०८१ सूर्याचन्द्रमसौ ...{Loading}...
Whitney subject
81 (86). To the sun and moon.
VH anukramaṇī
सूर्याचन्द्रमसौ।
१-६ अथर्वा। सावित्री, सूर्यः, चन्द्रमाः। त्रिष्टुप्, ३ अनुष्टुप्, ४ आस्तारपङ्क्तिः, ५ सम्राडास्तारपङ्क्तिः।
Whitney anukramaṇī
[Atharvan.—ṣaḍṛcam. sāvitrīsūryacādramasam. trāiṣṭubham: 3. anuṣṭubh; 4, 5. āstārapan̄kti (5. samrāj).]
Whitney
Comment
⌊Partly prose—4 and 5.⌋ Wanting in Pāipp. The verses of this hymn are by Bloomfield regarded as intended by the name dārśībhis, and so directed by Kāuś. (24. 18) to be used ⌊to accompany the worship of the darśa (see vs. 3 and note)⌋; Keś. also says that some mutter the hymn at new moon on first sight of the moon, for the sake of prosperity: and this seems to be the true value of the hymn; but the comm. does not acknowledge it. The comm. regards vss. 1 and 2 as intended to be quoted at Kāuś. 75. 6, in the nuptial ceremonies, with xiv. 1. 1, but the verse intended must be rather xiv. 1. 23, as marked in the edition. The comm. further quotes a use of vss. 3-6 from the Nakṣatra Kalpa (15), in a planet-sacrifice, with an offering to Mercury (budha).
Translations
Translated: Henry, 33, 101; Griffith, i. 368.— Cf. Hillebrandt, Ved. Mythol., i. 302-3.
Griffith
A hymn to the New Moon
०१ पूर्वापरं चरतो
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
पू॑र्वाप॒रं च॑रतो मा॒ययै॒तौ शिशू॒ क्रीड॑न्तौ॒ परि॑ यातोऽर्ण॒वम्।
विश्वा॒न्यो भुव॑ना वि॒चष्ट॑ ऋ॒तूँर॒न्यो वि॒दध॑ज्जायसे॒ नवः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
पू॑र्वाप॒रं च॑रतो मा॒ययै॒तौ शिशू॒ क्रीड॑न्तौ॒ परि॑ यातोऽर्ण॒वम्।
विश्वा॒न्यो भुव॑ना वि॒चष्ट॑ ऋ॒तूँर॒न्यो वि॒दध॑ज्जायसे॒ नवः॑ ॥
०१ पूर्वापरं चरतो ...{Loading}...
Whitney
Translation
- These two move on one after the other by magic (māyā́); two playing
young ones (śíśu), they go about the sea; the one looks abroad upon
all beings; thou, the other, disposing the seasons art born new.
Notes
Said of the sun and moon. This and the next following verse are RV. x.
85. 18, 19, and are also found in MS. iv. 12. 2; this one, further, in
TB. ii. 7. 12² (repeated in ii. 8. 93): all read adhvarám (for
‘rṇavám) at end of b; they have, for c, víśvāny anyó bhúvanā
’bhi- (but MS. vi-) cáṣṭe, and, at end of d, jāyate (the
comm. also has jāyate) púnaḥ; and TB. combines ṛtū́n an-. Repeated
below as xiv. i. 23 and (a, b, c) xiii. 2. 11 ⌊on the latter verse
Henry has an elaborate comment, Les Hymnes Rohitas, p. 38-40⌋. ⌊As for
the thrice occurring haplography, víśvānyó for víśvānyanyó, cf. iv.
5. 5, note.⌋ Too irregular (11 + 12: 9 + 12 = 44) to be passed simply as
triṣṭubh. ⌊The other texts suggest the true rectification of the meter
of c.⌋
Griffith
Forward and backward by their wondrous power move these two youths, disporting, round the ocean. One views all living things, and thou, the other, art born again arranging times and seasons.
