०५० विजयः

०५० विजयः ...{Loading}...

Whitney subject

50 (52). For success with dice.

VH anukramaṇī

विजयः।
१-९ अङ्गिराः ( कितववधकामः)। इन्द्रः। अनुष्टुप्, ३, ७ त्रिष्टुप्, ४ जगती, ६ भुरिक् त्रिष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[An̄giras (kitavabādhanakāmas*).—navarcam. āindram. ānuṣṭubham: 3, 7. triṣṭubh; 4. jagatī; 6. bhurik triṣṭubh.]

Whitney

Comment

Ppp. reads, in b, viśvāhaṁ, and, for c, evā ’ham amuṁ kitavam. The comm. has vadhyāsam in d. Compare vii. 109. 4, below. The Anukr. overlooks the deficiency in a.

Griffith

A gambler’s prayer for success in gaming

०१ यथा वृक्षम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यथा॑ वृ॒क्षं अ॒शनि॑र्वि॒श्वाहा॒ हन्त्य॑प्र॒ति।
ए॒वाहम॒द्य कि॑त॒वान॒क्षैर्ब॑ध्यासमप्र॒ति ॥

०१ यथा वृक्षम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. As the thunderbolt always strikes the tree irresistibly, so may I
    today smite ⌊badh, vadh⌋ the gamblers irresistibly with the dice.
Notes

Ppp. reads, in b, viśvāhaṁ, and, for c, evā ’ham amuṁ
kitavam
. The comm. has vadhyāsam in d. Compare vii. 109. 4,
below. The Anukr. overlooks the deficiency in a.

Griffith

As evermore the lightning flash strikes, irresistible, the tree, So, irresistible, may I conquer the gamblers with the dice.

पदपाठः

यथा॑। वृ॒क्षम्। अ॒शनिः॑। वि॒श्वाहा॑। हन्ति॑। अ॒प्र॒ति। ए॒व। अ॒हम्। अ॒द्य। कि॒त॒वान्। अ॒क्षैः। ब॒ध्या॒स॒म्। अ॒प्र॒ति। ५२.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • अङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • विजय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (अशनिः) बिजुली (विश्वाहा) सब दिनों (अप्रति) बे रोक होकर (वृक्षम्) पेड़ को (हन्ति) गिरा देती है, (एव) वैसे ही (अहम्) मैं (अद्य) आज (अप्रति) बे रोक होकर (अक्षैः) पाशों से (कितवान्) ज्ञान नाश करनेवाले, जुआ खेलनेवालों को (बध्यासम्) नाश करूँ ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि जुआरी, लुटेरे आदिकों को तुरन्त दण्ड देकर नाश करें ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(यथा) येन प्रकारेण (वृक्षम्) तरुम् (अशनिः) विद्युत् (विश्वाहा) सर्वाणि दिनानि (हन्ति) नाशयति (अप्रति) अप्रतिपक्षम् (एव) एवम् (अहम्) शूरः (अद्य) (कितवान्) कि ज्ञाने-क्त+वा गतिगन्धनयोः-क। कितवः किं तवास्तीति शब्दानुकृतिः कृतवान् वाशीर्नामकः-निरु० ५।२२। ज्ञाननाशकान्। वञ्चकान्। द्यूतकारकान् (अक्षैः) द्यूतसाधनैः पाशकादिभिः (बध्यासम्) हन्तेर्लिङि। नाशयेयम् ॥

०२ तुराणामतुराणां विशामवर्जुषीणाम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

तु॒राणा॒मतु॑राणां वि॒शामव॑र्जुषीणाम्।
स॒मैतु॑ वि॒श्वतो॒ भगो॑ अन्तर्ह॒स्तं कृ॒तं मम॑ ॥

०२ तुराणामतुराणां विशामवर्जुषीणाम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Of the quick, of the slow, of the people that cannot avoid it (?),
    let the fortune come together from all sides, my winnings in hand.
Notes

That is, apparently, so as to be won by me. The meaning of dvarjuṣīṇām
in b is extremely problematical; the translators: “wehrlos” etc.
Comparison with viśā́ṁ vavarjúṣīṇām, RV. i. 134. 6, and the
irregularity of the unreduplicated form, make the reading very
suspicious; Ppp. gives instead devayatīm; the comm. explains it
⌊alternatively⌋ as dyūtakriyām aparityajantīnām, sticking to the game
in spite of ill luck. For d, Ppp. has antarhastyaṁ kṛtaṁ manaḥ.

