०४९ देवपत्न्यः ...{Loading}...
Whitney subject
49 (51). To the spouses of the gods.
VH anukramaṇī
देवपत्न्यः।
१-२ अथर्वा। देवपत्नीः। १ आर्षी जगती, २ चतुष्पदा पङ्क्तिः।
Whitney anukramaṇī
[Atharvam.—dvyṛcam. mantroktadevapatnīdevatākam. 1. ārṣī jagatī; 2. 4. p. pan̄kti.]
Whitney
Comment
Not found in Pāipp. The verses are RV. v. 46. 7, 8, also in TB. iii. 5. 121 and MS. iv. 13. 10. Not used in Kāuś. (unless included in patnīvanta gaṇa: see under hymn 47). Vāit. has it (4. 8: not ix. 7. 6, comm.) in the parvan sacrifice, with one of the patnīsaṁyāja offerings.
Translations
Translated: Henry, 17, 75; Griffith, i. 349.
Griffith
A prayer for children and booty
०१ देवानां पत्नीरुशतीरवन्तु
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
दे॒वानां॒ पत्नी॑रुश॒तीर॑वन्तु नः॒ प्राव॑न्तु नस्तु॒जये॒ वाज॑सातये।
याः पार्थि॑वासो॒ या अ॒पामपि॑ व्र॒ते ता नो॑ देवीः सु॒हवाः॒ शर्म॑ यच्छन्तु ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
दे॒वानां॒ पत्नी॑रुश॒तीर॑वन्तु नः॒ प्राव॑न्तु नस्तु॒जये॒ वाज॑सातये।
याः पार्थि॑वासो॒ या अ॒पामपि॑ व्र॒ते ता नो॑ देवीः सु॒हवाः॒ शर्म॑ यच्छन्तु ॥
०१ देवानां पत्नीरुशतीरवन्तु ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Let the spouses of the gods, eager, help us; let them help us forward
unto offspring (? tují), unto winning of booty (vā́ja); they that are
of earth, they that are in the sphere (vratá) of the waters—let those
well-invoked goddesses bestow on us protection.
Notes
The translation implies the accent devī́s in d. The other texts
read accordantly devīḥ suhavāḥ and yachata; ours substitutes
yachantu and adapts suhávās to it, but absurdly leaves devīs
vocative. The comm. reads yacchatu at the end; he explains tujáye by
tokāyā ’patyāya.
Griffith
May the Gods’ Consorts aid us of their own free will, help us to offspring and the winning of the spoil. May Goddesses who quickly listen shelter us, both those on earth and they within the waters’ realm.
पदपाठः
दे॒वाना॑म्। पत्नीः॑। उ॒श॒तीः। अ॒व॒न्तु॒। नः॒। प्र। अ॒व॒न्तु॒। नः॒। तु॒जये॑। वाज॑ऽसातये। याः। पार्थि॑वासः। याः। अ॒पाम्। अपि॑। व्र॒ते। ताः। नः॒। दे॒वीः॒। सु॒ऽहवाः॑। शर्म॑। य॒च्छ॒न्तु॒। ५१.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- देवपत्नी
- अथर्वा
- आर्षी जगती
- देवपत्नी सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के समान रानी को न्याय का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (याः) जो (उशतीः) [उपकार की] इच्छा करती हुई (देवानाम्) विद्वानों वा राजाओं की (पत्नीः) पत्नियाँ (नः) हमें (अवन्तु) तृप्त करें और (तुजये) बल वा स्थान के लिये और (वाजसातये) अन्न देनेवाले संग्राम [जीतने] के लिये (नः) हमारी (प्र) अच्छे प्रकार (अवन्तु) रक्षा करें। और (अपि) भी (याः) जो (पार्थिवासः) और जो पृथिवी की रानियाँ (अपाम्) जलों के (व्रते) स्वभाव में [उपकारवाली] हैं, (ताः) वे सब (सुहवाः) सुन्दर बुलावे योग्य (देवीः) देवियाँ (नः) हमें (शर्म) घर वा सुख (यच्छन्तु) देवें ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - विद्वान् और राजा लोगों के समान उनकी स्त्रियाँ भी उपकार करके प्रजा पालन करें ॥१॥ मन्त्र १, २ कुछ भेद से ऋग्वेद में है−५।४६।७, ८; और निरुक्त में भी व्याख्यात हैं-१२।४५, ४६ ॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(देवानाम्) विदुषां राज्ञां वा (पत्नीः) पत्न्यः (उशतीः) उशत्यः उपकारं कामयमानाः (अवन्तु) तर्पयन्तु (नः) अस्मान् (प्र) प्रकर्षेण (अवन्तु) रक्षन्तु (नः) अस्मान् (तुजये) इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। तुज हिंसाबलादाननिकेतनेषु-इन्। बलाय। निवासाय (वाजसातये) ऊतियूतिजूतिसाति०। पा० ३।३।९७। षणु दाने-क्तिन्। वाजोऽन्नं दीयते येन तस्मै। अन्नलाभाय संग्रामाय-निघ० २।१७। (याः) पत्न्यः (पार्थिवासः) तस्येश्वरः। पा० ५।१४२। पृथिवी-अण्, असुक्। पार्थिव्यः। पृथिवीराज्ञ्यः (याः) (अपाम्) जलानाम् (अपि) (व्रते) स्वभावे (ताः) (नः) अस्मभ्यम् (देवीः) प्रकाशमानाः (सुहवाः) शोभनाह्वानाः (शर्म) सुखं गृहं वा (यच्छन्तु) ददतु ॥
०२ उत ग्ना
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
उ॒त ग्ना व्य॑न्तु दे॒वप॑त्नीरिन्द्रा॒ण्य१॒॑ग्नाय्य॒श्विनी॒ राट्।
आ रोद॑सी वरुणा॒नी शृ॑णोतु॒ व्यन्तु॑ दे॒वीर्य ऋ॒तुर्जनी॑नाम् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
उ॒त ग्ना व्य॑न्तु दे॒वप॑त्नीरिन्द्रा॒ण्य१॒॑ग्नाय्य॒श्विनी॒ राट्।
आ रोद॑सी वरुणा॒नी शृ॑णोतु॒ व्यन्तु॑ दे॒वीर्य ऋ॒तुर्जनी॑नाम् ॥
०२ उत ग्ना ...{Loading}...
