा) अनेक प्रकार से (महान्ति) बड़े-बड़े (तमांसि) अन्धकारों [अज्ञानों] को (तीर्त्वा) तरके (अजः) अजन्मा वा गतिशील अज अर्थात् जीवात्मा (तृतीयम्) तीसरे [जीव और प्रकृति से भिन्न] (नाकम्) सुखस्वरूप परमात्मा को (आ क्रमताम्) यथावत् (प्राप्त करे) ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पुरुषार्थ करके अपने आत्मा को अज्ञानों से हटाकर सच्चिदानन्दस्वरूप परमेश्वर को पाकर आनन्द भोगे ॥१॥ इस सूक्त का मिलान अथर्ववेद काण्ड ४ सूक्त १४ से करो ॥ यह मन्त्र स्वामिदयानन्दकृतसंस्कारविधि वानप्रस्थप्रकरण में व्याख्यात है। उन्होंने (नाकम्) का अर्थदुःखरहित वानप्रस्थ किया है, जो ब्रह्मचर्य और गृहाश्रम से तीसरा है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(आ नय) प्रापय (एनम्) अजं जीवात्मानम् (आ) समन्तात् (रभस्व) उत्सुको भव। उत्साहं कुरु (सुकृताम्) सुकर्मिणाम् (लोकम्) दर्शनीयं पदम् (अपि) अवधारणे (गच्छतु) प्राप्नोतु (प्रजानन्) प्रकर्षेण विद्वान् (तीर्त्वा) पारयित्वा (तमांसि) अन्धकारान्। अबोधान् (बहुधा) अनेकप्रकारेण (महान्ति) बृहन्ति (अजः) न जायते यः, नञ्+जन-ड। यद्वा, अज गतिक्षेपणयोः-अच्। अजा अजनाः-निरु० ४।२५। अजन्मा। गतिशीलः। परमेश्वरः। जीवात्मा (नाकम्) अ–० १।९।२। सुखस्वरूपं परमात्मानम् (आ) समन्तात् (क्रमताम्) प्राप्नोतु (तृतीयम्) जीवप्रकृतिभ्यां भिन्नम् ॥

०२ इन्द्राय भागम्

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इन्द्रा॑य भा॒गं परि॑ त्वा नयाम्य॒स्मिन्य॒ज्ञे यज॑मानाय सू॒रिम्।
ये नो॑ द्वि॒षन्त्यनु॒ तान्र॑भ॒स्वाना॑गसो॒ यज॑मानस्य वी॒राः ॥

०२ इन्द्राय भागम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. I lead thee about as portion for Indra, as patron (sūrí) for the
    sacrificer at this sacrifice; whoever hate us, them take hold after;
    innocent (ánāgas) [are] the sacrificer’s heroes.
Notes

The verse in Ppp. (as noted above) follows what corresponds to our vs.
24, and has, for a, b, ind. bh. śamitā kṛṇotvaṁ yajña yajñapatiś ca
sūriḥ;
and, for d, ariṣṭā vīrā yajamānāś ca sarve.

Griffith

I bring thee hither as a share for Indra; prince, at this sacrifice,. for him who worships. Grasp firmly from behind all those who hate us: so let the sacri- ficer’s men be sinless.

पदपाठः

इन्द्रा॑य। भा॒गम्। परि॑। त्वा॒। न॒या॒मि॒। अ॒स्मिन्। य॒ज्ञे। यज॑मानाय। सू॒रिम्। ये। नः॒। द्वि॒षन्ति॑। अनु॑। तान्। र॒भ॒स्व॒। अना॑गसः। यज॑मानस्य। वी॒राः। ५.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे अज, आत्मा !] (अस्मिन्) इस (यज्ञे) संगतिकरण व्यवहार में (यजमानाय) यजमान [संगतिकर्ता] को (इन्द्राय) परम ऐश्वर्य के लिये (त्वा) तुझे (सूरिम्) विद्वान् (भागम् परि) सेवनीय [परमात्मा] की ओर (नयामि) मैं लाता हूँ। (ये) जो [दोष] (नः) हमें (द्विषन्ति) सताते हैं, (तान्) उनको (अनु रभस्व) निरन्तर पकड़ [वश में कर], (यजमानस्य) श्रेष्ठ व्यवहारवाले के (वीरः) वीर पुरुष (अनागसः) निर्दोष [होवें] ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो पुरुष परम ऐश्वर्यवाले परमात्मा में श्रद्धा करके अपने दोषों को मिटाते हैं, वे अपनी और संसार की उन्नति करते हैं ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(इन्द्राय) परमैश्वर्यप्राप्तये (भागम्) भज सेवायाम्-घञ्। सेवनीयम् (परि) प्रति। अनुलक्ष्य (त्वा) जीवात्मानम् (नयामि) गमयामि (अस्मिन्) (यज्ञे) संगतिकरणे (यजमानाय) संगतिकरणशीलाय (सूरिम्) अ० २।११।४। विद्वांसम् (ये) दोषाः (नः) अस्मान् (द्विषन्ति) दूषयन्ति (अनु) निरन्तरम् (तान्) (रभस्व) लभस्व। निगृहाण (अनागसः) अ० ७।६।३। अनपराधाः (यजमानस्य) श्रेष्ठव्यवहारिणः (वीराः) शूराः ॥

०३ प्र पदोऽव

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प्र प॒दोऽव॑ नेनिग्धि॒ दुश्च॑रितं॒ यच्च॒चार॑ शु॒द्धैः श॒फैरा क्र॑मतां प्रजा॒नन्।
ती॒र्त्वा तमां॑सि बहु॒धा वि॒पश्य॑न्न॒जो नाक॒मा क्र॑मतां तृ॒तीय॑म् ॥

०३ प्र पदोऽव ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Away from his foot wash thou down the evil walk that he walked
    (car); with cleansed hoofs let him step on, foreknowing; crossing the
    darknesses, variously looking abroad let the goat step unto the third
    firmament.
Notes

Or padás in a may be accus. pl.; the redundancy of the pāda, in
sense and meter, is an indication of intrusion; but the mode of its
reduction to proper shape is not obvious, and Ppp. gives no help. Ppp.
has, instead of our c, d, te jyotiṣmantaṁ sukṛtāl lokam īpsan
tṛtīye nāke adhi vikramasva
.

Griffith

Wash from his feet all trace of evil-doing: foreknowing, with cleansed hooves let him go upward. Gazing on many a spot, crossing the darkness, let the Goat mount to the third heaven above us.

पदपाठः

प्र। प॒दः। भव॑। ने॒नि॒ग्धि॒। दुःऽच॑रितम्। यत्। च॒चार॑। शु॒ध्दैः। श॒फैः। आ। क्र॒म॒ता॒म्। प्र॒ऽजा॒नन्। ती॒र्त्वा। तमां॑सि। ब॒हु॒ऽधा। वि॒ऽपश्य॑न्। अ॒जः। नाक॑म्। आ। क्र॒म॒ता॒म्। तृतीय॑म्। ५.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • चतुष्पदा पुरोऽतिशक्वरी जगती
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे ईश्वर !] [इसके] (पदः) पद [अधिकार] से (दुश्चरितम्) उस दुष्ट कर्म को (प्र) अच्छे प्रकार (अव नेनिग्धि) शुद्ध कर दे, (यत्) जो कुछ (चचार) उस [जीव] ने किया है, (प्रजानन्) बड़ा ज्ञानवान् वह (शुद्धैः) शुद्ध (शफैः) सूक्ष्म विचारों से (आ क्रमताम्) ऊपर चढ़ जावे। (तमांसि) अन्धकारों को (तीर्त्वा) पार करके, (बहुधा) अनेक प्रकार से (विपश्यन्) दूर-दूर देखता हुआ (अजः) अजन्मा वा गतिशील जीवात्मा (तृतीयम्) तीसरे [जीव और प्रकृति से अलग] (नाकम्) सुखस्वरूप परमात्मा को (आ क्रमताम्) यथावत् प्राप्त करे ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - योगी जन ज्ञान द्वारा अविद्या आदि अन्धकारों से छूटकर शुद्ध मुक्तस्वरूप परमात्मा की शरण लेकर बड़ा दूरदर्शी होकर आनन्द भोगता है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(प्र) प्रकर्षेण (पदः) पद स्थैर्ये गतौ च-क्विप्। पदात्। अधिकारात् (अव) सर्वथा (नेनिग्धि) णिजिर् शौचपोषणयोः-लोट्। शोधय (दुश्चरितम्) दुष्कर्म (यत्) (चचार) कृतवान् (शुद्धैः) निर्मलैः (शफैः) शम शान्तिकरणे आलोचने च-अच्, मस्य फः। सूक्ष्मविचारैः (विपश्यन्) परितोऽवलोकयन्। अन्यत्पूर्ववत्-म० १ ॥

०४ अनुछ्य श्यामेन

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अनु॑छ्य श्या॒मेन॒ त्वच॑मे॒तां वि॑शस्तर्यथाप॒र्व१॒॑सिना॒ माभि मं॑स्थाः।
माभि द्रु॑हः परु॒शः क॑ल्पयैनं तृ॒तीये॒ नाके॒ अधि॒ वि श्र॑यैनम् ॥

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Whitney
Translation
  1. Cut along this skin with the dark [metal], O slaughterer, joint by
    joint with the knife (así); do not plot against [him]; do not be
    hostile to [him]; prepare him joint-wise; set him up apart in the
    third firmament.
Notes

Ppp. has, for d, sukṛtām madhye adhi vi śraye ’mam. The Anukr.
weakly calls the verse a jagatī, although it is a triṣṭubh with
three redundant syllables (doubtless śyāména or viśastar) in a.
The pada-text divides paru॰śaḥ, by Prāt. iv. 19.

Griffith

Cut up this skin with the grey knife, Dissector! dividing joint from joint, and mangle nothing Do him no injury: limb by limb arrange him, and send him up to the third cope of heaven.

पदपाठः

अनु॑। च्छ्य॒। श्या॒मेन॑। त्वच॑म्। ए॒ताम्। वि॒ऽश॒स्तः॒। य॒था॒ऽप॒रु। अ॒सिना॑। मा। अ॒भि। मं॒स्थाः॒। मा। अ॒भि। द्रु॒हः॒। प॒रु॒ऽशः। क॒ल्प॒य॒। ए॒न॒म्। तृ॒तीये॑। नाके॑। अधि॑। वि। श्र॒य॒। ए॒न॒म्। ५.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • जगती
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (विशन्तः) हे अविद्यानाशक ! तू (एताम्) इस [हृदयस्य] (त्वचम्) ढकनेवाली [अविद्या] को (यथापरु) पूर्णता के साथ (श्यामेन) ज्ञान से और (असिना) गति अर्थात् उपाय से (अनु छ्य) काट डाल, और (मा अभि मंस्थाः) मत अभिमान कर। (परुशः) पालन का विचार करनेवाला तू (मा अभि द्रुहः) मत द्रोह कर, (एनम्) इस [जीव] को (कल्पय) समर्थ कर और (तृतीये) तीसरे [जीव और प्रकृति से अलग] (नाके) सुखस्वरूप परमेश्वर में (एनम्) इसको (अधि) अधिकारपूर्वक (वि श्रय) फैलकर आश्रय दे ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - आत्मदर्शी विवेकपूर्वक मिथ्या ज्ञान का नाश करके निरभिमानी, सर्वोपकारी और पराक्रमी होकर परमात्मा का आश्रय लेकर आनन्दित होता है ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(अनु) निरन्तरम् (छ्य) तनूकुरु (श्यामेन) इषियुधीन्धिदसिश्याधूसूभ्यो मक्। उ० १।१४५। श्यैङ् गतौ-मक्। श्याम श्यायतेः-निरु० ४।३। ज्ञानेन (त्वचम्) त्वच आवरणे-क्विप्। आवरणशीलाम्। अविद्याम् (एताम्) हृदयस्थाम् (विशस्तः) ग्रसितस्कभितस्तभितो०। पा० ७।२।३४। शसु हिंसायाम्−तृच्, इडभावः हे अविद्यानाशक (यथापरु) भृमृशीङ्तॄ०। उ० १।७। पॄ पालनपूरणयोः-उ प्रत्ययः। पूर्णतामनतिक्रम्य (असिना) खनिकष्यज्यसिवसि०। उ० ४।१४०। अस गतौ दीप्तौ च-इ प्रत्ययः। गत्या प्रयत्नेन (मा अभि मंस्थाः) मन ज्ञाने−लुङ्। अभिमानं मा कुरु (मा अभि द्रुहः) अनिष्टं मा चिन्तय (परुशः) पॄ पालनपूरणयोः-उ प्रत्ययः+शम आलोचने-ड प्रत्ययः। परुं पालनं शमयति विचारयति यः (कल्पय) समर्थय (एनम्) जीवात्मानम् (तृतीये) म० १। (नाके) सुखस्वरूपे परमात्मनि (अधि) अधिकृत्य (वि) विस्तारेण (श्रय) स्थापय (एनम्) ॥

०५ ऋचा कुम्भीमध्यग्नौ

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ऋ॒चा कु॒म्भीमध्य॒ग्नौ श्र॑या॒म्या सि॑ञ्चोद॒कमव॑ धेह्येनम्।
प॒र्याध॑त्ता॒ग्निना॑ शमितारः शृ॒तो ग॑च्छतु सु॒कृतां॒ यत्र॑ लो॒कः ॥

०५ ऋचा कुम्भीमध्यग्नौ ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. With a verse I set the kettle upon the fire; pour thou on the water;
    set him down; set [him] about with fire, ye quellers; when cooked, let
    him go where is the world of the well-doing.
Notes

Ppp. has instead, for a, bhūmyāṁ bhūmim adhi dhārayāmi; and, in
b, abhi for ava. The successive parts of the verse are quoted in
Kāuś. 64. 11-15, to accompany corresponding acts. The Anukr. does not
heed the redundant syllable in d.

Griffith

With verse upon the fire I set the caldron: pour in the water; lay him down within it! Encompass him with fire, ye Immolators. Cooked, let him reach the world where dwell the righteous.

