०४६ सिनीवाली

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Whitney subject

46 (48). To Sinīvāli (goddess of the new moon).

VH anukramaṇī

सिनीवाली।
१-३ अथर्वा। सिनीवाली। अनुष्टुप्। ३ त्रिष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Atharvan.-—tṛcam. mantroktadevatyam. ānuṣṭubham: 3. triṣṭubh.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. xx. (in the verse-order 2, 1, 3). Used by Kāuś. (32. 3), with hymn 29 etc., and again (59. 19) with hymn 17 etc.: see under hymns 29 and 17. In Vāit. (1. 14), in the parvan sacrifice, it conciliates Sinīvālī.

Translations

Translated: Henry, 16, 73; Griffith, i. 347.

Griffith

A charm for offspring and prosperity

०१ सिनीवालि पृथुष्टुके

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

सिनी॑वालि॒ पृथु॑ष्टुके॒ या दे॒वाना॒मसि॒ स्वसा॑।
जु॒षस्व॑ ह॒व्यमाहु॑तं प्र॒जां दे॑वि दिदिड्ढि नः ॥

०१ सिनीवालि पृथुष्टुके ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O Sinīvālī, of the broad braids, that art sister of the gods! enjoy
    thou the offered oblation; appoint us progeny, O goddess.
Notes

Some of the mss. (including our Bp.P.) wrongly leave ási unaccented in
b. Most of our mss. read didiḍhḍhi in d, but SPP. reports
nothing of the kind from his authorities; Ppp. gives didiḍhi. The
verse is RV. ii. 32. 6 (also VS. xxxiv. 10; TS. iii. i. 11³; MS. iv. 12.
6), without variant.* The second half is nearly the same with 20. 2
c, d; 68. 1 c, d. The comm. gives several discordant
interpretations of pṛthuṣṭuke, and is uncertain whether to take
didiḍḍhi from diśGram. §218⌋ or from dih. *⌊And b is
nearly v. 5. 1 d and vi. 100. 3 b.⌋

Griffith

O broad-tressed Sinivali, thou who art the sister of the Gods, Accept the offered sacrifice, and, Goddess, grant us progeny.

पदपाठः

सिनी॑वालि। पृथु॑ऽस्तुके। या। दे॒वाना॑म्। असि॑। स्वसा॑। जु॒षस्व॑। ह॒व्यम्। आऽहु॑तम्। प्र॒ऽजाम्। दे॒व‍ि॒। दि॒द‍ि॒ड्ढि॒। नः॒। ४८.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • सिनीवाली
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • सिनीवाली सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

स्त्रियों के गुणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (पृथुष्टुके) हे बहुत स्तुतिवाली ! (सिनीवालि) अन्नवाली [वा प्रेमयुक्त बल करनेवाली] गृहपत्नी ! (या) जो तू (देवानाम्) दिव्यगुणों की (स्वसा) अच्छे प्रकार प्रकाश करनेवाली वा ग्रहण करनेवाली (असि) है, सो तू (हव्यम्) ग्रहण करने योग्य, (आहुतम्) सब प्रकार स्वीकार किये व्यवहार का (जुषस्व) सेवन कर और (देवि) हे कामनायोग्य देवी ! (नः) हमारे लिये (प्रजाम्) सन्तान (दिदिड्ढि) दे ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जिस घर में अन्नवती, सुशिक्षित, व्यवहारकुशल स्त्रियाँ होती हैं, वहीं उत्तम सन्तान उत्पन्न होते हैं ॥१॥ यह मन्त्र ऋग्वेद में है-२।३२।६। और यजुर्वेद−३४।१०। तथा-निरु० ११।३२। में व्याख्यात है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(सिनीवालि) अ० २।२६।२। षिञ् बन्धने-नक्, ङीप्+बल जीवने दाने च-अण्, ङीप्। हे अन्नवति-निरु० ११।३१। यद्वा सिनी प्रेमबद्धा चासौ बलकारिणी च तत्सम्बुद्धौ (पृथुष्टुके) सृवृभूशुषिमुषिभ्यः कक्। उ० ३।४१। इति ष्टुञ् स्तुतौ-कक्। बहुस्तुतियुक्ते (या) (देवानाम्) दिव्यगुणानाम् (असि) भवसि (स्वसा) अ० ५।५।१। सु+अस दीप्तौ ग्रहणे च−ऋन्। सुष्ठु दीपयित्री ग्रहीत्री वा (जुषस्व) सेवस्व (हव्यम्) ग्राह्यम् (आहुतम्) समन्तात् स्वीकृतं व्यवहारम् (प्रजाम्) सुसन्तानरूपाम् (देवि) कमनीये विदुषि (दिदिड्ढि) दिश दाने-लोटि, शपः श्लु। दिश। देहि (नः) अस्मभ्यम् ॥

०२ या सुबाहुः

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या सु॑बा॒हुः स्व॑ङ्गु॒रिः सु॒षूमा॑ बहु॒सूव॑री।
तस्यै॑ वि॒श्पत्न्यै॑ ह॒विः सि॑नीवा॒ल्यै जु॑होतन ॥

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Whitney
Translation
  1. She that is of good arms, of good fingers, bearing well, giving birth
    to many—to that Sinīvālī, mistress of the people, offer ye oblation.
Notes

The verse is RV. ii. 32. 7, without variant (also TS.MS., as above, both
with supāṇís for subāhús). Ppp. reads in a, b suman̄galis
suṣumā
.

Griffith

Present the sacrifice to her, to Sinivali, Queen of men, Beauti- ful-fingered, lovely-armed, prolific, bearing many a child.

