००३ शाला

००३ शाला ...{Loading}...

Whitney subject
  1. To accompany the releasing of a house.
VH anukramaṇī

शाला।
१-३१ भृग्वङ्गिराः। शाला। अनुष्टुप्, ६ पथ्यापङ्क्तिः, ७ परोष्णिक्, १५ त्र्यवसाना पञ्चपदातिशक्वरी,
१७ प्रस्तारपङ्क्तिः, २१ आस्तारपङ्क्तिः २५-३१ त्रिपदा प्राजापत्या बृहती, २६ साम्नी त्रिष्टुप्,
२७-३० प्रतिष्ठानाम गायत्री, (२५-३१) एकावसाना त्रिपदा।

Whitney anukramaṇī

[Bhṛgvan̄giras.—ekatriṅśatkam. śālādevatyam. ānuṣṭubham: 6. pathyāpan̄kti; 7. paroṣṇih; 15. 3-av. 5-p. atiśakvarī; 17. prastārapan̄kti; 21. āstārapan̄kti; 25, 31. 3-p. prajāpatyā bṛhatī; 26. sāmnī triṣṭubh; 27-30. pratiṣṭhānāmagāyatrī; 23-31. 1-av. 3-p.]

Whitney

Comment

⌊Partly prose—25 to end.⌋ Found also in Pāipp. xvi. (in the verse-order 1-3, 5, 4, 6-10, 14, 16, 11, 12, 13, 15, 17, 21, 18, 20, 19, 24, 23, 22, 25-31). The hymn is not noticed in Vāit.; but several verses (1, 15, 18, 22, 24) are quoted in Kāuś. 66. 22-30, in connection with an inauguration-ceremony (savayajña) in which a house (a toy house?) is an object given.

Translations

Translated: Ludwig, p. 464; Zimmer, p. 151 (vss. 1-24); Grill, 60, 188 (vss. 1-24); Henry, 87, 121; Griffith, i. 434; Bloomfield, 193, 595.—Cf. also Oldenberg, IFA. vi. 179.

Griffith

On the consecration of a newly built house

०१ उपमितां प्रतिमितामथो

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उप॒मितां॑ प्रति॒मिता॒मथो॑ परि॒मिता॑मु॒त।
शाला॑या वि॒श्ववा॑राया न॒द्धानि॒ वि चृ॑तामसि ॥

०१ उपमितां प्रतिमितामथो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Of the props (upamít), of the supports (pratimít), and also of
    the connectors (? parimít) of the dwelling (śā́lā) that possesses all
    choice things, we unfasten the tied (naddhá) [parts].
Notes

Ppp. reads upamitaṣ pratimito ‘tho parimitaś ca yaś śālāyā viśvavārāyā
te naddhān vi cṛtāmasi
.

Griffith

We loose the ties and fastenings of the house that holds all precious things, The bands of pillars and of stays, the ties of beams that form the roof.

पदपाठः

उ॒प॒ऽमिता॑म्। प्र॒ति॒ऽमिता॑म्। अथो॒ इति॑। प॒रि॒ऽमिता॑म्। उ॒त। शाला॑याः। वि॒श्वऽवा॑रायाः। न॒ध्दानि॑। वि। चृ॒ता॒म॒सि॒। ३.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्ववारायाः) सब ओर द्वारोंवाली वा सब श्रेष्ठ पदार्थोंवाली (शालायाः) शाला की (उपमिताम्) उपमायुक्त [देखने में सराहने योग्य], (प्रतिमिताम्) प्रतिमानयुक्त [जिसके आमने-सामने की भीतें, द्वार, खिड़की आदि एक नाप में हों] (अथो) और भी (परिमिताम्) परिमाणयुक्त [चारों ओर से नाप कर सम चौरस की हुई] [बनावट] को (उत) और (नद्धानि) बन्धनों [चिनाई, काष्ठ आदि के मेलों] को (वि चृतामसि) हम अच्छे प्रकार ग्रन्थित [बन्धनयुक्त] करते हैं ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि विचारपूर्वक प्रतिकृति अर्थात् चित्र बनाकर घरों को उत्तम सामग्री से भले प्रकार सुथरे, सुडौल, सुदृश्य, दिखनौत, और चित्तविनोदक बनावें ॥१॥ यह मन्त्र स्वामीदयानन्दकृत संस्कारविधि-गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात है ॥ इस सूक्त के संस्कारविधि में आये सब मन्त्रों का अर्थ प्रशंसित महात्मा के आधार पर किया गया है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(उपमिताम्) माङ् माने-क्त। द्यतिस्यतिमास्थामित्ति किति। पा० ७।४।४०। आकारस्य इकारः। उपमायुक्ताम् प्रशंसायुक्ताम् (प्रतिमिताम्) माङ्-क्त। प्रतिमानयुक्ताम्। मानप्रतिमानेन सदृशीकृताम् (अथो) अपि च (परिमिताम्) माङ्-क्त। कृतपरिमाणाम्। सर्वतो मानेन समीकृताम्। रचनामिति शेषः (उत) अपि च (शालायाः) अ० ३।१२।१। गृहस्य (विश्ववारायाः) अ० ७।२०।४। वृञ् वरणे-घञ्। विश्वतो वारा द्वाराणि यस्यां तस्याः। सर्वे वाराः श्रेष्ठपदार्थाः यस्यां तस्याः। (नद्धानि) णह बन्धने-क्त। बन्धनानि (वि) विशेषेण (चृतामसि) चृती हिंसाग्रन्थनयोः। ग्रन्थयामः। बध्नीमः। दृढीकुर्मः ॥

०२ यत्ते नद्धम्

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यत्ते॑ न॒द्धं वि॑श्ववारे॒ पाशो॑ ग्र॒न्थिश्च॒ यः कृ॒तः।
बृह॒स्पति॑रिवा॒हं ब॒लं वा॒चा वि स्रं॑सयामि॒ तत् ॥

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Whitney
Translation
  1. What of thee is tied, O thou that possessest all choice things, what
    fetter and knot is made, that with a spell (vā́c) I make fall apart, as
    Brihaspati [did] Bala.
Notes

All the mss. read balám (not valám) in c, as also Ppp.
(bṛhaspatiṁ vahaṁ balam). Our Bp. has in d sraṅśayāmi: tvát. The
Anukr. seems to imply the abbreviation of iva to ’va in c.

Griffith

All-wealthy House! each knot and band, each cord that is attached to thee I with my spell untie, as erst Brihaspati disclosed the cave.

पदपाठः

यत्। ते॒। न॒ध्दम्। वि॒श्व॒ऽवा॒रे॒। पाशेः॑। ग्र॒न्थिः। च॒। यः। कृ॒तः। बृह॒स्पतिः॑ऽइव। अ॒हम्। ब॒लम्। वा॒चा। वि। स्रं॒स॒या॒मि॒। तत्। ३.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्ववारे) हे सब उत्तम पदार्थोंवाली ! (यत्) जिस कारण से (ते) तेरा (नद्धम्) बन्धन, (पाशः) जाल (च) और (ग्रन्थिः) गाँठ (यः) जो (कृतः) बनाई गई है, (तत्) उसी कारण से (बृहस्पतिः इव) बड़े विद्वान् के समान (अहम्) मैं (बलम्) अन्नराशि को (वाचा) वाणी [विद्या] के साथ (वि) विशेष करके (स्रंसयामि) पहुँचाता हूँ ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनष्य शाला के सब अङ्गों को ठीक-ठीक बना के अन्न आदि से भरपूर करें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(यत्) यस्मात् कारणात् (ते) तव (नद्धम्) बन्धनम् (विश्ववारे) सर्ववरणीयपदार्थयुक्ते (पाशः) जालः (ग्रन्थिः) ग्रन्थ सन्दर्भे-इन्। सन्धिसाधनम् (च) (यः) (कृतः) निष्पादितः (बृहस्पतिः) बृहत्या वेदवाचः पालकः (इव) यथा (अहम्) गृहस्थः (बलम्) बल प्राणने धान्यावरोधने च-अच्। धान्यराशिम् (वाचा) वाण्या। विद्यया सह (वि) विशेषेण (स्रंसयामि) स्रंसु अधःपतने-णिच्। प्रवेशयामि (तत्) तस्मात् कारणात् ॥

०३ आ ययाम

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आ य॑याम॒ सं ब॑बर्ह ग्र॒न्थींश्च॑कार ते दृ॒ढान्।
परूं॑षि वि॒द्वाञ्छस्ते॒वेन्द्रे॑ण॒ वि चृ॑तामसि ॥

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Whitney
Translation
  1. He stretched (ā-yam), he combined (sam-bṛh), he made thy knots
    firm (dṛḍhá); with Indra we unfasten [them], as a knowing
    slaughterer the joints.
Notes
Griffith

He drew them close, he pressed them fast, he made thy knotted. bands secure: With Indra’s help we loose them as a skilful Slaughterer severs joints.