पदपाठः
पू॒र्व॒ऽअ॒प॒रम्। च॒र॒तः॒। मा॒यया॑। ए॒तौ। शिशू॒ इति॑। क्रीड॑न्तौ। परि॑। या॒तः॒। अ॒र्ण॒वम्। विश्वा॑। अ॒न्यः। भुव॑ना। वि॒ऽचष्टे॑। ऋ॒तून्। अ॒न्यः। वि॒ऽदध॑त्। जा॒य॒से॒। नवः॑। ८६.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- सावित्री, सूर्यः, चन्द्रमाः
- अथर्वा
- त्रिष्टुप्
- सूर्य-चन्द्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सूर्य, चन्द्रमा के लक्षणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (एतौ) यह दोनों [सूर्य, चन्द्रमा] (पूर्वापरम्) आगे-पीछे (मायया) बुद्धि से [ईश्वरनियम से] (चरतः) विचरते हैं, (क्रीडन्तौ) खेलते हुए (शिशू) [माता-पिता के दुःख हटानेवाले] दो बालक [जैसे] (अर्णवम्) अन्तरिक्ष में (परि) चारों ओर (यातः) चलते हैं। (अन्यः) एक [सूर्य] (विश्वा) सब (भुवना) भुवनों को (विचष्टे) देखता है, (अन्यः) दूसरा तू [चन्द्रमा] (ऋतून्) ऋतुओं को [अपनी गति से] (विदधत्) बनाता हुआ [शुक्ल पक्ष में] (नवः) नवीन (जायसे) प्रगट होता है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - सूर्य और चन्द्रमा ईश्वरनियम से आकाश में घूमते हैं और सूर्य, चन्द्र आदि लोकों को प्रकाश पहुँचाता है। चन्द्रमा शुक्लपक्ष के आरम्भ से एक-एक कला बढ़कर वसन्त आदि ऋतुओं को बनाता है ॥१॥ मन्त्र १, २ कुछ भेद से ऋग्वेद में हैं-म० १०।८५।१८, १९ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(पूर्वापरम्) यथा तथा, पूर्वापरपर्य्यायेण (चरतः) विचरतः (मायया) ईश्वरप्रज्ञया (एतौ) सूर्य्याचन्द्रमसौ (शिशू) शिशुः शंसनीयो भवति शिशीतेर्वा स्याद् दानकर्मणश्चिरलब्धो गर्भो भवति-निरु० १०।३९। शः कित् सन्वच्च। उ० १।२०। शो तनूकरणे-उ प्रत्ययः, श्यति पित्रोर्दुखानीति शिशुः। बालकौ यथा (क्रीडन्तौ) विहरन्तौ (परि) सर्वतः (यातः) गच्छतः (अर्णवम्) अ० १।१०।४। समुद्रम्। अन्तरिक्षम् (विश्वा) सर्वाणि (अन्यः) सूर्यः (भुवना) चन्द्रादिलोकान् (विचष्टे) विविधं पश्यति। प्रकाशयति (ऋतून्) वसन्तादिकालान् (अन्यः) चन्द्रमाः (विदधत्) कुर्वन् (जायसे) प्रादुर्भवसि (नवः) नवीनः शुक्लपक्षे ॥
०२ नवोनवो भवसि
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
नवो॑नवो भवसि॒ जाय॑मा॒नोऽह्नां॑ के॒तुरु॒षसा॑मे॒ष्यग्र॑म्।
भा॒गं दे॒वेभ्यो॒ वि द॑धास्या॒यन्प्र च॑न्द्रमस्तिरसे दी॒र्घमायुः॑ ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
नवो॑नवो भवसि॒ जाय॑मा॒नोऽह्नां॑ के॒तुरु॒षसा॑मे॒ष्यग्र॑म्।
भा॒गं दे॒वेभ्यो॒ वि द॑धास्या॒यन्प्र च॑न्द्रमस्तिरसे दी॒र्घमायुः॑ ॥
०२ नवोनवो भवसि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Ever new art thou, being born; sign (ketú) of the days, thou goest
to the apex (ágra) of the dawns; thou disposest their share to the
gods as thou comest; thou stretchest out, O moon, a long life-time.
