०९५ शत्रुनाशनम् ...{Loading}...
Whitney subject
95 (100) A spell against some one.
VH anukramaṇī
शत्रुनाशनम्।
१-३ कपिञ्जलः। गृध्रौ। अनुष्टुप्, २-३ भुरिक्।
Whitney anukramaṇī
[Kapiñjala.—tṛcam. mantroktagṛdhradevatyam. ānuṣṭubham: 2, 3. bhurij.]
Whitney
Comment
Not found in Pāipp. Used by Kāuś. (48. 40) in a witchcraft rite against enemies, with tying up a striped frog with two blue and red strings under the forelegs, putting it in hot water, and poking and squeezing it at each offering (pratyāhuti).
Translations
Translated: Ludwig, p. 517; Henry, 38, 109; Griffith, i. 375.
०१ उदस्य श्यावौ
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
उद॑स्य श्या॒वौ वि॑थु॒रौ गृध्रौ॒ द्यामि॑व पेततुः।
उ॑च्छोचनप्रशोच॒नाव॒स्योच्छोच॑नौ हृ॒दः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उद॑स्य श्या॒वौ वि॑थु॒रौ गृध्रौ॒ द्यामि॑व पेततुः।
उ॑च्छोचनप्रशोच॒नाव॒स्योच्छोच॑नौ हृ॒दः ॥
०१ उदस्य श्यावौ ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Up have flown his two dark-brown (śyāvá) quiverers (? vithurá),
as two vultures to the sky—up-heater-and-forth-heater, up-heaters of his
heart.
Notes
The comm. renders vithurāú by saṁtataṁ calanaśīlāu (also
vyathanaśīlāu bhayavantāu), and understands by them (through the hymn)
either the two lips or the breath and expiration of the enemy who is
represented by the frog (maṇḍūkātmanā bhāvitasya)—which is very
unsatisfactory. To the vultures he applies the epithet tārkṣyāu. Roth
suggests, as intended in the second half-verse, the heat and passion of
love, which are to be expelled from some woman’s heart.
Griffith
To heaven, as ’twere, have soared this man’s two vultures, staggering, dusky hued. The Parcher and the Drier-up, the pair who parch and dry his heart.
पदपाठः
उत्। अ॒स्य॒। श्या॒वौ। वि॒थु॒रौ। गृध्रौ॑। द्यामऽइ॑व। पे॒त॒तुः॒। उ॒च्छो॒च॒न॒ऽप्र॒शो॒च॒नौ। अ॒स्य। उ॒त्ऽशोच॑नौ। हृ॒दः। १००.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- गृध्रौ
- कपिञ्जलः
- अनुष्टुप्
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
काम और क्रोध के निवारण का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) इस [जीव] के (श्यावौ) दोनों गतिशील (विथुरौ) व्यथा देनेवाले, (गृध्रौ) बड़े लोभी [काम क्रोध] (द्याम् इव) आकाश को जैसे (उत् पेततुः) उड़ गये हैं। (उच्छोचनप्रशोचनौ) अत्यन्त दुखानेवाले और सब ओर से दुखानेवाले दोनों (अस्य) इसके (हृदः) हृदय के (उच्छोचनौ) अत्यन्त दुखानेवाले हैं ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य काम क्रोध के वशीभूत होकर बड़ी-बड़ी व्यर्थ कल्पनायें करके सदा दुखी रहते हैं ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(उत्) ऊर्ध्वम् (अस्य) जीवस्य (श्यावौ) अ० ५।५।८। गतिशीलौ। कृष्णपीतवर्णौ वा (विथुरौ) व्यथेः सम्प्रसारणं धः किच्च। उ० १।३९। व्यथ ताडने-उरच्, स च कित्। व्यथनशीलौ। चोरौ (गृध्रौ) सुसूधाञ्गृधिभ्यः क्रन्। उ० २।२४। गृधु अभिकाक्षायाम्−क्रन्। अतिलोभिनौ कामक्रोधौ (द्याम्) आकाशम् (इव) यथा (पेततुः) पत्लृ पतने-लिट्। गतवन्तौ (उच्छोचनप्रशोचनौ) शोचयतेर्नन्द्यादित्वाल् ल्युः। उच्छोचयति अत्यन्तं दुःखयतीति उच्छोचनः, प्रकर्षेण शोचयतीति प्रशोचनः, एवंविधौ कामक्रोधौ (अस्य) (प्राणिनः) (उच्छोचनौ) अत्यन्तं शोचयितारौ (हृदः) हृदयस्य ॥
०२ अहमेनावुदतिष्ठिपं गावौ
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अ॒हमे॑ना॒वुद॑तिष्ठिपं॒ गावौ॑ श्रान्त॒सदा॑विव।
कु॑र्कु॒रावि॑व॒ कूज॑न्तावु॒दव॑न्तौ॒ वृका॑विव ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
अ॒हमे॑ना॒वुद॑तिष्ठिपं॒ गावौ॑ श्रान्त॒सदा॑विव।
कु॑र्कु॒रावि॑व॒ कूज॑न्तावु॒दव॑न्तौ॒ वृका॑विव ॥
०२ अहमेनावुदतिष्ठिपं गावौ ...{Loading}...
Whitney
Translation
- I have made them (dual) rise up, like (two) weary-sitting kine, like
(two) growling dogs, like (two) lurking (? ud-av) wolves.