पदपाठः

आ। य॒या॒म॒। सम्। ब॒ब॒र्ह॒। ग्र॒न्थीन्। च॒का॒र॒। ते॒। दृ॒ढान्। परूं॑ष‍ि। वि॒द्वान्। शस्ता॑ऽइव। इन्द्रे॑ण। वि। चृ॒ता॒म॒सि॒। ३.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - उस [शिल्पी] ने (ते) तेरी (ग्रन्थीन्) गाँठों को (आ ययाम) फैलाया है, (सम् बबर्ह) मिलाया है और (दृढान्) दृढ़ (चकार) किया है। (परूँषि) जोड़ों को (विद्वान्) विद्वान् (शस्ता इव) चीड़-फाड़ करनेवाले [वैद्य] के समान हम लोग (इन्द्रेण) ऐश्वर्य के साथ (वि) विशेष करके (चृतामसि) बाँधते हैं ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - शिल्पी लोग सब आवश्यक सामग्री एकत्र करके घरों को दृढ़ बनावें, जिस प्रकार वैद्य टूटे अवयवों को जोड़ कर दृढ़ बनाता है ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(आ ययाम) यमु उपरमे। विस्तारितवान् (सम् बबर्ह) बृह वृद्धौ संवर्द्धितवान्। संयोजितवान् (ग्रन्थीन्) सन्धीन् (चकार) कृतवान् (ते) तव (दृढान्) कठिनान् (परूँषि) अवयवान् (विद्वान्) पण्डितः (शस्ता) शसु हिंसायाम्−तृन्। रुग्णाङ्गानां छेत्ता वैद्यः (इव) यथा (इन्द्रेण) ऐश्वर्येण (वि) विशेषेण (चृतामसि) दृढीकुर्मः ॥

०४ वंशानां ते

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वं॒शानां॑ ते॒ नह॑नानां प्राणा॒हस्य॒ तृण॑स्य च।
प॒क्षाणां॑ विश्ववारे ते न॒द्धानि॒ वि चृ॑तामसि ॥

०४ वंशानां ते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Of thy beams (vaṅśá), ties (náhana), and binding (prāṇāhá)
    grass, of thy sides (pakṣá), O thou that possessest all choice things,
    we unfasten the tied [parts].
Notes

Vaṅśá is properly a bamboo beam. Prāṇāhá (unchanged in pada-text)
seems to occur only here, nor is root nah elsewhere combined with
pra; I have ventured to render it as an adj., as tṛ́ṇa appears to
call for a descriptive epithet. Ppp. reads naddhān vi in d.

Griffith

We loose the bands of thy bamboos, of bolts, of fastening, of thatch, We loose the ties of thy side-posts, O House that holdest all we prize.

पदपाठः

वं॒शाना॑म्। ते॒। नह॑नानाम्। प्रा॒ण॒हस्य॑। तृण॑स्य। च॒। प॒क्षाणा॑म्। वि॒श्व॒ऽवा॒रे॒। ते॒। न॒ध्दानि॑। वि। चृ॒ता॒म॒सि॒। ३.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्ववारे) हे सब उत्तम पदार्थोंवाली ! (ते) तेरे (वंशानाम्) बाँसों, (नहनानाम्) गाँठों (च) और (प्राणाहस्य) बन्धन की (तृणस्य) घास के और (ते) तेरे (पक्षाणाम्) पक्खों [भीति आदि] के (नद्धानि) बन्धनों को (वि) अच्छे प्रकार (चृतामसि) हम गूँथते हैं ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य घर बनाने में सब अङ्गों के जोड़ों को यथावत् दृढ़ करें ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(वंशानाम्) वश कान्तौ-अच् घञ् वा, नुम् च। वेणूनाम् (ते) तव (नहनानाम्) ग्रन्थीनाम् (प्राणाहस्य) प्र+आङ्+णह बन्धने-घञ्। बन्धनसाधनस्य (तृणस्य) (च) (पक्षाणाम्) पक्ष परिग्रहे-अच्। गृहपार्श्वानाम् (विश्ववारे) हे सर्ववरणीयपदार्थयुक्ते। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०५ सन्दंशानां पलदानाम्

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सं॑दं॒शानां॑ पल॒दानां॒ परि॑ष्वञ्जल्यस्य च।
इ॒दं मान॑स्य॒ पत्न्या॑ न॒द्धानि॒ वि चृ॑तामसि ॥

०५ सन्दंशानां पलदानाम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Of the clamps (saṁdaṅśá), of the paladás, and of the embracer
    (páriṣvañjalya)—now of the mistress of the building do we unfasten the
    tied [parts].
Notes

Ppp. reads, in a, b, palidānāṁ pariṣvañcanadasya ca; and, for
c, sarvā mānasya patni te; it also puts the verse before our 4.

Griffith

We loosen here the ties and bands of straw in bundles, and of clamps, Of all that compasses and binds the Lady Genius of the Home.

पदपाठः

स॒म्ऽदं॒शाना॑म्। प॒ल॒दाना॑म्। परि॑ऽस्वञ्जल्यस्य। च॒। इ॒दम्। मान॑स्य। पत्न्याः॑। न॒ध्दानि॑। वि। चृ॒ता॒म॒सि॒। ३.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) अब (मानस्य) मान [सम्मान] की (पत्न्याः) रक्षा करनेवाली [शाला] के (संदंशानाम्) सण्डासियों [वा आँकड़ों] को (च) और (पलदानाम्) पल [अर्थात् सुवर्ण आदि की तोल और विघटिका मुहूर्त आदि] देनेवाले [यन्त्रों] के (परिष्वञ्जल्यस्य) जोड़ के (नद्धानि) बन्धनों को (वि चृतामसि) हम भली-भाँति बाँधते हैं ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पदार्थ पकड़ने के साधनों और वैज्ञानिक तोल और समय जानने के यन्त्रों को अपने घरों में यथावत् बनावें ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(संदंशानाम्) सम्+दंश दंशने-अच्। ग्रहणसाधनानां यन्त्रविशेषाणाम् (पलदानाम्) पल गतौ रक्षणे च-अप्+दा दाने-क। पलस्य सुवर्णादितोलनस्य विघटिकादिकालस्य च दातॄणां ज्ञापकानां यन्त्राणाम् (परिष्वञ्जल्यस्य) मङ्गेरलच्। उ० ५।७०। परि+ष्वञ्ज परिष्वङ्गे-अलच्। सख्युर्यः। पा० ५।१।१२६। भावे यः। परिष्वञ्जनस्य। संयोगस्य (च) (इदम्) इदानीम् (मानस्य) मान पूजायाम्-अच्। सम्मानस्य (पत्न्याः) रक्षित्र्याः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

०६ यानि तेऽन्तः

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यानि॑ ते॒ऽन्तः शि॒क्या᳡न्याबे॒धू र॒ण्या॑य॒ कम्।
प्र ते॒ तानि॑ चृतामसि शि॒वा मा॑नस्य पत्नी न॒ उद्धि॑ता त॒न्वे᳡ भव ॥

०६ यानि तेऽन्तः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. What hanging vessels (? śikyà) they bound on to thee within for
    enjoyment, those we unfasten for thee; be thou, [when] set up, O
    mistress of the building, propitious to our self (tanū́).
Notes

śikyà may be an ornamental hanging appendage of some kind.* All the
mss. read mā́nasya patni in d; our edition emends to mān-. The
pada-text has úddhitā, undivided, in e (as at xviii. 2. 34, and
uddhíḥ at viii. 8. 22); the case ought to fall under Prāt. iv. 62, but
root dhā is not mentioned there, though we find han superfluously
included. Ppp. reads yāni te antaś cikyāny āmedho ‘ntyāya kaṁ; and,
for d, sarvā mānasya patnyā.

*⌊As to decorations of this kind, see John Griffiths, The Paintings in
the Buddhist Cave-Temples of Ajantâ
, London, 1896, plates 6, 10, and
13; of. also Karpūra-mañjarī, iii. 27, ed. Konow, and my note thereon at
p. 289. W. has interlined “slings” as an alternative rendering of
śikyà.⌋

Griffith

We loose the loops which men have bound within thee, loops to tie and hold. Be gracious, when erected, to our bodies, Lady of the Home.

पदपाठः

यानि॑। ते॒। अ॒न्तः। शि॒क्या᳡नि। आ॒ऽबे॒धुः। र॒ण्या᳡य। कम्। प्र। ते॒। तानि॑। चृ॒ता॒म॒सि॒। शि॒वा। मा॒न॒स्य॒। प॒त्नि॒। नः॒। उध्दि॑ता। त॒न्वे᳡। भ॒व॒। ३.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • पथ्यापङ्क्तिः
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ते अन्तः) तेरे भीतर (यानि) जिन (शिक्यानि) छींकों को (कम्) सुख से (रण्याय) रमणीय वा सांग्रामिक कर्म के लिये (आबेधुः) उन [शिल्पियों] ने भली-भाँति बाँधा है। (ते) तेरे लिये (तानि) उन सबको (प्र चृतामसि) हम भली-भाँति दृढ़ करते हैं, (मानस्य) सन्मान की (पत्नी) रक्षा करनेवाली तू (नः) हमारे (तन्वे) उपकार के लिये (शिवा) कल्याणी और (उद्धिता) ऊँची उठी हुई (भव) हो ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विज्ञानवृद्धि, मन बहलाव और युद्ध आदि के लिये कलायन्त्र आदिकों के लटकाने के लिये सुखदायक ऊँचे घर बनावें ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(यानि) (ते) तव (अन्तः) मध्ये (शिक्यानि) स्रंसेः शिः कुट् किच्च। उ० ५।१६। स्रंसु अधःपतने-यत्, कित्, कुट् च, धातोः शिः। द्रव्यरक्षार्थरज्जुमयाधारविशेषान्। काचान् (आबेधुः) बध बन्धने। समन्तात् संयोजितवन्तः (रण्याय) रमु उपरमे-यत्, मस्य णः, यद्वा, रण शब्दे-यत् रण्या…. रण्यौ रमणीयौ सांग्राम्यौ वा-निरु० ६।३३। रमणीयाय साङ्ग्रामिकाय वा कर्मणे (प्र) प्रकर्षेण (ते) तुभ्यम् (तानि) शिक्यानि (चृतामसि) बध्नीमः (शिवा) कल्याणी (मानस्य) सत्कारस्य (पत्नी) रक्षिका (नः) अस्माकम् (उद्धिता) धि धारणे-क्त। उद्धृता। उच्छ्रिता (तन्वे) उपकृतये (भव) ॥

०७ हविर्धानमग्निशालं पत्नीनाम्

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ह॑वि॒र्धान॑मग्नि॒शालं॒ पत्नी॑नां॒ सद॑नं॒ सदः॑।
सदो॑ दे॒वाना॑मसि देवि शाले ॥

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Whitney
Translation
  1. Oblation-holder (havirdhā́na), fire-place (agniśā́la), wives’ site
    [and] seat; seat of the gods art thou, O heavenly dwelling.
Notes

The paroṣṇih is regular, save for the common variant of a triṣṭubh
instead of a jagatī-pāda at the end.

