०९२ सुत्रामा इन्द्रः

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Whitney subject

92 (97). To Indra: for aid.

VH anukramaṇī

सुत्रामा इन्द्रः।
१ अथर्वा। चन्द्रमाः (इन्द्रः)। त्रिष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Atharvan (etc. as hymn 91).]

Whitney

Comment

Wanting in Pāipp. Reckoned to the svastyayana gaṇa (note to Kāuś. 25. 36), and by the comm. joined with 91: see under 91.

Translations

Translated: Henry, 38, 108; Griffith, i. 374.

०१ स सुत्रामा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

स सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒ इन्द्रो॑ अ॒स्मदा॒राच्चि॒द्द्वेषः॑ सनु॒तर्यु॑योतु।
तस्य॑ व॒यं सु॑म॒तौ य॒ज्ञिय॒स्यापि॑ भ॒द्रे सौ॑मन॒से स्या॑म ॥

०१ स सुत्रामा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Let this Indra, well-saving, well-aiding, keep far away apart from us
    any hatred; may we be in the favor of him the worshipful, also in his
    excellent well-willing.
Notes

The other texts (see under the preceding hymn) invert the order of the
two half-verses, and all but MS. read asmé at end of (our) a. The
saṁhitā-reading sanutár is prescribed by Prāt. ii. 48. The comm.
explains the word as = tirohitān or gūḍhān.

Griffith

May this rich Indra as our good protector keep even far away the men who hate us. May we enjoy his favour, his the holy: may we enjoy his blessed loving-kindness.

पदपाठः

सः। सु॒ऽत्रामा॑। स्वऽवा॑न्। इन्द्रः॑। अ॒स्मत्। आ॒रात्। चि॒त्। द्वेषः॑। स॒नु॒तः। यु॒यो॒तु॒। तस्य॑। व॒यम्। सु॒ऽम॒तौ। य॒ज्ञिय॑स्य। अपि॑। भ॒द्रे। सौ॒म॒न॒से। स्या॒म॒। ९७.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • चन्द्रमाः
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • सुत्रामाइन्द्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा के धर्म का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह (सुत्रामा) बड़ा रक्षक, (स्ववान्) बड़ा धनी, (इन्द्रः) महा प्रतापी राजा (अस्मत्) हमसे (आरात् चित्) बहुत ही दूर (द्वेषः) शत्रुओं को (सनुतः) निर्णयपूर्वक (युयोतु) हटावे। (वयम्) हम लोग (तस्य) उस (यज्ञियस्य) पूजायोग्य राजा की (अपि) ही (सुमतौ) सुमति में और (भद्रे) कल्याण करनेवाली (सौमनसे) प्रसन्नता में (स्याम) रहें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब मनुष्य प्रजारक्षक, शत्रुनाशक राजा की आज्ञा में रहकर सदा प्रसन्न रहें ॥१॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−६।४७।१३। तथा १०।१३१।७। और यजु० २०।५२ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(सः) प्रसिद्धः (सुत्रामा) सुरक्षकः (स्ववान्) गतमन्त्रे। महाधनः (इन्द्रः) प्रतापी राजा (अस्मत्) अस्मत्तः (आरात्) दूरे (चित्) एव (द्वेषः) गतमन्त्रे। शत्रून् (सनुतः) स्वरादिनिपातमव्यम्। पा० १।१।३७। अव्ययसंज्ञा। सनुतः-निर्णीतान्तर्हितनाम-निघ० ३।२५। निर्णयपूर्वकम्। निश्चयीकृतम् (युयोतु) यौतेः शपः श्लुः। निवारयतु (तस्य) (वयम्) (सुमतौ) अनुग्रहबुद्धौ (यज्ञियस्य) पूजार्हस्य (अपि) (भद्रे) कल्याणकरे (सौमनसे) सुमनसो भावे। प्रसन्नतायाम् (स्याम) ॥