००२ कामः ...{Loading}...
Whitney subject
- To Kāma: for various blessings.
VH anukramaṇī
कामः
१-२५ अथर्वा। कामः। त्रिष्टुप्, ५ अतिजगती, ७, १४-१५, १७-१८, २१-२२ जगती,
८ द्विपदा आर्षी पङ्क्तिः ११, २०, २३ भुरिक्, १२ अनुष्टुप्, १३ द्विपदार्ची अनुष्टुप्,
१६ चतुष्पदा शक्वरीगर्भा परा जगती।
Whitney anukramaṇī
[Atharvan.—pañcaviṅśakam. kāmadevatyam. trāiṣṭubham: 5. atijagatī; 7. jagatī; 8. 2-p. ārcī pan̄kti; 11, 20, 23. bhurij; 12. anuṣṭubh; 13. 2-p. ārcy anuṣṭubh; 14, 15, 17, 18, 21, 22. jagatī; 16. 4-p. śakvarīgarbhā parājagatī.]
Whitney
Comment
⌊Partly prose—“vs.” 13.⌋ Found also (except vs. 4) in Pāipp. xvi. ⌊with vs. 16 before 12 and vs. 24 before 20⌋. The hymn (vs. 1) is prescribed in Vāit. 24. 10 to be recited, with homage to Kāma, in a part of the Agniṣṭoma ceremony; and in Kāuś. 49. 1 it (vs. 1) accompanies the release of a bull in a witchcraft ceremony.
Translations
Translated: Muir, v. 404 (nearly all); Ludwig, p. 519; Scherman, Philosophische Hymnen, p. 76 (part); Henry, 84, 118; Griffith, i. 430; Bloomfield, 220, 591.—Cf. Hillebrandt, Veda-Chrestomathie, p. 40.
Griffith
A glorification of Kama as God of desire of all that is good
०१ सपत्नहनमृषभं घृतेन
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
सपत्न॒हन॑मृष॒भं घृ॒तेन॒ कामं॑ शिक्षामि ह॒विषाज्ये॑न।
नी॒चैः स॒पत्ना॒न्मम॑ पादय॒ त्वम॒भिष्टु॑तो मह॒ता वी॒र्ये᳡ण ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सपत्न॒हन॑मृष॒भं घृ॒तेन॒ कामं॑ शिक्षामि ह॒विषाज्ये॑न।
नी॒चैः स॒पत्ना॒न्मम॑ पादय॒ त्वम॒भिष्टु॑तो मह॒ता वी॒र्ये᳡ण ॥
०१ सपत्नहनमृषभं घृतेन ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The rival-slaying bull Kāma do I desire to aid (? śikṣ) with ghee,
with oblation, with sacrificial butter; do thou, praised with great
heroism, make my rivals to fall downward.
Notes
Kāma, lit. ‘desire, love,’ is so thoroughly personified throughout the
hymn that the word is better transferred than translated.
Griffith
Kama the Bull, slayer of foes, I worship with molten butter, sacrifice, oblation. Beneath my feet cast down mine adversaries with thy great manly power, when I have praised thee.
पदपाठः
स॒प॒त्न॒ऽहन॑म्। ऋ॒ष॒भम्। घृ॒तेन॑। काम॑म्। शि॒क्षा॒मि॒। ह॒विषा॑। आज्ये॑न। नी॒चैः। स॒ऽपत्ना॑न्। मम॑। पा॒द॒य॒। त्वम्। अ॒भिऽस्तु॑तः। म॒ह॒ता। वी॒र्ये᳡ण। २.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- त्रिष्टुप्
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सपत्नहनम्) शत्रुनाशक, (ऋषभम्) बलवान् (कामम्) कामनायोग्य [परमेश्वर] को (घृतेन) प्रकाश, (हविषा) भक्ति और (आज्येन) पूर्ण गति के साथ (शिक्षामि) मैं सीखता हूँ। (अभिष्टुतः) सब ओर से स्तुति किया गया (त्वम्) तू (महता) बड़ी (वीर्येण) वीरता से (मम) मेरे (सपत्नान्) वैरियों को (नीचैः) नीचे (पादय) पहुँचा ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य पूर्ण भक्ति से परमेश्वर का आश्रय लेकर अभिमान आदि शत्रुओं का नाश करे ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(सपत्नहनम्) शत्रुनाशकम् (ऋषभम्) अ० ३।६।४। बलिनम् (घृतेन) प्रकाशेन (कामम्) अ० ३।२१।४। कमनीयं कामयितारं वा परमेश्वरम् (शिक्षामि) अ० ७।१०९।१। शिक्षे। अभ्यस्यामि (हविषा) आत्मदानेन (आज्येन) अ० ५।८।१। आङ्+अञ्जू गतौ-क्यप्। समन्ताद् गत्या। सर्वोपायेन (नीचैः) (सपत्नान्) शत्रून् (मम) (पादय) गमय (त्वम्)। (अभिष्टुतः) प्रशंसितः (महता) विशालेन (वीर्येण) वीर्यकर्मणा ॥
०२ यन्मे मनसो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यन्मे॒ मन॑सो॒ न प्रि॒यं न चक्षु॑षो॒ यन्मे॒ बभ॑स्ति॒ नाभि॒नन्द॑ति।
तद्दुः॒ष्वप्न्यं॒ प्रति॑ मुञ्चामि स॒पत्ने॒ कामं॑ स्तु॒त्वोद॒हं भि॑देयम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यन्मे॒ मन॑सो॒ न प्रि॒यं न चक्षु॑षो॒ यन्मे॒ बभ॑स्ति॒ नाभि॒नन्द॑ति।
तद्दुः॒ष्वप्न्यं॒ प्रति॑ मुञ्चामि स॒पत्ने॒ कामं॑ स्तु॒त्वोद॒हं भि॑देयम् ॥
०२ यन्मे मनसो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- What of my mind or my sight is not agreeable (priyá), what of me
gnaws, does not enjoy (abhi-nand), that evil-dreaming do I fasten on
my rival; praising Kāma, may I shoot up.
Notes
The sense of a, b is very doubtful; without b added, a would
naturally mean ‘what is not agreeable to my mind or sight’; the Pet.
Lex. proposes to help the difficulty rather by emending b to yasmād
bībhatse yac ca nā ’bhinande. This verse and the following one are
included in the duḥsvapnanāśana gaṇa: see note to Kāuś. 46. 9. There
is an irregularity in every pāda, but the Anukr. does not heed them.
Ppp. has, for b, yan me hṛdaye na ’bhinandanti; and, for d,
kāmaṁ juṣṭa hānudaṁ bhideyam—thus giving us no help. ⌊Pischel treats
the vs., Ved. Stud. ii. 61. Aufrecht, KZ. xxxiv. 459, sees here a root
bhas ‘verdriessen, taedere.’⌋
Griffith
That which is hateful to mine eye and spirit, that harasses and robs me of enjoyment, The evil dream I loose upon my foemen. May I rend him when I have lauded Kama.
पदपाठः
यत्। मे॒। मन॑सः। न। प्रि॒यम्। न। चक्षु॑षः। यत्। मे॒। बभ॑स्ति। न। अ॒भि॒ऽनन्द॑ति। तत्। दुः॒ऽस्वप्न्य॑म्। प्रति॑। मु॒ञ्चा॒मि॒। स॒ऽपत्ने॑। काम॑म्। स्तु॒त्वा। उत्। अ॒हम्। भि॒दे॒य॒म्। २.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- त्रिष्टुप्
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो [दुष्टकर्म] (मे) मेरे (मनसः) मन का (न प्रियम्) प्रिय नहीं है और (न चक्षुषः) न नेत्र का, और (यत्) जो (मे) मेरा (बभस्ति) तिरस्कार करता है और (न) न (अभिनन्दति) कुछ आनन्द देता है, (तत्) उस (दुःष्वप्न्यम्) दुष्ट स्वप्न को (सपत्ने) शत्रुनाश के लिये (प्रति मुञ्चामि) मैं छोड़ता हूँ, (कामम्) कमनीय परमेश्वर की (स्तुत्वा) स्तुति करके (अहम्) मैं (उत् भिदेयम्) ऊपर निकल जाऊँ ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य आत्मा और समाज के विरुद्ध दुष्टकर्मों को छोड़कर परमेश्वर-आज्ञा का पालन करके उन्नति करे ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(यत्) दुष्टकर्म (मे) मम (मनसः) अन्तःकरणस्य (न) निषेधे (प्रियम्) हितकरम् (न) (चक्षुषः) नेत्रस्य। बहिरङ्गस्य (यत्) (मे) (बभस्ति) भस भर्त्सनदीप्त्योः। निन्दां करोति (न) (अभिनन्दति) सर्वतः सुखयति (तत्) (दुःष्वप्न्यम्) दुष्टस्वप्नम् (प्रति मुञ्चामि) सर्वतो मोचयामि (सपत्ने) निमित्तात् कर्मयोगे सप्तमी वक्तव्या। वा० पा० २।३।३६। शत्रुहननाय (कामम्) कमनीयं परमेश्वरम् (स्तुत्वा) प्रशस्य (अहम्) उपासकः (उद्भिदेयम्) छान्दसो विधिलिङ्। उद् भिन्द्याम्। उन्नतो भवेयम् ॥
०३ दुःष्वप्न्यं काम
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
दुः॒ष्वप्न्यं॑ काम दुरि॒तं च॑ कमाप्र॒जस्ता॑मस्व॒गता॒मव॑र्तिम्।
उ॒ग्र ईशा॑नः॒ प्रति॑ मुञ्च॒ तस्मि॒न्यो अ॒स्मभ्य॑मंहूर॒णा चिकि॑त्सात् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
दुः॒ष्वप्न्यं॑ काम दुरि॒तं च॑ कमाप्र॒जस्ता॑मस्व॒गता॒मव॑र्तिम्।
उ॒ग्र ईशा॑नः॒ प्रति॑ मुञ्च॒ तस्मि॒न्यो अ॒स्मभ्य॑मंहूर॒णा चिकि॑त्सात् ॥
०३ दुःष्वप्न्यं काम ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Evil-dreaming, O Kāma, and difficulty, O Kāma, want of progeny,
homelessness, ruin do thou, formidable, masterful, fasten on him who
shall seek to devise (cikits-) distresses for us.
Notes
Ppp. combines yo ‘smabhyam in d.
Griffith
Kama, do thou, a mighty Lord and Ruler, let loose ill dream, misfortune, want of children, Homelessness, Kama! utter destitution, upon the sinner who designs my ruin.