Griffith

Store-house of Soma, Agni’s hall, the ladies’ bower, the resi- dence, The seat of Gods art thou, O Goddess House.

पदपाठः

ह॒विः॒ऽधान॑म्। अ॒ग्नि॒ऽशाल॑म्। पत्नी॑नाम्। सद॑नम्। सदः॑। सदः॑। दे॒वाना॑म्। अ॒सि॒। दे॒वि॒। शा॒ले॒। ३.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • परोष्णिक्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवि) हे दिव्य कमनीय (शाले) शाला ! तू (हविर्धानम्) देने लेने योग्य पदार्थों [वा अन्न और हवन सामग्री] का घर, (अग्निशालम्) अग्नि [वा बिजुली आदि] का स्थान, (पत्नीनाम्) रक्षा करनेवाली स्त्रियों का (सदनम्) घर और (सदः) सभास्थान और (देवानाम्) विद्वान् पुरुषों का (सदः) सभास्थान (असि) है ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को ऐसे घर बनाने चाहिये, जो कला-कौशल आदि कर्मों, कुटुम्बियों के रहने, स्त्री-सम्मेलन और पुरुष-सभा करने में सुखदायी हों ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(हविर्धानम्) हविषां दातव्यादातव्यपदार्थानामन्नहवनवस्तूनां च स्थानम् (अग्निशालम्) पावकस्य विद्युतो वा गृहम् (पत्नीनाम्) रक्षणस्वभावानां स्त्रीणाम् (सदनम्) गृहम् (सदः) सभास्थानम् (देवानाम्) विदुषां पुरुषाणाम् (असि) (देवि) हे दिव्ये, कमनीये (शाले) गृह ॥

०८ अक्षुमोपशं विततम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अक्षु॒मोप॒शं वित॑तं सहस्रा॒क्षं वि॑षू॒वति॑।
अव॑नद्धम॒भिहि॑तं॒ ब्रह्म॑णा॒ वि चृ॑तामसि ॥

०८ अक्षुमोपशं विततम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The thousand-eyed net (ákṣu), stretched out as opaśá on the
    division-line (viṣūvánt), tied down, put on, do we with worship
    (bráhman) unfasten.
Notes

Abhihita in c doubtless contains the suggestion of abhidhāni ‘a
halter.’ Geldner (Ved. Stud. i. 136) wants to make of akṣu a ‘stake’
or ‘pillar.’ Viṣūvant probably means the ‘parting of the hair, crown’
(so Zimmer), here the ridge of the roof. Ppp. begins with yakṣmopiśam,
and has in c the easier reading apinaddham apihitam.

Griffith

We with our incantation loose the net that hath a thousand. eyes. The diadem, securely tied and laid upon the central beam.

पदपाठः

अक्षु॑म्। ओ॒प॒शम्। विऽत॑तम्। स॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षम्। वि॒षु॒ऽवति॑। अव॑ऽनध्दम्। अ॒भिऽहि॑तम्। ब्रह्म॑णा। वि। चृ॒ता॒म॒सि॒। ३.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (विषुवति) व्याप्तिवाले [ऊँचे] स्थान पर (विततम्) फैले हुए, (सहस्राक्षम्) सहस्रों व्यवहार वा झरोखेवाले (ओपशम्) उपयोगी, (ब्रह्मणा) वेदज्ञ विद्वान् करके (अवनद्धम्) अच्छे प्रकार छाये गये और (अभिहितम्) बताये गये (अक्षुम्) व्याप्तिवाले [सर्वदर्शक स्तम्भगृह] को (विचृतामसि) हम अच्छे प्रकार ग्रन्थित करते हैं ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग विद्वान् शिल्पियों की सम्मति से ऊँचे स्थान पर सर्वदर्शक स्तम्भ, अर्थात्, ज्योतिष चक्र, प्रकाश लाट, घटिकाधान आदि सर्वोपयोगी स्थान बनावें ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(अक्षुम्) अक्षू व्याप्तौ संघाते च-उ। व्याप्तं सर्वदर्शकं स्तम्भगृहम् (ओपशम्) आ+उप+शीङ् स्वप्ने-ड। अर्शआद्यच्। बहूपशयम्। सर्वोपयोगिनम् (विततम्) विस्तृतम् (सहस्राक्षम्) सहस्राणि व्यवहारा गवाक्षा वा यस्मिन् तम् (विषुवति) विष्लृ व्याप्तौ-कु, मतुप्। व्याप्तिमति। उच्चस्थाने (अवनद्धम्) आच्छादिनम् (अभिहितम्) कथितम्। विज्ञापितम् (ब्रह्मणा) वेदज्ञेन विप्रेण शिल्पिना (वि चृतामसि) विशेषेण ग्रन्थयामः ॥

०९ यस्त्वा शाले

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यस्त्वा॑ शाले प्रतिगृ॒ह्णाति॒ येन॒ चासि॑ मि॒ता त्वम्।
उ॒भौ मा॑नस्य पत्नि॒ तौ जीव॑तां ज॒रद॑ष्टी ॥

०९ यस्त्वा शाले ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He who, O dwelling, accepts thee, and he by whom thou art built—let
    both those, O mistress of the building, live to attain old age.
Notes

The mā́nasya of the mss. in c is again emended in our edition to
mān-. Ppp. rectifies the meter of a by reading yaś citrā (ca
tvā?) pr-
. The Anukr. pays no heed to the irregularity of the verse (9

  • 8: 8 + 7).
Griffith

The man who takes thee as his own, and he who was thy builder,. House! Both these, O Lady of the Home, shall live to long-extended’ years.

पदपाठः

यः। त्वा॒। शा॒ले॒। प्र॒ति॒ऽगृ॒ह्णाति॑। येन॑। च॒। असि॑। मि॒ता। त्वम्। उ॒भौ। मा॒न॒स्य॒। प॒त्नि॒। तौ। जीव॑ताम्। ज॒रद॑ष्टी इति॑ ज॒रत्ऽअ॑ष्टी। ३.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शाले) हे शाला ! (यः) जो (त्वा) तुझको (प्रतिगृह्णाति) अङ्गीकार करता है (च) और (येन) जिस करके (त्वम्) तू (मिता असि) बनाई गयी है। (मानस्य पत्नि) हे सन्मान की रक्षा करनेवाली ! (तौ उभौ) वे दोनों (जरदष्टी) स्तुति के साथ प्रवृत्ति वा भोजनवाले [होकर] (जीवताम्) जीते रहें ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - शाला बनाने में ध्यान रहे कि बनानेवाले गृहस्वामी आदि और रहनेवाले सुख से निर्वाह करें ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(प्रतिगृह्णाति) स्वीकरोति (मिता) निर्मिता। रचिता (उभौ) द्वौ (मानस्य) सम्मानस्य (पत्नि) हे रक्षिके (तौ) (जीवताम्) प्राणान् धारयताम् (जरदष्टी) अ० २।२८।५। जरता स्तुत्या सह अष्टिः कार्यव्याप्तिर्भोजनं वा ययोस्तौ। अन्यद् गतम् ॥

१० अमुत्रैनमा गच्छताद्दृढा

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अ॒मुत्रै॑न॒मा ग॑च्छताद्दृ॒ढा न॒द्धा परि॑ष्कृता।
यस्या॑स्ते विचृ॒ताम॒स्यङ्ग॑मङ्गं॒ परु॑ष्परुः ॥

१० अमुत्रैनमा गच्छताद्दृढा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Do thou, made firm, tied, adorned (pari-kṛ), go to him yonder—thou
    whose every limb, whose every joint we unfasten.
Notes

O. reads in a amútrāi ’ṇam. Páriṣkṛtā is unaltered in the
pada-text, as prescribed by Prāt. iv. 58. Enam probably indicates
the “acceptor” (9 a, 15). Ppp. reads in b tridhā for dṛḍhā,
and begins c with tasyas. ⌊As to amútra, cf. Oldenberg, IFA. vi.
179.⌋

Griffith

There let her come to meet this man. Firm, strongly fastened,. and prepared Art thou whose several limbs and joints we part and loosen one by one.