Notes
In RV. and MS. (as above), and TS. ii. 4. 14¹, the four verbs are in the
third person, and we have candrámās nom. in d. Further, TS. reads
ágre at end of b, and tirati in d. The application of b
to the moon is obscure. The absence of any allusion to the asterisms is
not without significance. ⌊Over “stretchest” W. interlines “extendest."⌋
⌊Vss. 1-2 are repeated below as xiv. i. 23-24.⌋
Griffith
Thou art re-born for ever new: thou marchest, ensign of days, in forefront of the mornings. Marching thou dealest to the Gods their portion. Thou lengthe- nest, Moon! the days of man’s existence.
पदपाठः
नवः॑ऽनवः। भ॒व॒सि॒। जाय॑मानः। अह्ना॑म्। के॒तुः। उ॒षसा॑म्। ए॒षि॒। अग्र॑म्। भा॒गम्। दे॒वेभ्यः॑। वि। द॒धा॒सि॒। आ॒ऽयन्। प्र। च॒न्द्र॒मः॒। ति॒र॒से॒। दी॒र्घम्। आयुः॑। ८६.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- सावित्री, सूर्यः, चन्द्रमाः
- अथर्वा
- त्रिष्टुप्
- सूर्य-चन्द्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सूर्य, चन्द्रमा के लक्षणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (चन्द्रमः) हे चन्द्रमा ! तू [शुक्लपक्ष में] (नवोनवः) नया-नया (जायमानः) प्रकट होता हुआ (भवसि) रहता है, और (अह्नाम्) दिनों का (केतुः) जतानेवाला तू (उषसाम्) उषाओं [प्रभातवेलाओं] के (अग्रम्) आगे (एषि) चलता है। और (आयन्) आता हुआ तू (देवेभ्यः) उत्तम पदार्थों को (भागम्) सेवनीय उत्तम गुण (वि दधासि) विविध प्रकार देता है, और (दीर्घम्) लम्बे (आयुः) जीवनकाल को (प्र) अच्छे प्रकार (तिरसे) पार लगाता है ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - चन्द्रमा शुक्लपक्ष में एक-एक कला बढ़कर नया-नया होता है और दिनों, अर्थात् प्रतिप्रदा आदि चान्द्र तिथियों को बनाता है। और पृथिवी के पदार्थों में जीवनशक्ति देकर पुष्टिकारक होता है ॥२॥ भगवान् यास्क का मत है-निरु० ११।६।नया-नया प्रकट होता हुआ-यह शुक्लपक्ष के आरम्भ से अभिप्राय है। दिनों को जतानेवाला उषाओं के आगे चलता है, यह कृष्णपक्ष की समाप्ति से अभिप्राय है। कोई कहते हैं कि दूसरा पाद सूर्य देवता का है ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(नवोनवः) पुनःपुनरभिनवः शुक्लपक्षप्रतिपदादिषु, एकैककलावृद्ध्या (भवसि) (जायमानः) प्रादुर्भवन् (अह्नाम्) चान्द्रतिथीनाम् (केतुः) केतयिता ज्ञापयिता (उषसाम्) प्रभातवेलानाम् (एषि) प्राप्नोषि (अग्रम्) पुरोगतिम् (भागम्) सेवनीयमुत्तमं गुणम् (देवेभ्यः) दिव्यपदार्थेभ्यः (वि) विविधम् (दधासि) ददासि (आयन्) आगच्छन् प्रादुर्भवन् (प्र) प्रकर्षेण (चन्द्रमः) अ० ५।२४।१०। हे चन्द्र (तिरसे) पारयसे (दीर्घम्) अ० १।३५।२। लम्बमानम् (आयुः) जीवनकालम् ॥
०३ सोमस्यांशो युधाम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
सोम॑स्यांशो युधां प॒तेऽनू॑नो॒ नाम॒ वा अ॑सि।
अनू॑नं दर्श मा कृधि प्र॒जया॑ च॒ धने॑न च ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
सोम॑स्यांशो युधां प॒तेऽनू॑नो॒ नाम॒ वा अ॑सि।
अनू॑नं दर्श मा कृधि प्र॒जया॑ च॒ धने॑न च ॥
०३ सोमस्यांशो युधाम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- O stem of soma, lord of fighters! not-deficient verily art thou by
name; make me, O first-sight (darśá), not-deficient, both by progeny
and by riches.