पदपाठः
दुः॒ऽस्वप्न्य॑म्। का॒म॒। दुः॒ऽइ॒तम्। च॒। का॒म॒। अ॒प्र॒जस्ता॑म्। अ॒स्व॒गता॑म्। अव॑र्तिम्। उ॒ग्रः। ईशा॑नः। प्रति॑। मु॒ञ्च॒। तस्मि॑न्। यः। अ॒स्मभ्य॑म्। अं॒हू॒र॒णा। चिकि॑त्सात्। २.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- त्रिष्टुप्
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (काम) हे कामनायोग्य [परमेश्वर !] (दुःष्वप्न्यम्) दुष्ट स्वप्न को, (च) और (काम) हे कामनायोग्य [परमात्मन् !] (दुरितम्) विघ्न, (अस्वगताम्) निर्धनता से प्राप्त (अप्रजस्ताम्) प्रजा के अभाव और (अवर्तिम्) निर्जीविका को, (उग्रः) प्रबल और (ईशानः) ईश्वर होकर तू (तस्मिन्) उस पुरुष पर (प्रति मुञ्च) छोड़ दे, (यः) जो (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (अंहूरणा) पाप कर्मों को (चिकित्सात्) चाहे ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य धर्मात्माओं को दुःख देते हैं, वे ईश्वरनियम से बुद्धिहानि, विघ्न आदि कष्ट भोगते हैं ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(दुःष्वप्न्यम्) दुष्टस्वप्नम्। कुविचारम् (काम) हे कमनीय परमात्मन् (दुरितम्) दुर्गतिम्। विघ्नम् (च) (काम) (अप्रजस्ताम्) नित्यमसिच् प्रजामेधयोः। पा० ५।४।१२२। अप्रजा-असिच्। प्रजाराहित्यम् (अस्वगताम्) अस्वेन निर्धनेन प्राप्ताम् (अवर्तिम्) अ० ४।३४।३। निर्जीविकाम् (उग्रः) प्रबलः (ईशानः) ईश्वरः (प्रति मुञ्च) सर्वतो मोचय (तस्मिन्) शत्रौ (यः) शत्रुः (अस्मभ्यम्) धर्मात्मभ्यः (अंहूरणा) अ० ६।९९।१। पापयुक्तानि कर्माणि (चिकित्सात्) कित इच्छायाम्-लेट्, सन् छान्दसः। केतयतु। इच्छतु ॥
०४ नुदस्व काम
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नु॒दस्व॑ काम॒ प्र णु॑दस्व का॒माव॑र्तिं यन्तु॒ मम॒ ये स॒पत्नाः॑।
तेषां॑ नु॒त्ताना॑मध॒मा तमां॒स्यग्ने॒ वास्तू॑नि॒ निर्द॑ह॒ त्वम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
नु॒दस्व॑ काम॒ प्र णु॑दस्व का॒माव॑र्तिं यन्तु॒ मम॒ ये स॒पत्नाः॑।
तेषां॑ नु॒त्ताना॑मध॒मा तमां॒स्यग्ने॒ वास्तू॑नि॒ निर्द॑ह॒ त्वम् ॥
०४ नुदस्व काम ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Thrust, O Kāma; thrust forth, O Kāma; let them who are my rivals go
to ruin; of them, thrust to lowest darknesses, do thou, O Agni, burn out
the abodes (vā́stu).
Notes
The Anukr. takes no notice of the deficiency of two syllables in d,
which in 9 d is made up by the addition of anu. In Vāit. 4. 5 the
verse is strangely used to accompany the separation of two sacrificial
ladles; in Kāuś. 48. 5 it accompanies the driving away of something with
a branch.
Griffith
Drive them away, drive them afar, O Kama; indigence fall on those who are my foemen! When they have been cast down to deepest darkness, consume their dwellings with thy fire, O Agni.
पदपाठः
नु॒दस्व॑। का॒म॒। प्र। नु॒द॒स्व॒। का॒म॒। अव॑र्तिम्। य॒न्तु॒। मम॑। ये। स॒ऽपत्नाः॑। तेषा॑म्। नु॒त्ताना॑म्। अ॒ध॒मा। तमां॑सि। अग्ने॑। वास्तू॑नि। निः। द॒ह॒। त्वम्। २.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- त्रिष्टुप्
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (काम) हे कामनायोग्य [परमेश्वर !] [हमें] (नुदस्व) बढ़ा, (काम) हे कमनीय ! (प्र णुदस्व) आगे बढ़ा, वे लोग (अवर्तिम्) निर्जीविका को (यन्तु) प्राप्त हों, (ये) जो (मम) मेरे (सपत्नाः) वैरी हैं। (अग्ने) हे तेजस्वी परमेश्वर ! (त्वम्) तू (अधमा) अति नीचे (तमांसि) अन्धकारों में (नुत्तानाम्) पड़े हुए (तेषाम्) उन [शत्रुओं] के (वास्तूनि) घरों को (निःदह) भस्म कर दे ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रयत्नपूर्वक उन्नति करके दुष्ट जनों और दुष्ट स्वभावों का नाश करें ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(नुदस्व) प्रेरय (काम) म० १। हे कमनीय (प्र) प्रकर्षेण (नुदस्व) (काम) (अवर्तिम्) निर्जीविकाम् (यन्तु) प्राप्नुवन्तु (मम) (ये) (सपत्नाः) शत्रवः (तेषाम्) शत्रूणाम् (नुत्तानाम्) प्रेरितानाम् (अधमा) नीचानि (तमांसि) अन्धकारान्। अज्ञानानि (अग्ने) हे तेजस्विन् परमात्मन् (वास्तूनि) अ० ७।१०८।१। गृहाणि (निर्दह) भस्मीकुरु (त्वम्) ॥
०५ सा ते
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सा ते॑ काम दुहि॒ता धे॒नुरु॑च्यते॒ यामा॒हुर्वाचं॑ क॒वयो॑ वि॒राज॑म्।
तया॑ स॒पत्ना॒न्परि॑ वृङ्ग्धि॒ ये मम॒ पर्ये॑नान्प्रा॒णः प॒शवो॒ जीव॑नं वृणक्तु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सा ते॑ काम दुहि॒ता धे॒नुरु॑च्यते॒ यामा॒हुर्वाचं॑ क॒वयो॑ वि॒राज॑म्।
तया॑ स॒पत्ना॒न्परि॑ वृङ्ग्धि॒ ये मम॒ पर्ये॑नान्प्रा॒णः प॒शवो॒ जीव॑नं वृणक्तु ॥
०५ सा ते ...{Loading}...
Whitney
Translation
- That daughter of thine, O Kāma, is called a milch-cow, what utterance
(vā́c) the poets name virā́j; with that do thou avoid them that are my
rivals; let breath, cattle, life avoid them.
Notes
Or a might be ’that milch-cow is called thy daughter.’ O. reads
páry eṇān in d; but the passage is quoted under Prāt. iii. 80 as
one in which the lingualization of n does not take place.
Griffith
She, Kama! she is called the Cow, thy daughter, she who is named Vak and Viraj by sages. By her drive thou my foemen to a distance. May cattle, vital breath, and life forsake them.
पदपाठः
सा। ते॒। का॒म॒। दु॒हि॒ता। धे॒नुः। उ॒च्य॒ते॒। याम्। आ॒हुः। वाच॑म्। क॒वयः॑। वि॒ऽराज॑म्। तया॑। स॒ऽपत्ना॑न्। परि॑। वृ॒ङ्ग्धि॒। ये। मम॑। परि॑। ए॒ना॒न्। प्रा॒णः। प॒शवः॑। जीव॑नम्। वृ॒ण॒क्तु॒। २.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- अतिजगती
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (काम) हे कमनीय परमात्मन् (सा) वह [हमारी कामनायें] (दुहिता) पूरण करनेवाली (ते) तेरी (धेनुः) वाणी (उच्यते) कही जाती है, (वाम्) जिस (वाचम्) वाणी को (कवयः) बुद्धिमान् लोग (विराजम्) विविध ऐश्वर्यवाली (आहुः) कहते हैं। (तया) उस [वाणी] से (सपत्नान्) उन वैरियों को (परि वृङ्ग्धि) हटा दे, (ये) जो (मम) मेरे [शत्रु हैं,] (एनान्) उन [शत्रुओं] को (प्राणः) प्राण, (पशवः) सब जीव और (जीवनम्) जीवनवृत्ति (परि वृणक्तु) त्याग देवे ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सर्वश्रेष्ठ वेदवाणी का आश्रय लेते हैं, वे अपने शत्रुओं को निर्बल करने में समर्थ होते हैं ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(सा) प्रसिद्धा (ते) तव (काम) कमनीय (दुहिता) अ० ३।१०।१३। कामानां प्रपूरयित्री (धेनुः) अ० ३।१०।१। तर्पयित्री वाक्-निघ० १।११। (उच्यते) (याम्) (आहुः) कथयन्ति (वाचम्) वेदवाणीम् (कवयः) मेधाविनः (विराजम्) अ० ८।९।१। विवधेश्वरीम् (तया) वाचा (सपत्नान्) शत्रून् (परिवृङ्ग्धि) सर्वतो वर्जय (ये) शत्रवः (मम) (परि) (एनान्) सपत्नान् (प्राणः) आत्मोत्कर्षः (पशवः) प्राणिनः (जीवनम्) जीवनसाधनम् (वृणक्तु) अ० १।३०।३। वर्जयतु ॥
०६ कामस्येन्द्रस्य वरुणस्य
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काम॒स्येन्द्र॑स्य॒ वरु॑णस्य॒ राज्ञो॒ विष्णो॒र्बले॑न सवि॒तुः स॒वेन॑।
अ॒ग्नेर्हो॒त्रेण॒ प्र णु॑दे स॒पत्ना॑ञ्छ॒म्बीव॒ नाव॑मुद॒केषु॒ धीरः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
काम॒स्येन्द्र॑स्य॒ वरु॑णस्य॒ राज्ञो॒ विष्णो॒र्बले॑न सवि॒तुः स॒वेन॑।
अ॒ग्नेर्हो॒त्रेण॒ प्र णु॑दे स॒पत्ना॑ञ्छ॒म्बीव॒ नाव॑मुद॒केषु॒ धीरः॑ ॥
०६ कामस्येन्द्रस्य वरुणस्य ...{Loading}...
Whitney
Translation
- With the strength of Kāma, of Indra, of king Varuṇa, of Vishṇu, with
the impulse of Savitar (’the impeller’), with the priestship (hotrá)
of Agni I thrust forth my rivals, as a skilful pole-man (? śambín) a
boat on the waters (udaká).
Notes
śambín occurs nowhere else, and the meaning of śámba is doubtful.
Ppp. reads in c piśācān instead of sapatnān.
Griffith
By Kama’s might, King Varuna’s and Indra’s, by Vishnu’s strength, and Savitar’s instigation, I chase my foes with sacrifice to Agni, as a deft steersman drives his boat through waters.