पदपाठः

अ॒मुत्र॑। ए॒न॒म्। आ। ग॒च्छ॒ता॒त्। दृ॒ढा। न॒ध्दा। परि॑ष्कृता। यस्याः॑। ते॒। वि॒ऽचृ॒ताम॑सि। अङ्ग॑म्ऽअङ्गम्। परुः॑ऽपरुः। ३.१०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (दृढा) दृढ़ बनी हुई, (नद्धा) छायी हुई और (परिष्कृता) सजी हुई तू (अमुत्र) वहाँ पर (एनम्) इस [पुरुष] को (आ गच्छतात्) प्राप्त हो। (यस्याः ते) जिस तेरे (अङ्गमङ्गम्) अङ्ग-अङ्ग और (परुष्परुः) पोरुये-पोरुये को (विचृतामसि) हम अच्छे प्रकार ग्रन्थित करते हैं ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य शाला को दृढ़ बना कर सुसज्जित करें ॥१०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १०−(अमुत्र) तत्र निर्दिष्टे स्थाने (एनम्) गृहिणम् (आगच्छतात्) आगच्छ। प्राप्नुहि (दृढा) (नद्धा) अवनद्धा। आच्छादिता (परिष्कृता) परि+कृ-क्त। संपर्युषेभ्यः करोतौ भूषणे। पा० ६।१।१३७। इति सुट्। परिनिविभ्यः०। पा० ८।३।७०। इति षत्वम्। अलङ्कृता (यस्याः) (ते) तव (विचृतामसि) (अङ्गमङ्गम्) प्रत्यङ्गम् (परुष्परुः) प्रतिपर्व ॥

११ यस्त्वा शाले

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यस्त्वा॑ शाले निमि॒माय॑ संज॒भार॒ वन॒स्पती॑न्।
प्र॒जायै॑ चक्रे त्वा शाले परमे॒ष्ठी प्र॒जाप॑तिः ॥

११ यस्त्वा शाले ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. He who fixed (ni-mi) thee, O dwelling, [who] brought together
    the forest trees—unto progeny, O dwelling, he, [as a] most exalted
    Prajāpati, made thee.
Notes

Ppp. reads pūrvas for śāle in a.

Griffith

He who collected timber for the work and built thee up, O House, Made thee for coming progeny, Prajapati, the Lord Supreme.

पदपाठः

यः। त्वा॒। शा॒ले॒। नि॒ऽमि॒माय॑। स॒म्ऽज॒भार॑। वन॒स्पती॑न्। प्र॒ऽजायै॑। च॒क्रे॒। त्वा॒। शा॒ले॒। प॒र॒मे॒ऽस्थी। प्र॒जाऽप॑तिः। ३.११।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शाले) हे शाला ! (यः) जिस [गृहस्थ] ने (त्वा) तुझे (निमिमाय) जमाया है और (वनस्पतीन्) सेवन करनेवालों के रक्षक पदार्थों को (संजभार) एकत्र किया है। (शाले) हे शाला ! (परमेष्ठी) सबसे उच्च पद पर रहनेवाले (प्रजापतिः) उस प्रजापालक [गृहस्थ] ने (प्रजायै) प्रजा के सुख के लिये (त्वा) तुझे (चक्रे) बनाया है ॥१—१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य ऐसी शाला बनावें, जिसमें आप और सन्तान आदि सब सुखी रहें ॥१—१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १—१−(यः) (त्वा) (शाले) (निमिमाय) डुमिञ् प्रक्षेपणे-लिट्। मूलेन दृढीकृतवान् (संजभार) संजहार। संगृहीतवान् (वनस्पतीन्) अ० १।३५।३। सेवनशीलानां मनुष्याणां रक्षकपदार्थान् (प्रजायै) सन्तानादिहिताय (चक्रे) कृतवान् (परमेष्ठी) अ० १।७।२। उच्चपदस्थः (प्रजापतिः) प्रजापालको गृहस्थः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

१२ नमस्तस्मै नमो

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नम॒स्तस्मै॒ नमो॑ दा॒त्रे शाला॑पतये च कृण्मः।
नमो॒ऽग्नये॑ प्र॒चर॑ते॒ पुरु॑षाय च ते॒ नमः॑ ॥

१२ नमस्तस्मै नमो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Homage to him, homage to the giver, and to the lord of the dwelling
    we pay; homage to the forth-moving (pra-car) fire, and to thy spirit
    (? púruṣa) [be] homage.
Notes

Ppp. reads in b kṛṇmasi.

Griffith

Homage to him! We worship too the giver and the Mansion’s lord: Homage to Agni! to the man who serves at holy rites for thee.

पदपाठः

नमः॑। तस्मै॑। नमः॑। दा॒त्रे। शाला॑ऽपतये। च॒। कृ॒ण्मः॒। नमः॑। अ॒ग्नये॑। प्र॒ऽचर॑ते। पुरु॑षाय। च॒। ते॒। नमः॑। ३.१२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्मै) उस (नमो दात्रे) अन्न देनेवाले (च) और (शालापतये) शाला के स्वामी को (नमः) सत्कार (कृण्मः) हम करते हैं। (अग्नये) अग्नि [की सिद्धि] को (नमः) अन्न (च) और (प्रचरते) सेवा करनेवाले (पुरुषाय) पुरुष के लिये (ते) तेरे हित के लिये (नमः) अन्न होवे ॥१—२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य अन्न आदि के दाता गृहस्थों का आदर करते रहें और यज्ञ आदि के करने और पुरुषों के पोषण के लिये घर में अन्न आदि पदार्थ उपस्थित रहें ॥१—२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १२−(नमः) सत्कारम् (तस्मै) (नमः) अन्नम्-निघ० २।७। (दात्रे) ददातेस्तृन्। दत्तवते (शालापतये) गृहस्वामिने (च) (कृण्मः) कुर्मः (नमः) अन्नम् (अग्नये) यज्ञादिष्वग्निसिद्धये (प्रचरते) सेवमानाय (च) (ते) तुभ्यम् ॥

१३ गोभ्यो अश्वेभ्यो

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गोभ्यो॒ अश्वे॑भ्यो॒ नमो॒ यच्छाला॑यां वि॒जाय॑ते।
विजा॑वति॒ प्रजा॑वति॒ वि ते॒ पाशां॑श्चृतामसि ॥

१३ गोभ्यो अश्वेभ्यो ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Homage to kine, to horses, whatever is born (vi-jā) in the
    dwelling; thou rich in births (vijā-), rich in progeny, we unfasten
    thy fetters.
Notes

Ppp. lacks, probably by an oversight, the second half-verse.

Griffith

Homage to kine and steeds! to all that shall be born within the house We loose the bonds that fasten thee, mother of multitudes to come!

पदपाठः

गोभ्यः॑। अश्वे॑भ्यः। नमः॑। यत्। शाला॑याम्। वि॒ऽजाय॑ते। विजा॑ऽवति। प्रजा॑ऽवति। वि। ते॒। पाशा॑न्। चृ॒ता॒म॒सि॒। ३.१३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (गोभ्यः) गौओं के लिये, (अश्वेभ्यः) घोड़ों के लिये और (यत्) जो कुछ (शालायाम्) शाला में (विजायते) उत्पन्न होवे, [उसके लिये] (नमः) अन्न [होवे]। (विजावति) हे विविध उत्पन्न पदार्थोंवाली ! और (प्रजावति) हे उत्पन्न प्रजाओंवाली ! (ते) तेरे (पाशान्) बन्धनों को (विचृतामसि) हम अच्छे प्रकार ग्रन्थित करते हैं ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को विविध पोषणसामग्री सुदृढ़ घरों में रखनी उचित है ॥१३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १३−(गोभ्यः) गवां रक्षणाय (अश्वेभ्यः) अश्वानां पोषणाय (नमः) अन्नम् (यत्) अपत्यजातम् (शालायाम्) गृहे (विजायते) विविधमुत्पद्यते (विजावति) हे विविधोत्पन्नपदार्थयुक्ते (प्रजावति) हे श्रेष्ठप्रजाविशिष्टे (ते) तव (पाशान्) निर्माणबन्धान् (विचृतामसि) ॥

१४ अग्निमन्तश्छादयसि पुरुषान्पशुभिः

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अ॒ग्निम॒न्तश्छा॑दयसि॒ पुरु॑षान्प॒शुभिः॑ स॒ह।
विजा॑वति॒ प्रजा॑वति॒ वि ते॒ पाशां॑श्चृतामसि ॥

१४ अग्निमन्तश्छादयसि पुरुषान्पशुभिः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Thou coverest within the fire, the men together with the cattle
    (paśú); thou rich in births, rich in progeny, we unfasten thy fetters.
Notes
Griffith

Agni thou shelterest within, and people with domestic beasts. We loose the bonds that fasten thee, mother of multitudes to come!