Notes
The darśá is the slender crescent of the new moon when first visible,
and here compared with one of the stems or sprouts from which the soma
is pressed, and which swell up when wetted, as the crescent grows. The
identification of the moon and soma underlies the comparison. The comm.
first understands the planet Mercury (called, among other names,
somaputra ‘son of the moon’) to be addressed, and explains the verse
on that basis, and then gives a second full explanation on the
supposition that the address is to the moon itself.
Griffith
O spray of Soma, Lord of Wars! all-perfect verily art thou. Make me all-perfect, Beauteous One! in riches and in progeny.
पदपाठः
सोम॑स्य। अं॒शो॒ इति॑। यु॒धा॒म्। प॒ते॒। अनू॑नः। नाम॑। वै। अ॒सि॒। अनू॑नम्। द॒र्श॒। मा॒। कृ॒धि॒। प्र॒ऽजया॑। च॒। धने॑न। च॒। ८६.३।
अधिमन्त्रम् (VC)
- सावित्री, सूर्यः, चन्द्रमाः
- अथर्वा
- अनुष्टुप्
- सूर्य-चन्द्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सूर्य, चन्द्रमा के लक्षणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (सोमस्य) हे अमृत के (अंशो) बाँटनेवाले ! (युधाम्) हे युद्धों के (पते) स्वामी ! (वै) निश्चय करके तू (अनूनः) न्यूनतारहित [सम्पूर्ण] (नाम) प्रसिद्ध (असि) है। (दर्श) हे दर्शनीय ! (मा) मुझको (प्रजया) प्रजा से (च च) और (धनेन) धन से (अनूनम्) सम्पूर्ण (कृधि) कर ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - पूर्ण चन्द्रमा अमृत का बाँटनेवाला इस लिये है कि उसकी किरणों से पार्थिव पदार्थों और प्राणियों में पोषण शक्ति पहुँचती है। और युद्धों का स्वामी इस कारण है कि पौर्णमासी को पार्थिव समुद्र का जल चन्द्रमा की ओर लहराता है, अथवा उल्लेखादि युद्धों अर्थात् ग्रह और तारा गणों के परस्पर निकट हो जाने वा टकरा जाने का काल चन्द्रमा की गति से निर्णय किया जाता है−देखो सूर्यसिद्धान्त, अध्याय ७। श्लोक १८-२३। मनुष्य पौष्टिक पदार्थों से उपकार लेकर प्रजावान् और धनवान् होवें ॥३॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ३−(सोमस्य) अमृतस्य। जीवनसाधनस्य (अंशो) अंशुः शमष्टमात्रो भवत्यननाय शं भवतीति वा-निरु० २।५। मृगय्वादयश्च। उ० १।३७। अंश विभाजने-कु। अंशुः=सोमो विभागो विभक्ता वा। हे विभाजयितः (युधाम्) युद्धानां पार्थिवजलस्याकर्षणानाम्, यद्वा ग्रहतारागणानामुल्लेखादियुद्धानाम्, सूर्यसिद्धान्ते-अ० ७। श्लोक १८-२३ (पते) स्वामिन् (अनूनः) ऊन परिहाणे-क। न्यूनतारहितः। सम्पूर्णकलः (नाम) प्रसिद्धौ (वै) निश्चयेन (असि) (अनूनम्) सम्पूर्णं समृद्धम् (दर्श) दृश−घञ्। हे दर्शनीय। पूर्णचन्द्र (मा) माम् (कृधि) कुरु (प्रजया) सन्ततिभृत्यादिना (च च) समुच्चये (धनेन) ॥
०४ दर्शोसि दर्शतोसि
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द॒र्शो᳡सि॑ दर्श॒तो᳡सि॒ सम॑ग्रोऽसि॒ सम॑न्तः।
सम॑ग्रः॒ सम॑न्तो भूयासं॒ गोभि॒रश्वैः॑ प्र॒जया॑ प॒शुभि॑र्गृ॒हैर्धने॑न ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
द॒र्शो᳡सि॑ दर्श॒तो᳡सि॒ सम॑ग्रोऽसि॒ सम॑न्तः।
सम॑ग्रः॒ सम॑न्तो भूयासं॒ गोभि॒रश्वैः॑ प्र॒जया॑ प॒शुभि॑र्गृ॒हैर्धने॑न ॥
०४ दर्शोसि दर्शतोसि ...{Loading}...