Notes
The comm. explains udavantāu by goyūthamadhye vatsān udgṛhya
gacchantāu; Henry renders “that watch one another.” ⌊He would reject
úd in a.⌋
Griffith
I verily have stirred them up like oxen resting after toil. Like two loud-snarling curs, or like two wolves who watch to make their spring:
पदपाठः
अ॒हम्। ए॒नौ॒। उत्। अ॒ति॒ष्ठि॒प॒म्। गावौ॑। श्रा॒न्त॒सदौ॑ऽइव। कु॒र्कु॒रौऽइ॑व। कूज॑न्तौ। उ॒त्ऽअव॑न्तौ। वृकौ॑ऽइव। १००.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- गृध्रौ
- कपिञ्जलः
- भुरिगनुष्टुप्
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
काम और क्रोध के निवारण का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अहम्) मैंने (एनौ) इन दोनों को (उत् अतिष्ठिपम्) उठा दिया है, (इव) जैसे (श्रान्तसदौ) थक कर बैठे हुए (गावौ) दो बैलों को, (इव) जैसे (कूजन्तौ) घुरघुराते हुए (कुर्कुरौ) [कुर-कुर करनेवाले] कुत्तों को, और (इव) जैसे (उदयन्तौ) दो घुस आनेवाले (वृकौ) भेड़ियों को ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - मनुष्य काम क्रोध रूप शत्रुओं को विचारपूर्वक तुरन्त हटावें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(अहम्) विद्वान् (एनौ) पूर्वोक्तौ गृध्रौ कामक्रोधौ (उदतिष्ठिपम्) तिष्ठतेर्ण्यन्ताल् लुङि चङि रूपम्। उत्थापितवानस्मि। अपसारितवानस्मि (गावौ) वृषभौ (श्रान्तसदौ) श्रान्तौ श्रमवन्तौ सीदन्तौ निषीदन्तौ (कुर्कुरौ) कुर शब्दे-क्विप्+कुर शब्दे-क। कुरमिति शब्दं कुर्वन्तौ श्वानौ (इव) (कूजन्तौ) ध्वनिं कुर्वन्तौ (उदवन्तौ) अव प्रवेशे-शतृ। उद्गत्य प्रविशन्तौ (वृकौ) अ० ४।३।१। अरण्यश्वानौ (इव) ॥
०३ आतोदिनौ नितोदिनावथो
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आ॑तो॒दिनौ॑ नितो॒दिना॒वथो॑ संतो॒दिना॑वु॒त।
अपि॑ नह्याम्यस्य॒ मेढ्रं॒ य इ॒तः स्त्री पुमा॑ञ्ज॒भार॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
आ॑तो॒दिनौ॑ नितो॒दिना॒वथो॑ संतो॒दिना॑वु॒त।
अपि॑ नह्याम्यस्य॒ मेढ्रं॒ य इ॒तः स्त्री पुमा॑ञ्ज॒भार॑ ॥
०३ आतोदिनौ नितोदिनावथो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The (two) on-thrusters, down-thrusters, also together-thrusters: I
shut up his urinator who bore [away] from here—[whether] woman
[or] man.
Notes
Strī́m in d would be a welcome emendation: “of the man who bore
away the woman from here”; but the analogy of i. 8. 1 c favors the
text as given by the mss. The comm. supplies āsmākīnaṁ dhanam as
object of jabhāra; or, alternatively, he takes the latter as =
prahṛtavān asmān bādhitavān; meḍhra (mih + tra) he paraphrases
with marmasthānopalakṣaṇam. His ignorance of the sense of the hymn is
as great as that of Kāuś.—or as ours. SPP. retains the ḥ of itáḥ
before strī́ in d, against his usual practice elsewhere, and with
only a small minority of his mss.
Griffith
Like two that thrust, like two that pierce, like two that strike with mutual blows. I bind the conduit of the man or dame who hence hath taken aught.
पदपाठः
आ॒ऽतो॒दिनौ॑। नि॒ऽतो॒दिनौ॑। अथो॒ इति॑। स॒म्ऽतो॒दिनौ॑। उ॒त। अपि॑। न॒ह्या॒मि॒। अ॒स्य॒। मेढ्र॑म्। यः। इ॒तः। स्त्री। पुमा॑न्। ज॒भार॑। १००.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- गृध्रौ
- कपिञ्जलः
- भुरिगनुष्टुप्
- शत्रुनाशन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
काम और क्रोध के निवारण का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (अथो) और भी (आतोदिनौ) दोनों सब ओर से सतानेवालों, (नितोदिनौ) नित्य सतानेवालों, (उत) और (संतोदिनौ) मिलकर सतानेवालों को (इतः) यहाँ पर [हमारे बीच] (यः) जिस किसी (स्त्री) स्त्री [वा] (पुमान्) पुरुष ने (जभार) स्वीकार किया है, (अस्य) उसके (मेढ्रम्) सेचनसामर्थ्य [वृद्धि शक्ति] को (अपि) सर्वथा (नह्यामि) मैं बाँधता हूँ ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो स्त्री-पुरुष काम क्रोध में फँस जाते हैं, वे अनेक पापबन्धनों में पड़कर शक्तिहीन और वृद्धिहीन होकर कष्ट भोगते हैं ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(आतोदिनौ) तुद व्यथने-णिनि। सर्वतो व्यथनशीलौ (नितोदिनौ) नितरां व्यथयन्तौ (अथो) अनन्तरम् (सन्तोदिनौ) सम्भूय व्यथाकारिणौ (उत) अपि (अपि) सर्वथा (नह्यामि) बध्नामि (अस्य) (प्राणिनः) (मेढ्रम्) सर्वधातुभ्यः ष्ट्रन्। उ० ४।१५९। मिह सेचने-ष्ट्रन्। सेचनसामर्थ्यम्। वृद्धिशक्तिम् (यः) कश्चित् (इतः) अत्र। अस्मासु (स्त्री) (पुमान्) पुरुषः (जभार) हृञ् स्वीकारे। जहार। स्वीकृतवान् ॥