०९७ यज्ञः

०९७ यज्ञः ...{Loading}...

Whitney subject

97 (102). Accompanying an offering.

VH anukramaṇī

यज्ञः
१-५ अथर्वा। इन्द्राग्नी।त्रिष्टुप्, ५ त्रिपदार्षी भुरिग्गायत्री, ६ त्रिपदा प्राजापत्या बृहती,
७ त्रिपदा साम्नी भुरिग्जगती, ८ उपरिष्टाद्बृहती।

Whitney anukramaṇī

[Atharvan (yajñasampūrṇakāmaḥ*).—aṣṭarcam. mantroktāindrāgnam. trāiṣṭubham: 5. 3-p. ārcī bhurig gāyatrī; 6. 3-p. prājāpatyā bṛhatī; 7. 3-p. sāmnī bhurig jagatī; 8. upariṣṭād bṛhatī.]

Whitney

Comment

⌊Partly prose, 5-8.⌋ Found also in Pāipp. xx. Accompanies in Kāuś. (6. 3), in the parvan sacrifice, the offering of the so-called saṁsthitahomas; vs. 8 is then (6. 4) specified, with the direction ity uttamaṁ caturgṛhītena. Verse 2 is further found in the upanayana ceremony (55. 20), with vi. 53. 3, accompanying the release of a cow (the comm. says, with different reading and division, accompanying a contemplation of the water-pot). In Vāit. (4. 13), vss. 3-8 go with final offerings in the parvan sacrifice. ⌊The decad division cuts the hymn between vss. 2 and 3: cf. p. 389.⌋ *⌊The text reads anena yajñasampūrṇekāmo yajñe patiin iṣṭvā ’prārthayat!⌋

Translations

Translated: Ludwig, p. 429; Henry, 39, 111; Griffith, i. 376.

०१ यदद्य त्वा

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यद॒द्य त्वा॑ प्रय॒ति य॒ज्ञे अ॒स्मिन्होत॑श्चिकित्व॒न्नवृ॑णीमही॒ह।
ध्रु॒वम॑यो ध्रु॒वमु॒ता श॑विष्ठैप्रवि॒द्वान्य॒ज्ञमुप॑ याहि॒ सोम॑म् ॥

०१ यदद्य त्वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Since today, as this sacrifice goes forward, we chose thee here, O
    knowing hótar, mayest thou go fixedly, and, O mightiest one, do thou,
    foreknowing, go unto the fixed sacrifice, the soma.
Notes

The translation follows our text, but this is, as the parallel texts
plainly show, much corrupted in c. The verse is RV. iii. 29. 16,
found also in VS. (viii. 20), TS. (i. 4. 44²), MS. (i. 3. 38). In a,
VS. begins vayáṁ hí tvā; in b, RV. reads cikitvo ‘vṛṇ-, while
the other texts have ágne hótāram ávṛṇ-. In c, RV. reads ayās
and utā́ ’śamiṣṭhās; VS. has the same, and also ṛ́dhak both times for
dhruvám; TS.MS. have ṛ́dhak, but ayāṭ between, and M.S. -miṣṭa,
while TS. has -miṣṭhās. In d, RV. begins prajānán vidvā́ṅ úp-,
VS.TS. begin prajānán yaj-, and have vidvā́n (for sómam) at the
end; and MS. reads, for d, vidvā́n prajānánn úpa yāhi yajñám. The
comm. apparently has ayas in c, but he explains it as = ayākṣīs
= yaja (quoting the TS. version of the pāda), as if it were ayās;
certainly, when it is reduced to ayas, all recognition of its
connection with yaj must be lost. The comm. also reads utā
’śamiṣṭhās
, with the other texts. Ppp. has ayas in c, but
otherwise agrees with RV.

Griffith

As we have here elected thee, skilled Hotar! to-day as this our sacrifice proceedeth, Come to the firm place, mightiest! yea, come firmly. Knowing the sacrifice, approach the Soma.