Whitney
Translation
- First sight art thou, worth seeing art thou; complete at point art
thou, complete at end; complete at point, complete at end may I be, by
kine, by horses, by progeny, by cattle, by houses, by riches.
Notes
⌊Prose.⌋ Some mss. (including our O.) combine darśató ‘si. The
pada-division sám॰antaḥ is prescribed by Prāt. iv. 38.
Griffith
Thou art the New Moon, fair to see, thou art complete in every part. May I be perfect, fully blest in every way in steeds and kine, in children, cattle, home, and wealth.
पदपाठः
द॒र्शः। अ॒सि॒। द॒र्श॒तः। अ॒सि॒। सम्ऽअ॑ग्रः। अ॒सि॒। सम्ऽअ॑न्तः। सम्ऽअ॑ग्रः॒। सम्ऽअ॑न्तः। भू॒या॒स॒म्। गोभिः॑। अश्वैः॑। प्र॒ऽजया॑। प॒शुऽभिः॑। गृ॒हैः। धने॑न। ८६.४।
अधिमन्त्रम् (VC)
- सावित्री, सूर्यः, चन्द्रमाः
- अथर्वा
- आस्तारपङ्क्तिः
- सूर्य-चन्द्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सूर्य, चन्द्रमा के लक्षणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [चन्द्र !] तू (दर्शः) दर्शनीय (असि) है, (दर्शतः) देखने का साधन (असि) है, (समग्रः) सम्पूर्ण गुणवाला, और (समन्तः) सम्पूर्ण कलावाला, (असि) है। (गोभिः) गोओं से, (अश्वैः) घोड़ों से, (पशुभिः) अन्य पशुओं से, (प्रजया) सन्तान भृत्य आदि प्रजा से, (गृहैः) घरों से (धनेन) और धन से (समग्रः) सम्पूर्ण और (समन्तः) परिपूर्ण (भूयासम्) मैं रहूँ ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस प्रकार पूर्ण चन्द्र संसार का उपकार करता है, इसी प्रकार मनुष्य सब विधि से परिपूर्ण होकर परस्पर सहायक रहें ॥४॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ४−(दर्शः)-म० ३। दर्शनीयः (असि) भवसि (दर्शनः) अ० ४।१०।६। पश्यति येन सः। सूर्यः। चन्द्रः (समग्रः) सम्पूर्णगुणः (समन्तः) पूर्णकलः (समग्रः) संपूर्णः (समन्तः) समृद्धः (गोभिः) अश्वैः (प्रजया) (पशुभिः) हस्तिमहिषीमेषादिभिः (गृहैः) (धनेन) ॥
०५ यो३ऽस्मान्द्वेष्टि यम्
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यो॑३ऽस्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मस्तस्य॒ त्वं प्रा॒णेना प्या॑यस्व।
आ व॒यं प्या॑सिषीमहि॒ गोभि॒रश्वैः॑ प्र॒जया॑ प॒शुभि॑र्गृ॒हैर्धने॑न ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यो॑३ऽस्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मस्तस्य॒ त्वं प्रा॒णेना प्या॑यस्व।
आ व॒यं प्या॑सिषीमहि॒ गोभि॒रश्वैः॑ प्र॒जया॑ प॒शुभि॑र्गृ॒हैर्धने॑न ॥
०५ यो३ऽस्मान्द्वेष्टि यम् ...{Loading}...
Whitney
Translation
- He who hateth us, whom we hate—with his breath do thou fill thyself
up; may we fill ourselves up with kine, with horses, with progeny, with
cattle, with houses, with riches.
