०४२ पापमोचनम्

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Whitney subject

42 (43). To Soma and Rudra.

VH anukramaṇī

पापमोचनम्।
१-२ प्रस्कण्वः। सोमारुद्रौ। त्रिष्टुप्।

Whitney anukramaṇī

[Praskaṇva.—dvyṛcam. mantroktadevatyam. trāiṣṭubham.]

Whitney

Comment

Found also in Pāipp. i. Used in Kāuś. (32. 3) with hymn 29 etc.: see that hymn.

Translations

Translated: Henry, 15, 71; Griffith, i. 346.

Griffith

A prayer for delivery from sin and sickness

०१ सोमारुद्रा वि

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

सोमा॑रुद्रा॒ वि वृ॑हतं विषूची॒ममी॑वा॒ या नो॒ गय॑मावि॒वेश॑।
बाधे॑थां दू॒रं निरृ॑तिं परा॒चैः कृ॒तं चि॒देनः॒ प्र मु॑मुक्तम॒स्मत् ॥

०१ सोमारुद्रा वि ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O Soma-and-Rudra, eject asunder the disease that has entered our
    household; drive far to a distance perdition; any committed sin put away
    from us.
Notes

The first three pādas occur in RV. vi. 74. 2 (a, b, c) and MS. iv.
11. 2, and the last two (repeating c) in RV. i. 24. 9 and MS. i. 3.
39; TS. i. 8. 22⁵ has the whole verse. At beginning of c, all
(RV.MS. in the former occurrence) have āre bādhethām, omitting dūrám
(in the latter occurrence, RV. bā́dhasva dūre, MS. āré bādhasva; both
mumugdhi in d). Ppp. reads, in c, dveṣo nirṛtiṁ ca, and in
d asmāt. The comm. explains gayam as gṛhaṁ śarīraṁ vā. ⌊We had
c, d also above at vi. 97. 2; see also TS. i. 4. 45¹, which has
dvéṣo like Ppp.⌋

Griffith

Scatter and drive away, Soma and Rudra, the sickness that hath come within our dwelling, Afar into the distance chase Destruction, and even from commit- ted sin release us.

पदपाठः

सोमा॑रुद्रा। वि। वृ॒ह॒त॒म्। विषू॑चीम्। अमी॑वा। या। नः॒। गय॑म्। आ॒ऽवि॒वेश॑। बाधे॑थाम्। दू॒रम्। निःऽऋ॑तिम्। प॒रा॒चैः। कृ॒तम्। चि॒त्। एनः॑। प्र। मु॒मु॒क्त॒म्। अ॒स्मत्। ४३.१।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • सोमारुद्रौ
  • प्रस्कण्वः
  • त्रिष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और वैद्य के गुणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सोमारुद्रा) हे सूर्य और मेघ [के समान सुखदायक राजा और वैद्य !] तुम दोनों (विषूचीम्) विसूचिका, [हुलकी आदि] को (विवृहतम्) छिन्न-भिन्न कर दो, (या अमीवा) जो रोग (नः गयम्) हमारे घर वा सन्तान में (आविवेश) प्रवेश कर गया है, (निर्ऋतिम्) दुःखदायिनी कुनीति को (पराचैः) औंधे मुँह करके (दूरम्) दूर (बाधेथाम्) हटाओ, और (कृतम्) उसके किये हुए (एनः) दुःख को (चित्) भी (अस्मत्) हम से (प्र मुमुक्तम्) छुड़ा दो ॥१॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - जो राजा और वैद्य कारणों को समझ कर कुनीति और रोग का प्रतिकार करते हैं, वहाँ प्रजागण दुःख से छूटकर सुखी रहते हैं ॥१॥ मन्त्र १, २ कुछ भेद से ऋग्वेद में है−६।७४।२, ३। इनका भाष्य महर्षि दयानन्द के आश्रय पर किया गया है ॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: १−(सोमारुद्रा) सोमः सूर्यः प्रसवनात्-निरु० १४।१२। रुद्रो रौतीति सतः-निरु० १०।५। मध्यस्थानो मेघः। सूर्यमेघवत् सुखप्रदौ राजवैद्यौ (वि वृहतम्) वृहू उद्यमने। छेदयतम् (विषूचीम्) अ० १।२९।१। विषु+अञ्चु गतौ-क्विन्। विषूचिकादिरोगम् (अमीवा) इण्शीभ्यां वन्। उ० १।१५२। इति बाहुलकात् अम रोगे पीडने च-वन्, ईडागमः, टाप्। रोगः (या) (नः) अस्माकम् (गयम्) गृहमपत्यं वा (आविवेश) प्रविष्टवती (बाधेथाम्) निवारयतम् (दूरम्) (निर्ऋतिम्) दुःखप्रदां कुनीतिम् (पराचैः) अ० २।१०।५। पराङ्मुखीं कृत्वा (कृतम्) तया सम्पादितम् (एनः) दोषम् (प्र) प्रकर्षेण (मुमुक्तम्) मोचयतम् (अस्मत्) अस्मत्तः ॥