पदपाठः

ऋ॒चा। कु॒म्भीम्। अधि॑। अ॒ग्नौ। श्र॒या॒मि॒। आ। सि॒ञ्च॒। उ॒द॒कम्। अव॑। धे॒हि॒। ए॒न॒म्। प॒रि॒ऽआध॑त्त। अ॒ग्निना॑। श॒मि॒ता॒रः॒। शृ॒तः। ग॒च्छ॒तु॒। सु॒ऽकृता॑म्। यत्र॑। लो॒कः। ५.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे जीवात्मा !] (ऋचा) वेदवाणी से (कुम्भीम्) बटलोही को (अग्नौ अधि) अग्नि पर (श्रयामि) मैं रखता हूँ, तू (उदकम्) जल (आ सिञ्च) सींच दे, (एनम्) इस [अन्न जैसे जीवात्मा] को (अव धेहि) तू धर दे। (शमितारः) हे विचारवानो ! (अग्निना) अग्नि से [अन्न जैसे उसको] (पर्याधत्त) तुम ढक दो, (शृतः) परिपक्व [दृढ़ बुद्धिवाला] वह [वहाँ] (गच्छतु) जावे (यत्र) जहाँ (सुकृताम्) सुकर्मियों का (लोकः) दर्शनीय स्थान है ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे चतुर सूपकार आग पर बटलोही धर जल डालकर अन्न को आग द्वारा पकाकर उपकारी बनाता है, वैसे ही योगी जन आचार्य्य की शिक्षा से ब्रह्मचर्य आदि तप करके वेद द्वारा शान्त और परिपक्व बुद्धिवाला होकर धर्म्मात्माओं के बीच धर्म्मात्मा होता है ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(ऋचा) ऋच स्तुतौ-क्विप्। ऋग् वाङ्नाम-निघ० १।११। वेदवाण्या (कुम्भीम्) उखाम् (अधि) उपरि (अग्नौ) वह्नौ (श्रयामि) स्थापयामि (आ) समन्तात् (सिञ्च) (उदकम्) (अवधेहि) अधस्ताद् धर (एनम्) जीवात्मानम् (पर्याधत्त) आच्छादयत (अग्निना) (शमितारः) शम आलोचने-तृच्। हे विचारवन्तः (शृतः) अ० ४।१४।९। परिपक्वज्ञानः (गच्छतु) (सुकृताम्) पुण्यात्मनाम् (यत्र) (लोकः) दर्शनीयं स्थानम् ॥

०६ उत्क्रामातः परि

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उत्क्रा॒मातः॒ परि॑ चे॒दत॑प्तस्त॒प्ताच्च॒रोरधि॒ नाकं॑ तृ॒तीय॑म्।
अ॒ग्नेर॒ग्निरधि॒ सं ब॑भूविथ॒ ज्योति॑ष्मन्तम॒भि लो॒कं ज॑यै॒तम् ॥

०६ उत्क्रामातः परि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Step up from here, if thou hast been completely heated, from the
    heated pot on to the third firmament; thou, a fire, hast come into being
    out of fire; conquer [thy way] unto that world of light.
Notes

The translation of a implies the emendation to átapthās, which
seems very probable; nearly all the mss. read ataptās (only E. áta-,
P.M. ataptas), which the edition has altered to átaptas. Of the
reading in Ppp. I have no note; Ppp. reads for d jyotiṣmo acha
sukṛtāṁ yatra lokaḥ;
our d is found (nearly) as its 8 d.

Griffith

Hence come thou forth, vexed by no pain or torment. Mount to the third heaven from the heated vessel. As fire out of the fire hast thou arisen. Conquer and win this lucid world of splendour.

पदपाठः

उत्। क्रा॒म॒। अतः॑। परि॑। च॒। इत्। अत॑प्तः। त॒प्तात्। च॒रोः। अधि॑। नाक॑म्। तृ॒तीय॑म्। अ॒ग्नेः। अ॒ग्निः। अधि॑। सम्। ब॒भू॒वि॒थ॒। ज्योति॑ष्मन्तम्। अ॒भि। लो॒कम्। ज॒य॒। ए॒तम्। ५.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्य !] (च) और (इत्) भी (अतप्तः) असन्तप्त [विना थका हुआ] तू (परि) सब ओर से (तप्तात्) तपाये हुए (अतः) इस (चरोः) चरु [बटलोही] से (तृतीयम्) तीसरे [जीव और प्रकृति से भिन्न] (नाकम् अधि) सुखस्वरूप जगदीश्वर की ओर (उत् क्राम) ऊपर चढ़। (अग्निः) ज्ञानवान् (अग्नेः) ज्ञानवान् परमेश्वर से (अधि) अधिकारपूर्वक (सम् बभूविथ) पराक्रमी हुआ है, (एतम्) इस (ज्योतिष्मन्तम्) प्रकाशयुक्त (लोकम् अभि) लोक की ओर (जय) जय कर ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - समर्थ विद्वान् मनुष्य परिपक्व बुद्धि से परिपक्व अन्न के समान उपकारी होता हुआ परमात्मा में ध्यान लगाकर विज्ञानमय प्रकाश को प्राप्त होता है ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(उत् क्राम) उद्गच्छ (अतः) एतस्मात् (परि) सर्वतः (च) (इत्) एव (अतप्तः) तप-क्त। असन्तप्तः। अपरिश्रान्तः (तप्तात्) (चरोः) पात्रात् (अधि) अधिलक्ष्य (नाकम्) सुखस्वरूपं परमात्मानम् (तृतीयम्) जीवप्रकृतिभ्यां भिन्नम् (अग्नेः) ज्ञानवन्तः परमेश्वरात् (अग्निः) ज्ञानवान् जीवात्मा (अधि) अधिकृत्य (संबभूविथ) समर्थो बभूविथ (ज्योतिष्मन्तम्) प्रकाशवन्तम् (अभि) अभिलक्ष्य (लोकम्) (जय) प्राप्नुहि (एतम्) ॥

०७ अजो अग्निरजमु

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अ॒जो अ॒ग्निर॒जमु॒ ज्योति॑राहुर॒जं जीव॑ता ब्र॒ह्मणे॒ देय॑माहुः।
अ॒जस्तमां॒स्यप॑ हन्ति दू॒रम॒स्मिंल्लो॒के श्र॒द्दधा॑नेन द॒त्तः ॥

०७ अजो अग्निरजमु ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The goat [is] Agni, and they call the goat light; they say that the
    goat is to be given by one living to a priest (brahmán); the goat,
    given in this world by one having faith, smites far away the darknesses.
Notes

For the first two words Ppp. reads ajam evā ’gnim; in b, it puts
jīvatā after brahmaṇe. The redundant syllable in b is not
noticed by the Anukr. ⌊See note under 8.⌋

Griffith

The Goat is Agni: light they call him, saying that living man must give him to the Brahman. Given in this world by a devout believer, the Goat dispels and drives afar the darkness.

पदपाठः

अ॒जः। अ॒ग्निः। अ॒जम्। ऊं॒ इति॑। ज्योतिः॑। आ॒हुः॒। अ॒जम्। जीव॑ता। ब्र॒ह्मणे॑। देय॑म्। आ॒हुः॒। अ॒जः। तमां॑सि। अप॑। ह॒न्ति॒। दू॒रम्। अ॒स्मिन्। लो॒के। श्र॒त्ऽदधा॑नेन। द॒त्तः। ५.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अजः) अजन्मा वा गतिशील जीवात्मा (अग्निः) अग्नि [समान शरीर में] है, (अजम्) जीवात्मा को (उ) ही [शरीर के भीतर] (ज्योतिः) ज्योति (आहुः) वे [विद्वान्] बताते हैं, और (अजम्) जीवात्मा को (जीवता) जीते हुए पुरुष करके (ब्रह्मणे) ब्रह्म [परमेश्वर] के लिये (देयम्) देने योग्य (आहुः) कहते हैं। (श्रद्दधानेन) श्रद्धा रखनेवाले पुरुष करके (दत्तः) दिया हुआ (अजः) जीवात्मा (अस्मिन् लोके) इस लोक में (तमांसि) अन्धकारों को (दूरम्) दूर (अप हन्ति) फैंक देता है ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जीता हुआ अर्थात् पुरुषार्थी योगी विद्या की प्राप्ति से परमात्मा में श्रद्धा करता हुआ अविद्यारूपी अन्धकारों को मिटाकर देदीप्यमान होता है ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(अजः) म० १। जीवात्मा (अग्निः) शरीरेऽग्निवद् व्यापकः (अजम्) जीवात्मानम् (उ) एव (ज्योतिः) प्रकाशम् (आहुः) कथयन्ति विद्वांसः (अजम्) (जीवता) प्राणं पुरुषार्थं धारयता पुरुषेण (ब्रह्मणे) परमात्मने (देयम्) समर्पणीयम् (अजः) (तमांसि) अविद्यान्धकारान् (अप हन्ति) विनाशयति (दूरम्) विप्रकृष्टदेशम् (अस्मिन्) (लोके) (श्रद्दधानेन) परमेश्वरे विश्वासधारकेण (दत्तः) समर्पितः ॥

०८ पञ्चौदनः पञ्चधा

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पञ्चौ॑दनः पञ्च॒धा वि क्र॑मतामाक्रं॒स्यमा॑न॒स्त्रीणि॒ ज्योतीं॑षि।
ई॑जा॒नानां॑ सु॒कृतां॒ प्रेहि॒ मध्यं॑ तृ॒तीये॒ नाके॒ अधि॒ वि श्र॑यस्व ॥

०८ पञ्चौदनः पञ्चधा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Having five rice-dishes, let him step out five-fold, about to step
    unto the three lights; go thou forth to the midst of the well-doing that
    have made offerings; spread out (vi-śri) upon the third firmament.
Notes

The last pāda is the same with xviii. 4. 3 e; Ppp. has instead
jyotiṣmantam abhi lokaṁ jayā ’smāi, with which compare our 6 d.
The Anukr. passes in silence the irregularities of the second pāda. ⌊Cf.
Oldenberg, ZDMG. l. 449.⌋

Griffith

Let the Panchaudana Goat, about to visit the three lights, pass away in five divisions. Go midst the pious who have paid their worship, and parted, dwell on the third cope of heaven.

पदपाठः

पञ्च॑ऽओदनः। प॒ञ्च॒ऽधा। वि। क्र॒म॒ता॒म्। आ॒ऽक्रं॒स्यमा॑नः। त्रीणि॑। ज्योतीं॑षि। ई॒जा॒नाना॑म्। सु॒ऽकृता॑म्। प्र। इ॒हि॒। मध्य॑म। तृ॒तीये॑। नाके॑। अधि॑। वि। श्र॒य॒स्व॒। ५.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पञ्चौदनः) पाँच भूतों [पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश] से सींचा हुआ [जीवात्मा] (पञ्चधा) पाँच प्रकार [गन्ध, रस, रूप, स्पर्श शब्द से] (त्रीणि) तीन [शरीर इन्द्रिय और विषय] (ज्योतींषि) ज्योतियों [दर्शनसाधनों] को (आक्रंस्यमानः) पाने की इच्छा करता हुआ (वि क्रमताम्) विक्रम [पराक्रम करे] (ईजानानाम्) यज्ञ [देवपूजा, संगतिकरण, दान] कर चुकनेवाले (सुकृताम्) सुकर्मियों के (मध्यम्) मध्य में (प्र) आगे बढ़कर (इहि) पहुँच, और (तृतीये) तीसरे [जीव प्रकृति से भिन्न] (नाके) सुखस्वरूप परमात्मा में (अधि) अधिकारपूर्वक (वि श्रयस्व) फैलकर विश्राम ले ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विवेकी पुरुष पृथिवी आदि पञ्च भूतों और उनके गन्ध आदि गुणों द्वारा संसार के शरीर, इन्द्रिय और विषय का ज्ञान प्राप्त करके धर्मात्माओं में महाधर्मात्मा होकर परमात्मा की शरण लेता है ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(पञ्चौदनः) अ० ४।१४।७। पृथिव्यादि पञ्चभिर्भूतैः ओदनः सेचनं यस्य स जीवात्मा (पञ्चधा) गन्धरसरूपस्पर्शशब्दैः पञ्चप्रकारेण (विक्रमताम्) विक्रमं पराक्रमं करोतु (आक्रंस्यमानः) लृटः सद्वा। पा० ३।३।१४। आङ्+क्रमु पादविक्षेपे-लृटः शानच्। प्राप्तुमिच्छन् (त्रीणि) शरीरेन्द्रियविषयरूपाणि (ज्योतींषि) द्योतमानानि। दर्शनसाधनानि (ईजानानाम्) लिटः कानज्वा। पा० ३।२।१०६। यजतेः कानच्। वचिस्वपियजादीनां किति। पा० ६।१।१५। इति सम्प्रसारणम्। लिट्त्वाद्द्विर्वचने दीर्घः। इष्टवताम्। देवपूजासंगतिकरणदानानि कुर्वताम् (सुकृताम्) सुकर्मिणाम् (प्र) प्रकर्षेण (इहि) प्राप्नुहि (मध्यम्) अन्तर्देशम् (तृतीये) जीवप्रकृतिभ्यां भिन्ने (नाके) सुखस्वरूपे परमात्मनि (अधि) अधिकृत्य (वि) विस्तारेण (श्रयस्व) आश्रितो भव ॥

०९ अजा रोह

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अजा रो॑ह सु॒कृतां॒ यत्र॑ लो॒कः श॑र॒भो न च॒त्तोऽति॑ दु॒र्गाण्ये॑षः।
पञ्चौ॑दनो ब्र॒ह्मणे॑ दी॒यमा॑नः॒ स दा॒तारं॒ तृप्त्या॑ तर्पयाति ॥

०९ अजा रोह ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Ascend, O goat, to where is the world of the well-doing; like an
    expelled śarabhá mayest thou move (eṣ) across difficult places;
    given, with five rice-dishes, to a priest (brahmán), he shall rejoice
    the giver with rejoicing.
Notes

Ppp. reads kramasva instead of roha in a, and reads śalabhas
’locust,’ which is more sensible, in b; our d is its 10 d,
with dhātāram instead of dā-. The Anukr. treats the second pāda as
regular, and it can, indeed, be read by violence into 11 syllables.

Griffith

Rise to that world, O Goat, where dwell the righteous: pass, like a Sarabha veiled, all difficult places. The Goat Panchaudana, given to a Brahman, shall with all ful- ness satisfy the giver.

पदपाठः

अज॑। आ। रो॒ह॒। सु॒ऽकृता॑म्। यत्र॑। लो॒कः। श॒र॒भः। न। च॒त्तः। अति॑। दुः॒ऽगानि॑। ए॒षः॒। पञ्च॑ऽओदनः। ब्र॒ह्मणे॑। दी॒यमा॑नः। सः। दा॒तार॑म्। तृप्त्या॑। त॒र्प॒य॒ति॒। ५.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अज) हे अजन्मा वा गतिशील जीवात्मा ! [वहाँ] (आ रोह) चढ़कर जा (यत्र) जहाँ (सुकृताम्) सुकर्मियों का (लोकः) लोक [स्थान] है, और (शरभः न) शत्रुनाशक [शूर] के समान (चत्तः) प्रार्थना किया गया तू (दुर्गाणि) संकटों को (अति) पार करके (एषः) चल। (सः) वह (ब्रह्मणे) ब्रह्म [परमेश्वर] को (दीयमानः) दिया जाता हुआ (पञ्चौदनः) पाँच भूतों [पृथिव्यादि-म० ८] से सींचा हुआ [जीवात्मा] (दातारम्) दाता [अपने आप] को (तृप्त्या) तृप्ति [सुख की परिपूर्णता से] (तर्पयाति) तृप्त करे ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य पुरुषार्थ करके विघ्नों को हटाकर परमेश्वर की भक्ति में लवलीन होता है, वह मोक्षसुख से तृप्त रहता है ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(अज) हे अजन्मन् गतिशील वा (आ रोह) उद्गच्छ (सुकृताम्) (यत्र) (लोकः) (शरभः) कॄशॄशलि०। उ० ३।१२२। शॄ हिंसायाम्-अभच्। शत्रुनाशकः शूरः (न) इव (चत्तः) ग्रसितस्कभितस्तभितोत्तभितचत्त०। पा० ७।२।३४। चते याचने-क्त, इडभावः। याचितः (अति) अतीत्य (दुर्गाणि) दुरितानि (एषः) इण् गतौ अथवा इष गतौ-लेट्। गच्छेः (पञ्चौदनः) म० ८। पञ्चभूतैः सिक्तो जीवात्मा (ब्रह्मणे) परमात्मने (दीयमानः) समर्प्यमाणः (सः) (दातारम्) समर्पयितारं स्वात्मानम् (तृप्त्या) मुक्त्या (तर्पयाति) हर्षयेत् ॥

१० अजस्त्रिनाके त्रिदिवे

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अ॒जस्त्रि॑ना॒के त्रि॑दि॒वे त्रि॑पृ॒ष्ठे नाक॑स्य पृ॒ष्ठे द॑दि॒वांसं॑ दधाति।
पञ्चौ॑दनो ब्र॒ह्मणे॑ दी॒यमा॑नो वि॒श्वरू॑पा धे॒नुः का॑म॒दुघा॒स्येका॑ ॥

१० अजस्त्रिनाके त्रिदिवे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The goat sets him that has given it on the three-firmamented,
    three-heavened, three-backed back of the firmament; being given with
    five rice-dishes to a priest, thou art a single milch-cow, all-formed,
    wish-yielding.
Notes

Ppp. reads in b sukṛtāṁ lake for nākasya pṛṣṭhe; and our d
is its 9 d, with the intrusive dhenus left out. The verse, in
spite of its irregularity, is by the Anukr. reckoned simply a jagatī
(11 + 12: 11 + 12 [13?]).