पदपाठः

या। सु॒ऽबा॒हुः। सु॒ऽअ॒ङ्गु॒रिः। सु॒ऽसूमा॑। ब॒हु॒ऽसूव॑री। तस्यै॑। वि॒श्पत्न्यै॑। ह॒विः। सि॒नी॒वा॒ल्यै। जु॒हो॒त॒न॒। ४८.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • सिनीवाली
  • अथर्वा
  • अनुष्टुप्
  • सिनीवाली सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

स्त्रियों के गुणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (या) जो (सुबाहुः) शुभकर्मों में भुजा रखनेवाली, (स्वङ्गुरिः) सुन्दर व्यवहारों में अङ्गुरी रखनेवाली, (सुषूमा) भली-भाँति आगे चलनेवाली, और (बहुसूवरी) बहुत प्रकार से वीरों को उत्पन्न करनेवाली, [माता है], (तस्यै) उस (विश्पत्न्यै) प्रजाओं की पालनेवाली, (सिनीवाल्यै) बहुत अन्नवाली [गृहपत्नी] को (हविः) देने योग्य पदार्थ का (जुहोतन) दान करो ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो स्त्रियाँ गृहकार्य में चतुर वीर सन्तान उत्पन्न करनेहारी हैं, उनका सत्कार सब मनुष्यों को सदा करना चाहिये ॥२॥ यह मन्त्र ऋग्वेद में है−२।३२।७ ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(या) पत्नी (सुबाहुः) शुभकर्मसु बाहू यस्याः सा (स्वङ्गुरिः) शोभनेषु व्यवहारेषु अङ्गुरयो यस्याः सा (सुषूमा) इषियुधीन्धि०। उ० १।१४५। षू प्रेरणे-मक्, टाप्। सुप्रेरयित्री। सुनेत्री (बहुसूवरी) षू प्रसवे-क्वनिप्। वनो र च। पा० ४।१।७। ङीब्रेफौ। बहुविधं वीराणां जनयित्री (तस्यै) (विश्पत्न्यै) प्रजानां पालयित्र्यै (हविः) दातव्यं पदार्थम् (सिनीवाल्यै) म० १। अन्नवत्यै (जुहोतन) तप्तनप्तनथनाश्च। पा० ७।१।४५। इति हु दानादिषु लोटि तस्य तनप्। जुहुत। दत्त ॥

०३ या विश्पत्नीन्द्रमसि

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या वि॒श्पत्नीन्द्र॒मसि॑ प्र॒तीची॑ स॒हस्र॑स्तुकाभि॒यन्ती॑ दे॒वी।
विष्णोः॑ पत्नि॒ तुभ्यं॑ रा॒ता ह॒वींषि॒ पतिं॑ देवि॒ राध॑से चोदयस्व ॥

०३ या विश्पत्नीन्द्रमसि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. Who, mistress of the people, art a match for (? pratī́cī) Indra,
    the thousand-braided goddess coming on, to thee, O spouse of Vishṇu, are
    the oblations given; stir up thy husband, O goddess, unto bestowal.
Notes

Ppp. reads viśvatas (for viśpatnī) in a, sahasrastutā in
b, and rādhasā in d. Henry acutely points out that this verse
probably belongs to Anumati, who is else left unaddressed in this group
of hymns to the lunar deities, and that its description applies best to
her.

Griffith

Thou who as Queen of men art Indra’s equal, a Goddess coming with a thousand tresses, To thee our sacrifices are performed, O Consort of Vishnu Goddess, urge thy Lord to bounty!

पदपाठः

या। वि॒श्पत्नी॑। इन्द्र॑म्। असि॑। प्र॒तीची॑। स॒हस्र॑ऽस्तुका। अ॒भि॒ऽयन्ती॑। दे॒वी। विष्णोः॑। प॒त्नि॒। तुभ्य॑म्। रा॒ता। ह॒वींषि॑। पति॑म्। दे॒वि॒। राध॑से। चो॒द॒य॒स्व॒। ४८.३।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • सिनीवाली
  • अथर्वा
  • त्रिष्टुप्
  • सिनीवाली सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

स्त्रियों के गुणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (या) जो (विश्पत्नी) सन्तानों की पालनेवाली, (प्रतीची) निश्चित ज्ञानवाली, (सहस्रस्तुका) सहस्रों स्तुतिवाली, (अभियन्ती) चारों ओर चलती हुई (देवी) देवी तू (इन्द्रम्) ऐश्वर्य को (असि=अससि) ग्रहण करती है। (विष्णोः) पत्नि) हे कामों में व्यापक वीर पुरुष की पत्नी ! (तुभ्यम्) तेरे लिये (हवींषि) देने योग्य पदार्थ (राता) दिये गये हैं, (देवि) हे देवी ! (पतिम्) अपने पति को (राधसे) सम्पत्ति के लिये (चोदयस्व) आगे बढ़ा ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - स्त्रियाँ गृहकार्य में चतुर रह कर अपने पतियों द्वारा धनसंचय कराकर सन्तान पालन आदि कार्य करती रहें ॥३॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: ३−(या) (विश्पत्नी) प्रजानां पालयित्री (इन्द्रम्) ऐश्वर्यम् (असि) अस ग्रहणे। अससि गृह्णासि (प्रतीची) अ० ७।३८।३। निश्चितज्ञानयुक्ता। (सहस्रस्तुका) म० १। ष्टुञ्-कक्। असंख्यस्तुतियुक्ता (अभियन्ती) अभितो गच्छन्ती (देवी) व्यवहारकुशला (विष्णोः) कार्येषु व्यापकस्य पत्युः (पत्नि) (तुभ्यम्) (राता) दत्तानि (हवींषि) दातव्यानि वस्तूनि (पतिम्) स्वामिनम् (देवि) (राधसे) धनाय-निघ० २।१०। (चोदयस्व) प्रेरयस्व। प्रगमय ॥