पदपाठः
काम॑स्य। इन्द्र॑स्य। वरु॑णस्य। राज्ञः॑। विष्णोः॑। बले॑न। स॒वि॒तुः। स॒वेन॑। अ॒ग्नेः। हो॒त्रेण॑। प्र। नु॒दे॒। स॒ऽपत्ना॑न्। श॒म्बीऽइ॑व। नाव॑म्। उ॒द॒केषु॑। धीरः॑। २.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- त्रिष्टुप्
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रस्य) बड़े ऐश्वर्यवाले, (वरुणस्य) श्रेष्ठ, (राज्ञः) राजा, (विष्णोः) सर्वव्यापक, (सवितुः) सर्वप्रेरक, (अग्नेः) सर्वज्ञ, (कामस्य) कामनायोग्य [परमेश्वर] के (बलेन) बल से, (सवेन) ऐश्वर्य से और (होत्रेण) दान से (सपत्नान्) वैरियों को (प्र णुदे) मैं भगाता हूँ, (इव) जैसे (धीरः) धीर (शम्बी) कर्णधार [नाव चलानेवाला] (नावम्) नाव को (उदकेषु) जलों के भीतर [चलाता है] ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग परमेश्वर की महिमा को प्राप्त होकर अपने बाहिरी और भीतरी वैरियों को ऐसा वश में रखता है, जैसे चतुर नाविक गहरे जल में नाव को चलाता है ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(कामस्य) कमनीयस्य परमेश्वरस्य (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतः (वरुणस्य) श्रेष्ठस्य (राज्ञः) शासकस्य (विष्णोः) सर्वव्यापकस्य (बलेन) (सवितुः) सर्वप्रेरकस्य (सवेन) ऐश्वर्येण (अग्नेः) सर्वज्ञस्य (होत्रेण) दानेन (प्र णुदे) प्रेरयामि। वशीकरोमि (सपत्नान्) शत्रून् (शम्बी) शम्ब सम्बन्धने गतौ च-अच्। यद्वा, शमेर्बन्। उ० ४।९४। शमु उपशमे-बन्। यद्वा, शातयतेर्बन्। शम्ब इति वज्रनाम शमयतेर्वा शातयतेर्वा-निरु० ५।२४। अत इनिठनौ। पा० ५।२।११५। शम्ब-इनि। वज्रवान्। कर्णधारः (इव) यथा (नावम्) पोतम् (उदकेषु) गम्भीरजलेषु (धीरः) धीमान्। प्रवीणः। पण्डितः ॥
०७ अध्यक्षो वाजी
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अध्य॑क्षो वा॒जी मम॒ काम॑ उ॒ग्रः कृ॒णोतु॒ मह्य॑मसप॒त्नमे॒व।
विश्वे॑ दे॒वा मम॑ ना॒थं भ॑वन्तु॒ सर्वे॑ दे॒वा हव॒मा य॑न्तु म इ॒मम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अध्य॑क्षो वा॒जी मम॒ काम॑ उ॒ग्रः कृ॒णोतु॒ मह्य॑मसप॒त्नमे॒व।
विश्वे॑ दे॒वा मम॑ ना॒थं भ॑वन्तु॒ सर्वे॑ दे॒वा हव॒मा य॑न्तु म इ॒मम् ॥
०७ अध्यक्षो वाजी ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Let Kāma, my valiant (vājín) formidable overseer, make for me
freedom from rivals; let the all-gods be my refuge; let all the gods
come to this call of mine.
Notes
‘All’ is víśve in c, and sárve in d. The verse is called
jagatī by the Anukr., though only d is a jagatī pāda ⌊and that
only by count⌋. Ppp. combines at the end of d māi ’mam ⌊and thus
suggests the true metrical rendering of d as a triṣṭubh: similarly
at ix. 3. 15⌋.
Griffith
May Kama, mighty one, my potent warder, give me full free- dom from mine adversaries. May all the Deities be my protection, all Gods come nigh to this mine invocation.
पदपाठः
अधि॑ऽअक्षः। वा॒जी। मम॑। कामः॑। उ॒ग्रः। कृ॒णोतु॑। मह्य॑म्। अ॒स॒प॒त्नम्। ए॒व। विश्वे॑। दे॒वाः। मम॑। ना॒थम्। भ॒व॒न्तु॒। सर्वे॑। दे॒वाः। हव॑म्। आ। य॒न्तु॒। मे॒। इ॒मम्। २.७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- जगती
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - “(मम) मेरा (अध्यक्षः) अध्यक्ष, (वाजी) पराक्रमी, (उग्रः) तेजस्वी, (कामः) कामनायोग्य [परमेश्वर] (मह्यम्) मुझको (एव) अवश्य (असपत्नम्) बिना शत्रु (कृणोतु) करे। (विश्वे) सब (देवाः) दिव्य गुण (मम) मेरे (नाथम्) ऐश्वर्य (भवन्तु) होवें, (सर्वे) सब (देवाः) दिव्य गुणवाले लोग (मम) मेरी (इमम्) इस (हवम्) पुकार को (आ यन्तु) आकर प्राप्त हों ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य सर्वस्वामी परमेश्वर का शरण लेकर और विद्वानों का सत्सङ्ग करके अपने दोषों का नाश करके ऐश्वर्य प्राप्त करें ॥७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ७−(अध्यक्षः) अधिगतोऽक्षं व्यक्षहारं यः। अधिष्ठाता (वाजी) पराक्रमी (मम) उपासकस्य (कामः) कमनीयः परमेश्वरः (उग्रः) तेजस्वी (कृणोतु) करोतु (मह्यम्) द्वितीयार्थे चतुर्थी। माम् (असपत्नम्) अशत्रुम् (एव) अवश्यम् (विश्वे) सर्वे (देवाः) दिव्यगुणाः (मम) (नाथम्) नाथृ याच्ञोपतापैश्वर्याशीःषु-अच्। ऐश्वर्यम् (भवन्तु) सन्तु (सर्वे) (देवाः) दिव्यगुणाः पुरुषाः (हवम्) आह्वानम् (आ यन्तु) आगत्य प्राप्नुवन्तु (मे) मम (इमम्) पूर्वोक्तम् ॥
०८ इदमाज्यं घृतवज्जुषाणाः
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इ॒दमाज्यं॑ घृ॒तव॑ज्जुषा॒णाः काम॑ज्येष्ठा इ॒ह मा॑दयध्वम्।
कृ॒ण्वन्तो॒ मह्य॑मसप॒त्नमे॒व ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
इ॒दमाज्यं॑ घृ॒तव॑ज्जुषा॒णाः काम॑ज्येष्ठा इ॒ह मा॑दयध्वम्।
कृ॒ण्वन्तो॒ मह्य॑मसप॒त्नमे॒व ॥
०८ इदमाज्यं घृतवज्जुषाणाः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Enjoying this sacrificial butter rich in ghee, do ye, with Kāma as
chief (-jyéṣṭha), revel here, making for me freedom from rivals.
Notes
Ppp. reads ghṛtam id in a, and kṛṇvantu in c. The verse is a
perfectly good virāṇnāmagāyatrī but the Anukr. calls it an ārcī
pan̄kti, as if it had 30 syllables.
Griffith
Accepting this oblation rich with fatness, be joyful here, ye Gods whose chief is Kama, Giving me freedom from mine adversaries.
पदपाठः
इ॒दम्। आज्य॑म्। घृ॒तऽव॑त्। जु॒षा॒णाः। काम॑ऽज्येष्ठाः। इ॒ह। मा॒द॒य॒ध्व॒म्। कृ॒ण्वन्तः॑। मह्य॑म्। अ॒स॒प॒त्नम्। ए॒व। २.८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- त्रिपदार्ची पङ्क्तिः
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे विद्वानो !] (इदम्) इस (घृतवत्) प्रकाशयुक्त (आज्यम्) पूर्ण गति को (जुषाणाः) सेवन करते हुए, (कामज्येष्ठाः) कामनायोग्य परमेश्वर को सबसे बड़ा मानते हुए, (मह्यम्) मुझको (एव) अवश्य (असपत्नम्) बिना शत्रु (कृण्वन्तः) करते हुए तुम (इह) यहाँ [हमें] (मादयध्वम्) तृप्त करो ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग सब उपाय से ब्रह्मनिष्ठ पुरुषों के सत्सङ्ग से आत्मदोष त्याग कर प्रसन्न होते हैं ॥८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ८−(इदम्) पूर्वोक्तम् (आज्यम्) म० १। समन्ताद् गतिम्। सर्वोपायम् (घृतवत्) प्रकाशयुक्तम् (जुषाणाः) सेवमानाः (कामज्येष्ठाः) कमनीयः परमेश्वरः सर्ववृद्धो येषां ते (इह) अस्मिन् जीवने (मादयध्वम्) अस्मान् तर्पयत (कृण्वन्तः) कुर्वन्तः। अन्यत् पूर्ववत्-म० ७ ॥
०९ इन्द्राग्नी काम
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इ॑न्द्रा॒ग्नी का॑म स॒रथं॒ हि भू॒त्वा नी॒चैः स॒पत्ना॒न्मम॑ पादयाथः।
तेषां॑ प॒न्नाना॑मध॒मा तमां॒स्यग्ने॒ वास्तू॑न्यनु॒निर्द॑ह॒ त्वम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
इ॑न्द्रा॒ग्नी का॑म स॒रथं॒ हि भू॒त्वा नी॒चैः स॒पत्ना॒न्मम॑ पादयाथः।
तेषां॑ प॒न्नाना॑मध॒मा तमां॒स्यग्ने॒ वास्तू॑न्यनु॒निर्द॑ह॒ त्वम् ॥
०९ इन्द्राग्नी काम ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Becoming, O Kāma, in alliance (sarátham) with Indra-and-Agni, may
ye make my rivals to fall downward; of them, fallen to lowest
darknesses, do thou, O Agni, burn along out the abodes.
Notes
With c, d compare 4 c, d above. The first half-verse presents
various anomalies: sarátham demands an instrumental case; we should
expect rather a plural verb (but compare vi. 104. 3 a, b); and it
should be accented after hí. Emending indrāgnī́ to índreṇa, and
reading pādáyāthas, would make everything right.
Griffith
Ye, Indra, Agni, Kama! come together and cast mine adver- saries down beneath me. When they have sunk into the deepest darkness, O Agni, with thy fire consume their dwellings.