पदपाठः

अ॒ग्निम्। अ॒न्तः। छा॒द॒य॒सि॒। पुरु॑षान्। प॒शुऽभिः॑। स॒ह। विजा॑ऽवति। प्रजा॑ऽवति। वि। ते॒। पाशा॑न्। चृ॒ता॒म॒सि॒। ३.१४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे शाला !] (अग्निम्) अग्नि को और (पुरुषान्) पुरुषों को (पशुभिः सह) पशुओं सहित (अन्तः) अपने भीतर (छादयसि) तू ढक लेती है। (विजावति) हे विविध उत्पन्न पदार्थोंवाली ! और (प्रजावति) हे उत्तम प्रजाओंवाली ! (ते) तेरे (पाशान्) बन्धनों को (वि चृतामसि) हम अच्छे प्रकार ग्रन्थित करते हैं ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य यज्ञ आदि की सिद्धि और मनुष्य और पशुओं के लिये सुखदायी घर बनावें ॥१४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १४−(अग्निम्) यज्ञस्य पाकस्य वा पावकम् (अन्तः) मध्ये (छादयसि) संवृणोषि (पुरुषान्) मनुष्यान् (पशुभिः) गवादिभिः (सह) अन्यत् पूर्ववत् म० १३ ॥

१५ अन्तरा द्याम्

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अ॑न्त॒रा द्यां च॑ पृथि॒वीं च॒ यद्व्यच॒स्तेन॒ शालां॒ प्रति॑ गृह्णामि त इ॒माम्।
यद॒न्तरि॑क्षं॒ रज॑सो वि॒मानं॒ तत्कृ॑ण्वे॒ऽहमु॒दरं॑ शेव॒धिभ्यः॑।
तेन॒ शालां॒ प्रति॑ गृह्णामि॒ तस्मै॑ ॥

१५ अन्तरा द्याम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Between both heaven and earth what expanse [there is], therewith
    do I accept this dwelling of thine; the atmosphere that pervades
    (vimā́na) space (rájas), that do I make a paunch (udára) for
    treasures; therewith I accept the house for this man.
Notes

This verse in Kāuś. 66. 28 accompanies the “acceptance” of the house in
question. The Anukr. calls it an atiśakvarī, though it contains only
57 syllables (12 + 12: 11 + 11: 11) instead of 60. Ppp. reads at end of
b tāi ’māṁ (an abbreviation which is here acceptable, as making a
good triṣṭubh—pāda ⌊such was the case at ix. 2. 7 also⌋), and in e
yac chālāṁ for tena ś-.

Griffith

All space that lies between the earth and heaven, therewith I take this house for thy possession, And all that measures out the air’s mid-region I make a hollow to contain thy treasures. Therewith I take the house for his possession.

पदपाठः

अ॒न्त॒रा। द्याम्। च॒। पृ॒थि॒वीम्। च॒। यत्। व्यचः॑। तेन॑। शाला॑म्। प्रति॑। गृ॒ह्णा॒मि॒। ते॒। इ॒माम्। यत्। अ॒न्तरि॑क्षम्। रज॑सः। वि॒ऽमान॑म्। तत्। कृ॒ण्वे॒। अ॒हम्। उ॒दर॑म्। शे॒व॒धिऽभ्यः॑। तेन॑। शला॑म्। प्रति॑। गृ॒ह्णा॒मि॒। तस्मै॑। ३.१५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • त्र्यवसाना पञ्चपदातिशक्वरी
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (द्याम्) सूर्य [के प्रकाश] (च च) और (पृथिवीम् अन्तरा) पृथिवी के बीच (यत्) जो (व्यचः) खुला स्थान है, (तेन) उस [विस्तार] से (इमाम् शालाम्) इस शाला को [हे मनुष्य !] (ते) तेरे लिये (प्रति गृह्णामि) मैं ग्रहण करता हूँ। (यत्) जो (रजसः) घर का (अन्तरिक्षम्) अवकाश (विमानम्) विशेष मान परिमाण युक्त है, (तत्) उस [अवकाश] को (कृण्वे) बनाता हूँ। (तेन) उसी [कारण] से (तस्मै) [प्रयोजन] के लिये (शालाम्) शाला को (प्रति गृह्णामि) मैं ग्रहण करता हूँ ॥१५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को विचार और परिमाण करके शाला ऐसी बनानी चाहिये, जिसमें प्रकाश और वायु का गमन-आगमन रहे और जिस के भीतर कोष आदि रखने के लिये गुप्तघर, तलघर आदि हों ॥१५॥ १५-यह और अगला मन्त्र स्वामिदयानन्दकृतसंस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १५−(अन्तरा) मध्ये (द्याम्) सूर्यप्रकाशम् (च) (पृथिवीम्) (च) (यत्) (व्यचः) विस्तारः (तेन) विस्तारेण (शालाम्) गृहम् (प्रति गृह्णामि) स्वीकरोमि (ते) तुभ्यम् (इमाम्) (यत्) (अन्तरिक्षम्) अवकाशः (रजसः) लोकस्य। गृहस्य। लोका रजांस्युच्यन्ते-निरु० ४।१९। (विमानम्) विशेषेण मानपरिमाणयुक्तम् (तत्) अन्तरिक्षम् (कृण्वे) करोमि (अहम्) गृहस्वामी (उदरम्) अ० २।३३।४। जठरमिव रक्षाधारम् (शेवधिभ्यः) अ० ६।१२३।१। निधिभ्यः। कोषेभ्यः (तेन) कारणेन (शालाम्) (प्रति गृह्णामि) (तस्मै) प्रयोजनाय ॥

१६ ऊर्जस्वती पयस्वती

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ऊर्ज॑स्वती॒ पय॑स्वती पृथि॒व्यां निमि॑ता मि॒ता।
वि॑श्वा॒न्नं बिभ्र॑ती शाले॒ मा हिं॑सीः प्रतिगृह्ण॒तः ॥

१६ ऊर्जस्वती पयस्वती ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Rich in refreshment, rich in milk, fixed (ni-mi), built upon the
    earth, bearing all food, O dwelling, do not thou injure those accepting
    [thee].
Notes
Griffith

Rich in prosperity, rich in milk, founded and built upon the earth, Injure not thy receivers, House who holdest food of every sort!’

पदपाठः

ऊर्ज॑स्वती। पय॑स्वती। पृ॒थि॒व्याम्। निऽमि॑ता। मि॒ता। वि॒श्व॒ऽअ॒न्नम्। बिभ्र॑ती। शा॒ले॒। मा। हिं॒सीः॒। प्र॒ति॒ऽगृ॒ह्ण॒तः। ३.१६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शाले) हे शाला ! (पृथिव्याम्) उचित भूमि पर (मिता) परिमाणयुक्त (निमिता) जमाई गई, (ऊर्जस्वती) बल पराक्रम बढ़ानेवाली, (पयस्वती) जल और दुग्ध आदि से पूर्ण, (विश्वान्नम्) सम्पूर्ण अन्न को (बिभ्रती) धारण करती हुई तू (प्रतिगृह्णतः) ग्रहण करने हारों को (मा हिंसीः) मत पीड़ा दे ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो मनुष्य उचित भूमि पर सोच-विचार कर घर बनाते हैं, वे बल पराक्रम बढ़ाकर दुग्ध, अन्न आदि पदार्थ संग्रह करके स्वस्थता के साथ सदा सुखी रहते हैं ॥१६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १६−(ऊर्जस्वती) बलपराक्रमवर्धयित्री (पयस्वती) जलदुग्धादियुक्ता (पृथिव्याम्) उचितभूम्याम् (निमिता) प्रतिष्ठापिता (मिता) परिमाणयुक्ता (विश्वान्नम्) सर्वान्नम् (बिभ्रती) धारयन्ती (शाले) (मा हिंसीः) मा पीडय (प्रतिगृह्णतः) स्वीकर्तॄन् पुरुषान् ॥

१७ तृणैरावृता पलदान्वसाना

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तृणै॒रावृ॑ता पल॒दान्वसा॑ना॒ रात्री॑व॒ शाला॒ जग॑तो नि॒वेश॑नी।
मि॒ता पृ॑थि॒व्यां ति॑ष्ठसि ह॒स्तिनी॑व प॒द्वती॑ ॥

१७ तृणैरावृता पलदान्वसाना ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Wrapped (ā-vṛ) with grass, clothing itself in paladás, the
    dwelling, place of rest (nivéśanī) of living creatures, like the
    night—built on the earth thou standest, like a she-elephant, having
    feet.
Notes

That is, apparently, heavy and big on the four corner posts, like an
elephant (female because ‘dwelling’ is feminine) on its feet. With b
compare xii. i. 6 b. The verse as a prastārapan̄kti (11 + 12: 8 +
8) has no irregularity which the Anukr. is wont to heed.

Griffith

Grass-covered, clad with straw, the house, like Night, gives rest to man and beast. Thou standest, built upon the earth, like a she-elephant, borne on feet.

पदपाठः

तृणैः॑। आऽवृ॑ता। प॒ल॒दान्। वसा॑ना। रात्री॑ऽइव। शाला॑। जग॑तः। न‍ि॒ऽवेश॑नी। मि॒ता। पृ॒थि॒व्याम्। ति॒ष्ठ॒सि॒। ह॒स्तिनी॑ऽइव। प॒त्ऽवती॑। ३.१७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • प्रस्तारपङ्क्तिः
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तृणैः) तृण आदि से (आवृता) छाई हुई, (पलदान्) पल [अर्थात् सुवर्ण आदि की तोल और विघटिका मुहूर्त आदि] देनेवाले [यन्त्रों] को (वसाना) पहिने हुए (शाला) शाला तू (जगतः) संसार की (निवेशनी) सुख प्रवेश करनेवाली (रात्री इव) रात्रि के समान [होकर] (पद्वती) पैरोंवाली [चारों पैरों पर दृढ़ खड़ी हुई] (हस्तिनी इव) हथिनी के समान (पृथिव्याम्) उचित भूमि पर (मिता) बनाई हुई (तिष्ठसि) (स्थित) है ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य शाला को सुदृढ़ बनाकर अनेक कला-कौशल आदि के यन्त्रों से उपयोगी करे ॥१७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १७−(तृणैः) तृणादिपदार्थैः (आवृता) आच्छादिता (पलदान्) म० ५। पलस्य सुवर्णादितोलनस्य विघटिकादिकालस्य च दातॄन् ज्ञापकान् पदार्थान् (वसाना) अ० ३।१२।५। आच्छादयन्ती (रात्री) सुखदात्री निशा (इव) यथा (शाला) (जगतः) चराचरस्य (निवेशनी) सुखस्य प्रवेशयित्री (मिता) निर्मिता (पृथिव्याम्) उचितभूमौ (तिष्ठसि) स्थिता भवसि (हस्तिनी) गजस्त्री (इव) यथा (पद्वती) पादैर्युक्ता। पादचतुष्टयेन दृढं स्थिता ॥

१८ इटस्य ते

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

इट॑स्य ते॒ वि चृ॑ता॒म्यपि॑नद्धमपोर्णु॒वन्।
वरु॑णेन॒ समु॑ब्जितां मि॒त्रः प्रा॒तर्व्यु᳡ब्जतु ॥

१८ इटस्य ते ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Of thy rush-work (íṭa) I unfasten what was tied on, uncovering;
    [thee] pressed together by Varuṇa let Mitra in the morning open out.
Notes

The verse in Kāuś. 66. 24 accompanies the letting down (ava-sṛ) of the
door. ⌊Bergaigne has a note on the vs., Rel. Véd. iii. 122.⌋

Griffith

I loosen and remove from thee thy covering formed by mats of reed. What Varuna hath firmly closed Mitra shall ope at early morn.