पदपाठः

यत्। अ॒द्य। त्वा॒। प्र॒ऽय॒ति। य॒ज्ञे। अ॒स्मिन्। होतः॑। चि॒कि॒त्व॒न्। अवृ॑णीमहि। इ॒ह। ध्रु॒वम्। अ॒यः॒। ध्रु॒वम्। उ॒त। श॒वि॒ष्ठ॒। प्र॒ऽवि॒द्वान्। य॒ज्ञम्। उप॑। या॒हि॒। सोम॑म्। १०२.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्राग्नी
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • यज्ञ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्य धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जिस लिये कि (अद्य) आज (त्वा) तुझको (अस्मिन्) इस (प्रयति) प्रयत्नसाध्य (यज्ञे) संगतियोग्य व्यवहार में, (चिकित्वन्) हे ज्ञानवान् ! (होतः) हे दानी पुरुष ! (इह) यहाँ पर (अवृणीमहि) हमने चुना है [वर्णी किया है]। (शविष्ठ) हे महाबली ! तू (ध्रुवम्) दृढ़ता से (उत) और भी (ध्रुवम्) दृढ़ता से (अयः) आ, (यज्ञम्) पूजनीय व्यवहार को (प्रविद्वान्) पहिले से जाननेवाला तू (सोमम्) ऐश्वर्य को (उप) समीप से (याहि) प्राप्त कर ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रयत्नपूर्वक विद्या और बल प्राप्त करके ऐश्वर्य बढ़ावें ॥१॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में−३।२९।१६। और यजुर्वेद−८।२० ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(यत्) यतः (अद्य) वर्तमाने दिने (त्वा) त्वाम् (प्रयति) यती प्रयत्ने-क्विप्, यद्वा इण् गतौ-शतृ। प्रयत्नसाध्ये। प्रवर्तमाने (यज्ञे) संगन्तव्ये व्यवहारे (अस्मिन्) (होतः) दातः (चिकित्वन्) अ० ५।१˜२।१। हे ज्ञानवन् (अवृणीमहि) वृञ् वरणे-लङ्। वयं वृतवन्तः। स्वीकृतवन्तः (ध्रुवम्) दृढत्वेन (अयः) अय गतौ-लेट्, परस्मैपदम्। आगच्छेः (ध्रुवम्) निश्चलं यथा तथा (उत) अपि (शविष्ठ) अ० ७।२५।१। हे बलवत्तम (प्रविद्वान्) अग्रे जानन् (यज्ञम्) पूजनीयं व्यवहारम् (उप) समीपम् (याहि) प्राप्नुहि (सोमम्) ऐश्वर्यम् ॥

०२ समिन्द्र नो

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समि॑न्द्र नो॒ मन॑सा नेष॒ गोभिः॒ सं सू॒रिभि॑र्हरिव॒न्त्सं स्व॒स्त्या।
सं ब्रह्म॑णा दे॒वहि॑तं॒ यदस्ति॒ सं दे॒वानां॑ सुम॒तौ य॒ज्ञिया॑नाम् ॥

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Whitney
Translation
  1. Lead us together, O Indra, with mind, with kine, together with
    patrons, thou of the bay horses, together with well-being, together with
    what of the prayers (bráhman) is pleasing (-hitá) to the gods,
    together with the favor of the worshipful gods.
Notes

The verse is RV. v. 42. 4, and also occurs in VS. (viii. 15), TS. (i. 4.
44¹), TB. (ii. 8. 2⁶), and MS. (i. 3. 38). All save MS. read ṇo after
indra in a (also the comm., and one of SPP’s mss.), and all (also
Ppp.) neṣi for neṣa; in b, RV.MS. (also the comm.) have
harivas, the others maghavan instead, and RV. at end svastí; in
c, all (with Ppp.) bráhmaṇā, and all save RV. devákṛtam (so Ppp.
also) after it; in d, RV.TS.TB. (also Ppp.) have the more proper
snmatyā́ (-tāú involves an anacoluthon which is disregarded in the
translation). SPP. follows the comm. and a single one of his mss. in
reading (with the other texts) bráhmaṇā in c.