पदपाठः
इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। का॒म॒। स॒ऽरथ॑म्। हि। भू॒त्वा। नी॒चैः। स॒ऽपत्ना॑न्। मम॑। पा॒द॒या॒थः॒। तेषा॑म्। प॒न्नाना॑म्। अ॒ध॒मा। तमां॑सि। अग्ने॑। वास्तू॑नि। अ॒नु॒ऽनर्द॑ह। त्वम्। २.९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- त्रिष्टुप्
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (काम) हे कमनीय [परमेश्वर !] [मेरे] (इन्द्राग्नी) वायु और अग्नि [प्राण वायु और शारीरिक बल] के साथ (सरथम्) एक रथ पर (हि) ही (भूत्वा) होकर (मम) मेरे (सपत्नान्) शत्रुओं को (नीचैः) नीचे (पादयाथः) पहुँचा। (अग्ने) हे तेजस्वी परमेश्वर ! (त्वम्) तू (अधमा) अति नीच (तमांसि) अन्धकारों में (पन्नानाम्) पहुँचे हुए (तेषाम्) उन [शत्रुओं] के (वास्तूनि) घरों को (अनुनिर्दह) निरन्तर जला दे ॥९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य सर्वशक्तिमान् परमेश्वर की महाशक्ति को विचारकर शारीरिक और आत्मिक बल के साथ काम क्रोध आदि शत्रुओं को उनके कारणसहित नाश करके आनन्द पावें ॥९॥ इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध ऊपर मन्त्र ४ में कुछ भेद से आ चुका है ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ९−(इन्द्राग्नी) विभक्तेः पूर्वसवर्णदीर्घः। इन्द्राग्निभ्याम्। इन्द्रेण प्राणवायुना अग्निना शारीरिकबलेन च सह (काम) हे कमनीय परमेश्वर (सरथम्) अ० ४।३१।१। समाने रथे (पादयाथः) तिङां तिङो भवन्ति। वा० पा० ७।१।३९। पादयतेर्लेटि, एकवचने द्विवचनम्। पादय। गमय (पन्नानाम्) पद गतौ-क्त। प्राप्तानाम् (अनुनिर्दह) निरन्तरं भस्मीकुरु। अन्यत् पूर्ववत्-म० ४ इत्यादौ ॥
१० जहि त्वम्
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ज॒हि त्वं का॑म॒ मम॒ ये स॒पत्ना॑ अ॒न्धा तमां॒स्यव॑ पादयैनान्।
निरि॑न्द्रिया अर॒साः स॑न्तु॒ सर्वे॒ मा ते जी॑विषुः कत॒मच्च॒नाहः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ज॒हि त्वं का॑म॒ मम॒ ये स॒पत्ना॑ अ॒न्धा तमां॒स्यव॑ पादयैनान्।
निरि॑न्द्रिया अर॒साः स॑न्तु॒ सर्वे॒ मा ते जी॑विषुः कत॒मच्च॒नाहः॑ ॥
१० जहि त्वम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Slay thou, O Kāma, those that are my rivals; make them fall down to
blind darknesses; be they all senseless (? nírindriya), sapless; let
them not live any day soever.
Notes
Ppp. combines sapatnā ’ndhā in a-b, combines and reads nirindriyā
’ravāḥ in c, and has for d yathā nu jīvāt katamac ⌊-maś?⌋
cane ’ṣāṁ.
Griffith
Slay those who are mine enemies, O Kama: headlong to depth of blinding darkness hurl them. Reft be they all of manly strength and vigour! Let them not have a single day’s existence.
पदपाठः
ज॒हि। त्वम्। का॒म॒। मम॑। ये। स॒ऽपत्नाः॑। अ॒न्धा। तमां॑सि। अव॑। पा॒द॒य॒। ए॒ना॒न्। निःऽइ॑न्द्रियाः। अ॒र॒साः। स॒न्तु॒। सर्वे॑। मा। ते। जी॒वि॒षुः॒। क॒त॒मत्। च॒न। अहः॑। २.१०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- त्रिष्टुप्
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (काम) हे कमनीय [परमेश्वर !] (त्वम्) तू (मम) मेरे (ये) जो (सपत्नाः) शत्रु हैं, (एनान्) उनको (जहि) नाश करदे और (अन्धा) बड़े भारी (तमांसि) अन्धकारों में (अव पादय) गिरा दे। (सर्वे ते) वे सब (निरिन्द्रियाः) निर्धन और (अरसाः) निर्वीर्य (सन्तु) हो जावें, और (कतमत् चन) कुछ भी (अहः) दिन (मा जीविषुः) न जीवें ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर की प्रार्थना उपासना से आत्मिक बल बढ़ाकर शत्रुओं का सर्वथा नाश करें ॥१०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १०−(जहि) नाशय (अन्धा) अन्ध दृष्टिनाशे-अच्। निबिडानि (तमांसि) अन्धकारान् (अव पादय) अधो गमय (एनान्) शत्रून् (निरिन्द्रियाः) इन्द्रियं धनम्-निघ० २।१०। निर्धनाः (अरसाः) निर्वीर्याः (ते) सपत्नाः (मा जीविषुः) मा प्राणान् धारयन्तु (कतमत् चन) किमपि (अहः) दिनम्। अन्यद् गतम् ॥
११ अवधीत्कामो मम
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अव॑धी॒त्कामो॒ मम॒ ये स॒पत्ना॑ उ॒रुं लो॒कम॑कर॒न्मह्य॑मेध॒तुम्।
मह्यं॑ नमन्तां प्र॒दिश॒श्चत॑स्रो॒ मह्यं॒ षडु॒र्वीर्घृ॒तमा व॑हन्तु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अव॑धी॒त्कामो॒ मम॒ ये स॒पत्ना॑ उ॒रुं लो॒कम॑कर॒न्मह्य॑मेध॒तुम्।
मह्यं॑ नमन्तां प्र॒दिश॒श्चत॑स्रो॒ मह्यं॒ षडु॒र्वीर्घृ॒तमा व॑हन्तु ॥
११ अवधीत्कामो मम ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Kāma hath slain (vadh) them that are my rivals; he hath made for
me wide space, prosperity; let the four directions bow to me; let the
six wide ones ⌊fem.⌋ bring ghee to me.
Notes
The third pāda was found above as v. 3. 1 c. It is unusual for the
Anukr. to note as bhurij a triṣṭubh containing a *jagatī-*pāda. ⌊Cf.
Bergaigne, Rel. Véd. ii. 122.⌋
Griffith
Kama hath slain those who were mine opponents, and given me ample room to grow and prosper. Let the four regions bow them down before me, and let the six expanses bring me fatness.
पदपाठः
अव॑धीत्। कामः॑। मम॑। ये। स॒ऽपत्नाः॑। उ॒रुम्। लो॒कम्। अ॒क॒र॒त्। मह्य॑म्। ए॒ध॒तुम्। मह्य॑म्। न॒म॒न्ता॒म्। प्र॒ऽदिशः॑। चत॑स्रः। मह्य॑म्। षट्। उ॒र्वीः। घृ॒तम्। आ। व॒ह॒न्तु॒। २.११।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- भुरिक्त्रिष्टुप्
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कामः) कामनायोग्य [परमेश्वर] ने [उनको] (अवधीत्) नष्ट कर दिया है (ये) जो (मम) मेरे (सपत्नाः) शत्रु हैं और (मह्यम्) मेरे लिये (उरुम्) चौड़ा, (एधतुम्) वृद्धि करनेवाला (लोकम्) स्थान (अकरत्) किया है। (मह्यम्) मेरे लिये (चतस्रः) चारों [पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर] (प्रदिशः) प्रधान दिशाएँ (नमन्ताम्) झुकें, (मह्यम्) मेरे लिये (षट्) छह [आग्नेयी, नैर्ऋती, वायवी, ऐशानी, चारों मध्य दिशा और ऊपर नीचे की दोनों] (उर्वीः) फैली हुई [दिशाएँ] (घृतम्) घृत [प्रकाश वा सार पदार्थ] (आ वहन्तु) लावें ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमेश्वर के अनुग्रह से अपने विघ्नों का नाश करते हैं, वे विज्ञानपूर्वक उन्नति करके सब स्थानों और सब कालों में आनन्द भोगते हैं ॥११॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ११−(अवधीत्) नाशितवान् (उरुम् विस्तीर्णम् (लोकम्) स्थानम् (अकरत्) कृतवान् (मह्यम्) मदर्थम् (एधतुम्) एधिवह्योश्चतुः। उ० १।७७। एध वृद्धौ−चतु। वृद्धिकरम् (नमन्ताम्) प्रह्वीभवन्तु (प्रदिशः) पूर्वादयः प्रकृष्टा दिशः (चतस्रः) (षट्) षट्संख्याकाः (उर्वीः) विस्तीर्णाः। आग्नेय्यादयश्चतस्रो मध्यदिशो नीचोच्चदिशौ च (घृतम्) प्रकाशम्। सारपदार्थम् (आ वहन्तु) आनयन्तु। अन्यद् गतम् ॥
१२ तेधराञ्चः प्र
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ते᳡ध॒राञ्चः॒ प्र प्ल॑वन्तां छि॒न्ना नौरि॑व॒ बन्ध॑नात्।
न साय॑कप्रणुत्तानां॒ पुन॑रस्ति नि॒वर्त॑नम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ते᳡ध॒राञ्चः॒ प्र प्ल॑वन्तां छि॒न्ना नौरि॑व॒ बन्ध॑नात्।
न साय॑कप्रणुत्तानां॒ पुन॑रस्ति नि॒वर्त॑नम् ॥
१२ तेधराञ्चः प्र ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Let them float away downward, like a boat severed from its mooring;
of them, thrust forth by missiles, there is no return again.
Notes
The verse is nearly identical with iii. 6. 7 above. ⌊Ppp. reads in c
sāyakaṣ pra-.⌋
Griffith
Let them drift downward like a boat torn from the rope that held it fast. There is no turning back for those whom our keen arrows have repelled.
पदपाठः
ते। अ॒ध॒राञ्चः॑। प्र। प्ल॒व॒न्ता॒म्। छि॒न्ना। नौःऽइ॑व। बन्ध॑नात्। न। साय॑कऽप्रनुत्तानाम्। पुनः॑। अ॒स्ति॒। नि॒ऽवर्त॑नम्। २.१२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- अनुष्टुप्
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (ते) वे (अधराञ्चः) अधोगतिवाले लोग (बन्धनात्) बन्धन से (छिन्ना) छूटी हुई (नौः इव) नाव के समान (प्र प्लवन्ताम्) बहते चले जावें। (सायकप्रणुत्तानाम्) तीर से ढकेले गये पदार्थों का (निवर्तनम्) लौटना (पुनः) फिर (न) नहीं (अस्ति) होता है ॥१२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य दृढ़ उपायों से विघ्नों को हटाते हैं, वे सहज में सदा निर्विघ्न रहते हैं ॥१२॥ यह मन्त्र कुछ भेद से आ चुका है-अ० ३।६।७ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १२−(सायकप्रणुत्तानाम्) बाणैः प्रेरितानाम्। अन्यद् व्याख्यातम् अ० ३।६।७ ॥
१३ अग्निर्यव इन्द्रो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
अ॒ग्निर्यव॒ इन्द्रो॒ यवः॒ सोमो॒ यवः॑।
य॑व॒यावा॑नो दे॒वा य॑वयन्त्वेनम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒ग्निर्यव॒ इन्द्रो॒ यवः॒ सोमो॒ यवः॑।
य॑व॒यावा॑नो दे॒वा य॑वयन्त्वेनम् ॥
१३ अग्निर्यव इन्द्रो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Agni [is] a repeller (? yava), Indra a repeller, Soma a
repeller; let the repelling (? yavayā́van) gods repel (yu) him.