Griffith

The Goat Panchaudana, given to a Brahman, sets the bestower on the pitch of heaven, In the third vault, third sky, third ridge. One only Cow omni- form art thou, that yields all wishes.

पदपाठः

अ॒जः। त्रि॒ऽना॒के। त्रि॒ऽदि॒वे। त्रि॒ऽपृ॒ष्ठे। नाक॑स्य। पृ॒ष्ठे। द॒दि॒ऽवांस॑म्। द॒धा॒ति॒। पञ्च॑ऽओदनः। ब्र॒ह्मणे॑। दी॒यमा॑नः। वि॒श्वऽरू॑पा। धे॒नुः। का॒म॒ऽदुघा॑। अ॒सि॒। एका॑। ५.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • जगती
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - “(ब्रह्मणे) ब्रह्म [परमेश्वर] को (दीयमानः) दिया जाता हुआ, (पञ्चौदनः) पाँच भूतों [पृथिव्यादि-म० ८] से सींचा हुआ (अजः) अजन्मा वा गतिशील जीवात्मा (त्रिनाके) तीन [शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक] सुखोंवाली, (त्रिदिवे) तीन [आय, व्यय और वृद्धि] व्यवहारोंवाली, (त्रिपृष्ठे) तीन [धर्म, अर्थ और काम] से सींची हुई (नाकस्य पृष्ठे) सुख की सिंचाई [वृद्धि] में (ददिवांसम्) दे चुकनेवाले [अपने आत्मा] को (दधाति) धरता है-यह (एका) एक (विश्वरूपा) संसार को रूप देनेवाली (कामदुघा) कामनाएँ पूरी करनेवाली (धेनुः) तृप्त करनेवाली वेदवाणी (असि=अस्ति) है ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वेद पुकार-पुकार कहता है कि परोपकारी आत्मदानी मनुष्य सब प्रकार परमेश्वर की आज्ञापालन में मोक्षसुख पाता है ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(अजः) जीवात्मा (त्रिनाके) त्रीणि शारीरिकात्मिकसामाजिकसुखानि यस्मिन् तस्मिन् (त्रिदिवे) इगुपधज्ञेति दिवु व्यवहारे-क। त्रयो दिवा आयव्ययवृद्धिव्यवहारा यस्मिन् तस्मिन् (त्रिपृष्ठे) तिथपृष्ठगूथयूथप्रोथाः। उ० २।१२। पृथु सेवने-थक्। त्रयाणां धर्म्मार्थकामानां सेचनं वर्धनं यस्मिन् तस्मिन् (नाकस्य) अ० १।९।२। सुखस्य (पृष्ठे) सेचने वर्धने (ददिवांसम्) ददातेः क्वसु। दत्तवन्तम् (दधाति) स्थापयति (विश्वरूपा) जगतो रूपदात्री (धेनुः) अ० ३।१०।१। वाक्-निघ–० १।११। तर्पयित्री वेदवाणी (कामदुघा) अ० ४।३४।८। कामानां प्रपूरयित्री (एका) अद्वितीया ॥

११ एतद्वो ज्योतिः

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ए॒तद्वो॒ ज्योतिः॑ पितरस्तृ॒तीयं॒ पञ्चौ॑दनं ब्र॒ह्मणे॒ऽजं द॑दाति।
अ॒जस्तमां॒स्यप॑ हन्ति दू॒रम॒स्मिंल्लो॒के श्र॒द्दधा॑नेन द॒त्तः ॥

११ एतद्वो ज्योतिः ...{Loading}...

Whitney
Translation

11 . This third light of yours, O Fathers, the goat with five
rice-dishes one gives to a priest; the goat, given in this world by one
having faith, smites far away the darknesses.

Notes

The second half-verse is identical with 7 c, d above. Ppp. has, for
d, pañcodano brahmaṇe dīyamānaḥ (our 9 c, 10 c).

Griffith

That is the third light that is yours, ye Fathers. He gives the Goat Panchaudana to the Brahman. Given in this world by the devout believer, the Goat dispels and drives afar the darkness.

पदपाठः

ए॒तत्। वः॒। ज्योतिः॑। पि॒त॒रः॒। तृ॒तीय॑म्। पञ्च॑ऽओदनम्। ब्र॒ह्मणे॑। अ॒जम्। द॒दा॒ति॒। अ॒जः। तमां॑स‍ि। अ॑प। ह॒न्ति॒। दू॒रम्। अ॒स्मिन्। लो॒के। श्र॒त्ऽदधा॑नेन। द॒त्तः। ५.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पितरः) हे पालन करनेवालो विद्वानो ! (वः) तुम्हारे लिये (एतद्) यह (तृतीयम्) तीसरी (ज्योतिः) ज्योति [परमेश्वर] (ब्रह्मणे) वेदज्ञान के लिये (पञ्चौदनम्) पाँच भूतों [पृथिवी आदि-म० ८] से सींचे हुए (अजम्) अजन्मे वा गतिशील जीवात्मा का (ददाति) दान करती है। (श्रद्दधानेन) श्रद्धा रखनेवाले पुरुष करके (दत्तः) दिया हुआ (अजः) जीवात्मा (अस्मिन् लोके) इस लोक में (तमांसि) अन्धकारों को (दूरम्) दूर (अप हन्ति) फैंक देता है ॥११॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - परमात्मा ने विद्वानों को वेद द्वारा उपकार के लिये उत्पन्न किया है। इससे वे ईश्वर की आज्ञा का पालन करके अविद्या का नाश करें ॥११॥ इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध ऊपर म० ७। में आ चुका है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ११−(एतत्) सर्वत्र वर्तमानम् (वः) युष्मदर्थम् (ज्योतिः) प्रकाशस्वरूपं ब्रह्म (पितरः) हे पालका विद्वांसः (तृतीयम्) जीवप्रकृतिभ्यां भिन्नम् (पञ्चौदनम्) म० ८। पञ्चभिर्भूतैः सिक्तम् (ब्रह्मणे) वेदज्ञानाय (अजम्) म० १। जीवात्मानम् (ददाति) प्रयच्छति। अग्रे व्याख्यातम्-म० ७ ॥

१२ ईजानानां सुकृताम्

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ई॑जा॒नानां॑ सु॒कृतां॑ लो॒कमीप्स॒न्पञ्चौ॑दनं ब्र॒ह्मणे॒ऽजं द॑दाति।
स व्या᳡प्तिम॒भि लो॒कं ज॑यै॒तं शि॒वो॒३॒॑ऽस्मभ्यं॒ प्रति॑गृहीतो अस्तु ॥

१२ ईजानानां सुकृताम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Desiring to obtain the world of the well-doing that have made
    offerings, one gives to a priest a goat with five rice-dishes; do thou
    conquer complete attainment (vyā̀pti) unto that world; be he, accepted,
    propitious to us.
Notes

Ppp. begins pra jyotiṣmantaṁ sukṛtāṁ lok-; and reads c, d thus:
sa vyāpo neṅṣ abhi lokaṁ jayā ’sme śivo ‘smabhyaṁ pratigṛhyate ‘dhi.

Griffith

Seeking the world of good men who have worshipped, he gives the Goat Panchaudana to the Brahman. Win thou this world as thy complete possession. Auspicious unto us be he, accepted!

पदपाठः

ई॒जा॒नाना॑म्। सु॒ऽकृता॑म्। लो॒कम्। ईप्स॑न्। पञ्च॑ऽओदनम्। ब्र॒ह्मणे॑। अ॒जम्। द॒दा॒ति॒। सः। विऽआ॒प्तिम्। अ॒भि। लो॒कम्। ज॒य॒। ए॒तम्। शि॒वः। अ॒स्मभ्य॑म्। प्रति॑ऽगृहीतः। अ॒स्तु॒। ५.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ईजानानाम्) यज्ञ [देवपूजा, संगतिकरण, दान] कर चुकनेवाले (सुकृताम्) सुकर्मियों के (लोकम्) लोक को (ईप्सन्) चाहता हुआ पुरुष (ब्रह्मणे) ब्रह्म [परमेश्वर] के लिये (पञ्चौदनम्) पाँच भूतों [पृथिवी आदि] से सींचे हुए (अजम्) अजन्मे वा गतिशील जीवात्मा का (ददाति) दान करता है। [इसलिये] (सः) वह तू (व्याप्तिम् अभि) [सुख की] पूर्ण प्राप्ति के लिये (एतम् लोकम्) इस लोक को (जय) जीत, [जिससे, परमेश्वर करके] (प्रतिगृहीतः) स्वीकार किया हुआ [जीवात्मा] (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (शिवः) मङ्गलकारी (अस्तु) होवे ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अग्रज आप्त विद्वानों के समान परमेश्वर की आज्ञापालन में आत्मसमर्पण करके पुरुषार्थ करता है, वह सबके लिये मङ्गलकारी होता है ॥१२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(ईजानानाम्) म० ८। यज्ञं कुर्वताम् (सुकृताम्) सुकर्मिणाम् (लोकम्) दर्शनीयं पदम् (ईप्सन्) प्राप्तुमिच्छन् (पञ्चौदनम्) म० ८। पञ्चभूतैः सिक्तम् (ब्रह्मणे) परमेश्वराय (अजम्) जीवात्मानम् (ददाति) (सः) स त्वम् (व्याप्तिम्) विविधां सुखप्राप्तिम् (अभि) प्रति (लोकम्) (जय) उत्कर्षेण प्राप्नुहि (एतम्) (शिवः) मङ्गलकारी (अस्मभ्यम्) (प्रतिगृहीतः) ब्रह्मणा स्वीकृतः (अस्तु) ॥

१३ अजो ह्यग्नेरजनिष्ट

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अ॒जो ह्य१॒॑ग्नेरज॑निष्ट॒ शोका॒द्विप्रो॒ विप्र॑स्य॒ सह॑सो विप॒श्चित्।
इ॒ष्टं पू॒र्तम॒भिपू॑र्तं॒ वष॑ट्कृतं॒ तद्दे॒वा ऋ॑तु॒शः क॑ल्पयन्तु ॥

१३ अजो ह्यग्नेरजनिष्ट ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The goat verily was born from the heat of the fire, wise, of the
    wise (vípra), of power, he the inspired one; what is offered, is
    bestowed, is conferred (abhípūrta), accompanied with váṣaṭ—that let
    the gods prepare in due season (rtuśás).
Notes

The first pāda is identical with iv. 14. 1 a. Ludwig (also p. 370)
proposes to emend in c to gūrtam abhigūrtam. Part of the mss.
blunderingly accent ṛtuśàs in d. Ppp. has in b vayodha instead of
vipaqcit, and in c puts purtam before istam. The last two padas are
irregular, but the Anukr. takes no notice of it. ⌊Pāda c is a good
jagatī; and d, a good triṣṭubh, if we read devā́sas, or (with
Henry) tád íd.⌋

Griffith

Truly the Goat sprang from the glow of Agni, inspired as sage with all a sage’s power. Sacrifice, filled, filled full, offered with Vashat–this let the Gods arrange.at proper seasons.

पदपाठः

अ॒जः। हि। अ॒ग्नेः। अज॑निष्ट। शोका॑त्। विप्रः॑। विप्र॑स्य। सह॑सः। वि॒पः॒ऽचित्। इ॒ष्टम्। पू॒र्तम्। अ॒भिऽपू॑र्तम्। वष॑ट्ऽकृतम्। तत्। दे॒वाः। ऋ॒तु॒ऽशः। क॒ल्प॒य॒न्तु॒। ५.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अजः) अजन्मा वा गतिशील जीवात्मा (शोकाद्) दीप्यमान (अग्नेः) सर्वव्यापक परमेश्वर से (हि) ही (अजनिष्ट) प्रकट हुआ है, [वह] (विप्रः) बुद्धिमान् [जीव] (विप्रस्य) बुद्धिमान् [परमेश्वर] के (सहसः) बल का (विपश्चित्) भले प्रकार विचारनेवाला है। (तत्) इसलिये (देवाः) विद्वान् लोग (अभिपूर्तम्) सम्पूर्ण (वषट्कृतम्) भक्ति से सिद्ध किये हुए (इष्टम्) यज्ञ, वेदाध्ययन आदि और (पूर्तम्) अन्नदानादि पुण्यकर्म को (ऋतुशः) प्रत्येक ऋतु में (कल्पयन्तु) समर्थ करें ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर की महिमा को जानकर अपने सब उत्तम कर्मों को सब काल में सिद्ध करें ॥१३॥ इस मन्त्र का प्रथम पाद आ चुका है-अ० ४।१४।१ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(अजः) म० १। जीवात्मा (हि) निश्चयेन (अग्नेः) सर्वव्यापकात् परमेश्वरात् (अजनिष्ट) प्रादुरभूत् (शोकात्) अ० ४।१४।१। दीप्यमानात् (विप्रः) अ० ३।३।२। मेधावी जीवात्मा (विप्रस्य) मेधाविनः परमेश्वरस्य (सहसः) बलस्य (विपश्चित्) अ० ६।५२।३। विविधं प्रकर्षेण चेतिता ज्ञाता (इष्टम्) अ० २।१२।४। यज्ञवेदाध्ययनादि कर्म (पूर्तम्) अन्नदानादि पुण्यकर्म (अभिपूर्तम्) सम्पूर्णम् (वषट्कृतम्) अ० १।११।१। वह प्रापणे-डषटि+करोतेः क्त। भक्त्या निष्पादितम् (तत्) तस्मात् (देवाः) विद्वांसः (ऋतुशः) संख्यैकवचनाच्च वीप्सायाम्। पा० ५।४।४३। ऋतु-शस्। ऋतुवृतौ। काले काले (कल्पयन्तु) समर्थयन्तु ॥

१४ अमोतं वासो

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॑मो॒तं वासो॑ दद्या॒द्धिर॑ण्य॒मपि॒ दक्षि॑णाम्।
तथा॑ लो॒कान्त्समा॑प्नोति॒ ये दि॒व्या ये च॒ पार्थि॑वाः ॥

१४ अमोतं वासो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. A home-woven garment he may give, also gold as sacrificial gift; so
    he fully obtains the worlds that are heavenly and that are earthly.
Notes
Griffith

Home-woven raiment let him give, and gold as guerdon to the priests. So he obtains completely all celestial and terrestrial worlds.