Griffith

With kine connect us, and with spirit, Indra! Lord of Bay Steeds, with princes and with favour, With the God-destined portion of the Brahmans, and the good-will of Gods who merit worship.

पदपाठः

सम्। इ॒न्द्र॒। नः॒। मन॑सा। ने॒ष॒। गोभिः॑। सम्। सू॒रिऽभिः॑। ह॒रि॒ऽव॒न्। सम्। स्व॒स्त्या। सम्। ब्रह्म॑णा। दे॒वऽहि॑तम्। यत्। अस्ति॑। सम्। दे॒वाना॑म्। सु॒ऽम॒तौ। य॒ज्ञिया॑नाम्। १०२.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्राग्नी
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • यज्ञ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्य धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे बड़े ऐश्वर्यवाले राजन् ! (नः) हमें (मनसा) विज्ञान के साथ और (गोभिः) इन्द्रियों वा वाणियों के साथ (सम्) ठीक-ठीक, (हरिवन्) हे श्रेष्ठ मनुष्योंवाले ! (सूरिभिः) विद्वानों के साथ (सम्) ठीक-ठीक, (स्वस्त्या) अच्छी सत्ता [क्षेम कुशल] के साथ (सम्) ठीक-ठीक (यत्) जो [ब्रह्म] (देवहितम्) विद्वानों का हितकारक (अस्ति) है, [उस] (ब्रह्मणा) ब्रह्म, वेद, धन, वा अन्न के साथ (सम्) ठीक-ठीक, (यज्ञियानाम्) पूजा योग्य (देवानाम्) विद्वानों की (सुमतौ) सुमति में (सम्) ठीक-ठीक (नेष) तू ले चल ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्वानों के सत्सङ्ग से मनस्वी, वाग्मी, और कार्यकुशल होकर सबको उन्नति की ओर प्रवृत्त करें ॥२॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−५।४२।४। और यजु० ८।१५ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(सम्) सम्यक्। यथावत् (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् (नः) अस्मान् (मनसा) विज्ञानेन (नेष) णीञ् प्रापणे-लोटि शप्। सिब्बहुलं लेटि। पा० ३।१।३४। इति सिप्। अतो हेः। पा० ६।४।१०५। इति हेर्लोपः। नय। प्रापय (गोभिः) इन्द्रियैर्वाग्भिर्वा (सूरिभिः) अ० २।११।४। विद्वद्भिः (हरिवन्) हरयो मनुष्याः-निघ० २।३। प्रशस्तमनुष्ययुक्त (सम्) (स्वस्त्या) अ० १।३०।२। सुसत्तया। क्षेमेण (सम्) (ब्रह्मणा) वेदेन धनेनान्नेन वा (देवहितम्) विद्वद्भ्यो हितम् (यत्) ब्रह्म (अस्ति) (सम्) (देवानाम्) विदुषाम् (सुमतौ) श्रेष्ठायां बुद्धौ (यज्ञियानाम्) पूजार्हाणाम् ॥

०३ यानावह उशतो

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यानाव॑ह उश॒तो दे॑व दे॒वांस्तान्प्रेर॑य॒ स्वे अ॑ग्ने स॒धस्थे॑।
ज॑क्षि॒वांसः॑ पपि॒वांसो॒ मधू॑न्य॒स्मै ध॑त्त वसवो॒ वसू॑नि ॥

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Whitney
Translation
  1. The eager gods, O god, that thou didst bring—them, O Agni, send
    forward in [thine] own station (sadhástha); having eaten, having
    drunk sweet things, assign to this man good things, ye good ones
    (vásu).
Notes

