०५८ अन्नम्

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Whitney subject

58 (60). Invitation to Indra and Varuṇa.

VH anukramaṇī

अन्नम्।
१-२ कौरुपथिः। इन्द्रावरुणौ। जगती, २ त्रिष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Kāurupathi.—dvyṛcam. mantroktadevatyam. jāgatam: 2. triṣṭubh.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. xx. The two verses are part of a RV. hymn (vi. 68. 10, 11). They are not used in Kāuś.; but Vāit. (25. 2) introduces them with hymns 51 and 44: see under the latter.

Translations

Translated: Henry, 23, 85; Griffith, i. 355.

Griffith

An invitation to Indra and Varuna

०१ इन्द्रावरुणा सुतपाविमम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

इन्द्रा॑वरुणा सुतपावि॒मं सु॒तं सोमं॑ पिबतं॒ मद्यं॑ धृतव्रतौ।
यु॒वो रथो॑ अध्व॒रो दे॒ववी॑तये॒ प्रति॒ स्वस॑र॒मुप॑ यातु पी॒तये॑ ॥

०१ इन्द्रावरुणा सुतपाविमम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O Indra-and-Varuṇa, soma-drinkers, this pressed soma, intoxicating,
    drink ye, O ye of firm courses; let your chariot, the sacrifice (?
    adhvará), for the god-feast, approach toward the stall (svásara), to
    drink.
Notes

RV. reads -vratā, at end of b, adhvarám (which is much better)
in c, and yāti in d. Ppp. has ‘dhvaram in c, with ayo
for yuvó ⌊p. yuvóḥ⌋ and yāhi in d. The comm. explains
adhvaras as hiṅsārahitas, qualifying rathas, and svásaram as =
yajamānasya gṛham.

Griffith

True to laws, Indra Varuna, drinkers of the juice, quaff this pressed Soma which shall give you rapturous joy! Let sacrifice, your car, to entertain the Gods, approach its rest- ing-place that they may drink thereof.

पदपाठः

इन्द्रा॑वरुणा। सु॒त॒ऽपौ। इ॒मम्। सु॒तम्। सोम॑म्। पि॒ब॒त॒म्। मद्य॑म्। धृ॒त॒ऽव्र॒तौ॒। यु॒वोः। रथः॑। अ॒ध्व॒रः। दे॒वऽवी॑तये। प्रति॑। स्वस॑रम्। उप॑। या॒तु॒। पी॒तये॑। ६०.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रावरुणौ
  • कौरूपथिः
  • जगती
  • अन्न सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा जन के कर्त्तव्य का उपदेश है।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सुतपौ) हे पुत्रों के रक्षा करनेवाले ! (धृतव्रतौ) उत्तम कर्मों के धारण करनेवाले ! (इन्द्रावरुणा) बिजुली और वायु के समान वर्त्तमान राजा और प्रजाजन (इमम् सुतम्) इस पुत्र को (मद्यम्) आनन्ददायक (सोमम्) ऐश्वर्य [वा बड़ी-बड़ी ओषधियों का रस] (पिबतम्=पाययतम्) पान कराओ, (युवोः) तुम दोनों का (अध्वरः) मार्ग बतानेवाला (रथः) विमान आदि यान (देववीतये) दिव्य पदार्थों की प्राप्ति के लिये और (पीतये) वृद्धि के लिये (प्रति स्वसरम्) प्रतिदिन वा प्रतिघर (उप यातु) आया करे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राजा और प्रजागणों को चाहिये कि परस्पर रक्षक होकर परस्पर उन्नति करें ॥१॥ म० १, २ कुछ भेद से ऋग्वेद में हैं−६।६८।१०, ११ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(इन्द्रावरुणा) विद्युद्वायुवद्वर्त्तमानौ राजप्रजाजनौ (सुतपौ) पुत्रपालकौ (इमम्) प्रत्यक्षम् (सुतम्) पुत्रम् (सोमम्) ऐश्वर्यम्। महौषधिरसं वा (पिबतम्) अन्तर्गतण्यर्थः। पाययतम् (मद्यम्) आनन्दकरम् (धृतव्रतौ) धृतकर्माणौ (युवोः) युवयोः (रथः) विमानादियानम् (अध्वरः) अध्वन्+रा दाने-क। मार्गप्रदः (देववीतये) दिव्यपदार्थप्राप्तये (प्रति) वीप्सायाम् (स्वसरम्) दिनम्-निघं० १।९। गृहम्-निघ० ३।४। (उप) समीपे (यातु) गच्छतु (पीतये) ध्याप्योः सम्प्रसारणं च। उ० ४।११५। इति बाहुलकात् प्यैङ् वृद्धौ-क्तिनि प्रत्यये सम्प्रसारणम्। हलः। पा० ६।४।२। इति दीर्घः। वृद्धये ॥