पदपाठः

अ॒मा॒ऽउ॒तम्। वासः॑। द॒द्या॒त्‌। हिर॑ण्यम्। अपि॑। दक्षि॑णाम्। तथा॑। लो॒कान्। सम्। आ॒प्नो॒ति॒। ये। दि॒व्याः। ये। च॒। पार्थि॑वाः। ५.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • अनुष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - वह (अमोतम्) ज्ञान के साथ बुना हुआ (वासः) वस्त्र और (हिरण्यम्) सुवर्ण (अपि) भी (दक्षिणाम्) दक्षिणा (दद्यात्) देवे। (तथा) उससे वह [उन] (लोकान्) लोकों को (सम्) पूरा-पूरा (आप्नोति) पाता है (ये) जो (दिव्याः) अन्तरिक्ष के (च) और (ये) जो (पार्थिवाः) पृथिवी के हैं ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सुपात्रों का यथावत् उत्तम पदार्थों से सत्कार करके संसार में प्रतिष्ठा बढ़ावें ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४−(अमोतम्) पुंसि संज्ञायां घः प्रायेण। पा० ३।™™३।११८। अम गतौ+घ प्रत्ययः, टाप्-वेञ् तन्तुसन्ताने-क्त, सम्प्रसारणं च। ज्ञानेन स्यूतम् (वासः) वस्त्रम् (दद्यात्) (हिरण्यम्) सुवर्णम् (अपि) (दक्षिणाम्) दानम् (तथा) तेन प्रकारेण (लोकान्) प्रतिष्ठास्थानानि (सम्) सम्यक् (आप्नोति) प्राप्नोति (ये) लोकाः (दिव्याः) दिवि अन्तरिक्षे भवाः (ये) (च) (पार्थिवाः) पृथिव्यां भवाः ॥

१५ एतास्त्वाजोप यन्तु

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ए॒तास्त्वा॒जोप॑ यन्तु॒ धाराः॑ सो॒म्या दे॒वीर्घृ॒तपृ॑ष्ठा मधु॒श्चुतः॑।
स्त॑भान पृ॑थि॒वीमु॒त द्यां नाक॑स्य पृ॒ष्ठेऽधि॑ स॒प्तर॑श्मौ ॥

१५ एतास्त्वाजोप यन्तु ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Unto thee, O goat, let these streams of soma (somyá) go, divine,
    ghee-backed, honey-dripping; establish thou earth and sky, upon the
    seven-rayed back of the firmament.
Notes

The mss. in general (not P.M.) accent ája in a. They are rather
evenly divided between ádhi and ‘dhi in d (W.I.O.R.T.K. have
‘dhi). Compare with a, b the refrain to iv. 34. 5-7. Ppp. reads
for a: etās tvā dadhārā ’cchamayanti viśvatās somyaṁ;somyaṁ
would seem to be the beginning of Ppp’s b;⌋ in c, d, for
uta…pṛṣṭhe, it gives divaṁ sadasva nāke tiṣṭhāsy. Pādas b, c
are metrically irregular, but the Anukr. does not heed it.

Griffith

Near to thee, Goat! approach these streams of Soma, divine, distilling meath, bedecked with butter! Stay thou the earth and sky and fix them firmly up on the seven- rayed pitch and height of heaven.

पदपाठः

ए॒ताः। त्वा॒। अ॒ज॒। उप॑। य॒न्तु॒। धाराः॑। सो॒म्याः। दे॒वीः। घृ॒तऽपृ॑ष्ठः। म॒धु॒ऽश्चुतः॑। स्त॒भा॒न्। पृ॒थि॒वीम्। उ॒त। द्याम्। नाक॑स्य। पृ॒ष्ठे। अधि॑। स॒प्तऽर॑श्मौ। ५.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अज) हे जीवात्मा ! (त्वा) तुझको (एताः) ये सब (सोम्याः) अमृतमय, (देवीः) उत्तम गुणवाली, (घृतपृष्ठाः) प्रकाश [वा सार तत्त्व] से सींचनेवाली, (मधुश्चुतः) मधुरपन बरसानेवाली (धाराः) धारण शक्तियाँ (उप) आदर से (यन्तु) प्राप्त हों। (सप्तरश्मौ) व्याप्त किरणोंवाले, यद्वा, सात प्रकार की [शुक्ल, नील, पील, रक्त, हरित, कपिश और चित्र] किरणोंवाले सूर्य [पूर्ण प्रकाश] में (नाकस्य) सुख के (पृष्ठे) पीठ [आश्रय] में (अधि) अधिकारपूर्वक (पृथिवीम्) पृथिवी (उत) और (द्याम्) अन्तरिक्षलोक को (स्तभान) सहारा दे ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - उद्योगी पुरुष अनेक प्रकार से धारण शक्तियाँ प्राप्त करके सूर्य के समान ज्ञान में प्रकाशित होकर आनन्दपूर्वक संसार भर का उपकार करते हैं ॥१५॥ निरुक्त ४।२६। में कहा है−“सात फैली हुई संख्या है, सात सूर्य की किरणें हैं, और निरुक्त ४।२७। में वर्णन है−“सप्तनामा सूर्य है, सात किरणें इसकी ओर रसों को झुकाती हैं, अथवा सात ऋषि [इन्द्रियाँ] इसकी स्तुति करते हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १५−(एताः) (त्वा) त्वाम् (अज) हे जीवात्मन् (उप) आदरेण (यन्तु) प्राप्नुवन्तु (धाराः) धारणशक्तयः (सोम्याः) अ० ३।१४।३। अमृतमय्यः (देवीः) दिव्यगुणयुक्ताः (घृतपृष्ठाः) अ० २।१३।१। प्रकाशेन सेचयित्र्यः (मधुश्चुतः) अ० ७।५६।२। माधुर्य्यस्य क्षरणशीलाः (स्तभान) दृढीकुरु (पृथिवीम्) पृथिवीस्थपदार्थानित्यर्थः। (उत) अपि च (द्याम्) अन्तरिक्षस्थान् पदार्थानित्यर्थः (नाकस्य) सुखस्य (पृष्ठे) आश्रये (अधि) अधिकृत्य (सप्तरश्मौ) सप्यशूभ्यां तुट्च। उ० १।१५७। षप समवाये-कनिन् तुट् च, यद्वा, क्त प्रत्ययः। सप्तः सृप्ता संख्या, सप्तादित्यरश्मयः-निरु० ४।२६। सप्तनामादित्यः सप्तास्मै रश्मयो रसानभिसन्नामयन्ति सप्तैनमृषयः स्तुवन्तीति वा-निरु० ४।२७। व्याप्तकिरणे, यद्वा शुक्लनीलपीतादिवर्णाः सप्तकिरणाः सन्ति यस्मिन् तस्मिन् सूर्यलोके ॥

१६ अजोस्यज स्वर्गोसि

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॒जो॒३॒॑स्यज॑ स्व॒र्गो᳡सि॒ त्वया॑ लो॒कमङ्गि॑रसः॒ प्राजा॑नन्।
तं लो॒कं पुण्यं॒ प्र ज्ञे॑षम् ॥

१६ अजोस्यज स्वर्गोसि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. A goat art thou; O goat, heaven-going (svar-gá) art thou; by thee
    the An̄girases foreknew [their] world; that pure (púṇya) world would
    I fain foreknow.
Notes

⌊Prose.⌋ The translation of a is according to the accent of the
vocative ája; there may be a play on words between ajá ‘goat’ and
ajá ‘unborn’: ‘unborn art thou, O goat’ (emending to aja). Ppp.
reads for c taṁ lokaṁ anu pra jñeṣma. ⌊This vs. and the next are
in its iii.⌋ The definition of the meter by the Anukr. seems senseless
(7 [8?] + 11: 8 = 26). The third pāda is VS. xx. 25 c.

Griffith

Unborn art thou, O Goat: to heaven thou goest. Though thee Angirases knew that radiant region. So may I know that holy world.

पदपाठः

अ॒जः। अ॒सि॒। अज॑। स्वः॒ऽगः। अ॒सि॒। त्वया॑। लो॒कम्। अङ्गि॑रसः। प्र। अ॒जा॒न॒न्। तम्। लो॒कम्। पुण्य॑म्। प्र। ज्ञे॒ष॒म्। ५.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • त्रिपदानुष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अज) हे अजन्मे जीवात्मा ! (अजः असि) तू गतिशील है, (स्वर्गः असि) तू सुख प्राप्त करनेवाला है, (त्वया) तेरे साथ (अङ्गिरसः) बुद्धिमानों ने (लोकम्) देखने योग्य परमात्मा को (प्र) अच्छे प्रकार (अजानन्) जाना है। (तम्) उस (पुण्यम्) पवित्र (लोकम्) देखने योग्य परमात्मा को (प्र ज्ञेषम्) मैं अच्छे प्रकार जानूँ ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ज्ञानी पुरुषों ने जीवात्मा को ज्ञानी बनाकर परमात्मा को पाया है, इसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य ज्ञानवान् होकर सर्वव्यापक परमेश्वर के दर्शन से आनन्दित होवे ॥१६॥ इस मन्त्र का अन्तिम पाद-यजु० २०।२५। में है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६−(अजः) गतिशीलः (असि) (अज) हे अजन्मन् जीवात्मन् (स्वर्गः) सुखप्रापकः (असि) (त्वया) (लोकम्) द्रष्टव्यं परमात्मानम् (अङ्गिरसः) अ० २।१२।४। ज्ञानिनः (प्र) (अजानन्) ज्ञातवन्तः (तम्) प्रसिद्धम् (लोकम्) दर्शनीयमीश्वरम् (पुण्यम्) पवित्रम् (प्र) (ज्ञेषम्) सिब् बहुलं लेटि। पा० ३।१।३४। जानातेर्लेटि। सिपीटि च रूपम्। जानीयाम् ॥

१७ येना सहस्रम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

येना॑ स॒हस्रं॒ वह॑सि॒ येना॑ग्ने सर्ववेद॒सम्।
तेने॒मं य॒ज्ञं नो॑ वह॒ स्व᳡र्दे॒वेषु॒ गन्त॑वे ॥

१७ येना सहस्रम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Wherewith thou carriest a thousand; wherewith, O Agni, [the
    offering of] one’s whole possession—therewith carry thou this our
    offering to go to heaven (svàr) among the gods.
Notes

The verse is found also in VS. (xv. 55), TS. (iv. 7. 13⁴; v. 7. 7³), MS.
(ii. 12. 4), and K. (xl. 12 ⌊but Schroeder under the MS. passage refers
to K. xviii. 18⌋). VS. and MS. put sahásram after váhasi in a,
and VS. reads ⌊yéna in a, and⌋ naya for vaha in c; TS.
has in iv. for d devayā́no yá uttamáḥ (in v. it agrees throughout
with our text). Ppp. begins with yéna vā sah-. Vāit. quotes the verse
in 29. 9, 23. ⌊MS. has yéna.⌋

Griffith

Convey our sacrifice to heaven, that it may reach the Gods, with that Whereby thou, Agni, bearest wealth in thousands, and all pre- cious things.

पदपाठः

येन॑। स॒हस्र॑म्। वह॑सि। येन॑। अ॒ग्ने॒। स॒र्व॒ऽवे॒द॒सम्। तेन॑। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। नः॒। व॒ह॒। स्वः᳡। दे॒वेषु॑। गन्त॑वे। ५.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • अनुष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे विद्वन् ! (येन) जिस (येन) नियम से (सहस्रम्) बलवान् पुरुषों को (सर्ववेदसम्) सब प्रकार के ज्ञानों वा धनों से युक्त [यज्ञ] में (वहसि) तू ले जाता है, (तेन) उसी [नियम] से (नः) हमें (इमम्) इस (यज्ञम्) प्राप्त होने योग्य यज्ञ में (देवेषु) विद्वानों के बीच (स्वः) सुख (गन्तवे) पाने के लिये (वह) ले चल ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि विद्वानों के बीच सुख प्राप्त करने के लिये सदा प्रयत्न करते रहें ॥१७॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजु० १५।५५। है तथा स्वामिदयानन्दकृतसंस्कारविधि संन्यासाश्रमप्रकरण में भी व्याख्यात है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७−(येन) प्रयत्नेन (सहस्रम्) सहो बलम्-निघ० २।९। रो मत्वर्थे। बलवन्तं पुरुषम् (वहसि) प्रापयसि (येन) यम-ड। नियमेन (अग्ने) हे विद्वन् (सर्ववेदसम्) सर्वाणि वेदांसि ज्ञानानि धनानि वा यस्मिन् तं यज्ञम् (तेन) (इमम्) क्रियमाणम् (यज्ञम्) संगन्तव्यं व्यवहारं प्रति (नः) अस्मान् (वह) नय (स्वः) सुखम् (देवेषु) विद्वत्सु (गन्तवे) तुमर्थे तवेप्रत्ययः। प्राप्तुम् ॥

१८ अजः पक्वः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॒जः प॒क्वः स्व॒र्गे लो॒के द॑धाति॒ पञ्चौ॑दनो॒ निरृ॑तिं॒ बाध॑मानः।
तेन॑ लो॒कान्त्सूर्य॑वतो जयेम ॥

१८ अजः पक्वः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The cooked goat, having five rice-dishes, driving off perdition,
    sets [one] in the heavenly (svargá) world; with it may we conquer
    worlds that possess suns.
Notes

As noted above, the verse is wanting in Ppp.

Griffith

The Goat Panchaudana, when cooked, transporteth, repelling Nirriti, to the world of Svarga. By him may we win worlds which Surya brightens.

पदपाठः

अ॒जः। प॒क्वः। स्वः॒ऽगे। लो॒के। द॒धा॒ति॒। पञ्च॑ऽओदनः। निःऽऋ॑तिम्। बाध॑मानः। तेन॑। लो॒कान्। सूर्य॑ऽवतः। ज॒ये॒म॒। ५.१८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • त्रिपदा विराड्गायत्री
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पक्वः) पक्का [दृढ़ स्वभाव], (पञ्चौदनः) पाँच भूतों [पृथिवी आदि] से सींचा हुआ (निर्ऋतिम्) महाविपत्ति को (बाधमानः) हटाता हुआ (अजः) अजन्मा वा गतिशील जीवात्मा (स्वर्गे) सुख प्राप्त करानेवाले (लोके) लोक में [आत्मा को] (दधाति) रखता है, (तेन) उसी [उपाय] से (सूर्यवतः) सूर्य [प्रकाश] वाले (लोकान्) लोकों को (जयेम) हम जीतें ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस प्रकार निश्चल बुद्धिवाला मनुष्य महाविघ्नों को हटाकर सुख भोगता है, वैसे ही सब मनुष्य विद्या द्वारा पुरुषार्थ करके सुखी होवें ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १८−(अजः) म० १। अजन्मा गतिशीलो वा जीवात्मा (पक्वः) दृढस्वभावः (स्वर्गे) सुखप्रापके (लोके) दर्शनीये स्थाने (दधाति) स्थापयति, जीवमिति शेषः (पञ्चौदनः) म० ८। पृथिव्यादिपञ्चभूतैः सिक्तः (निर्ऋतिम्) अ० २।१—१।२। कृच्छ्रापत्तिम् (बाधमानः) निवारयन् (तेन) उपायेन (लोकान्) (सूर्यवतः) विद्याप्रकाशयुक्तान् (जयेम) उत्कर्षेण प्राप्नुयाम ॥

१९ यं ब्राह्मणे

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यं ब्रा॑ह्म॒णे नि॑द॒धे यं च॑ वि॒क्षु या वि॒प्रुष॑ ओद॒नाना॑म॒जस्य॑।
सर्वं॒ तद॑ग्ने सुकृ॒तस्य॑ लो॒के जा॑नी॒तान्नः॑ सं॒गम॑ने पथी॒नाम् ॥

१९ यं ब्राह्मणे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. [The goat] which one deposited with the Brahman, and which among
    the people (vikṣú); what scattered drops (viprúṣ) [there are] of
    the rice-dishes, of the goat—all that of ours, O Agni, do thou later
    know in the world of the well-done, at the meeting of the ways.
Notes
Griffith

The droppings of the Odanas attending the Goat which I have lodged with priest or people May all this know us in the world of virtue, O Agni, at the meeting of the pathways.