This and the following verse are given together in VS. (viii. 18, 19),
TS. (i. 4. 44¹⁻³), MS. (i. 3. 38), but in different order and
combination: namely, in VS., our 4 before 3,* and in the others our 4
a, b and 3 c, d as one verse, and our 3 a, b and 4 c, d
as a following one. In our 3 a, VS. begins with yā́ṅ ā́v-, and TS.
ends with devā́n (t-); in c, all end with -saś ca víśve, and
after it VS. has asmé, and TS.MS. ‘sme. Ppp. reads, in b,
preraya punar agne sve sadhasthe. The fourth pāda is deficient. *More
precisely, our 4 a-c with 3 d before our 3 a-c with 4
d.⌋

Griffith

The willing Gods whom, God, thou hast brought hither, send thou to their own dwelling-place, O Agni. When ye have eaten and have drunk sweet juices, endow this man with precious wealth, ye Vasus.

पदपाठः

यान्। आ॒ऽअव॑हः। उ॒श॒तः। दे॒व॒। दे॒वान्। तान्। प्र। ई॒र॒य॒। स्वे। अ॒ग्ने॒। स॒धऽस्थे॑। ज॒क्षि॒ऽवांसः॑। प॒पि॒ऽवांसः॑। मधू॑नि। अ॒स्मै। ध॒त्त॒। व॒स॒वः॒। वसू॑नि। १०२.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्राग्नी
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • यज्ञ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्य धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देव) हे प्रकाशमान अध्यापक ! (यान्) जिन (उशतः) लालसावाले (देवान्) विद्वानों को (आ अवहः) तू लाया है, (अग्ने) हे विद्वान् ! (तान्) उन्हें (स्वे) अपनी (सधस्थे) बैठक में (प्र ईरय) ले चल। (वसवः) हे श्रेष्ठजनो ! तुम (मधूनि) मधुर वस्तुओं को (जक्षिवांसः) खा चुककर और (पपिवांसः) पी चुककर (अस्मै) इस पुरुष के लिये (वसूनि) उत्तम ज्ञानों को (धत्त) दान करो ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य सत्कारपूर्वक विद्वानों से शिक्षा लेकर श्रेष्ठ गुण प्राप्त करके सुखी होवें ॥३॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है ८।१९ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(यान्) वक्ष्यमाणान् (आ अवहः) वहेर्लङ् प्रापितवानसि (उशतः) वश कान्तौ-शतृ। कामयमानान् (देव) हे प्रकाशमानाध्यापक (देवान्) विदुषः (तान्) (प्रेरय) आनय (स्वे) स्वकीये (अग्ने) विद्वन् (सधस्थे) संगतिस्थाने (जक्षिवांसः) अ० ४।७।३। भक्षितवन्तः (पपिवांसः) पिबतेः-क्वसुः। वस्वेकाजाद्घसाम्। पा० ७।२।६७। इडागमः। पीतवन्तः (मधूनि) मधुरवस्तूनि (अस्मै) विद्यार्थिने (धत्त) दत्त (वसवः) हे श्रेष्ठजनाः (वसूनि) श्रेष्ठानि ज्ञानानि ॥

०४ सुगा वो

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सु॒गा वो॑ देवाः॒ सद॑ना अकर्म॒ य आ॑ज॒ग्म सव॑ने मा जुषा॒णाः।
वह॑माना॒ भर॑माणाः॒ स्वा वसू॑नि॒ वसुं॑ घ॒र्मं दिव॒मा रो॑ह॒तानु॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. We have made for you easily accessible seats, O gods, ye that have
    come enjoying me at the libation; carrying, bearing [your] own good
    things, ascend ye to heaven after the good hot drink (?).
Notes