Notes
⌊Prose.⌋ The mss. read in c pyāśiṣīmahi, which SPP. accordingly
adopts in his text, although it is an obvious and palpable misreading
for pyāsiṣīmahi (which the comm. gives); pyāsiṣīmahi is found in
many texts (VS.TA.śśS.śGS.HGS.), but also pyāyiṣīmahi (as iṣ-aorist
from the secondary root-form pyāy) in ĀpśS. (iii. 4. 6). It is by an
error that our printed text has pyāyiṣ- ⌊instead oi pyāsiṣ-: see
Gram. §914 b⌋. These two prose “verses” are very ill described by the
Anukr.
Griffith
Inflate thee with his vital breath who hathes us and whom we detest. May we grow rich in steeds and kine, in children, cattle, houses, wealth.
पदपाठः
यः। अ॒स्मान्। द्वेष्टि॑। यम्। व॒यम्। द्वि॒ष्मः। तस्य॑। त्वम्। प्रा॒णेन॑। आ। प्या॒य॒स्व॒। आ। व॒यम्। प्या॒शि॒षी॒म॒हि॒। गोभिः॑। अश्वैः॑। प्र॒ऽजया॑। प॒शुऽभिः॑। गृ॒हैः। धने॑न। ८६.५।
अधिमन्त्रम् (VC)
- सावित्री, सूर्यः, चन्द्रमाः
- अथर्वा
- सम्राडास्तारपङ्क्ति
- सूर्य-चन्द्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सूर्य, चन्द्रमा के लक्षणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो मनुष्य (अस्मान्) हमसे (द्वेष्टि) द्वेष करता है, और (यम्) जिससे (वयम्) हम (द्विष्मः) विरोध करते हैं, (त्वम्) तू [हे चन्द्र !] (तस्य) उसको (प्राणेन) प्राण से (आप्यायस्व) वियुक्त कर। (वयम्) हम लोग (गोभिः) गौओं से, (अश्वैः) घोड़ों से, (पशुभिः) [हाथी भैंस भेड़ आदि] अन्य पशुओं से, (प्रजया) सन्तान भृत्य आदि से, (गृहैः) घरों से, और (धनेन) धन से (आ) सब प्रकार (प्यासिषीमहि) बढ़ें ॥५॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - चन्द्रमा आदि के उत्तम गुण कुव्यवहार से दुःखदायक और सुव्यवहार से सुखदायक होते हैं ॥५॥ (प्यासिषीमहि) के स्थान पर पं० सेवकलाल के पुस्तक में (प्यायिषीमहि) पाठ है ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ५−(यः) शत्रुः (अस्मान्) धार्मिकान् (द्वेष्टि) विरोधयति (यम्) (वयम्) (द्विष्मः) विरोधयामः (तस्य) तम् (त्वम्) हे चन्द्र (प्राणेन) जीवनेन (आ) वियोगे-यथा आपद् शब्दे (आ प्यायस्व) वियोजय (आ) समन्तात् (वयम्) (प्यासिषीमहि) ओप्यायी वृद्धौ, आशिषि लिङि यकारस्थाने सकारश्छान्दसः। प्यायिषीमहि-यथा पं० सेवकलालस्य पुस्तके पाठः। वर्धिषीमहि। अन्यत्पूर्ववत्-म० ४॥
०६ यं देवा
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
यं दे॒वा अं॒शुमा॑प्या॒यय॑न्ति॒ यमक्षि॑त॒मक्षि॑ता भ॒क्षय॑न्ति।
तेना॒स्मानिन्द्रो॒ वरु॑णो॒ बृह॒स्पति॒रा प्या॑ययन्तु॒ भुव॑नस्य गो॒पाः ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
यं दे॒वा अं॒शुमा॑प्या॒यय॑न्ति॒ यमक्षि॑त॒मक्षि॑ता भ॒क्षय॑न्ति।
तेना॒स्मानिन्द्रो॒ वरु॑णो॒ बृह॒स्पति॒रा प्या॑ययन्तु॒ भुव॑नस्य गो॒पाः ॥
०६ यं देवा ...{Loading}...
Whitney
Translation
- The stem which the gods fill up, which, unexhausted, they feed upon
unexhausted—therewith let Indra, Varuṇa, Brihaspati, shepherds of
existence, fill us up.