पदपाठः

इट॑स्य। ते॒। वि। चृ॒ता॒मि॒। अप‍ि॑ऽनध्दम्। अ॒प॒ऽऊ॒र्णु॒वन्। वरु॑णेन। सम्ऽउ॑ब्जिताम्। मि॒त्रः। प्रा॒तः। वि। उ॒ब्ज॒तु॒। ३.१८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे शाला !] (ते) तेरे (इटस्य) द्वार के (अपिनद्धम्) बन्धन को (अपोर्णुवन्) खोलता हुआ मैं (वि चृतामि) अच्छे प्रकार ग्रन्थित करता हूँ। (वरुणेन) ढकनेवाले अन्धकार से (समुब्जिताम्) दबाई हुई [तुझ] को (मित्रः) सर्वप्रेरक सूर्य (प्रातः) प्रातःकाल (वि उब्जतु) खोल देवे ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य घर के द्वारों में शृङ्खला चटकनी आदि ऐसी लगावें, जिससे अन्धकार के समय बन्द करने और प्रकाश के समय खोलने में सुभीता हो ॥१८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १८−(इटस्य) इट् गतौ-क। गमनागमनस्थानस्य द्वारस्य (ते) तव (वि चृतामि) विशेषेण ग्रन्थयामि (अपिनद्धम्) बन्धनम् (अपोर्णुवन्) विवृण्वन् (वरुणेन) आवरकेण तमसा (समुब्जिताम्) संवृतां त्वाम् (मित्रः) सर्वप्रेरकः सूर्यः (प्रातः) प्रभाते (वि उब्जतु) विवृणोतु ॥

१९ ब्रह्मणा शालाम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ब्रह्म॑णा॒ शालां॒ निमि॑तां क॒विभि॒र्निमि॑तां मि॒ताम्।
इ॑न्द्रा॒ग्नी र॑क्षतां॒ शाला॑म॒मृतौ॑ सो॒म्यं सदः॑ ॥

१९ ब्रह्मणा शालाम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The dwelling fixed with worship (bráhman), fixed, built by the
    poets—let Indra-and-Agni, immortal, defend the dwelling, the seat for
    soma (somyá).
Notes

P. reads nírmitām in b, and sāumyám in d. Ppp. has a quite
different version: catussraktiṁ paricakrāṁ for a; viśvāna
bibhratī śālām
(cf. our 16 c) amṛto sāumyaṁ sadaḥ for c, d.

Griffith

May Indra, Agni, deathless Gods, protect the house where Soma dwells, House that was founded with the prayer, built and erected by the wise.

पदपाठः

ब्रह्म॑णा। शाला॑म्। निऽमि॑ताम्। क॒विऽभिः॑। निऽमि॑ताम्। मि॒ताम्। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। र॒क्ष॒ता॒म्। शाला॑म्। अ॒मृतौ॑। सो॒म्यम्। सदः॑। ३.१९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अमृतौ) मरणरहित [सुखप्रद] (इन्द्राग्नी) पवन और अग्नि (ब्रह्मणा) चारों वेद जाननेहारे विद्वान् करके (निमिताम्) जमाई हुई [नेव डाली गयी] (शालाम्) शाला की, (कविभिः) विद्वानों [शिल्पियों] करके (मिताम्) मापी गई और (निर्मिताम्) दृढ़ बनायी गयी (शालाम्) शाला, (सोम्यम्) ऐश्वर्ययुक्त (सदः) घर की (रक्षताम्) रक्षा करें ॥१९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - बड़े विद्वानों और शिल्पी विश्वकर्माओं की सम्मति से बनाये हुए घर वायुयन्त्र और अग्नियन्त्र आदि लगाने के योग्य हों ॥१९॥ यह मन्त्र स्वामिदयानन्दकृतसंस्कारविधि, गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १९−(ब्रह्मणा) चतुर्वेदज्ञेन ब्राह्मणेन (शालाम्) गृहम् (निमिताम्) प्रतिष्ठापिताम् (कविभिः) मेधाविभिः। शिल्पिभिः (निर्मिताम्) सुदृढं निर्मिताम् (मिताम्) परिमाणयुक्ताम् (इन्द्राग्नी) वायुपावकौ (रक्षताम्) (शालाम्) (अमृतौ) मरणरहितौ। सुखकरौ (सोम्यम्) अ० ३।१४।१३। ऐश्वर्यमयम् (सदः) गृहम् ॥

२० कुलायेऽधि कुलायम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

कु॒लायेऽधि॑ कु॒लायं॒ कोशे॒ कोशः॒ समु॑ब्जितः।
तत्र॒ मर्तो॒ वि जा॑यते॒ यस्मा॒द्विश्वं॑ प्र॒जाय॑ते ॥

२० कुलायेऽधि कुलायम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. A nest (kulā́ya) upon a nest, a vessel (kóśa) pressed together in
    a vessel—there a mortal is born (vi-jā), from whom all is generated
    (pra-jā).
Notes

Ppp. has martyas in c.

Griffith

Nest upon nest hath been imposed, compartment on compart- ment laid: There man shall propagate his kind, and there shall everything born.

पदपाठः

कु॒लाये॑। अधि॑। कु॒लाय॑म्। कोशे॑। कोशः॑। सम्ऽउ॑ब्जितः। तत्र॑। मर्तः॑। वि। जा॒य॒ते॒। यस्मा॑त्। विश्व॑म्। प्र॒ऽजाय॑ते। ३.२०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [जैसे] (कुलाये अधि) घोंसले पर (कुलायम्) घोंसला और (कोशे) कोश [निधि] पर (कोशः) कोश [धनसंचय] (समुब्जितः) यथावत् दबा होता है, [वैसे ही] (तत्र) वहाँ [शाला में] (मर्तः) मनुष्य (वि जायते) विविध प्रकार प्रकट होता है, (यस्मात्) जिस [कारण] से (विश्वम्) सब [सन्तानसमूह] (प्रजायते) उत्तमता से उत्पन्न होता है ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस प्रकार पक्षी अपने घोंसलों में और अनेक धन धनों के द्वारा बढ़ते हैं, वैसे ही मनुष्य सुखप्रद घर में नीरोग रहकर उत्तम सन्तानों से उन्नति करते हैं ॥२०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २०−(कुलाये) नीडे (अधि) (कुलायम्) कुलानां पक्षिसमूहानामयो वासस्थानम् (कोशे) धनसंचये (कोशः) निधिः (समुब्जितः) संवृतः (तत्र) शालायाम् (मर्तः) मनुष्यः (वि) विविधम् (जायते) प्रादुर्भवति (यस्मात्) कारणात् (विश्वम्) सर्वमपत्यजातम् (प्रजायते) प्रकर्षेणोत्पद्यते ॥

२१ या द्विपक्षा

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या द्विप॑क्षा॒ चतु॑ष्पक्षा॒ षट्प॑क्षा॒ या नि॑मी॒यते॑।
अ॒ष्टाप॑क्षां॒ दश॑पक्षां॒ शालां॒ मान॑स्य॒ पत्नी॑म॒ग्निर्गर्भ॑ इ॒वा श॑ये ॥

२१ या द्विपक्षा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. [The dwelling] which is fixed with two sides, with four sides,
    which with six sides—the eight-sided, the ten-sided dwelling, the
    mistress of the building, Agni lies in like an embryo.
Notes

The pada-text reads aṣṭā॰pakṣām in c, by Prāt. iii. 2; iv. 94.
⌊As to pakṣa, cf. iii. 7. 3.⌋ The verse is a good pan̄kti, involving
only the resolution mā́nasi-a in d, but the Anukr. absurdly treats
it as of four pādas; and, in accordance with this, the pada-mss. mark
a pāda division after śā́lām.

Griffith

Within the house constructed with two side-posts, or with four, or six. Built with eight side-posts, or with ten, lies Agni like a babe unborn.

