११२ पापनाशनम् ...{Loading}...
Whitney subject
112 (117). For release from guilt and distress.
VH anukramaṇī
पापनाशनम्।
१-२ वरुणः। आपः, वरुणश्च। अनुष्टुप्, १ भुरिक्।
Whitney anukramaṇī
[Varuṇa.—dvyṛcam. mantroktābdāivatam. ānuṣṭubham: 1. bhurij.]
Whitney
Comment
Wanting in Pāipp. Used in Kāuś. (32.3) in a remedial rite, with vii. 29 etc.: see under 29; it is also reckoned to the aṅholin̄ga gaṇa (note to 32. 27). The comm. regards it as quoted by Kāuś. (78. 10); but doubtless the verse there intended is the equivalent xiv. 2. 45.
Translations
Translated: Henry, 44, 122; Griffith, i. 382.
०१ शुम्भनी द्यावापृथिवी
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
शुम्भ॑नी॒ द्यावा॑पृथि॒वी अन्ति॑सुम्ने॒ महि॑व्रते।
आपः॑ स॒प्त सु॑स्रुवुर्दे॒वीस्ता नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
शुम्भ॑नी॒ द्यावा॑पृथि॒वी अन्ति॑सुम्ने॒ महि॑व्रते।
आपः॑ स॒प्त सु॑स्रुवुर्दे॒वीस्ता नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥
०१ शुम्भनी द्यावापृथिवी ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Beautiful (śúmbhanī) [are] heaven and earth, pleasant near by, of
great vows; seven divine waters have flowed; let them free us from
distress.
Notes
The epithets in the first half-verse are found only here,* and are
obscure; for ántisumne the comm. substitutes antaḥsvapne;
śúmbhanī† he renders by śobhākāriṇyāu, and mahivrate by mahat
karma yayoḥ. Henry would rectify the meter of c by reading ā́ for
ā́pas. The verse is repeated below as xiv. 2. 45. *⌊Máhivrata occurs
elsewhere.⌋ †⌊BR. conjecture śúndhanī: cf. note to vi. 115. 3.⌋
Griffith
Radiant with light are Heaven and Earth, whose grace is nigh, whose sway is vast. Seven Goddesses have flowed to us: may they deliver us from woe;
पदपाठः
शुम्भ॑नी॒ इति॑। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। अन्ति॑सुम्ने॒ इत्यन्ति॑ऽसुम्ने। महि॑व्रते॒ इति॑ महि॑ऽव्रते। आपः॑। स॒प्त। सु॒स्रु॒वुः॒। दे॒वीः। ताः। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु॒। अंह॑सः। ११७.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आपः, वरुणः
- वरुणः
- भुरिगनुष्टुप्
- पापनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
इन्द्रियों के जय का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (शुम्भनी) शोभायमान (द्यावपृथिवी) सूर्य और पृथिवी लोक (अन्तिसुम्ने) [अपनी] गतियों से सुख देनेवाले और (महिव्रते) बड़े व्रत [नियम] वाले हैं। (देवीः) उत्तम गुणवाली (सप्त) सात (आपः) व्यापनशील इन्द्रियाँ [दो कान, दो नथने, दो आँखें और एक मुख] (सुस्रुवुः) [हमें] प्राप्त हुई हैं, (ताः) वे (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (मुञ्चन्तु) छुड़ावें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जैसे सूर्य और पृथिवी लोक ईश्वरनियम से अपनी-अपनी गति पर चल कर वृष्टि अन्न आदि से उपकार करते हैं, वैसे ही मनुष्य इन्द्रियों को नियम में रखकर अपराधों से बचें ॥१॥ (सप्त आपः) पदों का मिलान करो (सप्त सिन्धवः) पदों से-अ० ४।६।२ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(शुम्भनी) शुम्भ शोभायाम्-ल्युट्। शुम्भन्यौ शोभायमाने (द्यावापृथिवी) सूर्यभूलोकौ (अन्तिसुम्ने) वसेस्तिः। उ० ४।१८०। अम गतौ−ति। सुम्नं सुखम्-निघ० ३।६। स्वगतिभिः सुखकारिण्यौ (महिव्रते) अत्यन्तनियमयुक्ते (आपः) व्यापनशीलानीन्द्रियाणि। शीर्षण्यानि कर्णनासिकाचक्षुर्द्वयमुखानि। सिन्धवः-अ० ४।६।२। (सप्त) अ० ४।६।२। सप्तसंख्याकाः (सुस्रुवुः) स्रु गतौ-लिट्। अस्मान् प्रापुः (देवीः) दिव्यगुणाः (ताः) आपः (नः) अस्मान् (मुञ्चन्तु) मोचयन्तु (अंहसः) कष्टात् ॥
०२ मुञ्चन्तु मा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
मु॒ञ्चन्तु॑ मा शप॒थ्या॒३॒॑दथो॑ वरु॒ण्या᳡दु॒त।
अथो॑ य॒मस्य॒ पड्वी॑शा॒द्विश्व॑स्माद्देवकिल्बि॒षात् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
मु॒ञ्चन्तु॑ मा शप॒थ्या॒३॒॑दथो॑ वरु॒ण्या᳡दु॒त।
अथो॑ य॒मस्य॒ पड्वी॑शा॒द्विश्व॑स्माद्देवकिल्बि॒षात् ॥
०२ मुञ्चन्तु मा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Let them free me from that which comes from a curse, then also from
that which is of Varuṇa, then from Yama’s fetter, from all offense
against the gods.
Notes
This verse is a repetition of vi. 96. 2.
Griffith
Release me from the curse’s bond and plague that comes from Varuna; Free me from Yama’s fetter and from every sin against the Gods.
पदपाठः
मु॒ञ्चन्तु॑। मा॒। श॒प॒थ्या᳡त्। अथो॒ इति॑। व॒रु॒ण्या᳡त्। उ॒त। अथो॒ इति॑। य॒मस्य॑। पड्वी॑शात्। विश्व॑स्मात्। दे॒व॒ऽकि॒ल्बि॒षात्। ११७.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- आपः, वरुणः
- वरुणः
- अनुष्टुप्
- पापनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
इन्द्रियों के जय का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - वे [व्यापनशील इन्द्रियाँ-म० १] (मा) मुझको (शपथ्यात्) शपथ सम्बन्धी (अथो) और (वरुण्यात्) श्रेष्ठों में हुए [अपराध] से (अथो) और (यमस्य) न्यायकारी राजा के (पड्वीशात्) बेड़ी डालने से (उत) और (विश्वस्मात्) सब (देवकिल्बिषात्) परमेश्वर के प्रति अपराध से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रमाद छोड़कर इन्द्रियों को जीतकर सब प्रकार के दोषों से बचें ॥२॥ यह मन्त्र आ चुका है। अ० ६।९६।२ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(मुञ्चन्तु) मोचयन्तु (ताः) आपः-म० १। (देवकिल्बिषात्) परमेश्वरं प्रति दोषात्। अन्यद् व्याख्यातम्-अ० ६।९६।२ ॥