Griffith

From every side, from hale and sick, impotent to defend them- selves, May all the fortune of the folk as winnings pass into my hands.

पदपाठः

तु॒राणा॑म्। अतु॑राणाम्। वि॒शाम्। अव॑र्जुषीणाम्। स॒म्ऽऐतु॑। वि॒श्वतः॑। भगः॑। अ॒न्तः॒ऽह॒स्तम्। कृ॒तम्। मम॑। ५२.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • अङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • विजय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (तुराणाम्) शीघ्रकारी, (अतुराणाम्) अशीघ्रकारी (अवर्जुषीणाम्) [शत्रुओं को] न रोक सकनेवाली (विशाम्) प्रजाओं का (भगः) धन (विश्वतः) सब प्रकार (मम) मेरे (अन्तर्हस्तम्) हाथ में आये हुए (कृतम्) कर्म को (समैतु) यथावत् प्राप्त हो ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - बलवान् राजा सब प्रकार प्रजा के धन को अपने वश में रख कर रक्षा करे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(तुराणाम्) तुर त्वरणे-क। शीघ्रकारिणीनाम् (अतुराणाम्) अशीघ्रकारिणीनाम् (विशाम्) प्रजानाम् (अवर्जुषीणाम्) पॄनहिकलिभ्य उषच्। उ० ४।७५। नञ्+वृजी वर्जने-उषच्, ङीप्। शत्रूणामवर्जनशीलानाम् (समैतु) सम्यक् प्राप्नोतु (विश्वतः) सर्वतः (भगः) धनम् (अन्तर्हस्तम्) हस्तमध्ये गतम् (कृतम्) कर्म (मम) ॥

०३ ईडे अग्निम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

ईडे॑ अ॒ग्निं स्वाव॑सुं॒ नमो॑भिरि॒ह प्र॑स॒क्तो वि च॑यत्कृ॒तं नः॑।
रथै॑रिव॒ प्र भ॑रे वा॒जय॑द्भिः प्रदक्षि॒णं म॒रुतां॒ स्तोम॑मृध्याम् ॥

०३ ईडे अग्निम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. I praise Agni, who owns good things, with acts of homage; here,
    attached, may he divide (vi-ci) our winnings; I am borne forward as it
    were by booty-winning chariots; forward to the right may I further the
    praise of the Maruts.
Notes

The verse is RV. v. 60. 1, found also in TB. (ii. 7. 12⁴) and MS. (iv.
14. 11). All these texts give sv-ávasam in a, of which our reading
seems an awkward corruption; in b they have prasattás (but TB.
prasaptás); in c they accent vājayádbhis; in d they (also
Ppp.) read pradakṣiṇít; at the end MS. has aśyām. Some of our mss.
(Bp.R.T.) give ṛndhyām. The comm. explains ví cayat as simply =
karotukarotu itself may be used technically; cf. Ved. Stud. i.
119⌋. Kṛtam he understands throughout as the winning die
(kṛtaśabdavācyaṁ lābhahetumayam). The verse is brought in here only on
account of the comparison in b.

Griffith

I pray to Agni, him who guards his treasure: here, won by homage, may he pile our winnings. As ’twere with racing cars I bring my presents: duly with reverence, let me laud the Maruts.