पदपाठः

या। द्विऽप॑क्षा। चतुः॑ऽपक्षा। षट्ऽप॑क्षा। या। नि॒ऽमी॒यते॑। अ॒ष्टाऽप॑क्षाम्। दश॑ऽपक्षाम्। शाला॑म्। मान॑स्य। पत्नी॑म्। अ॒ग्निः। गर्भः॑ऽइव। आ। श॒ये॒। ३.२१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • आस्तारपङ्क्तिः
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (या) जो (द्विपक्षा) दो पक्षवाली [अर्थात् जिसके मध्य में एक, और पूर्व पश्चिम में एक-एक शाला हो], (चतुष्पक्षा) चार पक्षवाली [जिसके मध्य में एक और पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर में एक-एक शाला हो], (या) जो (षट्पक्षा) छह पक्षवाली [जिसके बीच में बड़ी शाला और दो-दो पूर्व पश्चिम और एक-एक उत्तर दक्षिण में शाला हों] (निमीयते) बनाई जाती है। [उसको और] (अष्टापक्षाम्) आठ पक्षवाली [जिसके बीच में एक और चारों ओर दो-दो शाला हों] और (दशपक्षाम्) दश पक्षवाली [जिसके मध्य में दो शाला और चारों दिशाओं में दो-दो शाला हों], [उस] (मानस्य) सम्मान की (पत्नीम्) रक्षा करनेहारी (शालाम्) शाला में (अग्निः) जाठराग्नि और (गर्भः इव) गर्भस्थ बालक के समान (आ शये) मैं ठहरता हूँ ॥२१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जैसे जाठराग्नि शरीर में और गर्भस्थ बालक गर्भाशय में सुरक्षित रहता है, इसी प्रकार मनुष्य अस्त्र, शस्त्र, शिल्प, कला, कौशल आदि के योग्य छोटे-बड़े स्थानों को अनेक मान-परिमाणयुक्त बनाकर सुरक्षित रहें ॥२१॥ यह और अगला मन्त्र स्वामिदयानन्दकृतसंस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात हैं ॥ यहाँ पर द्विपदा आदि शालाओं के कुछ चित्र दिये जाते हैं, और भी इनके अनेक चित्र हो सकते हैं। चतुर बृहस्पति, विश्वकर्मा शिल्पाधिकारियों की सम्मति से सब लोग, वायु धूप आदि आने-जाने योग्य स्तम्भ, द्वार, खिड़की, छत आदि विचारपूर्वक लगाकर शालाओं को सुदृढ़ रुचिर और सुखदायी बनावें ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २१−(या) शाला (द्विपक्षा) गृहपक्षद्वययुक्ता (चतुष्पक्षा) पक्षचतुष्टयोपेता (षट्पक्षा) षट्पक्षयुक्ता (या) (निमीयते) निर्मिता भवति (अष्टापक्षाम्) छन्दसि च। पा–० ६।३।१२६। अष्टन आत्वम्। अष्टपक्षयुक्ताम् (दशपक्षाम्) दशपक्षवतीम् (शालाम्) (मानस्य) गौरवस्य (पत्नीम्) रक्षित्रीम् (अग्निः) जाठराग्निः (गर्भः) भ्रूणः (इव) यथा (आ शये) अधितिष्ठामि ॥

२२ प्रतीचीं त्वा

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प्र॒तीचीं॑ त्वा प्रती॒चीनः॒ शाले॒ प्रैम्यहिं॑सतीम्।
अ॒ग्निर्ह्य१॒॑न्तराप॑श्च॒र्तस्य॑ प्रथ॒मा द्वाः ॥

२२ प्रतीचीं त्वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. I go forward, O dwelling, turned toward thee, uninjuring, that art
    turned toward me; for within [are] fire and waters, the first door of
    right (ṛtá).
Notes

Ppp. reads at the end prathamobhā. The mss. all have ca rtásya in
c-d. The verse is quoted in Kāuś. 66. 25, accompanying the action of
‘going forward with (ādāya) water-pot [and] fire.’

Griffith

Turned to thee, House! I come to thee, innocent, turned to welcome me: For Fire and Water are within, the first chief door of sacrifice.

पदपाठः

प्र॒तीची॑म्। त्वा॒। प्र॒ती॒चीनः॑। शाले॑। प्र। ए॒मि॒। अहिं॑सतीम्। अ॒ग्निः। हि। अ॒न्तः। आपः॑। च॒। ऋ॒तस्य॑। प्र॒थ॒मा। द्वाः। ३.२२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शाले) हे शाला ! (प्रतीचीनः) [तेरे] सन्मुख चलता हुआ मैं (प्रतीचीम्) [मेरे] सन्मुख होती हुई, (अहिंसतीम्) न पीड़ा देती हुई (त्वा) तुझको (प्र एमि) अच्छे प्रकार प्राप्त होता हूँ। (हि) निश्चय करके (अन्तः) [तेरे] भीतर (अग्निः) अग्नि [का घर] और (आपः) जल [का स्थान] (च) और (ऋतस्य) सत्य [के ध्यान] का (प्रथमा) पहिला (द्वाः) द्वार है ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस शाला में शिल्प आदि यज्ञों के लिये कार्यालय और सत्य-असत्य विचारने के लिये वेदपठन-स्थान होता है, वहाँ मनुष्य प्रसन्नतापूर्वक आते-जाते हैं ॥२२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २२−(प्रतीचीम्) अ० १।२८।२। प्रत्यक्षं गच्छन्तीम् (त्वा) शालाम् (प्रतीचीनः) अ० ४।३२।६। प्रत्यक्षं गच्छन् (अहिंसतीम्) अपीडयन्तीम् (अग्निः) अग्निस्थानम् (हि) निश्चयेन (अन्तः) मध्ये (आपः) जलस्थानम् (च) (ऋतस्य) सत्यस्य। वेदस्य (प्रथमा) मुख्या (द्वाः) द्वृ संवरणे-णिच्-विच्। द्वारम् ॥

२३ इमा आपः

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इ॒मा आपः॒ प्र भ॑राम्यय॒क्ष्मा य॑क्ष्म॒नाश॑नीः।
गृ॒हानुप॒ प्र सी॑दाम्य॒मृते॑न स॒हाग्निना॑ ॥

२३ इमा आपः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. I bring forward these waters, free from yákṣma, dispellers of
    yákṣma; I set forth unto the houses, together with immortal fire.
Notes

We had this verse above, as iii. 12. 9. Ppp. (which omitted it as part
of that hymn) reads in a harāmi, and in c abhi (for upa).

Griffith

Water that kills Consumption, free from all Consumption, here I bring. With Agni, the immortal one, I enter and possess the house.

पदपाठः

इ॒माः। आपः॑। प्र। भ॒रा॒मि॒। अ॒य॒क्ष्माः। य॒क्ष्म॒ऽनाश॑नीः। गृ॒हान्। उप॑। प्र। सी॒दा॒मि॒। अ॒मृते॑न। स॒ह। अ॒ग्निना॑। ३.२३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इमाः) इस (अयक्ष्माः) रोगरहित (यक्ष्मनाशनीः) रोगनाशक (अपः) जल को (प्र) अच्छे प्रकार (आ भरामि) मैं लाता हूँ। (अमृतेन) मृत्यु से बचानेवाले अन्न, घृत, दुग्धादि सामग्री और (अग्निना सह) अग्नि के सहित (गृहान्) घरों में (उप=उपेत्य) आकर (प्र) अच्छे प्रकार (सीदामि) मैं बैठता हूँ ॥२३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - गृहपति रोगों से बचने और स्वास्थ्य बढ़ाने के लिये अपने घरों में शुद्ध, जल, अग्नि आदि पदार्थों का सदा उचित प्रयोग करें ॥२३॥ यह मन्त्र पहिले आ चुका है-अ० ३।१२।९ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २३-अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ३।१२।९ ॥

२४ मा नः

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मा नः॒ पाशं॒ प्रति॑ मुचो गु॒रुर्भा॒रो ल॒घुर्भ॑व।
व॒धूमि॑व त्वा शाले यत्र॒कामं॑ भरामसि ॥

२४ मा नः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Fasten thou not on us the fetter; a heavy burden, become thou light;
    like a woman (vadhū́), O dwelling, we carry thee where we will.
Notes

Quoted in Kāuś. 66. 30. ⌊Cf. again Oldenberg, IFA. vi. 179.—Over “woman”
W. interlines “bride?"⌋

Griffith

Lay thou no cord or noose on us: a weighty burthen, still be light! Withersoever be our will, O House, we bear thee like a bride.

पदपाठः

मा। नः॒। पाश॑म्। प्रति॑। मु॒चः॒। गु॒रुः। भा॒रः। ल॒घुः। भ॒व॒। व॒धूम्ऽइ॑व। त्वा॒। शा॒ले॒। य॒त्र॒ऽकाम॑म्। भ॒रा॒म॒सि॒। ३.२४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (शाले) हे शाला ! तू (नः) हमारे लिये [अपने] (पाशम्) बन्धन को (मा प्रति मुचः) मत कभी छोड़, (गुरुः) भारी (भारः) बोझ तू (लघुः) हलका (भव) हो जा, (वधूम् इव) वधू के समान (त्वा) तुझको (यत्रकामम्) जहाँ कामना हो, वहाँ (भरामसि) हम पुष्ट करते हैं ॥२४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - शिल्पी लोग शाला के जोड़ों को सुदृढ़ मिलावें, और अच्छे प्रकार लम्बी चौड़ी बनाकर सुखदायिनी करें, और कुलवधू के समान आवश्यकीय पदार्थों से उसको परिपूर्ण करें ॥२४॥ यह मन्त्र स्वामिदयानन्दकृतसंस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २४−(नः) अस्मभ्यम् (पाशम्) शालाबन्धनम् (मा प्रति मुचः) मा कदापि त्यज (गुरुः) गॄ शब्दे विज्ञापने-उ, उच्च। गुरुत्ववान् (भारः) गुरुत्ववान् पदार्थः (लघुः) लाघवगुणान्वितः। मनोहरः (भव) (वधूम्) नवोढां भार्याम् (इव) यथा (त्वा) (शाले) (यत्रकामम्) यत्र कामना भवेत् तत्र (भरामसि) पोषयामः। दृढीकुर्मः ॥

२५ प्राच्या दिशः

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प्राच्या॑ दि॒शः शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्ये᳡भ्यः ॥

२५ प्राच्या दिशः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. From the eastern quarter, homage to the greatness of the dwelling!
    hail to the gods that are to be hailed!
Notes

⌊Ppp. puts svāhā devebhyaḥ svāhyebhyaḥ before prācyaḥ: and has a
similar order in the following vss.⌋

Griffith

Now from the east side of the house to the Great Power be homage paid! Hail to the Gods whose due is Hail!

