०४३ वाक् ...{Loading}...
Whitney subject
43 (44). Of speech (?).
VH anukramaṇī
वाक्
१ प्रस्कण्वः। वाक्। त्रिष्टुप्।
Whitney anukramaṇī
[Praskaṇva.—vāgdevatyam. trāiṣṭubham.]
Whitney
Comment
Not found in Pāipp., nor elsewhere. Used in Kāuś. (46. 1), with v. 1. 7, in a rite against false accusation; the details cast no light on the meaning of the verse.
Translations
Translated: Henry, 15, 72; Griffith, i. 346.
Griffith
A charm against lightning
०१ शिवास्त एका
विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...
शि॒वास्त॒ एका॒ अशि॑वास्त॒ एकाः॒ सर्वा॑ बिभर्षि सुमन॒स्यमा॑नः।
ति॒स्रो वाचो॒ निहि॑ता अ॒न्तर॒स्मिन्तासा॒मेका॒ वि प॑पा॒तानु॒ घोष॑म् ॥
मूलम् ...{Loading}...
मूलम् (VS)
शि॒वास्त॒ एका॒ अशि॑वास्त॒ एकाः॒ सर्वा॑ बिभर्षि सुमन॒स्यमा॑नः।
ति॒स्रो वाचो॒ निहि॑ता अ॒न्तर॒स्मिन्तासा॒मेका॒ वि प॑पा॒तानु॒ घोष॑म् ॥
०१ शिवास्त एका ...{Loading}...
Whitney
Translation
- Propitious to thee [are] some; unpropitious to thee [are] some;
all thou bearest, with well-willing mind. Three voices (vā́c) [are]
deposited within him (it?); of these, one flew away after sound
(ghóṣa).
Notes
A mystical saying, of very doubtful interpretation; the comm. gives a
long and worthless exposition. The ‘some’ and ‘all’ in a, b are
feminine, like vāc; the ’thou’ is masculine; the comm. (after Kāuś.)
understands it of a ‘man causelessly reproached.’ Henry imagines the
thunder to be intended, asmin signifying Parjanya, and renders d
“one of them has gone to pieces with no other result than sound: i.e.,
without rain.”
Griffith
Some of thy words bode weal and some misfortune: thou scat- terest them all with friendly feeling. Deep within this three words are laid: among them one hath flown off even as the sound was uttered.
पदपाठः
शि॒वाः। ते॒। एकाः॑। अशि॑वाः। ते॒। एकाः॑। सर्वाः॑। बि॒भ॒र्षि॒। सु॒ऽम॒न॒स्यमा॑नः। ति॒स्रः। वाचः॑। निऽहि॑ता। अ॒न्तः। अ॒स्मिन्। तासा॑म्। एका॑। वि। प॒पा॒त॒। अनु॑। घोष॑म्। ४४.१।
अधिमन्त्रम् (VC)
- वाक्
- प्रस्कण्वः
- त्रिष्टुप्
- वाक् सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः
कल्याणी वाणी के प्रचार का उपदेश।
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः
पदार्थान्वयभाषाः - [हे पुरुष !] (ते) तेरी (एकाः) कोई [वाचायें] (शिवाः) कल्याणी हैं और (ते) तेरी (एकाः) कोई (अशिवाः) अकल्याणी हैं [और कोई माध्यमिका हैं], (सर्वाः) इन सबको (सुमनस्यमानः) अच्छे प्रकार मनन करता हुआ तू (बिभर्षि) धारण करता है। (तिस्रः) यह तीनों (वाचः) वाचायें (अस्मिन् अन्तः) इस [आत्मा] के भीतर (निहिताः) रक्खी रहती हैं, (तासाम्) उनमें से (एकाः) एक [कल्याणी वाणी] (घोषम् अनु) उच्चारण के साथ-साथ (वि) विशेष करके (पपात) ऐश्वर्यवती हुई है ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अपने हृदय में हित, अहित और उदासीनता का विचार करके एक हित ही बोलते हैं, वही ऐश्वर्यवान् पुरुष संसार को ऐश्वर्यवान् करते हैं ॥१॥
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी
टिप्पणी: १−(शिवाः) कल्याण्यः। वेदवाचः (ते) तव (एकाः) अन्याः (अशिवाः) अकल्याण्यः। अहिताः (ते) (एकाः) (सर्वाः) शिवा अशिवा माध्यमिका वाचश्च (बिभर्षि) धरसि (सुमनस्यमानः) अ० १।३५।१। शोभनं ध्यायन्। सुमननशीलः (तिस्रः) त्रिसंख्याकाः (वाचः) वाण्यः (निहिताः) अवस्थिताः (अन्तः) मध्ये (अस्मिन्) आत्मनि। मनसि (तासाम्) वाचां मध्ये (एका) शिवा वाक् (वि) विशेषेण (पपात) पत ऐश्वर्ये लिट्। ईश्वरी बभूव (अनु) अनुसृत्य (घोषम्) उच्चारणध्वनिम् ॥