पदपाठः

ईडे॑। अ॒ग्निम्। स्वऽव॑सुम्। नमः॑ऽभिः। इ॒ह। प्र॒ऽस॒क्तः। वि। च॒य॒त्। कृ॒तम्। नः॒। रथैः॑ऽइव। प्र। भ॒रे॒। वा॒जय॑त्ऽभिः। प्र॒ऽद॒क्षि॒णम्। म॒रुता॑म्। स्तोम॑म्। ऋ॒ध्या॒म्। ५२.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • अङ्गिराः
  • त्रिष्टुप्
  • विजय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (स्ववसुम्) बन्धुओं को धन देनेवाले (अग्निम्) विद्वान् राजा को (नमोभिः) सत्कारों के साथ (ईडे) मैं ढूँढ़ता हूँ, (प्रसक्तः) सन्तुष्ट वह (इह) यहाँ पर (नः) हमारे (कृतम्) कर्म का (वि चयत्) विवेचन करे। (प्रदक्षिणम्) उसकी प्रदक्षिणा [आदर से पूज्य को दाहिनी ओर रखकर घूमना] (प्र) अच्छे प्रकार (भरे) मैं धारण करता हूँ (इव) जैसे (वाजयद्भिः) शीघ्र चलनेवाले (रथैः) रथों से, [जिससे] (महताम्) शूरवीरों में (स्तोमम्) स्तुति को (ऋध्याम्) मैं बढ़ाऊँ ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्रजागण विद्वानों के सत्कार करनेवाले विवेकी राजा के अधीन रह कर आदरपूर्वक उसकी आज्ञा मानकर शूरवीरों में अपना यश बढ़ावें ॥३॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−५।६०।१ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(ईडे) अन्विच्छामि। ईडिरध्येषणकर्मा पूजाकर्मा वा-निरु० ७।१५। (अग्निम्) विद्वांसं राजानम् (स्ववसुम्) स्वेभ्यो बन्धुभ्यो धनं यस्य तम् (नमोभिः) सत्कारैः (इह) अत्र (प्रसक्तः) षञ्ज सङ्गे-क्त। सन्तुष्टः (विचयत्) विचिनुयात्। विवेकेन प्राप्नुयात् (कृतम्) कर्म (नः) अस्माकम् (रथैः) (इव) यथा (प्र) प्रकर्षेण (भरे) धरामि (वाजयद्भिः) वाजशब्दात् करोत्यर्थे णिच्। वाजं वेगं कुर्वद्भिः (प्रदक्षिणम्) तिष्ठद्गुप्रभृतीनि च। पा० २।१।१७। इत्यव्ययीभावसमासः। प्रगतं दक्षिणमिति। दक्षिणावर्त्तेन पूज्यमुद्दिश्य भ्रमणम् (मरुताम्) शूराणां मध्ये-अ० १।२०।१। (स्तोमम्) स्तुतिम् (ऋध्याम्) अर्धयेयम्। वर्धयेयम् ॥

०४ वयं जयेम

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व॒यं ज॑येम॒ त्वया॑ यु॒जा वृत॑म॒स्माक॒मंश॒मुद॑वा॒ भरे॑भरे।
अ॒स्मभ्य॑मिन्द्र॒ वरी॑यः सु॒गं कृ॑धि॒ प्र शत्रू॑णां मघव॒न्वृष्ण्या॑ रुज ॥

०४ वयं जयेम ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. May we, with thee as ally, conquer the troop (? vṛt) do thou help
    upward our side in every conflict; for us, O Indra, make thou wide
    space, easy-going; do thou break up the virilities of our foes, O
    bounteous one.
Notes

The verse is RV. i. 102. 4, where várivas is read in c instead of
várīyas. The comm. explains vṛt as antagonist at play, aṅśa as
victory (jayalakṣaṇa), and bhara as the contest with dice.

Griffith

With thee to aid us may we win the treasure: do thou assist our side in every battle. Give us wide room and easy way, O Indra; break down, O Maghavan, the foemen’s valour.