TS. (as above) reads at the beginning svagā́, and later in a
sádanam, MS. sádanā kṛṇomi; in b, VS. MS. have -gmé ’dáṁ
sávanaṁ juṣ-
, TS. sávane ’dáṁ j-; Ppp. also has kṛṇomi, followed by
the unintelligible yā caṣṭe ’daṁ savane juṣāṇāḥ; the AV. text (p.
sávane: mā) is apparently a corruption of sávane ’mā́, which the
comm. reads. In c, VS. inverts the order of the two participles, and
all read havī́ṅṣi for svā́ vásūni; in d, VS. MS. have ásum for
vásum, and VS. svàr for dívam, and all tiṣṭhata for rohata.
Ppp. gives, for c, d, v. bh. dudhās tvaṁ gharmaṁ tam u tiṣṭhatā
’nu
. All the AV. pada-mss. (except a single one of SPP’s) read
váhamānā: bháramāṇā, without final visarga, and all the
saṁhitā-mss. (except our P.p.m.) have -ṇā svā́; both printed texts
make the necessary emendation in saṁhitā to -ṇāḥ svā́ (which the
comm. also reads), and SPP. adds the visarga to both p’ples in his
pada-text. The pada reading in a is sádanā: akarma (our Bp.
-nāḥ s. m.), and the irregular hiatus must be regarded as falling
under Prāt. iii. 34, although the passage is not quoted by the
commentary to that rule; SPP. takes no notice of the anomaly. The comm.
explains gharmám in d by ādityam. The Anukr. passes without
notice the redundancy of c, due to the apparently intruded svā.

Griffith

Gods, we have made your seats of easy access, who, pleased with me, have come to my libation. Bearing and bringing hitherward your treasures, after the rich warm beverage mount to heaven.

पदपाठः

सु॒ऽगा। वः॒। दे॒वाः॒। सद॑ना। अ॒क॒र्म॒। ये। आ॒ऽज॒ग्म। सव॑ने। मा॒। जु॒षा॒णाः। वह॑मानाः। भर॑माणाः। स्वा। वसू॑नि। वसु॑म्। घ॒र्मम्। दिव॑म्। आ। रो॒ह॒त॒। अनु॑। १०२.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्राग्नी
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • यज्ञ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्य धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) हे विद्वानो ! (वः) तुम्हारे लिये (सुगा) सुख से पहुँचने योग्य (सदना) आसनों को (अकर्म) हमने बनाया है, (ये) जो तुम [अपने] (सवने) ऐश्वर्य में (मा) मुझे (जुषाणाः) प्रसन्न करते हुए (आजग्म) आये हो (स्वा) अपनी (वसूनि) श्रेष्ठ वस्तुओं को (वहमानाः) पहुँचाते हुए और (भरमाणाः) पुष्ट करते हुए तुम (वसुम्) श्रेष्ठ (घर्मम्) दिन और (दिवम् अनु) व्यवहार के बीच (आ रोहत) चढ़ते जाओ ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्वानों का आदर मान करके अपनी उन्नति करें ॥४॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है−८।१८ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(सुगा) अ० ३।३।४। सुखेन गन्तव्यानि (वः) युष्मभ्यम् (देवाः) हे विद्वांसः (सदना) आसनानि (अकर्म) वयं कृतवन्तः (ये) यूयम् (आजग्म) आगताः स्थ (सवने) ऐश्वर्ये (मा) माम् (जुषाणाः) प्रीणन्तः (वहमानाः) प्रापयन्तः (भरमाणाः) पोषयन्तः (स्वा) स्वकीयानि (वसूनि) श्रेष्ठानि वस्तूनि (वसुम्) श्रेष्ठम् (घर्मम्) दिनम् (दिवम्) दिवु व्यवहारे-क। व्यवहारम् (आ रोहत) आरूढा भवत (अनु) प्रति ॥

०५ यज्ञ यज्ञम्

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यज्ञ॑ य॒ज्ञं ग॑च्छ य॒ज्ञप॑तिं गच्छ।
स्वां योनिं॑ गच्छ॒ स्वाहा॑ ॥