०२ सोमारुद्रा युवमेतान्यस्मद्विश्वा

विश्वास-प्रस्तुतिः ...{Loading}...

सोमा॑रुद्रा यु॒वमे॒तान्य॒स्मद्विश्वा॑ त॒नूषु॑ भेष॒जानि॑ धत्तम्।
अव॑ स्यतं मु॒ञ्चतं॒ यन्नो॒ अस॑त्त॒नूषु॑ ब॒द्धं कृ॒तमेनो॑ अ॒स्मत् ॥

०२ सोमारुद्रा युवमेतान्यस्मद्विश्वा ...{Loading}...

Whitney
Translation
  1. O Soma-and-Rudra, do ye put all these remedies in our bodies; untie,
    loosen from us what committed sin may be bound in our bodies.
Notes

Found also in RV. (vi. 74. 3), TS.MS. (as above) ⌊TS. yúvam, by
misprint⌋; all read asmé for the ungrammatical asmát in a, and
the translation follows them; and they have ásti for ásat in c.

Griffith

Lay on our bodies, O ye twain, O Soma and Rudra, all those balms that heal diseases. Set free and draw away the sin committed, which we have still inherent in our persons.

पदपाठः

सोमा॑रुद्रा। यु॒वम्। ए॒तानि॑। अ॒स्मत्। विश्वा॑। त॒नूषु॑। भे॒ष॒जानि॑। ध॒त्त॒म्। अव॑। स्य॒त॒म्। मु॒ञ्चत॑म्। यत्। नः॒। अस॑त्। त॒नूषु॑। ब॒ध्दम्। कृ॒तम्। एनः॑। अ॒स्मत्। ४३.२।

अधिमन्त्रम् (VC)
  • सोमारुद्रौ
  • प्रस्कण्वः
  • त्रिष्टुप्
  • पापमोचन सूक्त
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - विषयः

राजा और वैद्य के गुणों का उपदेश।

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पदार्थः

पदार्थान्वयभाषाः - (सोमारुद्रा) हे सूर्य और मेघ [के समान उपकारी राजा और वैद्य !] (युवम्) तुम दोनों (एतानि विश्वा भेषजानि) इन सब औषधों को (अस्मत्) हमारे (तनूषु) शरीरों में (धत्तम्) रक्खो। (यत्) जो (नः) हमारे (तनूषु) शरीरों में (बद्धम्) लगा हुआ और (कृतम्) किया हुआ (एनः) दोष (असत्) होवे, [उसे] (अस्मत्) हमसे (अवस्यतम्) नष्ट करो और (मुञ्चतम्) छुड़ाओ ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - भावार्थः

भावार्थभाषाः - राजा और वैद्य वैद्यक विद्या के प्रचार से प्रजा को कुपथ्य आदि दोषों से बचाकर नीरोग और पुरुषार्थी बनाकर सुखी रक्खें ॥२॥

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी - पादटिप्पनी

टिप्पणी: २−(सोमारुद्रा) म० १। (युवम्) युवाम् (एतानि) रोगनिवारकाणि (अस्मत्) षष्ठ्या लुक्। अस्माकम् (विश्वा) सर्वाणि (तनूषु) शरीरेषु (भेषजानि) औषधानि (धत्तम्) धारयतम् (अव स्यतम्) षो अन्तकर्मणि। सर्वथा नाशयतम् (मुञ्चतम्) वियोजयतम् (यत्) दुःखम् (नः) अस्माकम् (असत्) स्यात् (बद्धम्) लग्नम् (कृतम्) (एनः) कुपथ्यादिदोषम् (अस्मत्) अस्मत्तः ॥