Whitney
Translation
- And let the women (gnā́) partake (vī), whose husbands are
gods—Indrāṇī, Agnāyī, Aśvinī the queen; let Ródasī, let Varuṇānī listen;
let the goddesses partake, [at] the season that is the wives'.
Notes
The other texts offer no variants, save that the RV. pada-text
unaccountably reads in c ródasī íti, as if the word were the
common dual, instead of a proper name. The verse can be read as of 40
syllables.
Griffith
May the Dames, wives of Gods, enjoy our presents, Rat, Asvini Indrani and Agnayi; May Rodasi and Varunani hear us, and Goddesses come at the matrons’ season.
पदपाठः
उ॒त। ग्नाः। व्य॒न्तु॒। दे॒वऽप॑त्नीः। इ॒न्द्रा॒णी। अ॒ग्नायी॑। अ॒श्विनी॑। राट्। आ। रोद॑सी। व॒रु॒णा॒नी। शृ॒णो॒तु॒। व्यन्तु॑। दे॒वीः। यः। ऋ॒तुः। जनी॑नाम्। ५१.२।
अधिमन्त्रम् (VC)
- देवपत्नी
- अथर्वा
- चतुष्पदा पङ्क्तिः
- देवपत्नी सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
राजा के समान रानी को न्याय का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - (उत) और भी (देवपत्नीः) विद्वानों वा राजाओं की पत्नियाँ, [अर्थात्] (राट्) ऐश्वर्यवाली, (इन्द्राणी) बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष की पत्नी, (अग्नायी) अग्नि सदृश तेजस्वी पुरुष की स्त्री, (अश्विनी) शीघ्रगामी पुरुष की स्त्री [प्रजा की] (ग्नाः) वाणियों को (व्यन्तु) व्याप्त हों। (आ) और (रोदसी) रुद्र, ज्ञानवान् पुरुष की स्त्री अथवा (वरुणानी) श्रेष्ठजन की पत्नी [वाणियों को] (शृणोतु) सुने और (यः) जो (जनीनाम्) स्त्रियों का [न्याय का] (ऋतुः) काल है, (देवीः) यह सब देवियाँ [उसकी] (व्यन्तु) चाहना करें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - स्त्रियाँ स्त्रियों को अपनी न्यायसभा के अधिकारी बनाकर घर और बाहिर के झगड़ों को उचित समय पर निर्णय करें, और बालकों को भी वैसी शिक्षा दें ॥२॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: २−(उत) अपि च (ग्नाः) धापॄवस्यज्यतिभ्यो नः। उ० ३।६। इति गमेर्न, टिलोपः, टाप्। मेना ग्ना इति स्त्रीणाम्, ग्ना गच्छन्त्येना-निरु० ३।२१। ग्ना गमनादापो देवपत्न्यो वा-निरु० १०।४७। ग्ना वाक्-निघ० १।११। वाणीः (व्यन्तु) वी गतिव्याप्तिप्रजनादिषु। व्याप्नुवन्तु (देवपत्नीः) विदुषां राज्ञां वा पत्न्यः (इन्द्राणी) इन्द्रस्य परमैश्वर्ययुक्तस्य पत्नी (अग्नायी) वृषाकप्यग्नि०। पा० ४।१।३७। ऐकारादेशः, ङीप् च। अग्नेः पावकवद् वर्तमानस्य पत्नी (अश्विनी) आशुगामिनः स्त्री (राट्) राजति=ईष्टे-निघ० २।२१। राजृ-क्विप्। ऐश्वर्यवती (आ) समुच्चये (रोदसी) सर्वधातुभ्योऽसुन्। उ० ४।१।८९। रुधिर् आवरणे-असुन्, धस्य दकारः। उगितश्च। पा० ४।१।६। ङीप्। रोधनशीला रुद्रस्य पत्नी-निरु० १२।४६। ज्ञानवतः पत्नी (वरुणानी) श्रेष्ठजनस्य पत्नी (शृणोतु) (व्यन्तु) कामयन्ताम् (देवीः) विदुष्यः (ऋतुः) उपकारकालः (जनीनाम्) स्त्रीणाम् ॥