०५ यज्ञ यज्ञम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O sacrifice, go to the sacrifice; go to the lord of sacrifice; go to
    [thine] own source (yóni): hail!
Notes

⌊Prose.⌋ The same formula is found, without variant, as VS. viii. 22 a,
and in TS. i. 4. 44³* and MS. i. 3. 38. The saṁhitā-mss. add a stroke
of punctuation before svā́ṁ which is wanting in the other texts, and
which our edition also omits; SPP. retains it. The comm. explains Vishṇu
as intended by yajñam. *⌊Also vi. 6. 22.⌋

Griffith

Go to the sacrifiee, go to its master, Sacrifice! To thy birth- place go with Svaha.

पदपाठः

यज्ञ॑। य॒ज्ञम्। ग॒च्छ॒। य॒ज्ञऽप॑तिम्। ग॒च्छ॒। स्वाम्। योनि॑म्। ग॒च्छ॒। स्वाहा॑। १०२.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्राग्नी
  • अथर्वा
  • त्रिपदार्ची भुरिग्गायत्री
  • यज्ञ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्य धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यज्ञ) हे पूजनीय पुरुष ! (यज्ञम्) पूजनीय व्यवहार को (गच्छ) प्राप्त हो, (यज्ञपतिम्) पूजनीय व्यवहार के पालनेवाले को (गच्छ) प्राप्त हो। और (स्वाहा) सुन्दर वाणी [वेदवाणी] के साथ (स्वाम्) अपने (योनिम्) स्वभाव को (गच्छ) प्राप्त हो ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य उत्तम व्यवहार और उत्तम मनुष्यों के साथ से अपने मनुष्य धर्म का कर्त्तव्य करता रहे ॥५॥ यह मन्त्र यजुर्वेद में है−८।२२ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(यज्ञ) पूजनीय पुरुष (यज्ञम्) पूजनीयं व्यवहारम् (यज्ञपतिम्) पूजनीयव्यवहारस्य पालकम् (गच्छ) (स्वाम्) स्वकीयाम् (योनिम्) प्रकृतिम्। स्वभावम् (गच्छ) (स्वाहा) अ० २।१६।१। सुवाण्या। वेदवाचा ॥

०६ एष ते

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ए॒ष ते॑ य॒ज्ञो य॑ज्ञपते स॒हसू॑क्तवाकः।
सु॒वीर्यः॒ स्वाहा॑ ॥

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Whitney
Translation
  1. This [is] thy sacrifice, O lord of sacrifice, accompanied with
    song-utterance, of excellent heroism: hail!
Notes

⌊Prose.⌋ Again the A V. mss. add a punctuation-mark before suvī́ryaḥ,*
omitted in our text, but given by SPP.; the other texts (VS. viii. 22 b;
TS.MS. as above) do not have it. TS. differs only by reading suvī́raḥ;
MS. does the same and omits svā́ha (adding instead téna sám bhava
bhrā́jaṁ gacha
); VS. ends with sárvavīras táj juṣasva svā́ha. Ppp. has
a yet more different version: eṣa te yajño yajamānas svāhā
sūktanamovākas suvīrās svāhā
. *⌊To avoid taking the word as an
adjective, BR., s.v., would read with TS. suvī́raḥ.⌋

Griffith

This is thy sacrifice with hole hymnal, Lord of the Rite, Svaha! and fraught with vigour.

