०४८ राका

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Whitney subject

48 (50). To Rākā (goddess of the full moon).

VH anukramaṇī

राका।
१-२अथर्वा। राका। जगती।

Whitney anukramaṇī

[Atharvan.—dvyṛcam. mantroktadevatyam. jāgatam.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. xx. Further, as RV. ii. 32. 4, 5 and in TS. (iii. 3. 115), MS. (iv. 12. 6), and MB. (i. 5. 3, 4). As to use in Kāuś. and Vāit., see under hymn 47. The second half of verse 2 is further found in the adbhuta chapter of Kāuś. (106. 7) as part of a series of verses there given in full.

Translations

Translated: Henry, 17, 74; Griffith, i. 348.

Griffith

A prayer for prosperity and the birth of a son

०१ राकामहं सुहवा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

रा॒काम॒हं सु॒हवा॑ सुष्टु॒ती हु॑वे शृ॒णोतु॑ नः सु॒भगा॒ बोध॑तु॒ त्मना॑।
सीव्य॒त्वपः॑ सू॒च्याच्छि॑द्यमानया॒ ददा॑तु वी॒रं श॒तदा॑यमु॒क्थ्य॑म् ॥

०१ राकामहं सुहवा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Rākā I call with good call, with good praise; let the fortunate one
    hear us; let her willingly note; let her sew the work with a needle that
    does not come apart; let her give a hero of hundred-fold value, worthy
    of praise.
Notes

The other texts agree throughout,* and differ from ours only by reading
in a suhávām, which Ppp. also has, and the comm. The latter
explains Rākā as sampūrṇacandrā pāurṇamāsi. ⌊Our d repeats 47. 1
d.⌋ *⌊But MB. has śatadāyu-mukhyam.⌋

Griffith

I call on Raka with hair laud and reverent cry: may she, auspicious, hear us and herself observe. With never-breaking needle may she sew her work, and send a glorious man who gives a hundred gifts.

पदपाठः

रा॒काम्। अ॒हम्। सु॒ऽहवा॑। सु॒ऽस्तु॒ती। हु॒वे॒। शृ॒णोतु॑। नः॒। सु॒ऽभगा॑। बोध॑तु। त्मना॑। सीव्य॑तु। अपः॑। सू॒च्या। अच्छि॑द्यमानया। ददा॑तु। वी॒रम्। श॒तऽदा॑यम्। उ॒क्थ्य᳡म्। ५०.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • राका
  • अथर्वा
  • जगती
  • राका सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

स्त्रियों के कर्तव्यों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (राकाम्) राका, अर्थात् सुख देनेवाली वा पूर्णमासी के समान शोभायमान पत्नी को (सुहवा) सुन्दर बुलावे से और (सुष्टुती) बड़ी स्तुति से (अहम्) मैं (हुवे) बुलाता हूँ, (सुभगा) वह सौभाग्यवती [बड़े ऐश्वर्यवाली] (नः) हमें (शृणोतु) सुने और (त्मना) अपने आत्मा से (बोधतु) समझे। और (अच्छिद्यमानया) न टूटती हुई (सूच्या) सुई से (अपः) कर्म [गृहस्थ कर्तव्य] को (सीव्यतु) सीये, और (शतदायम्) सैकड़ों धनवाला, (उक्थ्यम्) प्रशंसनीय (वीरम्) वीर सन्तान (ददातु) देवे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - पुरुष सुखदायिनी, अनेक शुभगुणों से शोभायमान पूर्णमासी के समान पत्नी को आदर से बुलावे और वह ध्यान देकर पति के सम्मति से गृहस्थ कर्तव्य को लगातार प्रयत्न से करती हुई वीर पुरुषार्थी सन्तान उत्पन्न करे, जैसे अच्छी दृढ़ सुई से सींकर वस्त्र को सुन्दर बनाते हैं ॥१॥ मन्त्र १, २ कुछ भेद से ऋग्वेद में है−२।३२।४, ५। और महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि, सीमन्तोन्नयन प्रकरण में हैं। और मन्त्र एक-निरु० ११।३१। में व्याख्यात है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(राकाम्) कृदाधारार्चिकलिभ्यः कः। उ० ३।४०। रा दाने-क, टाप्। अनुमती राकेति देवपत्न्याविति नैरुक्ताः। पौर्णमास्याविति याज्ञिका या पूर्वा पौर्णमासी सानुमतिर्योत्तरा सा राकेति विज्ञायते-निरु० ११।२९। राका रातेर्दानकर्मणः-निरु० ११।३०। राका पदनाम-निघ० ५।५। सुखदात्रीम्। पौर्णमासीम्। पौर्णमासीसमानशोभायमानाम् (अहम्) पतिः (सुहवा) अ० ७।४७।१। शुभाह्वानेन (सुष्टुती) शोभनया स्तुत्या (हुवे) आह्वयामि (शृणोतु) (नः) अस्मान् (सुभगा) शोभनैश्वर्ययुक्ता (बोधतु) जानातु (त्मना) स्वात्मना (सीव्यतु) षिवु तन्तुसन्ताने। सन्तनोतु (अपः) कर्म (सूच्या) सिवेष्टेरू च। उ० ४।९३। इति षिवु तन्तुसन्ताने−चट्, ङीप्। स्वनामख्यातया सीवनसाधनया (अच्छिद्यमानया) छेत्तुमनर्हया। अन्यद् व्याख्यातम्-अ० ७।४७।१ ॥