Notes
⌊Prose.⌋ This translation is altogether questionable. Perhaps the verse
accompanies a ceremony in which barley (yáva) is used, a play on words
being intended between yáva ‘barley’ and the root yu ‘repel’;
yavayā́van would then be ‘going in barley.’ Ppp. has for second half
yavayanty amum amuṣyāyaṇam amuṣyāṣ putraṁ jīvalokaṁ mṛtalokaṁ katā
’mum. It is strange that the Anukr. does not note the paragraph as
dvyavasānā.
Griffith
Agni averts, Indra averts, and Soma: may the averting Gods avert this foeman.
पदपाठः
अ॒ग्निः। यवः॑। इन्द्रः॑। यवः॑। सोमः॑। यवः॑। य॒व॒ऽयावा॑नः। दे॒वाः। य॒व॒य॒न्तु॒। ए॒न॒म्। २.१३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- द्विपदार्च्यनुष्टुप्
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निः) ज्ञानवान् परमेश्वर (यवः) [अधर्म का] हटानेवाला, (इन्द्रः) परम ऐश्वर्यवाला जगदीश्वर (यवः) [दुष्कर्म] मिटानेवाला, (सोमः) सुख उत्पन्न करनेवाला ईश्वर (यवः) [सुख का] मिलानेवाला है। (यवयावानः) यवनों [धर्मनिन्दकों] के निन्दा करनेवाले (देवाः) विद्वान् लोग (एनम्) इस [परमात्मा] को (यवयन्तु) मिलें ॥१३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - विद्वान् लोग ईश्वरोक्त धर्म्मानुसार दुष्कर्मियों को दण्ड देकर परमेश्वर की आज्ञा में प्रवृत्त रहते हैं ॥१३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १३−(अग्निः) ज्ञानवान् परमेश्वरः (यवः) यु मिश्रणामिश्रणयोः-अप्। अधर्मस्य पृथक्कर्ता (इन्द्रः) परमेश्वरः (यवः) दुष्कर्मनाशकः (सोमः) सुखोत्पादकः (यवः) सुखसंयोजकः (यवयावानः) कनिन् युवृषितक्षिराजि०। उ० १।१५६। यव+यु निन्दने चुरादिः-कनिन्। यवानां यवनानां धर्मनिन्दकानां निन्दकः (देवाः) विद्वांसः (यवयन्तु) सांहितिको दीर्घः। मिश्रयन्तु। प्राप्नुवन्तु ॥
१४ असर्ववीरश्चरतु प्रणुत्तो
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अस॑र्ववीरश्चरतु॒ प्रणु॑त्तो॒ द्वेष्यो॑ मि॒त्राणां॑ परिव॒र्ग्यः१॒॑ स्वाना॑म्।
उ॒त पृ॑थि॒व्यामव॑ स्यन्ति वि॒द्युत॑ उ॒ग्रो वो॑ दे॒वः प्र मृ॑णत्स॒पत्ना॑न् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अस॑र्ववीरश्चरतु॒ प्रणु॑त्तो॒ द्वेष्यो॑ मि॒त्राणां॑ परिव॒र्ग्यः१॒॑ स्वाना॑म्।
उ॒त पृ॑थि॒व्यामव॑ स्यन्ति वि॒द्युत॑ उ॒ग्रो वो॑ दे॒वः प्र मृ॑णत्स॒पत्ना॑न् ॥
१४ असर्ववीरश्चरतु प्रणुत्तो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- With his heroes not safe ⌊á-sarvavīra⌋ let him go on, thrust
forth, to be hated of friends, to be avoided of his own kin; on earth
also stay (ava-sā) thunderbolts; may the formidable god massacre your
rivals.
Notes
The sense of c is obscure; vidyútas might also be object of the
verb: ’they let loose thunderbolts.’ Ppp. puts dveṣyas after
mitrāṇām in b. The Anukr. calls the verse a jagatī, although it
is a triṣṭubh with one jagatī-pāda (like 11). ⌊W. usually renders
sárvavīra by ‘with all [his, our, etc.] heroes.’⌋
Griffith
To be avoided by his friends, detested, repelled, with few men round him, let him wander. Yea, on the earth descend the lightning-flashes: may the strong God destroy your adversaries.
पदपाठः
अस॑र्वऽवीरः। च॒र॒तु॒। प्रऽनु॑त्तः। द्वेष्यः॑। मि॒त्राणा॑म्। प॒रि॒ऽव॒र्ग्यः᳡। स्वाना॑म्। उ॒त। पृ॒थि॒व्याम्। अव॑। य॒न्ति॒। वि॒ऽद्युतः॑। उ॒ग्रः। वः॒। दे॒वः। प्र। मृ॒ण॒त्। स॒ऽपत्ना॑न्। २.१४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- जगती
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (असर्ववीरः) सब वीरों से रहित, (प्रणुत्तः) बाहर निकाला गया, (मित्राणाम्) मित्रों और (स्वानाम्) जातियों का (परिवर्ग्यः) त्यागा हुआ (द्वेष्यः) शत्रु, (चरतु) फिरता रहे। (उत) और [जैसे] (पृथिव्याम्) पृथिवी पर (विद्युतः) बिजुलियाँ (अव स्यन्ति) गिरती हैं, [वैसे ही] (उग्रः) प्रबल (देवः) विजयी परमेश्वर (वः) तुम (सपत्नान्) शत्रुओं को (प्र मृणत्) नाश कर डाले ॥१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - धर्मात्मा विद्वान् लोग दुराचारियों को उनके मित्र आदिकों से पृथक् करके नष्ट कर देवें, जैसे बिजुली गिर कर पृथिवी पर पदार्थों को नष्ट कर देती है, यह परमेश्वर का नियम है ॥१४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १४−(असर्ववीरः) सर्ववीररहितः (चरतु) गच्छतु (प्रणुत्तः) बहिष्प्रेरितः (द्वेष्यः) शत्रुः (मित्राणाम्) (परिवर्ग्यः) परिवर्जनीयः। त्याजनीयः (स्वानाम्) ज्ञातीनाम् (उत) अपि च (पृथिव्याम्) (अव स्यन्ति) अधः पतन्ति (विद्युतः) अशनयः (उग्रः) प्रबलाः (वः) युष्मान् (देवः) विजिगीषुः परमेश्वरः (प्रमृणत्) सर्वथा मारयतु (सपत्नान्) शत्रून् ॥
१५ च्युता चेयम्
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च्यु॒ता चे॒यं बृ॑ह॒त्यच्यु॑ता च वि॒द्युद्बि॑भर्ति स्तनयि॒त्नूंश्च॒ सर्वा॑न्।
उ॒द्यन्ना॑दि॒त्यो द्रवि॑णेन॒ तेज॑सा नी॒चैः स॒पत्ना॑न्नुदतां मे॒ सह॑स्वान् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
च्यु॒ता चे॒यं बृ॑ह॒त्यच्यु॑ता च वि॒द्युद्बि॑भर्ति स्तनयि॒त्नूंश्च॒ सर्वा॑न्।
उ॒द्यन्ना॑दि॒त्यो द्रवि॑णेन॒ तेज॑सा नी॒चैः स॒पत्ना॑न्नुदतां मे॒ सह॑स्वान् ॥
१५ च्युता चेयम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- This great [earth], both stirred and unstirred, bears the
lightning and all the thunders; let the Āditya, arising with property,
with brilliancy, thrust downward my rivals, he the powerful one.
Notes
The first half-verse is wholly obscure, and the version given commits
the grammatical solecism of taking vidyút as neut. accus. But for the
last ca, vidyut might be taken as subject of the sentence. The verse
has a triṣṭubh-pāda (a), of which the Anukr. makes no account.
Griffith
This potent lightning nourishes things shaken, and things un- shaken yet, and all the thunders. May the Sun, rising with his wealth and splendour, drive in victorious might my foemen downward.
पदपाठः
च्यु॒ता। च॒। इ॒यम्। बृ॒ह॒ती। अच्यु॑ता। च॒। वि॒ऽद्युत्। बि॒भ॒र्ति॒। स्त॒न॒यि॒त्नून्। च॒। सर्वा॑न्। उ॒त्ऽयन्। आ॒दि॒त्यः। द्रवि॑णेन। तेज॑सा। नी॒चैः। स॒ऽपत्ना॑न्। नु॒द॒ता॒म्। मे॒। सह॑स्वान्। २.१५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- जगती
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (इयम्) यह (बृहती) बड़ी (विद्युत्) प्रकाशमान शक्ति [परमेश्वर] (च्युता) गिरे हुए [निर्बल] (च च) और (अच्युता) न गिरे हुए (प्रबल द्रव्यों) को (च) और (सर्वान्) सब (स्तनयित्नून्) शब्द करनेवालों को (बिभर्ति) धारण करता है। (उद्यन्) उदय होता हुआ (सहस्वान्) बलवान् (आदित्यः) प्रकाशमान जगदीश्वर (द्रविणेन) बल से और (तेजसा) तेज से (मे) मेरे (सपत्नान्) वैरियों को (नीचैः) नीचे (नुदताम्) ढकेल देवे ॥१५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सर्वपोषक, सर्वशक्तिमान्, परमेश्वर के नियम से पुरुषार्थी जन बल और प्रताप बढ़ाकर वैरियों का नाश करते हैं ॥१५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १५−(च्युता) च्युङ् गतौ-क्त। शेर्लोपः। च्युतानि अधोगतानि। निर्बलानि वस्तूनि (च) (इयम्) प्रत्यक्षा (बृहती) महती (अच्युता) अनधोगतानि। प्रबलानि द्रव्याणि (च) (विद्युत्) विविधं द्योतमाना शक्तिः। परमेश्वरः (बिभर्त्ति) धरति (स्तनयित्नून्) अ० १।१३।१। गर्जनशीलान् (च) (सर्वान्) (उद्यन्) उदयं गच्छन् (आदित्यः) अ० १।९।१। आदीप्यमानः परमेश्वरः (द्रविणेन) बलेन-निघ० २।९। (तेजसा) प्रतापेन (नीचैः) (सपत्नान्) (नुदताम्) प्रेरयतु (मे) मम (सहस्वान्) बलवान् ॥
१६ यत्ते काम
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यत्ते॑ काम॒ शर्म॑ त्रि॒वरू॑थमु॒द्भु ब्रह्म॒ वर्म॒ वित॑तमनतिव्या॒ध्यं᳡ कृ॒तम्।
तेन॑ स॒पत्ना॒न्परि॑ वृङ्ग्धि॒ ये मम॒ पर्ये॑नान्प्रा॒णः प॒शवो॒ जीव॑नं वृणक्तु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यत्ते॑ काम॒ शर्म॑ त्रि॒वरू॑थमु॒द्भु ब्रह्म॒ वर्म॒ वित॑तमनतिव्या॒ध्यं᳡ कृ॒तम्।
तेन॑ स॒पत्ना॒न्परि॑ वृङ्ग्धि॒ ये मम॒ पर्ये॑नान्प्रा॒णः प॒शवो॒ जीव॑नं वृणक्तु ॥
१६ यत्ते काम ...{Loading}...