पदपाठः

व॒यम्। ज॒ये॒म॒। त्वया॑। यु॒जा। वृत॑म्। अ॒स्माक॑म्। अंश॑म्। उत्। अ॒व॒। भरे॑ऽभरे। अ॒स्मभ्य॑म्। इ॒न्द्र॒। वरी॑यः। सु॒ऽगम्। कृ॒धि॒। प्र। शत्रू॑णाम्। म॒घ॒ऽव॒न्। वृष्ण्या॑। रु॒ज॒। ५२.४।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • अङ्गिराः
  • जगती
  • विजय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे सम्पूर्ण ऐश्वर्ययुक्त इन्द्र राजन् ! (त्वया) तुझ (युजा) सहायक वा ध्यानी के साथ (वयम्) हम लोग (वृतम्) घेरनेवाले शत्रु को (जयेम) जीत लेवें, (अस्माकम्) हमारे (अंशम्) भाग को (भरेभरे) प्रत्येक संग्राम में (उत्) उत्तमता से (अव) रख। (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (वरीयः) विस्तीर्ण देश को (सुगम्) सुगम (कृधि) कर दे, (मघवन्) हे बड़े धनी ! (शत्रूणाम्) शत्रुओं के (वृष्ण्या) साहसों को (प्र रुज) तोड़ दे ॥४॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - सब योधा लोग सेनापति की सहायता लेकर अपने धन जन आदि की रक्षा करके शत्रुओं को जीतें ॥४॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है-१।१०२।४ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ४−(वयम्) योद्धारः (जयेम) अभिभवेम (त्वया) (युजा) सहायेन ध्यानिना वा (वृतम्) वृणोतेः-क्विप्। आवरकं शत्रुम् (अस्माकम्) (अंशम्) धनजनविभागम् (उत्) उत्कर्षेण (अव) रक्ष (भरेभरे) सर्वस्मिन् संग्रामे (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (वरीयः) उरु-ईयसुन्, वरादेशः। उरुतरम्। विस्तीर्णतरं देशम् (सुगम्) सुगमम् (कृधि) कुरु (प्र) (शत्रूणाम्) (मघवन्) हे बहुधनवन् (वृष्ण्या) वृष्णि भवानि। सामर्थ्यानि (रुज) रुजो भङ्गे। भङ्ग्धि ॥

०५ अजैषं त्वा

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अजै॑षं त्वा॒ संलि॑खित॒मजै॑षमु॒त सं॒रुध॑म्।
अविं॒ वृको॒ यथा॒ मथ॑दे॒वा म॑थ्नामि ते कृ॒तम् ॥

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Whitney
Translation
  1. I have won of thee what is scored together (?); I have won also the
    check (?); as a wolf might shake a sheep, so I shake thy winnings.
Notes

Saṁlikhitam and saṁrudh are technical terms, obscure to us. The
comm. ingeniously states that players sometimes stop or check
(saṁrudh) an antagonist by marks (an̄ka) which they make with slivers
of dice and the like, and that such marks and the one who checks by
means of them are intended—a pretty evident fabrication. Ppp. reads
saṁvṛtam instead of saṁrudham; the comm. explains the latter word
simply by saṁroddhāram.

Griffith

I have completely cleaned thee out, won from thee what thou keptest back. As a wolf tears and rends a sheep, so do I tear thy stake away.

पदपाठः

अजैषम्। त्वा। सम्ऽलिख‍ितम्। अजैषम्। उत। सम्ऽरुधम्। अविम्। वृकः। यथा। मथत्। एव। मथ्नामि। ते। कृतम्। ५२.५।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • अङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • विजय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - [हे शत्रु !] (संलिखितम्) यथावत् लिखे हुए (त्वा) तुझको (अजैषम्) मैंने जीत लिया है, (उत) और (संरुधम्) रोक डालनेवाले को (अजैषम्) मैंने जीत लिया है। (यथा) जैसे (वृकः) भेड़िया (अविम्) बकरी को (मथत्) मथ डालता है, (एव) वैसे ही (ते) तेरे (कृतम्) कर्म को (मथ्नामि) मैं मथ डालूँ ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस दुष्ट जन का नाम राजकीय पुस्तकों में लिखा हो और बड़ा विघ्नकारी हो, उसको यथावत् दण्ड मिलना चाहिये ॥५॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ५−(अजैषम्) अहं जितवानस्मि (त्वा) त्वां शत्रुम् (संलिखितम्) राजकीयपुस्तकेषु सम्यग् लिखितम् (अजैषम्) (उत) अपि च (संरुधम्) रुधेः-क्विप्। निरोधकम्। विघ्नकारिणम् (अविम्) अजाम् (वृकः) अरण्यश्वा (यथा) (मथत्) मथ्नाति (एव) एवम् (मथ्नामि) नाशयामि (ते) तव (कृतम्) कर्म ॥

०६ उत प्रहामतिदीवा

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उ॒त प्र॒हामति॑दीवा जयति कृ॒तमि॑व श्व॒घ्नी वि चि॑नोति का॒ले।
यो दे॒वका॑मो॒ न धनं॑ रु॒णद्धि॒ समित्तं रा॒यः सृ॑जति स्व॒धाभिः॑ ॥

०६ उत प्रहामतिदीवा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Also, a superior player, he wins the advance (?); he divides in time
    the winnings like a gambler; he who, a god-lover, obstructs not
    riches—him verily he unites with wealth at pleasure (?).
Notes