Notes
The verse is found also in TS. (ii. 4. 14¹), MS. (iv. 9. 27; 12. 2),
śśS. (v. 8. 4): in a, all read ādityā́s, thus rectifying the meter,
and MS. has yáthā before it, and also at beginning of b, with a
correlative evá at beginning of c; in b, all end with
ákṣitayaḥ píbanti, and MS.śśS. have ákṣitim before it; in c,
TS.śśS. give no rā́jā for asmā́n índraḥ. The late idea of the
subsistence of the gods upon the moon is to be seen in the verse. The
Anukr. seems to balance deficient a with redundant c.
With this hymn ends the seventh anuvāka, of 8 (or 9) hymns and 31
verses; the quoted Anukr. says of the verses triṅśad ekā ca saptamaḥ;
and, of the hymns, saptamāv ⌊is this to be joined with the colophon of
the fifth anuvāka, p. 428? thus, pañcamasaptamāv⌋ aṣṭāu.
Griffith
यं दे॒वा अं॒शुमा॑प्या॒यय॑न्ति॒ यमक्षि॑त॒मक्षि॑ता भ॒क्षय॑न्ति ।
तेना॒स्मानिन्द्रो॒ वरु॑णो॒ बृह॒स्पति॒रा प्या॑ययन्तु॒ भुव॑नस्य गो॒पाः ॥६॥
पदपाठः
यम्। दे॒वाः। अं॒शुम्। आ॒ऽप्या॒यय॑न्ति। यम्। अक्षि॑तम्। अक्षि॑ताः। भ॒क्षय॑न्ति। तेन॑। अ॒स्मान्। इन्द्रः॑। वरु॑णः। बृह॒स्पतिः॑। आ। प्या॒य॒य॒न्तु॒। भुव॑नस्य। गो॒पाः। ८६.६।
अधिमन्त्रम् (VC)
- सावित्री, सूर्यः, चन्द्रमाः
- अथर्वा
- त्रिष्टुप्
- सूर्य-चन्द्र सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
सूर्य, चन्द्रमा के लक्षणों का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) जिस (अंशुम्) अमृत [चन्द्रमा के रस] को (देवाः) प्रकाशमान सूर्य की किरणें [शुक्लपक्ष में] (आप्याययन्ति) बढ़ा देती हैं, और (यम्) जिस (अक्षितम्) बिना घटे हुए को (अक्षिताः) वे व्यापक [किरणें] (भक्षयन्ति) [कृष्ण पक्ष में] खा लेती हैं। (तेन) उसी [नियम] से (अस्मान्) हमको (भुवनस्य) संसार के (गोपाः) रक्षा करनेवाला (इन्द्रः) परम ऐश्वर्यवान् राजा, (वरुणः) श्रेष्ठ वैद्य और (बृहस्पतिः) बड़ी विद्याओं का स्वामी, आचार्य (आ) सब प्रकार (प्याययन्तु) बढ़ावें ॥६॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जिस नियम से सूर्य की किरणें चन्द्रमा के अनिष्ट रस को खींचकर अमृत उत्पन्न करती हैं, वैसे ही राजा आदि गुरुजन प्रजा के दुखों का नाश करके सुख प्राप्त करावें ॥६॥ इति सप्तमोऽनुवाकः ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: ६−(यम्) (देवाः) देवः=द्युस्थानः-निरु० ७।१५। प्रकाशमानाः सूर्यरश्मयः (अंशुम्)-म० ३। सोमम्। चन्द्ररसम् (आ प्याययन्ति) सर्वतो वर्धयन्ति, शुक्लपक्षे (यम्) (अक्षितम्) अक्षीणम् (अक्षिताः) अक्षू व्याप्तौ-क्त। व्याप्ताः किरणाः (भक्षयन्ति) अदन्ति। आकर्षन्ति, कृष्णपक्षे (तेन) नियमेन (अस्मान्) (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् राजा (वरुणः) श्रेष्ठो वैद्यः (बृहस्पतिः) बृहतीनां विद्यानां पालकः। आचार्यः (आ) समन्तात् (प्याययन्तु) वर्धयन्तु (भुवनस्य) लोकस्य (गोपाः) गुपू रक्षणे-घञ्। गोपायितारः। रक्षकाः ॥