Whitney
Translation
- What sufficient (udbhú) triply-guarding defense thou hast, O Kāma,
worship (bráhman) as extended protection (várman), made
unpierceable, with that do thou avoid them that are my rivals; let
breath, cattle, life avoid them.
Notes
The last half-verse is ⌊nearly⌋ identical with 5 c, d above, and O.
again reads eṇān in d. Ppp. puts the verse next before our 12. The
description of the meter by the Anukr. is unintelligible, since we have
(12 + 14: 12 + 14) 52 syllables, or an atijagatī; perhaps parājagatī
is a misreading for this.
Griffith
Thy firm and triply-barred protection, Kama! thy spell, made weapon-proof extended armour With that drive thou my foemen to a distance. May cattle, vital breath, and life forsake them.
पदपाठः
यत्। ते॒। का॒म॒। शर्म॑। त्रि॒ऽवरू॑थम्। उ॒त्ऽभु। ब्रह्म॑। वर्म॑। विऽत॑तम्। अ॒न॒ति॒ऽव्या॒ध्य᳡म्। कृ॒तम्। तेन॑। स॒ऽपत्ना॑न्। परि॑। वृ॒ङ्ग्धि॒। ये। मम॑। परि॑। ए॒ना॒न्। प्रा॒णः। प॒शवः॑। जीव॑नम्। वृ॒ण॒क्तु॒। २.१६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- चतुष्पदा शक्वरीगर्भा परा जगती
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (काम) हे कामनायोग्य [जगदीश्वर !] (यत्) जो (ते) तेरा (शर्म) सुखप्रद, (त्रिवरूथम्) तीन [शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक] रक्षावाला, (उद्भु) बलवान्, (ब्रह्म) वेद (विततम्) फैला हुआ, (अनतिव्याध्यम्) न कभी छेदने योग्य (वर्म) कवच (कृतम्) बना है। (तेन) उस [वेद] से (सपत्नान्) उन वैरियों को (परि वृङ्ग्धि) हटा दे। (ये) जो (मम) मेरे [शत्रु हैं], (एनान्) उन [शत्रुओं] को (प्राणः) प्राण, (पशवः) सब जीव और (जीवनम्) जीवनवृत्ति (परि वृणक्तु) छोड़ देवे ॥१६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर की आज्ञा मानकर शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करके सब शत्रुओं को निर्बल करें ॥१६॥ इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध कुछ भेद में म० ५ में आ चुका है ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १६−(यत्) (ते) तव (काम) (शर्म) सुखम्-निघ० ३।६। सुखकरम् (त्रिवरूथम्) अ० ८।५।२०। त्रीणि शारीरिकात्मिकसामाजिकानि वरूथानि रक्षणानि यस्मिन् तत्। (उद्भु) भू-डु। प्रभु। समर्थम् (ब्रह्म) वेदः (वर्म) कवचम् (विततम्) विस्तृतम् (अनतिव्याध्यम्) व्यध ताडने−ण्यत्। नैव छेदनीयम् (कृतम्) सम्पादितम् (तेन) ब्रह्मणा। अन्यत् पूर्ववत्-म० ५ ॥
१७ येन देवा
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येन॑ दे॒वा असु॑रा॒न्प्राणु॑दन्त॒ येनेन्द्रो॒ दस्यू॑नध॒मं तमो॑ नि॒नाय॑।
तेन॒ त्वं का॑म॒ मम॒ ये स॒पत्ना॒स्तान॒स्माल्लो॒कात्प्र णु॑दस्व दू॒रम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
येन॑ दे॒वा असु॑रा॒न्प्राणु॑दन्त॒ येनेन्द्रो॒ दस्यू॑नध॒मं तमो॑ नि॒नाय॑।
तेन॒ त्वं का॑म॒ मम॒ ये स॒पत्ना॒स्तान॒स्माल्लो॒कात्प्र णु॑दस्व दू॒रम् ॥
१७ येन देवा ...{Loading}...
Whitney
येन॑ दे॒वा असु॑रा॒न् प्राणु॑दन्त॒ येनेन्द्रो॒ दस्यू॑नध॒मं तमो॑ नि॒नाय॑ ।
तेन॒ त्वं का॑म॒ मम॒ ये स॒पत्ना॒स्तान॒स्माल्लो॒कात् प्र णु॑दस्व दू॒रम्॥१७॥
Griffith
Far from the world wherein we live, O Kama, drive thou my foemen with that selfsame weapon Wherewith the Gods repelled the fiends, and Indra cast down the Dasyus into deepest darkness.
पदपाठः
येन॑। दे॒वाः। असु॑रान्। प्र॒ऽअनु॑दन्त। येन॑। इन्द्रः॑। दस्यू॑न्। अ॒ध॒मम्। तमः॑। नि॒नाय॑। तेन॑। त्वम्। का॒म॒। मम॑। ये। स॒ऽपत्नाः॑। तान्। अ॒स्मात्। लो॒कात्। प्र। नु॒द॒स्व॒। दू॒रम्। २.१७।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- जगती
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (येन) जिस [उपाय] से (देवाः) विजयी लोगों ने (असुरान्) असुरों [विद्वानों के विरोधियों] को (प्राणुदन्त) निकाल दिया है, (येन) जिस [यत्न] से (इन्द्रः) महाप्रतापी पुरुष ने (दस्यून्) डाकुओं को (अधमम् तमः) नीचे अन्धकार में (निनाय) पहुँचाया था। (काम) हे कामनायोग्य [परमेश्वर] (त्वम्) तू (मम) मेरे (ये) जो (सपत्नाः) शत्रु हैं, (तेन) उसी [उपाय] से (तान्) उनको (अस्मात् लोकात्) इस स्थान से (दूरम्) दूर (प्र णुदस्व) निकाल दे ॥१७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि परमेश्वर के ज्ञान रखनेवाले पूर्वज विद्वानों और वीरों के समान उपाय करके दुराचारियों का नाश करें ॥१७॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १७−(येन) प्रयत्नेन (देवाः) विजिगीषवः (असुरान्) सुरविरोधिनो दुष्टान् (प्राणुदन्त) प्रेरितवन्तः (येन) (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् पुरुषः (दस्यून्) अ० २।१४।५। चोरादीन् (अधमम्) कुत्सितम् (तमः) अन्धकारम् (निनाय) प्रापितवान् (तेन) उपायेन (अस्मात्) दृश्यमानात् (लोकात्) स्थानात् (प्रणुदस्व) बहिष्कुरु। अन्यद् गतम् ॥
१८ यथा देवा
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यथा॑ दे॒वा असु॑रा॒न्प्राणु॑दन्त॒ यथेन्द्रो॒ दस्यू॑नध॒मं तमो॑ बबा॒धे।
तथा॒ त्वं का॑म॒ मम॒ ये स॒पत्ना॒स्तान॒स्माल्लो॒कात्प्र णु॑दस्व दू॒रम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यथा॑ दे॒वा असु॑रा॒न्प्राणु॑दन्त॒ यथेन्द्रो॒ दस्यू॑नध॒मं तमो॑ बबा॒धे।
तथा॒ त्वं का॑म॒ मम॒ ये स॒पत्ना॒स्तान॒स्माल्लो॒कात्प्र णु॑दस्व दू॒रम् ॥
१८ यथा देवा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- As the gods thrust forth the Asuras, as Indra drove (bādh) the
barbarians to lowest darkness, so do thou, O Kāma, thrust forth far from
this world those who are my rivals.
Notes
Ppp. has again tamo ‘pabādhe, but this time dūram. The “jagatī”
meter is like that of vs. 17.
Griffith
As Gods repelled the Asuras, and Indra down to the lowest darkness drove the demons, So, Kama, from this world, to distant places, drive thou the men who are mine adversaries.
पदपाठः
यथा॑। दे॒वाः। असु॑रान्। प्र॒ऽअनु॑दन्त। यथा॑। इन्द्रः॑। दस्यू॑न्। अ॒ध॒मम्। तमः॑। ब॒बा॒धे। तथा॑। त्वम्। का॒म॒। मम॑। ये। स॒ऽपत्नाः॑। तान्। अ॒स्मात्। लो॒कात्। प्र। नु॒द॒स्व॒। दू॒रम्। २.१८।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- जगती
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (देवाः) व्यवहारकुशल लोगों ने (असुरान्) असुरों [विद्वानों के विरोधियों] को (प्राणुदन्त) निकाल दिया है, (यथा) जैसे (इन्द्रः) महाप्रतापी पुरुष ने (दस्यून्) डाकुओं को (अधमम् तमः) नीचे अन्धकार में (बबाधे) रोका था। (काम) हे कामनायोग्य [परमेश्वर !] (त्वम्) तू (मम ये सपत्नाः) मेरे जो शत्रु हैं, (तथा) वैसे ही (तान्) उनको (अस्मात् लोकात्) इस स्थान से (दूरम्) दूर (प्र णुदस्व) निकाल दे ॥१८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य सर्वदा परमेश्वर का आश्रय लेकर यथावत् व्यवहारों को समझकर दुष्कर्मियों का नाश करें ॥१८॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १८−(यथा) येन प्रकारेण (देवाः) व्यवहारकुशलाः (बबाधे) बाधितवान्। निरुद्धवान् (तथा) तेन प्रकारेण। अन्यत् पूर्ववत्-म० ॥१७॥१८॥
१९ कामो जज्ञे
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कामो॑ जज्ञे प्रथ॒मो नैनं॑ दे॒वा आ॑पुः पि॒तरो॒ न मर्त्याः॑।
तत॒स्त्वम॑सि॒ ज्याया॑न्वि॒श्वहा॑ म॒हांस्तस्मै॑ ते काम॒ नम॒ इत्कृ॑णोमि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
कामो॑ जज्ञे प्रथ॒मो नैनं॑ दे॒वा आ॑पुः पि॒तरो॒ न मर्त्याः॑।
तत॒स्त्वम॑सि॒ ज्याया॑न्वि॒श्वहा॑ म॒हांस्तस्मै॑ ते काम॒ नम॒ इत्कृ॑णोमि ॥
१९ कामो जज्ञे ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Kāma was first born; not the gods, the Fathers, nor mortals attained
(āp) him; to them art thou superior (jyā́yāṅs), always great; to thee
as such, O Kāma, do I pay homage.
Notes
Ppp. reads in a, b prathamo nā ’nyat puro nāi ’naṁ devāsaṣ pitaro
no ’ta martyāḥ; and it combines in d namāi ’t. The verse (9 ⌊10?⌋
- 10: 12 + 11 = 42) is a queer “triṣṭubh.”