The verse is full of technical gambling expressions, not understood by
us. It is RV. x. 42. 9, with variants: RV. reads atidī́vya jayāti in
a; in b, yát for iva, and hence vicinóti; in c, dhánā
ruṇaddhi;
in d, rāyā́ (which the translation given above follows:
the comm. reads it) and svadhā́vān. The comm. also has jayāti, as
demanded by the meter, in a. He explains prahām by akṣāiḥ
prahantāram pratikitavam
, and vi cinoti this time by mṛgayate. With
ná dhánam ruṇáddhi compare the gambler’s vow, ná dhánā ruṇadhmi, in
RV. x. 34. 12; the comm. says dyūtalabdhaṁ dhanaṁ na vyarthaṁ
sthāpayati kiṁ tu devatārthaṁ viniyun̄kte
. The Anukr. distinctly refuses
the contraction to kṛtaṁ ’va in b.

Griffith

Yea, by superior play one gains advantage: in time he piles his spoil as doth a gambler. He overwhelms with wealth’s inherent powers the devotee who keeps not back his riches.

पदपाठः

उ॒त। प्र॒ऽहाम्। अति॑ऽदीवा। ज॒य॒ति॒। कृ॒तम्ऽइ॑व। श्व॒ऽघ्नी। वि। चि॒नो॒ति॒। का॒ले। यः। दे॒वऽका॑मः। न। धन॑म्। रु॒णध्दि॑। सम्। इत्। तम्। रा॒यः। सृ॒ज॒ति॒। स्व॒धाभिः॑। ५२.६।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • अङ्गिराः
  • भुरिक्त्रिष्टुप्
  • विजय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (उत्) और (अतिदीवा) बड़ा व्यवहारकुशल पुरुष (प्रहाम्) उपद्रवी शत्रु को (जयति) जीत लेता है, (श्वघ्नी) धन नाश करनेवाला जुआरी (काले) [हार के] समय पर (इव) ही (कृतम्) अपने काम का (वि चिनोति) विवेक करता है। (यः) जो (देवकामः) शुभगुणों का चाहनेवाला (धनम्) धन को [शुभ काम में] (न) नहीं (रुणद्धि) रोकता है, (रायः) अनेक धन (तम्) उसको (इत्) ही (स्वधाभिः) आत्मधारण शक्तियों के साथ (सम् सृजति) मिलते हैं ॥६॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - प्रतापी पुरुष दुष्ट को जीतकर उसे उसके दोष का निश्चय करा देता है, शुभगुण चाहनेवाला उदारचित्त मनुष्य अनेक धन और आत्मबल पाता है ॥६॥ मन्त्र ६, ७ कुछ भेद से ऋग्वेद में हैं-१०।४२।९, १० ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ६−(उत) अपि च (प्रहाम्) जनसनखन–०। पा० ३।२।६७। इति बाहुलकात् हन्तेर्विट्। विड्वनोरनुनासिकस्यात्। पा० ६।४।४१। नस्य आत्वम्। प्रहन्तारम्। उपद्रविणम् (अतिदीवा) कनिन् युवृषितक्षि०। उ० १।१५६। दिवु क्रीडाव्यवहारादिषु-कनिन्, दीर्घश्च। अतिव्यवहारकुशलः (जयति) (कृतम्) कर्म (इव) अवधारणे (श्वघ्नी) अ० ४।१६।५। धनहन्ता कितवः (वि चिनोति) विवेकेन प्राप्नोति (काले) पराजयकाले (यः) (देवकामः) शुभगुणान् कामयमानः (न) निषेधे (धनम्) (रुणद्धि) वर्जयति (इत्) एव (तम्) देवकामम् (रायः) धनानि (सम् सृजति) बहुवचनस्यैकवचनम्। सं सृजन्ति। संयोजयन्ति (स्वधाभिः) आत्मधारणशक्तिभिः ॥

०७ गोभिष्टरेमामतिं दुरेवाम्

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गोभि॑ष्टरे॒माम॑तिं दु॒रेवां॒ यवे॑न वा॒ क्षुधं॑ पुरुहूत॒ विश्वे॑।
व॒यं राज॑सु प्रथ॒मा धना॒न्यरि॑ष्टासो वृज॒नीभि॑र्जयेम ॥