पदपाठः

यम्। ब्रा॒ह्म॒णे। नि॒ऽद॒धे। यम्। च॒। वि॒क्षु। याः। वि॒ऽप्रुषः॑। ओ॒द॒नाना॑म्। अ॒जस्य॑। सर्व॑म्। तत्। अ॒ग्ने॒। सु॒ऽकृ॒तस्य॑। लो॒के। जा॒नी॒तात्। नः॒। स॒म्ऽगम॑ने। प॒थी॒नाम्। ५.१९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस (यम्) नियम को (ब्राह्मणे) ब्रह्मज्ञानी में (च) और (अजस्य) [प्रत्येक] जीवात्मा के (ओदनानाम्) सेचन धर्म्मों की (याः) जिन (विप्रुषः) विविध पूर्तियों को (विक्षु) प्रजाओं के बीच (निदधे) उस [परमेश्वर] ने रक्खा है। (अग्ने) हे विद्वान् पुरुष ! (नः) हमारे (तत् सर्वम्) उस सबको (सुकृतस्य लोके) सुकर्मी के लोक में (पथीनाम्) मार्गों के (संगमने) संगम पर (जानीतात्) तू जान ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - ब्रह्मज्ञानी अपने में और सब सृष्टि में वृद्धियों के ईश्वरनियमों को विविध प्रकार विचार कर पुण्यात्माओं के मार्ग पर चलकर सुखी होवे ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १९−(यम्) (ब्राह्मणे) ब्रह्मज्ञे (निदधे) स्थापितवान् सः परमेश्वरः (यम्) यम-ड। नियमम् (च) (विक्षु) प्रजासु (विप्रुषः) प्रुष स्नेहनसेवनपूरणेषु-क्विप्। विविधपूर्तीः (ओदनानाम्) उन्देर्नलोपश्च। उ० २।७६। उन्दी क्लेदने-युच्। ओदनो मेघः-निघ० १।१०। ओदनमुदकदानं मेघम्-निरु० ६।™३४। सेचनानाम् (अजस्य) जीवात्मनः (सर्वम्) (तत्) (अग्ने) हे विद्वन् (सुकृतस्य) पुण्यात्मनः (लोके) स्थाने (जानीतात्) जानीहि (नः) अस्माकम् (संगमने) संयोगे (पथीनान्) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। पथे गतौ-इन्। पथाम्। मार्गाणाम् ॥

२० अजो वा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अ॒जो वा इ॒दम॑ग्ने॒ व्य᳡क्रमत॒ तस्योर॑ इ॒यम॑भव॒द्द्यौः पृ॒ष्ठम्।
अ॒न्तरि॑क्षं॒ मध्यं॒ दिशः॑ पा॒र्श्वे स॑मु॒द्रौ कु॒क्षी ॥

२० अजो वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The goat verily strode out here (idám) in the beginning; this
    [earth] became its breast, the sky its back, the atmosphere its
    middle, the quarters its (two) sides, the (two) oceans its paunches;
Notes

⌊Prose—20, 21, and 22.⌋

Griffith

This Unborn cleft apart in the beginning: his breast became the earth, his back was heaven. His middle was the air, his sides the regions; the hollows of his belly formed both oceans.

पदपाठः

अ॒जः। वै। इ॒दम्। अग्रे॑। वि। अ॒क्र॒म॒त॒। अस्य॑। उरः॑। इ॒यम्। अ॒भ॒व॒त्। द्यौः। पृ॒ष्ठम्। अ॒न्तर‍ि॑क्षम्। मध्य॑म्। दिशः॑। पा॒र्श्वे इति॑। स॒मु॒द्रौ। कु॒क्षी इति॑। ५.२०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • पञ्चपदानुष्टुबुष्णिग्गर्भोपरिष्टाद्बार्हता भुरिक्त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अजः) अजन्मा वा गतिशील परमात्मा (वै) ही (अग्रे) पहिले ही पहिले (इदम्) इस [जगत्] में (वि अक्रमत्) विचरता था, (तस्य) उसकी (उरः) छाती (इयम्) यह [भूमि] और (पृष्ठम्) पीठ (द्यौः) आकाश (अभवत्) हुआ। (मध्यम्) कटिभाग (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष, (दिशः) दिशाएँ (पार्श्वे) दोनों काँखें [कक्षाएँ] और (समुद्रौ) दोनों [अन्तरिक्ष और भूमि के] समुद्र (कुक्षी) दोनों कोखें [हुईं] ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - अनादि, अनन्त, परमेश्वर सृष्टि का कर्ता, सर्वनियन्ता और सर्वव्यापक है ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २०−(अजः) म० १। अजन्मा गतिशीलो वा परमात्मा (वै) अवश्यम् (इदम्) दृश्यमानं जगत् (अग्रे) सृष्टेः प्राक् (व्यक्रमत) व्यचरत् (तस्य) (उरः) अर्तेरुच्च। उ० ४।१९५। ऋ गतौ-असुन् उत्वं रपरत्वं च। वक्षः (इयम्) भूमिः (अभवत्) (द्यौः) आकाशः (पृष्ठम्) देहपश्चाद्भागः (अन्तरिक्षम्) (मध्यम्) कटिभागः (दिशः) पूर्वादयः (पार्श्वे) अ० ४।१४।७। कक्षयोरधोभागौ (समुद्रौ) अन्तरिक्षभूमिस्थजलौघौ (कुक्षी) अ० २।५।४। दक्षिणोत्तरकुक्षिद्वयम् ॥

२१ सत्यं चर्तम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

स॒त्यं च॒र्तं च॒ चक्षु॑षी॒ विश्वं॑ स॒त्यं श्र॒द्धा प्रा॒णो वि॒राट्शिरः॑।
ए॒ष वा अप॑रिमितो य॒ज्ञो यद॒जः पञ्चौ॑दनः ॥

२१ सत्यं चर्तम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Both truth and right its eyes, all truth [and] faith its breath,
    the virā́j its head; this verily is an unlimited offering, namely
    (yát) the goat with five rice-dishes.
Notes

The second satyam in vs. 21 is doubtless a corrupt reading, and the
Ppp. version indicates that we should have instead rūpám (’the
universe its form,’ instead of ‘all truth’). Ppp. reads, for the two
verses: ajaṣ pañcāudano vy akramaia tasyo ’ra iyam abhavad udaram
antarikṣam: dyāuṣ ṭe pṛṣṭhaṁ diśaṣ pārśve: dīśaś cā ’tidīśaś ca śṛn̄ge
satyaṁ ca ṛtaṁ ca cakṣuṣī viśvarūpaṁ śraddhā
etc. All the
saṁhitā-mss. read ca rtáṁ (instead of ca ṛtáṁ) near the beginning
of vs. 21. The text of the Anukr. is apparently defective, leaving out
the metrical definition of vss. 20-22 and vs. 25.

Griffith

His eyes were Truth and Right. The whole together was Truth: Viraj his head and Faith his breathing. This Goat Panchaudana was indeed a sacrifice unlimited.

पदपाठः

स॒त्यम्। च॒। ऋ॒तम्। च॒। चक्षु॑षी॒ इति॑। विश्व॑म्। स॒त्यम्। श्र॒ध्दा। प्रा॒णः। वि॒ऽराट्। शिरः॑। ए॒षः। वै। अप॑रिऽमितः। य॒ज्ञः। यत्। अ॒जः। पञ्च॑ऽओदनः। ५.२१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • पञ्चपदानुष्टुबुष्णिग्गर्भोपरिष्टाद्बार्हताभुरिक्त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सत्यम्) सत्य [यथार्थस्वरूप वा अस्तित्व] (च च) और (ऋतम्) ऋत [वेद आदि यथार्थ शास्त्र] (चक्षुषी) [उसकी] दोनों आँखें, (विश्वम्) सब (सत्यम्) सत्य और (श्रद्धा) श्रद्धा (प्राणः) उसका प्राण, और (विराट्) विविध प्रकाशमान प्रकृति (शिरः) [उसका] शिर [हुआ]। (यत्) क्योंकि (एषः वै) यही (अपरिमितः) परिमाणरहित, (यज्ञः) पूजनीय (अजः) अजन्मा वा गतिशील परमात्मा (पञ्चौदनः) पाँच भूतों [पृथिवी आदि] का सींचनेवाला है ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सत्यस्वरूप, अनन्त, सब सृष्टि का स्वामी परमेश्वर सबका उपास्य देव है ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २१−(सत्यम्) अस सत्तायाम्-शतृ। सते हितम्-यत्। यथार्थस्वरूपम्। अस्तित्वम् (च) (ऋतम्) अञ्चिघृसिभ्यः क्तः। उ० ३।८९। ऋ गतौ-क्त। वेदादियथार्थशास्त्रम् (च) (चक्षुषी) नेत्रे (विश्वम्) सर्वम् (सत्यम्) (श्रद्धा) अ० ६।१३३।४। वेदेषु विश्वासः (प्राणः) (विराट्) विविधप्रकाशमाना प्रकृतिः (शिरः) (एषः) (वै) एव (अपरिमितः) परिमाणरहितः (यज्ञः) पूजनीयः (यत्) यस्मात् (अजः) परमेश्वरः (पञ्चौदनः) अ० ४।१४।७। पञ्चसु पृथिव्यादिभूतेषु ओदनः सेचनं यस्य सः ॥

२२ अपरिमितमेव यज्ञमाप्नोत्यपरिमितम्

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अप॑रिमितमे॒व य॒ज्ञमा॒प्नोत्यप॑रिमितं लो॒कमव॑ रुन्द्धे।
यो॒३॒॑जं पञ्चौ॑दनं॒ दक्षि॑णाज्योतिषं॒ ददा॑ति ॥

२२ अपरिमितमेव यज्ञमाप्नोत्यपरिमितम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. An unlimited offering does he obtain, an unlimited world does he
    take possession of (ava-rudh), who gives a goat with five rice-dishes,
    with the light of sacrificial gifts.
Notes

Wanting in Ppp., as noted above.

Griffith

A boundless sacrifice he performs, he wins himself a boundless world: Who gives the Goat Panchaudana illumined with a priestly fee.

पदपाठः

अप॑रिऽमितम्। ए॒व। य॒ज्ञम्। आ॒प्नोति॑। अप॑रिऽमितम्। लो॒कम्। अव॑। रु॒न्ध्दे॒। यः। अ॒जम्। पञ्च॑ऽओदनम्। दक्षि॑णाऽज्योतिषम्। ददा॑ति। ५.२२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • पञ्चपदानुष्टुबुष्णिग्गर्भोपरिष्टाद्बार्हताभुरिक्त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - वह [पुरुष] (अपरिमितम्) परिमाणरहित (यज्ञम्) पूजनीय परमेश्वर को (एव) ही (आप्नोति) पाता है, और (अपरिमितम्) तोल-नाप रहित (लोकम्) दर्शनीय परमात्मा को (अव रुन्द्धे) ध्यान में रखता है, (यः) जो पुरुष (पञ्चौदनम्) पाँच भूतों [पृथिवी आदि] के सींचनेवाले, (दक्षिणाज्योतिषम्) दानक्रिया की ज्योति रखनेवाले (अजम्) अजन्मे वा गतिशील परमात्मा को [अपने आत्मा में] (ददाति) समर्पित करता है ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - आत्मसमर्पक पुरुष पूर्ण भक्ति से उस अनन्त जगदीश्वर को पाता है ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २२−(अपरिमितम्) अनन्तम् (एव) अवश्यम् (यज्ञम्) यष्टव्यम् (आप्नोति) प्राप्नोति (अपरिमितम्) (लोकम्) दर्शनीयं जगदीश्वरम् (अव रुन्द्धे) दक्षतया धारयति (यः) (अजम्) जगदीश्वरम् (पञ्चौदनम्) पञ्चभूतसेचकम् (दक्षिणाज्योतिषम्) दक्षिणा दानं ज्योतिः प्रकाशो यस्य तम् (ददाति) समर्पयति स्वहृदये ॥

२३ नास्यास्थीनि भिन्द्यान्न

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नास्यास्थी॑नि भिन्द्या॒न्न म॒ज्ज्ञो निर्ध॑येत्।
सर्व॑मेनं समा॒दाये॒दमि॑दं॒ प्र वे॑शयेत् ॥

२३ नास्यास्थीनि भिन्द्यान्न ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He should not split its bones; he should not suck out its marrow;
    taking it all together, he should cause it to enter here and here.
Notes

Or, ‘should cause this and this to enter’; the sense is obscure. Ppp.
reads in c sarvāṇi for sarvam enam. By calling the verse a
purauṣṇih, the Anukr. intends that its first two pādas be read as one,
of 12 syllables. The Kāuś. quotes (66. 31, 32; next after quotations of
verses from hymn 3) both halves of the verse, the latter to accompany
the act of piercing an object and scattering it into a pit filled with
water.

Griffith

Let him not break the victim’s bones, let him not suck the marrow out. Let the man, taking him entire, here, even here deposit him.

पदपाठः

न। अ॒स्य॒। अस्थी॑नि। भि॒न्द्या॒त्। न। म॒ज्ज्ञः। निः। ध॒ये॒त्। सर्व॑म्‌। ए॒न॒म्। स॒म्ऽआ॒दाय॑। इ॒दम्ऽइ॑दम्। प्र। वे॒श॒ये॒त्। ५.२३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • पुरउष्णिक्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - वह [रोग] (अस्य) इस [प्राणी] की (अस्थीनि) हड्डियों को (न भिन्द्यात्) नहीं तोड़ सकता और (न) न (मज्ज्ञः) मज्जाओं [हाड़ के भीतरी रसों] को (निर्धयेत्) निरन्तर पी सकता है। [जो] (एनम्) इस [ईश्वर] को (समादाय) ठीक-ठीक ग्रहण करके (सर्वम्) सब प्रकार से (इदमिदम्) इस-इस [प्रत्येक वस्तु] में (प्रवेशयेत्) प्रवेश करें ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वह मनुष्य सब विपत्तियों से निर्भय रहता है, जो परमात्मा को प्रत्येक वस्तु में साक्षात् करता है ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २३−(न) निषेधे (अस्य) पुरुषस्य (अस्थीनि) असिसञ्जिभ्यां क्थिन्। उ० ३।१५४। असु क्षेपे−क्थिन्। शरीरस्थधातुविशेषान् (भिन्द्यात्) विदारयेत् (मज्ज्ञः) श्वन्नुक्षन्पूषन्प्लीहन्०। उ० १।१५९। टुमस्जो शुद्धौ-कनिन्, निपातनात् सिद्धिः। अस्थिसारान् (निर्धयेत्) धेट् पाने। नितरां पिबेत् (सर्वम्) सर्वथा (एनम्) परमेश्वरम् (समादाय) सम्यग् गृहीत्वा (इदमिदम्) दृश्यमानं प्रत्येकं वस्तु (प्रवेशयेत्) प्रविशेत् ॥

२४ इदमिदमेवास्य रूपम्

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इ॒दमि॑दमे॒वास्य॑ रू॒पं भ॑वति॒ तेनै॑नं॒ सं ग॑मयति।
इषं॒ मह॒ ऊर्ज॑मस्मै दुहे॒ यो॒३॒॑जं पञ्चौ॑दनं॒ दक्षि॑णाज्योतिषं॒ ददा॑ति ॥

२४ इदमिदमेवास्य रूपम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. This and this verily becomes its form; therewith one makes it come
    together; food, greatness, refreshment it yields (duh) to him who
    gives a goat with five rice-dishes, with the light of sacrificial gifts.
Notes

Ppp. reads for the second half-verse svadhām ūrjam akṣatiṁ maho ‘smai
duhe: ya evaṁ viduṣo ‘jaṁ pañcāudanaṁ dadāti;
and, as above noted, our
vs. 2 then follows. The metrical description of the Anukr. (closely
accordant with that of vs. 26, though the real construction of the
verses is very different) implies the artificial division of the refrain
(as in vs. 28 and other verses below) into two pādas, of 7 and 9
syllables, and counts 46 syllables in all; the natural number is 45 (12

  • 8: 10 + 15 = 45).
Griffith

This, even this is his true form: the man uniteth him therewith. Food, greatness, strength he bringeth him who giveth the Goat Panchaudana illumed with guerdon.