Griffith
First before all sprang Kama into being. Gods, Fathers, mortal men have never matched him. Stronger than these art thou, and great for ever. Kama, to thee, to thee I offer worship.
पदपाठः
कामः॑। ज॒ज्ञे॒। प्र॒थ॒मः। न। ए॒न॒म्। दे॒वाः। आ॒पुः॒। पि॒तरः॑। न। मर्त्याः॑। ततः॑। त्वम्। अ॒सि॒। ज्याया॑न्। वि॒श्वहा॑। म॒हान्। तस्मै॑। ते॒। का॒म॒। नमः॑। इत्। कृ॒णो॒मि॒। २.१९।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- त्रिष्टुप्
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (कामः) कामनायोग्य [परमेश्वर] (प्रथमः) पहिले ही पहिले [होकर] (जज्ञे) प्रकट हुआ, (एनम्) इसको (न) न तो (पितरः) पालनशील (देवाः) चलनेवाले लोकों [पृथिवी, सूर्य आदि] और (न) न (मर्त्याः) मनुष्यों ने (आपुः) पाया। (ततः) उससे (त्वम्) तू (ज्यायान्) अधिक बड़ा, (विश्वहा) सब प्रकार (महान्) महान् [पूजनीय] (असि) है, (तस्मै ते) उस तुझको (इत्) ही, (काम) हे कामनायोग्य [परमेश्वर !] (नमः) नमस्कार (कृणोमि) करता हूँ ॥१९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो परमेश्वर अनादि, अनुपम, सर्वशक्तिमान् है, उसी की प्रार्थना उपासना सब मनुष्य करें ॥१९॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १९−(कामः) कमनीयः परमेश्वरः (जज्ञे) प्रादुर्बभूव (प्रथमः) सृष्टेः प्राग् वर्तमानः (न) निषेधे (एनम्) परमेश्वरम् (देवाः) गतिमन्तो लोकाः पृथिवीसूर्यादयः (आपुः) प्राप्तवन्तः (पितरः) रक्षितारः (न) (मर्त्याः) मनुष्याः (ततः) तस्मात् कारणात् (त्वम्) (असि) (ज्यायान्) वृद्ध-ईयसुन्। वृद्धतरः (विश्वहा) विश्वधा। सर्वथा (महान्) पूजनीयः (तस्मै) तथाविधाय (ते) तुभ्यम् (काम) (नमः) सत्कारम् (इत्) एव (कृणोमि) करोमि ॥
२० यावती द्यावापृथिवी
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याव॑ती॒ द्यावा॑पृथि॒वी व॑रि॒म्णा याव॒दापः॑ सिष्य॒दुर्याव॑द॒ग्निः।
तत॒स्त्वम॑सि॒ ज्याया॑न्वि॒श्वहा॑ म॒हांस्तस्मै॑ ते काम॒ नम॒ इत्कृ॑णोमि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
याव॑ती॒ द्यावा॑पृथि॒वी व॑रि॒म्णा याव॒दापः॑ सिष्य॒दुर्याव॑द॒ग्निः।
तत॒स्त्वम॑सि॒ ज्याया॑न्वि॒श्वहा॑ म॒हांस्तस्मै॑ ते काम॒ नम॒ इत्कृ॑णोमि ॥
२० यावती द्यावापृथिवी ...{Loading}...
Whitney
Translation
- How great in width are heaven-and-earth; how far the waters flowed,
how far fire—to them art thou etc. etc.
Notes
With a is identical iv. 6. 2 a. Some saṁhitā-mss. read
sisyadúr in b (O.s.m.R.). ⌊I find no note of R.⌋ The meter is
described by the Anukr. in accordance with that of vs. 11.
Griffith
Wide as the space which heaven and earth encompass, far as the flow of waters, far as Agni, Stronger than these art thou, and great for ever. Kama, to thee, to thee I offer worship.
पदपाठः
याव॑ती॒ इति॑। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। व॒रि॒म्णा। याव॑त्। आपः॑। सि॒स्य॒दुः। याव॑त्। अ॒ग्निः। ततः॑। त्वम्। अ॒सि॒। ज्याया॑न्। वि॒श्वहा॑। म॒हान्। तस्मै॑। ते॒। का॒म॒। नमः॑। इत्। कृ॒णो॒मि॒। २.२०।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- त्रिष्टुप्
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यावती) जितने कुछ (द्यावापृथिवी) सूर्य और भूलोक (वरिम्णा) अपने फैलाव से हैं, (यावत्) जहाँ तक (आपः) जलधाराएँ (सिस्वदुः) बही हैं और (यावत्) जितना कुछ (अग्निः) अग्नि वा बिजुली है। (ततः) उससे (त्वम्) तू…. म० १९॥२०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सूर्य, पृथिवी आदि पदार्थों का उत्पन्न करनेवाला और जाननेवाला परमेश्वर ही है ॥२०॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २०−(यावती) यावत्यौ। यत्प्रमाणे (द्यावापृथिवी) सूर्यभूलोकौ (वरिम्णा) अ० ४।६।२। विस्तारेण (यावत्) यत्प्रमाणम् (आपः) जलधाराः (सिस्यदुः) स्यन्दू प्रस्रवणे-लिटि छान्दसं रूपम्। सस्यन्दिरे (यावत्) (अग्निः) पावकः। विद्युत्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
२१ यावतीर्दिशः प्रदिशो
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याव॑ती॒र्दिशः॑ प्र॒दिशो॒ विषू॑ची॒र्याव॑ती॒राशा॑ अभि॒चक्ष॑णा दि॒वः।
तत॒स्त्वम॑सि॒ ज्याया॑न्वि॒श्वहा॑ म॒हांस्तस्मै॑ ते काम॒ नम॒ इत्कृ॑णोमि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
याव॑ती॒र्दिशः॑ प्र॒दिशो॒ विषू॑ची॒र्याव॑ती॒राशा॑ अभि॒चक्ष॑णा दि॒वः।
तत॒स्त्वम॑सि॒ ज्याया॑न्वि॒श्वहा॑ म॒हांस्तस्मै॑ ते काम॒ नम॒ इत्कृ॑णोमि ॥
२१ यावतीर्दिशः प्रदिशो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- How great are the divergent (víṣvañc) quarters [and] directions;
how great the regions (ā́śā), on-lookers of the sky—to them art thou
etc. etc.
Notes
The verse lacks two syllables of being a real jagatī.
Griffith
Vast as the quarters of the sky and regions that lie between them spread in all directions, vast as celestial tracts and views of heaven, Stronger than these art thou, and great for ever. Kama, to thee, to thee I offer worship.
पदपाठः
याव॑तीः। दिशः॑। प्र॒ऽदिशः॑। विषू॑चीः। याव॑तीः। आशाः॑। अ॒भि॒ऽचक्ष॑णाः। दि॒वः। ततः॑। त्वम्। अ॒सि॒। ज्याया॑न्। वि॒श्वहा॑। म॒हान्। तस्मै॑। ते॒। का॒म॒। नमः॑। इत्। कृ॒णो॒मि॒। २.२१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- जगती
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यावतीः) जितनी बड़ी (विषूचीः) फैली हुई (दिशः) दिशाएँ और (प्रदिशः) मध्य दिशाएँ, और (यावतीः) जितनी बड़ी (आशाः) सब भूमी और (दिवः) आकाश के (अभिचक्षणाः) दृश्य हैं। (ततः) उस से (त्वम्) तू… म० १९॥२१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परमेश्वर सब दिशाओं और सब दृश्यों की सीमा से बाहिर है ॥२१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २१−(यावतीः) यत्प्रमाणाः (दिशः) पूर्वादयः (प्रदिशः) अन्तर्दिशाः (विषूचीः) अ० १।१९।१। सर्वत्रव्यापिकाः (आशाः) आ+अशू व्याप्तौ-अच्। दिशाः। तत्रत्या देशाः (अभिचक्षणाः) चक्षिङ् दर्शने-ल्यु। दृश्यानि। अन्यत् पूर्ववत् ॥
२२ यावतीर्भृङ्गा जत्वः
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याव॑ती॒र्भृङ्गा॑ ज॒त्वः᳡ कु॒रूर॑वो॒ याव॑ती॒र्वघा॑ वृक्षस॒र्प्यो᳡ बभू॒वुः।
तत॒स्त्वम॑सि॒ ज्याया॑न्वि॒श्वहा॑ म॒हांस्तस्मै॑ ते काम॒ नम॒ इत्कृ॑णोमि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
याव॑ती॒र्भृङ्गा॑ ज॒त्वः᳡ कु॒रूर॑वो॒ याव॑ती॒र्वघा॑ वृक्षस॒र्प्यो᳡ बभू॒वुः।
तत॒स्त्वम॑सि॒ ज्याया॑न्वि॒श्वहा॑ म॒हांस्तस्मै॑ ते काम॒ नम॒ इत्कृ॑णोमि ॥
२२ यावतीर्भृङ्गा जत्वः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- How many the humble-bees (bhṛ́n̄ga), the bats, the kurū́nus; how
many have been the vághās, the tree-creepers—to them art thou etc.
etc.
Notes
The verse is a jagatī in number of syllables (12 + 13: 12 + 11 = 48).
Bp. accents jatváḥ in a.
Griffith
Many as are the bees, and bats, and reptiles, and female serpents of the trees, and beetles, Stronger art thou than these, and great for ever. Kama, to thee, to thee I offer worship.
पदपाठः
याव॑तीः। भृङ्गाः॑। ज॒त्वः᳡। कु॒रूर॑वः। याव॑तीः। वघाः॑। वृ॒क्ष॒ऽस॒र्प्यः᳡। ब॒भू॒वुः। ततः॑। त्वम्। अ॒सि॒। ज्याया॑न्। वि॒श्वहा॑। म॒हान्। तस्मै॑। ते॒। का॒म॒। नमः॑। इत्। कृ॒णो॒मि॒। २.२२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- जगती
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यावतीः) जितनी (कुरूरवः) कुत्सित ध्वनिवाली (भृङ्गाः) भ्रमरी आदि और (जत्वः) चिमगादर आदि और (यावतीः) जितनी (वघाः) टिड्डी आदि और (वृक्षसर्प्यः) वृक्षों पर रेंगनेवाली [कीटादि पङ्कियाँ] (बभूवुः) हुई हैं (ततः) उस से (त्वम्) तू… म० १९॥२२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वह परमात्मा छोटे-छोटे जीवों की पहुँच से भी बाहर है ॥२२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २२−(भृङ्गाः) भृञः किन्नुट् च। उ० १।१२५। डुभृञ् भरणे-गन्, कित् नुट् च। भ्रमर्य्यः (जत्वः) फलिपाटिनमि०। उ० १।१८। जनी प्रादुर्भावे-उ, नस्य तः। जतुकाः। निशाचरपक्षिविशेषाः (कुरूरवः) रूशातिभ्यां क्रुन्। उ० ४।१०३। कु+रु शब्दे−क्रुन्, छान्दसो दीर्घः। कुत्सितध्वनयः (वघाः) अ० ६।५०।३। अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। अव+हन-हिंसागत्योः-ड, टाप्। वष्टि भागुरिरल्लोपम्-अवशब्दस्य अलोपः। अवहननशीलाः। कीटादयः (वृक्षसर्प्यः) वृक्षेषु सर्पणशीला जन्तुपङ्क्त्यः (बभूवुः) अन्यत् पूर्ववत् ॥
२३ ज्यायान्निमिषतोसि तिष्ठतो
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ज्याया॑न्निमि॒षतो᳡सि॒ तिष्ठ॑तो॒ ज्याया॑न्त्समु॒द्राद॑सि काम मन्यो।
तत॒स्त्वम॑सि॒ ज्याया॑न्वि॒श्वहा॑ म॒हांस्तस्मै॑ ते काम॒ नम॒ इत्कृ॑णोमि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
ज्याया॑न्निमि॒षतो᳡सि॒ तिष्ठ॑तो॒ ज्याया॑न्त्समु॒द्राद॑सि काम मन्यो।
तत॒स्त्वम॑सि॒ ज्याया॑न्वि॒श्वहा॑ म॒हांस्तस्मै॑ ते काम॒ नम॒ इत्कृ॑णोमि ॥
२३ ज्यायान्निमिषतोसि तिष्ठतो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Superior art thou to him that winks, that stands; superior to the
ocean art thou, O Kāma, fury—to them art thou etc. etc.