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Whitney
Translation
  1. By kine may we pass over ill-conditioned misery, or by barley over
    hunger, O much-invoked one, all of us; may we first among kings,
    unharmed, win riches by [our] stratagems.
Notes

Or perhaps ‘unharmed by [others’] stratagems.’ The verse has no reason
here; it is RV. x. 42. 10, with variants: RV. omits the meter-disturbing
in b (the Anukr. ignores the irregularity), and reads víśvām
at the end of the pāda; also rā́jabhis in c, and, in d,
asmā́kena vṛjánenā. Ppp. has, for c, vayaṁ rājānas prathamā
dhamānām
. The comm., against the pada-text (-māh; RV. pada the
same), understands prathamā as neut. pl., qualifying dhanāni. ⌊Cf.
Geldner, Ved. Stud. i. 150; Foy, KZ. xxxiv. 251.⌋

Griffith

May we all, much-invoked! repel with cattle want that brings sin, hunger with store of barley. May we uninjured, first among the princes, obtain possessions by our own exertions.

पदपाठः

गोभिः॑। त॒रे॒म॒। अम॑तिम्। दुः॒ऽएवा॑म्। यवे॑न। वा॒। क्षुध॑म्। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। विश्वे॑। व॒यम्। राज॑ऽसु। प्र॒थ॒माः। धना॑नि। अरि॑ष्टासः। वृ॒ज॒नीभिः॑। ज॒ये॒म॒। ५२.७।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • अङ्गिराः
  • त्रिष्टुप्
  • विजय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुहूत) हे बहुत बुलाये गये राजन् ! (विश्वे) हम सब लोग (गोभिः) विद्याओं से (दुरेवाम्) दुर्गतिवाली (अमतिम्) कुमति को (तरेम) हटावें, (वा) जैसे (यवेन) जव आदि अन्न से (क्षुधम्) भूख को। (वयम्) हम लोग (राजसु) राजाओं के बीच (प्रथमाः) पहिले और (अरिष्टासः) अजेय होकर (वृजनीभिः) अनेक वर्जन शक्तियों से (धनानि) अनेक धनों को (जयेम) जीतें ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्याओं द्वारा कुमति हटाकर प्रशंसनीय गुण प्राप्त करके अनेक धन प्राप्त करें ॥७॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ७−(गोभिः) वाग्भिः। विद्याभिः (तरेम) अभिभवेम (अमतिम्) दुर्बुद्धिम् (दुरेवाम्) इण्शीभ्यां वन्। उ० १।१५२। इण् गतौ-वन्। दुर्गतियुक्ताम् (यवेन) यवादिना (क्षुधम्) बुभुक्षाम् (पुरुहूत) बह्वाह्वान (विश्वे) सर्वे वयम् (वयम्) (राजसु) नृपेषु (प्रथमाः) मुख्याः (धनानि) (अरिष्टासः) अहिंसिताः। अजेयाः (वृजनीभिः) कॄपॄवृजि०। उ० २।८१। वृजी वर्जने क्युन्। वर्जनशक्तिभिः। सेनाभिः ॥

०८ कृतं मे

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

कृ॒तं मे॒ दक्षि॑णे॒ हस्ते॑ ज॒यो मे॑ स॒व्य आहि॑तः।
गो॒जिद्भू॑यासमश्व॒जिद्ध॑नंज॒यो हि॑रण्य॒जित् ॥

०८ कृतं मे ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. My winnings in my right hand, victory in my left is placed;
    kine-winner may I be, horse-winner, riches-winning, gold-winner.
Notes

Ppp. reads, for b, savye me jayā ”hitaḥ, and, in d,
kṛtaṁcayas for dhanaṁjayas.

Griffith

My right hand holds my winnings fast, and in my left is victory. I would that I were winner of cattle and horses, wealth and gold.