०२ यास्ते राके

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

यास्ते॑ राके सुम॒तयः॑ सु॒पेश॑सो॒ याभि॒र्ददा॑सि दा॒शुषे॒ वसू॑नि।
ताभि॑र्नो अ॒द्य सु॒मना॑ उ॒पाग॑हि सहस्रापो॒षं सु॑भगे॒ ररा॑णा ॥

०२ यास्ते राके ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. The well-adorned favors that are thine, O Rākā, wherewith thou givest
    good things to thy worshiper,—with them do thou come to us today
    favoring, granting, O fortunate one, thousand-fold prosperity.
Notes

The other texts agree throughout and differ from ours only by reading in
d sahasrapoṣám, which is given also by the comm., and by three of
SPP’s (ten) authorities. The meter is mixed triṣṭubh and jagatī.

Griffith

All thy kind favours, Raka! lovely in their form, wherewith thou grantest treasures to the man who gives, With these come thou to us this day benevolent, O blessed one, bestowing wealth of thousand sorts.

पदपाठः

याः। ते॒। रा॒के॒। सु॒ऽम॒तयः॑। सु॒ऽपेश॑सः। याभिः॑। ददा॑सि। दा॒शुषे॑। वसू॑नि। ताभिः॑। नः॒। अ॒द्य। सु॒ऽमनाः॑। उ॒प॒ऽआग॑हि। स॒ह॒स्र॒ऽपो॒षम्। सु॒ऽभ॒गे॒। ररा॑णा। ५०.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • राका
  • अथर्वा
  • जगती
  • राका सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

स्त्रियों के कर्तव्यों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (राके) हे सुखदायिनी ! वा पूर्णमासी समान शोभायमान पत्नी ! (याः) जो (ते) तेरी (सुमतयः) सुमतियें (सुपेशसः) बहुत सुवर्णवाली हैं, (याभिः) जिनसे तू (दाशुषे) धन देनेवाले [मुझ पति] को (वसूनि) अनेक धन (ददासि) देती है। (सुभगे) हे सौभाग्यवती ! (ताभिः) उन [सुमतियों] से (नः) हमें (सहस्रपोषम्) सहस्र प्रकार से पुष्टि को (रराणा) देती हुई, (सुमनाः) प्रसन्नमन होकर (अद्य) आज (उपागहि) समीप आ ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - विदुषी, सुलक्षणा, विचारशील, प्रसन्नचित्त पत्नी धन और सम्पत्ति की रक्षा और बढ़ती करती हुई पतिप्रिया होकर घर में सुख बढ़ाती रहे ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(याः) (ते) तव (राके) म० १। सुखप्रदे। पूर्णमासीसमशोभायमाने (सुमतयः) कल्याणबुद्ध्यः (सुपेशसः) पिश अवयवे, दीप्तौ च-असुन्। पेशः=हिरण्यम्-निघ० १।२, रूपम्-निघ० ३।७। बहुहिरण्ययुक्ताः (याभिः) (ददासि) (दाशुषे) धनस्य दात्रे पत्ये (वसूनि) धनानि (ताभिः) सुमतिभिः (अद्य) (सुमनाः) प्रसन्नचित्ता (उपागहि) समीपमागच्छ (सहस्रपोषम्) असंख्यपुष्टिम् (सुभगे) हे सौभाग्ययुक्ते (रराणा) अ० ५।२७।११। प्रयच्छन्ती ॥