०२ इन्द्रावरुणा मधुमत्तमस्य

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

इन्द्रा॑वरुणा मधुमत्तमस्य॒ वृष्णः॒ सोम॑स्य वृष॒णा वृ॑षेथाम्।
इ॒दं वा॒मन्धः॒ परि॑षिक्तमा॒सद्या॒स्मिन्ब॒र्हिषि॑ मादयेथाम् ॥

०२ इन्द्रावरुणा मधुमत्तमस्य ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O Indra-and-Varuṇa, of the bull soma, most rich in sweet, pour in, ye
    bulls; here is your beverage (ándhas), poured about; sitting on this
    barhís, do ye revel.
Notes

RV. fills out the meter and sense of c by adding at the end asmé
(the Anukr. ignores the deficiency), and Ppp. seems to read idaṁ vām
asme pariṣiktam andhā ”sad-
etc.; it also has vṛṣetā at end of b.
The comm. explains ā vṛṣethām by āśnītam, quoting śB. ii. 4. 2. 20
as authority.

Griffith

O Indra Varuna, drink your fill, ye heroes, of this effectual and sweetest Soma. This juice was shed by us that ye might quaff it. On this trimmed grass be seated and rejoice you.

पदपाठः

इन्द्रा॑वरुणा। मधु॑मत्ऽतमस्य। वृष्णः॑। सोम॑स्य। वृ॒ष॒णा॒। आ। वृ॒षे॒था॒म्। इ॒दम्। वा॒म्। अन्धः॑। परि॑ऽसिक्तम्। आ॒ऽसद्यः॑। अ॒स्मिन्। ब॒र्हिषि॑। मा॒द॒ये॒था॒म्। ६०.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रावरुणौ
  • कौरूपथिः
  • त्रिष्टुप्
  • अन्न सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और प्रजा जन के कर्त्तव्य का उपदेश है।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (वृषणा) हे बलिष्ठ ! (इन्द्रावरुणा) बिजुली और वायु के समान राजा और प्रजाजनो ! तुम (मधुमत्तमस्य) अत्यन्तज्ञानयुक्त, (वृष्णः) बल करनेवाले (सोमस्य) ऐश्वर्य की (वृषेथाम्) बरसा करो। (वाम्) तुम दोनों का (इदम्) यह (परिषिक्तम्) सब प्रकार सींचा हुआ (अन्धः) अन्न है, (अस्मिन्) इस (बर्हिषि) वृद्धि कर्म में (आसद्य) बैठकर (मादयेथाम्) आनन्दित करो ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो राजा और प्रजागण सबकी उन्नति के लिये पुरुषार्थ करते हैं, वे ही सत्कारयोग्य होते हैं ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(इन्द्रावरुणा) विद्युद्वायुवद्वर्त्तमानौ राजप्रजाजनौ (मधुमत्तमस्य) अतिशयेन ज्ञानयुक्तस्य (वृष्णः) बलकरस्य (सोमस्य) ऐश्वर्यस्य (वृषणा) बलिष्ठौ (वृषेथाम्) वर्षणं कुरुतम् (इदम्) (वाम्) युवयोः (अन्धः) अन्नम्-निघ० २।७। (परिषिक्तम्) सर्वतः सिक्तम् (आसद्य) उपविश्य (अस्मिन्) (बर्हिषि) वृद्धिकर्मणि (मादयेथाम्) आनन्दयतम् ॥