पदपाठः

प्राच्याः॑। दि॒शः। शाला॑याः। नमः॑। म॒हि॒म्ने। स्वाहा॑। दे॒वेभ्यः॑। स्वा॒ह्ये᳡भ्यः। ३.२५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • एकावसाना त्रिपदा प्राजापत्या बृहती
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्राच्याः दिशः) पूर्व दिशा से (शालायाः) शाला की (महिम्ने) महिमा के लिये (नमः) अन्न हो, (स्वाह्येभ्यः) सुवाणी के योग्य (देवेभ्यः) कमनीय विद्वानों के लिये (स्वाहा) सुवाणी [वेदवाणी] हो ॥२५॥ मन्त्र २५ से ३१ तक स्वामिदयानन्दकृतसंस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में आये हैं ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि पूर्वादि सब दिशाओं से पुष्कल अन्न आदि पदार्थ संग्रह करके शाला में रक्खें, जिस में विद्वान् लोग वेदों का विचार करते रहें ॥२५-३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २५−(प्राच्याः) अ० ३।२६।१। पूर्वाया सकाशात् (दिशः) दिशायाः (शालायाः) गृहस्य (नमः) अन्नम्-निघ० २।७। (महिम्ने) महत्त्वाय (स्वाहा) अ० २।१६।१। सुवाणी। वेदवाणी (देवेभ्यः) कमनीयेभ्यो विद्वद्भ्यः (स्वाह्येभ्यः) तदर्हति। पा० ५।१।६३। स्वाहा-यत्। सुवाणीयोगेभ्यः ॥

२६ दक्षिणाया दिशः

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

दक्षि॑णाया दि॒शः शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्ये᳡भ्यः ॥

२६ दक्षिणाया दिशः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. From the southern quarter, homage etc. etc.
Notes
Griffith

Now from the south side of the house, etc.

पदपाठः

दक्षि॑णायाः। दि॒शः। शाला॑याः। नमः॑। म॒हि॒म्ने। स्वाहा॑। दे॒वेभ्यः॑। स्वा॒ह्ये᳡भ्यः। ३.२६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • एकावसाना साम्नी त्रिष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (दक्षिणायाः दिशः) दक्षिण दिशा से…. म० २५ ॥२६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि पूर्वादि सब दिशाओं से पुष्कल अन्न आदि पदार्थ संग्रह करके शाला में रक्खें, जिस में विद्वान् लोग वेदों का विचार करते रहें ॥२५-३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २६−(दक्षिणायाः) अ० ३।२६।२। दक्षिणदिशासकाशात् ॥

२७ प्रतीच्या दिशः

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प्र॒तीच्या॑ दि॒शः शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्ये᳡भ्यः ॥

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Whitney
Translation
  1. From the western quarter, homage etc. etc.
Notes
Griffith

Now from the west side of the house, etc.

पदपाठः

प्र॒तीच्याः॑। दि॒शः। शाला॑याः। नमः॑। म॒हि॒म्ने। स्वाहा॑। दे॒वेभ्यः॑। स्वा॒ह्ये᳡भ्यः ३.२७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • एकावसाना त्रिपदा प्रतिष्ठा गायत्री
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रतीच्याः दिशः) पश्चिम दिशा से… म० २५ ॥२७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि पूर्वादि सब दिशाओं से पुष्कल अन्न आदि पदार्थ संग्रह करके शाला में रक्खें, जिस में विद्वान् लोग वेदों का विचार करते रहें ॥२५-३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २७−(प्रतीच्याः) अ० ३।२६।३। पश्चिमायाः सकाशात् ॥

२८ उदीच्या दिशः

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उदी॑च्या दि॒शः शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्ये᳡भ्यः ॥

२८ उदीच्या दिशः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. From the northern quarter, homage etc. etc.
Notes
Griffith

Now from the north side of the house, etc.

पदपाठः

उदी॑च्याः। दि॒शः। शाला॑याः। नमः॑। म॒हि॒म्ने। स्वाहा॑। दे॒वेभ्यः॑। स्वा॒ह्ये᳡भ्यः। ३.२८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • एकावसाना त्रिपदा प्रतिष्ठा गायत्री
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (उदीच्याः दिशः) उत्तर दिशा से… म० २५ ॥२८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि पूर्वादि सब दिशाओं से पुष्कल अन्न आदि पदार्थ संग्रह करके शाला में रक्खें, जिस में विद्वान् लोग वेदों का विचार करते रहें ॥२५-३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २८−(उदीच्याः) अ० ३।२६।४। उत्तरस्याः सकाशात् ॥

२९ ध्रुवाया दिशः

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ध्रु॒वाया॑ दि॒शः शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्ये᳡भ्यः ॥

२९ ध्रुवाया दिशः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. From the firm quarter, homage etc. etc.
Notes
Griffith

So from the mansion’s every side to the Great Power be homage paid! Hail to the Gods whose due is Hail!

पदपाठः

ध्रु॒वायाः॑। दि॒शः शाला॑याः। नमः॑। म॒हि॒म्ने। स्वाहा॑। दे॒वेभ्यः॑। स्वा॒ह्ये᳡भ्यः। ३.२९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • एकावसाना त्रिपदा प्रतिष्ठा गायत्री
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ध्रुवायाः दिशः) नीचेवाली दिशा से…. म० २५ ॥२९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि पूर्वादि सब दिशाओं से पुष्कल अन्न आदि पदार्थ संग्रह करके शाला में रक्खें, जिस में विद्वान् लोग वेदों का विचार करते रहें ॥२५-३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २९−(ध्रुवायाः) अ० ३।२६।४। नीचस्थायाः सकाशात् ॥

३० ऊर्ध्वाया दिशः

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ऊ॒र्ध्वाया॑ दि॒शः शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्ये᳡भ्यः ॥

३० ऊर्ध्वाया दिशः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. From the upward quarter, homage etc. etc.
Notes
Griffith

ऊ॒र्ध्वाया॑ दि॒शः शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्येऽभ्यः ॥३०॥

पदपाठः

ऊ॒र्ध्वायाः॑। दि॒शः शाला॑याः। नमः॑। म॒हि॒म्ने। स्वाहा॑। दे॒वेभ्यः॑। स्वा॒ह्ये᳡भ्यः। ३.३०।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • एकावसाना त्रिपदा प्रतिष्ठा गायत्री
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (ऊर्ध्वायाः दिशः) ऊपरवाली दिशा से…. म० २५ ॥३०॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि पूर्वादि सब दिशाओं से पुष्कल अन्न आदि पदार्थ संग्रह करके शाला में रक्खें, जिस में विद्वान् लोग वेदों का विचार करते रहें ॥२५-३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३०−(ऊर्ध्वायाः) अ० ३।२६।६ उपरिवर्तमानायाः सकाशात्… ॥

३१ दिशोदिशः शालाया

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दि॒शोदि॑शः॒ शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्ये᳡भ्यः ॥

३१ दिशोदिशः शालाया ...{Loading}...

Whitney
Translation

31 . From every quarter, homage etc. etc.

Notes

In the last verse diśódiśaḥ should have been printed without space
before the repetition, as is our usage elsewhere.

⌊After this hymn, which exceeds the norm by 11 verses, the quotation
from the Old Anukr. is ekādaśāi ’vo “’pamitām” iti syuḥ.⌋

Griffith

दि॒शोदि॑शः॒ शाला॑या॒ नमो॑ महि॒म्ने स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑ स्वा॒ह्येऽभ्यः ॥३१॥

पदपाठः

दि॒शःऽदि॑शः। शालायाः। नमः। महिम्ने। स्वाहा। देवेभ्यः। स्वाह्येभ्यः᳡। ३.३१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • शाला
  • भृग्वङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • शाला सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (दिशोदिशः) प्रत्येक विदिशा से (शालायाः) शाला की (महिम्ने) महिमा के लिये (नमः) अन्न हो, (स्वाह्येभ्यः) सुवाणी के योग्य (देवेभ्यः) कमनीय विद्वानों के लिये (स्वाहा) सुवाणी [वेदवाणी] हो ॥३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि पूर्वादि सब दिशाओं से पुष्कल अन्न आदि पदार्थ संग्रह करके शाला में रक्खें, जिस में विद्वान् लोग वेदों का विचार करते रहें ॥२५-३१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३१−(दिशोदिशः) सर्वमध्यदिशासकाशात्। अन्यत् पूर्ववत्-म० २५ ॥