पदपाठः

ए॒षः। ते॒। य॒ज्ञः। य॒ज्ञ॒ऽप॒ते॒। स॒हऽसू॑क्तवाकः। सु॒ऽवीर्यः॑। स्वाहा॑। १०२.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्राग्नी
  • अथर्वा
  • त्रिपदा प्राजापत्या बृहती
  • यज्ञ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्य धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यज्ञपते) हे पूजनीय व्यवहार के पालनेवाले पुरुष ! (एषः) यह (ते) तेरा (यज्ञः) पूजनीय व्यवहार (स्वाहा) सुन्दर वाणी [वेदवाणी] द्वारा (सहसूक्तवाकः) सुन्दर वचनों के उपदेशों के सहित (सुवीर्यः) बड़े वीरत्ववाला [होवे] ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य वेदमन्त्रों के मनन और उपदेश से अपना पराक्रम बढ़ावें ॥६॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है−८।२२ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(एषः) (ते) तव (यज्ञः) पूजनीयो व्यवहारः (यज्ञपते) पूजनीयो व्यवहारस्य पालक (सहसूक्तवाकः) सह+सु+उक्त+वच परिभाषणे-घञ्। शोभनानां मुक्तानां वचनानां वाकैर्भाषणैः सहितः (सुवीर्यः) उत्तमपराक्रमयुक्तः (स्वाहा) सुवाण्या ॥

०७ वषड्ढुतेभ्यो वषडहुतेभ्यः

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वष॑ड्ढु॒तेभ्यो॒ वष॒डहु॑तेभ्यः।
देवा॑ गातुविदो गा॒तुं वि॒त्त्वा गा॒तुमि॑त ॥

०७ वषड्ढुतेभ्यो वषडहुतेभ्यः ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Váshaṭ to those offered to; váshaṭ to those not offered to; ye
    way-(gātú-)finding gods, having found the way, go ye on the way.
Notes

⌊Prose.⌋ The second part of the formula is found without a variant in
VS. viii. 21 et al., TS. i. 4. 44³ et al., MS. i. 3. 38. Ppp. reads
svāhūtebhyo vaṣaḍhūtebhyaḥ.

Griffith

Vashat to paid and yet unpaid oblations! Ye Gods who know the way, find and pursue it!

पदपाठः

वष॑ट्। हु॒तेभ्यः॑। वष॑ट्। अहु॑तेभ्यः। देवाः॑। गा॒तु॒ऽवि॒दः॒। गा॒तुम्। वि॒त्त्वा। गा॒तुम्। इ॒त॒। १०२.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्राग्नी
  • अथर्वा
  • त्रिपदा साम्नी भुरिग्जगती
  • यज्ञ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्य धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (हुतेभ्यः) दिये हुए [माता-पिता आदि से पाये हुए] पदार्थों के लिये (वषट्) भक्ति [हो], (अहुतेभ्यः) न दिये हुए [स्वयं प्राप्त किये हुए] पदार्थों के लिये (वषट्) भक्ति [हो]। (गातुविदः) हे पृथिवी के जाननेवालो ! (देवाः) हे विजय चाहनेवाले वीरो ! (गातुम्) मार्ग को (वित्त्वा) पाकर (गातुम्) पृथिवी को (इत) प्राप्त हो ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य माता-पिता आदि से पाये हुए और अपने पुरुषार्थ से प्राप्त किये हुए पदार्थों से यथावत् उपकार लेवें। और पृथिवी के गुणों को परीक्षण द्वारा जानकर और उपकार लेकर सुखी होवें ॥७॥ इस मन्त्र का उत्तरभाग यजुर्वेद में है−८।२१ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(वषट्) अ० १।११।१। वह प्रमाणे-डषटि। आहुतिः। भक्तिः (हुतेभ्यः) अ० ६।७१।२। मातापित्रादिभिर्दत्तेभ्यः पदार्थेभ्यः (वषट्) (अहुतेभ्यः) अदत्तेभ्यः। स्वपौरुषप्राप्तेभ्यः (देवाः) हे विजिगीषवः (गातुविदः) कमिमनिजनिगा०। उ० १।७३। गाङ् गतौ−तु। गातुः पृथिवीनाम-निघ० १।१। मार्गः। विद ज्ञाने-क्विप्। पृथिवीगुणानां ज्ञातारः (गातुम्) मार्गम् (वित्त्वा) विद्लृ लाभे−क्त्वा। लब्ध्वा (गातुम्) भूमिम्। भूमिराज्यम् (इत) प्राप्नुत ॥