पदपाठः

कृ॒तम्। मे॒। दक्षि॑णे। हस्ते॑। ज॒यः। मे॒। स॒व्ये। आऽहि॑तः। गो॒ऽजित्। भू॒या॒स॒म्। अ॒श्व॒ऽजित्। ध॒न॒म्ऽज॒यः। हि॒र॒ण्य॒ऽजित्। ५२.८।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • अङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • विजय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (कृतम्) कर्म (मे) मेरे (दक्षिणे) दाहिने (हस्ते) हाथ में और (जयः) जीत (मे) मेरे (सव्ये) बायें हाथ में (आहितः) स्थित है। मैं (गोजित्) भूमि जीतनेवाला, (अश्वजित्) घोड़े जीतनेवाला, (धनंजयः) धन जीतनेवाला और (हिरण्यजित्) सुवर्ण जीतनेवाला (भूयासम्) रहूँ ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य पराक्रमी होकर सब प्रकार की सम्पत्ति प्राप्त कर सुखी होवें ॥८॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ८−(कृतम्) विहितं कर्म (मे) मम (दक्षिणे) (हस्ते) पाणौ (जयः) उत्कर्षः (मे) (सव्ये) वामे (आहितः) स्थापितः (गोजित्) भूमिजेता (भूयासम्) (अश्वजित्) अश्वानां जेता (धनञ्जयः) अ० ३।१४।२। धनानां जेता (हिरण्यजित्) सुवर्णस्य जेता ॥

०९ अक्षाः फलवतीम्

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

अक्षाः॒ फल॑वतीं॒ द्युवं॑ द॒त्त गां क्षी॒रिणी॑मिव।
सं मा॑ कृ॒तस्य॒ धार॑या॒ धनुः॒ स्नाव्ने॑व नह्यत ॥

०९ अक्षाः फलवतीम् ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O ye dice, give [me] fruitful play, like a milking cow; fasten me
    together with a stream (?) of winnings, as a bow with sinew.
Notes

Ppp. reads divam for dyuvam in a, and dhāraya in c.
Dhārā, in whatever sense taken, makes a very unacceptable comparison;
the comm. paraphrases it with saṁtatyā
uparyuparilābhahetuk¿rtāyapravāheṇa
. ⌊His interpretation seems to mean
‘Unite me with a succession (saṁtati or pravāha) of fours’
(kṛta-aya), or, as we should say, ‘Give me a run (dhārā or
pravāha) of double sixes,’ ‘Give me a run of luck.’⌋

Griffith

Dice, give me play that bringeth fruit as ’twere a cow with flowing milk! And, as the bowstring binds, the bow, unite me with a stream of gains.

पदपाठः

अक्षाः॑। फल॑ऽवतीम्। द्युव॑म्। द॒त्त। गाम्। क्षी॒रिणी॑म्ऽइव। सम्। मा॒। कृ॒तस्य॑। धार॑या। धनुः॑। स्नाव्ना॑ऽइव। न॒ह्य॒त॒। ५२.९।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • इन्द्रः
  • अङ्गिराः
  • अनुष्टुप्
  • विजय सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

मनुष्यों के कर्तव्य का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (अक्षाः) हे व्यवहारकुशल पुरुषो ! (क्षीरिणीम्) बड़ी दुधेल (गाम् इव) गौ के समान (फलवतीम्) उत्तम फलवाली (द्युवम्) व्यवहार शक्ति (दत्त) दान करो। (कृतस्य) कर्म की (धारया) धारा [प्रवाह] से (मा) मुझको (सम् नह्यत) यथावत् बाँधो (इव) जैसे (स्नाव्ना) डोरी से (धनुः) धनुष को [बाँधते हैं] ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्वानों से अनेक विद्यायें प्राप्त करके अपना जीवन सुफल करें ॥९॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ९−(अक्षाः) अक्ष-अर्शआद्यच्। व्यवहारकुशलाः (फलवतीम्) उत्तमफलयुक्ताम् (द्युवम्) दीव्यतेर्भावे-क्विप्। च्छ्वोः शूडनुनासिके च। पा० ६।४।१९। इत्यूठ्, अमि उवङादेशः। व्यवहारशक्तिम् (दत्त) प्रयच्छत (गाम्) धेनुम् (क्षीरिणीम्) बहुदोग्ध्रीम् (इव) यथा (मा) माम् (कृतस्य) विहितस्य कर्मणः (धारया) प्रवाहेण (धनुः) चापम् (स्नाव्ना) स्नामदिपद्यर्ति० उ० ४।११३। स्ना शौचे-वनिप्। वायुवाहिन्या नाड्या। स्नायुनिर्मितया मौर्व्या (इव) यथा (सम् नह्यत) संयोजयत ॥