पदपाठः

इ॒दम्ऽइ॑दम्। ए॒व। अ॒स्य॒। रू॒पम्। भ॒व॒ति॒। तेन॑। ए॒न॒म्। सम्। ग॒म॒य॒ति॒। इष॑म्। महः॑। ऊर्ज॑म्। अ॒स्मै॒। दु॒हे॒। यः। अ॒जम्। पञ्च॑ऽओदनम्। दक्षि॑णाऽज्योतिषम्। ददा॑ति। ५.२४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • पञ्चपदानुष्टुबुष्णिग्गर्भोपरिष्टाद्बार्हताविराड्जगती
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) इस [परमेश्वर] का (रूपम्) रूप [सौन्दर्य] (इदमिदम्) इस-इस [प्रत्येक वस्तु] में (एव) ही (भवति) पहुँचता है, [तभी वह सर्वव्यापक रूप] (तेन) उस [परमात्मा] के साथ (एनम्) इस जीवात्मा को (सम् गमयति) मिला देता है। वह [पुरुष] (इषम्) अन्न, (महः) बड़ाई (ऊर्जम्) और पराक्रम (अस्मै) इसके लिये [अपने लिये] (दुहे) दोहता है (यः) जो पुरुष (पञ्चौदनम्) पाँच भूतों [पृथिवी आदि] के सींचनेवाले, (दक्षिणाज्योतिषम्) दानक्रिया की ज्योति रखनेवाले (अजम्) अजन्मे वा गतिशील परमात्मा को [अपने आत्मा में] (ददाति) समर्पित करता है ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पूर्ण भक्ति से परमात्मा के नियमों पर चलकर सब प्रकार के आनन्द और पराक्रम को प्राप्त होता है ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २४−(इदमिदम्) प्रतिद्रव्यम् (एव) निश्चयेन (अस्य) परमात्मनः (रूपम्) सौन्दर्य्यम् (भवति) भू प्राप्तौ। प्राप्नोति (तेन) ईश्वरेण सह (एनम्) जीवात्मानम् (संगमयति) संयोजयति तद्रूपम् (इषम्) अन्नम् (महः) महत्त्वम् (ऊर्जम्) पराक्रमम् (अस्मै) समीपवर्तिने। स्वस्मै (दुहे) दुग्धे। प्रपूरयति। अग्रे गतम्-म० २२ ॥

२५ पञ्च रुक्मा

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पञ्च॑ रु॒क्मा पञ्च॒ नवा॑नि॒ वस्त्रा॒ पञ्चा॑स्मै धे॒नवः॑ काम॒दुघा॑ भवन्ति।
यो॒३॒॑जं पञ्चौ॑दनं॒ दक्षि॑णाज्योतिषं॒ ददा॑ति ॥

२५ पञ्च रुक्मा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Five gold ornaments (rukmá), five new garments, five milch-cows
    milking his desire come to be his who gives a goat with etc. etc.
Notes

This verse, of which at least the first pāda is metrical (11 + 13: 15 =
39) is left undescribed in the Anukr. It (or vs. 26, both having the
same pratīka) is quoted in Kāuś. 64. 25. ⌊More nearly, ‘Five
milch-cows become wish-milking for him who,’ that is, ‘yield or grant to
him his wishes who’ etc.⌋

Griffith

The five gold pieces, and the five new garments, and the five milch-kine yield him all his wishes. Who gives the Goat Panchaudana illumined with a priestly fee.

पदपाठः

पञ्च॑। रु॒क्मा। पञ्च॑। नवा॑नि। वस्रा॑। पञ्च॑। अ॒स्मै॒। धे॒नवः॑। का॒म॒ऽदुघाः॑। भ॒व॒न्ति॒। यः। अ॒जम्। पञ्च॑ऽओदनम्। दक्षि॑णाऽज्योतिषम्। ददा॑ति। ५.२५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पञ्च) विस्तृत (रुक्मा) रोचक वस्तुएँ [सुवर्ण आदि], (पञ्च) विस्तृत (नवानि) नवीन (वस्त्रा) वस्त्र, और (पञ्च) विस्तृत (धेनवः) तृप्त करनेवाली वेद वाचाएँ [विद्याएँ] (अस्मै) उस [पुरुष] के लिये (कामदुघाः) कामनाएँ पूरी करनेवाली (भवन्ति) होती हैं। (यः) जो पुरुष (पञ्चौदनम्) पाँच भूतों [पृथिवी आदि] के सींचनेवाले, (दक्षिणाज्योतिषम्) दानक्रिया की ज्योति रखनेवाले (अजम्) अजन्मे वा गतिशील परमात्मा को [अपने आत्मा में] (ददाति) समर्पित करता है ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - आत्मत्यागी मनुष्य परमेश्वर की भक्ति से सब प्रकार के सुख प्राप्त करता है ॥२५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २५−(पञ्च) सप्यशूभ्यां तुट् च। उ० १।१५७। पचि विस्तारे-कनिन्। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। जसः सुः। विस्तृतानि (रुक्मा) युजिरुचितिजां कुश्च। उ० १।१४६। रुच दीप्तावभिप्रीतौ च-मक् कुत्वं च। रोचकानि वस्तूनि सुवर्णादीनि (पञ्च) (नवानि) नूतनानि (वस्त्रा) वासांसि (पञ्च) विस्तृताः (अस्मै) पुरुषाय (धेनवः) अ० ७।७३।२। तर्पयित्र्यो वेदवाचः (कामदुघाः) अ० ४।३४।८। कामानां पूरयित्र्यः (भवन्ति) सन्ति। अन्यत् पूर्ववत् ॥

२६ पञ्च रुक्मा

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पञ्च॑ रु॒क्मा ज्योति॑रस्मै भवन्ति॒ वर्म॒ वासां॑सि त॒न्वे᳡ भवन्ति।
स्व॒र्गं लो॒कम॑श्नुते॒ यो॒३॒॑जं पञ्चौ॑दनं॒ दक्षि॑णाज्योतिषं॒ ददा॑ति ॥

२६ पञ्च रुक्मा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Five gold ornaments become light for him; his garments become a
    defense for his body, he attains the heavenly (svargá) world, who
    gives a goat with etc. etc.
Notes

Here are plainly four pādas, of which the first three are metrical, with
the refrain added (11 + 11: 8 + 15); the definition of the Anukr. seems
to imply 11 + 10: 8 + 7 + 9 = 45 syllables, or a bhurik triṣṭubh.

Griffith

The five gold pieces, area light to light him, robes become armour to defend his body; He winneth Svarga as his home who giveth the Goat Panchaud- ana illumed with bountry.

पदपाठः

पञ्च॑। रु॒क्मा। ज्योतिः॑। अ॒स्मै॒। भ॒व॒न्ति॒। वर्म॑। वासां॑सि। त॒न्वे᳡। भ॒व॒न्ति॒। स्वः॒ऽगम्। लो॒कम्। अ॒श्नु॒ते॒। यः। अ॒जम्। पञ्च॑ओदनम्। दक्षि॑णाऽज्योतिषम्। ददा॑ति। ५.२६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • पञ्चपदानुष्टुबुष्णिग्गर्भोपरिष्टाद्बार्हताभुरिक्त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पञ्च) विस्तृत (रुक्मा) रोचक वा चमकीले वस्तु [सुवर्ण आदि] (अस्मै) उस [पुरुष] के लिये (ज्योतिः) ज्योति (भवन्ति) होते हैं, (वासांसि) वस्त्र [उसके] (तन्वे) शरीर के लिये (वर्म) कवच (भवन्ति) होते हैं। वह (स्वर्गम्) स्वर्ग [सुख देनेवाला] (लोकम्) लोक (अश्नुते) पाता है, (यः) जो पुरुष (पञ्चौदनम्) पाँच भूतों [पृथिवी आदि] के सींचनेवाले, (दक्षिणाज्योतिषम्) दानक्रिया की ज्योति रखनेवाले (अजम्) अजन्मे वा गतिशील परमात्मा को [अपने आत्मा में] (ददाति) समर्पित करता है ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमात्मा में विश्वास रखता है, वह ब्रह्मचर्य से विद्या प्राप्त करके स्वस्थ, दृढ़ और धनी होकर आनन्दित रहता है ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २६−(पञ्च) म० २५। विस्तृतानि (रुक्मा) रोचकानि वस्तूनि (ज्योतिः) प्रकाशः (अस्मै) मनुष्याय (भवन्ति) (वर्म) कवचम् (वासांसि) वस्त्राणि (तन्वे) शरीराय (स्वर्गम्) स्वः सुखं गच्छति प्राप्नोति यत्र (लोकम्) दर्शनीयं स्थानम् (अश्नुते) प्राप्नोति। अन्यत् पूर्ववत् ॥

२७ या पूर्वम्

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या पूर्वं॒ पतिं॑ वि॒त्त्वाऽथा॒न्यं वि॒न्दतेऽप॑रम्।
पञ्चौ॑दनं च॒ ताव॒जं ददा॑तो॒ न वि यो॑षतः ॥

२७ या पूर्वम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Whoever (fem.) having gained a former husband, then gains another
    later one—if (ca) they (dual) shall give a goat with five rice-dishes,
    they shall not be separated.
Notes

The mss., as usual in such cases, read vitvā́ in a; and all but Bp.
strangely accent anyàm in b. Ppp. reads pacatas for dadātas in
d. ⌊This vs. and the next are in Ppp’s viii.⌋

Griffith

When she who hath been wedded finds a second husband after- ward, The twain shall not be parted if they give the Goat Panchaud- ana.

पदपाठः

या। पूर्व॑म्। पति॑म्। वि॒त्त्वा। अथ॑। अ॒न्यम्। वि॒न्दते॑। अप॑रम्। पञ्च॑ऽओदनम्। च॒। तौ। अ॒जम्। ददा॑तः। न। वि। यो॒ष॒तः॒। ५.२७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • अनुष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (या) जो स्त्री (पूर्वम्) पहिले (पतिम्) पति को (वित्त्वा) पाकर (अथ) उसके पीछे [मृत्यु आदि विपत्तिकाल में] (अन्यम्) दूसरे (अपरम्) पिछले [पति] को (विन्दते) पाती है [उसी प्रकार जो पति मृत्यु आदि विपत्ति में दूसरी स्त्री को पाता है], (तौ) वे दोनों (च) निश्चय करके (पञ्चौदनम्) पाँच भूतों [पृथिवी आदि] के सींचनेवाले (अजम्) अजन्मे वा गतिशील परमेश्वर को [अपने आत्मा में] (ददातः) समर्पित करें (न वि योषतः) वे दोनों अलग न होवें ॥२७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे विपत्तिकाल में स्त्री दूसरे पति को और पुरुष दूसरी स्त्री को प्राप्त होकर सुख पाते हैं, वैसे ही मनुष्य परमात्मा को पाकर दुःखों से छूटकर सुखी होते हैं ॥२७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २७−(या) स्त्री (पूर्वम्) विवाहितम् (पतिम्) स्वामिनम् (वित्त्वा) विद्लृ लाभे−क्त्वा। लब्ध्वा (अन्यम्) द्वितीयं पतिम् (विन्दते) लभते (अपरम्) नियोजितं पतिम् (पञ्चौदनम्) पञ्चभूतसेचकम् (च) अवश्यम् (तौ) स्त्रीपुरुषौ (अजम्) अजन्मानं गतिशीलं वा परमात्मानम् (ददातः) घोर्लोपो लेटि वा। पा० ७।३।७०। इति रूपसिद्धिः। दद्याताम् (न) निषेधे (वि योषतः) यु मिश्रणामिश्रणयोः-लेट्। वियुक्तौ भवेताम् ॥

२८ समानलोको भवति

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स॑मा॒नलो॑को भवति पुन॒र्भुवाप॑रः॒ पतिः॑।
यो॒३॒॑जं पञ्चौ॑दनं॒ दक्षि॑णाज्योतिषं॒ ददा॑ति ॥

२८ समानलोको भवति ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Her later husband comes to have the same world with his remarried
    spouse who (masc.) gives a goat with five rice-dishes, with the light of
    sacrificial gifts.
Notes

The Anukr. treats the prose refrain of vss. 22, 24-26 as a half
anuṣṭubh in the second line of this verse. Ppp. reads instead ajaṁ ca
pañcāudanaṁ dadat
.

Griffith

One world with the re-wedded wife becomes the second hus- band’s home. Who gives the Goat Panchaudana illumined with the priestly fee.

पदपाठः

स॒मा॒नऽलो॑कः। भ॒व॒ति॒। पु॒नः॒ऽभुवा॑। अप॑रः। पतिः॑। यः। अ॒जम्। पञ्च॑ऽओदनम्। दक्षि॑णाऽज्योतिषम्। ददा॑ति। ५.२८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • अनुष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अपरः) दूसरा (पतिः) पति (पुनर्भुवा) दूसरी वा विवाहित [वा नियोजित] स्त्री के साथ (समानलोकः) एक स्थानवाला (भवति) होता है। (यः) जो पुरुष (पञ्चौदनम्) पाँच भूतों [पृथिवी आदि] के सींचनेवाले, (दक्षिणाज्योतिषम्) दानक्रिया की ज्योति रखनेवाले (अजम्) अजन्मे वा गतिशील परमात्मा को [अपने आत्मा में] (ददाति) समर्पित करता है ॥२८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे आत्मत्यागी परमेश्वर भक्त अपत्नीक पुरुष और धर्मात्मा विधवा स्त्री यथावत् विधि के साथ विपत्ति से छूटकर कर्तव्य पालन करते हैं, वैसे ही ब्रह्मज्ञानी पुरुष अविद्या से छूट कर परमात्मा से मिलकर आनन्द पाता है ॥२८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २८−(समानलोकः) एकस्थानः (भवति) (पुनर्भुवा) पुनः+भू सत्तायाम्-क्विप्। पुनर्भूर्दिधिषू रूढा द्विस्तस्या दिधिषुः पतिः। स तु द्विजोऽग्रेदिधिषूः सैव यस्य कुटुम्बिनी। इत्यमरः १६।२३। द्विरूढया नियोजितया वा स्त्रिया सह (अपरः) द्वितीयः। देवरः (पतिः) अन्यत् पूर्ववत् ॥

२९ अनुपूर्ववत्सां धेनुमनड्वाहमुपबर्हणम्

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अ॑नुपू॒र्वव॑त्सां धे॒नुम॑न॒ड्वाह॑मुप॒बर्ह॑णम्।
वासो॒ हिर॑ण्यं द॒त्त्वा ते य॑न्ति॒ दिव॑मुत्त॒माम् ॥

२९ अनुपूर्ववत्सां धेनुमनड्वाहमुपबर्हणम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. A milch-cow having one calf after another, a draft-ox, a pillow, a
    garment, gold, having given, those go to the highest heaven (dív).
Notes

The Anukr. takes no notice of the redundant syllable in b. ⌊Perhaps
it balances the redundancy of b with the deficiency of c.⌋

Griffith

They who have given a cow who drops a calf each season, or an ox, A coverlet, a robe, or gold, go to the loftiest sphere of heaven.