०८ मनसस्पत इमम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

मन॑सस्पत इ॒मं नो॑ दि॒वि दे॒वेषु॑ य॒ज्ञम्।
स्वाहा॑ दि॒वि स्वाहा॑ पृथि॒व्यां स्वाहा॒न्तरि॑क्षे॒ स्वाहा॒ वाते॑ धां॒ स्वाहा॑ ॥

०८ मनसस्पत इमम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O lord of mind! [put] this offering of ours in heaven among the
    gods; hail! in heaven—hail! on earth—hail! in atmosphere—hail! in wind
    may I put [it]; hail!
Notes

⌊Prose.⌋ In VS.TS.MS. (as above) a corresponding formula immediately
follows our 7 b; but it is briefer: thus, VS. mánasas pata imáṁ
deva yajñáṁ svā́hā vā́te dhāḥ;
TS. m. p. i. no deva devéṣu yajñáṁ svā́hā
vācí svā́hā vā́te dhāḥ;
MS. m. p. sudhātv imáṁ yajñáṁ diví devéṣu vā́te
dhāḥ svā́hā.
Ppp., again, m. p. imaṁ deva yajñaṁ svāhā: vāce svāhā
vācaye dhās svāhā
. The Anukr. apparently scans this bit of prose as 8 +
7: 9 + 12 = 36.

Griffith

Lord of the Mind, lay this our sacrifice in heaven among the Gods. Svaha in heaven! Svaha on earth! Svaha in air! In wind have I paid offerings. Hail!

पदपाठः

मन॑सः। प॒ते॒। इ॒मम्। नः॒। दि॒वि। दे॒वेषु॑। य॒ज्ञम्। स्वाहा॑। दि॒वि। स्वाहा॑। पृ॒थि॒व्याम्। स्वाहा॑। अ॒न्तरि॑क्षे। स्वाहा॑। वाते॑। धा॒म्। स्वाहा॑। १०२.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्राग्नी
  • अथर्वा
  • उपरिष्टाद्बृहती
  • यज्ञ सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्य धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (मनसःपते) हे मन के स्वामी [मनुष्य !] (इमम्) इस (नः) अपने [हमारे] (यज्ञम्) संगतिकरण व्यवहार को (दिवि) आकाश में [वर्तमान] (देवेषु) दिव्य पदार्थों में (स्वाहा) सुन्दर वाणी के साथ, [अर्थात्] (दिवि) सूर्य में (स्वाहा) सुन्दर वाणी के साथ, (पृथिव्याम्) पृथिवी में (स्वाहा) सुन्दर वाणी के साथ, (अन्तरिक्षे) मध्यलोक में (स्वाहा) सुन्दर वाणी के साथ, (वाते) वायु में (स्वाहा) सुन्दर वाणी के साथ, (धाम्) मैं धारण करूँ ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य वेद द्वारा अपनी मननशक्ति बढ़ाकर सूर्यविद्या, पृथिवीविद्या, अन्तरिक्षविद्या और वायुविद्या में निपुण होकर उपकार करें ॥८॥ इस मन्त्र का पूर्वभाग कुछ भेद से यजुर्वेद में है−८।२१ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(मनसः) अन्तःकरणस्य (पते) स्वामिन् (इमम्) (नः) अस्माकम् (दिवि) आकाशे वर्तमानेषु (देवेषु) दिव्यपदार्थेषु (यज्ञम्) संगतिकरणव्यवहारम् (स्वाहा) सुवाण्या वेदवाण्या द्वारा (दिवि) सूर्यलोके (पृथिव्याम्) भूलोके (अन्तरिक्षे) मध्यलोके (वाते) वायुविद्यायाम् (धाम्) दधातेर्विधिलिङि छान्दसं रूपम्। धरेयम्। अन्यद् गतम् ॥