Notes
Griffith
Stronger art thou than aught that stands or twinkles, stronger art thou than ocean, Kama! Manyu! Stronger than these art thou, and great for ever. Kama, to thee, to thee I offer worship.
पदपाठः
ज्याया॑न्। नि॒ऽमि॒ष॒तः। अ॒सि॒। तिष्ठ॑तः। ज्याया॑न्। स॒मु॒द्रात्। अ॒सि॒। का॒म॒। म॒न्यो॒ इति॑। ततः॑। त्वम्। अ॒सि॒। ज्याया॑न्। वि॒श्वहा॑। म॒हान्। तस्मै॑। ते॒। का॒म॒। नमः॑। इत्। कृ॒णो॒मि॒। २.२३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- त्रिष्टुप्
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (काम) हे कामनायोग्य ! (मन्यो) हे पूजनीय [परमेश्वर !] तू (निमिषतः) पलक मारनेवाले [मनुष्य, पशु, पक्षी आदि] से और (तिष्ठतः) खड़े रहनेवाले [वृक्ष पर्वत आदि] से (ज्यायान्) अधिक बड़ा (असि) है और (समुद्रात्) समुद्र [आकाश वा जलनिधि] से (ज्यायान्) अधिक बड़ा (असि) है। (ततः) उससे (त्वम्) तू… १९॥२३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - वह जगदीश्वर मनुष्य, पर्वत, आकाश आदि की भी सीमा में नहीं आता है ॥२३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २३−(निमिषतः) मिष स्पर्धायाम्-शतृ। चक्षुर्मुद्रणशीलात्। मनुष्यपशुपक्षिसकाशात् (असि) (तिष्ठतः) स्थितिशीलात्। वृक्षपर्वतादिसकाशात् (समुद्रात्) अन्तरिक्षात्-निघ० १।३। जलनिधेर्वा (असि) (काम) (मन्यो) यजिमनिशुन्धि०। उ० ३।२०। मन पूजायाम्, ज्ञाने गर्वे च-युच्, अनादेशो न। हे पूजनीय परमेश्वर। अन्यत् पूर्ववत् ॥
२४ न वै
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न वै वात॑श्च॒न काम॑माप्नोति॒ नाग्निः सूर्यो॒ नोत च॒न्द्रमाः॑।
तत॒स्त्वम॑सि॒ ज्याया॑न्वि॒श्वहा॑ म॒हांस्तस्मै॑ ते काम॒ नम॒ इत्कृ॑णोमि ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
न वै वात॑श्च॒न काम॑माप्नोति॒ नाग्निः सूर्यो॒ नोत च॒न्द्रमाः॑।
तत॒स्त्वम॑सि॒ ज्याया॑न्वि॒श्वहा॑ म॒हांस्तस्मै॑ ते काम॒ नम॒ इत्कृ॑णोमि ॥
२४ न वै ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Verily no wind soever attains (āp) Kāma, not fire, sun, also not
moon; to them art thou etc. etc.
Notes
Ppp. puts this verse before our 20, and reads for c, d na vāpaś
carta kāmam āpur nā ’horātrāṇi nihatāni yaṅtī na vāi puṇyajāś
⌊intending puṇyajanāś?⌋ cana kāmam āpur na gandharvāpsaraso na
sarpāḥ. The Anukr. accounts the verse simply a triṣṭubh ⌊perhaps
counting b as 10 and balancing it with the 12 of c⌋.
Griffith
Not even Vata is the peer of Kama, not Agni, Chandramas the Moon, nor Surya. Stronger than these art thou, and great for ever. Kama, to thee, to thee I offer worship.
पदपाठः
न। वै। वातः॑। च॒न। काम॑म्। आ॒प्नो॒ति॒। न। अ॒ग्निः। सूर्यः॑। न। उ॒त। च॒न्द्रमाः॑। ततः॑। त्वम्। अ॒सि॒। ज्याया॑न्। वि॒श्वहा॑। म॒हान्। तस्मै॑। ते॒। का॒म॒। नमः॑। इत्। कृ॒णो॒मि॒। २.२४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- त्रिष्टुप्
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (न वै चन) न तो कोई (वातः) पवन (कामम्) कामनायोग्य [परमेश्वर] को (आप्नोति) पाता है, (न) न (अग्निः) अग्नि और (सूर्य्यः) सूर्य (उत) और (न) (चन्द्रमाः) चन्द्रमा। (ततः) उस से (त्वम्) तू (ज्यायान्) अधिक बड़ा (विश्वहा) सब प्रकार (महान्) महान् [पूजनीय] (असि) है, (तस्मै ते) उस तुझको (इत्) ही, (काम) हे कामनायोग्य [परमेश्वर !] (नमः) नमस्कार (कृणोमि) करता हूँ ॥२४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - उस परमात्मा को वायु, अग्नि, सूर्य आदि नहीं पहुँच सकते हैं, वह सबसे बड़ा है ॥२४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २४−(न) निषेधे (वै) एव (वातः) पवनः (चन) कश्चिदपि (कामम्) कमनीयं परमेश्वरम् (आप्नोति) प्राप्नोति (न) (अग्निः) (सूर्यः) (न) (उत) अपि (चन्द्रमाः) चन्द्रः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
२५ यास्ते शिवास्तन्वः
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यास्ते॑ शि॒वास्त॒न्वः᳡ काम भ॒द्रा याभिः॑ स॒त्यं भव॑ति॒ यद्वृ॑णी॒षे।
ताभि॒ष्ट्वम॒स्माँ अ॑भि॒संवि॑शस्वा॒न्यत्र॑ पा॒पीरप॑ वेशया॒ धियः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यास्ते॑ शि॒वास्त॒न्वः᳡ काम भ॒द्रा याभिः॑ स॒त्यं भव॑ति॒ यद्वृ॑णी॒षे।
ताभि॒ष्ट्वम॒स्माँ अ॑भि॒संवि॑शस्वा॒न्यत्र॑ पा॒पीरप॑ वेशया॒ धियः॑ ॥
२५ यास्ते शिवास्तन्वः ...{Loading}...
Whitney
Translation
- What propitious excellent bodies thou hast, O Kāma, with which what
thou choosest becometh real, with them do thou enter wholly into us;
make evil devices (dhī́) enter away elsewhere.
Notes
The combination tā́bhiṣ ṭvám is an example under Prāt. ii. 84, and is
quoted in the commentary there. Ppp. reads vṛṇīte at end of b,
upa- for abhi- in c, and upa for apa in d. The Anukr.
pays no heed to the extra syllable in d. The verse is quoted in
Kāuś. 24. 29 in the āgrahāyaṇī ceremony, to accompany the act of lying
down (apparently merely on account of the occurrence of -saṁ-viś in
c).
⌊The quoted Anukr. here says kāmasūktaḥ.⌋
⌊Here ends the first anuvāka, with 2 hymns and 49 verses.⌋
Griffith
Thy lovely and auspicious forms, O Kama, whereby the thing thou wilt becometh real, With these come thou and make thy home among us, and make malignant thoughts inhabit elsewhere.
पदपाठः
याः। ते॒। शि॒वाः। त॒न्वः᳡। का॒म॒। भ॒द्राः। याभिः॑। स॒त्यम्। भव॑ति। यत्। वृ॒णी॒षे। ताभिः॑। त्वम्। अ॒स्मान्। अ॒भि॒ऽसंवि॑शस्व। अ॒न्यत्र॑। पा॒पीः। अप॑। वे॒श॒य॒। धियः॑। । २.२५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- कामः
- अथर्वा
- त्रिष्टुप्
- काम सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (काम) हे कामनायोग्य [परमेश्वर !] (ते) तेरी (याः) जो (शिवाः) मङ्गलवर्ती और (भद्राः) कल्याणी (तन्वः) उपकारशक्तियाँ हैं, (याभिः) जिनसे (सत्यम्) वह सत्य (भवति) होता है (यत्) जो कुछ (वृणीषे) तू चाहता है। (ताभिः) उन [उपकारशक्तियों] से (त्वम्) तू (अस्मान्) हम लोगों में (अभिसंविशस्व) प्रवेश करता रहे, (अन्यत्र) दूसरों [पापियों] में (पापीः धियः) पापबुद्धियों को (अप वेशय) प्रवेश कर दे ॥२५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - परम उपकारी परमेश्वर अपने न्यायसामर्थ्य से धर्म्मात्माओं को पुरुषार्थ देता और दुष्टों को उनकी कुबुद्धि के कारण दण्ड देता है ॥२५॥ इति प्रथमोऽनुवाकः ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २५−(याः) (ते) तव (शिवाः) मङ्गलवत्यः (तन्वः) भृमृशीङ्०। उ० १।७। तनु श्रद्धोपकरणयोः, विस्तारे च-उ प्रत्ययः, स्त्रियाम्-ऊङ्। उपकारशक्तयः (काम) हे कमनीयपरमेश्वर (भद्राः) कल्याण्यः (याभिः) उपकारशक्तिभिः (सत्यम्) यथार्थम् (भवति) (यत्) यत्किञ्चित् (वृणीषे) इच्छसि (ताभिः) तनूभिः (त्वम्) (अस्मान्) धार्मिकान् (अभिसंविशस्व) सर्वतः प्रविश (अन्यत्र) धर्मात्मभिर्भिन्नेषु (पापीः) नरकहेतुकाः (अपवेशय) प्रवेशय (धियः) बुद्धीः ॥