पदपाठः

अ॒नु॒पू॒र्वऽव॑त्साम्। धे॒नुम्। अ॒न॒ड्वाह॑म्। उ॒प॒ऽबर्ह॑णम्। वासः॑। हिर॑ण्यम्। द॒त्त्वा। ते। य॒न्ति॒। दिव॑म्। उ॒त्ऽत॒माम्। ५.२९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • अनुष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अनुपूर्ववत्साम्) यथाक्रम [एक के पीछे एक] बच्चेवाली (धेनुम्) गौ, (अनड्वाहम्) अन्न पहुँचानेवाला बैल, (उपबर्हणम्) वालिश [सिराहने का वस्त्र आदि], (वासः) वस्त्र, (हिरण्यम्) सुवर्ण (दत्त्वा) दान करके (ते) वे [धर्म्मात्मा लोग] (उत्तमाम्) उत्तम (दिवम्) गति (यन्ति) पाते हैं ॥२९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - धर्म्मात्मा मनुष्य सुपात्रों को विविध प्रकार दान करके उनकी उन्नति से अपनी उन्नति करते हैं ॥२९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २९−(अनुपूर्ववत्साम्) यथाक्रमशिशुमतीम् (धेनुम्) तर्पयित्रीं गाम् (अनड्वाहम्) अ० ४।११।१। अनस्+वह प्रापणे-क्विप्। अन्नप्रापकं वृषभम् (उपबर्हणम्) उप+बृह वृद्धौ उद्यमे च-ल्युट्। शिरोधानम्। वालिशम् (वासः) वस्त्रम् (हिरण्यम्) सुवर्णम् (दत्त्वा) (ते) धार्मिकाः (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (दिवम्) दिवु गतौ-डिवि। गतिम् (उत्तमाम्) श्रेष्ठाम् ॥

३० आत्मानं पितरम्

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आ॒त्मानं॑ पि॒तरं॑ पु॒त्रं पौत्रं॑ पिताम॒हम्।
जा॒यां जनि॑त्रीं मा॒तरं॒ ये प्रि॒यास्तानुप॑ ह्वये ॥

३० आत्मानं पितरम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Self, father, son, grandson, grandfather, wife, generatrix, mother,
    those who are dear—them I call upon.
Notes

Nor does the Anukr. heed the deficient syllables in b of this verse.
⌊We might render jánitrīm mātáram by ’the mother that bore [me].’⌋

Griffith

Himself, the father and the son, the grandson, and the father’s sire, Mother, wife, her who bore his babes, all the beloved ones I call.

पदपाठः

आ॒त्मान॑म्। पि॒तर॑म्। पु॒त्रम्। पौत्र॑म्। पि॒ता॒म॒हम्। जा॒याम्। जनि॑त्रीम्। मा॒तर॑म्। ये। प्रि॒याः। तान्। उप॑। ह्व॒ये॒। ५.३०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • ककुम्मत्यनुष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (आत्मानम्) आत्मबल, (पितरम्) पिता, (पुत्रम्) पुत्र, (पौत्रम्) पौत्र, (पितामहम्) दादा, (जायाम्) पत्नी, (जनित्रीम्) उत्पन्न करनेवाली (मातरम्) माता को और (ये) जो (प्रियाः) प्रिय है, (तान्) उन सबको (उप ह्वये) मैं आदर से बुलाता हूँ ॥३०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सब आत्मसम्बन्धियों के साथ यथावत् उपकार करके सदा सुखी रहें ॥३०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३०−(आत्मानम्) आत्मबलम् (पितरम्) पातारं जनकम् (पुत्रम्) अ० १।११।५। कुलशोधकं सुतम् (पौत्रम्) पुत्र-अण्। नप्तारम् (पितामहम्) पितृव्यमातुलमातामहपितामहाः। पा० ४।२।३।६। पितृ-डामहच्। पितुः पितरम् (जायाम्) पत्नीम् (जनित्रीम्) जनयित्रीं जननीम् (मातरम्) (ये) (प्रियाः) प्रीतिकराः (तान्) (उप) आदरेण (ह्वये) आह्वयामि ॥

३१ यो वै

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यो वै नैदा॑घं॒ नाम॒र्तुं वेद॑।
ए॒ष वै नैदा॑घो॒ नाम॒र्तुर्यद॒जः पञ्चौ॑दनः।
निरे॒वाप्रि॑यस्य॒ भ्रातृ॑व्यस्य॒ श्रियं॑ दहति॒ भव॑त्या॒त्मना॑।
यो॒३॒॑जं पञ्चौ॑दनं॒ दक्षि॑णाज्योतिषं॒ ददा॑ति ॥

३१ यो वै ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Whoever knows the season “torrid” (nāídāgha) by name—that verily
    is the season “torrid” by name, namely (yát) the goat with five
    rice-dishes; he indeed burns out the fortune of his unfriendly foe
    (bhrā́tṛvya), he thrives (bhū) by himself, who gives a goat with five
    rice-dishes, with the light of sacrificial gifts.
Notes

In this and the following verses the mss. read nā́ma rtúm etc.
throughout. The natural division is into four pādas instead of seven,
and ⌊the paragraph, read as prose, has⌋ only 61 syllables instead of 64
(= aṣṭi); but the three missing syllables can easily be made out by
resolutions. One would expect ní dahati, to correspond with
nāídāgha. Read in b yád ajáḥ (an accent-sign slipped out of
place).

Griffith

The man who knows the season named the Scorching–the Goat Pafichaudana is this scorching season He lives himself, he verily burns up his hated rival’s fame, Who gives the Goat Panchaudana illumined with the priestly fee.

पदपाठः

यः। वै। नैदा॑घम्। नाम॑। ऋ॒तुम्। वेद॑। ए॒षः। वै। नैदा॑घः। नाम॑। ऋ॒तुः। यत्। अ॒जः। पञ्च॑ऽओदनः। निः। ए॒व। अप्रि॑यस्य। भ्रातृ॑व्यस्य। श्रिय॑म्। द॒ह॒ति॒। भव॑ति। आ॒त्मना॑। यः। अ॒जम्। पञ्च॑ऽओदनम्। दक्षि॑णाऽज्योतिषम्। ददा॑ति। ५.३१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • सप्तपदाष्टिः
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [परमेश्वर] (वै) निश्चय करके (नैदाघम्) अतितापवाले (नाम) प्रसिद्ध (ऋतुम्) ऋतु को (वेद) जानता है, (एषः वै) वही (नैदाघः) अतितापवाले (नाम) प्रसिद्ध (ऋतुः) ऋतु [के समान] (यत्) पूजनीय ब्रह्म (अजः) अजन्मा (पञ्चौदनः) पाँच भूतों [पृथिवी आदि] का सींचनेवाला [परमेश्वर] है। वह [मनुष्य अपने] (एव) निश्चय करके (अप्रियस्य) अप्रिय (भ्रातृव्यस्य) शत्रु की (श्रियम्) श्री को (निर्दहति) जला देता है, और (आत्मना) अपने आत्मबल के साथ (भवति) रहता है। (यः) जो [पुरुष] (पञ्चौदनम्) पाँच भूतों [पृथिवी आदि] के सींचनेवाले, (दक्षिणाज्योतिषम्) दानक्रिया की ज्योति रखनेवाले (अजम्) अजन्मे वा गतिशील परमात्मा को [अपने आत्मा में] (ददाति) समर्पित करता है ॥३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सूर्य और पृथिवी का घुमाव उष्ण, शीत आदि ऋतुओं का कारण है, उन सूर्य आदि लोकों का आदि कारण परमेश्वर है, ऐसा साक्षात् करनेवाला पुरुष निर्विघ्न होकर आनन्द भोगता है ॥३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३१−(यः) परमेश्वरः (वै) निश्चयेन (नैदाघः) तस्येदम्। पा० ४।३।१२०। निदाघस्य महातापस्य सम्बन्धिनम् (नाम) प्रसिद्धौ (ऋतुम्) कालविशेषम् (वेद) जानाति (एषः) परमेश्वरः (नैदाघः) महातापसम्बन्धी (नाम) (ऋतुः) कालविशेषः (यत्) त्यजितनियजिभ्यो डित्। उ० १।१३२। यज देवपूजासंगितकरणदानेषु-अदि, डित्। पूजनीयं ब्रह्म (अजः) म० १। अजन्मा (पञ्चौदनः) पञ्चभूतानां सेचनं यस्मात् सः (निः) नितराम् (एव) (अप्रियस्य) अहितस्य (भ्रातृव्यस्य) भ्रातृभावरहितस्य (श्रियम्) लक्ष्मीम् (दहति) भस्मीकरोति (भवति) वर्तते (आत्मना) आत्मबलेन सह। अन्यत् पूर्ववत् ॥

३२ यो वै

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यो वै कु॒र्वन्तं॒ नाम॒र्तुं वेद॑।
कु॑र्व॒तींकु॑र्वतीमे॒वाप्रि॑यस्य॒ भ्रातृ॑व्यस्य॒ श्रिय॒मा द॑त्ते।
ए॒ष वै कु॒र्वन्नाम॒र्तुर्यद॒जः पञ्चौ॑दनः।
निरे॒वाप्रि॑यस्य॒ भ्रातृ॑व्यस्य॒ श्रियं॑ दहति॒ भव॑त्या॒त्मना॒ यो॒३॒॑जं पञ्चौ॑दनं॒ दक्षि॑णाज्योतिषं॒ ददा॑ति ॥

३२ यो वै ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Whoever knows the season “making” by name, each making fortune of
    his unfriendly foe he takes to himself; that verily is the season
    “making” by name, namely the goat with five rice-dishes; he indeed etc.
    etc.
Notes
Griffith

The man who knows the season called the Working takes to himself the active fame, his hated rival’s active fame. The Goat Panchaudana is this Working season. He lives himself, etc.

पदपाठः

यः। वै। कु॒र्वन्त॑म्। नाम॑। ऋ॒तुम्। वेद॑। कु॒र्व॒तीम्ऽकु॑र्वतीम्। ए॒व। अप्रि॑यस्य। भ्रातृ॑व्यस्य। श्रिय॑म्। आ। द॒त्ते॒। ए॒षः। वै। कु॒र्वन्। नाम॑। ऋ॒तुः। यत्। अ॒जः। पञ्च॑ऽओदनः। ५.३२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • दशपदा प्रकृतिः
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [परमेश्वर] (वै) निश्चय करके (कुर्वन्तम्) बनानेवाले (नाम) प्रसिद्ध (ऋतुम्) ऋतु को (वेद) जानता है। और [जो] (अप्रियस्य) अप्रिय (भ्रातृव्यस्य) शत्रु की (कुर्वतीं कुर्वतीम्) अच्छे प्रकार बनानेवाली (श्रियम्) श्री को (एव) निश्चय करके (आ दत्ते) ले लेता है, (एषः वै) वही (कुर्वन्) बनानेवाला (नाम) प्रसिद्ध…. म० ३१ ॥३२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वर्षा आदि ऋतु अन्न आदि उत्पन्न करके बुभुक्षा आदि कष्ट मिटाते हैं, उन ऋतुओं का आदि कारण परमेश्वर है, ऐसा जाननेवाला पुरुष निर्विघ्न रहता है ॥३२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३२−(कुर्वन्तम्) करोतेः शतृ, रचयन्तम् (कुर्वतीं कुर्वतीम्) रचन्तीं रचन्तीम् (श्रियम्) लक्ष्मीम् (आ दत्ते) गृह्णाति (कुर्वन्) निष्पादयन्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

३३ यो वै

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यो वै सं॒यन्तं॒ नाम॒र्तुं वेद॑।
सं॑य॒तींसं॑यतीमे॒वाप्रि॑यस्य॒ भ्रातृ॑व्यस्य॒ श्रिय॒मा द॑त्ते।
ए॒ष वै सं॒यन्नाम॒र्तुर्यद॒जः पञ्चौ॑दनः।
निरे॒वाप्रि॑यस्य॒ भ्रातृ॑व्यस्य॒ श्रियं॑ दहति॒ भव॑त्या॒त्मना॒ यो॒३॒॑जं पञ्चौ॑दनं॒ दक्षि॑णाज्योतिषं॒ ददा॑ति ॥

३३ यो वै ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Whoever knows the season “gathering” by name, each gathering
    fortune of his unfriendly foe he takes to himself; that verily is the
    season “gathering” by name, namely the goat etc. etc.
Notes
Griffith

The man who knows the season called the Meeting takes to him- self the gathering fame, his hated rival’s gathering fame. The Goat Panchaudana is this Meeting season.

पदपाठः

यः। वै। स॒म्ऽयन्त॑म्। नाम॑। ऋ॒तुम्। वेद॑। सं॒य॒तीम्ऽसं॑यतीम्। ए॒व। अप्रि॑यस्य। भ्रातृ॑व्यस्य। श्रिय॑म्। आ। द॒त्ते॒। ए॒षः। वै। स॒म्ऽयन्। नाम॑। ऋ॒तुः। यत्। अ॒जः। पञ्च॑ऽओदनः। ५.३३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • दशपदा प्रकृतिः
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [परमेश्वर] (वै) निश्चय करके (संयन्तम्) [अन्न आदि] मिलानेवाले (नाम) प्रसिद्ध (ऋतुम्) ऋतु को (वेद) जानता है और [जो] (अप्रियस्य) अप्रिय (भ्रातृव्यस्य) शत्रु की (संयतीं संयतीम्) अत्यन्त एकत्र करनेवाली (श्रियम्) लक्ष्मी को (एव) निश्चय करके (आ दत्ते) ले लेता है। (एषः वै) वही परमेश्वर (संयन्) एकत्र करनेवाला (नाम) प्रसिद्ध…. म० ३१ ॥३३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - अन्न आदि वस्तुओं के पकानेवाले ऋतुओं का नियन्ता परमेश्वर है, शेष पूर्ववत् ॥३३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३३−(संयन्तम्) इण् गतौ-शतृ, अन्तर्गतण्यर्थः। अन्नादि संगमयन्तम् (संयतीं संयतीम्) संगमयन्तीं संगमयन्तीम् (संयन्) संगमयन्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

३४ यो वै

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यो वै पि॒न्वन्तं॒ नाम॒र्तुं वेद॑।
पि॑न्व॒तींपि॑न्वतीमे॒वाप्रि॑यस्य॒ भ्रातृ॑व्यस्य॒ श्रिय॒मा द॑त्ते।
ए॒ष वै पि॒न्वन्नाम॒र्तुर्यद॒जः पञ्चौ॑दनः।
निरे॒वाप्रि॑यस्य॒ भ्रातृ॑व्यस्य॒ श्रियं॑ दहति॒ भव॑त्या॒त्मना॒ यो॒३॒॑जं पञ्चौ॑दनं॒ दक्षि॑णाज्योतिषं॒ ददा॑ति ॥

३४ यो वै ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Whoever knows the season “fattening” by name, each fattening
    fortune of his unfriendly foe he takes to himself; that verily is the
    season “fattening” by name, namely the goat etc. etc.
Notes
Griffith

The man who knows the called the Swelling takes to himself the swelling fame, his hated rival’s swelling fame. The Goat Panchaudana is this Swelling season. He lives himself, etc.

पदपाठः

यः। वै। पि॒न्वन्त॑म्। नाम॑। ऋ॒तुम्। वेद॑। पि॒न्व॒तीम्ऽपि॑न्वतीम्। ए॒व। अप्रि॑यस्य। भ्रातृ॑व्यस्य। श्रिय॑म्। आ। द॒त्ते॒। ए॒षः। वै। पि॒न्वन्। नाम॑। ऋ॒तुः। यत्। अ॒जः। पञ्च॑ऽओदनः। ५.३४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • दशपदा प्रकृतिः
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [परमेश्वर] (वै) निश्चय करके (पिन्वन्तम्) सींचनेवाले (नाम) प्रसिद्ध (ऋतुम्) ऋतु को (वेद) जानता है और [जो] (अप्रियस्य) अप्रिय (भ्रातृव्यस्य) शत्रु की (पिन्वतीं पिन्वतीम्) अत्यन्त सींचनेवाली (श्रियम्) श्री को (एव) अवश्य (आ दत्ते) ले लेता है। (एषः वै) वही [परमेश्वर] (पिन्वन्) सींचनेवाला (नाम) प्रसिद्ध… म० ३१ ॥३४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - अन्न आदि पुष्ट करने का नियम जाननेवाला परमेश्वर है-अन्यत् पूर्ववत् ॥३५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३४−(पिन्वन्तम्) पिवि सेचने सेवने च-शतृ। सिञ्चन्तम्। पोषयन्तम् (पिन्वतीं, पिन्वतीम्) अतिशयेन पोषयन्तीम् (पिन्वन्) पोषयन्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

३५ यो वा

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यो वा उ॒द्यन्तं॒ नाम॒र्तुं वेद॑।
उ॑द्यतीमु॑द्यतीमे॒वाप्रि॑यस्य॒ भ्रातृ॑व्यस्य॒ श्रिय॒मा द॑त्ते।
ए॒ष वा उ॒द्यन्नाम॒र्तुर्यद॒जः पञ्चौ॑दनः।
निरे॒वाप्रि॑यस्य॒ भ्रातृ॑व्यस्य॒ श्रियं॑ दहति॒ भव॑त्या॒त्मना॒ यो॒३॒॑जं पञ्चौ॑दनं॒ दक्षि॑णाज्योतिषं॒ ददा॑ति ॥

३५ यो वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Whoever knows the season “up-going” by name, each up-going fortune
    of his unfriendly foe he takes to himself; that verily is the season
    “up-going” by name, namely the goat etc. etc.
Notes

These four verses agree in number of syllables, and the name given them
by the Anukr. (prakṛti) demands 84; this number it is possible to make
out by resolutions of saṁdhi, though the natural reading gives only 80
(10 + 20: 15: 20 + 15 = 80). Saṁyatī́m॰saṁyatīn in vs. 33 b is quoted
by the commentary under Prāt. iv. 44, as an example of a repeated
separable word which gives up in pada-text its individual separation
in favor of that between the repetitions. Read in 32 c yád ajáḥ
(an accent-sign gone), and supply an omitted mark of punctuation after
datte in 33.

Griffith

The man who knows the season called the Rising takes to him- self the rising fame, his hated rival’s rising fame. The Goat Panchaudana in this Rising season.

पदपाठः

यः। वै। उ॒त्ऽयन्त॑म्। नाम॑। ऋ॒तुम्। वेद॑। उ॒द्य॒तीम्ऽउ॑द्यतीम्। ए॒व। अप्रि॑यस्य। भ्रातृ॑व्यस्य। श्रिय॑म्। आ। द॒त्ते॒। ए॒षः। वै। उ॒त्ऽयन्। नाम॑। ऋ॒तुः। यत्। अ॒जः। पञ्च॑ऽओदनः। ५.३५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • दशपदा प्रकृतिः
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [परमेश्वर] (वै) निश्चय करके (उद्यन्तम्) उदय होते हुए (नाम) प्रसिद्ध (ऋतुम्) ऋतु [वसन्त] को (वेद) जानता है, और [जो] (अप्रियस्य) अप्रिय (भ्रातृव्यस्य) शत्रु की (उद्यतीमुद्यतीम्) अत्यन्त उदय होती हुई (श्रियम्) श्री को (एव) अवश्य (आ दत्ते) ले लेता है। (एषः वै) वही परमेश्वर (उद्यन्) उदय होता हुआ (नाम) प्रसिद्ध…. म० ३१ ॥३५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - वसन्त आदि ऋतुओं का नियामक परमेश्वर है… इत्यादि ॥३५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३५−(उद्यन्तम्) इण्-शतृ। उद्गच्छन्तम् (उद्यतीमुद्यतीम्) अतिशयेनोदयं प्राप्नुवतीम् (उद्यन्) उद्गच्छन्। अन्यत् पूर्ववत् ॥

३६ यो वा

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यो वा अ॑भि॒भुवं॒ नाम॒र्तुं वेद॑।
अ॑भि॒भव॑न्तीमभिभवन्तीमे॒वाप्रि॑यस्य॒ भ्रातृ॑व्यस्य॒ श्रिय॒मा द॑त्ते।
ए॒ष वा अ॑भि॒भूर्नाम॒र्तुर्यद॒जः पञ्चौ॑दनः।
निरे॒वाप्रि॑यस्य॒ भ्रातृ॑व्यस्य॒ श्रियं॑ दहति॒ भव॑त्या॒त्मना॑।
यो॒३॒॑जं पञ्चौ॑दनं॒ दक्षि॑णाज्योतिषं॒ ददा॑ति ॥

३६ यो वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Whoever knows the season “overcoming” (abhibhū́) by name, each
    overcoming fortune of his unfriendly foe he takes to himself; that
    verily is the season “overcoming” by name, namely the goat etc. etc.
Notes

This verse has six more syllables than the preceding ones, and the
Anukr. gives it a name (ākṛti) applying properly to 88 syllables. In
c read eṣá for eṣā́.

Griffith

The man who knows the season called Surpassing takes to him- self the conquering fame, his hated rival’s conquering fame. The Goat Panchaudana is this Conquering season. He lives himself, he verily burns up his hated rival’s fame Who gives the Goat Panchaudana illumined with a priestly fee.

पदपाठः

यः। वै। अ॒भि॒ऽभुव॑म्। नाम॑। ऋ॒तुम्। वेद॑। अ॒भि॒भव॑न्तीम्ऽअभिभवन्तीम्। ए॒व। अप्रि॑यस्य। भ्रातृ॑व्यस्य। श्रिय॑म्। आ। द॒त्ते॒। ए॒षः। वै। अ॒भि॒ऽभूः। नाम॑। ऋ॒तुः। यत्। अ॒जः। पञ्च॑ऽओदनः। निः। ए॒व। अप्रि॑यस्य। भ्रातृ॑व्यस्य। श्रिय॑म्। द॒ह॒ति॒। भव॑ति। आ॒त्मना॑। यः। अ॒जम्। पञ्च॑ऽओदनम्। दक्षि॑णाऽज्योतिषम्। ददा॑ति। ५.३६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • दशपदाकृतिः
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [परमेश्वर] (वै) निश्चय करके (अभिभुवम्) [दुःखों के] हरानेवाले (नाम) प्रसिद्ध (ऋतुम्) ऋतु को (वेद) जानता है और [जो] (अप्रियस्य) अप्रिय (भ्रातृव्यस्य) शत्रु की (अभिभवन्तीमभिवन्तीम्) अत्यन्त हरा देनेवाली (श्रियम्) श्री को (एव) निश्चय करके (आ दत्ते) ले लेता है। (एषः वै) वही (अभि भूः) [शत्रुओं का] हरा देनेवाला (नाम) प्रसिद्ध (ऋतुः) ऋतु [के समान] (यत्) पूजनीय ब्रह्म (अजः) अजन्मा (पञ्चौदनः) पञ्चभूतों [पृथिवी आदि] का सींचनेवाला [परमेश्वर] है। वह [मनुष्य अपने] (एव) निश्चय करके (अप्रियस्य) अप्रिय (भ्रातृव्यस्य) शत्रु की (श्रियम्) श्री को (निर्दहति) जला देता है और (आत्मना) अपने आत्मबल के साथ (भवति) रहता है। (यः) जो [पुरुष] (पञ्चौदनम्) पाँच भूतों [पृथिवी आदि] के सींचनेवाले, (दक्षिणाज्योतिषम्) दानक्रिया की ज्योति रखनेवाले (अजम्) अजन्मे वा गतिशील परमात्मा को [अपने आत्मा में] (ददाति) समर्पित करता है ॥३६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य दुःखहर्ता परमेश्वर की उपासना करते हैं, वे दुःखों से छूटकर आनन्दयुक्त होते हैं ॥३६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३६−(अभिभुवम्) अभिभवितारम्। दुःखनाशकम् (अभिभवन्तीमभिभवन्तीम्) अतिशयेन पराजयन्तीम् (अभिभूः) भू सत्तायाम्-क्विप्। अभिभविता। कष्टहर्ता। अन्यत् पूर्ववत् ॥

३७ अजं च

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अ॒जं च॒ पच॑त॒ पञ्च॑ चौद॒नान्।
सर्वा॒ दिशः॒ संम॑नसः स॒ध्रीचीः॒ सान्त॑र्देशाः॒ प्रति॑ गृ॒ह्णन्तु॑ त ए॒तम् ॥

३७ अजं च ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Cook ye the goat and the five rice-dishes; let all the quarters,
    like-minded, united (sadhryàñc), with the intermediate directions,
    accept that of thee.
Notes

All the mss. (except D.) read at the end (pada-text ) before
etám; our edition emends to ta; the word could better be spared
altogether. Ppp. has (in iii.) only the first pāda. The Anukr. describes
the verse as if this pāda as well as the other two were metrical.

Griffith

He cooks the Goat and the five boiled rice messes. May the uni- ted Quarters, all accordant, and intermediate points, accept him from thee.

पदपाठः

अ॒जम्। च॒। पच॑त। पञ्च॑। च॒। ओ॒द॒नान्। सर्वाः॑। दिशः॑। सम्ऽम॑नसः। स॒ध्रीचीः॑। सऽअ॑न्तर्देशाः। प्रति॑। गृ॒ह्ण॒न्तु॒। ते॒। ए॒तम्। ५.३७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • त्रिपदा विराड्गायत्री
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे विद्वानो !] (च) निश्चय करके (अजम्) अजन्मे वा गतिशील जीवात्मा को (च) और (पञ्च) पाँच [भूतों से युक्त] (ओदनान्) सेचक पदार्थों को (पचत) पक्का [दृढ़] करो। (सान्तर्देशाः) अन्तर्देशों के सहित (सध्रीचीः) साथ-साथ रहनेवाली, (सर्वाः) सब (दिशः) दिशाएँ (संमनसः) एक मन होके (ते) तेरे लिये, (एतम्) इस [जीवात्मा] को (प्रति गृह्णन्तु) स्वीकार करें ॥३७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमेश्वर में परिपक्वबुद्धि होकर पदार्थों से उपकार लेते हैं, उनके लिये संसार के सब पदार्थ सुखदायी होते हैं ॥३७॥ इस मन्त्र का दूसरा पाद आ चुका है-अ० ६।८८।३ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३७−(अजम्) म० १। अजन्मानं गतिशीलं वा जीवात्मानम् (च) अवधारणे (पचत) परिपक्वं सुदृढस्वभावं कुरुत (पञ्च) पञ्चभूतयुक्तान् (च) समुच्चये (ओदनान्) म० १९। सेचकान्। प्रवर्धकान् पदार्थान् (सर्वाः) प्राच्यादयः (दिशः) दिशाः (संमनसः) समानमनस्काः (सध्रीचीः) अ० ६।८८।३। सध्रीच्यः। सहवर्तमानाः (सान्तर्देशाः) अन्तर्दिग्भिः सहिताः (प्रति गृह्णन्तु) स्वीकुर्वन्तु (ते) तुभ्यम् (एतम्) जीवात्मानम् ॥

३८ तास्ते रक्षन्तु

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

तास्ते॑ रक्षन्तु॒ तव॒ तुभ्य॑मे॒तं ता॑भ्य॒ आज्यं॑ ह॒विरि॒दं जु॑होमि ॥

३८ तास्ते रक्षन्तु ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let them defend this of thine for thee; to them I offer (hu)
    sacrificial butter, this oblation.
Notes

‘Them’ is fem., designating the ‘quarters’ of vs. 37. The translation
omits a te; it may be regarded as an ethical dative, anticipating the
distincter túbhyam ‘for thee’ that follows.

⌊This hymn begins with ā́ naya; and, with its 38 vss., exceeds the norm
by 18. The quoted Anukr. says aṣṭādaśā “”naya.”

⌊The twentieth prapāṭhaka ends here. As in the cases of the tenth and
eighteenth (ending at v. 7 and viii. 5), the prapāṭhaka-division here
fails to coincide with the anuvāka-division.⌋

Griffith

May these preserve him for thee. Here I offer t o these the molten butter as oblation.

पदपाठः

ताः। ते॒। र॒क्ष॒न्तु॒। तव॑। तुभ्य॑म्। ए॒तम्। ताभ्यः॑। आज्य॑म्। ह॒विः। इ॒दम्। जु॒हो॒मि॒। ५.३८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • अजः पञ्चौदनः
  • भृगुः
  • एकावसाना द्विपदा साम्नी त्रिष्टुप्
  • अज सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ताः) वे सब [दिशाएँ] (ते) तेरे लिये, (तुभ्यम्) तेरे लिये (तव) तेरे (एतम्) इस [जीवात्मा] की (रक्षन्तु) रक्षा करें, (ताभ्यः) उन सबसे (इदम्) इस (आज्यम्) प्रकाश करने योग्य (हविः) ग्राह्यकर्म को (जुहोमि) मैं ग्रहण करता हूँ ॥३८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सब पदार्थों से गुण ग्रहण करके संसार में विख्यात करें ॥३८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३८−(ताः) पूर्वोक्ता दिशाः (ते) तुभ्यम् (रक्षन्तु) पान्तु (तव) (तुभ्यम्) वीप्सायां द्विर्वचनम् (एतम्) जीवात्मानम् (ताभ्यः) दिशानां सकाशात् (आज्यम्) अ० ५।८।१। आङ्+अञ्जू व्यक्तीकरणे-क्यप्। व्यक्तीकरणीयम्। व्याख्यातव्यम् (हविः) ग्राह्यं कर्म (इदम्) (जुहोमि) आददे। गृह्णामि ॥